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Parenting Tips : बच्‍चों में तुलना करने का साइड इफेक्‍ट समझें मम्‍मीपापा

Parenting Tips : मौम, डैड आप हमेशा से दीदी से ज्यादा प्यार करते हो, उन्हें हर बात में इंपौर्टेन्स देते हो, कहीं जाना हो तो आप उन से ही पूछते हो, क्या खाना है- इस के लिए भी दीदी की चौइस पूछते हो, वो आप की फेवरेट और बेस्ट हैं, आप ने उन्हें हमेशा उन के बड़े होने का फायदा दिया है, दीदी जितना मरजी गलत करें वो कभी गलत नहीं होतीं, आप उन्हें कुछ नहीं कहते, हमेशा मुझे ही गलत कहते हो. आखिर, आप ऐसा क्यों करते हो?
ऊपर लिखे डायलौग्स वो हैं जो अकसर उन युवाओं के मुंह से सुनने को मिलते हैं जिन्हें बचपन से मन ही मन में यह लगता है कि उन के पेरैंट्स उन के सिबलिंग और उन में भेदभाव करते हैं. और वे ये डायलौग्स कभी मजाक में, कभी शिकायत में, कभी रो कर, कभी हंस कर तो कभी गुस्सा हो कर बोलते हैं और युवावस्था तक आतेआते उन का अपने पेरैंट्स के साथ रिश्ता इतना खराब हो जाता है कि कई बार वे अपने पेरैंट्स के साथ डिस्टेंस तक बना लेते हैं. उन्हें विश्वास नहीं होता कि पेरैंट्स अपने ही 2 बच्चों के साथ ऐसा भेदभाव कैसे कर लेते हैं.

हमेशा पेरैंट्स ही होते हैं कल्प्रिट

पेरैंट्स का काम होता है अपने बच्चों के बीच प्यार और अपनापन बनाए रखना. लेकिन पेरैंट्स अपने फायदे के लिए एक बच्चे को अच्छा दूसरे को बुरा, एक को सही दूसरे को गलत बोलबोल कर न केवल दोनों बच्चों के बीच कभी न टूटने वाली दीवार खड़ी कर देते हैं बल्कि अपने लिए भी बच्चे के मन में जहर भर देते हैं जो बचपन से ले कर पूरी ज़िंदगी बच्चे को अंदरअंदर खोखला कर देता है.

गुप्ताजी के 2 बेटे हैं रोहन और राजीव. (प्राइवेसी के चलते चरित्र के नाम बदल दिए गए हैं) रोहन बचपन से ले कर उस के खुद के बच्चे बड़े होने तक अपने पेरैंट्स के साथ रहा. उन के हर सुखदुख में साथ खड़ा रहा. अपनी, अपने बच्चों, वाइफ की इच्छाओं को कभी इंपौर्टेन्स नहीं दी. वहीं, दूसरा बेटा राजीव 12वीं कक्षा पास करने के बाद से अलग रहा. शादी के बाद भी अलग रहा. साल में एकदो बार मेहमान की तरह आता, पेरैंट्स की तरफ कभी कोई जिम्मेदारी नहीं निभाई लेकिन राजीव सदा गुप्ताजी का लाड़ला और फेवरेट बना रहा.

बचपन से गुप्ताजी ने राजीव को रोहन से अधिक प्यार, केयर, इंपौर्टेन्स दी. रोहन को कभी उस के हिस्से का प्यार, सम्मान नहीं दिया और आखिर में भी अपने फेवरेट बेटे राजीव के नाम अपनी पूरी प्रौपर्टी कर दी. गुप्ताजी के बचपन से चले इस फेवरेटिज्म के गेम के चलते आज रोहन ने पिता से रिश्ता तोड़ लिया है, भाई राजीव से उस की कोई बोलचाल नहीं है. आज रोहन के मन में अपने पिता के लिए जहर भरा हुआ है और वह अपनी स्थिति के लिए अपने पिता को कल्प्रिट यानी अपराधी मानता है.

इन सिग्नल्स से जान जाएं कि पेरैंट्स आप के साथ भेदभाव कर रहे हैं-

  1. आप के सिबलिंग को ‘मेरा शोना, मेरा बच्चा’ और आप को आप के नाम से पुकारना इस बात का सिग्नल है कि आप के पेरैंट्स आप में और आप के सिबलिंग में भेदभाव करते हैं.
  2. अगर आप के पेरैंट्स हमेशा आप से पहले आप के सिबलिंग को खाना खाने की कोई चीज औफर करते हैं तो यह संकेत है कि वे आप के और आप के सिबलिंग के बीच फेवरेटफेवरेट का गेम खेल रहे हैं.
  3.  सिर्फ एक ही बच्चे से बारबार घर के हर काम कराना, उसे ही काम के लिए आवाज लगाना भेदभाव का संकेत होता है.
  4.  घर में कुछ भी गलत काम होने, जैसे कुछ सामान टूट जाने, कुछ सामान नहीं मिलने पर बिना जाने व बिना पता लगाए कि गलती किस की है, हमेशा एक ही बच्चे को डांटना, गलत काम के लिए ब्लेम करना इस बात का संकेत है कि पेरैंट्स आप के साथ भेदभाव कर रहे हैं.
  5. अपने बच्‍चे की सफलता और उपलब्धियों के बारे में बात करना सामान्य बात है लेकिन अगर कोई पेरैंट्स सिर्फ अपने किसी एक बच्‍चे के बारे में ही हमेशा बात करते हैं तो यह किसी भी पेरैंट्स का फेवरेटफेवरेट गेम खेलने का संकेत है.
  6. अगर आप के पेरैंट्स आप के सिबलिंग के साथ ज्यादा समय बिताते हैं, उस के साथ रह कर ज्‍यादा खुश रहते हैं, उस के साथ अपनी सारी बातें शेयर करते हैं तो यह आप के पेरैंट्स की तरफ से आप के साथ भेदभाव होने का संकेत है.

संभल जाएं पेरैंट्स वरना होंगे निम्न परिणाम

कुछ महीने पहले पुणे की एक लड़की ने आत्महत्या कर ली और अपने पेरैंट्स के लिए एक नोट छोड़ा जिस में लिखा था कि उस के पेरैंट्स उस से प्यार नहीं करते हैं, उस के सिबलिंग को ज्यादा प्यार करते हैं. जांच अधिकारी ने बताया कि जांच से पता चला कि उस के मातापिता ने लड़की को अनदेखा कर दिया था क्योंकि वे उस के छोटे भाई पर अधिक ध्यान देते थे. उस के सुसाइड नोट से भी यही बात सामने आई कि उस के मातापिता ने उस की उपेक्षा की है.
इस दुखद घटना से यह बात साबित होती है कि पेरैंट्स का अपने किसी एक बच्चे के प्रति ज्यादा ध्यान, लाड़प्यार दूसरे बच्चे के मन पर कितना गहरा असर करती है जिसे पेरैंट्स सामान्य बात समझते हैं. पैरेंट्स के लिए उन के सभी बच्‍चे एकसमान होने चाहिए और उन्‍हें अपने बच्‍चों में फेवरेट्स का गेम नहीं खेलना चाहिए वरना आगे चल कर यह उन्हें बहुत महंगा पड़ सकता है. आप का यह व्यवहार न केवल 2 भाई या बहन के रिश्ते को बिगाड़ेगा बल्कि आप के लिए उन का प्यार और सम्मान हमेशा के लिए कहीं खो जाएगा.

 न खड़ी करें दोनों बच्चों के बीच इनविजिबल दीवार

22 वर्षीया रिया और उस की छोटी बहन सिया में 2 साल का अंतर है. रिया सिया से बहुत प्यार करती थी लेकिन जब धीरेधीरे उसे महसूस होने लगा कि उस के पेरैंट्स सिया से ज्यादा प्यार करते हैं, हर बात में सिया को इंपौर्टेंस देते हैं तो वह मन ही मन सिया से नफरत करने लगी, नफरत भी इस हद तक कि वह कई बार गुस्से में उस की कोई ड्रैस या उस का कालेज का प्रोजैक्ट तक खराब कर देती. वह अपने पेरैंट्स को तो कुछ कह नहीं पाती थी, इसलिए अपना गुस्सा और चिड़चिड़ाहट सिया का नुकसान कर के निकालती. सोचिए जिन 2 बहनों को एकदूसरे का सपोर्ट सिस्टम होना चाहिए था, आज पेरैंट्स के फेवरेटिज्म के कारण उन दोनों के बीच कड़वाहट की दीवार खड़ी हो गई.

सिबलिंग बनें एकदूसरे की ताकत

आज के समय में जब परिवार सिकुड़ते जा रहे हैं, ऐसे में फेमिली में सिबलिंग का होना बहुत बड़ी बात है क्योंकि पेरैंट्स के जाने के बाद सिबलिंग ही होते हैं जो एकदूसरे के सुखदुख के साथी होते हैं. जरूरत पड़ने पर वे दूसरे की ताकत बन सकते हैं. अगर एक सिबलिंग इस बात को समझता है कि उस के पेरैंट्स उस में और उस के सिबलिंग में भेदभाव करते हैं तो उन्हें न केवल एकदूसरे को सपोर्ट करना चाहिए बल्कि उन्हें पेरैंट्स से मिल कर इस भेदभाव के खिलाफ लड़ना भी चाहिए ताकि उन्हें उन की गलती का एहसास हो.
जब भी पैरेंट्स बच्चों में भेदभाव करते हैं तो कई बार कुछ युवा कुछ कह नहीं पाते लेकिन उन का नाजुक मन यह भेदभाव अपने दिल में महसूस करता है और इस का असर कुछ इस तरह दिखाई पड़ता है-

इंफीरिऔरिटी कौम्प्लैक्स का आना

जब पेरैंट्स अकसर ही अपने एक बच्चे को अच्छा व सही और दूसरे को बुरा व गलत बताते रहते हैं तो उस के मन में हीनभावना यानी इंफीरिऔरिटी कौम्प्लैक्स पैदा हो जाता है. उस के मन में अकेलेपन की भावना घर कर जाती है. ऐसे में वह तनाव में आ सकता है जो उस के विकास में एक बड़ा बाधक बन सकता है.

बदले की भावना

भेदभाव होने की फीलिंग के चलते बच्चे चिड़चिड़े हो जाते हैं और वे पेरैंट्स की बातों को इग्नोर कर, उन की बातें न मान कर और कभीकभी तो पेरैंट्स के कहने के ठीक उलटा कर के वे अपना बदला लेते हैं.

Inspirational Story : मेरे पापा की शादी

Inspirational Story : चांदीलाल आरष्टी के एक कार्यक्रम से स्कूटी से वापस लौट रहे थे. उन्हें घर वापसी में देरी हो गई थी. जैसे ही ‘सदर चैराहे‘ पर पहुंचे, तो उन की नजर शराब की दुकान पर पड़ी. उन्हें तुरंत ध्यान आया कि घर पर शराब की बोतल खाली हो गई थी और शाम की खुराक के लिए कुछ नहीं है.

उन्होंने स्कूटी एक ओर खड़ी की और अंगरेजी शराब का एक पव्वा खरीद लिया, जो उन की 2-3 दिन की खुराक थी. जब वे स्कूटी से घर की ओर चले तो उन्हें ध्यान आया कि पुलिस विभाग में भरती होने से पहले वे शराब को हाथ तक नहीं लगाते थे. फिर अपने विभाग के साथियों के साथ उठतेबैठते उन्हें शराब पीने की लत लग गई थी. सिस्टम में कई चीजें अपनेआप होने लगती हैं और उन से हम कठोर प्रण कर के ही बच सकते हैं. अब तो पीने की आदत ऐसी हो गई है कि शाम को बिना पिए निवाला हलक से नीचे उतरता ही नहीं.

घर पहुंच कर चांदीलाल ने अपने खाली मकान का ताला खोला. रसोई से ताजा खाने की गंध सी आ रही थी. इस का मतलब था कि घर की नौकरानी स्वीटी खाना बना कर जा चुकी थी. आनंदी के गुजरने के बाद मुख्य दरवाजे और रसोई की चाबी स्वीटी को दे दी गई थी, जिस से वह समय से खाना बना कर अपने घर जा सके.

आनंदी के बिना घर वीरान सा हो गया था. यही घर, जिस में आनंदी के रहते कैसी चहलपहल सी रहती थी, रिश्तेदारों और जानपहचान वालों का आनाजाना लगा ही रहता था, अब कैसा खालीखाली सा रहता है. घर का खालीपन कैसा काटने को दौड़ता है. सबकुछ होते हुए भी, कुछ भी न होने का एहसास होता है. केवल और केवल अकेला आदमी ही इस एहसास को परिभाषित कर सकता है. किसी ने सच कहा है ‘घर घरवाली का‘. वह है तो घर है, नहीं तो मुरदाघाट.

चांदीलाल को अब शराब की खुराक लेने की जल्दी थी. उन्होंने पैंटशर्ट उतारी और नेकरबनियान पहने हुए ही पैग तैयार करने लगे. तभी उन्हें ध्यान आया कि वे जल्दबाजी में पानी लाना तो भूल ही गए हैं. पुरानी आदतें मुश्किल से ही मरती हैं. आदतन, उन्होंने आवाज लगाई, ‘‘आनंदी, जरा एक गिलास पानी तो लाना.‘‘

लेकिन जब कुछ देर तक पानी नहीं आया, तो चांदीलाल ने रसोई की तरफ देखा. वहां कोई नहीं था. अब उन्हें अपनी गलती का एहसास हुआ, फिर अफसोस हुआ और इस के बाद आनंदी को याद कर उन की आंखें भर आईं. वह उठे और पानी लेने के लिए खुद रसोई की तरफ गए.

एक पैग लेने के बाद, वे सोचने लगे कि अपनी मां की 13वीं के बाद मंझली बेटी रजनी ने उन से कितनी जिद की थी जयपुर चलने की. भला क्या कहा था उस ने, ”पापा, जयपुर में हमारे पास कितना बड़ा मकान है, एक कमरे में आप रह लेना. आप का अकेलापन भी दूर हो जाएगा और आप की देखभाल भी अच्छे से हो जाएगी.”

यही बात नागपुर में रहने वाली बड़ी बेटी सलोनी और इसी शहर में रहने वाली सब से छोटी बेटी तारा ने भी कही थी. फिर वे सोचने लगे, ‘‘मैं भी कितना दकियानूसी और रूढ़िवादी हूं. भला इस जमाने में बेटाबेटी में क्या फर्क है? कितने ही लोग हैं, जो बेटा न होने के कारण अपना बुढ़ापा बेटी और दामाद के घर गुजारते हैं और एक मैं हूं पुराने खयालातों का, जो अपनी बेटी के घर का पानी भी पीना पसंद नहीं करता, उन के यहां रहना तो बहुत दूर की बात.

चांदीलाल का दूसरा पैग बनाने का मन तो नहीं था, लेकिन अब शराब किसी दोस्त की संगति की तरह अच्छी लगती थी. शराब पीना और फिर नशे में बड़बड़ाना अकेलेपन को दूर करने का एक अच्छा जरीया भी तो था. शराब पी कर खाना खाने के बाद नींद भी तो अच्छी आती थी. फिर वह खाना खाने के बाद थकान और नशे की धुन में नींद के आगोश में चले गए.

चांदीलाल पूजापाठी थे. उन की सुबह स्नानध्यान से शुरू होती. नौकरी से रिटायर होने के बाद कोई खास काम तो था नहीं, अखबार पढ़ते, टीवी देखते और पौधों में पानी लगाते. कभी कोई मेहमान आ जाता तो उस के साथ गपशप कर लेते. लेकिन कुछ जानपहचान के लोग ऐसे थे, जो अब कुछ ज्यादा ही आने लगे थे. ये वे मेंढक थे, जो मौका पा कर बारिश का मजा लेना चाहते थे.

ऐसा ही एक मेहमान था चांदीलाल का दूर का भतीजा शक्ति सिंह. वह प्रोपर्टी डीलिंग का काम करता था. वह जब भी आता घुमाफरा कर चांदीलाल से उन के मकान की चर्चा करता, ‘‘चचा, आप का यह मकान 50 लाख रुपए से कम का नहीं है. बेटियां तो आप की बाहर रहती हैं, आप के बाद इस मकान का क्या होगा?‘‘

‘‘क्या होगा? मेरे मरने के बाद मेरी प्रोपर्टी पर मेरी बेटियों का अधिकार होगा,‘‘ चांदीलाल उसे समझाते.

‘‘लेकिन, जयपुर और नागपुर वाली बेटियां तो यहां लौट कर आने वाली नहीं. रही बात तारा की, तो उस के पास तो खुद इस शहर में इतना बड़ा मकान है, वह भी आधुनिक तरीके से बना हुआ. वह इस पुराने मकान का क्या करेगी?‘‘

‘‘कोई कुछ करे या न करे, शक्ति तुम से मतलब?‘‘ चांदीलाल कुछ तल्ख लहजे में बोले.

‘‘अरे, आप तो नाराज होने लगे. मैं तो आप की मदद करना चाहता था, आप के मकान की सही कीमत लगा कर.‘‘

‘‘फिर मैं कहां रहूंगा, शक्ति? क्या तुम ने यह कभी सोचा है?‘‘ चांदीलाल ने सवाल दागा.

