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Hindi Story : कीर्ति चक्र – आत्मनिर्भरता की ओर अग्रसर स्त्री

Hindi Story : जरूरी है क्या स्त्री जीवनयापन के लिए पुरुष पर निर्भर रहे जबकि उस का आत्मविश्वास और आत्मनिर्भरता उसे जीवन के नए आयाम दे सकते हैं. सुषमा की इसी सोच ने उसे नए मुकाम पर पहुंचा दिया था.

मैं, लैफ्टिनैंट सुषमा कुमारी, आईएमए से डेढ़ साल की ट्रेनिंग के बाद पासिंगआउट हुई थी. मेरी पहली पोस्टिंग लद्दाख में सेना की आयुद्ध कोर की एक छोटी यूनिट में हुई थी. मुझे इंडिपैंडैंट कमांड मिली थी. थोड़ा आश्चर्य हुआ था कि पहली पोस्टिंग में इंडिपैंडैंट कमांड? शायद सैनिक परिवार से थी, इसीलिए ऐसा हुआ. मुझे 2 महीने की छुट्टी दी गई थी. मैं अमृतसर घर जाने के लिए प्लेन में बैठी तो मैं अपने अतीत में डूब गई.

मैं यहां तक कैसे पहुंची, यह एक लंबी दुखभरी दास्तान है. मैं कैप्टन राजेश की विधवा थी जो जम्मूकश्मीर में आंतकवादियों के एक अंबुश में शहीद हो गए थे. वे लड़ाकू फौज में नहीं थे लेकिन फिर भी सेना में सभी को लड़ने की ट्रेनिंग दी जाती है. वे उरी सैक्टर में कहीं जा रहे थे. उन पर अचानक आतंकवादियों ने हमला किया. इस अचानक हुए हमले से जब तक वे संभलते तब तक उन के 2 जवान शहीद हो गए थे. उन्होंने अपने बाकी के जवानों को बचाने के लिए तुरंत मोरचा संभाला और कारबाइन मशीन का मुंह खोल दिया. आतंकवादी संख्या में ज्यादा थे, उन्होंने अपने जवानों को तो बचा लिया लेकिन खुद शहीद हो गए. उन्हें उन की बहादुरी के लिए कीर्ति चक्र मिला. मैं और मेरी सास इसे राष्ट्रपति से प्राप्त करने के लिए गए.

मेरी आंखों के आंसू सूख नहीं रहे थे. मेरी उम्र मात्र 23 साल की थी. मैं राजेश को याद कर के रोती रहती थी. एक रोज मेरी सास मेरे पास आई और बड़े प्यार से बोली, मेरे ससुरजी भी पीछे आ कर खड़े हो गए थे, ‘सुषमा, कब तक रोती रहोगी? अगर तुम ने अपना पति खोया है तो हम ने अपना बेटा खोया है. हमें हौसला रखना होगा और आगे के जीवन के बारे सोचना होगा.’ वह थोड़ा हिचकी, फिर दृढ़ता से आगे कहा, ‘घर की बात घर में रह जाएगी. सबकुछ पहले की तरह चलेगा. तुम इस घर की बहू बनी रहोगी. तुम अपने देवर विभू से शादी कर लो. पैसाटका भी घर में रहेगा.’

मैं ने रोते हुए कहा था, ‘यह कैसे संभव है, मम्मीजी. मेरे पति और आप के बेटे की चिता की आग अभी ठंडी भी नहीं हुई है कि आप ऐसा अभद्र प्रस्ताव ले कर आई हैं. मैं विभू को अपना भाई मानती आई हूं और भाई से शादी नहीं की जाती.’

जब इस के लिए अन्य रिश्तेदारों से भी दवाब बढ़ने लगा तो मैं ‘कीर्ति चक्र’ ले कर अपने मायके चली आई. मैं मायके वालों पर भी बोझ नहीं बनना चाहती थी. वहां भी मेरा विरोध करने वाले बहुत थे. विधवा लड़की को कोई रखना नहीं चाहता. समाज की यह भद्दी सोच थी कि जो अपने पति को खा गई वह हमें कहां छोड़ेगी. मैं ने उसी शहर में 2 कमरों का फ्लैट लिया और रहने लगी.

मैं ने मन बना लिया था कि मैं कैप्टन राजेश की तरह आर्मी में जाऊंगी. मैं अपने पांवों पर खड़ी होऊंगी. मैं पढ़ीलिखी हूं, शहीद की विधवा हूं तो क्या हुआ.

कैप्टन राजेश की पैंशन और जो सुविधाएं मुझे मिलनी थीं, वे बैंक में आ गई थीं. मेरा मैडिकल कार्ड भी बन कर आ गया था.

सोशल मीडिया पर मेरे सासससुर बहुत से भ्रम फैला रहे थे, जैसे मैं सबकुछ ले कर अपने मायके चली आई हूं. मीडिया वाले सूंघतेसूंघते मेरे पास भी आए थे. मैं ने कहा, ‘आप मुझ से पूछने के बजाय सेना मुख्यालय से क्यों नहीं पूछते?’
‘हम ने पूछा था, शहीद को एक करोड़ रुपया दिया जाता है जिस में से 60 फीसदी पत्नी का होता है और 40 फीसदी शहीद के मांबाप का. पैंशन, पीएफ, मैडिकल का अधिकार पत्नी का होता है.’
‘फिर आप मुझ से और क्या जानना चाहते हैं?’
‘यही कि आप भविष्य में क्या करेंगी, शादी करेंगी?’
‘नहीं, शादी मैं बिलकुल नहीं करूंगी. शादी करनी होती तो मैं वहीं पड़ी रहती. यूपीएससी ने सेना में स्थायी कमीशन की वैकेंसी निकाली थी, मैं उस की लिखित परीक्षा दे कर आई हूं. उम्मीद है कि पास हो जाऊंगी. एसएसबी और मैडिकल भी क्लीयर कर लूंगी. आप मुझे अपने पांवों पर खड़े होते देखेंगे. मैं अपनी ससुराल से केवल ‘कीर्ति चक्र’ ले कर आई हूं. अपने लिए मैं ने पलंग और टेबलकुरसी खरीदी है. मेरे सारे गहने, दहेज का सामान वहीं पड़ा है. मेरे मायके जा कर भी आप देख सकते हैं.’
‘हम ने देख लिया है पर एक सवाल मन में कुलबुला रहा है कि आप अपने मायके में क्यों नहीं रह रहीं?’ महिला पत्रकार ने बड़े मीठे स्वर में पूछा था.
मैं ने कहा, ‘यह किसी व्यक्ति विशेष पर प्रहार नहीं है, यह समाज की सोच है कि मांबाप को छोड़ कर और कोई किसी विधवा को अपने पास रखने के लिए तैयार नहीं होता. मैं ने यह बेहतर समझ कि अलग रहूं.’
दूसरे दिन अखबारों में मेरे बयानों की चर्चा थी. मेरे सासससुर और रिश्तेदारों को झुठा बताया गया था.

यूपीएससी की लिखित परीक्षा का रिजल्ट आ गया था. मैं सफल कैंडिडेट थी.
एसएसबी का सैंटर पुणे पड़ा था. इस के लिए 2 महीने का समय था. मैं ने
अमृतसर में एसएसबी की तैयारी के लिए कालेज जौइन किया.

पुणे में भी सारे फिजिकल टैस्टों के बाद फाइनल इंटरव्यू में सभी मेरे पति के शहीद होने के बारे में पूछते रहे. ‘कीर्ति चक्र’ प्राप्त करने के लिए बधाई भी दी और पति के शहीद होने का अफसोस भी जताया. आखिर में प्रीसाइडिंग अफसर ने कहा, ‘भारतीय सेना को ऐसी वीर नारियों की जरूरत है.’

पास बैठी बोर्ड की एक महिला अधिकारी ने पूछा, ‘इतनी लंबी जिंदगी अकेले कैसे काटोगी?’
मैं काफी देर चुप रही, फिर कहा, ‘आप की मुराद शायद शादी से है, यह मेरे अस्तित्व की लड़ाई है. मैं अकेले लड़ूंगी. फिलहाल मैं किसी मर्द को पालने में विश्वास नहीं रखती हूं.’
मेरे चेहरे पर दृढ़ता थी. प्रश्न जितना तीखा था, जवाब भी उतना ही तीखा था. फिर किसी ने कोई प्रश्न नहीं पूछा. मैं सब का अभिवादन कर के बाहर आ गई.

शाम को जब रिजल्ट सुनाया गया तो मैं सफल थी. दूसरे रोज मेरा मैडिकल हुआ और मैं अपने घर लौट आई. जनवरी के पहले सोमवार से मेरा कोर्स शुरू होना था. उस से पहले मेरे सर्टिफिकेट वैरिफाई किए गए. मिलिट्री अस्पताल से मैडिकल करवाया गया और भी बहुत सी फौरमैलिटीज पूरी होने के बाद वह लिस्ट भेजी गई जो मुझे आईएमए में ले कर जानी थी. मैं ने अमृतसर के सदर बाजार से वे आइटमें ले लीं. ट्रेनिंग चलती रही.

लैफ्टिनैंट बन कर मैं अपने किराए के मकान में आ गई. मैं ने यह मकान छोड़ा नहीं था, किराया देती रही थी. छोड़ने का इरादा भी नहीं था. एक दिन मुझे मेरी सास का पत्र प्राप्त हुआ. उस में लिखा था, ‘आप लैफ्टिनैंट बन गई हैं, इस के लिए बधाई. आप पर गलत प्रैशर डाला गया था, उस के लिए खेद है. आप इस घर की बहू हैं और रहेंगी, चाहे विधवा बन कर रहें. आप के दहेज का सामान और गहने सुरक्षित हैं, जब चाहें, ले जा सकती हैं.’

मैं ने उन के पत्र का कोई उत्तर नहीं दिया. मन में इतनी टीस थी कि उत्तर देने का मन ही नहीं किया. 2 साल से उन्होंने मेरी कोई सुध नहीं ली. आज मैं अफसर बन गई हूं तो याद आई हूं. मीडिया में कैसेकैसे भ्रम फैलाए थे, मुझे सब याद है. अपनी ससुराल को ले कर मेरा मन फिर कसैला हो गया था. आज शायद इसलिए भी याद आई हूं, लगातार आने वाला पैसा दिखाई दे रहा है. मैं ऐसी ससुराल से दूर भली.
मेरे मांबाप मुझे मिलने आते रहे लेकिन उन्होंने मुझे कभी अपने पास आ कर रहने को नहीं कहा. कम उम्र में ही मैं सब की मानसिकता को जान गई थी. वे मेरे अफसर बनने से खुश थे.
मां ने पूछा था, ‘क्या तुम सारी उम्र किराए के घर में रहोगी?’
‘नहीं, बहुत जल्दी आर्मी वैलफेयर एसोसिएशन द्वारा बनाए गए फ्लैट के लिए अप्लाई करूंगी. वे फ्लैट जब बन जाते हैं तब अप्लाई करने के लिए कहते हैं. जल्दी ही दिल्लीएनसीआर में मुझे फ्लैट अलौट हो जाएगा.’
‘फिर हम से नाते टूट जाएंगे?’
‘हां, यही समझ लें. रिश्तेनाते अब भी कहां हैं? मायके से डोली उठती है तो ससुराल से अर्थी, यही परंपरा है न? मेरी तो डोली और अर्थी साथ उठ गई हैं. जीतेजी इस त्रासदी को भुगत रही हूं, फिर कैसे रिश्ते और कैसे नाते?’ यह कह कर मैं थोड़ी देर रुकी, फिर आगे कहा, ‘मुझे खुशी है कि मैं सेना की अफसर बन गई हूं. मुझे किसी के आगे अपनी जरूरतों के लिए हाथ फैलाने की जरूरत नहीं है.’
वे मेरी बातों का कोई जवाब नहीं दे पाए थे. थोड़ी देर बैठे और चले गए.

2 महीने की छुट्टी खत्म हुई तो मैं ने चंडीगढ़ ट्रांजिट कैंप में रिपोर्ट की. ट्रांजिट कैंप आगे की फ्लाइट का प्रबंध करता है. मैं चंडीगढ़ के एमसीओ यानी मिलिट्री मूवमैंट कंट्रोल औफिस पहुंची. यूनिफौर्म में थी. सब ने उठ कर मुझे सम्मान दिया. मैं ने कहा, ‘मुझे ट्रांजिट कैंप के लिए कोई गाड़ी मिलेगी?’
‘जी हां मैडम सर, सामने गाड़ी खड़ी है, वह ट्रांजिट कैंप जाएगी.’
कुली ने मेरा सामान गाड़ी में रख दिया. कुली पैसे ले कर चला गया. ड्राइवर ने मुझे सैल्यूट किया और कहा, ‘थोड़ी देर रुक कर चलते हैं. शायद कोई जवान ट्रांजिट कैंप जाने वाला आ जाए.’

मैं कुछ नहीं बोली. 2 जवान आ कर गाड़ी में बैठ गए. ड्राइवर ने जवानों को बैरक में उतार कर मुझे अफसर मैस में उतार दिया. मैं सामान वहीं रख कर अफसर मैस के औफिस में गई. वहां बैठे हवलदार को मैं ने अपना मूवमैंट और्डर दिया. उस ने मुझे सैल्यूट किया और बैठने के लिए कहा. मैं कुरसी पर बैठ गई. हवलदार ने एक जवान को बुलाया और मेरा सामान कमरा नंबर 2 में रखने के लिए कहा. मुझे से कहा, ‘मैडम सर, आप कमरे में चलें, मैं आप के जाने का शैड्यूल ले कर हाजिर होता हूं.’

मैं कमरे में आ गई. कमरा आधुनिक था. 2 अफसरों के रहने के लिए बनाया गया था. वाशरूम भी आधुनिक था. 2 कुरसियां और 1 टेबल रखी थी. ड्रैसिंगटेबल थी. मैं ने बैल्ट उतार कर मच्छरदानी लगाने वाले पोल पर टांग दी. मैं बैठी ही थी कि एक जवान मेरे लिए चाय ले कर आया, साथ में पनीर के पकौड़े थे. सफर से आई थी, मुझे चाय की बहुत जरूरत थी. मैं चाय के साथ पकौड़े खाने लगी.

अभी मैं चाय पी कर हटी ही थी कि औफिस का हवलदार आया, बोला, ‘मैडम सर, शैड्यूल इस तरह है. 8 बजे बार खुलेगी, आप सौफ्टड्रिंक, रम, व्हिस्की, वाइन पेमैंट पर पी सकेंगी. स्नैक्स आप को ट्रांजिट कैंप की ओर से मिलेंगे. 9 बजे डिनर होगा,’ वह थोड़ी देर के लिए रुका, फिर बोला, ‘सुबह 6 बजे की फ्लाइट है. सुबह 2 बजे आप को बैड टी मिलेगी. 3 बजे आप को स्टेशनवैगन पिक करने आएगी. यह आप का बोर्डिंगपास है और वीआईपी लाउंज का 200 रुपए का कूपन है. आप वहां 200 रुपए का कुछ भी खा सकती हैं.
मैं ने पूछा, ‘कोई और भी अफसर ट्रांजिट कैंप से जा रहा है?’
‘अभी तो कोई नहीं है. आने की उम्मीद भी नहीं है. आना होता तो अब तक आ जाता. अब जो आएगा, परसों सुबह की फ्लाइट से जाएगा.’

वह चला गया तो मैं ने मोबाइल से अपनी यूनिट में बात की. वहां के सूबेदार इंचार्ज ने बताया, ‘जयहिंद मैडम सर, आप के शैड्यूल के मुताबक गाड़ी लेह पहुंच चुकी है. आप के लिए स्नो क्लोदिंग भेजा है. लेह में उतरते ही पहन लीजिएगा. सर्दी बहुत है, तापमान माइनस में चल रहा है. लेह ट्रांजिट कैंप के अफसर मैस को बोल दिया गया है कि आप के लिए चाय, नाश्ते और लंच का प्रबंध करें. इस के लिए मैं ने टिफिन और थर्मस भेजे हैं. ड्राइवर मैस से ले लेगा.’
मैं ने कहा, ‘थैंक्स.’
‘जयहिंद मैडम सर.’
‘जयहिंद.’
गेट पर खड़े जवान ने मुझे सैल्यूट किया और गेट खोल दिया. अंदर डिनर का अच्छा प्रबंध था. स्नैक्स में पकौड़े रखे हुए थे. मुझे भूख जोरों की लगी थी. कई ड्रिंक्स भी रखी थीं लेकिन मैं ने उस ओर ध्यान नहीं दिया. एक जवान मेरे पास ट्रे में ड्रिंक रख कर ले आया तो मैं ने उसे आराम से मना कर दिया कि मुझे नहीं चाहिए.

मैं ने डिनर किया और कमरे में आ गई. वरदी उतार कर हैंगर में डाल कर अलमारी में टांग दी. नाइटसूट पहना और मच्छरदानी लगा कर सो गई. सुबह 2 बजे चाय आई. फ्रैश हो कर वरदी पहनी. जवान मेरा बिस्तर और ट्रंक ले गया था, बोला, ‘स्टेशन वैगन आ गई है, आ जाइए.’

आधे घंटे में मैं एयरपोर्ट पर थी. इंडियन एयरलाइंस के लगेज पौइंट पर मैं ने सामान जमा किया. मेरे हाथ में मोबाइल और छोटा बैग था जिस में जरसी थी. ओवरकोट हाथ में पकड़ लिया था. चैकइन करने में आसानी हुई. वीआईपी लाउंज में पहुंची तो वहां दिन की तरह रौनक थी. टेबल सर्विस थी. मैं ने कूपन दे कर ब्रैडमक्खन लाने के लिए कहा. चाय मैं तेज गरम पीती थी. मैं ने उसे बाद में लाने के लिए कहा.
बोर्डिंग होने में काफी समय था, इसलिए आराम से नाश्ता करती रही. 05.30 बजे मैं बोर्डिंग होने के लिए काउंटर पर गई. बिजनैस क्लास पर अपनी सीट पर बैठी तो मुझे वहां कोई बैठा दिखाई नहीं दिया. सभी अकसर इकोनौमी क्लास में सफर करते हैं. सरकारी अफसर या कोई बिजनैमैन इस क्लास में सफर करता है. तभी मेरे मोबाइल की घंटी बजी. मेरे ‘हैलो’ कहने पर उधर से आवाज आई, ‘जयहिंद मैडम सर, मैं नायक ड्राइवर ईश्वर सिंह बोल रहा हूं. आप प्लेन में बैठ गईं?’
‘हां, बैठ गई.’
‘मैं आप को गाड़ी ले कर लगेज मिलने वाली जगह पर मिलूंगा, जी.’
‘ठीक है.’
‘जयहिंद मैडम सर.’
‘जयहिंद.’

मोबाइल बंद करने का अनाउंसमैंट हो गया था. मैं ने मोबाइल बंद कर दिया. प्लेन उड़ा और एक घंटे बाद लेह एयरपोर्ट पर लैंड कर गया. बताया गया, बाहर का तापमान माइनस 2 डिग्री है. जब तक स्टाफ उतरता, मैं ने जर्सी और ओवरकोट पहन लिए. सिर ढकने के लिए मेरे पास कुछ नहीं था. जानती थी, इस से सर्दी नहीं रुकेगी लेकिन कोई चारा नहीं था.

