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हिजाब जरूरी या आजादी

कर्नाटक में मुसलिम छात्राओं द्वारा हिजाब पहनने की जिद हजम नहीं होती. हिजाब महिला आजादी की पहचान नहीं हो सकता, बल्कि यह गुलामी को दर्शाता है. हिजाब विवाद की आग एक जिले से निकल कर पूरे राज्य में ही नहीं बल्कि देश के दूसरे राज्यों तक पहुंच चुकी है.

शबनम (बदला हुआ नाम) को जब पहली दफा हिजाब उतार कर फ्रांस में अपने परिवार के साथ घूमनेफिरने का मौका मिला तो उस की खुशी का ठिकाना नहीं था. वह पहली बार अपनी जुल्फों को हवाओं के साथ उड़ते हुए महसूस कर रही थी. हवाओं का स्पर्श उसे रोमांचित कर रहा था. वह पहली बार अपने बालों को अपने हिसाब से स्टाइल कर सकती थी.

आज वह खुद को बहुत स्वतंत्र और खुश महसूस कर रही थी, पर कहीं न कहीं एक डर भी उस के दिल में था. उसे याद था अपनी मातृभूमि में कैसे उसे सिर न ढकने पर पुलिस द्वारा पकड़ लिए जाने का खौफ सताता था. वह एक पल को भी घर के बाहर बाल खोल कर नहीं घूम सकती थी.

शबनम का बचपन और युवावस्था ईरान में बीता जहां महिलाओं को घरों से बाहर हिजाब पहनने के लिए मजबूर किया जाता है. अफगानिस्तान जैसे कई देशों में भी ऐसा ही होता है. वैसे बहुत से मुसलिम देशों की सरकारें महिलाओं को हिजाब पहनने के लिए बाध्य नहीं करती हैं. इस के बावजूद रूढि़वादी परिवार धर्म के नाम पर अपनी बेटियों पर बड़े होने के बाद हिजाब थोपते हैं.

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अरबी में ‘हिजाब’ का अर्थ ‘बाधा’ या ‘विभाजन’ है. इस शब्द का उपयोग उस परिधान के लिए किया जाता है जिस का उपयोग कई मुसलिम महिलाएं शरीयत, इसलामी धार्मिक कानून के तहत शील बनाए रखने के उद्देश्य से सार्वजनिक रूप से अपने सिर को ढकने के लिए करती हैं.

इस के कई रूप हैं. उदाहरण के लिए हिजाब के अलावा नकाब और बुर्का भी इसी के रूप हैं. नकाब में आंखों के ऊपर एक स्लिट होती है ताकि महिला सामने देख सके. उस के बालों के साथ चेहरा भी ढका होता है. केवल आंखें खुली होती हैं. जबकि बुर्के में आंखों के स्थान पर या तो एक खिड़कीनुमा जाली बनी होती है या हलका कपड़ा होता है जिस से आरपार दिख सके. इस के साथ ही पूरे शरीर पर एक बिना फिटिंग वाला लबादा होता है. यह अकसर एक ही रंग का होता है.

हाल ही में 7 मुसलिम बहुल देशों (ट्यूनीशिया, मिस्र, इराक, लेबनान, पाकिस्तान, सऊदी अरब और तुर्की) में मिशिगन विश्वविद्यालय के सामाजिक अनुसंधान संस्थान द्वारा कराए गए एक हालिया सर्वेक्षण में पाया गया कि ज्यादातर मुसलिम लोग पसंद करते हैं कि महिलाएं अपने बालों को पूरी तरह से ढक कर रखें. केवल तुर्की और लेबनान के 4 में से एक से अधिक लोग सोचते हैं कि एक महिला के लिए सार्वजनिक रूप से अपना सिर न ढकना उचित है.

सर्वेक्षण के दौरान ज्यादातर लोगों ने महिलाओं के उस रूप को सही बताया जिस में उन के बाल और कान पूरी तरह से एक सफेद हिजाब से ढके हुए थे. इस में ट्यूनीशिया के 57 फीसदी, मिस्र के 52 फीसदी, तुर्की के 46 फीसदी और इराक के 44 फीसदी लोगों की सोच यही थी. इराक और मिस्र के ज्यादातर लोगों ने महिलाओं के उस रूप को वरीयता दी जिस में उस के बाल और कान काले हिजाब से ढके थे.

पाकिस्तान के ज्यादातर लोगों ने उस नकाब को पसंद किया जिस में महिला की केवल आंखें दिख रही हों. सऊदी अरब के (63 फीसदी) ज्यादातर लोगों ने महिलाओं को नकाब में देखना पसंद किया. जबकि इन से अलग एकतिहाई (32 फीसदी) तुर्क इस दृष्टिकोण को मानते हैं कि एक महिला के लिए सार्वजनिक रूप से अपने बालों को नहीं ढकना स्वीकार्य है. लेबनान में लगभग आधे (49 फीसदी) भी इस बात से सहमत हैं कि एक महिला के लिए बिना सिर ढके सार्वजनिक रूप से उपस्थित होना स्वीकार्य है.

इस बात को ज्यादा समय नहीं हुआ है जब अफगानिस्तान में महिलाओं ने अपने अधिकारों को प्रतिबंधित करने वाले तालिबान सरकार के नियमों के खिलाफ सड़कों पर विरोध प्रदर्शन किया जिस के तहत हिजाब पहनना अनिवार्य है. बड़े पैमाने पर विरोध प्रदर्शन हुए. कुछ महिलाओं ने प्रतिरोध के संकेत के रूप में अपना बुर्का उतार कर जला दिया. ऐसा ही कुछ अफगानिस्तान में भी हुआ. महिलाओं के प्रदर्शनों की एक लहर चल पड़ी. इधर हमारे देश में मामला उलटा है. यहां खुद मुसलिम महिलाओं द्वारा हिजाब पहनने की पैरवी की जा रही है.

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आज दुनियाभर में लोग जिंदगी आसान करने के तरीके ढूंढ़ रहे हैं, विकास और आधुनिक सोच की धारा बह रही है, नएनए आविष्कार हो रहे हैं, विचारों की क्रांति आ रही है, परंपरागत रूप से चले आ रहे बंधनों व संकीर्णताओं से इंसान आजाद हो रहा है, स्त्रीपुरुष समानता, धार्मिक सहिष्णुता और सब के लिए शिक्षा का चलन बढ़ रहा है, दुनियाभर में लड़कियों व महिलाओं को परदे में रखने वाले परिधानों का लगभग परित्याग किया जा चुका है. हमारे देश में भी घूंघट का चलन कुछ पिछड़े गां?वों तक ही सिमट कर रह गया है. ऐसे में कर्नाटक में मुसलिम छात्राओं द्वारा हिजाब पहनने की जिद हजम नहीं होती. पिछले साल शुरू हुए इस हिजाब विवाद की आग एक जिले से निकल कर देश के दूसरे राज्यों तक पहुंच चुकी है.

देखा जाए तो यह जिद खुद को सदियों पहले के जमाने में धकेलने जैसी है. इसे हम कूपमंडूकता या एक किस्म की धर्मांधता व कट्टरता भी कह सकते हैं. यह स्त्री स्वतंत्रता में बाधक उन कुरीतियों से खुद को जकड़े रखने की सनक जैसा है जिन का मकसद ही महिलाओं को दोयम दर्जे का साबित करना होता है. इस हिजाब या बुर्के की पैरवी खुद लड़कियां करें तो अजीब सा लगता है. खुल कर सांस लेने के बजाय सुरक्षा के नाम पर चेहरा या सिर छिपाने का फैसला कहीं से भी उचित नहीं लगता.

हिजाब को लेकर हल्ला क्यों

हिजाब के लिए प्रोटैस्ट करने वाली कुछ वे लड़कियां भी हैं जिन के सोशल मीडिया अकाउंट में जींस और शौर्ट ड्रैसेस में बहुत सारी तसवीरें भरी पड़ी हैं. वैसी लड़कियां जो चिल करने, घूमनेफिरने या दोस्तों के साथ कहीं जाते समय अगर मौडर्न ड्रैसेस पहनने में कोताही नहीं करतीं तो फिर वे कालेज या स्कूल में हिजाब की अनिवार्यता पर जोर क्यों दे रही हैं. यह बात सम?ा नहीं आती.

आखिर स्त्री हो या पुरुष, हर किसी को आजादी से जीने व आधुनिक समाज में सब के साथ कदम से कदम मिला कर चलने का पूरा हक है. आज के समय में जब हम महिलाओं को चांद पर भेज रहे हैं, देश की बागडोर संभालने की जिम्मेदारी दे रहे हैं, बेटियों को परिवार में बेटे से कहीं ज्यादा प्यार व सुविधाएं दे रहे हैं, ऐसे में यदि हम हिजाब या बुर्के के रूप में घूंघट प्रथा का समर्थन करें तो यह एक तरह से खुद को सालों पीछे ले जाने जैसा है.

सदियों तक भारतीय महिलाएं पुरुषवादी समाज की ज्यादतियों का शिकार रहीं. धर्मगुरुओं ने उन्हें पुरुषों से दब व ढक कर रहने के उपदेश दिए. महिलाओं को दोयम दर्जा दिया गया और उन से उम्मीद की गई कि वे अपना वजूद भूल कर केवल पुरुष वर्ग की दासी की तरह रहें. मुसलिम महिलाओं को भी अपने शौहर की कनीज बन कर रहने की तालीम दी गई. ज्यादातर हक शौहर को दे दिए गए, उन्हें कईकई शादियों की इजाजत के साथ ही जब चाहा बेकुसूर बीवी को तलाक देने का हक भी मिला.

