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Anupamaa: मालविका को होगा वनराज से प्यार! अनुज-अनुपमा के रिश्ते में आएगी दरार?

रुपाली गांगुली (Rupali Ganguly) और सुधांशु पांड (Sudhanshu Pandey)  स्टारर शो ‘अनुपमा’ (Anupama) में हाई वोल्टेज ड्रामा देखने को मिलने रहा है. जिससे फैंस फुल एंटरटेनमेंट कर रहे हैं. शो के बिते एपिसोड में आपने देखा कि अनुपमा वनराज के इरादे को समझ जाती है कि वह मालविका के करीब जाने की कोशिश कर रहा है. वह वनराज को मालविका से दूर रहने की धमकी भी देती है. लेकिन वनराज मालविका को अपने जाल में फंसाने की साजिश रच रहा है. शो के आने वाले एपिसोड में खूब धमाल होने वाला है. आइए बताते हैं शो के नए एपिसोड के बारे में.

शो में आप देखेंगे कि मालविका अनुज से वनराज की परेशानी को लेकर बात करेगी. वह कहेगी कि वनराज काम पर फोकस नहीं कर पा रही इसकी वजह है ऑफिस में काव्या है. इस बात को सुनकर अनुज परेशान होता है. लेकिन अनुपमा उसे संभाल लेती है.

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शो में ये भी दिखाया जाएगा कि अनुज की डायरी से एक लेमिनेटेड गुलाब जमीन पर गिरता है. इसे अनुपमा को दिखाते हुए वह कहता है कि यही वह फूल है जो 26 साल पहले वह अनुपमा को देना चाहता था.

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तो दूसरी तरफ मालविका और अनुपमा बात करेंगे. मालविका काफी खुश दिखाई देगी. रिपोर्ट के अनुसार मालविका अनुपमा को बताएगी कि वह वनराज को पसंद करती है. वह बताएगी कि अब वनराज उसके लिए काफी स्पेशल है. इस बात को सुनकर अनुपमा को झटका लगेगा.

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वहीं अनुज उन दोनों की बातें सुन लेगा. अनुज गुस्से में बौखला उठेगा. वह अनुपमा से नाराज होगा.  वह कहेगा कि अगर वह छिपकर उनकी बातें नहीं सुनता तो अनुपमा उसे कभी सच नहीं बताती. शो में अब ये देखना होगा कि अनुपमा मालविका को वनराज के गलत इरादों से कैसे बचाती है.

पौराणिक सोच

रामायण और महाभारत ही नहीं, दूसरे पुराण उन घटनाओं से भरे हैं जिन में देवताओं और देवता सरीखे पात्रों ने युद्ध के समय तक दलबदल कराए हैं. विभीषण को रावण के राज जानने के लिए तोड़ा गया और बाद में उसे लंका का लंकाधिपति बना दिया गया. समुद्र मंथन में जम कर धोखेबाजी की गई. महाभारत में कृष्ण ने 2 नावों में पैर रखा और अपनी सेना ताऊ के बेटों को दे दी और खुद चचेरे भाइयों के सलाहकार बन गए. इन कहानियों को सुनसुन कर ही हमारे देश की राजनीति में हर समय दलबदल व भूचाल के झटके आते रहते हैं.

राजनीतिक फैसलों पर मतभेद होने पर पार्टी को छोडऩा माना जा सकता है पर जिस तरह भारतीय जनता पार्टी ने पश्चिम बंगाल में साम, दाम, दंड, भेद की नीति अपना कर ममता बनर्जी के खेमे में खुलेआम सेंध लगाई थी वह किसी भी तरह नैतिक नहीं कहा जा सकता. जनता ने इस का उत्तर तो दे दिया पर भाजपा नेता इस बुरी तरह अपनी सांस्कृतिक धरोहर के गुलाम हैं कि वे नैतिकता के मापदंड समझते ही नहीं हैं.

उत्तर प्रदेश के चुनावों में उन्हें पूरा विश्वास था कि जांच एजेंसियों का साथ ले कर वे विपक्ष को खोखला कर देंगे पर वे भूल गए कि जनता नोटबंदी, जीएसटी, महंगाई, बेरोजगारी और कोविड के मिसमैनेजमैंट से इस बुरी तरह परेशान है कि भाजपा के ही कुछ बड़े नेता, मंत्री भी छोड़ क़र दूसरी पार्टी में जा रहे हैं. उन पर आरोप लगाया कि उन्हें लालच दिया जा रहा है, गलत है क्योंकि उत्तर प्रदेश की समाजवादी पार्टी के पास न पैसा बचा है, न पुलिस पौवर है.

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उत्तर प्रदेश ही नहीं, पूरे देश में भारतीय जनता पार्टी की जीत को असल में  पौराणिक व्यवस्था की जीत मान लिया गया है और मंदिरों, दानदक्षिणा, पाखंड, अंधविश्वास पर चलने वाले निखट्टुओं की छोटी पर प्रभावशाली फौज ने इसे कर्ई हजार साल बाद अपने कल्पित काल की पुनर्स्थापना मान लिया. पौराणिक काल में तो अहल्या और सीता को निर्दोष होते हुए दंड मिला था और एकलव्य को बेबात में अंगूठा कटवाना पड़ा था पर आज संवैधानिक कवच के कारण औरतें, पिछड़े और दलित पौराणिक दूतों के गुलाम नहीं हैं. उन का ब्रेनवाश हुआ है पर वे यह भी जानते हैं कि भूखे पेट वे धर्मकर्म नहीं कर सकते.

पिछली व निचली जातियां भारतीय जनता पार्टी से कितनी नाराज हैं, इस की झलक पश्चिम बंगाल या चंडीगढ़ के निकाय चुनावों में ही नहीं, किसान आंदोलन में भी मिली जिस में भाजपा पौराणिक तरीके अपना कर भी फूट नहीं डाल सकी और आख़िरकार कृषि कानून वापस लेने पड़े. इस स्थिति में भाजपा के पिछड़ी जातियों के नेताओं को कोई पर्याय दिख रहा है तो वे उस ओर भाग रहे हैं. इस में आश्चर्य नहीं क्योंकि वर्षों तक भाजपा में रह कर वे ब्राह्मïण समकक्ष नहीं बन पाए. उन्हें वह सम्मान नहीं मिला जिस की आशा में वे सब का साथ सब का विकास का नारा देने वाली पार्टी में आए थे.

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एक देश के विकास के लिए जन्म से तय जाति पर निर्भर नहीं रहा जा सकता. देश का निर्माण हर नागरिक के डोर से होता है. देश की बड़ी जनसंख्या को पराया या दुश्मन मान कर देश का विभाजन किया जा सकता है, उस में सुख व समृद्धि नहीं लाई जा सकती. बंगलादेश इस का उदाहरण है जहां 80 प्रतिशत लोगों एक सोच के हैं और वे बाकी 20 फीसदी के साथ बैरभाव नहीं रखते. एक बोली बोल रहे हैं, एक पहल रख रहे हैं और लगभग तानाशाह शासन के बावजूद सब को खासी आजादी दे रहे हैं. भारत और पाकिस्तान इस के उलट हैं और इस का ये दोनों खमियाजा भुगत रहे हैं.

