वे इतने पीड़ित हुए थे कि घर छोड़ कर ही चले गए. जब गुस्सा ठंडा हुआ
तो घबराई. मांबेटी को ले कर जाने क्या हो जाता है
कि कुछ भी बरदाशत नहीं कर पाती हूं. सारा दारोमदार
इन्हीं पर है. पूरा घर इन से चलता है. मैं ने ऐसा क्यों
किया? अब कहां ढूंढूं? सभी रिश्तेदारों और जानकारों से बात की. वे वहां भी नहीं गए थे. फैक्टरी में साथ काम करने वाले इन के दोस्त से बात की. वे भविष्य भी बताते थे. अपनी विद्या से उन्होंने बताया कि वे उत्तर दिशा में गए हैं और कल तक लौट आएंगे. फिर भी थाने में रिपोर्ट कर दें. सारी रात मैं और बच्चे परेशान रहे.
अगले दिन सुबह 6 बजे थाने में रिपोर्ट की. फोटो साथ ले गई थी. पता था, मांगेंगे. थानेदार ने एक बार मुझे गुस्से से घूरा, पर मुझे परेशान देख कर कहा कुछ नहीं. अगर कल शाम तक लौट कर नहीं आते हैं, तो हम खोजबीन शुरू करेंगे. वे खुद आ जाएं तो हमें फोन कर के बता जरूर दें.
दूसरे दिन घर में चूल्हा नहीं जला था. छोटी बहन हमारे लिए खाना ले कर आई थी. मैं दिनभर अपने को कोसती रही कि ऐसा भी क्या गुस्सा था. वे अपनी
मांबहन के साथ चाय पी कर ही तो आए थे. चाहते तो सब छिपा सकते थे. उन्होंने ईमानदारी से सारी बात बताई थी. मैं ने उस का यह सिला दिया. मन में कई तरह के बुरेबुरे खयाल आते रहे. उन को कुछ हो न गया हो.
छोटी बहन समझाती कि जीजू आ जाएंगे. वे बहुत समझदार हैं. उन को अपनी जिम्मेदारियों का एहसास है. पता है, बच्चे अभी छोटे हैं. दीदी, आप भी अपने गुस्से पर काबू रखें. जब उन्होंने कह दिया था कि वे यहां कभी नहीं आएंगे तो आप को भरोसा करना चाहिए था. अब अगर वे आ भी जाते हैं तो कोई फालतू बात नहीं करनी है. वे भी अपना गुस्सा ठंडा करने ही गए होंगे.
शाम हो गई थी. अंधेरा घिर आया था. मन बैठने लगा था. उन का कोई अतापता नहीं था. इतने में बेल बजी. छोटी बहन बोली, ‘यह आए होंगे. मैं चलती हूं.’
दरवाजा खोला, सामने जीजू खड़े थे, ‘हाय, जीजू.’
वह खुशी के मारे उछल पड़ी और रोने लगी थी. वह
ऐसा कभी नहीं करती थी. रोना तो दूर की बात है. वे
चुपचाप अपने कमरे में चले गए थे. थोड़ी देर बाद मैं
पानी ले कर गई थी. साथ में छोटी बहन भी थी. उन्होंने गिलास लिया और एक ही घूंट में सारा पानी पी गए. छोटी बहन ने पूछा था, ‘जीजू, और पानी लाऊं ’ उन्होंने मुझ से पूछा, ‘कैसी हो शन्नो? देखा, अपने गुस्से का कमाल.’
मैं चुप रही थी. केवल दहाड़ मार कर रोने लगी थी. उन्होंने मुझे चुप नहीं कराया था. वे भी चाहते थे कि मेरे मन का गुबार निकल जाए. कुछ देर बाद मैं ने चाय बनाई, तब तक छोटी बहन के हसबैंड भी आ गए थे. उन्होंने पूछा था, ‘आखिर आप गए कहां थे?’
वे मुसकराए और कहा था, ‘‘वैसे तो मैं जा नहीं पाता. हरिद्वार में गंगा स्नान कर के आया हूं. मुझे अपनी जिम्मेदारियों का एहसास था, इसलिए लौट आया हूं. शन्नो का बेवजह गुस्सा भी ठंडा हो गया होगा और मेरा भी.’’मैं कुछ नहीं बोली थी. केवल दूसरे कमरे में ज कर रोती रही थी. जानती थी, वे मुझे कभी मनाने नहीं आएंगे. गलती किसी की भी हो, मनाना उन के स्वभाव में नहीं था. रो कर अपने को हलका कर लेने की आदत पड़ गई थी. हलका महसूस किया तो बाहर आ कर रात के खाने के लिए लग गई थी. खाना खा कर दोनों एकदूसरे के विपरीत सो गए थे.