‘‘चचा, अगर कुछ पैसे ले कर आप यह मकान मेरे नाम कर दो, तो आप मेरे ही पास रह लेना. आखिर मैं आप का भतीजा हूं, बिलकुल आप के बेटे जैसा. आप के बुढ़ापे में आप की सेवा मैं ही कर दूंगा.‘‘

चांदीलाल कोई दूध पीते बच्चे तो थे नहीं, जो शक्ति सिंह की बात का मतलब न समझ रहे हों. उन्होंने नहले पे दहला जड़ते हुए कहा, ”शक्ति, तुम्हें मेरी सेवा की इतनी ही चिंता है तो ऐसे ही मेरी सेवा कर दो, अपने नाम क्या मकान लिखवाना जरूरी है. और वैसे भी तुम को एक बात और बता दूं, तुम जैसों से ही बचने के लिए आनंदी पहले ही इस मकान की वसीयत मरने से बहुत पहले ही अपनी बेटियों के नाम कर चुकी थी, क्योंकि आनंदी को इस मामले में मुझ पर भी विश्वास नहीं था. वह सोचती थी कि शक्ति सिंह जैसा कोई व्यक्ति कहीं मुझे अध्धापव्वा पिला कर नशे की हालत में मुझ से यह प्रोपर्टी अपने नाम न करवा ले. शक्ति सिंह तुम्हें देख कर आज सोचता हूं कि आनंदी का फैसला कितना सही था?”

शक्ति सिंह समझ गया कि यहां उस की दाल गलने वाली नहीं. वह बहाना बना कर चलने के लिए उठा, तो चांदीलाल ने कटाक्ष करते हुए कहा, ”अरे बेटा, चाय तो पीता जा. अभी हमें सेवा का मौका दे, फिर तुम हमारी सेवा कर लेना.”

लेकिन इतनी देर में शक्ति सिंह अपनी कार में बैठ चुका था और उस दिन के बाद वह अपने इन चचा से मिलने फिर कभी नहीं आया.

कुछ ही देर बाद चांदीलाल का एक पुराना परिचित चंदन आ धमका. वह किसी पक्के इरादे से आया था, इसलिए चांदीलाल से लगभग सट कर बैठा. फिर बात को घुमाफिरा कर अपने इरादे पर ले आया.

‘‘भाईसाहब, अकेलापन भी बहुत बुरा होता है. खाली घर तो काटने को दौड़ता है,‘‘ चंदन ने भूमिका बनानी शुरू की.

‘‘हां चंदन, यह तो है. लेकिन क्या करें, किस ने सोचा था कि आनंदी इतनी जल्दी चली जाएगी. बस अब तो यों ही जिंदगी गुजारनी है. अब किया ही क्या जा सकता है?‘‘

‘‘नहीं भाईसाहब, यह जरूरी तो नहीं कि जिंदगी अकेले काटी जाए,‘‘ चंदन ने अपनी बात आगे बढ़ाई.

‘‘चंदन, और इस उम्र में करना क्या है? तीनों बेटियों का घर अच्छे से बसा हुआ है. वे सुखी हैं तो मैं भी सुखी हूं.‘‘

चंदन तो अपने मकसद से आया था. वह बोला, ”अरे भाईसाहब, क्या कहते हो? इस उम्र में क्या नहीं किया जा सकता? मर्द कभी बूढ़ा होता है क्या?”

उस की बात पर चांदीलाल ने हंसते हुए कहा, ‘‘चंदन, तुम भी अच्छा मजाक कर लेते हो. अब तो तुम कवियों और दार्शनिकों की तरह बात करने लगे हो. मैं कोई शायर नहीं कि कल्पना लोक में जिऊं. मैं ने पुलिस विभाग में नौकरी की है. मेरा वास्तविकताओं से पाला पड़ा है, मैं पक्का यथार्थवादी हूं. 60 साल की उम्र में सरकार रिटायर कर देती है और मैं 65 पार कर चुका हूं.‘‘

लेकिन चंदन हार मानने वालों में से नहीं था. उस ने कहा, ‘‘भाईसाहब, इस उम्र में तो न जाने कितने लोग शादी करते हैं. आप भी पीछे मत रहिए, शादी कर ही लीजिए. एक लड़की मतलब एक औरत मेरी नजर में है, यदि आप चाहो तो बात… ‘‘

‘मतलब चंदन, तुम्हें कोई शर्मलिहाज नहीं. भला, मैं इस उम्र में दूसरी शादी कर के समाज में क्या मुंह दिखलाऊंगा? मेरी बेटियां और दामाद क्या सोचेंगे?’

अब चंदन चांदीलाल के और निकट सरक आया और आगे बोला, ‘अरे भाईसाहब, यह जमाना तो न जाने क्याक्या कहता है? लेकिन यह जमाना यह नहीं जानता कि अकेले जीवन काटना कितना मुश्किल होता है?’

”कितना भी मुश्किल हो चंदन, लेकिन इस उम्र में दूसरा विवाह करना शोभा नहीं देता.”

‘‘भाईसाहब, अभी तो आप के हाथपैर चल रहे हैं, लेकिन उस दिन की तो सोचिए, जब बुढ़ापे और कमजोरी के कारण आप का चलनाफिरना भी मुश्किल हो जाएगा. अपनी रूढ़िवादी सोच के कारण आप अपनी बेटियों के पास तो जाओगे नहीं. अपने भाईभतीजों से भी आप की बनती नहीं. तब की सोचिए न, तब क्या होगा?‘‘ चंदन ने आंखें चौड़ी करते हुए प्रश्नवाचक दृष्टि से कहा.

यह सुन कर चांदीलाल सोचने को मजबूर हुए. उन्हें लगा कि चंदन कह तो सच ही रहा है, लेकिन वह अपनेआप को संभालते हुए बोले, ‘‘चंदन, तब की तब देखी जाएगी.”

‘‘देख लो भाईसाहब. जरूरी नहीं, आप को सरोज जैसी अच्छी और हसीन औरत फिर मिल जाए. अच्छा, एक काम करो, एक बार बस आप सरोज से मिल लो. मैं यह नहीं कह रहा कि आप उस से शादी ही करो. लेकिन, एक बार उस से मिलने में क्या हर्ज है?‘‘

‘‘मिलने में तो कोई हर्ज नहीं, लेकिन यदि मेरी बेटियों को यह सब पता चला तो…?‘‘ चांदीलाल ने प्रश्न किया.

‘‘उन्हें तो तब पता चलेगा, जब हम उन्हें पता चलने देंगे,‘‘ चंदन ने बड़े विश्वास के साथ कहा. तब तक स्वीटी उन के लिए चाय बना कर ले आई थी. चाय पी कर चंदन चला गया.

फिर चंदन एक दिन सरोज को चुपचाप कार में बैठा कर चांदीलाल के घर ले आया. चांदीलाल को सरोज पहली ही नजर में भा गई. वे सोचने लगे, ‘बुढ़ापे में इतना हसीन साथी मिल जाए तो बुढ़ापा आराम से गुजर जाए.‘

महिलाओं के आकर्षणपाश में बड़ेबड़े ऋषिमुनि फंस गए, चांदीलाल तो फिर भी एक साधारण से इनसान थे, आखिर किस खेत की मूली थे.
अब बात करवाने में चंदन तो पीछे रह गया, चांदीलाल खुद ही मोबाइल पर रोज सरोज से बतियाने लगे. जब चंदन और सरोज की सारी गोटियां फिट बैठ गईं, तो एक दिन चंदन ने चांदीलाल से कहा, ‘‘भाईसाहब, एक बार सलोनी, रजनी और तारा बिटिया से भी बात कर लेते.‘‘

लेकिन, अब तक तो चांदीलाल के सिर पर बुढ़ापे का इश्क सवार हो चुका था. वे किसी भी हाल में सरोज को नहीं खोना चाहते थे. चंदन की बात को सुन कर वे एकदम से बोले, ‘‘नहीं, नहीं, चंदन. मैं अपनी बेटियों को अच्छे से जानता हूं, वे सरोज को घर में घुसने भी नहीं देंगी. पहले सरोज से कोर्टमैरिज हो जाने दो, फिर देखा जाएगा.‘‘

चंदन समझ गया कि चांदीलाल के इश्क का तीर गहरा लगा है. उस की योजना पूरी तरह से सफल हो रही है.

फिर एक दिन चंदन योजनाबद्ध तरीके से सरोज को आमनेसामने की बातचीत कराने के बहाने चांदीलाल के घर ले कर पहुंचा. बातचीत पूरी होने के बाद चंदन ने कहा, ‘‘ठीक है भाईसाहब, मैं चलता हूं. रात भी बहुत हो चुकी है. आज रात सरोज यहीं रहेगी. आप दोनों एकदूसरे को अच्छे से समझ लो, मैं सुबह को सूरज उगने से पहले ही यहां से ले जाऊंगा.‘‘

चांदीलाल को भला इस में क्या एतराज हो सकता था, वह तो खुशी के मारे गदगद हो गए.

‘‘सुना है, आप शाम को ड्रिंक भी करते हैं.‘‘

‘‘हां सरोज, लेकिन तुम्हें कैसे पता?‘‘

‘‘चंदन ने हमें सबकुछ बता रखा है आप के बारे में,‘‘ सरोज ने चांदीलाल के कंधे पर हाथ रखते हुए कहा.

‘‘अच्छा… तो फिर पानी ले आओ, मैं अपना पैग बना लेता हूं,‘‘ चांदीलाल ने सरोज का हाथ स्पर्श करते हुए कहा.

‘‘आप क्यों कष्ट उठाइएगा. पैग भी हम ही बना देंगे. लेकिन, एक बात पूछनी थी, पूछूं?‘‘

‘‘क्या बात करती हो, सरोज? एक नहीं दस पूछो,‘‘ चांदीलाल ने प्यारभरी नजरों से सरोज को निहारते हुए कहा.

‘‘आप हमारे लिए क्या करोगे?‘‘

‘‘सरोज, बड़ी बात तो नहीं. जो कुछ मेरा है, वह सब तुम्हारा ही तो है. बस, इस मकान को छोड़ कर, इस की वसीयत बेटियों के नाम है.‘‘

यह सुन कर सरोज कुछ निराश हुई और पानी लेने के बहाने रसोई में गई. वहां जा कर उस ने मोबाइल से चंदन से बात करते हुए कहा, ‘‘चंदन, यह मकान बुड्ढे के नाम नहीं है.‘‘

उधर से आवाज आई, ‘‘तो फिर अपना काम बना कर रफूचक्कर हो जा, नहीं तो बुड्ढा तेरे से कोर्टमैरिज कर के ही मानेगा.‘‘

उधर चांदीलाल बेचैन हो रहा था. सरोज के पानी लाते ही उन्होंने पूछा, ‘‘सरोज, अपना हाथ आगे बढ़ाओ.‘‘

सरोज ने अपना हाथ आगे बढ़ाया, तो उस की उंगली में सोने की अंगूठी पहनाते हुए चांदीलाल ने कहा, ‘‘सरोज, यह आनंदी की अंगूठी है. अब तुम ही मेरी आनंदी हो.‘‘

सरोज ने चांदीलाल का पैग बनाते हुए नशीली आंखों से कहा, ‘‘लीजिए, जनाब की लालपरी तैयार है. लेकिन पी कर बेसुध मत हो जाइएगा, कभी किसी काम के न रहिएगा.‘‘

चांदीलाल इन शब्दों का अर्थ अच्छे से समझते थे. लेकिन यह क्या? वह तो पहला पैग पीते ही बेसुध हो गए.

सुबह के समय जब उन की आंखें खुली तो वह अभी भी अपने को नशे की चपेट में महसूस कर रहे थे. टायलेट जाते समय भी उन के पैर लड़खड़ा रहे थे. उन्हें ध्यान आया कि शराब पी कर तो वे कभी ऐसे बेसुध नहीं हुए. टायलेट से आ कर वे सरोज को तलाशने लगे. लेकिन वह कहीं हो तो दिखाई दे. इधरउधर नजर डाली तो देखा, सेफ और अलमारियां खुली पड़ी हैं. उन्हें अब समझते देर न लगी कि उन के साथ क्या हुआ है. वे लुट गए. घर में रखी नकदी और जेवरात गायब थे. सरोज का फोन भी नहीं लग रहा था. चांदीलाल का सारा नशा और इश्क एक ही झटके में काफूर हो चुका था.

उन्होंने चंदन को फोन लगा कर सारी बात बताई. उस ने कहा, ‘‘चांदीलाल सुन, मेरा उस सरोज से कोई लेनादेना नहीं. मैं ने तो बस तुम दोनों की मुलाकात कराई थी. इस मसले पर कहीं जिक्र मत करना, नहीं तो बदनामी तुम्हारी होगी. कहो तो तुम्हारी नीच हरकत का जिक्र तुम्हारी बेटियों से करूं कि इस उम्र में तुम अनजानी औरतों को अंगूठी पहनाते फिर रहे हो.‘‘

‘‘नहीं, नहीं, ऐसा मत करना, चंदन. नहीं तो मेरी इज्जत खाक में मिल जाएगी,‘‘ चांदीलाल ने लगभग गिड़गिड़ाते हुए कहा.

‘‘तो फिर अपनी जबान बंद रखना, नहीं तो बेटियों और दामाद सब के सामने तुम्हारी पोल खोल कर रख दूंगा,‘‘ चंदन ने लगभग धमकी देते हुए कहा.

चांदीलाल के पास जबान बंद रखने के सिवा और कोई चारा न था.

कुछ दिनों के बाद चांदीलाल का जन्मदिन था. इस बार तीनों बहनें सलोनी, रजनी और तारा ने यह फैसला किया था कि वे तीनों मिल कर पापा का जन्मदिन उन के पास आ कर मनाएंगी.

जन्मदिन वाले दिन वे सभी बहनें पापा के पास पहुंच गईं. सलोनी अपने साथ एक अधेड़ उम्र की महिला को भी ले कर आई थी. तीनों बहनें उस महिला को आंटी कह कर पुकार रही थीं.चांदीलाल ने सलोनी से पूछा, ‘‘बिटिया सलोनी, यह तुम्हारी आंटी कौन है?‘‘

‘‘पापा, पहले ये आंटी वृद्धाश्रम में रहती थीं, लेकिन अब ये हमारे साथ रहती हैं. आप को पसंद हैं क्या, हमारी यह आंटी?‘‘

‘‘अरे सलोनी बेटी, कैसी बात करती हो? मैं ने तो बस यों ही पूछ लिया था. इस में पसंदनापसंद की क्या बात है?‘‘

‘‘नहीं पापा, देख लो. यदि आंटी आप को पसंद हो, तो हम इन को यहीं छोड़ जाएंगे. इन का भी यहां कोई नहीं है. इन के बच्चे इन्हें छोड़ कर विदेशों में जा बसे हैं. आप का घर ये अच्छे से संभाल लेंगी,‘‘ सलोनी ने मुसकराते हुए कहा.

‘‘अरे सलोनी बेटा, ऐसे बातें कर के क्यों मेरे साथ मजाक कर रही हो?‘‘

तभी मंझली बेटी रजनी ने पापा के गले में हाथ डाल कर कहा, ‘‘पापा, सलोनी दीदी मजाक नहीं कर रही हैं. आप अकेले रहते हैं, आप के सहारे के लिए भी तो कोई न कोई चाहिए. क्यों पापा?‘‘

‘‘वह तो ठीक है, लेकिन बेटा…‘‘

‘‘लेकिनवेकिन कुछ नहीं पापा, हमें भी दूसरी मम्मी चाहिए, बस,‘‘ सब से छोटी बेटी तारा ने छोटे बच्चों की तरह मचलते हुए कहा.

‘‘नहीं बेटी, तारा. इस उम्र में ये सब बातें शोभा नहीं देतीं.‘‘

‘‘अच्छा पापा, फिर वो सरोज आंटी… जिन्हें आप मम्मी की यह अंगूठी पहनाए थे… और जो आप को धोखा दे कर लूट कर भाग गई… हमारी वाली ये सुमन आंटी ऐसी नहीं हैं.‘‘

तारा के यह कहते ही चांदीलाल को सांप सूंघ गया. उन्हें यह भी समझ में नहीं आ रहा था कि सरोज को पहनाई गई अंगूठी तारा के पास कहां से और कैसे आई?

