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नई रोशनी: भाग 2- नईम का पढ़ालिखा होना क्यों गुनाह बन गया था

लेखिका- शकीला एस हुसैन

कुछ दिनों से वह महसूस कर रही थी कि नईम कुछ उलझाउलझा और परेशान है. न पहले की तरह दिनभर के हालात उसे सुनाता है न बातबेबात कहकहे लगाता है. अम्मी व बहनों की बातों का भी बस हूंहां में जवाब देता है. पहले की शोखी, वह बचपना एकदम खत्म हो गया था. उस रात सबा की आंख खुली तो देखा नईम जाग रहा है, बेचैनी से करवटें बदल रहा है. सबा ने एक फैसला कर लिया, वह उठ कर बैठ गई और बहुत प्यार से पूछा, ‘‘नईम, मैं कई दिनों से देख रही हूं, आप परेशान हैं. बात भी ठीक से नहीं करते, क्या परेशानी है?’’

नईम ने टालते हुए कहा, ‘‘नहीं, ऐसा कुछ खास नहीं, स्टोर की कुछ उलझनें हैं.’’

सबा ने उस के बाल संवारते हुए कहा, ‘‘नईम, हम दोनों ‘शरीकेहयात’ हैं यानी जिंदगी के साथी. आप की परेशानी और दुख मेरे हैं, उन्हें बांटना और सुलझाना मेरा भी फर्ज है, हो सकता है कोई हल हमें, मिल कर सोचने से मिल जाए. आप खुल कर मुझे पूरी बात बताइए.’’

‘‘सबा, मैं एक मुश्किल में फंस गया हूं. एक दिन एक सेल्सटैक्स अफसर मेरे स्टोर पर आया. ढेर सारा सामान लिया. जब मैं ने पैसे लेने के लिए बिल बना कर दिया तो वह एकदम गुस्से में आ गया. कहने लगा, ‘तुम जानते हो मैं कौन हूं, क्या हूं? और तुम मुझ से पैसे मांग रहे हो?’

‘‘मैं ने विनम्र हो कर कहा, ‘साहब, काफी बड़ा बिल है, मैं खुद सामान खरीद कर लाता हूं.’

‘इतना सुनते ही वह बिफर उठा, ‘मैं देख लूंगा तुम्हें, स्टोर चलाने की अक्ल आ जाएगी. तुम मेरी ताकत से नावाकिफ हो. ऐसे तुम्हें फसाऊंगा कि तुम्हारी सारी अकड़ धरी की धरी रह जाएगी.’ और सामान पटक कर स्टोर से निकल गया. उस के बाद उस का एक जूनियर आ कर सारे खातों की पूछताछ कर के गया और धमकी दे गया कि जल्द ही पूरी तरह चैकिंग होगी और एक नोटिस भी पकड़ा गया. इतना लंबा नोटिस अंगरेजी में है, पता नहीं कौनकौन से नियम और धाराएं लिखी हैं. तुम तो जानती हो मेरी अंगरेजी बस कामचलाऊ है, हिसाबकिताब का ज्यादा काम तो मुंशी चाचा देखते हैं.’’

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सबा ने सुकून से सारी बात सुनी और तसल्ली देते हुए कहा, ‘‘आप बिलकुल परेशान न हों, जब आप कोई गलत काम नहीं करते हैं तो आप को घबराने की जरा भी जरूरत नहीं है. अगर खातों में कुछ कमियां या लेजर्स नौर्म्स के हिसाब से नहीं हैं तो वह सब हो जाएगा. आप सारे खाते और नोटिस, नौर्म्सरूल्स सब घर ले आइए, मैं इत्मीनान से बैठ कर सब चैक कर लूंगी या आप मुझे स्टोर पर ले चलिए, पीछे के कमरे में बैठ कर मैं और मुंशी चाचा एक बार पूरे खाते और हिसाब नियमानुसार चैक कर लेंगे. अगर कहीं कोई कमी है तो उस का भी हल निकाल लेंगे, आप हौसला रखें.’’

सबा की विश्वास से भरी बातें सुन कर नईम को राहत मिली. उस के होंठों की खोई मुसकराहट लौट आई.

दूसरे दिन एक अलग तरह की सुबह हुई. सबा भी नईम के साथ जाने को तैयार थी. यह देख अम्मी की त्योरियां चढ़ गईं, ‘‘हमारे यहां औरतें सुबहसवेरे शौहर के साथ सैर करने नहीं जाती हैं.’’

नईम अम्मी का हाथ पकड़ कर उन्हें उन के कमरे में ले गया और उस पर पड़ने वाली विपदा को इस अंदाज में समझाया कि अम्मी का दिल दहल गया. वे चुप थीं, कमरे में बैठी रहीं. सबा नईम के साथ चली गई. बात इतनी परेशान किए थी कि अम्मी का सारा तनतना झाग की तरह बैठ गया.

सबा के लिए यह कड़े इम्तिहान की घड़ी थी. यही एक मौका उसे मिला था कि अपनी तालीम का सही इस्तेमाल कर सकती थी. उस ने युद्धस्तर पर काम शुरू कर दिया. एक तो वह सहनशील थी दूसरे, बीएससी में उस के पास मैथ्स था, और जनरलनौलेज व कानूनी जानकारी भी अच्छीखासी थी.

पहले तो उस ने नोटिस ध्यान से पढ़ा, फिर एकएक एतराज और इलजाम का जवाब तैयार करना शुरू किया. मुंशीजी ईमानदार व मेहनती थे पर इतने ज्यादा पढ़े न थे लेकिन सबा के साथ मिल कर उन्होंने सारे सवालों के सटीक व नौर्म्स पर आधारित, सही उत्तर तैयार कर लिए. शाम तक यह काम पूरा कर उस ने नोटिस का टू द पौइंट जवाब भिजवा दिया.

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एक बोझ तो सिर से उतरा. अब उन्हें बिलबुक के अनुसार सारे खाते चैक करने थे कि कहीं भी छोटी सी भूल या कमी न मिल सके. एक जगह बिलबुक में एंट्री थी पर लेजर में नहीं लिखा गया था. नईम ने उस बिल पर माल भेजने वाली पार्टी से बातचीत की तो खुलासा हुआ कि माल भेजा गया था पर मांग के मुताबिक न होने की वजह से वापस कर के दूसरे माल की डिमांड की गई थी जो जल्द ही आने वाला था. सबा ने उस के लिए जरूरी कागजात तैयार कर लिए. पार्टी कंसर्न से जरूरी कागजात पर साइन करवा के रख लिए.

3 दिन की जीतोड़ मेहनत के बाद नईम और सबा ने चैन की सांस ली. अब कभी भी चैकिंग हो जाए, कोई परेशानी की बात नहीं थी. शाम 4 बजे जब सबा घर वापस जाने की तैयारी कर रही थी उसी वक्त सेल्सटैक्स अफसर अपने 2 बंदों के साथ आ गया. आते ही उस ने नईम और मुंशीजी से बदतमीजी से बात शुरू कर दी.

दोनों जब तक जवाब देते, सबा उठ कर सामने आ गई और उस ने बहुत नरम और सही अंगरेजी में कहा, ‘‘सर, आप सरकारी नौकर हैं. जांच और पूछताछ करना आप का फर्ज है. आप तरीके से पूछें फिर भी आप को तसल्ली न हो तो आप लिखित में नोटिस दें, हम उस का जवाब देंगे. आप की पहली इन्क्वायरी का संतोषप्रद जवाब दिया जा चुका है. आप को जो भी मालूमात चाहिए, मुझ से पूछिए क्योंकि लेजर मैं मेंटेन करती हूं पर पूछताछ में अपने लहजे और भाषा पर कंट्रोल रखिएगा क्योंकि हम भी आप की तरह संभ्रांत नागरिक हैं.’’

इतनी सटीक और परफैक्ट अंगरेजी में जवाब सुन अफसर के रवैए में एकदम फर्क आ गया. काफी देर जांच चलती रही, सबा ने बड़े आत्मविश्वास से हर शंका का बड़े सही ढंग से समाधान किया क्योंकि पिछले 4 दिनों में वह हर बात को अच्छी तरह से समझ चुकी थी. सेल्सटैक्स अफसर कोई घपला न निकाल सका, इसलिए अपने साथियों के साथ वापस चला गया, पर धमकी देते गया कि उस की खास नजर इस स्टोर पर रहेगी. अकसर परेशान करने को नोटिस आते रहे जिन्हें सबा ने बड़ी सावधानी से संभाल लिया.

