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Movie Review : ‘सिकंदर का मुकद्दर’ की कहानी में झोल

Movie Review :  बौलीवुड की इस साल की सब से कमजोर फिल्म मानी जाएगी ‘सिकंदर का मुकद्दर’. इस साल आई ‘औरों में कहां दम था’ और 2013 में आई ‘स्पैशल 26’ जैसी फिल्में बनाने वाले नीरज पांडे ने अपनी इस फिल्म में 3 क्लाइमैक्स दिखाए हैं. 3 क्लाइमैक्स दिखाने का चलन हौलीवुड सिनेमा में है जिसे नीरज पांडे ने अपनाया है. मगर अफसोस, उस ने ‘सिकंदर का मुकद्दर’ फिल्म को अधर में लटकते छोड़ दिया है.

फिल्म का टाइटल 1978 में आई अमिताभ बच्चन, रेखा, विनोद खन्ना, कादर खान वाली प्रकाश मेहरा की सुपरडुपर हिट फिल्म से लिया गया है. फिल्म एक थ्रिलर ड्रामा है. इस में ऐसे राज और घटनाएं छिपी हैं जो एक के बाद एक खुलती हैं. मगर ये घटनाएं पुरानी और घिसीपिटी हैं.

फिल्म की कहानी 15 साल का सफर तय करती है और इस दौरान आगेपीछे होती रहती है. टर्न और ट्विस्ट्स बिलकुल भी नहीं चौंकाते. कहानी 60 करोड़ रुपए की कीमत के हीरों की चोरी, उन की तलाश करते एक पुलिस इंस्पैक्टर के इर्दगिर्द घूमती है.

कहानी में झोल

कहानी 2009 से शुरू होती है. मुंबई में एक ज्वैलरी एक्जीबीशन लगी थी. तभी एक पुलिस वाले को फोन आता है कि एक्जीबीशन में हीरों की चोरी होने वाली है. वह बताता है कि इस चोरी को 4 लोग अंजाम देंगे जो बंदूकों से लैस हैं. पुलिस चौकन्नी हो जाती है. तभी सिक्योरिटी अलार्म बजने लगते हैं. पुलिस और चोरों के बीच वारपलटवार चलता है. पुलिस चारों चोरों को मार गिराती है.

तभी कामिनी सिंह (तमन्ना) देखती है कि 5 बड़ेबड़े डायमंड्स चुराए गए हैं जिन की कीमत 50-60 करोड़ रुपए के बीच है. पुलिस अफसर जसविंदर सिंह (जिमी शेरगिल) को बुलाया जाता है. जसविंदर वहां सभी से पूछताछ करता है. उसे 3 लोगों पर शक है, पहला सिकंदर (अविनाश तिवारी) जो कंप्यूटर रिपेयरिंग का काम करता था, दूसरी कामिनी (तमन्ना भाटिया) और कामिनी के कलीग जिसे अकसर लोग अंकल कहा करते थे. जसविंदर को लगता था कि ये तीनों मिले हुए हैं. वह उन्हें जेल में डाल देता है. जसविंदर से सिकंदर कहता है कि वह बेगुनाह साबित होगा और जसविंदर को उस से माफी मांगनी होगी.

15 साल का पेंच

कहानी 15 साल आगे जाती है. जसविंदर को शराब पीने की लत लग चुकी थी. उसे नौकरी से भी निकाला जा रहा था. उसी की बीवी कौशल्या (दिव्या दत्ता) भी उसे डिवोर्स दे रही थी. तभी जसविंदर को खबरी का फोन आता है कि जिसे वह ढूंढ़ रहा है वह अबूधाबी में है. यह शख्स सिकंदर था. जसविंदर सिकंदर से माफी मांगने के लिए उसे वापस बुलाता है.

कहानी फिर 15 साल पीछे जाती है. कामिनी और अंकल जमानत पर छूट जाते हैं. सिकंदर वापस घर आता है. कामिनी और सिकंदर की मुलाकात होती है. उसे उस का पति छोड़ कर चला गया था. सिकंदर और कामिनी नजदीक आते हैं. दोनों शादी कर लेते हैं. सिकंदर और कामिनी आगरा शिफ्ट हो जाते हैं. पुलिस सिकंदर, कामिनी और अंकल के खिलाफ वारंट जारी करती है परंतु जज उन्हें बेगुनाह साबित कर रिहा कर देती है.

तभी कामिनी बीमार हो जाती है. उस के इलाज के लिए सिकंदर को एक लाख रुपए की जरूरत है. वह अपने मकान मालिक से डिपौजिट रखे एक लाख रुपए वापस ले लेता है. मगर गुंडे उस से सारे पैसे छीन लेते हैं. वह पहले तो सुसाइड करने की सोचता है, फिर एक मंदिर से पैसे चुराता है. उसे अबूधाबी में काम मिल जाता है.

कहानी फिर पीछे लौटती है. जसविंदर को पता चलता है कि एक हीरा कामिनी के पास है तो वह उसे सिकंदर पर नजर रखने को कहता है. जसविंदर सिकंदर के लिए मुशकिलें पैदा कर रहा था. वह कामिनी को छोड़ कर चला जाता है और एक गांव पहुंचता है. वहां उस की पुरानी गर्लफ्रैंड प्रिया उसे एक नर्सरी में ले जाती है जहां उस ने डायमंड छिपाए थे, जिन्हें सिकंदर ने ही दिया था.

दरअसल वह चोरी सिकंदर ने ही की थी. जसविंदर उसे अरैस्ट कर लेता है. यहां सिकंदर का पूरा प्लान क्लीयर हो जाता है कि उस ने डायमंड्स की चोरी कैसे की. निर्देशक ने अपनी इस फिल्म के लिए बचकानी सी कहानी को खुद ही लिखा है. उस ने दर्शकों को बेवकूफ समझ लिया है. दर्शक फिल्म देखने पर मजबूर हो जाते हैं कि कौन किस का मुकद्दर लिख रहा है. फिल्म की लंबाई कम की जा सकती थी.

तबस्सुम (जोया अख्तर) का किरदार अगर न भी होता तो कोई फर्क न पड़ता. चोरी से पहले कभी एकदूसरे का नाम तक न जानने वाले कामिनी और सिकंदर के बीच अचानक लवस्टोरी कैसे शुरू हो गई, सोच से परे है. मंगेश देसाई के किरदार को एकदम गायब कर दिया गया है.

तमन्ना भाटिया अपने किरदार में जंची है. जिमी शेरगिल का काम अच्छा है. सिकंदर की भूमिका में अविनाश तिवारी जंचा है. पटकथा में काफी झोल है. डकैती का रहस्य खुलने पर मजा नहीं आता. पार्श्व संगीत साधारण है. सिनेमेटोग्राफी भी अच्छी है.

 

Gray Divorce : तलाक का नया ट्रैंड

Gray Divorce : आजकल ग्रे डिवोर्स यानी वृद्धावस्था में तलाक के मामले तेजी से बढ़ रहे हैं. जीवन की लंबी उम्र, आर्थिक स्वतंत्रता और बदलती सामाजिक धारणाओं ने इस ट्रैंड को गति दी है.

बौलीवुड में शादियां क्यों नहीं टिकतीं

बौलीवुड के फेमस सिंगर ए आर रहमान और उन की पत्नी सायरा बानो शादी के 29 वर्षों बाद अलग हो गए हैं, जिसे सुन कर हरकोई हैरान है कि आखिर शादी के इतने सालों बाद ऐसा क्या हुआ जो संगीतकार को इतना बड़ा फैसला लेना पड़ा. वैसे, इस के पहले कई मशहूर हस्तियां डिवोर्स ले कर लोगों को हैरानी में डाल चुकी हैं. आमिर खान, कमल हासन, आशीष विद्यार्थी, कबीर बेदी सहित कई लोगों के तलाक हो चुके हैं. इन सभी ने दशकों तक चले लंबे विवाह के बाद तलाक का फैसला लिया. सायरा बानो की वकील वंदना शाह ने एक इंटरव्यू में शोबीज में शादियों और असफलताओं के बारे में चौंकाने वाले खुलासे किए हैं कि बौलीवुड में शादियां क्यों नहीं टिकतीं और आजकल तलाक का चलन इतनी तेजी से क्यों बढ़ रहा है.

अलग सैक्स लाइफ

वंदना शाह ने ‘द चिल ओवर पोडकास्ट’ पर कहा कि बौलीवुड वालों की जिंदगी बहुत अलग होती है और ऐसी शादियों में, खासकर बौलीवुड में, बेवफाई नहीं बल्कि बोरियत अकसर अलगाव की ओर ले जाती है. वकील ने कहा कि मशहूर हस्तियां अकसर एक रिश्ते से दूसरे रिश्ते में बदलाव करते हुए कई शादियां करती हैं. ऐसे लोग बहुत अलग सैक्स लाइफ जीते हैं. एक सामान्य व्यक्ति की शादी की तुलना में इन लोगों की सैक्स को ले कर उम्मीद बहुत अधिक होती है. हालांकि इन के लिए ‘वन नाइट स्टैंड’ भी कोई माने नहीं रखता है. दरअसल असली मुद्दा नीरसता है जो रिश्ते टूटने का कारण बनती है. वंदना शाह ने यह भी कहा कि जीवनसाथी की मां, भाई और यहां तक कि ससुराल-परिवार सहित बाहरी लोगों का हस्तक्षेप अकसर सैलिब्रिटी मैरिज में चुनौतियों को बढ़ा देता है.

बड़ा कारण ‘घोंसला सिंड्रोम’

वैसे, केवल बौलीवुड और अमीर परिवारों में ही शादियां नहीं टूटतीं, बल्कि आम परिवारों में भी कई शादियां लंबे समय तक नहीं चल पाती हैं और पतिपत्नी तलाक ले कर अलग हो जाते हैं. पिछले 5 सालों में बुजुर्गों में तलाक के मामले दोगुने हुए हैं. दंपती आपसी रजामंदी से अलग हो रहे हैं, जिसे Gray Divorce कहते हैं. इस उम्र में तलाक लेने के पीछे का बड़ा कारण ‘घोंसला सिंड्रोम’ को माना जा रहा है. क्या है घोंसला सिंड्रोम खाली घोंसला वह स्थिति है जहां मातापिता अपने घर यानी सपनों के घोंसले में अकेले रह जाते हैं. उन के बच्चे पढ़ाई और कैरियर के कारण घर से बाहर चले जाते हैं. ऐसे में अकेले मातापिता दुख और अकेलेपन की भावना के शिकार होने लगते हैं.

ग्रे डिवोर्स क्या है

ग्रे डिवोर्स को अकसर ऐसे तलाक के रूप में परिभाषित किया जाता है जो लंबे समय तक चली शादी के बाद 50 वर्ष की आयु के बाद होता है. ऐसे व्यक्ति अकसर कई वर्षों या दशकों से विवाहित जिंदगी जीने के बाद आखिरकार अपनी शादी से अलग होने का फैसला ले लेते हैं. लंबे समय साथ रहने के बाद अलग होने को सिल्वर स्प्लिटर्स कहा जाता है. इधर पिछले कुछ सालों में ‘Gray Divorce’ के मामले दुनियाभर में तेजी से बढ़ रहे हैं. Gray Divorce की वजह क्या है

बच्चों का विदेश चले जाना : उम्र के इस पड़ाव में अलग होने का एक बड़ा कारण जीवन में अकेलापन है. ज्यादातर दंपती के बच्चे या तो विदेश में सैटल हो जाते हैं या किसी दूसरे शहर में जा कर बस जाते हैं. ऐसे में मातापिता अकेले रह जाते हैं और आपस में छोटीछोटी बातों पर लड़नेझगड़ने लगते हैं और फिर एक दिन अलग होने का फैसला कर लेते हैं.
दंपती का एकदूसरे से लगाव खत्म होना : एक उम्र के बाद पतिपत्नी का एकदूसरे से लगाव खत्म होने लगता है. वे एकदूसरे से इतने ज्यादा एरिटेड होने लगते हैं कि एकदूसरे से बात तक करना पसंद नहीं करते हैं. अधिकतर लोगों का तलाक एकदूसरे से लगाव खत्म हो जाने के कारण होता है.
बच्चों का अलग हो जाना : कई मामलों में यह भी देखा गया है कि बच्चे शादी के बाद मातापिता से दूरियां बना लेते हैं और अलग घर ले कर रहने लगते हैं, जिस की वजह से मातापिता में तनाव और कलह बढ़ने लगता है.
अपेक्षाएं पूरी न होना : 56 साल की ममता की आज भी अपने पति से यही शिकायत है कि उस ने उसे कभी नहीं समझा,  यह जानने की कोशिश तक नहीं की कि उसे चाहिए क्या? वहीं ममता के पति का कहना है कि उन की पत्नी ने कभी उन की इज्जत नहीं की. जब दो लोग साथ रहते हैं तो एकदूसरे से अपेक्षाएं तो होती ही हैं. लेकिन जब वही चीज पूरी नहीं हो पाती है तो दोनों के बीच मनमुटाव बढ़ने लगता है और उन के रास्ते अलग हो जाते हैं.
एक्स्ट्रा मैरिटल अफेयर : अब शादी कोई बंधन नहीं रहा है. क्या बुजुर्ग क्या जवान, हर इंसान सोशल मीडिया पर इंगेज हैं. नएनए रिश्ते बना रहे हैं वह भी अपने पार्टनर से छिपा कर. यह भी एक वजह है रिश्ते टूटने की.
Gray Divorce के संकेत : कहा जाता है कि तलाक होने से काफी पहले ही मानसिक तौर पर पतिपत्नी के बीच तलाक हो चुका होता है. यानी इस के संकेत काफी पहले से दिखने शुरू हो जाते हैं. कम्यूनिकेशन गैप, लंबे समय से एकदूसरे के बीच आई दूरी, आपसी तालमेल न होना, एकदूसरे की बातों से चिढ़ना, बच्चों के घर से जाने के बाद बहुत अकेला महसूस करना आदि संकेत बताते हैं कि पतिपत्नी के बीच अब पहले वाला लगाव नहीं रहा.