ममता बनर्जी ने भारतीय जनता पार्टी के पौराणिक मंसूबों पर भारी प्रहार किया था और उत्तर प्रदेश के मंत्री पद छोड़ जाने वाले इसे और ज्यादा तीखा दे रहे हैं. पौराणिक सोच शासन का हिस्सा न बने, घरों तक सीमित रहे, फिलहाल तो यही मैसेज मिल रहा है.

जमीनी हकीकत के करीब होते हैं निकाय चुनाव

निकाय चुनावों में जनता सीधे अपने क्षेत्र के नेताओं से जुड़ कर वोट करती है, जिस में सड़क, पानी, नाली व निकासी जैसे बुनियादी मुद्दे अहम होते हैं. इन चुनावों में अधिकतर जगह भाजपा की हार बता रही है कि लच्छेदार हवाहवाई बातों के इतर बुनियादी मुद्दों में भाजपा विफल हुई है.

‘देखन में छोटे लागें, घाव करें गंभीर’ बिहारी सतसई का यह दोहा चुनावों पर सटीक बैठता है. भारत में अलगअलग तरह के चुनावों में सब से छोटे चुनाव निकाय और पंचायतों के माने जाते हैं. सही माने में देखें तो यही चुनाव जमीनी हकीकत के बेहद करीब होते हैं. शुरुआती दौर में ये चुनाव बहुत महत्वपूर्ण नहीं माने जाते थे.

ज्यादातर चर्चा विधानसभा चुनाव और लोकसभा चुनावों की ही होती थी. विधानसभा चुनावों से प्रदेश की सरकारें बनती हैं और लोकसभा चुनाव से देश की सरकार बनती है. धीरेधीरे पंचायत और शहरी निकाय चुनाव भी बड़े होने लगे.

इन के चुने गए प्रतिनिधि गांव, ब्लौक, जिला और शहर की लोकल बौडी को चलाने का काम करते हैं. हाल के कुछ सालों में इन का महत्व इस से भी सम?ा जा सकता है कि अब इन चुनावों की चर्चा भी राष्ट्रीय स्तर पर होती है.

लोकसभा और विधानसभा के चुनाव भले ही जाति, धर्म, क्षेत्र और पार्टी के स्तर पर होते हों पर निकाय और पंचायत चुनाव हमेशा प्रत्याशी के चेहरे और रोजगार, गरीबी, महंगाई, अव्यवस्था, अपराध, नाली, सड़क की सफाई, बिजली, पानी की व्यवस्था पर लड़े जाते हैं.

असल मामलों में देखें तो यही वे चुनाव हैं जिन में जनता सही मुद्दों पर वोट करती है. अब इन चुनावों के परिणाम पार्टियों के लिए चिंता का विषय होने लगे हैं. यही कारण है कि इन को मैनेज करने का काम भी शुरू होने लगा है.

उत्तर प्रदेश के पंचायत चुनावों में भाजपा की हार हुई. प्रदेश की जनता कोरोना में अव्यवस्था और महंगाई जैसे मसलों से भाजपा से नाराज थी. इस बात का संकेत मिला तो ब्लौक प्रमुख और जिला पंचायत चुनावों में सरकारी दखल से ज्यादा से ज्यादा सीटें भाजपा ने अपने पक्ष में करने का काम किया. निकाय चुनावों के फैसलों को सम?ाते हुए भाजपा ने अपनी चुनावी रणनीति में बदलाव शुरू कर दिया है.

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चंडीगढ़ की जनता ने सत्ता के खिलाफ वोट किया

चंडीगढ़ नगर निगम चुनाव में आम आदमी पार्टी 14 सीटों के साथ सब से आगे रही. भाजपा के खाते में 12 सीटें और कांग्रेस तीसरे नंबर पर रही. चंडीगढ़ निगम चुनाव में आम आदमी पार्टी के उम्मीदवार ने बड़ा उलटफेर करते हुए वर्तमान मेयर को हरा दिया है.

आम आदमी पार्टी इस चुनाव में पहली बार मैदान में उतरी थी. पंजाब विधानसभा चुनाव से पहले हुए चंडीगढ़ निगम चुनाव में भाजपा बैकफुट पर रही है और पंजाब में सत्ताधारी पार्टी कांग्रेस तीसरे नंबर पर है.

आम आदमी पार्टी यानी ‘आप’ ने 35 में से 14 सीटें जीत ली हैं. भाजपा के खाते में 12 सीटें आईं. कांग्रेस के हिस्से में 8 सीटें आई हैं और एक सीट शिरोमणि अकाली दल के खाते में गई.

दिल्ली के मुख्यमंत्री और ‘आप’ प्रमुख अरविंद केजरीवाल ने कहा, ‘‘चंडीगढ़ नगर निगम में ‘आप’ की जीत पंजाब में बदलाव की ओर इशारा करती है. लोगों ने भ्रष्ट राजनीति को खारिज कर दिया है और ‘आप’ को चुना है. पंजाब बदलाव के लिए तैयार है.’’

आम आदमी पार्टी नेता राघव चड्ढा ने कहा, ‘‘यह केजरीवाल के शासन मौडल की जीत है क्योंकि लोग वर्षों से बदलाव के लिए तरस रहे थे.’’ भाजपा के मौजूदा मेयर रविकांत शर्मा को भी ‘आप’ के उम्मीदवार दमनप्रीत सिंह ने हरा दिया है.

चंडीगढ़ में 35 वार्डों के लिए वोट डाले गए थे. पहले 26 वार्ड ही थे, जिन्हें इस बार बढ़ा कर 35 कर दिया गया है. इस साल 60.45 प्रतिशत लोगों ने अपने मत का प्रयोग किया है.

मौजूदा नगर निकाय में भाजपा के पास बहुमत था. पिछले नगरपालिका चुनावों में भाजपा ने 20 सीटें जीती थीं और शिरोमणि अकाली दल के हिस्से एक सीट आई थी. कांग्रेस के हाथ बस 4 सीटें आई थीं. भाजपा ने पिछले 5 वर्षों की अपनी उपलब्धियों के सहारे चुनाव लड़ा.

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कांग्रेस और आप, भाजपा पर विकास कार्य करने में विफल रहने का आरोप लगाते हुए चुनावी मैदान में उतरी थीं. हर 5 साल में होने वाले इस नगर पालिका चुनाव में भारतीय जनता पार्टी और कांग्रेस के बीच कांटे की टक्कर देखने को मिलती रही है. पहली बार आम आदमी पार्टी के आ जाने से इस बार मुकाबला त्रिकोणीय हो गया था.

