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खामोशी – भाग 3 : बहन और जीजा ने अपने ही घरवालों के साथ धोखा क्यों किया था

वे इतने पीड़ित हुए थे कि घर छोड़ कर ही चले गए. जब गुस्सा ठंडा हुआ

तो घबराई. मांबेटी को ले कर जाने क्या हो जाता है

कि कुछ भी बरदाशत नहीं कर पाती हूं. सारा दारोमदार

इन्हीं पर है. पूरा घर इन से चलता है. मैं ने ऐसा क्यों

किया? अब कहां ढूंढूं? सभी रिश्तेदारों और जानकारों से बात की. वे वहां भी नहीं गए थे. फैक्टरी में साथ काम करने वाले इन के दोस्त से बात की. वे भविष्य भी बताते थे. अपनी विद्या से उन्होंने बताया कि वे उत्तर दिशा में गए हैं और कल तक लौट आएंगे. फिर भी थाने में रिपोर्ट कर दें. सारी रात मैं और बच्चे परेशान रहे.

अगले दिन सुबह 6 बजे थाने में रिपोर्ट की. फोटो साथ ले गई थी. पता था, मांगेंगे. थानेदार ने एक बार मुझे गुस्से से घूरा, पर मुझे परेशान देख कर कहा कुछ नहीं. अगर कल शाम तक लौट कर नहीं आते हैं, तो हम खोजबीन शुरू करेंगे. वे खुद आ जाएं तो हमें फोन कर के बता जरूर दें.

दूसरे दिन घर में चूल्हा नहीं जला था. छोटी बहन हमारे लिए खाना ले कर आई थी. मैं दिनभर अपने को कोसती रही कि ऐसा भी क्या गुस्सा था. वे अपनी

मांबहन के साथ चाय पी कर ही तो आए थे. चाहते तो सब छिपा सकते थे. उन्होंने ईमानदारी से सारी बात बताई थी. मैं ने उस का यह सिला दिया. मन में कई तरह के बुरेबुरे खयाल आते रहे. उन को कुछ हो न गया हो.

छोटी बहन समझाती कि जीजू आ जाएंगे. वे बहुत समझदार हैं. उन को अपनी जिम्मेदारियों का एहसास है. पता है, बच्चे अभी छोटे हैं. दीदी, आप भी अपने गुस्से पर काबू रखें. जब उन्होंने कह दिया था कि वे यहां कभी नहीं आएंगे तो आप को भरोसा करना चाहिए था. अब अगर वे आ भी जाते हैं तो कोई फालतू बात नहीं करनी है. वे भी अपना गुस्सा ठंडा करने ही गए होंगे.

शाम हो गई थी. अंधेरा घिर आया था. मन बैठने लगा था. उन का कोई अतापता नहीं था. इतने में बेल बजी. छोटी बहन बोली, ‘यह आए होंगे. मैं चलती हूं.’

दरवाजा खोला, सामने जीजू खड़े थे, ‘हाय, जीजू.’

वह खुशी के मारे उछल पड़ी और रोने लगी थी. वह

ऐसा कभी नहीं करती थी. रोना तो दूर की बात है. वे

चुपचाप अपने कमरे में चले गए थे. थोड़ी देर बाद मैं

पानी ले कर गई थी. साथ में छोटी बहन भी थी. उन्होंने गिलास लिया और एक ही घूंट में सारा पानी पी गए. छोटी बहन ने पूछा था, ‘जीजू, और पानी लाऊं ’ उन्होंने मुझ से पूछा, ‘कैसी हो शन्नो? देखा, अपने गुस्से का कमाल.’

मैं चुप रही थी. केवल दहाड़ मार कर रोने लगी थी. उन्होंने मुझे चुप नहीं कराया था. वे भी चाहते थे कि मेरे मन का गुबार निकल जाए. कुछ देर बाद मैं ने चाय बनाई, तब तक छोटी बहन के हसबैंड भी आ गए थे. उन्होंने पूछा था, ‘आखिर आप गए कहां थे?’

वे मुसकराए और कहा था, ‘‘वैसे तो मैं जा नहीं पाता. हरिद्वार में गंगा स्नान कर के आया हूं. मुझे अपनी जिम्मेदारियों का एहसास था, इसलिए लौट आया हूं. शन्नो का बेवजह गुस्सा भी ठंडा हो गया होगा और मेरा भी.’’मैं कुछ नहीं बोली थी. केवल दूसरे कमरे में ज कर रोती रही थी. जानती थी, वे मुझे कभी मनाने नहीं आएंगे. गलती किसी की भी हो, मनाना उन के स्वभाव में नहीं था. रो कर अपने को हलका कर लेने की आदत पड़ गई थी. हलका महसूस किया तो बाहर आ कर रात के खाने के लिए लग गई थी. खाना खा कर दोनों एकदूसरे के विपरीत सो गए थे.

दूसरी बार जब घर छोड़ कर गए तो उस के मूल में भी मेरा और मेरी बहनों का शक ही था. मेरी सब से छोटी बहन, जब हमारी शादी हुई थी, तब वह 5 साल की थी. ये उस को बहुत स्नेह करते थे. सुंदर थी और पढ़ाई में बहुत तेज थी. आज वह बच्चों वाली है. 3 साल पहले इन्होंने उन के मैसैंजर पर लिखा था, ‘हाय, कैसी हैं आप?’

‘ जीजू, मैं जिम में हूं.’‘ओके… बाय.’बस इतनी सी बात को ले कर घर में वो बवाल मचाया

था कि इन को फिर घर छोड़ कर जाना पड़ा था. उन्होंने समझाने की बहुत कोशिश की थी, ‘जरा सोचो, शन्नो तुम कैसी बात कर रही हो? वह मेरे बच्चों की तरह है. यह भी 3 साल पहले की बात है. तुम्हें याद होगा, मैं नयानया जूनियर अफसर बना था. मुझे काठगोदाम की डिटैचमैंट का चार्ज लेना था. उसी समय तुम्हारी इसी बहन का पत्र आया था. उस समय वह कालेज में पढ़ती थी. कालेज का एक प्रोफैसर उस को तंग कर रहा था. मैं ने अपने कमांडिंग अफसर को बताया था. उन्होंने

कहा, ‘ठीक है, 5 दिन की छुट्टी जा कर पहले प्रोब्लम सौल्व करो, फिर वहीं से काठगोदाम चले जाना. उस के और भी जीजे थे, उन को क्यों नहीं लिखा? तब पहले मैं जोशीमठ से अमृतसर गया था. उस के कालेज जा कर सारी समस्या हल कर के आया था. उस प्रोफैसर को वार्निंग दे कर आया था कि दोबारा ऐसा हुआ तो मैं तुम्हारा कैरियर खराब कर दूंगा. मैं वरदी में था और सच में वह प्रोफैसर डर गया था. प्रिंसिपल भी कालेज की रैपुटेशन खराब होने के डर से उस प्रोफैसर को वार्निंग दे चुकी थी. तुम्हें यह भी याद होगा, एक बार यही बहन अंबाला आई थी. मैं बेटी बना कर उसे स्किन स्पेस्लिस्ट को दिखाने गया था. तुम उस को ले कर

मन मैला कर रही हो. तुम्हारा मन दोषी है. सच में यह घर रहने के काबिल नहीं है.’इस बार पता था कि वे कहां गए थे. अपने बड़े भाई के पास.‘आज मैं वहां जा रहा हूं, जहां मैं कभी नहीं जाना चाहता था. काश, तुम इसे समझ पाती. जीवन

के अंतिम पड़ाव में हैं. न कभी तुम मुझे समझ पाई हो और न कभी मैं. शक और वहम का कोई इलाज नहीं होता है. तुम्हारे हर समय झगड़ने और लताड़ने पर मैं जब अपनेआप में खोने लगता था अर्थात अपने लिखने में खोने लगता तो तुम्हें मेरा लिखना भी पसंद नहीं था.