मध्यम आयुवर्ग और वृद्ध वयस्कों में तलाक

2022 में किए गए एक अध्ययन में पाया गया कि मध्यम आयुवर्ग और वृद्ध वयस्कों में तलाक की दर 1970 के बाद से बड़ी है. 1970 में ग्रे तलाक अपेक्षाकृत असामान्य था और 1990 तक इस में मामूली वृद्धि हुई. 1990 में 50 वर्ष से अधिक आयु के लोगों में 8.7 फीसदी विवाह तलाक में समाप्त हो गए. 2019 तक यह संख्या बढ़ कर 36 फीसदी हो गई.
शोधकर्ताओं ने यह भी पाया कि 65 वर्ष से अधिक आयु के लोग ही एकमात्र ऐसा आयुवर्ग है जिस में तलाक की दर बढ़ रही है. इस के विपरीत, 20 और 30 के दशक के वयस्कों में तलाक की दर हाल के वर्षों में वास्तव में कम हुई है. gray divorce से कैसे निबटें इस के लिए आप अपनी लाइफ फिर से खुल कर जीने की कोशिश कीजिए. अपने दोस्तों को फोन कौल कीजिए. उन के साथ टाइम स्पैंड कीजिए. अगर कोई मैंटली परेशानी है तो डाक्टर को दिखाइए. इस तरह आप gray divorce से निबट सकते हैं.

 Family Matters : मैं बेटी के लिए लड़का ढूंढ़ रही हूं. सिंगल मदर हूं.

Family Matters : अगले महीने लड़के वाले मेरी बेटी को शादी के लिए देखने आने वाले हैं. लड़के की फैमिली मेरी फ्रैंड की जानपहचान की है. मैं थोड़ा नर्वस हूं क्योंकि मेरा यह फर्स्ट एक्सपीरिएंस होगा. ऐसा क्या करूं कि लड़के वाले शादी के लिए तैयार हो जाएं, सुझाव दीजिए.

यह एक महत्त्वपूर्ण और संवेदनशील समय है, जब दोनों परिवारों की सोच और रिश्ते को समझ कर एक मजबूत और सकारात्मक इंप्रैशन बनाना जरूरी होता है. सब से पहले तो लड़के के परिवार का अच्छे से स्वागत करें. घर का माहौल सुखद, आरामदायक और दोस्ताना होना चाहिए. इस तरह का सकारात्मक और खुले विचारों का वातावरण रिश्ते को मजबूती प्रदान करता है.

लड़के के परिवार के साथ बातचीत में आदर और सम्मान का ध्यान रखें. उन की राय, विचार और सवालों का सम्मान करें चाहे वे किसी भी मुद्दे से संबंधित हों. आप की विनम्रता और समझदारी उन्हें प्रभावित कर सकती है.

अपनी बेटी के गुण, शिक्षा और व्यक्तिगत विशेषताओं का उल्लेख करें. यह लड़के के परिवार को यह एहसास दिलाएगा कि आप की बेटी अच्छी व समझदार है. अपने परिवार की आर्थिक स्थिति और सामाजिक स्थिति का भी एक हलका सा इशारा करें. हालांकि यह दिखाना जरूरी नहीं कि आप बहुत अमीर हैं लेकिन लड़के के परिवार को यह जानने की जरूरत है कि आप एक अच्छे, सुरक्षित और स्थिर परिवार से हैं.

अपने परिवार के सांस्कृतिक और पारिवारिक मूल्यों को भी साेल्‍व करें. यह दर्शाता है कि आप की पारिवारिक परंपराएं मजबूत हैं और आप अपने रिश्तों को गंभीरता से लेते हैं.

आप की बातों और व्यक्तित्व में आत्मविश्वास होना जरूरी है. जब आप अपने परिवार और बेटी के बारे में विश्वास के साथ बात करते हैं तो यह लड़के के परिवार को भी आप के प्रति सकारात्मक दृष्टिकोण अपनाने में मदद करता है.

मुलाकात के दौरान केवल एकदूसरे की तारीफों के बजाय रिश्ते के बारे में खुल कर बात करें. आप अपनी बेटी के लिए क्या चाहते हैं, उस की शिक्षा, कैरियर और भविष्य के बारे में आप के विचार क्या हैं, इस पर चर्चा करें.

लड़के के परिवार से उन की उम्मीदों और सवालों का ध्यान से जवाब दें. जब आप अच्छे से सुनते हैं और सोचसमझ कर जवाब देते हैं तो यह एक अच्छे रिश्ते की शुरुआत हो सकती है.

रिश्ते बनने में कई बार समय लगता है और यह जरूरी नहीं कि सबकुछ एक ही मुलाकात में तय हो जाए. आप अपने परिवार के साथ ईमानदारी, प्यार और सचाई से पेश आएं. सब अच्छे की उम्मीद रखें.

अपनी समस्‍याओं को इस नंबर पर 8588843415 लिख भेजें, हम उसे सुलझाने की कोशिश करेंगे.

 

Boyfriend-Girlfriend: जब इंस्टाग्राम मौडल बन गई हो गर्लफ्रैंड

Boyfriend-Girlfriend: क्या हो जब गर्लफ्रैंड इंस्टाग्राम मौडल बन जाए? क्या रिश्ता वैसे ही चल पाएगा जैसे चलता आ रहा था? क्या एक इंस्टाग्राम मौडल और सामान्य लड़के के बीच रिश्ता टिक सकता है?

इंस्टाग्राम दुनिया का सब से पसंद किए जाने वाले प्लेटफौर्मों में से एक है. यहां पर लोग सब से ज्यादा फोटो-वीडियो शेयर करते हैं. इंस्टाग्राम ने कई लोगों को कमाई का जरिया भी दिया है, खासतौर पर उन मौडल्स को जो बेझिझक और बेबाकी से अपनेआप को लोगों के सामने प्रेजैंट कर सकती हैं. ऐसी मौडल्स की संख्या हजारों में है. वे इस से काफी कमा रही हैं. उन के लाखों फौलोअर्स हैं और उन की लाखों करोड़ों में कमाई भी हो रही है.
वैसे तो यह अच्छी बात है लेकिन मुश्किल उन लड़कों के लिए हो जाती है जिन की ये गर्लफ्रैंड हैं.
सोचिए, कोई कपल है जहां लड़का अपनी वही 9–5 जौब कर रहा है और लड़की कुछ सालों में इंस्टाग्राम स्टार बन गई है. उस का लाइफस्टाइल पूरी तरह बदल गया. वह बड़ेबड़े सैलिब्रिटीज के बीच उठनेबैठने लगी है. वह लंबीलंबी गाड़ियों में घूमती है और बड़े से बंगले में रहने लगी है. लेकिन लड़का वहीं हैं जहां था. फर्क सिर्फ स्टेटस में नहीं, उस के खानपान और कपड़ों में भी आएगा.

इंस्टाग्राम मौडल गर्लफ्रैंड

क्या हो जब वह किसी इवैंट में बैकलैस ड्रैस पहन कर गई हो और उसी के जैसा कोई और मेल इन्फ्लुएंसर फोटो खिंचवाते हुए उस की पीठ व कमर पर हाथ रखे, तो मेल ईगो के लिए उस के बौयफ्रैंड को यह सहन कर पाना कितना संभव है? सिर्फ यही नहीं, क्या अब महंगे रैस्टोरैंट, कैफे और कपड़ों के मौल का बिल लड़का चुका पाएगा?
दोनों के बीच क्लास का एक बड़ा फर्क आ गया है. फिर ऐसे में बौयफ्रैंड अपनी इंस्टाग्राम मौडल गर्लफ्रैंड के साथ कैसे अपने नौर्मल लाइफस्टाइल के साथ रहेगा ? क्या वह खुद उस के सामने छोटा और कमतर महसूस नहीं करेगा? क्या वह मौडल इन्फ्लुएंसर अब उस के साथ रहना चाहेगी? नहीं, बिलकुल नहीं. इस की वजह है इंस्टाग्राम मौडल्स का लाइफस्टाइल, उन का रुतबा, शानोशौकत, पैसा. आइए एक नजर इंस्टाग्राम मौडल्स पर और उन की लाइफस्टाइल पर डालें-

तसवीरों में सोफिया ने ब्रा नहीं पहनी

इस लिस्ट में सोफिया अंसारी का नाम आता है. सोफिया अंसारी इंस्टाग्राम पर बड़ी सैलिब्रिटी है. वह गुजरात से है. अपनी पढ़ाई के साथसाथ उस ने मौडलिंग भी शुरू की और कई टीवी शो व फिल्मों के लिए औडिशन दिए. लेकिन जब उसे सफलता नहीं मिली तब उस ने टिकटौक पर रील बनानी शुरू कर दी.
सोफिया की लाइफस्टाइल देख कर कोई भी अपना माथा धुन लेगा. वह लक्ज़री होटलों में रुकती है, महंगे कपड़े पहनती है, विदेशों में घूमती है. क्या ये खर्चे एक आम लड़का उठा सकता है?
अभी हाल ही में सोफिया अंसारी ने अपने इंस्टाग्राम अकाउंट पर अपनी कुछ तसवीरें पोस्ट कीं. तसवीरों में सोफिया ने ब्रा नहीं पहनी है और डैनिम जींस के साथ एक टौप पहना हुआ है. सोफिया ने अपने इस टौप के बटन खुले रखे हैं जिस से उस का डीप क्लीवेज दिख रहा है. यह फोटो बोल्ड और सैक्सी है. सिर्फ़ इतना ही नहीं, इस फोटो में सोफिया ने अपनी जींस की जिप भी नहीं लगाई है और उस की इनरवियर दिखाई दे रही है.
चलिए ये छोड़िए, एक पल के लिए मान लीजिए लड़का उस के खर्चे उठा भी ले, पर क्या उस का पब्लिक में ऐसे बोल्ड दिखना वह झेल पाएगा?
आज सोफिया को एक करोड़ से भी ज्यादा लोग फौलो करते हैं. वह सोशल मीडिया पर काफी ऐक्टिव रहती है और अकसर अपने फैंस के साथ तसवीरें व वीडियोज शेयर करती रहती है. इस तरह सोशल मीडिया पर सोफिया के बारे में खूब चर्चा होती रहती है. यही वजह है कि वह अपने इस हौटनैस के अवतार से काफी कमाई कर रही है.

2023 की सब से हौट

वहीं गरिमा चौरसिया भी कुछ कम नहीं है. गरिमा 25 वर्ष की उम्र में एक पौपुलर सोशल मीडिया स्टार बन गई है. गरिमा के इंस्टाग्राम पर डेढ़ करोड़ फौलोअर्स हैं. गरिमा अकसर अपनी हौट फोटोज पोस्ट करती है और अपने फैंस को क्रेजी बना देती है. हरिद्वार की रहने वाली गरिमा वैसे तो पेशे से इंजीनियर थी पर टिकटौक पर रील बनाने के बाद वह फेमस हो गई और अब इंस्टाग्राम पर भी लोगों को खूब अपना दीवाना बनाया हुआ है. गरिमा चौरसिया इंस्टाग्राम पर आएदिन अपनी ग्लैमरस फोटोज डालती रहती है.
गरिमा चौरसिया ने फिल्म ‘गली बौय’ के गाने ‘बहुत हार्ड…’ पर अपनी पार्टनर रूगीस विनी के साथ टिकटौक वीडियो बनाया था. वह वीडियो जबरदस्त हिट हुआ था. उस के बाद गरिमा को टिकटौक की ‘बहुत हार्ड गर्ल’ नाम मिला. उस के लगभग हर वीडियो पर लाखों में लाइक्स आते हैं.

2023 की सब से इंस्टाग्राम मौडल हौट नेहा मलिक

इसी तरह नेहा मलिक है. भारत में 2023 की सब से हौट, सब से सुंदर इंस्टाग्राम मौडल में उस का नाम आता है. उस ने 2012 में अपने मौडलिंग कैरियर की शुरुआत की थी.
वह पंजाबी म्यूजिक वीडियो और अलबमों में भी काम कर चुकी है. सोशल मीडिया पर वह काफी ऐक्टिव रहती है. आएदिन वह अपने हौट फोटोज भी शेयर करती रहती है. अपनी खूबसूरती और बोल्डनैस के लिए नेहा मलिक फैंस के बीच काफी पौपुलर है. उस के इंस्टाग्राम पर 4.1 मिलियन फौलोअर्स की लंबी लिस्ट है. उस का फिगर बोल्ड है.
नेहा के बारे में एक बात जो अकसर कही जाती है वह यह है कि उस का रवैया बेबाक है, जो उस के फैंस को बेहद पसंद आता है. पौपुलर हसीना नेहा मलिक की खूबसूरती के चर्चे तो हर तरफ हैं.
नेहा मलिक का हुस्न देख फैंस भी तारीफों के पुल बांधते नजर आ रहे हैं. नेहा मलिक ने अभी हाल ही में अपनी नई तसवीरें शेयर की हैं. उन तसवीरों में नेहा मलिक बिकिनी पहने दिखाई दी. नेहा मलिक का यह लुक सोशल मीडिया पर जम कर वायरल हो रहा है. नेहा मलिक इस तसवीर में अपने टोन्ड लेग्स फ्लोंट करती हुई नजर आ रही है. नेहा मलिक की इस तसवीर को फैंस जम कर शेयर कर रहे हैं.

‘द बोहो गर्ल’ के नाम से इंस्टाग्राम पेज

बात करें कृतिका खुराना की तो उन्होंने सब को पीछे छोड़ दिया है. भारत में एक पोस्ट के लिए विराट कोहली सब से ज्यादा, उस के बाद प्रियंका चोपड़ा, फिर एक ट्रैवलर का नाम है जो है कृतिका खुराना. कृतिका खुराना एक मौडल और ब्लौगर है जो फैशन, ब्यूटी पर लिखती है.
चंडीगढ़ की रहने वाली कृतिका खुराना ‘द बोहो गर्ल’ के नाम से इंस्टाग्राम पेज चलाती है और उस का यूट्यूब अकाउंट भी है. कृतिका के इंस्टाग्राम पर 8 लाख 48 हजार फौलोअर्स हैं. कृतिका इंस्टाग्राम पर एक पोस्ट के लिए 3.75 लाख रुपए चार्ज करती है, जो काफी ज्यादा है. वहीं एक वीडियो के जरिए कृतिका को 1-3 लाख रुपए तक कमाई होती है. जबकि, उस की नैटवर्थ 15 करोड़ रुपए के करीब है.