घर पहुंच कर नईम खुशी से पागल हो रहा था, अम्मी और बहनों को सबा की काबिलीयत विस्तार से जताते हुए बोला, ‘‘सबा का पढ़ालिखा होना, उस की गहरी जानकारी और अंगरेजी बोलना सारी मुसीबतों से टक्कर लेने में कामयाब रहे. पहले यही अफसर मुझ से ढंग से बात नहीं करता था. मेरा अंगरेजी मेें ज्यादा दखल न होने से और विषय की पकड़ कमजोर होने से मुझ पर हावी हो रहा था. अपनी जानकारी से सबा ने ऐसा मुंहतोड़ जवाब दिया है कि अब बेवजह मुझे परेशान न करेगा. मैं ने फैसला कर लिया है कि सबा हफ्ते में 2 बार आ कर हिसाबकिताब चैक करेगी ताकि आइंदा ऐसा कोई मसला न खड़ा हो.’’

जहर का पौधा: भाग 2

जब वह दरवाजे से हो कर अंदर गया तो भाभी सिर दबाए बैठी थीं. उस ने बड़ी कोमलता से पूछा, ‘क्या हुआ, भाभी?’ तब वे मुसकरा कर बोली  थीं, ‘कुछ नहीं.’ वह गुल्ली उठा कर वापस चला गया था.

लेकिन शाम को सब के सामने भैया ने मनीष को चांटे लगाते हुए कहा था, ‘बेशर्म, गुल्ली से भाभी के माथे पर घाव कर दिया और पूछा तक नहीं.’ भाभी के इस ड्रामे पर तो मनीष सन्न रह गया था. उस के मुंह से आवाज तक न निकली थी. निकलती भी कैसे? उम्र में बड़ी और आदर करने योग्य भाभी की शिकायत भैया से कर के उसे और ज्यादा थोड़े पिटना था.

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भैया घर के सारे लोगों पर नाराज हो रहे थे कि उन की पत्नी से कोई भी सहानुभूति नहीं रखता. सभी चुपचाप थे. किसी ने भी भैया से एक शब्द नहीं कहा था. इस के बाद भैया ने पिताजी, मां और भाईबहनों से बात करना छोड़ दिया था. वे अधिकांश समय भाभी के कमरे में ही गुजारते थे.

इस के बाद एक सुबह की बात है. भैया को सुबह जल्दी जाना था. भाभी भैया के लिए नाश्ता तैयार करने के लिए चौके में आईं. चौके में सभी सदस्य बैठे थे, सभी को चाय का इंतजार था. मनीष रो रहा था कि उसे जल्दी चाय चाहिए. मां उसे समझा रही थीं, ‘बेटा, चाय का पानी चूल्हे पर रखा है, अभी 2 मिनट में उबल जाएगा.’

उसी समय भाभी ने चूल्हे से चाय उतार कर नाश्ते की कड़ाही चढ़ा दी. मां ने मनीष के आंसू देखते हुए कहा, ‘बहू, चाय तो अभी दो मिनट में बन जाएगी, जरा ठहर जाओ न.’

इतनी सी बात पर भाभी ने चूल्हे पर रखी कड़ाही को फेंक दिया. अपना सिर पकड़ कर वे नीचे बैठ गईं और जोर से बोलीं, ‘मैं अभी आत्महत्या कर लेती हूं. तुम सब लोग मुझ से और मेरे पति से जलते हो.’

इतना सुन कर भैया दौड़ेदौड़े आए और भाभी का हाथ पकड़ कर अपने कमरे में ले गए. वे भी चीखने लगे, ‘मीरा, तुम इन जंगलियों के बीच में न बैठा करो. खाना अपने कमरे में ही बनेगा. ये अनपढ़ लोग तुम्हारी कद्र करना क्या जानें.’

भैया के आग्रह पर 4-5 दिनों बाद ही घर के बीच में दीवार उठा दी गई. सारा सामान आधाआधा बांट लिया गया. इस बंटवारे से पिताजी को बहुत बड़ा धक्का लगा था. वे बीमार रहने लगे थे. उन्होंने नौकरी से त्यागपत्र लिख दिया था.

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भैया केंद्र सरकार की ऊंची नौकरी में थे. अच्छाखासा वेतन उन्हें मिलता था. मनीष को याद नहीं है कि विवाह के बाद भैया ने एक रुपया भी पिताजी की हथेली पर धरा हो. पिताजी को इस बात की चिंता भी न थी. पुरानी संपत्ति काफी थी, घर चल जाता था.

एक दिन भाभी के गांव से कुछ लोग आए. गरमी के दिन थे. मनीष और घर के सभी लोग बाहर आंगन में सो रहे थे. अचानक मां आगआग चिल्लाईं. सभी लोग शोर से जाग गए. देखा तो घर जल रहा था. पड़ोसियों ने पानी डाला, दमकल विभाग की गाडि़यां आईं. किसी तरह आग पर काबू पाया गया. घर का सारा कीमती सामान जल कर राख हो गया था. घर के नाम पर अब खंडहर बचा था. भैया के हिस्से वाले घर को अधिक क्षति नहीं पहुंची थी. पिताजी ने कमचियों की दीवार लगा कर किसी तरह घर को ठीक किया था. मां रोती रहीं. मां का विश्वास था कि यह करतूत भाभी के गांव से आए लोगों की थी. पिताजी ने मां को उस वक्त खामोश कर दिया था, ‘बिना प्रमाण के इस तरह की बातें करना अच्छा नहीं होता.’

साहूकारी में लगा रुपया किसी तरह एकत्र कर के पिताजी ने मनीष की दोनों बहनों का विवाह निबटाया था.

उस समय मनीष 10वीं कक्षा का विद्यार्थी था. मां को गठियावात हो गया था. वे बिस्तर से चिपक गई थीं. पिताजी मां की सेवा करते रहे. मगर सेवा कहां तक करते? दवा के लिए तो पैसे थे ही नहीं. मनीष को स्कूल की फीस तक जुटाना बड़ा दुरूह कार्य था, सो, पिताजी ने, जो अब अशक्त और बूढ़े हो गए थे, एक जगह चौकीदारी की नौकरी कर ली.

भाभी को उन लोगों पर बड़ा तरस आया था. वे कहने लगीं, ‘मनीष, हमारे यहां खाना खा लिया करेगा.’ मां के बहुत कहने पर मनीष तैयार हो गया था. वह पहले दिन भाभी के घर खाने को गया तो भाभी ने उस की थाली में जरा सी खिचड़ी डाली और स्वयं पड़ोसी के यहां गपें लड़ाने चली गईं. उस दिन वह बेचारा भूखा ही रह गया था.

मनीष ने निश्चय कर लिया था कि अब वह भाभी के घर खाना खाने नहीं जाएगा. इस का परिणाम यह निकला कि भाभी ने सारे महल्ले में मनीष को अकड़बाज की उपाधि दिलाने का प्रयास किया.

मां कई दिनों तक बीमार पड़ी रहीं और एक दिन चल बसीं. मनीष रोता रह गया. उस के आंसू पोंछने वाला कोई भी न था.

पिताजी का अशक्त शरीर इस सदमे को बरदाश्त न कर सका. वे भी बीमार रहने लगे. अचानक एक दिन उन्हें लकवा मार गया. मनीष की पढ़ाई छूट गई. वह पिताजी की दिनरात सेवा करने में जुट गया. पिताजी कुछ ठीक हुए तो मनीष ने पास की एक फैक्टरी में मजदूरी करनी शुरू कर दी.

लकवे के एक वर्ष पश्चात पिताजी को हिस्टीरिया हो गया. उसी बीमारी के दौरान वे चल बसे. मनीष के चारों ओर विपत्तियां ही विपत्तियां थीं और विपत्तियों में भैयाभाभी का भयानक चेहरा उस के कोमल हृदय पर पीड़ाओं का अंबार लगा देता. उस ने शहर छोड़ देना ही उचित समझा.

एक दिन चुपके से वह मुंबई की ओर प्रस्थान कर गया. वहां कुछ हमदर्द लोगों ने उसे ट्यूशन पढ़ाने के लिए कई बच्चे दिला दिए. मनीष ने ट्यूशन करते हुए अपनी पढ़ाई भी जारी रखी. प्रथम श्रेणी में पास होने से उसे मैडिकल कालेज में प्रवेश मिल गया. उसे स्कौलरशिप भी मिलती थी.

फिर एक दिन मनीष डाक्टर बन गया. दिन गुजरते रहे. मनीष ने विवाह नहीं किया. वह डाक्टर से सर्जन बन गया. फिर उस का तबादला नागपुर हो गया यानी वह फिर से अपने शहर में आ गया.

मनीष ने भैया व भाभी से फिर से संबंध जोड़ने के प्रयास किए थे किंतु वह असफल रहा था. भाभी घायल नागिन की तरह उस से अभी भी चिढ़ी हुई थीं. उन्हें दुख था तो यह कि उन्होंने जिस परिवार को उजाड़ने का प्रण लिया था, उसी परिवार का एक सदस्य पनपने लगा था.

