ज्योति ने अपने जीवन में जितना अधिक प्रेम को पाना चाहा उतना ही वह तड़पती रही. प्रेम की डगर पर उठने वाले कदम चार होते थे लेकिन, हमेशा प्यार और पार पाने वाले केवल दो ही क्यों रह जाते थे? कहानी द्य प्रेमलता यादु ‘‘क्यातुम मेरे इस जीवनपथ की हमराही बनना चाहोगी? क्या तुम मुझ से शादी करोगी?’’ प्रकाश के ऐसा कहते ही ज्योति आवाक उसे देखती रही. वह समझ ही नहीं पाई क्या कहे? उस ने कभी सोचा नहीं था कि प्रकाश के मन में उस के लिए ऐसी कोई भावना होगी. उस के स्वयं के हृदय में प्रकाश के लिए इस प्रकार का खयाल कभी नहीं आया. कई वर्षों से दोनों एकदूजे को जानते हैं. दोनों ने संग में न जाने कितना ही वक्त बिताया है. जब भी उसे कांधे की जरूरत होती.
प्रकाश का कंधा सदैव मौजूद होता. ज्योति अपनी हर छोटी से छोटी खुशी और बड़े से बड़ा दुख इस अनजान शहर में प्रकाश से ही साझा करती. उन दोनों की दोस्ती गहरी थी. जबजब ज्योति किसी रिलेशनशिप में आती तो प्रकाश को बताती और जब ब्रेकअप होता तब भी वह प्रकाश से ही दुख जाहिर करती. उस का यह पहला ब्रेकअप नहीं था. लेकिन दिल तो इस बार भी टूटा था. हां, दर्द जरूर थोड़ा कम था. यह सब जानते हुए प्रकाश का आज इस तरह शादी के लिए प्रपोज करना उसे उलझन में डाल गया. वह अपनी कौफी खत्म किए बिना और प्रकाश से कुछ कहे बगैर औफिस कैंटीन से अपने चैंबर में लौट आई. प्रकाश ने भी उसे रोकने की कोई कोशिश नहीं की. ज्योति विचारों के गिरह में उलझने लगी थी. मरुस्थल के गरम रेत पर चलते हुए ज्योति के पैरों में फफोले आ चुके थे. मृगतृष्णा की तलाश में न जाने वह कब से अकेली भटक रही थी. जिस अमृतरूपी प्रेम का वह रसपान करना चाहती थी, वह प्रेम उसे हर बार एक विष के रूप में मिला. बचपन में मां को खोने के बाद लाड़प्यार को तरसती रही.