हिंदुओं में भी औरतों को घूंघट प्रथा के जरिए आगे बढ़ने से रोका गया, सती प्रथा उन के जीने के हक को निगल गया, दहेजप्रथा ने उन की कीमत कम कर दी तो बाल विवाह ने बहुत नादान उम्र में ही उन के कदमों को बांध दिया. इन प्रथाओं से लड़ कर वापस अपना वजूद स्थापित करने में महिलाओं ने बहुत कुर्बानियां दीं. सामाजिक क्रांति की लौ जली और तब सालों प्रयास करने के बाद आज महिलाएं फिर से खुद को साबित कर रही हैं. वे अपनी आजादी का जश्न मना रही हैं. ऐसे में हिजाब के नाम पर फिर से उसी घूंघट प्रथा को बड़े नाज के साथ स्वीकारना और उस की पैरवी करना क्या अजीब नहीं है?

जहां तक बात सुरक्षा की है तो उस के लिए स्त्रियों को खुद पर परदे डालने के बजाय अपनी शक्ति और मनोबल बढ़ाने पर ध्यान देना चाहिए. यदि बिना हिजाब या बुर्के के स्त्री को देख कर पुरुषों की नजरें खराब होने का अंदेशा होता हो तो इस के लिए परदादारी के बजाय आंखें मिला कर बात करने और गरदन ऊंची कर चलने का रिवाज अपनाना ज्यादा उचित है. अगर किसी की नजर खराब होती है तो महिला अपनी एक नजर से सामने वाले को सीधा करने का हौसला भी रखती है. अपनी बेटियों को मजबूत बनाना जरूरी है न कि परदे में छिपाना.

स्कूलकालेज में हिजाब से समस्या

गौर करने वाली बात यह है कि यदि हिजाब या बुर्का पहन कर छात्राएं स्कूलकालेज में जाती हैं तो यह वहां के मैनेजमैंट के लिए भी गलत ही होगा. बुर्के के अंदर से यदि कोई छात्रा कुछ अनुचित बात करती है, सहेली से बातें करती है या फिर शोर मचाती है तो टीचर के लिए यह सम?ाना कठिन होगा कि यह शरारत किस ने की. क्लास में डिसिप्लिन के लिए हिजाब बड़ी बाधा है.

यही नहीं, एग्जाम के समय यदि कोई छात्रा चाहे तो हिजाब के अंदर बहुत आराम से कई सारी चिटें छिपा सकती है. नकल करने के लिए वह बड़े आराम से अपने हिजाब की सहायता ले सकती है. एग्जाम के दौरान हिजाब के साथ छात्राओं की चैकिंग आसान नहीं होगी. इसलिए अगर कोई छात्रा हिजाब पहन कर कालेज आती भी है तो उचित यही होगा कि वह कालेज परिसर में आ कर उसे उतार दे.

विवाद की शुरुआत

हिजाब विवाद की शुरुआत हुई देश की राजधानी नई दिल्ली से लगभग 2 हजार किलोमीटर दूर कर्नाटक प्रदेश के उडुपी जिले से. अक्तूबर 2021 में सरकारी पीयू कालेज की कुछ छात्राओं ने हिजाब पहनने की मांग शुरू कर दी. इस के बाद 31 दिसंबर को 6 छात्राओं को हिजाब पहनने के कारण कालेज में नहीं जाने दिया गया. छात्राओं ने कालेज के बाहर प्रदर्शन शुरू कर दिया.

कालेज प्रशासन ने 19 जनवरी, 2022 को छात्राओं, उन के मातापिता और अधिकारियों के साथ बैठक की थी. लेकिन इस बैठक का कोई परिणाम नहीं निकला. 3 फरवरी को पीयू कालेज में हिजाब पहन कर आने वाली छात्राओं को फिर से रोका गया. इस के बाद 5 फरवरी को कांग्रेस पार्टी के पूर्व अध्यक्ष राहुल गांधी हिजाब पहन कर स्कूल आने वाली मुसलिम छात्राओं के समर्थन में आ गए.

छात्राओं ने कर्नाटक हाईकोर्ट का दरवाजा खटखटाया. 5 फरवरी को यूनिफौर्म का आदेश जारी हुआ और राज्य सरकार ने कर्नाटक शिक्षा अधिनियम 1983 की धारा 133(2) लागू कर दी. इस के अनुसार, सभी छात्रछात्राओं के लिए कालेज में तय यूनिफौर्म पहनना अनिवार्य कर दिया गया. यह आदेश सरकारी और निजी दोनों कालेजों पर लागू किया गया.

8 फरवरी को विवाद ने हिंसक रूप ले लिया. कर्नाटक में कई जगहों पर ?ाड़पें हुईं. कई जगहों से पथराव की खबरें भी सामने आईं. शिवमोगा का एक वीडियो सामने आया जिस में एक कालेज छात्र तिरंगे के पोल पर भगवा ?ांडा लगा रहा था. मांड्या में बुर्का पहनी हुई एक लड़की के साथ अभद्रता की गई. इधर उडुपी जिले के एमजीएम कालेज में हिजाब और भगवा की लड़ाई शुरू हो गई. कुछ हिजाब पहने छात्राएं कालेज में आईं. दूसरा पक्ष भगवा पगड़ी और शौल डाल कर कालेज आया.

इस बीच कर्नाटक के शिवमोगा जिले में रात लगभग 9 बजे बजरंग दल के एक 23 साल के कार्यकर्ता की चाकू मार कर हत्या कर दी गई. मारे गए बजरंग दल कार्यकर्ता की पहचान हर्ष नाम के युवक के तौर पर की गई है. घटना के बाद इलाके में स्कूलकालेज बंद कर दिए गए. मृतक के समर्थक सड़कों पर उतर आए और अपना आक्रोश प्रकट किया. कुछ दिनों पहले इस युवक ने सोशल मीडिया पर हिजाब विवाद को ले कर पोस्ट लिखी थी. अपनी इस पोस्ट में युवक ने हिजाब का विरोध किया था और भगवा गमछे का समर्थन किया था.

कर्नाटक में हिजाब विवाद नया नहीं

कर्नाटक में हिजाब पहनने को ले कर विवाद नया नहीं है. यहां 2009 में बंटवाल के एसवीएस कालेज में ऐसा मामला सामने आया था. उस के बाद 2016 में बेल्लारे के डा. शिवराम करांत सरकारी कालेज में भी हिजाब को ले कर विवाद हुआ था. 2018 में भी सैंट एग्नेस कालेज में बवाल हुआ था. उडुपी जैसा विवाद बेल्लारे में भी हुआ था. उस समय कई छात्रों ने हिजाब पर प्रतिबंध लगाने की मांग को ले कर भगवा गमछा पहन कर प्रदर्शन किया था.

फिलहाल हिजाब विवाद का मसला सुप्रीम कोर्ट भी पहुंच गया. शीर्ष अदालत ने इस मामले में तुरंत सुनवाई से इनकार कर दिया. कोर्ट ने कहा कि मामले की सुनवाई उचित समय पर की जाएगी.

वैसे कर्नाटक एजुकेशन एक्ट के तहत सभी शैक्षिक संस्थानों को अपनी यूनिफौर्म तय करने का अधिकार दिया गया है. शर्त बस, इतनी है कि यूनिफौर्म कोड की घोषणा सत्र शुरू होने से काफी पहले करनी होगी और उस में 5 साल तक बदलाव नहीं होना चाहिए.

हिजाब के पक्ष में दलील

यह दलील दी जा रही है कि यदि हिंदू लड़कियों को बिंदी लगाने से कभी नहीं रोका गया तो फिर मुसलिम लड़कियों को हिजाब या बुर्का पहनने से क्यों रोका जा रहा है, पर यहां सोचने वाली बात यह है कि बिंदी से इंसान का चेहरा नहीं ढकता, यह इंसान की पहचान को नहीं छिपाता. मगर नकाब या बुर्के में लड़की की सिर्फ आंखें नजर आती हैं, इसलिए यह ड्रैस शिक्षण संस्थानों के लिए मान्य नहीं हो सकती. यहां सब बराबर होते हैं और एकदूसरे के साथ मिल कर रहते हैं, साथ में पढ़ते हैं, जीवन में आगे बढ़ने के गुर सीखते हैं. ऐसे में कुछ छात्राएं अगर अलग दिखना चाहें तो इसे उचित नहीं कहा जा सकता. प्रैक्टिकली देखें तो लड़कियां परिसर में हिजाब पहन सकती हैं लेकिन कक्षाओं में नहीं.

छात्राएं पहले भी कक्षाओं में प्रवेश करने के बाद हिजाब और बुर्का हटाती रही हैं. इसलिए यह कोई बड़ी बात नहीं है. जिन के घर में हिजाब को ले कर ज्यादा सख्ती है उन्हें कोएड कालेज के बजाय किसी वूमन कालेज में दाखिला लेना चाहिए क्योंकि वहां नकाब की जरूरत ही नहीं होगी.

गौर करने की बात यह है कि जिस सऊदी अरब से हिजाब, बुर्का आदि का चलन शुरू हुआ, आज वह देश आधुनिक तौरतरीके अपना रहा है. नए तौरतरीकों के साथ आगे बढ़ रहा है. सिर्फ वही नहीं, बल्कि दुनिया के कई अन्य इसलामिक देशों में भी हिजाब को ले कर कोई सख्त या अनिवार्य प्रावधान नहीं हैं.

आज यह बात सब को सम?ा आने लगी है कि कोई भी समाज स्त्रियों को पीछे रख कर आगे नहीं बढ़ सकता. स्त्रीपुरुष मिल कर, कंधे से कंधा मिला कर चलेंगे तभी उन्नति के पथ पर आगे बढ़ सकेंगे. अफसोस, भारत में कुछ लड़कियां और उन के घर वाले इस बात को सम?ा नहीं पा रहे.

