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छत्तीसगढ़ : जिस्म के दलदल में देश की दत्तक बेटियां

सौजन्य- सत्यकथा

अंजना के होंठों पर गहरी लाल लिपस्टिक दूर से चमक रही थी. शैंपू और कंडीशनर से चमकते
लहराते बाल, आंखों के सामने लटकती लटों के बीच चेहरा पाउडर और क्रीम के मेकअप से दमक रहा था. नए कपड़े के पहनावे में उस का यौवन खिल उठा था. एक दिन पहले ही वह मुंबई से अपने गांव आई थी. हाथ में पर्स लटकाए गांव की गलियों में इठलाती घूम रही थी.

कलाई में खनकती नई चूडि़यों की आवाज से गांव के हर किसी की नजर बरबस उठ रही थी. उसे देखते ही सामने से आ रही गांव की सिलमिना ने टोका, ‘‘अरे अंजना, तू तो हीरोइन लग रही है. कब आई रे?’’
‘‘कल ही तो शाम को मुंबई से आई हूं, मैं तुम्हारे घर ही जा रही थी.’’ अंजना चहकती हुई बोली. दोनों बचपन की सहेलियां थीं. प्यार से अंजना ने पूछा, ‘‘कैसी है रे तू?’’ यह सुन कर सिलमिना का चेहरा उतर गया. उदासी से आंखें नम हो गईं. धीरे से बोली, ‘‘अब तुम्हें क्या बताऊं अपनी हालत, देख ही रही हो. यहां न भरपेट खाने को मिलता है और न ही पहनने को अच्छे कपड़े. सब कुछ तो तुम जानती ही हो, बस तरसते हुए जी रही हूं.’’ सिलमिना बोली.

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अंजना ने उस के हाथों को पकड़ लिया, फिर गले लग गई. उस का ऐसा करना सिलमिना को अच्छा लगा. वह थोड़ी सहज हुई. बोली, ‘‘तू तो एकदम नहीं बदली!’’‘‘वह सब छोड़, बता तू मेरे साथ मुंबई चलेगी?’’ अंजना ने अपनी सहेली सिलमिना से सीधा सवाल किया. इस के लिए सिलमिना तैयार नहीं थी. वह उसे एकटक देखने लगी. ‘‘अरे, तू देखती क्या है यह देख मुझे, सब कुछ मुंबई में ही तो मिला है. अरे वहां स्वर्ग है, स्वर्ग.’’ अंजना बोली. ‘‘मैं तो चली चलूं, मगर मां का क्या होगा?’’ सिलमिना ने चिंता जताई.
‘‘मां की फिक्र तुम मत करो, मां के पास हर महीने पैसे भेज देना.’’ अंजना ने सुझाव दिया. ‘‘क्या, सचमुच ऐसा हो सकता है? मुझे वहां इतने पैसे मिल जाएंगे कि मैं मां को भी पैसे भेज सकती हूं.’’ सिलमिना बोली.
‘‘ और नहीं तो क्या?’’ अंजना बोली. ‘‘तो फिर जैसा तुम कहो मैं चलने को तैयार हूं.’’

अंजना से बात कर सिलमिना की आंखों में चमक आ गई थी. उसे अंजना ने एक अद्भुत आत्मविश्वास से भर दिया था. दोनों छत्तीसगढ़ के बीहड़ जंगलों में निवास करने वाली कोरवा समुदाय की थीं. वहां के लोगों के पास कोई ठोस कामधंधा नहीं था, जिस से उन का पेट भर पाता और वे सामान्य जीवन गुजार पाते. ऐसे में सभी अभावग्रस्त दर्दभरी जिंदगी गुजार रहे थे. जब भी अंजना गांव आती थी, तब बहुत परिवारों के लिए वह आशा की किरण बन जाती. परिवार में बुजुर्ग मांबाप को लगता था कि उन की बेटी को दिल्ली या मुंबई में घरेलू नौकरानी का काम मिल जाएगा.

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सिलमिना अपनी सहेली अंजना के कहने पर मुंबई जाने के लिए तैयारी में जुट गई. उस के अलावा गांव की कुछ और लड़कियां भी तैयार हो गईं, जो आसपास के इलाके की थीं. उन्हें अंजना ने विश्वास दिलाया था कि सभी को मुंबई या दिल्ली में काम मिल जाएगा. जो जहां जाना चाहे चल सकती है, उस की जानपहचान दोनों जगहों के काम दिलाने वाले खास लागों से है. उस के भरोसे पर 14 से 18 साल के उम्र की कुल 16 लड़कियां अच्छी जिंदगी की उम्मीद में गांव से महानगर के लिए निकल पड़ीं.

उन्हें अंजना ने बताया कि महानगरों में घरेलू काम करने वाली लड़कियों की बहुत कमी है. घर में साफसफाई करने, कपड़ेलत्ते धोने और बरतन मांजने का काम करना होता है. उस के काम के हिसाब से महीने में पगार मिलता है. खाने और रहने का इंतजाम मालकिन द्वारा ही किया जाता है. उस का पैसा नहीं लगाता है. बीचबीच में उपहार भी मिलता रहता है. किसी अतिथि के आने पर वे अलग से पैसे दे जाते हैं. यह सब अंजना समझा ही रही थी कि एक लड़की मधु पूछ बैठी, ‘‘दीदी और क्या करना होता है?’’
‘‘और क्या करना है, घर में बच्चे हों तो उन्हें खिलाओ, घुमाओ और आराम की जिंदगी गुजारो.’
‘‘इन सब के लिए कितने पैस मिल जाते हैं दीदी?’’ उत्सुकता से मधु ने पूछा.

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‘‘पैसे बहुत मिलते हैं पगली. 5 हजार रुपए महीने तो मिलेंगे ही. उस में तुम्हें एक पैसा खर्च नहीं होगा. बाकी जो मैं ने और कुछ बताया, उस के अलावा है.’’ अंजना बोली. ‘‘क्या?’’ अंजना की बात सुन कर मधु की आंखें फटी की फटी रह गईं. ‘‘लेकिन तू अभी छोटी है इसलिए 3 हजार ही मिलेंगे.’’ यह सुन कर सभी लड़कियां हंसने लगीं. मधु ने आंखें घुमाते हुए कहा, ‘‘दीदी मुझे भी पूरे पैसे दिलवाना, मैं 2 के बराबर अकेली ही काम कर दूंगी.’’ ‘‘मधु, तुम चिंता नहीं करो वहां पहुंच कर तुम्हें लगेगा कि तुम कहां पहुंच गई हो. समझो स्वर्ग है स्वर्ग. और जिंदगी की सभी खुशियां मिलेंगी, मजे करोगी, मजे!’’ कहती हुई अंजना ने उस की गालों को थपथपा दिया.

इस तरह आकर्षक सपने दिखा कर अंजना अपने साथ 16 लड़कियों को मुंबई ले गई. वहां पहुंच कर उस ने लड़कियों को अपने खास लोगों को सौंप दिया, जहां से उन्हें काम के लिए भेजा जाना था. उस के बाद लड़कियों के साथ जो हुआ, वह सब उसे दिखाए गए सपने के काफी उलट था. मधु एक्का सांवली सी सुतवां नाकनक्श की आकर्षक किशोरी थी. उसे एक प्लाई शौप के मालिक ने अपने यहां नौकरी पर रख लिया था. महीने की पगार 4 हजार रुपए तय हुई थी. इसी तरह से 18 वर्षीया सिलमिना सिदार को आरटीओ एजेंट रमेश चंद्रा ने अपने घर में घरेलू नौकरानी के तौर पर 5 हजार के मासिक वेतन पर रख लिया था.
16 साल की प्रमिला मंझवार एक व्यापारी के घर पहुंच गई थी, जबकि 17 साल की सुनीता धनुहार एक कामकाजी महिला रजनी के यहां लग गई थी.

इसी तरह से सभी लड़कियां कहीं न कहीं काम पर लगा दी गई थीं. मगर जैसेजैसे समय बीतता चला गया, लड़कियों के सपने टूटते चले गए. वे अमानवीय दौर से गुजरने लगीं. उन्हें घरपरिवार से बात करने की मनाही थी. उन में कुछ लड़कियां देह के धंधे पर उतरने को विवश हो गईं. उन्हें पूरी तरह से एहसास हो गया था कि वे पिंजरे में कैद हो कर रह गई हैं. उन की अशिक्षा किसी दुर्भाग्य से कम नहीं थी. उन्हें न तो किसी अधिकार के बारे में मालूम था और न ही सामने दीवारों और पोस्टरों पर लिखी पंक्तियों का अर्थ समझ पाती थीं.

एक दिन मधु एक्का को फोन करने का मौका मिल गया. उस ने अपने एक परिचित को फोन कर दिया. फोन पर उस ने एक सांस में सारी तकलीफें बयां कर डाली. परिचित ने यह बात अपने दोस्त को बताई. बात पूरे कोरवा में फैल गई और मामला पुलिस तक जा पहुंचा. पुलिस पर जांच का दबाव भारत सरकार के गृह मंत्रालय से पड़ा. इस का असर हुआ और सभी लड़कियों की बरामदगी हो गई. फिर उन्हें कोरवा उन के परिजनों को सौंप दिया गया. उन्होंने पुलिस और परिजनों को अपनी आपबीती सुनाई. उस के बाद जो देहव्यापार की दर्दनाक दास्तान सामने आई, उस की एक झलक इस प्रकार है.

छत्तीसगढ़ के अंबिकापुर, रायगढ़, जशपुर जिले में कोरवा जनजाति को राष्ट्रपति का संरक्षण प्राप्त है. उन्हें विशेष दरजा दे कर दत्तक संतान का दरजा दिया गया है. उन के जनजीवन को सुधारने के लिए सरकार की तरफ से कई योजनाएं चलाई गई हैं, फिर भी उन की आय में गिरावट बनी हुई है.
उस समुदाय के बच्चे मुश्किल से 5वीं, 8वीं तक पढ़ पाते हैं. उन की जिंदगी एकदम से ठहरी हुई जंगली वातावरण सी उलझ गई है. यही कारण है कि उन पर महानगरों की प्लेसमेंट ऐजेंसियों की नजर टिकी रहती है.