पापा को अचंभित होता देख तारा बोली, ‘‘पापा, आप को अचंभित होने या फिर हम से कुछ भी छुपाने की कोई जरूरत नहीं है. स्वीटी हमें सब बातें बता देती थी. उस ने हमें सरोज को ले कर आगाह किया था. हम पूरी तरह से उस दिन चैकन्ने हो गए थे, जिस दिन सरोज यहां रुकी थी. हमें आप की दूसरी शादी से कोई एतराज नहीं था. लेकिन, हम इस बात से हैरान थे कि आप ने हम से इस बात का जिक्र तक नहीं किया.‘‘

‘‘इस का मतलब कि तुम सरोज को जानते हो?‘‘

‘‘पापा, मैं और आप के दामाद मुकेश आप से उस दिन मिलने ही आ रहे थे. जब हम आए तो सरोज लूटपाट कर भागने ही वाली थी कि हम ने उसे चोरी करते हुए रंगेहाथ पकड़ लिया. आप उस समय अचेत पड़े हुए थे. आप को पानी में घोल कर नशे की गोलियां दी गई थीं. हम ने उस से मम्मी की अंगूठी समेत सारा सामान वापस ले लिया था. थाने में इसलिए शिकायत नहीं की कि कहीं आप को कोर्टकचहरी के चक्कर न लगाने पड़ें. उस दिन सुबह आप का नशा उतरने तक हम घर में ही थे और सलोनी व रजनी के संपर्क में भी थे. उसी रात हम सब ने तुम्हारी दूसरी शादी करने की योजना बना ली थी, क्योंकि आप हमारे साथ तो रहने वाले हैं नहीं.‘‘

अभी चांदीलाल कुछ कहने वाले थे, लेकिन उस से पहले ही रजनी बोल पड़ी, ‘‘अब बताओ पापा, आप को सुमन आंटी पसंद हैं कि नहीं. अब आप यह भी नहीं कह सकते कि आप इस उम्र में विवाह नहीं करना चाहते.‘‘

चांदीलाल के पास रजनी की बात का कोई जवाब नहीं था. वह हलके से मुसकरा दिए. फिर गंभीर होते हुए वे बोले, ‘‘तुम्हारी आंटी से मैं शादी करने के लिए तैयार हूं, लेकिन मेरी एक शर्त है. मैं एक पुलिस वाला रहा हूं. मैं अपनी पुलिस की ड्यूटी अभी भी निभाऊंगा.‘‘

‘‘ मतलब, पापा?‘‘ तीनों बेटी एकसाथ बोलीं.

‘मतलब यह कि मैं चंदन और सरोज दोनों को जेल भिजवा कर ही रहूंगा, दोनों ही समाज के असामाजिक तत्व हैं.’

‘‘जैसे आप की मरजी, हमारे बहादुर पापा.‘‘तारा ने तभी अपनी मां आनंदी की अंगूठी पापा को पकड़ाई और चांदीलाल ने वह अंगूठी सुमन को पहना दी. अब पापा विधुर नहीं रह गए थे, बल्कि खुली सोच की बेटियों की वजह से एक विधवा सुमन भी सधवा बन गई थी.

Love Story In Hindi : कहां हो तुम आ जाओ

Love Story In Hindi :  ऋतु अपने कालेज के गेट के बाहर निकली तो उस ने देखा बहुत तेज बारिश हो रही है. ‘ओ नो, अब मैं घर कैसे जाऊंगी?’ उस ने परेशान होते हुए अपनेआप से कहा. इतनी तेज बारिश में तो छाता भी नाकामयाब हो जाता है और ऊपर से यह तेज हवा व पानी की बौछारें जो उसे लगातार गीला कर रही थीं. सड़क पर इतने बड़ेबड़े गड्ढे थे कि संभलसंभल कर चलना पड़ रहा था. जरा सा चूके नहीं कि सड़क पर नीचे गिर जाओ. लाख संभालने की कोशिश करने पर भी हवा का आवेग छाते को बारबार उस के हाथों से छुड़ा ले जा रहा था. ऐसे में अगर औटोरिक्शा मिल जाता तो कितना अच्छा होता पर जितने भी औटोरिक्शा दिखे, सब सवारियों से लदे हुए थे.

उस ने एक ठंडी सी आह भरी और पैदल ही रवाना हो गई, उसे लगा जैसे मौसम ने उस के खिलाफ कोई साजिश रची हो. झुंझलाहट से भरी धीरेधीरे वह अपने घर की तरफ बढ़ने लगी कि अचानक किसी ने उस के आगे स्कूटर रोका. उस ने छाता हटा कर देखा तो यह पिनाकी था. ‘‘हैलो ऋतु, इतनी बारिश में कहां जा रही हो?’’

‘‘यार, कालेज से घर जा रही हूं और कहां जाऊंगी.’’ ‘‘इस तरह भीगते हुए क्यों जा रही है?’’

‘‘तू खुद भी तो भीग रहा है, देख.’’ ‘‘ओके, अब तुम छाते को बंद करो और जल्दी से मेरे स्कूटर पर बैठो, यह बारिश रुकने वाली नहीं, समझी.’’

ऋतु ने छाता बंद किया और किसी यंत्रचालित गुडि़या की तरह चुपचाप उस के स्कूटर पर बैठ गई. आज उसे पिनाकी बहुत भला लग रहा था, जैसे डूबते को कोई तिनका मिल गया हो. हालांकि दोनों भीगते हुए घर पहुंचे पर ऋतु खुश थी. घर पहुंची तो देखा मां ने चाय के साथ गरमागरम पकौड़े बनाए हैं. उन की खुशबू से ही वह खिंचती हुई सीधी रसोई में पहुंच गई और प्लेट में रखे पकौड़ों पर हाथ साफ करने लगी तो मां ने उस का हाथ बीच में ही रोक लिया और बोली, ‘‘न न ऋ तु, ऐसे नहीं, पहले हाथमुंह धो कर आ और अपने कपड़े देख, पूरे गीले हैं, जुकाम हो जाएगा, जा पहले कपड़े बदल ले. पापा और भैया बालकनी में बैठे हैं, तुम भी वहीं आ जाना.’’ ‘भूख के मारे तो मेरी जान निकली जा रही है और मां हैं कि…’ यह बुदबुदाती सी वह अपने कमरे में गई और जल्दी से फ्रैश हो कर अपने दोनों भाइयों के बीच आ कर बैठ गई. छोटे वाले मुकेश भैया ने उस के सिर पर चपत लगाते हुए कहा, ‘‘पगली, इतनी बारिश में भीगती हुई आई है, एक फोन कर दिया होता तो मैं तुझे लेने आ जाता.’’

‘‘हां भैया, मैं इतनी परेशान हुई और कोई औटोरिक्शा भी नहीं मिला, वह तो भला हो पिनाकी का जो मुझे आधे रास्ते में मिल गया वरना पता नहीं आज क्या होता.’’ इतना कह कर वह किसी भूखी शेरनी की तरह पकौड़ों पर टूट पड़ी. अब बारिश कुछ कम हो गई थी और ढलते हुए सूरज के साथ आकाश में रेनबो धीरेधीरे आकार ले रहा था. कितना मनोरम दृश्य था, बालकनी की दीवार पर हाथ रख कर मैं कुदरत के इस अद्भुत नजारे को निहार रही थी कि मां ने पकौड़े की प्लेट देते हुए कहा, ‘‘ले ऋ तु, ये मिसेज मुखर्जी को दे आ.’’ उस ने प्लेट पकड़ी और पड़ोस में पहुंच गई. घर के अंदर घुसते ही उसे हीक सी आने लगी, उस ने अपनी नाक सिकोड़ ली. उस की ऐसी मुखमुद्रा देख कर पिनाकी की हंसी छूट गई.

वह ठहाका लगाते हुए बोला, ‘‘भीगी बिल्ली की नाक तो देखो कैसी सिकुड़ गई है,’’ यह सुन कर ऋ तु गुस्से में उस के पीछे भागी और उस की पीठ पर एक धौल जमाई. पिनाकी उहआह करता हुआ बोला, ‘‘तुम लड़कियां कितनी कठोर होती हो, किसी के दर्द का तुम्हें एहसास तक नहीं होता.’’

‘‘हा…हा…हा… बड़ा आया दर्द का एहसास नहीं होता, मुझे चिढ़ाएगा तो ऐसे ही मार खाएगा.’’ मिसेज मुखर्जी रसोई में मछली तल रही थीं, जिस की बदबू से ऋ तु की हालत खराब हो रही थी. उस ने पकौड़ों की प्लेट उन्हें पकड़ाई और बाहर की ओर लपकते हुए बोली, ‘‘मैं तो जा रही हूं बाबा, वरना इस बदबू से मैं बेहोश हो जाऊंगी.’’

मिसेज मुखर्जी ने हंसते हुए कहा, ‘‘तुम को मछली की बदबू आती है लेकिन ऋ तु अगर तुम्हारी शादी किसी बंगाली घर में हो गई, तब क्या करेगी.’’

बंगाली लोग प्यारी लड़की को लाली कह कर बुलाते हैं. पिनाकी की मां को ऋ तु के लाललाल गालों पर मुसकान बहुत पसंद थी. वह अकसर उसे कालेज जाते हुए देख कर छेड़ा करती थी. ‘‘ऋ तु तुमी खूब शुंदर लागछी, देखो कोई तुमा के उठा कर न ले जाए.’’

पिनाकी ने सच ही तो कहा था ऋ तु को उस के दर्द का एहसास कहां था. वह जब भी उसे देखता उस के दिल में दर्द होता था. ऋ तु अपनी लंबीलंबी 2 चोटियों को पीठ के पीछे फेंकते हुए अपनी बड़ीबड़ी और गहरी आंखें कुछ यों घूमाती है कि उन्हें देख कर पिनाकी के होश उड़ जाते हैं और जब बात करतेकरते वह अपना निचला होंठ दांतों के नीचे दबाती है तो उस की हर अदा पर फिदा पिनाकी उस की अदाओं पर मरमिटना चाहता है. पर ऋतु से वह इस बात को कहे तो कैसे कहे. कहीं ऐसा न हो कि ऋतु यह बात जानने के बाद उस से दोस्ती ही तोड़ दे. फिर उसे देखे बिना, उस से बात किए बिना वह जी ही नहीं पाएगा न, बस यही सोच कर मन की बात मन में लिए अपने प्यार को किसी कीमती हीरे की तरह मन में छिपाए उसे छिपछिप कर देखता है. आमनेसामने घर होने की वजह से उस की यह ख्वाहिश तो पूरी हो ही जाती है. कभी बाहर जाते हुए तो कभी बालकनी में खड़ी ऋतु उसे दिख ही जाती है पर वह उसे छिप कर देखता है अपने कमरे की खिड़की से.

‘‘पिनाकी, क्या सोच रहा है?’’ ऋतु उस के पास खड़ी चिल्ला रही थी इस बात से बेखबर कि वह उसी के खयालों में खोया हुआ है. कितना फासला होता है ख्वाब और उस की ताबीर में. ख्वाब में वह उस के जितनी नजदीक थी असल में उतनी ही दूर. जितना खूबसूरत उस का खयाल था, क्या उस की ताबीर भी उतनी ही खूबसूरत थी. हां, मगर ख्वाब और उस की ताबीर के बीच का फासला मिटाना उस के वश की बात नहीं थी. ‘‘तू चल मेरे साथ,’’ ऋतु उसे खींचती हुई स्टडी टेबल तक ले गई. ‘‘कल सर ने मैथ्स का यह नया चैप्टर सौल्व करवाया, लेकिन मेरे तो भेजे में कुछ नहीं बैठा, अब तू ही कुछ समझा दे न.’’

ऋतु को पता था कि पिनाकी मैथ्स का मास्टर है, इसलिए जब भी उसे कोई सवाल समझ नहीं आता तो वह पिनाकी की मदद लेती है, ‘‘कितनी बार कहा था मां से यह मैथ्स मेरे बस का रोग नहीं, लेकिन वे सुनती ही नहीं, अब निशा को ही देख आर्ट्स लिया है उस ने, कितनी फ्री रहती है. कोई पढ़ाई का बोझ नहीं और यहां तो बस, कलम घिसते रहो, फिर भी कुछ हासिल नहीं होता.’’ ‘‘इतनी बकबक में दिमाग लगाने के बजाय थोड़ा पढ़ाई में लगाया होता तो सब समझ आ जाता.’’

‘‘मेरा और मैथ्स का तो शुरू से ही छत्तीस का आंकड़ा रहा है, पिनाकी.’’ पिनाकी एक घंटे तक उसे समझाने की कोशिश करता रहा पर ऋ तु के पल्ले कुछ नहीं पड़ रहा था.

‘‘तुम सही कहती हो ऋतु, यह मैथ्स तुम्हारे बस की नहीं है, तुम्हारा तो इस में पास होना भी मुश्किल है यार.’’

पिनाकी ने अपना सिर धुनते हुए कहा तो ऋ तु को हंसी आ गई. वह जोरजोर से हंसे जा रही थी और पिनाकी उसे अपलक निहारे जा रहा था. उस के जाने के बाद पिनाकी तकिए को सीने से चिपटाए ऋ तु के ख्वाब देखने में मगन हो गया. जब वह उस के पास बैठी थी तो उस के लंबे खुले बाल पंखे की हवा से उड़ कर बारबार उस के कंधे को छू रहे थे और इत्र में घुली मदहोश करती उस की सांसों की खुशबू ने पिनाकी के होश उड़ा दिए थे. पर अपने मन की इन कोमल संवेदनशील भावनाओं को दिल में छिपा कर रखने में, इस दबीछिपी सी चाहत में, शायद उस के दिल को ज्यादा सुकून मिलता था. कहते हैं अगर प्यार हो जाए तो उस का इजहार कर देना चाहिए. मगर क्या यह इतना आसान होता है और फिर दोस्ती में यह और भी ज्यादा मुश्किल हो जाता है, क्योंकि यह जो दिल है, शीशे सा नाजुक होता है. जरा सी ठेस लगी नहीं, कि छन्न से टूट कर बिखर जाता है. इसीलिए अपने नाजुक दिल को मनामना कर दिल में प्रीत का ख्वाब संजोए पिनाकी ऋ तु की दोस्ती में ही खुश था, क्योंकि इस तरह वे दोनों जिंदादिली से मिलतेजुलते और हंसतेखेलते थे.

ऋतु भले ही पिनाकी के दिल की बात न समझ पाई हो पर उस की सहेली उमा ने यह बात भांप ली थी कि पिनाकी के लिए ऋ तु दोस्त से कहीं बढ़ कर है. उस ने ऋतु से कहा भी था, ‘‘तुझे पता है ऋतु, पिनाकी दीवाना है तेरा.’’ और यह सुन कर खूब हंसी थी वह और कहा था, ‘‘धत्त पगली, वह मेरा अच्छा दोस्त है. एक ऐसा दोस्त जो हर मुश्किल घड़ी में न जाने कैसे किसी सुपरमैन की तरह मेरी मदद के लिए पहुंच जाता है और फिर यह कहां लिखा है कि एक लड़का और एक लड़की दोस्त नहीं हो सकते, इस बात को दिल से निकाल दे, ऐसा कुछ नहीं है.’’

‘‘पर मैं ने कई बार उस की आंखों में तेरे लिए उमड़ते प्यार को देखा है, पगली चाहता है वह तुझे.’’ ‘‘तेरा तो दिमाग खराब हो गया लगता है. उस की आंखें ही पढ़ती रहती है, कहीं तुझे ही तो उस से प्यार नहीं हो गया. कहे तो तेरी बात चलाएं.’’

‘‘तुझे तो समझाना ही बेकार है.’’ ‘‘उमा, सच कहूं तो मुझे ये बातें बकवास लगती हैं. मुझे लगता है हमारे मातापिता हमारे लिए जो जीवनसाथी चुनते हैं, वही सही होता है. मैं तो अरेंज मैरिज में ज्यादा विश्वास रखती हूं, सात फेरों के बाद जीवनसाथी से जो प्यार होता है वही सच्चा प्यार है और वह प्यार कभी उम्र के साथ कम नहीं होता बल्कि और बढ़ता ही है.’’

उमा आंखें फाड़े ऋ तु को देख रही थी, ‘‘मैं ने सोचा नहीं था कि तू इतनी ज्ञानी है. धन्य हो, आप के चरण कहां हैं देवी.’’ और फिर दोनों खिलखिला कर हंस पड़ीं.

इस के बाद फिर कभी उमा ने यह बात नहीं छेड़ी, पर उसे इस बात का एहसास जरूर था कि एक न एक दिन यह एकतरफा प्यार पिनाकी को तोड़ कर रख देगा. पर कुछ हालात होते ही ऐसे हैं जिन पर इंसान का बस नहीं चलता. और अब घर में भी ऋ तु की शादी के चर्चे चलने लगे थे, जिन्हें सुन कर वह मन ही मन बड़ी खुश होती थी कि चलो, अब कम से कम पढ़ाई से तो छुटकारा मिलेगा. सुंदर तो थी ही वह, इसीलिए रिश्तों की लाइन सी लग गई थी. उस के दोनों भाई हंसते हुए चुटकी लेते थे, ‘‘तेरी तो लौटरी लग गई ऋ तु, लड़कों की लाइन लगी है तेरे रिश्ते के लिए. यह तो वही बात हुई, ‘एक अनार और सौ बीमार’?’’

‘‘मम्मी, देखो न भैया को,’’ यह कह कर वह शरमा जाती थी. ऋतु और उमा बड़े गौर से कुछ तसवीरें देखने में मग्न थीं. ऋ तु तसवीरों को देखदेख कर टेबल पर रखती जा रही थी, फिर अचानक एक तसवीर पर उन दोनों सहेलियों को निगाहें थम गईं. दोनों ने एकदूसरे की तरफ देखा. ऋतु की आंखों की चमक साफसाफ बता रही थी कि उसे यह लड़का पसंद आ गया था. गोरा रंग, अच्छी कदकाठी और पहनावा ये सारी चीजें उस के शानदार व्यक्तित्व की झलकियां लग रही थीं. उमा ने भौंहें उचका कर इशारा किया तो ऋतु ने पलक झपका दी. उमा बोली, ‘‘तो ये हैं हमारे होने वाले जीजाजी,’’ उस ने तसवीर ऋ तु के हाथ से खींच ली और भागने लगी.