मैं बाहर निकली, सर्दी का एक झौंका आया, मुझे भीतर तक कंपा गया. जल्दी से सामने लगी बस में बैठ गई. इकोनौमी क्लास से बहुत से जवान और एक जेसीओ आ कर बैठे थे. जेसीओ मेरे पास आया, सैल्यूट किया और बोला, ‘मैडम सर, आप शायद नई पोस्टिंग पर आई हैं, तभी आप के पास सिर ढकने के लिए कुछ नहीं है.’
मैं ने कहा, ‘मेरे जवान मुझे लेने के लिए आए हुए हैं, वे सबकुछ ले कर आए हैं, सिर्फ लगेज पौइंट तक मुझे ऐसे जाना है.’
‘ठीक है, मैडम सर, यहां की हवा बहुत खतरनाक है, लग गई तो आप तुरंत बीमार हो जाएंगी. मेरे पास बिलकुल नया कैपबलकलावा है. आप लगेज पौइंट तक पहन लें, सुरक्षित रहेंगी. मुझे भी वहीं जाना है. वहां जा कर मुझे वापस कर दें.’
मुझे जेसीओ साहब का सुझाव अच्छा लगा. मैं ने कैपबलकलावा ले कर पहन लिया. सिर को आराम मिला. मैं ने उन से पूछा, ‘आप कौन सी रैजिमैंट से हैं और कहां जाना है?’
‘मैडम सर, मैं डोगरा रैजिमैंट से हूं और मुझे दुरबुक जाना है.’
‘मुझे भी वहीं जाना है, आप हमारे साथ चलें.’
‘थैंक्स मैडम सर, ट्रांजिट कैंप ने अगर इजाजत दी तो मैं आप के साथ चलूंगा.’
‘मुझे भी वहां नाश्ता करना है, रास्ते के लिए चाय और लंच लेना है. मैं बोल दूंगी.’
‘थैंक्स मडैम सर, यहां रुक गए तो पता नहीं कब भेजें. रहने और खाने की व्यवस्था इतनी अच्छी नहीं होती है.’
‘कोई बात नहीं, मैं कह दूंगी तो जाने देंगे.’
साहब ने मुझे सैल्यूट किया और पीछे जा कर बैठ गए. मैं और साहब लगेज पौइंट पर पहुंचे तो ओवरकोट पर रैंक न लगा होने के कारण मेरे जवान मुझे पहचान नहीं पाए लेकिन मैं ने पहचान लिया था. मैं उन के पास गई तब उन्होंने मुझे पहचाना. नायक ईश्वर सिंह और साथ आए जवान ने मुझे सैल्यूट किया, पूछा, ‘मैडम सर, यही 2 नग हैं?’
‘हां, यह छोटा बैग भी है. ये सूबेदार साहब हमारे साथ दुरबुक जाएंगे. गाड़ी में जगह होगी?’
‘जी मैडम सर, टोयटा की 8 सीटर गाड़ी है, जगह बहुत है.’
‘ठीक है, ईश्वर, इन का सामान भी गाड़ी में रखवा लो.’
‘थैंक्स मैडम सर,’ सूबेदार साहब ने कहा.
ट्रांजिट कैंप में सारी व्यवस्था कर के मैं अफसर मैस में नाश्ते के लिए आई. नाश्ता करते मेरे जवान ने मेरे लिए चाय और लंच ले लिया. मैं ने पूछा, ‘आप लोगों ने नाश्ता कर लिया?’
‘जी मैडम सर, आप के आते ही हम दुरबक के लिए चल देंगे.’
मैं कुछ नहीं बोली, वह टिफिन और थरमस ले कर चला गया. सब ने अपना लंच भी ले लिया था. जब हम लेह से चले तो मौसम साफ था. सूरज चमक रहा था. उस की गरम किरणें शरीर को अच्छी लग रही थीं. जैसेजैसे हम चढ़ाई चढ़ते गए, मौसम खराब होता गया.
मैं ने कहा, ‘सूबेदार साहब, मौसम एकदम खराब हो गया?’
‘जी मैडम सर, यहां के मौसम के बारे में मशहूर है कि सरदारजी का दिमाग और यहां का मौसम कब बिगड़ जाए, पता नहीं.’ यह कह कर सूबेदार साहब थोड़ा हंसे. वे मेरे सामने खुल कर नहीं हंस सकते थे. यह सेना के अनुशासन में आता है. फिर आगे उन्होंने कहा, ‘हमारे ब्रिगेड कमांडर साहब भी सरदारजी हैं, सिख रैजिमैंट से, बहादुर और मार्शल कौम के. पता नहीं चलता किस समय क्या हुकम दे दें. वे हर चीज खुद चैक करते हैं.
‘पहले हमारी चौकियां नीचे थीं, चाइना हमें देखता था. अब चौकियां ऊपर हैं, हम चाइना को देखते हैं. एक रात जबरदस्त बर्फ पड़ रही थी. हमारी पैट्रोलिंग पार्टी जाने के लिए तैयार थी. वे आए और बोले, वे भी आप के साथ जाएंगे. वास्तव में वे यह जानना चाहते थे कि इतनी भयानक सर्दी और बर्फबारी में पैट्रोलिंग करने में क्याक्या दिक्कतें आती हैं. वे हमारी तरह फुल ड्रैस में थे. हर जवान कोई 20 किलो भार ले कर चलता है. पानी की बोतल भरी जाती है लेकिन पानी जम जाता है, पिया नहीं जा सकता. पानी की जगह जवान रम भर कर ले जाते हैं. पैट्रोल और रम नहीं जमती है. कमांडर साहब ने यह पूछा कि सब की वाटर बोटल में रम है? सब ने कहा ‘हां सर.’
वहां से चले तो उतराई थी. उन्होंने देखा कि गमबूट में भी जवान फिसल रहे हैं. वे खुद 2 बार फिसले. गमबूट नौनस्किड होते हैं. चढ़ाई में भी फिसलेंगे. यह तो हम रोप के सहारे चलते हैं. उन्होंने महसूस किया कि और तो सब ठीक है लेकिन गमबूट में कमी है. दूसरे, औक्सीजन की कमी से सब की सांस फूलती है. धीरेधीरे लगातार चलने से सांस कंट्रोल हो जाती है. उस का कोई इलाज नहीं है लेकिन गमबूट के लिए उन्होंने रिसर्च डिपार्टमैंट को लिखा. अब जो गमबूट आए हैं, वे फिसलते नहीं हैं.’
सूबेदार साहब चुप हो गए थे. मैं ने कहा, ‘ऐसे शानदार और बहादुर अफसर के अंडर में काम करने में बहुतकुछ सीखने को मिलेगा.’
‘जी मैडम सर.’
हमारे देशवासी सोचते होंगे कि बड़े अफसर यों ही दफ्तरों में बैठ कर एंजौय करते हैं. उन्हें पता ही नहीं होगा कि वे जवानों के साथ उन की समस्याओं को गहराई से समझते हैं और उन का समाधान करते हैं.
ड्राइवर ने कहा, ‘मैडम सर, हम इस समय दुनिया की सब से ऊंची सड़क चांगला टौप पर खड़े हैं.’
मैं ने कहा, ‘रुको, मैं कुछ तसवीरें लेना चाहूंगी.’

सूबेदार साहब ने कहा, ‘मैडम सर, बाहर मौसम बहुत खराब है. मोबाइल का कैमरा काम नहीं करेगा. तापमान माइनस 20 से 25 डिग्री के बीच होगा. कभी भी बारिश या बर्फ पड़नी शुरू हो सकती है. हमें यहां से जल्दी निकलना होगा. हम कार में बैठे हैं. हीटर चल रहा है, इसलिए सर्दी सहन हो रही है.’
‘जी मैडम सर, साहब ठीक कह रहे हैं. कार एयरटाइट है. बीडिंग लगा कर खिड़कीदरवाजों को सील किया गया है. तब भी सर्दी लगती है. थोड़ा आगे झरना है, वहां लंच कर के आगे चलेंगे,’ ड्राइवर ने कहा.
मैं कुछ नहीं बोली, ड्राइवर ने गाड़ी आगे बढ़ा दी. खराब मौसम के कारण दिन में ही अंधेरा हो रहा था. मैं ने कहा, ‘जो जवान ट्रांजिट कैंप की गाडि़यों में आते होंगे उन के लिए तो बहुत मुश्किल होती होगी? वे इतनी भयंकर सर्दी को कैसे सहते होंगे?’
‘तिरपाल से चारों तरफ से गाडि़यों को ढक लिया जाता है. जवान 3-4 कंबल ओढ़ लेते हैं. फ्रंट सीट पर ड्राइवर के साथ केवल एक जवान के बैठने का आदेश होता है लेकिन ड्राइवर अपनी रिस्क पर 2 जवान और आगे बैठा लेता है. बाकी जवानों के पास सर्दी सहने के अलावा कोई चारा नहीं होता. हां, रम पी कर खुद को गरम रखते हैं. इस के लिए ट्रांजिट से रम मिलती है.’
मैं सोच रही थी, अनुशासन के लिए जवानों और अफसरों में यह फर्क रहेगा. आगे चल कर सब ने लंच किया और चल पड़े. हम शाम 5 बजे अपनी यूनिट में पहुंचे. ड्राइवर को सूबेदार साहब रैजिमैंट में छोड़ने का आदेश दे कर मैं अपने लिए तय कमरे में आ गई. कमरा सुंदर था. हीटर से गरम कर रखा था. अच्छा लगा. हैल्पर मेरे लिए पानी और चाय ले कर आया. पानी हलका गरम था, मैं पूरा पी गई, फिर चाय पी. चाय बहुत टेस्टी थी.
मैं ने पूछा, ‘चाय किस ने बनाई ’
‘मैं ने बनाई है, मैडम सर,’ साथ के कमरे से आवाज आई और वह मेरे सामने आ कर खड़ा हो गया, मुझ से जयहिंद कर कहा, मैडम सर, मैं आप का स्पैशल कुक हूं. आप के लिए स्नैक्स और खाना बनाऊंगा. मेरा नाम अजीत है और यह सुमन कुमार है, आप का हैल्पर.’

मैं नहाना चाहती थी, साथ में वाशरूम था. गीजर औन था. तेज गरम पानी से नहाई. बहुत अच्छा लगा. मैं पलंग पर आ कर बैठ गई. नाइटसूट में थी. मैं ने अपनी टांगों पर स्लीपिंग बैग ओढ़ लिया था. सिर कैपबलकलावा से ढक लिया था. सारे गरम कपड़े पहने और रूमहीटर चलने पर भी सर्दी लग रही थी. तभी किसी ने बाहर से अंदर आने की इजाजत मांगी. मेरे ‘यस’ कहने पर अंदर आए. एक नायब सूबेदार साहब थे, दूसरे सूबेदार साहब थे.
दोनों ने मुझ से ‘जयहिंद मैडम सर’ कहा.

मुझ उन के ‘जयहिंद मैडम सर’ कहने पर हैरानी नहीं हुई. एटीकेट ट्रेनिंग में बताया
गया था कि सेना में महिला अफसर से ऐसे ही बात करेंगे. मैं ने उन्हें बैठने के
लिए कहा लेकिन वे बैठे नहीं. मैं ने उन्हें ईजी हो कर खड़े होने के लिए कहा.
उन्होंने अपना परिचय दिया, ‘मैं सूबेदार हरिराम, यहां का सीनियर जेसीओ हूं.’
‘और मैं नायब सूबेदार गुरनाम सिंह, यहां का जेसीओ एडजूडैंट.’
‘मैडम सर, आप का सफर ठीक रहा? रास्ते में कोई तकलीफ तो नहीं हुई? लंचचाय ठीक मिली?’
‘हां, सब ठीक था. मुझ पूरी यूनिट का इंस्पैक्शन करना है और फिर सैनिक दरबार लेना है. कुछ अपने बारे में बताऊंगी, कुछ जवानों की सुनूंगी. कब करवाना चाहेंगे?’
‘मैडम सर, आज बुधवार है, सोमवार को इंस्पैक्शन और मंगलवार को दरबार ले लें,’ सीनियर जेसीओ साहब ने कहा.
‘नहीं, मैं दरबार लूंगी, फिर दरबार के तुरंत बाद यूनिट का इंस्पैक्शन करूंगी, हो जाएगा?’
‘जी, मैडम सर,’ दोनों सैल्यूट कर के चले गए.
बाहर मौसम बहुत ज्यादा खराब हो रहा था. बारिश शुरू हो गई थी. थोड़ी देर में बर्फ भी गिरनी शुरू हो गई. कमरे का मीटर माइनस 22 डिग्री तापमान बता रहा था.ऐसे ठंडे मौसम में खून जमने लगता है. मैं ने गरम चाय मंगवाई. धीरेधीरे चाय के घूंट भरती रही. ठंड से बचने का यही रास्ता सूझ रहा था मुझे.

आगे का अंश बौक्स के बाद 

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पर्यटकों की पहली पसंद

भारत खुद को कितना ही विश्वगुरु कह ले, पर्यटकों की नजर में वह अभी भी दुनियाभर के देशों में सब से पीछे है. 2024 के पर्यटकों के आंकड़े बताते हैं कि घुमंतुओं की पहली पसंद फ्रांस है. फ्रांस जाने वालों की संख्या 8.94 करोड़ थी. फ्रांस के बाद दूसरे नंबर पर स्पेन जाने वालों की संख्या 8.37 करोड़ रही. अमेरिका 7.93 करोड लोग घूमने गए. चीन जाने वालों की संख्या 6.57 रही और इटली घूमने वालों की संख्या 6.45 करोड़ रही है.

इस के विपरीत भारत आने वालों की संख्या मात्र 1.79 करोड़ रही. भारत जनसंख्या और क्षेत्रफल की नजर से बड़े देशों में शामिल किया जाता है. देश में घूमने और रहनसहन के तमाम स्थान हैं. इस के बाद भी पर्यटकों की नजर में भारत सब से नीचे आता है. इस की सब से बड़ी वजह यहां का धार्मिक कट्टरपन और रूढि़वादिता है.

घूमने में जो मजा पर्यटकों को फ्रांस, अमेरिका, चीन और इटली में आता है वह भारत में नहीं आता. यहां घूमने आने वालों को अभी भी परेशान किया जाता है. उन को अपराध का शिकार बनाया जाता है, खासकर, महिला पर्यटकों के खिलाफ माहौल ठीक नहीं होता है. पर्यटकों को जो आजादी विदेशों में होती है वह भारत में नहीं मिलती है, इसलिए भी भारत में पर्यटकों की संख्या कम ही रहती है.
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सोमवार को मैं इंस्पैक्शन के लिए हर जगह गई. यूनिट लाइन में गई तो जगहजगह खाली स्थान थे जैसे कोई चार्ट लगे हों. सीनियर जेसीओ और जेसीओ एडजूडैंट मेरे साथ थे. मैं ने उन से पूछा, ‘इस खाली जगह पर कोई चार्ट लगे थे?’
वे दोनों एकदूसरे का मुंह देखने लगे. वे बताने में झिझक रहे थे. मैं ने कहा, ‘बेझिझक बताएं. मैं सैनिक परिवार से हूं, ज्यादा तो नहीं लेकिन बहुतकुछ जानती हूं.’
सीनियर जेसीओ ने झिझक हुए कहा, ‘मैडम सर, यहां ब्यूटीपोस्टर थे. आप का इंस्पैक्शन था, इसलिए हटा दिए गए. इंस्पैक्शन के बाद लगा दिए जाएंगे.’
यह जान कर अच्छा लगा. सेना में मर्यादा रखी जाती है. महिला अफसर के सामने ऐसे पोस्टर नहीं लगाए जा सकते थे. जवानों को गरम रखने के लिए ऐसे पोस्टर जरूरी थे नहीं तो भयंकर सर्दी में इंपोटैंसी की बीमारी पनप जाती है और भी कई उपक्रम किए जाते हैं. ड्राईफ्रूट दिए जाते हैं, रोज रम और मीट या अंडे दिए जाते हैं. मक्खन खाने को मिलता है. रोमांटिक फिल्में दिखाई जाती हैं. ट्रेनिंग में सब बताया गया था. मैं मन से दृढ़ हो गई थी. जवानों के स्वास्थ्य का प्रश्न था. मैं ने कहा, ‘साहब, चाहे किसी का भी इंस्पैक्शन हो, पोस्टर हटाए नहीं जाएंगे.’
‘जी मैडम सर.’
उस के बाद मैं मैस में आ गई. वहां केवल 3 जवान थे. 2 कुक थे और एक मैस कमांडर. सब ने हाथों में ग्लव्ज पहने हुए थे. मैं ने उन के ग्लव्ज उतरवा कर नाखून चैक किए. मैस कमांडर से पूछा, ‘क्वार्टरमास्टर से राशन नफरी के मुताबिक मिलता है? किसी तरह की कमी तो नहीं रहती?’
‘नहीं, मैडम सर. राशन की कमी नहीं होती है. राशन पूरा मिलता है,’ मैस कमांडर ने कहा.
‘इस बार जब राशन आए तो मुझे दिखाना.’
‘जी, मैडम सर.’
मैं ने सीनियर जेसीओ से पूछा, ‘साहब, आप का खाना कौन बनाता है?’
‘यहीं मैस से आता है.’
‘गुड और मेरा खाना कौन बनाता है?’
‘आप का खाना स्पैशल कुक बनाता है.’
‘आज से मेरा नाश्ते से ले कर डिनर तक यहीं से आएगा. जो जवान खांएगे वही मैं खाऊंगी. यह मेरा चैक होगा.’
‘जी मैडम सर.’

दरबार का टाइम हो रहा था. मैं वाशिंग पौइंट पर न जा सकी. परंपरा के अनुसार जेसीओ साहब ने मुझे जवानों की संख्या बता कर दरबार हैंडओवर किया. मैं कुर्सी पर बैठी और कहा, ‘दरबार बहुत जल्दी में लिया गया है, इसलिए किसी का कोई पौइंट नहीं आया. किसी का कोई पौइंट हो तो बोले.’

बहुत देर चुप्पी छाई रही, फिर एक जवान उठा. अपना नामनंबर बता कर बोला, ‘मैडम सर, मैं सिपाही वाशरमैन हूं. मेरे साथ एक और वाशरमैन काम करता है. हमारे पास 2 सैमीऔटो मशीन हैं. उन में कपड़े तो धुल जाते हैं लेकिन स्पिन नहीं हो पाते. कपड़ों में पानी जम जाता है. हम बड़ी मुश्किल से जेसीओ सहाबन के कपड़े धो पाते हैं. मौसम खराब रहने के कारण कईकई दिन कपड़े सूखते नहीं हैं. कई बार प्रैस से कपड़े सुखाने पड़ते हैं. यदि फुल्लीऔटो वाशिंग मशीन मिल जाए तो हम जवानों के कपड़े भी धो पाएंगे.’

वह सैल्यूट कर के बैठ गया. मैं ने हैडक्लर्क से पूछा, ‘क्या हमारे पास रैजिमैंटल फंड की कमी है?’
‘नहीं, मैडम सर, सिर्फ आप के आदेश की जरूरत है.’
मैं ने स्पष्ट कहा, ‘बहुत जल्दी मशीनों का प्रबंध हो जाएगा.’
दरबार के बाद ब्रिगेड कमांडर साहब से मेरा इंटरव्यू था. ड्राइवर मुझे ब्रिगेड हैडक्वार्टर ले गया. ब्रिगेड मेजर ने रजिस्टर में पर्टिकुलर नोट किए और कमांडर साहब के सामने मार्च किया. मैं ने स्मार्ट सैल्यूट किया. मुझे देख कर बहुत खुश हुए. वे उठे और हाथ मिलाया, कहा, ‘अपनी ब्रिगेड में एक महिला अफसर का स्वागत करते हुए बहुत खुशी हो रही है. मैं समझता हूं, आप पुरुष अफसरों से भी अच्छी कमांड करेंगी. ‘कीर्ति चक्र’ के लिए बधाई और कैप्टन राजेश के शहीद होने का अफसोस है, कोई प्रौब्लम?’
वे 6 फुट लंबे थे. मैं उन के सामने पिद्दी लगती थी. लड़ाकू फौज के अफसर ऐसे ही होते हैं.
‘कुछ नहीं सर, वाशिंग के लिए मैं रैजिमैंटल फंड से फुल्ली औटो मशीनें खरीदने जा रही हूं.’
‘दैट इज योर मैनेजमैंट. वैसे, यहां ड्राईक्लीन प्लांट है. आप जवानों के गरम कपड़े यहां भेज सकती हैं. दिन आप को मेजर साहब बता देंगे.’
‘जी सर, आई विल डू दिस.’
‘मार्च करें.’
ब्रिगेड मेजर साहब ने मुझे चाय पिए बिना आने नहीं दिया. उन्होंने बताया कि ड्राईक्लीन के लिए हमारी यूनिट का शनिवार का दिन तय है.

मैं ने थैंक्स कहा और यूनिट लौट आई. सरकारी डाक देखी. हैडक्लर्क मेरे पास आए, बोले, ‘इस समय सब से अच्छी मशीन बौस की है. मेरी बात हो गई है, 32 हजार रुपए की एक मशीन है. लैटरहैड पर लिख कर फैक्स कर दें और वह चैक फैक्स कर दें जो उन्हें देना है. वे एक हफ्ते में मशीनें लगा जाएंगे.’
मैं ने हैडक्लर्क से पूछा, ‘हमारे पास रैजिमैंटल फंड कितना है?’
‘11 लाख रुपए से ज्यादा है.’
‘कमाल है, आज तक किसी ने इस्तेमाल नहीं किया?’
मैं ने खुद मशीन वालों से बात की. 2 साल की गारंटी के साथ वे कोई इंस्टौलेशन चार्ज नहीं लेंगे. मैं ने हैडक्लर्क साहब से 10 केजी की 2 औटो मशीन का और्डर तुरंत प्लेस करने को कहा.
रनर चाय और स्नैक्स ले कर आया तो मैं ने जेसीओ एडयूडैंट को भेजने के लिए कहा. मैं ने रनर से पूछा, ‘यह चाय और स्नैक्स जवानों को भी मिलते हैं.’
‘हां जी, मैडम सर. उन के लिए व्हिस्ल बजने वाली है.’
जेसीओ एडयूडैंट साहब चाय पीने के बाद आए. मैं ने ड्राईक्लीन प्लांट के बारे में बताया. उन्होंने कहा, ‘जी मैडम सर, पता है लेकिन वे कपड़े इतने अच्छे साफ नहीं कर पाता है. वाशरमैन का दिन भी खराब होता है और उसे फिर से ईजी में धोने पड़ते हैं.’
3 दिन में मशीनें इंस्टौल हो गईं. मैं संतुष्ट थी. जेसीओ और जवान भी संतुष्ट थे. मैं रात को ड्रिंक लेने के साथ सोच रही थी कि मैं पढ़ीलिखी होने के कारण स्थापित हो गई. जो योग्य हैं, उन्हें भारतीय सेना में जाना चाहिए. भारतीय सेना कम पढ़ीलिखियों को भी जगह देती है, क्लर्क, लेबर आदि. मैं उन वीर नारियों के बारे में सोच रही थी जो ससुराल, मायके और समाज के प्रभाव में आ कर अपना जीवन नारकीय बना लेती हैं. पैंशन और सेना से इतना रुपया मिलता है कि वे बड़े आराम से अपना जीवन बिता सकती हैं. किसी दूसरे पुरुष को पालना जरूरी है क्या?
बस, यही प्रश्न हैं जिन के उत्तर नहीं मिलते.