कई देशों में प्रतिबंधित है हिजाब

जहां भारत में कुछ लोग इसलाम की दुहाई दे कर हिजाब की पैरवी करने में लगे हैं वहीं दुनिया के कई मुसलिम देशों में शिक्षण संस्थानों, सरकारी भवनों आदि में हिजाब प्रतिबंधित है. इन देशों ने माना कि महिलाओं पर जबरन पहनावा थोपना सही नहीं है. अपने यहां महिलाओं को आगे बढ़ने के लिए समानता का माहौल देना सुनिश्चित किया.

मिस्र : मिस्र में पढ़ालिखा तबका हिजाब का विरोध करता है. कई संस्थानों ने अपने स्तर पर हिजाब, नकाब को प्रतिबंधित किया हुआ है और इन प्रतिबंधों को लोगों का समर्थन मिला है.

सऊदी अरब : यहां हिजाब पहनना अनिवार्य नहीं है.

इंडोनेशिया : यहां हिजाब पूरी तरह वैकल्पिक है. जौर्डन में भी ऐसा ही है.

कजाखिस्तान : यहां सितंबर 2017 में कुछ स्कूलों ने हिजाब प्रतिबंधित कर दिया था. इस के खिलाफ अभिभावकों ने अपील की थी लेकिन प्रतिबंध बना रहा. 2018 में सरकार ने नकाब और इस तरह के परिधानों को सार्वजनिक स्थलों पर प्रतिबंधित कर दिया.

सीरिया : विश्वविद्यालयों में चेहरे को ढकने वाले पहनावे पर प्रतिबंध लगा है. हिजाब पर कोई व्यवस्था नहीं है.

कुछ देशों में अनिवार्य

अफगानिस्तान, इराक समेत कुछ देशों में सार्वजनिक स्थान पर महिलाओं के लिए हिजाब, नकाब और बुर्का जैसे परिधान अनिवार्य किए गए हैं. ईरान में भी पिछली सदी के 8वें दशक में हुई इसलामिक क्रांति के बाद से महिलाओं के लिए ढीले कपड़े और हिजाब अनिवार्य हैं. इसलामिक कट्टरपंथी महिलाओं के लिए ऐसे पहनावों की वकालत करते हैं हालांकि इन देशों में भी समयसमय पर इन के विरोध में आंदोलन देखने को मिले हैं.

इस मसले पर गरम होती सियासत और अदालती लड़ाई के बीच फैसला कुछ भी आए लेकिन एक बात तो तय है कि इस मसले को समर्थन वाली जिद प्रत्यक्ष या परोक्ष रूप से महिलाओं के सशक्तीकरण को कुंद करने वाली है.

कुछ छात्राएं मानती हैं कि हिजाब उन की धार्मिक पहचान का हिस्सा है, पर क्या जरूरी यह नहीं कि लड़कियों को इस उम्र में हिजाब या धर्म के मुकाबले शिक्षा और कैरियर पर ज्यादा जोर देना चाहिए. लड़कियों को सभी वर्ग के लोगों से दोस्ती करनी चाहिए और एक जैसा रहना चाहिए.

नशे का कारोबार, युवाओं की चिंता

Writer- संदीप मित्तल

अब युवाओं की नसों में खून की जगह ड्रग्स दौड़ रहा है. पहले केवल शहरों में फलफूल रहे ड्रग्स के धंधे ने अब गांवदेहातों को भी अपनी चपेट में ले लिया है. चिंताजनक यह भी है कि इस गैरकानूनी व जानलेवा कृत्य में युवाओं की भारीभरकम लिप्तता है.

ऐक्टर सुशांत सिंह राजपूत की नशे की लत का मामला बहुत तूल पकड़ा पर असल में यह युवाओं को नशे से बचाने की जगह राजनीतिक बदले का हथियार और कमाई का हिस्सा बन गया.

नशा और नशे से संबंधित काले कारोबार से भारत सहित पूरा विश्व परेशान है. ड्रग्स का फैलता अवैध कारोबार और नशे में डूबते जा रहे युवावर्ग से निबटना हमारे लिए चिंता भी है और चुनौती भी. आज विश्व के सामाजिक और आर्थिक विकास में सब से बड़ी बाधा अवैध दवाएं बन चुकी हैं.

पंजाब के चुनावों में यह एक बड़ा मुद्दा रहा है क्योंकि नशे के कारण हुई मौतों से गांव के गांव परेशान हैं और वे चाहते हैं कि आने वाली सरकार इस बीमारी को दूर करे. कूमकलां नाम के एक छोटे गांव में 10 साल में 55 युवा नशे के कारण असमय मौत के गर्त में समा गए.

इस अवैध कारोबार ने देश को किस कदर अपने लपेटे में ले लिया है, इस का ताजा उदहारण मुंबई में गिरफ्तार हुए शाहरूख खान के बेटे आर्यन खान का है. नारकोटिक्स कंट्रोल ब्यूरो (एनसीबी) देश में बड़े ड्रग्स रैकेटों का भंडाफोड़ करता रहता है. हालांकि एनसीबी अब राजनीतिक हथियार बन गया है और अपने असली मकसद से भटक गया है.

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यूनाइटेड नेशंस औफिस औन ड्रग्स (यूएनओडीसी) की एक रिपोर्ट के अनुसार, दक्षिण एशियाई देशों में ड्रग्स का सेवन करने वालों में केवल भारत में ही 60 फीसदी लोग हैं जिन में अधिकतर युवावर्ग शामिल है. ऐसे में एचआईवी प्रसार का खतरा भी बढ़ जाता है, क्योंकि भारतीय ड्रग्स यूजर्स में करीब 72 फीसदी संक्रमित सूई से ड्रग लेते हैं.

ड्रग्स का अवैध कारोबार और आतंकवाद एक चुनौती

इस का जाल भारत में ही नहीं, बल्कि विदेशों में भी फैलता जा रहा है. इस से आतंकवाद को भी बढ़ावा मिलता है. आतंकवादी नैटवर्क को बड़ी मात्रा में धन, हथियार आदि नारकोटिक धंधे के माध्यम से उपलब्ध होते हैं. इस अवैध कारोबार से पूरी तरह निबटना होगा.

अफगानिस्तान में तालिबानियों की आय का मुख्य स्रोत नशीली हेरोइन ही है. आज भी इस बारे में सरकार बहुत गंभीर नहीं है. उदाहरण के तौर पर जो प्रतिबंधित नशीली दवाइयां पकड़ी जाती हैं उन का कोई सदुपयोग नहीं होता है. वे गलत हाथों में न पड़ जाएं, इसलिए उन्हें जला कर नष्ट कर देने का दावा किया जाता है पर कोई स्वतंत्र निगरानी नहीं है जो इन को बाजार में फिर बेचे जाने से रोक सके.

अंतर्राष्ट्रीय एजेंसियां मदद करती हैं और जब भी बड़ी खेप आती है वे पूर्व सूचना देने की कोशिश करती हैं. हाल ही में हम ने भारत और विदेशों में एकसाथ छापेमारी इन्हीं एजेंसियों की मदद से की.

नशीले पदार्थों की तस्करी और खपत

इंडो-म्यांमार बौर्डर अब फिर सक्रिय हो गया है. अफगानिस्तान में भी तालिबानी सरकार की स्थापना के बाद से भारत में ड्रग्स के कारोबार में काफी तेजी आई है. भारत में अफीम आधारित जो ड्रग्स आ भी रही हैं, वे दोबारा विदेशों में जाने के लिए आती हैं. राजधानी दिल्ली में भी ड्रग्स कारोबार रैकेट का भंडाफोड़ आएदिन होता ही रहता है, पर देश में भी खपत बढ़ती जा रही है.

चिंता की बात यह है कि इन की संख्या ग्रामीण इलाकों में बढ़ रही है. राजधानी में नशाखोरों में एक ओर जहां फुटपाथ पर रह कर गुजारा करने वालों की जमात है तो दूसरी ओर कौल सैंटर व क्रिएटिव आर्ट से जुड़े फैशन डिजाइनर, फिल्म एड बनाने वाले यंग प्रोफैशनल्स हैं. एक वर्ग गरीबी के चलते नशे की गिरफ्त में फंस कर नशे से उबर नहीं पा रहा तो दूसरा वर्ग देखादेखी या रोब गांठने के चक्कर में ड्रग का शिकार हो रहा है.

नशीले पदार्थों की बिक्री में लड़कियों की भी बढ़ती संख्या प्रमुख चिंता है. इस धंधे में लगे माफिया लड़कियों का इस्तेमाल इसलिए भी करते हैं क्योंकि उन्हें लगता है कि पुलिस को अकसर लड़कियां धोखा देने में सफल हो जाती हैं.

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दूसरे, इन को बेचने वाली ज्यादातर लड़कियां होती हैं, जिन्हें नशीले पदार्थों के सेवन की लत पड़ चुकी होती है और उसे खरीदने के लिए ही वे इसे बेचने के धंधे में शामिल हो जाती हैं. इंटरनैट के जरिए भी ड्रग्स का कारोबार बढ़ रहा है.

ऐसे कौल सैंटर्स व वैबसाइट्स पनप रही हैं जहां पर इस की डीलिंग व क्रैडिट कार्ड और बिटकौइन के जरिए पैसे के लेनदेन होने की संभावना रहती है. अन्य नशीले पदार्थों की तुलना में ब्राउन शुगर और स्मैक की मांग ज्यादा होती है. स्कूलकालेज के विद्यार्थी एवं युवावर्ग बहुत ज्यादा कीमत का नशा नहीं खरीद पाता, इसलिए स्मैक ही खरीदता है.

