निकाय चुनावों में जनता सीधे अपने क्षेत्र के नेताओं से जुड़ कर वोट करती है, जिस में सड़क, पानी, नाली व निकासी जैसे बुनियादी मुद्दे अहम होते हैं. इन चुनावों में अधिकतर जगह भाजपा की हार बता रही है कि लच्छेदार हवाहवाई बातों के इतर बुनियादी मुद्दों में भाजपा विफल हुई है.

‘देखन में छोटे लागें, घाव करें गंभीर’ बिहारी सतसई का यह दोहा चुनावों पर सटीक बैठता है. भारत में अलगअलग तरह के चुनावों में सब से छोटे चुनाव निकाय और पंचायतों के माने जाते हैं. सही माने में देखें तो यही चुनाव जमीनी हकीकत के बेहद करीब होते हैं. शुरुआती दौर में ये चुनाव बहुत महत्वपूर्ण नहीं माने जाते थे.

ज्यादातर चर्चा विधानसभा चुनाव और लोकसभा चुनावों की ही होती थी. विधानसभा चुनावों से प्रदेश की सरकारें बनती हैं और लोकसभा चुनाव से देश की सरकार बनती है. धीरेधीरे पंचायत और शहरी निकाय चुनाव भी बड़े होने लगे.

इन के चुने गए प्रतिनिधि गांव, ब्लौक, जिला और शहर की लोकल बौडी को चलाने का काम करते हैं. हाल के कुछ सालों में इन का महत्व इस से भी सम?ा जा सकता है कि अब इन चुनावों की चर्चा भी राष्ट्रीय स्तर पर होती है.

लोकसभा और विधानसभा के चुनाव भले ही जाति, धर्म, क्षेत्र और पार्टी के स्तर पर होते हों पर निकाय और पंचायत चुनाव हमेशा प्रत्याशी के चेहरे और रोजगार, गरीबी, महंगाई, अव्यवस्था, अपराध, नाली, सड़क की सफाई, बिजली, पानी की व्यवस्था पर लड़े जाते हैं.

असल मामलों में देखें तो यही वे चुनाव हैं जिन में जनता सही मुद्दों पर वोट करती है. अब इन चुनावों के परिणाम पार्टियों के लिए चिंता का विषय होने लगे हैं. यही कारण है कि इन को मैनेज करने का काम भी शुरू होने लगा है.

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