सच पूछो तो मेरा तुम्हें कुछ भी अच्छा नहीं लगता था. बच्चे अब बड़े हो गए हैं. मेरे जाने से भी तुम्हें फर्क नहीं पड़ेगा. वे तुम्हें संभाल लेंगे.’वे पहले भी गए थे, वापस आ गए थे. अब भी आ जाएंगे. महीना बीत गया, पर वे नहीं आए. बच्चे भी कहने लगे थे, ‘आप की रोजरोज के झगड़ने की आदत ने पापा को परेशान कर के रखा हुआ था. चले गए, अब खुश हो न. इतना सब होने पर भी वे आप के कई काम संवारते थे. आप तो चलफिर सकती नहीं हैं. बस कदर नहीं है.

‘बहुएं भी कैड़ी आंख से देखने लगी थीं. उन को भी लगता था कि मैं ही झगड़ा करती हूं. पापा तो खामोश रहते हैं. अब कोई झगड़ा नहीं करूंगी. बस इन को जा कर ले आओ,’ ऐसा मैं ने अपने बड़े बेटे से कहा था. वह मना कर ले आया था. फिर हमेशा की तरह खामोश रहने लगे थे. लिखना भी छोड़ दिया था.

वे कहते थे, ‘लिखना मेरी मानसिक भूख मिटाता है. पर मैं यह भी समझ नहीं पाई थी. एक दिन दिल का दौरा पड़ा. अस्पताल पहुंचाया, पर वे बच नहीं पाए. आंखों के कोर फिर गीले हो गए थे.छोटी बहू ने कहा, ‘ मम्मी, सो जाओ. रात बहुत हो गई है. सुबह जिला सैनिक बोर्ड के औफिस और पेंशन औफिस जाना है.’

बहुत कोशिश की, पर नींद नहीं आई थी. रात आंखों में ही कट गई. सुबह 7 बजे बहू ने गरम पानी दिया, फिर चाय दी. 9 बजे मैं तैयार हो गई थी. 10 बजे जिला

सैनिक बोर्ड के अफसर के सामने और फिर पेंशन अफसर के सामने एक बार पेश होना था. बेटे ने वीडियो फोन के जरीए मेरे जिंदा होने की बात कही थी, पर वे नहीं माने थे. उन्होंने बड़ी विनम्रता से कहा था, सिर्फ एक बार तकलीफ करने की जरूरत है. केवल बैंक मैनेजर ने वीडियो काल से पेंशन खाता खोलने की बात मान ली थी. जिला सैनिक बोर्ड के अनुसार, उन का ओरिजनल डैथ सर्टिफिकेट, उन की 25 फोटोकापी, फौज की डिस्चार्जबुक, पेंशनबुक और बैंक खाते की डिटेल साथ में ले ली थी. जैसेतैसे कार में बैठी, व्हीलचेयर साथ में ले कर जिला सैनिक बार्ड औफिस पहुंची.

औफिस में अधिकारी ने बड़े प्यार से बिठाया. अफसोस भी जताया, ‘मृत्यु जीवन का एक ऐसा सत्य है, जिसे नकारा नहीं जा सकता.मैं ने सबकुछ अटैस्ट कर दिया है. फैमिली पेंशन फिक्स होती रहेगी. प्रोविजनल पेंशन अगले महीने से शुरू हो जाएगी. आप लालकिले पेंशन औफिस ले जाएं. मेरी उन से बात हो गई है. वहां भी जल्दी काम हो जाएगा.’उसी समय सैनिक बोर्ड का एक कर्मचारी 2,500 रुपए का कैश वाउचर लाया. मेरे साइन करवा कर रुपए मुझे दे दिए.

मैं ने प्रश्न किया कि ये कैसे रुपए हैं?सामने बैठे अफसर ने फिर अफसोस प्रकट किया और कहा, ‘ सरकार का आदेश है, हर मरने वाले सैनिक को दाह संस्कार के लिए यह रुपए दिए जाते हैं. ‘मानता हूं, यह रकम बहुत कम है, पर इतनी ही राशि देने का आदेश है.’

मेरी आंखों से फिर आंसू बहने लगे थे. मैं सैनिक बोर्ड के औफिस से बाहर आ कर कार में बैठ गई. उन की बहुत सी बातें याद आने लगी थीं. उन्होंने जीवन में दिया ही दिया है. उन को मिला कुछ नहीं. मैं ने भी प्रताड़ना दी. मरने के बाद भी रुपए देने का सिलसिला जारी है. अंतिम सांस तक पेंशन के रूप में यह जारी रहेगा.

वे कहा करते थे, ‘शन्नो, आदमी की कदर करना सीखो. जीवन में पैसा बहुत बड़ी चीज है. मैं एक ऐसी दुधारु गाय हूं, जो 12 महीने दूध देती है. मैं मर भी जाऊंगा तो भी यह दूध की धारा बहती रहेगी. तुम्हें पैसे के लिए बच्चों के आगे हाथ नहीं फैलाना पड़ेगा. तुम्हारे हाथ हमेशा देने के लिए उठेंगे. यही पैसा तुम्हें इज्जत दिलाता रहेगा.

तुम्हारी अंतिम सांस तक संभाल होती रहेगी. ’ कितनी सच बात कही थी. पर मैं ही समझ नहीं पाई थी.

पेंशन औफिस में भी ज्यादा देर नहीं लगी थी. सारी औपचारिकताएं पूरी करने के बाद अफसर ने कहा था, ‘अगले महीने से आप की प्रोविजनल पेंशन आप के खाते में आनी शुरू हो जाएगी. फैमिली पैंशन फिक्स होने में 2 महीने लग जाएंगे. आर्थिक तंगी न आए, इसलिए पेंशनर को अनुमानित पेंशन मिलती रहती है. आप उन का मेडिकल कार्ड डैथ

सर्टिफिकेट के साथ जमा करवा दें. कैंटीन कार्ड भी नया बनेगा. इस के लिए सारी फौर्मेलिटी जिला सैनिक बोर्ड के औफिस में की जाएगी. हर साल इसी महीने में आप को लाइव सर्टिफिकेट देना है. यह औनलाइन भी हो जाएगा. पेंशन औफिस से निकलने के बाद खामोशी ने फिर मुझे घेर लिया था. मेरा मन फबकफबक कर रोने को करता था. पर मैं रो भी नहीं पाई थी.

घर आ कर मैं फिर बालकोनी में आ कर बैठ गई थी. ठंडी हवा चल रही थी, पर मैं ने शाल नहीं ओढ़ी थी. खामोशी की तपस मेरे साथ है. यह खामोशी हमेशा मेरे साथ रहेगी.

 

खामोशी – भाग 2 : बहन और जीजा ने अपने ही घरवालों के साथ धोखा क्यों किया था

नहीं तो कईकई सालों तक लोग लगे रहते हैं, बच्चे नहीं होते हैं. कहीं जमीन उपजाऊ नहीं होती है, तो कहीं बीज श्रेष्ठ नहीं होता. तुम्हें अपनों में ऐसे कई उदाहरण मिल जाएंगे.’