वहीं, हेरोइन सब से महंगा नशीला पदार्थ है. अफीम के पौधे से सब से पहले हेरोइन के रूप में पाउडर प्राप्त होता है. इस के बाद बचे हुए पदार्थ से अन्य चीजें मिला कर ब्राउन शुगर बनाई जाती है और उस के बाद में बचे हुए पदार्थ में लोहे लकड़ी का बुरादा और अन्य अनेक प्रकार के रसायन तथा अन्य चीजें मिला कर उसे और नशीला बनाया जाता है.

नशीली दवाओं और स्वापक पदार्थों की खेती, उत्पादन, निर्माण, वितरण, ब्रिकी, आयात और निर्यात करना अपराध है. विशेष न्यायालय द्वारा निर्धारित की गई सजा में 10 से 30 वर्ष की कैद के साथ आर्थिक जुर्माना भी है.

अगर यह अपराध साबित हो जाता है कि दवा की खपत व्यक्तिगत रूप से की जा रही है तो कम से कम 6 महीने और अधिक से अधिक एक साल की सजा का प्रावधान है.

नारकोटिक्स कंट्रोल ब्यूरो ने 2022 में इवैंट शुरू किया ताकि डार्कवैब के जरिए हो रहे नशे के धंधे पर नियंत्रण करने के उपाय ढूंढ़े जा सकें. अच्छे सु?ावों पर

2.5 लाख रुपए तक का पुरस्कार देने की घोषणा है पर जिस व्यापार में खरबों रुपया दुनियाभर का लगा हो, उस पर नियंत्रण करना असंभव सा है.

मजेदार बात यह है कि दिल्ली में एनसीबी का दफ्तर जहां है वहीं पड़ोस में अंबेडकर बस्ती है जहां नशे का कारोबार धड़ल्ले से चलता है. एक इंग्लिश दैनिक समाचारपत्र की रिपोर्ट के अनुसार, इस बस्ती की गलियों में माचिस की तीलियां, फौयल, सिगरेटों के टुकड़े आराम से दिख जाते हैं, जो हमारे ड्रग कंट्रोल प्रयासों की पोल खोलते हैं. पंजाब में गरीब मजदूरों से काम लेने के लिए उन्हें नशेड़ी जानबू?ा कर बनाया गया था, पर बाद में इस ने पैसे वालों, जमीन मालिकों के युवा बच्चों को भी गिरफ्त में ले लिया.

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इस कार्यक्रम का उद्देश्य बच्चों, नौजवानों व महिलाओं में जागृति लाना है. इस अभियान में विभिन्न मंत्रालयों के मंत्री, महिला एवं विकास विभाग, नारकोटिक्स कंट्रोल ब्यूरो एवं यूएनओडीसी के प्रतिनिधि, खेलजगत व फिल्मी जगत से जुड़े सितारे भी शामिल होते हैं. अभियान को आकर्षित करने के लिए दौड़, नुक्कड़ नाटक, थीम संबंधी नृत्यनाटिका, सांस्कृतिक कार्यक्रम आदि को भी शामिल किया जाता है.

ड्रग्स एडिक्ट यानी नशेडि़यों को इस से छुटकारा दिलाए जाने के लिए सब से पहले तो उन्हें काउंसलिंग की जरूरत होती है. उन्हें समाज की मुख्यधारा में शामिल करने के लिए नशा मुक्ति केंद्र का भी सहारा लिया जाना चाहिए, ताकि उन्हें इस लत से छुटकारा दिलाया जा सके और वे एक जिम्मेदार नागरिक बन सकें.

उन का प्यार बर्फ में जम गया: भाग 3

डेनियल ने वाटर सप्लाई को फोन किया तो उस ने कहा, “यह सिर्फ आप की समस्या नहीं है. अपने शहर के अतिरिक्त अन्य अनेकों शहरों में बिजली और पानी नहीं है. हम समझ सकते हैं कि यह इमर्जेंसी है, पर कुछ कर नहीं सकते हैं. जगहजगह पाइप में बर्फ जमने से पाइप फट गई है. इस में काफी समय लगेगा. असुविधा के लिए खेद है.“

डेनियल ने लोयला से कहा, “ऐसी स्थिति के बारे में कभी किसी ने सोचा ही न था, इसीलिए घरों में हम

पानी कभी स्टोर नहीं करते हैं. तुम पैंट्री से पानी की कुछ बोतलें निकालो, उसी से काम चलाना होगा. दोनों के बाथरूम के फ्लश टैंक में पहले से जमा पानी से एक बार फ्लश कर सकते हैं हम दोनों.“

किसी तरह दोनों ने फ्रेश हो कर नाश्ता किया. डेनिएल बोला, “फिलहाल तो बाथरूम का काम चल गया. इस के बाद टायलेट फ्लश नहीं होगा.“

“होगा कैसे नहीं. बाहर से बर्फ ला कर टैंक में डाल देंगे हम लोग, कुछ देर में वह पिघल जाएगा.“

“वाह, तुम्हारा दिमाग मेरी बीवी जैसा तेज कैसे हो सकता है?“

“बीवी नहीं तो बीवी जैसा ही सही.”

“हम दोनों का दिमाग मिल जाए तो और बहुतकुछ हो सकता है.“

“तुम्हारी बात सुन कर मुझे भी आइडिया आया. गेराज में एक बालटी होगी. मैं बाहर से बर्फ लाता हूं. फ्लश टैंक में बर्फ डालने के बाद एक बालटी बर्फ और ला कर रखते हैं. इमर्जेंसी में बर्फ का पानी ही काम आएगा.“

“मैं भी चलती हूं आप के साथ.“

बाहर दरवाजे पर भी बर्फ जमा थी. किसी तरह उसे तोड़ कर अंदर लाए, कुछ फ्लश टैंक में डाला और

कुछ बालटी में रहने दिया. लोयला ने बैकयार्ड में ग्रिल के पास एक गैस सिलिंडर देख कर कहा, “हम ने गेराज में एक सिंगल गैस ओवन देखा है. इस में गैस बचा है क्या? अगर होगा, तो हम खाना गरम कर सकते हैं.“

“वाह, क्या आइडिया है, बीवी होती तो वह भी ऐसा ही कहती.”

“वैसे भी आप को बीवी नहीं तो एक हमसफर की जरूरत है. आप को कुछ भी याद नहीं रहता है.”

“और तुम को साथ की जरूरत नहीं है?“

“हां, मैं भी तो इनसान हूं.”

“अच्छा मौका मिला है सोचने का. हम दोनों 3-4 दिन साथ हैं.”

डेनियल स्टोव और प्रोपेन सिलिंडर ले कर आया. दोनों ने मिल कर कुछ खाना बनाया और कुछ फ्रिज से निकाल कर गरम किए और अंत में कौफी बनाई. फिर दोनों बैठ कर कौफी पीने लगे. लोयला बोली, “खाने को बाहर ही रहने देना, फ्रिज में रखने की जरूरत नहीं है. इतनी ठंड में खाना

खराब नहीं होगा.”

डेनियल और लोयला दोनों फोन का इस्तेमाल बहुत कंजूसी से कर रहे थे. कोई एक मौसम का हाल जान लेता. दोनों एक बार अपने बच्चों को मैसेज कर देते. दोनों के बच्चे जान रहे थे कि डेनियल और लोयला एक ही घर में साथ रह रहे हैं.

दूसरे दिन भी मौसम में कोई सुधार नहीं था. उस रात दोनों ने अपने प्यार का खुल कर इजहार किया और हमसफर बनने का फैसला किया. सुबह तीसरे दिन दोनों ने अपनेअपने बच्चों को मेसेज भेजा – ‘अब हम दोनों ने साथ रहने का निर्णय लिया है.’

कुछ देर बाद बच्चों के जवाब मिले. दोनों ने लिखा – ‘यह बहुत अच्छी बात है, हमें जान कर खुशी हुई. हम लोग स्प्रिंग वैकेशन में मार्च में आएंगे, उसी समय आप लोग वेडिंग प्लान करें.’

तीसरी रात मौसम और ज्यादा खराब हो गया. बारिश, आंधीतूफान और हिमपात ने मिल कर कहर ढा रखा था. घर के अंदर भी तापमान करीब शून्य था. डिनर के बाद डेनियल ने गरम कौफी पीने की इच्छा जताई, तो लोयला कफी बनाने गई. अभी दूध पूरा गरम भी न हो सका कि गैस खत्म हो गई. वह बोली, “लगता है, सिलिंडर खाली हो गया. दूध पूरा गरम भी न हो सका था.”

कोई बात नहीं, जैसा है उसी में कौफी बनाओ. थैंक्स गौड अभी खाना काफी बचा है. कल शाम से मौसम बेहतर होने का अनुमान है.”

कौफी पीने के तकरीबन एक घंटे बाद दोनों सोने गए. डेनियल बोला, “अब हम एक ही रूम में साथ सो सकते हैं. ठीक है न. जल्द ही दोनों गहरी नींद में सो गए. इसी बीच बैकयार्ड का एक पेड़ टूट कर बैडरूम की छत पर गिरा और लकड़ी की छत को चीरता हुआ उन के बेड पर जा गिरा. दोनों बुरी तरह से दब कर रह गए, निकलने की कोई गुंजाइश न थी. ऊपर खुला आसमान और स्नो फाल.

रातभर बहुत ठंड में रहने से दोनों जम गए.