मनीष को भाभी के इस प्रण की भनक लग गई थी किंतु इस से उसे कोई दुख नहीं हुआ. उस के चेहरे पर हमेशा चेरी के फूल की हंसी थिरकती रहती थी. उस ने सोच रखा था कि भाभी के मन में उगे जहर के पौधे को वह एक दिन जरूर धराशायी कर देगा.

मनीष को संयोग से मौका मिल भी गया था. भाभी के पेट में एक बड़ा फोड़ा हो गया था. उस फोड़े को समाप्त करने के लिए औपरेशन जरूरी था. यह संयोग की ही बात थी कि वह औपरेशन मनीष को ही करना पड़ा.

वह जानता था कि यदि औपरेशन असफल रहा तो भैया जरूर उस पर हत्या का आरोप लगा देंगे. वह अपने कमरे में बैठा इसी बात को बारबार सोच रहा था.

‘अनुपमा’ को 22 साल के करियर में पहली बार मिला बड़ा अवॉर्ड, एक्ट्रेस की आंखों में आ गए आंसू

टीवी सीरियल ‘अनुपमा’ की लीड एक्ट्रेस रुपाली गांगुली (Rupali Ganguly) किसी पहचान की मोहताज नहीं हैं. वह अपने किरदार से दर्शकों के दिल पर राज करती हैं. एक्ट्रेस घर-घर में अनुपमा के नाम से पॉपुलर है. रुपाली गांगुली टीवी शो अनुपमा (Anupamaa) में अपने एक्टिंग की वजह से दर्शकों की मोस्ट फेवरेट टीवी एक्ट्रेस बन चुकी हैं

हाल ही में रुपाली गांगुली को दादा साहब इंटरनेशनल फिल्म फेस्टिवल अवॉर्ड्स 2022 से सम्मानित किया गया है. जी हां, इस अवॉर्ड शो में अनुपमा को टेलीविजन सीरीज ऑफ द ईयर अवॉर्ड से नवाजा गया है. तो वहीं अनुपमा को मोस्ट प्रॉमिसिंग एक्ट्रेस इन टेलीविजन सीरीज अवॉर्ड मिला.

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बता दें कि ये अनुपमा के करियर का अब तक का पहला बड़ा अवॉर्ड है. अनुपमा ने खुद इस बात का खुलासा किया है. अनुपमा ने दादा साहब फालके अवॉर्ड जीतने के बाद एक इंटरव्यू में कहा कि मेरे 22 साल के करियर में ये मेरा पहला बड़ा अवॉर्ड है. जो मुझे अब मिला. कई लोगों को इस बात पर विश्वास नहीं हो रहा था.

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एक्ट्रेस ने कहा कि मैं आपको बता नहीं सकती हूं कि मुझे कितनी खुशी हो रही है. अनुपमा काफी इमोशनल भी हो गईं और उनकी आंखों में आंसू भी आ गए है. रुपाली गांगुली ने अपनी खुशी जाहिर करते बताया कि मेकर्स और लेकर मेरी फैमिली ने मुझे यहां तक पहुंचाने में बहुत सपोर्ट किया है. फैन्स भी हमें मोटिवेट करते हैं. मुझे विश्वास नहीं हो रहा है लगता है ये सपना है और मैं इससे कभी नहीं जागना चाहती हूं.

 

बता दें कि साल रुपाली गांगुली ‘अनुपमा’ के नाम से काफी फेमस हैं. इस शो का टीआरपी लिस्ट में लगातार दबदबा देखने को मिल रहा है. शो की कहानी में  दिखाया जा रहा है कि अनुपमा भी अपने जिंदगी में आगे बढ़ रही है. उसने अनुज से प्यार का इजहार कर दिया है तो वहीं वनराज अनुपमा के रास्ते में विलेन बनकर खड़ा रहेगा.

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Kumkum Bhagya की ‘रिया मेहरा’ ने मां बनने से पहले छोड़ा शो, टीम ने दी शानदार फेयरवेल पार्टी

टीवी सीरियल  ‘कुमकुम भाग्य’ (Kumkum Bhagya) की रिया मेहरा यानी पूजा बनर्जी ने शो को अलविदा कह दिया है. शो की टीम ने एक्ट्रेस को शानदार फेयरवेल पार्टी दी है. जी हां, पूजा बनर्जी की फेयरवेल की फोटोज सोशल मीडिया पर सामने आया है.

कुछ समय पहले ही ‘कुमकुम भाग्य’ की एक्ट्रेस ने अपनी प्रेग्नेंसी का ऐलान किया है. तो अब पूजा बनर्जी ने ‘कुमकुम भाग्य’ को अलविदा कहने का फैसला लिया है. बीते दिन सीरियल ‘कुमकुम भाग्य’ के सेट पर पूजा बनर्जी का आखिरी दिन था.

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रिया मेहरा ने अपनी शूटिंग के आखिरी दिन की फोटोज सोशल मीडिया पर फैंस के साथ शेयर की हैं. इस पार्टी में शो के कई सितारे दिखाई दे रहे हैं. एक्ट्रेस ने सेट पर पूरी टीम के साथ खूब मस्ती की है और एक से बढ़कर एक पोज दिए.

 

एक्ट्रेस सोशल मीडिया पर एक वीडियो शेयर कर इस बात की जानकारी दी है कि उन्होंने शो को अलविदा कह दिया है. वीडियो में पूजा बनर्जी ने ये बात साफ-साफ कह दी है कि उन्होंने सीरियल ‘कुमकुम भाग्य’ की शूटिंग खत्म कर ली है. उन्होंने फैंस से ये भी कहा है कि वो अपनी मैटरनिटी लीव खत्म होते ही शो में दोबारा वापसी करेंगी.

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सीरियल ‘कुमकुम भाग्य’ में अब पूजा बनर्जी नहीं नजर आएंगी. आपको बता दें कि पूजा बनर्जी से पहले शिखा सिंह ने भी प्रेग्नेंसी के दौरान ‘कुमकुम भाग्य’ को छोड़ दिया था. अब तक ये एक्ट्रेस भी शो में वापसी नहीं की है.

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परजीवी लोगों की एक नई किस्म वायरस की तरह फैल रही है!

समाज के 2 वर्ग हमेशा से महलनुमा मकानों से घर से निकले बिना मोटी कमाई करते रहे हैं. राजा और उस के दरबारी व पंडित व धर्म के सौदागर हमेशा ही बिना जमीनी मेहनत के सुख की ङ्क्षजदगी जीते रहे हैं. राजा कहता रहा कि उस ने या उस के पुरखों ने कभी लड़ाई में भाग लिया था इस के लिए उसे आराम से धूप, आंधी, बर्फ में मेहनत के काम से छूट मिली हुई है और यही पंडितपादरी कहता रहा है कि उसे भगवान ने नियुक्त किया है वह समाज को भगवान तक भलीभांति ले जाए इसलिए घर में बैठ कर खाने का हकदार है.

अब इस में एक नया वर्ग घुस गया है. टैक सैवी मैनेजरों का जो वर्कफ्रौम होम के सहारे टैक्नोलोजी का लाभ उठा कर घर बैठ कर ठाठ से कमा सकते है और कीड़ेमकोड़ों की तरह जमीन पर, खेतों में, कारखानों में, फौज में, पुलिस में, सेवाओं में काम करने को मजबूर हैं. आज पूरी चर्चा वर्क फ्रौम होम को ही रही है, इस के गुणगान गाए जा रहे हैं.

यह उन खास लोगों के लिए किया जा रहा है जिन्हे टैक्नोलौजी के बावजूद फिजिकल मीङ्क्षटगों में पहुंचने के लिए घंटों ट्रैफिक में फंसना होता था, मैट्रो या बसों में दफ्तरों में पहुंचना होता था. दिन के 24 घंटों में से 6-7 घंटे आनेजाने या दफ्तरों में इधर से उधर चलने में मजबूर होना पड़ता था. अब इस वर्ग के लिए कोविड 19 एक खास उपहार छोड़ गया है कि हर रोज दफ्तर आने की जरूरत क्या है, घर पर रहो, क्लब में रहो, रेस्ट्राओं में रहो, घूमोफिरो और फिर भी दफ्तर का काम करते रहो और कमाई करते रहो. यह ठीक है कि इन लोगों की उत्पादकता घटी नहीं है, उलटे हो सकता है बढ़ गई हो, पर जो भेद व्हाइट कौलर वर्कर और ब्लूकौलर वर्कर में पहले था अब और बढ़ गया है, उन की दूरिया बढ़ गई हैं.

