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मेरी पत्नी ने हमें झूठे दहेज कानून में फंसा दिया, मुझे समझ नहीं आ रहा, क्या करें ?

सवाल

मैं विवाहित पुरुष हूं. मेरा विवाह हुए 4 वर्ष हो गए हैं. शादी के बाद से ही पत्नी का मेरे प्रति व्यवहार क्रूरतापूर्ण था. वह बात बात पर मुझे परेशान करती थी. हर समय कोई न कोई डिमांड करती और कहती, मांग पूरी करो वरना तुम्हें व तुम्हारे परिवार को दहेज विरोधी कानून में फंसवा दूंगी. बातबात पर पुलिस स्टेशन में झूठी शिकायत कर के परेशान करना उस की दिनचर्या बनने लगी. परेशान हो कर मैं ने तलाक का केस फाइल कर दिया तो उस ने सचमुच में हमें झूठे दहेज कानून में फंसा दिया. मुझे समझ नहीं आ रहा, क्या करें, इस मुसीबत से कैसे निकलूं? सलाह दें.

जवाब

दरअसल, 498ए दहेज प्रताड़ना कानून महिलाओं की सुरक्षा के लिए बनाया गया था लेकिन आज यह कानून, कवच बनने के बजाय हथियार बन गया है जो कानूनी आातंक का रूप ले रहा है. आप की पत्नी की तरह अनेक पत्नियां इस कानून का दुरुपयोग पतिपत्नी के बीच के अहं, पारिवारिक विवाद, अलग रहने की इच्छा, संपत्ति में हक की चाहत आदि के लिए करती हैं. झूठे मुकदमे दर्ज करवाने के मामले अब बहुत सुनने में आ रहे हैं जो न केवल निराधार होते हैं बल्कि उन के पीछे गलत इरादे होते हैं. ऐसे मुकदमे दर्ज कराने का मकसद पैसा कमाना भी होता है. लेकिन अगर आप सही हैं तो डरे नहीं और पत्नी के खिलाफ सुबूत इकट्ठा करें. वैसे भी,

2 जुलाई, 2014 को सुप्रीम कोर्ट ने दहेज से जुड़े श्वेता किरन के मामले में निर्णय सुनाते हुए कहा है कि 498ए कानून के अंतर्गत की गई शिकायत में कोई भी गिरफ्तारी तब तक नहीं हो सकती जब तक कोई 2 सुबूत या गवाह उपलब्ध न हों. ऐसा निर्णय इसलिए दिया गया ताकि असंतुष्ट व लालची पत्नियां इस कानून का दुरुपयोग न कर सकें और न ही पति को ब्लैकमेल कर सकें.

क्या जस्टिस खन्ना होंगे देश के अगले मुख्य न्यायाधीश

दिल्ली के मुख्यमंत्री अरविंद केजरीवाल को लोकसभा चुनाव में अपनी आम आदमी पार्टी का प्रचार करने के लिए अंतरिम जमानत देने वाली बेंच के जज संजीव खन्ना की चर्चा बतौर सुप्रीम कोर्ट के अगले चीफ जस्टिस के रूप में होने लगी है. संजीव खन्ना वर्तमान मुख्य न्यायाधीश डीवाई चंद्रचूड़ के बाद दूसरे सबसे वरिष्ठ न्यायाधीश हैं. सीजेआई चंद्रचूड़ का कार्यकाल नवंबर 2024 को पूरा हो रहा है, माना जा रहा है कि उनके बाद जस्टिस खन्ना 10 नवंबर 2024 से 13 मई 2025 तक सीजेआई के रूप में न्यायालय का दायित्व संभालेंगे.

बताते चलें कि वर्तमान में दिल्ली उत्पाद शुल्क नीति के अधिकांश मामले जस्टिस संजीव खन्ना की ही अदालत में फैसले का इंतजार कर रहे हैं. बीते दो सालों से इस शराब नीति ने दिल्ली सरकार का चैन छीन रखा है. आप पार्टी के कई बड़े नेता शराब नीति मामले में जेल में बंद हैं. दिल्ली शराब घोटाले में दो केस चल रहे हैं. एक केस सीबीआई ने दर्ज किया था और दूसरा केस ईडी की तरफ से दर्ज किया गया था. दोनों जांच एजेंसियों ने दिल्ली शराब नीति मामले में कई कार्रवाइयां की हैं. पिछले वर्ष पार्टी और उसके वरिष्ठ नेताओं की कानूनी लड़ाइयों में असफलताओं का अंबार लगा रहा है, कुछ अपवादों को छोड़कर, विभिन्न अदालतों और विभिन्न न्यायाधीशों ने कई मौकों पर उन्हें राहत देने से इनकार कर दिया है. जानकार मानते हैं कि इसके पीछे केंद्रीय सत्ता का भारी दबाव काम कर रहा है. इंडिया गठबंधन को कमजोर करने और केजरीवाल सरकार को घेरने, तोड़ने और बदनाम करने में शराब घोटाला मामला इस लोकसभा चुनाव प्रचार के दौरान भाजपा के हाथ में सबसे बड़ा हथियार है. इस घोटाले की चर्चा भाजपा हर मंच से करती है और केजरीवाल और उनकी सरकार को महाभ्रष्ट का तमगा पहनाती है.

इस तथाकथित घोटाले के कई मामले शीर्ष अदालत में पहुंचे, जहां न्यायमूर्ति संजीव खन्ना के नेतृत्व वाली पीठों ने रोस्टर के अनुसार उनकी सुनवाई की. कौन सा न्यायाधीश किस मामले की सुनवाई करेगा इसका रोस्टर भारत के मुख्य न्यायाधीश द्वारा तय किया जाता है. दिल्ली के मुख्यमंत्री और आप सुप्रीमो अरविंद केजरीवाल से संबंधित कानूनी कार्यवाही न्यायमूर्ति संजीव खन्ना के समक्ष चल रही है, अतः यह कहना उचित ही होगा कि आम आदमी पार्टी के राजनीतिक भविष्य की चाबी उनके पास है. दिल्ली की जनता और आम आदमी पार्टी को उन से इंसाफ मिलने की उम्मीद है.

जस्टिस संजीव खन्ना करीब पांच साल पहले जनवरी 2019 में सुप्रीम कोर्ट में जज बने थे. वह जस्टिस हंसराज खन्ना के रिश्तेदार हैं, जिन्होंने आपातकाल के दौरान सुप्रीम कोर्ट के जज के पद से इस्तीफा दे दिया था. जस्टिस संजीव खन्ना का जन्म 14 मई 1960 को हुआ था और उन्होंने दिल्ली विश्वविद्यालय से कानून की डिग्री हासिल की. उनके पिता, न्यायमूर्ति देव राज खन्ना, 1985 में दिल्ली उच्च न्यायालय से न्यायाधीश के रूप में सेवानिवृत्त हुए, जबकि उनकी माँ, सरोज खन्ना दिल्ली विश्वविद्यालय के लेडी श्री राम कॉलेज में हिंदी व्याख्याता थीं. संजीव खन्ना ने वर्ष 1983 में दिल्ली की जिला अदालत में प्रैक्टिस शुरू की थी और फिर दिल्ली हाईकोर्ट और ट्रिब्यूनल्स में वकालत की. उन्होंने संवैधानिक कानून, डायरेक्ट टैक्स, मध्यस्थता और कमर्शियल मामलों, कंपनी लॉ, भूमि कानून, पर्यावरण और प्रदूषण कानून एवं चिकित्सकीय लापरवाही से जुड़े केस में वकालत की है. उन्होंने दिल्ली न्यायिक अकादमी, दिल्ली अंतर्राष्ट्रीय मध्यस्थता केंद्र और जिला अदालत मध्यस्थता केंद्रों जैसे संस्थानों में सक्रिय रूप से योगदान दिया. उन्होंने आपराधिक कानून मामलों में अतिरिक्त लोक अभियोजक के रूप में दिल्ली सरकार में भी काम किया. न्यायमूर्ति खन्ना करीब सात साल तक दिल्ली के आयकर विभाग के वरिष्ठ स्थायी वकील भी रहे. 2004 में, उन्हें दिल्ली उच्च न्यायालय में नागरिक कानून मामलों के लिए दिल्ली के स्थायी वकील के रूप में नियुक्त किया गया था. सुप्रीम कोर्ट के न्यायाधीश बनने से पहले, जस्टिस खन्ना 2005 से 14 वर्षों तक दिल्ली उच्च न्यायालय में न्यायाधीश रहे.

सुप्रीम कोर्ट की वेबसाइट पर मौजूद जस्टिस खन्ना की डिटेल्स के मुताबिक, उन्होंने दिल्ली हाईकोर्ट में एडीशनल पब्लिक प्रॉसिक्यूटर और कई आपराधिक मामलों में कोर्ट की तरफ से न्याय मित्र के रूप में बहस की थी. टैक्सेशन के मामलों में उन्हें काफी महारत हासिल है और उन्होंने दिल्ली हाईकोर्ट में इनकम टैक्स डिपार्टमेंट के लिए सीनियर स्टैंडिंग काउंसिल के रूप में सात साल तक काम किया है.

जस्टिस खन्ना को जनवरी 2019 में सुप्रीम कोर्ट में पदोन्नत किया गया था. सुप्रीम कोर्ट के जज के रूप में उनकी नियुक्ति पर काफी विवाद भी हुआ था क्योंकि उम्र और अनुभव में उनसे वरिष्ठ 33 जजों के लाइन में होने के बावजूद उन्हें सीधे सुप्रीम कोर्ट में नियुक्त किया गया था. मगर यह नियुक्ति उनकी काबिलियत को देखते हुए की गयी थी.

अप्रैल 2024 में जस्टिस खन्ना ने वोटर वेरिफिएबल पेपर ऑडिट ट्रेल (वीवीपीटी) और इलेक्ट्रॉनिक वोटिंग मशीनों (ईवीएम) में डाले गए वोटों के क्रॉस-वेरिफिकेशन से जुड़ी याचिका को खारिज कर दिया था. यह मामला भी काफी चर्चा में रहा. उन्होंने अपने फैसले में ईवीएम की पवित्रता और देश के चुनाव आयोग पर भरोसे को लेकर विस्तार से लिखा है. मार्च में जस्टिस खन्ना की अध्यक्षता वाली बेंच ने चुनाव आयुक्तों की नियुक्ति से जुड़े कानून पर रोक लगाने से जुड़ी याचिका को भी खारिज कर दिया था. उन्होंने कहा था कि इस साल होने वाले लोकसभा चुनाव को देखते हुए रोक लगाना सही नहीं है. हालांकि अदालत ने जल्दबाजी में चुनाव आयुक्तों की नियुक्ति के लिए सरकार की आलोचना भी की.

बीते दिनों लोकसभा चुनाव की दुदुम्भी बजने से ठीक पहले चुनावी बांड की वैधता मामले में सुप्रीम कोर्ट की पांच जजों की बेंच ने जो फैसला दिया वह भाजपा के गले की हड्डी साबित हुआ. एसबीआई पर इतने कोड़े फटकाये कि किस राजनीतिक पार्टी को कितना चन्दा मिला और कहाँ कहाँ से मिला, इसकी पूरी जानकारी बैंक कोर्ट के पटल पर रखने को मजबूर हुआ. सुप्रीम कोर्ट के सभी पांचों जजों ने एक राय से चुनावी बांड योजना को असंवैधानिक करार देते हुए रद्द कर दिया. यह ऐतिहासिक फैसला देने वाली बेंच में जस्टिस संजीव खन्ना भी शामिल थे. चुनावी प्रक्रिया में ‘सफाई’ को लेकर आए सुप्रीम कोर्ट के फैसले के पीछे तीन महीने की अथक मेहनत लगी. सुप्रीम कोर्ट के 232 पेज के फैसले में सीजेआई डी वाई चंद्रचूड़ ने 158 पेज लिखे और बाकी जस्टिस संजीव खन्ना ने लिखे थे.