सुबह में पड़ोसी ने देखा, तो उस ने 911 को फोन किया. 15 मिनट के अंदर पुलिस और एंबुलेंस पहुंच गए. पुलिस ने देखा कि वे दोनों एकदूसरे के हाथ थामे चिरनिद्रा में थे. उन के शरीर पर बर्फ की एक परत जम गई थी. पर उन्हें यह देख कर आश्चर्य हुआ कि उन के शरीर के निचले भाग

लगभग निर्वस्त्र थे. पुलिस उन की मृत्यु को संदेह की दृष्टि से देखने लगी. उसे शक था कि ठंड से मरना न हो कर कहीं यह कोई सैक्स क्राइम या ड्रग का मामला हो. बहरहाल, पुलिस ने दोनों शवों को पोस्टमार्टम के लिए भेज दिया.

पुलिस ने डेनियल और लोयला दोनों के बच्चों से जानकारी ली कि कहीं उन्हें नशे की लत तो नहीं थी. मेसन ने बताया कि डेनियल ने कभी ड्रग नहीं लिया है. लोयला की बेटी मार्था ने बताया कि उस की मम्मी ड्रग की आदी नहीं थी. हालांकि एक या दो बार शायद उस ने लिया था. पुलिस का शक और गहरा गया.

पोस्टमार्टम की रिपोर्ट से कहीं किसी शक की गुंजाइश नहीं थी. न ड्रग की और न सैक्स की. रिपोर्ट के अनुसार, दोनों की मौत “हाइपोथर्मिया“ यानी अत्यधिक ठंड के कारण हुई थी.

फोरेंसिक एक्सपर्ट ने बताया कि हाइपोथर्मिया में व्यक्ति का ऐसा आचरण असाधारण बात नहीं है. उस के अनुसार हाइपोथर्मिया से मरने के ठीक पहले व्यक्ति को बहुत ज्यादा गरमी महसूस होती है और वह आंशिक या पूर्ण रूप से निर्वस्त्र होना चाहता है. आमतौर पर वह अपने वस्त्र नीचे से उतारना शुरू करता है, जूते, मोजे और पूर्णतः नग्न भी हो जाता है. इस क्रिया को “पाराडौक्सियल अनड्रेसिंग“

कहते हैं. “पाराडौक्सियल अनड्रेसिंग“ के तत्काल बाद आदमी बेहोश हो जाता है या मर जाता है.

डेनियल का बेटा मेसन और लोयला की बेटी मार्था दोनों बच्चे अपने पिता और माता के अंतिम संस्कार के लिए आए थे. मेसन ने मार्था से कहा, “प्रकृति भी कितनी निर्दयी है. कितने दुख की

बात है कि मेरे पिता और तुम्हारी माता के प्राण प्रकृति ने एक होने से पहले ही छीन लिए. हम दोनों

अगले महीने इन का वेडिंग प्लान कर रहे थे. जो भी हो, कम से कम मरने के पहले दोनों कुछ पल साथ रहे. जीसस, उन की आत्मा को शांति मिले.“

मार्था ने पूछा, “क्या हम इन के कब्र एकदूसरे के पास बना सकते हैं?“

“तुम ने ठीक कहा है. इन की आत्मा की शांति के लिए इस से बेहतर और कुछ नहीं हो सकता है.“

त्यौहारों में सूखे फूलों से यूं सजाएं घर

इंसान की जिंदगी में फूलों का एक अलग ही महत्त्व है. सौंदर्य व सजावट के अलावा संस्कारों, समारोहों और महत्त्वपूर्ण कार्यकलापों में फूलपौधों का इस्तेमाल किया जाता है. हर फूल एक निर्धारित समय के लिए अनुकूल मौसम और परिस्थितियों में ही खिलता और पनपता है. यदि इन फूल व पुष्पीय उत्पादों की कुदरती अवस्था में सुखाने की तकनीक विकसित की जाए तो इन्हें कुछ दिनों के बजाय महीनों और वर्षों तक घरों, दफ्तरों में सजाया जा सकता है.

फूल सुखाने के तरीके

कृत्रिम ऊर्जा के सहारे पौधों के खूबसूरत हिस्सों को नियंत्रित तापमान, नमी व हवा के बहाव में सुखाने की प्रक्रिया को डिहाइड्रेशन कहते हैं. इस प्रक्रिया द्वारा पौधों के खूबसूरत हिस्सों से नमी इस तरह निकाली जाती है कि उन की कुदरती अवस्था ज्यों की त्यों बनी रहती है. इस के उलट जब उन्हें प्रकृति में अपनेआप सूखने दिया जाता है तब औक्सीडेटिव प्रक्रिया से ये भूरे व काले पड़ जाते हैं.

हालांकि कुछ ऐसे पौधे, जिन में नमी कम हो, जल्दी ही सामान्य तापमान व हवा में कम नमी के होते सूख जाते हैं. इन में खासकर स्ट्रा फूल, पेपर फूल, स्टैटिस, धूप, फ्लेमिंजिया आदि शामिल हैं. कई पौधों के सुंदर फल, बीज व टहनियां अपनेआप सूख जाते हैं. ऐसे पौधों में अमलतास, रत्ती, क्लिमैटस, चीड़, रीठा आदि खास हैं.

खुले में लटका कर सुखाना :

यह फूल व पुष्पीय पदार्थों के सुखाने की सब से आसान व साधारण प्रक्रिया है. इस में फूल व पुष्पीय पदार्थों को रस्सी या तार से बांध कर उलटा लटका देते हैं. जब तक वे पूरी तरह सूख नहीं जाते, उसी अवस्था में रहने दिया जाता है. वहां पर नमी की मात्रा 50 फीसदी से ज्यादा नहीं होनी चाहिए और हवा का आवागमन पर्याप्त होना चाहिए. स्ट्रा फूल, पेपर फूल, स्टैटिस, धूप, फ्लेमिंजिया रूमैक्स कप व सौसर और बोगनबेलिया वगैरह इस प्रक्रिया से सूखने वाले खास फूल हैं. इस प्रक्रिया में दूसरे फूलों को सुखाने से वे सिकुड़ जाते हैं.

दबा कर सुखाना :

बहुत से फूल ऐसे होते हैं जिन्हें खुला उलटा लटका कर सुखाने से उन की पंखडि़यां व पत्तियां सिकुड़ जाती हैं व उन की सजावटी खूबसूरती भी खत्म हो जाती है. ऐसे फूलों को ‘दबा कर माध्यम’ के तहत सुखाया जाता है. जैसे :

  1. ऐसे माध्यम जो फूल व फूल उत्पादों को उस में दबाने पर नमी सोख लेता हो, उपयुक्त माध्यम कहलाता है. ध्यान रहे माध्यम, फूल व फूल उत्पादों पर कोई दुष्प्रभाव न छोड़ता हो. खासतौर पर उपयोग होने वाले माध्यमों में सिलिका जेल, सफेद व नीला बोरेक्स, बोरिक एसिड, नदी की साफ रेत, फिटकरी, ऐल्युमिनियम सल्फेट, बुरादा आदि शामिल हैं. इन्हें अकेले या मिश्रण बना कर इस्तेमाल किया जा सकता है.
  2. फूल व फूल उत्पादों को दबाने के लिए किसी भी किस्म के बरतन जैसे ऐल्युमिनियम, टिन, लोहे, कांच, मिट्टी या चीनी मिट्टी वगैरह के इस्तेमाल किए जा सकते हैं.

बरतन में 3 से 5 सैंटीमीटर पहले माध्यम को डालें व उस के बाद फूल या फूल भाग को एक हाथ से ऊपर उठा कर पकड़ें व दूसरे हाथ से धीरेधीरे माध्यम डालते रहें और इसे फूल से 2 या 3 सैंटीमीटर ऊपर तक डालें. इस के बाद बरतन को कमरे में रखें या रोजाना दिन के समय धूप में सुखाएं या हौट एअर ओवन यानी सोलर ड्रायर में 45 से 70 डिगरी सैल्सियस तापमान में रखें. फूलों को शीशे या प्लास्टिक के बरतनों में 2 से 5 मिनट तक मीडियम या 450 से 750 हर्ट्स पर 2-3 बार क्रमवार सुखाएं और बरतन को कमरे में 5 से 10 घंटे रखे रहने दें. इस तरीके से फूल जल्दी सूख जाते हैं.

कारोबारी तौर पर फूलों को वैक्यूम कक्ष या फ्रिज ड्रायर में 35 डिगरी सैल्सियस तापमान पर सुखाया जाता है. विभिन्न प्रकार के शुभकामना कार्ड या सजावटी सीनरी बनाने के लिए फूलपत्तियों को हरबेरियम प्रैस में सुखाया जाता है. फूल पत्तियां काली या भूरी न हों, इस के लिए उन्हें रोजाना अपनी जगह से बदल कर रखें. उन्हें बनावटी रंगों में रंग कर भी आकर्षक बनाया जा सकता है.

खाएं मगर सावधानी से

भागतीदौड़ती जिंदगी में जब सबकुछ फास्ट हो गया है तो फूड भला पीछे क्यों रहे. बनने में आसान, स्वाद में बेजोड़ रेडी टु ईट फूड आज किचन की शान बनते जा रहे हैं. ऐसे में जानें रेडी टु ईट फूड के खतरे व कैसे बना सकते हैं आप इन्हें सेहतमंद.

पुलाव, मटरपनीर, पालकपनीर,  दालमखनी, छोले, कोफ्ता, नवरतन कोरमा, बिरयानी, मटनकोरमा, शाही पनीर, टिक्का कबाब ही नहीं, बल्कि नूडल्स, सूप, चिकन नगेट्स, चिकन बौल्स, मीट बौल्स, मटन नगेट्स और न जाने क्याक्या, बनाने का झंझट नहीं और खाने में भी स्वादिष्ठ, मन तो आखिर ललचाएगा ही न.