बिल्ली मासी वाली कुशा कपिला

सोशल मीडिया इंफ्लुएंसर और ऐक्ट्रैस कुशा कपिला अपने किरदार बिल्ली मासी के लिए काफी जानी जाती है. कुशा कपिला की नैटवर्थ 20 करोड़ रुपए से अधिक है.
आएदिन देखा जाता है कि कुशा अपने सोशल मीडिया पोस्ट की वजह से चर्चा का विषय बनती है. अभी कुछ समय पहले ही कुशा ने अपने औफिशियल इंस्टाग्राम हैंडल पर लैटेस्ट तसवीरों को शेयर किया था जो उस के वैकेशन के दौरान की थीं.
समर सीजन में वह पिंक कलर की बिकिनी में बेहद हौट लग रही थी. एक रिजौर्ट पर उस ने बिकिनी में तरहतरह के पोज दिए, जो उस की हौटनैस को और बढ़ा रहे थे. बहुत कम बार देखा गया है कि कुशा कपिला बिकिनी अवतार में दिखी लेकिन अब जब वह इस अंदाज में नजर आई है तो फैंस उस की तुलना गौर्जियस ऐक्ट्रैस दिशा पाटनी से करने लगे हैं.
कुशा की ये तसवीरें बेहद बोल्ड और शानदार हैं जिन पर फैंस जम कर लाइक और कमैंट कर रहे हैं. कुशा कपिला ने बीते साल आई भूमि पेडनेकर की फिल्म ‘थैंक्यू फौर कमिंग’ के जरिए हिंदी सिनेमा में कदम रखा. इस फिल्म में अपनी कमाल की ऐक्टिंग से उस ने फैंस को काफी इंप्रैस किया है. माना जा रहा है कि आने वाले वक्त में वह और भी कई मूवीज में दिख सकती है.
अब तो आप समझ ही गए होंगे कि ये इंस्टाग्राम मौडल्स किसी बड़ी सैलिब्रिटीज़ से कम नहीं हैं. ऐसा इसलिए क्योंकि इन के नखरे और अदाएं किसी बौलीवुड स्टार से कम नहीं हैं. फिर ऐसे में आम लड़के कहां इन में अपनी वही पुरानी स्कूलकालेज की गर्लफ्रैंड को ढूंढ रहे हैं.भई, इस सच को जितनी जल्दी हो सके स्वीकार कर लें कि वे आप की लाइफ से बहुत आगे निकल चुकी हैं. उन की छोड़ें, आप भी उन के साथ अब कंफर्टेबल नहीं हो पाएंगे. उन को बराबरी करतेकरते आप की आधी जिंदगी निकल जाएगी. या फिर, अगर गर्लफ्रैंड इंस्टाग्राम मौडल बन गई है, तो बौयफ्रैंड को अपने लिए इंस्टाग्राम में कोई जगह बनानी पड़ेगी. उसे भी इन्फ्लुएंसर बनना पड़ेगा. आप बढ़िया इन्फ्लुएंसर बन जाइए या फिर आप को भी मौडल बनना पड़ेगा. लेकिन ये सब करना आसान होता. अगर आसन होता तो आप को सोचना न पड़ता बल्कि आप कर चुके होते.
इस बात को मान लें कि वह देखने में सुंदर है, काफी बोल्ड है. उस के पीछे अमीर लड़कों की लाइन लगी होगी. उस इन्फ्लुएंसर्स की फोटो के नीचे हजारों कमैंट आ रहे हैं. उस में से 100 कमैंट हैंडसम लड़कों या उसी की तरह के इन्फ्लुएंसर्स के आ रहे हैं कि ‘तुम हौट दिख रही हो’, ‘तुम सुंदर लग रही हो’ तो समझो आप का पत्ता कट गया. सो, इसे जितनी जल्दी हो सके स्वीकार कर लो वरना बाद में पछताना ही पड़ेगा.

Best Hindi Story : तीन बहनें

Best Hindi Story : कहने को तो मैं और अमया आनंदी दीदी की सगी बहनें थीं लेकिन आस्था ने उन से स्नेह का ऐसा धागा बांध लिया था कि मुझे जलन होने लगी थी.

‘‘हैलो अंजनी, मैं आनंदी दीदी. सुनो मेरा टिकट बुक हो गया है. मैं 15 दिसंबर को इंडिया आ रही हूं. इस बार पहले अहमदाबाद जाऊंगी, वहां 3 दिन रुक कर तुम्हारे पास जयपुर आऊंगी.’’

अंजनी अचरज में पड़ गई, ‘‘दीदी, अहमदाबाद जाने की कोई खास वजह?’’

‘‘तेरे परेश जीजाजी की कांता मौसी की लड़की दीपाली की ननद आस्था के हाथ में फ्रैक्चर हो गया है, पिछले हफ्ते ही पता लगा और फिर यहां से सीधी फ्लाइट भी मिल रही है. 3 दिन वहां रुक कर आऊंगी तेरे पास.’’ ‘‘पर दीदी, आस्था से आप का खास रिश्ता तो है नहीं, फिर भी.’’

अंजनी और कुछ आगे बोलती उस के पहले ही दीदी बोल पड़ीं, ‘‘सात महीने पहले कांता मौसी यहां आई थीं. मेरे पास कुछ दिन रुकी थीं. मेरी बहुत बनी थी उन से. जाने के बाद भी उन से फोन पर बातें होती रहती हैं.’’
‘‘वह तो ठीक है, दीदी लेकिन आस्था से करीबी रिश्ता कैसे बन गया?’’

दीदी ने कहा, ‘‘जब मौसी यहां आई थीं तो पूरा समय दीपाली से ज्यादा आस्था की बातें करती थीं. आस्था भी उन से रोज बातें करती थी. मेरी भी उस से फोन पर बातें होती थीं. यहां से जाने के बाद कांता मौसी उस से मेरी बात करवाती थीं. बड़ी प्यारी लगती है वह मुझे उस की आवाज और बड़ी इज्जत से बात करना भाता है हमें. वैसे, आजकल तो अपने ही बच्चे कहां ढंग से बात करते हैं.’’
‘‘ठीक है, दीदी. मैं और अमया बेसब्री से आप का इंतजार कर रहे हैं. कुछ रुष्ट हो गई थी मैं.’’
‘‘मैं भी कर रही हूं, तुम दोनों बहनों के अलावा अब इंडिया में मेरा है ही कौन? दीदी ने कहा.

लेकिन पता नहीं क्यों आनंदी दीदी का आस्था के प्रति यह मोह कुछ खटका था. रात में मैं ने ज्ञान से जब आस्था के लिए आश्चर्य जताया तो वे सहजता से बोले, ‘‘विदेश में रहने वाले लोगों को हर रिश्ते बहुत अजीज और समीप लगते हैं. उन्हें प्यार की ही दरकार रहती है. यहां आते हैं तो सभी से मिलना चाहते हैं. हम लोगों का क्या है, यहीं रहते हैं तो दूरी नहीं लगती है और रिश्तेदारों से मिलने से बचना भी चाहते हैं.’’

ज्ञान ने सही बात तो कही है. हम लोग अपने देश तो क्या, एक ही शहर में रहने पर भी रिश्तों को बना कर नहीं रख पाते. गाहेबगाहे त्योहारों पर मिल कर रिश्ते निभाने की जैसे औपचारिकता पूरी करते हैं. पिछले महीने ही ज्ञान के चचेरे भाई के ससुर शांत हो गए.

खबर तो उसी दिन मिल गई थी लेकिन दूसरे दिन दीवा और दीप का मंथली टैस्ट था, ज्ञान के डायरैक्टर आने वाले थे तो उस दिन यह सोच कर नहीं गए कि अब जो होना था, हो गया, कौन से वे अपने करीबी रिश्तेदार हैं, चले जाएंगे दसवीं पर. यहां रह कर शायद हम जैसे लोगों के लिए रिश्ते महज जानपहचान और औपचारिकता की परिभाषा में सिमटे रहते हैं, लेकिन जब आनंदी दीदी और परेश जीजाजी भारत आते हैं तो अपने सब रिश्तेदारों के यहां जाते हैं.

पिछली बार जब दीदी आई थीं तो अमया की देवरानी के मातापिता भी कुछ दिनों के लिए आए थे तब अमया और दीदी में थोड़ी खटपट हो गई थी. दीदी की इच्छा थी कि वे सभी को किसी बड़े होटल में डिनर के लिए ले जाएं लेकिन अमया चिढ़ गई, ‘क्या जरूरत है पूरी बरात को ले जाने की. मेरी देवरानी के मातापिता आप के क्या लगते हैं?’

यह सुन कर दीदी को अच्छा नहीं लगा था, बोलीं, ‘हद करती है अमया. अरे, वे लोग बुजुर्ग हैं, उन्हें ले जाएंगे तो उन्हें सब के साथ अच्छा लगेगा.’ होटल में अमया तनीतनी सी रही. हम लोग पता नहीं क्यों रिश्तों को निभाने से बचना चाहते हैं. दूर के रिश्तों को छोड़ दें, सगे रिश्तों में जब कोई पारिवारिक कार्यक्रम हो तब ही जाना होता है. किसी और को क्या कहूं, सगे जेठ इसी शहर में रहते हैं. 15-20 दिनों में एकाध बार फोन पर बात होती है, महीने में एकाध बार मिलना होता है.

सासससुर साल में 2 महीने के लिए बारीबारी से एकएक महीने के लिए रहने आते हैं तब उन के यहां जाने से मेलमिलाप बढ़ जाता है. लेकिन उन के जाने के बाद कभी बच्चों की परीक्षाएं कभी बीमारी, किटी पार्टी में समय निकल जाता, मिलना ही नहीं हो पाता.
अहमदाबाद में 3 दिन रहने के बाद जब दीदी आईं तो उन की जबान से आस्था का नाम ही नहीं हट रहा था. वे किसी न किसी बात में आस्था का प्रसंग निकाल ही लेती थीं. पता नहीं क्यों बिना आस्था को देखे मुझे उस से ईर्ष्या होने लगी थी. ऐसा क्या जादू कर दिया था आस्था ने. दोपहर में अमया भी आ गई. उस ने भी महसूस किया कि इस बार दीदी के स्नेहबंधनों में एक सिरा आस्था का भी जुड़ गया है.

शाम को जब आनंदी दीदी को चाय का कप पकड़ाया तो हठात वे बोल पड़ीं, ‘‘अनी, तुम्हें पता है, आस्था को शायद कांता मौसी ने एकाध बार बताया होगा कि मुझे चाय बड़े मग जैसे कप में और बिना शक्कर के अच्छी लगती है तो आस्था ने मेरे लिए 2 बड़े मग खरीद लिए थे.

पगली लड़की.’’ दीदी के इस पगली शब्द में दुनियाभर का लाड़ समाया था. दीदी ने भले ही बड़े मग की बात सहजता से कही किंतु मुझे अपने चाय के कप का छोटा साइज देख कर कुछ कुंठा सी हो आई थी. मैं ने दीदी का चेहरा पढ़ने की कोशिश की, लेकिन वे मनोयोग से छोटे कप में चाय सुड़क रही थीं. उसी समय टोरंटो से परेश जीजाजी का फोन आया.
दीदी ने एकदो वाक्य के बाद ही आस्था का गुणगान शुरू कर दिया. ‘‘परेश, इस बार अहमदाबाद में बहुत अच्छा समय निकला. हांहां, मैं ने आस्था से कहा है, वह सनाया (दीदी की बेटी) की शादी में जरूर आए. परेश, तुम भी जब इंडिया आओ तो कोशिश करना कि एकाध दिन अहमदाबाद में रुक सको.’’ दीदी के फोन रखने के बाद अमया से रहा नहीं गया, बोल ही दिया, ‘‘क्या दीदी, इस बार तो लगता है आस्था ने आप पर कोई जादू कर दिया है.’’
अमया की  तल्ख आवाज से दीदी शायद चौंक गई थीं. ‘‘अरे नहीं, मुझे लगा कि परेश को भी आस्था से मिलना चाहिए, बड़ी समझदार लड़की लगी मुझे.’’ अमया के पति नितिन ने चुटकी लेते हुए दोनों को छेड़ा, ‘‘भई, दीदी को यदि आस्था पसंद आ गई है तो आप लोग क्यों डर रही हो, क्या आप लोगों का पत्ता कटने वाला है?’’
दीदी खिलखिला कर हंस दीं लेकिन अमया बिफर सी गई, ‘‘क्या नितिन, आप भी कैसी बातें करते हैं. हमें क्यों बुरा लगेगा?’’ रात में बिस्तर पर लेटते बारबार मुझे आनंदी दीदी का आस्था के बारे में इतनी बातें करना याद आता रहा. कहने को आस्था से कोई खास रिश्ता न होने पर भी दीदी को उस में कितना अपनापन लगा था और हम लोग हैं जिन्हें सगे रिश्ते निभाना बेवजह ढोने जैसा लगता है.
कल ही तो बगल वाले फ्लैट वाली श्रीमती अस्थाना आई थीं. उन का उतरा चेहरा देख वजह पूछी तो बेमन से बताया कि उन के पति की बूआ एक शादी में यहां आ रही हैं, 3 दिन उन के यहां रात में रुकेंगी. श्रीमती अस्थाना परेशान थीं कि 2 बेडरूम के फ्लैट में कैसे मैनेज करेंगी, एक बच्चों का है, एक खुद का. कहां सुलाएंगी उन्हें?
मैं ने कहा, ‘बच्चों का बिस्तर बाहर वाले कमरे में लगा देना, रात की ही तो बात है.’ वे बोलीं, ‘मेरे बच्चे तो 10 मिनट भी अपना कमरा दूसरों को नहीं दे सकते.’ ‘तो आप लोग बाहर सो जाना.’ ‘अरे वाह, कैसे, मु?ो तो पलंग पर ही सोने की आदत है. इन को भी नीचे सोने की आदत बिलकुल ही नहीं है,’ बुरा सा मुंह बना कर वे बोली थीं. मु?ो पिछले महीने की बात याद आ गई, मौसी सास की बहू अपने दोनों बच्चों का एडमिशन शहर के बोर्डिंग स्कूल में करवाने आई थीं. 3-4 दिनों की औपचारिकताएं थीं, उन के साथ जाना पड़ता था. उन दिनों मैं बुरी मानसिक स्थिति से गुजरी थी. बजट गड़बड़ाने का बहाना ले कर ज्ञान पर कई बार कटाक्ष भी किया था मैं ने. वे बेचारे चुपचाप सुनते रहते थे.
चौथे दिन जब बहू ने जाने की बात कही तो मेरे चेहरे की रौनक लौटने के साथ ही मेरी आवाज में मुलामियत आ गई और तत्परता से रास्ते में उन्हें खाना बना कर देने की तैयारी में लग गई. ज्ञान ने कान में चुटकी ले कर कहा था, ‘बधाई मेहमानों की विदाई की.’ मन में सोचा, आस्था को सचमुच दीदी का रहना अच्छा लगा था या वह सिर्फ दिखावा कर रही थी.
दूसरे दिन दीदी ने वह बैग खोला जो अमूमन हम लोगों के लिए सामान से भरा होता है. मेरे और ज्ञान के लिए परफ्यूम, ज्ञान के लिए ब्लैक लेबल, मेरे लिए कौस्मैटिक्स बौक्स, यूटिलिटी बैग, बच्चों के डिजिटल गेम्स.
यही सब अमया के परिवार लिए भी था. ‘‘दीदी, आप आस्था को कुछ खास दे कर आई होंगी न?’’ मन का संशय जबान पर आ गया. मैं और अमया अपनी चीजों से ज्यादा यह जानने को उत्सुक थे. ‘‘कुछ खास नहीं,’’
दीदी ने लापरवाही से कहा, ‘‘एक पर्ल का सैट उसे जबरदस्ती दिया, वह तो लेने को तैयार ही न थी.’’ ‘‘और दीदी, उस ने आप को कुछ दिया?’’
‘‘अरे नहीं, वह तो तुम लोगों से भी छोटी है. जब तुम से नहीं लेती हूं तो उस से कैसे ले सकती हूं. वह तो बहुत पीछे पड़ी थी कि गुजराती ट्रैडिशनल बैग, चप्पल, दुपट्टा ले लूं लेकिन मैं जानती थी कि वह मुझे सामान के पैसे नहीं देने देगी. यह सुन कर लगा, हम तो आस्था से बहुत छोटे हो गए हैं. 10-12 दिन खूब मौजमस्ती, घूमने, फिल्म देखने में निकल गए. दीदी ने खुद के साथसाथ हम लोगों के लिए भी साडि़यां, ज्वैलरी खरीदी. फ्लाइट से 2 दिन पहले एक बड़ा पार्सल दीदी के नाम आया. आस्था ने अहमदाबाद से भेजा था. दीदी के लिए ग्लास वर्क के कुरते, मोजड़ी, स्टौल, काठियाबाड़ी बेडशीट और तो और मेरे और अमया के लिए भी खूब सुंदर कढ़ाई वाले कुरते थे. सामान देख कर दीदी की आंखें भर आईं.
आस्था को उन्होंने तुरंत फोन लगाया, भर्राई आवाज में प्यारी डांट लगाई. ‘‘बेटा, तुम्हें ये सब भेजने की क्या जरूरत थी, पगली लड़की?’’ दीदी का लाड़ साफ झलक रहा था.
उधर से आस्था ने कहा, ‘‘आप हमारे बड़े हैं. हम कितना भी करें, आप के प्यार, स्नेह के सामने यह कुछ भी नहीं है.’’
‘‘फिर भी आस्था,’’ दीदी के कुछ और कहने से पहले ही वह बोली, ‘‘आप के आदर्श, आप का बड़प्पन और आप जो हैं वह हमें कितना मानसिक संतोष देता है कि हमारे लिए भी कोई तो है. ऐसे मौके बारबार आते रहें, आप जब चाहें जितने दिनों के लिए आना चाहें आएं, हमें खुशी होगी.’’