Love Story : खरा सौदा प्रेम का – प्यार को परवान चढ़ाते प्रेमी

Love Story : दिल तो सभी के एकसमान धड़कते हैं, चाहे वे अलगअलग धर्म के हों. सबा और सुकुमार ने एकदूसरे से सच्ची मोहब्बत की थी. धर्म और समाज के ठेकेदार उन का कुछ न बिगाड़ सके. प्रेम सब पर भारी पड़ गया था.

लखनऊ शहर के ऐतिहासिक ग्राउंड बेगम हजरत महल पार्क में चारों तरफ हरी घास फैली हुई थी. पर, एक कोने की घास काफी हद तक बच्चों ने क्रिकेट खेल कर खराब कर दी थी, लेकिन इन बच्चों को, जिन में से अधिकांश किशोर उम्र के थे, इस बात से कोई अंतर नहीं पड़ने वाला था उन्हें तो खेलने के लिए एक अदद मैदान चाहिए था, जो इस बेगम हजरत महल पार्क के रूप में उन्हें मिल गया था.

न जाने कितनी राजनीतिक और ऐतिहासिक रैलियों का गवाह बना है ये पार्क. इस पार्क के ठीक सामने 2 मकबरे बने हुए हैं. इन मकबरों के गुंबद आसमान को छूते हैं. एक तो नवाब सआदत अली खान का मकबरा है और दूसरा मकबरा उन की बेगम का है.

प्रेमी जोड़ों की प्रेमभरी बातों और शिकवेशिकायतों का गवाह बनी हैं ये मकबरे की इमारत और आज इसी मकबरे की इमारत की छाया में सबा और सुकुमार कभी आने वाले जीवन के बारे में संजीदा हो रहे हैं, तो कभी मामले की गंभीरता को हलका करने के लिए हलकीफुलकी नोकझोंक भरी बातें भी कर लेते हैं.

‘‘ये मकबरे असली प्रेम की निशानी होते हैं, चाहे कितने ही साल बीत जाएं, पर मरने के बाद भी दो जिस्म एकदूसरे के पास रहते हैं,‘‘ सबा ने मकबरे की तरफ देखते हुए कहा.

थोड़ी देर के लिए सुकुमार गंभीरता ओढ़े बैठा रहा, फिर चुटकी लेते हुए बोला, “अरे, मरने के बाद अगर किसी मकबरे में आप के शरीर को दफन भी कर दिया जाए तो क्या बात है? अरे, मजा तो तब है, जब जीतेजी मुहब्बत को जिया जाए,” कहते हुए सुकुमार ने सबा का हाथ थाम लिया था. पता नहीं क्यों, पर उन्हें एकदूसरे से दूर कर दिए जाने का एक अनजाना सा भय भी लग रहा था.

सुकुमार ने सबा को छेड़ने की गरज से कहा, ‘‘वैसे, तुम्हारे शहर आगरा में तो ताजमहल नाम का एक ही मकबरा है, पर हमारे शहर लखनऊ में तो देखो मकबरों के साथ कितनी  ऐतिहासिक इमारतें भी हैं.‘‘

“हां, है तो एक ही, पर एक ताजमहल ही सब पर भारी है, पर क्या हमारी मुहब्बत भी कहीं नाकाम मुहब्बत न बन कर रह जाएगी? और क्या हमारे एकसाथ जिंदगी बिताने का सपना पूरा नहीं हो पाएगा? काश, हमारा भी छोटा सा घर होता और वहां सिर्फ मैं और तुम ही होते.”

सबा ने अपने घोंसले में वापस आती चिड़ियों को देख कर कहा.

सबा की बात पर सुकुमार खामोश बैठा रहा. दोनों एकदूसरे की खामोशी को सिर्फ सुन ही नहीं रहे थे, बल्कि कुछ अनपूछे सवालों के जवाब समझ भी रहे थे.

सुकुमार लखनऊ के एक प्राइवेट सैक्टर में काम करता था, जबकि आगरा की रहने वाली सबा लखनऊ के सेवा अस्पताल में नर्स का काम करती थी और चैक इलाके में पेइंग गेस्ट के तौर पर रहती थी. वह समय मिलने पर अपने अम्मीअब्बू से मिलने आगरा जाती थी या कभीकभी उन दोनों को ही अपने पास बुला लेती थी.

सुकुमार की मुलाकात सबा से अस्पताल में ही हुई. उसे अपनी दाढ़ का रूट कैनाल ट्रीटमेंट कराना था, इसलिए वह सेवा अस्पताल के दंत विभाग में जाता था. बस, इसी सेवा अस्पताल में एक बार सुकुमार की मुलाकात एक गेहुंए रंग की लड़की से हुई, जो सुकुमार के मन को भा गई थी और उस लड़की को भी सुकुमार की हाजिरजवाबी भा गई थी.

सुकुमार की दाढ़ का इलाज भले ही हो गया था, पर वह अस्पताल जाता रहा, क्योंकि उसे सबा से मुलाकात जो करनी होती थी और ये मुलाकात धीरेधीरे प्यार में बदल गई.

28 साल के सुकुमार और 24 साल की सबा का ये प्यार कोई टाइमपास करने वाला प्यार नहीं था, बल्कि दोनों इस मुहब्बत को शादी में बदलना चाहते थे, मगर दोनों इस बात की गंभीरता और खतरे भी जानते थे, क्योंकि सुकुमार हिंदू था और सबा एक मुसलिम परिवार से आती थी, इसलिए अलगअलग धर्म से होने के कारण राह में आने वाली परेशानियों का अंदाजा दोनों को था.

सबा और सुकुमार अच्छी तरह से जानते थे कि उन के घर वाले इस शादी के लिए कभी नही मानेंगे. इसलिए सबा तो सुकुमार से कोर्ट मैरिज कर के अलग रहने पर भी राजी थी. वह कहती थी कि अगर घर वाले अनुमति न दें, तो वह घर वालों से अलग रहने लगे. पर, फिर भी बात तो बात करने से ही बनती है न, इसलिए इस बात की पहल सबा ने अपने घर में की तो मानो घर में बम फट गया था. मुन्ना भाई पूरे घर में चिल्लाता फिरता था और अम्मी अलग कोने में बड़बड़ा रही थीं, इन सभी बातों के लिए सबा की पढ़ाई को ही जिम्मेदार ठहराया जा रहा था.

“मैं कहती थी न कि लड़की जात को इतना पढ़ाना ठीक नहीं. अरे, अगर पढ़लिख भी गई, तो नौकरी करने के लिए इतनी दूर भेजने की क्या जरूरत थी. अरे, आगरा में भी हजार नौकरियां थीं. अब भुगतो.”

सिर्फ अब्बू ही थे, जो दो जवां दिलों के जज्बात को समझ रहे थे. सबा ने किचन से देखा कि वे खिड़की पर खड़े हो कर नीचे सड़क पर झांक रहे थे. भले ही वे खामोश थे, अलबत्ता उन के दिमाग में भी अंधड़ तो चल ही रहा था.

‘‘मुन्ना की अम्मी, नौकरीपेशा लड़की है और उस पर से जवान भी है. इस उम्र में दिमाग आसानी से बगावत कर सकता है और कहीं कुछ ऊंचनीच कर बैठी तो हम अपनेआप को कभी माफ नहीं कर पाएंगे,‘‘ बड़े लाचार से दिख रहे अब्बू की आवाज में दोनों की शादी के लिए स्वीकार भाव था और यह स्वीकार भाव अम्मी को भी समझ आ गया था. शादी के लिए उन दोनों की स्वीकृति तुरंत तो नहीं मिली, पर सबा को काफीकुछ समझ आ गया था.

लड़की हो कर सबा ने अपने घर में अपनी ही शादी एक हिंदू लड़के से करने की बात कहने की हिम्मत दिखाई, पर सुकुमार यह हिम्मत नहीं कर पा रहा था. इस की वजह थी उस के पिता की बीमारी. सुकुमार के पिता किडनी इन्फेक्शन से पीड़ित थे और ऐसी हालत में वह अपने पिता को कोई टैंशन नहीं देना चाहता था, पर जब सबा ने सुकुमार से कहा कि अगर उस के अंदर हिम्मत नहीं है, तो वह खुद उस के पिता से मिल कर अपनी शादी की बात करेगी, पर उस की बात सुन कर सुकुमार ने कहा कि वह आज खुद ही बात कर लेगा.

“आकर्षण तो विरोध में ही होता है, पर शादियां अपने धर्म और बराबरी वालों में ही हों तो ठीक रहता है, क्योंकि मैं ने न जाने कितने प्रेमियों को देखा है, जो अलगअलग जाति के होने के कारण शादी नहीं कर सके,” एक लंबी सांस छोड़ते हुए सुकुमार के पिताजी ने कहा.

पिताजी की आंखों में अतीत लहरा रहा था. उन्हें वह महल्ला याद आ रहा था, जिस में वे रहा करते थे और वहां रहने वाली एक ईसाई लडकी से उन्हें प्रेम हुआ था और वे दोनों आपस में शादी करना चाहते थे, पर उन के घर में कोई राजी नहीं था. उन्हें ताने मिलने लगे और चरित्रहीन तक कहा गया. महल्ले वालों ने घर आ कर धमकी दी कि लड़के ने धर्म विरोधी काम किया, तो पूरे परिवार को महल्ला छोड़ कर जाना होगा. घर वाले मजबूर दिखे, इसलिए अपना मन मसोस कर अपने धर्म में ही शादी कर ली.

सुकुमार के पिताजी ने यह कहते हुए सुकुमार को सबा से शादी की अनुमति दे दी, ‘‘अगर वह ठीक समझता है, तो सबा से शादी कर सकता है.’’

सुकुमार ने सबा से यह बात बताई तो वह भी बहुत खुश हुई. दोनों परिवारों के मां और पिता में मुलाकात जरूरी थी, इसलिए एक दिन निश्चित किया गया और नियत दिन पर सबा के अम्मीअब्बू आगरा से लखनऊ आ गए. ये मुलाकात ‘‘मीना महल‘‘ नाम के एक होटल में रखी गई.

सबा और सुकुमार अपने परिवार के साथ थे, पर फिर भी दोनों की प्रेमभरी नजरें एकदूसरे से टकरा ही जाती थीं. शुरुआत में दोनों परिवार थोड़े असहज लगे, पर धीरेधीरे दोनों में बातचीत आगे बढ़ी तो वे घुलनेमिलने लगे और अब तक दोनों परिवारों ने सबा और सुकुमार के मन में चलने वाले प्रेम के बवंडर को भी जान और पहचान लिया था, इसलिए शादी की तारीख पर दोनों परिवारों ने मुहर लगा दी. सबा के बड़े भाई मुन्ना ने इस शादी में शामिल होने से इनकार कर दिया था.

अगले दिन सुकुमार ने अपने औफिस में शादी के लिए छुट्टी की अर्जी लगा दी और बातोंबातों में यह बात सब को पता चल गई कि सुकुमार एक मुसलिम लड़की से शादी कर रहा है. कुछ दोस्तों ने खुशी व्यक्त की, तो कुछ ने धर्म विरोधी कह कर सुकुमार का मजाक उड़ाया.

शाम का समय था. सुकुमार परिवार के साथ बैठा चाय पी रहा था, तभी “छनाक‘‘ की आवाज के साथ खिड़की के शीशे के टूटने की आवाज आई, तो सुकुमार ने बाहर की ओर देखा. ये 5-7 लोग थे, जो काफी गुस्से में दिख रहे थे और उसी गुस्से के अतिरेक के कारण उन्होंने शीशा तोड़ दिया था.

“क्या चाहते हैं आप लोग? और ये… ये क्या बदतमीजी है?” सुकुमार ने दरवाजा खोलते हुए कहा, तो उन मुस्टंडे लड़कों में से एक ने सुकुमार का गरीबान पकड़ लिया और उसे धमकाने लगा. ये सब हिंदू युवा ब्रिगेड के लड़के थे.
“सुना है कि तू किसी मुसलिम लड़की से शादी कर रहा है. अरे, अपने धर्म का कुछ तो खयाल कर. या तेरी बुद्धि ही फिर गई है. याद रख, अगर महल्ले में रहना है, तो अपने धर्म के हिसाब से रहना होगा. अगर किसी दूसरे धर्म की लड़की से शादी की, तो अंजाम ठीक नहीं होगा,” उन लोगों ने धमकी दी थी.

यह सुन कर सुकुमार डर तो गया ही था. वह अंदर आ कर सोफे में धम्म से बैठ गया. पिताजी भी घर में थे. उन्होंने भी सब देखा और सुना था.

“ये महल्ले के चंद लड़कों ने हमारे जीवन का ठेका ले रखा है क्या? हमें क्या खाना चाहिए, क्या पीना चाहिए, ये हमे बताएंगे क्या…?” सुकुमार के पिता का बरसों से दबा हुआ आवेग गुस्से की शक्ल में बाहर आ रहा था.

“आज ये कह रहे है कि इस से शादी मत करो, तो कल को कहेंगे कि इस दुनिया में सांस मत लो और ये धर्म के ठेकेदार आज की दुनिया में ही नही हैं. ये 50 साल पहले भी ऐसे ही थे. अगर इन को ठीक से सबक नहीं सिखाया गया, तो ये सारे समाज की ठेकेदारी अपने नाम लिखा लेंगे,” सुकुमार के पिताजी ने उस को हिम्मत देते हुए कहा कि उस की शादी सबा से ही होगी, चाहे इस के लिए उन्हें कुछ भी करना पड़े, क्योंकि अब वे ये नहीं चाहते थे कि इतिहास अपने को दोहराए और जो उन के साथ हुआ, वह उन के बेटे के साथ न हो.

सुकुमार के पिता यह बात समझ चुके थे कि समाज के ठेकेदार उन्हें यहां रहते हुए तो शादी नहीं करने देंगे, इसलिए उन्होंने सबा का नंबर ले कर उस से बात कर कुछ पूछताछ की और जब शाम को सुकुमार घर आया तो उन्होंने उस से कहा कि वह कैरियर और प्रेम में एक का चुन ले.

“क्या मतलब पापा…?”

सुकुमार के पिता ने उस से कहा कि वह इस महल्ले में रहते हुए सबा से शादी नहीं कर सकता, इसलिए उन्हें यह महल्ला… या बेहतर होगा कि ये शहर छोड़ कर कहीं और जाना होगा. उन्होंने सबा की स्वीकृति ले ली है. वह अपना ट्रांसफर सीतापुर की ब्रांच में करा लेगी, पर चूंकि सुकुमार की जौब प्राइवेट है, इसलिए उस का ट्रांसफर तो हो नहीं सकता. अतः जौब छोड़ना ही उस के लिए एकमात्र औप्शन होगा.

“ठीक है पापा, मैं सबा को पाने के लिए ये भी करने को तैयार हूं.”

सबा और सुकुमार ने यही किया. शादी के बाद दोनों सीतापुर शिफ्ट हो गए. दोनों ने एक छोटा सा घर किराए पर ले लिया था. वे दोनों खुशी से रह रहे थे, पर सबा से शादी करने के फेर में सुकुमार की नौकरी छूट गई थी और उसे अपने मातापिता को छोड़ कर सीतापुर आना पड़ गया था.

सबा के नौकरी पर जाने के बाद सुकुमार एकदम अकेला हो जाता. हालांकि उस का बायोडाटा नौकरी डौट कौम पर अपलोड था, पर नौकरी मिलने में समय लगता है और दूसरी तरफ अपने पापा की बिगड़ती तबीयत उस की चिंता का कारण बन रही थी.

उस की ये परेशानी सबा समझ गई थी और उस ने सुकुमार से कहा, ‘‘जिन मम्मीपापा ने समाज की परवाह न करते हुए हमारी शादी कराई है, उन्हें भला हम अकेले कैसे छोड़ देंगे. आप मम्मीपापा को यहां सीतापुर ही बुला लीजिए.‘‘

“पर, यह तो किराए का मकान है. वह भी सिर्फ 2 कमरों का,” सुकुमार झिझका.

“अगर एक कमरा भी होता तो भी कोई फर्क नहीं पड़ता था. दिल में जगह हो तो घर अपनेआप बड़ा हो जाता है. यहां पर उन की किडनी इन्फेक्शन का इलाज भी अपनी नजरों के सामने ही कराऊंगी और जरूरत पड़ी तो उन्हें अपनी किडनी भी देने से पीछे नही हटूंगी,” सबा ने कहा, तो सुकुमार उस की समझदारी देख कर भावुक हो गया.

आननफानन में सुकुमार ने अपने पापा से बात कर मम्मी के साथ उन्हें भी सीतापुर बुला लिया. अब वे चारों लोग एकसाथ रहने लगे.

सबा ने अपने ससुर की किडनी की सारी जांचें कराईं और उन की रिपोर्ट आने के बाद डाक्टर ने ट्रीटमेंट शुरू कर दिया. लखनऊ में सुकुमार नौकरी करता था और उस के बाहर जाने के बाद पिताजी की दवाओं का ध्यान रखना और उन को नियमित रूप से जांच कराने के लिए अस्पताल ले जाना संभव नहीं हो पाता था. पर यहां तो बहू के रूप में उन के पास सबा थी, जो उन का पूरा ध्यान रखती और सारी जांचें समय से कराती. सही देखभाल और दवा के ठीक इस्तेमाल से तबीयत में सुधार होने लगा.

डाक्टरों ने यह बताया था कि अब उन्हें सबा से किडनी ट्रांसप्लांट की जरूरत नहीं पड़ेगी, सिर्फ दवाएं खा कर ही बीमारी कंट्रोल में रह सकती है.

पिताजी ने अपनी जीवनशैली को भी नियमित कर रखा था. सबा को सुबह 8 बजे अस्पताल के लिए निकलना होता. पिताजी सुबह 5 बजे उठते. हालांकि, वे खुद तो चाय नहीं पीते थे,  पर सबा के लिए एक कप चाय जरूर बना देते. अपने ससुर का प्यार देख कर सबा निहाल हुए जाती थी. सच ही तो है कि ताली कभी एक हाथ से नहीं बजती और ताली की आवाज से प्यार का संगीत तब ही सुनाई देता है, जब प्यार का परस्पर लेनादेना हो.

आएदिन इस महल्ले में दोनों धर्मों के ही कोई न कोई धर्मिक अनुष्ठान और कार्यक्रम होते थे. पर, ये परिवार किसी भी धार्मिक कार्यक्रम में भाग नहीं लेते थे. उन्हें इन सब चीजों की जरूरत ही नहीं महसूस हुई.

सबा के सासससुर को उन की बहू और बेटे का प्रेम मिल रहा था, क्योंकि उन्होंने भी तो सबा को अपना प्रेम और सम्मान दिया था.

इस परिवार में धर्म के नाम पर कोई बहसबाजी कभी नहीं हुई, क्योंकि धर्म हमें एकदूसरे से श्रेष्ठ होना बताता है और दूसरे को नीचा बताता है. पर, सच्चा प्रेम वही होता है, जो एकदूसरे को बराबरी का दर्जा दे.

प्रेम के सौदे में कभी घाटा नहीं होता, प्यार और मुहब्बत का सौदा ही तो होता है खरा सौदा प्रेम का.

Best Hindi Story : प्रदूषित ध्वनि – अपने में खोए जवां दिल

Best Hindi Story : वक्त की नजाकत शायद इसे ही कहते हैं. एक मधुर ध्वनि यानी आवाज खुशी में दिल बहका देती है लेकिन गम में वही ध्वनि कलेजा फाड़ देती है.

‘‘क्या सोच रही हो?’’
‘‘यही कि पपीहा जब अपनी पपीही को पुकारता है तो कहता क्या होगा?’’
‘‘यही कि तेरे बिन अकेला हूं, अब तो जिया न जाए.’’
‘‘तुम्हें हर वक्त मजाक सू झता है.’’
‘‘तुम ने बात ही ऐसी की है, पगली.’’
‘‘उन के पास शब्द नहीं होते, केवल ध्वनियां होती हैं, विभिन्न प्रकार की ध्वनियां, अभिन्न एहसासों के लिए.’’
‘‘तुम सच कहते हो, पंछियों की आवाजें, जिन्हें हम ध्वनि या साउंड कहते हैं, एकदम जुदाजुदा सी है हजारोंलाखों तरह की.’’
‘‘बिलकुल, कुदरत की भाषा भी ध्वनियां ही हैं. कायनात के पास शब्द नहीं हैं.’’
‘‘फिर हमारे पास शब्द कहां से आए?’’
‘‘सब प्रकृति का खेल है.’’ और दोनों हंसतेखिलखिलाते आगे बढ़ते रहे.