दूसरी बार जब घर छोड़ कर गए तो उस के मूल में भी मेरा और मेरी बहनों का शक ही था. मेरी सब से छोटी बहन, जब हमारी शादी हुई थी, तब वह 5 साल की थी. ये उस को बहुत स्नेह करते थे. सुंदर थी और पढ़ाई में बहुत तेज थी. आज वह बच्चों वाली है. 3 साल पहले इन्होंने उन के मैसैंजर पर लिखा था, ‘हाय, कैसी हैं आप?’
‘ जीजू, मैं जिम में हूं.’‘ओके… बाय.’बस इतनी सी बात को ले कर घर में वो बवाल मचाया
था कि इन को फिर घर छोड़ कर जाना पड़ा था. उन्होंने समझाने की बहुत कोशिश की थी, ‘जरा सोचो, शन्नो तुम कैसी बात कर रही हो? वह मेरे बच्चों की तरह है. यह भी 3 साल पहले की बात है. तुम्हें याद होगा, मैं नयानया जूनियर अफसर बना था. मुझे काठगोदाम की डिटैचमैंट का चार्ज लेना था. उसी समय तुम्हारी इसी बहन का पत्र आया था. उस समय वह कालेज में पढ़ती थी. कालेज का एक प्रोफैसर उस को तंग कर रहा था. मैं ने अपने कमांडिंग अफसर को बताया था. उन्होंने
कहा, ‘ठीक है, 5 दिन की छुट्टी जा कर पहले प्रोब्लम सौल्व करो, फिर वहीं से काठगोदाम चले जाना. उस के और भी जीजे थे, उन को क्यों नहीं लिखा? तब पहले मैं जोशीमठ से अमृतसर गया था. उस के कालेज जा कर सारी समस्या हल कर के आया था. उस प्रोफैसर को वार्निंग दे कर आया था कि दोबारा ऐसा हुआ तो मैं तुम्हारा कैरियर खराब कर दूंगा. मैं वरदी में था और सच में वह प्रोफैसर डर गया था. प्रिंसिपल भी कालेज की रैपुटेशन खराब होने के डर से उस प्रोफैसर को वार्निंग दे चुकी थी. तुम्हें यह भी याद होगा, एक बार यही बहन अंबाला आई थी. मैं बेटी बना कर उसे स्किन स्पेस्लिस्ट को दिखाने गया था. तुम उस को ले कर
मन मैला कर रही हो. तुम्हारा मन दोषी है. सच में यह घर रहने के काबिल नहीं है.’इस बार पता था कि वे कहां गए थे. अपने बड़े भाई के पास.‘आज मैं वहां जा रहा हूं, जहां मैं कभी नहीं जाना चाहता था. काश, तुम इसे समझ पाती. जीवन
के अंतिम पड़ाव में हैं. न कभी तुम मुझे समझ पाई हो और न कभी मैं. शक और वहम का कोई इलाज नहीं होता है. तुम्हारे हर समय झगड़ने और लताड़ने पर मैं जब अपनेआप में खोने लगता था अर्थात अपने लिखने में खोने लगता तो तुम्हें मेरा लिखना भी पसंद नहीं था.
सच पूछो तो मेरा तुम्हें कुछ भी अच्छा नहीं लगता था. बच्चे अब बड़े हो गए हैं. मेरे जाने से भी तुम्हें फर्क नहीं पड़ेगा. वे तुम्हें संभाल लेंगे.’वे पहले भी गए थे, वापस आ गए थे. अब भी आ जाएंगे. महीना बीत गया, पर वे नहीं आए. बच्चे भी कहने लगे थे, ‘आप की रोजरोज के झगड़ने की आदत ने पापा को परेशान कर के रखा हुआ था. चले गए, अब खुश हो न. इतना सब होने पर भी वे आप के कई काम संवारते थे. आप तो चलफिर सकती नहीं हैं. बस कदर नहीं है.
‘बहुएं भी कैड़ी आंख से देखने लगी थीं. उन को भी लगता था कि मैं ही झगड़ा करती हूं. पापा तो खामोश रहते हैं. अब कोई झगड़ा नहीं करूंगी. बस इन को जा कर ले आओ,’ ऐसा मैं ने अपने बड़े बेटे से कहा था. वह मना कर ले आया था. फिर हमेशा की तरह खामोश रहने लगे थे. लिखना भी छोड़ दिया था.
वे कहते थे, ‘लिखना मेरी मानसिक भूख मिटाता है. पर मैं यह भी समझ नहीं पाई थी. एक दिन दिल का दौरा पड़ा. अस्पताल पहुंचाया, पर वे बच नहीं पाए. आंखों के कोर फिर गीले हो गए थे.छोटी बहू ने कहा, ‘ मम्मी, सो जाओ. रात बहुत हो गई है. सुबह जिला सैनिक बोर्ड के औफिस और पेंशन औफिस जाना है.’