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कोविड 19 ने तो कोई वर्ग नहीं रखा था पर आखिर ऐसा क्या हुआ कि दुनिया की सारी सरकारों ने लौकडाउन कर दिए पर कारखाने चलते रहने दिए, बिजली आती रही. खानेपीने पहनने का सामान बनता रहा, मनोरंजन का क्षेत्र सिनेमा से हट कर घर की स्क्रीन पर आ गया पर चालू रहा.

यह सब इस इंक्रास्ट्क्चर के कारण हुआ जिसे चलाने के लिए कोविड 19 के संपर्क में आ सकने वाले वर्करों को घरों से निकलना पड़ा. अस्पताल चले, एंबूलेंस चलीं, एंबूलेंस बनी, दवा कंपनियों ने रातदिन काम वर्करों की सहायता से किया, फौज ने काम किया, पुलिस वाले कदमकदम पर बाहर निकले. फिर वर्क फ्रौम होम का गुणगान करने वालों में कौन से ऐसी छूत लगी थी कि वे दफ्तरों में जाते तो कोविड 19 भयंकर हो जाता.

यह एक साजिश सा लगने लगा है कि राजाओं और धर्म बेचने वालों की तरह आज के नए हथियार, कंप्यूटर टैक्नोलौजी वालों ने अपने लिए खास जगह बना ली कि वे आलीशान मकानों में बने रहेंगे, आम लोग सडक़ों की धूल खाते रहेंगे.

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परजीवी लोगों की एक नई किस्म वायरस की तरह फैल गई है जो वर्क फ्रौम होम का लाभ उठा रही है और ढाई वर्क औन रोट्स एंड फ्रैक्ट्रीज को और ज्यादा चूस पा रही है. इतनी गुलामी कामगारों ने इतिहास में पहले कभी नहीं देखी होगी क्योंकि पहले मुखियाओं को मकान जरूर मिलता था पर प्रकृति की मार बारबार सहनी पड़ती थी. अब उन की ईजाद पर उसे इस्तेमाल कर सकने वाली लायक बनाने वाली गुलामों की गिनती भी बढ़ गई और उन पर काम का बोझ भी.

चक्कर हारमोंस का- भाग 1: मंजु के पति का सीमा के साथ चालू था रोमांस

कालेज की सहेली अनिता से करीब 8 साल बाद अचानक बाजार में मुलाकात हुई तो हम दोनों ही एकदूसरे को देख कर चौंकीं.

‘‘अंजु, तू कितनी मोटी हो गई है,’’ अनिता ने मेरे मोटे पेट में उंगली घुसा कर मुझे छेड़ा.

‘‘और तुम क्या मौडलिंग करती हो? बड़ी शानदार फिगर मैंटेन कर रखी है तुम ने, यार?’’ मैं ने दिल से उस के आकर्षक व्यक्तित्व की प्रशंसा की.

‘‘थैंक्यू, पर तुम ने अपना वजन इतना ज्यादा…’’

‘‘अरे, अब 2 बच्चों की मां बन चुकी हूं मोटापा तो बढ़ेगा ही. अच्छा, यह बता कि तुम दिल्ली में क्या कर रही हो?’’ मैं ने विषय बदला.

‘‘मैं ने कुछ हफ्ते पहले ही नई कंपनी में नौकरी शुरू की है. मेरे पति का यहां ट्रांसफर हो जाने के कारण मुझे भी अपनी अच्छीखासी नौकरी छोड़ कर मुंबई से दिल्ली आना पड़ा. अभी तक यहां बड़ा अकेलापन महसूस हो रहा था पर अब तुम मिल गई हो तो मन लग जाएगा.’’

‘‘मेरा घर पास ही है. चल, वहीं बैठ कर गपशप करती हैं.’’

‘‘आज एक जरूरी काम है, पर बहुत जल्दी तुम्हारे घर पति व बेटे के साथ आऊंगी. मेरा कार्ड रख लो और तुम्हारा फोन नंबर मैं सेव कर लेती हूं,’’ और फिर उस ने अपने पर्स से कार्ड निकाल कर मुझे पकड़ा दिया. मैं ने सरसरी निगाह कार्ड पर डाली तो उस की कंपनी का नाम पढ़ कर चौंक उठी, ‘‘अरे, तुम तो उसी कंपनी में काम करती हो जिस में मेरे पति आलोक करते हैं.’’

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‘‘कहीं वे आलोक तो तेरे पति नहीं जो सीनियर सेल्स मैनेजर हैं?’’

‘‘वही मेरे पति हैं…क्या तुम उन से परिचित हो?’’

‘‘बहुत अच्छी तरह से…मैं उन्हें शायद जरूरत से कुछ ज्यादा ही अच्छी तरह से जानती हूं.’’ ‘‘इस आखिरी वाक्य को बोलते हुए तुम ने अजीब सा मुंह क्यों बनाया अनिता?’’ मैं ने माथे में बल डाल कर पूछा तो वह कुछ परेशान सी नजर आने लगी. कुछ पलों के सोचविचार के बाद अनिता ने गहरी सांस छोड़ी और फिर कहा, ‘‘चल, तेरे घर में बैठ कर बातें करते हैं. अपना जरूरी काम फिर कभी कर लूंगी.’’

‘‘हांहां, चल, यह तो बता कि अचानक इतनी परेशान क्यों हो उठी?’’

‘‘अंजु, कालेज में तुम्हारी और मेरी बहुत अच्छी दोस्ती थी न?’’

‘‘हां, यह तो बिलकुल सही बात है.’’

‘‘उसी दोस्ती को ध्यान में रखते हुए मैं तुम्हें तुम्हारे पति आलोक के बारे में एक बात बताना अपना फर्ज समझती हूं…तुम सीमा से परिचित हो?’’

‘‘नहीं, कौन है वह?’’

‘‘तुम्हारे पति की ताजाताजा बनी प्रेमिका माई डियर फ्रैंड. इस बात को सारा औफिस जानता है…तुम क्यों नहीं जानती हो, अंजु?’’

‘‘तुम्हें जरूर कोई गलतफहमी हो रही है, अनिता. वे मुझे और अपनी दोनों बेटियों से बहुत प्यार करते हैं. बहुत अच्छे पति और पिता हैं वे…उन का किसी औरत से गलत संबंध कभी हो ही नहीं सकता,’’ मैं ने रोंआसी सी हो कर कुछ गलत नहीं कहा था, क्योंकि सचमुच मुझे अपने पति की वफादारी पर पूरा विश्वास था.

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‘‘मैडम, यह सीमा कोई औरत नहीं, बल्कि 25-26 साल की बेहद सुंदर व बहुत ही महत्त्वाकांक्षी लड़की है और मैं जो बता रही हूं वह बिलकुल सच है. अब आंसू बहा कर यहां तमाशा मत बनना, अंजु. हर समस्या को समझदारी से हल किया जा सकता है. चल,’’ कह वह मेरा हाथ मजबूती से पकड़ कर मुझे अपनी कार की तरफ ले चली. उस शाम जब आलोक औफिस से घर लौटे तो मेरी दोनों बेटियां टीवी देखना छोड़ कर उन से लिपट गईं. करीब 10 मिनट तक वे दोनों से हंसहंस कर बातें करते रहे. मैं ने उन्हें पानी का गिलास पकड़ाया तो मुसकरा कर मुझे आंखों से धन्यवाद कहा. फिर कपड़े बदल कर अखबार पढ़ने बैठ गए. मैं कनखियों से उन्हें बड़े ध्यान से देखने लगी. उन का व्यक्तित्व बढ़ती उम्र के साथ ज्यादा आकर्षक हो गया था. नियमित व्यायाम, अच्छा पद और मोटा बैंक बैलेंस पुरुषों की उम्र को कम दिखा सकते हैं. उन का व्यवहार रोज के जैसा ही था पर उस दिन मुझे उन के बारे में अनिता से जो नई  जानकारी मिली थी, उस की रोशनी में वे मुझे अजनबी से दिख रहे थे.

‘‘मैं भी कितनी बेवकूफ हूं जो पहचान नहीं सकी कि इन की जिंदगी में कोई दूसरी औरत आ गई है. अब कहां ये मुझे प्यार से देखते और छेड़ते हैं? एक जमाना बीत गया है मुझे इन के मुंह से अपनी तारीफ सुने हुए. मैं बच्चों को संभालने में लगी रही और ये पिछले 2 महीनों से इस सीमा के साथ फिल्में देख रहे हैं, उसे लंचडिनर करा रहे हैं. क्या और सब कुछ भी चल रहा है इन के बीच?’’ इस तरह की बातें सोचते हुए मैं जबरदस्त टैंशन का शिकार बनती जा रही थी. अनिता ने मुझे इन के सामने रोने या झगड़ा करने से मना किया था. उस का कहना था कि मैं ने अगर ये 2 काम किए तो आलोक मुझ से खफा हो कर सीमा के और ज्यादा नजदीक चले जाएंगे. रात को उन की बगल में लेट कर मैं ने उन्हें एक मनघड़ंत सपना संजीदा हो कर सुनाया, ‘‘आज दोपहर को मेरी कुछ देर के लिए आंख लगी तो मैं ने जो सपना देखा उस में मैं मर गई थी और बहुत भीड़ मेरी अर्थी केपीछे चल रही थी,’’ पूरी कोशिश कर के मैं ने अपनी आंखों में चिंता के भाव पैदा कर लिए थे.