युवा जोड़ा अपने उल्लासों में गुम, जिंदगी के खूबसूरत लमहे गुजारने भरतपुर बर्ड सैंचुरी घूमता हुआ, अपने खूबसूरत पलों को सहेजता दुनिया की आपाधापी से दूर नितांत अकेले, स्वयं को स्वर्णिम एहसासों से सरोबार करते हुए आनंदित हो रहा था कि एक जीप, जिस में 2 पुलिसमैन, एक रेंजर व एक ड्राइवर बैठे हुए थे, उन के पास आ कर रुकी.
‘‘यहां कहां घूम रहे हो तुम लोग?’’ इंस्पैक्टर ने कड़कती आवाज में पूछा.
‘‘हम सैंचुरी घूमने आए हैं सर, विद परमिशन,’’ उन्होंने कार्ड दिखाया.
‘‘अच्छाअच्छा,’’ इंस्पैक्टर थोड़ी नरमाई दिखाता हुआ बोला, ‘‘जल्दी
से कौटेज पहुंच जाओ, बारिश आने
वाली है.’’
‘‘जी सर,’’ उन्होंने सहमति से सिर हिलाते हुए कहा.
‘‘और इस लैफ्ट वाली पगडंडी से जाओ, सीधे कौटेज पहुंचोगे.’’
‘‘जी, बेहतर है,’’ और वह हाथ हिलाते हुए आगे बढ़ने लगे.

मंदमंद, सरसराती समीर जिस्म को बहुत सुकून देती है. बादलों के साथ पागलों की तरह एकदूसरे से लिपट कर भागने में सुरमई सी फिजां कितना रोमांच भर देती है. देह में प्रेम पगने लगता है वह भी बगैर एक शब्द बोले. सिर्फ ध्वनियों में ही संपूर्ण प्रेम का प्रकटीकरण हो जाता है.

प्रेम निशब्द ही होता है. जब हम प्रेम में होते हैं तो केवल साउंड में ही क्रियाप्रतिक्रिया व्यक्त हो जाती है और हम तृप्त भी हो जाते हैं. अर्थात, ध्वनि मूल है, शब्द गौण.
अपनी ही बातों में मस्त जोड़ा अपनी ही मस्ती में अपनी कौटेज की ओर रवाना था.
पुलिस की जीप आगे जा कर रुक गई. जिस में एक वन विभाग का रेंजर था, एक पुलिस सब इंस्पैक्टर, एक सिपाही और एक ड्राइवर.
‘‘यार, लड़की तो बम्बाट दिखे है,’’ सब इंस्पैक्टर खीसें निपोरता बोला.
‘‘सही बोले, साबजी,’’ पुलिस वाले ने हां में हां मिलाई, दोनों मूर्खों की तरह हंसने लगे.
‘‘मतवाले मौसम ने उमंग जगा दी है और इस लड़की के रूप ने तो तनबदन में आग सी लगा दी है,’’ इंस्पैक्टर ने अंगड़ाई लेते हुए कहा.

प्रकृति का भी निराला खेल है, खूबसूरती इंसानों के दिलों में मोहब्बत जगाती है तो मौसम शैतानों के शरीरों में वासना फैलाता है. शैतानी मानसिकता से ग्रस्त शरीर कुछ गलतसही नहीं सोच पाता. जहां प्रकृति अपने मनमोहक सुरों में आलाप ले रही है वहीं ये दरिंदे वासना में बहक शंखनादी विलाप ले रहे हैं.
‘‘हां,’’ पुलिस वाले ने कहा.
‘‘तो उस्ताद, लड़की के पीछे गाड़ी लगा,’’ इंस्पैक्टर अपने ड्राइवर से बोला.
‘‘साब, लड़का उस के साथ है.’’
‘‘साले को काट के फेंक देंगे, जंगल है. जानवर तो मरते ही रहते हैं,’’ उस ने जोरदार ठहाका लगाया.
‘‘गाड़ी मत मोड़, सीधी रख, चैकपोस्ट पर पहुंचना है,’’ रेंजर ने ड्राइवर से कहा.
‘‘अरे रेंजर साहब, छोडि़ए भी चैकपोस्ट का रोना, आप भी मजे लेना.’’
‘‘मजे लेना मेरा काम नहीं है. इस इलाके का रेंजर हूं मैं. पशुपक्षियों की सुरक्षा के साथसाथ यहां आने वाले पर्यटकों की हिफाजत करना भी मेरा कर्तव्य है. गाड़ी सीधे चैकपोस्ट ही जाएगी,’’ उस ने दृढ़ता से कहा.
‘‘रेंजर साहब, आप तो घणे आदर्शवादी लाग्गे हो.’’
‘‘आप जो भी सम झें, आप की जैसी मरजी.’’
‘‘आप फुजूल बात बढ़ा रहे हैं, रेंजर बाबू. बात सिर्फ मजे लेण की है. तो यों करें कि लड़के को नहीं मारते. अब तो खुश?’’
‘‘बात खुशी की नहीं, उन की सुरक्षा की है.’’
‘‘अच्छा, कोंण देगा सुरक्सा उन्हें?’’ उस के चेहरे पे कुटिल सी मुसकान
खेल गई.
‘‘मैं दूंगा उन्हें सुरक्षा. यही मेरा काम है और आप का भी यही कर्तव्य है जनता की सुरक्षा.’’
‘‘लो, कर लो बात. इब यो सिखाएगा हमें हमारी ड्यूटी,’’ यह कह कर इंस्पैक्टर ने अपनी गन रेंजर पर तान दी.
‘‘साबजी, रहण दो, घणा खूनखराब्बा हो जावेगा. जाण दो साब. कोई दूसरा इंतजाम करेंगे आप की खातिर,’’ पुलिस वाला हाथ जोड़ते हुए बोला.
‘‘ना रे, उस्ताद. अब चखना तो उसी छोकरी ने है.’’
‘‘ऐसा तो होगा नहीं मेरे रहते,’’ रेंजर गुर्राया. रेंजर छह फुटा जवान, बलिष्ठ शरीर, सीना तना, गर्वीला, कम उम्र का नौजवान, डर उसे छू कर भी न निकला.

‘‘यह तमंचा अपनी जेब में रख लो, साहिबजी. खरहा मारने के काम आएगा.’’
‘‘रख लो, साबजी,’’ रेंजर ठीक
बोले से.
‘‘ओए, तू चुप कर. घणी बकवास न कर, अपनी औकात में रह,’’ इंस्पैक्टर धौंस दिखाते हुए बोला, ‘‘इस छोकरे की तो जानवर पार्टी करेंगे.’’
‘‘आप अपने होश में नहीं हैं, साबजी. थोड़ी ठंड रखो.’’
‘‘तू परे हट बे,’’ सब इंस्पैक्टर राक्षसपने पर उतर आया.
युवा जोड़ा दुनिया से बेखबर अपनी ही धुन में रमा बढ़ा चला जा रहा था कि लड़का अचानक रुक कर बोला, ‘‘यार, कहीं हम गलत रास्ते पर तो नहीं?
उन पुलिस वालों ने तो यही रास्ता बताया था.’’
‘‘तुम्हें बहुत भरोसा है पुलिस वालों पर,’’ लड़की ने मुसकराते हुए कहा.
‘‘कितनी शराफत से तो बात की थी, रास्ता भी सही बताया होगा.’’
‘‘रुको, जब हम ने वापसी की थी तो हवा कानों से टकरा रही थी और अब सीधी नाक से टकरा रही है.’’
‘‘मतलब?’’
‘‘यही कि बातों के चक्कर में रास्ता भटक गए हैं.’’
‘‘तो अब?’’
‘‘तो अब रात बारिश में भीगते हुए बितानी होगी.’’
‘‘मजाक मत करो, अभी रात होने में काफी वक्त है.’’
‘‘मु झे लगा, तुम एक्साइटमैंट में मेरे गाल चूम लोगी.’’
‘‘चूम तो होंठ भी लूंगी लेकिन पहले कौटेज तो पहुंचें.’’
‘‘अरे, यह तो बुलेट फायर था, तुम ने सुना?’’
‘‘लगता है, शिकारी घुस आए हैं सैंचुरी में.’’
‘‘जल्दी डिसाइड करो, मु झे घबराहट हो रही है.’’
वह भी चिंतित हो गया था बुलेट की आवाज सुन कर.
‘‘वह जो पगडंडी घूम गई है, उस पर चलते हैं.’’
‘‘जैसा तुम्हें सही लगे, चलो.’’ और वह युवा जोड़ा उस पगडंडी की ओर मुड़ गया.
इंस्पैक्टर ने गोली चला दी.
गोली रेंजर के कंधे पर लगी लेकिन उस ने दूसरा मौका नहीं दिया. सब इंस्पैक्टर की बांह पकड़ कर मरोड़ी और फिर एक ही झटके में उसे जमीन पर पटक दिया.
रेंजर ने उस की छाती पर पैर रख कर मसल दिया. खोखला शरीर तड़प उठा.
‘‘हां, भई उस्ताद, तुम भी जोर आजमा लो?’’ रेंजर ने हंसते हुए पुलिस वाले से कहा.
‘‘ना सरजी, हमारी मति थोड़ी मारी गई है जो आप से पंगा लें.’’
‘‘सुन बे इंस्पैक्टर, तु झ से अच्छी गन मेरे पास है और मु झे बुलेट का हिसाब भी नहीं देना पड़ता है. यह देख, ठोक दूं तु झे अभी और तेरे इस चेले को भी,’’ रेंजर ने गन उन दोनों की तरफ मोड़ दी.

दोनों रेंजर के पैरों में लिपट गए, ‘‘नहीं सर, नहीं, गलती से गलती हो गई. हमें माफ कर दो, सर. आप तो रक्षक हैं,’’ वे दोनों गिड़गिड़ाए.
‘‘तो, चलो फिर, अपने साहब के हाथपैर बांधो, गाड़ी में लादो और चैकपोस्ट पहुंच कर सब सच बता दो.’’
उस के कंधे से खून बह रहा था. बुलेट अब भी कंधे के अंदर ही थी.
‘‘वह देखो वहां कौटेज, हम पहुंच गए. तुम ने सही रास्ता चुना,’’ यह कह कर युवती उस से लिपट गई. हलकीहलकी बारिश शुरू हो गई थी पर वे सुरक्षित थे.
‘‘यह बुलेट की आवाज भी तो ध्वनि ही होती है?’’
‘‘हां, पर प्रदूषित.’’ और फिर वे हाथों में हाथ डाले, मुसकराते हुए कौटेज में दाखिल हो गए.

लेखक : मुख्तार अहमद

Romantic Story : पुनर्मिलन – प्रेमियों के लिए वैलेंटाइन डे बना खास

Romantic Story : वर्षों की दूरियों के बावजूद समीर और अवनी के दिलों में प्यार अब भी जिंदा था. अचानक हुई मुलाकात से दोनों की आंखों में बीते समय की यादें उमड़ पड़ी थीं. क्या वैलेंटाइन डे उन के लिए एक नई शुरुआत का संदेश ले कर आया था?

वैलेंटाइन डे की शाम थी और समीर और अवनी 5 वर्षों बाद अचानक एक कैफे में आमनेसामने थे, दोनों की आंखों में बीते वक्त की यादें उमड़ पड़ीं. हैरान हो कर समीर बोला, ‘‘अवनी, तुम यहां?’’
मुसकराने की कोशिश करती हुई अवनी बोली, ‘‘हां, सोचा, जरा कौफी पी लूं. लेकिन तुम?’’
हलकी सांस लेते हुए समीर बोला, ‘‘मैं भी बस यों ही आ गया, अकेले.’’
यह सुन कर अवनी थोड़ा रुकी, फिर बोल पड़ी, ‘‘अच्छा, तुम अब भी अकेले हो?’’
समीर ने बेबाकी से कहा, ‘‘हां, शायद तुम्हारे बाद किसी से जुड़ने की हिम्मत नहीं हुई. तुम कैसी हो?’’
अवनी थोड़ा भावुक हो कर बोली, ‘‘अच्छी हूं लेकिन कुछ अधूरी सी.’’
समीर चौंकते हुए बोला, ‘‘अधूरी, क्यों?’’
अवनी ने जवाब दिया, ‘‘तुम से दूर हो कर ऐसा लगा जैसे जिंदगी का सब से खूबसूरत हिस्सा कहीं छूट गया, शादी हुई, निभाने की कोशिश की, लेकिन…रिश्ते कागज़ी थे, दिल से नहीं.’’

समीर गहरी सांस लेते हुए बोला, ‘‘मुझे हमेशा अफसोस रहा कि हम ने एकदूसरे को यों ही खो दिया. अगर हम थोड़ा और सम झदारी से सोचते तो शायद जुदाई कभी न होती.’’

अवनी नम आंखों से बोली, ‘‘हां, वक्त ने हमें अलग किया, लेकिन शायद यह भी जरूरी था. हम दोनों ने बहुतकुछ सीखा. लेकिन एक बात कभी नहीं बदली, समीर, वह है मेरा प्यार.’’

समीर ने अपना हाथ बढ़ाते हुए कहा, ‘‘क्या इस वैलेंटाइन डे पर हम फिर से एक नई शुरुआत कर सकते हैं?’’

जवाब में अवनी उस का हाथ थामती हुई, हलकी मुसकान के साथ बोली, ‘‘शायद समय ने हमें आज फिर से मिलाने के लिए ही यहां बुलाया है. हां, समीर, मैं फिर से तुम्हारे साथ चलना चाहती हूं, इस बार हमेशा के लिए.’’

दोनों की आंखों में गजब की खुशी और उन के चेहरों पर राहत थी. सालों की दूरियां मिट गईं और वैलेंटाइन डे ने फिर से ‘दो दिलों’ को एक कर दिया.

लेखक : संजय सिंह चौहान

Allahabad High Court : जमानत पर हैं तो क्यों नहीं जा सकते विदेश?

Allahabad High Court : किसी आरोपी को जमानत पर रिहा किए जाने पर अदालत कुछ शर्तें लगा सकती है, जैसे विदेश यात्रा पर जाने के लिए अदालत से अनुमति लेना वगैरह लेकिन सवाल यह है कि अदालत जब यात्रा के अधिकार को व्यक्तिगत आजादी का हिस्सा मानती है तो जमानत मिलने के बाद विदेश जाने पर रोक क्यों?

आदित्य मूर्ति उत्तर प्रदेश के बरेली जिले में श्रीराम मूर्ति स्मारक आयुर्विज्ञान संस्थान में एडवाइजर हैं. वे एक दशक से अधिक समय से सीबीआई मामले में मुकदमे का सामना कर रहे हैं. कोर्ट ने उन को जमानत दे रखी है. 22 मई, 2025 को आदित्य मूर्ति को अपने रिश्तेदार की शादी के लिए अमेरिका और उस के बाद शादी समारोह में हिस्सा लेने के लिए 3 मई से 22 मई, 2025 तक फ्रांस जाना चाहते थे. जमानत पर होने के कारण विदेश यात्रा करने के पहले उन को कोर्ट से आज्ञा लेनी है. आदित्य मूर्ति ने इस की एक अपील इलाहाबाद हाईकोर्ट में दाखिल की.

न्यायमूर्ति सुभाष विद्यार्थी ने श्रीराम मूर्ति स्मारक आयुर्विज्ञान संस्थान, बरेली के परामर्शदाता आदित्य मूर्ति की याचिका को खारिज करते फैसला सुनाया कि विदेश में रिश्तेदार की शादी और दूसरे देश की मौजमस्ती के लिए यात्रा करना विचाराधीन आरोपी के लिए अंतर्राष्ट्रीय यात्रा करने के लिए आवश्यक कारण नहीं माना जाता. जमानत पर रिहा किए गए आरोपी व्यक्ति को चिकित्सा उपचार, आवश्यक आधिकारिक कर्तव्यों में शामिल होने और इसी तरह की किसी जरूरी आवश्यकता के लिए विदेश यात्रा की अनुमति दी जा सकती है.

उच्च न्यायालय ने स्पष्ट रूप से कहा कि रिश्तेदार के विवाह समारोह में शामिल होना जरूरी आवश्यकता नहीं है. इस के अलावा, न्यायालय ने याचिकाकर्ता के इस तर्क पर भी ध्यान दिया कि उसे पहले गैरआवश्यक उद्देश्यों के लिए विदेश यात्रा की अनुमति दी गई थी.

पीठ ने कहा, ‘केवल इसलिए कि अधीनस्थ अदालत ने आवेदक को कई मौकों पर गैरआवश्यक उद्देश्यों के लिए विदेश यात्रा की अनुमति दी थी, उसे इस बार भी गैरआवश्यक उद्देश्यों के लिए विदेश यात्रा करने का अधिकार नहीं है, जब मुकदमा बचाव पक्ष के साक्ष्य के चरण में पहुंच गया है.’

आदित्य मूर्ति ने 24 अप्रैल, 2025 को विशेष सीबीआई अदालत के आदेश को चुनौती दी थी, जिस ने विदेश यात्रा के लिए उन के आवेदन को खारिज कर दिया था. आदित्य मूर्ति एक दशक से अधिक समय से सीबीआई कोर्ट में एक मामले में मुकदमे का सामना कर रहे हैं.

कानून में बदलाव की जरूरत

भारतीय कानून में जमानत की शर्त लगाना एक विवादास्पद मुद्दा है, जिस के तहत किसी आरोपी को विदेश यात्रा से पहले अदालत से पूर्व अनुमति लेनी होती है. अदालतों ने यात्रा के अधिकार को व्यक्तिगत स्वतंत्रता का अभिन्न अंग माना है, लेकिन वे कानूनी कार्यवाही के अनुपालन को सुनिश्चित करने के लिए कुछ प्रतिबंधों की आवश्यकता को भी स्वीकार करते हैं. विदेश यात्रा का अधिकार व्यक्तिगत स्वतंत्रता का एक प्रमुख पहलू माना जाता है.

आज भारत के 5 करोड़ 50 लाख से अधिक लोग विदेश में रहते हैं. इन के भारत में रह रहे नातेरिश्तेदारों में से तमाम ऐसे होंगे जिन के मुकदमे चल रहे होंगे. देश में किसी पर भी मुकदमा हो सकता है चाहे व्यक्ति ने अपराध किया हो या न.

कई बार अनजाने में हुई गलतियों के लिए भी मुकदमा हो जाता है. ये मुकदमें सालोंसाल चलते हैं. आंकड़ें बताते हैं कि 5 करोड़ से अधिक के मुकदमें विभिन्न कोर्टों में लंबित हैं. इस के अलावा एसडीएम, डीएम और कमिश्नर की कोर्ट में भी मुकदमें लंबित है. एक मुकदमे में करीब 8 लोग प्रभावित होते हैं. ऐसे में 40 करोड़ लोग सीधे तौर पर इन मुकदमों से प्रभावित हैं.

देश में जमानत की प्रक्रिया सरल नहीं है. जमानत के लिए दो जमानतदार की जरूरत पड़ती है. शहरों में रहने वालों के लिए जमानतदार खोजना कठिन काम होता है. कोई किसी की जमानत लेने को तैयार नहीं होता.

1860 में जब कानून बने थे उस समय मुकदमे कम होते थे. विदेश जाने की जरूरत नहीं होती थी. तब जमानत पर रिहा हुए व्यक्ति के लिए विदेश जाने का मसला बड़ा नहीं था. अब यह दौर बदल गया है. ऐसे में उम्मीद की जा रही थी कि 2023 में जो नए कानून बनें उन में इस तरह के हालात को देखते हुए बदलाव किए जाएंगे.

देश के गृहमंत्री अमित शाह ने 2023 में जब नए कानून संसद में पेश किए तो उन की बड़ी तारीफ की थी. केंद्रीय गृह एवं सहकारिता मंत्री अमित शाह ने देशभर में 3 नए आपराधिक कानूनों को जब लागू किया था तो बड़े जोरशोर से कहा था, ‘ये कानून दंड की जगह न्याय देने वाले और पीड़ित केंद्रित हैं.’

‘नए कानूनों में दंड की जगह न्याय को प्राथमिकता मिलेगी, देरी की जगह स्पीडी ट्रायल और स्पीडी जस्टिस मिलेगा और पीड़ितों के अधिकारों की रक्षा सुनिश्चित होंगी. नए कानूनों को हर पहलू पर 4 वर्षों तक विस्तार से अलगअलग स्टेकहोल्डर्स के साथ चर्चा कर के लाया गया है और आजादी के बाद से अबतक किसी भी कानून पर इतनी लंबी चर्चा नहीं हुई है.’

गृह मंत्री ने कहा कि आजादी के 77 वर्षों बाद भारत की आपराधिक न्याय प्रणाली पूर्णतया स्वदेशी हो गई है. इन कानूनों के आधार में दंड की जगह न्याय, देरी की जगह त्वरित ट्रायल और त्वरित न्याय को रखा गया है. इस के साथ ही पहले के कानूनों में सिर्फ पुलिस के अधिकारों की रक्षा की गई थी लेकिन इन नए कानूनों में पीड़ितों और शिकायतकर्ता के अधिकारों की भी रक्षा करने का प्रावधान है.

