यूक्रेन पर हमले पर किस तरह पूरा यूरोप, जापान, आस्टे्रलिया और अफ्रीका व दक्षिण अमेरिका के देश तेजी से लोकतंत्र को बचाने में जुट गए, यह एक राहत का सबब है. जो ढीलढाल दूसरे विश्व युद्ध के समय की गई थी, अब न की जाए और यूक्रेन चेकेस्लोवानिया की तरह खूनी हिटलर का पहला निवाला न बए जाए. इस के लिए अब सारे देश जुट गए हैं.

इस में ज्यादा श्रेय व्लादिमीर जेलेंस्की को जाता है जिस ने देश छोडऩे से इंकार कर दिया और रूस साम्राज्य का पहले अंग रहते हुए भी अब हर सडक़, हर खेत, हर फैक्ट्री, हर घर, हर जंगल हर पहाड़ से लडऩे को देश को तैयार किया है. यूरोप ने जिस तेजी से रूस के हाथ पैर बांधने के लिए आॢथक प्रतिबंध लगा और जिस तत्परा से यूक्रेन को हथियारों का भंडार भेजना शुरू किया है, वह लगभग अद्भुत है.

यह एक देश की जनता की अपने अधिकारों की रक्षा की परीक्षा है और फिलहाल यह दिख रहा हैकियूरोप और एशिया में फैला विशाल रूस छोटे से यूक्रेन के आगे ढीला पड़ रहा है.

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इतिहास में यह पहली बार नहीं हो रहा है. छोटेछोटे देशों ने अक्सर बड़े देशों को हराया है और अक्सर व छोटे देशों के राजाओं ने कमजोर किया जिन विशाल देशों को गुलाम भी बनाया है. सवाल यह होता है कि आप आम आदमी के हकों के लिए कितना लडऩा चाहते हैं या आप का दुश्मन कितना अपने हको के प्रति उदासीन हैं.

भारत एक क्लासिक उदाहरण है जहां मुट्ठी भर लोग दशकों नहीं सैंकड़ों साल बाहर से आकर राज करते रहे हैं. कई बार वे इसी मिट्टी में घुलमिल कर वैसे ही बन गए तो परिणाम उन्होंने झेला जो कुछ दशक या सदी पहले यहां के निवासियों ने झेला था.

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