दीदी ने भरे गले से, ‘‘सदा ख़ुश रहो’’ कह कर फोन काट दिया. सामान देख कर थोड़ी जलन हुई, ‘दीदी, आप को क्या चाहिए?’ पूछने पर उन का एक ही जबाव होता था, ‘अब मैं तुम लोगों से कुछ लूंगी? मेरी बेटियों जैसी हो तुम.’ और हम सोच लेते थे कि हम उन्हें दे भी क्या सकते हैं. हम तो हैं ही छोटे, वह ही हमें लबालब कर देती थीं.

लेकिन आस्था ने तो एक पल में हमें बहुत ही छोटा कर दिया था. हमें दीदी से पूछने की क्या जरूरत होनी चाहिए कि क्या चाहिए आप को, दे देना चाहिए और जबरदस्ती उन्हें थमा देना चाहिए. दीदी बड़े प्यार से आस्था का भेजा एकएक सामान करीने से सूटकेस में जमा रही थीं और हमारा मन कचोट रहा था यह देख कर. एहसास हो गया था कि आस्था, दीदी की कुछ भी न होते हुए भी उन के साथ एक खास प्यारे और स्नेह वाले सगे रिश्ते में बंध गई थी.

Hindi Stories : बुखार के बहाने प्‍यार

Hindi Stories :  ‘‘उठो भई, अलार्म बज गया है,’’ कह कर पत्नी के उत्तर की प्रतीक्षा किए बिना राकेश ने फिर करवट बदल ली.

चिडि़यों की चहचहाहट और कमरे में आती तेज रोशनी से राकेश चौंक कर जाग पड़ा, ‘‘यह क्या तुम अभी तक सो रही हो? मधु…मधु सुना नहीं था क्या? मैं ने तुम्हें जगाया भी था. देखो, क्या वक्त हो गया है? बाप रे, 8…’’

जल्दी से राकेश बिस्तर से उठा तो माधवी के हाथ से अचानक उस का हाथ छू गया, वह चौंक पड़ा. माधवी का हाथ तप रहा था. माधवी बेखबर सो रही थी. राकेश ने एक चिंता भरी नजर उस पर डाली और सोचने लगा, ‘यदि मौसमी बुखार ही हो तो अच्छा है, 2-3 दिन में लोटपोट कर मधु खड़ी हो जाएगी. अगर कोई और बीमारी हुई तो जाने कितने दिन की परेशानी हो जाए,’ सोचतेसोचते राकेश बच्चों को जगाने पहुंचा.

चाय बना कर माधवी को जगाते हुए राकेश बोला, ‘‘उठो, मधु, चाय पी लो.’’

माधवी ने आंखें खोलीं, ‘‘क्या समय हो गया? अरे, 9. आप ने मुझे जगाया नहीं. आज बच्चे स्कूल कैसे जाएंगे?’’

राकेश मुसकरा कर बोला, ‘‘बच्चे तो स्कूल गए, तुम क्या सोचती हो, मैं कुछ कर ही नहीं सकता. मैं ने उन्हें स्कूल भेज दिया है.’’

‘‘टिफिन?’’

‘‘चिंता न करो. टिफिन दे कर ही भेजा है.’’

माधवी को खुशी भी हुई और अचंभा भी कि राकेश इतने लायक कब से बन गए? वह सोई रह गई और इतने काम हो गए.

राकेश पुन: बोला, ‘‘मधु और बिस्कुट लो, तुम्हें बुखार लगता है. यह रहा थर्मामीटर. बुखार नाप लेना. अब दफ्तर जा रहा हूं.’’

‘‘नाश्ता?’’

‘‘कर लिया है.’’

‘‘टिफिन?’’

‘‘जरूरत नहीं, वहीं दफ्तर में खा लूंगा. यह दवाइयों का डब्बा है, जरूरत के मुताबिक गोली ले लेना,’’ एक सांस में कहता हुआ राकेश कमरे से बाहर हो गया.

पर दूसरे ही पल फिर अंदर आ कर बोला, ‘‘अरे, दूध तो गैस पर ही चढ़ा रह गया,’’ शीघ्र ही राकेश थर्मस में दूध भर कर माधवी के पास रखते हुए बोला, ‘‘थोड़ी देर बाद पी ले.’’

राकेश के जाते ही माधवी सोचने लगी, ‘इतनी चिंता, इतनी सेवा,’ फिर भी खुश होने के बजाय उस का मन भारी होता जा रहा था, ‘इतना भी नहीं हुआ कि माथे पर हाथ रख कर देख लेते. खुद बुखार नाप लेते तो लाट- साहबी पर धब्बा लग जाता? कितने मजे से सब संभाल लिया. वही पागल है जो सोचती रहती है कि उस के बिना सब को तकलीफ होगी. दिन भर जुटी रहती है सब के आराम के लिए. देखो, सब हो गया न? उस के न उठने पर भी सब काम हो गया? वह सवेरे 6 से 9 बजे तक चकरघिन्नी बन कर नाचती रहती है और सब उसे नचाते रहते हैं. आज तो सब को सबकुछ मिल गया न? लगता है सब जानबूझ कर उसे परेशान करते हैं.’

सोचतेसोचते माधवी का सिर दुखने लगा. चाय के साथ एक गोली सटक कर वह फिर लेट गई. झपकी आई ही थी कि बिन्नो की आवाज से नींद खुल गई, ‘‘बहूजी, आज दरवाजा कैसे खुला पड़ा है? अरे, लेटी हो. तबीयत ठीक नहीं है क्या?’’

माधवी की आंखें छलछला आईं, ‘‘बिन्नो, जरा देखना, स्नानघर में कपड़े पड़े होंगे. धो देना. गीले कपड़े मेरी छाती पर बोझ बढ़ाते हैं. सब यह जानते हैं पर कपड़े ऐसे ही फेंक गए होंगे.’’

बिन्नो ने स्नानघर से ही आवाज लगाई, ‘‘बहूजी, स्नानघर एकदम साफ है. यहां तो एक भी कपड़ा नहीं.’’

‘क्या एक भी कपड़ा नहीं?’ विस्मय से माधवी ने सोचा. उस की मनोस्थिति ऐसी हो रही थी कि राकेश और बच्चों के हर कार्य से उसे अपनेआप पर अत्याचार होता ही महसूस हो रहा था.

बिन्नो ने काम खत्म कर के उस का सिर और हाथपैर दबा दिए. माधवी कृतज्ञता से भर गई, ‘घर वालों से तो महरी ही अच्छी है. बेचारी कितनी सेवा करती है, अब की दीवाली पर इसे एक अच्छी सी साड़ी दूंगी.’

कुछ तो हाथपैर दबाए जाने से और कुछ दवा के असर से दर्द कम हो गया था. इसलिए माधवी दोपहर तक सोती ही रही.

अचानक ही आंखें खुलीं तो प्रिय सखी सुधा को देख माधवी आश्चर्यमिश्रित खुशी से भर गई, ‘‘तू आज अचानक कैसे?’’

सुधा ने हंस कर कहा, ‘‘मन ने कहा और मैं आ गई,’’ सुधा सुरीले स्वर में गुनगुनाने लगी, ‘‘दिल को दिल से राह होती है. तू बीमार पड़ी है, अकेली है, कितने सही समय पर मैं आई हूं.’’

माधवी कुछ बोले बिना एकटक सुधा को देखती रही. फिर उस की आंखें छलछला आईं. सुधा ने अचरज से पूछा, ‘‘अरे, क्या हुआ?’’

भीगे हुए करुण स्वर में अपने दिन भर के विचारबिंदु एकएक कर सुधा के सामने परोस दिए माधवी ने. स्वार्थी राकेश और बच्चों के किस्से, उस की सेवाटहल में की गई कोताही, जानबूझ कर उस से फायदा उठाने के लिए की गई लापरवाहियों के किस्से, उदाहरण सब सुनाते हुए अंत में न चाहते हुए भी माधवी के मुंह से वह निकल गया जो उसे सवेरे से परेशान किए था, ‘‘देखो न, मेरे बिना भी तो सब का काम होता है. मेरी इन लोगों को जरूरत ही क्या है? सवेरे 6 से 9 बजे तक चकरघिन्नी की तरह नाचती हूं. मुझ से तो राकेश ज्यादा कार्यकुशल है, सुबह फटाफट बच्चों को स्कूल भेज दिया.’’

सुधा मुंह दबा कर मुसकान रोक रही थी. उस पर नजर पड़ते ही  माधवी भभक उठी, ‘‘तुम हंस रही हो? हंसो, मैं ने बेवकूफी में जो इतने साल गंवाएं हैं, उन के लिए तुम्हारा हंसना ही ठीक है.’’

सुधा ठहाका लगा कर हंस पड़ी, ‘‘सच मधु, तुम बहुत भोली हो,’’ फिर गंभीर होते हुए समझाने लगी, ‘‘क्या मैं अपनेआप आ गई हूं? राकेश भैया ने ही मुझे फोन किया था कि आप की मित्र बहुत बीमार है, कृपया दोपहर में उन्हें देख आइएगा. जरूरत पड़े तो डाक्टर को दिखा दीजिए.’’

‘‘अब यही बचा है? मेरी बीमारी का ढिंढ़ोरा सारे शहर में पीटना था. खुद नहीं दिखा सकते थे डाक्टर को? डाक्टर की बात छोड़ो, माथा तक छू कर नहीं देखा. क्या पहले कभी मुझे छुआ नहीं?’’

सुधा हंस कर बोली, ‘‘खुद छुआ है भई, इस में क्या शक है? पर मधु इतना गुस्सा केवल इसीलिए कि माथा छू कर बुखार नहीं देखा? तुम्हें डाक्टर को दिखाने के लिए क्या वे बिना छुट्टी लिए घर बैठ जाते? तुम्हीं सोचो जो काम तुम 3 घंटे में करती हो, बेचारे ने इतनी जल्दी कैसे किया होगा?’’

‘‘यही तो बात है, मेरी उन्हें अब जरूरत ही नहीं. इतने कार्यकुशल…’’

‘‘खाक कार्यकुशल,’’ सुधा गुस्से से बोल पड़ी, ‘‘तुम्हारे आराम के लिए खुद कितनी परेशानी उठाई उन्होंने? इस में तुम्हें उन का प्यार नहीं दिखता? अच्छा हुआ, मैं आ गई. डाक्टर से ज्यादा तुम्हें मेरी जरूरत थी. ऐसा करो, आंखों से गुस्से की पट्टी उतार कर देखो चुपचाप. आंखें खुली, जबान बंद. सब पता लग जाएगा कि सचाई क्या है और उन लोगों को तुम्हारी कितनी जरूरत है? तुम्हारी चिंता कम करने के लिए ही वे सब तुम्हारी देखभाल कर रहे हैं.’’

माधवी को सुधा की बातें कुछ समझ आईं, कुछ नहीं पर उस ने तय किया कि जबान बंद और आंखें खुली रख कर देखने की कोशिश करेगी. शाम को एकएक कर सब घर लौटे. पहले बच्चे, फिर राकेश. उस ने आते ही पूछा, ‘‘क्या हाल है? बिन्नो आई थी? दवा ली?’’

‘‘हां, एक गोली ली थी,’’ माधवी ने धीरे से कहा.

ठीक है, आराम करो. और कोई तो नहीं आया था?’’

‘‘नहीं तो. किसी को आना था क्या?’’

‘‘नहीं भई, यों ही पूछ लिया.’’

‘‘हां, याद आया, सुधा आई थी,’’ माधवी बोली. सुनते ही राकेश के चेहरे पर इतमीनान झलक उठा. वह उत्साह से बोला, ‘‘चलो बच्चो, दू पी लो. फिर हम सब खिचड़ी बनाएंगे.’’

गुडि़या सोचते हुए बोली, ‘‘पिताजी, हमें खिचड़ी बनानी तो आती नहीं है.’’

‘‘अच्छा, तो क्या बनाना आता है?’’