वे अपना निशाना कमसिन लड़कियों को बनाते हैं और उन्हें दिल्ली, मुंबई, हैदराबाद आदि शहरों में नौकरी के बहाने अपने जाल में फंसा लेते हैं. कहने को तो उन से घरेलू नौकरानी, मौल, प्राइवेट कंपनियां, औफिस में काम दिलवाने का वादा किया जाता है, लेकिन अधिकतर देह व्यापार में धकेल दी जाती हैं. ऐसी ही एक लड़की ने बताया, ‘‘मैं काफी गरीब परिवार से हूं. मुंबई यही सोच कर गई थी कि हमें नौकरी से पैसा मिलेगा और शांति से जिंदगी गुजरेगी. लेकिन वहां देह बेचना पड़ा. इस बारे में हम किसी को बता भी नहीं सकते थे. इस का विरोध करना तो बहुत ही मुश्किल काम था. कई बार तो एक दिन में आधेआधे घंटे पर अलगअलग मर्द के साथ सोना पड़ा.’’

उस ने बताया कि कैसे उसे उस के जानपहचान वाले राजकुमार ने काम दिलाने के नाम पर दुर्गाबाई नाम की महिला के हाथों बेच दिया था. वह बिहार के रोहतास जिले की रहने वाली थी. उस ने उस की खूबसूरती और उभार वाले वदन को देख कर कीमत सवा लाख रुपए लगाई थी. इस काम में राजकुमार के साथ महेश और सरला नाम की युवती भी शामिल थे. दुर्गाबाई के पास छत्तीसगढ़ की 6 लड़कियां थीं, जिन्हें बाद में 5 जनवरी, 2021 को पुलिस ने बरामद किया था. दुर्गाबाई लड़कियों को ग्राहकों के पास भेजती थी. हर ग्राहक से उसे डेढ़ हजार से ढाई हजार रुपए तक मिलते थे, जबकि वह हर लड़की को उसी में से खर्चे के नाम पर 300 से 500 तक देती थी.

मुक्त करवाई गई एक लड़की ने बताया कि किस तरह से वह राजकुमार के जाल में फंसी. उसे पहले बिलासपुर से बिक्रमगंज लाया था. वहां महेश और सरला मिले थे. दोनों ने पतिपत्नी होने का परिचय दिया. वह उसे दुर्गाबाई के पास ले गए. महेश ने बताया कि वह उन की सास है और मुंबई में रहती हैं. उन के साथ उसे 6 महीने तक रहना होगा. बाद में दोनों जब वहां आ जाएंगे तब वह वापस आना चाहे तो आ सकती है. या फिर उन के साथ रहना चाहे तो रह सकती है. लड़की को उन की बातों में सच्चाई दिखी और वह दुर्गाबाई के साथ 27 दिसंबर, 2020 को मुंबई आ गई. वहां उस ने देखा कि उसी के जिले की 7 और लड़कियां रह रही हैं. उन में से ही एक लड़की ने उस के कान में चुपके से बताया कि वह गलत जगह आ गई है. उस की किस्मत अच्छी थी कि एक सप्ताह बाद ही दुर्गाबाई के उस मकान पर पुलिस ने छापा मारा और वह दूसरी लड़कियों के साथ मुक्त करवा ली गई.

मुक्त करवाई गई जशोपुर जिले की एक पीडि़ता की मां ने बताया कि उस की बच्ची को 15 हजार रुपए महीने पर आर्केस्ट्रा में काम दिलवाने के नाम पर ले गया था. उन्होंने बताया कि उस की बच्ची को नाचने का शौक था, इसलिए सोचा अच्छा काम है. पैसा मिलेगा और धीरेधीरे शोहरत मिलेगी तब बड़ा कलाकार भी बन सकती है. वहां से उसे अंबिकापुर लाया गया. बाद में नशीली कोल्ड ड्रिंक्स पिला
कर उत्तर प्रदेश में सोनभद्र जिला ले जाया गया. वहां बिंदास आर्केस्ट्रा ग्रुप के संचालक मनोज कुमार और अन्नू उर्फ गोलू को सौंप दिया गया. उन्होंने लड़की को छोटे से कमरे में बंद कर दिया.

3 दिन बीतने के बाद जब लड़की ने पूछा कि उस का प्रोग्राम कब होगा तब उन्होंने उस के साथ जबरदस्ती की और फिर सजासंवार कर एक ग्राहक के पास भेज दिया. इस तरह से वह कथित आर्केस्ट्रा ग्रुप की एक नई सैक्सवर्कर बना दी गई. उस की मां ने बताया कि लड़की 12 मई को किसी ग्राहक के पास भेजी जाने वाली थी. बताया गया था कि वहां उसे 6 लड़कियों के साथ एक निजी पार्टी में शामिल होना है. म्यूजिक पर नाचगाना करना होगा. संयोग से इस पार्टी की जानकारी पुलिस को भी लग गई थी. पुलिस को किसी ने सूचना दी थी कि कोई बर्थडे सेलिब्रशन के बहाने ड्रग कारोबारियों से डील करने वाला है. लेकिन जब पुलिस ने वहां छापेमारी की तब वहां से 7 लड़कियां रंगेहाथों पकड़ी गईं. उन से पूछताछ होने पर आर्केस्ट्रा ग्रुप की आड़ में देहव्यापर का भंडाफोड़ हो गया. आर्केस्ट्रा संचालक भी पकड़े गए. उस के बाद पुलिस को नई जानकारी मिली.

इस तरह देहव्यापार के दलाल कोरवा जनजाति की लड़कियों को किसी न किसी तरह से अपने जाल में फांस कर जिस्मफरोशी के धंधे में शामिल कर रहे हैं.  कहानी में कुछ नाम परिवर्तित हैं. थानाप्रभारी भी पकड़ा गया रंगरलियां मनाते हुए देह व्यापार के ठिकानों पर पुलिस समयसमय पर छापे मारती रहती है.
आमतौर पर इन ठिकानों से देह व्यापार में लिप्त युवतियां और महिलाओं के अलावा रंगरलियां मनाने आए लोग पकड़े जाते हैं. राजस्थान के शेखावाटी इलाके में चूरू में देह व्यापार के एक ठिकाने पर पुलिस ने छापा मारा तो वहां आबकारी पुलिस थाने का इंचार्ज भी रंगरलियां मनाते पकड़ा गया. वहां थानाप्रभारी को इस हालत में देख कर छापा मारने वाली पुलिस टीम भी चौंक गई.

दरअसल, इसी 24 जुलाई को चूरू की डीएसपी ममता सारस्वत ने बोगस ग्राहक को भेज कर शहर के अग्रसेन नगर में एक मकान पर छापा मारा. उस मकान में किराए पर रहने वाली महिला सीमा मेघवाल ने बोगस ग्राहक के रूप में आए कांस्टेबल से रुपए ले लिए. बाद में कांस्टेबल का इशारा मिलने पर पुलिस ने उस मकान पर दबिश दी. मकान में 3 युवतियां मिलीं. एक बंद कमरे में एक युवती और एक व्यक्ति आपत्तिजनक हालत में मिले. पुलिस ने चारों को पकड़ लिया. इन में सीमा के पास से 12 हजार रुपए भी बरामद हुए. पुलिस थाने ला कर इन से पूछताछ की गई, तो पता चला कि पकड़ा गया व्यक्ति 40 वर्षीय रणवीर सिंह नायक चूरू में आबकारी निरोधक थाने का इंचार्ज था. उस का काम अवैध शराब पकड़ना था.
पुलिस ने आबकारी विभाग के थानाप्रभारी रणवीर सिंह के अलावा तीनों युवतियों 35 साल की सीमा नायक, 30 साल की पियारू निशा और 30 साल की हलीमा इमरान को गिरफ्तार कर लिया. इन में पियारू निशा पश्चिम बंगाल और हलीमा इमरान मुंबई के ठाणे की रहने वाली निकली.

पूछताछ में पता चला कि चूरू के बास घंटेल की रहने वाली सीमा मेघवाल को उस के पति नेमीचंद मेघवाल ने छोड़ रखा था. वह कई महीनों से चूरू के अग्रसेन नगर में किराए का मकान ले कर रह रही थी और मुंबई व पश्चिम बंगाल सहित दूसरे राज्यों से नईनई खूबसूरत युवतियां बुला कर ग्राहकों को पेश करती थी.
वह अपने ग्राहकों से एक से डेढ़ हजार रुपए तक लेती थी. सीमा वाट्सएप के जरिए अपना धंधा चलाती थी. ग्राहकों को वह वाट्सऐप पर लड़कियों की फोटो भेजती थी. पसंद आने पर रुपए तय करती थी.

गिरफ्तार युवतियों ने पुलिस को बताया कि वे पहले भी चूरू आ चुकी थीं. उन्हें एकडेड़ महीने के लिए अच्छी रकम दे कर बुलाया जाता था. सीमा ने बताया कि वह समयसमय पर दूसरे राज्यों से भी लड़कियां बुलाती थी, ताकि ग्राहकों को नएनए चेहरे मिल सकें. पुलिस ने सभी आरोपियों को गिरफ्तार कर कोर्ट में पेश किया, जहां से उन्हें जेल भेज दिया गया.

खाना हो तो मां के हाथ का

टैलीविजन पर अकसर प्रसारित होने वाले मसालों के एक विज्ञापन में आज के नए जमाने की बहू रेसिपी जानने के लिए अपनी सास को टैलीफोन कर कहती है, ‘‘मांजी, आज छोले बनाने हैं, कौनकौन से मसाले डालने हैं?’’ उधर से सास बहू को ढेरों मसालों के नाम गिनवा डालती है. शाम को जब पति घर आता है और छोले की खुशबू उस के नथुनों से टकराती है तो वह सीधा किचन की तरफ खिंचा जाता है और कड़ाही में उंगली डाल कर फिर उसे चाटता है और फौरन इधरउधर निगाहें घुमा कर बीवी से पूछता है, ‘‘मां आई हैं क्या?’’ बीवी हंस कर कहती है, ‘‘नहीं, यह तो फलां मसालों का कमाल है.’’