भरोसा कायम करने में सफल

पश्चिम बंगाल में ममता बनर्जी का जलवा अब भी कायम है. कोलकाता नगर निगम की 144 सीटों पर हुए चुनाव के नतीजे यही कहते हैं. नगर निकाय में क्लीन स्वीप करते हुए तृणमूल कांग्रेस ने 134 सीटों पर कब्जा जमाया है.

यही नहीं, 3 वार्डों में जीत

हासिल करने वाले निर्दलीय उम्मीदवारों ने भी टीएमसी से जुड़ने की इच्छा जताई है. इस तरह कोलकाता निकाय चुनाव की 137 सीटों पर तृणमूल कांग्रेस का परचम लहराने वाला है.

ये नतीजे भाजपा के लिए बड़ा ?ाटका हैं, जिस को महज 3 सीटों पर ही जीत मिल सकी है. इस के अलावा कांग्रेस और सीपीएम का हाल तो निर्दलीय उम्मीदवारों से भी बुरा रहा है. दोनों दलों को 2-2 सीटों पर ही जीत मिल सकी है.

कोलकाता निकाय चुनाव में भाजपा बढ़ने के बजाय सिमट गई है. 5 साल पहले उस ने यहां 5 सीटों पर जीत हासिल की थी. लेकिन इस बार 2 और गंवा दीं. इस बीच, वार्ड नंबर 135 से जीत हासिल करने वाली रूबीना नाज ने भी टीएमसी से जुड़ने का फैसला कर लिया है. उन के पति तृणमूल कांग्रेस के नेता हैं.

इस के अलावा 2 अन्य निर्दलीय विजेता पुरबासा नास्कर और आएशा कनीज ने भी तृणमूल के साथ जाने का फैसला कर लिया है. तृणमूल के नेता रहे इरफान अली ताज की पत्नी कनीज ने कहा, ‘‘यदि हम सत्ताधारी दल के साथ रहेंगे तो फिर अपने इलाके के लोगों के लिए और ज्यादा काम कर सकेंगे.’’

कर्नाटक में कांग्रेस की बमबम

कर्नाटक निकाय चुनाव कांग्रेस को मिली सफलता पर कर्नाटक कांग्रेस के अध्यक्ष डी के शिवकुमार ने खुशी जताते हुए कहा, ‘‘बिना किसी संदेह के कहा जा सकता है कि 2023 में होने वाले विधानसभा चुनाव में कांग्रेस जीत दर्ज करेगी.’’

कर्नाटक शहरी निकाय चुनावों में कांग्रेस ने सत्ताधारी भाजपा को बड़ा ?ाटका देते हुए 1,184 में से 498 सीटों पर जीत हासिल की है. भाजपा को

437 सीटें मिलीं. इन 2 पार्टियों के अलावा जनता दल सैक्यूलर ने 45, जबकि अन्य ने 204 सीटें जीतने में कामयाबी हासिल की.

डी के शिवकुमार ने कहा, ‘‘चुनाव के नतीजों ने इस बात की पुष्टि की है कि प्रदेश में कांग्रेस की लहर है. शहरी स्थानीय निकाय चुनाव के नतीजे इस बात का समर्थन करते हैं.’’

राज्य चुनाव आयोग के आंकड़ों के अनुसार, निकाय चुनाव में कांग्रेस ने 42.06 प्रतिशत, बीजेपी ने 36.90, जेडीएस ने 3.8 और अन्य ने 17.22 प्रतिशत वोट हासिल किए. नगर पालिका परिषद के 166 वार्डों में से कांग्रेस को 61, भारतीय जनता पार्टी को 67, जनता दल (एस) को 12 और अन्य को 26 सीटें मिली हैं. नगर परिषद के 441 वार्डों में से कांग्रेस को 201, भारतीय जनता पार्टी को 176 और जेडीएस को 21 सीटें हासिल हुई हैं.

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कर्नाटक में 58 शहरी निकाय के 1,185 वार्डों पर 27 दिसंबर को मतदान कराए गए थे. कोरोना महामारी की वजह से इन चुनावों में करीब 3 साल की देरी हुई है. इन नतीजों के बाद पूर्व मुख्यमंत्री सिद्धारमैया ने भाजपा पर निशाना साधते हुए कहा कि स्थानीय निकाय चुनाव में कांग्रेस के लिए बहुत बड़ी जीत है. सत्तारूढ़ भाजपा की तुलना में कांग्रेस का अधिक सीटें जीतना उन के निराशाजनक शासन का प्रतिबिंब है.

समझ आ रहा जमीनी दर्द

2022 में 5 राज्यों में विधानसभा के चुनावों की तारीख की घोषणा हो गई है. इन राज्यों में उत्तर प्रदेश, पंजाब, उत्तराखंड, गोवा और मणिपुर शामिल हैं. असल में इन चुनावों का प्रभाव 2024 के लोकसभा चुनावों पर भी पड़ेगा.

5 राज्यों के विधानसभा चुनावों के पहले जो परिणाम सामने आए है वहां भाजपा के लिए संकेत अच्छे नहीं दिख रहे. जमीनी स्तर पर निकाय चुनाव के परिणाम यह बता रहे हैं कि भाजपा के लिए 2024 की राह आसान नहीं है. अगर विधानसभा और लोकसभा चुनावों में भी जनता ने अपने हित के मु्द्दों पर वोट दिया तो अपने भाषणों से जनता को रि?ाने वाले नेताओं के पैरों के नीचे से जमीन खिसक जाएगी.

उत्तर प्रदेश के वरिष्ठ पत्रकार विमल पाठक कहते हैं, ‘‘बहुत सारे चुनाव विश्लेषक यह मानते हैं कि हर चुनाव का अपना अलगअलग एजेंडा होता है. देश और प्रदेश के स्तर पर ये मुद्दे बदल जाते हैं. निकाय और गांव के स्तर पर ये अलग होते हैं. लेकिन जैसेजैसे जनता जागरूक हो रही है, वैसेवैसे अब उसे यह सम?ा आ रहा है कि उस को नेताओं के बहकावे में नहीं आना है. उसे अपने मुद्दों पर वोट देना है.’’

मोदी सरकार जिस तरह से जनता को सीधे नकद राहत देने का काम कर रही है उस के पीछे उस का यही डर है. जनता धर्म के मुद्दे से बहकने वाली नहीं है. निकाय चुनावों में यह दिख रहा है. ऐसे में

भाजपा अब अपनी रणनीति में बदलाव कर लोगों को डायरैक्ट बैनिफिट देने का काम कर रही है.

कठपुतली- भाग 2: शादी के बाद मीता से क्यों दूर होने लगा निखिल

उस की यह बात सुन निखिल बिफर गया. गुस्से में बोला, ‘‘तो क्या घर बैठ कर तुम्हारे पल्लू से बंधा रहूं? मैं मर्द हूं. अपनेआप को काम में व्यस्त रखना चाहता हूं, तो तुम्हें तकलीफ क्यों होती है?’’