उन्होंने कहा था कि इन तीन नए कानूनों के लागू होने से देश की पूरी आपराधिक न्याय प्रणाली में भारतीय आत्मा दिखाई देगी. इन कानूनों में कई ऐसे प्रावधान किए गए हैं जिन से देश के नागरिकों को कई प्रकार के फायदे होंगे. इन कानूनों में अंगरेजों के समय विवाद में रहे कई प्रावधानों को हटा कर आज के समय के अनुकूल धाराएं जोड़ी गई हैं. इन कानूनों में भारतीय संविधान की स्पिरिट के अनुरूप धाराओं ओर अध्यायों की प्राथमिकता तय की गई है.

अब हकीकत आ रही सामने

जैसेजैसे नए कानून के प्रभाव देखने को मिल रहे हैं वैसेवैसे उन से साफ होता जा रहा है कि कानून में अभी भी समय के हिसाब से बदलाव नहीं हुए हैं. विदेश जाने का यह मसला इसी तरह के सुधार से जुड़ा है. आज हर शहर में इंटरनैशनल एयरपोर्ट है, जिस से पता चलता है कि कितने लोग विदेश जाते होंगे.

ऐसे में जमानत पर रिहा लोगों के लिए विदेश जाने के लिए कोर्ट से अनुमति लेने की जरूरत क्यों पड़ती है? जब जमानत मिलती है तो उस में यह जुड़ा होना चाहिए कि जमानत पर रिहा व्यक्ति विदेश जा सकता है.

बरुन चंद्र ठाकुर बनाम रयान औगस्टीन पिंटो केस में सुप्रीम कोर्ट ने एक शर्त को बहाल कर दिया, जिस के तहत अभियुक्त को विदेश यात्रा के लिए पूर्व अनुमति लेनी होगी, इस बात पर बल देते हुए कि यात्रा का अधिकार महत्त्वपूर्ण है.

अदालतें विशिष्ट परिस्थितियों में विदेश यात्रा की अनुमति देती हैं. इन में चिकित्सा आपातस्थिति या रोजगार की जरूरतें प्रमुख हैं. न्यायालयों ने मामलों की परिस्थितियों के आधार पर शर्तों को संशोधित करने की इच्छा दिखाई है.

यदि किसी अभियुक्त ने लगातार जमानत की शर्तों का पालन किया है तो न्यायालय विदेश यात्रा के लिए पूर्व अनुमति की आवश्यकता में ढील दे सकता है. यात्रा प्रतिबंधों सहित शर्तें लगाने के विवेक का प्रयोग विवेकपूर्ण तरीके से किया जाना चाहिए. जो शर्तें बोझिल या अनुचित समझी जाती हैं, उन्हें उच्च न्यायालयों द्वारा रद्द किया जा सकता है. कानूनों में अभी भी ऐसे तमाम प्रावधान हैं जो नागरिक अधिकारों की रक्षा नहीं करते. जमानत कानून इस का एक उदाहरण है.

इस का प्रभाव हमारे घर, परिवार और बच्चों पर पड़ता है. वह भले ही सीधे तौर पर अपराध में शामिल न हो, लेकिन घर के प्रमुख पर जब अपराध में शामिल होने का आरोप लगता है तो पूरे घर का ढांचा बिगड़ जाता है. स्कूल जा रहे बच्चे पर भी उंगली उठती है जिस के पिता को पुलिस ने पकड़ कर जेल भेज दिया है. घरपरिवार चलाने के साथ ही साथ जमानत का इंतजाम करना बेहद कठिन काम होता है.

Hindi Kahani : इश्क का भूत – अपने भटकते कदम रोकते हुए युवक की सीख देती कहानी

Hindi Kahani : जब इश्क का भूत सिर चढ़ कर बोलता है तब दुनिया में कुछ नजर ही नहीं आता. न मानप्रतिष्ठा की परवा न कैरियर की चिंता. शेफाली भी ऐसी ही सिरफिरी लड़की थी, उसे जब जीत नजर आया, तो वह उस पर जीजान से फिदा हो गई. बेशक जीत को भी उस का साथ अच्छा लगा, लेकिन जीत को पहले अपनी बहन सुमन के विवाह की चिंता थी. शेफाली रईस बाप की औलाद थी, जिस ने न गरीबी देखी थी और न ही भूख. वह अपने मन की करना जानती थी. वह गर्ल्स होस्टल में रहती व मौजमस्ती करती. उस के पिता की पेपरमिल थी. वे एक जानेमाने उद्योगपति थे, सो शेफाली के पास एक से बढ़ कर एक ड्रैसेस का अंबार लगा रहता. हमेशा सजीसंवरी, ज्वैलरी से लकदक, हाथ में पर्स लिए बाहर घूमने के अवसर तलाशती शेफाली की पढ़ने में कोई रुचि नहीं थी. कालेज में ऐडमिशन तो उस ने समय बिताने के लिए ले रखा था. उसे तलाश थी ऐसे युवक की जो दिखने में हैंडसम हो और उस के आगेपीछे घूमे.

जीत से उस की नजरें कालेज के फंक्शन में मिलीं और उसे उस में सारी बातें नजर आईं जिन की उसे तलाश थी. वह हौलेहौले बोलता और किसी फिल्मी नायक सा उस के ईदगिर्द डोलता. अंधा क्या चाहे, दो आंखें. शेफाली खर्च करने के लिए तैयार रहती, दोनों खूब घूमते. महानगरों में वैसे भी कौन किसे जानता है या कौन किस की परवा करता है. पौश इलाके के होस्टल में रह रही शेफाली के पास जीत बाइक ले कर आता. वह अदा से इतरातीलहराती उस के संग चली जाती.

जब लौटती तो सहेलियों को अपने रोमांस के किस्से बता कर इंप्रैस करती. चूंकि उस की सहेलियां स्टडी में व्यस्त थीं, उन्हें तो अपने रिजल्ट की अधिक फिक्र रहती. वे उस की कहानी सुनने में कोई दिलचस्पी नहीं लेती थीं.

इधर जीत भी पढ़ाई में पिछड़ता चला गया. उस का सारा वक्त शेफाली के बारे में ही सोचसोच कर निकल जाता. शेफाली के दिए गिफ्ट उसे भारी तोहफे नजर आते. वह उसे कभी टीशर्ट देती, कभी ब्रेसलेट तो कभी गौगल्स. वह खुद को हीरो से कम नहीं समझता. वह यही समझता कि शेफाली उस से विवाह करेगी और वह एक उद्योगपति का दामाद बन कर मालामाल हो जाएगा.

इधर शेफाली जीत संग आउटिंग पर थी, उधर उस के पापा अशोक ने प्राइवेट डिटैक्टिव से सारी जानकारी इकट्ठी करवा ली थी कि वह कहां जाती है, क्या करती है.

शेफाली के पापा अशोकजी ने जमाना देखा था. वे पल भर में सारा माजरा समझ गए थे. उन्हें समझ आ गया कि उन की लाडली महज दिलबहलाव कर रही है. पढ़ाई में उस का मन नहीं लग रहा.

जीत जिस तरह से बेझिझक शेफाली से तोहफे ले रहा था, इस से अशोकजी को यह भी समझ में आ गया कि इस लड़के में कोई स्वाभिमान नहीं है वरना वह इस तरह शेफाली की दी वस्तुएं न स्वीकारता. जीत का फंडा समझने में अशोकजी को ज्यादा समय नहीं लगा, क्योंकि वे तो खुद व्यवसायी थे और जीत के प्रोफैशनल प्रेम को पहचान गए थे.

शेफाली के लिए उन्होंने विदेश से पढ़ाई कर के लौटा एमबीए लड़का विजय तलाश लिया था. शेफाली ने जब विजय को देखा तो देखती ही रह गई. वह स्टाइलिश और अमेरिकन अंगरेजी बोल रहा था. उसे जीत को भुला देने में एक मिनट भी नहीं लगा.

जीत देखता रह गया और शेफाली विजय के साथ शादी कर हनीमून मनाने स्विट्जरलैंड चली गई.

इश्क का भूत तो धन की चमक के आगे एक पल भी नहीं ठहर पाया. वे आज के युवा ही क्या जो इश्क के लिए जिंदगी बरबाद करें. अलबत्ता जीत को संभलने में एक साल लगा, पर जबकि वह दिल से नहीं मतलब की खातिर शेफाली से जुड़ा था. अब उस के सामने अपनी युवा बहन की जिम्मेदारी थी. वह नहीं चाहता था कि कोई उस के चालचलन का हवाला दे कर उस की बहन के रिश्ते को मना करे. जीत की मां को यही तसल्ली थी कि उस का बेटा एक बेवफा के प्यार में ज्यादा नहीं भटका.

Family Story : पहला पहला प्यार – मां को कैसे हुआ अपने बेटे की पसंद का आभास

Family Story : ‘‘दा,तुम मेरी बात मान लो और आज खाने की मेज पर मम्मीपापा को सारी बातें साफसाफ बता दो. आखिर कब तक यों परेशान बैठे रहोगे?’’

बच्चों की बातें कानों में पड़ीं तो मैं रुक गई. ऐसी कौन सी गलती विकी से हुई जो वह हम से छिपा रहा है और उस का छोटा भाई उसे सलाह दे रहा है. मैं ‘बात क्या है’ यह जानने की गरज से छिप कर उन की बातें सुनने लगी.

‘‘इतना आसान नहीं है सबकुछ साफसाफ बता देना जितना तू समझ रहा है,’’ विकी की आवाज सुनाई पड़ी.

‘‘दा, यह इतना मुश्किल भी तो नहीं है. आप की जगह मैं होता तो देखते कितनी स्टाइल से मम्मीपापा को सारी बातें बता भी देता और उन्हें मना भी लेता,’’ इस बार विनी की आवाज आई.

‘‘तेरी बात और है पर मुझ से किसी को ऐसी उम्मीद नहीं होगी,’’ यह आवाज मेरे बड़े बेटे विकी की थी.

‘‘दा, आप ने कोई अपराध तो किया नहीं जो इतना डर रहे हैं. सच कहूं तो मुझे ऐसा लगता है कि मम्मीपापा आप की बात सुन कर गले लगा लेंगे,’’ विनी की आवाज खुशी और उत्साह दोनों से भरी हुई थी.

‘बात क्या है’ मेरी समझ में कुछ नहीं आया. थोड़ी देर और खड़ी रह कर उन की आगे की बातें सुनती तो शायद कुछ समझ में आ भी जाता पर तभी प्रेस वाले ने डोर बेल बजा दी तो मैं दबे पांव वहां से खिसक ली.

बच्चों की आधीअधूरी बातें सुनने के बाद तो और किसी काम में मन ही नहीं लगा. बारबार मन में यही प्रश्न उठते कि मेरा वह पुत्र जो अपनी हर छोटीबड़ी बात मुझे बताए बिना मुंह में कौर तक नहीं डालता है, आज ऐसा क्या कर बैठा जो हम से कहने की हिम्मत नहीं जुटा पा रहा है. सोचा, चल कर साफसाफ पूछ लूं पर फिर लगा कि बच्चे क्या सोचेंगे कि मम्मी छिपछिप कर उन की बातें सुनती हैं.

जैसेतैसे दोपहर का खाना तैयार कर के मेज पर लगा दिया और विकीविनी को खाने के लिए आवाज दी. खाना परोसते समय खयाल आया कि यह मैं ने क्या कर दिया, लौकी की सब्जी बना दी. अभी दोनों अपनीअपनी कटोरी मेरी ओर बढ़ा देंगे और कहेंगे कि रामदेव की प्रबल अनुयायी माताजी, यह लौकी की सब्जी आप को ही सादर समर्पित हो. कृपया आप ही इसे ग्रहण करें. पर मैं आश्चर्यचकित रह गई यह देख कर कि ऐसा कुछ भी नहीं हुआ. उलटा दोनों इतने मन से सब्जी खाने में जुटे थे मानो उस से ज्यादा प्रिय उन्हें कोई दूसरी सब्जी है ही नहीं.

बात जरूर कुछ गंभीर है. मैं ने मन में सोचा क्योंकि मेरी बनाई नापसंद सब्जी या और भी किसी चीज को ये चुपचाप तभी खा लेते हैं जब या तो कुछ देर पहले उन्हें किसी बात पर जबरदस्त डांट पड़ी हो या फिर अपनी कोई इच्छा पूरी करवानी हो.

खाना खा कर विकी और विनी फिर अपने कमरे में चले गए. ऐसा लग रहा था कि किसी खास मसले पर मीटिंग अटेंड करने की बहुत जल्दी हो उन्हें.

विकी सी.ए. है. कानपुर में उस ने अपना शानदार आफिस बना लिया है. ज्यादातर शनिवार को ही आता है और सोमवार को चला जाता है. विनी एम.बी.ए. की तैयारी कर रहा है. बचपन से दोनों भाइयों के स्वभाव में जबरदस्त अंतर होते हुए भी दोनों पल भर को भी अलग नहीं होते हैं. विकी बेहद शांत स्वभाव का आज्ञाकारी लड़का रहा है तो विनी इस के ठीक उलट अत्यंत चंचल और अपनी बातों को मनवा कर ही दम लेने वाला रहा है. इस के बावजूद इन दोनों भाइयों का प्यार देख हम दोनों पतिपत्नी मन ही मन मुसकराते रहते हैं.

अपना काम निबटा कर मैं बच्चों के कमरे में चली गई. संडे की दोपहर हमारी बच्चों के कमरे में ही गुजरती है और बच्चे हम से सारी बातें भी कह डालते हैं, जबकि ऐसा करने में दूसरे बच्चे मांबाप से डरते हैं. आज मुझे राजीव का बाहर होना बहुत खलने लगा. वह रहते तो माहौल ही कुछ और होता और वह किसी न किसी तरह बच्चों के मन की थाह ले ही लेते.

मेरे कमरे में पहुंचते ही विनी अपनी कुरसी से उछलते हुए चिल्लाया, ‘‘मम्मा, एक बात आप को बताऊं, विकी दा ने…’’

उस की बात विकी की घूरती निगाहों की वजह से वहीं की वहीं रुक गई. मैं ने 1-2 बार कहा भी कि ऐसी कौन सी बात है जो आज तुम लोग मुझ से छिपा रहे हो, पर विकी ने यह कह कर टाल दिया कि कुछ खास नहीं मम्मा, थोड़ी आफिस से संबंधित समस्या है. मैं आप को बता कर परेशान नहीं करना चाहता पर विनी के पेट में कोई बात पचती ही नहीं है.

हालांकि मैं मन ही मन बहुत परेशान थी फिर भी न जाने कैसे झपकी लग गई और मैं वहीं लेट गई. अचानक ‘मम्मा’ शब्द कानों में पड़ने से एक झटके से मेरी नींद खुल गई पर मैं आंखें मूंदे पड़ी रही. मुझे सोता देख कर उन की बातें फिर से चालू हो गई थीं और इस बार उसी कमरे में होने की वजह से मुझे सबकुछ साफसाफ सुनाई दे रहा था.

विकी ने विनी को डांटा, ‘‘तुझे मना किया था फिर भी तू मम्मा को क्या बताने जा रहा था?’’

‘‘क्या करता, तुम्हारे पास हिम्मत जो नहीं है. दा, अब मुझ से नहीं रहा जाता, अब तो मुझे जल्दी से भाभी को घर लाना है. बस, चाहे कैसे भी.’’

विकी ने एक बार फिर विनी को चुप रहने का इशारा किया. उसे डर था कि कहीं मैं जाग न जाऊं या उन की बातें मेरे कानों में न पड़ जाएं.

अब तक तो नींद मुझ से कोसों दूर जा चुकी थी. ‘तो क्या विकी ने शादी कर ली है,’ यह सोच कर लगा मानो मेरे शरीर से सारा खून किसी ने निचोड़ लिया. कहां कमी रह गई थी हमारे प्यार में और कैसे हम अपने बच्चों में यह विश्वास उत्पन्न करने में असफल रह गए कि जीवन के हर निर्णय में हम उन के साथ हैं.

आज पलपल की बातें शेयर करने वाले मेरे बेटे ने मुझे इस योग्य भी न समझा कि अपने शादी जैसे महत्त्वपूर्ण फैसले में शामिल करे. शामिल करना तो दूर उस ने तो बताने तक की भी जरूरत नहीं समझी. मेरे व्यथित और तड़पते दिल से एक आवाज निकली, ‘विकी, सिर्फ एक बार कह कर तो देखा होता बेटे तुम ने, फिर देखते कैसे मैं तुम्हारी पसंद को अपने अरमानों का जोड़ा पहना कर इस घर में लाती. पर तुम ने तो मुझे जीतेजी मार डाला.’

पल भर के अंदर ही विकी के पिछले 25 बरस आंखों के सामने से गुजर गए और उन 25 सालों में कहीं भी विकी मेरा दिल दुखाता हुआ नहीं दिखा. टेबल पर रखे फल उठा कर खाने से पहले भी वह जहां होता वहीं से चिल्ला कर मुझे बताता था कि मम्मा, मैं यह सेब खाने जा रहा हूं. और आज…एक पल में ही पराया बना दिया बेटे ने.

कलेजे को चीरता हुआ आंसुओं का सैलाब बंद पलकों के छोर से बूंद बन कर टपकने ही वाला था कि अचानक विकी की फुसफुसाहट सुनाई पड़ी, ‘‘तुम ने देखा नहीं है मम्मीपापा के कितने अरमान हैं अपनी बहुओं को ले कर और बस, मैं इसी बात से डरता हूं कि कहीं बरखा मम्मीपापा की कल्पनाओं के अनुरूप नहीं उतरी तो क्या होगा? अगर मैं पहले ही इन्हें बता दूंगा कि मैं बरखा को पसंद करता हूं तो फिर कोई प्रश्न ही नहीं उठता कि मम्मीपापा उसे नापसंद करें, वे हर हाल में मेरी शादी उस से कर देंगे और मैं यही नहीं चाहता हूं. मम्मीपापा के शौक और अरमान पूरे होने चाहिए, उन की बहू उन्हें पसंद होनी चाहिए. बस, मैं इतना ही चाहता हूं.’’

‘‘और अगर वह उन्हें पसंद नहीं आई तो?’’

‘‘नहीं आई तो देखेंगे, पर मैं ने इतना तो तय कर लिया है कि मैं पहले से यह बिलकुल नहीं कह सकता कि मैं किसी को पसंद करता हूं.’’

तो विकी ने शादी नहीं की है, वह केवल किसी बरखा नाम की लड़की को पसंद करता है और उस की समस्या यह है कि बरखा के बारे में हमें बताए कैसे? इस बात का एहसास होते ही लगा जैसे मेरे बेजान शरीर में जान वापस आ गई. एक बार फिर से मेरे सामने वही विकी आ खड़ा हुआ जो अपनी कोई बात कहने से पहले मेरे चारों ओर चक्कर लगाता रहता, मेरा मूड देखता फिर शरमातेझिझकते हुए अपनी बात कहता. उस का कहना कुछ ऐसा होता कि मना करने का मैं साहस ही नहीं कर पाती. ‘बुद्धू, कहीं का,’ मन ही मन मैं बुदबुदाई. जानता है कि मम्मा किसी बात के लिए मना नहीं करतीं फिर भी इतनी जरूरी बात कहने से डर रहा है.

सो कर उठी तो सिर बहुत हलका लग रहा था. मन में चिंता का स्थान एक चुलबुले उत्साह ने ले लिया था. मेरे बेटे को प्यार हो गया है यह सोचसोच कर मुझे गुदगुदी सी होने लगी. अब मुझे समझ में आने लगा कि विनी को भाभी घर में लाने की इतनी जल्दी क्यों मच रही थी. ऐसा लगने लगा कि विनी का उतावलापन मेरे अंदर भी आ कर समा गया है. मन होने लगा कि अभी चलूं विकी के पास और बोलूं कि ले चल मुझे मेरी बहू के पास, मैं अभी उसे अपने घर में लाना चाहती हूं पर मां होने की मर्यादा और खुद विकी के मुंह से सुनने की एक चाह ने मुझे रोक दिया.

रात को खाने की मेज पर मेरा मूड तो खुश था ही, दिन भर के बाद बच्चों से मिलने के कारण राजीव भी बहुत खुश दिख रहे थे. मैं ने देखा कि विनी कई बार विकी को इशारा कर रहा था कि वह हम से बात करे पर विकी हर बार कुछ कहतेकहते रुक सा जाता था. अपने बेटे का यह हाल मुझ से और न देखा गया और मैं पूछ ही बैठी, ‘‘तुम कुछ कहना चाह रहे हो, विकी?’’

‘‘नहीं…हां, मैं यह कहना चाहता था मम्मा कि जब से कानपुर गया हूं दोस्तों से मुलाकात नहीं हो पाती है. अगर आप कहें तो अगले संडे को घर पर दोस्तों की एक पार्टी रख लूं. वैसे भी जब से काम शुरू किया है सारे दोस्त पार्टी मांग रहे हैं.’’

‘‘तो इस में पूछने की क्या बात है. कहा होता तो आज ही इंतजाम कर दिया होता,’’ मैं ने कहा, ‘‘वैसे कुल कितने दोस्तों को बुलाने की सोच रहे हो, सारे पुराने दोस्त ही हैं या कोई नया भी है?’’