चुनाव आयोग की राजा से दोस्ती, विपक्षी से बैर

चुनावी खर्च जिस तरह बेलगाम होते जा रहे हैं उस पर यह एक टिप्पणी बहुत महत्त्वपूर्ण है, “बेहतर होगा कि चुनाव आयोग इन मामलों की खुद जांच करे. पता लगाए कि अवैध बरामदगी के पीछे कौन सा प्रत्याशी या दल है और फिर उस के खिलाफ सख्त कार्रवाई हो. इस तरह की सख्ती के बिना चुनावों में धनबल का दखल नहीं रुकेगा.
“यह सही है कि चुनाव में धनबल का प्रयोग रोकने के लिए चुनाव आयोग की सतर्कता बढ़ी है लेकिन यह सिर्फ धरपकड़ तक सीमित है. ऐसे मामलों में सजा की दर बहुत कम है, क्योंकि चुनाव के बाद स्थानीय प्रशासन और पुलिस मामले को गंभीरता से नहीं लेते. अकसर असली सरगना छुटभैयों को फंसा कर बच जाते हैं.”

-बृजेश माथुर (सोशल मीडिया से)

दरअसल, लोकतंत्र का महाकुंभ कहलाने वाले लोकसभा चुनाव में आज जिस तरह करोड़ों रुपए प्रत्येक लोकसभा संसदीय क्षेत्र में खर्च हो रहे हैं उस से साफ हो जाता है कि आम आदमी या कोई सामान्य योग्य व्यक्ति संसद में पहुंचने के लिए 7 जन्म लेगा तो भी नहीं पहुंच पाएगा.

लोकसभा चुनाव 2024 में माना जा रहा है कि खर्च के मामले में पिछले सारे रिकौर्ड ध्वस्त हो जाएंगे और दुनिया का सब से बड़ा लोकतांत्रिक देश कहलाने वाले भारत राष्ट्र में चुनावखर्च अपनी पराकाष्ठा पर होंगे अर्थात भारत दुनिया की सब से खर्चीली चुनावी व्यवस्था होगी.

चुनाव पर गंभीरता से नजर रखने वाले जानकारों के अनुसार इस बार लोकसभा चुनाव 2024 में अनुमानित खर्च के 1.35 लाख करोड़ रुपए तक पहुंचने की संभावना है.
दरअसल, चुनाव को विहंगम दृष्टि से देखा जाए तो राजनीतिक दलों और संगठनों, उम्मीदवारों, सरकार और निर्वाचन आयोग सहित चुनावों से संबंधित प्रत्यक्ष या परोक्ष सभी खर्च शामिल हैं. चुनाव संबंधी खर्चों पर बीते 4 दशकों से नजर रख रहे गैरलाभकारी संगठन के अध्यक्ष एन भास्कर राव के दावे के अनुसार लोकसभा चुनाव में अनुमानित खर्च के 1.35 लाख करोड़ रुपए तक पहुंचने की उम्मीद है.

विशेषज्ञों का मानना है कि भारत में राजनीति वित्तपोषण में पारदर्शिता की अत्यंत कमी का खुलासा हुआ है. चुनावी बौंड के खुलासे से साफ हो गया है कि पार्टियों के पास खुल कर खर्च करने के लिए धन है. राजनीतिक दलों ने उस धन को खर्च करने के रास्ते तैयार कर लिए हैं.

जैसा कि हम जानते हैं देश में कालेधन की बात की जाती है, भ्रष्टाचार की बात की जाती है. ये सबकुछ चुनाव के दरमियान देखा जा सकता है और चौकचौराहे पर इस पर चर्चा होने लगी है कि आखिर प्रमुख राष्ट्रीय दलों के प्रत्याशी करोड़ों रुपए जो खर्च कर रहे हैं वह आता कहां से है मगर इस दिशा में न तो सरकार ध्यान दे रही है और न ही चुनाव आयोग या फिर उच्चतम न्यायालय या सरकार की कोई जांच एजेंसी ही.

जहां तक बात है भारतीय जनता पार्टी की, इस चुनाव में सत्ता प्राप्त करने के लिए नरेंद्र मोदी के नेतृत्व में भारतीय जनता पार्टी वह सबकुछ कर रही है जो कोई कल्पना भी नहीं कर सकता. इस का आज की तारीख में आकलन नहीं लगाया जा सकता. हो सकता है आने वाले समय में इस का खुलासा हो पाए कि भाजपा ने लोकसभा 2024 चुनाव में कितना खर्च किया. माना जा रहा है चुनावप्रचार में हो रहे खर्च के मामले में यह पार्टी देश के विपक्षी पार्टियों को बहुत पीछे छोड़ देगी.

एनजीओ के माध्यम से इस पर निगाह रखने वाले संगठन के पदाधिकारी के मुताबिक, उन्होंने प्रारंभिक व्यय अनुमान को 1.2 लाख करोड़ रुपए से संशोधित कर 1.35 लाख करोड़ रुपए कर दिया, जिस में चुनावी बौंड के खुलासे के बाद के आंकड़े और सभी चुनाव संबंधित खचों का हिसाब शामिल है.

एक अन्य संगठन ने हाल में भारत में राजनीतिक वित्तपोषण में पारदर्शिता की अत्यंत कमी की ओर इशारा किया था. उन्होंने दावा किया कि 2004-05 से 2022-23 तक, देश के 6 प्रमुख राजनीतिक दलों को कुल 19,083 करोड़ रुपए का लगभग 60 फीसद योगदान अज्ञात स्रोतों से मिला, जिस में चुनावी बौंड से प्राप्त धन भी शामिल था.
इसी तरह विदेश में बैठे भारत के चुनाव पर निगाह रखने वाले सम्मानित संगठन के अनुसार, “भारत में 96.6 करोड़ मतदाताओं के साथ प्रति मतदाता खर्च लगभग 1,400 रुपए होने का अनुमान है.” उस ने कहा कि यह खर्च 2020 के अमेरिकी चुनाव के खर्च से ज्यादा है, जो 14.4 अरब डौलर या लगभग 1.2 लाख करोड़ रुपए था.

एक विज्ञापन एजेंसी के मुख्य कार्यकारी अधिकारी अमित वाधवा के मुताबिक, लोकसभा 2024 के इस चुनाव में डिजिटल प्रचार बहुत ज्यादा हो रहा है. उन्होंने कहा कि राजनीतिक दल कौर्पोरेट ब्रैंड की तरह काम कर रहे हैं और पेशेवर एजेंसियों की सेवाएं ले रहे हैं.

इस तरह लोकसभा चुनाव, जो आज हमारे देश में लड़ा जा रहा है, में राजनीतिक पार्टियां सत्ता प्राप्त करने के लिए सीमा से अधिक खर्च कर रही हैं. यह सभी मान रहे हैं कि ऐसे में अगर हम नैतिकता की बात करें तो जब कोई पार्टी या प्रत्याशी करोड़ों रुपए खर्च कर के चुनाव जीतते हैं तो स्पष्ट है कि वे आम जनता के लिए उत्तरदाई नहीं हो सकते. वे पहले अपना लगाया पैसा वसूलने की कोशिश ही करते हैं या जिन लोगों ने उन्हें रुपएपैसे की मदद की है तो फिर चुने हुए प्रतिनिधि निश्चित रूप से उन्हीं के लिए काम करेंगे.

मंदाकिनी मामले से उजागर हुआ कि महामंडलेश्वर बनने के लिए मारामारी और घूसखोरी क्यों

पैसा कलियुग का ही नहीं, बल्कि हर युग का भगवान रहा है, जिस का एक रूप घूस है जो आमतौर पर बुरी मानी जाती है. घूस का चलन दरअसल धर्म से ही आया है. भगवान से देवीदेवताओं से कोई काम कराना हो तो घूस पंडेपुजारियों के जरिए दी जाती है, जो ऊपर नहीं जाती बल्कि नीचे लेने वाले की रोजीरोटी और ऐशोआराम की जिंदगी का जरिया होती है. लड़की की शादी से बच्चे पैदा होने तक घूस दी जाती है.

मानव जीवन का ऐसा कोई काम नहीं है जो धार्मिक रिश्वत से न होता हो. यह और बात है कि जिन के काम नहीं होते वे अपने भाग्य और कर्मों को कोसते हल्ला नहीं मचाते और जिन के इत्तफाक से हो जाते हैं वे चिल्लाचिल्ला कर दुनिया को बताते हैं कि देखो, मैं ने दान दिया और मैं सरकारी अफसर बन गया.

यह भी और बात है कि अकसर इस यजमान ने नीचे वालों को भी घूस दी हुई होती है. लेकिन वह इन दिखने वालों के बजाय श्रेय न दिखने वाले ऊपरवाले को देता है. यानी घूस नीचेऊपर दोनों जगह चलती है. फर्क सिर्फ इतना है कि ऊपरवाले को दी गई घूस दक्षिणा कहलाती है और जो इसे ऊपर तक पहुंचाने का जिम्मा लेता है उसे दलाल नहीं बल्कि पुजारी या पंडा कहा जाता है. घूस का यह कारोबार खरबों का है जिस से लाखोंकरोड़ों के पेट पल रहे हैं.

धार्मिक घूस पंडे और मंदिर की हैसियत के मुताबिक दी जाती है. छोटे मंदिर में 11 से ले कर 101 रुपए में काम चल जाता है तो ब्रैंडेड मंदिरों में लाखोंकरोड़ों की घूस दी जाती है. यहां भक्त यानी ग्राहक की हैसियत अहम हो जाती है, वरना तो भगवान अगर होता तो दोनों ही जगह एक ही रहता, फर्क भव्यता, शो बाजी और झांकी का रहता है.

महामंडलेश्वर बनने को भी घूस

घूस का यह दिलचस्प मामला धार्मिकनगरी महाकाल से उजागर हुआ है जिस में एक छोटी हैसियत वाले पंडे ने अपग्रेड होने के लिए एक महामंडलेश्वर को घूस दी लेकिन काम नहीं बना तो पोलपट्टी खुल गई. घूस लेने वाली महिला का नाम है मंदाकिनी पुरी देवी, जिन का सांसारिक नाम ममता जोशी है. भरेपूरे बदन वाली अधेड़ मंदाकिनी के चेहरे से ही तेज टपकता दिखता है जो त्याग, तपस्या का है या कौस्मेटिक आइटम का, यह तय कर पाना मुश्किल है.

कुछ दिनों पहले तक वे निरंजनी अखाड़े की महामंडलेश्वर हुआ करती थीं. इस नाते उन का रुतबा ही कुछ जुदा था. जहां से मंदाकिनी गुजरती थीं, भक्त उन के चरणों में बिछ जाते थे. छोटेमोटे पंडेपुजारी उन की नजदीकियां पा कर खुद को ठीक वैसे ही धन्य समझते थे जैसे कोई पटवारी या तहसीलदार कलैक्टर का सान्निध्य पा कर रोमांचित हो जाता है.

बीती 6 मई को न केवल उज्जैन बल्कि देशभर के धार्मिक गलियारों में उस वक्त सनसनी मच गई जब उज्जैन के चिमनगंज थाने में महामाया आश्रम के एक संत सुरेश्वरा नन्द ने रिपोर्ट दर्ज कराई कि निरंजनी अखाड़े की महामंडलेश्वर मंदाकिनी पुरी और उन के 2 सहयोगियों ने मुझ से 15 अप्रैल को 7.50 लाख रुपए श्रीपंचायती निरंजनी अखाड़े का महामंडलेश्व बनवाने के नाम पर ले लिए लेकिन बनवाया नहीं और न ही मांगने पर दिए गए पैसे वापस लौटाए.

शिकायतकर्ताओं की लाइन

इस शिकायत पर पुलिस ने मंदाकिनी के खिलाफ धारा 420 के तहत मामला दर्ज कर लिया. लेकिन गिरफ्तार कर पाती, इस के पहले ही इस देवी माता ने जहर खा कर जान देने की कोशिश की. चूंकि अभी ऊपर से बुलावा नहीं आया था या शायद जहर ही घटिया क्वालिटी का था, इसलिए उज्जैन के सरकारी अस्पताल में मामूली दवादारू से ही वे बच गईं.

बच तो गईं लेकिन हल्ला मचते ही उन के खिलाफ शिकायत करने वालों की लाइन लग गई. इन में से एक है नर्मदाशंकर जो जयपुर के अखाड़े से ताल्लुक रखता है. बकौल नर्मदाशंकर, मंदाकिनी देवी ने उस से 10 – 20 लाख रुपए अखाड़े में प्रमोशन यानी आचार्य महामंडलेश्वर बनवाने की बाबत मांगे थे जिस में से मैं ने 8 लाख 90 हजार रुपए 7-8 महीने में उन के बैंकखातों में ट्रांसफर भी किए थे. इस के पहले वे पटाभिषेक और भंडारे के नाम पर मुझ से 2.5 लाख रुपए ले चुकी थीं. यह एफआईआर उज्जैन के ही महाकाल थाने में दर्ज हुई.

