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पत्नियों की नजर पतियों पर कम पौकेट पर अधिक होती है

जब तक हम अविवाहित थे यह बात हमारी समझ से परे थी कि पत्नियों की नजर अपने पतियों पर कम उन की पौकेट पर अधिक होती है. तब यह सुन कर ऐसा लगता था मानो पत्नी कोई सुलताना डाकू हो जो पति की जेब पर डाका डाल कर दरियादिली से अपने और अपने बच्चों के ऊपर पैसा लुटाती हो.

जो भी हो, अविवाहित रहते हुए हम कभी भी इस बात से इत्तेफाक न रख सके कि पत्नी की नजर पति की पौकेट पर होती है. तब तो शादी के खयाल मात्र से ही मन में खुशी का बैंडबाजा बजने लगता था. ‘आह, वो ऐसी होगी, वो वैसी होगी’ यही सोचसोच कर मन में लड्डू फूटते रहते थे.

पत्नी का मतलब हमारी दृष्टि में एक सच्ची जीवनसाथी जो पति का खूब खयाल रखती है उस से अधिक कुछ और नहीं था. पत्नी का पौकेटमार होना हमारे लिए सोचना भी पाप था. वह उम्र ही ऐसी थी.

यह सही है कि जब तक नदी में गोता न लगा ले तब तक उस की गहराई की केवल कल्पना की जा सकती है, वास्तविक गहराई नहीं जानी जा सकती. ऊंट को अपनी ऊंचाई का सही आभास तब तक नहीं होता जब तक वह पहाड़ के नीचे से न निकल जाए.

हर मर्द शादी से पहले अपनेआप को बड़ा ऊंचा ऊंट समझता है और जब शादी के पहाड़ के नीचे से गुजरता है तब उसे अपने वास्तविक कद का पता चलता है. बड़ेबड़े हिटलर पत्नी के आगे पानी मांगते हैं जब वह टेढ़ी या तिरछी नजर से देखती है.

हम भी बचपन से अपने को बड़ा पढ़ाकूपिस्सू और कलमघिस्सू समझते रहे. अपनेआप को बड़ा ज्ञानी, ध्यानी समझते रहे. हमें ऐसा लगता था जैसे सारी दुनिया का ज्ञान हम ने ही बटोर रखा है. कोई रचना प्रकाशित हुई नहीं कि बल्लियों उछलने लगते थे.

शादी के बाद जब एक रचना छप कर आई तो श्रीमतीजी पर रोब गालिब करने और अपने लेखक होने की महानता को सत्यापित कराने के लिए उस रचना को महत्त्वपूर्ण सर्टिफिकेट की तरह उन के सम्मुख प्रस्तुत किया. श्रीमतीजी ने पहले तो उस रचना को बड़ी ही उपेक्षित नजर से देखा. इस से हमारा दिल दहल गया. लेकिन हमारा सम्मान रखते हुए 2-3 लाइनें पढ़ीं और फिर पूछा, ‘‘डार्लिंग, इस का कितना पैसा मिलेगा?’’

हम श्रीमती के प्रश्न और प्रश्नवाचक नजर से कुछ असहज हुए और फिर अचकचाते हुए बोले, ‘‘ये तो छापने वाले जानें.’’

यह सुनते ही श्रीमतीजी ने रचना को एक ओर रखते हुए कहा, ‘‘माल (रचना) तुम्हारा और कीमत जानें पत्रिका वाले, यह भी कोई बात हुई.’’

हम ने श्रीमतीजी को थोड़ा समझाते हुए कहा, ‘‘अभी हम इतने बड़े कालिदास नहीं हुए कि अपनी रचनाओं की कीमत स्वयं तय करें. वे छाप देते हैं, क्या यह कम बड़ी बात है.’’

‘‘टाइमवेस्ट और कुछ नहीं,’’ श्रीमतीजी हमें बालक की तरह नसीहत देती हुई बोलीं.

उस दिन हमें कुछकुछ लगा कि पत्नियां पौकेटमार भी होती हैं, पैसे पर नजर रखती हैं.

उस दिन हमें सचमुच यह भी लगा कि अपुन की औकात क्या है? मन तो हुआ कि सब लिखनापढ़ना छोड़ दें और डिगरी कालेज की लेक्चररी में ही अपनी जिंदगी काट दें. पर लिखने का कीड़ा जिसे काटता है वही जानता है. इस के काटने के दर्द में कितना मजा होता है.

जब भी श्रीमतीजी हमें लिखता हुआ देखतीं तो मुंह बिचका कर निकल जातीं, जैसे हम न जाने कितना घटिया और मनहूस काम कर रहे हों. उस समय श्रीमतीजी की नजर में हम स्वयं को कितना लज्जित महसूस करते, उस का वर्णन करना मुश्किल है. इस अपमान से बचने का हमारे पास एक ही रास्ता बचा था कि श्रीमतीजी की नजरों से बच कर चोरीछिपे लिखा जाए.

एक दिन ऐसा हुआ कि हम ने अपना सीना कुछ चौड़ा महसूस किया. हुआ यह कि 2 रचनाओं के चैक एकसाथ आ गए. इन चैकों की रकम इतनी थी कि श्रीमतीजी की पसंद की साड़ी आराम से आ सकती थी. हम ने श्रीमतीजी को मस्का लगाते हुए कहा, ‘‘लो महारानीजी, तुम्हारी साड़ी आ गई.’’

साड़ी का नाम सुनते ही श्रीमतीजी ऐसे दौड़ी चली आईं जैसे भूखी लोमड़ी को अंगूरों का गुच्छा लटका नजर आ गया हो. आते ही चहकीं, ‘‘कहां है साड़ी? लाओ, दिखाओ?’’

हम ने दोनों चैक श्रीमतीजी को पकड़ा दिए. श्रीमतीजी ने दोनों चैकों की धनराशि देखी और थैंक्यू बोलते हुए हमारे गाल पर एक प्यारी चिकोटी काट ली. हम इस प्यारी चिकोटी से ऐसे निहाल हो गए जैसे हमें साहित्य अकादमी का साहित्यरत्न अवार्ड मिल गया हो.

हमें एकबारगी यह ख्वाब आया कि श्रीमतीजी यह तो पूछेंगी ही कि किन रचनाओं से यह धनराशि प्राप्त हुई है. लेकिन उन्होंने यह पूछने की जहमत नहीं उठाई. बस, कसी हुई नजर से इतना कहा, ‘‘जहां से ये चैक आए हैं वहीं रचना भेजा करो. मुफ्त वालों के लिए लिखने की जरूरत नहीं है.’’

हम मान गए कि श्रीमतीजी को हमारी रचनाओं से मतलब नहीं, उन की नजर सिर्फ आने वाले चैकों पर है.

इस के बाद जब कभी भी पोस्टमैन आता तो हम से पहले श्रीमतीजी उस के दर्शन के लिए पहुंच जातीं. एक दिन पोस्टमैन की आवाज आते ही श्रीमतीजी रसोई से दौड़ती हुई दरवाजे पर पहुंचीं. हम भी चहलकदमी करते हुए श्रीमतीजी  के पीछेपीछे दरवाजे तक पहुंचे.

पोस्टमैन बोला, ‘‘बाबूजी, आप का मनीऔर्डर है.’’

श्रीमतीजी हमें बिना कोई अवसर दिए तुरंत बोलीं, ‘‘कितने का है?’’

‘‘मैडमजी, 50 रुपए का.’’

‘‘क्या? क्या कहा, 50 रुपए का?’’ श्रीमतीजी ऐसे मुंह बना कर बोलीं जैसे पोस्टमैन से बोलने में गलती हो गई हो.

हम ने स्थिति को संभालते हुए कहा, ‘‘अरे भाई, ठीक से देखो. आजकल 50 रुपए कोई नहीं भेजता, 500 रुपए का होगा.’’

हमारे कहने पर पोस्टमैन ने एक बार फिर से मनीऔर्डर को देखा. धनराशि अंकों में देखी, शब्दों में देखी. फिर आश्वस्त हो कर बोला, ‘‘बाबूजी, 50 रुपए का ही है.’’

जैसे ही पोस्टमैन ने 50 रुपए का नोट निकाल कर श्रीमतीजी की ओर बढ़ाया तो वे खिन्न हो कर बोलीं, ‘‘यह दौलत इन्हीं को दे दो, बच्चे टौफी खा लेंगे.’’

पोस्टमैन ने व्यंग्यात्मक मुसकराहट के साथ वह 50 रुपए का नोट हमारी ओर बढ़ा दिया. मेरे लिए तो वह 50 रुपए का नोट भी किसी पुरस्कार से कम नहीं था. लेकिन श्रीमतीजी के खिन्नताभरे व्यंग्यबाण और पोस्टमैन की व्यंग्यात्मक हंसी ऐसी लग रही थी जैसे हिंदी का लेखक दीनहीन, गयागुजरा और फालतू का प्राणी हो जिस को कई प्रकार से अपमानित किया जा सकता हो और बड़ी आसानी से मखौल का पात्र बनाया जा सकता हो.

उस दिन श्रीमतीजी की नजर में हम 50 रुपए के आदमी बन कर रह गए थे.

धर्मकर्म की राजनीति के चलते हार गए ऋषि सुनक

ब्रिटेन के आम चुनाव में सत्तारूढ़ कंजर्वेटिव पार्टी बुरी तरह हार चुकी है और ऋषि सुनक की विदाई हो चुकी है. मसलन उन्होंने हार की जिम्मेदारी भी ले ली है. जिम्मेदारी लेनी भी थी क्योंकि सुनक पूरी तरह धर्मकर्म के भरोसे बैठे हुए थे चुनाव क्या खाक जिताते.

जिस तरह 4 जून को भारत में आए नतीजों से भाजपा के भक्तगण हैरान और परेशान थे कि यह हुआ तो हुआ कैसे, ठीक उस के एक महीने बाद 5 जुलाई को डबल झटका यहां उन्हीं भक्तों को ऋषि सुनक की बुरी तरह से मिली हार से फिर मिल गया है.
हार भी कोई मामूली नहीं है. ऋषि सुनक वाली सत्ताधारी कंजर्वेटिव पार्टी 14 साल बाद लेबर पार्टी से चुनाव हारी है. लेबर पार्टी जिसे भारत की कांग्रेस जैसा कहा जा सकता है, के 61 साल के कीर स्टार्मर देश के 58वें प्रधानमंत्री बन गए हैं.

सुनक ने हार स्वीकार कर पार्टी से माफी मांगी है. हैरानी यह कि हार मामूली नहीं है. सरकार बनाने के लिए 326 सीटों की जरूरत होती है. लेबर पार्टी ने कुल 650 सीटों में से 412 जीत दर्ज की है. वहीँ कंजर्वेटिव पार्टी को 120 ही सीटें मिल पाईं. इसे कंजर्वेटिव पार्टी की 200 सालों में मिली सब से बड़ी हार कहा जा रहा है.
जब से ऋषि सुनक ब्रिटेन के प्रधानमंत्री बने थे उन्हें ले कर भारत में हिंदुत्व के समर्थक सनातन के फैलाव के रूप में देख रहे थे. उन का भारत में खूब प्रचारप्रसार भी किया गया. मगर दरअसल वे तो कंजर्वेटिव पार्टी के लिए महज बलि का बकरा थे, क्योंकि कंजर्वेटिव पार्टी की हालत ब्रिटेन में खस्ता होती चली जा रही थी. हुआ भी यही कि इस हार की जिम्मेदारी ऋषि सुनक ने अपने ऊपर ले ली.

 

ब्रिटेन में ऋषि सुनक की पार्टी की हार लगभग तय थी. चुनाव से पहले प्रमुख अख़बार ‘द डेली टैलीग्राफ’ ने एक सर्वे का हवाला तक यह कहते दिया था कि प्रधानमंत्री ऋषि सुनक उत्तरी इंगलैंड सीट से चुनाव हार सकते हैं. और तो और, 4 जुलाई को होने जा रहे मतदान में उन की कंजर्वेटिव पार्टी के हाउस औफ कौमन्स की 650 में से महज 53 सीटें ही ले जाने की स्थिति में रहेगी.
जिस तरह 400 पार के नारे के साथ भारत के सर्वे धारक भाजपा की जीत के दावे कर रहे थे उस लिहाज से आमतौर पर विदेशी सर्वेक्षण भक्ति और आस्था से प्रेरित नहीं होते, और ब्रिटेन के मामले में तो साफ़ दिखा भी कि सत्तारुढ़ दल की ही दुर्गति के चर्चे पहले ही आम हो गए थे.