गुरू घंटाल: मां अनीता के अंधविश्वास ने बदल दी बेटी नीति की जिंदगी

‘‘मैं कुछ नहीं जानती. आज मुझे आश्रम जाना है. नाश्ता बना दिया है. दिन का खाना औफिस की कैंटीन में कर लेना या फिर गुरुजी के आश्रम में लंगर करने आ जाना,’’ अनीता ड्रैसिंगटेबल के सामने तैयार होते हुए बोली.

‘‘आज मेरी मीटिंग है. इतना समय नहीं होगा कि मैं लंच के लिए कहीं जा सकूं. मीटिंग कितनी देर चलेगी, कुछ पता नहीं,’’ विनय परेशान होते हुए बोला.

45 वर्षीय अनीता कर्कश स्वभाव की महिला है. हर वक्त लड़ने के मूड में रहती है. फिर चाहे घर हो या बाहर. लड़ने का कोई मौका नहीं चूकती. पति विनय और बेटी नीति उस के सामने चुप रहने में ही अपनी भलाई समझते हैं. पड़ोसी भी उसे ज्यादा मुंह नहीं लगाते हैं. पूरी कालोनी में लड़ाकिन के नाम से बदनाम है. घर में कोई महरी नहीं टिक पाती. कोई न कोई इलजाम लगा कर महीने 2 महीने में भगा देगी. साल भर बाद फिर कोई नई मिली तो बहलाफुसला कर काम पर रख लेगी और फिर 2-4 महीनों में शक की बिना पर उसे बाहर का रास्ता दिखा देगी. ऐसे एक से बढ़ कर एक विभेष गुण भरे हैं उस में. पैसों को दांत से पकड़े रहती है. क्या मजाल पति की जो उस से पूछे बिना 1 रुपया भी खर्च ले. सुबह औफिस जाते समय गिन कर रुपए देगी और फिर शाम को उन का पूरा हिसाब लेगी. पति सरकारी अफसर है. मगर घर में उस की चपरासी की भी हैसियत नहीं है. पता नहीं अपने शौक कैसे पूरे करता है. शायद कुछ ऊपर की कमाई हो जाती होगी या फिर जिन का औफिस में उस से काम पड़ता होगा वही उस के शौक पूरे कर देते होंगे, क्योंकि जब विनय देर रात फाइवस्टार होटल में डिनर कर घर लौटता है तो अनीता अगली सुबह ही मेरे फ्लैट पर आ जाएगी अपना रोना रोने. बगल के फ्लैट में ही तो रहती है. देर रात की उठापटक से आधी कहानी तो मुझे वैसे ही पता चल जाती है और आधी का रोना वह मुझे सुबहसुबह खुद सुना जाती.

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उस के पति से मैं इसलिए ज्यादा बात नहीं करती चूंकि मुझे पता है मेरे चरित्र पर भी कीचड़ उछालते उसे देर नहीं लगेगी. जो अपने पति पर विश्वास नहीं करती है वह भला मुझ पर क्या करेगी? अकसर मेरे से आ कर यही कहती है कि लगता है मेरे आदमी का अपनी सैक्रेटरी से चक्कर है. किसी दिन अचानक औफिस पहुंच कर रंगे हाथों पकड़ूंगी.

‘‘पर औफिस में वे 2 ही तो केवल काम नहीं करते, जो रंगरलियां मनाएंगे अनीता? वहां पूरा स्टाफ रहता है,’’ मैं ने कहा.

‘‘वह तो मुझे पता है, लेकिन उस का कैबिन अलग है. वहां सोफा भी रखा है,’’ अनीता आंखें नचाते हुए बोली.

‘‘तो क्या सोफा इसीलिए रखवाया है?’’ मैं अपनी हंसी नहीं रोक पाई.

‘‘हंस ले खूब हंस ले, क्योंकि तेरा मियां, तो नाक की सीध में चलता है न… अगर मेरे आदमी की तरह टेढ़े दिमाग का मिला होता तो मैं भी देखती कि तू कितना हंस पाती,’’ अनीता बिफर पड़ी.

मैं तो अपने पति से यह कभी नहीं पूछती हूं कि उन्होंने दिन भर में किसकिस से मुलाकातें कीं? मुझे विश्वास है कि दिन भर के काम के तनाव के बीच रोमांस का समय कहां है उन के पास और फिर मुझ से ही पीछा नहीं छूटता है तो दूसरों के पास कैसे जा पाएंगे… मैं तो उलटे उन के तनाव को कम करने की कोशिश करती हूं.’’

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‘‘मेरा आदमी तो हमेशा दूसरी औरतों की ही तारीफ करता रहता है. कहता है 102 वाली की ड्रैस सैंस कितनी अच्छी है, 108 वाली के बाल कितने सुंदर हैं, 105 वाली की फिगर कितनी सैक्सी है. अगर उन सब को अपने आदमी की बातें बता दूं तो इतने जूते पड़ेंगे कि सारे फ्लैट्स नंबर भूल जाएगा.’’

‘‘अनीता वे चाहते होंगे कि जब वे औफिस से लौटें तो सजीधजी बीवी घर का दरवाजा मुसकराते हुए खोले,’’ मैं ने समझाने की कोशिश की.

‘‘घर के काम क्या उस के रिश्तेदार करेंगे? पूरे घर की सफाई, खाना, बरतन करूं या फिर सजधज कर बैठक में टंग जाऊं?’’ अनीता हर बात को उलटा ही लेती.

‘‘तो महरी रख लो. क्यों सारा दिन खटती रहती हो… कुछ अपना भी खयाल कर लिया करो.’’

‘‘इस का तो महरी से भी चक्कर चल जाता है. उस से भी न जाने क्याक्या बातें करता रहता है. क्या पता चोरीछिपे पैसे भी पकड़ा देता हो. मैं तो तब तक स्नान भी नहीं कर पाती हूं, जब तक वह औफिस नहीं चला जाता,’’ अनीता ने बताया.

सुन कर मुझे बड़ा आश्चर्य हुआ. पूछा, ‘‘क्यों स्नान नहीं कर पाती?’’

‘‘अरे, तुम्हें पता तो है कि बेटी तो सुबह ही कालेज चली जाती है, फिर घर में हम दोनों ही रहते हैं. अगर मैं भी स्नानघर में चली गई तो इसे खुली छूट मिल जाएगी उस के साथ…’’ अनीता ने अपने शक का बखान किया.

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अपने शक के चलते अनीता घर को नर्क बनाए रहती. इधर 5-6 सालों से गुरुजी की तरफ झुकाव तेजी से बढ़ गया था उस का. कभी अभिमंत्रित जल ला कर पति को पिलाती, तो कभी प्रसाद ला कर देती. बेटी भी मां के नक्शेकदम पर चलने लगी थी. वह भी पापा से कटने लगी थी और हर बृहस्पतिवार और रविवार को आश्रम चल देती. बेटी गाड़ी ड्राइव कर लेती तो अब आनेजाने में आसानी हो गई थी उन्हें. बेटी का एमबीए कंप्लीट हो गया था. गुरुजी की कृपा से उन के एक चेले ने अपने कालेज में नीति को नौकरी दिला दी. तब से मांबेटी तो गुरुजी की चरणरज पीने को तैयार रहने लगीं. पति को भी जबतब भोज, महाभोज के नाम पर आश्रम घसीट ही ले जातीं. अपनी मां को विनय गांव छोड़ आया था. 3-4 साल में 1-2 महीने उन के पास रहतीं तो घर में महाभारत चरम पर होता. इन सब से ऊब कर विनय मां को वापस गांव छोड़ आता. विनय के अन्य किसी घर वाले की हिम्मत ही न होती उस के घर आने की. अत: सब से कट कर रह गया था विनय.

एक दिन मुझे भी अपने संग आश्रम घसीट ले गई, ‘‘चल, तुझे आज नीति के होने वाले पति से मिलवाने ले चलती हूं. गुरुजी की बड़ी कृपा है. बड़े होनहार युवक से हमारी बेटी का रिश्ता तय करवा दिया है. तू तो जानती है इस कालोनी में सब मुझ से कितने जलते हैं. तू शादी होने तक किसी को रिश्ते की बात मत बताना,’’ अनीता मानो मुझे बता कर कोई एहसान कर रही हो.