इस के बाद तो शिकायत करने वालों की लाइन लग गई मानो कोई चिटफंड कंपनी लोगों का पैसा ले कर भाग गई हो और एक के शिकायत करने के बाद सैकड़ों लोग थाने के बाहर फरियाद ले कर पहुंच जाते हैं कि साहब, हम ने भी इतने लाख या हजार रुपए इन्वैस्ट किए थे.

नौकरी दिलाने वाले गिरोह के मामलों में भी यही होता है कि ठगाए गए लोग एक के बाद एक थाने के बाहर रोती सूरत लिए खड़े नजर आते हैं कि हमें भी नौकरी दिलाने के नाम पर इतना या उतना चूना लगाया गया था. यही लुटेरी दुलहनों के मामलों में होता है कि दोचार दूल्हे शिकायत ले कर पहुंच जाते हैं कि हम तो सुहागरात भी ढंग से नहीं मना पाए थे कि चंद घंटों की बीवी लाखों के गहने और नकदी ले कर चम्पत हो गई.

लूटे गए शिकायतकर्ता

मंदाकिनी के मामले में तीसरे शिकायतकर्ता मोन तीर्थ के महामंडलेश्वर सुमनानन्द थे जिन्हें राज्यपाल बनवाने का औफर मंदाकिनी ने यह कहते दिया था कि मैं अमित शाह से बात करूंगी. यहां से खुलती है इन धर्माचार्यों की महत्त्वाकांक्षाओं की पोल. उन की विलासी जिंदगी की हकीकत जो धर्म का वीभत्स सच है.
इस महामंडलेश्वर को शेर की खाल पर बैठने का न केवल मंदाकिनी ने मशवरा दिया था बल्कि हरिद्वार से 5 लाख रुपए में इसे अरेंज करने का वादा भी किया था. यह डील परवान चढ़ी या नहीं, इस बाबत सुमनानंद कुछ नहीं बोले. एक और महामंडलेश्वर अन्नपूर्णा उर्फ़ वर्षा नागर की मानें तो मंदाकिनी ने उस से 35 लाख रुपए मांगे थे और वादा यह किया था कि वे उसे गौ संवर्धन बोर्ड का अध्यक्ष बनवा देंगी.

ओहदों का लालच

क्या ये लोग मंदाकिनी से कम दोषी नहीं जो रिश्वत दे कर बड़े धार्मिक और राजनीतिक ओहदे हासिल करने के ख्वाहिशमंद थे. क्या यही भगवान की भक्ति या सेवा है, यह तो अब आम भक्तों के सोचने की बात है कि इन साधुसंतोंसंयासियों के पास इतना पैसा आता कहां से है जो ये अपनी ही बिरादरी की एक संयासिन को लाखों की घूस दे रहे थे.

भक्तों को मोहमाया से दूर रहने और पैसे को हाथ का मेल बताने वाले ये मठाधीश लालच और मुफ्त की कमाई की कितनी गहरी दलदल में धंसे हैं, यह वे खुद अपने मुंह से स्वीकार रहे हैं. इस के बाद भी इन्हें पूजा जाता है, इन के पैरों में भक्त लोट लगाते हैं तो वे भी कम गुनाहगार नहीं कहे जा सकते. जो समाज खुद लालची, भाग्यवादी और अंधविश्वासी होगा, उस के धर्मगुरु भी वैसे ही होंगे और यह आज का नहीं बल्कि सदियों का सनातनी सच है.

इस कड़वे सच की अगली कड़ी हैं एक कथावाचक भगवान बापू. उस ने भी महामंडलेश्वर बनने के लिए मंदाकिनी से 15 लाख रुपए में सौदा किया था और एक लाख रुपए एडवांस दे भी दिए थे. मुमकिन है भगवान के कुछ और भक्त भी प्रगट हों जो भगवान की ही इस भक्तिन के हाथों ठगाए गए हों लेकिन हल्ला मचने के बाद मंदाकिनी से ताल्लुक रखती कई बातें सुर्खियों में हैं, मसलन यह कि वे महाकाल थाने के बाहर धरना दे कर बैठ जाती थीं. एक बार उस ने महाकाल मंदिर के गर्भगृह में प्रवेश न मिलने पर भी जम कर हंगामा मचाया था और एक बार उस के साथ छेड़छाड़ भी हुई थी.

विकट की महत्त्वाकांक्षी यह देवी दरअसल रामदेव की तर्ज पर आयुर्वेद का धंधा कर उन्हीं की तरह अरब खरबपति बन जाना चाहती थी. इस बाबत उस ने जयपुर की एक हर्बल कंपनी से आयुर्वेद के प्रोडक्ट खरीद कर अपना फोटो और लेबल मां आरोग्य मंदाकिनी नाम से लगा कर बेचना शरू कर दियाथा. ये प्रोडक्ट नहीं बिके तो उस ने इस कंपनी के भी 2 लाख रुपए हड़प लिए. अब इस कंपनी के मालिक संदीप शर्मा ने अखाड़ा परिषद को आवेदन दिया है कि वह बकाया पेमैंट करे.

महामंडलेश्वर यानी दौलत और शोहरत की गारंटी

यह सारे फर्जीवाड़े में संभावना इस बात की ज्यादा दिख रही है कि यह संतों की आपसी गुटबाजी का नतीजा हो. सच जो भी हो लेकिन मंदाकिनी पुरी को महामंडलेश्वर बनाने वाले अखाड़ा परिषद के अध्यक्ष रविन्द्र पुरी का रोल इस में अहम रहा जिन की अगुआई में मंदाकिनी के खिलाफ रिपोर्ट दर्ज हुई.

7 मई को ही अखाड़ा परिषद ने मंदाकिनी को निष्कासित कर दिया था ठीक वैसे ही जैसे घूसखोर मुलाजिम को सस्पैंड कर दिया जाता है. इन पंक्तियों के लिखे जाने तक मंदाकिनी अस्पताल में इलाज करवा रही थी और किसी को पहचान नहीं पा रही थी जिस से पुलिस उस के बयान नहीं ले पाई.

सारे बखेड़े से उजागर यह भी होता है कि महामंडलेश्वर बन जाने से संत समुदाय कुछ भी कर गुजरने और घूस देने को भी तैयार रहता है. जाहिर है, इस से कुछ नहीं बल्कि कई फायदे होते हैं जैसे पूछपरख बढ़ जाती है, रुतबा और रसूख बढ़ जाते हैं और इन से भी ज्यादा अहम बात यह कि दानदक्षिणा ज्यादा मिलने लगती है.

पद की अहमियत

महामंडलेश्वर का पद आदि शंकराचार्य ने सृजित किया था जिस का मकसद सनातन धर्म के प्रचारप्रसार के अलावा विभिन्न परंपराओं और मतों के संयासियों को एकजुट रखना भी था जो अकसर छोटेबड़े के नाम पर झगड़ा किया करते थे. इस के लिए विभिन्न अखाड़े भी वजूद में आए थे. पुराने दौर में साधुसंतों की मंडलियां हुआ करती थीं और जो मंडली का संचालन करता था. उसे मंडलीश्वर कहा जाता था. यह शब्द या उपाधि वक्त के साथ महामंडलेश्वर हो गया.

पहले यह पद उसी को दिया जाता था जिसे धर्मग्रंथों, खासतौर से वेदों और गीता, का ज्ञान होता था. जब दुकानें बढ़ने लगीं तो अखाड़ा कमेटियां भी बनने लगीं जो महामंडलेश्वर का चुनाव करती थीं. नागा, शैव और वैष्णव के साथसाथ दूसरे संप्रदायों के कितने अखाड़े और कितने महामंडलेश्वर हैं, इस का ठीकठाक आंकड़ा उपलब्ध नहीं लेकिन घोषिततौर पर 13 अखाड़े हैं जिन में 1,000 से भी ज्यादा महामंडलेश्वर हैं. लेकिन अब हर कोई महामंडलेश्वर बन सकता है. राधे मां भी महामंडलेश्वर थीं. हालांकि अखाड़ों का अपना एक स्ट्रक्चर यानी पदक्रम होता है जिस में अलगअलग पदनाम सीनियरटी और जूनियरटी से होते हैं.

आचार्य महामंडलेश्वर का पद महामंडलेश्वर से भी बड़ा होता है जिसे हासिल करने को नर्मदाशंकर ने मंदाकिनी को घूस दी थी. जाहिर है, सरकारी दफ्तरों की तरह अखाड़ों में भी आउट औफ टर्न प्रमोशन के दांवपेंच यथा रिश्वत और सिफारिश वगैरह चलते हैं. कुंभ के मेले में शाही स्नान के वक्त महामंडलेश्वर को प्राथमिकता दी जाती है जिसे ले कर हर कुंभ विवाद हुआ करते हैं कि पहले यह अखाड़ा डुबकी लगाएगा, फिर वह और फिर वह लगाएगा. बहुत आसान तरीके से समझें तो किसी पुलिस इंस्पैक्टर के एसपी बन जाने से इस की तुलना की जा सकती है जिसे बंगला, कार, दफ्तर में आलीशान चैंबर, अर्दली, ड्राइवर और दूसरी दर्जनों सहूलियतें मिली होती हैं. पगार और अधिकार तो ज्यादा होते ही हैं. मंदाकिनी के मामले ने तो धर्म की दुनिया की एक सचाई उजागर की है कि भक्तों के पैसों से चलने और पलने वाले महामंडलेश्वरों की वास्तविकता क्या है.

कश्मीर से भाजपा ने अपने कैंडिडेट नहीं उतारे, जानें क्या है वजह

कश्मीर का मुद्दा भारतीय जनता पार्टी के लिए अस्मिता का कहा जा सकता है. कश्मीर को ले कर भाजपा ने राजनीति करने और जनभावनाओं को नएनए मोड़ देने का काम सदैव किया. मगर सवाल यह है कि लोकसभा 2024 के चुनाव में ‘कश्मीर’ में उस ने अपने प्रत्याशी क्यों नहीं उतारे हैं? यह सवाल देश के बहुत से लोगों को मालूम ही नहीं है. आइए, आज देश के सब से सरगर्म विषय कश्मीर पर कुछ नई जानकारियां आप को देते हैं.

अमेठी से राहुल गांधी चुनाव नहीं लड़ रहे तो नरेंद्र मोदी कह रहे हैं, ‘राहुल गांधी डर गए, डरो मत, भागो मत.’

मगर कश्मीर से भारतीय जनता पार्टी स्वयं पलायन कर गई और वहां की तीनों महत्त्वपूर्ण लोकसभा सीटों पर चुनाव नहीं लड़ा. इस पर कुछ भी कहने से बचा जा रहा है. सवाल है क्या भारतीय जनता पार्टी, प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी कश्मीर में चुनाव नहीं लड़े तो आखिर किस बात का डर था?

प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी ने दावा किया, ‘लोकसभा चुनाव में कांग्रेस अब तक की सब से कम सीटों पर सिमट जाएगी. देश की सब से पुरानी पार्टी आम चुनाव में ‘अर्धशतक’ का आंकड़ा पार करने के लिए संघर्ष कर रही है.’

नरेंद्र मोदी ने उत्तर प्रदेश की रायबरेली सीट से चुनाव लड़ने के फैसले पर कांग्रेस नेता राहुल गांधी पर तंज कसा और कहा, ‘अरे, डरो मत, भागो मत.’ फिर कहा, ‘वैसे वायनाड में ‘हार के डर’ से राहुल ने यह कदम उठाया है.’

बर्द्धमान-दुर्गापुर और कृष्णानगर लोकसभा क्षेत्रों में रैलियों को संबोधित करते हुए प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी ने राहुल गांधी का नाम लिए बगैर कहा, ‘उन्होंने पहले ही बता दिया था कि ‘शहजादे’ वायनाड में हारने वाले हैं. वायनाड में जैसे मतदान समाप्त होगा, हार के डर से वे तीसरी सीट खोजने लग जाएंगे. राहुल अमेठी से भी इतना डर गए कि वहां दोबारा जाने की हिम्मत नहीं जुटा पाए.’