एक अकेले टैलीग्राफ ही नहीं, बल्कि कई दूसरे सर्वेक्षणों में भी लेबर पार्टी को काफी बढ़त पर बताया था. ब्रिटिश इंटरनैश्नल मार्केटिंग रिसर्च और डाटा एनालिसिस कंपनी यूगोव (you Gov) के पोल में भी कंजर्वेटिव पार्टी को 20 फीसदी और लेबर पार्टी को 47 फीसदी वोट मिलने की बात कही थी. एक और सर्वे पोलिटिको पोल में तो कंजर्वेटिव पार्टी को तीसरे नंबर पर जाते दिखाया गया था. उसे केवल 18 फीसदी वोट मिलने की संभावना जताई गई थी. रिफौर्म यूके पार्टी को 19 फीसदी वोटों के साथ दूसरा स्थान दिया गया. रिफौर्म यूके 2018 में गठित नईनवेली छोटी सी लेकिन दक्षिणपंथी ही पार्टी है जिस के मुखिया वे नाइजेल फराज हैं जिन्हें एक वक्त में ब्रिटेन को यूरोपीय संघ से बाहर निकालने के लिए जाना जाता है.

यह वह वक्त है जब भारत में भाजपा की दुर्दशा की चर्चा दुनियाभर में जारी है लेकिन कोई स्पष्ट निष्कर्ष पर नहीं पहुंच पा रहा है कि ऐसा क्यों हुआ? सिर्फ एक सरिता पत्रिका ही है जो यह बताती रही कि नरेंद्र मोदी और भाजपा जनता को धर्म की आड़ ले कर गुमराह कर रहे हैं, बहलाफुसला रहे हैं जिस की हकीकत जनता समझने लगी है. नरेंद्र मोदी हालांकि टीडीपी और जेडीयू की बैसाखियों के सहारे तीसरी बार प्रधानमंत्री बन जरूर गए हैं लेकिन उन के तेवर अब पहले जैसे आक्रामक और तानाशाही वाले नहीं रह गए हैं. हालांकि वे अपनी तरफ से ठसक दिखाने की पूरी कोशिश करते हैं लेकिन वे पुराने ज़माने के ठाकुरों सरीखी साफ़साफ़ दिखती है जिन के पास आन, बान और शान के संस्मरण ज्यादा होते हैं भगवा हवेली में अब कम दीयों की रोशनी है.

 

इसी तर्ज पर अगर ब्रिटेन में ऋषि सुनक की हार की स्क्रिप्ट लिखी जा रही है तो उस की प्रस्तावना या इबारत शुरू ही इस बात से होती है कि कंजर्वेटिव पार्टी भी घोषित तौर पर दक्षिणपंथी है. इस बात को इतिहास के साथसाथ उस के वर्तमान चुनावप्रचार से भी समझा जा सकता है. कंजर्वेटिव पार्टी के कुछ उम्मीदवार भारत का हवाला देते हुए यह प्रचार करते रहे कि मोदी फिर प्रधानमंत्री बन गए हैं. इस का मतलब यह था कि आने वाले महीने कश्मीर के लोगों के लिए और कठिन होने वाले हैं. असल में एक पत्र के जरिए कश्मीरी और पाकिस्तानी समुदाय के मतदाताओं को इस तरह लुभाने की कोशिश कंजर्वेटिव पार्टी कर रही थी कि हम अगर जीते तो संसद में कश्मीर मुद्दा उठाएंगे. इस स्टाइल के प्रचार को लेबर पार्टी ने विभाजनकारी बताते हुए एतराज किया था.

घोषित तौर पर ही लाल रंग के झंडे वाली सौ साल पुरानी लेबर पार्टी उदार वामपंथी मानी जाती है जो धरमकरम और चर्चों की राजनीति से दूर रहती है. इस का दिल और दिमाग समाजवादी है क्योंकि इस का जन्म ही मजदूर संगठनों की देन है. तीन बार प्रधानमंत्री रहे टोनी ब्लेयर लेबर पार्टी के एक लोकप्रिय नेता रहे हैं.

 

 

इस चुनाव में लेबर पार्टी के एक प्रमुख नेता डेविड लैमी भारत का नाम लेते हुए कंजर्वेटिव पार्टी पर 25 जून को जम कर यह कहते हुए बरसे थे कि 14 साल से कंजर्वेटिव पार्टी सत्ता में है. इस दौरान कितनी दीवाली आईं गईं लेकिन सरकार भारत के साथ फ्री ट्रेड एग्रीमैंट यानी मुक्त व्यापार समझौता कराने में असफल रही है. उन के निशाने पर ऋषि सुनक के साथसाथ पूर्व प्रधानमंत्री बोरिस जौनसन भी थे. हालांकि, 10 लाख भारतीयों को रिझाने के लिए उन्होंने जम कर भारत की तारीफ भी की.
ब्रिटेन के चुनाव में मसलन महंगाई, इमिग्रेशन, पर्यावरण, अर्थव्यवस्था, घरेलू और विदेश नीति वगैरह मुदद बने. दूसरी बात जिसे लोग कहने से कतरा जा रहे हैं कि प्रधानमंत्री बनने के बाद से ही ऋषि सुनक भी अपना धार्मिक चेहरा उजागर करने को ही जीत की गारंटी मानने लगे थे. वे नियमित रूप से साउथेम्पटन स्थित मंदिर में जाते रहे, जिस का हल्ला उन के प्रधानमंत्री बनने के बाद मचा था. कम ही लोगों को जानकारी है कि वे यहां अकसर भंडारा भी करवाते थे. यह ठीक है कि उन्होंने बेहद उठापटक के दौर में यह पद संभाला था लेकिन उन के सामने खुद की काबिलीयत को साबित करने का सुनहरा मौका भी था जिसे वे धर्म और पूजापाठ के दिखावे की राजनीति के चलते चूक गए.

हालात से लड़ने के बजाय ऋषि ने धर्म का सहारा लिया और धर्मस्थलों के चक्कर काटने शुरू कर दिए. सितंबर 2022 में जब वे भारत आए थे तब दिल्ली के अक्षरधाम मंदिर में भी उन्होंने पूजापाठ और जलाभिषेक करते हुए अपने हिंदू होने का राग आलापा था. 12 नवंबर, 2023 को दीवाली पर उन्होंने 10 डाउनिंग स्ट्रीट में दीवाली की ग्रैंड पार्टी आयोजित की थी. उस दिन उन्होंने अपने पहले ब्रिटिश एशियाई प्रधानमंत्री होने से ज्यादा कट्टर हिंदू होने का जिक्र किया था. इस भव्य और खर्चीले दीवाली समारोह में प्रीति जिंटा, अक्षय कुमार और ट्विंकल खन्ना जैसे फ़िल्मी सितारे खासतौर से शामिल हुए थे.
दीवाली का जिक्र कर डेविड लैमी ने कूटनीतिक चाल चलते ईसाई मतदाताओं को क्या याद दिलाने की कोशिश की थी, इस सवाल का जवाब यही था कि उन्होंने भी एक धार्मिक चाल चली, जिस की कोई काट ऋषि सुनक या कंजर्वेटिव पार्टी के पास नहीं था. दीवाली की पार्टी में ऋषि सुनक की पत्नी अक्षता मूर्ति परंपरागत भारतीय परिधान में थीं लेकिन ऋषि हास्यास्पद लग रहे थे क्योंकि उन्होंने टाई भी पहनी थी और शाल भी कंधों पर डाल रखा था. उस दिन उन के परिवार ने जम कर पूजापाठ और भजनआरती वगैरह किए.

ऋषि सुनक अपने हिंदू होने पर गर्व करें, यह किसी के लिए एतराज की बात नहीं लेकिन वे खुद के धार्मिक, कर्मकांडी और मूर्तिपूजक होने की नुमाइश बहैसियत ब्रिटेन के प्रधानमंत्री हर कभी खुलेआम करें, यह बात ब्रिटेनवासी हजम नहीं कर पाए क्योंकि उन का भगवान देश की बदहाली दूर नहीं कर पाया जिस की जिम्मेदारी ब्रिटेन के लोगों ने उन्हें दी थी. जब भारत के हिंदू ही नरेंद्र मोदी का धर्मकर्म ज्यादा बरदाश्त नहीं कर पाए जिस के चलते उन्होंने भाजपा को 240 पर समेट दिया तो दक्षिणपंथी सुनक ब्रिटेन में कैसे कामयाब हो जाते.यह बात भी कम अहम नहीं कि ब्रिटेन के लोगों ने कभी ऋषि सुनक के हिंदू होने को अन्यथा नहीं लिया. उलटे, उन का स्वागत ही किया था. लेकिन वह स्वागत एक ऐसे स्मार्ट और प्रतिभाशाली नेता के तौर पर किया गया था जो देश की लड़खड़ाती हालत को संभालने की कूवत रखता है. यह उम्मीद तो तभी ढहना शुरू हो गई थी जब ऋषि सुनक घबरा कर हिंदू देवीदेवताओं का गुणगान ‘गंगा मैया ने बुलाया है’ वाली तर्ज पर करने लगे थे.
इस का एक बेहतर उदाहरण मोरारी बापू की रामकथा में उन का नरेंद्र मोदीकी तरह ‘राम सिया राम’ करते रहना था. यह रामकथा कैम्ब्रिज विश्वविद्यालय में 15 अगस्त, 2023 को आयोजित की गई थी. कथा की शुरुआत में ही उन्होंने कहा था कि, ‘मैं आज यहां प्रधानमंत्री के नहीं, बल्कि एक हिंदू के रूप में आया हूं. 10 डाउनिंग स्ट्रीट में एक सुनहरा गणेश प्रसन्नतापूर्वक बैठा है. साउथेम्पटन मंदिर में मेरे मातापिता और परिवारजन हवनपूजाआरती करते थे. बाद में मैं और मेरे भाईबहन दोपहर का भोजन और प्रसाद परोसने लगे थे.’

मोरारी बापू से रूबरू होते उन्होंने कहा था, ‘मैं आज यहां से रामायण को याद करते हुए जा रहा हूं लेकिन साथ ही, भगवदगीता और हनुमान चालीसा को भी याद करता हूं.’ आखिर में जय सिया राम का नारा लगाते हुए उन्होंने मोरारी बापू से ब्रिटेन के लोगों की सेवा करने के लिए असीम शक्ति मांगी. बापू ने गदगद होते उन्हें आशीर्वाद और सोमनाथ के मंदिर वाला शिवलिंग तोहफे में दे दिया.

यहां यह तुलना करना गैरप्रासंगिक नहीं कि ऐसा भारत में कोई करता तो सनातनी उस का क्या हश्र करते जहां मुसलमानों को आएदिन उन की पूजा पद्धतियों और त्योहारों के रीतिरिवाजों को ले कर तरहतरह से कोसा जाता है. मानो धर्म और ऊपर वाले में आस्था के कापीराइट सिर्फ सनातनी हिंदुओं के ही हों. और तो और, दलितों को भी आएदिन मंदिरों से मारपीट कर खदेड़े जाने की घटनाएं बहुत आम हैं. इस पर भी तरस खाने लायक बात यह कि राग सहिष्णुता और विश्वगुरु बनने गाया जाता है.
ऐसा एक नहीं, बल्कि कई मौकों पर हुआ जब ऋषि सुनक ने अपनी आस्था सार्वजनिक रूप से व्यक्त करते नरेंद्र मोदी को भी पछाड़ने की कोशिश की. दुनियाभर के मीडिया और बुद्धिजीवियों ने कंजर्वेटिव पार्टी की इस बाबत तारीफ की थी कि उस ने एक हिंदू अल्पसंख्यक को सब से बड़े पद पर बैठाया. लेकिन उन्हीं दिनों में पाकिस्तानी मूल के कनाडाई लेखक तारेक फतह के इस ट्वीट की भी चर्चा रही थी कि ऋषि और कमला एकदूसरे के विपरीत हैं. कमला हिंदू और अपनी भारतीय पहचान पर शर्मिंदा थीं वहीं ऋषि सुनक ने अपनी हिंदू पहचान जबरदस्ती प्रचारित की.
असल में लोग अमेरिका की उपराष्ट्रपति कमला हैरिस की तुलना महज भारतीय मूल के होने पर करने लगे थे. लेकिन लोग यह भूल गए थे कि कमला हैरिस अमेरिका की वामपंथी पार्टी डैमोक्रेटिक से ताल्लुक रखती हैं और सुनक ब्रिटेन की दक्षिणपंथी पार्टी कंजर्वेटिव से गहरे तक कनैक्ट हैं.

यह कहने में कोई हिचक नहीं कि जो भगवान राम अपने देश में ही भाजपा को 370 सीटें नहीं दिला सके, अपने ही लोकसभा क्षेत्र फ़ैजाबाद में नहीं जिता पाए, तमाम टोटकों और कर्मकांडों के बाद भी एनडीए को 400 पार नहीं करा सके वह ब्रिटेन जा कर ऋषि सुनक और कंजर्वेटिव पार्टी की नैया पार कैसे लगा पाते? और फिर, फैसला वोटर को करना था जिस ने दुनियाभर में पिछले 10 साल जम कर दक्षिणपंथ को हवा दी और अब घबरा कर उस से किनारा कर रहे हैं क्योंकि धर्म जीवन की कठिनाइयां हल नहीं कर पा रहा.
अमेरिकी राष्ट्रपति चुनाव में भी लड़ाई वामपंथ और दक्षिणपंथ की है जिस में हालफ़िलहाल कांटे की टक्कर है. भारत में कमजोर पड़ते दक्षिणपंथ का असर ब्रिटेन के वोटरों पर, थोड़ाबहुत ही सही, पड़ा है.