विज्ञापन का उद्देश्य बेशक किन्हीं विशेष ब्रैंड के मसालों की पब्लिसिटी करना हो, लेकिन विज्ञापन का आशय यह है कि मां के हाथों के बने खाने का जवाब नहीं होता और एक बेटा हमेशा अपनी मां के हाथों के बने खाने का दीवाना होता है. इस बारे में मशहूर शैफ संजीव कपूर कहते हैं, ‘‘जनाब, मां के हाथ के खाने का न कोई जोड़ है, न कोई तोड़. ऐसा इसलिए क्योंकि जब एक मां अपनी औलाद के लिए खाना बनाती है तो उस में उस की ममता, दुलार, स्नेह, लगाव सबकुछ समाया होता है. वह जब सामने बिठा कर अपने बच्चों को भोजन खिलाती है, उसे असीम खुशी मिलती है.’’

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कहावत है कि अपने बच्चों को भोजन करते देखने मात्र से ही मां का पेट भर जाता है. जिस दिन बेटा या बेटी एक निवाला भी कम खाते हैं, मां तुरंत चिंतित हो कर पूछती है, आज खाना अच्छा नहीं बना क्या? एक पुरुष की नजर में उस की मां दुनिया की सब से बेहतरीन कुक होती है. उस के हाथ के खाने में जो स्वाद होता है वह कहीं और नहीं मिलता. दरअसल, ऐसा इसलिए भी होता है क्योंकि जब आप मां के हाथ का खाना खा रहे होते हैं तो बेफिक्री के साथ खा रहे होते हैं. आप पर कोई दबाव नहीं होता. जबकि खाना खाते समय भी पत्नी सिर पर सवार हो कर भोजन की तारीफ सुनने को बेताब रहती है और बीचबीच में बिजली के बिल, बच्चों की ट्यूशन की फीस आदि की भी याद दिलाती रहती है जिस से खाने का मजा किरकिरा हो जाता है.

ऐसा नहीं है कि वास्तव में दुनिया की हर मां बहुत स्वादिष्ठ खाना पकाना जानती हो लेकिन 100 में से 99 पुरुषों को अपनी मां परफैक्ट कुक नजर आती है. ऐसा इसलिए क्योंकि अधिकतर पुरुष भावनात्मक रूप से अपनी मांओं से इतने गहरे जुड़े होते हैं कि उन के जीवन में किसी भी दूसरी औरत से ज्यादा मां की भूमिका होती है. गायक सोनू निगम अपनी मां के हाथों के बने खाने के दीवाने हैं. वे कहते हैं ‘‘मां के हाथों की बनी अरबी की सब्जी से मैं एक वक्त में 20 रोटियां खा सकता हूं.’’ वहीं अभिनेता तुषार कपूर कहते हैं, ‘‘दुनिया घूम आने के बाद जिस तरह मां के पास सुकून व आराम मिलता है, वैसे ही दुनियाभर का खाना खा लो मगर पेट वास्तविक तौर पर तभी भरता है जब मां खाना बना कर खिलाती है. खाने के बारे में जिस प्रकार के टिप्स मेरी मां मुझे आदेश करती मैं उन का पालन करता हूं.’’

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एक कहावत आम है कि आदमी के दिल का रास्ता उस के पेट से हो कर जाता है. लेकिन यह मां पर लागू नहीं होती. अकसर प्रेमिकाएं और पत्नियां अपने साथी के दिल तक पहुंचने के लिए उन के पेट का ही रास्ता चुनती हैं. वे इस में कितनी कामयाब होती हैं, यह कहना मुश्किल है. दुनियाभर में संबंधों को ले कर हुए तमाम सर्वेक्षण इस बात की गवाही देते हैं कि पतिपत्नी के बीच होने वाले झगड़ों की जड़ में 30-35 प्रतिशत वजहें खाने को ले कर होती हैं. आमतौर पर ऐसा देखा गया है कि स्वादिष्ठ से स्वादिष्ठ खाना बनाने वाली औरत भी अपने पति को स्वाद के मामले में संतुष्ट नहीं कर पाती. वह हमेशा पत्नी के खाने की तुलना अपनी मां के खाने से करता है. उस समय स्थिति बेहद असमंजस वाली होती है जब औरत के एक ही खाने में उस का पति नुक्स निकाल देता है और बेटा वही खाना बड़े चाव से खा रहा होता है.

उधर, मनोवैज्ञानिकों का मानना है कि यह एक मानसिक स्थिति है, इस का खाने के स्वाद से कोई लेनादेना नहीं होता बल्कि इस की असली वजह पुरुषों का अपनी मां के साथ लगाव और जुड़ाव होता है. यह वह स्थिति है जिस में स्वादिष्ठ से स्वादिष्ठ व्यंजन बनाने वाली औरत भी उस की मां का स्थान नहीं ले सकती. आमतौर पर जब 2 औरतें मिलती हैं तो इस विषय पर अवश्य चर्चा होती है कि कुछ भी बनाऊं, इन्हें पसंद ही नहीं आता. ऐसे में बेचारी पत्नियां अपने हाथों का जायका बढ़ाने के लिए कुकिंग क्लासेज तक जौइन करने से पीछे नहीं हटतीं. वहां वे जो कुछ सीखती हैं, हर रोज उसे घर पर आ कर खुशीखुशी अपने पति के लिए तैयार करती हैं, लेकिन नतीजा वही ढाक के तीन पात.

भावनात्मक जुड़ाव

पति का जवाब बस इतना ही होता है, ‘हां ठीक बना है.’ कई बार तो पति अपनी पत्नी को सलाह देते हैं कि अगर सीखना है तो अपनी सास से सीखो कि खाना कैसे बनाया जाता है. कई बार सासबहू के बीच नफरत और तकरार की जड़ में यही कारण छिपा होता है कि आखिर उन के हाथ में उन की सास वाला स्वाद कब और कैसे आएगा. बेशक वे सास से बढि़या खाना क्यों न बनाती हो लेकिन खाने की टेबल पर उन की सास ही छाई रहती हैं. ऐसा शहरों और गांवों हर जगह देखा जा सकता है. गांवों का एक नजारा जब वहां किसी बड़े से कच्चे घर के आंगन में चूल्हे में लकडि़यां जला कर एक मां रोटियां सेंकती है और बच्चों को गरमगरम परोस रही होती है, तब उस का एक ही मतलब होता है, रोटी और बच्चों की भूख. हर घर की यही कहानी है. बच्चे होश संभालते ही अपनी मां की तकरीबन हर गतिविधि से बहुत गहरे तक जुड़ जाते हैं. बच्चे जब खाना खाते हैं तो उन के हर निवाले के साथ मां का दुलार शामिल होता है. लड़के, क्योंकि खाने के मामले में पूरी तरह अपनी मां पर निर्भर होते हैं, इसलिए लड़कियों के मुकाबले उन में मां के प्रति यह स्नेह बहुत तेजी के साथ लगाव का काम करता है. वहीं, लड़कियां थोड़ी बड़ी होने पर खाना बनाने व परोसने में मां का हाथ बंटाने लगती हैं इसलिए जैसेजैसे वे बड़ी होती हैं खाने के मामले में मां पर उन की निर्भरता कम होने लगती है. दूसरी तरफ बेटियों को बचपन से ही यह पढ़ाया जाता है कि एक दिन उसे अपने ससुराल जा कर अपने पति का घर संभालना है, इसलिए मां और घर के साथ उस का रिश्ता भावनात्मक रूप से लड़कों के मुकाबले कम होता है. जबकि बेटों को पता होता है कि उन्हें हमेशा मां के साथ ही रहना है, इसलिए मां के लिए उन की अनुभूतियां पूरी तरह स्थायी होती हैं. इस के पीछे यही मनोविज्ञान काम करता है.

यह मनोविज्ञान दुनिया के किसी एक कोने में नहीं बल्कि पूरी दुनिया में काम करता है. टैलीविजन पर आने वाले एक धारावाहिक में मुख्य नायक की भूमिका निभा रहे अनस खान कहते हैं, ‘‘मैं ऐक्टिंग में आने से पहले भोजन व्यवसाय से जुड़ा रहा और एक अच्छा कुक भी हूं लेकिन मां के खाने में अनोखा स्वाद कहां से आता है, यह कोई नहीं बता सकता.’’ ऐसे में स्वाद के महत्त्व को बड़ी आसानी से समझा जा सकता है. तभी तो जहां किसी एक देश से कोई खास शाही मेहमान किसी दूसरे देश के दौरे पर जाता है तो उसे उस देश के हर स्वाद का मजा चखा कर उसे खुश करने की कोशिश की जाती है. मगर मां का स्वाद, बस, मां के हाथों ही.

मां ने लड्डू भेजे हैं…

फिल्मों के व अपने आसपास के उन दृश्यों को याद कीजिए जिन में एक बेटा जब नौकरी या पढ़ाई के लिए घर से दूर जा रहा होता है, तब मां नम आंखों से उस के सामान में अपने हाथों से देसी घी के बने लड्डुओं का डब्बा रखते हुए बेटे को ताकीद करती है कि बेटा, तेरी पसंद के लड्डू हैं, खाना मत भूलना. यहां तक कि जब वह दूर रह रहे बेटे से फोन पर बात करती है तब भी उस का पहला सवाल यही होता है, ‘खाना तो ठीक ढंग से खा रहा है न, बेटा. समय पर खाया कर, आदि.’ ऐसे नजारे होस्टलों में आम होते हैं. जब कोई रूममेट अपने घर से छुट्टियां मना कर लौटता है और साथ में मां के हाथों की गुझिया, मट्ठी, बर्फी या फिर लड्डू लाता है. जैसे ही उस के दोस्तों को इस की भनक लगती है तो छीनाझपटी तक शुरू हो जाती है.

वैसे मां आमतौर पर यह जुमला जरूर कहती है कि अपने दोस्तों को भी जरूर चखा देना, लेकिन अकसर मां के हाथों की ये चीजें, बैड के नीचे, अलमारी अथवा मचान पर दोस्तों से छिपा कर रखी जाती है. फिर दोस्त सूंघतेसूंघते वहां तक पहुंच ही जाते हैं. बौर्डर पर जब कोई मां अपने बेटे के लिए गांव से बेसन या तिल के लड्डू भेजती है तब नजारा देखने लायक होता है. बेटे को मुश्किल से ही उस का स्वाद चखने को मिलता है. जैसे खीर, गाजर का हलवा, अचार, सूजी की बर्फी, बेसन के लड्डू और गूझिया आदि पर तो बस जैसे मां के स्वाद के नाम का ही ठप्पा लगा है.