मेरे पास उन की इन बातों का कोई जवाब नहीं होता था. सच में, मैं उन के पास कभी नहीं गई थी. क्यों? इस बात का उत्तर खोजती रही हूं. बचपन से शरीर को ढकढक कर रखती थी. शायद, हर लड़की ऐसा ही करती है. जानती थी, एक दिन शादी होगी और इस सुंदर काया

को अपने पति को समर्पित करना पड़ेगा. फिर भी मैं मन के भीतर के इस संस्कार से उभर नहीं पाई थी कि पति भी पराया मर्द होता है. मैं ने कभी इन का साथ नहीं दिया. कोई मर्द मुरदा औरत को क्यों प्यार करेगा. यह कैसा बेतुका संस्कार है? शादी के बाद पतिपत्नी एक होते ही हैं? इस का उत्तर मिल जाने के बाद भी उन के पास कभी नहीं गई थी.

‘मैं मानती हूं, वे मुझ से हमेशा अतृप्त रहे. मैं भी कभी तृप्त नहीं हुई. उन के जाने के बाद अब ऐसा महसूस करने का कोई फायदा नहीं है. वे मुझ से सदा दुखी रहे. जब भी मौका मिला, पुरानी बातों को ले कर मैं ने उन को लताड़ा था. कईकई दिन, कईकई महीने हम दोनों के बीच अनबन रहती थी. फिर कभी रात को मेरे पास आ जाते, तो जिंदगी नार्मल हो जाती थी. मेरी ओर सेकोशिश न होना क्या सही था? बस इसी प्रश्न का उत्तर नहीं मिलता था. सब याद कर के आंखों के कोर फिर गीले हो गए थे.

सर्दी बढ़ गई थी. छोटी बहू ने आवाज दी. मैं चुपचाप अंदर चली आई थी. मन की अंतरवेदना से मुक्त नहीं हुई थी. चाहे लाभ नहीं था. यादों में फिर घिर गई थी. घर में सबकुछ मेरे मुताबक होता था. मेरे घर में जो भी आया, उसे लेदे कर भेजा था. फिर भी सारी जिंदगी मुझे अफसोस रहा था. इन से और अपनेआप से भी. आखिरी दम तक यह अफसोस रहा.

वे कहते थे, ‘मुझे समझ नहीं आती कि तुम्हें अफसोस किस बात का है. बच्चे हैं, बच्चों ने भी अपनेअपने घर बना लिए हैं. औफिस हैं. पोतेपोतियां हैं. भरापूरा परिवार है. हम

बच्चों पर बोझ नहीं हैं. हमारी अच्छीखासी पेंशन है. फ्री दवाएं और कैंटीन की सुविधा अलग से है. फिर भी तुम खुश नहीं हो, क्यों?’मैं कैसे कहती कि बुढ़ापे में भी पतिपत्नी एंजौए करते हैं. मेरी सहेली बता रही थी. चाहे कुछ नहीं होता है, फिर भी खूब अच्छा लगता है. हम एकदूसरे के बिना सो ही नहीं पाते हैं. यहां तो बिलकुल ही उलट है. रात को गलती से भी अगर उन का हाथ मुझे लग जाता था तो मैं इस तरह झटक देती थी, जैसे उन्होंने गोली मार दी हो. वे कभी आए भी तो मैं फिर मुरदा हो जाती थी.

समुंद्र के पास रह कर भी मिलन नहीं हो पाया था. मैं नितांत प्यासी रह गई थी. उन्होंने मुझे कई रोमांटिक फिल्में भी दिखाने की कोशिश की थी. कैसे पतिपत्नी संबंधों को मजबूत करते हैं? छी:, गंदे, कह कर नकार दिया था. जिस से सारा संसार चलता है, वह गंदा कैसे हो गया? सारे चराचर का आधार ही सैक्स है.’ इन्होंने समझाने की

कोशिश की थी, ‘मेलफीमेल इसीलिए बनाए गए हैं. मैं पैदा हुआ इसी मिलन से. तुम भी इसी मिलन से पैदा हुई हो. जिस मिलन में स्वर्ग का मजा हो, वह गंदा कैसे हो गया?’ मैं थोड़ी देर के लिए उन के तर्क को मान लेती थी और वादा करती थी कि आगे से ऐसा नहीं होगा. रात को फिर वही ढाक के तीन पात. मैं उन को सहयोग नहीं दे पाती थी. वे ‘मर’ कह कर दूसरी ओर मुंह फेर लेते थे.

वे कहानी लेखक थे. अपने लेखन में डूब जाते. मुझे उन के लिखने से भी विरोध था. मैं समझती थी कि वे अपनों के बारे में लिखते हैं. उन्होंने समझाने की बहुत कोशिश की थी कि उन के सामने पूरा समाज होता है, ‘मेरी शैली अथवा लिखने के ढंग पर उन को एतराज है. उन को लगता है कि यह उन के बारे में लिखा गया है. वे मानते थे कि लिखतेलिखते जीवन की कोई घटना कहानी में फिट बैठती है, तो उसे जरूर फ्रेम करते हैं. इस में मैं कुछ नहीं कर सकता हूं.

‘दूसरा, मेरा विरोध था कि उन्होंने दूसरी औरतों से संपर्क साध लिया है. वे फिर नकारते रहे थे. उन के पाठकों में लड़कियां भी हैं, औरतें भी हैं, बूढ़े हैं, जवान भी हैं, सब हैं. मेरा उन से कोई व्यक्तिगत संबंध नहीं है. कोई मुझे कहानी के बारे में लिखता है तो मैं उसे जवाब देता हूं. सारा दिन मैं घर में रहता हूं , तुम्हारी आंखों के सामने. फिर भी शक करती हो. यह तुम्हारा वहम है. मेरे पास इस का कोई इलाज नहीं है.’

घर में हर रोज किसी न किसी बात को ले कर झगड़े होते. मन के भीतर बहुत विरोध थे. कोई न कोई ऐसी बात हो जाती कि बात तूल पकड़ लेती. एक बार मां घर में आईं और ये उन को बेटी के पास नोएडा छोड़ने गए थे. वहां बैठ कर इन्होंने चाय पी ली थी. मैं ने समझा, अब इन का आनाजाना फिर से शुरू हो जाएगा. यही दोनों थीं, जिन के कारण मैं दो साल पीड़ित रही. यह भी उन दोनों को पसंद नहीं करते थे. मैं ने इतना झगड़ा किया था कि इन को घर छोड़ कर जाना पड़ा था. यह मुझे समझाते रहे थे, ‘शन्नो, चाय तो दुश्मन के साथ भी पी लेते हैं. कुछ रिश्ते ऐसे होते हैं, चाह कर भी उन को नकारा नहीं जा सकता है. वह मां हैं. मुझे जन्म दिया है, पाला है, बड़ा किया है. दूसरी तरफ बहन थी. खून के रिश्ते तो हैं ही न. वे बहुत अच्छी तरह जानती हैं कि उन्होंने हमारे साथ क्या किया है. मां भी कल वहीं से आगे अपने बड़े बेटे के पास चली जाएंगी. वे यहां आने की कभी हिम्मत नहीं करेंगी.’ पर, फिर भी मन की शंका दूर नहीं हुई थी. झगड़ा चलना था, चलता ही रहा था.