अमृतपाल और राशिद का लोकसभा पहुंचना संघ और भाजपा के लिए बड़ा संदेश

भाजपा के शासन में धर्म का महासंग्राम चल रहा है और आगे भी उस की मंशा इसे चलाए रखने की है. लेकिन इस महासंग्राम में अपने ही अपनों से लड़ेंगे, यह निश्चित है, जैसे महाभारत का युद्ध जिस में दोनों पक्ष किसी बाहर के दुश्मन से नहीं लड़े, अपने ही अपनों से लड़े.

सिखों के लिए अलग खालिस्तान की मांग उठाने वाले जरनैल सिंह भिंडरावाले के भक्त अमृतपाल सिंह और जम्मूकश्मीर में अनुच्छेद 370 निरस्त होने के खिलाफ आवाज बुलंद करने वाले इंजीनियर राशिद का बड़े अंतर से लोकसभा चुनाव जीतना और देश की संसद में बतौर ‘माननीय’ पहुंचना यह संदेश देता है कि देश के अंदर जितनी जोर से हिंदुत्व और हिंदू राष्ट्र का डंका पीटा गया, उतनी ही जोर से उस की प्रतिध्वनि भी उत्पन्न हुई.

भिंडरावाले का भक्त और खालिस्तान समर्थक अमृतपाल सिंह ने असम की जेल में रहते हुए पंजाब की खडूर साहिब सीट से सांसद का चुनाव जीता और जम्मूकश्मीर में धारा 370 हटाने की मुखालफत करने वाले इंजीनियर राशिद ने दिल्ली की तिहाड़ जेल में रहते हुए उत्तरी कश्मीर की बारामूला सीट से जम्मूकश्मीर के पूर्व मुख्यमंत्री और नैशनल कान्फ्रेंस के उपाध्यक्ष उमर अब्दुल्ला को 2 लाख से ज्यादा वोटों से हरा कर अपनी जगह लोकसभा में सुनिश्चित की है.

भाजपा और संघ के शासन में देश के अंदर धर्म का महासंग्राम चल रहा है और आगे भी उस की मंशा इसे चलाए रखने की है. लेकिन इस महासंग्राम में अपने ही अपनों से लड़ेंगे, यह निश्चित है. जैसे, महाभारत का युद्ध. वे भी किसी बाहर के दुश्मन से नहीं लड़े, अपने ही अपनों से लड़े, मगर हासिल क्या हुआ? खून से लथपथ धरती और विधवाओं की करुण चीखों से गूंजता आसमान. यह तो शुक्र है ‘इंडिया’ गठबंधन का, जिस ने फिलहाल लोकतंत्र को जीवित रखा हुआ है.

माननीय बने अमृतपाल

‘वारिस पंजाब दे’ के अमृतपाल सिंह को कल तक खालिस्तानी समर्थक कहा जाता था, आज वे अचानक संसद में ‘माननीय’ कहलाएंगे. बता दें कि अमृतपाल पर वैमनस्य फैलाने, हत्या के प्रयास और पुलिसकर्मियों पर हमले से संबंधित कई मामले दर्ज हैं. ‘वारिस पंजाब दे’ राजनीतिक समूह के प्रमुख प्रचारक अमृतपाल सिंह ने निर्दलीय के रूप में लोकसभा चुनाव लड़ा और कांग्रेस के कुलबीर सिंह जीरा को लगभग 2 लाख मतों के अंतर से हराया है. जाहिर है, देश में सिखों का एक बहुत बड़ा तबका अमृतपाल के विचारों और फैसलों के समर्थन में एकजुट है. सांसद अमृतपाल का कहना है कि वे खालिस्तानी जरनैल सिंह भिंडरावाले के विचारों से प्रेरित हैं.

कुछ वर्षों पहले तक अमृतपाल सिंह की जींस-टीशर्ट वाली तसवीरें दिखा करती थीं, मगर अब वे भिंडरावाले के समान सफेद कुरते और नीली पगड़ी में दिखते हैं. असम की जेल से चुनाव लड़ने के बाद पंजाब की खडूर साहिब सीट से सांसद चुने गए कट्टरपंथी नेता अमृतपाल सिंह को पद की शपथ लेने के लिए 4 दिनों की पैरोल मिली है. राष्ट्रीय सुरक्षा अधिनियम के तहत असम की डिब्रूगढ़ जेल में बंद अमृतपाल सिंह ने 11 जून को पंजाब सरकार को पत्र लिख कर पैरोल के लिए अनुरोध किया था ताकि वे संसद में शपथ ले सकें. राज्य सरकार ने लोकसभा अध्यक्ष ओम बिड़ला को एक आवेदन भेजा था और उस के आधार पर पैरोल का फैसला लिया गया है.

अमृतपाल सिंह मूलतया पंजाब के जल्लूपुर गांव के रहने वाले हैं. उन की पढ़ाई गांव के स्कूल में महज 12वीं तक हुई है. साल 2012 में अमृतपाल दुबई गए, वहां उन्होंने ट्रांसपोर्ट का कारोबार किया. उन के ज्यादातर सगेसंबंधी दुबई में रहते हैं. वे सितंबर 2022 में भारत लौटे. उसी महीने उन्हें ‘वारिस पंजाब दे’ का प्रमुख नियुक्त किया गया, जो एक भारतीय पंजाबी फिल्म अभिनेता और सामाजिक कार्यकर्ता दीप सिद्धू द्वारा स्थापित एक संगठन है, जिन की फरवरी 2022 में एक सड़क दुर्घटना में मृत्यु हो गई थी.

यह संगठन प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी सरकार द्वारा लाए गए कृषि सुधारों के खिलाफ किसान आंदोलन जैसे विशाल अभियान का हिस्सा था. भारत लौटने के बाद से अमृतपाल सिंह सिखों के अधिकारों की रक्षा के लिए सिख समुदाय के एक बड़े हिस्से का नेतृत्व कर रहे थे. गौरतलब है कि सिख समुदाय भारत की आबादी का 1.7 प्रतिशत है. खालिस्तान आंदोलन के समर्थकों के बीच अमृतपाल सिंह के भाषण बहुत तेजी से लोकप्रिय हुए हैं.

30 वर्षीय अमृतपाल सिंह के आगे एक लंबा राजनीतिक कैरियर है. जबकि प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी और अमित शाह जैसे भाजपा की पहली पंक्ति के नेताओं के पास अब ज्यादा लंबा वक़्त नहीं बचा है. अगले कुछ वर्षों के दौरान अगर भाजपा और संघ अगर ध्रुवीकरण की राजनीति ही करते रहे और धर्म का परचम बुलंद करते रहे तो देश के भीतर महाभारत की शुरुआत होते देर नहीं लगेगी. यहां हिंदू, मुसलिम, सिख सभी अपने अपने धर्म का परचम लहराते नजर आएंगे जो दुनिया के इस सब से बड़े लोकतंत्र के लिए ठीक नहीं होगा.

अमृतपाल ने पिछले साल 10 फरवरी को अपने पैतृक गांव में एक सादे समारोह में ब्रिटेन की रहने वाली एनआरआई लड़की किरणदीप से शादी की है. आनंद कारज में दोनों परिवारों के लोग शामिल हुए. किरणदीप मूल रूप से जालंधर के कुलारां गांव की हैं, लेकिन कुछ समय पहले उन का परिवार इंगलैंड में बस गया था.

शादी के समय से ही कई ऐसी घटनाएं हुईं जिन के कारण अमृतपाल सिंह गिरफ्तार हुए और जेल भेजे गए. वे किसान आंदोलन का बड़ा चेहरा तो बन ही चुके थे, जिस के कारण केंद्र सरकार की नजर उन पर थी. उसी समय उन्होंने और उन के सैकड़ों समर्थकों ने जेल में बंद अपने एक सहयोगी की रिहाई की मांग को ले कर तलवारों और बंदूकों के साथ पंजाब के अजनाला पुलिस थाने पर धावा बोल दिया था.

18 मार्च को पंजाब में पुलिस ने सड़कों पर नाकाबंदी की. हजारों की संख्या में पुलिसकर्मियों को तैनात किया गया ताकि अमृतपाल की गिरफ्तारी हो सके, लेकिन अमृतपाल शहर से निकल भागने में कामयाब रहे.

इस के बाद भारतीय अधिकारियों ने एक महीने तक तलाशी अभियान चलाया, जिस में हजारों अर्धसैनिक बल के जवानों को तैनात किया गया और पंजाब के कुछ इलाकों में मोबाइल इंटरनैट सेवाएं निलंबित कर दी गईं. अमृतपाल सिंह के 154 समर्थकों को गिरफ्तार कर लिया गया, जिन के पास से पुलिस ने 10 बंदूकें और गोलाबारूद जब्त दिखाया. बाद में पंजाब के मोगा जिले के रोडे गांव के एक गुरुद्वारे से अमृतपाल सिंह की भी गिरफ्तारी हुई.

अमृतपाल सिंह को राष्ट्रीय सुरक्षा अधिनियम के तहत गिरफ्तार किया गया, जिस के तहत राष्ट्रीय सुरक्षा के लिए खतरा माने जाने वाले लोगों को बिना किसी आरोप के एक साल तक हिरासत में रखा जा सकता है. बता दें कि अमृतपाल की हिरासत अवधि 24 जुलाई को समाप्त होनी थी, लेकिन लोकसभा चुनाव की मतगणना से एक दिन पहले 3 जून को उन की हिरासत की अवधि को एक साल के लिए बढ़ा दिया गया. अमृतपाल सिंह पर एनएसए के तहत मामला दर्ज है. इस के अतिरिक्त हत्या व अपहरण समेत कई और केस दर्ज हैं. लेकिन यही अमृतपाल सिंह देश की संसद में पंजाब के एक बड़े तबके का प्रतिनिधित्व करते नज़र आएंगे. जबजब भाजपा और संघ हिंदुत्व और हिंदू राष्ट्र का मुद्दा गरम करेंगे तबतब प्रतिक्रिया के तौर पर अलग खालिस्तान का मुद्दा भी उछाला जाएगा.

जम्मूकश्मीर ने भी चौंकाया

लोकसभा चुनाव नतीजों में कश्मीर का जनादेश भी काफी चौंकाने वाला रहा है. ‘नया कश्मीर’ ने 2 हाईप्रोफाइल निर्वाचन क्षेत्रों से राज्य के 2 पूर्व मुख्यमंत्रियों उमर अब्दुल्ला और महबूबा मुफ्ती की जगह जेल में बंद इंजीनियर राशिद को चुन कर देश की संसद में भेजा है.

चुनाव के दिन सूबे की जनता ने ऐतिहासिक रूप से बड़ी संख्या में घरों से निकल कर ऐसी नाटकीय पटकथा लिखी जिस ने जम्मूकश्मीर में अब्दुल्ला और भाजपा के साथ गलबहियां कर चुकीं महबूबा मुफ्ती की उम्मीदों पर पानी फेर दिया. ‘इंजीनियर राशिद’ के नाम से मशहूर निर्दलीय उम्मीदवार अब्दुल राशिद ने उमर अब्दुल्ला को 2 लाख वोटों के बड़े अंतर से हरा दिया. एनसी नेता उमर अब्दुल्ला की बारामूला सीट से हार इसलिए भी ज्यादा चर्चित रही क्योंकि राशिद ने दिल्ली की उच्च सुरक्षा वाली तिहाड़ जेल में बंद रहते हुए लोकसभा का चुनाव लड़ा. वे अपने प्रचार के लिए अपने समर्थकों के बीच नहीं थे. बावजूद इस के, उन के सिर जीत का सेहरा बांध कर अगर जम्मूकश्मीर की जनता ने उन्हें संसद तक पहुंचाया है तो यह संदेश भाजपा और संघ के लिए है कि जम्मूकश्मीर से धारा 370 हटाना सब को रास नहीं आया है. मतदाताओं का एक बड़ा वर्ग राशिद के समर्थन में इसलिए भी निकल कर आया क्योंकि उसे लगा कि राशिद को लोगों का साथ देने की सजा दी जा रही है.

गौरतलब है कि अब्दुल राशिद गैरकानूनी गतिविधि (रोकथाम) अधिनियम के तहत दिल्ली की तिहाड़ जेल में बंद हैं. राशिद को जम्मूकश्मीर में अनुच्छेद 370 के निरस्त होने के बाद गिरफ्तार किया गया था. अनुच्छेद 370 के निरस्त होने के बाद जब कश्मीर में हर राजनीतिक दल ने फिर से इस की बहाली के मामले में आत्मसमर्पण कर दिया, तब इंजीनियर राशिद अपनी आवाज बुलंद कर रहे थे. हालांकि अभी वे केवल एक आरोपी हैं और दोषी साबित नहीं हुए हैं, इसलिए चुनाव आयोग ने उन का नामांकन स्वीकार कर लिया था. दिल्ली की एक अदालत ने उन्हें आज, 5 जुलाई को, लोकसभा सदस्य के रूप में शपथ लेने के लिए 2 घंटे की पैरोल प्रदान की. वे पुलिस अभिरक्षा में संसद आए.