मीता निखिल की यह बात सुन अंदर तक हिल गई. मन ही मन सोचने लगी कि इस में मर्द और औरत वाली बात कहां से आ गई.

हां, जब कभी निखिल को कारोबार संबंधी कागजों पर मीता के दस्तखत चाहिए होते तो वह बड़ी मुसकराहट बिखेर कर उस के सामने कागज फैला देता और कहता, ‘‘मालकिन, अपनी कलम चला दीजिए जरा.’’

कभी वह रसोई में आटा गूंधती बाहर आती तो कभी अपनी पसंदीदा किताब पढ़ती बीच में छोड़ती और मुसकरा कर दस्तखत कर देती.

मीता का निखिल के प्रति खिंचाव अभी भी बरकरार था. सो आज अकेले में मुसकुराने लगी और सोचा कि ठीक ही तो कहा निखिल ने. घर के लिए ही तो काम करता है सारा दिन वह, मैं ही फालतू उलझ बैठी उस से.

शाम को जब वह आया तो वह पूरी मुसकराहट के साथ उस के स्वागत में खड़ी थी, लेकिन निखिल का रुख कुछ बदला हुआ था. मीता उस के चेहरे के भाव पढ़ कर समझ गई कि निखिल उस से सुबह की बात को ले कर अभी तक नाराज है. सो उस ने उसे खूब मनाया. कहा, ‘‘निखिल, क्या बच्चों की तरह नाराज हो गए? हम दोनों जीवनपथ के हमराही हैं, मिल कर साथसाथ चलना है.’’

लेकिन निखिल के चेहरे पर से गुस्से की रेखाएं हटने का नाम ही नहीं ले रही थीं. क्या करती बेचारी मीता. आंखें भर आईं तो चादर ओढ़ कर सो गई.

निखिल अगली सुबह भी उसे से नहीं बोला. घर से बिना कुछ खाए निकल गया.

आज पहली बार मीता का दिल बहुत दुखी हुआ. वह सोचने लगी कि आखिर ऐसा भी क्या कह दिया था उस ने कि निखिल 3 दिन तक उस बात को खींच रहा है.

अब वह घर में निखिल से जब भी कुछ कहना चाहती उस का पौरुषत्व जाग उठता. एक दिन तो गुस्से में उस के मुंह से निकल ही गया, ‘‘क्यों टोकाटाकी करती रहती हो दिनरात?

तुम्हारे पास तो कुछ काम है नहीं…ये जो रुपए मैं कमा कर लाता हूं, जिन के बलबूते पर तुम नौकरों से काम करवाती हो, वो ऐसे ही नहीं आ जाते. दिमाग खपाना पड़ता है उन के लिए.’’

आज तो निखिल ने सीधे मीता के अहम पर चोट की थी. वह अपने आंसुओं को पोंछते हुए बिस्तर पर धम्म से जा पड़ी. सारी रात उसे नींद नहीं आई. करवटें बदलती रही. उसे लगा शायद निखिल ने गुस्से में आ कर कटु शब्द बोल दिए होंगे और शायद रात को उसे मना लेगा. लेकिन इस रात की तो जैसे सुबह ही नहीं हुई. जहां वह करवटें बदलती रही वहीं निखिल खर्राटे भर कर सोता रहा.

अब तो यह खिटपिट उन के रोजमर्रा के जीवन का हिस्सा बन गई थी. इसलिए उस ने निखिल से कई बातों पर बहस करना ही बंद कर दिया था. कई बार तो वह उस के सामने मौन व्रत ही धारण कर लेती.

सिनेमाहाल में नई फिल्म लगी थी. मीता बोली, ‘‘निखिल, मैं टिकट बुक करा देती हूं. चलो न फिल्म देख कर आते हैं.’’

‘‘तुम किसी और के साथ देख आओ मीता, मेरे पास बहुत काम है,’’ कह निखिल करवट बदल कर सो गया.

मीता ने उसे झंझोड़ कर बोला, ‘‘किस के साथ देख आऊं मैं फिल्म? कौन है मेरा तुम्हारे सिवा?’’

निखिल चिढ़ कर बोला, ‘‘जाओ न क्यों मेरे पीछे पड़ गई. बिल्डिंग में बहुत औरतें हैं. किसी के भी साथ चली जाओ वरना कोई किट्टी जौइन कर लो… मैं ने तुम्हें कितनी बार बताया कि मुझे हिंदी फिल्में पसंद नहीं.’’

मीता उस की बात सुन एक शब्द न बोली और अपनी पनीली आंखों को पोंछ मुंह ढक कर सो गई.

आज मीता को अपने विवाह के शुरुआती महीनों की रातें याद हो आईं. कितनी असहज सी होती थी वह जब नया विवाह होते ही निखिल रात को उसे पोर्न फिल्में दिखाता था. वह निखिल का मन रखने को फिल्म तो देख लेती थी पर उसे उन फिल्मों से बहुत घिन आती थी.

‘रंग जाऊं तेरे रंग में’ में दो परिवारों की इज्जत बचाने के लिए लड़की की इच्छाओं का दमन! पढ़ें खबर

दंगल टीवी अपनी शुरूआत के साथ ही नारी सशक्तिकरण भारतीय सभ्यता व उत्तर भारत के परिवेश वाले सीरियलों का प्रसारण करता आ रहा है. मगर इन दिनों इस चैनल पर सीरियल रंग जाउं तेरे रंग में में जिस तरह से नारी सशक्तिकरण के नाम पर कुछ घटनाक्रम दिखाए जा रहे हैं. उससे यह सवाल उठना है कि नारी सशक्तिकरण और नारी शक्ति के नाम पर लड़कियों की महत्वाकांक्षाओं को कुचलना कितना सही है.

वास्तव में इन दिनों इस सीरियल की कहानी में एक नया मोड़ आया हुआ है. जहां बनारस के रहने वाले दो बेटियों के पिता सुरेंद्र चैबे की बड़ी बेटी सृष्टि की शादी काशीनाथ पांडे के बेटे ध्रुव के संग हो रही हैण्लड़के वाले बारात लेकर आ चुके हैंण्मगर शादी के मंडप के नीचे पहुंचने से पहले ही सृष्टि गायब हो चुकी है. तब सुरेंद्र चैबे व काशीनाथ पांडे इस निर्णय पर पहुंचते है कि दोनों परिवारों की इज्जत को बचाने के लिए सुरेंद्र चैबे अपनी छोटी बेटी धानी की शादी ध्रुव पांडे के साथ करा देंण्शादी संपन्न होने से पहले इस बात की भनक ध्रुव पांडे को नही लगने दी है.