‘‘हां, 2-4 नए भी हैं. अच्छा रहेगा, आप सब से भी मुलाकात हो जाएगी. क्यों विनी, अच्छा रहेगा न?’’ कह कर विकी ने विनी को संकेत कर के राहत की सांस ली.

मैं समझ गई थी कि पार्टी की योजना दोनों ने मिल कर बरखा को हम से मिलाने के लिए ही बनाई है और विकी के ‘नए दोस्तों’ में बरखा भी शामिल होगी.

अब बच्चों के साथसाथ मेरे लिए भी पार्टी की अहमियत बहुत बढ़ गई थी. अगले संडे की सुबह से ही विकी बहुत नर्वस दिख रहा था. कई बार मन में आया कि उसे पास बुला कर बता दूं कि वह सारी चिंता छोड़ दे क्योंकि हमें सबकुछ मालूम हो चुका है, और बरखा जैसी भी होगी मुझे पसंद होगी. पर एक बार फिर विकी के भविष्य को ले कर आशंकित मेरे मन ने मुझे चुप करा दिया कि कहीं बरखा विकी के योग्य न निकली तो? जब तक बात सामने नहीं आई है तब तक तो ठीक है, उस के बारे में कुछ भी राय दे सकती हूं, पर अगर एक बार सामने बात हो गई तो विकी का दिल टूट जाएगा.

4 बजतेबजते विकी के दोस्त एकएक कर के आने लगे. सच कहूं तो उस समय मैं खुद काफी नर्वस होने लगी थी कि आने वालों में बरखा नाम की लड़की न मालूम कैसी होगी. सचमुच वह मेरे विकी के लायक होगी या नहीं. मेरी भावनाओं को राजीव अच्छी तरह समझ रहे थे और आंखों के इशारे से मुझे धैर्य रखने को कह रहे थे. हमें देख कर आश्चर्य हो रहा था कि सदैव हंगामा करते रहने वाला विनी भी बिलकुल शांति  से मेरी मदद में लगा था और बीचबीच में जा कर विकी की बगल में कुछ इस अंदाज से खड़ा होता मानो उस से कह रहा हो, ‘दा, दुखी न हो, मैं तुम्हारे साथ हूं.’

ठीक साढ़े 4 बजे बरखा ने अपनी एक सहेली के साथ ड्राइंगरूम में प्रवेश किया. उस के घुसते ही विकी की नजरें विनी से और मेरी नजरें इन से जा टकराईं. विकी अपनी जगह से उठ खड़ा हुआ और उन्हें हमारे पास ला कर उन से हमारा परिचय करवाया, ‘‘बरखा, यह मेरे मम्मीपापा हैं और मम्मीपापा, यह मेरी नई दोस्त बरखा और यह बरखा की दोस्त मालविका है. ये दोनों एम.सी.ए. कर रही हैं. पिछले 7 महीने से हमारी दोस्ती है पर आप लोगों से मुलाकात न करवा सका था.’’

हम ने महसूस किया कि बरखा से हमारे परिचय के दौरान पूरे कमरे का शोर थम गया था. इस का मतलब था कि विकी के सारे दोस्तों को पहले से बरखा के बारे में मालूम था. सच है, प्यार एक ऐसा मामला है जिस के बारे में बच्चों के मांबाप को ही सब से बाद में पता चलता है. बच्चे अपना यह राज दूसरों से तो खुल कर शेयर कर लेते हैं पर अपनों से बताने की हिम्मत नहीं जुटा पाते हैं.

बरखा को देख लेने और उस से बातचीत कर लेने के बाद मेरे मन में उसे बहू बना लेने का फैसला पूर्णतया पक्का हो गया. विकी बरखा के ही साथ बातें कर रहा था पर उस से ज्यादा विनी उस का खयाल रख रहा था. पार्टी लगभग समाप्ति की ओर अग्रसर थी. यों तो हमारा फैसला पक्का हो चुका था पर फिर भी मैं ने एक बार बरखा को चेक करने की कोशिश की कि शादी के बाद घरगृहस्थी संभालने के उस में कुछ गुण हैं या नहीं.

मेरा मानना है कि लड़की कितने ही उच्च पद पर आसीन हो पर घरपरिवार को उस के मार्गदर्शन की आवश्यकता सदैव एक बच्चे की तरह होती है. वह चूल्हेचौके में अपना दिन भले ही न गुजारे पर चौके में क्या कैसे होता है, इस की जानकारी उसे अवश्य होनी चाहिए ताकि वह अच्छा बना कर खिलाने का वक्त न रखते हुए भी कम से कम अच्छा बनवाने का हुनर तो अवश्य रखती हो.

मैं शादी से पहले घरगृहस्थी में निपुण होना आवश्यक नहीं मानती पर उस का ‘क ख ग’ मालूम रहने पर ही उस जिम्मेदारी को निभा पाने की विश्वसनीयता होती है. बहुत से रिश्तों को इन्हीं बुनियादी जिम्मेदारियों के अभाव में बिखरते देखा था मैं ने, इसलिए विकी के जीवन के लिए मैं कोई रिस्क नहीं लेना चाहती थी.

मैं ने बरखा को अपने पास बुला कर कहा, ‘‘बेटा, सुबह से पार्टी की तैयारी में लगे होने की वजह से इस वक्त सिर बहुत दुखने लगा है. मैं ने गैस पर तुम सब के लिए चाय का पानी चढ़ा दिया है, अगर तुम्हें चाय बनानी आती हो तो प्लीज, तुम बना लो.’’

‘‘जी, आंटी, अभी बना लाती हूं,’’ कह कर वह विकी की तरफ पलटी, ‘‘किचन कहां है?’’

‘‘उस तरफ,’’ हाथ से किचन की तरफ इशारा करते हुए विकी ने कहा, ‘‘चलो, मैं तुम्हें चीनी और चायपत्ती बता देता हूं,’’ कहते हुए वह बरखा के साथ ही चल पड़ा.

‘‘बरखाजी को अदरक कूट कर दे आता हूं,’’ कहता हुआ विनी भी उन के पीछे हो लिया.

चाय चाहे सब के सहयोग से बनी हो या अकेले पर बनी ठीक थी. किचन में जा कर मैं देख आई कि चीनी और चायपत्ती के डब्बे यथास्थान रखे थे, दूध ढक कर फ्रिज में रखा था और गैस के आसपास कहीं भी चाय गिरी, फैली नहीं थी. मैं निश्चिंत हो आ कर बैठ गई. मुझे मेरी बहू मिल गई थी.

एकएक कर के दोस्तों का जाना शुरू हो गया. सब से अंत में बरखा और मालविका हमारे पास आईं और नमस्ते कर के हम से जाने की अनुमति मांगने लगीं. अब हमारी बारी थी, विकी ने अपनी मर्यादा निभाई थी. पिछले न जाने कितने दिनों से असमंजस की स्थिति गुजरने के बाद उस ने हमारे सामने अपनी पसंद जाहिर नहीं की बल्कि उसे हमारे सामने ला कर हमारी राय जाननेसमझने का प्रयत्न करता रहा. और हम दोनों को अच्छी तरह पता है कि अभी भी अपनी बात कहने से पहले वह बरखा के बारे में हमारी राय जानने की कोशिश अवश्य करेगा, चाहे इस के लिए उसे कितना ही इंतजार क्यों न करना पड़े.

मैं अपने बेटे को और असमंजस में नहीं देख सकती थी, अगर वह अपने मुंह से नहीं कह पा रहा है तो उस की बात को मैं ही कह कर उसे कशमकश से उबार लूंगी.

बरखा के दोबारा अनुमति मांगने पर मैं ने कहा, ‘‘घर की बहू क्या घर से खाली हाथ और अकेली जाएगी?’’

मेरी बात का अर्थ जैसे पहली बार किसी की समझ में नहीं आया. मैं ने विकी का हाथ पकड़ कर कहा, ‘‘तेरी पसंद हमें पसंद है. चल, गाड़ी निकाल, हम सब बरखा को उस के घर पहुंचाने जाएंगे. वहीं इस के मम्मीडैडी से रिश्ते की बात भी करनी है. अब अपनी बहू को घर में लाने की हमें भी बहुत जल्दी है.’’

मेरी बात का अर्थ समझ में आते ही पूरा हाल तालियों की गड़गड़ाहट से गूंज उठा. मम्मीपापा को यह सब कैसे पता चला, इस सवाल में उलझाअटका विकी पहले तो जहां का तहां खड़ा रह गया फिर अपने पापा की पहल पर बढ़ कर उन के सीने से लग गया.

इन सब बातों में समय गंवाए बिना विनी गैरेज से गाड़ी निकाल कर जोरजोर से हार्न बजाने लगा. उस की बेताबी देख कर मैं दौड़ते हुए अपनी खानदानी अंगूठी लेने के लिए अंदर चली गई, जिसे मैं बरखा के मातापिता की सहमति ले कर उसे वहीं पहनाने वाली थी.

Love Story : अधूरा सपना – अभीन की धड़कनें कब तेज हो जाती हैं?

Love Story : ‘रभीना…’ हां, यही तो नाम था उस लड़की का, जिसे देखदेख वह फिल्मी प्यार में डूब जाता था.

रभीना अभीन के प्रति सीरियस है, पर इस का एहसास कभी भी नहीं होने देती थी.

यह बात अभीन को भी पता थी, पर हर शाम वह गुप्ता स्टोर के पास 5 बजे के करीब खड़ा हो जाता था, ताकि वह ट्यूशन जाती रभीना का दीदार कर सके.

रोज दीदार के नाम पर खड़ा तो नहीं हो सकता था वह गुप्ता अंकल के स्टोर पर, इसलिए कुछ ना कुछ रोज अभीन को दुकान से खरीदना ही पड़ता था.

गुप्ता अंकल सबकुछ जानते हुए भी अनजान बने रहते थे. अभीन अभीअभी 12वीं जमात में तो गया था.
मैथ, फिजिक्स, कैमिस्ट्री के प्रश्नों को रट्टा मारने के बाद वह तुरंत रभीना की याद में डूब जाता था… और याद में भी ऐसे डूबता मानो सच में गोता लगा रहा हो.

रभीना उस की बांहों में, रभीना उस के जोक पर लगातार हंसते हुए.

अभीन रभीना को बस सोचता जाता और अपना होश खोता जाता.

अभीन के इस पढ़ाकू व्यवहार से मां चिंतित रहने लगीं. ऐसी भी क्या पढ़ाई, जो बंद कमरे में पढ़तेपढ़ते बिना खाएपिए सो जाए.

मां को कहां पता था कि अभीन बंद कमरे सिर्फ पढ़ाई नहीं करता. 12वीं की परीक्षा खत्म होतेहोते ही अभीन का प्यार और भी परवान चढ़ने लगा.

अभीन से रभीना कभी बात नहीं करती थी. इन 2 सालों में भी अभीन रभीना से बात नहीं कर पाया. पर इस से अभीन को कोई फर्क नहीं पड़ता था.

अभीन रोज गुप्ता स्टोर से खरीदारी कर आता. उन की दुकान में ऐसी कोई चीज न रही हो, जिसे अभीन ने न खरीदा हो.

अब तो गुप्ता अंकल ही अभीन को बता देते थे कि बेटे आज शर्ट में लगाने वाले बटन ही खरीद ले. बेटे आज हेयर डाई ही खरीद ले. और फिर अभीन ‘दे दो अंकल’ कह कर ट्यूशन जाती रभीना को निहारता निहाल हो जाता कुछ पल के लिए.

अभीन पढ़ने में तो तेज था ही, साथ ही उस ने अपने बेहतर जीवन के सपने भी बुने थे. उस का प्यार जितना फिल्मी था, उतना ही फिल्मी उस के सपने थे.

पर, उस के खूबसूरत सपने में भी खूबसूरत रभीना भी थी. एक अच्छी पैकेज वाली नौकरी, एक मकान और छोटी सी कार में खुद से ड्राइव करते हुए रभीना को बारिश की बूंदों में घुमाना.

अपने इसी सपने को पूरा करने के लिए अभीन दिनरात पढ़ाई करता था. अभी भी रभीना उस के लिए सपना ही थी. एक कल्पना, जिसे देख कर वह खुश हुआ करता था. जिसे महसूस कर वह अपने सपनों को सच करने के लिए आई लीड को पीटते नींद को भगाने के लिए आंख की पुतलियों पर पानी के छींटों के सहारे पढ़ाई करता था.

पहली कोशिश में पहली ही दफा में अभीन ने इंजीनियरिंग परीक्षा इंट्रेस निकाल ली. अपार खुशी, पर दुख इस बात का था कि अब गुप्ता अंकल की दुकान पर रोज सामान खरीदने का मौका नहीं मिलेगा.

अब वह अपनी रभीना को भी देख नहीं पाएगा, अपनी आंखों से रोज दीदार नहीं कर पाएगा.

अभीन घर वापस आते ही चिंतित हो उठा. उस के कई दिनों से इस तरह के व्यवहार से मातापिता भी चिंतित हो उठे. हमेशा खुश रहने वाला लड़का इतना परेशान क्यों है?

अभीन के होश उड़े हुए थे. वह थोड़ा बेसुध सा रहने लगा. अभीन अब उतावला सा रभीना से बात करने और उस से मिलने के रास्ते तलाशने लगा.

अपने महल्ले में ही रहने वाली रभीना के लिए उस ने कभी ऐसी कोशिश नहीं की थी. उस ने कभी यह बात नहीं सोची थी कि ऐसा भी कभी समय आएगा.

आखिरकार वह अपनी मौसी के घर रहने वाली रेंटर निकली. किसी बहाने से अभीन अपनी मौसी के यहां पहुंच भी गया. पर यह क्या, रभीना दो बार सामने से गुजरी, उस ने ध्यान ही नहीं दिया. गुप्ता अंकल के स्टोर पर तो रोज मुझे देख कर हंसती थी. वह मुझ से कहीं ज्यादा खुश लगती थी, मुझे गुप्ता अंकल के स्टोर पर इंतजार करता देख. पर आज ना जाने ऐसा व्यवहार क्यों कर रही है.

अभीन को रभीना पर गुस्सा भी आ रहा था. ऐसी भी क्या बेरुखी…? आखिर अभीन गुस्सा हो कर या कहें निराश हो कर भारी मन के साथ कब वह अपने घर पहुंच गया, उसे भी पता न चला.

अभीन अभी भी गुस्से में ही था. रात का भोजन नहीं. अगले दिन भी दिनभर कमरे से बाहर नहीं निकला.

अभीन के मातापिता परेशान हो गए. कहीं ऐसा तो नहीं कि अभीन घर से दूर इंजीनियरिंग की पढ़ाई करने जाने से दुखी है.

अभीन माता पिता से, घर से दूर रहने के फायदे और स्वावलंबी बनने की जरूरत पर लंबेलंबे लेक्चर सुनतेसुनते बोर होने लगा, तो घर से बाहर निकला. मातापिता समझे कि अब अभीन समझदार हो गया है. अभीन घर से निकल कर गुप्ता अंकल के स्टोर पर पहुंचा.

2 साल में पहली बार अभीन गुप्ता अंकल के स्टोर पर शाम 5 बजे के बाद मुरझाया चेहरा ले कर पहुंचता है. उसे देख कर गुप्ता अंकल ने पूछा, ’’अरे, तुम ने बताया नहीं कि तुम ने आईआईटी एक बार में ही निकाल ली.’’

’’हां अंकल, निकाल ली,’’ कह कर अभीन चुप हो गया. एकाएक वह अपनी मौसी के घर की ओर बढ़ चला. आज वह रभीना से पूछ ही लेगा कि शादी करोगी या नहीं? और कुछ ही देर में अभीन रभीना के घर के दरवाजे पर था. पर, ये क्या…? उस के दरवाजे पर तो ताला लगा हुआ था. तभी उस की मौसी उसे देख आवाज देती हैं, ’’अरे अभीन, उधर रेंटर के कमरे की ओर क्या कर रहा है? इधर आ…’’

’’आता हूं मौसी. ये आप के रेंटर कहां गए? इन का दरवाजा बंद है. लगता है, मार्केट गए हैं.’’

’’नहीं… नहीं, मार्केट नहीं, वे अपने गांव गए हैं. उन की बेटी है ना रभीना, उस की शादी है अगले हफ्ते.’’

यह सुन कर अभीन अंदर से हिल गया. रोते हुए वह अपने घर की ओर दौड़ा. उस का दिमाग भारी लगने लगता है.

अपने बहते आंसुओं को पोंछते हुए वह दौड़ते हुए चलने लगता है. अभीन को मालूम है कि लोग उसे रोते हुए देख रहे हैं. पर आंसू रोकना उस के बस की बात नहीं थी. सो, उस ने दौड़ कर घर जल्द पहुंचना ही अच्छा समझा और बंद कमरे में जी भर कर रोया.

अभीन रोते हुए थक कर सो गया. रात को सपने में भी आई रभीना. पर कहीं से ऐसा नहीं लगा जैसे रभीना उस की जिंदगी से चली गई हो.

पहले की तरह रभीना अभीन की बांहों में लिपटी उस के बाल को खींचती. अभीन के जोक पर पहले तो चुप रहती और कहती कि यह भी कोई जोक है. और फिर उस के बाद खिलखिला कर हसंती और जी खोल कर हंसती.

अभीन के मन में अभी भी था कि रभीना उस की जिंदगी से चली गई है. पर उस की हिम्मत ही नहीं हुई पूछने की, क्योंकि रभीना तो अभी उस की बांहों में थी.

सुबह तैयार हो कर अपने सपने को पूरा करने के लिए अभीन आईआईटी, दिल्ली के लिए निकल रहा था. पर उस का सपना थोड़ाथोड़ा अधूरा सा लग रहा था, क्योंकि इस सपने में रभीना नहीं थी.

Romantic Story : भ्रष्टाचार – पतिपत्नी के बीच ठंडे पड़ते रिश्ते की कहानी

Romantic Story : मोहिनी ने पर्स से रूमाल निकाला और चेहरा पोंछते हुए गोविंद सिंह के सामने कुरसी खींच कर बैठ गई. उस के चेहरे पर अजीब सी मुसकराहट थी.

‘‘चाय और ठंडा पिला कर तुम पिछले 1 महीने से मुझे बेवकूफ बना रहे हो,’’ मोहिनी झुंझलाते हुए बोली, ‘‘पहले यह बताओ कि आज चेक तैयार है या नहीं?’’

वह सरकारी लेखा विभाग में पहले भी कई चक्कर लगा चुकी थी. उसे इस बात की कोफ्त थी कि गोविंद सिंह को हिस्सा दिए जाने के बावजूद काम देरी से हो रहा था. उस के धन, समय और ऊर्जा की बरबादी हो रही थी. इस के अलावा गोविंद सिंह अश्लील एवं द्विअर्थी संवाद बोलने से बाज नहीं आता था.

गोविंद सिंह मौके की नजाकत को भांप कर बोला, ‘‘तुम्हें तंग कर के मुझे आनंद नहीं मिल रहा है. मैं खुद चाहता हूं कि साहब के दस्तखत हो जाएं किंतु विभाग ने जो एतराज तुम्हारे बिल पर लगाए थे उन्हें तुम्हारे बौस ने ठीक से रिमूव नहीं किया.’’

‘‘हमारे सर ने तो रिमूव कर दिया था,’’ मोहिनी बोली, ‘‘पर आप के यहां से उलटी खोपड़ी वाले क्लर्क फिर से नए आब्जेक्शन लगा कर वापस भेज देते हैं. 25 कूलरों की खरीद का बिल मैं ने ठीक कर के दिया था. अब उस पर एक और नया एतराज लग गया है.’’

‘‘क्या करें, मैडम. सरकारी काम है. आप ने तो एक ही दुकान से 25 कूलरों की खरीद दिखा दी है. मैं ने पहले भी आप को सलाह दी थी कि 5 दुकानों से अलगअलग बिल ले कर आओ.’’

‘‘फिर तो 4 दुकानों से फर्जी बिल बनवाने पड़ेंगे.’’

‘‘4 नहीं, 5 बिल फर्जी कहो. कूलर तो आप लोगों ने एक भी नहीं खरीदा,’’ गोविंद सिंह कुछ शरारत के साथ बोला.

‘‘ये बिल जिस ने भेजा है उस को बोलो. तुम्हारा बौस अपनेआप प्रबंध करेगा.’’

‘‘नहीं, वह नाराज हो जाएगा. उस ने इस काम पर मेरी ड्यूटी लगाई है.’’

‘‘तब, अपने पति को बोलो.’’

‘‘मैं इस तरह के काम में उन को शामिल नहीं करना चाहती.’’

‘‘क्यों? क्या उन के दफ्तर में सारे ही साधुसंत हैं. ऐसे काम होते नहीं क्या? आजकल तो सारे देश में मंत्री से

ले कर संतरी तक जुगाड़ और सैटिंग में लगे हैं.’’

मोहिनी ने जवाब में कुछ भी नहीं कहा. थोड़ी देर वहां पर मौन छाया रहा. आखिर मोहिनी ने चुप्पी तोड़ी. बोली, ‘‘तुम हमारे 5 प्रतिशत के भागीदार हो. यह बिल तुम ही क्यों नहीं बनवा देते?’’