इंजीनियर राशिद की जीत ने जम्मूकश्मीर के उन नेताओं को संजीवनी देने का काम किया है जो भाजपा और संघ के धर्मप्रचार से खुश नहीं, बल्कि भयभीत हैं. यही वजह है, इंजीनियर राशिद के हाथों मात खाने के बाद भी जम्मूकश्मीर के पूर्व मुख्यमंत्री और नैशनल कान्फ्रेंस के उपाध्यक्ष उमर अब्दुल्ला ने इंजीनियर राशिद को रिहा करने की मांग उठाई है. उमर अब्दुल्ला ने एक्स पर लिखा, “मैं जम्मूकश्मीर के लोगों का प्रतिनिधित्व करने वाले तथा अन्य सांसदों को बधाई देता हूं जो आज शपथ ले रहे हैं. यह हमारे लोकतंत्र के लिए महत्त्वपूर्ण अवसर है. इस बात को स्वीकार करना जरूरी है कि उत्तरी कश्मीर के लोगों ने इंजीनियर राशिद को चुना है और उन्हें लोकसभा की सदस्यता की शपथ लेने तथा अपने निर्वाचन क्षेत्र का प्रतिनिधित्व करने का मौका मिलना चाहिए.”

 

अमृतपाल सिंह और इंजीनियर राशिद जैसे नेताओं का लोकसभा में पहुंचना भाजपा-नीत एनडीए के लिए मुश्किल जरूर पैदा करेगा. अगर संघ और भाजपा हिंदू धर्म के प्रचारप्रसार पर ज्यादा जोर देंगे तो उन्हें अन्य धर्म के लोगों के प्रतिरोध का सामना करना पड़ेगा.

सेक्स करने के बाद सिर में दर्द होने लगता है, इस से बचने के लिए क्या करूंं ?

सवाल

मैं 26 साल की विवाहित युवती हूं. विवाह 6 महीने पहले हुआ है. मैं तभी से एक विचित्र परेशानी से गुजर रही हूं. जब जब हम सैक्स करते हैं, उस के तुरंत बाद मुझे सिर में जोर का दर्द होने लगता है. मेरी समझ में नहीं आ रहा है कि ऐसा क्यों हो रहा है? कहीं यह किसी गंभीर भीतरी रोग का लक्षण तो नहीं है? इस से बचने के लिए मुझे क्या करना चाहिए? कोई घरेलू नुस्खा हो तो बताएं?

जवाब

आप जरा भी परेशान न हों. यह समस्या कई युवक युवतियों में देखी जाती है. इस का संबंध शरीर की जटिल रसायनिकी से होता है. यों समझें कि यह एक तरह का कैमिकल लोचा है. जिस समय सैक्स के समय कामोन्माद यानी और्गेज्म प्राप्त होता है, उस समय शरीर की रसायनिकी में आए परिवर्तनों के चलते सिर की रक्तवाहिकाएं कुछ देर के लिए फैल जाती हैं. धमनियों में आए इस अस्थाई फैलाव से उन के साथसाथ चल रही तंत्रिकाओं पर जोर पड़ता है, जिस कारण सिर में दर्द होने लगता है.

आप आगे इस दर्द से परेशान न हों, इस के लिए आप एक छोटा सा घरेलू नुसखा अपना सकती हैं. सहवास से 40-45 मिनट पहले आप पैरासिटामोल की साधारण दर्दनिवारक गोली लें. साइड इफैक्ट्स के नजरिए से पैरासिटामोल बहुत सुरक्षित दवा है. इसे लेने से कोई नुकसान नहीं होता.

जिन्हें पैरासिटामोल सूट नहीं करती, उन्हें अपने फैमिली डाक्टर से सलाह लेनी चाहिए. यदि डाक्टर कहे तो नियम से प्रोप्रानोलोल सरीखी बीटा ब्लौकर दवा लेते रहने से और्गैज्म के समय सिर की धमनियों में फैलाव नहीं आता और सिरदर्द से बचाव होता है.

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कामुकता का राज और स्त्री की संतुष्टि को कुछ इस तरह समझिए

मेरठ का 30 वर्षीय मनोहर अपने वैवाहिक जीवन से खुश नहीं था, कारण शारीरिक अस्वस्थता उस के यौन संबंध में आड़े आ रही थी. एक वर्ष पहले ही उस की शादी हुई थी. वह पीठ और पैर के जोड़ों के दर्द की वजह से संसर्ग के समय पत्नी के साथ सुखद संबंध बनाने में असहज हो जाता था. सैक्स को ले कर उस के मन में कई तरह की भ्रांतियां थीं.

दूसरी तरफ उस की 24 वर्षीय पत्नी उसे सैक्स के मामले में कमजोर समझ रही थी, क्योंकि वह उस सुखद एहसास को महसूस नहीं कर पाती थी जिस की उस ने कल्पना की थी. उन दोनों ने अलगअलग तरीके से अपनी समस्याएं सुलझाने की कोशिश की. वे दोस्तों की सलाह पर सैक्सोलौजिस्ट के पास गए. उस ने उन से तमाम तरह की पूछताछ के बाद समुचित सलाह दी.

क्या आप जानते हैं कि सैक्स का संबंध जितना दैहिक आकर्षण, दिली तमन्ना, परिवेश और भावनात्मक प्रवाह से है, उतना ही यह विज्ञान से भी जुड़ा हुआ है. हर किसी के मन में उठने वाले कुछ सामान्य सवाल हैं कि किसी पुरुष को पहली नजर में अपने जीवनसाथी के सुंदर चेहरे के अलावा और क्या अच्छा लगता है? रिश्ते को तरोताजा और एकदूसरे के प्रति आकर्षण पैदा करने के लिए क्या तौरतरीके अपनाने चाहिए?

सैक्स जीवन को बेहतर बनाने और रिश्ते में प्यार कायम रखने के लिए क्या कुछ किया जा सकता है? रिश्ते में प्रगाढ़ता कैसे आएगी? हमें कोई बहुत अच्छा क्यों लगने लगता है? किसी की धूर्तता या दीवानगी के पीछे सैक्स की कामुकता के बदलाव का राज क्या है? खुश रहने के लिए कितना सैक्स जरूरी है? सैक्स में फ्लर्ट किस हद तक किया जाना चाहिए?

इन सवालों के अलावा सब से चिंताजनक सवाल अंग के साइज और शीघ्र स्खलन की समस्या को ले कर भी होता है. इन सारे सवालों के पीछे वैज्ञानिक तथ्य छिपा है, जबकि सामान्य पुरुष उन से अनजान बने रह कर भावनात्मक स्तर पर कमजोर बन जाता है या फिर आत्मविश्वास खो बैठता है.

वैज्ञानिक शोध : संसर्ग का संघर्ष

हाल में किए गए वैज्ञानिक शोध के अनुसार, यौन सुख का चरमोत्कर्ष पुरुषों के दिमाग में तय होता है, जबकि महिलाओं के लिए सैक्स के दौरान विविध तरीके माने रखते हैं. चिकित्सा जगत के वैज्ञानिक बताते हैं कि पुरुष गलत तरीके के यौन संबंध को खुद नियंत्रित कर सकता है, जो उस की शारीरिक संरचना पर निर्भर है.

पुरुषों के लिए बेहतर यौनानंद और सहज यौन संबंध उस के यौनांग, मस्तिष्क और रीढ़ की हड्डी पर निर्भर करता है. पुरुषों में यदि रीढ़ की हड्डी की चोट या न्यूरोट्रांसमीटर सुखद यौन प्रक्रिया में बाधक बन सकता है, तो महिलाओं के लिए जननांग की दीवारें इस के लिए काफी हद तक जिम्मेदार होती हैं और कामोत्तेजना में बाधक बन सकती हैं.

शोध में वैज्ञानिकों ने पाया है कि एक पुरुष में संसर्ग सुख तक पहुंचने की क्षमता काफी हद तक उस के अपने शरीर की संरचना पर निर्भर है, जिस का नियंत्रण आसानी से नहीं हो पाता है. इस के लिए पुरुषों में मस्तिष्क, रीढ़ की हड्डी और शिश्न जिम्मेदार होते हैं.

मैडिसन के इंडियाना यूनिवर्सिटी स्कूल और मायो क्सीविक स्थित वैज्ञानिकों ने सैक्सुअल और न्यूरो एनाटोमी से संबंधित संसर्ग के प्रचलित तथ्यों का अध्ययन कर विश्लेषण किया. विश्लेषण के अनुसार,

डा. सीगल बताते हैं, ‘‘पुरुष के अंग के आकार के विपरीत किसी भी स्वस्थ पुरुष में संसर्ग करने की क्षमता काफी हद तक उस के तंत्रिकातंत्र पर निर्भर है. शरीर को नियंत्रित करने वाले तंत्रिकातंत्र और सहानुभूतिक तंत्रिकातंत्र के बीच संतुलन बनाया जाना चाहिए, जो शरीर के भीतर जूझने या स्वच्छंद होने की स्थिति को नियंत्रित करता है.’’

डा. सीगल अपने शोध के आधार पर बताते हैं कि शारीरिक संबंध के दौरान संवेदना मस्तिष्क या रीढ़ की हड्डी द्वारा पहुंचती है और फिर इस के दूसरे छोर को संकेत मिलता है कि आगे क्या करना है. इस आधार पर वैज्ञानिकों ने पाया कि उत्तेजना 2 तथ्यों पर निर्भर है.

एक मनोवैज्ञानिक और दूसरी शारीरिक, जिस में शिश्न की उत्तेजना प्रत्यक्ष तौर पर बनती है.

इन 2 कारणों में से सामान्य मनोवैज्ञानिक तर्क की मान्यता में पूरी सचाई नहीं है. डा. सीगल का कहना है कि रीढ़ की हड्डी की चोट से शिश्न की उत्तेजना में कमी आने से संसर्ग सुख की प्राप्ति प्रभावित हो जाती है. इसी तरह से मस्तिष्क में मनोवैज्ञानिक समस्याओं में अवसाद आदि से तंत्रिका रसायन में बदलाव आने से संसर्ग और अधिक असहज या कष्टप्रद बन जाता है.

स्त्री की यौन तृप्ति

कोई युवती कितनी कामुक या सैक्स के प्रति उन्मादी हो सकती है? इस के लिए बड़ा सवाल यह है कि उसे यौन तृप्ति किस हद तक कितने समय में मिल पाती है? विश्लेषणों के अनुसार, शोधकर्ता वैज्ञानिकों को उम्मीद है कि ऐसे लोगों को चिकित्सकीय सहायता मिल सकती है और वे सुखद यौन संबंध में बाधक बनने वाली बहुचर्चित भ्रांतियों से बच सकते हैं.

इस शोध में यह भी पाया गया है कि युवतियों के लिए यौन तृप्ति का अनुभव कहीं अधिक जटिल समस्या है. इस बारे में पता लगाने के लिए वैज्ञानिकों ने माइक्रोस्कोप के जरिए युवतियों के अंग की दीवारों में होने वाले बदलावों और असंगत प्रभाव बनने वाली स्थिति का पता लगाया है.

वैज्ञानिकों ने एमआरआई स्कैन के जरिए महिला के दिमाग में संसर्ग के दौरान की  सक्रियता मालूम कर उत्तेजना की समस्या से जूझने वाले पुरुषों को सुझाव दिया है कि वे अपनी समस्याओं से छुटकारा पा सकते हैं. उन्हें सैक्सुअल समस्याओं के निबटारे के लिए डाक्टरी सलाह लेनी चाहिए, न कि नीम हकीम की सलाह या सुनीसुनाई बातों को महत्त्व देना चाहिए. इस अध्ययन को जर्नल औफ क्लीनिकल एनाटौमी में प्रकाशित किया गया है.

महत्त्वपूर्ण है संसर्ग की शैली

डा. सीगल के अनुसार, महिलाओं के लिए संसर्ग के सिलसिले में अपनाई गई पोजिशन महत्त्वपूर्ण है. विभिन्न सैक्सुअल पोजिशंस के संदर्भ में शोधकर्ताओं द्वारा किए गए सर्वेक्षणों में भी पाया गया है कि स्त्री के यौनांग की दीवारों को विभिन्न तरीके से उत्तेजित किया जा सकता है.

आज की भागदौड़भरी जीवनशैली में मानसिक तनाव के साथसाथ शारीरिक अस्वस्थता भी सैक्स जीवन को प्रभावित कर देती है. ऐसे में कोई पुरुष चाहे तो अपनी सैक्स संबंधी समस्याओं को डाक्टरी सलाह के जरिए दूर कर सकता है.

