सुप्रीम कोर्ट ने एक फैसले में दहेज की परिभाषा को एक बार फिर विस्तारित किया है. कोर्ट ने एक पति या उस के घरवालों द्वारा पत्नी के घरवालों से पैसे के अलावा भी किसी चीज की मांग को दहेज का रूप माना हे. मध्यप्रदेश उच्च न्यायालय ने पति को पत्नी की आत्महत्या के बाद बरी कर देने के फैसले को उलटते हुए कहा कि पति व उस के घरवालों की यह मांग कि पत्नी के घरवाले मकान बनाने के लिए पैसे दें, दहेज है और ऐसे में पत्नी द्वारा आत्महत्या कर लेना भारतीय दंड संहिता की धारा 304 के अंतर्गत दहेज हत्या ही है.
सुप्रीम कोर्ट एक मामले की जांच कर रहा था और उस का सामाजिक परिस्थितियों से कोई लंबाचौड़ा वास्ता था, यह कहीं नहीं दिख रहा था. पतिपत्नी का प्रेम और सौहार्द ही असल में दहेज को ले कर विवाह बाद प्रताणना की सब से बड़ी सुरक्षा है. कोर्ई भी पति अपनी पत्नी को दिनभर ताने दे कर, डांटफटकार व मारपीट कर रात में बिस्तर पर ले जा कर उस से प्रेम और सैक्स की उम्मीद नहीं कर सकता. वहीं, अगर पत्नी को प्रताड़ित किया जाता है तो यह न भूलें कि पत्नी के कहने पर ही पति अपने घरवालों को परेशान करता है.
अदालतें तो नहीं, लेकिन समाचारपत्र और सोशल मीडिया ऐसे मामलों से भरे हैं जिन में पत्नी के कहने पर पति बूढ़े मांबाप को घर से निकाल देता है, अपने भाईबहन का पैतृक हिस्सा छीन लेता है, अगर बहन का तलाक हो जाए या उस के पति की मृत्यु हो जाए तो उस से नाता तोड़ तक लेता है. ज्यादातर पति अपने सारे संबंध पत्नी के इशारों पर उस के भाईबहनों और मांबाप के साथ जोड़ लेते हैं जबकि उस के अपने सगे, पराए हो जाते हैं.
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कानून और जज इन पति के सगों की सुरक्षा के लिए आगे नहीं आते हैं, यदि आगे आते हैं तो फटकार बेटों को पड़ती है, बेटों की पत्नियां को नहीं जिन की डांट और बकबक पति को उस के सगों की जिंदगी से दूर करने को मजबूर करती है.
विवाह के समय दहेज की मांग समझी जा सकती है क्योंकि उस समय तक पतिपत्नी के संबंध नहीं बने होते. जहां लडक़ेलडक़ी में प्रेम विवाह हो रहा हो, वहां दहेज की बात उपहारों तक सीमित रह जाती है. दहेज की समस्या विवाह के लिए एक सक्षम लडक़े को खरीदने की है पर इस के लिए दोषी लडक़ी के मातापिता हैं, लडक़े के नहीं.
एक लडक़ी की इच्छा है कि वह चाहे जैसी हो, उसे देखने आया युवा राजकुमार हो व पैसेवाला भी हो. अगर लडक़ी के पिता पहले ही दिन कहने लगें कि जो कुछ है लडक़ी का है या वे विवाह में इतना खर्च करेंगे तो दहेज की चिनगारी जलेगी ही. इस का दोषी पति या उस के घरवाले नहीं हैं. पत्नियों ने रोधो कर माहौल बना डाला है कि सारा अन्याय व अत्याचार उन्हीं पर होता है जबकि सच यह है कि लड़कियां पति का नाम ले कर अपने पिता से पैसे वसूलने में पीछे नहीं रहतीं. घर में आए पैसे का रोब पत्नी अपनी ससुराल वालों पर मारती है.
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हर दहेज की शिकायत, पत्नी की हत्या, आत्महत्या पर शिकार केवल पत्नी, जिंदा या मृत, नहीं होती, इस का प्रभाव पूरे घर पर पड़ता है. पति को भीषण अकेलेपन से गुजरना पड़ता है. अगर कानून ने सजा न दी हो तो भी वह घर में कैदी बन कर रह जाता है. मांबाप और भाईबहन उसे दोषी ठहराते हैं कि उन की जगहंसाई हो रही है.
एक पत्नी को घर में बड़े चाव से लाया जाता है. शुरू के महीनों में सारा घर उस के इशारों पर नाचता है. अगर वह प्यार उड़ेलती है तो दहेज लेना तो दूर, हर पति के सारे घरवाले पत्नी के घरवालों के संरक्षक बन जाते हैं. किसी अदालत को यह पक्ष दिखाई नहीं देता और यह विवाहों की नींव को खोखला कर रहा है.