‘‘उमा की बच्ची, दे मुझे,’’ कहती ऋ तु उस के पीछे भागी. पर उमा ने एक न सुनी, तसवीर ले जा कर ऋतु की मम्मी को दे दी और बोली, ‘‘यह लो आंटी, आप का होने वाला दामाद.’’

मां ने पहले तसवीर को, फिर ऋतु को देखा तो वह शरमा कर वहां से भाग गई. लड़का डाक्टर था और उस का परिवार भी काफी संपन्न व उच्च विचारों वाला था. एक लड़की जो भी गुण अपने पति में चाहती है वे सारे गुण उस के होने वाले पति कार्तिक में थे. और क्या चाहिए था उसे. उस की जिंदगी तो संवरने जा रही थी और वह यह सोच कर भी खुश थी कि अब शादी हो जाएगी तो पढ़ाई से पीछा छूटेगा. उस ने जितना पढ़ लिया, काफी था. पर लड़के वालों ने कहा कि उस का ग्रेजुएशन पूरा होने के बाद ही वे शादी करेंगे. ऋ तु की सहमति से रिश्ता तय हुआ और आननफानन सगाई की तारीख भी पक्की हो गई.

सगाई के दिन पिनाकी और उस का परिवार वहां मौजूद नहीं था. उस की दादी की बीमारी की खबर सुन कर वे लोग गांव चले गए थे. गांव से लौटने में उन्हें 15 दिन लग गए. वापस लौटा तो सब से पहले ऋ तु को ही देखना चाहता था पिनाकी. और ऋ तु भी उतावली थी अपने सब से प्यारे दोस्त को सगाई की अंगूठी दिखाने के लिए. जैसे ही उसे पता चला कि पिनाकी लौट आया है वह दौड़ीदौड़ी चली आई पिनाकी के घर. पिनाकी की नजर खिड़की के बाहर उस के घर की ओर ही लगी थी. जब उस ने ऋ तु को अपने घर की ओर आते देखा तो वह सोच रहा था आज कुछ भी हो जाए वह उसे अपने दिल की बात बता कर ही रहेगा. उसे क्या पता था कि उस की पीठ पीछे उस की दुनिया उजाड़ने की तैयारी हो चुकी है. ‘‘पिनाकी बाबू, किधर हो,’’ ऋतु शोर मचाती हुई अंदर दाखिल हुई.

‘‘हैलो ऋतु, आज खूब खुश लागछी तुमी?’’ पिनाकी की मां ने उस के चेहरे पर इतनी खुशी और चमक देख कर पूछा. ‘‘बात ही कुछ ऐसी है आंटी, ये देखो,’’ ऐसा कह कर उस ने अपनी अंगूठी वाला हाथ आगे कर दिया और चहकते हुए अपनी सगाई का किस्सा सुनाने लगी.

पिनाकी पास खड़ा सब सुन रहा था. उसे देख कर ऋ तु उस के पास जा कर अपनी अंगूठी दिखाते हुए कहने लगी, ‘‘देख ना, कैसी है, है न सुंदर. अब ऐसा मुंह बना कर क्यों खड़ा है, अरे यार, तुम लोग गांव गए थे और मुहूर्त तो किसी का इंतजार नहीं करता न, बस इसीलिए, पर तू चिंता मत कर, तुझे पार्टी जरूर दूंगी.’’

पिनाकी मुंह फेर कर खड़ा था, शायद वह अपने आंसू छिपाना चाहता था. फिर वह वहां से चला गया. ऋ तु उसे आवाज लगाती रह गई. ‘‘अरे पिनाकी, सुन तो क्या हुआ,’’ ऋ तु उस की तरफ बढ़ते हुए बोली.

पर वह वापस नहीं आया और दोबारा उसे कभी नहीं मिला क्योंकि अगले दिन ही वह शहर छोड़ कर गांव चला गया. ऋ तु सोचती रह गई. ‘‘आखिर क्या गलती हुई उस से जो उस का प्यारा दोस्त उस से रूठ गया. उस की शादी हो गई और वह अपनी गृहस्थी में रम गई पर पिनाकी जैसे दोस्त को खो कर कई बार उस का दुखी मन पुकारा करता, ‘‘कहां हो तुम?’’

Short story in Hindi : पति परमेश्‍वर नहीं सिर्फ साथी

Short story in Hindi : 3 दिन हो गए स्वाति का फोन नहीं आया तो मैं घबरा उठी. मन आशंकाओं से घिरने लगा. वह प्रतिदिन तो नहीं मगर हर दूसरे दिन फोन जरूर करती थी. मैं उसे फोन नहीं करती थी यह सोच कर कि शायद वह बिजी हो. कोई जरूरत होती तो मैसेज कर देती थी. मगर आज मुझ से नहीं रहा गया और शाम होतेहोते मैं ने स्वाति का नंबर डायल कर दिया. उधर से एक पुरुष स्वर सुन कर मैं चौंक गई. हालांकि फोन तुरंत स्वाति ने ले लिया मगर मैं उस से सवाल किए बिना नहीं रह सकी.

‘‘फोन किस ने उठाया था स्वाति?’’

‘‘मां, वह रोहन था… मेरा दोस्त’’, स्वाति ने बेहिचक जवाब दिया.

‘‘मगर तुम तो महिला छात्रावास में रहती हो ना. क्या वहां पुरुष मित्रों को भी आने की इजाजत है? वह भी इस वक्त?’’  मैं ने थोड़ा कड़े लहजे में पूछा.

‘‘मां अब मैं होस्टल में नहीं रहती. मैं रोहन के साथ रह रही हूं उस के फ्लैट में. रोहन मेरे साथ ही कालेज में पढ़ता है.’’

‘‘क्या? कहीं तुम ने हमें बताए बिना शादी तो नहीं कर ली?’’

‘‘नहीं मां, हम लिवइन रिलेशनशिप में रह रहे हैं.’’

‘‘स्वाति, तुम्हें पता है तुम क्या कर रही हो? अभी तुम्हारी उम्र अपना कैरियर बनाने की है. और तुम्हारी ही उम्र का रोहन…वह क्या तुम्हारे प्रति अपनी जिम्मेदारी समझता है?’’

‘‘मां, हम दोनों सिर्फ दोस्त हैं.’’

‘‘लड़कालड़की दोस्त होने से पहले एक लड़की और लड़का होते हैं. कुछ नहीं तो कम से कम अपने और परिवार की मर्यादा का तो खयाल रखा होता. हम ने तुझे आधुनिक बनाया है, इस का मतलब यह तो नहीं कि तू हमें यह दिन दिखाए. लोग सुनेंगे तो क्या कहेंगे?’’ मैं पूरी तरह से तिलमिला गई थी.

‘‘मां, समाज और बिरादरी की बात न ही करो तो अच्छा है. वैसे भी आप की दी गई शिक्षा ने मुझे अच्छेबुरे का फर्क तो समझा ही दिया है.

‘‘रोहन उन छिछोरे लड़कों की तरह नहीं है जो सिर्फ मौजमस्ती के लिए लिवइन में रहते हैं और न ही मैं वैसी हूं. हम दोनों एकदूसरे की पढ़ाई में भी मदद करते हैं और कैरियर के प्रति भी हम पूरी तरह से जिम्मेदार हैं.’’

‘‘लेकिन बेटा, कल को अगर रोहन ने तुम्हें छोड़ दिया तो…तुम्हारी मानसिक स्थिति…’’ मैं अपनी बेटी के भविष्य को ले कर कोई सवाल नहीं छोड़ना चाहती थी.

‘‘मां, हम दोनों पतिपत्नी नहीं हैं, इसलिए ‘छोड़ने’ जैसा तो सवाल ही नहीं उठता. और अगर कभी हमारे बीच में कोई प्रौब्लम होगी तो हम एकदूसरे के साथ नहीं रहेंगे और उस के लिए हम दोनों मानसिक रूप से तैयार हैं,’’ स्वाति पूरे आत्मविश्वास से बोल रही थी.

‘‘और यदि तुम दोनों के बीच बने दैहिक संबंधों के कारण…’’ मैं ने हिचकते हुए सब से मुख्य सवाल भी पूछ ही लिया.

‘‘यह महानगर है, मां, तुम चिंता मत करो. मैं ने इस के लिए भी डाक्टर और काउंसलर दोनों से बात कर ली है.’’

‘‘अच्छा, तभी इतनी समझदारी की बात कर रही हो. ठीक है मैं भी जल्दी ही आती हूं तुम्हारे रोहन से मिलने.’’

‘‘सब से बड़ी समझदारी तो आप के संस्कारों और मेरे प्रति आप के विश्वास ने दी है मगर एक बात आप लोग भी याद रखिएगा, मां…कि आप उस से सिर्फ मेरा दोस्त समझ कर मिलिएगा, मेरा पति समझ कर नहीं.’’

स्वाति से बात कर मैं सोफे पर बैठ गई. स्वाति की बातें सुन यह महसूस हो रहा था कि बचपन से ही बच्चों की जड़ों में सुसंस्कारों और मर्यादित आचरण

का खादपानी देना हम मातापिता की जिम्मेदारी है. इन्हीं आदर्शों को स्वयं में संचित कर ये बच्चे जब अपनी सोचसमझ से कोई निर्णय या अपनी इच्छा के अनुरूप चलना चाहते हैं, तब मातापिता का उन्हें अपना सहयोग देना समझदारी है.

स्वाति के चेहरे पर अब निश्चिंतता के भाव थे.

Hindi kahani : विश्वनाथ जी की 3 बेटियां

Hindi kahani :  देर शाम अनुष्का का फोन आया. कामधाम से खाली होती तो अपने पिता विश्वनाथ को फोन कर अपना दुखसुख अवश्य साझा करती. शादी के 3 साल हो गए, यह क्रम आज भी बना हुआ था. पिता को बेटियेां से ज्यादा लगाव होता है, जबकि मां को बेटों से. इस नाते अनुष्का निसंकोच अपनी बात कह कर जी हलका कर लेती.

‘‘पापा, आज फिर ये जोरजोर से चिल्लाने लगे,’’ अनुष्का ने अपने पति कृष्णा का जिक्र किया.

‘‘क्यों?’’ विश्वनाथ निर्विकार भाव से बोले.

‘‘इसी का जवाब मैं खोज रही हूं.’’ कह कर वह भावुक हो गई.

विश्वनाथ का जी पसीज गया. विश्वनाथ उन पिताओं जैसे नहीं थे जो बेटी का विवाह कर के गंगा नहा लेते थे. वे उन पिताओं सरीखे थे जिन्हें अपनी बेटी का दुख भारी लगता. तनिक सोच कर बोले, “उन की बातों को ज्यादा तवज्जुह मत दिया करो. अपने काम से काम रखो.’’

जब भी अनुष्का का फोन आता वे उसे धैर्य और बरदाश्त करने की सलाह देते. विश्वनाथ की प्रशंसा करनी होगी कि उन्होंने अपनी तरफ से कभी बेटियों को निराश नहीं किया. उन की बात पूरी लगन से सुनते. वे चाहते तो कह सकते थे कि यह तुम दोनों का आपसी मामला है. बारबार फोन कर के मुझे परेशान मत किया करो. ज्यादातर पिताओं की यही भूमिका होती है. बेटियों की शादी कर दिया तो अपने बेटाबहू में रम गए.

विश्वनाथ की 3 बेटियां थीं और एक बेटा. उन्होंने बेटाबेटियों में कोई फर्क नहीं किया. अमूमन लोग बेटियों को बोझ समझते हैं. इस के विपरीत विश्वनाथ को लगता, उन की बेटियां ही उन की ताकत हैं. उन की पत्नी कौशल्या की सोच उन से इतर थी. उन्हें अपना बेटा ही हीरा लगता. वे बेटियों को जबतब कोसती रहतीं. विश्वनाथ को बुरा लगता. इसी बात पर तूतूमैंमैं शुरू हो जाती.

विश्वनाथ का जीवन अभावपूर्ण था. बड़े संघर्षो से गुजर कर उन्होंने अपनी औलादों को पढ़ालिखा कर इस लायक बनाया कि वे अपने पैरों पर खडे हो गए. बड़ी बेटी की शादी से वे खुश नहीं थे क्योंकि दामाद का कामधाम कोई खास नहीं था. वे अच्छी तरह जानते थे कि उन की कामाऊ बेटी की बदौलत ही गृहस्थी की गाड़ी चलेगी. उन की मजबूरी थी. कहां से अच्छे वर के लिए दहेज ले आते? बेटी की शक्लसूरत कोई खास नहीं थी. हां, पढ़ने में तेज जरूर थी. पहली से निबटे तो दूसरी अनुष्का आ गई. सब बेटियों में 2 से 3 साल का फर्क था. अनुष्का देखनेसुनने के साथ पढ़ने में भी होशियार थी. उस ने साफसाफ कह दिया कि वह किसी भी सूरत में प्राइवेट नौकरी वाले लडके से शादी नहीं करेगी. सब चिंता में पड गए. कहां से लड़का ढूंढें.

ऐसे में उन के बड़े दामाद ने कृष्णा का जिक्र किया. वह सरकारी नौकरी में था. देखने में ठीकठाक था. रही पढ़ाई, तो वह अनुष्का की तुलना में औसत दर्जे का था तो भी क्या? सरकारी नौकरी थी. जिस आर्थिक अनिश्चितता के दौर से विश्वनाथ का परिवार गुजरा, उस से तो मुक्ति मिलेगी. यही सब सोच कर विश्वनाथ इस रिश्ते के लिए अपने दामाद की मनुहार करने लगे. साथसाथ, उन्होंने अपनी तीसरी बेटी के लिए भी सरकारी नौकरी वाले वर से करने का मन बना लिया.

लड़के को अनुष्का पसंद आ गई. दहेज पर मामला रुका, तो विश्वनाथ ने साफसाफ कह दिया कि उन की औकात ज्यादाकुछ देने की नहीं है. सांवले रंग के कृष्णा को जब गोरीचिट्टी अनुष्का मिली तो वह न न कर सका. इस के पहले उस ने काफी लड़कियां देखीं. किसी की पढ़ाई पसंद आती तो रूपरंग मनमाफिक न मिलता. रूपरंग होता तो पढ़ाई साधारण रहती. यहां सब था. नहीं था तो दहेज की रकम. कृष्णा को लगा अब अगर और छानबीन में लगा रहेगा तो उम्र निकल जाएगी, ढंग की लड़की न मिलेगी. लिहाजा, उसे भी गरज थी. शादी संपन्न हो गई.

अनुष्का फूले नहीं समा रही थी. उस ने जो चाहा वह मिल गया. बिना आर्थिक किचकिच के जिंदगी आसानी से कटेगी. शादी होते ही वह जयपुर घूमने निकल गई. बड़ी बहन लतिका को तकलीफ हुई. वह सोचने लगी, आज उस का भी पति ऐसी ही नौकरी में होता तो वह भी वैवाहिक जीवन की इस प्रथम पायदान पर चढ़ कर जिदगी का लुफ्त उठाती.

दोनों के विवाह का शुरुआती दौर बिना किसी शिकवाशिकायत के कटा. अनुष्का इस रिश्ते से निहाल थी. वहीं कृष्णा को लगा, उस ने जैसा चाहा उसे मिल गया. इस बीच, वह एक बेटे की मां बनी.

कृष्णा में एक खामी थी. उसे रुपए से बहुत मोह था. घरगृहस्थी के लिए खर्च करने में कोई कोताही नहीं बरतता तो भी बिना मेहनत के धन ही मिल जाए तो हर्ज ही क्या है. इसी लालच में उस ने अपना काफी रुपया शेयर में लगा दिया. अनुष्का ने एकाध बार टोका. मगर कृष्णा ने नजरअंदाज कर दिया.

एक दिन तो हद हो गई, कहने लगा, ‘‘मेरा रुपया है, जहां भी खर्च करूं.’’

कृष्णा को ऐसे तेवर में देख कर अनुष्का सहम गई. एकाएक उस के व्यवहार में आए परिवर्तन ने उसे असहज कर दिया. उस का मन खिन्न हो गया. मारे खुन्नस कृष्णा से बोली नहीं. कृष्णा की आदत थी, जल्द ही सामान्य हो जाता. वहीं अनुष्का के लिए आसान न था. चूंकि यह पहला अवसर था, इसलिए अनुष्का ने भी अपनी तरफ से भूलना मुनासिब समझा. मगर कब तक. जल्द ही उसे लगा कि कृष्णा अपने मन के हैं, उन्हें समझाना आसान नहीं. इस बीच, शेयर के भाव बुरी तरह से नीचे आ गए और उस के लाखों रुपए डूब गए. सो, अनुष्का को कहने का मौका मिल गया.

कृष्णा बुरी तरह टूट गया. परिणामस्वरूप, उस के स्वभाव में चिड़चिड़ापन आ गया. हालांकि, उस की तनख्वाह कम न थी. तो भी, 10 साल की कमाई पानी में बह जाए, तो क्या उसे भूल पाना आसान होगा? वह भी ऐसे आदमी के लिए जो बिना मेहनत अमीर बनने की ख्वाहिश रखता हो. कृष्णा अनमने सा रहने लगा. उस का किसी काम में मन न लगता. कब क्या बोल दे, कुछ कहा न जा सकता था. कभीकभी तो बिना बात के चिल्लाने लगता. आहिस्ताआहिस्ता यह उस की आदत में शामिल होता गया.