‘‘बड़ी चालाक हो, मैडम. नया काम करवाओगी. खैर, मैं बनवा दूंगा. पर बदले में मुझे क्या मिलेगा?’’

‘‘200-400 रुपए, जो तुम्हारी गांठ से खर्च हों, मुझ से ले लेना.’’

‘‘अरे, इतनी आसानी से पीछा नहीं छूटेगा. पूरा दिन हमारे साथ पिकनिक मनाओ. किसी होटल में ठहरेंगे. मौज करेंगे,’’ गोविंद सिंह बेशर्मी से कुटिल हंसी हंसते हुए मोहिनी को तौल रहा था.

‘‘मैं जा रही हूं,’’ कहते हुए मोहिनी कुरसी से उठ खड़ी हुई. उसे मालूम था कि इन सरकारी दलालों को कितनी लिफ्ट देनी चाहिए.

गोविंद सिंह समझौतावादी एवं धीरज रखने वाला व्यक्ति था. वह जिस से जो मिले, वही ले कर अपना काम निकाल लेता था. उस के दफ्तर में मोहिनी जैसे कई लोग आते थे. उन में से अधिकांश लोगों के काम फर्जी बिलों के ही होते थे.

सरकारी विभागों में खरीदारी के लिए हर साल करोड़ों रुपए मंजूर किए जाते हैं. इन को किस तरह ठिकाने लगाना है, यह सरकारी विभाग के अफसर बखूबी जानते हैं. इन करोड़ों रुपयों से गोविंद सिंह और मोहिनी जैसों की सहायता से अफसर अपनी तिजोरियां भरते हैं और किसी को हवा भी नहीं लगती.

25 कूलरों की खरीद का फर्जी बिल जुटाया गया और लेखा विभाग को भेज दिया गया. इसी तरह विभाग के लिए फर्नीचर, किताबें, गुलदस्ते, क्राकरी आदि के लिए भी खरीद की मंजूरी आई थी. अत: अलगअलग विभागों के इंचार्ज जमा हो कर बौस के साथ बैठक में मौजूद थे.

बौस उन्हें हिदायत दे रहे थे कि पेपर वर्क पूरा होना चाहिए, ताकि कभी अचानक ऊपर से अधिकारी आ कर जांच करें तो उन्हें फ्लौप किया जा सके. और यह तभी संभव है जब आपस में एकता होगी.

सारा पेपर वर्क ठीक ढंग से पूरा कराने के बाद बौस ने मोहिनी की ड्यूटी गोविंद सिंह से चेक ले कर आने के लिए लगाई थी. बौस को मोहिनी पर पूरा भरोसा था. वह पिछले कई सालों से लेखा विभाग से चेक बनवा कर ला रही थी.

गोविंद सिंह को मोहिनी से अपना तयशुदा शेयर वसूल करना था, इसलिए उस ने प्रयास कर के उस के पेपर वर्क में पूरी मदद की. सारे आब्जेक्शन दूर कर के चेक बनवा दिया. चेक पर दस्तखत करा कर गोविंद सिंह ने उसे अपने पास सुरक्षित रख लिया और मोहिनी के आने की प्रतीक्षा करने लगा.

दोपहर 2 बजे मोहिनी ने उस के केबिन में प्रवेश किया. वह मोहिनी को देख कर हमेशा की तरह चहका, ‘‘आओ मेरी मैना, आओ,’’ पर उस ने इस बार चाय के लिए नहीं पूछा.

मोहिनी को पता था कि चेक बन गया है. अत: वह खुश थी. बैठते हुए बोली, ‘‘आज चाय नहीं मंगाओगे?’’

गोविंद सिंह आज कुछ उदास था. बोला, ‘‘मेरा चाय पीने का मन नहीं है. कहो तो तुम्हारे लिए मंगा दूं.’’

‘‘अपनी उदासी का कारण मुझे बताओगे तो मन कुछ हलका हो जाएगा.’’

‘‘सुना है, वह बीमार है और जयप्रकाश अस्पताल में भरती है.’’

‘‘वह कौन…अच्छा, समझी, तुम अपनी पत्नी कमलेश की बात कर रहे हो?’’

गोविंद सिंह मौन रहा और खयालों में खो गया. उस की पत्नी कमलेश उस से 3 साल पहले झगड़ा कर के घर से चली गई थी. बाद में भी वह खुद न तो गोविंद सिंह के पास आई और न ही वह उसे लेने गया था. उन दोनों के कोई बच्चा भी नहीं था.

दोनों के बीच झगड़े का कारण खुद गोविंद सिंह था. वह घर पर शराब पी कर लौटता था. कमलेश को यह सब पसंद नहीं था. दोनों में पहले वादविवाद हुआ और बाद में झगड़ा होने लगा. गोविंद सिंह ने उस पर एक बार नशे में हाथ क्या उठाया, फिर तो रोज का ही सिलसिला चल पड़ा.

एक दिन वह घर लौटा तो पत्नी घर पर न मिली. उस का पत्र मिला था, ‘हमेशा के लिए घर छोड़ कर जा रही हूं.’

‘चलो, बड़ा अच्छा हुआ जो अपनेआप चली गई,’ गोविंद सिंह ने सोचा कि बर्फ की सिल्ली की तरह ठंडी औरत के साथ गुजारा करना उसे भी कठिन लग रहा था. अब रोज रात में शराब पी कर आने पर उसे टोकने वाला कोई न था. जब कभी किसी महिला मित्र को साथ ले कर गोविंद सिंह घर लौटता तो सूना पड़ा उस का घर रात भर के लिए गुलजार हो जाता.

‘‘कहां खो गए गोविंद,’’ मोहिनी ने टोका तो गोविंद सिंह की तंद्रा भंग हुई.

‘‘कहीं भी नहीं,’’ गोविंद सिंह ने अचकचा कर उत्तर दिया. फिर अपनी दराज से मोहिनी का चेक निकाला और उसे थमा दिया.

चेक लेते हुए मोहिनी बोली, ‘‘मेरा एक कहना मानो तो तुम से कुछ कहूं. क्या पता मेरी बात को ठोकर मार दो. तुम जिद्दी आदमी जो ठहरे.’’

‘‘वादा करता हूं. आज तुम जो भी कहोगी मान लूंगा,’’ गोविंद सिंह बोला.

‘‘तुम कमलेश से अस्पताल में मिलने जरूर जाना. यदि उसे तुम्हारी मदद की जरूरत हो तो एक अच्छे इनसान की तरह पेश आना.’’

‘‘उसे मेरी मदद की जरूरत नहीं है,’’ मायूस गोविंद सिंह बोला, ‘‘यदि ऐसा होता तो वह मुझ से मिलने कभी न कभी जरूर आती. वह एक बार गुस्से में जो गई तो आज तक लौटी नहीं. न ही कभी फोन किया.’’

‘‘तुम अपनी शर्तों पर प्रेम करना चाहते हो. प्रेम में शर्त और जिद नहीं चलती. प्रेम चाहता है समर्पण और त्याग.’’

‘‘तुम शायद ऐसा ही कर रही हो?’’

‘‘मैं समर्पण का दावा नहीं कर सकती पर समझौता करना जरूर सीख लिया है. आजकल प्रेम में पैसे की मिलावट हो गई है. पर तुम्हारी पत्नी को तुम्हारे वेतन से संतोष था. रिश्वत के चंद टकों के बदले में वह तुम्हारी शराब पीने की आदत और रात को घर देर से आने को बरदाश्त नहीं कर सकती थी.’’

‘‘मैं ने तुम से वादा कर लिया है इसलिए उसे देखने अस्पताल जरूर जाऊंगा. लेकिन समझौता कर पाऊंगा या नहीं…अभी कहना मुश्किल है,’’ गोविंद सिंह ने एक लंबी सांस ले कर उत्तर दिया.

मोहिनी को गोविंद सिंह की हालत पर तरस आ रहा था. वह उसे उस के हाल पर छोड़ कर दफ्तर से बाहर आ गई और सोचने लगी, इस दुनिया में कौन क्या चाहता है? कोई धनदौलत का दीवाना है तो कोई प्यार का भूखा है, पर क्या हर एक को उस की मनचाही चीज मिल जाती है? गोविंद सिंह की पत्नी चाहती है कि ड््यूटी पूरी करने के बाद पति शाम को घर लौटे और प्रतीक्षा करती हुई पत्नी की मिलन की आस पूरी हो.

गोविंद सिंह की सोच अलग है. वह ढेरों रुपए जमा करना चाहता है ताकि उन के सहारे सुख खरीद सके. पर रुपया है कि जमा नहीं होता. इधर आता है तो उधर फुर्र हो जाता है.

मोहिनी बाहर आई तो श्याम सिंह चपरासी ने आवाज लगाई, ‘‘मैडमजी, आप के चेक पर साहब से दस्तखत तो मैं ने ही कराए थे. आप का काम था इसलिए जल्दी करा दिया. वरना यह चेक अगले महीने मिलता.’’

मोहिनी ने अपने पर्स से 100 रुपए का नोट निकाला. फिर मुसकराते हुए पूछ लिया, ‘‘श्याम सिंह, एक बात सचसच बताओगे, तुम रोज इनाम से कितना कमा लेते हो?’’

‘‘यही कोई 400-500 रुपए,’’ श्याम सिंह बहुत ही हैरानी के साथ बोला.

‘‘तब तो तुम ने बैंक में बहुत सा धन जमा कर लिया होगा. कोई दुकान क्यों नहीं खोल लेते?’’

‘‘मैडमजी,’’ घिघियाते हुए श्याम सिंह बोला, ‘‘रुपए कहां बचते हैं. कुछ रुपया गांव में मांबाप और भाई को भेज देता हूं. बाकी ऐसे ही खानेपीने, नाते- रिश्तेदारों पर खर्च हो जाता है. अभी पिछले महीने साले को बेकरी की दुकान खुलवा कर दी है.’’

‘‘फिर वेतन तो बैंक में जरूर जमा कर लेते होंगे.’’

‘‘अरे, कहां जमा होता है. अपनी झोंपड़ी को तोड़ कर 4 कमरे पक्के बनाए थे. इसलिए 1 लाख रुपए सरकार से कर्ज लिया था. वेतन उसी में कट जाता है.’’

श्याम सिंह की बातें सुन कर मोहिनी के सिर में दर्द हो गया. वह सड़क पर आई और आटोरिकशा पकड़ कर अपने दफ्तर पहुंच गई. बौस को चेक पकड़ाया और अपने केबिन में आ कर थकान उतारने लगी.

मोहिनी की जीवन शैली में भी कोई आनंद नहीं था. वह अकसर देर से घर पहुंचती थी. जल्दी पहुंचे भी तो किस के लिए. पति देर से घर लौटते थे. बेटा पढ़ाई के लिए मुंबई जा चुका था. सूना घर काटने को दौड़ता था. बंगले के गेट से लान को पार करते हुए वह थके कदमों से घर के दरवाजे तक पहुंचती. ताला खोलती और सूने घर की दीवारों को देखते हुए उसे अकेलेपन का डर पैदा हो जाता.

पति को वह उलाहना देती कि जल्दी घर क्यों नहीं लौटते हो? पर जवाब वही रटारटाया होता, ‘मोहिनी… घर जल्दी आने का मतलब है अपनी आमदनी से हाथ धोना.’

ऊपरी आमदनी का महत्त्व मोहिनी को पता है. यद्यपि उसे यह सब अच्छा नहीं लगता था. पर इस तरह की जिंदगी जीना उस की मजबूरी बन गई थी. उस की, पति की, गोविंद सिंह की, श्याम सिंह की, बौस की और जाने कितने लोगों की मजबूरी. शायद पूरे समाज की मजबूरी.

भ्रष्टाचार में कोई भी जानबूझ कर लिप्त नहीं होना चाहता. भ्रष्टाचारी की हर कोई आलोचना करता है. दूसरे भ्रष्टचारी को मारना चाहता है. पर अपना भ्रष्टाचार सभी को मजबूरी लगता है. इस देश में न जाने कितने मजबूर पल रहे हैं. आखिर ये मजबूर कब अपने खोल से बाहर निकल कर आएंगे और अपनी भीतरी शक्ति को पहचानेंगे.

मोहिनी का दफ्तर में मन नहीं लग रहा था. वह छुट्टी ले कर ढाई घंटे पहले ही घर पहुंच गई. चाय बना कर पी और बिस्तर पर लेट गई. उसे पति की याद सताने लगी. पर दिनेश को दफ्तर से छुट्टी कर के बुलाना आसान काम नहीं था, क्योंकि बिना वजह छुट्टी लेना दिनेश को पसंद नहीं था. कई बार मोहिनी ने आग्रह किया था कि दफ्तर से छुट्टी कर लिया करो, पर दिनेश मना कर देता था.

सच पूछा जाए तो इस हालात के लिए मोहिनी भी कम जिम्मेदार न थी. वह स्वयं ही नीरस हो गई थी. इसी कारण दिनेश भी पहले जैसा हंसमुख न रह गया था. आज पहली बार उसे महसूस हो रहा था कि जीवन का सच्चा सुख तो उस ने खो दिया. जिम्मेदारियों के नाम पर गृहस्थी का बोझ उस ने जरूर ओढ़ लिया था, पर वह दिखावे की चीज थी.

इस तरह की सोच मन में आते ही मोहिनी को लगा कि उस के शरीर से चिपकी पत्थरों की परत अब मोम में बदल गई है. उस का शरीर मोम की तरह चिकना और नरम हो गया था. बिस्तर पर जैसे मोम की गुडि़या लेटी हो.

उसे लगा कि उस के भीतर का मोम पिघल रहा है. वह अपनेआप को हलका महसूस करने लगी. उस ने ओढ़ी हुई चादर फेंक दी और एक मादक अंगड़ाई लेते हुए बिस्तर से अलग खड़ी हुई. तभी उसे शरारत सूझी. दूसरे कमरे में जा कर दिनेश को फोन मिलाया और घबराई आवाज में बोली, ‘‘क्या कर रहे हो?’’

अचानक मोहिनी का फोन आने से दिनेश घबरा सा गया. उस ने पूछा, ‘‘खैरियत तो है. कैसे फोन किया?’’

‘‘बहुत घबराहट हो रही है. डाक्टर के पास नहीं गई तो मर जाऊंगी. तुम जल्दी आओ,’’ इतना कहने के साथ ही मोहिनी ने फोन काट दिया.

अब मोहिनी के चेहरे पर मुसकराहट थी. बड़ा मजा आएगा. दिनेश को दफ्तर छोड़ कर तुरंत घर आना होगा. मोहिनी की शरारत और शोखी फिर से जाग उठी थी. वह गाने लगी, ‘तेरी दो टकिया दी नौकरी में, मेरा लाखों का सावन जाए…’

गीजर में पानी गरम हो चुका था. वह बाथरूम में गई. बड़े आराम से अपना एकएक कपड़ा उतार कर दूर फेंक दिया और गरम पानी के फौआरे में जा कर खड़ी हो गई.

गरम पानी की बौछारों में मोहिनी बड़ी देर तक नहाती रही. समय का पता ही नहीं चला कि कितनी देर से काल बेल बज रही थी. शायद दिनेश आ गया होगा. मोहिनी अभी सोच ही रही थी कि पुन: जोरदार, लंबी सी बेल गूंजने लगी.

बाथरूम से निकल कर मोहिनी वैसी ही गीला शरीर लिए दरवाजे की ओर दौड़ पड़ी. आई ग्लास से झांक कर देखा तो दिनेश परेशान चेहरा लिए खड़ा था.

मोहिनी ने दरवाजा खोला. दिनेश ने जैसे ही कमरे में प्रवेश किया, उसे देख कर उस की आंखें खुली की खुली रह गईं, किसी राजा के रंगमहल में फौआरे के मध्य खड़ी नग्न प्रतिमा की तरह एकदम जड़ हो कर मोहिनी खड़ी थी. दिनेश भी एकदम जड़ हो गया. उसे अपनी आंखों पर भरोसा न हुआ. उसे लगा कि वह कोई सपना देख रहा है, किसी दूसरे लोक में पहुंच गया है.

2 मिनट के बाद जब उस ने खुद को संभाला तो उस के मुंह से निकला, ‘‘तुम…आखिर क्या कर रही हो?’’

मोहिनी तेजी से आगे बढ़ी और दिनेश को अपनी बांहों में भर लिया. दिनेश के सूखे कपड़ों और उस की आत्मा को अपनी जुल्फों के पानी से भिगोते हुए वह बोल पड़ी, ‘‘बताऊं, क्या कर रही हूं… भ्रष्टाचार?’’और इसी के साथ दोनों ही खिलखिला कर हंस पड़े.

Hindi Story : चेतावनी – मीना आंटी ने क्या जिद ठान ली थी

Hindi Story : संदीप और अर्चना के प्रति मीना की दिलचस्पी इतनी बढ़ी कि वह उन की परेशानी जानने को आतुर हो उठी, यहां तक कि अर्चना को परेशानी से उबारना मीना की जिद बन गई.

पिछले कुछ दिनों से वे दोपहर 1 से 2 के बीच रोज पार्क में आते. उन दोनों की जोड़ी मुझे बहुत जंचती. युवक कार से और युवती पैदल यहां पहुंचती थी. दोनों एक ही बैंच पर बैठते और उन के आपस में बात करने के ढंग को देख कर कोई भी कह सकता था कि वे प्रेमीप्रेमिका हैं.

मैं रोज जिस जगह घास पर बैठती थी वहां माली ने पानी दे दिया तो मैं ने जगह बदल ली. मन में उन के प्रति उत्सुकता थी, इसलिए उस रोज मैं उन की बैंच के काफी पास शौल से मुंह ढक कर लेटी हुई थी, जब वे दोनों पार्क में आए.

उन के बातचीत का अधिकांश हिस्सा मैं ने सुना. युवती का नाम अर्चना और युवक का संदीप था. न चाहते हुए भी मुझे उन के प्रेमसंबंध में पैदा हुए तनाव व खिंचाव की जानकारी मिल गई.

नाराजगी व गुस्से का शिकार हो कर संदीप कुछ पहले चला गया. मैं ने मुंह पर पड़ा शौल जरा सा हटा कर अर्चना की तरफ देखा तो पाया कि उस की आंखों में आंसू थे.

मैं उस की चिंता व दुखदर्द बांटना चाहती थी. उस की समस्या ने मेरे दिल को छू लिया था, तभी उस के पास जाने से मैं खुद को रोक नहीं सकी.

मुझ जैसी बड़ी उम्र की औरत के लिए किसी लड़की से परिचय बनाना आसान होता है. बड़े सहज ढंग से मैं ने उस के बारे में जानकारी हासिल की. बातचीत ऐसी हलकीफुलकी रखी कि वह भी जल्दी ही मुझ से खुल गई.

इस सार्वजनिक पार्क के एक तरफ आलीशान कोठियां बनी हैं और दूसरी तरफ मध्यवर्गीय आय वालों के फ्लैट्स हैं. मेरा बड़ा बेटा अमित कोठी में रहता है और छोटा अरुण फ्लैट में.

अर्चना भी फ्लैट में रहती थी. उस की समस्या पर उस से जिक्र करने से पहले मैं उस की दोस्त बनना चाहती थी. तभी जिद कर के मैं साथसाथ चाय पीने के लिए उसे अरुण के फ्लैट पर ले आई.

छोटी बहू सीमा ने हमारे लिए झटपट अदरक की चाय बना दी. कुछ समय हमारे पास बैठ कर वह रसोई में चली गई. चाय खत्म कर के मैं और अर्चना बालकनी के एकांत में आ बैठे. मैं ने उस की समस्या पर चर्चा छेड़ दी.

‘‘अर्चना, तुम्हारी व्यक्तिगत जिंदगी को ले कर मैं तुम से कुछ बातें करना चाहूंगी. आशा है कि तुम उस का बुरा नहीं मानोगी,’’ यह कह कर मैं ने उस का हाथ अपने दोनों हाथों में ले कर प्यार से दबाया.
‘‘मीना आंटी, आप मुझे दिल की बहुत अच्छी लगी हैं. आप कुछ भी पूछें या कहें, मैं बिलकुल बुरा नहीं मानूंगी,’’ उस का भावुक होना मेरे दिल को छू गया.
‘‘वहां पार्क में मैं ने संदीप और तुम्हारी बातें सुनी थीं. तुम संदीप से प्रेम करती हो. वह एक साल के लिए अपनी कंपनी की तरफ से अगले माह विदेश जा रहा है. तुम चाहती हो कि विदेश जाने से पहले तुम दोनों की सगाई हो जाए. संदीप यह काम लौट कर करना चाहता है. इसी बात को ले कर तुम दोनों के बीच मनमुटाव चल रहा है ना?’’ मेरी आवाज में उस के प्रति गहरी सहानुभूति के भाव उभरे.

कुछ पल खामोश रहने के बाद अर्चना ने चिंतित लहजे में जवाब दिया, ‘‘आंटी, संदीप और मैं एकदूसरे के दिल में 3 साल से बसते हैं. दोनों के घर वालों को हमारे इस प्रेम का पता नहीं है. वह बिना सगाई के चला गया तो मैं खुद को बेहद असुरक्षित महसूस करूंगी.’’