‘‘चलो, चलते हैं,’’ मैं ने मन की मन सोचा कि अगर अब जाने से मना किया तो मेरे लिए भी यही कहेगी कि जलन के मारे नहीं गई.

हम गाड़ी से आश्रम पहुंच गए. आश्रम 8-10 एकड़ में फैला था. चारों तरफ फैली हरियाली आंखों को सुकून देने वाली थी. गुरुजी का मुख्य भवन थोड़ा अलग हट कर बना था. वहां जाने की अनुमति गिनेचुने लोगों को ही थी.

मैं ने अनीता से कहा, ‘‘तुम भीतर जा कर दर्शन करो. मैं ताजा हवा का आनंद ले रही हूं.’’

मगर वह न मानी. अपने साथ मुझे भी भीतर घसीट ले गई. अंदर 2-3 जगह तो हमारी ऐसी तलाशी ली गई मानो हम देश के किसी गोपनीय विभाग में प्रवेश कर रहे हों. बाद में एक बड़े हौल में पहुंचे जहां करीने से कुरसियां लगी थीं. अनीता झट आगे बढ़ पहली पंक्ति में बैठ गई और अपनी बगल के छोटे बच्चे को उठा कर मुझे बैठने का इशारा किया. बच्चा अपनी मां की गोद में बैठ गया. मैं चुपचाप अनीता की बगल में बैठ गई.

थोड़ी देर बाद सामने बने ऊंचे चबूतरे में लगे आसन पर गुरु का आगमन हुआ. जयजयकार और पुष्पवर्षा होने लगी. गुरु 50-55 वर्ष की उम्र के लग रहे थे. गेरुआ रंग का कुरता और उसी रंग की लुंगी, गले और हाथों में रुद्राक्ष की मालाएं, आधे से ज्यादा माथे पर पीला चंदन का टीका और उस के ऊपर लाल टीका, दाड़ीमूंछ और सिर के बाल सभी सफाचट. मैं ने मन ही मन सोचा सफेद हो गए होंगे तो सब साफ कर दिए. गोरे गोल मुंह पर छोटीछोटी मिचमिचाती आंखें और मोटेमोटे होंठों की जुगलबंदी देखने लायक थी. वे क्या बोल रहे थे और क्या नहीं, मैं ने ध्यान नहीं दिया. मेरा ध्यान तो उन की मुखमुद्रा के बनतेबिगड़ते रूप पर था.

अचानक अनीता ने मेरा हाथ दबाया तो मैं वर्तमान में लौटी. पूरा हौल खाली हो चुका था. लोग 1-1 कर गुरुजी के आसन के पास जा कर अपना दुखड़ा रोते. कुछ सलाहमशवरा होता और गुरुजी किसी का माथा चूम कर तो किसी के हाथ चूम कर आश्वस्त कर रहे थे. वह कृतज्ञ हो बाहर चला जाता. अनीता सब के जाने के इंतजार में थी. आखिर में उठी, मुझे भी खींचा, पर मैं जड़वत हो गई कि कोई पराया पुरुष मेरा स्पर्श करे और वह भी मेरी मरजी के बिना, मुझे गवारा न था. गुस्से से मेरा हाथ झटक गुरुजी के आसन के नीचे बैठ गई. गुरुजी के इशारे पर पीछे पंक्ति में बैठा नवयुवक भी आ कर गुरुजी के चरणों में बैठ गया. मैं समझ गई कि यही है अनीता का होने वाला दामाद. देखने में युवक लंबा, गोराचिट्टा और अच्छे स्वास्थ्य का मालिक लग रहा था. थोड़ी देर की खुसुरफुसुर के बाद गुरुजी ने उन दोनों को अपना चुंबनरूपी आशीर्वाद दिया और उठ कर चले गए. अब हौल में हम 3 ही थे. युवक का नाम अभिषेक था. वह काफी हंसमुख व मिलनसार लग रहा था. अनीता तो उसे ऐसे गले लगा रही थी मानो कोई खजाना हाथ लग गया हो. लौटते समय भी गाड़ी में अभिषेक का गुणगान करती रही. बोली, ‘‘देखा कितना सुदर्शन है मेरा दामाद. मेरी ससुराल वालों के कलेजे में तो इसे देख कर सांप लोटने लगेंगे. आज तक परिवार में इतना सुंदर दामाद किसी का भी नहीं आया है. मेरे गुरुजी का मजाक उड़ाते थे. अब जब शादी में आएंगे तो मुझ से गुरुजी का पता पूछते फिरेंगे. मैं क्यों मिलवाऊं सब को गुरुजी से… इतने सालों से आश्रम में सेवा कर रही हूं. उसी का फल मिला है मुझे. तुझे तो मिलवा दिया, क्योंकि एक तू ही तो मेरे काम आती है. अब शादी में भी तुझे ही सारी जिम्मेदारी निभानी होगी. मुझे किसी पर विश्वास नहीं है,’’ और भी न जाने क्याक्या बड़बड़ करती रही.

‘‘तुम लोग तो कुलीन ब्राह्मण हो, क्या ये भी ब्राह्मण हैं?’’ मैं ने पूछा.

‘‘अरे देखा नहीं, कितना सुदर्शन है. हां, हमारी जातिबिरादरी का नहीं है… मगर हिमाचल प्रदेश के कुलीन घराने का है. गुरुजी के तो पूरे देश में आश्रम हैं और शिष्य भी.’’

‘‘तुम कब मिली उस के घर वालों से?’’ मैं ने जिज्ञासा प्रकट की.

‘‘इतनी जल्दी क्या है… अभी से मिलूंगी, तो वही लेनदेन शुरू करना पड़ेगा तीजत्योहार का… लड़कालड़की राजी हैं… वह अब घर भी आया करेगा. गुरुजी का कहना है कि घर आनेजाने से उसे भी हमें समझने का मौका मिलेगा और हमें उसे,’’ अनीता ने कहा.

मैं ने कुछ बोलना उचित न समझा, क्योंकि वह कौन सा मेरे कहे अनुसार कुछ करने वाली थी.

कुछ महीनों से मैं ने नीति और अभिषेक को कई बार साथ आतेजाते देखा. अनीता ने बताया था कि वह नियमित आश्रम जाता है तो नीति को भी अपने साथ ले जाता है. गुरुजी दोनों से बड़े खुश हैं. फिर अचानक मांबेटी लापता हो गईं. जब लौटीं तो अनीता की बेटी की गोद में बच्चा था. पूरी कालोनी में खबर फैला दी कि दामाद विदेश चला गया है. हम बेटी की शादी हिमाचल जा कर कर के आए हैं. किसी को यह बात हजम नहीं हो रही थी. मगर अनीता के मुंह लगने की किसी की हिम्मत नहीं थी. बेटी घर से कम ही निकलती.

मैं ने उस के बच्चे के लिए कपड़े, खिलौने लिए और मिलने चल दी. मुझे देख कर अनीता शांत बैठी रही. फिर मैं ने ही चुप्पी तोड़ी, ‘‘कोई बात नहीं अनीता, बच्चों से गलती हो ही जाती है… तू ने दोनों की झटपट शादी करा कर ठीक ही किया… जरूरी थोड़े है कि सारे रिश्तेदारों को बुलाओ.’’

‘‘हां, नजर लगा दी लोगों ने… मेरा बड़ा अरमान था कि इस की शादी धूमधाम से करूंगी, मगर सारे अरमान दिल में ही रह गए,’’ अनीता मायूसी से बोली.

‘‘कोई बात नहीं, अभिषेक जब वापस आएगा तो धूमधाम से बच्चे का जन्मोत्सव मना लेना… सब के मुंह भी बंद हो जाएंगे और तुम्हारे अरमान भी पूरे हो जाएंगे,’’ मैं ने सांत्वना दी.

‘‘तुझे तो पता है कि वह 2 साल के लिए विदेश जाने वाला था. मैं ने सोचा था कि शादी 2 साल बाद ही करूंगी. मगर जल्दबाजी में करनी पड़ी. विनय भी तो केवल हफ्ते भर के लिए वहां आ पाया. सब कुछ मुझे ही देखना पड़ा. अभी बच्चा छोटा है तो विदेश में कैसे पाल पाएगी. इस की ससुराल वाले तो भेज ही नहीं रहे थे मगर मैं ने वहां भी अपने साथ ही रखा और फिर यहां ले आई. कौन इन ससुराल वालों का विश्वास करे. खानेपहनने को दें न दें. पति जो साथ में नहीं है,’’ मैं अनीता के स्वभाव से भलीभांति परिचित थी, विश्वास तो उसे अपनी सालों पुरानी ससुराल पर भी नहीं था तो बेटी की नईनवेली ससुराल की तो बात ही दूर थी.