खामोशी – भाग 1: बहन और जीजा ने अपने ही घरवालों के साथ धोखा क्यों किया था

धीरेधीरे चल कर मैं बाहर की बालकनी में आ कर बैठ जाती हूं. नवंबर का महीना है. ठंडी हवा चल रही है. बाहर खामोशी है. शायद तूफान आने वाला है. मैं शाल को ठीक से लपेट कर कुरसी पर बैठ जाती हूं. अंधेरा घिर आया है. बालकनी की लाइट जलाने का मन नहीं हुआ. भीतर के तूफान को कैसे रोकूं ? बस यही समझ नहीं आ रहा था.

जीवन की आपाधापी में पता ही नहीं चला कि कब 45 साल बीत गए. उन का साथ छूट गया. कल ही उठाले के बाद सब चले गए थे. खामोशी काटने को दौड़ रही थी. भीतर के दुख से आंखों के कोर गीले हो गए थे.

मुझे आज भी याद है, जब मैं ब्याह कर आई थी. एक कमरे का घर, शौच भी बाहर जाना पड़ता था. परदा लगा कर नहाने की व्यवस्था थी, बाकी खाली मैदान था. पूरे प्लाट को घेरा भी नहीं गया था. वह भी बाद में पता चला उन की बहन और जीजे ने धोखे से अपने नाम करवा लिया था. कभी रही होगी कोई कड़वाहट, पर अब इन की कोई औकात नहीं थी. मुझे भी पति के प्यार के अलावा कुछ नहीं मिला था. कभी मिलता, कई बार सालोंसाल नहीं भी मिलता. परिवार ऐसा मिला, जिन्होंने इन को धोखे के अतिरिक्त और कुछ नहीं दिया था. ये बाहर सेना में रहे, इन को परिवार की धोखेबाजियों के बारे में पता नहीं था. यह कहते

तो मैं इन पर यकीन नहीं कर पाती थी. कैसे कोई अपनी मां, बहनभाइयों के बारे में नहीं जानता था. इस के लिए हमेशा मैं ने इन्हें लताड़ा. वे सफाई देते रहे थे, पर मैं ने इसे कभी नहीं माना था. आज लगता है कि शायद वे ठीक कहते थे.

मेरे दहेज की बहुत सी चीजें चोरी हो गई थीं. मैं ने इस के बारे में उन्हें बताया, तो हैरान रह गए थे. उन को भी यकीन नहीं हुआ था कि घर में ऐसा हुआ है. फिर यकीन करना पड़ा था. कुछ सामान गांव में मिला था. कुछ बहन की बेटी के पास.

उन्होंने बड़े दुखी मन से कहा था, ‘मैं ने यह कह कर बड़ी भारी गलती की थी कि मांबहन के बारे में मुझे कुछ नहीं कहना है. इन्हीं लोगों ने मुझे आप के पहले करवाचौथ पर आने नहीं दिया था, जिस का गम और मलाल तुम्हें आज तक है, शायद मुझे भी है. बददुआएं तुम उन के साथसाथ मुझे भी दो. सारे फसाद की जड़ तो मैं था. मैं ही अपनों को समझ नहीं पाया था.

‘मानता हूं, मेरा इतना दिमाग नहीं था. मैं ही बेवकूफ था, पर तुम तो समझदार थीं. तुम तो अपनी चीजें संभाल कर रख सकती थीं.’ ‘‘मुझे क्या पता था कि घर में ही चोर बैठे हैं. मैं ने तो सब को अपना समझा था. मुझे थोड़ा सा भी पता होता तो मैं ताले लगा कर रखती.’’

‘कोई बात नहीं. जो हो गया उस का कुछ नहीं हो सकता है. मैं ने क्वार्टर के लिए अप्लाई किया है. बहुत

जल्दी मिल जाएगा. तब तक ताले लगा देते हैं.’ ताले लगाने का भी विरोध हुआ था. पर यह नहीं माने थे. क्वार्टर मिला तो फिर हम ने मुड़ कर नहीं देखा था. वह शहर तक छोड़ दिया था. सेना से पेंशन आ कर दूसरे प्रदेश में बस गए थे. ब्याह होने पर कितने चाव होते हैं. हम ये करेंगे, वह करेंगे. पर मेरा कोई चाव पूरा नहीं हुआ था. न किसी ने दुलार किया था और न प्यार. मैं तरसती रह गई

थी. मैं ने इन से बात की थी, तो इन्होंने कहा, ‘मैं तुम्हें उस नरक से निकाल लाया हूं. सैटल होने में थोड़ा टाइम तो लगेगा ही.’ ‘मैं आप के प्यार की बात कर रही हूं. आप भी मुझे प्यार नहीं करते हैं?’ वे थोड़ी देर चुप रहे थे, फिर कहा था, ‘झल्ली हुई है, किस ने कहा कि मैं तुम्हें प्यार नहीं करता हूं? मैं तुम्हारे अलावा किसी से प्यार नहीं करता. पत्नी की

अपने पति से अपेक्षाएं होती हैं. उसी तरह पति की भी अपनी पत्नी से अपेक्षाएं होती हैं. तुम बिस्तर पर कभी सक्रिय नहीं रहीं. ‘याद है, मैं ने एक बार कहा था. लगता है, मैं तुम से बलात्कार कर रहा हूं. जरा गहराई से सोचो, तुम अपने जीवन में कभी मेरे पास नहीं आई. लगता था, जैसे एक मुरदे के साथ मिलन कर रहा हूं. बस किया और दूसरी तरफ मूंह फेर लिया. मुझे कभी पता ही नहीं चला कि तुम संतुष्ट हो अथवा नहीं.

‘पुराने जमाने में एक रिवाज था, पति बाहर से थक कर आता था, पत्नी उस की टांगें दबाया करती थी. यह कोई गुलामी नहीं थी, बल्कि इसी बहाने सारे दिन की बातें भी हो जाती थीं और पति का प्यार भी मिल जाता था.’तुम ने अपने जीवनकाल में केवल एक बार टांगें दबाई थीं. वे इतनी पुष्ट और सख्त थीं कि तुम से दबाई नहीं गई थीं.

‘मैं ने उस समय मना कर दिया था. फिर कभी नहीं आईं? मैं इस एहसास से कभी मुक्त नहीं हुआ कि तुम निर्जीव हो, बिलकुल जैसे जान नहीं है. मैं नामर्द नहीं था. अगर होता तो बच्चे न होते. ऐसी पत्नी को क्यों और कैसे प्यार किया जाए या किया जा सकता है. बस घर का काम किया और दूसरी तरफ मुंह फेर कर सो गई.

जरा सोचो. कईकई दिन, कईकई महीने तुम्हारे पास आने को मन नहीं करता था. तुम मेरा इंतजार करती थीं और मैं तुम्हारा. तृप्ति की जरूरत दोनों को होती है. तुम्हारी ओर से इस के लिए कोई कोशिश नहीं थी. वासना तंग करती तो मैं तुम्हारे पास आता.’

मैं ने कहा था, ‘जमीन अच्छी थी, इसलिए बच्चे हुए.’ वे गहरी आंखों से मुझे देखते रहे थे, ‘जमीन और बीज दोनों अच्छे हों तो फसल अच्छी होती है,

बेटे की चाह : भाग 3

श्यामा के इस तरह गायब होने की बात फौजी शमशेर सिंह के कानों तक पहुंची. वह सीधा मंगलू के घर जा पहुंचा. फौजी शमशेर सिंह ने उस से कुछ बातें पूछीं, जिन का जवाब मंगलू बड़े ही अनमने ढंग से दे रहा था. फौजी हर तरह की मदद का भरोसा दे कर वहां से चला गया.