जीवन की आपाधापी में तो कभी शौकिया और कभी अचानक किसी मेहमान के आ जाने पर पैकेट फूड या फ्रोजन फूड का बड़ा सहारा होता है. हम इसीलिए रेडी टु ईट फूड की तरफ  जानेअनजाने बढ़ ही जाते हैं. सब से बड़ी बात यह कि ये रेडी टु ईट फूड मौल्स से ले कर नुक्कड़ की दुकानों तक हर जगह उपलब्ध हैं. महानगर या शहर ही नहीं, गांव और कसबे में भी रेडी टु ईट फूड ने किचन में अपनी जगह बना ली है. पैकेट बंद फ्रोजन फूड अनाज की दुकानों तक में मिल जाते हैं.

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बनाना आसान

एक जमाना था जब छोले बनाने होते थे तो रात से ही तैयारी करनी पड़ती थी. छोले को भिगोना और सुबह तमाम मसाले को तालमेल के साथ तैयार करना व फिर छोले उबालना, मसाले पीसना, भूनना वगैरह. लेकिन आज मसाले तो क्या, मौसमबेमौसम हर तरह की सब्जीभाजी से ले कर मछलीमीट तक प्रीकुक्ड यानी पहले से तैयार खाने के सामान बंद पैकेटों में मिल जाते हैं और स्वाद, उस का तो कहना ही क्या.

स्वाद में बेजोड़ होने के कारण इन का बाजार दिनोंदिन बढ़ता जा रहा है. अगर किसी परिवार में पैकेट फूड का इस्तेमाल नहीं भी किया जाता है तो भुना तैयार मसाला, गार्लिक पेस्ट, जिंजर पेस्ट के लिए उस के किचन में जगह निकल ही आती है. कुल मिला कर इन तैयार खाने के सामानों ने जीवन को बहुत आसान बना दिया है, खासतौर पर उन कामकाजी महिलाओं के, जिन पर घर और बाहर दोनों की जिम्मेदारी है.

फलताफूलता व्यवसाय

पैकेटबंद फूड के चलन के चलते खाद्य प्रसंस्करण एक बढ़ता, फलताफूलता उद्योग बनता जा रहा है. केंद्रीय खाद्य प्रसंस्करण मंत्रालय की रिपोर्ट कहती है कि पिछले एक दशक में आसानी से तैयार हो जाने वाले पैकेटबंद फूड के बाजार में 70 प्रतिशत की वृद्धि हुई है.

कोलकाता के यादवपुर विश्वविद्यालय के फूड टैक्नोलौजी के प्रो. उत्पल राय चौधुरी का कहना है कि ऐसे पैकेटबंद या रेडी टु ईट खाने के सामानों के साथ ढेर सारे ‘लेकिन’, ‘किंतु’ और ‘परंतु’ जुड़े हुए हैं. खाने में स्वादिष्ठ पैकेटबंद सामानों के बारे में फौरी तौर पर कहा जाए तो अव्वल इन में बहुत ज्यादा सोडियम यानी नमक होता है. इस के अलावा कार्बोहाइड्रेट्स, बड़ी मात्रा में फ्रूटोज, ट्रांसफैट होते हैं. उस में सेहत के लिए जरूरी विटामिंस विशेषरूप से विटामिन बी1 और विटामिन सी व मिनरल्स की कमी होती है. दरअसल, इसे तैयार करने में इन के पौष्टिक गुण नष्ट हो जाते हैं. दूसरे, इन में अच्छीखासी मात्रा में प्रिजरवेटिव्स के साथ कृत्रिम रंग और खुशबू का इस्तेमाल होता है.

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हकीकत यह है कि बड़ी से बड़ी या नामीगिरामी कंपनी क्यों न हो, पैकेट में कोई भी इस बात का सहीसही जिक्र नहीं करती है कि उस में कितनी मात्रा में प्रिजरवेटिव्स और रंग का इस्तेमाल किया गया है. प्रो. उत्पल राय कहते हैं कि हालांकि इन का इस्तेमाल करने का न केवल एक मानक तय कर दिया गया है बल्कि इस से संबंधित कानून भी हैं लेकिन जागरूकता की कमी के कारण इस पर पूरी तरह से अमल नहीं हो रहा है.

रेडी टु ईट फूड के खतरे

ज्यादातर रेडी टु ईट या फ्रोजन फूड में उपादानों की सूची में हमें उन उपादानों का जिक्र देखने को नहीं मिलता जो हमारी सेहत के लिए हानिकारक होते हैं. ज्यादातर प्रोडक्ट में मोनोसोडियम ग्लुटैमेट या एमएसजी होता है, लेकिन सूची में इन का जिक्र अजीनोमोटो के रूप में या नैचुरल फ्लेवरिंग के तौर पर होता है.

इन में इतना अधिक नमक होता है कि लगातार इन का सेवन करने वालों को हाइपरटैंशन का खतरा बन जाता है. गर्भवती महिलाओं के लिए तो यह जहर बराबर है. इन्हें हाइड्रोजेनेटेड या आंशिक तौर पर हाइड्रोजेनेटेड तेल में तैयार किया जाता है. इन में आमतौर पर बहुत अधिक कैलोरी होती है. इस कैलोरी को खाद्य विशेषज्ञ स्वास्थ्य के लिए हानिकारक मानते हैं.

इन में मौजूद ट्रांसफैट की मात्रा सेहत के लिए हानिकारक होती है. यह ट्रांसफैट हाइड्रोजन गैस और तेल के मिश्रण से तैयार होता है. हालांकि प्राकृतिक रूप से यह ट्रांसफैट बीफ और मिल्क प्रोडक्ट में पाया जाता है. यह कोलैस्ट्रौल को बढ़ाता है. इस से मोटापे के खतरे के साथ धमनियों में चरबी जमने की आशंका होती है.

नूडल्स और सूप में काफी मात्रा में स्टार्च और नमक होता है. इस के अलावा एमएसजी यानी मोनोसोडियम ग्लुटैमेट होता है. पैकेट बंद गार्लिक व जिंजर पेस्ट का इस्तेमाल करने वालों को इस में एक विशेष तरह की गंध की शिकायत होती है. उत्पल रायचौधुरी का कहना है कि यह गंध दरअसल प्रिजरवेटिव्स की होती है. अलगअलग कंपनियां 1 साल से 6 महीने तक इस्तेमाल लायक बनाने के लिए उन में अधिक मात्रा में प्रिजरवेटिव्स उपादान डालती हैं.

सेहत का रखें खयाल

आज की भागती जिंदगी में रेडी टू ईट का हम सब को बड़ा सहारा है. खासतौर पर सूप और नूडल्स का. इस से होने वाले नुकसान को कम कर के इसे पौष्टिक बनाने के कुछ तरीके भी हैं. पैकेटबंद खाने में सोडियम की मात्रा को कम करने के लिए इस के मसाले के पाउच का इस्तेमाल आधा या उस से कम करें. रेडी टू ईट सूप को सेहत के लिए उपयुक्त बनाने के लिए इस में उबला अंडा, घर पर तैयार किया गया चिकन, हरे पत्तों वाली सब्जी, मसलन, नूडल्स में पत्तागोभी और सूप में पालक के अलावा गाजर, बींस, शिमलामिर्च और मटर डाला जा सकता है. पैकेटबंद खाना खाना अगर मजबूरी ही है तो इस बात का ध्यान रखें कि इसे अपनी आदत न बनाएं. कभीकभार ही इस का सहारा लें.

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खरीदारी के समय सावधानी

  1. पैकेट के लेबल को जरूर पढ़ कर जान लें कि आप जो चीज खरीद रही हैं, उस की पौष्टिकता का मान क्या है? इस की ‘मैन्यूफैक्चरिंग डेट’, ‘बैस्ट बिफोर ईट’, पैकेजिंग सील और लीकेज के प्रति सुनिश्चित हो लें.
  2.  फ्रोजन फूड को घर पर फ्रिज में हमेशा किसी इंसुलेटेड बौक्स या बैग में ही रखें. वह भी 0 से 4 डिगरी सैल्सियस के बीच तापमान पर. इस से इस में बैक्टीरिया पनपने का खतरा कम हो जाता है.
  3. एक बार पैकेट खोल लिया है तो पूरा का पूरा पैकेट खत्म कर दें. खुला पैकेट फिर से इस्तेमाल के लिए न रखें. हालांकि कुछ सामग्री के लेबल पर लिखा होता है कि पैकेट खोलने के बाद इतने समय के लिए फ्रिज में सुरक्षित रखा जा सकता है लेकिन विशेषज्ञ बताते हैं कि खुले पैकेट में खाना जल्दी खराब हो जाता है, साथ ही उस का स्वाद भी कम हो जाता है.
  4. ज्यादातर फ्रोजन फूड में एक खास तरह के लिस्टेरिया बैक्टीरिया होते हैं, जो कम तापमान में नहीं मरते. इसीलिए ऐसी खाद्य सामग्री के लेबल में इन्हें गरम करने से संबंधित निर्देश को ध्यान से पढ़ कर उन्हीं के अनुरूप खाना गरम करें.

सीनियर डायटीशियन रश्मी रायचौधुरी का कहना है कि प्रसंस्करण के दौरान खाद्य सामग्री की पौष्टिकता नष्ट हो जाती है. प्रिजरवेटिव्स और रंग की मिलावट के कारण आजकल समय से पहले अधेड़ दिखने के साथ ही साथ कैंसर जैसी बीमारी की आशंका भी देखी जा रही है. हालांकि पैकेटबंद खाद्य सामग्री तैयार करने वाली कंपनियों की तरफ से सहनीय मात्रा में प्रिजरवेटिव्स और रंग का उपयोग करने का जो दावा किया जाता है, अगर वे सही हैं तो उन से खतरे की गुंजाइश नहीं होती है लेकिन विशेषज्ञों की राय यह है कि कंपनियां आपसी प्रतिद्वंद्विता के चलते पैकेटबंद खाद्य सामग्रियों की ऐक्सपायरी डेट बढ़ाने के लिए ‘परमिसेबल’ मात्रा से कहीं अधिक प्रिजरवेटिव्स का इस्तेमाल करती हैं.