कैसी हो वर्किंग प्रैगनैंट वूमन की डाइट, आप भी जानिए

मां बनना हर महिला के लिए सब से सुखद एहसास होता है. गर्भ में पलने वाला बच्चा महिला को कई चीजें सिखाता है. संवेदनशील बनाता है, प्यार करना सिखाता है. यही वजह है कि कोई भी महिला गर्भवती होने पर अपना खास खयाल रखती है, क्योंकि इस समय मां बनने वाली महिला सिर्फ अपना ही खाना नहीं खाती वरन बच्चे का भी खाती है.

मां बनने वाली वर्किंग लेडी अकसर खुद को थकाथका सा महसूस करती है. 8-9 घंटे औफिस में रहने के कारण वह ज्यादा थक जाती है. उस के बाद वर्किंग महिला को घर का कामकाज भी करना पड़ता है. इसलिए पूरा दिन उस के लिए मुश्किल भरा होता है. आइए, जानें कि वर्किंग लेडी जो मां बनने वाली हो उस के लिए पूरे दिन का डाइट प्लान कैसा हो:

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ऐसा हो नाश्ता

अगर आप सुबह उठते ही खाना बनाना या फिर घर का अन्य काम शुरू कर देती हैं तो यह गलत है. सुबह उठते ही सब से पहले आप ग्रीन टी पीएं. अगर आप की सुबह की शुरुआत ग्रीन टी से होगी तो आप दिन भर ऐनर्जी से भरपूर रहेंगी. उस के बाद आप सब से पहले फ्रैश हो नहा लें. यदि लंच खुद ही तैयार करती हैं तो रात को ही इस की तैयारी कर लें. अगर आप को सुबह सब कुछ तैयार मिलेगा तो खाना बनाना सिरदर्द नहीं बनेगा. खाना बनाने के बाद सब से पहले नाश्ता कर लें. नाश्ते में उबले अंडे, रोटी और सब्जी खाएं, इस के बाद अपना टिफिन तैयार करें. टिफिन में आप फ्रूट्स, नट्स और लंच रखें. दही या छाछ रखना तो बिलकुल न भूलें.

औफिस पहुंचने पर

औफिस पहुंचने पर सब से पहले पानी पीएं. पानी की कमी नहीं होनी चाहिए. उस के बाद थोड़ी देर आराम करें. काम शुरू करने से पहले सेब या अनार खा लें. यह आप की सेहत के साथसाथ बच्चे के लिए भी अच्छा है. केला रखा हो तो उसे भी खा लें. इस के बाद अपना काम शुरू करें.

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लंच में खाएं बढि़या खाना

लंच में दालरोटी, सब्जी, दही या छाछ जो कुछ भी आप लाई हों उसे अच्छी तरह से चबाचबा कर खाएं. खाने में जल्दबाजी न करें. खाने के साथसाथ खीरा भी खाएं. इस वक्त आप के लिए और बच्चे के लिए सलाद बहुत जरूरी है.

ईवनिंग स्नैक्स

अकसर देखा जाता है कि ईवनिंग स्नैक्स के रूप में प्रैगनैंट महिला समोसा, जलेबी जैसी चीजें खा लेती हैं. ये चीजें स्वादिष्ठ तो होती हैं, लेकिन हैल्दी बिलकुल भी नहीं. अत: आप घर से नट्स ले कर आएं और फिर उन्हें ही खाएं. अगर आप का चाय या कौफी पीने का मन है तो पी लें. दोनों के लिए फायदेमंद रहेंगे. ईवनिंग स्नैक्स के नाम पर पूरा पेट न भरें, क्योंकि रात को डिनर भी करना है.

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घर पहुंचने के लिए जल्दबाजी न करें. अगर  औफिस की कैब है, तो अच्छी बात है वरना शाम के समय सड़कों पर भीड़ होती है. अत: आराम से निकलें. थोड़ी देर होगी, लेकिन आराम से घर पहुंचें, सुरक्षित पहुंचें. घर पहुंचने पर थोड़ा आराम करें. पानी पीएं. उस के बाद घर के काम करें.

डिनर में सेहतमंद खाना

डिनर में सेहतमंद खाना बनाएं. एक टाइम दाल जरूर खाएं, साथ में रोटी, सलाद, सब्जी के रूप में बेबीकौर्न, ब्रोकली, पनीर आदि खा सकती हैं.

रात का खाना खाते ही सोएं नहीं. थोड़ा टहलें. 1 गिलास दूध दिन भर में जरूर पीएं. प्रैगनैंसी के दौरान दूध आप के लिए बेहद जरूरी भी है. साथ ही डाक्टर ने आप को जो दवाएं दी हैं उन्हें याद से खा लें.

अगर आप औफिस के साथसाथ घर का काम मैनेज नहीं कर पा रही हैं तो घर में मदद के लिए मेड रख लें. सारा काम अपनेआप पर न लें. इस से आप को आराम मिलेगा.

नजरिया – भाग 4 : यशस्वी हर रिश्ते के लिए इंकार क्यों करती थी

“यशस्वी अब तुम ऐसे घर जा रही हो, जहां तुम्हें नौकरी करने की कोई जरूरत नहीं. अब तुम काम छोड़ दो.“ “बाबूजी, नौकरी एक दिन में नहीं छोड़ सकते. इस के लिए 15 दिन पहले नोटिस देना पड़ता है. मैं दो हफ्ते बाद नौकरी छोड़ दूंगी.““पंडितजी ने कहा है कि बिटिया को इन दिनों घर से बाहर नहीं निकलना चाहिए.“

“यह कैसी बातें कर रहे हैं बाबूजी? इस जमाने में  लड़कियां मांबाप के कंधे से कंधा मिला कर सारे काम निबटाती हैं.“ “मैं यह सब नहीं जानता. काम में हाथ बंटाने के लिए तुम्हारे भाई हैं. पंडितजी की बात सौ फीसदी सही होती है. तुम तो जानती हो कि उन के कहने पर पूजापाठ से तुम्हारे लिए इतना अच्छा रिश्ता मिला है. अब जरा सी बात के लिए मैं उस में कोई रुकावट नहीं चाहता. जितनी जल्दी हो सके, काम पर जाना छोड़ दो और मां के साथ घर के कामों में हाथ बंटाओ.“

यशस्वी को बाबूजी की दकियानूसी बातें सुन कर गुस्सा आ रहा था. वह  चुपचाप वहां से हट गई. राम लाल ने सब को अलगअलग जिम्मेदारियां सौंप दी थीं. सभी अपने कामों में लगे हुए थे. 2 हफ्ते बाद यशस्वी ने बताया कि उस ने नौकरी छोड़ दी है. वह रोज दिन में बाजार के काम निबटाने के लिए घर से निकल जाती. जैसेजैसे शादी का दिन नजदीक आ रहा था, राम लाल की चिंता बढ़ती जा रही थी. रमा पति को समझाती, “आप चिंता न करें. समधीजी ने जब कोई मांग रखी नहीं है, तो फिर तनाव कैसा? हम शादी अच्छे से निबटा देंगे और हम से जो बन पड़ेगा अपनी बेटी को भी देंगे. देख लेना सबकुछ ठीक से निबट जाएगा.“

पत्नी की बातें राम लाल के लिए संजीवनी का काम कर रही थीं. शादी का एक हफ्ता शेष बचा था. घर पर 1-2 दिन बाद मेहमान भी आने वाले थे. राम लाल ने उन के रहने की भी अच्छी व्यवस्था कर दी थी. दोपहर में लंच के बाद आज यशस्वी कुछ ड्रेस ठीक कराने की बात कह कर घर से निकली तो देर शाम तक वापस नहीं आई. रमा को चिंता होने लगी थी. वह बोली, “आज यशस्वी पता नहीं कहां रह गई?“

“अपनी सहेली सलोनी के घर चली गई होगी.“ “मैं ने उसे फोन करने की कोशिश की थी, लेकिन उस का फोन स्विच औफ आ रहा है.“ “तुम चिंता मत करो. वह आ जाएगी. बच्ची थोड़े ही है.“ रात के 9 बज गए थे. अभी तक यशस्वी घर नहीं लौटी, तो राम लाल के दिल की धड़कन भी बढ़ने लगी. रवि और विशाल भी परेशान हो गए थे. यशस्वी का अभी तक कहीं पता न था.

“बेटा, उस के बारे में किस से पूछें?“ “मैं उस की सहेली सलोनी से फिर पता करता हूं. हो सकता है कि उसे कुछ पता हो.“ उस ने तुरंत फोन मिलाया, लेकिन उस ने अनभिज्ञता  जाहिर की. रात के 10 बज चुके थे. अनिष्ट की आशंका से घबरा कर रमा बोली, “हमें इस की शिकायत पुलिस में कर देनी चाहिए.“ “थोड़ा सब्र रखो अम्मां. शादी का एक हफ्ता रह गया है. बिरादरी में कितनी बदनामी होगी.“

“ वह जा कहां सकती है बिना बताए?“ “यही तो पता लगाना है. उस के साथ कहीं कोई अनहोनी तो नहीं हो गई.“ “सब ठीक ही हो,“ रमा दुआ मांगते हुए बोली. सब की आंखों से नींद गायब थी. रवि और विशाल उसे पागलों की तरह सड़कों पर ढूंढ़ रहे थे. रात के 11 बजे यशस्वी का फोन आया. रमा ने घबरा कर पूछा, “तुम कहां हो यशस्वी. ठीक तो हो.“ “मैं जहां हूं ठीक हूं. मेरी चिंता मत करना.“

“चिंता कैसे न करें? एक हफ्ते बाद तुम्हारी शादी है और तुम बिन बताए अचानक कहां गायब हो गई?“ “अम्मां, मैं ने एक महीने पहले सुखविंदर के साथ कोर्ट मैरिज कर ली थी. मैं उसी के साथ हूं उस के घर पर.“ यशस्वी की बात सुन कर रमा को चक्कर आने लगा. फोन की आवाज सुन कर राम लाल रमा के पास पहुंच गए. किसी तरह राम लाल ने उसे संभाला. तब तक फोन कट चुका था.