गुडि़या चुप हो गई क्योंकि उसे तो कुछ भी बनाना नहीं आता था. उसे देख कर सब हंसने लगे.

राकेश उत्साहपूर्वक बोला, ‘‘चलो, हम सब मिल कर बनाएंगे. तुम्हारी मां आराम करेंगी.’’

रसोई से आवाजें आ रही थीं. माधवी सुन रही थी, ‘‘पिताजी, चावलदाल बीनने होंगे?’’

‘‘नहीं बेटा, धो कर काम चल जाएगा.’’

‘‘पर पिताजी मां तो शायद बीनती भी हैं.’’

‘‘शायद न? तुम्हें पक्का तो नहीं मालूम?’’

माधवी का मन हुआ कि चिल्ला कर बता दे, ‘चावल, दाल बीने जाएंगे,’ पर फिर सोचा, ‘हटाओ, कौन उस से पूछने आ रहा है जो वह बताने जाए?’

खिचड़ी बन कर आई. राकेश ने पहली प्लेट उसी को पेश की. पहला चम्मच मुंह में डालते ही कंकड़ दांतों के नीचे बज गया. सब एकदूसरे का मुंह ताकने लगे. दोचार कौर के बाद राकेश ने खिसियाते हुए कहा, ‘‘कंकड़ हैं खिचड़ी में.’’

पप्पू बोला, ‘‘पिताजी, कहा था न कि चावल, दाल बीनने पड़ेंगे.’’

‘‘चुप, पिताजी क्या रोज बनाते हैं? जैसा मालूम था बेचारों को वैसा बना दिया,’’ गुडि़या पप्पू को घूरते हुए बोली.

‘‘बेटा, डबलरोटी खा लो,’’ राकेश ने धीरे से कहा.

‘‘पिताजी, सवेरे से बस डबलरोटी ही तो खा रहे हैं. नाश्ते में, टिफिन में, दूध के साथ, अब फिर?’’ पप्पू गुस्से से बोला. गुडि़या बिगड़ कर बोली, ‘‘तू एकदम बुद्धू है क्या? मां इतनी बीमार हैं, एक दिन डबलरोटी खा कर तू दुबला हो जाएगा? पिताजी ने भी सवेरे से क्या खाया है? कितने परेशान हैं?’’

गुडि़या की इस बात से कमरे में  सन्नाटा छा गया. सब अपनीअपनी प्लेटों के सामने चुप बैठे थे.

पप्पू अपनी प्लेट छोड़ कर उठा और मां की बगल में लेटता हुआ बोला, ‘‘मां, आप कब ठीक होंगी? जल्दी ठीक हो जाइए, कुछ सही नहीं चल रहा है.’’

गुडि़या मां का सिर दबाते हुए बोली, ‘‘अभी चाहें तो और आराम कर लीजिए, हम लोग काम चला लेंगे.’’

राकेश ने माधवी का माथा छू कर कहा, ‘‘अब लगता है, बुखार कम है.’’

माधवी आनंद की लहरों में डूबती उतराती उनींदे स्वर में बोली, ‘‘तुम सब जा कर होटल से खाना खा आओ.’’

‘‘और तुम?’’ राकेश के प्रश्न के जवाब में असीम तृप्ति से उस का हाथ अपने माथे पर दबा कर माधवी ने कहा, ‘‘मैं अब सोऊंगी.’’

Love Games : कपल की लवलाइफ के लिए एनर्जी बूस्‍टर

Love Games : कपल्स के लिए डेट नाइट्स सिर्फ फिल्में देखने या डिनर पर जाने तक सीमित नहीं रह गई हैं. कपल्स आजकल अपनी डेट नाइट्स में मस्ती, रोमांच और अलगअलग ऐक्टिविटीज का तड़का लगाना पसंद करते हैं. यही कारण है कि रोमांटिक गेम्स का चलन बढ़ रहा है. ये गेम्स न केवल प्यार को गहराई में ले जाते हैं बल्कि रिश्ते में ताजगी और मजा भी भरते हैं. आइए, जानते हैं कुछ अनोखे व मजेदार गेम्स के बारे में जो आप के रिश्ते में स्पार्क ला सकते हैं.

डेजर्ट की तरह सजें

डेजर्ट कौन है? जाहिर है, आप. और किस के लिए? अपने पार्टनर के लिए. इस खेल में आप को खानेपीने की चीजों से खुद को सजाना होगा. खासतौर पर ऐसी चीजें जो आप के पार्टनर को पसंद हों, क्योंकि अंत में उन्हें ये सब खा कर खत्म करना है.
ये चीजें फल जैसे स्ट्राबैरी और चैरी के साथ चौकलेट, सौस और क्रीम हो सकती हैं. टौपिंग्स के बारे में भी सोचें. जब आप रोमांटिक रात के लिए तैयार हों, तो खुद को एक सुंदर डेजर्ट की तरह सजाएं और अपने पार्टनर को इस मिठास में डूबने के लिए आमंत्रित करें.

पार्टनर की मसाज

अपने पार्टनर की मसाज करें. यह रिलैक्स और प्लेजर तो फील करेगा ही, साथ में रोमांटिक भी महसूस कराएगा. इस के लिए थोड़े फ्रैगरेंस वाले लोशन या मसाज औयल की जरूरत है और धीरेधीरे रोमांटिक मूड के साथ पार्टनर की बौडी पर अप्लाई करें.

रोमांटिक कहानी पढ़ना

लोगों की रीडिंग हैबिट खोती जा रही है, लेकिन रोमांटिक स्टोरीज रीड करते हुए कपल उन पलों का आनंद ले सकते हैं. ऐसी बहुत सी मैगजीन हैं जिन में रोमांटिक कपल स्टोरीज पब्लिश होती हैं. यह एक सरल गेम है, जिस में जो सब से अच्छी स्टोरी सुनाएगा उसे बदले में अपने पार्टनर की फरमाइश पूरी करनी होगी.

म्ह्म्म और आह्ह्ह

इस गेम में आप और आप के पार्टनर बारीबारी से एकदूसरे के शरीर को हाथों और होंठों से एक्सप्लोर करते हैं और अलगअलग बौडी पार्ट को छूते हैं. इस में पार्टनर को केवल ‘म्ह्म्म’ और ‘आह्ह्ह’ की आवाज़ों के जरिए अपनी फीलिंग्स व्यक्त करनी होती है. यह गेम आप को यह जानने में मदद करेगा कि आप के पार्टनर को कहां छूना सब से अच्छा लगता है.

नेक्ड कुकिंग

नेक्ड कुकिंग मज़ेदार गेम हो सकती है, जहां आप दोनों रसोई में बिना कपड़ों के समय बिताते हुए खाना बनाते हैं. कपल मिल कर एक केक बेक कर सकते हैं या सब्जियां ग्रिल कर सकते हैं. टाइमर सैट करने के बाद यह समय कुछ रोमांटिक और हौट पलों के लिए इस्तेमाल किया जा सकता है.

डर्टी चार्ड्स

डर्टी चार्ड्स एक गेम है जो पारंपरिक चार्ड्स से बिलकुल अलग है. इस में पार्टनर को संकेत देने के लिए थोड़ी मस्ती, नौटी और हौट ऐक्टिंग करनी होगी. यह गेम एकदूसरे को बिना शब्दों के समझने का मौका देगा.

बोल्ड ट्रुथ

बोल्ड ट्रुथ गेम एक नौटी और इंटिमेट गेम है. इस में कपल एकदूसरे से साहसी और रोमांटिक सवाल पूछ सकते हैं, जैसे कि सब से रोमांचक जगह जहां आप ने इंटिमेट महसूस किया. यह गेम कपल्स को अपनी इच्छाओं के बारे में अधिक खुलने का मौका देता है.

सैक्स पजल

इस में साधारण पजल के साथ थोड़ा ट्विस्ट भी है. इस में कपल साथ में पज़ल पूरा करेंगे, लेकिन हर सही पीस जोड़ने पर एक रोमांटिक हरकत करनी होगी. यह गेम रिश्ते में करीबी और मस्ती लाता है.

द इंटीमेट कपल्स क्विज

इस गेम में कपल्स एकदूसरे से सवाल पूछते हैं, जो दोनों के रिश्ते और पसंदनापसंद को जानने में मदद करता है. हर सही उत्तर के लिए एक रोमांटिक रिवौर्ड रखा जा सकता है. यह रिश्ते को मजबूत बनाने और एकदूसरे को बेहतर समझने के लिए बढ़िया गेम है.

कैंडल और सैंसेशन गेम

यह गेम हौट और कोल्ड सैंसेशन के साथ रोमांचक है. इस में कपल एक हलकी फ्रैगरेंस कैंडल जला कर उस के पिघले मोम का यूज एकदूसरे की बौडी पर करते हैं. इस के साथ ही, बर्फ के टुकड़े से शरीर पर हलकी ठंडक देते हैं. हौट और कोल्ड का यह कौम्बिनेशन रिश्ते में उत्तेजना बढ़ाता है.

आई कांट वेट

इस गेम में आप और आप का पार्टनर एकदूसरे के लिए आकर्षक परिधान पहन कर आते हैं. यह गेम तब तक चलता है जब तक दोनों का सब्र टूट न जाए. जो पहले हार मानता है, उसे एक रोमांटिक सजा मिलती है. यह खेल आप के धैर्य और उत्साह को बढ़ाने का मजेदार तरीका है.

म्यूजिकल मूड्स

रोमांटिक गानों की एक प्लेलिस्ट बनाएं और हर गाने के मूड के अनुसार एक्ट करें. यह गेम न केवल मस्ती का कारण बनता है, बल्कि रिश्ते को और खास बनाता है.

टाइम ट्रैवल डेट

अपने पहले डेट की यादें ताजा करें और उसे फिर से ऐक्ट करें. वही कपड़े पहनें, उसी जगह पर जाएं और एक ही मूड को फिर से जिएं. यह गेम रिश्ते में भावनात्मक गहराई लाता है.
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Romantic Hindi Kahani : उस रात क्‍या हुआ

Romantic Hindi Kahani :  राकेश ने कार रोकी और उतर कर सलोनी के घर का दरवाजा खटखटाया.

सलोनी ने दरवाजा खोलते ही कहा, ‘‘नमस्ते जीजाजी.’’

‘‘नमस्ते…’’ राकेश ने आंगन में घुसते हुए कहा, ‘‘क्या हाल है सलोनी?’’

‘‘बस, आप का ही खयाल दिल में है,’’ मुसकराते हुए सलोनी ने कहा.

कमरे में आ कर एक कुरसी पर बैठते हुए राकेश ने पूछा, ‘‘मामीजी दिखाई नहीं दे रही हैं… कहीं गई हैं क्या?’’

‘‘कल पास के एक गांव में गई थीं. वे एक घंटे में आ जाएंगी. कुछ देर पहले मां का फोन आया था. आप बैठो, तब तक मैं आप के लिए चाय बना देती हूं.’’

‘‘राजन तो स्कूल गया होगा?’’

‘‘हां, वह भी 2 बजे तक आ जाएगा,’’ कहते हुए सलोनी जाने लगी.

‘‘सुनो सलोनी…’’

‘‘हां, कहो?’’ सलोनी ने राकेश की तरफ देखते हुए कहा.

राकेश ने उठ कर सलोनी को अपनी बांहों में भर कर चूम लिया.

सलोनी ने कोई विरोध नहीं किया. कुछ देर बाद वह रसोई में चाय बनाने चली गई.

राकेश खुशी के मारे कुरसी पर बैठ गया.

राकेश की उम्र 35 साल थी. सांवला रंग, तीखे नैननक्श. वह यमुनानगर में अपने परिवार के साथ रहता था. उस के परिवार में पत्नी बबीता, 2 बेटे 8 साला राजू और 5 साला दीपू थे. राकेश प्रोपर्टी डीलर था.

सलोनी बबीता के दूर के रिश्ते के मामा की बेटी थी. वह जगतपुरा गांव में रहती थी. उस के पिताजी की 2 साल पहले खेत में सांप के काटने से मौत हो गई थी. परिवार में मां और छोटा भाई राजन थे. राजन 10वीं जमात में पढ़ रहा था. गांव में उन की जमीन थी. फसल से ठीकठाक गुजारा हो रहा था.

सलोनी को पता भी न चला कि कब राकेश उस के प्रति खिंच गया था.

एक दिन तो राकेश ने उस से कह दिया था, ‘सलोनी, तुम बहुत खूबसूरत हो. तुम्हारी आंखें देख कर मुझे नशा हो जाता है. दिल करता है कि हर समय तुम्हें अपने साथ रखूं.’

‘मुझे अपने साथ रखोगे तो बबीता दीदी को कब टाइम दोगे?’

‘उसे तो कई साल से टाइम दे रहा हूं. तुम मेरी जिंदगी में देर से आई हो. अगर पहले आती तो अपना बना लेता.’

‘बहुत अच्छे सपने देखते हो आप…’

‘मैं इस सपने को सच करना चाहता हूं.’

‘कैसे?’

‘यही तो समझ में नहीं आ रहा है अभी.’

इस के बाद सलोनी भी राकेश की ओर खिंचती चली गई. वह देखती थी कि राकेश की बहुत बड़ी कोठियां हैं.

2 कारें हैं. धनदौलत की कमी नहीं है. बबीता तो सीधीसादी है. वह घर में ही रहना ज्यादा पसंद करती है. अगर वह बबीता की जगह पर होती तो राकेश के साथ खूब घूमतीफिरती और ऐश करती.

राकेश जब चंडीगढ़ जाता तो सलोनी के साथ कभीकभी राजन को भी साथ ले जाता था. जब राजन साथ होता तो वे केवल घूमतेफिरते व खरीदारी करते थे.

जब कभी राकेश अकेली सलोनी को ले कर चंडीगढ़ जाता तो वे दोनों किसी छोटे होटल में कुछ घंटे के लिए रुकते थे. वहां राकेश उस से जिस्मानी रिश्ता बनाता था. इस के बाद सलोनी को कुछ खरीदारी कराता और शाम तक वे वापस लौट आते.

बबीता व राकेश के बीच कई बार सलोनी को ले कर बहस हुई, झगड़ा हुआ, पर नतीजा कुछ नहीं निकला. राकेश व सलोनी उसी तरह मिलते रहे.

एक दिन बबीता ने सलोनी को फोन कर दिया था, ‘सलोनी, तुझे शर्म नहीं आती जो अपनी बहन का घर उजाड़ रही है. कभी भी चंडीगढ़ चली जाती है घूमने के लिए.’

‘मैं अपने जीजा की साली हूं. साली आधी घरवाली होती है. आधी घरवाली जीजा के साथ नहीं जाएगी तो फिर किस के साथ जाएगी?’