उन्होंने कहा, ‘ये लोग घूमघूम कर सब से कहते हैं ‘डरो मत.’ मैं भी इन्हें कहता हूं, ‘अरे, डरो मत. भागो मत.’

प्रधानमंत्री ने इस के साथ पूर्व कांग्रेस अध्यक्ष सोनिया गांधी पर भी निशाना साधा और कहा, ‘उन्होंने 3 महीने पहले ही दावा किया था कि कांग्रेस की सब से बड़ी नेता इस बार चुनाव लड़ने की हिम्मत नहीं करेंगी. वे भाग कर राजस्थान गईं और राज्यसभा में आईं.’

मजे की बात यह है कि यह जो भाषण नरेंद्र मोदी दे रहे हैं उस में राहुल गांधी का नाम नहीं ले रहे हैं तो क्या वे राहुल गांधी का नाम लेने से भी डरते हैं? इस का जवाब भी उन्हें देना चाहिए.

भाजपा और कश्मीर

देश जानता है कि कश्मीर पर नरेंद्र मोदी की सरकार की दृष्टि सतत रही है और वे धरती के स्वर्ग पर भारतीय जनता पार्टी का झंडा लहराना चाहते हैं, विधानसभा में भी और लोकसभा में भी. मगर मजे की बात यह है कि 2024 की लोकसभा चुनाव में कश्मीर की तीनों सीटों से भाजपा पलायन कर गई और अपना प्रत्याशी खड़ा नहीं करने का फैसला किया.

नरेंद्र मोदी बीजेपी को दुनिया की सब से बड़ी पार्टी बताने से गुरेज नहीं करते. मगर कश्मीर में चुनाव लड़ने से अपने कदम पीछे हटा लिए तो उस का सीधा सा मतलब है कि वे जानते थे कि यहां भाजपा बुरी तरह हारने वाली है.

सारी दुनिया को पता है भाजपा ने 2019 में जम्मूकश्मीर से धारा 370 हटाई थी. साथ ही, आतंकवाद में कमी, आर्थिक निवेश बढ़ाने और पर्यटन के विकास का दावा किया था. मगर जब लोकसभा चुनाव की रणभेरी बजी, सब आश्चर्य में रह गए क्योंकि भाजपा ने यहां से आंखें मूंद लीं. मनु भाजपा शुतुरमुर्ग बन गई.

भाजपा के राष्ट्रीय अध्यक्ष जे पी नड्डा से नहीं बल्कि कश्मीर के प्रदेश अध्यक्ष रविंद्र रैना से कहलवाया गया कि भाजपा श्रीनगर, बारामूला और अनंतनाग-राजौरी की सीटों पर उम्मीदवार नहीं उतारेगी. सनद रहे कि जम्मूकश्मीर 2019 से पहले जब पूर्ण राज्य था तो यहां लोकसभा की कुल 6 सीटें थी. अब लद्दाख अलग संघ शासित क्षेत्र है और जम्मूकश्मीर अलग संघ शासित क्षेत्र. जम्मू और ऊधमपुर की सीटें हैं तो लद्दाख की सीट अलग है.

दरअसल, सचाई यह है कि भाजपा ने चुनाव पूर्व सर्वे कराया था, उस में घाटी की तीनों सीटों पर पार्टी की स्थिति कमोबेश कमजोर होने की सामने आई. निश्चित रूप से इसीलिए नरेंद्र मोदी ने हारने से अच्छा इन सीटों पर चुनाव न लड़ना उचित समझा होगा. आने वाले सितंबर 2024 में कश्मीर घाटी में विधानसभा चुनाव होने हैं. ऐसे में भाजपा के सामने यह ऐसी चुनावी बिसात बन गई है जिसे न उगलते बन रहा है, न निगलते.

शादीशुदा जीवन में अंडरस्टैंडिंग नहीं तो मन बाहर वाले के साथ ही हलका होगा

सारंगी के पति मयंक पेशे से डाक्टर हैं. प्रैक्टिस अच्छी चल रही है. अपना नर्सिंगहोम है. पैसे की कमी नहीं है. शादी को 16 साल हो गए हैं. एक बेटा है जो देहरादून के एक बोर्डिंग स्कूल में पढ़ रहा है. सारंगी घर का और मयंक का काफी ख़याल रखती है. वह मयंक के दोस्तों और रिश्तेदारों की भी खूब आवभगत करती है. मयंक अपने मरीजों के किस्से उस को सुनाता है. दोस्तों की बातें बताता है. पौलिटिक्स और क्रिकेट की बात करता है. वह बड़े ध्यान से सुनती है. होंठों पर मुसकान सजाए उस की हां में हां मिलाती है, मगर खुद उस के पास मयंक से कहनेबोलने को कुछ नहीं होता.

मयंक अपने दोस्तों से सारंगी की खूब तारीफ करता है. कहता है, ‘मेरी पत्नी बहुत समझदार है. एंड शी इज अ गुड लिस्नर औल्सो.’ इस तारीफ को सुन कर सारंगी मन ही मन सोचती है, ‘तुम से क्या बात करूं, तुम मुझे जानते ही कितना हो?’

दरअसल, शादी के इतने साल साथ रहने के बाद भी मयंक सारंगी की पसंदनापसंद को समझ नहीं पाया. वह अपने काम में ही मशगूल रहता है. शाम को आता है तो उस के पास अपनी बातें होती हैं, वह कभी सारंगी से नहीं पूछता कि तुम क्या सोचती हो? सारा दिन घर में अकेले रहती हो तो क्या करती हो? टीवी पर कौन से शो देखती हो? पढ़ने का मन करता है तो क्या पढ़ती हो?

शुरूशुरू में उस ने सारंगी के दोस्तों के बारे में जानना चाहा. कुछ दूर और पास के रिश्तेदारों के बारे में जाना. बस, सारंगी को ही नहीं जान पाया. अब सारंगी चाहती भी नहीं कि वह उस के बारे में कुछ भी जाने क्योंकि अब उस ने अपनी बातें शेयर करने के लिए कालेजटाइम का एक दोस्त ढूंढ लिया है, अरुण नायर.

अरुण आजकल दिल्ली में थिएटर कर रहा है. कालेजटाइम से उस को ऐक्टिंग का शौक था. लिखता भी है. सारंगी को भी लिखने और गाने का शौक है. उस ने कई गीत लिखे, गुनगुनाए मगर मयंक को नहीं मालूम. सारंगी ने कभी बताया ही नहीं. बताया इसलिए नहीं क्योंकि मयंक को काव्य की समझ नहीं है. मगर अरुण ने उस के सारे गीत सुने हैं. उन की तारीफ की है. उस की तारीफ से सारंगी का रोमरोम प्रफुल्लित हो उठता है.

मयंक के जाने के बाद वह घंटों अरुण से फोन पर बातें करती है. हर तरह की बातें करती है. दोतीन बार मंडी हाउस अरुण की रिहर्सल भी देखने गई. उस के साथ मार्केट घूमी. उस की पसंद से शौपिंग की. सारंगी को उस का साथ पा कर बहुत अच्छा लगा.

अरुण को भी सारंगी का साथ अच्छा लगता है. वजह यह है कि उस की पत्नी नीलम को ऐक्टिंग में न कोई रुचि है और न समझ. बनिया परिवार की लड़की है. पैसे को दांत से पकड़ती है और उस की सारी सोच बस पैसे के इर्दगिर्द ही घूमती है. उस ने अरुण के कई नाटक देखे और घर आ कर उस के काम की तारीफ या समीक्षा करने के बजाय इस बात पर लड़ती कि नाटक में वह लड़की तुम से इतना क्यों लिपट रही थी? अब तो अरुण ने उस को शो में ले जाना ही बंद कर दिया है.

अरुण और सारंगी दोनों क्रिएटिव और आर्टिस्टिक नेचर के लोग हैं. गूढ़, गंभीर, चीजों को गहराई से समझने वाले अति संवेदनशील. इसलिए दोनों एकदूसरे के साथ काफी कंफर्टेबल हैं और काफी खुले हुए हैं. उन के बीच कोई दुरावछिपाव नहीं है. दोनों को एकदूसरे के साथ की भूख है. मगर यह भूख मानसिक है, शारीरिक नहीं.

मयंक और सारंगी जैसे या अरुण और नीलम जैसे कपल बहुत सारे हैं. दुनिया के सामने वे बेस्ट कपल हो सकते हैं. मगर हकीकत में एक छत के नीचे 2 अनजान व्यक्तियों की तरह होते हैं.

एंजौय करते प्रौढ़ जोड़े

पश्चिमी देशों में युवा जोड़े ही नहीं, बल्कि प्रौढ़ जोड़े भी जिंदगी को एकदूसरे के साथ एंजौय करते हैं. एकसाथ सैरसपाटे के लिए जाते हैं. हंसीमजाक और खूब बातें करते हैं. पार्टी, शराब को इकट्ठे एंजौय करते हैं. एकदूसरे की बांहों में समाए देररात तक डांसफ्लोर पर रहते हैं. एकदूसरे की पसंदनापसंद की परवा करते हैं और एकसाथ काफी कंफर्टेबल होते हैं.

पश्चिमी जोड़े अगर अपना घर तलाश रहे होते हैं तो उस में दोनों की पसंदनापसंद शामिल होती है. जबकि इस के उलट, भारतीय युगल सालदोसाल में ही अपने पार्टनर से इतने उकता जाते हैं कि फिर उन के बीच बात करने का कोई टौपिक ही नहीं होता. वजह यह है कि यहां शादी की नहीं जाती बल्कि थोपी जाती है. 2 अनजान लोग एक तय तारीख के बाद एक कमरे में रहेंगे, सैक्स करेंगे और बच्चे पैदा करेंगे, यह उन के मातापिता और रिश्तेदार तय करते हैं. जिन 2 प्राणियों को कमरे में बंद किया जा रहा है उन की सोच, आदतें, विचारधारा एकदूसरे से भिन्न होती हैं.

प्रेम की पहली सीढ़ी दोस्ती

प्रेम की पहली सीढ़ी दोस्ती होती है. दोस्ती हम उन लोगों से करते हैं जिन के विचार और आदतें हमारे जैसी ही होती हैं. मगर भारत में शादी इस आधार पर नहीं होती. इसीलिए ज्यादातर जोड़ों को असल प्रेम की अनुभूति जीवनभर नहीं होती. दोनों समाज के दबाव में अपना रिश्ता निभाते हैं.

अकसर उन में से एक अपनी सोच को दबा लेता है और रिश्ता न टूटे, इसलिए मौन हो जाता है. यह काम ज्यादातर पत्नियां करती हैं क्योंकि वे ही दूसरे के घर पर रहने आई हैं. जहां से आई हैं, अब वहां उन के लिए पहले जैसा स्थान बचा नहीं, लिहाजा, वे ही एडजस्ट करती हैं, खामोश रह कर. ऐसे कपल के बीच कोई दिल को छूने वाली बात नहीं होती, कोई रोमांच नहीं होता, कोई रोमांस नहीं होता. वे शारीरिक संबंधों को भी मशीनी तरीके से अंजाम देते हैं.

रश्मि कहती है जब वह अपने पति के साथ हमबिस्तर होती है तो उस के खयालों में उस का प्रेमी होता है. वह कल्पना करती है कि वह उस के साथ समुद्र की लहरों पर खेल रही है. वह उस को हौले से स्पर्श कर रहा है. उस के कानों में अपनी बातों का रस घोल रहा है. वह जब तक मानसिक रूप से अपने प्रेमी को अपनी कल्पना में न लाए पति के साथ सैक्स के लिए तैयार ही नहीं हो पाती है.

एक ट्रेडिंग कंपनी के मालिक श्रीकांत गुप्ता उन की कंपनी में काम करने वाली रजनीबाला के साथ सारा समय बिताते हैं. रजनी उन से उम्र में काफी छोटी है मगर बातचीत और जानकारी में दोनों का लैवल बराबर है. यहां तक कि घर आने के बाद भी श्रीकांत गुप्ता पूरे वक़्त रजनी के साथ फोन पर बात करते रहते हैं. पत्नी के लिए उन के पास कुछ ही वाक्य हैं, जैसे खाना लगा दो. कल के लिए मेरे कपड़े निकाल दो या मैं सोने जा रहा हूं, लाइट औफ कर दो.