मैं ने माहौल हलकाफुलका करने के उद्देश्य से कहा, ‘‘अरे भई, नन्हेमुन्ने का मुंह तो दिखाओ… मैं आज तुम से नहीं, उस से मिलने आई हूं.’’

‘‘बेटी की तबीयत ठीक नहीं है. वह अभी दवा खा कर लेटी है. मैं मुन्ने को यहीं बैठक में उठा लाती हूं,’’ और मेरे जवाब की प्रतीक्षा किए बगैर तेजी से उठ कर चल दी.

गोराचिट्टा, गोलमटोल, शिशु को उस ने मेरी गोद में डाल दिया. उसे देखते ही मेरे मुख से निकल गया, ‘‘बिलकुल अपने बाप पर गया है. नीति का रंग तो थोड़ा दबा है. इसे देखो कैसा उजलाउजला है. बाप की तरह ही लंबाचौड़ा निकलेगा,’’ मैं ने बच्चे को प्यार करते हुए कहा.

मेरी बातों से अनीता खुश हो कर बोली, ‘‘तू इसे संभाल मैं तेरे लिए चाय बना कर लाती हूं.’’

‘‘सुन, चाय की जरूरत नहीं है. तू बैठ न थोड़ी देर,’’ मैं ने कहा.

मगर अनीता नहीं मानी. बोली, ‘‘अरे नाती की मिठाई खिलाए बगैर थोड़े न जाने दूंगी.’’

फिर थोड़ी ही देर में चाय, मिठाई की ट्रे सजाए अनीता आते ही बोली, ‘‘इन कालोनी वालों के मुंह कैसे बंद करूं? अभिषेक सालछह महीने से पहले नहीं आने वाला.’’

‘‘तू एक छोटा सा गैटटूगैदर कर सभी को चायनाश्ता करा कर मुंह बंद कर दे. इस महीने का दूसरा शनिवार कैसा रहेगा?’’ मैं ने सुझाव दिया.

अपने स्वभाव के विपरीत जा कर उस ने उसे मान लिया, पर फिर अचानक बोली, ‘‘वैसे इन का ट्रांसफर दिल्ली होने वाला है… बिना बात इन लोगों पर क्यों खर्च करूं?’’

‘‘जैसा तुम्हें उचित लगे वैसा ही करो,’’ मैं ने कहा.

तभी अचानक बच्चा कुनमुनाया, ‘‘लगता है कुछ गड़बड़ की है इस ने… इस का डायपर बदलना पड़ेगा,’’ मैं ने अपनी बगल में सोए शिशु पर एक नजर डाल कर कहा.

अनीता डायपर लेने गई, तो मैं शिशु को निहारने लगी. अचानक एक झटका लगा मुझे. शिशु अपनी आंखें और होंठ एकसाथ चलाने लगा तो मेरी आंखों के सामने अचानक उस तथाकथित गुरुजी का चेहरा नाचने लगा. मेरा सिर घूमने लगा. वहां एक क्षण भी टिकना कठिन लगने लगा. फिर जैसे ही अनीता आई मैं बोल पड़ी, ‘‘अब मैं चलती हूं… लगता है बीपी लो हो रहा है मेरा.’’

‘‘फिर आना… थोड़े दिन ही हैं अब यहां,’’ अनीता ने कहा तो मैं ने सहमति में सिर हिला दिया और फिर कुछ अनुत्तरित सवालों के साथ अपने घर आ गई. अभिषेक से शादी हुई भी कि नहीं? शिशु का बाप कौन है? अगर आननफानन में भी शादी की तो उस के फोटोग्राफ्स कहां हैं? फिर अचानक तबादला क्यों ले कर जा रहे हैं? नीति क्यों नहीं लोगों का सामना करना चाहती?

कुछ भी हो इन सब की जड़ गुरु ही है यानी वही गुरू घंटाल. एक सुशिक्षित कन्या का जीवन बरबाद हो गया है. अब यहां से चले भी जाएंगे, तो भी क्या? नीति की जिंदगी में तो पतझड़ का मौसम पसर गया न.

Anupamaa: अनुज से शादी नहीं करेगी अनुपमा? पाखी की पोल खोलेगी बा!

टीवी सीरियल ‘अनुपमा’ (Anupamaa) में इन दिनों फुल ड्रामा दिखाया जा रहा है जिससे दर्शकों कों एंटरटेनमेंट का जबरदस्त तड़का देखने को मिल रहा है. शो में अब तक आपने देखा कि अनुपमा वैलेंटाइन डे के मौके पर अनुज से अपने दिल की बात कह चुकी है. अनुज जान चुका है कि अनुपमा भी उसे बेहद प्यार करती है. शो के आने वाले एपिसोड में खूब धमाल होने वाला है. आइए बताते हैं शो के नए एपिसोड के बारे में.

शो में आप देखेंगे कि अनुपमा शाह हाउस जाएगी. ऐसे में वनराज उसे ताना मारेगा. वह कहेगा कि अनुपमा का बॉयफ्रेंड अब सड़क पर आ गया है. अनुपमा भी चुप नहीं रहेगी. वह भी उसे सुनाएगी. तो दूसरी तरफ बा अनुपमा से कहेगी कि समाज उसे जीने नहीं देगा. अनुपमा को हर जगह ताने सुनने को मिलेगा. बा ये भी कहेगी कि वह इससे बचने के लिए अनुज से शादी कर लें.

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लेकिन अनुपमा बा की बात का जवाब देगी कि वह कहेगी कि समाज के दबाव में आकर अनुपमा शादी नहीं करेगी. अनुपमा के इस बात पर बापूजी भी उसका साथ देंगे. तो दूसरी तरफ वनराज अनुपमा का ये रूप देखकर हैरान हो जाएगा.

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शो में आप ये भी देखेंगे कि पाखी किसी से फोन पर बात करती दिखेगी. दरअसल पाखी किसी लड़के से बात कर रही होगी, जिसे वो मिस यू कहेगी और वैलेंटाइन डे के लिए सॉरी भी बोलेगी. दूसरी तरफ बा चुपके से सारी बातें सुनने की कोशिश करेगी. लेकिन उन्हें कुछ सुनाई नहीं देगा.

 

ऐसे में बा वनराज से कहेगी कि उसे पाखी के लक्षण ठीक नहीं लग रहे क्योंकि वो दिन भर फोन पर बात करती रहती है. बा ये भी कहेगी कि पाखी रोज स्कूल से लेट आती है.

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शो के आने वाले एपिसोड में आप देखेंगे कि पाखी की पोल खुलेगी. इस तरह वनराज अनुपमा को जिम्मेदार ठहरायेगा. अनुपमा भी उसे मुंहतोड़ जवाब देगी. दूसरी तरफ अनुज समर को ब्रेकअप के दर्द से निकालने की कोशिश करेगा.

 

‘कसौटी जिंदगी की’ के ‘अनुराग’ को असल जिंदगी में मिली ‘प्रेरणा’, खुद किया ये खुलासा

स्टार प्लस का मशहूर सीरियल ‘कसौटी जिंदगी की’ (Kasautii Zindagii Kay) के अनुराग और प्रेरणा की लव स्टोरी आपको याद ही होगी. अनुराग यानी सीजेन खान (Cezanne Khan) ने अपने किरदार से घर-घर में मशहूर हुए. अब अनुराग (सीजेन खान) को रियल लाइफ में प्रेरणा मिल गई है. जी हां, सीजेन खान जल्द ही अपनी गर्लफ्रेंड अफशीन के साथ शादी के बंधन में बंधने वाले हैं.

सीजेन खान ने इस बात का खुद खुलासा किया है. एक इंटरव्यू के अनुसार, सीजेन खान ने बताया था कि वह और अफशीन सालों से रिलेशनशिप में हैं और इस साल शादी के बंधन में बंधने की भी प्लान बना रहे हैं.

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रिपोर्ट के मुताबिक सीजेन खान ने लंबे समय से सिंगल होने का कारण भी बताया. उन्होंने बताया कि मैं शादी के लिए कोई जल्दबाजी नहीं करना चाहता था. मैं किसी सिंपल और ईमानदार लड़की की तलाश में था. मैं ऐसी लड़की की भी तलाश कर रहा था, जो संस्कारी और हमारे रिश्ते को मान दे सके. इस तरह मेरी मुलाकात अफशीन से हुई.