‘आधी नहीं तू तो पूरी घरवाली बनने की सोच रही है.’

‘दीदी, मेरी ऐसी किस्मत कहां? और हां, मैं जीजाजी को बुलाने नहीं जाती, वे ही आते हैं मेरे पास. तुम उन को रोक लो न,’ सलोनी ने कहा था.

सलोनी की मां भी यह सब जानती थीं. पर वे मना नहीं करती थीं क्योंकि राकेश सलोनी पर खूब रुपए खर्च कर रहा था.

सलोनी कमरे में चाय व खाने का कुछ सामान ले कर लौटी.

चाय पीते हुए राकेश ने कहा, ‘‘चंडीगढ़ जा रहा हूं. एक पार्टी से बात करनी है. मैं ने सोचा कि तुम्हें भी अपने साथ ले चलूं.’’

‘‘आप ने फोन भी नहीं किया अपने आने का.’’

‘‘मैं ने सोचा था कि आज फोन न कर के तुम्हें सरप्राइज दूंगा.’’

‘तो मिल गया न सरप्राइज. मां भी नहीं हैं. सूना घर छोड़ कर मैं कैसे जाऊंगी?’’

‘‘कोई बात नहीं, मैं मामीजी के आने का इंतजार कर लेता हूं. मुझे कौन सी जल्दी है. तुम जरा मामीजी को फोन मिलाओ.’’

सलोनी ने फोन मिलाया. घंटी तो जाती रही, पर कोई जवाब नहीं मिला.

‘‘पता नहीं, मां फोन क्यों नहीं उठा रही?हैं,’’ सलोनी ने कहा.

‘‘कोई बात नहीं. मैं थोड़ी देर बाद चला जाऊंगा. अब चंडीगढ़ तुम्हारे बिना जाने को मन नहीं करता. अगर तुम आज न जा पाई तो 2 दिन बाद चलेंगे,’’ राकेश ने सलोनी की ओर देखते हुए कहा.

कुछ देर बाद सलोनी की मां आ गईं. वे राकेश को देख कर बहुत खुश हुईं और बोलीं, ‘‘और क्या हाल है बेटा? बच्चे कैसे हैं? बबीता कैसी है? कभी उसे भी साथ ले आया करो.’’

‘‘वह तो कहीं आनाजाना ही पसंद नहीं करती मामीजी.’’

‘‘पता नहीं, कैसी आदत है बबीता की,’’ कह कर मामी ने मुंह बिचकाया.

‘‘मामीजी, मैं चंडीगढ़ जा रहा हूं. सलोनी को भी साथ ले जा रहा हूं.’’

‘‘ठीक है बेटा. शाम को जल्दी आ जाना. सलोनी तुम्हारी बहुत तारीफ करती है कि मेरे जीजाजी बहुत अच्छे हैं. वे मेरा बहुत ध्यान रखते हैं.’’

‘‘सलोनी भी तो किसी से कम नहीं है,’’ राकेश ने मुसकरा कर कहा.

कुछ देर बाद राकेश सलोनी के साथ चंडीगढ़ पहुंच गया. एक होटल में कुछ घंटे मस्ती करने के बाद वे रोज गार्डन और उस के बाद झील पहुंच गए.

‘‘शाम हो चुकी है. वापस नहीं चलना है क्या?’’ सलोनी ने झील के किनारे बैठे हुए कहा.

‘‘जाने का मन नहीं कर रहा है.’’

‘‘क्या सारी रात यहीं बैठे रहोगे?’’

‘‘सलोनी के साथ तो मैं कहीं भी सारी उम्र रह सकता हूं.’’

‘‘बबीता दीदी से यह सब कह कर देखना.’’

‘‘उस का नाम ले कर क्यों मजा खराब करती हो. सोचता हूं कि मैं हमेशा के लिए उसे रास्ते से हटवा दूं. दूसरा रास्ता है कि उस से तलाक ले लूं. उस के बाद हम दोनों खूब मजे की जिंदगी जिएंगे,’’ राकेश ने सलोनी का हाथ अपने हाथों में पकड़ कर कहा.

‘‘पहला रास्ता तो बहुत खतरनाक है. पुलिस को पता चल जाएगा और हम मजे करने के बजाय जेल में चक्की पीसेंगे.

‘‘बबीता से तलाक ले कर पीछा छुड़ा लो. वैसे भी वह तुम्हारे जैसे इनसान के गले में मरा हुआ सांप है,’’ सलोनी ने कहा.

अब सलोनी मन ही मन खुश हो रही थी कि बबीता से तलाक हो जाने पर राकेश उसे अपनी पत्नी बना लेगा. वह कोठी, कार और जायदाद की मालकिन बन कर खूब ऐश करेगी.

एक रैस्टोरैंट से खाना खा कर जब राकेश व सलोनी कार से चले तो रात के 8 बज रहे थे. राकेश ने बबीता व सलोनी की मां को मोबाइल फोन पर सूचना दे दी थी कि वे 2 घंटे में पहुंच रहे हैं.

रात के 12 बज गए. राकेश व सलोनी घर नहीं पहुंचे तो मां को चिंता हुई. मां ने सलोनी के मोबाइल फोन का नंबर मिलाया. ‘फोन पहुंच से बाहर है’ सुनाई दिया. राकेश का नंबर मिलाया तब भी यही सुनाई दिया.

कुछ देर बाद बबीता का फोन आया, ‘‘मामीजी, राकेश अभी तक चंडीगढ़ से नहीं लौटे हैं. वे आप के पास सलोनी के साथ आए हैं क्या? उन दोनों का फोन भी नहीं लग रहा है. मुझे तो बड़ी घबराहट हो रही?है.’’

‘‘घबराहट तो मुझे भी हो रही है बबीता. चंडीगढ़ से यहां आने में 2 घंटे भी नहीं लगते. सोचती हूं कि कहीं जाम में न फंस गए हों, क्योंकि आजकल पता नहीं कब जाम लग जाए. हो सकता है कि वे कुछ देर बाद आ जाएं,’’ मामी ने कहा.

‘पता नहीं क्यों मुझे बहुत डर लग रहा है. कहीं कुछ अनहोनी न हो गई हो.’

‘‘डर मत बबीता, सब ठीक ही होगा,’’ मामी ने कहा जबकि उन का दिल भी बैठा जा रहा था.

पूरी रात आंखोंआंखों में कट गई, पर राकेश व सलोनी वापस घर नहीं लौटे.

सुबह पूरे गांव में यह खबर आग की तरह फैल गई कि कल दोपहर सलोनी और राकेश चंडीगढ़ गए थे. रात लौटने की सूचना दे कर भी नहीं लौटे. उन का कुछ पता नहीं चल रहा है.

बबीता व मामी के साथ 3-4 पड़ोसी थाने पहुंचे और पुलिस को मामले की जानकारी दी. पुलिस ने रिपोर्ट दर्ज कर ली.

पुलिस इंस्पैक्टर ने बताया, ‘‘रात चंडीगढ़ से यहां तक कोई हादसा नहीं हुआ है. यह भी हो सकता है कि वे दोनों कहीं और चले गए हों.

‘‘खैर, मामले की जांच की जाएगी. आप को कोई बात पता चले या कोई फोन आए तो हमें जरूर सूचना देना.’’

वे सभी थाने से लौट आए.

दिन बीतते चले गए, पर उन दोनों का कुछ पता नहीं चल सका.

जितने मुंह उतनी बातें. वे दोनों तो एकदूसरे के बिना रह नहीं सकते थे. वे तो चंडीगढ़ मजे करने के लिए जाते थे. राकेश का बस चलता तो सलोनी को दूसरी पत्नी बना कर घर में ही रख लेता. सलोनी तो उस की रखैल बनने को भी तैयार थी. सलोनी की मां ने तो आंखें मूंद ली थीं, क्योंकि घर में माल जो आ रहा था. नहीं तो वे अब तक सलोनी की शादी न करा देतीं.

2 महीने बीत जाने के बाद भी जब राकेश व सलोनी का कुछ पता नहीं चला तो सभी ने यह समझ लिया कि वे दोनों किसी दूसरे शहर में जा कर पतिपत्नी की तरह रह रहे होंगे. अब वे यहां कभी नहीं आएंगे.

एक साल बाद…

उस इलाके की 2 लेन की सड़क को चौड़ा कर के 4 लेन के बनाए जाने का प्रदेश सरकार की ओर से आदेश आया तो बहुत तेजी से काम शुरू हो गया.

2 साल बाद…

एक दिन सड़क किनारे मशीन द्वारा जमीन की खुदाई करने का काम चल रहा था तो अचानक मशीन में कुछ फंस गया. देखा तो वह एक सफेद रंग की कार थी जिस का सिर्फ ढांचा ही रह गया था. उस कार में 2 नरकंकाल भी थे. कार की नंबर प्लेट बिलकुल साफसाफ पढ़ी जा रही थी.

देखने वालों की भीड़ लग गई. पुलिस को पता चला तो पुलिस इंस्पैक्टर व कुछ पुलिस वाले भी वहां पहुंच गए. कार की प्लेट का नंबर पढ़ा तो पता चला कि वह कार राकेश की थी. वे

2 नरकंकाल राकेश व सलोनी के थे.

बबीता, सलोनी की मां व भाई भी वहां पहुंच गए. वे तीनों रो रहे थे.

पुलिस इंस्पैक्टर के मुताबिक, उस रात राकेश व सलोनी कार से लौट रहे होंगे. पहले उस जगह सड़क के किनारे बहुत दूर तक दलदल थी. हो सकता है कि कार चलाते समय नींद में या किसी को बचाते हुए या किसी दूसरी वजह से उन की कार इस दलदल में जा गिरी. सुबह तक कार दलदल में पूरी तरह समा गई. किसी को पता भी नहीं चला. धीरेधीरे यह दलदल सूख गया. उन दोनों की कार में ही मौत हो गई.

अगर सड़क न बनती तो किसी को कभी पता भी न चलता कि वे दोनों अब इस दुनिया में नहीं हैं. दोनों के परिवारों को हमेशा यह उम्मीद रहती कि शायद कभी वे लौट कर आ जाएं. पर अब सभी को असलियत का पता चल गया है कि वे दोनों लौट कर घर क्यों नहीं आए.

अब बबीता व सलोनी की मां के सामने सब्र करने के अलावा कुछ नहीं बचा था.

Romantic Hindi Kahani : प्‍यार में जुगाड़

Romantic Hindi Kahani : मैं ठीक 10 बजे पूर्व निर्धारित स्थान पर पहुंच गया था. वह दूर से आती हुई दिखी. मैं ने मन ही मन में कहा ‘जुगाड़’ आ गई. हम ने फिर साथ में रिकशा लिया. इस बार मैं पहले की अपेक्षा अधिक चिपक कर बैठा शायद उसे आजमाना चाहता था.

मैंने फर्राटे से दौड़ते, हौर्न का शोर मचाते वाहनों के बीच दबे कदमों से चौराहा पार किया.

बीच चौराहे पर अंबेडकर की प्रतिमा जैसे हाथ खड़ी कर सब को स्टेशन की ओर जाने का संकेत कर रही हो. कैसरबाग, अमीनाबाद एक सवारी की रट लगाते वाहनचालक. दिन के 10 बजे लखनऊ के चारबाग चौराहे की हालत ऐसी ही होती है. भीड़ का एक हजूम, भागतेदौड़ते लोग, न जाने कितनी जल्दी है उन्हें मंजिल तक पहुंचने की.

मैं ने रिकशावाले से पूछा, ‘‘लाटूश रोड के कितने लोगे?’’

‘‘कहां जाना है लाटूश रोड में?’’ उस ने प्रश्न किया.

मैं ने कहा, ‘अमीनाबाद चौक से दोचार कदम आगे.’

‘एक सवारी के 8 रुपए और एक और बैठा लूं, तो 5 रुपए लगेंगे?’

मैं ने कहा, ‘अगर कोई मिलता है तो बैठा लो.’

अभी रिकशावाले ने पैडल पर पांव डाले ही थे कि आसमानी शमीज और सफेद सलवार धारण किए एक लड़की ने पूछा, ‘भैया, अमीनाबाद का क्या लोगे?’

‘5 रुपए,’ उस ने उत्तर दिया और वह लड़की आ कर मेरे साथ रिकशे पर बैठ गई.

गर मैं कहूं कि उस के मेरे साथ बैठने से मु झे कोई फर्क नहीं पड़ा तो शायद यह  झूठ होगा. विपरीत लिंग के प्रति आकर्षण एक स्वाभाविक प्रक्रिया है. चाहे वह स्त्री का पुरुष के प्रति हो या पुरुष का स्त्री के प्रति. मैं भी इस से अछूता नहीं था. कई बार हम अपनी पत्नी या फिर प्रेमिका से कहते हैं, ‘मैं तुम्हारे सिवा किसी और को नहीं देखता. जबकि, हमें पता है कि हम  झूठ बोल रहे हैं उस से जिस से वास्तव में हम बेहद प्रेम करते हैं. हर इंसान को खुद से प्यार करने वाले का संपूर्ण समर्पण बेहद सुकून देता है चाहे वह स्त्री का पुरुष के प्रति हो या पुरुष का स्त्री के प्रति.

हम जैसे आम लोगों के लिए इस चुंबकीय आकर्षण से बचना संभव नहीं. बस, हम आकर्षण की दिशा बदल सकते हैं. किसी लड़की को बहन स्वीकार करना भी उतना ही बड़ा आकर्षण है जितना किसी स्त्री में प्रेयसी ढूंढ़ना. फर्क सिर्फ रिश्तों का है क्योंकि दोनों में ही प्रेम है. हां, दोनों ही प्रेम के आयाम भले भिन्न हों पर मेरी दृष्टि से बहन का रिश्ता जितना शुद्ध है उतना ही पवित्र प्रेमिका का रिश्ता भी है. शायद मैं भावना में बह गया.

उस लड़की की ड्रैस देख कर मैं सम झ चुका था कि वह किसी कालेज की छात्रा है और इस से पहले मैं अपनी जबान खोलता, उस ने मु झ से पूछा, ‘‘आप कहीं नौकरी करते हैं?’’

बड़ा ही सहज मगर दूरगामी प्रश्न था क्योंकि इस के उत्तर के साथ ही वह मु झे और मेरी शैक्षिक योग्यता को अपने मूल्यों के तराजू पर तौलने वाली थी.