भारत में ज्यादातर पत्नियां पति का सम्मान करती हैं, उन को अपना मालिक समझती हैं, उस की हर बात का पालन करती हैं, तीजत्योहार, व्रत आदि को उसी तरह संपन्न करती हैं जैसे पति की मां करती आई हैं. वे पति के घर में रहती हैं, पति उन का खर्च उठाता है. वे पति के बच्चे पैदा करती हैं. पति के घर में नौकरों से ज़्यादा काम करती हैं, मगर प्रेम नहीं करतीं.

किसी दूसरे के घर का नौकर बनने से प्रेम नहीं होता. प्रेम तब होता है जब दोनों आर्थिक रूप से, मानसिक रूप से और भावनात्मक रूप से एकजैसे हों. प्रेम तब होता है जब दोनों एकदूसरे के दोस्त हों. एकदूसरे के गुणोंअवगुणों को जानते हों और स्वीकार करते हों. भारत में शादी के सालदोसाल बाद या बच्चे हो जाने के बाद पतिपत्नी के बीच कोई आकर्षण नहीं बचता. यहां तक कि वे साथ बैठ कर कोई टीवी शो भी एंजौय नहीं करते. पहले औरतें घुटघुट कर जीती थीं मगर मोबाइल फ़ोन मिल जाने से कुछ राहत मिली है और अनेक औरतें दिल की बातें दोस्तों से, पुराने प्रेमी से या किसी सहेली से कर के हलकी हो जाती हैं.

नशा व्हाट्सऐप का

‘पहले मुरगी आई या अंडा?’ यह प्रश्न हमें बचपन में अकसर पूछा जाता था. 7 दशकों बाद भी यह प्रश्न वहीं का वहीं है. आज भी इस का सही उत्तर किसी के पास नहीं है. यह बात मेरे दिमाग में तब आई जब एक पार्टी में बातचीत के दौरान किसी ने पूछा कि बताओ, कौन सा नशा बड़ा है, शराब का या व्हाट्सऐप का?
जब मैं ने बिना कुछ सोचे तपाक से कहा कि व्हाट्सऐप का तो एकदम से कई आवाज आईं,”इतने आत्मविश्वास के साथ कैसे कह सकते हो?”
“देखो, यह तो सीधी सी बात है. शराब का नशा बहुत ही कम लोग मुख्यतया पुरुष ही महसूस कर पाते हैं. देश के कुछ हिस्सों को छोड़ कर, जहां औरतें भी शराब पीती हैं, औरतों को शराब के नशे का पता ही नहीं. यही बात अधिकतर युवकों और बच्चों के बारे में भी कही जा सकती है. और फिर यह नशा तो कुछ देर बाद उतर भी जाता है लेकिन व्हाट्सऐप का नशा तो कुछ और ही किस्म का नशा है।  हरेक को हर समय चढ़ा ही रहता है.
“सड़क पर चलते हुए, बस में सफर करते हुए, औटो या टैक्सी चलाते हुए, पार्क में, मौल में कहीं भी, किसी को भी देख लो, फोन पर व्हाट्सऐप में ही लगा रहता है. 3-4 साल के बच्चों से ले कर बड़ेबूढ़े सभी इस में डूबे रहते हैं. अब यह नशा नहीं है तो क्या है?”
कहावत है, ‘रात गई, बात गई’ लेकिन इस बार ऐसा नहीं हुआ. अगली सुबह मेरी पत्नी मेरे पास आई और मोबाइल दिखा कर कहने लगी, “इस वीडियो को देखो.”
करीब 2 मिनट के उस वीडियो ने मुझे मंत्रमुग्ध कर दिया और मेरे मुंह से निकल पड़ा, “वाह, शराब और व्हाट्सऐप का अजीब संगम। क्या बढ़िया जुगलबंदी है.”
व्हाट्सऐप का वह वीडियो मुझे मेरी जवानी के उन दिनों में ले गया जब मैं और मेरे कुछ दोस्त बियर की एक बोतल में ही नशा महसूस करने लगते थे. शराब के किसी एक ही पहलू पर लिखे अलगअलग शायरों के शेर जो हम उन दिनों एकदूसरे को सुनाते थे, एक बार फिर से मेरे दिमाग में घूम गए.
इस वीडियो में भी कुछ शेर ‘शराब और मसजिद’ को ले कर पढ़े गए थे. हालांकि शेर पढ़ने का अंदाज सुनने में ठीक नहीं था, पढ़ कर देखिए, पढ़ने में बढ़िया है.
वीडियो के शुरू में जब किसी ने कहा, “जाहिद शराब पीने दे मसजिद में बैठ कर या वह जगह बता जहां पर खुदा न हो,” तो तुरंत ही इकबाल का यह शेर जवाब में हाजिर हो गया, “मसजिद खुदा का घर है कोई पीने की जगह नहीं, काफिर के दिल में जा वहां पर खुदा नहीं.”
अब ज्यों ही बात मसजिद से निकल कर काफिर पर आ गई तो किसी ने अहमद फराज का यह शेर पेश कर दिया, “काफिर के दिल से आया हूं, वहां पर जगह नहीं, खुदा मौजूद है वहां भी, काफिर को पता नहीं.”
अब शायरी तो शायरी है. शायद इसीलिए शायर ने खुदा को भी नहीं बख्शा और कहा, “खुदा मौजूद है पूरी दुनिया में, कहीं भी जगह नहीं, तू जन्नत में जा वहां पीना मना नहीं।”
वैसे, देखा जाए तो सच यही है कि जन्नत जाने को कोई भी मना नहीं करेगा लेकिन साकी की तो बात ही कुछ और है. उस का कहना था, “पीता हूं गम ए दुनिया भुलाने के लिए और कुछ नहीं, जन्नत में कहां गम है, वहां पीने में मजा नहीं.”
यह वीडियो जब मैं ने अपने बचपन के दोस्तों के व्हाट्सऐप ग्रुप में डाली तो मानों मधुमखियों के छत्ते में हाथ डाल दिया हो. इस उम्र में शराब पीने, न पीने पर बहस छिड़ गई.
‘शराब पीना अब सेहत के लिए अच्छा नहीं,’ ‘पियो मगर थोड़ी पियो,’ ‘बहुत पी चुके अब छोड़ दो,’ ‘खुदा के घर भी नशे मे ही जाओगे क्या,’ ‘शराब ही तो बुढ़ापे का सहारा है,’ ‘पैग के सहारे ही तो शाम कटती है…’ जैसी टिपणियां आने लगीं.
जब एक दोस्त ने लिखा, ‘अच्छा पी लो कुछ दिन और मगर एक दिन निश्चित कर लो जब छोड़ दोगे,’ तो एक दोस्त ने मुबारक अजीमाबादी का यस शेर लिख भेजा, ‘तू जो जाहिद मुझे कहता है कि तोबा कर ले, क्या कहूंगा जब कहेगा कोई कि पीना होगा.’ यह पढ़ते ही एक और ने लिखा, ‘इलाही क्यों करूं तोबा, कोई मैं रोज पीता हूं, उठा लेता हूं सावन में कभीकभी यारों के कहने पे.’
इस पर एक दोस्त ने, जो अकसर शांत रहता था और साल में एकाध बार ही कुछ लिखता था, लिखा, ‘मैं तो दाग देहलवी का दीवाना हूं और उस के कहे शेर कै दिन हुए हैं हाथ में सागर लिए हुए, किस तरह से तोबा कर लें अभी से हम’ पर यकीन करता हूं.’
लेकिन इस बहस का सब से बढ़िया जवाब राजेश का था जिस ने लिखा, ‘मैं कई बार तोबा कर चुका हूं लेकिन मेरी तोबा भी कोई तोबा है, जब बहार आई, तोड़ डाली है.’
हमारे ग्रुप में बात तो शराब से शुरू हुई थी लेकिन दोस्तों पर नशा व्हाट्सऐप का हावी होने लगा. सुरेश जिसे सब कुंभकरण कह कर बुलाते थे, क्योंकि वह 1 साल में 2 बार ही कुछ लिखता था, अब बढ़चढ़ कर हिस्सा लेने लगा.
एक दिन उस ने लिखा, ‘किस को याद है 11वीं कक्षा में हम ने शेरोशायरी की थी, जिस में केवल बोसे (चुंबन) पर ही शेर पढ़े गए थे…’ शायर तो अब याद नहीं लेकिन मैं ने यह शेर पढ़ा था, ‘हम बोसा ले के उन से अजब चाल कर गए, यों बख्शवा लिया कि यह पहला कुसूर था.’
‘अबे तू पहले पर ही लटका हुआ है शायर अमीर का कमाल देख. उस ने कहा है कि लिपटा जो बोसा ले के तो वह बोले कि देखिए, यह दूसरी खता है, वह पहला कुसूर था.’ बस फिर क्या था, दोस्तों में होड़ लग गई एकदूसरों से बढ़िया कुछ कहने की.
एक ने लिखा, ‘मुझे भी शायर का नाम तो याद नहीं लेकिन इतना जरूर पता है कि वह तुम्हारे 1-2 के चक्कर से बहुत आगे है. जानते हो वह क्या कहता है, ‘पढ़ो बोसे किए कुबूल तो गिनती भी छोड़ दो, ऐसा न हो पड़े कहीं झगड़ा हिसाब में.’
एक और दोस्त ने टिपण्णी की कि यार, तुम्हारे शायर तो हिम्मत वाले हैं लेकिन मेरा ग़ालिब बहुत ही सुलझा हुआ अक्लमंद इंसान है. वह किसी भी काम को बहुत सोचसमझ कर करता है. इस विषय पर उस का कहना है, ‘ले तो लूं सोते में उस के पांव का बोसा मगर, ऐसी बातों से वह काफिर बदगुमां हो जाएगा.’
एक अन्य दोस्त जिसे हम ‘सोया शेर’ कहते थे, अपने अंदाज में बोला, “माना गालिब गालिब है, उस का कोई सानी नहीं लेकिन किसी गुमनाम शायर का यह कलाम बेमिसाल है। ‘क्या नजाकत है कि आरिज (गाल) उन के नीले पड़ गए, हम ने तो बोसा लिया था ख्वाब में तसवीर का.”
जब सब तरफ से वाहवाह हो रही थी तब एक दोस्त को खयाल आया कि मैं तो अभी तक चुप हूं. उस ने अपनी चुप्पी तोड़ते हुए कहा,”भाई, मैं तो जिगर मोरादाबादी का प्रशंसक हूं और मेरे विचार में तो इस विषय पर उस का यह शेर ही सब से बढ़िया है,’बड़े गुस्ताख हैं, झुक कर तेरा मुंह चूम लेते हैं, बहुत सा तूने जालिम इन गेसुओं (बाल) को सर चढ़ाया है.”