कठिनाई यह है कि ऐसे डाक्टर कम होते हैं और जो प्रचार करते हैं वे दवाएं बेचने के इच्छुक होते हैं, सलाह देने में कम. वैसे, बड़े अस्पतालों में स्किन व वीडी रोग (वैस्कुलर डिजीज) विभाग होता है. अगर कोई युगल किसी सैक्स समस्या से जूझ रहा है तो वह इस विभाग में डाक्टर को दिखा कर सलाह ले सकता है.

अगर आपकी भी ऐसी ही कोई समस्या है तो हमें इस ईमेल आईडी पर भेजें- submit.rachna@delhipress.biz

सब्जेक्ट में लिखें- सरिता व्यक्तिगत समस्याएं/ personal problem

कहीं बीमार न कर दे Monsoon, रखें इन बातों का खास ख्याल

झुलसा देने वाली गरमी के बीच सभी को राहत का एहसास कराने वाले मानसून का इंतजार होता है. लेकिन इस मौसम के दौरान स्वास्थ्य संबंधी अनेक समस्याओं का भी सामना करना पड़ता है. इस का प्राथमिक कारण तापमान में होने वाला अचानक परिवर्तन है, जिस से शरीर की प्रतिरोधक क्षमता कमजोर हो जाती है और फिर संक्रमण की चपेट में आने की संभावना बढ़ जाती है. इस के अतिरिक्त जीवाणु जैसे अनेक और्गेनिज्म गरम व उमसभरी स्थितियों में काफी तेजी से पनपने लगते हैं.

सामान्य मूत्र में किसी प्रकार के जर्म्स और बैक्टीरिया नहीं पाए जाते, लेकिन ये मलाशय के क्षेत्र में उपस्थित रहते हैं. यूरिनरी ट्रैक इन्फैक्शन यानी यूटीआई मूत्र प्रणाली में होने वाला जीवाणु संक्रमण है. मलाशय के आसपास के क्षेत्रों में उपस्थित बैक्टीरिया मानसून के दौरान काफी तेजी से पनप जाते हैं जो संक्रमण का कारण बनते हैं.

बैक्टीरिया जब मूत्राशय में पहुंच जाते हैं तब ये प्रदाहन का कारण बन जाते हैं, इस संक्रमण को सिस्टाइटिस कहते हैं. वहीं, जब ये किडनी में पहुंच कर प्रदाहन का कारण बनते हैं, तब इसे पाइलोनेफ्राइटिस कहा जाता है, इसे कहीं अधिक गंभीर समस्या माना जाता है. इस प्रकार का संक्रमण महिलाओं के अलावा पुरुषों में भी हो सकता है. हालांकि इस रोग की चपेट में आने की संभावना महिलाओं में अधिक होती है. इस का कारण शारीरिक संरचना की भिन्नता है. महिलाओं का मूत्रीय क्षेत्र पुरुषों की अपेक्षा छोटा होता है. महिलाएं बारबार संक्रमण की शिकायत करती हैं. बच्चे भी संक्रमण की चपेट में आ सकते हैं, लेकिन उन में इस की संभावना कम होती है.

मूत्रीय क्षेत्र के संक्रमण के लक्षण काफी सामान्य या आम होते हैं तथा आसानी से पहचाने जा सकते हैं. इन में मूत्र त्याग के समय दर्द (डिस्यूरिया), मूत्र त्याग की बारंबार इच्छा, मूत्र त्याग के समय जलन, पेट के निचले हिस्से में घाव का एहसास होना, पीठ के निचले हिस्से अथवा पेट के निचले हिस्से में दर्द, ज्वर, चक्कर आना, उल्टी तथा कंपकंपी का एहसास आदि शामिल हैं.

मूत्रीय क्षेत्र के संक्रमण के कारण संक्रमित व्यक्ति को काफी बेचैनी महसूस हो सकती है. आयु, लिंग तथा संक्रमण के स्थान के अनुसार इस के लक्षणों में भिन्नता हो सकती है. लेकिन यदि एक व्यक्ति यूटीआई से संक्रमित हो जाता है तो इस को ले कर बहुत अधिक चिंता करने की जरूरत नहीं है. इसे यूरिन कल्चर परीक्षण से पता लगाया जाता है. मूत्र में बैक्टीरिया की संख्या तथा रक्त के नमूने में श्वेत रक्त कोशिकाओं की संख्या से संक्रमण की गंभीरता का पता चलता है. कुछ उपायों को अपनाकर निश्चित रूप से मूत्रीय संक्रमण से बचा जा सकता है. कुछ स्वीकारोक्ति व कुछ वर्जनाओं का पालन कर शरीर को व्यापक सूक्ष्मजैविक गतिविधियों, विशेषकर मानसून के दौरान, से सुरक्षित रखा जा सकता है.

एक व्यक्ति को संक्रमण तथा वर्षा ऋतु के दौरान ढेर सारा पानी, जूस तथा सूप पीना चाहिए. इस से मूत्र का प्रवाह बढ़ जाएगा तथा किसी भी प्रकार के संक्रमण की चपेट में आने की संभावना कम हो जाएगी. इस के अतिरिक्त हमें मूत्र को रोक कर नहीं रखना चाहिए, बल्कि जब भी इस के उत्सर्जन की इच्छा प्रकट हो, इस का त्याग अवश्य किया जाना चाहिए. पेयजल किसी भी स्थिति में कीटाणु रहित होना चाहिए, यह फिल्टर्ड या उबला हुआ होना चाहिए. इस मौसम में गैर मौसमी फलों के बजाय मौसमी फलों के सेवन की सलाह दी जाती है.

गुप्तांगों की साफसफाई तथा व्यक्तिगत स्वच्छता पुरुषों व महिलाओं के लिए अत्यधिक महत्त्वपूर्ण है, खासकर उमस- भरी मौसमी स्थितियों में.

साफसफाई का रखें ध्यान

महिलाओं को इस मौसम के दौरान कुछ बातें अवश्य याद रखनी चाहिए. यूटीआई के अत्यंत प्रचलित कारणों में से एक है आंत का बैक्टीरिया, जो त्वचा में रहता है तथा यह मूत्र क्षेत्र में फैल जाता है. इस के बाद यह बैक्टीरिया आगे बढ़ कर मूत्राशय में पहुंच कर संक्रमण का कारण बन जाता है. महिलाओं को पीछे से आगे की तरफ सफाई नहीं करनी चाहिए, बल्कि आगे से पीछे की तरफ करनी चाहिए. पाश्चात्य शैली के टौयलेट्स में उपलब्ध वाटर जेट का इस्तेमाल नहीं करना चाहिए, इस के बजाय हाथ से इस्तेमाल किए जाने वाले शावर्स का उपयोग करना चाहिए.

इस के अतिरिक्त कई बार सहवास के दौरान यौन क्षेत्र के बैक्टीरिया मूत्र क्षेत्र में प्रवेश कर जाते हैं, जिस के कारण मूत्र मार्ग में संक्रमण हो सकता है. हनीमून मनाने वाले युगलों में सिस्टाइटिस काफी आम है. समुचित साफसफाई तथा पर्याप्त जलग्रहण के जरिए इस से बचा जा सकता है.

महिलाओं के लिए उच्चस्तरीय साफसफाई को मेंटेन रखना काफी आवश्यक है. मासिक धर्म के दौरान यह और अधिक जरूरी हो जाता है. स्वच्छ व शुष्क सैनिट्री नैपकिन्स का इस्तेमाल करना चाहिए. इस के अतिरिक्त इस दौरान मधुमेह से पीडि़त, गर्भवती या रजोनिवृत्ति के दौर से गुजर रही महिलाओं के मूत्र क्षेत्र के संक्रमण से पीडि़त होने की संभावना काफी बढ़ जाती है. रजोनिवृत्ति के बाद महिलाओं में एट्रौफिक वैजाइनल डीजैनरेशन का विकास हो सकता है, जो आगे बढ़ कर मूत्र क्षेत्र के संक्रमण की संभावना को जन्म दे सकता है.

पूरी तरह से सूखे हुए कपड़ों को पहनें. आंतरिक वस्त्र कौटन के होने चाहिए और बरसात के मौसम में इन्हें अवश्य ही इस्तरी किया जाना चाहिए. गुप्तांगों की सफाई के लिए जल में ऐंटीसैप्टिक्स के इस्तेमाल की कोई जरूरत नहीं है, जब तक कि चिकित्सक इस की सलाह न दें. वास्तव में ये ऐंटीसैप्टिक त्वचा की सामान्य जीवाणु परत को नष्ट कर सकते हैं तथा त्वचा की एलर्जी व संक्रमणों को बढ़ा सकते हैं. माताओं को नवजात शिशुओं में होने वाले नैपी रैशेज पर नियमित रूप से नजर रखनी चाहिए तथा उन्हें शिशुओं की नैपी को सूखा रखना चाहिए.

पुरुष भी रखें ध्यान

पुरुषों को इस बात की अवश्य जानकारी होनी चाहिए कि लिंग का खतना कराने से यौन संक्रमित रोगों (एसटीडीज), मूत्र क्षेत्र के संक्रमण और कैंसर्स से बचाव में सहायता मिलती है. इस के अतिरिक्त बेनाइन प्रौस्टेटिक हाइपरप्लेसिया (बीपीएच), जोकि आयु के बढ़ने के साथ प्रौस्टेट ग्रंथि के बढ़ने की स्थिति होती है, मूत्र क्षेत्र के संक्रमण की संभावना को बढ़ा देता है. इस पर नजर रखना जरूरी है.

यदि समय से पहचान कर ली जाए तो मूत्र क्षेत्र के संक्रमण का आसानी से उपचार किया जा सकता है. किसी भी प्रकार के बेआरामी वाले लक्षणों के प्रकट होने पर व्यक्ति को तुरंत चिकित्सक से संपर्क करना चाहिए. यदि इस का उपचार समय से नहीं किया जाता तो यह संक्रमण गंभीर स्थिति उत्पन्न कर सकता है.

पार्टनर गुस्से वाला हो, तो कैसे डील करें

हम हर रोज अलग अलग कई चीजों से डील करते है. ऐसे में अगर पार्टनर गुस्से वाला हो, तो उससे भी डील करना सीख लें. शायद इससे ज़िंदगी कुछ आसान हो जाएँ और आपका रिलेशनशिप भी हैप्पी एंड हेल्थी हो जाएँ. वैसे भी जहाँ प्यार होता है वहां रूठना मनाना तो चलता ही रहता है.

पार्टनर गुस्से वाला हो, तो एक हद तक समझाओ फिर गिवअप कर दो. ये भूल जाओं की उसे समझ आएगी। लोग कहते है गुस्सा करना सेहत के लिए ठीक नहीं, तुम चिड़चिड़े हो जाओगे, दोस्त यार गायब हो जायेंगे. ये सब बकवास बातें हैं. लेकिन उसके साथ डील कैसे करें ये याद रखों। गुस्सा भी एक इमोशन और भावनाओं के जैसा है उसे समझें ओर उसी के अनुसार डील करें।

वो काम न करों, जो गुस्सा दिलाते हैं

जब भी कोई एक गुस्सा हो, तो दूसरे को सबसे पहले इस बात का कारण पता लगाना चाहिए कि वो क्यों गुस्सा है. मतलब दोनों पार्टनर के बीच झगड़ा किस बात को लेकर होता है, इस बात को समझें और नोट कर लें. इससे गुस्सा भड़केगा नहीं. अगर उन्हें आपका ज्यादा फोन पर बात करना पसंद नहीं, तो उनके सामने ज्यादा बात करने से बचे.

पार्टनर गुस्सा है, तो उठकर कहीं ओर चले जाओ

किसी का गुस्सा भी एक हद तक बर्दाश्त किया जा सकता है इसलिए जब पार्टनर गुस्सा करें, तो उठकर कही चले जाओ जैसे कि उस टाइम आप गार्डनिंग करें, म्यूजिक सुनें, टीवी देखे। इससे आपको गुस्सा भी नहीं आएगा और फील गुड़ होगा.

हर सवाल का जवाब नहीं मिल सकता

अगर पार्टनर गुस्से में है तो जरुरी नहीं कि हर बात पर बहस की जाये और उसका जवाब दिया जाएं। यदि आप हर बात का जवाब देंगे तो विवाद की स्थिति पैदा हो जाएगी. इसलिए पार्टनर गुस्से में है, तो आप ना बहस करके सारे गड़े मुर्दे उखाड़ें।

एक चुप सौ को हराता है

ये कहावत तो आपने सुनी ही होगी कि एक चुप सौ को हराता है. यह बिलकुल सही बात है. जब आप चुप रहेंगे तो पार्टनर को भी अपनी गलती का अहसास जल्दी ही हो जायेगा वो अपने व्यवहार के लिए आपसे माफ़ी भले ही ना मांगे लेकिन आपसे इधर उधर की नार्मल बातचीत करके यह जरूर जता देंगे कि वह ओवररीएक्ट कर रहे थे.