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ज्ञातब्य है कि धानी चैबे अभी कालेज में पढ़ रही है. उसके अपने कुछ सपने हैंण्वह पढ़ाई पूरी करने के बाद नौकरी कर अपने पैरों पर खड़ी होकर आत्म निर्भर बनना चाहती है. मगर उसके माता पिता उसे इमोशनल ब्लैकमेल करते हुए दो परिवारों की इज्जत को बचाने के लिए ध्रुव के संग विवाह के लिए राजी करते हैं. धानी चाहती है कि ध्रुव को सच बता दिया जाए कि सृष्टि  गायब हो चुकी है और सृष्टि की तलाश की जाए. क्योंकि धानी को यकीन है कि उसकी बहन के साथ कुछ गलत हुआ है. उसकी बहन सृष्टि परिवार की इज्जत को दांव पर लगाने के लिए घर से भाग नहीं सकती. मगर धानी की सलाह पर अमल करने की बजाय उसे भावनात्मक रूप से ब्लैकमेल कर ध्रुव संग शादी करने के लिए राजी कर लिया जाता है. और धानी व ध्रुव की शादी हो जाती है. स्वाभाविक तौर पर अब आगे तमाशा होगा.

जब ध्रुव को पता चलेगा कि उसका व्याह धोखे से सृष्टि की बजाय धानी के साथ किया गया है. हो सकता है कि इससे सीरियल की टीआरपी बढ़ जाए. मगर अहम सवाल यह है कि क्या इस तरह सीरियल एक सही संदेश समाज को दे रहा है.

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सूत्रों की माने तो चैनल के अनुसार वह धानी के इस कदम को नारी सशक्तिकरण रूप में पेश कर रहा है.पर सवाल यह है कि यह कैसी नारी शक्ति है यह कैसी प्रगति शीलता है सीरियल में कहानी आगे किस तरह बढ़ेगी पता नहीं मगर निजी जीवन में यदि किसी लड़की के साथ ऐसा होने का मतलब उसकी सारे सपनों उसकी इच्छाओं का दमन करने के साथ ही उसे एक अंधकारमय भविष्य की कोठरी में धकेलना ही है. ऐसे में लड़की को बिना गलती की सजा भुगतना पड़ेगा. पति उसे स्वीकार नही करेगा या परिवार की इज्जत के लिए समाज के सामने स्वीकार करेगाएपर घर के अंदर उसे घुट घुटकर जीने पर मजबूर करेगा. लड़की भी आत्म निर्भर नही रह पाएगी. उसकी शिक्षा भी अधूरी रह गयी है तो यह सब न तो नारी सशक्तिकरण है और न ही नारी सशक्तिण. माना कि हमारे देश में आए दिन खबरें आती रहती हैं कि शादी के मंडप के नीचे लड़की बदल गयी. इसे सही ठहराने की बजाय इस पर रोक लगे. उन पर बात की जानी चाहिए.

सीरियल रंग जाउं तेरे रंग में सृष्टि की छोटी बहन धानी एक बड़ा कदम उठाती है और समाज में अपने परिवार की लाज बचाने के लिए वह एक ऐसी भारतीय नारी का रूप धारण करती है. जो परिवार को बिखरने और टूटने से बचाती है. कुल मिलाकर सीरियल में किस्मत का खेल धानी को एक ऐसे मुकाम पर ले जाता है. जहां उसके लिए निर्णय लेना आसान नहीं होता. मगर धानी एक भारतीय सशक्त नारी होने का फर्ज निभाती है. यहां पर सबसे बड़ा सवाल सही है कि परिवार की लाज बचाने के लिए हर बार लड़की ही त्याग की मूर्ति क्यों बने. लड़का यानी कि पुरूष क्यों नहीं.

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किस्मत का खेल सिर्फ नारी संग ही क्यों. इस प्रकरण पर धानी का किरदार निभा रही अभिनेत्री मेघा रे कहती हैं. इन दिनों हमारे सीरियल ‘रंग जाउं तेरे रंग में’ में बहुत ही ज्यादा इंटेंस ड्रामा चल रहा है. दर्शक अपने अपने हिसाब से अंदाजा लगा रहे हैं कि अब सीरियल की कहानी आगे क्या रूप लेगी. लेकिन मैं यकीन के साथ कह सकती हूं कि दर्शक जैसा सोच रहे हैं वैसा कुछ नहीं हो. माना कि अभी सृष्टि शादी के दिन गायब है.  परिवार की सोच अलग है.मगर अकेली धानी ही है जो यह सोच रही है कि दीदी ऐसा क्यों करेगी. वह कहीं भाग नहीं सकती क्योंकि वह बचपन से अपनी बहन को देखती आई है.

लेकिन कोई धानी की बात मान ही नहीं रहा है. ऐसे में घर वाले धानी को इमोशनल ब्लैकमेल भी कर रहे हैं. धानी एक मुश्किल दौर से गुजर रही है. हालांकि धानी बड़ी खुशमिजाज और हंसी मजाक करने वाली लड़की है लेकिन अब उसकी जिंदगी में भी एक बड़ा बदलाव आने जा रहा है.सृष्टि दीदी बड़ी सुलझी हुई हैं. ऐसे में शादी के दिन उनका गायब होना हम सभी के लिए शॉकिंग पल हैण्घर वालों को शक इसलिए हो रहा है. क्योंकि उन्होंने एक अंजान लड़के के साथ सृष्टि को देखा था. लेकिन धानी मानने को तैयार नही कि उसकी बहन भाग गई है. धानी का कहना है कि ध्रुव को सृष्टि के गायब होने के बारे में बता दिया जाए मगर घर वाले उसे ऐसा करने नहीं दे रहे हैं कि दोनों खानदान की इज्जत दांव पर लग जाएगी.

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घर के बड़ों ने इस मामले में कुछ फैसला लिया हैए लेकिन धानी इसके खिलाफ है. वैसे धानी एक ऐसी भारतीय लड़की है. जो अपने माँ बाप परिवार वालों के लिए अपने सपने को छोड़ सकती हैण्वह कालेज में पढ़ाई कर रही है. मगर अब वह कुछ छोड़कर ऐसे लम्हों में परिवार को इमोशनल सपोर्ट करने के लिए आगे आती है.

सृष्टि चौबे का किरदार निभाने वाली केतकी कदम कहती हैं. यह ट्विस्ट दर्शकों को 440 वोल्ट का झटका देगा. मैं इतना कहूँगी कि लोगों को जल्द जज करना ठीक नहीं होता है. इंसान बुरा नहीं होता, सिचुएशन बुरी होती है. सृष्टि घर से भागी हैए गायब हुई है, उसके साथ कुछ बुरा हुआ है. इसके लिए आपको रंग जाऊं तेरे रंग में देखना होगा.