 

लव यू दादी मां : क्यों आपनी सासुमां का मजाक बनाती थी नीरा

22 साल की छोटी सी उम्र में इला फैशन इंडस्ट्री का एक जानामाना नाम बन चुका है. इतना ही नहीं अब इला ने शाहपुरजाट इलाके में अपना नया शोरूम बना लिया है. साथ ही अपना ब्रैंड भी लौंच कर लिया है. अब वह बड़ेबड़े फैशन डिजाइनर को टक्कर देने लगी है. इला ने अपने नए ब्रैंड का नाम भी अनोखा सा ही रखा है,‘जे फौर जानकी.’ जब कोई उस से पूछता है कि उस ने अपने ब्रैंड का यह नाम क्यों चूज किया है तो इला फक्र से बताती है कि जानकी मेरी प्यारी दादी मां का नाम है. आज यदि मैं अपनी लाइफ में इस मुकाम तक पंहुची हूं तो सिर्फ दादी मां की वजह से. मेरी दादी मां ही मेरी लाइफ की मैंटर, मोटीवेटर व नेवीगेटर आदि सब हैं.
इला की दादी मां इला के औफिस में हर रोज इला के साथ औफिस में आती हैं. कुछ देर आरामकुरसी पर बैठती हैं और जब थक जाती हैं तो इला ड्राइवर के साथ घर वापस भेज देती है. इला के मन में यह अटल विश्वास है कि दादी मां का चेहरा देख कर दिन की शुरुआत करने से निश्चय ही उस का पूरा दिन बहुत अच्छा गुजरता है.
जब इला उन की तरफ देख कर लोगों को इंगलिश में उन की तारीफ में कसीदे पढ़ती है तो उन शब्दों का पूरा पूरा मतलब तो नहीं समझ पाती, पर इला के हावभाव से यह जरूर पता लग जाता है कि उन की पोती उन की तारीफ में ही कुछ कह रही है. दादी मां इला की इस अदा पर मन ही मन खुश हो कर उस को ढेर सारे आशीर्वाद दे डालती हैं. दादी मां के चेहरे पर मंदमंद मुसकराहट खिल जाती है. इस मुसकराहट के पीछे न जाने कितनी दर्द थी लकीरें अंकित हैं यह तो सिर्फ वे ही जानती हैं, फिर तुरंत ही अपने मन को यह कह घर समझा लेती हैं कि अंत भला तो सब भला.
इला उन के इकलौते बेटे राघव व बहू नीरा की इकलौती बेटी थी. इला के जन्म के बाद 1 साल तक नीरा ने अवकाश ले कर इला की परवरिश की  फिर औफिस जौइन करने के लिए यह सवाल सामने आया कि इतनी छोटी बच्ची को न तो घर में अकेले आया के साथ छोड़ा जा सकता है और न किसी डे केयर में. नीरा ने जब यह समस्या अपनी मां के साथ शेयर की तो इला की नानी उस को अपने घर ले गईं. उन का मानना था कि इतनी छोटी बच्ची को अभी से किसी आया के भरोसे छोड़ना बिलकुल भी ठीक नहीं है. यों भी नीरा को अपनी बच्ची से अधिक अपने कैरियर की अधिक चिंता थी. नीरा की मां ने लाख समझाया कि इला को अभी तुम्हारी व तुम्हारे प्यार की बहुत जरूरत है और जब तक इला 5 साल की नहीं हो जाती तब तक अपने जौब को भूल जाओ. लाइफ में समय व परिस्थिति के अनुसार कई समझौते करने ही पड़ते हैं. इन 5 सालों में तो मैं अपने कैरियर में इतना पीछे रह जाऊंगी कि फिर मुझे कोई जौब भी देगा या नही. मैं अपना कैरियर दांव पर नहीं लगा सकती, नीरा ने अपना दोटूक फैसला अपनी मां को सुना दिया.
काफी सोचविचार के बाद इला की नानी उसे अपने साथ अपने घर ले गई. इला अपनी नानानानी की आंखों का तारा था. साथ ही इला की बालसुलभ चपलता से उन का मन भी बहल जाता था. नीरा भी बीचबीच में अवकाश ले कर इला से मिलने जाती रहती थी. जब भी जाती अपनी बेटी के लिए ढेरों उपहार, टौफी, चौकलेट आदि ले जाती. शायद यही उस का अपनी बेटी को प्यार दिखाने का तरीका था.
इधर कुछ दिनों से इला की नानी की तबियत खराब रहने लगी तो उन्होंने नीरा से कहा कि अब तुम इला को अपने साथ रखो ओर उस की देखरेख के लिए किसी अच्छी आया का इंतजाम कर लो. नानानानी के लाङप्यार ने इला को जिद्दी व बिगङैल बना दिया था. राघव व नीरा तो सारा दिन औफिस में व्यस्त रहते. इला अभी इतनी बड़ी नहीं हुई थी कि उसे घर में अकेले छोङा जा सके. अभी वह सिर्फ 6 साल की थी.
नीरा ने अपनी समस्या औफिस की कुलीग के साथ शेयर की. किसी ने आया रखने की सलाह दी तो किसी ने घर पर दादीनानी को बुला कर उन के पास छोङने की सलाह दी। अधिकांश कुलिग का कहना था कि कितनी भी अच्छी आया रख लो फिर भी बच्चे के पास किसी अपने का होना जरूरी है. इस से बच्चा सिक्योर फील करता है.
नीरा ने औफिस से 1 सप्ताह का अवकाश लिया, शहर की अच्छी से अच्छी सिक्योरिटी ऐजैंसियों के बारे में पता किया जो अच्छीअच्छी आया का प्रबंध कर सकती थी. 1-2 कंपनियों ने तो शहर के नामीगिरामी लोगों के नाम भी बताए कि हमारे यहां से भेजी गई आया के व्यवहार से उस के घर वाले संतुष्ट थे. नीरा ने पूरे घर में कैमरे भी फिट करवा दिए जिस से वह औफिस मे बैठेबैठे आया के क्रियाकलापों पर नजर रख सके कि आया उस की बच्ची के साथ कैसा व्यवहार कर रही है.
नीरा इतना करने के बाद काफी संतुष्टी का अनुभव कर रही थी कि वह तसल्ली से अपनी जौब पर फोकस कर सकेगी. राघव के टूर से लौटने पर उस ने अपने इंतजाम के बारे में बताया. नीरा की सब बात सुनने के बाद राघव ने खुश हो कर कहा,”नीरा, हमारी बेटी इला के बारे मे जो सोचा है बहुत अच्छा सोचा है. लेकिन मेरा मानना अभी भी यही है कि जबकि हम दोनों अपनेअपने जौब में बिजी हैं, ऐसे में आया के अलावा घर में किसी अपने का होना बहुत जरूरी है.
आप का क्या मतलब है कि किसी अपने का होना जरूरी है. अब कोई अपना क्या बाजार से खरीद कर लाया जाएगा? आप को तो मालूम है कि मेरी मां ने 6 साल तक इला को पालापोसा है. अब मेरे परिवार में तो कोई है नहीं जो हमारे घर आ कर रहे इला के साथ. “क्यों, इला की दादी तो है अभी। वे स्वस्थ भी हैं, अनुभवी भी. उन को जा कर ले आता हूं, वही रहेंगी इला के साथ. फिर जब इला कुछ और बङी हो जाएगी तो उसे किसी अच्छे  होस्टल में डाल देंगे, जहां उस की पढ़ाईलिखाई व देखरेख दोनों भलीभाति हो जाएगी,” राघव के मुंह से इला की दादी को अपने घर में लाने की बात सुन कर नीरा का मूड उखड़ गया.
“आप को तो बस हरदम अपनी मां को ही इस घर में लाने के मौके की तलाश रहती है. आप को तो मालूम है कि मुझे अपने घर में किसी की दखलंदाजी जरा भी पसंद नहीं है फिर वह देहातिन मेरी बच्ची को क्या अच्छी आदतें व संस्कार सिखाएगी.”
“क्यों, हम भाईबहनों को भी तो उन्होंने ही पाला है और अच्छे संस्कार भी दिए हैं,” इस मुद्दे को ले कर राघव व नीरा में काफी बहस हुई. आखिर नीरा को अपनी मौन सहमति देनी ही पड़ी. भावावेश मे आ कर नीरा ने सासूमां के लिए जो देहातन शब्द का प्रयोग किया था उस पर उसे खुद ही खेद हुआ और इस के लिए राघव से उस ने तुरंत सौरी कह कर माफी मांग ली.
दूसरे दिन इतवार था। राघव कार ले कर गया और दोपहर तक मां को ले कर आ गया. बहू नीरा ने उन्हें देख कर जिस अंदाज मे पैर छुए और जिस तरह मुंह लटका लिया वह उन्हें बहुत खला। आखिर वह बच्ची तो नहीं थी. अनमने ढंग से किए जाने वाले स्वागत को पहचानने की बुद्धि वह रखती ही थी. उन की पोती भी उन्हें अजनबी नजरों से देखती रही. फिर राघव ने इला को बताया कि तुम्हारी दादी मां हैं. इन को अपना कमरा नहीं दिखाओगी?
यों तो नीरा ने इला को व्यस्त रखने के लिए उस को कई तरह की ऐक्टिविटीज की क्लासेस जौइन करा दी थी. इन क्लासेस में वह क्या सीख कर आ रही है या नहीं, यह जानने और पूछने का नीरा को समय कहां था. उस की कौरपोरेट जगत की नौकरी, उस का सारा समय खा जाती थी. नीरा चाहते हुए भी इला से अधिक इंटरैक्शन नहीं कर पाती थी.
नीरा अपने जौब में व्यस्त रहती. सुबह 8 बजे घर से निकल कर शाम 8 बजे तक ही घर पहुंच पाती. जब तक इला सो चुकी होती. यही कारण था कि इला धीरेधीरे अपनी मां से दूर व दादी मां के नजदीक होती जा रही थी. हां, शुरूशुरू में तो इला को अपने कमरे मे दादी मां का रहना अजीब लगा फिर उन के प्यार व स्नेहभरे व्यवहार से अब उन के साथ घुलनेमिलने लगी थी.
एक दिन ड्राइंग क्लास से लौटी तो बहुत खुश थी. जानकीजी ने उस की खुशी का कारण पूछा तो उस ने अपनी ड्राइंग की कौपी उन को दिखाई और बताया कि मैम ने हैप्पी फैमिली ड्रा करने को बोला था. मैं ने जो बनाया उस को देख कर बहुत खुश हुई. मुझे शाबाशी दी. उस ने अपनी ड्राइंग कौपी में मम्मीपापा के साथ दादी मां को भी चित्रित किया था. जानकीजी यह जान कर बहुत खुश हुई.
समय अपनी गति से बीत रहा था. घर में आया के साथसाथ इला की दादी मां है, यह सोच कर नीरा काफी निश्चिंत हो गई थी. इला धीरेधीरे बड़ी हो कर 12 साल की उम्र तक पहुंच रही थी. एक दिन स्कूल से लौटी तो स्कूलबैग पलंग पर पटक कर अपने बैड पर औंधे मुंह गिर कर रोने लगी. जानकीजी ने उस के स्कर्ट पर खून के दाग देखे तो घबरा गई. उन्होंने उस के सिर पर प्यार से हाथ फेरा और कहा,”मुझे बताओ, क्या तुम को कहीं  चोट लगी है, स्कूल में खेलते समय.
इला ने कहा,”नहीं, पर मेरे पेट मे जोर का दर्द हो रहा है. मां को 2-3 बार फोन मिलाया पर बात नहीं हो पाई. दादी मां, क्या आप के पास मेरे पेट दर्द को दूर करने की कोई दवा है?” “हां, है न, मेरी दवा से तुम्हारा दर्द एकदम छूमंतर हो जाएगा,” जानकीजी समझ गईं कि इला को पीरियड्स शुरू हो गए हैं और इसी कारण उस की स्कर्ट पर खून के दाग लगे हैं और पेट दर्द हो रहा है.
उन्होंने आया को बोल कर गरम पानी की बोतल लाने को कहा. इला को अपने पास लिटाया, उस के सिर पर प्यार से हाथ फेरा और पेट की सिंकाई की. थोङी देर में ही इला को नींद आ गई. जब वह सो कर उठी तो बोली,”लव यू दादी मां, आप ने तो सच में ही मेरा पेट दर्द गायब कर दिया.”
इला को अपने पास बैठा कर धीरेधीरे उसे पीरियड्स की जानकारी दी और बताया,”बेटा, एक उम्र आने पर ऐसा सभी के साथ होता है. अब हर  महीने तुम को इस से गुजरना होगा। 3-4 दिन के बाद तुम नौरमल महसूस करोगी. डरने जैसी कोई बात नहीं है मेरी बच्ची. हां, इस दौरान तुम को अधिक उछलकूद से बचना होगा और अपने खाने में हैल्दी फूड्स को शामिल करने होंगे ताकि इस दौरान जो रक्त तुम्हारे शरीर से बाहर निकलेगा उस से कमजोरी महसूस न हो.” इला ने दादी मां की सारी बातें बहुत ध्यान से सुनी और कहा कि आगे से इन बातों का ध्यान रखेगी.
समय धीरेधीरे आगे बढ़ रहा था. दादीमां को सिलाई व कढ़ाई करते देख उस का रूझान भी इस ओर बढ़ रहा था. इस बार ऐग्जाम में क्राफ्ट की फाइल में उसे फुल मार्क्स मिले थे क्योंकि दादी मां से सीखे कसीदों ने उस को काफी हुनरबाज बना दिया था. आज इला खुश थी क्योंकि उस की टीचर ने उस की क्राफ्ट फाइल दिखा कर उस की बहुत तारीफ की थी. घर आते ही इला दादी मां के गले मे बाहें डाल कर लिपट गई और बोली,”लव यू दादी मां.” जानकीजी ने इला को अब तक गुड टच व बैड टच के बारे में भी चुकी थीं. यों तो इला कार से ही स्कूल आनाजाना करती थी. सुबह ड्राइवर स्कूल छोङ आता। शाम को वापस घर ले आता.
एक दिन इला स्कूल से आ कर अपने कमरे में कपङे बदल रही थी. उस के क्लास का लडका नोट्स लेने के बहाने घुस आया क्योंकि दरवाजा असावधानीवश खुला रह गया था। जानकीजी रसोई में इला के लिए खाना लगा रही थीं. वह लड़का पहले तो इला से छेड़छाड़ करने लगा फिर उस से जबरदस्ती करने की कोशिश की। इला जोर से चिल्लाई. आवाज सुन कर दादी मां तुरंत दौडी आई और उस लड़के का कालर पकड कर 2-3 थप्पड़ मारे फिर घर के बाहर खींच कर ले गई और जोरजोर से आवाज लगा कर पूरे मोहल्ले को जमा लिया. सभी लोगों ने पूरी बात जान कर उस लडके की जम कर धुलाई की. तब तक किसी ने पुलिस को बुला लिया था। उस लडके को पुलिस के हवाले कर दिया गया.
कमरे में आने पर देखा कि इला कोने में डरीसहमी खडी थी. वह जानकीजी को देख कर उन से लिपट कर रोने लगी ओर रोतीरोती बोली,” लव यू दादी मां”. यू आर ग्रेट. यदि आज आप न होतीं तो न जाने क्या हो जाता. आया आंटी तो इन सब से बेखबर घोड़े बेच कर सो रही है.”
शाम को नीरा के औफिस से वापस आने पर इला ने पूरी घटना अपनी मां  को बताई कि किस तरह दादी मां की वजह से आज आप की बेटी किसी अनहोनी का शिकार होेने से बच गई. नीरा को महसूस हुआ कि घर में किसी अपने का होना बहुत जरूरी है. साथ ही उस ने जा कर अपनी सासू मां को धन्यवाद दिया और अपने अब तक के व्यवहार के लिए माफी मांगी.
इला ने 12वीं तक जातेजाते जानकीजी से कपड़ों की कटिंग, कढ़ाई व डिजाइनिंग आदि सब सीख लिया था इसलिए उस ने फैशन डिजाइनिंग का कोर्स करने का मन बना लिया था. उस की मां ने भी उस की चौइस पर अपनी हां की मुहर लगा दी क्योंकि इला के साथसाथ नीरा भी सासूमां के हुनर को सलाम करने लगी थी और इला वह तो उठतेबैठते हर समय बस एक ही बात बोलती रहती थी, “लव यू दादी मां”.