जहां तक सूप और नूडल्स का सवाल है तो एक तरफ इस की कीमत इतनी कम होती है कि स्कूली बच्चे अपनी पौकेट मनी से खरीद लेते हैं. जबकि संतुलित भोजन का उपादान इस में बिलकुल नहीं होता, क्योंकि इस में न तो प्रोटीन होता है और न ही विटामिन और खनिज. जहां तक फाइबर का सवाल है तो वह भी नहीं होता. इसीलिए यह आंतों में चिपक जाता है.

GHKKPM: विराट की नौकरी बचाएगी सई! विराट करेगा माफ?

टीवी सीरियल ‘गुम है किसी के प्यार में’ (Ghum Hai Kisikey Pyaar Meiin) की कहानी में लगातार महाट्विस्ट देखने को मिल रहा है. शो में अब तक आपने देखा कि सई, विराट को मनाने के लिए काफी कोशिश कर रही है लेकिन विराट मानने को तयार ही नहीं है तो दूसरी तरफ पाखी सई के खिलाफ सम्राट का कान भर रही है. पाखी कहती है कि सई विराट के लिए सही नहीं है. विराट को सई से खतरा है. इसी बीच शो में बड़ा ट्विस्ट आने वाला है. आइए बताते हैं, शो के आगे की कहानी.

सीरियल ‘गुम है किसी के प्यार में’ के अपकमिंग एपिसोड में आप देखेंगे कि सई विराट के लिए एक प्रेस कॉन्फ्रेंस रखेगी. सई सबको बताएगी कि विराट ने कैसे सदानंद का सामना किया था. इतना ही नहीं सई विराट की खूब तारीफ करेगी. सई कहेगी कि विराट ने एक वादा निभाने के लिए कितनी कुर्बानी दी है.

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सई की प्रेस कॉन्फ्रेंस की वजह से विराट को क्लीन चिट मिल जाएगी. सई विराट की नौकरी बचाने में कामयाब होगी. सई का प्यार देखकर विराट की आंख में आंसू आ जाएंगे. विराट इसके लिए सई को धन्यवाद कहेगा. हालांकि विराट अब भी सई को माफी नहीं देगा.

 

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शो में आप ये भी देखेंगे कि विराट गलती से भांग के लड्डू खा लेगा. जिसके बाद सई और विराट मिलकर होली का जश्न मनाएंगे. सई विराट से अपने दिल की बात कहेगी. अब ये देखना दिलचस्प होगा कि क्या नशे में विराट सई से प्यार का इजहार करेगा?

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बा के तानों के बाद भी अनुज-अनुपमा ने किया रोमांस

रुपाली गांगुली (Rupali Ganguly) और  सुधांशु पांडे (Sudhanshu Pandey) स्टारर सीरियल अनुपमा में इन दिनों हाईवोल्टेज ड्रामा चल रहा है. शो में अब तक आपने देखा कि बा अनुपमा को खूब सुनाती है, कहती है कि दादी कभी शादी नहीं कर सकती. वह आगे अनुपमा से ये भी कहती है कि तुम्हें अनुज को शादी के लिए ना कहना होगा. इसी बीच अनुज-अनुपमा का एक वीडियो वायरल हो रहा है, जिसमें दोनों जमकर रोमांस करते नजर आ रहे हैं.

इस वीडियो को देखकर आप कह सकते है कि बा की बातों से अनुज-अनुपमा को कोई फर्क नहीं पड़ता. वो दोनों बस एक-दूसरे के साथ रहना चाहते हैं. इस वीडियो में आप देख  सकते हैं कि अनुज और अनुपमा जमकर रोमांस करते नजर आ रहे हैं.

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रुपाली गांगुली ने कुछ समय पहले ही एक वीडियो शेयर की है. इस वीडियो में अनुज और अनुपमा फिल्म जलेबी के रोमांटिक गाने पर एक दूसरे के साथ फ्लर्ट कर रहे हैं. डांस करते करते अनुज और अनुपमा ने एक दूसरे को गले लगा लिया. फैंस को अनुज-अनुपमा का ये अंदाज काफी पसंद आ रहा है.

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‘अनुपमा’ में आप देखेंगे कि पाखी को उसके दोस्त कहेंगे कि हमारे देश में मम्मियां शादी नहीं करतीं और यह बात अनुपमा सुन लेगी. पाखी अपनी मां से कहेगी कि वो पापा की शादी के बाद उसकी बहुत बेइज्जती हुई थी और वो फिर से बेइज्जती नहीं झेल सकती है. पाखी कहेगी कि पापा लोग दूसरी शादी कर सकते हैं लेकिन मम्मियां नहीं कर सकतीं और आप इस शादी के बारे में ना सोचे.

 

तो दूसरी तरफ वनराज अनुपमा से कहेगा कि पाखी सही कह रही है मम्मियां दूसरी शादी नहीं करती और वो तो दादी बनने वाली है. वनराज कहेगा कि वो मर्द है उसकी दूसरी शादी से सिर्फ बवाल हुआ था लेकिन अगर अनुपमा दूसरी शादी करेगी तो बर्बादी होगी. शो के आने वाले एपिसोड में अनुज का भयंकर एक्सीडेंट होगा. ऐसे में अनुज और अनुपमा की प्रेम कहानी में एक नया मोड़ आएगा.

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सच्ची श्रद्धांजलि: भाग 2

Writer- Sandhya

मैं रातदिन पापा और आंटी की शादी की गुत्थी में उलझी रहती, एक सेकंड भी मेरा मन इस उलझन से निकल नहीं पाता था. नतीजतन, इस का असर मेरे स्वास्थ्य पर पड़ना ही था, सो पड़ गया. राजेश ने मुझे डाक्टर को दिखाया. सारी जांचपड़ताल के बाद डाक्टर का दोटूक निर्णय यही था कि सब रिपोर्ट नौर्मल हैं, ये बहुत टैंशन में हैं, इतना टैंशन इन को काफी नुकसान पहुंचा सकता है. इन्हें खुश रहने की ही आवश्यकता है. राजेश ने मुझे बड़े प्यार से समझाया, ‘‘रिया, जो होना था सो हो गया, मम्मी चली गई हैं, तुम्हारे लाख चिंता करने से भी वापस नहीं आएंगी. सो, मन को दुखी मत करो.’’

मैं ने कहा, ‘‘राजेश, मम्मी को गुजरे ढाई माह हो रहे हैं, मैं ने उस दुख को सहज ले लिया है. मैं क्या करूं, पापा और आंटी ने शादी कर मम्मी के साथ विश्वासघात किया है, यह मुझ से बरदाश्त नहीं हो रहा है.’’

राजेश बहुत संयत हो कर बोले, ‘‘यों अपने को जलाने से तो कोई फायदा नहीं है. मुझे ऐसा लगता है, जरूर कोई कारण होगा जो उन लोगों ने ऐसा कदम उठाया है, दोनों ही बहुत सुलझे हुए और समझदार इंसान हैं.’’

मैं ने कहा, ‘‘राजेश, क्या कारण हो सकता है, दोनों सब की आंखों में धूल झोंक कर प्रेम किया करते होंगे. अभी तक दोनों नाटक ही कर रहे थे, बल्कि मुझे तो पूरा विश्वास है कि दोनों मम्मी की मृत्यु का इंतजार ही करते होंगे. उन्हें अपने रास्ते का कांटा ही समझते रहे होंगे.’’

राजेश ने थोड़ा सख्ती से मुझ से कहा, ‘‘रिया, हम भी बच्चे नहीं हैं. हमारी आंखों पर पट्टी नहीं बंधी हुई है जो हमारी आंखों के सामने प्रेमलीला खेली जाए और वह हमें दिखाई भी न दे.’’

मैं ने मायूस हो कर कहा, ‘‘राजेश, मुझे तो समझ ही नहीं आ रहा है कि मैं क्या करूं? किस के आगे रोऊं, चीखूं, चिल्लाऊं. जी में आता है उन दोनों से खूब झगड़ूं कि आप लोगों की नीयत में ही खोट था जो मम्मी चल बसीं और अब दोनों शादी रचा रहे हैं.’’

राजेश ने मेरे हाथ को अपने हाथों में ले कर बहुत ही संयत ढंग से कहा, ‘‘रिया, मेरी बात ध्यान से सुनो. 4 दिनों बाद रिंकू की गरमी की छुट्टियां शुरू हो रही हैं. हम भी छुट्टी ले कर पापा के पास चलते हैं.’’

मैं ने झट से कहा, ‘‘राजेश, उन्हें तो हम कबाब में हड्डी की तरह लगेंगे. वे दोनों तो हनीमून के मूड में होंगे. अब निर्मला आंटी मेरी आंटी नहीं, बल्कि मेरी सौतेली मां बन बैठी हैं, न जाने कैसा व्यवहार करें,’’ मैं ने बात और विस्तार से समझाने के लिए राजेश से कहा, ‘‘अब तो पापा पर भी भरोसा नहीं रहा. कहीं वे हम लोगों का अपमान न कर बैठें? मेरी तो छोड़ो, तुम्हारे अपमान को मैं बरदाश्त न कर पाऊंगी.’’