शादी के बाद Mouni Roy ने शेयर की खूबसूरत फोटोज, पति के लिए  लिखा ‘आखिर मैंने तुम्हें पा ही लिया’

टीवी की मशहूर एक्ट्रेस मौनी रॉय (Mouni Roy) ने बॉयफ्रेंड सूरज नाम्बियार (Suraj Nambiar) के साथ शादी के बंधन में बंध गई हैं. दोनों की शादी की फोटोज सोशल मीडिया पर छाई हुई हैं. बता दें कि उन्होंने गोवा में मलयालम रीति-रिवाज से सात फेरे लिए. मौनी और सूरज की शादी में फैमिली और फ्रेंड्स मौजूद थे.

अब मौनी राय ने सोशल मीडिया पर शादी की खूबसूरत फोटोज शेयर की हैं. एक्ट्रेस ने इन फोटोज को शेयर करते हुए कैप्शन में अपने हमसफर के लिए दिल छू लेने वाली बात भी लिखी है.

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मौनी ने फोटोज को शेयर करते हुए कैप्शन में लिखा है, ‘आखिर मैंने तुम्हें पा लिया.’ हाथों में हाथ… फैमिली और फ्रेंड्स का आशीर्वाद… अब हम शादीशुदा हैं. आपका प्यार और आशीर्वाद चाहिए. लव सूरज और मौनी.

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एक फोटो में सूरज, मौनी की मांग भर रहे हैं. तो वहीं  सूरज नाम्बियार ने भी अपने इंस्टाग्राम अकाउंट पर शादी की फोटोज शेयर की हैं. सूरज ने कैप्शन में लिखा है, मेरी बेस्ट फ्रेंड और मेरे जीवन के प्यार से शादी की. जीवन में सबसे भाग्यशाली व्यक्ति की तरह महसूस कर रहा हूं…

 

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मौनी रॉय ने शादी की एक वीडियो भी शेयर की थी.  फैंस और सेलिब्रिटी ने लगातार शुभकामनाएं दी थी.  मृणाल ठाकुर ने लव का इमोजी बनाया. तो वहीं नीति मोहन ने लिखा, पवित्रता और आनंद. एक यूजर ने लिखा, बहुत बहुत मुबारक और बधाई आप दोनों को.

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घर पर ऐसे बनाएं चिली फिश और फिश मौली

फिश मौली केरल की डिश है. यह स्पाइसी फिश करी है, इसमें नारियल का इस्तेमाल किया जाता है. यह एक बहुत ही स्वादिष्ट फिश करी है जिसे गाढ़े नारियल दूध के साथ पकाया जाता है. इस डिश को आप चावल के साथ डिनर या लंच में ​कभी भी खा सकते हैं तो चलिए जानते हैं  फिश मौली की रेसिपी.

  1. फिश मौली 

fish

सामग्री

लाल मिर्च पाउडर (1/2 टी स्पून)

धनिया पाउडर (1 टी स्पून)

नींबू का रस

कढ़ीपत्ता

रिफाइंड तेल (1 टेबल स्पून)

करी बनाने के लिए:

रिफाइंड औयल

सौंफ (1/2 टी स्पून)

हरी इलाइची (4-5)

नारियल दूध (आवश्यकतानुसार)

टमाटर (7-8 चेरी)

सरसों के दाने (1/2 टी स्पून)

कालीमिर्च (1/2 टी स्पून)

​बासा मछली

प्याज (2)

अदरक (एक इंच)

लहसुन की कलियां 5-6

हरी मिर्च (6-7)

हल्दी (1 टी स्पून)

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बनाने की वि​धि

अदरक, लहसुन और प्याज को काट लें.

हरी मिर्च को लम्बाई को काटने के बाद छोटे टुकड़ों में काट लें.

एक बाउल में कटी हुई हरी मिर्च, अदरक, लहसुन, हरी मिर्च, प्याज, हल्दी पाउडर, आधा चम्मच लाल मिर्च पाउडर, धनिया पाउडर, थोड़ा सा कढ़ीपत्ता, आधा नींबू का रस, नमक और एक बड़ा रिफाइंड तेल लें.

इन सभी को अच्छी तरह मिला लें.

करी तैयार करने के लिए:

एक पैन में थोड़ा सा रिफाइंड तेल गर्म करें.

इसमें कढ़ीपता, सरसों के दाने, कालीमिर्च, सौंफ और हरी इलाइची डालें.

इसे तब तक भूनें जब तक यह चटकने न लगें.

इसमें मैरेनेटिड फिश, नारियल दूध और चेरी टमाटर डालें.

हरे धनिए से गार्निश सर्न करें.

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2. चिली फिश

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चिली फिश बहुत ही स्वादिष्ट डिश है. यह क्रंची, टेस्टी और ​काफी फीलिंग और स्वाद से भरपूर होती है. आप इसे डिनर पार्टी में भी  सर्व कर सकती हैं.

सामग्री:

फिश के टुकड़े (बोनलेस 250 ग्राम)

बेकिंग पाउडर (1 टी स्पून)

कौर्नफलोर (1/2 कप)

मैदा (1/2 कप)

सोय सौस (2 टी स्पून)

सेलेरी बारीक कटा हुआ (2 टेबल स्पून)

कालीमिर्च (1 टी स्पून)

नमक (स्वादानुसार)

तेल (आवश्यकतानुसार)

गानिर्शिंग के लिए हरी प्याज

सौस के लिए:

1 टेबल स्पून अदरक (1 टेबल स्पून, टुकड़ों में कटा हुआ)

लहसुन  (1 टेबल स्पून, कद्दूकस किया हुआ)

हरी मिर्च (1 टेबल स्पून)

सोया सौस (4 टेबल स्पून)

टोमैटो सौस (5 टेबल स्पून)

चिली सौस (1 टेबल स्पून)

कौर्नफलोर (1 टेबल स्पून)

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बनाने की वि​धि

1.फिश को फिंगर पीस में काट लें.

2.कौर्नफलोर, मैदा, बेकिंग पाउडश्र, सौस सौस, सेलेरी, कालीमिर्च पानी और नमक डालकर एक बैटर तैयार करें.

3.फिश के पीसों को बैटर में डिप करके तेल में गोल्डन ब्राउन होने तक फ्राई करें, इसे सर्विंग प्लेट में निकालें.

सौस तैयार करने के लिए:

1.एक पैन में तेल गर्म करें.

2.इसमें लहसुन, अदरक और हरी मिर्च डालें, इसमें सोया सौस, चिली और टोमैटो सौस डालें.

3.फाइनली इसमें कौर्नफलोर में थोड़ा सा पानी मिलाकर डालें एक बार जब यह उबलने लगे तो इसे आंच से हटा लें.

4.सर्व करते समय, इस सौस को फिश के टुकड़ों पर डालें, हरी प्याज से गार्निश करके सर्व करें.

5.हरी प्याज से गार्निश करके सर्व करें.