शांत माहौल में बात करें

अगर कोई बात करनी भी है, तो माहौल शांत होने पर प्यार से करें। ऐसे बात करेंगे तो पार्टनर को ज्यादा अच्छे से समझ आएगा. जब पार्टनर का गुस्सा कम हो जाए तो उनका मूड देखकर बात करें।

एंगर मैनेजमेंट थेरेपी

पहले खुद ही पता करने की कोशिश करें कि गुस्सा करना पार्टनर का नेचर है, वह आजकल ऑफिस या फिर घर कि किसी बात को लेकर परेशां है या फिर किसी ट्रॉमा की वजह से उसका व्यवहार गुस्सैल हो गया है. ये पता करने के बाद जरुरत लगे तो उन्हें एंगर मैनेजमेंट थेरेपी दिलवाएं इससे जरूर मदद मिलेगी.

पार्टनर की पर्सनालिटी को समझें

आपके पार्टनर को कब, किन बातों पर क्यों गुस्सा आता है. इन बातों पर धयान दे और ऐसे सिचुएशन में पड़ने से बचे. इससे घर का माहौल शांत रहेगा क्यूंकि आप अपनी तरफ से कोई बढ़ावा नहीं दे रहें.

दिल पर मत ले यार

आपको अगर अपने पार्टनर का नेचर पता है, तो आप जानते होंगे कि वह आपको उल्टा सीधा गुस्से में बोल रहे हैं. हालाँकि आपके बारें में वह ऐसे सोच नहीं रखते इसलिए उनकी कहीं हर बात को दिल से ना लगाएं.

अपनी गलती भी मानें

लड़ाई को हार जीत का खेल न बनाएं। हर बात पर खुद को सही साबित की कोशिश न करें।
अगर गलती आपकी हो तो उसे ना मानकर पार्टनर को ओर ज्यादा गुस्सा ना दिलाएं। उन्हें एहसास दिलाएं कि आपसे गलती हुई और आपको इस बात का अफसोस है. देखिये कैसे मिंटो में उनका गुस्सा शांत हो जाता है.

पार्टनर के विचारों को समझे और उसके हिसाब से डील करें

पार्टनर को और उनकी बातों को अपने मुताबिक ना समझें। क्योंकि लाइफ में सभी का सोचने का नजरिया अलग-अलग होता है। किसी बात को लेकर आपकी और उनकी राय अलग अलग हो सकती है. एक दूसरे पर अपनी राय ना थोपे बल्कि जिसको जैसा पसंद है उसे वैसा करने की आज़ादी दें ताकि आप दोनों एक दूसरे का सम्मान कर सकें और झगडे की वजह ही ख़तम हो जाएँ।

जादू की झप्पी लें

गुस्से में हग करना सबसे अच्छा तरीका है. किसी को हग करने से हैप्पी हार्मोन रिलीज होते हैं. इसके अलावा नसों को शांत करने में मदद करता है. जब भी पार्टनर गुस्सा करे, तो उसे कस के हग कर लें. उस पर चिल्लाने, उसे समझने और गुस्सा करने के बजाए जादू की झप्पी सबसे ज्यादा गुस्सा कंट्रोल करती है.

पार्टनर गुस्से वाला है, तो हद तक बर्दाश्त करें

अपनी इंसल्ट बर्दाश्त ना करें

अगर पार्टनर की आदत हो गए है बार बार सबके सामने आपको नीचा देखने की तो हर बार आप यह सब ना सहें और पार्टनर से अपने रिलेशन के बारें में एकटुक बात करें और किसी नतीजे पर पहुंचे.

अपनी सेल्फ रेस्पेक्ट न छोड़े

अगर हर बार लड़ाई ख़तम करने की वजह से गलती न होते हुए भी झुकना और अपने अस्तित्व को खोते जाने की अगर आपने आदत बना ली है, तो उसे छोड़ दे. अपने सेल्फ रेस्पेक्ट से बढ़कर कुछ नहीं है. आप पार्टनर के साथ डील करने की पूरी कोशिश करें। लेकिन अगर पानी सर से ऊपर चला जाएँ, तो उन्हें समझाना या उनके साथ डील करना बेकार है. ऐसे टॉक्सिक रिलेशन से बाहर आने के बारें में सोचने का भी आपको पूरा हक़ है.

 

टीनएजर्स खुद लें लाइफ का Decision,पेरैंट्स की सिर्फ मोहर लगवाएं

टीनएजर्स को अब अपने पेरैंट्स की उंगली पकड़ कर चलना छोड़ना होगा, अपने हर छोटेबड़े निर्णयों के लिए पेरैंट्स का मुंह ताकना छोड़ना होगा. अपने सपनों, ख्वाइशों की उड़ान खुद के बल पर भरनी होगी तभी वे जीवन की रेस में आगे बढ़ पाएंगे.

Health

“यार मुझे समझ नहीं आ रहा मैं अपने पेरैंट्स को कैसे समझाऊं? मैं कुकिंग की लाइन को अपना कैरियर बनाना चाहता हूं और अपने देश के फूड कल्चर को विदेश तक ले जाना चाहता हूं. तुझे तो पता है बचपन से ही मुझे किचन में नई नई रैसिपी ट्राइ करने का शौक था और मम्मी की एब्सेंस में भी मैं किचन में कुछ न कुछ नया बनाता रहता था.

“लेकिन मेरे मम्मीपापा को जब मैं ने अपने इस सपने के बारे में बताया तो उन्होंने मेरे इस निर्णय को गलत ठहराते हुए कहा ‘नहीं ऐसा बिल्कुल नहीं हो सकता, क्या तुम सोसाइटी में हमारा मजाक बनवा कर हमारी नायक कटवाओगे. तुम शुरू से क्लास में टौपर रहे हो. ये कुकिंगवुकिंग कर के कुछ नहीं होने वाला. तुम्हें तो हायर स्टडीस कर के किसी बड़ी कंपनी में सीनियर पोस्ट हासिल करनी है.”

एक टीनएजर होने के नाते मैं शिशिर की भावनाओं जो समझ रहा था और मन ही मन हैरान हो रहा था हर पेरैंट्स की तरह शिशिर के पेरैंट्स को भी आखिर शिशिर का पैशन क्यों नहीं दिखाई नहीं दे रहा और क्यों शिशिर भी बिना अपने पेरैंट्स की सहमति के अपने लिए सही निर्णय नहीं ले पा रहा क्यों अपने पेरैंट्स के खिलाफ जा कर अपने लिए सही निर्णय लेने का कान्फिडैंस उस में नहीं है ?

लेकिन मैं ने मन ही मन उसे सही राय देने का सोच लिया था कि वह अपने मन की करे क्योंकि जब वह अपने पैशन को फौलो कर के सफल होगा तो सब से ज्यादा प्राउड फील उस के ही पेरैंट्स को होगा. क्योंकि शिशिर से बेहतर उस के कैरियर के लिए निर्णय कोई और नहीं ले सकता.

टीनएजर्स पेरैंट्स की उंगली थामना छोड़ें

आज के हर टीनएजर को यह समझना होगा कि अब वह दूध पीता बच्चा नहीं रहा. अब वह बड़ा हो गया है. एक टीनएजर है जो 5 या 6 फीट लंबा है. उसे अब अपनी जिंदगी के हर छोटेछोटे निर्णयों के लिए पेरैंट्स पर डिपेंडेंट होने या उन का मुंह ताकने की जरूरत नहीं है. अब उन्हें पेरैंट्स की उंगली पकड़ कर चलना छोड़ कर जीवन की रेस में आगे बढ़ने के लिए लंबी दौड़ लगानी होगी वरना वह औरों से पीछे रह जाएगा. बदलते समय के साथ उसे कान्फिडैंट बन कर अपना अच्छा बुरा खुद सोचना होगा. अपनी लाइफ में सक्सैसफुल होने के लिए रिस्क लेने होंगे और अपने निर्णयों पर पेरैंट्स की सिर्फ मोहर लगवानी होगी.

कुएं के मेंढक न बनें

“मौम, मैं बाहर खेलने जाऊं, क्या मैं स्कूल ट्रिप पर जा सकता हूं? डैड, क्या मैं अपने फ्रैंड की बर्थ डे पार्टी पर जा सकता हूं? क्या मैं अपनी फ्रेंड के साथ ओन्ली गर्ल्स ट्रिप पर जा सकती हूं.”
डे टू डे लाइफ की ऐसी छोटीछोटी बातों पर पेरैंट्स का मुंह ताकना छोड़ कर टीनएजर्स अपने निर्णय खुद लें और जिंदगी को भरपूर जीएं वरना वे कुएं के मेंढक बन कर जाएंगे.

बदलनी होगी सोच

विदेशों में बच्चे छोटी उम्र में ही आत्मनिर्भर बन जाते हैं. पांच-छह साल की उम्र से वे मांबाप से अलगअलग बेडरूम में सोते हैं और 15-16 की उम्र तक पहुंचतेपहुंचते तो वे अलग घर में रहने लगते हैं और इसी उम्र से वे अपने निर्णय खुद लेने लगते हैं. परंतु भारतीय परिवारों में ऐसा नहीं होता. हमारे परिवारों में बच्चे चाहें जितना मर्जी बड़े हो जाएं उन्हें बच्चा ही समझा जाता है और उन से उम्मीद की जाती है कि वे हर बात पेरैंट्स से पूछ कर करें या उन की रजामंदी लें जो कि सही नहीं है. टीनएजर्स जितना अपने जीवन के निर्णय खुद लेंगे उतना ही उन में कान्फिडेंस आएगा और जीवन में उन के सफल होने की संभावना उतनी ही अधिक होगी.

मेरे परिवार वाले मेरी गर्लफ्रेंड से शादी नहीं करवा रहे हैं, मैं क्या करूं?

सवाल

एक तरफ मेरा प्यार हैदूसरी तरफ उज्जवल भविष्य. मैं 24 वर्षीय सरकारी नौकरी में कार्यरत नौजवान हूं. एक लड़के में जो खूबियां होनी चाहिए वे सब मुझ में है. मैं 18 साल की एक लड़की, जो अभी 12वींस्टूडैंट हैसे प्यार करता है. वह मुझ पर जीजान से फिदा है. हमारे बीच 3-4 बार सैक्स भी हो चुका है. मैं उस से शादी करना चाहता हूं पर पारिवारिक परिस्थितियों के कारण ऐसा नहीं कर सकता क्योंकि मैं एक संपन्न जाट परिवार से हूं जबकि वह एक मध्वर्गीय पंजाबी परिवार से है.

मेरी शादी के लिए संपन्न जाट परिवारों से रिश्ते आ रहे हैं. अपनी मरजी से शादी करूंगा तो हो सकता है मेरे परिवार वाले मुझे जायदाद से बेदखल भी कर दें. फैसला नहीं ले पा रहा हूं कि घरवालों की मरजी के साथ चलूं या अपने प्यार से शादी कर के आर्थिक परेशानियों का सामना करूं. आप की सलाह मुझे फैसला लेने में मदद करेगी.

जवाब

प्यार किया है तो उसे निभाने की हिम्मत भी रखिए. वह लड़की आप से प्यार करती है. आप पर भरोसा रख कर ही उस ने अपना सबकुछ आप को सौंपा है. अब परिवारवालों के दबाव में आ कर उसे छोड़ किसी दूसरी लड़की के साथ विवाह करना उस लड़की के साथ बेइंसाफी होगी. परिवारवालों का इतना डर तब नहीं हुआ जब उस लड़की के साथ फिजिकल रिलेशन बना रहे थे.

आप सरकारी नौकरी कर रहे हैं. आर्थिक रूप से मजबूत हैं. लड़की समझदार है तो शादी के बाद घर चलाने में वह भी अपना सहयोग देगी. वैसे तो भविष्य की गारंटी तो कोई नहीं दे सकता लेकिन हो सकता है विवाह के बाद आप के परिवार वालों का दिल बदल जाए और वे आप के विवाद को स्वीकार कर लें. इसलिए हमारी राय तो यही है कि अपनी पसंद की लड़की से ही विवाह कीजिए, सुखी रहेंगे.

गिनीपिग: सभ्रांत चेहरे के पीछे की क्या शख्सीयत थी?

40 वर्ष में ही राजी के बाल काफी सफेद हो गए थे. वह पार्लर जाती, बाल डाई करवा कर आ जाती. पार्लर वाली के लिए वह एक मोटी आसामी थी. राजी हर समय सुंदर दिखना चाहती थी. वह क्या उस का पति अनिरुद्ध और दोनों बेटियां भी तो यही चाहती थीं.

कौरपोरेट वर्ल्ड की जानीपहचानी हस्ती अनिरुद्ध कपूर का जब राजी से विवाह हुआ तब राजी रज्जो हुआ करती थी. मालूम नहीं अनिरुद्ध की मां को रज्जो में ऐसा क्या दिखा था. जयपुर में एक विवाह समारोह में उसे देख कर उन्होंने राजी को अनिरुद्ध के लिए अपने मन में बसा लिया. रज्जो विवाह कराने वाले पंडित शिवप्रसाद की बेटी थी. 12वीं पास रज्जो यों तो बहुत सलीके वाली थी, परंतु एमबीए अनिरुद्ध के लिए कहीं से भी फिट नहीं थी.