अनुष्का पहले तो लिहाज करती रही, बाद में वह भी पलट कर जवाब देने लगी. बस, यहीं से आपसी टकराव बढ़ने लगे. अनुष्का का यह हाल हो गया कि अपनी जरूरतों के लिए कृष्णा से रुपए मांगने में भी भय लगता. इसलिए अनुष्का ने अपनी जरूरतों के लिए एक स्कूल में नौकरी कर ली. स्कूल से पढ़ा कर आती, तो बच्चों को टयूशन पढ़ाती. इस तरह उस के पास खासा रुपया आने लगा. अब वह आत्मनिर्भर थी.

अनुष्का जब से नौकरी करने लगी तो घर के संभालने की जिम्मेदारी कृष्णा के ऊपर भी आ गई. अनुष्का को कमाऊ पत्नी के रूप में देख कर कृष्णा अंदर ही अंदर खुश था, मगर जाहिर होने न देता. अनुष्का जहां सुबह जाती, वहीं कृष्णा 10 बजे के आसपास. इस बीच उसे इतना समय मिल जाता था कि चाहे तो अस्तव्यस्त घर को ठीक कर सकता था मगर करता नहीं. वजह वही कि वह मर्द है. एक दिन अनुष्का से रहा न गया, गुस्से में कृष्णा का उपन्यास उसी के ऊपर फेंक दिया.

‘‘यह क्या बदतमीजी है?’’ कृष्णा की त्योरियां चढ गईं.

“घर को सलीके से रखने का ठेका क्या मैं ने ही ले रखा है. आप की कोई जिम्मेदारी नहीं बनती,’’ अनुष्का ने तेवर कड़े किए.

‘‘8 घंटे डयूटी दूं कि घर संभालूं,’’ कृष्णा का स्वर तल्ख था.

‘‘नौकरी तो मैं भी करती हूं. क्या आप अपना काम भी नहीं कर सकते? बड़े जीजाजी को देखिए. कितना सहयोग दीदी का करते हैं.’’

‘‘उन के पास काम ही क्या है. बेकार आदमी, घर नहीं संभालेगा तो क्या करेगा?’’

‘‘आप से तो अच्छे ही हैं. कम से कम अपने परिवार के प्रति समर्पित हैं.’’

‘‘मैं कौन सा कोठे पर जाता हूं?’’ कृष्णा चिढ़ गया.

‘‘औफिस से आते ही टीवी खोल कर बैठ जाते है. न बच्चे को पढ़ाना, न ही घर की दूसरे जरूरतों को पूरा करना. मैं स्कूल भी जाऊं, टयूशनें भी करूं, खाना भी बनाऊं,’’ अनुष्का रोंआासी हो गई.

‘मत करो नौकरी, क्या जरूरत है नौकरी करने की,’’ कृष्णा ने कह तो दिया पर अंदर ही अंदर डरा भी था कि कहीं नौकरी छोड़ दी तो आमदनी का एक जरिया बंद हो जाएगा.

‘‘जब से शेयर में रुपया डूबा है, आप रुपए के मामले में कुछ ज्यादा ही कंजूस हो गए हैं. अपनी जरूरतों के लिए मांगती हूं तो तुरंत आप का मुंह बन जाता है. ऐसे में मैं नौकरी न करूं तो क्या करूं,’’ अनुष्का ने सफाई दी.

‘‘तो मुझ से शिकायत मत करो कि मैं घर की चादर ठीक करता फिरूं.’’

कृष्णा के कथन पर अनुष्का को न रोते बन रहा था न हंसते. कैसे निष्ठुर पति से शादी हो गई. उसे अपनी पत्नी से जरा भी सहानुभूति नहीं, सोच कर उस का दिल भर आया.

कृष्णा की मां अकसर बीमार रहती थी. अवस्था भी लगभग 75 वर्ष से ऊपर हो चली थी. अब न वह ठीक से चल पाती, न अपनी जरूरतों के लिए पहल कर पाती. उस का ज्यादा समय बिस्तर पर ही गुजरता. कृष्णा को मां से कुछ ज्यादा लगाव था. उसे अपने पास ले आया.

अनुष्का को यह नागवार लगा. उन के 3 और बेटे थे. तीनों अच्छी नौकरी में थे. अपनीअपनी जिम्मेदारियों से मुक्त हो आराम की जिंदगी गुजार रहे थे. अनुष्का चाहती थी कि वह उन्हीं के पास रहे. वह घर देखे कि बच्चे या नौकरी. वहीं उन के तीनों बेटों के बहुओं के पास अतिरिक्त कोई जिम्मेदारी न थी. वे दिनभर या तो टीवी देखतीं या फिर रिश्तेदारी का लुफ्त उठातीं.

अनुष्का ने कुछ दिन अपनी सास की परेशानियों को झेला, मगर यह लंबे समय तक संभव न था. एक दिन वह मुखर हो गई, “आप माताजी को उन के अन्य बेटों के पास छोड क्यों नहीं देते?’’

‘‘वे वहां नहीं रहेंगी?’’ कृष्णा ने दो टूक कहा.

‘‘क्यों नहीं रहेंगी? क्या उन का फर्ज नहीं बनता?’’अुनष्का का स्वर तल्ख था.

‘‘मैं तुम्हारी बकवास नहीं सुनना चाहता. तुम्हें उन की सेवा करनी हो तो करो वरना मैं सक्षम हूं’’

‘‘खाक सक्षम हैं. कल आप नहीं थे, बिस्तर गंदा कर दिया. मुझे ही साफ करना पडा.’’

“कौन सा गुनाह कर दिया. वे तुम्हारी सास हैं.’’

‘‘यह रोजरोज का किस्सा है. आप उन की देखभाल के लिए एक आया क्यों नहीं रख लेते?’’ आया के नाम पर कृष्णा कन्नी काट लेता. एक तरफ खुद जिम्मेदारी लेने की बात करता, दूसरी तरफ सब अनुष्का पर छोड़ कर निश्चिंत रहता. जाहिर है, वह आया पर रुपए खर्च करने के पक्ष में नहीं था. शेयर में लाखों रुपए डूबाना उसे मंजूर था मगर मां के लिए आया रखने में उसे तकलीफ होती.

कंजूसी की भी हद होती है. रात अनुष्का, पिता विश्वनाथ को फोन कर के सुबकने लगी, “पापा, आप ने कैसे आदमी से मेरी शादी कर दी. एकदम जड़बुद्वि के हैं. मेरी सुनते ही नहीं.’’ फिर एक के बाद उस ने सारा किस्सा बयां कर दिया. सब सुन कर विश्वनाथ को भी तीव्र क्रोध आया. मगर चुप रहे यह सोच कर कि बेटी दिया है.

‘‘तुम से जितना बन पड़ता है, करो,’’ पिता विश्वनाथ का स्वर तिक्त था.

‘‘सास को यहां लाने की क्या जरूरत थी? 3 बेटे अच्छी नौकरियों में हैं. सब अपनेअपने बेटेबेटियों की शादी कर के मुक्त हैं. क्या अपनी मां को नहीं रख सकते थे? यहां कितनी दिक्कत हो रही है. किराए का मकान. वह भी जरूरत के हिसाब से लिए गए कमरे. जबकि उन तीनों बेटों के निजी मकान हैं. आराम से रह सकती थीं वहां.’’

‘‘अब मैं उन की बुद्वि के लिए क्या कहूं’’ विश्वनाथ ने उसांस ली.

गरमी की छुट्टियां हुईं. अनुष्का अपने बेटे को ले कर मायके आई. कृष्णा उसे मायके पहुंचा कर अपने भाईयों से मिलने चला गया. ससुराल में रुकने को वह अपनी तौहीन समझता. भाईयों का यह हाल था कि वे सिर्फ कहने के भाई थे, कभी दुख में झांकने तक नहीं आते. इतनी ही संवेदनशीलता होती तो जरूर अपनी मां की खोजखबर लेते. वे सब इसी में खुश थे कि अच्छा हुआ, कृष्णा ने मां को अपने पास रख लिया. अब आराम से अपनीअपनी बीवियों के साथ सैरसपाटे कर सकेंगे.

दो दिनों बाद कृष्णा अनुष्का को छोड़ कर इंदौर अपनी नौकरी पर चला गया. मां को दूसरे के भरोसे छोड़ कर आया था, इसलिए उस का वापस जाना जरूरी था. बातचीत का दौर चलता, तो जब भी समय मिलता अनुष्का अपना दुखड़ा ले कर विश्वनाथ के पास बैठ जाती.

एक दिन विश्वनाथ से रहा न गया, बोले, ‘‘तुम यहीं रह जाओ. कोई जरूरत नहीं है उस के पास जाने की.”

अनुष्का ने कोई जवाब नहीं दिया. बगल में खड़ी अनुष्का की मां कौशल्या से रहा न गया, “आप भी बिनासोचे समझे कुछ भी बोल देते हैं.’’ अनुष्का की चुप्पी बता रही थी कि यह न तो संभव था न ही व्यावहारिक. भावावेश में आ कर भले ही पिता विश्वनाथ ने कह दिया हो मगर वे भी अच्छी तरह जानते थे कि बेटी को मायके में रहना आसान नहीं है. फिर पतिपत्नी के रिश्ते का क्या होगा? अगर ऐसा हुआ तो दोनों के बीच दूरियां बढ़ेंगी जिसे बाद में पाट पाना आसान न होगा.

अनुष्का की आंखें भर आईं. उसे लग रहा था वह ऐसे दलदल में फंस गई है जहां से निकल पाना आसान न होगा. आज उसे लग रहा था कि रुपयापैसा ही महत्त्वपूर्ण नहीं, बल्कि आदमी का व्यावहारिक व सुलझा हुआ होना भी जरूरी है. पिता विश्वनाथ को आदर्श मानने वाली अनुष्का को लगा, पापा का सुलझापन ही था जो तमाम आर्थिक परेशानियों के बाद भी उन्होंने हम सब भाईबहनेां को पढ़ालिखा कर इस लायक बनाया कि समाज में सम्मान के साथ जी सकें. वहीं, कृष्णा के पास रुपयों के आगमन की कोई कमी नहीं तिस पर उन की सोच हकीकत से कोसों दूर है.

पिता विश्वनाथ की जिंदगी आसान न थी. सीमित आमदनी, उस पर 3 बेटियों ओैर एक बेटे की परवरिश. वे अपने परिवार को ले कर हमेशा चिंतित रहते. मगर जाहिर होने न देते. उन के लिए औलाद ही सबकुछ थे. पत्नी कौशल्या जब तब अपनी बेटियों को डांटतीफटकारती रहती जिस को ले कर पतिपत्नी में अकसर विवाद होता. बेटियों का कभी भी उन्होंने तिरस्कार नहीं किया. उन का लाड़प्यार उन पर हमेशा बरसता रहता. इसलिए बेटियां उन के ज्यादा करीब थीं. यही वजह थी कि बेटियां आज भी अपने पिता को अपना आदर्श मानतीं. जब बेटा हुआ तो मां कौशल्या का सारा प्यार उसी पर उमड़ने लगा. यह अलग बात थी कि जब उन की तीनों बेटियां अपने पैरों पर खड़ी हो गईं तो उन की नजर उन के प्रति सीधी हो गई.

एक महीना रहने के बाद अनुष्का कृष्णा के पास वापस इंदौर जाने की तैयारी करने लगी तो अचानक एक शाम विश्वनाथ को क्या सूझा, कहने लगे, ‘‘क्या तुम्हारी मां मुझ से खुश थीं?” सुन कर क्षणांश वह किंकर्तव्यविमूढ हो गई. अनुष्का मां की तरफ देखी. उन की आंखें सजल थीं. मानो अतीत का सारा दृश्य उन के सामने तैर गया हो. वे आगे बोले, ‘‘जब वह मुझ से खुश नहीं थी तो तुम कैसे अपने पति से अपेक्षा कर सकती हो वह हमेशा तुम्हें खुश रखेगा?’’

पिता की बेबाक टिप्पणी पर अनुष्का को कुछ कहते नहीं बन पड़ा. वह तो अपने पिता को आदर्श मानती थी. वह तो यही मान कर चलती थी कि उस के पिता समान कोई हो ही नहीं सकता. बेशक पिता के रूप में वे सफल थे मगर क्या पति के रूप में भी वे उतने ही सफल थे? क्या उन्होंने हमेशा वही किया जो कौशल्या को पसंद था? शायद नहीं. वे आगे बोलते रहे, ‘‘यह लगभग सभी के साथ होता है. पत्नी अपने पति से कुछ ज्यादा ही अपेक्षा करती है. पर खुशी का पैमाना क्या है? क्या कृष्णा शराबी या जुआरी है? कामधाम नहीं करता या मारतापीटता है? सिर्फ विचारों और आदतों की भिन्नता के कारण हम किसी को नापंसद नहीं कर सकते? जब एक गर्भ से पैदा भाईयों में मतभेद हो सकते हैं तो पतिपत्नी में क्यों नहीं.’’

अनुष्का को अपने पिता से यह उम्मीद न थी. उन के व्यवहार में आए परिवर्तन ने उसे असहज बना दिया. अभी तक उसे यही लग रहा था कि कृष्णा जो कुछ कर रहा है वह एक तरह से उस पर मनोवैज्ञानिक अत्याचार था. उन के कथन ने एक तरह से उसे भी कुसूरवार बना दिया. आहत मन से बोली, “पापा, जब ऐसी बात थी तो फिर आप ने मुझे क्यों मायके में ही रहने की सलाह दी?’’

वे किंचिंत भावुक स्वर में बोले, ‘‘एक पिता के नाते तुम्हारा दुख मेरा था. पुत्रीमोह के चलते मैं ने तुम्हें यहां रहने की सलाह दी. मगर यह व्यावहारिक न था. काफी सोचविचार कर मुझे लगा कि शायद मैं तुम्हें गलत रास्ते पर चलने की नसीहत दे रहा हूं. बड़ेबुजर्ग का कर्तव्य है कि पतिपत्नी के बीच की गलतफहमियां अपने अनुभव से दूर करें, न कि आवेश में आ कर दूरियां बढ़ा दें, जो बाद में आत्मघाती सिद्व हो.’’

अनुष्का पर पिता विश्वनाथ की बातों का असर पड़ा. उस ने मन बना लिया कि अब से वह कृष्णा को भी समझने का कोशिश करेगी.

Mayawati की चुप्‍पी : धार्मिक कुरीतियों पर बोलने की आजादी पर BAN

Mayawati की चुप्‍पी :  जो मुद्दे कभी दलित आंदोलन का केंद्र बिंदु थे आज उन के बोलने पर ही पाबंदी है, जो बोलता है वो जेल जाता है जिस का पक्ष लेने वाला कोई नेता रहा नहीं.

24 दिसंबर को बहुजन समाज पार्टी ने संविधान बचाओ के नाम पर धरना प्रदर्शन किया था. बसपा संसद में केंद्रीय गृहमंत्री अमित शाह के भीमराव आंबेडकर पर दिए बयान को ले कर आक्रोश में थी. बसपा कार्यकर्ताओं ने प्रदेश भर में विरोध प्रदर्शन किया था. लखनऊ में बसपा कार्यकर्ताओं ने हजरतगंज चौराहे पर भीमराव आंबेडकर की प्रतिमा पर प्रदर्शन किया था. इस के लिए गांवगांव से बसपा के कार्यकर्ता प्रदर्शन करने पहुंचे थे. लंबे समय के बाद बसपा ने सड़क पर उतर कर इस तरह का प्रदर्शन किया था.

बसपा की मांग थी कि गृहमंत्री अमित शाह अपने बयान से माफी मांगे. गृहमंत्री ने अपने बयान से बहुजन समाज के भगवान का अपमान किया है. इस के पहले मायावती भी कह चुकी थीं कि ‘गृहमंत्री बहुजन समाज से माफी मांग लें.’ इस के बाद भी जब माफी नहीं मांगी तो बसपा ने इस प्रदर्शन का आयोजन किया था. बसपा के कार्यकर्ता झंडे ले कर प्रदर्शन करने आ रहे थे. इन में से एक थे ओमप्रकाश गौतम जो लखनऊ जिले के निगोहां थाना क्षेत्र के मीरखनगर गांव के रहने वाले थे.

ओमप्रकाश गौतम का वायरल वीडियो

ओमप्रकाश गौतम की बातचीत को ले कर एक वीडियो सोशल मीडिया पर वायरल हो गया था, जिस में वह कहते हैं, “देवी दुर्गा काली सरस्वती ने हमारे लिए कुछ नहीं किया. यह विदेश से आई आर्य थीं. (अपनी बात कहतेकहते ओमप्रकाश ने आपत्तिजनक शब्द का प्रयोग किया) यह मैं ने बहुजन समाज और बुद्धजी की किताबों में पढ़ा है जो लोग नहीं जानते वह पूजापाठ करें.”

वे आगे कहते हैं, “हम पत्थर की देवी की पूजा नहीं करेंगे. उन को मिट्टी से हम ही ने बनाया है. उस की पूजा करने लगे. न वो हम को कुछ दे सकती हैं न बोल सकती हैं न हम से कुछ ले सकती हैं. बाबा साहब ने हमें मानसम्मान स्वाभिमान दिया. हमारा खून नीला हो गया है. अमित शाह ने बाबा साहब का अपमान किया है.”
इस वीडियो के वायरल होने के बाद हर तरफ से प्रतिक्रिया आने लगी. निगोंहा क्षेत्र के ही रहने वाले समाजसेवी भंवरेश्वर चौरसिया, भाजपा मंडल अध्यक्ष आशुतोष शुक्ला, कार्यकर्ता शिवनारायण वाजपेई और करणी सेना के दीपू सिंह ने थाने में ओमप्रकाश गौतम के खिलाफ शिकायत दर्ज कराई.