बहुत कोशिश की, पर नींद नहीं आई थी. रात आंखों में ही कट गई. सुबह 7 बजे बहू ने गरम पानी दिया, फिर चाय दी. 9 बजे मैं तैयार हो गई थी. 10 बजे जिला
सैनिक बोर्ड के अफसर के सामने और फिर पेंशन अफसर के सामने एक बार पेश होना था. बेटे ने वीडियो फोन के जरीए मेरे जिंदा होने की बात कही थी, पर वे नहीं माने थे. उन्होंने बड़ी विनम्रता से कहा था, सिर्फ एक बार तकलीफ करने की जरूरत है. केवल बैंक मैनेजर ने वीडियो काल से पेंशन खाता खोलने की बात मान ली थी. जिला सैनिक बोर्ड के अनुसार, उन का ओरिजनल डैथ सर्टिफिकेट, उन की 25 फोटोकापी, फौज की डिस्चार्जबुक, पेंशनबुक और बैंक खाते की डिटेल साथ में ले ली थी. जैसेतैसे कार में बैठी, व्हीलचेयर साथ में ले कर जिला सैनिक बार्ड औफिस पहुंची.
औफिस में अधिकारी ने बड़े प्यार से बिठाया. अफसोस भी जताया, ‘मृत्यु जीवन का एक ऐसा सत्य है, जिसे नकारा नहीं जा सकता.मैं ने सबकुछ अटैस्ट कर दिया है. फैमिली पेंशन फिक्स होती रहेगी. प्रोविजनल पेंशन अगले महीने से शुरू हो जाएगी. आप लालकिले पेंशन औफिस ले जाएं. मेरी उन से बात हो गई है. वहां भी जल्दी काम हो जाएगा.’उसी समय सैनिक बोर्ड का एक कर्मचारी 2,500 रुपए का कैश वाउचर लाया. मेरे साइन करवा कर रुपए मुझे दे दिए.
मैं ने प्रश्न किया कि ये कैसे रुपए हैं?सामने बैठे अफसर ने फिर अफसोस प्रकट किया और कहा, ‘ सरकार का आदेश है, हर मरने वाले सैनिक को दाह संस्कार के लिए यह रुपए दिए जाते हैं. ‘मानता हूं, यह रकम बहुत कम है, पर इतनी ही राशि देने का आदेश है.’
मेरी आंखों से फिर आंसू बहने लगे थे. मैं सैनिक बोर्ड के औफिस से बाहर आ कर कार में बैठ गई. उन की बहुत सी बातें याद आने लगी थीं. उन्होंने जीवन में दिया ही दिया है. उन को मिला कुछ नहीं. मैं ने भी प्रताड़ना दी. मरने के बाद भी रुपए देने का सिलसिला जारी है. अंतिम सांस तक पेंशन के रूप में यह जारी रहेगा.
वे कहा करते थे, ‘शन्नो, आदमी की कदर करना सीखो. जीवन में पैसा बहुत बड़ी चीज है. मैं एक ऐसी दुधारु गाय हूं, जो 12 महीने दूध देती है. मैं मर भी जाऊंगा तो भी यह दूध की धारा बहती रहेगी. तुम्हें पैसे के लिए बच्चों के आगे हाथ नहीं फैलाना पड़ेगा. तुम्हारे हाथ हमेशा देने के लिए उठेंगे. यही पैसा तुम्हें इज्जत दिलाता रहेगा.
तुम्हारी अंतिम सांस तक संभाल होती रहेगी. ’ कितनी सच बात कही थी. पर मैं ही समझ नहीं पाई थी.
पेंशन औफिस में भी ज्यादा देर नहीं लगी थी. सारी औपचारिकताएं पूरी करने के बाद अफसर ने कहा था, ‘अगले महीने से आप की प्रोविजनल पेंशन आप के खाते में आनी शुरू हो जाएगी. फैमिली पैंशन फिक्स होने में 2 महीने लग जाएंगे. आर्थिक तंगी न आए, इसलिए पेंशनर को अनुमानित पेंशन मिलती रहती है. आप उन का मेडिकल कार्ड डैथ
सर्टिफिकेट के साथ जमा करवा दें. कैंटीन कार्ड भी नया बनेगा. इस के लिए सारी फौर्मेलिटी जिला सैनिक बोर्ड के औफिस में की जाएगी. हर साल इसी महीने में आप को लाइव सर्टिफिकेट देना है. यह औनलाइन भी हो जाएगा. पेंशन औफिस से निकलने के बाद खामोशी ने फिर मुझे घेर लिया था. मेरा मन फबकफबक कर रोने को करता था. पर मैं रो भी नहीं पाई थी.
घर आ कर मैं फिर बालकोनी में आ कर बैठ गई थी. ठंडी हवा चल रही थी, पर मैं ने शाल नहीं ओढ़ी थी. खामोशी की तपस मेरे साथ है. यह खामोशी हमेशा मेरे साथ रहेगी.