लेखक- विनय कुमार पाठक

संजीव व्यक्तिगत रूप से परिवार के लिए और शृंगार हाउसिंग सोसाइटी के सचिव होने के नाते समस्त सोसाइटी के लिए कोरोना संक्रमण को लेकर काफी चिंतित थे. वैसे उन्होंने सिक्यूरिटी को हिदायत दे रखी थी कि किसी को भी बगैर मास्क लगाए, बगैर सैनिटाइजर से हाथ धोए, अंदर प्रवेश नहीं करने देना है. कुछ दिनों से सभी मेड को भी अंदर आने से रोक दिया गया था. कोरोना का कहर चारो ओर बरपा हुआ था. मई के महीने में तो प्रायः हर टावर के हर मंजिल पर एक दो परिवार कोरोना संक्रमित थे. सौभाग्य से किसी की मौत नहीं हुई थी पर कुछ लोग काफी बुरी तरह से प्रभावित हुए थे.

धीरे-धीरे कोरोना संक्रमितों की संख्या काफी कम हो गई थी. अब तो शायद ही कोई कोरोना संक्रमित था. पर तीसरी लहर आने की चर्चा हर ओर थी और बचने का उपाय मात्र वैक्सीन ही था. और वैक्सीन की उपलब्धता काफी कम थी. इसी चिंता में वे बैठे हुए थे.अभी-अभी टहल कर आए थे.समाचार पत्र उनके सामने पड़ा था और उसमें कई स्थानों पर वैक्सीन खतम होनी की खबर छपी थी. तभी उनके मोबाइल की घंटी बजी. कुछ देर तो समझने में लग गया कि आवाज कहाँ से आ रही है क्योंकि सुबह उठते-उठते मोबाइल देखने की उनकी आदत नहीं थी और मोबाइल कहाँ रखा हुआ था उन्हें याद नहीं था. जबतक समझ पाते तबतक रिंग आनी बंद हो गई थी. मोबाइल उठाकर उन्होंने देखा.

ये भी पढ़ें- बीरा : पूरे गांव में बीरा को लेकर क्या हंगामा हो रहा था

किसी अनजान व्यक्ति ने फोन किया था. उन्हों ने कॉलबैक करने के इरादे से बटन दबाने के लिए सोचा ही था कि एक बार फिर से मोबाइल की घंटी बज उठी. स्क्रीन पर वही नंबर फ्लैश कर रहा था.
फोन उठाकर उन्होंने कहा, “हैलो.” “मैं मेघना बोल रही हूँ परिंदे एनजीओ से.क्या मेरी बात श्रीनगर हाउसिंग सोसाइटी के सचिव श्री संजीव से हो रही है.” किसी महिला की आवाज आई. “जी हाँ.”संजीव ने कहा. “हमारा एनजीओ समाज सेवा में लगा हुआ है. फिलहाल समाज की सबसे बड़ी सेवा वैक्सीन लगाना ही है. हम जानते हैं कि कई कारणों से कई लोग वैक्सीन लगाने के लिए हॉस्पिटल नहीं जा सकते.

इसलिए हमने सोसाइटी में जाकर लोगों के लिए वैक्सीन लगाने की व्यवस्था की है. इसके लिए हम प्रति व्यक्ति एक हजार पाँच सौ रुपये लेते हैं. इसमें से एक हजार रुपये हम कोरोना पीड़ितों की मदद के लिए ट्रस्ट को देते हैं और पाँच सौ रुपये वैक्सीन की लागत है. नर्सिंग स्टाफ हमें दूसरे एनजीओ से निशुल्क सेवा देते हैं. हमारे टीम ने आपके सोसाइटी की सिफ़ारिश यह बतलाकर की है कि इस सोसाइटी के सचिव काफी उत्साही,ऊर्जस्वी और ईमानदार हैं.”मेघना ने बताया.

ये भी पढ़ें- अपनी डफली अपना राग : भाग 1

“जी सचिव बनाने का मेरा उद्देश्य यही है कि अपने सोसाइटी को बेहतर से बेहतर बनाऊँ. रही बात ईमानदारी की, तो मैं शुरू से ही पूरे ईमानदारी का जीवन बिताता हूँ.” अपनी तारीफ सुनकर संजीव को काफी प्रसन्नता हुई. साथ ही उसने अपनी प्रशंसा में कुछ शब्द शरमाते हुए जोड़ा. “जी बिलकुल, तो हम कब आ जाएँ आपके सोसाइटी में?” मेघना ने कहा. “मुझे कुछ समय दीजिए, मैं सोसाइटी के प्रबंधन समिति से बात करके आपको बताता हूँ.” संजीव की तो इच्छा हो रही थी कि वह तुरंत उसे बुला ले और अपने उत्साही और ऊर्जस्वी होने का सबूत भी दे दे. पर कई लोग थे सोसाइटी में जो अड़ंगा लगा सकते थे अतः उन्हों ने कुछ समय मांग लिया.