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हृदय हमारे शरीर का प्रमुख अंग है, जो शरीर के प्रत्येक हिस्से के लिए कई गैलन ब्लड पंप करता है. इस की महत्त्वपूर्ण गतिविधियों को समझते हुए हमारी जिम्मेदारी यह सुनिश्चित करना है कि हमारी खानपान की आदतें और जीवनशैली हृदय ही नहीं संपूर्ण शरीर को स्वस्थ रखें.

जब हृदय के समग्र स्वास्थ्य की बात आती है तो कई चीजें गलत भी हो सकती हैं. कुछ कारक हृदय से संबंधित समस्याएं भी उत्पन्न कर सकते हैं. उन्हीं में से एक प्रमुख कारण आप की रसोई में मौजूद है- आप का खाना पकाने का तेल. आइए जानते हैं इस के बारे में:

किसी भी भारतीय घर में खाना पकाने का तेल पहली चीज है जो खाना बनाते समय कड़ाही में डाला जाता है. खाना पकाने का तेल वसा यानी फैट से बना होता है, जिन में से कुछ हमारे लिए अच्छे होते हैं और कुछ नहीं तो क्या इस का यह मतलब है कि हमें खाना पकाने का तेल पूरी तरह से बंद कर देना चाहिए? नहीं, बल्कि हमें यह विस्तार से जानना चाहिए कि खाना पकाने का तेल आखिर किन चीजों से बना है.

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जहां मार्केट में बड़ी संख्या में ऐसे खाना पकाने के तेल मौजूद हैं, जो एकदूसरे की तुलना में बेहतर होने का दावा करते हैं, यह जानना बेहद महत्त्वपूर्ण है कि आप के पास खाना पकाने के तेल को ले कर सही जानकारी हो. जब आप सही खाना पकाने का तेल चुनते हैं, तो आप यह सुनिश्चित करते हैं कि आप के द्वारा बनाया गया खाना स्वस्थ है और स्वाद में किसी समझौते के बिना आप की सेहत का ध्यान भी रखता है.

आइए जानते हैं उन 5 महत्त्वपूर्ण बातों को, जिन्हें आप को अगली बार खाना पकाने का तेल खरीदते समय ध्यान रखना है:

  1. हाई ओमेगा-3

ओमेगा-3 सूजन से लड़ता है और ब्लड कोलैस्ट्रौल स्तर को सामान्य बनाए रखने में मदद करता है. ओमेगा-3 समुद्री भोजन में पाया जाता है. यदि शाकाहारी हैं, तो यह और जरूरी है कि आप के खाना पकाने के तेल में ओमेगा-3 हो जिस से आप को रोजाना की डाइट में ओमेगा-3 की जरूरी मात्रा प्राप्त हो सके.

2. ओमेगा-6 और ओमेगा-3 का सही अनुपात

यह हृदय के संपूर्ण स्वास्थ्य के लिए कारगर है. इंडियन काउंसिल औफ मैडिकल रिसर्च के अनुसार, खाने के लिए ओमेगा-6 और ओमेगा-3 का सही अनुपात 5 से 10 के बीच होना चाहिए. उच्च मात्रा में ओमेगा-3 और सही अनुपात के संयोजन से हृदय का संपूर्ण स्वास्थ्य बनाए रखने में मदद मिलती है.

3. उच्च मोनोअनसैचुरेटेड फैटी ऐसिड (मुफा)

मोनोअनसैचुरेटेड फैट के कई स्वास्थ्य लाभ होते हैं. यह खाने में तेल कम सोखने में मदद करता है, जिस से खाने का पाचन आसान हो जाता है. यह इस बात को भी सुनिश्चित करता है कि स्वास्थ्य और स्वाद से समझौता किए बिना खाने में पौष्टिक तत्त्वों की मात्रा बरकरार रखती है.

4. गामा औरिजेनोल

यह बैड कोलैस्ट्रौल को कम करता है. औरिजेनोल बैड कोलैस्ट्रौल को कम करने और गुड कोलैस्ट्रौल को बढ़ाने के लिए जाना जाता है. यह आप के हृदय के बेहतर स्वास्थ्य के लिए खाना पकाने के तेल में मौजूद होना आवश्यक है.

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5. विटामिन ए, डी और ई

ये पोषण बनाए रखने में मददगार होते हैं. विटामिन ए दृश्यता से संबंधित है और जीवनशैली व तनाव से हुए नुकसान को सुधारने में मदद करता है. विटामिन डी इम्यूनिटी के  लिए आवश्यक है और हड्डियों को मजबूत करने के लिए जाना जाता है. विटामिन ई ऐंटीऔक्सीडैंट है जो शरीर में मुक्त रैडिकल्स को कम करने में मदद करता है. ये सभी आप के संपूर्ण पोषण के लिए आवश्यक हैं. खाना पकाने के लिए अच्छा तेल अपनाने से आप हृदय से संबंधित समस्याओं को कम कर सकते हैं. यह भी सुनिश्चित करें कि आप की खुराक संतुलित हो.

डा. प्रियंका रोहतगी

हैड न्यूट्रीशनिस्ट, अपोलो हौस्पिटल, बैंगलुरु 

“भाजपा चाणक्य” अमित शाह का चुनावी पसीना…!

उत्तर प्रदेश विधानसभा चुनाव जिस तरीके से भाजपा के विधायकों को क्षेत्र में घुसने नहीं दिया जा रहा है गाड़ियों में तोड़फोड़ की गई है लगभग 14 विधानसभा क्षेत्रों में जहां जाट बाहुल्य है भाजपा की बोलती बंद कर दी गई है और भाजपा प्रत्याशियों को गांव में घुसने नहीं दिया जा रहा के बाद भारतीय जनता पार्टी के  चाणक्य अमित शाह के चेहरे पर पसीने की बूंदें उभर आई है.

दरअसल, उत्तर प्रदेश चुनाव वह रास्ता है जहां से केंद्र की सत्ता हासिल होती है योगी आदित्यनाथ के मुख्यमंत्री काल में उत्तर प्रदेश में सामंतशाही के बाद जाटों का गुस्सा नाराजगी चुनाव की घोषणा के साथ ही ही सतह पर आ गया है.

परिणाम स्वरूप गणतंत्र दिवस राष्ट्रीय पर्व के दिन भी भाजपा के चाणक्य अमित शाह लगभग 250 जाट नेताओं के साथ लगातार चर्चा करते रहे और हाथ जोड़ कर  के भाजपा को वोट देने की चिरौरी करते रहे.