पुलिस ने वैमनस्यता फैलाने के आरोप में ओमप्रकाश गौतम को गिरफ्तार कर जेल भेज दिया. पुलिस के सामने ओमप्रकाश गौतम ने कहा कि “हम से बहुत बड़ी गलती हो गई, हमारे देवीदेवता भगवान हैं, हमारे पूजनीय हैं, अब जीवन में कभी ऐसी गलती नहीं होगी.”

विचारधारा से भटकी बसपा

ओमप्रकाश गौतम ने जो कहा वह 90 के दशक में बहुजन समाज पार्टी भी कहती रहती थी. बहुजन समाज का आंदोलन इसी विचारधारा को ले कर शुरू था. उस समय बामसेफ के कार्यकर्ता गांवगांव नुक्कड़ नाटक के जरिए यह समझाते थे कि किस तरह से सवर्ण उन पर अत्याचार करते थे. यह नुक्कड़ नाटक गांवगांव होते थे. कई बार इन को ले कर दलितसवर्ण विवाद भी होते थे. बहुजन समाज के नाम से तमाम ऐसी किताबें भी थीं जिन में हिंदू समाज में व्याप्त कुरीतियों की आलोचना होती थीं.

90 के दशक में जब वीडियो सीडी का चलन आया था तब कुरीतियों के खिलाफ एक सीडी बहुत चर्चा में थी उस का नाम था ‘तीसरी पीढी’. इस में भी दलित उत्थान की बातें कही गई थीं जो पहले नुक्कड़ नाटकों में कही जाती थीं. इस को बनाने वाले भी बामसेफ और दूसरे दलित संगठनों के कुछ लोग थे.

जिस समय यह सीडी आई उस दौर में मायावती भारतीय जनता पार्टी के सहयोग से दूसरी बार 1997 में उत्तर प्रदेश की मुख्यमंत्री बन चुकी थीं. ऐसे में मायावती ने इस सीडी पर बैन लगा कर इस के बनाने और दिखाने वालों के खिलाफ मुकदमा कायम करा दिया था.

बसपा के विचारों में बदलाव

बसपा के विचारों में बदलाव 1995 में ही शुरू हो गया था. उस समय पहली बार भाजपा के सहयोग से मायावती मुख्यमंत्री बनी थीं. ‘मिले मुलायम कांशीराम हवा में उड़ गए जय श्रीराम’ और ‘ठाकुर बामन, बनिया छोड़ बाकी सब है डीएस फोर’ और ‘ठाकुर बामन बनिया चोर, इन को मारो जूते चार’ वाले नारे बसपा ने लगाने बंद कर दिए थे.

बसपा ने यह भी कहा कि यह नारे कभी भी उस ने नहीं दिए. जब मायावती मुख्यमंत्री थीं तब उन्होंने लखनऊ में दलित महापुरूषों की मूर्तियां लगानी शुरू की. आंबेडकर, कांशीराम, रमाबाई और गौतम बुद्ध के नाम पर पार्क बनाए. उन की योजना रामास्वामी पेरियार की मूर्ति लगाने की भी थी.

रामास्वामी पेरियार हिंदू धर्म के आलोचक थे. ऐसे में भाजपा को दिक्कत थी. भाजपा ने पेरियार की मूर्ति लगाने का विरोध किया तो मायावती ने अपना फैसला वापस ले लिया. 2003 में मायावती के भाषण की सीडी चर्चा में आई थी जिस में उन्होंने भी देवीदेवताओं की आलोचना की थी. उस समय विपक्षी रही समाजवादी पार्टी ने इस को मुद्दा भी बनाया था. मुख्यमंत्री बनने के बाद मायावती ने धीरेधीरे समझौते करने शुरू किए. धर्म और कुरीतियों की आलोचना करना लगभग बंद ही कर दिया.

बहुजन समाज पार्टी का ब्राह्मणों के साथ चुनावी गठबंधन करने के बाद मायावती इस को सर्वजन समाज पार्टी कहने लगी थी. लखनऊ में अपनी कोठी के मुख्यद्वार पर गणेश की मूर्ति स्थापित करवाई और बसपा के चुनावचिन्ह हाथी का एक नया रूप सामने आया. जो हाथी कांशीराम के जमाने में मनुवादियों को कुचलने चला था, बसपा का नया नारा बना ‘हाथी नहीं गणेश हैं, ब्रह्मा विष्णु महेश है.’

इस के बाद भी मायावती हिंदुत्ववादियों के हाथों धर्म परिवर्तन करने वालों के उत्पीड़न से बहुत परेशान रहती थी. उन्होंने धमकी दी थी कि अगर भाजपा ने दलितों, मुसलमानों और आदिवासियों के प्रति अपनी सोच नहीं बदली तो वे लाखों समर्थकों के साथ बौद्धधर्म अपना लेगी. मायावती 14 अक्तूबर 2006 को नागपुर में दीक्षा भूमि गईं जहां उन्हें पहले किए गए वादे के मुताबिक बौद्ध धर्म अपनाना था. यह वादा कांशीराम ने किया था कि बाबा साहेब के धर्म परिवर्तन की स्वर्ण जयंती के मौके पर वह खुद और उन की उत्तराधिकारी मायावती बौद्ध बन जाएंगे.

मायावती ने वहां बौद्ध धर्मगुरूओं से आशीर्वाद तो लिया लेकिन सभा में कहा, ‘मैं बौद्धधर्म तब अपनाऊंगी जब आप लोग मुझे प्रधानमंत्री बना देंगे.’ राजनीतिक रूप से मायावती तब से सकंट वाले दौर से गुजर रही हैं. अब लोगों को उन से सारी उम्मीदें खत्म हो गई हैं. बसपा के पास केवल 9 प्रतिशत वोट ही बचा है. मायावती के उत्तराधिकारी के रूप में उन के भतीजे आकाश आनंद भी कोई चमत्कार नहीं दिखा पा रहे हैं.

ऐसे में पार्टी के वे कार्यकर्ता जो पूरी तरह से बसपा से जुड़े हैं उस की पुरानी नीतियों पर चल रहे हैं. वे परेशान हैं. जैसे ओमप्रकाश गौतम हिंदूधर्म के खिलाफ बोलने को ले कर जेल चले गए.

चन्द्रशेखर नहीं हो सकते मायावती का विकल्प

2007 के विधानसभा चुनाव में मायावती ने दलित ब्राह्मण गठजोड़ बनाया जिस के बाद उन को जीत मिली. वह चौथी बार बहुमत की सरकार बनाने में सफल हुईं. यहां एक नया नारा आया ‘हाथी नहीं गणेश है, ब्रह्मा विष्णु महेश है’. यहां से मायावती और उन की दलित राजनीति का ढलान शुरू हो गया. इस का परिणाम यह हुआ कि 2024 के लोकसभा चुनाव में बसपा को एक भी जीत नसीब नहीं हुई.

चन्द्रशेखर की आजाद समाज पार्टी से चन्द्रशेखर खुद सांसद का चुनाव जीत गए. इस के बाद राजनीतिक चर्चा शुरू हो गई कि चन्द्रशेखर दलित राजनीति का नया चेहरा हैं. वे मायावती के विकल्प के रूप आगे आ सकते हैं. असल में चन्द्रशेखर की राजनीति मायावती से अलग है. मायावती को दलित राजनीति और मुद्दों की समझ है. चन्द्रशेखर ने केवल खुद को स्थापित करने में समय दिया है. मायावती ने दलित वर्ग के लिए तमाम काम किए हैं. ऐसे में उन की समझ बहुत अलग है.

चुनावी जीतहार से अलग वे दलित वर्ग की जरूरत को समझती हैं. चन्द्रशेखर खुद भी इस बात को जानते हैं. इस कारण वे कभी मायावती की आलोचना नहीं करते हैं. जो भी मायावती की आलोचना करता है उस को वह करारा जवाब भी देते हैं.

राजनीति में जीतहार के मुद्दे से अलग धर्म की कुरीतियों और दलित मुद्दों पर आवाज उठाने वालों को बोलने की आजादी नहीं है. लोकतंत्र में हर किसी को अपनी विचारधारा बोलने की आजादी होती है. आज के दौर में वह आजादी छिन चुकी है. जैसे ही कोई बोलता है उस की आवाज को बंद कर दिया जाता है. उसे जेल जाना पड़ता है. पहले इन मुद्दों पर आवाज उठती थी. दलित आंदोलन का पूरा इतिहास इस से जुड़ा हुआ है.

ओमप्रकाश गौतम ने जो तर्क दे कर कहा उसे गलती नहीं कहा जा सकता है. गलती है तो उस के गाली वाले शब्दों से. उस ने जो कहा वह गुस्से में कहा क्योंकि भाजपा नेता अमित शाह ने भीमराव आंबेडकर को ले कर जो कहा वह ठीक नहीं था. इस की प्रतिक्रिया में ओमप्रकाश गौतम गुस्से में बोल गए जिस पर मुकदमा हो गया. उन को जेल जाना पड़ा.

इन मुद्दों पर राजनीति करने वाले खामोश हैं. बसपा से समाजवादी पार्टी में आए मोहनलालगंज के सांसद आरके चौधरी कुछ बोल नहीं रहे. रामचरितमानस की आलोचना करने वाले स्वामीप्रसाद मौर्य भी चुप हैं. ऐसे में दलित विचारों को ले कर चलने वाले समझ नहीं पा रहे कि वे किधर जाएं?

Crime Against Women : पति, बौयफ्रैंड या लिवइन पार्टनर सताने में सबसे आगे

Crime Against Women :  संयुक्त राष्ट्र की दो एजेंसियों यूएन वीमेन और यूएन औफिस औफ ड्रग्स एंड क्राइम द्वारा जारी रिपोर्ट कहती है कि महिलाओं के लिए उन का घर सब से घातक और असुरक्षित स्थान है, वह चाहे उन का मायका हो या ससुराल.

आंकड़ों का सच

6 अगस्त, 2024 को नोएडा के सैक्टर 39 की पुलिस ने 16 वर्ष की एक किशोरी से बलात्कार कर उसे गर्भवती बनाने वाले उस के मामा को गिरफ्तार कर जेल भेजा. मामा ने अपनी ही भांजी का अपहरण कर उस के साथ बलात्कार किया था. पुलिस ने लड़की को बरामद कर जब उस का मैडिकल कराया तो पता चला कि वह गर्भवती है. लड़की 30 जून से लापता थी जिस की गुमशुदगी की एफआईआर उस के मातापिता ने थाने में दर्ज करवाई थी.

28 अगस्त, 2024 की खबर है कि सहारनपुर में मामा अपनी भांजी को नौकरी दिलाने के नाम पर अपने साथ ले गया. इस के बाद युवती से दुष्कर्म करता रहा. इस बात का पता युवती के गर्भवती होने पर चला. अदालत के आदेश पर पुलिस ने मामला दर्ज कर आरोपी को गिरफ्तार किया. एफटीसी कोर्ट ने कसबा नानौता क्षेत्र के गांव छछरौली निवासी इंतजार उर्फ बाबू को 10 साल की सजा सुनाई है. सजा सुनाते हुए अदालत ने 50 हजार रुपए का अर्थदंड भी लगाया है.

11 नवंबर, 2024 को मध्य प्रदेश के जबलपुर में एक नाबालिग भाई ने अपनी छोटी बहन की इसलिए हत्या कर डाली क्योंकि उस ने बहन को पड़ोसी लड़के के साथ बात करते हुए देख लिया था. आरोपी अपनी 14 वर्षीया बहन से इस कदर नाराज हुआ कि उस ने पास में ही पड़े त्रिशूल से अपनी बहन पर कई बार हमला कर डाला. उसे बुरी तरह से घायल कर खून से लथपथ हालत में छोड़ कर वह जंगल की ओर फरार हो गया. पड़ोस में रहने वाले लोग लड़की को ठेले में लिटा कर अस्पताल पहुंचे, जहां से उसे मैडिकल कालेज रेफर कर दिया गया. लेकिन इलाज के दौरान ही 14 साल की लड़की ने दम तोड़ दिया.

18 नवंबर, 2022 को दिल्ली से आगरा जाने वाले यमुना एक्सप्रेसवे पर सड़क किनारे एक लाल रंग का ट्रोली बैग पड़ा था. पुलिस ने आ कर जब बैग खोला तो अंदर एक युवती की लाश थी. युवती की उम्र 21 साल थी. बाद में पता चला कि उस का नाम आयुषी था. छानबीन में केस औनर किलिंग का निकला. आयुषी की हत्या उस के ही पिता ने की थी क्योंकि आयुषी ने अपनी मरजी से शादी कर ली थी, जो घर वालों को मंजूर न थी.

यह महज कुछ बानगियां हैं. इस तरह की ख़बरों से अखबारों के पन्ने हर दिन रंगे रहते हैं. घर की चारदीवारी में अपने ही लोगों के हाथों मौत, बलात्कार, हिंसा, प्रताड़ना का दंश औरत को सदियों से दिया जा रहा है. औरत को अपने घर में अपने करीबी लोगों से जान और इज्जत का जितना ख़तरा है, उतना घर से बाहर नहीं है. देवियों का देश कहलाने वाले भारत में देवियां सदियों से मां, बाप और करीबी रिश्तेदारों के हाथों कहीं मौत के मुंह में धकेली जा रही हैं तो कहीं उन की इज्जत लूटी जा रही है.

सदियों से जानवरों जैसा व्‍यवहार

औरत के साथ जानवरों जैसा व्यवहार कोई आज का नहीं है, यह अत्याचार उस पर सदियों पुराना है. पहले सातआठ साल की अल्पायु में उस का जबरन विवाह कर उसे बलात्कार की आग में झोंक दिया जाता था. किशोरावस्था तक आतेआते वह एकदो बच्चों की मां बन जाती थी. फिर लगातार बच्चे पैदा होते थे और उस की सेहत तेजी से गिरती जाती थी. वह अपनी पूरी जवानी भी नहीं देख पाती थी और अनेक रोगों से ग्रस्त हो प्राण त्याग देती थी.

ऐसे ही सतीप्रथा के जरिए औरत को जबरन मौत के घाट उतार दिया जाता था. पति की मौत के बाद उस के ससुराल वाले जबरन उस का श्रृंगार कर के, भांग या मदिरा के नशे में मदहोश कर के और हाथपैर बांध कर उस को पति की जलती चिता में झोंक देते थे और उस के बाद सती के नाम से उस हृदयविदारक अपराध का महिमामंडन किया जाता था.

औरतों के प्रति अपराध का ग्राफ

  • आज हर रोज भारत में 17 से 20 औरतें दहेज के कारण मौत के घाट उतार दी जाती हैं. कितने ही मामले रजिस्टर्ड भी नहीं होते, औरतें घर के भीतर ही दफना दी जाती हैं.
  • संयुक्त राष्ट्र की एक रिपोर्ट के अनुसार हर साल दुनिया में 5 हजार लड़कियां औनर किलिंग का शिकार होती हैं और इन 5 हजार में से एक हजार लड़कियां भारतीय होती हैं. यानी, औनर किलिंग का शिकार होने वाली हर 5 में से 1 लड़की भारत की होती है.

आंकड़े कभी झूठ नहीं कहते. वे तो हमें आईना दिखाते हैं. देशदुनिया में जो घट रहा है उस की वे बानगी बयां करते हैं. हाल ही में संयुक्त राष्ट्र की दो एजेंसियों यूएन वीमेन और यूएन औफिस औफ ड्रग्स एंड क्राइम द्वारा जारी रिपोर्ट कहती है कि महिलाओं के लिए उन का घर सब से घातक स्थान है वह चाहे उन का मायका हो या ससुराल.

  • संयुक्त राष्ट्र की रिपोर्ट के अनुसार पिछले वर्ष प्रतिदिन औसतन 140 महिलाओं एवं लड़कियों की हत्या उन के घरों में ही उन के पति, अंतरंग साथी या परिवार के सदस्यों द्वारा की गई.
  • यह रिपोर्ट कहती है कि वैश्विक स्तर पर वर्ष 2023 के दौरान लगभग 51,100 महिलाओं और लड़कियों की मौत के लिए उन के अंतरंग साथी या परिवार के सदस्य जिम्मेदार रहे.

2022 में यह आंकड़ा अनुमानित तौर पर 48,800 था. महिलाओं के विरुद्ध हिंसा उन्मूलन के अंतर्राष्ट्रीय दिवस पर जारी इस रिपोर्ट में कहा गया है कि यह वृद्धि हत्याओं में बढ़ोतरी के कारण नहीं बल्कि मुख्य रूप से विभिन्न देशों से अधिक आंकड़े उपलब्ध होने के कारण है. दोनों एजेंसियों ने इस बात पर जोर दिया कि हर जगह महिलाएं और लड़कियां लिंग आधारित हिंसा के इस चरम रूप से प्रभावित हो रही हैं. और कोई भी क्षेत्र इस से अछूता नहीं हैं. घर महिलाओं और लड़कियों के लिए सब से खतरनाक जगह है.