समय बीत रहा था. एक दिन जब रमिया की मां घर की साफसफाई कर रही थी, तो उसे एक बिस्तर के नीचे वही घंटियां मिलीं, जो उस ने अपनी बेटी श्यामा की कमर में बांधी थीं. वह परेशान हो उठी. पर उस ने यह बात किसी को नहीं बताई, मंगलू को भी नहीं.

2-2 बेटियां गायब हो चुकी थीं, पर ऐसा लगता कि उन के गायब होने का दुख मंगलू को नहीं था, खाना खाता और खर्राटे मार कर सोता.

मंगलू की पत्नी को यह बात खटकती थी कि ऐसा भी क्या हो गया कि यह आदमी 2 जवान बेटियों के गायब हो जाने पर भी पुलिस में रिपोर्ट न करे और न ही उन्हें ढूंढ़ने की कोई कोशिश करे.

एक दिन की बात है. मंगलू ने अपनी पत्नी से कहा, ‘‘आज मेरा खाना मुन्नी से खेत पर ही भिजवा देना. काम बहुत है. मैं सीधा शाम को ही घर आ पाऊंगा.’’

दोपहर हुई तो मंगलू की पत्नी ने खाना बांध कर मुन्नी को खेत की तरफ भेज दिया, पर आज मां ने मुन्नी को अपनी आंखों से ओझल नहीं होने दिया और हाथ में एक हंसिया ले कर वह मुन्नी का पीछा करने लगी.

मुन्नी सीधा खेत जा पहुंची. मंगलू ने उस से खाना ले कर खाया और पानी पिया, उस के बाद मुन्नी की पीठ पर हाथ फेरते हुए उसे अपने साथ ले कर चल दिया.

‘यह मुन्नी को कहां ले कर जा रहा है? यह तो हमारे घर का रास्ता नहीं है, बल्कि यह तो गांव के बाहर जाने का रास्ता है,’ सोचते हुए रमिया की मां भी दबे पैर मंगलू के पीछेपीछे चलने लगी.

मंगलू चलते हुए अचानक रुक गया और एक छोटी सी झोंपड़ी में मुन्नी को ले कर घुस गया.

रमिया की मां भाग कर उस झोंपड़ी के पास पहुंची और दरवाजे की झिर्री में अपनी आंख गड़ा दी.

अंदर का मंजर देख कर उस का कलेजा मुंह को आ गया. झोंपड़ी के अंदर एक दाढ़ी वाला बाबा बैठा हुआ था, जो शायद तांत्रिक था. उस के एक तरफ किसी देवी की मूर्ति बनी हुई थी, जिस के आसपास खून बिखरा हुआ था. ऐसा लग रहा था कि किसी जानवर की बलि दी गई है.

इतने में उस तांत्रिक की आवाज गूंजी, ‘‘हां तो मंगलू, यह तुम्हारी बेटी है.’’

‘‘हां, महाराज.’’

‘‘घबराओ नहीं, अब वह दिन दूर नहीं, जब तुम्हारी सारी मनोकामनाएं पूरी हो जाएंगी,’’ तांत्रिक ने यह कह कर मुन्नी के माथे पर एक तिलक लगा दिया.

रमिया की मां अनपढ़ जरूर थी, पर अंदर का सीन देख कर वह इतना जरूर समझ गई थी कि दाल में जरूर कुछ काला है और जल्दी ही कुछ न किया तो कुछ गलत भी हो सकता है. ऐसा सोच कर वह फिर से गांव की तरफ मदद लेने भागी.

सब से पहले फौजी शमशेर सिंह की कोठी पड़ती थी और फौजी अपनी कोठी के बाहर अपनी जीप की सफाई करवा रहा था.

रमिया की मां ने फौजी को देख मदद की गुहार लगाई और एक ही सांस में सारी कहानी कह सुनाई.

फौजी दिल का अच्छा था. वह तुरंत ही उस तांत्रिक की झोंपड़ी की तरफ भाग चला और तांत्रिक की झोंपड़ी का दरवाजा खोला तो वहां पर तांत्रिक ने मुन्नी के मुंह और आंखों पर पट्टी बांधी हुई थी. मंगलू भी वहां मौजूद था.

फौजी और अपनी पत्नी को देख मंगलू भी चौंक पड़ा.

‘‘क्या हो रहा है यहां पर और इस मुन्नी के मुंह और आंखों पर पट्टी क्यों बांध रखी है?’’ फौजी ने कड़क आवाज में पूछा.

तांत्रिक घबरा गया था और मंगलू भी. फौजी ने जब उन्हें घबराया देखा तो उसे समझते देर न लगी कि हो न हो, यह तांत्रिक सही आदमी नहीं है, इसलिए फौजी ने तांत्रिक को पुलिस के हवाले करने की बात कही तो तांत्रिक मौका देख कर भाग निकला, जिसे फौजी ने दौड़ कर पकड़ लिया.

सख्ती से पूछताछ करने पर तांत्रिक ने बताया कि मंगलू ही उस के पास आया था और उसे तंत्रमंत्र से एक लड़के का बाप बना देने की बात कही थी, जिस पर तांत्रिक ने मंगलू को बताया कि उस पर देवी का कोप चल रहा है, इसलिए अगर वह अपनी लड़कियों की बलि देवी को चढ़ा दे, तो देवी खुश हो कर उसे एक लड़के की प्राप्ति का आशीर्वाद देगी और इसीलिए मंगलू बारीबारी से अपनी दोनों लड़कियों को मेरे पास लाया था.

तड़ाक… फौजी का एक जोरदार तमाचा तांत्रिक के चेहरे पर पड़ा. वह धूल चाटने लगा और फौजी को गुस्से में देख घबरा उठा था.

‘‘क्या तुम ने दोनों लड़कियों को मार दिया…?’’ फौजी गुर्राया.

‘‘नहींनहीं, मैं ने उन्हें मारा नहीं, क्योंकि बलि देने के हिसाब से वे लड़कियां बढ़ी थीं, इसलिए मैं ने उन्हें शहर में बेच दिया,’’ तांत्रिक बोला.

‘‘क्या… तुम ने मुझे भी धोखा दिया. मुझ से कहते रहे कि मेरे बलि देने से देवी खुश हो रही है और अब तुम को लड़का होगा और तुम ने मेरी लड़कियों का सौदा किया,’’ इतना कह कर मंगलू तांत्रिक को मारने उठा और तांत्रिक की दाढ़ी पकड़ ली.

पर यह क्या… दाढ़ी तो मंगलू के हाथ में ही रह गई यानी वह तांत्रिक तो नकली ही था, जो तंत्रमंत्र और गांव वालों की धार्मिक कमजोरी का नाजायज फायदा उठा कर लड़कियों को देह धंधे में धकेलने के लिए शहर में बेच देता था.

फौजी ने अब तक पुलिस बुला ली थी और पुलिस ने उस नकली तांत्रिक को गिरफ्तार कर लिया.

कुछ ही देर में रसीली भी और गांव वालों को ले कर वहां आ गई थी.