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दरअसल, भाजपा अब यह समझ चुकी है कि उत्तर प्रदेश की सत्ता हाथ से निकलना ही चाहती है मगर उसके बाद केंद्र की सत्ता भी नहीं रहेगी. परिणाम स्वरूप भाजपा के बड़े नेताओं के चेहरों के रंग बदलने लगे हैं अभी तक अपने हद अभिमान, अपने अलोकतांत्रिक कामकाज के बाद स्थितियां इतनी बिगड़ी जा चुकी है कि उसे बनाने में अब समय दे रहे हैं, मगर शायद अब देर हो चुकी है. जाट और किसानों से दूरी बनाने वाले केंद्रीय गृह मंत्री अमित शाह  और भाजपा के उत्तर प्रदेश प्रभारी धर्मेंद्र प्रधान ने देश के 73 वें गणतंत्र दिवस पर समय निकाल  पश्चिम उत्तर प्रदेश के बड़े जाट नेताओं से मुलाकात की. दिल्ली से बीजेपी के सांसद जाट नेता प्रवेश साहिब सिंह वर्मा के आवास पर हुई इस बैठक में जाट समुदाय के करीब 250 प्रभावी नेताओं ने शिरकत की. इस बैठक को ‘सामाजिक भाईचारा बैठक’ का नाम दिया गया. बैठक में अमित शाह ने जाट समुदाय को साधने के लिए बड़ी बड़ी बातें कहीं.

अमित शाह की मीठी चुपड़ी बातें

इस बैठक में जाट नेताओं से जो कहा गया उस पर आपको गौर करना चाहिए क्योंकि इन्हीं बातों में भाजपा के हर एक सच को आसानी से पकड़ सकते हैं.

अमित शाह  ने कहा,-” हमारा घोषणापत्र आएगा तो देखना कि किसानों का ऋण चुकाने के लिए हम क्या कर रहे हैं. राहुल गांधी तो किसानों के लिए आलू की फैक्ट्री लगाने की बात कर रहे थे. उन्हें मालूम ही नहीं है कि रबी और खरीफ की फसल में क्या अंतर होता है. आज से 5 साल पहले यूपी गन्ना, चीनी, गेहूं, आलू, आंवला आदि के उत्पादन में देश में टॉप-5 में भी नहीं था. वहीं आज यूपी इन फसलों के उत्पादन में देश में नंबर-1 पर पहुंच गया है.”

भाजपा के चाणक्य अमित शाह यहां तक नहीं रुके उन्होंने उन्होंने राहुल गांधी राग अलापने के बाद कहा, -“योगी जी के आने के बाद उत्तर प्रदेश में क्या एक भी दंगा हुआ है. बहन बेटियां सुरक्षित जा सकती है कि नहीं. जो मोटरसाइकिल पर घूम-घूम कर मूंछों पर ताव देकर अपराध करते थे, वे अब उत्तर प्रदेश छोड़ गए है कि नहीं.”

पूर्व मुख्यमंत्री साहिब सिंह वर्मा के सुपुत्र सांसद प्रवेश वर्मा द्वारा आयोजित इस जाट मिलन समारोह में अमित शाह ने कहा,-” झगड़ा करना है तो हमसे कर लो भाई. घर से बाहर के लोगों को क्यों लाना है. आप को भी मालूम है कि भारतीय जनता पार्टी के अलावा दूसरा विकल्प क्या है. प्रत्याशियों को आप देख ही रहे हो. सपा और आरएलडी की सरकार बनेगी तो यह आजम खान छूट जाएगा कि नहीं छूट जाएगा. सोचने का काम आप मत करो. वोट हमें दे दो तो सोचने का काम हम करेंगे.”

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अब यह समझने वाली बात है कि लंबे समय तक किसानों से कोई बात नहीं करने वाली भाजपा सरकार के चाणक्य अमित शाह अब भी किसानों के बीच जाकर के वार्ता करने से गुरेज कर रहे और बंद कमरे में अपने ही पार्टी से जुड़े हुए जाट नेताओं से चर्चा करके माहौल को बदलने का प्रयास किया जा रहा है हद तो यहां तक हो गई जब यह तक कहा गया कि जयंत चौधरी के लिए भाजपा के दरवाजे खुले हुए हैं.

भाजपा सत्ता के लिए कितनी  बेताब है यह अब धीरे-धीरे दिखाई देने लगा है. आखिर यह सब उत्तर प्रदेश में अपनी सत्ता को बचाने की नीचे आने की कवायद ही तो है. जब भाजपा के बड़े चेहरों ने देख लिया कि अब तो उल्टी गिनती शुरू हो गई है तो इस तरह उनकी घबराहट  प्रदर्शित होने लगी है.

Anupamaa: अनुज को मालविका कहेगी ‘जोरू का गुलाम’, आएगा ये ट्विस्ट

सुधांशु पांडे और रुपाली गांगुली स्टारर सीरियल अनुपमा की कहानी में हाईवोल्टेज ड्रामा चल रहा है. जिससे दर्शकों का फुल एंटरटेनमेंट हो रहा है. शो के आने वाले एपिसोड में खूब धमाल होने वाला है. आइए बताते हैं शो के नए एपिसोड के बारे में.

शो के बिते एपिसोड में आपने देखा कि अनुपमा काव्या को एक और मौका देती है. काव्या अनुज-अनुपमा के ऑफिस में फिर से जॉब करती है. तो दूसरी तरफ वनराज गुस्से से आग बबूला हो जाता है. वह अनुज का बिजनेस हड़पने के लिए मालविका का इस्तेमाल कर रहा है. ऐसे में उसे लग रहा है कि काव्या बाधा बनेगी.

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काव्या, अनुज और अनुपमा के प्रोजेक्ट में काम कर रही है. अनुपमा अनुज से कहती है कि काव्या ने वादा किया है कि वह इस बार अच्छा काम करती रहेंगी और उन्हें निराश नहीं करेंगी क्योंकि यह उसके लिए आखिरी मौका है. लेकिन फिर भी हमे चौकन्ना रहना होगा.

 

तो दूसरी तरफ वनराज मालविका से मुंबई में अपना होटल शुरू करने के लिए कहता है. तभी अनुपमा उस फैसले पर आपत्ति जताएगी और वो कहती है कि मालविका अहमदाबाद में ही होटल शुरू करे, जरूरत पड़ने पर बाद में वह मुंबई के बारे में सोचे. अनुज भी अनुपमा की बातों का समर्थन करता है तभी मालविका गुस्सा हो जाती है और अनुज को कहती है कि तुम अभी सो जोरू का गुलाम बन गये हो. अनुपमा की कही हुई हर बात तुम्हें अच्छी लगती है. शो में अब ये देखना होगा कि क्या मालनविका वनराज के लिए अनुज-अनुपमा के खिलाफ जाएगी?

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शो में ये भी दिखाया गया कि नंदिनी को अपनी गलती का एहसास होता है और वह समर के साथ सुलह करने का फैसला करती है. नंदिनी, समर से कहती है कि वह उससे बहुत प्यार करती है. लेकिन समर कहता है कि उन दोनों को एक बार और इस रिश्ते के बारे में सोचना होगा. नंदिनी बहुत अकेला महसूस करती है और रोते हुए चली जाती है.

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