मैं ने जोशीले अंदाज में कहा, ‘‘मैं ने एमबीए किया है और जरमनी की एक बहुराष्ट्रीय कंपनी के लिए काम करता हूं. मैं कविताएं और आलेख भी लिखता हूं जिन में से कुछ विभिन्न पत्रपत्रिकाओं में प्रकाशित हो चुके हैं.’’ मैं ने शेखी बघारी मगर मेरे हृदय में आत्मविश्वास के भाव थे.

फिर उस ने पूछा, ‘‘तुम्हारी सैलरी कितनी है?’’

मैं ने कहा, ‘‘20 हजार रुपए.’’

उस ने पूछा, ‘‘कुल कितना मिल  जाता है.’’

मैं ने उत्तर दिया, ‘‘तकरीबन 25-30 हजार रुपए हो जाता है.’’

इस बार मैं थोड़ा असहज था क्योंकि मैं  झूठ बोल रहा था. फिर भी मैं ने अपने चेहरे का भाव छिपाने का हर संभव प्रयास किया. मु झे पता नहीं कि उस ने मु झ पर भरोसा किया या नहीं.

उस ने मु झ से अपने बारे में बताते हुए कहा, ‘‘मैं ने आईटी में एमबीए किया है. किंतु नौकरी नहीं मिली. अब बीएड कर रही हूं. शिक्षा का क्षेत्र महिलाओं के लिए बहुत उपयुक्त है.’’

उस ने साथ में तर्क दिया और मैं ने स्वीकृति में सिर हिलाया. उस ने आगे पूछा, ‘‘तुम्हारा नाम क्या है?’’

मैं ने कहा, ‘‘अमित.’’

फिर उस ने चहक कर कहा, ‘‘मेरे भाई का नाम भी अमित है.’’

इस बार मु झे लगा जैसे वह जानबू झ कर मेरे करीब आने की कोशिश कर रही हो. उस ने फिर प्रश्न किया, ‘‘तुम रहने वाले कहां के हो?’’

मैं ने कहा, ‘‘बिहार.’’

उस ने इस बार चौंक कर कहा, ‘‘बिहार, फिर हाथ मिलाओ, मैं भी बिहार की हूं.’’

इस बार मु झे उस का उत्तर थोड़ा संदेहास्पद लगा. मैं ने धीरे से उस के हाथ पर अपना हाथ रख दिया. लेकिन यह पकड़ वैसी नहीं थी जिस आत्मविश्वास से मैं ‘मिली’ (मेरी प्रेमिका) का हाथ पकड़ता था. मैं ने जासूस की तरह उस से सवाल किया, ‘‘बिहार में कहां की रहने वाली हो?’’

उस ने कहा. ‘‘गया.’’

इस बार मु झे लगा जैसे वह सच कह रही हो. मैं ने कहा, ‘‘मैं हाजीपुर का रहने वाला हूं.’’

उस ने अनभिज्ञता से कहा, ‘‘हाजीपुर?’’

मैं ने कहा, ‘‘हां, वही जहां से माननीय रामविलास पासवानजी सांसद का चुनाव जीतते रहे  हैं.’’ मनुष्य भी अजीब प्राणी है. जब वह कमजोर पड़ता है, सभी उस से दूरी बना लेते हैं और जैसे ही वह शक्तिशाली हो जाता है लौह चुंबक की भांति, अनजानों को भी अपनी ओर समेट लेता है. इसलिए मैं ने भी रामविलासजी से अपना रिश्ता जोड़ा.

अब उस ने मेरा मोबाइल नंबर मांगा और मैं ने उस का. फिर मैं औफिस के पास रिकशे से उतर गया. उस ने कहा, ‘‘अगर कभी चाहो तो मेरे घर आओ. मु झे मिलना हुआ तो मैं इस औफिस में आ जाऊंगी.’’

मैं ने असहज भाव से उसे देखा, रिकशे वाले को अपने हिस्से के पैसे दिए. फिर औफिस के अंदर चला गया. हृदय में अजीब सा द्वंद्व था. मैं ने सब से पहले इस घटना की चर्चा अपने औफिस की महिला सहकर्मियों से की. सुनते ही सब के सब साथ हंस पड़ीं, साथ मैं भी हंसा. किंतु उन सब की हंसी में एक रहस्य था जो उस लड़की के चरित्र की ओर इशारा कर रहा था और मैं असमंजस की हालत में था.

दिन खत्म हुआ. घर पहुंचा. अजीब सी मनोस्थिति थी. इस घटना का जिक्र मैं ने अपने रूमपार्टनर विकास से किया. उस ने जोर दे कर पूछा, ‘‘उस ने तेरा हाथ छुआ?’’

‘‘मैं ने कहा, ‘‘हां.’’

‘‘तु झे अपने घर भी बुलाया है?’’

‘‘हां.’’

‘‘अपना मोबाइल नंबर भी दिया है. फिर तो वह साली जुगाड़ है. मु झे उस का मोबाइल नंबर देना,’’ उस ने कहा.

पता नहीं क्यों लेकिन मैं उस की बात टाल गया और मैं ने उसे मोबाइल नंबर नहीं दिया. जुगाड़ का अभिप्राय मैं अच्छी तरह से सम झ सकता था. पता नहीं क्यों, हम सब दोहरी जिंदगी जीते हैं, चाहे हम और हमारा समाज नारी स्वतंत्रता की कितनी ही बड़ीबड़़ी बातें सार्वजनिक स्थल पर कर ले पर सब ‘ढाक के तीन पात’ अपने हमाम में सब नंगे.

यों देखें, तो हाथ का पकड़ा जाना एक साधारण सी घटना थी. पर न जाने क्यों हम सब को लगा कि इस में कुछ असामान्य था और यह सिर्फ इसलिए क्योंकि वह एक लड़की थी.

क्या हम सचमुच 21वीं शताब्दी के दौर में हैं? मेरे लिए यह एक यक्ष प्रश्न था क्योंकि उन सब की सोच में मैं भी शामिल था.

मैं 2 दिनों तक उस के फोन आने का इंतजार करता रहा. पर कोई कौल नहीं आई. अकसर लड़कियों की जबान से सुना है, ‘लड़के एक नंबर के कुत्ते होते हैं’ और मैं इस से कभी इनकार नहीं करता. मन में अजीब सा कुतूहल था. तीसरे दिन मैं ने उस का नंबर मिलाया.

मैं ने कहा, ‘‘मैं अमित बोल रहा हूं. हम लाटूश रोड पर मिले थे.’’

उस ने कहा, ‘‘हां अमित, कैसे हो?’’

मैं ने कहा, ‘‘मैं ठीक हूं. तुम कैसी हो?’’

‘‘मैं भी ठीक हूं.’’

इस से पहले मैं कुछ पूछता, उस ने फिर सवाल दागना शुरू किया, ‘‘तुम कमरे में अकेले रहते हो?’’

मेरा उत्तर ‘हां’ था. मैं फिर  झूठ बोल रहा था मगर इस बार मु झे अपने चेहरे के भाव छिपाने की जरूरत न पड़ी क्योंकि दूरभाष पर आप हमेशा आधीअधूरी बात ही करते हैं. आप वे बातें सुन तो सकते हो जो सामने वाला कह रहा होता है किंतु आप उस के चेहरे पर लिखे शब्दों को पढ़ नहीं सकते.

उस ने सवाल किया, ‘‘तुम ने अब तक शादी क्यों नहीं की?’’

मैं ने महसूस किया कि जैसे वह मु झे खोलने का प्रयास कर रही हो. मैं ने अनमने ढंग से कहा, ‘‘हो जाएगी, मम्मीपापा देख रहे हैं.’’

उस के प्रश्न का सिलसिला अभी थमा नहीं था, ‘‘अमित तुम्हारी उम्र कितनी है?’’

मैं ने कहा, ‘‘26 प्लस.’’

उस ने कहा, ‘‘अमित, तुम्हें शादी की शारीरिक जरूरत महसूस नहीं होती?’’

इस से पहले मैं हां या न कुछ भी उत्तर दे पाता, उस ने आगे कहना शुरू किया, ‘‘मैं तुम लड़कों का मनोविज्ञान बहुत अच्छे से सम झती हूं. सोचते होगे, पहले सैटल हो जाओ. खूब पैसे कमा लो, फिर किसी परी जैसी लड़की से शादी करोगे. अमित, मु झे लगता है ये सब करतेकरते कब जिंदगी निकल जाती है, हमें पता भी नहीं चलता. जिंदगी जैसी है, जितनी है, उसे बस जी लेनी चाहिए.’’

अब मु झे विकास की बातों पर भरोसा होने लगा था. मु झे लगा जैसे वह मु झे आमंत्रण दे रही हो और इस से पहले कुछ कह पाता, उस ने फिर सवाल दागा, ‘‘तुम खाना कहां खाते हो?’’

मैं ने कहा, ‘खुद ही बनाता हूं.’

‘‘अमित, तुम किसी कामवाली को क्यों नहीं रख लेते. काम से थक जाते होगे,’’ उस ने हंसते हुए आगे कहा, ‘‘किसी जवान लड़की को मत रख लेना. किसी उम्रदराज या किसी छोटे लड़के को रख लो, तुम्हारी मदद करेगा.’’

मैं ने जानबू झ कर उसे कुरेदा, ‘‘जवान लड़की क्यों नहीं?’’

उस ने कहा, ‘‘यह लखनऊ है,  दिल्ली नहीं.’’

इस बार मु झे लगा जैसे वह मेरी भावनाओं को छेड़ने का प्रयास कर रही हो. सवाल अभी खत्म नहीं हुए थे. अगला प्रश्न फिर सामने था.

‘‘तुम ने कभी किसी से प्यार किया है?’’

मैं ने कहा, ‘‘लड़कियां दोस्त बहुत हैं मगर कोई रिश्ता अब तक प्यार तक नहीं पहुंचा.’’ इस बार मु झे खुद पर हंसी आई.

‘‘अमित, तुम ने बताया था कि तुम कविताएं लिखते हो.’’

मेरे पास बस यही मौका था. मैं ने कहा, ‘अगर कविता सुननी हो तो मु झ से मिलो. मु झे खुद नहीं पता था कि मैं ने उसे क्यों बुलाया क्योंकि यह शारीरिक आकर्षण कतई नहीं था. अगर वह मु झे अपना संपूर्ण समर्पण कर भी देती तो भी मैं शायद उस के लिए न जाता. यह शायद इसलिए क्योंकि एक पुरुष एक साधारण स्त्री से भी बेहद कमजोर होता है. लेकिन, उस के बारे में जानने की जिज्ञासा जरूर थी.

उस ने कहा, ‘‘मु झे प्रेम वाली कविताएं अच्छी लगती हैं.’’

मैं ने उत्तर दिया, ‘‘मैं रोमांटिक कविता ही लिखता हूं.’’ और फिर अगले दिन चारबाग चौराहे पर मिलना तय हुआ.

मैं ठीक 10 बजे पूर्व निर्धारित स्थान पर पहुंच गया. वह दूर से आती हुई दिखी. मैं ने मन ही मन में कहा जुगाड़ आ गई. हम ने फिर साथ में रिकशा लिया. इस बार मैं पहले की अपेक्षा अधिक चिपक कर बैठा.

मैं ने पूछा, ‘‘कैसी हो?’’

उस ने कहा, ‘‘बस, ठीक. अमित, तुम ने कहा था कि तुम अपनी कविता सुनाओगे.’’

मैं ने उसे अपनी एक छोटी सी कविता सुनाई. इस बार मैं उस के चेहरे पर उभरे शब्दों को पढ़ सकता था.

उस ने कहना प्रारंभ किया, ‘‘अमित, कविताओं की कोंपलें हृदय के भीतर से निकलती हैं. पहले हम अपनी भावनाओं को कोरे कागज पर उकेरते हैं, फिर धीरेधीरे उसे जीने लगते हैं. शायद, मैं गलत होऊं मगर मु झे लगता है हर लिखने वाले का दिल आईने की तरह बिलकुल साफ होता है. पता नहीं क्यों मैं उस दिन तुम से मिली तो तुम पर विश्वास करने को दिल चाहा और मैं ने तुम्हें अपना मोबाइल नंबर दे दिया.

‘‘अमित, पता नहीं इस अंधी दौड़ में हम कहां जा रहे हैं. पैसापैसा और पैसा, जिंदगी बस इस में सिमट कर रह गई है. पर मेरे लिए प्यार महत्त्वपूर्ण है.’’

उस ने मेरा हाथ फिर खींच कर अपने हाथों में लिया. हमारी मानसिकता संकीर्ण होती जा रही है. हम जो हैं वह दिखना नहीं चाहते और जो नहीं हैं, चाहते हैं बस वही दिखे. अजीब सी सचाई थी उस की आंखों में.

‘‘अमित, अगर मु झे कोई तुम्हारे साथ इस तरह बैठे देखे तो पता नहीं क्या सोचेगा और मैं उन्हें रोक भी नहीं सकती क्योंकि बहुत कम ऐसे लोग हैं जो व्यवस्थित सोचते हैं या इस की कोशिश करते हैं. मगर यह जरूरी नहीं है कि हम रोज मिलें क्योंकि  2 अच्छे लोगों का बिखर जाना अच्छा होता है ताकि वे 2 अलगअलग दिशाओं में अच्छाइयां फैला सकें.’’

मैंने एक भरपूर दृष्टि उस के चेहरे पर डाली और खुद से प्रश्न किया, क्या सचमुच मैं एक अच्छा आदमी हूं? अचानक रिकशे वाले ने कहा, ‘‘अमीनाबाद आ गया.’’ हमारे बीच का वार्त्तालाप थम सा गया.

वह हंसी और कहना शुरू किया, ‘‘अमित अपना खयाल रखो, बिलकुल दुबलेपतले हो. खाने का ध्यान रखा करो और हां, जल्दी शादी कर लो. लेकिन, मु झे बुलाना मत भूलना.’’

उस के चेहरे पर आदेश का भाव था. मैं रिकशे से उतरा. इस बार मैं ने उस का हाथ उसी आत्मविश्वास से पकड़ा जैसे मैं किसी परममित्र या अपनी प्रेमिका का पकड़ता था क्योंकि इस बार मेरे आकर्षण को दिशा मिल चुकी थी. उस का रिकशा धीरेधीरे आगे बढ़ने लगा. मैं वहीं खड़ा तब तक उसे देखता रहा जब तक वह मेरी आंखों से ओझल नहीं हो गई.

Hindi love story : प्यार के काबिल

Hindi love story : मुकुल और जूही दोनों सावित्री कालोनी में रहते थे. उन के घर एकदूसरे से सटे हुए थे. दोनों ही हमउम्र थे और साथसाथ खेलकूद कर बड़े हुए थे.