राम लाल ने काल बैक किया, लेकिन उत्तर नहीं मिला. राम लाल ने रमा के मुंह पर पानी के छींटें मारे, तब जा कर उसे होश आया.“क्या हुआ रमा? किस का फोन था?“ राम लाल ने पूछा. “यशस्वी का. हम बरबाद हो गए. उस ने हमारी नाक कटवा दी. हमें कहीं का नहीं छोड़ा,“ कह कर वह छाती पीटने लगी. पूरी बात किसी की समझ में नहीं आ रही थी. “रमा होश में आओ. बताओ तो क्या हुआ है?“

“बताने को कुछ भी नहीं रहा. हमारे लिए वह मर गई.“ “अच्छाअच्छा बोलो रमा. यह तुम क्या अनापशनाप बोल रही हो. एक हफ्ते बाद उस की शादी है.“ “किस की शादी? वह तो अपने ही घर में हमारी सब से बड़ी दुश्मन निकली. उस ने हमें कहीं का नहीं छोड़ा. उस ने गैरजाति में शादी कर ली और उसी के साथ चली गई है.“

“यह क्या कह रही हो तुम?“ “वही जो उस ने मुझे बताया.“ “मुझे लगता है, तुम्हारा दिमाग काम नहीं कर रहा है.“

सवाल – भाग 1 : मयंक की मां बहू रुचिका के लिए अपनी सोच बदल पाई

लेखिक- डा. रंजना जायसवाल

किट्टी पार्टी से आने के बाद प्रियंका सामान्यतः खुश रहती थी, पर न जाने क्यों आज वह कुछ उखड़ीउखड़ी सी थी. ईशु डर से कमरे में दुबक गया था, कहीं ऐसा न हो कि वह ही मां के कोप का भाजन बन जाए. राहुल औफिस से थोड़ा जल्दी ही आ गए थे. वैसे भी जब उस की किट्टी पार्टी होती तो वे घर जल्दी आ जाते थे. ईशु को अकेला भी तो नहीं छोड़ा जा सकता था. ईशु थोड़ा चंचल स्वभाव का था. प्रियंका अकसर उस की शैतानियों से खीझ जाती. कहती, “ताड़ की तरह बड़ा होता जा रहा है, पर जरा भी अक्ल नहीं. दिनभर खुराफात ही सूझती रहती है… एक पल के लिए भी चैन से नहीं रहता.”

प्रियंका की बात सुन राहुल मुसकरा कर कहते, “इस उम्र में यह शैतानियां नहीं करेगा तो क्या हम और तुम करेंगे.” “बिगाड़ लीजिए… आप तो दिनभर औफिस में रहते हैं… झेलना तो मुझे होता है.”

प्रियंका ने पर्स मेज पर रख वहीं सोफे पर निढाल हो गई, “प्रिया, अच्छा हुआ तुम आ गई. एक बढ़िया सी चाय पिलाओ, बड़ी तलब हो रही है.” राहुल की फरमाइश सुन प्रियंका गुस्से से बिफर उठी, “यहां मेरा सिर दर्द से फटा जा रहा है और जनाब को चाय पीनी है. इस घर में एक गिलास पानी देने वाला भी नहीं है कि मां थकी हुई आई है, एक गिलास पानी पूछ ले.”

राहुल समझ गए कि आज गुस्से का केंद्रबिंदु ईशु ही है. राहुल ने ईशु को आवाज दी. “जी पापा. क्या हुआ? आप ने मुझे बुलाया.” “देख, तेरी मम्मी थक कर आई है, जरा उन के लिए पानी ले आ.” “पर, मम्मी तो किट्टी पार्टी से आ रही हैं, फिर भी थक…”

ईशु की बात सुन प्रियंका का गुस्सा सातवें आसमान पर पहुंच गया. “एक दिन… एक दिन किट्टी पार्टी चले जाओ तो सब की आंखों में चुभने लगता है, यहां दिनदिन भर साइकिल चलाते रहोगे तब कुछ नहीं.”

ईशु समझ नहीं पा रहा था कि किट्टी का साइकिल चलाने से क्या संबंध…? “राहुल जानते हो, आज कितनी शर्मिंदगी उठानी पड़ी. दिशा और एकता के बच्चे बोर्डिंग स्कूल चले गए. निशा की बेटी पिछले साल ही कोटा चली गई थी. आज सब मुझ से पूछ रहे थे कि तुम कब भेज रही हो अपने बेटे को… क्या कहती… इन से दुनियाभर की पंचायत करवा लो, बस पढ़ने के लिए मत कहो.”

ईशु सिर झुकाए सुनता रहा. “दुनिया की छोड़ो, अपने ही घर मे देख लो. सब के बच्चे बाहर हैं. एक यही है जो छाती पर लदे हुए है. “दीदी को देखो, मयंक का नाम आते ही कितना सीना चौड़ा हो जाता है. डालर में कमाता है वह…” राहुल प्रियंका को शांत कराने का प्रयास कर रहे थे, पर न जाने क्यों प्रियंका अंदर तक आहत थी. उस का ये दर्द गुस्से की तेज आंच में पिघल कर आंखों से बहने लगा. मासूम ईशु मां के पैरों के पास आ कर बैठ गया.

“मां, एक बात कहूं…” प्रियंका ने वितृष्णा से ईशु को देखा. “बोलो.” “परसों आप पापा से कह रही थीं कि मेरी अधिकतर सहेलियां अपने बच्चों को होस्टल में भेज कर बेफिक्र हो गई हैं. कुछ ने 4-4 किट्टी भी जौइन कर ली हैं. कहती हैं, दिनभर बच्चों की वजह से काम में फंसे रहते थे, कभी ये इम्तिहान तो कभी वो… अब तो फ्री हैं, समय ही समय है. अगर आप को भी लगता है कि मेरी वजह से आप क्लब और किट्टी नहीं जा पा रहे हो तो फिर आप भी मुझे किसी होस्टल में भेज दो.”

ईशु की बात सुन प्रियंका सन्नाटे में चली गई. ईशु का अबोध मन क्याक्या सोच रहा था. ईशु चुपचाप यह कह कर अपने कमरे में चला गया. राहुल हमेशा की तरह प्रियंका को उस के विचारों के साथ छोड़ सुबह से 3 बार पढ़ चुके अखबार में सिर डाल कर बैठ गए. वह शाम बड़ी भारी गुजरी. किसी ने किसी से कोई बात नहीं की.

दिन गुजरते गए और सब अपनी व्यस्तताओं में सबकुछ भूल गए. प्रियंका मेज पर खाना लगा रही थी, तभी राहुल के फोन की घंटी बजी. “नमस्ते मामाजी.” “खुश रहो मयंक और सुनाओ क्या हालचाल है…” राहुल ने बड़े ही बिंदास लहजे में कहा, तो प्रियंका के चेहरे पर हलकी मुसकान आ गई.

राहुल और मयंक… कहने को तो मामाभांजे थे, पर मयंक राहुल से कुछ ज्यादा ही लगा हुआ था. मयंक बड़ी ननद का बेटा था और राहुल घर में सब से छोटे थे. दीदी की शादी के वक्त राहुल मुश्किल से 10-12 साल के ही थे. राहुल अकसर बताते थे, मयंक जब छोटा था तो वह हमेशा उन्हीं के इर्दगिर्द घूमता रहता था. मयंक राहुल के लिए एक गोलमटोल खिलौने की तरह था. छोटे मामा की उंगली पकड़े वह सारा बाजार घूम आता…

गरमी की छुट्टियों में मयंक के आने से पहले ही फोन पर सारी योजना बन जाती थी. दीदी से छुप कर राहुल ने मयंक को स्कूटी चलाना भी सिखाया था. सच पूछो तो कहने को तो उन में मामाभांजे का रिश्ता था, पर उन सब से ऊपर एक मित्रता का भाव भी जुड़ा हुआ था. शायद इसी भाव के कारण ही वो एकदूसरे से खुल कर बात कर पाते…

“और भाई, शादीवादी का क्या विचार है? करनी है कि नहीं?” मयंक राहुल की बात सुन खिलखिला कर हंस पड़ा. “करनी है मामाजी… करनी है. वह भी कर ही लेंगे मामाजी. पहले कुछ कमा तो लें वरना आप की बहू को कहां रखेंगे, क्या खिलाएंगे.” मयंक शुरू से ही पढ़ने में होशियार था. इंजीनियरिंग करने के बाद कैंपस प्लेसमेंट हो गया और नौकरी के साथसाथ उस ने एमबीए भी कर लिया.

प्यार और श्मशान : भाग 3

‘‘पर पिताजी… वे मेरी सब बातें जानते हुए भी मुझ से ब्याह रचाने को तैयार हैं,’’ मालती ने डरते हुए कहा.

‘‘क्या… सबकुछ जानता है…? क्या सबकुछ…? यही न कि तुम्हारे अंदर एक ठाकुर का खून दौड़ रहा है… और कुछ नहीं जानता वह…

‘‘मालती, तुम नहीं जानती कि ये निचली जाति के लड़के एक साजिश के तहत अच्छे घर की लड़कियों को फंसाते हैं और फिर उन के घरपरिवार पर

अपना दबदबा भी जमाते हैं,’’ मालती के पिता ने कहा.

‘‘और हां दीदी… अगर तुम से अकेले नहीं रहा जा रहा था, तो कोई और लड़का ढूंढ़ लिया होता, तुम्हें वही लाशें जलाने वाला डोम ही मिला,’’ अब तक चुप मालती के भाई ने कहा.

मालती को अपने छोटे भाई के मुंह से ऐसी बातें सुनने की उम्मीद नहीं थी. वह अब और सुन पाने की हालत में नहीं थी. वह वहां से अपने कमरे में भाग गई थी.

जब केशव ने अपने घर में मालती से ब्याह रचाने की बात कही, तो उस के घर में भी वही हुआ, जिस की उम्मीद कभी उस ने नहीं की थी.

‘‘क्या…? पूरी बिरादरी में तुम्हें कोई और लड़की नहीं मिली, जो उस लड़की से शादी करोगे तुम…

‘‘अरे, तुम्हें पता भी है कि इतने सालों तक उस की शादी क्यों नहीं हुई… क्योंकि वह नाजायज… उस का असली बाप कौन है, किसी को नहीं पता,’’ केशव के पिताजी चीख रहे थे.