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आपको बता दें कि ये कपल तीन साल से एक दूसरे को डेट कर रहा है. फशीन उत्तर प्रदेश के अमरोहा की रहनेवाली हैं. एक्टर ने ये भी बताया कि अगर महामारी न होती तो दोनों की शादी हो जाती. सीजेन खान ने ये भी कहा कि हम तीन सालों से एक साथ हैं और बहुत खुश हैं.

 

वर्कफ्रंट की बात करे तो सीजेन खान जल्द ही एकता कपूर के शो ‘अपनापन: बदलते रिश्तों का बंधन’ में नजर आने वाले हैं. इससे पहले उन्होंने कलर्स के शो ‘शक्ति: अस्तित्व के एहसास की’ में विवियन दसेना को रिप्लेस किया था.

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बच्चे अलग सोएं या मां बाप के साथ

बच्चों को अपने साथ सुलाएं या अपने से अलग, यह एक जटिल समस्या है. आप सोचेंगी, भला यह भी कोई समस्या है. पर विश्वास मानिए, यह एक गंभीर समस्या है. आज लोग बड़ेबड़े शहरों में 1-1 कमरे में गुजारा कर रहे हैं. ऐसे में यह एक ऐसी समस्या है, जो प्रत्येक माता पिता के सामने आती है.

मां व बच्चे के लिए स्वास्थ्यवर्धक

बच्चों में शुरू से ही अलग सोने की आदत डालनी चाहिए. इस से कई लाभ होते हैं. बच्चे के अलग सोने से मां का स्वास्थ्य ठीक रहता है. मां आराम से सो लेती है. बच्चा भी पूरे बिस्तर पर करवट ले कर सो सकता है. अत: दोनों का ही स्वास्थ्य अच्छा रहता है. आए दिन डाक्टर के पास नहीं जाना पड़ता. इस के विपरीत बच्चे के मां के साथ सोने से मां को बराबर यह चिंता बनी रहती है कि कहीं बच्चे का हाथ या पैर उस के शरीर के नीचे न दब जाए.

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मां के लिए जरूरी भरपूर नींद

कभीकभी ऐसा भी सुनने में आता है कि मां के गहरी नींद में होने से मां का हाथ बच्चे के मुंह पर चला गया और बच्चे की सांस रुक जाने से मृत्यु हो गई. अत: अगर बच्चा अलग सोता है तो मां आराम से चैन की नींद सो लेती है. मां के लिए भी नींद बहुत जरूरी है. दिन भर काम करने के बाद निश्चिंत हो कर सोना आवश्यक है. लेकिन बच्चे को अलग सुलाने का मतलब यह नहीं है कि नवजात को ही अलग सुलाया जाए. ऐसा कहना या सोचना एकदम गलत है. ऐसा करना नवजात के लिए अहितकर होगा. अकसर बच्चे रात में हिलडुल कर चादर या कपड़े हटा देते हैं. अत: मां के पास सोने से मां उसे सारी रात ढके रहती है और फिर नवजात को जिस स्वाभाविक गरमी की आवश्यकता होती है वह उसे मां के शरीर से मिल सकती है. इस के अलावा इस समय बच्चे जल्दीजल्दी अपना बिस्तर गीला करते हैं. फिर उन्हें थोड़ेथोड़े समय बाद भूख लगती है. पास होने पर मां आराम से स्तनपान करा सकती है.

किशोर बच्चों को न सुलाएं साथ

कम से कम साल भर तक के बच्चे को अपने साथ सुलाना चाहिए. इस के बाद बच्चे को अपने बराबर वाले बिस्तर पर या नीचे गद्दी और छोटा सा मोमजामा या रबड़ बिछा कर सुलाना चाहिए. रात में बीचबीच में उठ कर उसे देखते रहना चाहिए ताकि वह गीले बिस्तर पर ही न सोता रहे. कई मांएं 7-8 साल तक के बच्चे को भी अपने साथ सुलाती हैं. यदि सब से छोटा बच्चा है या अकेला लड़का है तो फिर लाड़प्यार के कारण मांएं उसे 11-12 साल की उम्र तक भी अपने साथ सुलाती हैं. लेकिन इतने बड़े बच्चे को अपने साथ सुलाना मां व बच्चे दोनों के लिए अहितकर है. 7-8 महीने के बाद ही बच्चों को अपने से अलग सुलाना शुरू कर देना चाहिए. इस से बच्चे शुरू से ही अलग सोने के आदी हो जाएंगे और उन्हें आराम से फैल कर लेटने की आदत पड़ जाएगी. फिर धीरेधीरे जब बच्चे बड़े हो जाएं यानी 8-9 साल के तो उन्हें अपने से अलग कमरे में सुलाएं. यह कमरा आप के कमरे से सटा हो. ऐसा करने से धीरेधीरे उन का डर कम होने लगेगा और बाहर जाने पर उन्हें अकेले रहने पर डर नहीं लगेगा.

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बचपन से डालें अलग सोने की आदत

बच्चों के कमरे में उन के पढ़ने की मेजकुरसी भी लगा दें. रात में हलकी रोशनी वाला बल्ब उन के कमरे में जलता रहना चाहिए. 2-3 सुंदर आकर्षक कैंलेडर भी अगर उन के कमरे मेें टांग दें तो और अच्छा रहेगा. आप उन्हें बता दें कि अब यह कमरा उन का है. यहां वे आराम से पढ़ाई भी करें और यहां उन्हें कोई परेशानी नहीं होगी. रात में सोते समय बीच का दरवाजा बंद न कीजिए. हां, एक परदा अवश्य डाल दीजिए ताकि दोनों कमरे अलग हो जाएं अन्यथा बच्चों के मन में आप के प्रति गलत भावना उत्पन्न होगी और वे आप का आदर करना छोड़ देंगे. वे चोरीछिपे आप को देखने का भी प्रयास कर सकते हैं.

हां, अगर आप के पास एक ही कमरा है तो समस्या आ जाती है. ऐसी हालत में कमरे का अस्थाई विभाजन कर लें. एक तरफ पतिपत्नी अपना बिस्तर लगाएं और दूसरी तरफ अपने बच्चों का. आजकल 2 से अधिक बच्चे परिवार में नहीं होते हैं. अत: छोटा परिवार होने के कारण आप का गुजारा आसानी से हो सकता है.

अलग सुलाना लाभदायक

बच्चों के बिस्तर अलग कर देना शारीरिक व मानसिक दोनों नजरिए से लाभदायक है. शारीरिक नजरिए से इसलिए कि इस तरह आप अपने पति की इच्छाओं की पूर्ति आराम से कर पाएंगी. यह तो आप भली प्रकार से जानती हैं कि विवाह का एक प्रमुख उद्देश्य शारीरिक भूख को शांत करना भी है. प्रत्येक पति चाहे कितना भी थकाहारा क्यों न हो, रात में अपनी पत्नी का संसर्ग अवश्य पाना चाहता है. इस से उसे काफी मानसिक शांति मिलती है और वह फिर से तरोताजा हो उठता है.

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संबंधों की मधुरता के लिए जरूरी

समयसमय पर पति की शारीरिक इच्छा पूरी करते रहने से पति में ताजगी रहती है फिर इस से आप के पति भी यह सोचते हैं कि अभी तो वे युवा हैं. अधिक परिश्रम कर सकते हैं. उम्र के बढ़ने के साथसाथ पति पत्नी से संसर्ग के लिए तेजी से लालायित होता है. इच्छापूर्ति न होने पर उस में झुंझलाहट, चिड़चिड़ाहट पैदा होने लगती है. वह बातबात में लड़नेझगड़ने लगता है, जिस का प्रभाव पत्नी के साथसाथ बड़े हो रहे बच्चों पर भी पड़ता है. सारा परिवार बिखराव के कगार पर आ खड़ा होता है.

बहुत सी पत्नियां यह सोचती हैं कि अब बच्चे बड़े हो गए हैं, इसलिए अब यह करना शोभा नहीं देता है. क्या सारी उम्र यही होता रहेगा  उन का ऐसा सोचना गलत है. बच्चों के बड़े हो जाने का मतलब यह नहीं कि पतिपत्नी का संबंध समाप्त हो गया है. ज्यादातर भारतीय पत्नियां बहुत शीघ्र शारीरिक संबंधों से उकता जाती हैं और सारा ध्यान घरगृहस्थी व बच्चों में लगाना शुरू कर देती हैं. इस से पति अपने को अपेक्षित समझने लगता है और वह ज्यादा समय घर से बाहर रहना शुरू कर देता है. सुखी पारिवारिक जीवन में ऐसा नहीं होना चाहिए  इस स्थिति को टालने के लिए आप शुरू से ही बच्चों में अलग सोने की आदत डालें ताकि पतिपत्नी के संबंध मधुर बने रहें और बच्चे भी कोई गलत धारणा न बना पाएं.

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