प्रिया : क्या हेमंत को फंसा पाई थी वह लड़की ?

हर रोज की तरह आज भी शाम को मर्सिडीज कार लखनऊ के सब से महंगे रैस्तरां के पास रुकी और हेमंत कार से उतर कर सीधे रैस्तरां में गया. वहां पहुंच कर उस ने चारों तरफ नजर डाली तो देखा कि कोने की टेबिल पर वही स्मार्ट युवती बैठी है, जो रोज शाम को उस जगह अकेले बैठती थी और फ्रूट जूस पीती थी. हेमंत से रहा नहीं गया. उस ने टेबिल के पास जा कर खाली कुरसी पर बैठने की इजाजत मांगी.

‘‘हां, बैठिए,’’ वह बोली तो हेमंत कुरसी पर बैठ गया. इस से पहले कि दोनों के बीच कोई बातचीत होती हेमंत ने उसे ड्रिंक औफर कर दिया.

‘‘नो, इस्ट्रिक्टली नो. आई डोंट टेक वाइन,’’ युवती ने विदेशी लहजे में जवाब दिया. हेमंत को समझते देर नहीं लगी कि युवती विदेश में सैटल्ड है. वह युवती का नाम जान पाता, इस से पहले युवती ने बात आगे बढ़ाई और बोली, ‘‘मैं कनाडा में सैटल्ड हूं. वहां वाइन हर मौके पर औफर करना और पीना आम बात है, लेकिन मैं अलकोहल से सख्त नफरत करती हूं.’’

‘‘आप का नाम?’’ हेमंत ने पूछा.

‘‘क्या करेंगे जान कर? मैं कुछ महीनों के लिए इंडिया आई हूं और थोड़े दिनों बाद वापस चली जाऊंगी. शाम को यहां आती हूं रिलैक्स होने के लिए. क्या इतना जानना आप के लिए काफी नहीं है?’’ युवती ने जवाब दिया और अपनी घड़ी देख उठने लगी.

‘‘प्लीज, कुछ देर बैठिए. मैं आप के साथ कुछ देर और बैठना चाहता हूं. मुझे गलत मत समझिए. आप के विचारों ने मुझे बहुत इंप्रैस किया है, प्लीज,’’ हेमंत ने कहा.

मौडर्न तरीके से साड़ी में लिपटी हुई उस युवती ने कुछ सोचा फिर बैठ गई और बोली, ‘‘मेरा नाम प्रिया है और मैं एनआरआई हूं. एक टीम के साथ गैस्ट बन कर इंडिया घूमने आई हूं. यहां लखनऊ में मेरे चाचा रहते हैं, इसलिए उन से मिलने आई हूं. मेरे पेरैंट्स वर्षों पहले कनाडा शिफ्ट कर गए थे. वहां वे सरकारी स्कूल में टीचर हैं.’’

इतना कह कर उस ने फिर चलने की बात कही तो हेमंत ने कहा, ‘‘चलिए मैं आप को चाचा के घर छोड़ देता हूं. मुझ पर विश्वास कीजिए और यकीन न हो तो अपने चाचा से इजाजत ले लीजिए. उन से कहिए कि सुपर इंडस्ट्रीज के मालिक की गाड़ी से घर आ रही हूं. सुपर इंडस्ट्रीज लखनऊ और पूरे प्रदेश में प्रसिद्ध है.’’ प्रिया ने उस से विजिटिंग कार्ड मांगा. उसे देखा फिर पर्स में रखा और उस के साथ चलने को राजी हो गई. गाड़ी में बैठते वक्त हेमंत अत्यधिक विचलित सा था. पता नहीं क्यों एक अनजान युवती को वह अपना समझने लगा था. शायद युवती के आकर्षक व्यक्तित्व व अंदाज से प्रभावित हो गया था. गाड़ी में हेमंत ने पारिवारिक बातें छेड़ीं और अपने परिवार और बिजनैस के बारे में बताता रहा. गाड़ी तो चल पड़ी, लेकिन जाना कहां है हेमंत को मालूम नहीं था.

उस ने प्रिया से पूछा, ‘‘कहां जाना है?’’

‘‘अमीनाबाद,’’ प्रिया का संक्षिप्त जवाब था.

‘‘तुम्हारे चाचा क्या करते हैं?’’ हेमंत ने फिर सवाल किया.

प्रिया ने बताया कि उस के चाचा इरिगेशन डिपार्टमैंट में जौब करते हैं और अमीनाबाद में उन का फ्लैट है.

‘‘गाड़ी रोकिए , मेरा घर पास ही है,’’ प्रिया ने कहा.

हेमंत ने बड़ी विनम्रता से कहा, ‘‘चलिए घर तक छोड़ देता हूं.’’

‘‘नहींनहीं ठीक है. अब मैं खुद चली जाऊंगी,’’ प्रिया का जवाब था.

फिर मिलने की बात नहीं हो पाई. प्रिया कार से उतर कर रोड क्रौस कर के गायब हो गई. हेमंत उदास सा अपने घर की ओर चल पड़ा. गेट पर दरबान ने विस्मय से हेमंत की ओर देखा और बोला, ‘‘साहब, बड़ी जल्दी घर आ गए.’’

हेमंत बिना कुछ बोले गाड़ी पोर्टिको में रख कर बंगले में पहुंचा. मम्मी अपने कमरे में थीं. उस की इकलौती लाडली छोटी बहन ड्राइंगरूम में बैठ कर एक बुकलेट में हीरों का सैट देख कर पैंसिल से उन्हें टिक कर रही थी.

हेमंत ने पूछा, ‘‘क्या देख रही हो बिन्नी?’’

बिन्नी ने हेमंत के प्रश्न का उत्तर दिए बिना कहा, ‘‘भैया, आज जल्दी आ गए हो तो चलो हीरे का सैट खरीद दो. मेरा बर्थडे भी आ रहा है, वह मेरा गिफ्ट हो जाएगा.’’

हेमंत सोफे पर बैठा ही था कि हाउसमेड ऐप्पल जूस का केन और कुछ ड्राई फ्रूट्स ले कर आ गई. जूस पीते हूए हेमंत समाचारपत्र देखने लगा और बिन्नी से बोला, ‘‘जल्दी रेडी हो जाओ. चलो तुम्हारा सैट खरीद देता हूं.’’

वे डायमंड सैट खरीद कर लौट रहे थे तो बिन्नी ने हिम्मत जुटा कर अपने भैया से पूछा, ‘‘भैया, एक सैट तो मैं ने अपनी पसंद से खरीदा, लेकिन दूसरा सैट तुम ने अपनी पसंद से क्यों खरीदा?’’ हेमंत के पास तुरंत कोई जवाब नहीं था, वह बस मुसकरा कर रह गया. बिन्नी को लगा कि पैरेंट्स 2 वर्षों से जिस दिन का इंतजार कर रहे थे, संभवतया वह दिन आने वाला है. वरना दर्जनों विवाह के रिश्ते को ठुकराने के बाद भैया ने आज 18 लाख का डायमंड सैट क्यों खरीदा? जरूर आने वाली भाभी के लिए.

घर जा कर जब बिन्नी ने यह रहस्य खोला तो पूरे घर में उत्सव का माहौल हो गया. हाउसमेड ने मुसकराते हुए रात का खाना परोसा, तो कुक ने एक स्पैशल डिश भी बना डाली. खाना खा कर सभी हंसतेखिलखिलाते अपनेअपने कमरों में चले गए. सुबह हुई तो हेमंत के डैडी ने कोई गाना गुनगुनाते हुए चाय की चुसकी ली, तो बिन्नी और उस की मम्मी ने दिन भर शादी की तैयारी पर बातचीत की. गैस्ट की लिस्ट भी जुबानी तैयार की. फिर वही शाम, लखनऊ का वही रैस्तरां. लेकिन घंटों इंतजार के बाद भी प्रिया नहीं आई, तो हेमंत उदास सा देर रात में अपने घर लौटा.

अगली शाम कुछ देर के इंतजार के बाद प्रिया ने रैस्तरां में प्रवेश किया, तो हेमंत लगभग दौड़ता हुआ उस के पास गया और पूछा, ‘‘कल क्यों नहीं आईं?’’

‘‘क्या मेरे नहीं आने से आप को कोई प्रौब्लम हुई?’’ प्रिया ने उलटा सवाल किया.

हेमंत ने अपने दिल की बात कह डाली, ‘‘मुझे तुम्हारे जैसी लड़की की तलाश थी, जो मेरे लाइफस्टाइल से मैच करे और मेरी मां और बहन को पूरा प्यार दे सके. यह सिर्फ भारतीय मानसिकता वाली लड़की ही कर सकती है. सच कहूं, यदि तुम्हारी शादी नहीं हुई है तो समझो मैं तुम्हें अपनी बीवी मान बैठा हूं.’’

प्रिया ने प्रश्न किया, ‘‘बिना पूरी तहकीकात किए इतना बड़ा फैसला कैसे ले सकते हैं? आप मेरे नाम के सिवा और कुछ भी जानते हैं? आप के बारे में भी मुझे पूरी जानकारी हासिल नहीं है. मुझे अपने पेरैंट्स की भी सलाह लेनी है. जैसे आप अपने परिवार के बारे में सोचते हैं, वैसे ही मेरे भी कुछ सपने हैं, परिवार के प्रति जवाबदेही है. और इस की क्या गारंटी है कि शादी के बाद सब ठीकठाक होगा?’’

हेमंत ने प्रस्ताव रखा, ‘‘चलो मेरे घर, वहीं पर फैसला होगा.’’