‘‘पता है न तुम्हें कि उस की मां का कई लोगों ने मिल कर रेप किया था  और उसी के बाद इस लड़की का जन्म हुआ है…

‘‘भले ही वह तुम से जाति में ऊंची है, पर उस से क्या… है तो वे नाजायज ही न,’’ केशव के पिता की आवाज में उस के सभी घर वालों की भी आवाज शामिल लग रही थी, क्योंकि सभी लोग केशव को नफरत भरी नजरों से देख रहे थे.

अगले ही दिन इन दोनों की बातें ही लोगों की जुबान पर थीं और सब लोग इसे एक बेमेल जोड़ी और समाज को तोड़ने वाली कोशिश बता रहे थे.

आननफानन ही ब्राह्मण सभा बुलाई गई और यह फैसला लिया गया कि किसी दलित द्वारा एक अबला सवर्ण लड़की के शील को भंग कर के उस से ब्याह रचा कर सारी ब्राह्मण कौम को बदनाम करने की साजिश है यह… उसे सजा तो जरूर मिलनी चाहिए.’’

कसबे में मीडिया की चहलपहल अचानक से बढ़ गई थी और चुनावी बारिश वाले नेता भी मैदान में उतर आए थे.

कसबे में अचानक ही एक अजीब सा तनाव वाला माहौल बन गया था. अगले ही दिन भरी दोपहर में केशव की दुकान धूधू कर के जलती हुई देखी जा सकती थी.

उधर मालती के घर में भी आपसी रिश्तों में आग लगी हुई थी और पूरा महल्ला मालती और उस के परिवार की थूथू कर रहा था.

‘‘क्या… मेरी यह सजा है कि मेरी मां के साथ रेप हुआ है. अब तक मैं ने रेप का दंश झेला और बदनामी सही. अब उस के बाद यह दंश मुझे भी दुख देता रहेगा.

अगर किसी औरत के साथ रेप होना गलत है, तो सजा उसे नहीं, बल्कि बलात्कारियों को मिलनी चाहिए, जिन्होंने यह घिनौना अपराध किया है. मालती अपने घर में चीख रही थी.

तभी उस के घर के दरवाजे पर दस्तक हुई. मालती के पिता ने दरवाजा खोला, सामने मुंह पर कपड़ा बांधे दो लंबेचौड़े लोग खड़े थे, वे किस जाति के थे, ये कहना मुश्किल था कि किसी को कुछ समझ नहीं आ रहा था, सिर्फ उन की आंखें ही देखी जा सकती थीं. वे आंखें मालती को ढूंढ़ रही थीं. मालती ने खतरा भांप लिया और पीछे के दरवाजे से भाग निकली. वे दोनों लठैत उस के पीछे दौड़ रहे थे.

मालती दौड़तेदौड़ते बुरी तरह थक गई थी, अचानक उस के पैर से एक पत्थर टकराया और वह गिर गई. उस के पेट के निचले हिस्से से खून की धार फूट पड़ी थी. इस से पहले कि वह कुछ समझ पाती, मालती के सिर पर लाठियां बरसने लगी थीं. उस की आंखें मुंद गई थीं. मालती की आंखें फिर कभी खुल नहीं सकीं.

शौकीन : मीनू की मुलाकात रास्ते में किससे हुई

लेखिका- पूनम पांडे

मीनू ने लंबी सांस ली और खिड़की से बाहर झांका. पता लगा कि अब सुबह हो गई थी. ड्राइवर को कहीं चाय के लिए रुकने को कह कर वह हवा के ताजा झोंकों का मजा लेने लगी. मीनू सुबहसुबह 4 बजे पूना से चली थी. अब बस मुंबई आने को ही था. यह जगह गांव जैसी लग रही थी. खैर, मीनू को तो चाय की तलब लग रही थी. गाड़ी एक छोटे से बाजार आ गई. वहां लाइन से चाय के ठेले लगे थे. मीनू की आवाज पर ड्राइवर ने गाड़ी के पहियों को रोक दिया. एक औरत चाय का और्डर लेने आई. उस की सूरत देख कर मीनू तो जैसे आसमान से गिरी. उस ने चाय मंगवाई और ड्राइवर को दूर नजर आ रहे मंदिर मे रुपए चढ़ाने भेज दिया. वह फटाफट चला भी गया. दरअसल, उस को भी बीड़ी पीने की तलब लग रही थी.

मीनू को पक्का यकीन था कि यह औरत वही है और दो पल की बातचीत में यह साबित भी हो गया. वह उस की सगी भाभी प्रभा थी, जो पिछले 5 सालों से गुमशुदा थी. मीनू ने उन से खैरियत पूछी और प्रभा ने उस को खुल कर बता दिया कि यह सबकुछ कैसे हुआ. ससुराल में खेतों का मैनेजर ही उस का आशिक था और जायदाद के लालच में उसी ने ही प्रभा का यह हाल कर दिया था. मीनू को प्रभा ने बताया, ‘‘लड़कपन से ही मैं बहुत आजाद किस्म की थी. शायद 3 भाइयों में अकेली होने के चलते ऐसा था. शादी हुई तो ससुराल में सारी आबोहवा और माजरा बहुत जल्द समझ आ गया. बड़ेबड़े खेत थे. बागबगीचे थे. खूब दौलत थी और पति अकेले थे. तुम एक बहन थीं, मगर तुम भी मस्तमौला टाइप ही थीं. ‘‘तो यहां मेरी एक तरह से लौटरी खुल गई.

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मगर अपनी हवस में अंधी मैं यह नहीं समझ सकी कि यह क्या कर रही हूं. यह दौलत कोई मैं ने तो नहीं कमाई है. ‘‘इस की रखवाली तक तो ठीक है, पर सब की आंखों मे धूल झोंक कर इतनी रंगीनियां, सब को खुलेआम धोखा. ‘‘मैं यह सब कैसे कर सकती हूं? मगर, जवाब भी मैं अपने हिसाब से बना लिया करती. बचपन से कोई अंकुश रहा ही नहीं. सारे सहीगलत तो मैं ने अपने तरीके और अपनी सहूलियत से जो बना कर रखे थे. जैसी मेरी फितरत हो रही थी, मैं ने सपने में भी नहीं सोचा था कि आगे इतने बुरे दिन देखने थे, मगर यह जाजम तो मैं ने ही तो खुद अपने लिए बिछा रखी थी. ‘‘हां तो मीनू, तुम सब से कमजोर थीं. मैं तुम को फुसलाने लगी, उल्लू बनाने लगी. ‘‘देखो मीनू, मैं कभी नहीं कहती थी कि तुम से बात किए बिना मेरा काम नहीं चल पाता. मगर सिर्फ तुम्हारे ही लक्षण, सोचविचार, चालचलन थे ही ऐसे कि मेरा काम आसान हो गया. मैं तो आशिकमिजाज थी, लेकिन तुम्हारे ये अंदाज मेरे बाकी के अवगुण भी बहुत आसानी से छिपाते चले गए.

‘‘तुम्हारे पति को तो अपने हर मिनट को डौलर में बदलने का जुनून सवार था और तुम्हारे होने न होने से उस को कभी कोई फर्क नहीं पड़ा. वैसे भी वह अच्छी तरह समझ गया था कि तुम्हारे पर्स मे नोट भरे हों और वार्डरोब में फैशनेबल कपड़े हों तो तुम को यह भी याद नहीं रहता कि तुम्हारा कोई पति भी है. ‘‘वह इस बात का फायदा उठा कर तुम को आजादी देने के नाम पर नजरअंदाज करता रहा. ‘‘मीनू, वह खुद एक नंबर का ऐयाश भी है. 2-3 बार उस ने मुझ से भी लिपटने की कोशिश की, मगर उस के बदन का पसीना… मुझे उलटी सी आती थी. ‘‘पर, तुम तो बेफिक्र सी अपने रंग में रहीं. तुम आएदिन मायके आ कर पड़ी रहतीं और तुम्हारे मातापिता यानी मेरे सासससुर तुम्हारी संगत में मिठास से सराबोर रहते. वे बस खातेपीते, आराम करते और तुम से ही गपियाते रहते. उन को, तुम्हारे पति को और तुम्हारे भाई तक को अपने जुआताश वगैरह के नशेपत्ते में यह कभी पता तक नहीं रहता था कि मैं क्या कर रही हूं, खेत में जाने के बहाने वहां कौनकौन से गुल खिला रही हूं.

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‘‘मैं बस तुम को दिखावे के चलते लाड़प्यार करती और सासससुर ही नहीं, मेरे पति भी भावुक हो कर बहुत खुश हो जाते कि मैं कितनी व्यावहारिक हूं ननद के साथ. इतनी सरल, सहज हूं. ‘‘फिर उन को कभी बुरा नहीं लगता था कि मैं अपनी चला रही हूं, उन की मरजी कहीं है ही नहीं. खाना रोज बाहर से आ रहा है. कितनी चीजें बरबाद भी हो रही थीं. ‘‘और मैं… मैं तो अपनी रवानी में उस के साथ कभी यहां कभी वहां, बस आवारागर्दी करती फिरती, तुम सब यही सोचते कि मैं कितनी जिम्मेदार हूं, बागबगीचे, अनाज, मवेशी देख रही हूं. इस घर के लिए तनमनधन से जुटी हुई हूं. ‘‘तुम तो अपने भाई की तरह हद दर्जे की निकम्मी थीं, लेकिन मेरा काम तो आसान कर रही थीं. हौलेहौले मैं ने तुम्हें उपन्यास मे डूबे रहने और हर दूसरे दिन सिनेमाघर जा कर फिल्म देखने का ऐसा आदी बना दिया कि तुम उस लत से बाहर आ ही नहीं सकीं. आती भी कैसे, मैं जो तुम्हारी हर बुरी आदत को खादपानी दे रही थी. और मुझे मुश्किल हुई भी नहीं, तुम जब मन होता पसर कर सोती ही रहती थीं.