रसीली ने मंगलू की तरफ नफरत से देखा और बोली, ‘‘मैं तो अकेली थी, इसलिए किसी दूसरे मर्द के शरीर का सहारा लिया, पर तुम्हारे पास तो सब था… एक बीवी, 3 बेटियां, पर फिर भी तुम रूढि़वादी लोगों के चक्कर में फंस कर एक बेटे की चाह में कितना गिर गए…’’

सिबली ने सारा माजरा समझते हुए कहा, ‘‘अरे फौजी साहब तो बहुत अच्छे आदमी निकले और हम सब तो उन को ही गलत समझ रहे थे.’’

उस की यह बात सुन कर फौजी  चौंक गया, पर बिना मुसकराए नहीं रह सका.

अब रमिया की मां सरोज की बारी थी. वह भी धीमी आवाज में बोली, ‘‘लड़के की चाह हम को भी थी, पर जब हमारी कोख से लड़कियों ने जन्म लिया, तब हम ने इन्हें ही अपना सबकुछ मान लिया, पर तुम ने तो हद ही कर दी. अरे, भला कोई अपनी लड़कियों को लड़के के लिए दांव पर लगाता है क्या?

‘‘अब तो समय बदल गया है रमिया के पापा, फिर भी तुम ने ऐसा किया. मेरी रमिया और श्यामा कहां और किस हाल में होंगी…’’

‘‘आप घबराइए नहीं, आप की बेटियां जहां भी होंगी, हम सब मिल कर उन्हें ढूंढ़ निकालेंगे,’’ फौजी शमशेर सिंह बोला.

सब की निगाहें मंगलू की तरफ थीं, जो एक बेटे की चाह में अपनी 2 बेटियों को गंवा बैठा था और अब अपने किए पर पछता रहा था, पर अब शायद बहुत देर हो चुकी थी.

संपादकीय

लोकतंत्र को जड़ से खत्म करना और धर्मतंत्र लागू कर देना भाजपा सरकार के लिए भी मुश्किल हो रहा है. काफी समय से हिंदू धर्म की पोल खोलने पर तुरंत हल्ला मचा देना और गिरफ्तारी हो जाना आम हो चला था पर खिलाफ खड़ी के खिलाफ जहर उगलने, भडक़ाने पर ही नहीं. भीड़ जमा करके मारपीट करने तक पर पुलिस मामले दर्ज नहीं करती थी, दिल्ली में 8 अगस्त को जंतरमंतर पर एक भडक़ाऊ नारे के सिलसिले में वायरल हुए वीडियो के आधार पर पुलिस को ङ्क्षहदू रक्षा दल भूङ्क्षपदर तोमर को जेल में ले जाना ही पड़ा क्योंकि उच्च न्यायालय न अग्रिम जमानत देने से इंकार कर दिया.

यह बात दूसरी कि उसे जेल में ले जाते समय शादी का सा माहौल समर्थकों ने पैदा कर दिया था और खूब नारेबाजी हुई पर भूङ्क्षपदर तोमर को कहना पड़ा कि कोई भडक़ाऊ नारे लगे ही नहीं थे अभी कुछ महिनों पहले एक छात्र होस्टल में घुसी कट्टरपंथियों की भीड़ का नागरिक संशोधन बिल का विरोध करने वालों की पिटाई पर कुछ नहीं किया गया था. इसी तरह दिल्ली के उत्तरीपूर्व इलाकों में हुए मुसलिम विरोधी दंगों में भाषण देने वाले कई आज भी आजाद हैं जबकि तब गिरफ्तार हुए मुसलिम युवा एकएक कर के जमानत पर बाहर आ रहे हैं.

यह साफ है कि देश की धर्मभीरू जनता पूजापाठी तो है पर उसे विभिन्न धर्म वालों के साथ रहने में कोई विशेष तकलीफ नहीं है. यह तो धर्मों के दुकानदार है जिन्हें अपना उल्लू सीधा करना होता है, बहुसंख्यक होते हुए भी ङ्क्षहदू धर्म के धंधेबाज यदि ङ्क्षहदूमुसलिम ङ्क्षहदूमुसलिम करते रहते हैं तो असल में उनका ङ्क्षहदू जाति के सवाल को किसी तरह दबा कर रखना होता है. वे हिंदू…..में खतरे में है का नारा लगालगा कर जाति व्यवस्था श्रेष्ठ है का एजेंडा चालू कर रखते हैं.

लोकतंत्र इस की इजाजत नहीं देता. 2014 में कांग्रेस के खिलाफ…… राय, कंपट्रोलर औफ अपडिट ने (ष्…ड्ड) ने साजिश के तौर पर कट्टरों के ईशारों पर भयंकर भ्रष्टाचार का हौवा खड़ा कर दिया जिस में पूरा देश बह गया. बाद में चाहे कलई खुल गई पर देश के सामाजिक फैब्रिक को नुकसान पहुचा दिया गया.

आज अगर अदालतें ङ्क्षहदू कट्टरपंथियों के खिलाफ खड़ी होने लगी हैं तो उम्मीद की जा सकती है इस पटते फैब्रिक की मरम्मत की जा सकती. भूपेंद्र तोमर को चाहे अंतत: सजा न हो पर यह बेमतलब की नारेबाजी पर लगाव जरूर लगाएगा.

 

Sasural Simar Ka 2 : रीमा को मिलेगी अपनी गलती की सजा, सिमर नहीं देगी माफी

ससुराल सिमर का 2 में अब कहानी में नया मोड़ आने वाला है, गणपति उत्सव खत्म होते ही सिमर और रीमा की जिंदगी में काफी ज्यादा बदलाव आने वाला है. जिसमें रीमा को अपनी गलती की सजा भूगतनी पड़ेगी, वहीं सिमर सच के साथ खड़ी नजर आएगी.

पिछले एपिसोड में आपने देखा होगा कि रीमा को अपनी गलती का पछतावा होगा, उसे इस बात का एहसास हो जाएगा कि वह विवान के साथ आज तक जो भी करती आई है वह गलत हो रहा है. विवान को धोखा देने के बाद उसे पछतावा हो रहा है.

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इतना ही नहीं रीमा ने तो सिमर से भी अपनी हर गलती के लिए माफी मांग ली है, रीमा ने यह भी कहा है कि वह अब हमेशा अपनी बहन के सपोर्ट में खड़ी रहेगी, वहीं दूसरी तरफ आरव और सिमर के बीच नजदीकियां बढ़ रही है. माता जी के लाख कोशिश के बाद भी सिमर और आरव एक-दूसरे से अलग नहीं हो पा रहे हैं.

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हाल ही में सिमर और आरव एक दूसरे के साथ रोमांस करते नजर आएंगे. जिसे लोग खूब ज्यादा पसंद करेंगे, इसी बीच अब सिमर एक नई चुनौती का सामना करने वाली है. रीमा इसी बीच किडनैप हो जाएगी, जिसे ढूंढने के लिए सिमर हर कोशिश करती नजर आएगी.

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रीमा की  जान को खतरा अपनी गलती की वजह से ही मिलने वाला है. जैसे ही सिमर को रीमा के किडनैपिंग के बारे में पता चलेगा , इसके होश उड़ जाएंगे.

KBC 13 : शो में पहुंचे Olympic winner नीरज चोपड़ा, अमिताभ बच्चन को सिखाई हरियाणवी

अमिताभ बच्च्न का पसंदीदा शो कौन बनेगा करोड़पति लोगों को इन दिनों खास मनोरंजन कर रहा है. हर शुक्रवार को  हॉटसीट पर नई- नई हस्तियां आकर बैठती हैं. जिसके साथ गेम खेलने का अलग मजा होता है. इस शुक्रवार को ओलंपिक गोल्ड मेडलिस्ट नीरज चोपड़ा आएंगे और उनके साथ में गोलकीपर पीआर श्रीजेश आएंगे.