हत्‍या करने वालों में सगेसंबंधी आगे

रिपोर्ट के अनुसार अंतरंग साथी और परिवार के सदस्यों द्वारा की गई हत्याओं के सब से अधिक मामले अफ्रीका में थे, जहां 2023 में लगभग 21,700 महिलाएं मारी गईं. अपनी आबादी के लिहाज से भी पीड़ितों की संख्या में अफ्रीका सब से आगे रहा. यहां प्रति एक लाख लोगों पर 2.9 पीड़ित थीं. रिपोर्ट में कहा गया है कि पिछले वर्ष अमेरिका में यह दर काफी अधिक थी, जहां प्रति एक लाख में 1.6 महिलाएं पीड़ित थीं. जबकि ओशिनिया में यह दर प्रति एक लाख पर 1.5 थी. एशिया में यह दर काफी कम थी. यहां प्रति एक लाख पर 0.8 पीड़ित थीं जबकि यूरोप में यह दर प्रति एक लाख में 0.6 रही.
रिपोर्ट के अनुसार यूरोप और अमेरिका में महिलाओं की हत्या मुख्यतया उन के अंतरंग साथियों (पति, बौयफ्रैंड या लिवइन पार्टनर) द्वारा की जाती है. इस के विपरीत पुरुषों की हत्या की अधिकांश घटनाएं घरपरिवार से बाहर होती हैं.

भारत में महिलाओं को हिंसा और मौत से बचाने के लिए कई बार कानूनों में फेरबदल हुए मगर हालात आज भी जस के तस हैं. आज भी हर दिन करीब 86 रेप की घटनाएं रिपोर्ट होती हैं. इस से दोगुनी घटनाएं रिपोर्ट तक नहीं होतीं. भारत में हर घंटे 3 महिलाएं रेप का शिकार होती हैं, यानी हर 20 मिनट में 1.

रेप के मामलों में 96 फीसदी से ज्यादा आरोपी महिला को जानने वाले होते हैं. रेप के मामलों में 100 में से 27 आरोपियों को ही सजा मिल पाती है, बाकी बरी हो जाते हैं.

केंद्र सरकार की एजेंसी नैशनल क्राइम रिकौर्ड ब्यूरो यानी एनसीआरबी के आंकड़े बताते हैं कि भारत में सालभर में महिलाओं के खिलाफ अपराध के 4 लाख से ज्यादा अपराध दर्ज किए जाते हैं. इन अपराधों में सिर्फ रेप ही नहीं, बल्कि छेड़छाड़, दहेज हत्या, किडनैपिंग, ट्रैफिकिंग, एसिड अटैक जैसे अपराध भी शामिल हैं.

हर रोज 345 लड़कियां गायब

एनसीआरबी की 2022 की रिपोर्ट के अनुसार भारत में हर रोज 345 लड़कियां गायब हो जाती हैं. इन में 170 लड़कियां किडनैप होती हैं, 172 लड़कियां लापता होती हैं और लगभग 3 लड़कियों की तस्करी कर दी जाती हैं. इन में से कुछ लड़कियां तो मिल जाती हैं, लेकिन बड़ी संख्या में लापता, किडनैप और तस्करी की गई लड़कियों का पता नहीं चलता.

जुलाई 2023 में भारतीय गृह मंत्रालय की ओर से संसद में पेश की गई रिपोर्ट में लापता लड़कियों और महिलाओं का जो आंकड़ा दिया गया उस ने पूरे देश को चौंका दिया. रिपोर्ट में कहा गया कि देश में 2019 से 2021 के बीच 13.13 लाख से ज्यादा लड़कियां और महिलाएं लापता हो गईं. सरकार ने ये आंकड़े राष्ट्रीय अपराध ब्यूरो द्वारा प्राप्त किए. इस रिपोर्ट के अनुसार, गायब हुई महिलाओं और लड़कियों में 18 साल से अधिक उम्र की 10,61,648 महिलाएं और 18 साल से कम उम्र की 2,51,430 लड़कियां शामिल हैं.

राज्यों के अनुसार बात करें तो गायब होने वाली सब से ज्यादा महिलाएं और लड़कियां मध्य प्रदेश की हैं. यहां 2019 से 2021 के बीच 1,60,180 महिलाएं और 38,234 लड़कियां लापता हो गईं. वहीं दूसरे स्थान पर पश्चिम बंगाल है. वहां 1,56,905 महिलाएं और 36,606 लड़कियां गायब हो गईं. जबकि, तीसरे नंबर पर महाराष्ट्र है. वहां 2019 से 2021 के बीच 1,78,400 महिलाएं और 13,033 लड़कियां लापता हो गईं. इन तमाम लड़कियों को देह के धंधे में बेच दिया जाता है.

इस साल 62,946 लड़कियों के लापता होने के मामले दर्ज किए गए हैं. इन लड़कियों में से कई को बचा लिया गया. हालांकि, बड़ी संख्या ऐसी लड़कियों की है जिन के बारे में आज तक पता नहीं चला.

भारत सहित दुनियाभर में औरतें जुल्म का शिकार इसलिए होती हैं क्योंकि धर्म की आड़ ले कर पुरुष ने उसे सदियों से घर की चारदीवारी में कैद रखा हुआ है. जन्म लेने के बाद से ही लड़कियों को उन के कोमल होने का एहसास घुट्टी की तरह पिलाई जाती है. वह नाजुक है, कोमल है, सुंदर है, खुद को दुनिया की नजरों से छिपा कर रखना चाहिए, धीमेधीमे बात करनी चाहिए, तेज आवाज में हंसना नहीं चाहिए, धीमेधीमे सधे हुए कदमों से चलना चाहिए, मृदु स्वभाव रखना चाहिए, ऊंची आवाज में बात नहीं करनी चाहिए, हमेशा दूसरों की सेवा करनी चाहिए आदिआदि बातें बचपन से ही इस तरह बताईसिखाई जाती हैं कि वे मानसिक रूप से खुद को बहुत कमजोर और बेबस मानने लगती हैं. अपने घर में वे पुरुष यानी बाप, भाई, दादा और अन्य पुरुष सदस्यों के ऊपर हर प्रकार से निर्भर हो जाती हैं. और यही लोग उन के दिमाग को अपने काबू में कर के उन का शोषण करते हैं, अपने इशारे पर चलाते हैं, उन के साथ हिंसा और बलात्कार करते हैं और उन की मरजी को जाने बिना उन्हें किसी अन्य मर्द की चाकरी करने के लिए ब्याह देते हैं.

सुंदर नहीं, शक्तिशाली होना है

यदि जन्म लेने के बाद लड़कियों को उसी तरह मजबूत बनाने का प्रयास होता जैसे कि लड़कों के लिए होता है तो आज वे पुरुष के हाथों हिंसा और मौत का शिकार न होतीं. अगर लड़की बचपन से तेज आवाज में बात करती, अपनी इच्छा जाहिर करती, तेज क़दमों से चलती, घर से बाहर निकल कर उसी तरह सारे काम करती जैसे कोई लड़का करता है, अपने शरीर को बलिष्ठ बनाने के लिए अच्छा भोजन और व्यायाम करती, तो उस की तरफ आंख उठा कर देखने की हिम्मत किसी की न होती.

मगर एक साजिश के जरिए धर्म को हथियार बना कर पुरुष ने औरत को अपना गुलाम बनाए रखने के लिए औरत के जरिए औरत का विनाश किया है. आज भी यदि मांएं चेत जाएं और बेटों से ज्यादा बेटियों के शारीरिक, मानसिक व आर्थिक सुदृढ़ता की ओर ध्यान देने लगें, उन में बचपन से ही गलत के खिलाफ विद्रोह करने की ताकत भरें, उन्हें आर्थिक रूप से अपने पैरों पर खड़े होने के लिए प्रेरित करें तो कोई लड़की हिंसा, बलात्कार या मौत का शिकार न होगी.

लड़कियों को सिखाना होगा कि उन्हें सुंदर नहीं, शक्तिशाली होना है. उन्हें पैसे के लिए बाप, भाई या पति के आगे हाथ नहीं फैलाना बल्कि खुद कमाना है, अपनी पसंद की वस्तुओं को पाने के लिए खुद प्रयास करने हैं, अपनी इच्छा से विवाह का फैसला लेना है और अपनी इच्छा से बच्चे पैदा करने हैं.

मानसिक रूप से पुरुषों के मुकाबले ज़्यादा मजबूत

जिस प्रकार से दुनियाभर में औरतों के प्रति अपराध का ग्राफ बढ़ रहा है, लड़कियों का घर से बाहर निकलना अब अतिआवश्यक है. वे घर से बाहर निकल कर ही सुरक्षित होंगी, आर्थिक रूप से मजबूत होंगी, मुखर होंगी, साहसी व दबंग बनेंगी. दुनिया में ऐसा कोई भी काम नहीं है जो औरत न कर सके. औरत मानसिक रूप से पुरुषों के मुकाबले ज़्यादा मजबूत होती है. उस की सहनशक्ति भी पुरुषों के मुकाबले दोगुनी होती है. यदि वह शारीरिक रूप से भी मजबूत हो जाए तो उस के खिलाफ अपराध के ग्राफ में कमी आएगी.

यदि हम भारतीय समाज पर नजर डालें तो यहां निम्नवर्ग की महिलाएं, जो पुरुषों के कंधे से कंधा मिला कर खेतखलिहानों में हाड़तोड़ मेहनत करती है, हिंसा, बलात्कार या हत्या का शिकार बहुत कम होती हैं. इस की वजह यही है कि वे घर से बाहर निकल कर मर्द के समान मेहनत करती हैं, मर्द के समान पैसा कमाती हैं, शारीरिक रूप से मजबूत होती हैं, मर्द अगर लड़ पड़े तो बराबर की टक्कर देती हैं.

मर्दों से मुकाबले के मामले में निम्नवर्ग में औरतों की हालत मध्य या उच्च वर्ग की औरतों से कहीं ज्यादा बेहतर है. मध्य या उच्च वर्ग की औरतें जो आर्थिक रूप से पुरुषों पर निर्भर हैं, जेवरों, कपड़ों में ढकी घर की चारदीवारी में कैद रहती हैं, हिंसा, बलात्कार, दहेज़ हत्या, औनर किलिंग या हत्या की शिकार ज्यादा होती हैं. वजह यह कि उन्हें कोमलांगी कह कर मानसिक रूप से ऐसा दिव्यांग बना दिया जाता है कि अपने खिलाफ होने वाली हिंसक गतिविधियों को वे औरत का धर्म समझ कर सहती रहती हैं. वे उस का विरोध नहीं कर पातीं. किसी से अपनी व्यथा भी वे शेयर नहीं कर पातीं. और एक दिन मौत की नींद सुला दी जाती हैं.

Parenting Problem : मेरा बेटा जन्‍म से स्लो चाइल्ड है. अब 22 साल का है.

Parenting Problem : सवाल – मैं ने उस की प्रोग्रैस के लिए बहुत मेहनत की है. फिलहाल एक एनजीओ में वह स्किल ट्रेनिंग ले रहा है अपनी क्षमता के अनुसार. मैं उस के भविष्य को ले कर चिंतित रहती हूं. एक स्ट्रैस हमेशा दिमाग में बना रहता है. क्या करूं?

जवाब – आप की चिंता समझ जा सकती है क्योंकि किसी भी मातापिता के लिए अपने बच्चे का भविष्य सुनिश्चित करना बहुत महत्त्वपूर्ण होता है, खासकर अगर वह बच्चा सामान्य न हो. खैर, सब से पहले, आप को खुद को और अपने बच्चे को धैर्य रखने की जरूरत है. यदि आप का बच्चा सामान्य बच्चों जैसा नहीं है और सब काम धीरेधीरे सीखता है तो इस का मतलब यह नहीं कि वह भविष्य में सफल नहीं होगा. इस समय उसे पूरे परिवार के सपोर्ट की जरूरत है.

  • अपने बच्चे की प्रगति पर सकारात्मक दृष्टिकोण रखने की कोशिश करें. उस की हर छोटी सफलता को सराहें. यह बच्चे को आत्मविश्वास देगा और उसे आगे बढ़ने के लिए प्रेरित करेगा.
  • घर का वातावरण सहायक और आरामदायक होना चाहिए. नकारात्मकता से बचें और अपने बच्चे को इस बात का एहसास कराएं कि वह आप के लिए खास है और आप हमेशा उस के लिए खड़े हैं.
  • आप को यह समझने की आवश्यकता है कि प्रत्येक व्यक्ति का रास्ता अलग होता है. अगर आप के बच्चे का विकास थोड़ा धीमा है तो इस का मतलब यह नहीं कि वह कभी कुछ नहीं कर पाएगा. धीरेधीरे सही दिशा में काम कर के वह अपने जीवन में सफलता प्राप्त कर सकता है.
  • बच्चे का शारीरिक और मानसिक स्वास्थ्य अच्छा होना बहुत जरूरी है. अच्छे आहार, नियमित व्यायाम और पर्याप्त नींद से उस की ऊर्जा व मानसिक स्थिति बेहतर रहेगी.
  • यदि आप महसूस करते हैं कि आप अकेले हैं तो आप ऐसे मातापिता के सपोर्ट ग्रुप्स में शामिल हो सकते हैं जो आप ही की समान समस्याओं का सामना कर रहे हों. यह आप के मनोबल को बढ़ा सकता है और आप दूसरों से समाधान व सुझाव पा सकते हैं.
  • अगर आप खुद तनाव में रहेंगे तो वह आप के बच्चे को भी प्रभावित कर सकता है. आप व्यायाम या खुद की देखभाल से तनाव को राहत दे सकते हैं.
  • याद रखें कि आप की चिंता स्वाभाविक है लेकिन जो सब से ज्यादा महत्त्वपूर्ण है वह यह है कि आप अपने बच्चे के लिए एक स्थिर और सहायक वातावरण बनाए रखें.

Parental Burnout : बच्‍चों को चैंपियन और टौपर बनाने के चक्‍कर में परेशान मम्‍मीडैडी

Parental Burnout : परफैक्ट पेरैंटिंग का दबाव बढ़ता जा रहा है. बच्चों को औलराउंडर बनाने के चक्कर में मातापिता आज पेरैंटल बर्नआउट का शिकार हो रहे हैं.

हम बच्चों को अपने जीवन का मोहरा बना लेते हैं. लगता है कि हर कोई हमारे बच्चे की तारीफ करे. पेरैंट्स खुद दूसरों से कहते हैं कि मेरी तरफ देखो, क्या नायाब चीज है मेरा बच्चा, मेरा बच्चा आईपीएल में गया है, स्कूल की तरफ से बाहर गया है, वह स्विमिंग चैंपियन बन गया है. यानी आज पेरैंट्स चाहते हैं कि उन का बच्चा पढ़ाई के साथसाथ ड्राइंग, पेंटिंग, डांस, सिंगिंग, क्राफ्ट, स्पोर्ट्स आदि में भी सब से आगे रहे. इस सब के चलते मातापिता पेरैंटल बर्नआउट की गिरफ्त में आ जाते हैं.

नैचुरल ग्रोथ होने दो

यह आप को उलटवार करता है. बच्चे के बारे में आप सोसाइटी में इतनी बातें करते हैं कि एक दिन वह बच्चा आप के गले की फांस बन जाता है. दूसरे शब्दों में कहें तो वह गले की ऐसी हड्डी बन जाता है जो न निगलते बने न उगलते. दरअसल बच्चे की तारीफ इतनी ज्यादा कर दी जाती है सोसाइटी में कि उसे मैनेज करना एक चैलेंज बन जाता है.

बच्चा है कि आप की अब एक नहीं सुनता, आप पर दबाव बढ़ता ही जा रहा है. इसलिए बच्चे की नैचुरल ग्रोथ होने दो. उस को खादपानी दो लेकिन अपने को उस पर न्योछावर मत करो. बच्चों के लिए उतना करो जितना जेब इजाजत करे. बच्चों के लिए खुद को पूरी तरह न थकाएं. अगर आप भी अपने बच्चों की देखभाल और पालनपोषण के दौरान थकान व तनाव का अनुभव करते हैं, अपने बच्चों की जिम्मेदारियों व अपेक्षाओं के बीच संतुलन नहीं बना पाते हैं और आप को  पर्याप्त आराम व सपोर्ट नहीं मिल पाता है तो सम?िए की कमी खुद में ही है. आइए जानें इस सिचुएशन को कैसे हैंडल करें.

बच्चों को न कहना भी सीखे मां

अगर बच्चे ने बोला  है कि मेरा दोस्त यहां से कोचिंग ले रहा है, मैं भी लूंगा, लेकिन आप को लग रहा है कि वह बहुत महंगा है, आप अफोर्ड नहीं कर पाएंगे तो बच्चे को साफ मना कर दें. इस के अलावा अगर बच्चों का ग्रुप ट्रिप पर बाहर जा रहा है और बच्चा भी जाना चाहे पर आप उसे अकेले नहीं भेजना चाहते तो उसे प्यार से सम?ा कर मना कर दें. उस की हर बात मानना आप के लिए प्रैशर क्रिएट करता है. इसलिए उतना ही करें जिसे आप खुशीखुशी हां कह सकें वरना मना करने की भी आदत डालें.