‘‘तुम भी अजीब थीं. जब जो मन होता वह करती, रात को बाहर बैठ कर नूडल्स खाती, सुबह से दोपहर तक खर्राटे भर पलंग तोड़ती. ‘‘मैं ने तो बस तुम को हवा दी. मैं तुम को हमेशा राजकुमारी कहती रहती थी, जबकि सच यह था कि तुम तो इनसान कहलाने लायक भी नहीं थीं. ‘‘तुम्हारे दिलोदिमाग में बस आरामतलबी के कीटाणु भरे पड़े थे. बस खाना और सोना, बाकी समय खयालीपुलावों में मगन रहना. अपने सुकून में मस्तमगन रहना. मैं तुम्हारे भाई और तुम को इतना आराम दे रही थी कि तुम इस के आदी बनते चले गए. मातापिता तो खैर 65-70 साल की उम्र को छू रहे थे, उन का सुस्ताना लाजिमी था. ‘‘मेरा हर नाजायज काम तुम्हारे आलस के परदे में तसल्ली से परवान चढ़ रहा था कि एक दिन वह धोखेबाज मुझे अपनी चाल मे फंसाने आया. मैं उस के जाल में ऐसी अटकी कि वह मुझे उल्लू बना कर चला गया. मैं ने सपने में भी नहीं सोचा था कि मुझ से 3 साल छोटा मेरा दीवाना खेल खेल जाएगा.

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‘‘और मैं बिलकुल अकेली पड़ गई. याद है न, उन दिनों तुम अपने मातापिता और भाई के साथ शिमला गई थीं. गरमी बहुत थी और तुम लोग 2-3 हफ्ते तक वहां से वापस नहीं लौटना चाहते थे. ‘‘मुझे कुछ पिलाया गया था और फिर हलकी सी बेहोशी में मुझे याद है कि मुझे कस कर बांध दिया गया था. ‘‘मैं हिल कर जितनी भी ताकत थी, जूझती रही. मैं बहुत चीखी, जितना दम बचा था उतना चीखी. ‘‘पर, वह सब को अपने साथ मिला चुका था. बंगले का रसोइया, माली और चौकीदार, सब ने हाथपैर बांध कर मुझे ट्रक में पटक दिया और यहां इतनी दूर गांव में फेंक दिया. ‘‘यहां पर पूरे 2 साल मजदूरों की तरह दिहाड़ी कर के मैं बच सकी. पत्थर तोड़ कर, झाड़ू लगा कर, नाली साफ कर के रोटी खाई. ‘‘न जाने कैसा चमत्कार हुआ कि मैं निराश नहीं हुई. अब यह चाय का ठेला है. इस से मेरा बहुत ही मजे में गुजारा हो जाता है. ‘‘तुम लोग बेहद याद आते थे, पर अब तक तो मेरी हर काली करतूत पता लग गई होगी, इस शर्म से मैं यहीं रही. कहीं नहीं गई. कितने दिन तो मुंह छिपाती रहती कि कोई मेरी पहचान न कर ले…’’ ‘‘मगर, वह एकदम से ही इतनी नफरत क्यों करने लगा? इतना नाराज हुआ कैसे?’’ बीच मेें मीनू ने पूछ लिया. ‘‘बस जलन हो गई थी उस को. उस ने मुझे रंगे हाथ पकड़ लिया था. ‘‘हां, वह सहन नहीं कर सका. तुम जानती हो न मेरी तलब. मुझ को मवेशी संभालने वाला एक नया लड़का बहुत ही भा गया था और मेरा काफी समय उस के साथ गुजरने लगा था.

वह मेरे बालों को सहलाता था, पैर दबाता था, बहुत सेवा करता था,’’ इतना कह कर प्रभा ने एकदम चुप्पी साध ली. उस के आगे और कुछ भी नहीं बता कर वह जरा ठहर कर आगे बोली, ‘‘कैसे हैं सब? जायदाद तो वह डकैत लूट ले गया होगा. मैं बहुत शर्मिंदा हूं,’’ प्रभा सिसकने लगी. ‘‘नहीं, ऐसा कुछ हुआ ही नहीं. हम लोग लौटे और तुम्हारी चिट्ठी पढ़ी. तुम अपनी मरजी से चली गई थी. फिर भी हम लोगों ने तुम्हारे अचानक गायब होने की रिपोर्ट लिखवाई थी.’’ ‘‘चिट्ठी भी लिख दी मेरे नाम से, मेरे ही लेख को कौपी कर लिया. उफ,’’ तड़प कर रह गई प्रभा. ‘‘हम ने तुम्हारे भाइयों को खबर की, पर वे आए ही नहीं.’’ ‘‘यह बहुत अजीब हुआ.’’ ‘‘हां, उस के तकरीबन एक महीने बाद वह मैनेजर भी अफीम के नशे में कुएं में छलांग लगा बैठा. उस की पत्नी और बच्चों को हम लोगों ने सहारा दिया. अब वे ही मेरी नई भाभी हैं. सब संभाल रही हैं. मेरा पूरा खयाल रखती हैं. ‘‘बच्चों को हम ने अपने परिवार में शामिल कर लिया है.

वे बहुत मेहनत करती हैं. रुपयापैसा हर रोज बढ़ता जा रहा है. ‘‘मैं तो कल शाम पूना आ गई थी. मेरे पति वहां पर एक आश्रम के संचालक हो गए हैं. लगता ही नहीं कि वे 40 साल के हो गए हैं. मुझ से भी छोटे लगते हैं,’’ मीनू ने हंस कर कहा. प्रभा बड़ी हैरत से सुन रही थी और बहुत मुश्किल से यकीन कर पा रही थी. ‘‘मुश्किल से 3-4 घंटे लगते हैं यहां पहुंचने में,’’ मीनू बोली. ‘‘अच्छा,’’ कह कर प्रभा चुप हो गई. अब वह कहीं भी नहीं जाना चाहती थी. मीनू ने उस को बताया, ‘‘मुझे दोपहर 12 बजे तक फिजियोथैरैपी के लिए अस्पताल पहुंचना है. मेरी कलाई में दिक्कत है. ‘‘मुझे तुम्हारे लिए बहुत अफसोस है. तुम अपना खयाल रखना,’’ कह कर मीनू अपनी कार की ओर लौट गई. प्रभा उस को जाते हुए देर तक देखती रही और फिर जूठे गिलास मांजने लगी.

सवाल – भाग 2 : मयंक की मां बहू रुचिका के लिए अपनी सोच बदल पाई

एमबीए करने के बाद मयंक की लंदन में एक अच्छी सी कंपनी में नौकरी लग गई थी. अभी 2 साल भी नहीं हुए थे, सब शादी के लिए हल्ला मचाने लगे थे. मयंक से सभी चुटकी लेते थे, “अरे भाई कोई हो तो बता देना.”

पर न जाने क्यों एक अनदेखा डर सभी के मन में बैठा हुआ था. कहीं सचमुच वह किसी गोरी मेम को ले कर खड़ा न कर दे. राहुल ने हवा में तीर छोड़ा, “कोई लड़की देख रखी हो तो पहले ही बता दो, फिर न कहना कि मामा ने पूछा नहीं. तुम्हारे नाना पीछे पड़े हैं कि तुम से पूछ लें वरना हम लोग लड़की देखें…”

तभी पीछे से प्रियंका चिल्लाई, “मयंक, पहले बता देना. अचानक से सरप्राइज मत देना. कम से कम तेरी मामी को तैयारी करने का मौका दे ही देना, वरना तेरी बीवी कहेगी कि मैं किन लोगों के बीच आ गई.”

प्रियंका ने राहुल से फोन ले लिया. मयंक न जाने क्यों शरमा गया. “मयंक, कैसे हो बेटा?” “मामीजी, मैं बिलकुल ठीक हूं, आप बताइए… आप लोग कैसे हैं?” “हम भी ठीक हैं, बस वही दालरोटी के चक्कर में फंसे हुए हैं. तुम बताओ कि कोई लड़कीवड़की देखी कि हम लोग देखें.”

“आप भी मामीजी…” “अरे, मुझ से क्या शरमाना, जो भी हो साफसाफ बता देना.” मयंक ने वही रटारटाया जवाब दिया, “मनुष्य का एक स्वभाव होता है चाहे वो कितना भी समझदारी का ढोंग कर ले… पेट में शक की मरोड़ उठती ही रहती है.”

प्रियंका ने एक दिन यों ही सोशल मीडिया पर मयंक को अपनी साथी महिला कर्मचारियों के साथ पार्टी की फोटो देख ली थी. छोटेछोटे कपड़ों में लड़कियां हाथ में रंगीन गिलासों के साथ तितली की तरह खिलखिला रही थीं. न जाने क्यों तब से ही प्रियंका के दिमाग में शक का कीड़ा घुस गया था. वह बहुत दिनों से इसी फिराक में थी कि मयंक से बात कैसे निकलवाई जाए.

प्रियंका ने अपनी आवाज को गंभीर बना कर कहा, “मयंक, शादी तो करनी ही है और हर आदमी तुम से कुछ न कुछ कहेगा ही… पर निभाना तुम को है, इन सब चीजों में दूसरों की नहीं खुद की सुनो. कल कोई ऊंचनीच हुई तो सब पल्ला झाड़ लेंगे. तुम्हें कैसी लड़की चाहिए, इस का निर्णय तुम को लेना होगा.”

मामी की बात सुन कर मयंक के दिल में छुपे विचारों को मानो बल मिल गया. शायद आज से पहले किसी ने उस से इस ढंग से बात नहीं कही थी. किसी ने कभी उस का दृष्टिकोण जानने का प्रयास ही नहीं किया था.”मयंक, कहना तो नहीं चाहिए. सब मेरे अपने ही हैं, पर तुम्हारे घर या फिर यहां तुम्हारी नानी के घर का माहौल ऐसा नहीं है कि नए जमाने की लड़कियां अपनेआप को एडजस्ट कर लें. सच पूछो तो वो वक्त के साथ बदलना भी नहीं चाहते. हम लोगों की बात छोड़ो, हम ने तो जैसेतैसे निभा लिया, पर तुम्हारी पीढ़ी ये सब नहीं झेल पाएगी.”

“सच कह रही हैं मामी. घर पर पापा, मम्मी, दादी, ताऊ, ताईजी सब शादी के लिए पीछे पड़े हैं. हर दूसरेतीसरे दिन मम्मी एक फोटो ले कर खड़ी हो जाती हैं. मैं… मैं उन से खुल कर कह भी नहीं पाता कि अचारमुरब्बा वाली लड़की मुझे नहीं चलेगी.”

मयंक की बात सुन प्रियंका खिलखिला कर हंस पड़ी. प्रियंका सोचने लगी, सच ही तो कह रहा था मयंक. उस की शादी के समय पापा ने भी तो शौक में यही सब तो लिखवाया था.मयंक ने बड़ी लापरवाही से कहा, “मामीजी, आजकल के जमाने में ये सब खाता कौन है, सब तो फिगर कानसेस है. वैसे भी आजकल बाजार में सबकुछ मिल जाता है.”