इस शो को देखने के लिए लोग अभी से बेताब हैं, इस शो को प्रोमो अभी से वायरल होना शुरू हो गया है. जिसे देखकर फैंस इस शो को देखने के लिए काफी ज्यादा एक्साइटेड हैं. प्रोमो में दिख रहा है कि नीरज चोपड़ा 13 से 25 लाख तक के सवाल तक पहुंच चुके हैं.

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लेकिन अब ये देखना बहुत दिलचस्प होगा कि नीरज चोपड़ा इस सवाल का जवाब दे पाते हैं कि नहीं, इस शो को देखने के लिए फैंस काफी ज्यादा एक्साइटेड हैं. इस शो में अमिताभ बच्चन को नीरज चोपड़ा हरियाणवी बोलना सीखा रहे हैं.

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भारत लौटने पर नीरज चोपड़ा का काफी भव्य स्वागत किया गया, जिसके बाद से लोगों ने काफी ज्यादा नीरज चोपड़ा की तारीफ किया था.

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इस शो में नीरज चोपड़ा का प्रोमो वायरल हो रहा है, जिसमें वह हरियाणवी बोलना सिखाएंगी और अमिताभ बचच्न जिसे देखकर लोग खूब पसंद करेंगे. अमिताभ बचच्न के इस डॉयल्गस बोलेंगे उसमें वह फंसते नजर आ रहे हैं.

Top 10 Best Exercise Tips : एक्सरसाइज से जुड़ी 10 खबरें हिंदी में

Exercie Tips Story in Hindi : इस आर्टिकल में हम आपके लिए लेकर आएं हैं,  सरिता की 10 Exercise Tips in Hindi 2021 : इन दिनों लोग वजन बढ़ने को लेकर ज्यादा परेशान रहते हैं. हर दूसरा व्यक्ति अपना वेट लूज करना चाहता है. इसलिए हम आपको बताएंगे कैसे एक्सरसाइज करके आप अपना वजन कम कर सकते हैं. तो पढ़िए सरिता की Exercise Tips Story  in Hindi .

  1. 40+ महिलाओं के लिए बड़े काम के हैं ये हैल्थ टिप्स

 

40+ उम्र में शारीरिक बदलाव में प्रमुख है वजन का बढ़ना. महिलाओं के कूल्हों, जांघों के ऊपरी हिस्सों और पेट के आसपास चरबी जमा होने लगती है. वजन बढ़ने के कारण उच्च रक्तचाप व मधुमेह का खतरा भी बढ़ जाता है. इस के अलावा ऐस्ट्रोजन हारमोन का लैवल घटने से हड्डियां कमजोर होने लगती हैं, जिस से बचाव के लिए स्वस्थ आहार (कम कैलोरी का भोजन, प्रोटीन भोजन में शामिल करना, फल, सब्जियां, अंकुरित व साबूत अनाज) अपनाना चाहिए.

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2. 4 सप्ताह में आप भी करें 4 किलो वजन कम

 

अगर आप वजन कम करना चाहती हैं, तो सब से पहले अपने बीएमआर यानी बेसल मैटाबोलिक रेट को बढ़ाना जरूरी है. इसे बढ़ाने के लिए आप को अपनी दिनचर्या और खानपान में बदलाव लाने की जरूरत है.

4 बातों को कहें न

– ओवरईटिंग न करें.

– तरल पदार्थों का सेवन बिना सोचेसमझे न करें.

– कृत्रिम शुगर लेने से बचें.

– ब्रेकफास्ट मिस न करें.

4 बातों का ध्यान रखें

– रोज सुबह 1 गिलास कुनकुने पानी में नीबू का रस और शहद मिला कर पीएं.

– संतुलित आहार का सेवन करें.

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3. Monsoon में फिट रहने के लिए अपनाएं ये 25 टिप्स

इस मौसम में पैरों का खास ध्यान रखना पड़ता है, क्योंकि बारिश में बाहर का गंदा पानी पैरों की उंगलियों में इन्फैक्शन कर सकता है. पैर सूखे रहें, इस पर ध्यान दें. जरूरत पड़े तो बोरिक ऐसिड या पाउडर का छिड़काव पांवों में करें.

– अनावश्यक बारिश के पानी में भीगना मौसमी बीमारी की वजह बन सकता है. इस से बचें.

– मौसम भले ही खराब हो, पर उस समय अच्छा फील करने के लिए मनपसंद संगीत का आनंद लें, किताबें पढ़ें और खुश रहने की कोशिश करें. इस से मानसिक रूप से स्वस्थ रह सकती हैं.

आज से ही इन बातों पर अमल करें और फुहारों के मौसम में भी चुस्तदुरुस्त रहें.

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4. इन टिप्स को करेंगी फॉलो तो नहीं बढ़ेगा आपका वजन

कुल मिला कर डाइट संतुलित मात्रा में लेनी चाहिए और डाइट में प्रोटीन, विटामिन, कार्बोहाइड्रेट की प्रचुर मात्रा होनी चाहिए. एक आम इनसान को प्रतिदिन 2,500 कैलोरी की डाइट लेनी चाहिए. तभी हमारा शरीर स्वस्थ व छरहरा रह सकता है. आप अपने लिए डाइट प्लान इस तरह करें:

– दिन में 3 बार की जगह 5 बार मील्स लें. इस में साबूत अनाज (ब्राउन राइस, व्हीट ब्रैड, बाजरा, ज्वार आदि) अवश्य शामिल करें. नौनरिफाइंड व्हाइट प्रोडक्ट्स (व्हाइट ब्रैड, व्हाइट राइस, मैदा आदि) को डाइट से पूरी तरह हटा दें.

– डाइट में टोंड दूध से बना दही, पनीर व दाल, मछली आदि शामिल करें.

– कब्ज व पेट की मरोड़ से बचने के लिए खाने में फाइबर की मात्रा बढ़ाएं. इस के लिए सप्लिमैंट्स के बजाय प्राकृतिक फाइबर लें. फाइबर के प्रमुख स्रोत हैं, साबूत अनाज, होम मेड सूप, दलिया, फल आदि. इन से फाइबर के साथसाथ कई मिनरल्स व विटामिंस भी मिलेंगे.

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5. चलने की आदत बनाएगी आपको फिट

3 से 4 मंजिल वाले भवनों में आनेजाने के लिए सीढि़यों के बजाय लिफ्ट का उपयोग करना आम हो गया है. इन सुविधाओं ने हमारे दैनिक कार्यों को सुलभ तो बनाया है परंतु इस के साथसाथ हमारे स्वास्थ्य को बहुत प्रभावित किया है. अब तो शहरों में ही नहीं, गांवों में भी डायबिटीज यानी मधुमेह, मोटापा, पाचन संबंधी समस्याएं, कब्ज, अनिद्रा, थायराइड, हार्मोन का असंतुलन, तनाव, हाई ब्लडप्रैशर, हृदयरोग जैसी गंभीर स्वास्थ्य समस्याएं आम हो गई हैं. पहले ये सभी स्वास्थ्य समस्याएं बड़ी उम्र के लोगों में देखी जाती थीं परंतु आरामतलबी और कार्यसंबंधी तनाव के कारण आज की युवा पीढ़ी भी इन समस्याओं से जू झ रही है. वैसे तो स्वास्थ्य समस्याओं के पीछे और भी कई कारण होते हैं परंतु हमारा नहीं चलना भी एक प्रमुख कारण है. चलना एक प्राकृतिक स्वास्थ्य बीमा यदि हम अपने दैनिक कार्यों में चलने को शामिल करते हैं तो हमारा हृदय बेहतर तरीके से कार्य करता है.