राजेश ने मेरे कंधों पर हाथ रखते हुए बड़े धैर्य से जवाब दिया, ‘‘यदि नहीं मिलना चाहेंगे या हमारा अपमान करेंगे, हम तुरंत लौट आएंगे और फिर दोबारा उन के पास नहीं जाएंगे. हम यही समझ लेंगे कि मम्मी तो अब इस दुनिया में नहीं हैं और पापा से अब हमारा कोई संबंध नहीं है.’’

मैं चुपचाप राजेश की बातें सुन रही थी.

‘‘तुम्हें मुझ से वादा करना होगा कि तुम उस के बाद पापा की चिंता करना छोड़ दोगी,’’ उन्होंने बड़े प्यार से कहा, ‘‘मुझ से मेरी बीवी उदास और बुझीबुझी देखी नहीं जाती इसलिए एक बार तो यह रिस्क लेना ही होगा. एक बार चल कर देखना ही होगा.’’

हम जब पापा के पास पहुंचे उस समय सुबह के लगभग 8 बज रहे थे. पापा बागबानी में लगे हुए थे. हमें देखते ही गेट तक आए और बोले, ‘‘अरे, तुम लोग बिना खबर दिए आए, खबर करते तो मैं स्टेशन आ जाता.’’

राजेश ने धीरे से मुझ से कहा, ‘‘रिया, गुस्से को जब्त रखना और अपनी तरफ से कुछ भी अपमानजनक नहीं करना,’’ राजेश ने टैक्सी से निकलते हुए कहा, ‘‘अचानक ही प्रोग्राम बन गया इसलिए चले आए,’’ मैं अपने क्रोध को किसी तरह रोकने की कोशिश कर रही थी, फिर भी मुंह से निकल ही गया, ‘‘हमें लगा, आप को फुरसत कहां होगी, फिर हमें लाने की आप को अनुमति मिले न मिले.’’

पापा कुछ भी न बोले. हमें अंदर लिवा लाए और बोले, ‘‘निम्मो, देखो कौन आया है?’’

पापा के मुंह से निम्मो सुन मैं अंदर ही अंदर तिलमिला गई. निर्मला आंटी तुरंत हाथ पोंछती हुई हमारे पास आ गईं, शायद किचन में थीं. आते ही बोलीं, ‘‘अरे बेटी रिया, कैसी हो? राजेश, रिंकू तुम सभी को देख कर बहुत खुशी हो रही है,’’ फिर रिंकू को दुलारते हुए बोलीं, ‘‘तुम लोग फ्रैश हो लो, मैं नाश्ते की तैयारी करती हूं. हम सभी साथ ही नाश्ता करेंगे.’’

मैं ने कुछ भी नहीं कहा. अपना मायका आज मुझे अपना सा लग ही नहीं रहा था. चुपचाप हम ने थोड़ाथोड़ा नाश्ता कर लिया. निर्मला आंटी ने राजेश के पसंद के आलू के परांठे बनाए थे तथा रिंकू की पसंद की गाढ़ी सेंवइयां भी बनाई थीं.

पापा का बैडरूम वैसा ही था जैसा मम्मी के समय रहता था. घर की साजसज्जा भी वैसी ही थी, जैसी मम्मी के समय रहती थी. परदे, चादरें सब मम्मी की पसंद के ही लगे हुए थे. बैडरूम में मम्मी की बड़ी सी तसवीर लगी हुई, उस पर सुंदर सी माला पड़ी हुई थी. मुझे मायके आए हुए 2 दिन हो चुके थे. निर्मला आंटी से मैं ने कोई बात नहीं की थी. पापा से भी कुछ खास बात नहीं हुई थी. शाम को पापा रिंकू को ले कर घूमने निकले थे, मैं और राजेश टैरेस पर गुमसुम बैठे हुए थे, तभी निर्मला आंटी आईं और मेरे हाथ में एक कागज थमाते हुए बोलीं, ‘‘बेटी रिया, इसे पढ़ लो. मैं खाना बनाने जा रही हूं. क्या खाना पसंद करोगी, बता देतीं तो अच्छा रहता.’’

मैं ने बेरुखी से कहा, ‘‘जो आप की इच्छा, हम लोगों को खास भूख नहीं है.’’

पापाज बौय: भाग 2

ऐसा कभी नहीं हुआ कि वह मेरे साथ मैडिकल कालेज के लड़कों को देख कर चिढ़ा हो, उन्हें बरदाश्त न कर पाया हो और न ही कभी ऐसा हुआ कि उस के साथ लड़कियों को देख कर कभी किसी शंका ने मेरे मन में जन्म लिया हो. हम अपने प्रेम के लिए पजैसिव भी थे और प्रोटैक्टिव भी. समय का अभाव जरूर हमें सालता था, पर हम अपने दायित्वों को समझते थे. हम हरसंभव प्रयास करते थे कि सप्ताहांत में मिलें और रोमांस को बरकरार रखें. उस सैक्स को जीवंत रखें, जो रोमांस के लिए जरूरी है ताकि संबंधों में मधुरता बनी रहे.

एक डेट पर जब हम दोनों ने यह एहसास कर लिया कि हम एकदूसरे के लिए ही हैं तो हम ने विवाह बंधन में बंधने का निर्णय कर लिया. उस दिन पुलक कर मैं ने न जाने कितने चुंबन उस के गाल पर जड़ दिए थे और उस ने मुझे अपनी बांहों से बिलकुल भी छिटकने नहीं दिया था. मोबाइल की घंटी बजते ही शायनी की सोच बिखर गई. फोन पर शतांश था. शायनी ने उसे लगभग डांट सा दिया. हलके से क्रोध भरे स्वर में वह बोली, ‘‘शतांश, आजकल क्या हो गया है तुम्हें? मैं आधे घंटे से तुम्हारा इंतजार कर रही हूं.’’

‘‘सौरी डार्लिंग, मैं आज नहीं आ पाऊंगा,’’ शतांश बोला. ‘‘आखिर क्यों?’’

‘‘मैं बिजी हूं. एक पल की भी फुरसत नहीं है मुझे.’’ ‘‘मुझे पहले नहीं बता सकते थे,’’ शायनी ने अपनी नाराजगी जाहिर की.

‘‘सौरी लव, मुझे ध्यान ही नहीं रहा.’’ गुस्से में शायनी ने फोन काट दिया. सोच का रथ फिर दौड़ने लगा. तेज और तेज. जीवन में कुछ परिवर्तन अचानक होते हैं. ऐसा ही परिवर्तन पिछले कुछ दिनों से मैं शतांश के व्यवहार में देख रही हूं. यद्यपि मेरा मन कई आशंकाओं और भय से इन दिनों लगातार घिरता रहा है पर मैं ने इन आशंकाओं को अब तक अपने ऊपर हावी नहीं होने दिया.

मैं ने हरसंभव प्रयास किया है कि हमारे प्यार को किसी की नजर न लगे. रोमांस बरकरार रहे. मेरा प्रेम मेरे लिए सब से महत्त्वपूर्ण है. मैं रोमानी रिश्तों में बोल्डनैस की पक्षधर हमेशा रही हूं. रिश्तों में दावंपेंच मुझे कतई पसंद नहीं रहे. शतांश का मुझ से कतराना मुझे आहत करने लगा है. यदि अब वह किन्हीं कारणों से मुझ से सामंजस्य नहीं बना पा रहा है, तो मैं चाहती हूं कि वह मेरे समक्ष आए और मेरे सामने अपना दोटूक पक्ष रखे. यदि हमारे संबंधों में एकदूसरे का सम्मान लगभग समाप्त होने लगा है, तो कम से कम हम बिछुड़ें तो मन में खटास ले कर दूर न हों.

एक लंबे अंतराल के बाद शतांश ने शायनी को फोन किया. शायनी उस समय कालेज में थी. शतांश ने उसे बताया कि वह आज रेस्तरां में उस से मिलना चाहता है. शायनी उस समय अपने कई मित्रों से घिरी हुई थी. वह शतांश को अधिक समय नहीं दे पाई. उस से शाम को मिलने का वादा कर के वह अपनी क्लास में चली गई. शाम को जब शायनी रेस्तरां पहुंची तो वहां शतांश पहले से ही उस का इंतजार कर रहा था. शायनी को देखते ही उस ने वेटर को 2 कप कौफी लाने का और्डर दिया और शायनी के बैठते ही उस से पूछा, ‘‘कैसी हो?’’

‘‘पहले जैसी नहीं,’’ शायनी ने संक्षिप्त सा उत्तर दिया. ‘‘मैं तुम्हारी नाराजगी समझ सकता हूं,’’ वह बड़ी गंभीरता से बोला, ‘‘सौरी लव, व्यस्तता इतनी अधिक थी कि तुम से मिलने का समय नहीं निकाल पाया,’’ शतांश ने कहा.

शायनी चुप रही. वह शतांश के चेहरे को पढ़ने का प्रयास करने लगी. उस की चुप्पी ने शतांश को असहज कर दिया. कुछ समय पश्चात चुप्पी शतांश ने ही तोड़ी, ‘‘डियर, जो सच मैं इन दिनों तुम से छिपाता रहा हूं, वह यह है कि मैं पापा के मित्र की लड़की खनक से विवाह करने जा रहा हूं. मैं समझता हूं कि तुम मेरा यह फैसला सुन कर आहत जरूर होगी, लेकिन सच यह भी है कि हम में से यह कोई नहीं जानता कि अगला पल हमारे लिए क्या लिए हुए खड़ा है. ‘‘यह पापा का फैसला है. वे हृदयरोगी हैं. उन के अंतिम समय में मैं उन्हें कोई आघात नहीं पहुंचाना चाहता.’’

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