हर किसी के आगे बच्चों की तारीफ न करें

बच्चों की तारीफों के पुल अगर आज आप रिश्तेदारों के सामने बांध रहे हैं तो ध्यान रखें, कल आप को उसे मैनेज करने के लिए लगातार बच्चों से कुछ अच्छा करने की उम्मीद रखनी होगी ताकि आप ने अपने सर्कल में बच्चों की जो इमेज बनाई है उसे कायम रख सकें. इस के लिए आप के साथसाथ बच्चों पर भी दबाव बनेगा. इसलिए ऐसा करना ही क्यों. आप के बच्चे जैसे हैं उन्हें वैसा ही रहने दें, बेकार के दिखावे के चक्कर में एक्स्ट्रा सिरदर्द लेना ही क्यों.

बच्चों की तरफदारी न करें

आज अगर आप ने जरूरत से ज्यादा बच्चे की तरफदारी की तो यह बच्चा इतना अहं वाला हो जाएगा कि बड़ा होने के बाद यह अपने मांबाप को कुछ नहीं सम?ोगा. उस को लगेगा, मेरी मां को तो कुछ आता ही नहीं है. उस को लगेगा सारा ज्ञान उस के पास है. वह बातबात में आप को आप के ही फ्रैंड्स सर्कल में नीचे दिखाएगा. फिर आप पछताएंगी कि बच्चे को ज्यादा ही सिर चढ़ा लिया है लेकिन तब आप के पास इस का कोई हल नहीं होगा. आप मन मसोस कर रह जाएंगी क्योंकि बच्चा आप की सुनेगा नहीं और बच्चे की वजह से अपनी होती हुई बेइज्जती आप सह पाएंगी नहीं. इसलिए हर गलत बात में बच्चे का साथ न दें. कुछ गलत है तो उसे इग्नोर करने के बजाय बच्चे को उस के बारे में बताएं.

बच्चे की नैचुरल ग्रोथ होने दें

अगर आप की सहेली का बच्चा स्विमिंग सीख रहा है तो यह जरूरी नहीं है कि आप का बच्चा भी वही सीखे. हो सकता है आप के बच्चे का मन न हो या उस के पास टाइम न हो, वह अपनी स्टडीज पर ज्यादा टाइम देना चाहता हो. क्या जरूरत है अपने बच्चे को सब के बच्चों के जैसा बनाने की. आप का बच्चा जिस में अच्छा है उसे वह करने दें. बच्चे की नैचुरल ग्रोथ होने दें.

बच्चों को स्पेस दें

वे वास्तव में हम से ज्यादा जानते हैं और यह आज भी सच है. चाहे हमें यह पसंद हो या न, वे ज्यादातर समय सही होते हैं. आप ने देखा होगा कि बच्चों को लगातार परेशान करना और उन के इर्दगिर्द मंडराते रहना हम में से किसी के लिए भी अच्छा नहीं है. इसलिए स्पेस देना हमेशा मददगार होता है और हम भी टैंशनफ्री रहते हैं.

बच्चे को सहीगलत में फर्क करना सिखाएं

बच्चों की जिद पूरी करने से मातापिता कई बार बच्चों को यह संदेश दे देते हैं कि वे जो भी कर रहे हैं वह गलत नहीं है. बच्चे भी धीरेधीरे इसी व्यवहार को सही मान बैठते हैं. लेकिन ऐसा न करें. बच्चों को बताएं कि गलत और सही क्या है और उस के अनुसार उन के साथ व्यवहार करें.

बच्चा आप का अपमान करे तो बरदाश्त न करें

कई बार बच्चे मांबाप से ?ागड़ा करने के दौरान बहुत जिद करते हैं और मांबाप का अपमान भी करने लगते हैं. वहीं, बच्चों का यह व्यवहार धीरेधीरे घर के बाहर यानी स्कूल में, पड़ोसियों और रिश्तेदारों के बीच भी दिखाई देने लगता है. इस बात को ले कर कई बार मातापिता इतनी टैंशन ले लेते हैं कि अपने में बीमारी लगा लेते हैं. अगर आप के साथ भी ऐसा हो रहा है तो बच्चे को सम?ाएं. न सम?ो तो उस से कुछ दिन बात न करें. वह खुद ही बेचैन हो जाएगा और तब उसे बताएं कि आप ऐसा व्यवहार क्यों कर रहे थे.

बच्चों से परफैक्ट होने की उम्मीद न करें

सब से महत्त्वपूर्ण बात, अपने बच्चों से परफैक्ट होने की उम्मीद न करें और हमेशा याद रखें, कोई भी आप को उतना प्यार नहीं करेगा जितना वे करते हैं.

हमें पहले इंसान और फिर मातापिता के तौर पर सीखना होगा कि कोई भी परफैक्ट नहीं होता. इसलिए हम किसी और, खासकर अपने बच्चों से परफैक्शन की उम्मीद नहीं कर सकते. इन अवास्तविक अपेक्षाओं को दूर करने से मातापिता के तौर पर हम पर और हमारे बच्चों पर बो कम होगा.

पेरैंट्स के रूप में कई बार हमें ऐसा लगता है कि हम अपना 100 प्रतिशत नहीं दे रहे हैं. इस जगह हम न केवल तनाव महसूस करते हैं, बल्कि हमें असफलताओं का अनुभव भी होता है. ऐसे में खुद को दोष न दें, बल्कि अपने लिए थोड़ा समय निकालें और बच्चों के बचपन को खुद भी एंजौय करें व उन्हें भी एंजौए करने दें.           –

USA : महिलाओं के बाद अब ट्रांसजैंडर्स पर टेढ़ी हुई ट्रंप की नजर

USA :  अपने पहले कार्यकाल में भी ट्रंप ने कई विवादित फैसले लिए, जो ट्रांसजैंडर्स के अधिकारों के हक में नहीं था. अब अपनी दूसरी पारी में वे ट्रांसजैंडर्स को समाज की मुख्यधारा से अलगथलग करने को आतुर दिख रहे हैं.

सत्ता जब किसी दक्षिणपंथीकट्टरपंथी के हाथ में आती है तो उस का पहला शिकार औरत बनती है. धर्म का औजार हाथ में ले कर दक्षिणपंथी आदमीऔरत से जीवन के मूल अधिकार छीन लेने को आतुर हो उठता है. उसे धर्म की जंजीर में जकड़ कर घर की चारदीवारी में कैद होने के लिए बाध्य करता है. वह औरत को अपने हाथ की कठपुतली बना कर रखना चाहता है. ऐसी कठपुतली जिसे वह अपने इशारे पर नचा सके और उस का भोग कर सके.

दक्षिणपंथी विचारधारा को मानने वाले रूढ़िवादी ट्रंप

अमेरिका की बागडोर अब दक्षिणपंथी विचारधारा को मानने वाले रूढ़िवादी डोनाल्ड ट्रंप के हाथ में है. ट्रंप ऐसी संकुचित मानसिकता के व्यक्ति हैं जिन्होंने औरत को गुलाम और भोग की वस्तु से ज्यादा नहीं समझा. ट्रंप महिलाओं के कुछ अधिकारों के पक्ष में कभी नहीं रहे, जिनमें अबौर्शन मुख्य रूप से शामिल है. ट्रंप और उन के समर्थकों का मानना है कि अबौर्शन पेट में पल रहे बच्चे की हत्या करना है. हालांकि महिलाएं इसे इस रूप में नहीं देखती हैं.
अबौर्शन को महिलाएं एक मूल अधिकार के रूप में देखती हैं और मानती हैं कि यह उन के स्वास्थ्य से जुड़ा एक अधिकार है और अपने शरीर के बारे में फैसला लेने का हक सिर्फ उन्हें ही होना चाहिए. अपने पिछले कार्यकाल में ट्रंप की पार्टी के कई सीनेटर्स ने देशभर में अबौर्शन पर बैन लगाने की इच्छा जाहिर की थी और कुछ राज्यों में तो यह बैन है भी.

महिलाओं के खिलाफ हेट स्पीच बढ़

ट्रंप की जीत के बाद अमेरिका में दक्षिणपंथी ताकतें एक बार फिर सिर उठाने लगी हैं. जिन का बुरा प्रभाव औरतों, ब्लैक्स और ट्रांसजैंडर्स पर पड़ रहा है. सोशल मीडिया पर बीमार मानसिकता के लोग औरत के शरीर को अपनी प्रौपर्टी कह कर उन पर हक जताने की कोशिश में जुटे हुए हैं तो वहीं ट्रांसजैंडर्स के साथ गालीगलौच और मारपीट की घटनाएं अचानक बढ़ गई हैं.
जाहिर है सत्ता शीर्ष से जब ऐसे इशारे होंगे तो नीचे लोग उन को अपने व्यवहार में उतारेंगे. सोशल मीडिया पर निक फुएंटेस नाम का एक यूजर औरतों के लिए लिखता है- “यौर बौडी, माय चौइस. फौरएवर.” यानी कि “तुम्हारा शरीर, मेरी मर्जी, हमेशा.”

ट्रंप के सत्ता में आने के बाद अमेरिका में महिलाओं के खिलाफ हेट स्पीच बढ़ रही हैं. लोगों ने महिलाओं से यह तक कहना शुरू कर दिया है कि उन की जगह रसोई में है और उन्हें जरूरत से ज्यादा उड़ना नहीं चाहिए. ऐसे में ट्रंप और उन के समर्थकों के विरोध में जगहजगह महिलाओं द्वारा विरोध प्रदर्शन भी हो रहे हैं.

दरअसल ट्रंप रूढ़िवादी मानसिकता से ग्रस्त हैं. महिला आजादी और महिला अधिकारों के खिलाफ उन्होंने कई ऐसे फैसले पिछले कार्यकाल में दिए जिसने अमेरिकी महिलाओं को सड़क पर उतर कर आंदोलन करने के लिए मजबूर किया. महिलाओं के प्रजनन अधिकारों, विशेष रूप से गर्भपात का फैसला ट्रंप के शासनकाल में मुमकिन नहीं है.
अब ट्रंप के दोबारा सत्ता में आने की खबर के बाद शारीरिक स्वायत्तता को ले कर अनेक अमेरिकी महिलाओं ने पुरुषों से दूरी बना ली है. डेटिंग, सैक्स, शादी और बच्चों के पालनपोषण से पीछे हट कर, ये महिलाएं एक संदेश भेज रही हैं कि वे उस प्रणाली में शामिल होने से इनकार करती हैं जिस के तहत उन के साथ दुर्व्यवहार होता है और उन्हें खतरे में डाला जाता है.

ट्रांसजैंडर्स पर लगाम

अपनी दूसरी पारी में ट्रंप ट्रांसजैंडर्स के हक भी छीनने को आतुर हो रहे हैं. वाइटहाउस आने के साथ ही ट्रंप जो नए काम करने वाले हैं, उन में ट्रांसजैंडर्स पर लगाम कसना शामिल है. ट्रंप ट्रांसजैंडर्स को समाज की मुख्यधारा से अलग करना चाहते हैं. उन के मुताबिक दुनिया में दो ही लिंग हैं जिन्हें स्वीकार किया जा सकता है – स्त्रीलिंग और पुलिंग. इन दो जैंडर के अलावा वे किसी को मुख्यधारा में नहीं देखना चाहते हैं.

अमेरिका में ट्रांसजैंडर्स को पढ़ने, नौकरी करने, शादी करने, बच्चा गोद लेने आदि का अधिकार था. 2015 में अमेरिकी सुप्रीम कोर्ट के फैसले के बाद ट्रांसजैंडर्स की शादी पूरे देश में वैध हो गई थी. ट्रांसकपल के लिए बच्चों को गोद लेने की भी मंजूरी मिल गई थी.
गौरतलब है कि गोद देने वाली एजेंसियां इस के लिए होम स्टडी करती हैं कि बच्चों के लिए कैसा माहौल है, इस के बाद वे कानूनी प्रोसेस करती हैं. कई बार आवेदन रिजेक्ट भी हो जाता है लेकिन ये दर उतनी ही है, जितनी आम जोड़ों के अडौप्शन के दौरान होता है.

ट्रांसजैंडर लोगों से नफरत या भेदभाव

अब ट्रंप इन सब अधिकारों को उन से छीन लेने के मूड में हैं. अपने पहले कार्यकाल में भी ट्रंप ने कई विवादित फैसले लिए, जो ट्रांसजैंडर्स के अधिकारों के हक में नहीं था. मसलन, उन्होंने बहुत से ऐसे जजों की नियुक्ति की, जो एंटीLGBTQ+ माने जाते थे. उन का पुराना रिकौर्ड ट्रांसजैंडर लोगों से नफरत या भेदभाव का रहा.
ट्रंप ने दोसौ से ज्यादा ऐसे जजों को ताकत दी, जो अपने कंजर्वेटिव तौरतरीकों के लिए जाने जाते थे. उन में से कईयों ने धार्मिक स्वतंत्रता का हवाला दे कर ट्रांस अधिकारों को कम करने की कोशिश भी की.

द कंवर्सेशन की एक रिपोर्ट में अमेरिकन सिविल लिबर्टीज यूनियन के हवाले से कहा गया है कि ट्रंप के पिछले कार्यकाल में देशभर में 532 एंटीLGBTQ बिल बने.
– इन में से 208 बिल स्टूडेंट्स और शिक्षकों के अधिकारों को सीमित करते हैं.
– लगभग 70 बिल धार्मिक छूट से जुड़े हुए हैं और ट्रांसजैंडरों पर कई रोक लगाते हैं.
– 112 बिल हेल्थ से संबंधित हैं. जैसे ट्रांसजैंडरों का अपना पसंदीदा जैंडर पाने के लिए मेडिकल ट्रीटमेंट लेना.

आर्मी में ट्रांसजैंडर

बहुत से देशों से अलग अमेरिका में ट्रांसजैंडर सेना में भी जा सकते हैं. ओबामा सरकार ने अपने कार्यकाल के आखिरी चरण में इसे मंजूरी दे दी थी, जिस के बाद आर्मी में ट्रांसजैंडर सैनिकों की मौजूदगी बढ़ने लगी. साल 2017 में डोनाल्ड ट्रंप ने आते ही इसपर रोक लगा दी. उन का कहना था कि इस से मेडिकल खर्च बहुत ज्यादा बढ़ रहा है क्योंकि हौर्मोनल बदलाव की प्रक्रिया से गुजर रहे सैनिकों की मेडिकल जरूरतें आम सैनिकों से ज्यादा रहती हैं.
इस के अलावा सेना में कथित तौर पर बैलेंस भी बिगड़ रहा था. साल 2021 में राष्ट्रपति जो बाइडेन ने ट्रंप की पाबंदियों को पलटते हुए ट्रांसजैंडरों के लिए सैन्य सर्विस एक बार फिर शुरू कर दी. मगर अब ट्रंप के वाइटहाउस आने से पहले ही ट्रांसजैंडरों के खिलाफ हवा चल निकली है.
अमेरिकन सिविल लिबर्टीज यूनियन के मुताबिक, रिपब्लिकन्स के कथित विवादित प्रोजैक्ट 2025 में ट्रांसजैंडरों के हक कमजोर करने पर कई नीतियां हैं. उन्हें डर है कि राष्ट्रपति एग्जीक्यूटिव और्डर जारी करते हुए सरकारी एजेंसियों को ऐसे निर्देश दे सकते हैं. जैसे सेना या स्कूलकालेजों में उन की जगह खत्म कर दी जाए. या इसपर बातचीत के फोरम पर अटैक हो.

16 लाख से ज्यादा लोग खुद को ट्रांसजैंडर

वैसे एग्जीक्यूटिव और्डर देते ही ऐसा नहीं है कि नीतियों में बदलाव हो जाता है. इस के बाद एक टाइम पीरियड होता है, जिसे पब्लिक कमेंट पीरियड कहते हैं. एक से दो महीने के इस वक्त में संस्थाएं या लोग इसे चुनौती भी दे सकते हैं. या फिर इस दौरान आमलोगों और संगठनों की राय ली जाती है ताकि नीतियों में अमेंडमेंड हो सकें.
अगर और्डर किसी खास समूह के अधिकारों को कमजोर करता दिखे तो उसे कोर्ट में भी चुनौती दी जा सकती है. तब वो पौलिसी लागू नहीं हो सकती, जब तक कि उसे कोर्ट से हरी झंडी न मिल जाए. इस में महीनों या सालों भी लग सकता है. इतने समय में सरकारें बदल जाती हैं.

कुल मिला कर फिलहाल ट्रांसजैंडरों में डर तो बना हुआ है लेकिन उन के खिलाफ नीतियां लाना उतना भी आसान नहीं. यूएस में तीस साल के भीतर के लोगों में पांच फीसदी से कुछ ज्यादा लोग खुद को ट्रांसजैंडर या फिर नौनबायनरी मानते हैं, यानी जो खुद को किसी जैंडर में नहीं पाते. ये डेटा प्यू रिसर्च सेंटर का है और दो साल पुराना है. इस बीच संख्या काफी बढ़ी, लेकिन इसपर किसी का कोई निश्चित डेटा नहीं है.
यूसीएलए लौ स्कूल में विलियम्स इंस्टीट्यूट ने भी इसपर एक रिसर्च की, जिस में पाया गया कि अमेरिका में 13 साल की उम्र के ज्यादा के 16 लाख से ज्यादा लोग खुद को ट्रांसजैंडर मानते हैं. इस के अलावा वे लोग भी हैं, जो जन्म के समय खुद को मिले जैंडर से खुश नहीं, लेकिन खुल कर जता नहीं पाते.

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