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6. हमेशा फिट और एक्टिव रहने के लिए फॉलों करें ये आसान टिप्स

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7. डेली रूटीन में करें फेरबदल और दर्द को कहें गुडबाय

जर्नल औफ बोन ऐंड मिनिमल रिसर्च’ नामक पत्रिका के मुताबिक औस्टियोपोरोसिस के कारण होने वाले छोटे स्पाइनल फ्रैक्चर अकसर जांच में नजर नहीं आते, मगर तकलीफ पहुंचाते हैं. 4,400 बुजुर्गों पर 4 सालों से अधिक समय तक शोध किया गया. इस दौरान 28 लोगों के स्पाइन में फै्रक्चर डाइग्नोज किया गया.

हालांकि एक्सरे में यह बात साफ हुई कि अन्य 169 लोगों के स्पाइन में भी ब्रेक्स थे, मगर इन का पता नहीं लग सका था. जिन के स्पाइन में फ्रैक्चर था उन्होंने कमर दर्द की समस्या बताई. पिछले अध्ययनों के मुताबिक उम्रदराज महिलाओं में स्पाइनल फ्रैक्चर की समस्या और भी ज्यादा पाई जाती है.

ज्यादातर कमर दर्द मस्क्युलर होते हैं और 6 सप्ताह के अंदर ठीक हो जाते हैं, मगर ये लंबे समय तक टिकें तो पूरी जांच जरूर करवाएं.

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8. बिना हिले-डुले ऐसे कम करें वजन

आइसोमेट्रिक एक्सरसाइज या स्टैटिक एक्सरसाइज में एक्सरसाइज करते वक्त शरीर के अंगों को हिलाने-डुलाने की जरूरत नहीं पड़ती. लेकिन इसका मतलब ये नहीं है कि इन एक्सरसाइज को करने का कोई फायदा नहीं मिलता है. आइसोमेट्रिक एक्सरसाइज आपके शरीर की मांसपेशियों को मजबूत बनाती हैं, वही इन एक्सरसाइज को करते समय आपका शरीर प्रत्यक्ष रूप से कोई हरकत नहीं करता है, मगर शरीर के भीतर तमाम मसल्स एक्टिवेट रहती हैं. अगर आप अपनी बौडी को मजबूत बनाना चाहते हैं तो इन एक्सरसाइज को जरूर करे.

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9. फैट टमी : दवाओं से नहीं वर्कआउट से पाएं छुटकारा

पेट के मोटापे को एकदो हफ्ते के अंदर कम कर पाना संभव नहीं है. कुछ लोग पेट की चरबी कम करने के लिए दवाएं लेते हैं. हालांकि, कोई भी दवा, चाहे वह सिंथैटिक हो या चिकित्सीय न्यूट्रास्यूटिकल पदार्थ से बनी हो, कई संभावित साइड इफैक्ट्स के अलावा जिस्म के कई अंगों व हार्मोनल फंक्शन को प्रभावित कर सकती है. इसलिए, काउंटर से खुद ही दवा या कोई दूसरा पदार्थ खरीद कर इस्तेमाल करना सेहत के लिए अच्छा नहीं है, भले ही पेट की वसा हटाने के लिए उस में कितने ही दावे क्यों न किए गए हों.

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10. कम करना है वजन तो इन 5 बातों का रखें ध्यान

आम तौर पर वजन कम करने के लिए लोग खाने से ही दूरी बना लेते हैं. पर क्या आपको पता है कि भूखे पेट रहने से आपका वजन कम नहीं होगा. बल्कि आपके शरीर का और अधिक नुकसान होगा. भूखे रहने से मेटाबौलिज्म कमजोर होता है और ठीक तरीके से काम नहीं कर पाता है. इससे कैलोरी बर्न होने की प्रक्रिया में बाधा आती है. इसलिए वजन कम करना चाहते हैं तो भूखे रहने के बजाए हेल्दी चीजों का अधिक सेवन करें.

 

यूपी चुनाव से पहले “आप” की मुफ्त बिजली के वादे पर कृषि मंत्री ने कसा तंज

लखनऊ . घरेलू बिजली उपभोक्ता को मुफ्त बिजली देने का वादा कर यूपी विधानसभा चुनाव जोर-आजमाइश कर रही आम आदमी पार्टी को  कृषि मंत्री सूर्य प्रताप शाही ने आड़े हाथों लिया है. शाही ने कहा कि ‘केजरीवाल प्राइवेट लिमिटेड’ को यह तो मालूम ही है कि गरीबों, गांव में रहने वालों और किसानों का योगी सरकार ने कितना ध्यान रखा है.

योगी सरकार बिजली का मीटर रखने वाले  ग्रामीण उपभोक्ताओं को प्रति यूनिट 2.80 रुपए के और बगैर मीटर वालों को 4.07 रुपए की छूट शुरू से ही दे रही है. इसके अलावा एक किलोवाट लोड तक और 100 यूनिट की खपत तक के शहरी और ग्रामीण उपभोक्ताओं को भी चार रुपए से अधिक प्रति यूनिट छूट मिलती है.

यही नहीं गांव में मीटर और बिना मीटर वाले कृषि उपभोक्ताओं  को तो छूट क्रमशः पांच रुपए और 6.32 रूपए है. इस तरह सरकार ग्यारह हजार करोड़ की सब्सिडी तो सिर्फ गरीब और किसानों के लिए देती है.

कृषि मंत्री ने तंज किया कि केजरीवाल के पास यूपी की जनता के लिए विकास का कोई मॉडल नहीं है. दिल्ली में अब तक यह पार्टी ने कोई ऐसा काम नहीं कर सकी जिसे वह अपना बता सके. ऐसे में “मुफ्तखोरी के लालच” को उसने चुनावी हथियार बनाया है.

उन्होंने कहा कि यूपी की योगी सरकार ने जिला मुख्यालयों पर 24 घंटे, तहसील मुख्यालयों पर 20 घंटे और गांवों में 18 घंटे बिजली देने का वादा किया था और उसे पूरा किया.  यही नहीं, साढ़े चार साल  में यूपी के हर कोने को बिजली से रोशन कर दिया गया है. सौभाग्य योजना से 01 करोड़ 40 लाख घरों में बिजली आई है. चार साल पहले तक यूपी में बिजली आना अखबारों की सुर्खियां बनती थीं, आज अगर कभी बिजली कट जाए तो लोग हैरान होते हैं. यह होता है विकास, लेकिन ऐसे विकास के लिए जिस विजन की जरूरत होती है, वह न अरविंद केजरीवाल के पास है न मनीष सिसौदिया के पास. ऐसे में ले देकर मुफ्त बिजली देने का लालच ही उनके पास बचा है.

सूर्य प्रताप शाही ने कहा कि लोकतंत्र में इस तरह की बेतुकी एवं घोषणाएं राजनीति को दूषित करते हैं, जो न केवल घातक है बल्कि एक बड़ी विसंगति भी है.

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