‘‘क्या तुम्हें संदीप के प्यार पर भरोसा नहीं है?’’
‘‘भरोसा तो पूरा है, आंटी, पर मेरा दिल बिना किसी रस्म के उसे अकेला विदेश भेजने से घबरा रहा है.’’
मैं ने कुछ देर सोचने के बाद पूछा, ‘‘संदीप के बारे में मातापिता को न बताने की कोई तो वजह होगी.’’
‘‘आंटी, मेरी बड़ी दीदी ने प्रेम विवाह किया था और उस की शादी तलाक के कगार पर पहुंची हुई है. पापामम्मी को अगर मैं संदीप से प्रेम करने के बारे में बताऊंगी तो मेरी जान मुसीबत में फंस जाएगी.’’
‘‘और संदीप ने तुम्हें अपने घरवालों से क्यों छिपा कर रखा है?’’

अर्चना ने बेचैनी के साथ जवाब दिया, ‘‘संदीप के पिता बहुत बड़े बिजनेसमैन हैं. आर्थिक दृष्टि से हम उन के सामने कहीं नहीं ठहरते. मैं एमबीए पूरी कर के नौकरी करने लगूं, तब तक के लिए उस ने अपने मातापिता से शादी का जिक्र छेड़ना टाल रखा है. मेरी एमबीए अगले महीने समाप्त होगा, लेकिन उस के विदेश जाने की बात के कारण स्थिति बदल गई है. मैं चाहती हूं कि वह फौरन अपने मातापिता से इस मामले में चर्चा छेड़े.’’

अर्चना का नजरिया तो मैं समझ गई लेकिन संदीप ने अभी विदेश जाने से पहले अपने मातापिता से शादी का जिक्र छेड़ने से पार्क में साफ इनकार कर दिया था और उस के इनकार करने के ढंग में मैं ने बड़ी कठोरता महसूस की थी. उस ने अर्चना के नजरिए को सम?ाने की कोशिश भी नहीं की थी. मुझे उस का व्यक्तित्व पसंद नहीं आया था. तभी दुखी व परेशान अर्चना का मनोबल बढ़ाने के लिए मैं ने उस की सहायता करने का फैसला लिया था.

मेरा 5 वर्षीय पोता समीर स्कूल से लौट आया तो हम आगे बात नहीं कर सके क्योंकि उस की मांग थी कि उस के कपड़े बदलने, खाना परोसने व खिलाने का काम दादी ही करें.

अर्चना अपने घर जाना चाहती थी पर मैं ने उसे यह कह कर रोक लिया कि बेटी, अगर तुम्हें कोई ऐतराज न हो तो मैं भी तुम्हारे साथ चलूं. तुम्हारी मां से मिलने का दिल है मेरा.

रास्ते में अर्चना ने उलझन भरे लहजे में पूछा, ‘‘मीना आंटी, क्या संदीप के विदेश जाने से पहले उस के साथ सगाई की रस्म हो जाने की मेरी जिद गलत है?’’

‘‘इस सवाल का सीधा ‘हां’ या ‘न’ में जवाब नहीं दिया जा सकता है,’’ मैं ने गंभीर लहजे में कहा, ‘‘मेरी समझ से इस समस्या के 2 महत्त्वपूर्ण पहलू हैं.’’
‘‘कौनकौन से, आंटी?’’
‘‘पहला यह कि क्या संदीप का तुम्हारे प्रति प्रेम सच्चा है? अगर इस का जवाब ‘हां’ है तो वह लौट कर तुम से शादी कर ही लेगा. दूसरी तरफ वह ‘रोकने’ की रस्म से इसलिए इनकार कर रहा हो कि तुम से शादी करने का इच्छुक ही न हो.’’
‘‘ऐसी दिल तोड़ने वाली बात मुंह से मत निकालिए, आंटी,’’ अर्चना का गला भर आया.
‘‘बेटी, यह कभी मत भूलो कि तथ्यों से भावनाएं सदा हारती हैं. हमारे चाहने भर से जिंदगी के यथार्थ नहीं बदलते,’’ मैं ने उसे कोमल लहजे में समझाया.
‘‘मुझे संदीप पर पूरा विश्वास है,’’ उस ने यह बात मानो मेरे बजाय खुद से कही थी.
‘‘होना भी चाहिए,’’ मैं ने प्यार से उस की पीठ थपथपाई.
‘‘आंटी, मेरी समस्या का दूसरा पहलू क्या है?’’ अर्चना ने मुसकराने की कोशिश करते हुए पूछा.
‘‘तुम्हारी खुशी है. तुम्हारे मन की सुखशांति.’’
‘‘मैं कुछ समझ नहीं, आंटी.’’
‘‘अभी इस बारे में मुझ से कुछ मत पूछो पर मैं तुम्हें विश्वास दिलाती हूं कि संदीप के विदेश जाने में अभी 2 सप्ताह बचे हैं और इस समय के अंदर ही तुम्हारी समस्या का उचित समाधान मैं ढूंढ़ लूंगी.’’
ऐसा आश्वासन पा कर अर्चना ने मुझ से आगे कुछ नहीं पूछा.
अर्चना की मां सावित्री एक आम घरेलू औरत थीं. मेरी 2 सहेलियां उन की भी परिचित निकलीं तो हम जल्दी सहज हो कर आपस में हंसनेबोलने लगे.

मैं ने अर्चना की शादी का जिक्र छेड़ा तो सावित्री ने बताया, ‘‘मीना बहनजी, इस के लिए इस की बूआ ने बड़ा अच्छा रिश्ता सुझाया है पर यह जिद्दी लड़की हमें बात आगे नहीं चलाने देती.’’
‘‘क्या कहती है अर्चना?’’ मैं ने उत्सुकता दर्शाई.
‘‘यही कि एमबीए के बाद कम से कम सालभर नौकरी कर के फिर शादी के बारे में सोचूंगी.’’
‘‘उस के ऐसा करने में दिक्कत क्या है, बहनजी?’’
‘‘अर्चना के पापा इतना लंबा इंतजार नहीं करना चाहते. अपनी बहन का भेजा रिश्ता उन्हें बहुत पसंद है.’’

मैं समझ गई कि आने वाले दिनों में अर्चना पर शादी का जबरदस्त दबाव बनेगा. अर्चना की जिद कि संदीप सगाई कर के विदेश जाए, मुझे तब जायज लगी.
‘‘अर्चना, कल तुम पार्क में मुझे संदीप से मिलाना. तब तक मैं तुम्हारी परेशानी का कुछ हल सोचती हूं,’’ इन शब्दों से उस का हौसला बढ़ा कर मैं अपने घर लौट आई.
अगले दिन पार्क में अर्चना ने संदीप से मुझे मिला दिया. एक नजर मेरे साधारण से व्यक्तित्व पर डालने के बाद संदीप की मेरे बारे में दिलचस्पी फौरन बहुत कम हो गई.
मैं ने उस से थोड़े से व्यक्तिगत सवाल सहज ढंग से पूछे. उस ने बड़े खिंचे से अंदाज में उन के जवाब दिए. यह साफ था कि संदीप को मेरी मौजूदगी खल रही थी.
उन दोनों को अकेला छोड़ कर मैं दूर घास पर आराम करने चली गई.
संदीप को विदा करने के बाद अर्चना मेरे पास आई. उस की उदासी मेरी नजरों से छिपी नहीं रह सकी. मैं ने प्यार से उस का हाथ पकड़ा और उस के बोलने का इंतजार खामोशी से करने लगी.
कुछ देर बाद हारे हुए लहजे में उस ने बताया, ‘‘आंटी, वह सगाई करने के लिए तैयार नहीं है. उस की दलील है कि जब शादी एक साल बाद होगी तो अभी से दोनों परिवारों के लिए तनाव पैदा करने का कोई औचित्य नहीं है.’’

कुछ देर खामोश रहने के बाद मैं ने मुसकराते हुए विषय परिवर्तन किया, ‘‘देखो, परसों मेरे बड़े बेटे अंकित की कोठी में शानदार पार्टी होगी. मेरी पोती शिखा का 8वां जन्मदिन है. तुम्हें उस पार्टी में मेरे साथ शामिल होना होगा.’’
अर्चना ने पढ़ाई का बहाना कर के पार्टी में आने से बचना चाहा पर मेरी जिद के सामने उस की एक न चली. उस की मां से इजाजत दिलवाने की जिम्मेदारी मैं ने अपने ऊपर ले ली थी.
मेरा बेटा अमित व बहू निशा दोनों कंप्यूटर इंजीनियर हैं. उन्होंने प्रेम विवाह किया था. मेरे मायके या ससुराल वालों में दोनों तरफ दूरदूर तक कोई भी उन जैसा अमीर नहीं है.
अमित ने पार्टी का आयोजन अपनी हैसियत के अनुरूप भव्य स्तर पर किया. सभी मेहमान शहर के बड़े और प्रतिष्ठित आदमी थे. उन की देखभाल के लिए वेटरों की पूरी फौज मौजूद थी. शराब के शौकीनों के लिए ‘बार’ था तो डांस के शौकीनों के लिए डीजे सिस्टम मौजूद था.

मेरी छोटी बहू सीमा, अर्चना और मैं खुद इस भव्य पार्टी में मेहमान कम, दर्शक ज्यादा थे. जो एकदो जानपहचान वाले मिले वे भी हम से ज्यादा बातें करने को उत्सुक नहीं थे.
अमित और निशा मेहमानों की देखभाल में बहुत व्यस्त थे. हम ठीक से खापी रहे हैं, यह जानने के लिए दोनों कभीकभी कुछ पल को हमारे पास नियमित आते रहे.
रात को 11 बजे के करीब उन से विदा ले कर जब हम अपने फ्लैट में लौटे, तब तक 80 प्रतिशत से ज्यादा मेहमानों ने डिनर करना भी नहीं शुरू किया था.
पार्टी के बारे में अर्चना की राय जानने के लिए अगले दिन मैं 11 बजे के आसपास उस के घर पहुंच गई थी.

‘‘आंटी, पार्टी बहुत अच्छी थी पर सच कहूं तो मजा नहीं आया,’’ उस ने सकुचाते हुए अपना मत व्यक्त किया.
‘‘मजा क्यों नहीं आया तुम्हें?’’ मैं ने गंभीर हो कर सवाल किया.
‘‘पार्टी में अच्छा खानेपीने के साथसाथ खूब हंसनाबोलना भी होना चाहिए. बस, वहां जानपहचान के लोग न होने के कारण पार्टी का पूरा लुत्फ नहीं उठा सके हम.’’
‘‘अर्चना, हम दूसरे मेहमानों के साथ जानपहचान बढ़ाने की कोशिश करते तो क्या वे हमें स्वीकार करते? मैं चाहूंगी कि तुम मेरे इस सवाल का जवाब सोचसम?ा कर दो.’’
कुछ देर सोचने के बाद अर्चना ने जवाब दिया, ‘‘आंटी, वहां आए मेहमानों का सामाजिक व आर्थिक स्तर हम से बहुत ऊंचा था. हमें बराबर का दर्जा देना उन्हें स्वीकार न होता.’’
‘‘एक बात पूछूं?’’
‘‘पूछिए.’’
‘‘क्या ऐसा ही अंतर तुम्हारे व संदीप के परिवारों में नहीं है?’’
‘‘है,’’ अर्चना का चेहरा उतर गया.
‘‘तब क्या तुम्हारे लिए यह जानना जरूरी नहीं है कि उस के घर वाले तुम्हें बहू के रूप में आदरसम्मान देंगे या नहीं?’’
‘‘आंटी, क्या संदीप का प्यार मुझे ये सभी चीजें उन से नहीं दिलवा सकेगा?’’
‘‘अर्चना, कल की पार्टी में अमित की मां, भाईभतीजा व भाई की पत्नी मौजूद थे. लगभग सभी मेहमान हमें पहचानने के बावजूद हम से बोलना अपनी तौहीन सम?ाते रहे. सिर्फ संदीप की पत्नी बन जाने से क्या तुम्हारे अमीर ससुराल वालों का तुम्हारे प्रति नजरिया बदल जाएगा?’’
अनुभव के आधार पर मैं ने एकएक शब्द पर जोर दिया, ‘‘तुम्हें संदीप के घर वालों से मिलना होगा. वे तुम्हारे साथ सगाई करें या न करें पर इस मुलाकात के लिए तुम अड़ जाओ, अर्चना.’’
मेरे कुछ देर तक समझने के बाद बात उस की समझ में आ गई. मेरी सलाह पर अमल करने का मजबूत इरादा मन में ले कर वह संदीप से मिलने पार्क की तरफ गई.

करीब डेढ़ घंटे बाद जब वह लौटी तो उस की सूजी आंखों को देख कर मैं संदीप का जवाब बिना बताए ही जान गई.
‘‘वह अपने घर वालों से तुम्हें मिलाने को नहीं माना?’’
‘‘नहीं, आंटी,’’ अर्चना ने दुखी स्वर में जवाब दिया, ‘‘मैं उस के साथ लड़ी भी और रोई भी पर संदीप नहीं माना. वह कहता है कि इस मुलाकात को अभी अंजाम देने का न कोई महत्त्व है और न ही जरूरत है.’’
‘‘उस के लिए ऐसा होगा पर हम ऐसी मुलाकात को पूरी अहमियत देते हुए इसे बिना संदीप की इजाजत के अंजाम देंगे, अर्चना. संदीप की जिद के कारण तुम अपनी भावी खुशियों को दांव पर नहीं लगा सकतीं,’’ मेरे गुस्से से लाल चेहरे को देख कर वह घबरा गई थी.

डरीघबराई अर्चना को संदीप की मां से सीधे मिलने को राजी करने में मुझे खासी मेहनत करनी पड़ी पर आखिर में उस की ‘हां’ सुन कर ही मैं उस के घर से उठी.

जीवन हमारी सोचों के अनुसार चलने को जरा भी बाध्य नहीं. अगले दिन दोपहर को संदीप के पिता की कोठी की तरफ जाते हुए अर्चना और मैं काफी ज्यादा तनावग्रस्त थे पर वहां जो भी घटा वह हमारी उम्मीदों से कहीं ज्यादा अच्छा था.

संदीप की मां अंजू व छोटी बहन सपना से हमारी मुलाकात हुई. अर्चना का परिचय मुझे उन्हें नहीं देना पड़ा. कालेज जाने वाली सपना ने उसे संदीप भैया की खास ‘गर्लफ्रैंड’ के रूप में पहचाना और यह जानकारी हमारे सामने ही मां को भी दे दी.

संदीप की जिंदगी में अर्चना विशेष स्थान रखती है, अपनी बेटी से यह जानकारी पाने के बाद अंजू बड़े प्यार व अपनेपन से अर्चना के साथ पेश आईं. सपना का व्यवहार भी उस के साथ किसी सहेली जैसा चुलबुला व छेड़छाड़ वाला रहा.

जिस तरह का सम्मान व अपनापन उन दोनों ने अर्चना के प्रति दर्शाया वह हमें सुखद आश्चर्य से भर गया. गपशप करने को सपना कुछ देर बाद अर्चना को अपने कमरे में ले गई.

अकेले में अंजू ने मुझ से कहा, ‘‘मीनाजी, मैं तो बहू का मुंह देखने को न जाने कब से तरस रही हूं पर संदीप मेरी नहीं सुनता. अगला प्रमोशन होने तक शादी टालने की बात करता है. अब अमेरिका जाने के कारण उस की शादी सालभर को तो टल ही गई न.’’
‘‘आप को अर्चना कैसी लगी है?’’ मैं ने बातचीत को अपनी ओर मोड़ते हुए पूछा.
‘‘बहुत प्यारी है. सब से बड़ी बात कि वह मेरे संदीप को पसंद है,’’ अंजू बेहद खुश नजर आईं.
‘‘उस के पिता बड़ी साधारण हैसियत रखते हैं. आप लोगों के स्तर की शादी करना उन के बस की बात नहीं.’’
‘‘मीनाजी, मैं खुद स्कूलमास्टर की बेटी हूं. आज सबकुछ है हमारे पास. सुघड़ और सुशील लड़की को हम एक रुपया दहेज में लिए बिना खुशीखुशी बहू बना कर लाएंगे.’’

बेटे की शादी के प्रति उन का सादगीभरा उत्साह देख कर मैं अचानक इतनी भावुक हुई कि मेरी आंखें भर आईं.

अर्चना और मैं ने बहुत खुशीखुशी उन के घर से विदा ली. अंजू और सपना हमें बाहर तक छोड़ने आईं.

‘‘कोमल दिल वाली अंजू के कारण तुम्हें इस घर में कभी कोई दुख नहीं होगा अर्चना. दौलत ने मेरे बड़े बेटे का जैसे दिमाग घुमाया है, वैसी बात यहां नहीं है. अब तुम फोन पर संदीप को इस मुलाकात की सूचना फौरन दे डालो. देखें, अब वह सगाई कराने को तैयार होता है या नहीं.’’ मेरी बात सुन कर अब तक खुश नजर आ रही अर्चना की आंखों में चिंता के बादल मंडरा उठे.

संदीप की प्रतिक्रिया मुझे अगले दिन शाम को अर्चना के घर जा कर ही पता चली. मैं इंतजार करती रही कि वह मेरे घर आए लेकिन जब वह शाम तक नहीं आई तो मैं ही दिल में गहरी चिंता के भाव लिए उस से मिलने पहुंच गई.

हुआ वही जिस का मुझे डर पहले दिन से था. संदीप अर्चना से उस दिन पार्क में खूब जोर से झगड़ा. उसे यह बात बहुत बुरी लगी कि मेरे साथ अर्चना उस की इजाजत के बिना क्यों उस की मां व बहन से मिल कर आई.

‘‘मीना आंटी, मैं आज संदीप से न दबी और न ही कमजोर पड़ी. जब उस की मां को मैं पसंद हूं तो अब उसे सगाई करने से ऐतराज क्यों?’’ अर्चना का गुस्सा मेरे हिसाब से बिलकुल जायज था.
‘‘आखिर में क्या कह रहा था संदीप?’’ उस का अंतिम फैसला जानने को मेरा मन बेचैन हो उठा.
‘‘मुझ से नाराज हो कर भाग गया वह, आंटी. मैं भी उसे ‘चेतावनी’ दे आई हूं.’’
‘‘कैसी ‘चेतावनी’?’’ मैं चौंक पड़ी.
‘‘मैं ने साफ कहा कि अगर उस के मन में खोट नहीं है तो वह सगाई कर के ही विदेश जाएगा वरना मैं समझ लूंगी कि अब तक मैं एक अमीरजादे के हाथ की कठपुतली बन मूर्ख बनती रही हूं.’’
‘‘तू ने ऐसा सचमुच कहा?’’ मेरी हैरानी और बढ़ी.
‘‘आंटी, मैं ने तो यह भी कह दिया कि अगर उस ने मेरी इच्छा नहीं पूरी की तो उस के जहाज के उड़ते ही मैं अपने मम्मीपापा को अपना रिश्ता उन की मनपसंद जगह करने की इजाजत दे दूंगी.’’

एक पल को रुक कर अर्चना फिर बोली, ‘‘आंटी, उस से प्रेम कर के मैं ने कोई गुनाह नहीं किया है जो मैं अब शादी करने को उस के सामने गिड़गिड़ाऊं. अगर मेरा चुनाव गलत है तो मेरा उस से अभी दूर हो जाना ही बेहतर होगा.’’

‘‘मैं तुम से पूरी तरह सहमत हूं, बेटी,’’ मैं ने उसे अपनी छाती से लगा लिया और बोली, ‘‘दोस्ती और प्रेम के मामले में जो दौलत को महत्त्व देते हैं वे दोस्त या प्रेमी बनने के काबिल नहीं होते.’’
‘‘आप का बहुत बड़ा सहारा है मुझे. अब मैं किसी भी स्थिति का सामना कर लूंगी, मीना आंटी,’’ उस ने मुझे जोर से भींचा और हम दोनों अपने आंसुओं से एकदूसरे के कंधे भिगोने लगीं.

वैसे अर्चना की प्रेम कहानी का अंत बढि़या रहा. अपने विदेश जाने से एक सप्ताह पहले संदीप मातापिता के साथ अर्चना के घर पहुंच गया. अर्चना की जिद मान कर सगाई की रस्म पूरी कर के ही विदेश जाना उसे मंजूर था.

अगले दिन पार्क में मेरी उन दोनों से मुलाकात हुई. मेरे पैर छू कर संदीप ने पूछा, ‘‘मीना आंटी, मैं सगाई या अर्चना को अपने घर वालों से मिलाना टालता रहा, इस कारण आप ने कहीं यह अंदाजा तो नहीं लगाया कि मेरी नीयत में खोट था?’’

‘‘बिलकुल नहीं,’’ मैं ने आत्मविश्वास के साथ झुठ बोला, ‘‘मैं ने जो किया, वह यह सोच कर किया कि कहीं तुम नासमझ में अर्चना जैसे हीरे को न खो बैठो.’’
‘‘थैंक यू, आंटी,’’ वह खुश हो गया.

एक पल में ही मैं मीना आंटी से डार्लिंग आंटी बन गई. अर्चना मेरे गले लगी तो लगा कि बेटी विदा हो रही है.

लेखक : अवनीश शर्मा

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