“जी, बिलकुल समय लीजिए. बस यही ध्यान रखिए कि वैक्सीन आसानी से नहीं मिल रहा अभी. यदि एक सप्ताह से अधिक समय लगा देंगे तो शायद हमारे पास वैक्सीन का कोटा खतम हो जाए. आप जल्द ही अपनी समिति से बात कर मुझे बताएं. मेरा नंबर अपने मोबाइल में सेव कर लें.” मेघना ने जवाब दिया.
“जरूर. मैं कल ही आपसे बात करता हूँ.” संजीव ने कहा. “ओके सर, बाई.” मेघना ने अदा से कहा.
“बाई बाई.” संजीव ने खुश होकर कहा. तारीफ से पहले ही वे खुश हो चुके थे, और फिर अदा से बाई-बाई ने भी उनका उत्साह बढ़ा दिया. “पिया मिलन को जाना……..” वे गुनगुनाने लगे.

“क्या बात है बड़े खुश लग रहे हो.” उनकी पत्नी सुभद्रा ने उन्हें गुनगुनाते हुए देख पूछा.
“खुश रहना ही चाहिए आदमी को.” संजीव ने कहा और फिर जूते पहन तैयार होने लगे.
“कहाँ जा रहे हो अभी. अभी तो टहल कर आए हो.” सुभद्रा ने पूछा. “अभी फोन आया था, कोरोना के वैक्सीन लगाने के लिए. सोसाइटी में आकार ही सभी को वैक्सीन लगाने के लिए कह रहे थे. इससे अच्छा मौका कहाँ मिलेगा.चलता हूँ सोसाइटी के अध्यक्ष,श्याम जी से बात करने. यदि सभी तैयार हो गए तो बड़ा अच्छा हो जाएगा सभी को वैक्सीन लग जाएगा.” जूते पहनकर छड़ी उठाते हुए संजीव ने कहा. दरवाजा खोल वे लिफ्ट लॉबी के सामने खड़े हो गए. सुभद्रा ने दरवाजा बंद कर लिया.

ये भी पढ़ें- कोठा : दामोदर गांव छोड़कर मुंबई क्यों आ गया था

श्याम उसी टावर में पहले माले पर रहते थे. उनके घर के सामने पहुँच उन्होंने डोरबेल का बटन दबा दिया. थोड़ी देर में श्याम जी ने दरवाजा खोल दिया. संजीव को सामने पा आश्चर्यचकित हो गए क्योंकि अभी कुछ देर पहले ही दोनों मॉर्निंग वाक के दौरान मिले थे. “आइए, श्याम जी ने उन्हें अंदर बुलाया.”
संजीव अंदर आकर सोफ़े पर बैठ गए. श्याम भी सामने वाले सोफ़े पर बैठ गए. “कहिए, कैसे आना हुआ?” श्याम जी ने पूछा. “एक अच्छे समाचार सुनाने के लिए आया हूँ.” संजीव ने प्रसन्नतापूर्वक कहा.
“अच्छा! अच्छे समाचार सुनने को तो कान तरस गए. आज जिधर सुना बीमारी और मौत का ही समाचार सुनने को मिलता है. सौभाग्य से इधर केसेज में काफी कमी आई है.” श्याम जी ने कहा.

“सौभाग्य से हमारे सोसाइटी को वैक्सीन सोसाइटी में ही करवाने का प्रस्ताव भी मिला है. आज ही फोन आया था एक एनजीओ – परिंदा से. कह रहे थे कि सोसाइटी के सचिव की कर्मठता को देखते हुए उन्होने हमारे सोसाइटी को चुना है. मैंने कहा भी कि हमारे सोसाइटी के अध्यक्ष भी काफी कर्मठ हैं.” संजीव ने फख्र से कहा.“अच्छा आपने क्या जवाब दिया.” श्याम जी ने पूछा. शायद उनके मन में कुछ और ही चल रहा था.
“मैंने कहा कि समिति से बात कर ही कुछ कह पाऊँगा. पर उनके पास स्टॉक सीमित है. यदि हम ज्यादा देर करेंगे तो फिर यह सुविधा नहीं मिल पाएगी. फिर सभी को अलग-अलग होस्पीटल में दौड़ना पड़ेगा.