“फिर भी बेटा…”प्रियंका के शब्द गले में ही अटक कर रह गए. यही मयंक खाने के लिए बचपन में दीदी को कितनी नाच नचाता था.दीदी हाथ में थाली लिए मयंक के पीछे भागतेभागते हार जाती थीं. गलत तो नहीं कहा था मयंक ने, मम्मीजी अकसर कहती थीं कि आजकल की लड़कियां कुछ नहीं करना चाहतीं… ऊपर से तुर्रा ये कि पढ़ाई कर रहे हैं. खाना बनाने के लिए तो पूरी जिंदगी पड़ी है.

प्रियंका सोचने लगी, उस के पापा ने भी तो उस की शादी के वक्त कुछ इसी तरह के शौक और विशेषताएं लिखवाई थीं, कुछ तो ऐसी भी चीज शामिल थी, जिस का उस से दूरदूर तक नाता नहीं था. उन दिनों कुकरीबेकरी बड़े लोगों की चीज हुआ करती थी, पापा ने वो भी लिखवा दिया. शायद लड़के वालों के सामने वो अपनी बेटी को कमतर नहीं दिखाना चाहते थे या शायद ये भी हो सकता है कि वो किसी भी आधार पर बेटी के ऊपर रिजेक्शन का ठप्पा नहीं लगवाना चाहते थे, पर इतने जतन और टोटके के बाद भी दो जगह से रिजेक्शन का ठप्पा लगने के बाद प्रियंका की शादी राहुल से हो पाई थी.

वक्त बदल गया था, पर वक्त के साथ लड़कियों के लिए सोच का दायरा नहीं बदला था. पर लड़कियों को आज भी रिजेक्ट किया जाता था. पर, हां समय ने करवट जरूर ली थी. अब लड़कियां भी लड़कों की तरह रिजेक्ट करने लगी हैं.” हेलो… हेलो.”

प्रियंका मयंक की आवाज सुन अपनी सोच के घेरे को तोड़ बाहर आ गई.”सुन रही हूं बेटा, बोलो..” “मामीजी, मैं खुद नहीं चाहता कि जिस किसी से मेरी शादी हो, वो दिनभर घर पर बैठ कर मेरे लिए खाना बनाए.”

‘जिस किसी…’ प्रियंका का शंकित मन सोशल नेटवर्किंग पर मयंक के साथ की लड़कियों की तसवीरों में उस जिस किसी को तेजी से टटोल रहा था.”मयंक ठीक कह रहे हो, जितना बड़ा शहर उतने ही खर्चे… दोनों नहीं कमाएंगे तो काम कैसे चलेगा.”

“बात कमाने की नहीं है मामीजी. मैं इतना कमा लेता हूं कि अच्छे से जिंदगी कट जाएगी, पर इस शहर में, घर में दिनभर अकेली पड़ी रहे यह तो मैं भी नहीं चाहूंगा.”

World Bamboo Day : जलवायु परिवर्तन में अहम भूमिका निभाते हैं बांस के पेड़

क्लाइमेट चेंज आज विश्व में एक बड़ी समस्या बनकर उभर चुकी है, जिसका परिणाम सारे विश्व में किसी न किसी रूप में दिखाई पड़ रहा है, ऐसे में एक पेड़ लगाना और उसकी देखभाल करना जरुरी हो चुका है, क्योंकि एक छोटे प्लांट से एक बड़े पेड़ बनने में कई साल लग जाते है, जबकि बाँस या बंबू एक ऐसा पौधा है, जिसे बढ़ने में कम समय लगता है और जहाँ बाँस के पेड़ है, वहां व्यवसाय के पनपने से लोगों की आजीविका भी चल सकती है. इसके अलावा बाँस के पेड़ को ग्रीन गोल्ड भी कहा जाता है.
इस बात को ध्यान में रखते हुए बांस के अधिक से अधिक मात्रा में उत्पादन पर जागरूकता फ़ैलाने के उद्देश्य से वर्ल्ड बम्बू डे पर इंडस्ट्री फाउंडेशन की सोशल वर्कर नीलम छिब्बर कहती है कि ये फाउंडेशन एक गैर सरकारी संगठन है, जो महिला कारीगरों के लिए स्थायी आजीविका विकसित करने और उन्हें सफल उद्यमी बनने के लिए प्रशिक्षण देती है.

यूएसएड के साथ ये संस्था कई प्रोजेक्ट चलाती है, जो बांस की वैल्यू बताती है, क्योंकि ये एक प्राकृतिक फाइबर है और6800 महिलाओं को इसका लाभ मिला है. संस्था का लक्ष्य आगे कर्नाटक में 1200 से अधिक महिला कारीगरों को एकत्रित कर 6 केंद्र स्थापित करना है.इसमें आधुनिक तरीके से बांस की टोकरी बनाने और विभिन्न शिल्प कला कीपावर प्रोजेक्ट के तहत, सोलिगा आदिवासियों के साथ काम कर रही है.इसके अलावा अनुसूचित जातियों और पिछड़े समुदायों की आजीविका को नियमित बनाये रखने की कोशिश कर रही है. इसके लिए अधिक मात्रा में बाँस का उत्पादन होने से ही ये संभवहो सकेगा.

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बाँस की उत्पत्ति
बाँस की उत्पत्ति के बारें में नीलम का कहना है कि भारत में सबसे पहले बांस किसने लगाया और भारत में बांस झाड़ कैसे आया, इसकी कोई आधिकारिक जानकारी नहीं है, लेकिन एक रिपोर्ट के अनुसार, एशियाई बांस के पहले जीवाश्म भारत में पाए गए है,जिससे पता चलता है कि इसकी उत्पत्ति पहले भारत में हुई थी और फिर चीन में इसे ले जाया गया. असल में बांस सबसे तेजी से बढ़ने वाला और सबसे अधिक उपज देने वाला कभी ख़त्म न होने वाला संसाधन है. पिछले 3 दशकों में, आर्थिक और सामाजिक लाभ के लिए बांस की खेती का ग्रामीण आजीविका पर सकारात्मक प्रभाव पड़ा है.इससे उन क्षेत्रों में रोजगार के अवसर अधिक मिले जहां इसकीऊपज अधिक है.

बचाती है पर्यावरण
बांस का पेड़अन्य पेड़ों की अपेक्षा 30 प्रतिशत ऑक्सीजन छोड़ता और कार्बन डाई आक्साइड खींचता है. 60 से 120 दिनों के बीच विकास चक्र के साथ बांस के पेड़ बहुत तेजी से बढ़ता है. बांस का उत्पादन भी अधिक होता है और अगर आधुनिक तकनीक से उत्पादन किया जाता है, तो सालाना पैदवार अधिक होती है.भारत में बैम्बू की 24 प्रजातियाँ पायी जाती है. बाँस की कुछ प्रजातियाँ ऐसी भी होती है, जो एक दिन में 121 सेंटीमीटर तक बढ़ जाता है. एक बार बाँस का पौधा लगाने पर 5 साल बाद वह ऊपज देने लगता है. बांस के बागानों का विकास जलवायु परिवर्तन के पर्यावरणीय प्रभावों को कम करने के प्रमुख तरीकों में से एक है. बांस वायुमंडलीय कार्बन डाइऑक्साइड को कम करने के लिए महत्वपूर्ण है, जो सबसे तेजी से बढ़ने वाली एक बड़ी छतरी है और प्रति वर्ष प्रति हेक्टेयर हवा से लगभग 17 टन CO2का सीक्वेंसर करती है.

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बढ़ते है रोजगार के अवसर
बाँस, सबसे तेजी से बढ़ने वाला और सबसे अधिक उपज देने वाला संसाधन एशिया, अफ्रीका और दक्षिण अमेरिका में बड़े पैमाने पर पाया जाता है. पिछले 3 दशकों में, नियोजित बांस की खेती के आर्थिक और सामाजिक लाभों का ग्रामीण आजीविका पर सकारात्मक प्रभाव पड़ा है. उन क्षेत्रों में रोजगार के अवसर पैदा हुए है, जहां इसे उगाया जाता है.ये उन समुदायों के लिए विकास का सबसे अच्छा जरिया बना है,जहाँ सहायक उद्योगों के साथ बांस मूल्य श्रृंखला को व्यावसायिक रूप से व्यवहार्य बनाया गया है.

आसान है उगाना
सॉफ्टवुड या दृढ़ लकड़ी में लगने वाले 30-40 वर्षों की तुलना में, बांस की रोपाई करने के बाद 4 से 5 वर्षों के भीतर कटाई करने योग्य हो जाता है. बांस की विभिन्न प्रजातियों में 2 से 4 महीनों के भीतर अपनी पूरी ऊंचाई प्राप्त कर लेता है और उष्णकटिबंधीय से समशीतोष्ण जलवायु में समुद्र तल से 1500 मीटर की ऊंचाई पर ये सबसे अधिक बढ़ता है.

उपयोगी निर्माण सामग्री के लिए
बांस का उपयोग सदियों से निर्माण सामग्री के रूप में किया जाता रहा है, हाल ही में औद्योगिक रूप से प्रोसेस्ड बांस का उपयोग विभिन्न उत्पादों जैसे चॉपस्टिक, हस्तशिल्प, संगीत वाद्ययंत्र, लुगदी और कागज, खिलौने, खाद्य कंटेनर, कटार, बोर्ड, बीम, पुल, फर्नीचर, फर्श, पैनलिंग, नावें, चारकोल और जैव-ईंधन के लिए किया गया है. उद्योगों मेंप्रोसेसिंग और संरक्षण में तेजी से उन्नत तरीके अपनाए जा रहे हैं, जो मैन्युफैक्चरिंग के लिए कच्चे माल के रूप में बांस पर निर्भर है और कमर्शियल बांस की खेती के विकास में बहुत योगदान दिया है. आगे भी इसकी खेती अधिक होने की जरुरत है,जिससे पर्यावरण को बचाने के अलावा गरीब महिलाओं को रोजगार के साधन मिले और उनकी गरीबी को कुछ हद तक कम किया जा सकें.

नीलम छिब्बर (को फाउंडर इंडस्ट्री फाउंडेशन)

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