प्रिया घर जाने को राजी नहीं हुई. उस का कहना था कि वह अपने चाचा के साथ उस के घर जा सकती है. कार में बैठ कर अगले दिन अपने चाचा को रैस्तरां में लाने का वादा कर प्रिया नियत मोड़ पर कार से उतर गई. अगली शाम फिर वही रैस्तरां. प्रिया आज अत्यधिक स्मार्ट लग रही थी. साथ में एक 20-22 वर्ष का लड़का था, जिसे प्रिया ने अपना कजिन बताया. चाचा के बारे में सफाई दी कि चाचा अचानक एक औफिस के काम से चेन्नई चले गए हैं, सप्ताह भर बाद लौटेंगे.

हेमंत चुप रहा, लेकिन प्रिया उस के दिलोदिमाग में इस कदर छा गई थी कि वह एक कदम भी पीछे नहीं हटने को तैयार नहीं था. घर में पूरी तैयारी भी हो चुकी थी, ऐसे में उस ने मौके को हाथ से जाने देने को मुनासिब नहीं समझा. प्रिया और उस के कजिन को ले कर हेमंत अपने घर पहुंच गया. बिन्नी और उस की मां ने घर के दरवाजे पर आ कर दोनों का स्वागत किया. बिन्नी प्रिया का हाथ पकड़ कर अंदर ले गई. सीधीसाधी किंतु स्मार्ट युवती को देख कर सभी खुश थे पर हेमंत के डैडी इतनी जल्दी फैसला लेने को तैयार नहीं थे. लेकिन हेमंत, बिन्नी और पत्नी के आगे उन की एक न चली. हेमंत की मां बहू पाने की लालसा में अत्यंत उत्साहित थीं. हेमंत द्वारा खरीदा हुआ 18 लाख का हीरे का सैट प्रिया को मुंह दिखाई में दे दिया गया. मंगनी की चर्चा होने पर प्रिया ने कहा कि मंगनी 1 महीने बाद की जाए, क्योंकि मेरे पेरैंट्स अभी इंडिया नहीं आ सकते. वैसे मां से मेरी बात हुई है. मां ने मुझ से कह दिया है कि मेरी पसंद उन सब की पसंद होगी.

हेमंत को एक बिजनैस ट्रिप में विदेश जाना था. उस ने इच्छा जताई कि मंगनी की रस्म जल्दी संपन्न कर दी जाए. परिवार वालों ने हामी भर दी, तो मंगनी की तारीख 2 दिन बाद की तय हो गई. फाइव स्टार होटल के अकबर बैंक्वैट हौल में हेमंत का परिवार और तकरीबन 100 गैस्ट आए. प्रिया पर सभी मेहमानों ने भेंट स्वरूप गहने और कैश की वर्षा कर दी. हेमंत ने हीरे की अंगूठी पहनाई, तो प्रिया ने भी एक वजनदार सोने की अंगूठी हेमंत को पहनाई. हेमंत की मां ने फिर 25 लाख का हीरों का सैट दिया. डिनर के बाद सभी गैस्ट बधाई देते हुए एकएक कर के विदा हो गए, तो दस्तूर के अनुसार बिन्नी और उस की मां ने गहनों और कैश का आकलन किया. लगभग 5 लाख कैश और 85 लाख मूल्य के गहने भेंट स्वरूप प्राप्त हुए थे. बिन्नी मुबारकबाद देते हुए प्रिया से गले मिली और एक पैकेट में पैक कर के गिफ्ट उस के हाथों में थमा दिया. हमेशा की तरह हेमंत ने अपने ड्राइवर को प्रिया मैडम को घर तक छोड़ने की हिदायत दी और गार्ड को भी साथ जाने का हुक्म दिया. फिर अगले दिन लंच साथ करने का औफर देते हुए प्रिया को विदा किया.

अगली सुबह ब्रेकफास्ट के बाद हेमंत ने औफिस पहुंच कर जल्दी काम निबटाया. औफिस स्टाफ ने बधाइयां दीं और मिठाई की मांग की. तो हेमंत पार्टी का वादा कर प्रिया के घर की ओर चल पड़ा. 20-25 मिनट बाद अमीनाबाद पहुंच कर ड्राइवर ने वहां गाड़ी रोक दी जहां हर बार प्रिया उतरती थी और हेमंत से सवाल किया, ‘‘अब किधर जाना है, साहब?’’

‘‘प्रिया मैडम के घर चलो,’’ हेमंत ने ड्राइवर की ओर देख कर कहा.

‘‘साहब, मैडम रोज यहीं उतर जाती थीं. कहती थीं कि लेन के अंदर कार घुमाने में प्रौब्लम होगी,’’ ड्राइवर ने जवाब दिया.

‘‘अरे, बुद्धू, तुम रोज मैडम को यहीं सड़क पर उतार देते थे. मंगनी की रात गार्ड को भी भेजा था. वह जरूर साथ गया होगा, उसे फोन लगाओ,’’ हेमंत गरजा.

गार्ड बंगले की ड्यूटी पर था. उस ने जवाब दिया, ‘‘मैं ने बहुत जिद की पर मैडम बोलती रहीं कि वे खुद चली जाएंगी. उन के हुक्म और जिद के आगे हमारी कुछ नहीं चली.’’

हेमंत जोर से चिल्लाया, ‘‘बेवकूफ, मैं ने तुम्हें मैडम की सिक्यूरिटी के लिए भेजा था और तुम ने उन्हें आधे रास्ते पर छोड़ कर अकेले जाने दिया? मैं तुम दोनों की छुट्टी कर दूंगा.’’

हेमंत ने अब प्रिया को फोन किया लेकिन उस का स्विच औफ मिला. उस ने अपने औफिस पहुंच कर फिर फोन लगाया. इस बार प्रिया का रेस्पौंस आया. वह धीमी आवाज में बोली, ‘‘मेरे कजिन की तबीयत अचानक बहुत खराब हो गई है. उसे डाक्टर अभी देख रहे हैं. मैं रात में बात करती हूं,’’ इतना कह कर प्रिया ने मोबाइल का स्विच औफ कर दिया. हेमंत की रात बैचेनी से कटी. अगली सुबह मौर्निंग जौगिंग छोड़ कर हेमंत अमीनाबाद की ओर चल पड़ा. मंगनी के 36 घंटे बीत चुके थे. प्रिया से पूरी तरह संपर्क टूट चुका था.

ड्राइवर ने जिस गली को प्रिया मैडम के घर जाने का रास्ता बताया था, दिन के उजाले में हेमंत अनुमान से उस जगह पर पहुंच गया और कार को रुकवा फुटपाथ पर चाय की दुकान पर चाय पीने लगा. हेमंत को हर हाल में आज प्रिया से मिलना था, अत: उस ने चाय वाले से हुलिया बताते हुए पूछताछ की. बाईचांस चाय वाले ने प्रिया को 2 बार कार से उतरते देखा था, लेकिन उस ने भी निराशाजनक जवाब दिया. उस ने हेमंत को बताया, ‘‘आप ने जो हुलिया बताया वैसे हुलिए की अनेक महिलाएं हैं और रात में देखे गए चेहरे की पहचान करना थोड़ा मुश्किल है. लेकिन एक बात पक्की है कि जिस गाड़ी से 2 बार मैं ने उन्हें उतरते देखा, यह वही गाड़ी है जिस से आप आए हैं.’’ हेमंत पैदल चलते हुए गली में प्रवेश कर गया. सुबह का समय था इसलिए प्राय: हर कोई घर में ही था. कुछ लोगों ने प्रिया नाम सुन कर कहा कि इस नाम की किसी लड़की को नहीं जानते, लेकिन एक पढ़ेलिखे नेता टाइप के मौलवी साहब ने जो बातें हेमंत को बताईं, उसे सुन कर हेमंत के पैरों तले मानो जमीन खिसक गई.

मौलवी साहब ने कहा, ‘‘बेटे, इस गली में या तो मजदूर या छोटीमोटी नौकरी करने वाले लोग रहते हैं. यहां कभी भी किसी एनआरआई या आप के बताए हुए हुलिए की युवती को कभी नहीं देखा गया है. यह गली जहां खत्म होती है उस से आगे रिहाइशी इलाका भी नहीं है, आप गलत जगह आ गए हैं.’’

हेमंत को महसूस होने लगा कि उस के साथ बहुत बड़ा धोखा हुआ है. उस के पास प्रिया के घर के पते के नाम पर सिर्फ अनजान गली की जानकारी भर थी. हेमंत वहां से निकल कर रैस्तरां की ओर चल पड़ा. रैस्तरां में अभी साफसफाई चल रही थी, किंतु हेमंत साहब को सुबहसुबह देख कर सारा स्टाफ बाहर आ गया. हेमंत को वहां जो जानकारी मिली उस ने उस की शंका को हकीकत में बदल दिया. सिक्यूरिटी गार्ड ने बताया कि वे मैडम जब पहली दफा रैस्तरां आई थीं, तब उन्होंने मुझ से पूछा कि सुपर इंडस्ट्रीज वाले हेमंत रस्तोगी कौन हैं? मैं ने आप की ओर इशारा किया था. इस के बाद आप दोनों को साथसाथ निकलते देखा तो हम सब यह समझे कि आप लोग एकदूसरे को जानते हैं. हेमंत सुन कर लड़खड़ा सा गया, तो स्टाफ ने मिल कर उसे संभाला. हेमंत को प्रिया का तरीका समझ में आ गया था. पूरी योजना बना कर और एक अच्छे होमवर्क के साथ हेमंत को टारगेट बना कर उस के साथ फ्रौड किया गया था.

हेमंत संभल कर कार में बैठा और घर जा कर सभी को यह कहानी सुनाई. अपने घबराए हुए बेटे को आराम की सलाह दे कर हेमंत के पापा सिटी एसपी के औफिस पहुंच गए. एसपी ने ध्यान से सारी बातें सुनीं, इंगैजमैंट की तसवीर रख ली और दूसरे दिन आने के लिए कहा. एसपी के कहने पर प्रिया के खिलाफ एफआईआर भी दर्ज कराई गई. अगले दिन हेमंत और उस के डैडी सिटी एसपी के औफिस पहुंचे, तो उन्होंने बताया कि दिल्ली क्राइम ब्रांच से खबर मिली है कि इस सूरत की एक लड़की हिस्ट्री शीटर है. फोटो की पहचान पर दिल्ली अंतर्राष्ट्रीय हवाई अड्डे से पता चला है कि बताई गई मंगनी की तारीख के दूसरे दिन वह युवती कनाडा के लिए रवाना हो गई है. यह भी पता चला कि यह युवती बीचबीच में इंडिया आती है और अपना नाम बदल कर विभिन्न शहरों में ऐसा फ्रौड कर के सफाई से विदेश भाग जाती है. एक बार तो जयपुर में शादी रचा डाली और सारा सामान ले कर चंपत हो गई. लेकिन अब वह बच नहीं पाएगी, क्योंकि मैं ने रैडअलर्ट की सिफारिश कर दी है. अगली बार इंडिया आते ही पकड़ी जाएगी.

हेमंत को अब यह बात समझ में आ गई कि उस युवती ने कजिन की बीमारी के नाम पर संपर्क तोड़ा और आसानी से भाग निकली. हेमंत के डैडी ने एसपी साहब से पूछा कि आगे क्या होगा? तो उन्होंने कहा कि अगर लड़की पकड़ी गई तो पहचान के लिए पुलिस थाने आना होगा और केस चलने पर कोर्ट में भी आना होगा. कई तारीखों पर गवाह के रूप में आना आवश्यक होगा. इन सब से पहले तफतीश के समय पुलिस के सामने बयान देना होगा और अपने गवाहों के बयान भी दर्ज कराने पड़ेंगे. हेमंत के डैडी ने टिप्पणी की, ‘‘यानी अपने बिजनैस से टाइम निकाल कर कोर्टकचहरी और पुलिस के चक्कर लगाने होंगे.’’

एसपी साहब ने मुसकरा कर कहा, ‘‘ये तो कानून से जुड़ी बातें हैं. इन का पालन तो करना ही होगा.’’

अब हेमंत ने मुंह खोला और बोला, ‘‘लाखों का फ्रौड और कोर्टकचहरी की दौड़ भी. नुकसान तो बस हमारा ही है.’’

एसपी ने दोबारा पुलिस के संपर्क में बने रहने की बात कही और हेमंत के डैडी से हाथ मिला कुरसी से खड़े हो गए. हेमंत के हिस्से में अब पछतावे और अफसोस के सिवा कुछ भी नहीं बचा था.

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