क्यों न हम आज ही मीटिंग बुला ले. और यदि सभी सहमत हों तो कल परसो सभी को वैक्सीनेट करवा दें. एक मात्र संदेह कुन्दन जी के ऊपर है. वे हर बात में अड़ंगा लगाते है.” संजीव ने कहा. “हूँ. यही प्रस्ताव आप पेपर पढ़ने के पहले मेरे पास लेकर आते तो मैं भी उतना ही खुश होता जितना आप खुश है.” श्याम जी ने कहा. “ऐसा क्या पढ़ा आपने पेपर में?” संजीव चौंक गए. “यह देखिए.” श्याम ने पेपर संजीव के सामने कर दिया.

“फर्जी कैंप का खुलासा- न्यू एरिया पोलिस स्टेशन ने जाली वैक्सीन लगाने वाले अज्ञात लोगों के खिलाफ एफ़आईआर दर्ज किया.” शीर्षक पढ़ते ही संजीव चौकन्ना हो गया. उन्होंने पूरा समाचार पढ़ना शुरू कर दिया. एक ही बार में वे पूरा समाचार पढ़ गए. करीब पाँच सौ लोगों को एक सोसाइटी में जाली टीकाकरण कर दिया गया था.“अरे! ऐसी स्थिति में भी लोग ठगने की धंधा कर रहे है?” संजीव का सारा उत्साह भंग हो गया. “समाज में हर तरह के लोग हैं. आपने पढ़ा ही होगा, जाली रेमेडिसिवीर, जाली ऑक्सीज़न सिलिन्डर,हॉस्पिटल में बेड दिलाने के नाम पर ठगी, और न जाने क्या क्या.दूसरी ओर लोगों के लिए खाना- दवा की व्यवस्था करने के लिए लोग अपनी जमापूंजी लगा रहे है.”

“ठीक है इस बार परिंदे एनजीओ का फोन आने पर मैं साफ मना कर दूँगा.” संजीव ने निराश हो कर कहा.
“सिर्फ मना करने से नहीं होगा. उन्हें पुलिस को सौपना होगा नहीं तो वे किसी और को चूना लगाएंगे. उन्हें फोन कर कल ही बुलाईए. साथ ही पुलिस को खबर कीजिए.” “अभी फोन करता हूँ.” संजीव ने कहा.
“अभी करेंगे तो उन्हें संदेह हो जाएगा. आखिर आधे घंटे में आपने समिति की बैठक भी बुला ली और सहमति भी मिल गई ऐसा कैसे हो सकता है?” श्याम जी ने कहा. “फिर?” संजीव ने पूछा.
“शाम को फोन कीजिए और बताइए कि समिति ने सहमति दे दी है. साथ ही थाने में भी शिकायत कर दीजिए.” श्याम ने कहा. योजना के मुताबिक शाम को मेघना के नंबर पर फोन कर संजीव ने उन्हें अगले दिन सोसाइटी में आने का न्यौता दिया. और साथ में पुलिस को भी इतल्ला कर दिया.

दूसरे दिन पाँच सात लोगों की टीम आई तो उनका संजीव ने गरमजोशी से स्वागत किया. मेघना ने तपाक से हाथ बढ़ाकर संजीव से हाथ मिलाया.पुलिस इंस्पेक्टर सादे कपड़ों में साथ था. उसने कुछ जानकारी मांगी तो मेघना सकपका गई. उसका आईडी मांगा गया तो वह आनाकानी करने लगी. इंस्पेक्टर ने महिला पुलिसकर्मी को इशारा किया. उसने मेघना के पर्स से आई कार्ड निकाला. उसमें उसका कुछ और ही नाम था. इशारा मिलते ही पुलिस दल ने आकर सभी को गिरफ्तार कर लिया.

जब सभी चले गए तो संजीव ने श्याम जी से कहा, “आपके पेपर पढ़ने और गौर से पढ़ने की आदत ने हमें बचा लिया वरना हम वैक्सीनेट होते हुए भी अन वैक्सीनेटेड रह जाते.”
दोनों के थाहाके सोसाइटी के लाफ्टर क्लब के लोगों के ठहाके से मिल गए.
प्रमाणित किया जाता है कि “संजीव शृंगार हाउसिंग सोसाइटी के….” शब्दों से प्रारंभ होने वाली रचना ‘टीकाकरण घोटाला’ मेरीस्वरचित मूल रचना है. इसेसिर्फ दिल्ली प्रेस प्रकाशन की पत्रिकाओं में प्रकाशन हेतु विचारार्थप्रेषितकिया जा रहा है. यह कहींप्रकाशित नहींहुई है.

और कहानियां पढ़ने के लिए क्लिक करें...