विवाह संपन्न होने के बाद अनिरुद्ध की मां ने पंडितजी के सामने अपने बेटे की शादी का प्रस्ताव रख दिया.  पंडितजी के लिए यह प्रस्ताव उन के भोजन के थाल में परोसा हुआ ऐसा लड्डू था जो न निगलते बन रहा था न ही उगलते. वे असमंजस में थे. कहां वे ब्राह्मण और कहां लड़का पंजाबी. कहां लड़के का इतना बड़ा धनाढ्य और आधुनिक परिवार, कहां वे इतने गरीब. दोनों परिवारों में कोई मेल नहीं, जमीनआसमान का अंतर. वे समझ नहीं पा रहे थे कि इस रिश्ते को स्वीकारें या नकारें.

पंडित शिवप्रसाद ने दबी जबान में पूछा, ‘बहनजी, लड़का…’

पंडितजी अभी अपनी बात पूरी नहीं कर पाए थे कि श्रीमती कपूर ने उन्हें बताया कि लड़का किसी सेमिनार में विदेश गया हुआ है.  श्रीमती कपूर के साथ उन के पति श्रीदेश कपूर और अनिरुद्ध के दोनों छोेटे भाई भी इस विवाह समारोह में जयपुर आए थे.  पंडितजी असमंजस में थे.  ‘मैं समझ सकती हूं पंडितजी कि आप हमारे पंजाबी परिवार में अपनी बेटी को भेजने में झिझक रहे हैं. पर अब इन सब बातों में कुछ नहीं रखा है. मुझे ही देख लीजिए, मैं कायस्थ परिवार से हूं और कपूर साहब पंजाबी…तो क्या आप की बेटी हमारे पंजाबी परिवार की बहू नहीं बन सकती?’

पंडितजी मध्यमवर्गीय अवश्य थे परंतु खुले विचारों के थे. उन्होंने श्रीमती कपूर से कहा, ‘बहनजी, मुझे 1-2 दिन का समय दे दें. मैं घर में सलाह कर लूं.’  ‘ठीक है पंडितजी, हम आप का जवाब सुन कर ही दिल्ली वापस जाएंगे,’ श्रीमती कपूर ने कहा.

अगले ही दिन सुषमाजी को उस शादी वाले घर के यजमान के साथ अपने घर आया देख पंडितजी पसोपेश में पड़ गए.

‘पंडितजी, आप सोच लीजिए, इतना अच्छा घरवर जरा मुश्किल ही है मिलना.’

‘जी, मुझे कुछ समझ में नहीं आ रहा है…’ फिर कुछ झिझक कर बोले, ‘वर को भी हम ने नहीं देखा है…इधर हमारी पुत्री भी अभी पढ़ाई करना चाहती है…’ पंडितजी असमंजस में घिरे रहे.

‘जहां तक पढ़ाई का सवाल है, हमारा लड़का तो खुद ही एमबीए है. चाहेगी तो, जरूर आगे पढ़ लेगी…जहां तक लड़के को देखने का सवाल है तो वह 15 दिन में आ जाएगा, देख लीजिएगा. हमें आप की बेटी की खूबसूरती और सादगी भा गई है पंडितजी. हमें और किसी चीज की इच्छा नहीं है सिवा सुंदर लड़की के,’ सुषमाजी ने अपनी अमीरी का एहसास करवाया.  बात इस पर आ कर ठहर गई कि अनिरुद्ध के विदेश से लौट कर आते ही वे उसे ले कर जयपुर आ जाएंगी.

कपूर परिवार दिल्ली लौट गया तो शास्त्रीजी ने चैन की सांस ली और फिर अपनी दिनचर्या में व्यस्त हो गए. रज्जो को इस वर्ष बीए में प्रवेश भी दिलवाना था, उसे अच्छे कपड़ों की जरूरत होगी. पत्नी से वे इन्हीं बातों पर चर्चा करते रहते.  किसी न किसी प्रकार पंडित शिवप्रसाद ने इस मध्यमवर्गीय लोगों के महल्ले में घर तो बना लिया था परंतु वे इसे थोड़ा सजानासंवारना चाहते थे. बेटी के ब्याह के लिए अच्छे रिश्ते की चाहत हर मातापिता को होती ही है. वे भी अपना ‘स्टेटस’ बनाना चाहते थे.  सुषमा कपूर को जयपुर से दिल्ली गए हुए अब लगभग 1 महीना हो गया था. पंडितजी के लिए भी वे एक सपना सी हो गई थीं. पर अचानक एक दिन वह सपना हकीकत में बदल गया जब एक बड़ी सी सफेद गाड़ी से लकदक करती सुषमाजी उतरीं. उन के साथ एक सुदर्शन युवक भी था. बेचारे पंडितजी का मुंह खुला का खुला रह गया. दोनों हाथ जोड़ कर नमस्कार करते हुए उन्होंने सुषमाजी और उस युवक को बैठक में बैठाया.

‘और…पंडितजी कैसे हैं? ये हैं हमारे बड़े बेटे अनिरुद्ध.’  अनिरुद्ध ने बड़ी शालीनता से हाथ जोड़ कर उन्हें नमस्ते किया.  पंडितजी अनिरुद्ध की शालीनता से गद्गद हो गए.

सुषमाजी ने पर्स से निकाल कर अनिरुद्ध की जन्मपत्री पंडितजी को पकड़ाई, ‘आप तो सोच रहे होंगे कि अब हम आएंगे ही नहीं, पर अनिरुद्ध ही विदेश से देर से आया. मैं ने सोचा कि इसे साथ ले कर आना ही ठीक रहेगा…’  पंडितजी के मस्तिष्क पर फिर से दबाव सा पड़ने लगा.

‘अनिरुद्ध बाबू, मेरी बेटी सिर्फ 12वीं पास है, परंतु उसे पढ़ने का बहुत शौक है. इसी वर्ष उसे बीए में प्रवेश लेना है.’

‘हमारे यहां पढ़ाई के लिए कोई रोकटोक नहीं है. आप की बेटी जितना पढ़ना चाहे पढ़ सकती है,’ अनिरुद्ध ने कहा.

‘यानी बेटा भी तैयार है,’ पंडितजी का मन फिर से डांवांडोल होने लगा, ‘जरूर कहीं कुछ गड़बड़ होगी,’ उन्होंने सोचा. इस सोचविचार के बीच लड़की, लड़के की देखादेखी भी हो गई, जन्मपत्री भी मिल गई और पसोपेश में ही शादी भी तय हो गई. पंडितजी अब भी अजीब सी ऊहापोह में ही पडे़ हुए थे.

‘अब, जब सबकुछ तय हो गया है तब क्यों आप डांवांडोल हो रहे हैं?’ पंडिताइन बारबार पंडितजी को समझातीं.

‘पंडितजी, ग्रह इतने अच्छे मिल रहे हैं फिर क्यों बिना बात ही परेशान रहते हैं?’ उन के मित्र उन्हें समझाते.

‘मेरी समझ में तो कुछ आ नहीं रहा है. कैसे सब कुछ होता जा रहा है,’ पंडितजी अनमने से कहते.

महीने भर में ही विवाह भी संपन्न हो गया और उन की लाडली रज्जो अपनी ससुराल पहुंच गई. पंडितजी ने तो तब बेटी का घर देखा जब वे उसे लेने दिल्ली गए. क्या घर था. उन की आंखें चुंधिया गईं. दरबान से ले कर ड्राइवर, महाराज, अन्य कामों के लिए कई नौकरचाकर.  कुछ देर बेटी के घर में रुकने के बाद वे उसे ले कर जयपुर रवाना हो गए. लेकिन उन की चिंता का अभी अंत नहीं हुआ था. रास्तेभर वे सोचते रहे, ‘नहीं… कुछ तो कमी होगी वरना…’  ड्राइवर के सामने कुछ पूछ नहीं सकते थे अत: बेटी से रास्तेभर इधरउधर की बातें ही करते रहे.  घर पहुंचते ही रज्जो की मां उसे घेर कर बैठ गईं, ‘तू खुश तो है न?’ मां ने उसे सीने से लगा लिया.

‘हां मां, मैं बहुत खुश हूं. सभी लोग बहुत अच्छे हैं.’  बेटी खुश है जान कर पंडिताइन की आंखें खुशी से छलछला आईं.

‘लेकिन हम लोग मुंबई चले जाएंगे,’ रज्जो ने अचानक यह भेद खोला तो पंडितजी चिंतित हो उठे.

‘क्यों? मुंबई क्यों?’ पंडितजी उठ कर चारपाई पर बैठ गए.

‘इन की नौकरी मुंबई में ही है न?’ रज्जो ने बताया.

एक और राज खुला था. पंडितजी तो अब तक यही सोच रहे थे कि अनिरुद्ध दिल्ली में ही नौकरी कर रहे हैं. इतनी दूर…मुंबई में…उन का दिल फिर घबराहट से भर उठा.

अगले दिन अनिरुद्ध रज्जो को लेने जयपुर पहुंच गए थे. उस दिन पंडितजी ने खुल कर दामाद से बात की और आंखों में आंसू भर कर प्रार्थना की, ‘बेटे, हम जानते हैं कि हमारी बेटी आप के घर के योग्य नहीं है, परंतु अब तो जो होना था हो चुका है. अब उस का ध्यान आप को ही रखना है,’ पंडितजी ने दामाद के सामने दोनों हाथ जोड़ दिए थे. उन की पत्नी भी हाथ जोड़े खड़ी थीं.

‘यह क्या कर रहे हैं आप मुंबु…’ अनिरुद्ध के मुंह से मुंबु सुन कर पंडितजी चौंक उठे.

‘मुझे राजी ने सब बता दिया है. मांजी और बाबूजी को मिला कर ही उस ने यह नया शब्द बनाया है ‘मुंबु’ यानी मां और बाबूजी. आप मेरे लिए भी मुंबु ही हुए न…’

पंडितजी व उन की पत्नी की आंखों से आंसुओं की धारा बहने लगी. क्या राजकुमार सा दामाद है, सुंदर और सुशील. ‘मैं जानता हूं मातापिता को अपनी बेटी की बहुत चिंता रहती है. पर आप चिंता न करें. मुझे अपनी मां को यह प्रूव कर के दिखाना है कि मैं कैसे पत्थर तराशने की कला में माहिर हूं?’

‘मतलब…?’

‘मैं ने ही मौम से कहा था कि वे मेरे लिए कोई साधारण घर की लड़की ढूंढ़ें. मैं उन्हें दिखाऊंगा कि उसे तराश कर कैसे हीरा बनाया जाता है,’ अनिरुद्ध ने फिर से मुसकरा कर पंडितजी को बताया.

‘मतलब? मेरी बेटी आप के लिए महज एक परीक्षण की चीज…मात्र ‘गिनीपिग’?’ पंडितजी को चक्कर से आने लगे, ‘अगर परीक्षण सफल न हुआ तो…?’

‘आप चिंता क्यों करते हैं मुंबु, मेरी ये दूसरी मां हैं. इन्होंने मुझे बहुत प्यार से पाला है पर हर बार ये मुझ से ऐक्सपैरिमैंट करवाती रही हैं और मैं हमेशा उन के टैस्ट में पास होता रहा हूं.’

‘ऐक्सपैरिमैंट…टैस्ट…पास…? क्या मैं ने अपनी रज्जो को प्रयोग की भट्ठी में झोंक दिया है?’ पंडितजी के मुंह से अनायास ही निकल गया.

‘नहीं, बिलकुल नहीं,’ अनिरुद्ध को कितना विश्वास था स्वयं पर और रज्जो पर भी.  खैर, वह समय तो बीत चुका था जब पंडितजी की स्थिति कोई निर्णय लेने की होती. अब तो परीक्षण का परिणाम देखने के लिए ही उन्हें समय की सूली पर लटकते रहना था.

अनिरुद्ध अपनी राजी और पंडितजी की रज्जो को ले कर मुंबई चले गए थे. अनिरुद्ध ने ससुरजी के यहां एक टेलीफोन भी लगवा दिया था, जिस से वे अपनी प्यारी बिटिया की स्थिति जानते रहें. साल भर तक केवल फोन पर ही मुंबु से रज्जो की बात होती रही. साल भर बाद अनिरुद्ध स्वयं अपनी पत्नी को ले कर जब जयपुर आए तो रज्जो को देख कर मुंबु की आंखें फटी की फटी रह गईं. वह अब उन की रज्जो नहीं रह गई थी. अनिरुद्ध की पत्नी राजी और फिर राज हो गई थी.

