“आज औफिस में फोन आया था बाबूजी का. अगले सोमवार को वे और अम्मां आ रहे हैं,” पति हिमांशु से यह सूचना पा कर लतिका खुश नहीं हुई.
आंखें तरेर कर उस ने पति को देखा. फिर भौं सिकोड़ कर बोली, ‘‘तुम ने क्या कहा?’’
‘‘मैं...मैं क्या कहता भला. भई, वे आ रहे हैं, तो आ रहे हैं. मेरे कुछ कहने का सवाल ही कहां उठता है?’’
‘‘पर हम ने तो उन्हें बुलाया नहीं.’’
‘‘कमाल की बात करती हो तुम भी, लतिका. भला मांबाप को अपने बेटबहू के पास उन के बुलावे पर ही आना चाहिए. अरे, घर है उन का, जब जी चाहे आएं.’’
‘‘और लड़कियों की परीक्षा का क्या होगा, जो सिर पर है. तुम ने यह क्यों नहीं कहा कि अगले हफ्ते से बेटियों के एग्जाम हैं.’’
‘‘मैं नहीं कह सकता. तुम चाहो, तो कह दो,’’ तौलिया उठा कर बाथरूम में घुसता हुआ हिमांशु बोला.
‘‘हांहां, क्यों नहीं. हर बुरी बात कहने मैं जाऊं और बुरी बनी रहूं. तुम अच्छे बने रहना. अरे, मैं उन्हें वैसे ही कहां पसंद हूं.’’
पर तब तक पत्नी के शोर से बचने के लिए हिमांशु बाथरूम का शौवर चालू कर चुका था.
बीच के 3 दिन बेहद किचकिच में बीते. हिमांशु के सामने उठतेबैठते लतिका का यही रोना रहता कि अम्मांबाबूजी आ रहे हैं, पर रहेंगे कहां. 2 कमरे वाले फ्लैट में उन का बिस्तर लगेगा कहां. फिर सवेरे से अम्मां अपना भजन चालू कर देंगी, ‘हुआ सवेरा, चिडिय़ां जागीं, तुम भी अब जग जाओ.’ भला ऐसे में बच्चियां अपनी पढ़ाई कर पाएंगी, वह भी इंजीनियरिंग के कंपीटिशन की. हिमांशु का कहना था कि वे हमारे घर सालों बाद आ रहे हैं. पूरा घर है. ड्राइंगरूम है, उसी में रात में एक चारपाई डाल दी जाएगी. एक तख्त पड़ा ही है वहां. हम दोनों वहां सो जाएंगे. अम्मांबाबूजी बेडरूम में सो जाएंगे.