रामायण और महाभारत ही नहीं, दूसरे पुराण उन घटनाओं से भरे हैं जिन में देवताओं और देवता सरीखे पात्रों ने युद्ध के समय तक दलबदल कराए हैं. विभीषण को रावण के राज जानने के लिए तोड़ा गया और बाद में उसे लंका का लंकाधिपति बना दिया गया. समुद्र मंथन में जम कर धोखेबाजी की गई. महाभारत में कृष्ण ने 2 नावों में पैर रखा और अपनी सेना ताऊ के बेटों को दे दी और खुद चचेरे भाइयों के सलाहकार बन गए. इन कहानियों को सुनसुन कर ही हमारे देश की राजनीति में हर समय दलबदल व भूचाल के झटके आते रहते हैं.

राजनीतिक फैसलों पर मतभेद होने पर पार्टी को छोडऩा माना जा सकता है पर जिस तरह भारतीय जनता पार्टी ने पश्चिम बंगाल में साम, दाम, दंड, भेद की नीति अपना कर ममता बनर्जी के खेमे में खुलेआम सेंध लगाई थी वह किसी भी तरह नैतिक नहीं कहा जा सकता. जनता ने इस का उत्तर तो दे दिया पर भाजपा नेता इस बुरी तरह अपनी सांस्कृतिक धरोहर के गुलाम हैं कि वे नैतिकता के मापदंड समझते ही नहीं हैं.

उत्तर प्रदेश के चुनावों में उन्हें पूरा विश्वास था कि जांच एजेंसियों का साथ ले कर वे विपक्ष को खोखला कर देंगे पर वे भूल गए कि जनता नोटबंदी, जीएसटी, महंगाई, बेरोजगारी और कोविड के मिसमैनेजमैंट से इस बुरी तरह परेशान है कि भाजपा के ही कुछ बड़े नेता, मंत्री भी छोड़ क़र दूसरी पार्टी में जा रहे हैं. उन पर आरोप लगाया कि उन्हें लालच दिया जा रहा है, गलत है क्योंकि उत्तर प्रदेश की समाजवादी पार्टी के पास न पैसा बचा है, न पुलिस पौवर है.

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