दोनों के परिवार भी संपन्न, आधुनिक और स्वच्छंद विचारों के थे, इसलिए उन के परिवार वालों ने कभी भी उन के मिलनेजुलने और खेलनेकूदने पर कोई प्रतिबंध नहीं लगाया था. इस प्रकार मुकुल और जूही साथसाथ पढ़तेलिखते, खेलतेकूदते अच्छे अंकों के साथ हाईस्कूल पास कर गए थे.

इधर कुछ दिनों से मुकुल अजीब सी परेशानी महसूस कर रहा था. कई दिन से उसे ऐसा एहसास हो रहा था कि उस की नजरें अनायास ही जूही के विकसित होते शरीर के उभारों की तरफ उठ जाती हैं, चाहे वह अपनेआप को लाख रोके. बैडमिंटन खेलते समय तो उस के वक्षों के उभार को देख कर उस का ध्यान ही भंग हो जाता है. वह अपनेआप को कितना भी नियंत्रित क्यों न करे, लेकिन जूही के शरीर के उभार उसे सहज ही अपनी ओर आकर्षित करते हैं.

जूही को भी यह एहसास हो गया था कि मुकुल की निगाहें बारबार उस के शरीर का अवलोकन करती हैं. कभीकभी तो उसे यह सब अच्छा लगता, लेकिन कभीकभी काफी बुरा लगता था.

यह सहज आकर्षण धीरेधीरे न जाने कब प्यार में बदल गया, इस का पता न तो मुकुल और जूही को चला और न ही उन के परिवार वालों को.

लेकिन यह बात निश्चित थी कि मुकुल को जूही अब कहीं अधिक खूबसूरत, आकर्षक और लाजवाब लगने लगी थी. दूसरी तरफ जूही को भी मुकुल अधिक स्मार्ट, होशियार और अच्छा लगने लगा था. दोनों एकदूसरे में किसी फिल्म के नायकनायिका की छवि देखते थे. बात यहां तक पहुंच गई कि

इस वर्ष वैलेंटाइन डे पर दोनों ने एकदूसरे को न सिर्फ ग्रीटिंग कार्ड दिए, बल्कि दोनों के बीच प्रेमभरे एसएमएस का भी आदानप्रदान हुआ.

इस के बाद तो एकदूसरे के प्रति उन की झिझक खुलने लगी. वे दोनों प्रेम का इजहार तो करने ही लगे साथ ही फिल्मी स्टाइल में एकदूसरे से प्रेमभरी नोकझोंक भी करने लगे. हालत यह हो गई कि पढ़ते समय भी दोनों एकदूसरे के खयालों में ही डूबे रहते. अब किताबों के पन्नों पर भी उन्हें एकदूसरे की तसवीर नजर आ रही थी.

इस के चलते उन की पढ़ाई पर असर पड़ना स्वाभाविक था. इंटर पास करतेकरते उन के आकर्षण और प्रेम की डोर तो मजबूत हो गई, लेकिन पढ़ाई का ग्राफ काफी नीचे गिर गया, जिस का असर उन के परीक्षाफल में नजर आया. नंबर कम आने पर दोनों के परिवार वाले चिंतित तो थे, लेकिन वे नंबर कम आने का असली कारण नहीं खोज पा रहे थे.

इंटर पास कर के मुकुल और जूही ने डिग्री कालेज में प्रवेश लिया तो उन के प्रेम को और विस्तार मिला. अब उन्हें मिलनेजुलने के लिए कोई जगह तलाशने की आवश्यकता नहीं थी. कालेज की लाइब्रेरी, कैंटीन और पार्क गपशप और उन के प्रेम इजहार के लिए उमदा स्थान थे.

इस प्रकार मुकुल और जूही का प्रेम परवान चढ़ता ही जा रहा था. किताबों में पढ़ कर और फिल्में देख कर वे प्रेम का इजहार करने के कई नायाब तरीके सीख गए थे.

इस बार वैलेंटाइन डे के अवसर पर मुकुल ने सोचा कि वह एक नए अंदाज में जूही से अपने प्रेम का इजहार करेगा. यह नया अंदाज उस ने एक पत्रिका में तो पढ़ा ही था, फिल्म में भी देखा था. उस ने पढ़ा था कि इस कलात्मक अंदाज से प्रेमिका काफी प्रभावित होती है और फिर वह अपने प्रेमी के खयालों में ही डूबी रहती है. इस कलात्मक अंदाज को उस ने इस वैलेंटाइन डे पर आजमाने का निश्चय किया. उस ने शीशे के सामने खड़े हो कर उस का खूब अभ्यास भी किया.

सुबहसुबह का समय था. मौसम भी अच्छा था. मुकुल का मन रोमानी था. उस ने हाथ में लिए गुलाब के खिले फूल को निहारा और फिर उसे अपने होंठों पर रख कर चूम लिया. अब उस से रहा न गया. उस ने अपने मोबाइल से जूही को छत पर आने के लिए एसएमएस किया.

जूही तो जैसे तैयार ही बैठी थी. मैसेज पाते ही वह चहकती हुई छत की तरफ दौड़ी. वह प्रेम की उमंग और तरंग में डूबी हुई थी और वैसे भी प्रेम कभी छिपाए नहीं छिपता.

जूही को इस प्रकार छत की ओर दौड़ते देख उस की मम्मी का मन शंका से भर उठा. वे सोचने लगीं, ‘इतनी सुबह जूही को छत पर क्या काम पड़ गया? अभी तो धूप भी अच्छी तरह से नहीं खिली.’ उन की शंका ने उन के मन में खलबली मचा दी. वे यह देखने के लिए कि जूही इतनी सुबह छत पर क्या करने गई है, उस के पीछेपीछे चुपके से छत पर पहुंच गईं.

वहां का दृश्य देख कर जूही की मम्मी हतप्रभ रह गईं. जूही के सामने मुकुल घुटने टेके गुलाब का फूल लिए प्रणय निवेदन की मुद्रा में था. वह बड़े ही प्रेम से बोला, ‘‘जूही डार्लिंग, आई लव यू.’’

जूही ने भी उस के द्वारा दिए गए गुलाब के फूल को स्वीकार करते हुए कहा, ‘‘मुकुल, आई लव यू टू.’’

यह दृश्य देख कर जूही की मम्मी के पैरों तले जमीन खिसक गई, लेकिन छत पर कोई तमाशा न हो, इसलिए वे चुपचाप दबे कदमों से नीचे आ गईं. अब वे बहुत परेशान थीं.

थोड़ी देर बाद जूही भी उमंगतरंग में डूबी हुई, प्रेमरस में सराबोर गाना गुनगुनाती हुई नीचे आ गई. इस समय वह इतनी खुश थी, मानो सारा जहां उस के कदमों में आ गया हो. इस समय उसे कुछ भी नहीं सूझ रहा था.

उस की मम्मी को भी समझ नहीं आ रहा था कि वे उस के साथ कैसे पेश आएं? उन के मन में आ रहा था कि जूही के गाल पर थप्पड़ मारतेमारते उन्हें लाल कर दें. दूसरे ही पल उन के मन में आया कि नहीं,  इस मामले में उन्हें समझदारी से काम लेना चाहिए. उन्होंने शाम को जूही के पापा से ही बात कर के किसी निर्णय पर पहुंचने की सोची. उधर, आज दिनभर जूही अपने मोबाइल पर लव सौंग सुनती रही.

शाम को जब जूही की मम्मी ने जूही के पापा को सुबह की पूरी घटना बताई, तो वे भी सन्न रह गए. फिर भी उन्होंने धैर्य से काम लेते हुए कहा, ‘‘निशा, तुम चिंता मत करो. जूही युवावस्था से गुजर रही है और यह युवावस्था का सहज आकर्षण है. क्या हम ने भी ऐसा ही नहीं किया था?’’

‘‘राजेंद्र, तुम्हें तो हर वक्त मजाक ही सूझता है. यह जरूरी तो नहीं कि जो हम करें वही हमारी संतानें भी करें.’’

‘‘निशा, मेरे कहने का तात्पर्य यह नहीं है कि बच्चों के भविष्य को ध्यान में रख कर कोई कदम ही न उठाया जाए. मैं आज ही मुकुल के पापा से बात करता हूं. बच्चों को समझाने से ही कोई हल निकलेगा.’’

जूही के पापा ने मुकुल के पापा से मिलने का समय लिया और फिर उन से मिलने उन के घर गए. फिर दोनों ने सौहार्दपूर्ण वातावरण में मुकुल और

जूही के प्रेम व्यवहार और उन के भविष्य पर चर्चा की, जिस से वे दोनों कहीं गलत रास्ते पर न चल पड़ें. दोनों ने बातों ही बातों में मुकुल और जूही को सही मार्ग पर आगे बढ़ाने की योजना और नीति बना ली थी.

तब एक दिन मुकुल के पापा ने सही अवसर पा कर मुकुल को अपने पास बुलाया और उस से इस प्रकार बातें शुरू कीं जैसे उन्हें उस के और जूही के बीच पनप रहे प्रेम संबंधों के बारे में कुछ पता ही न हो.

उन्होंने बड़े प्यार से मुकुल से पूछा, ‘‘बेटा मुकुल, आजकल तुम खोएखोए से रहते हो. इस बार तुम्हारे नंबर भी तुम्हारी योग्यता और क्षमता के अनुरूप नहीं आए. आखिर क्या समस्या है बेटा?‘‘

मुकुल के पास इस प्रश्न का कोई सटीक उत्तर नहीं था. कभी वह प्रश्नपत्रों के कठिन होने को दोष देता, तो कभी आंसर शीट के चैक होने में हुई लापरवाही को दोष देता.

‘‘बेटा मुकुल, मुझे तो ऐसा लग रहा है कि तुम अपना ध्यान पढ़ाई में सही से लगा नहीं पा रहे हो. कोई इश्कविश्क का मामला तो नहीं है?’’

यह सुनते ही मुकुल को करंट सा लगा. उस के मुंह से तुरंत निकला, ‘‘नहीं पापा, ऐसी कोई बात नहीं है.’’

‘‘बेटा, यह उम्र ही ऐसी होती है. यदि ऐसा है भी तो कोई बुरी बात नहीं. मुझे अपना दोस्त समझ कर तुम अपनी भावनाओं को मुझ से शेयर कर सकते हो. एक पिता कभी अपने बेटे को गलत सलाह नहीं देगा, विश्वास करो.’’

लेकिन मुकुल अब भी कुछ बताने से झिझक रहा था. उस के पापा उस के चेहरे को देख कर समझ गए कि उस के मन में कुछ है, जिसे वह बताने से झिझक रहा है. तब उन्होंने उस से कहा, ‘‘मुकुल, कुछ भी बताने से झिझको मत. तुम्हारे सपनों को पूरा करने में सब से बड़ा मददगार मैं ही हो सकता हूं. बताओ बेटा, क्या बात है?’’

अपने पापा को एक दोस्त की तरह बातें करते देख मुकुल की झिझक खुलने लगी. तब उस ने भी जूही के साथ चल रही अपनी प्रेम कहानी को सहज रूप से स्वीकार कर लिया.

इस पर उस के पापा ने कहा, ‘‘मुकुल, तुम एक समझदार बेटे हो जो तुम ने सचाई स्वीकार की. मुझे जूही से तुम्हारी दोस्ती पर किसी भी तरह से कोई भी एतराज नहीं. बस, मैं तो सिर्फ इतना कहना चाहता हूं कि यदि तुम जूही को पाना चाहते हो तो पहले उस के लायक तो बनो.

‘‘तुम जूही को तभी पा सकते हो, जब अपने कैरियर को संवार लो और कोई अच्छी नौकरी व पद प्राप्त कर लो. बेटा, यदि तुम अपना और जूही का जीवन सुखमय बनाना चाहते हो, तो तुम्हें अपना कैरियर संवारना ही होगा अन्यथा जूही के पेरैंट्स भी तुम्हें स्वीकार नहीं करेंगे. इस दुनिया में असफल आदमी का साथ कोई नहीं देता.’’

यह सुन कर मुकुल ने भावावेश में कहा, ‘‘पापा, हम एकदूसरे से सच्चा प्यार करते हैं. कभी हम एकदूसरे से जुदा नहीं हो सकते.’’

‘‘बेटा, तुम दोनों को जुदा कौन कर रहा है? मैं तो बस इतना कह रहा हूं कि यदि तुम जूही से जुदा नहीं होना चाहते तो उस के लिए कुछ बन कर दिखाओ. अन्यथा कितने ही सच्चे प्रेम की दुहाई देने वाले रिश्ते हों, अनमेल होने पर टूट और बिखर जाते हैं. यदि तुम ऐसा नहीं चाहते तो जूही की जिंदगी में खुशबू महकाने के लिए तुम्हें कुछ बन कर दिखाना ही होगा.’’

‘‘पापा, आप की बात मुझे समझ आ गई है. हम जिस चीज को चाहते हैं, उस के लिए हमें उस के लायक बनना ही पड़ता है. नहीं तो वह चीज हमारे हाथ से निकल जाती है.

‘‘अभी तक मैं अपना बेशकीमती समय यों ही गाने सुनने और फिल्में देखने में गवां रहा था. अब मैं अपना पूरा समय अपना कैरियर संवारने में लगाऊंगा. मुझे अपने प्यार के काबिल बनना है.’’

‘‘शाबाश बेटा, अपने इस जज्बे को कायम रखो. अपनी पढ़ाई में पूरा मन लगाओ. अपना कैरियर संवारो. मात्र सपने देखने से कुछ नहीं होता, उन्हें हकीकत में बदलने के लिए प्रयास और परिश्रम करना ही पड़ता है. जूही को पाना चाहते हो तो जूही के काबिल बनो.’’

‘‘पापा, आप ने मेरी आंखें खोल दी हैं. मैं आप से वादा करता हूं कि मैं ऐसा ही करूंगा.’’

‘‘ठीक है बेटा, तुम्हें मेरी सलाह समझ में आ गई. मैं एक दोस्त और मार्गदर्शक के रूप मे तुम्हारे साथ हूं.’’

इसी प्रकार की बातें जूही के पेरैंट्स ने जूही को भी समझाईं. इस का असर जल्दी ही देखने को मिला. मुकुल और जूही एकदूसरे को पाने के लिए अपनाअपना कैरियर संवारने में लग गए. अब वे दोनों अपनी पढ़ाई ध्यान लगा कर करने लगे थे.

जूही और मुकुल के पेरैंट्स भी यह देख कर काफी खुश थे कि उन के बच्चे सही राह पर चल पड़े हैं और अपनाअपना भविष्य उज्ज्वल बनाने में लगे हैं.

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