बेटी को देख कर पंडितजी फूले नहीं समा रहे थे. उन्होंने आसपास के सभी लोगों को बेटी, दामाद से मिलने के लिए बुलवा दिया था. आखिर, अनिरुद्ध को कहना ही पड़ा, ‘मुंबु, मैं और राज आप से एक दिन के लिए मिलने आए हैं. कल हमें दिल्ली भी जाना है. मौम मेरे ‘ऐक्सपैरिमैंट’ को ठोकबजा कर देखना चाहती हैं. आप बातें कीजिए. इतने लोेगों को बुला कर तो…’ वे और कुछ कहतेकहते चुप रह गया थे. शायद रज्जो ने पति को इशारा किया था. पंडितजी की हसरत ही रह गई कि वे महल्ले के लोगों को जोड़ कर कुछ कथाकीर्तन करते.

अगले दिन सुबह अनिरुद्ध अपनी खूबसूरत, मौडर्न, फर्राटेदार अंगरेजी बोलने वाली पत्नी को ले कर दिल्ली रवाना हो गया था. लंबी सांस भरते ‘मुंबु’ ने सोचा था कि चलो बेटी खुश तो है. समय अपनी गति से चलता रहा. इस बीच रज्जो के 2 बेटियां हो चुकी थीं.

लगभग हर वर्ष अनिरुद्ध पत्नी को दोनों बेटियों सहित 2-4 दिन के लिए नाना के यहां भेज देते. अनिरुद्ध की बेटियां कहां नानानानी का लाड़प्यार पा सकी थीं. वे तो बस आतीं और जब तक ना…ना उन के मुंह से निकलता तब तक तो उन के जाने का दिन आ जाता. कुछ वर्ष इसी तरह बीत गए. रज्जो से दूर रहने का गम और अकेलापन पंडित पंडिताइन को खाए जा रहा था. 10 वर्ष के अंदर ही वे चल बसे और वह घर सदा के लिए बंद हो गया. रज्जो ने उस पर अपने हाथों से ही मोटा ताला लटकाया था. उस दिन वह कितना फूटफूट कर रोई थी. धीरेधीरे रज्जो की बेटियां भी बड़ी हो चली थीं. फिर उन की शादियां भी हो गईं. एक बेटी सिंगापुर और दूसरी दुबई में सैटल हो गई थी. एक एमबीए और दूसरी मैडिकल औफिसर. दामाद भी इतने भले कि सासससुर का ध्यान अपने मातापिता से भी अधिक रखते.

20 वर्ष मुंबई में रह कर अनिरुद्ध और रज्जो भी सिंगापुर चले गए थे. दिल्ली में अब मातापिता भी नहीं रहे थे. भाई अपनीअपनी गृहस्थी में व्यस्त थे. सब कुछ बहुत अच्छा मिला रज्जो को लेकिन न जाने क्यों वह उम्र के इस पड़ाव पर आ कर कुछ बेचैन सी रहने लगी थी. कभी महसूस करती कि उस का पूरा जीवन ऐसे ही तो बीता है, जैसा अनिरुद्ध ने चाहा था या ‘ऐक्सपैरिमैंट’ किया था. उस ने अपने हिसाब से, अपनी सोच से कुछ किया क्या…? अनिरुद्ध के हिसाब से हाथों में हाथ डाल कर पार्टियां, डांस, पिकनिक और न जाने क्याक्या, सिर्फ शोे बिजनैस. उस का अपना क्या रहा…? कहां रही वह सीधीसादी, साधारण से महल्ले की रज्जो?

सिंगापुर में वह अनमनी सी रहने लगी थी. दिन भर मुंह सी कर बैठी रहती. आकाश को निहारा करती. कारण समझ में नहीं आ रहा था. बेटियों से सलाह कर के अनिरुद्ध भारत वापस आ गए. मुंबई में एक फ्लैट पहले से ही खरीद रखा था. यहां भी वे अपनी जौब में व्यस्त रहते थे अनिरुद्ध, परंतु रज्जो अपनी यादों की पुरानी गलियों में भटकती रहती. एकदम तन्हा, नितांत अकेली. हर 15 दिन में ब्यूटीपार्लर जा कर खुद को सजानेसंवारने वाली रज्जो एक बार कई दिनों के लिए बीमार पड़ गई. शायद वह अकेलापन महसूस कर रही थी. इस से भी अधिक उस के मस्तिष्क में ‘मुंबु’ की असमय मृत्यु मंडराती रहती. उस के पास इतना कुछ है तब भी वह इतनी उदास रहती. उसे ‘मुंबु’ और उन का घर याद आता रहता.

एक दिन नौकरानी ने ब्यूटीशियन को घर पर ही रज्जो का फेशियल   करने के लिए बुला लिया. शायद साहब के आदेश पर, परंतु रज्जो ने उसे वापस भेज दिया. कई दिनों से उस की मनोदशा अजीब सी थी. अनिरुद्ध ने छोटी बेटी रोज को सिंगापुर से रज्जो की देखभाल के लिए बुला लिया था. उस के 2 छोटे बच्चे थे जिन्हें उस के पति आया की मदद से संभाल लेते थे. अत: वह मातापिता के पास बीचबीच में आ जाती थी. रज्जो सोचती कि वह बेटी को अपनी सेवा के लिए बुला लेती है पर वह स्वयं किस दिन अपने मातापिता की जरूरत में काम आ सकी थी? अंदर ही अंदर रज्जो को घुन लगने लगा था. शीशे के सामने खड़ी हो कर अपने सफेद बालों को देख कर अचानक ही वह सोचने लगी कि किसी राजा ने केवल एक बाल सफेद देख कर राजपाट त्यागने का फैसला ले लिया था. उस का तो न जाने कब से सारा सिर ही सफेद है. हर बार डाई करवा कर स्वयं को जवान सिद्ध करने की होड़ में ही लगी रही है. बाकी कभी कुछ नहीं किया. बस, केवल ‘ऐक्सपैरिमैंट’ यानी ‘गिनीपिग’ भर बनी रही ताउम्र.

अकसर आंसू ढुलक कर उस के गालों पर बहने लगते. छोटी बेटी रोज इस बार मां को देख कर सहम गई थी. जब रोते हुए देखा तो बोली, ‘‘क्या हुआ, मौम…? आर यू आल राइट..?’’ सुबकियों के बीच रज्जो ने सिर हिलाया कि वह ठीक है.

‘‘फिर आप रो क्यों रही हैं?’’

रात में भी मां को करवटें बदलते देख कर रोज कुछ परेशान सी हो उठी थी. अचानक वह उठ बैठी और मां को बांहों में भर लिया, ‘‘आई वांट टू विजिट माय होमटाउन…आय वांट टू मीट पीपल हू वर अराउंड मी…’’ सुबकते हुए रज्जो ने अपनी खूबसूरत बेटी रोज के कंधे पर अपना सिर रख दिया और जोर से बिलख उठी.

‘‘तुम जानती हो राज, कितने साल हो गए हैं तुम्हें वहां गए? तुम से किसी का कौंटैक्ट भी नहीं है शायद…फिर…?’’ अनिरुद्ध उस की बात सुन कर बौखला उठे थे.

‘‘मैं ‘मुंबु’ का  घर खोल कर देखना चाहता हूं.’’

‘‘करोगी क्या वहां जा कर…कौन पहचानेगा तुम्हें?’’

‘‘अनि, प्लीज, मैं मुंबु का घर खोलना चाहती हूं, सहन में बनी हुई तुलसी की क्यारी को छूना चाहती हूं… मुझे पता है कृष्णा बहनजी, इंदु मौसी, सरोज मौसी मुझे देख कर खुश होंगी. बस…जस्ट वंस…मेरा बचपन मुझे पुकार रहा है…मेरा घर मुझे पुकार रहा है.’’

‘‘वहां कौन रहा होगा…  तुम जानती हो क्या?’’ उन की राज में रज्जो प्रवेश कर रही थी. कितनी मुश्किल से उस मिट्टी की गंध शरीर से मलमल कर छुड़ाई थी उस ने. अब फिर से 60 वर्ष की उम्र में उन की पत्नी उस गंध को लपेटने के लिए व्याकुल हो उठी थी.

‘‘कौन जाएगा तुम्हारे साथ. यह बेचारी अपना घर, बच्चे, जौब सबकुछ छोड़ कर तुम्हारे लिए आई है.’’

रोज के मन में मां के प्रति कुछ पिघलने लगा, ‘‘ओके डैड…आय विल टेक हर विद मी जस्ट फौर टू डेज औनली…’’ उसे वापस भी तो जाना था.  रज्जो रोज के साथ मुंबु के शहर जयपुर आ गई. स्टेशन से घर तक का सफर रिकशे में बमुश्किल से कटा. वह जल्दी अपने मुंबु के घर पहुंचना चाहती थी. रास्ते भर वह उन सड़कों और गलियारों को बच्चों की तरह खुश हो कर निहारती जा रही थी.

रज्जो तो मानो अपने बचपन की सैर करने लगी थी. बीमारी से कमजोर हुई रज्जो में मानो किसी ने फूंक कर ताजी हवा का झोंका भर दिया था.  मां के पर्स से चाबी निकाल कर रोज ने जैसे ही दरवाजे के ताले से जूझना शुरू किया, ऊपर से कच्ची मिट्टी भरभरा कर उस के खूबसूरत चेहरे पर फैल गई. हाथों से चेहरे को झाड़ते हुए उस ने खीझ कर मां की ओर देखा. ‘‘मौम, कांट वी हैव समवन टू क्लीन द डोर. ओ…माय गुडनैस.’’

धीरेधीरे आसपास के दरवाजे खुलने लगे. औरतें फुसफुसाती हुई उन की ओर बढ़ीं. रोज ने पैंट में से रुमाल निकाल कर मुंह पर फैली मिट्टी को साफ करने की बेकार सी कोशिश की.

‘‘कौन हो?’’ लाठी पकड़े एक बुजुर्ग महिला चश्मे में से झांकने का प्रयास कर रही थी.

रज्जो की आंखों में चमक भर आई.

‘‘लाखी चाची,’’ उस ने आंसुओं से चेहरा तर कर लिया और झुकी कमर वाली महिला के गले लग कर सुबकने लगी, ‘‘रज्जो हूं चाची, आप की रज्जो… पहचाना नहीं?’’

अंदर से चाची की किसी बहू ने एक खाट ला कर सड़क के किनारे डाल दी थी. घूंघट के भीतर से बहुएं पैंट पहनी हुई सुंदरी को निहार रही थीं.

‘‘जरूर कोई मेम है…’’ एक ने फुसफुस कर के दूसरी के कान में कहा.

रोज उन के पास चली आई, ‘‘नमस्ते, मैं इन की बेटी… कोई सर्वेंट मिल जाएगा यहां? ताला भी नहीं खुल रहा है. उसे भी खोलना होगा.’’

घूंघट वाली बहुओं में से एक ने घर में बरतन मांजती हुई महरी को आवाज दे कर बाहर बुला लिया.

‘‘आप इसे चाबी दे दीजिए, यह खोल देगी.’’

महरी ने उस के हाथ से चाबी ले ली और ताले में चाबी घुमाने लगी तो कुंडा टूट कर उस के हाथ में आ गया.

‘‘महरी को वहीं छोड़ रोज उस ओर बढ़ गई जहां रज्जो खाट पर बैठी बुजुर्ग महिला से बातें कर रही थी.

रोज के लिए यह माहौल कुतूहल भरा था.

‘‘तेरी 2 बेटी हैं न रज्जी?’’ बूढ़ी औरत उसे अच्छी प्रकार देखना चाहती थी. वह अपने चेहरे को ऊपरनीचे करने लगी थी.

‘‘बहुत कम दिखाई देता है बेटी. देखो, अब तो हमारी उमर का कोई एकाध ही बचा होगा. सभी साथ छोड़ गए. अच्छा किया तू आ गई…तेरे से मिलना हो गया.’’

रोज के सामने चाय का  प्याला आ गया था और दोनों बहुएं उस की कुरसी के इर्दगिर्द खड़ी हो गई थीं.

‘‘ले बेटी, समोसा फोड़ ले.’’

रोज को हंसी आने को हुई पर उस ने कंट्रोल कर लिया. समोसा कुतरते हुए उस ने ‘मुंबु’ के मकान के बाहरी हिस्से में उगे पीपल के छोटेछोटे पौधों पर नजर गढ़ा दी.

‘‘हर साल काट देते हैं हम जी… पर ये हर साल उग आते हैं,’’ घूंघट वाली एक बहू ने उस की दृष्टि भांप ली थी.

‘मुंबु’ के घर में अब भी जीवन है वह सोचने लगी. लेकिन रात में इस घर में तो रहा नहीं जा सकता. जयपुर तो इतना बड़ा शहर है, अच्छेअच्छे होटल हैं. वह मौम को वहां रहने के लिए मना लेगी.

‘‘बेटा, मैं जिन से मिलने आई थी, उन में से तो कोई भी नहीं रहा.’’

रोज ने मां का कंधा दबा कर उन्हें सांत्वना देने का प्रयास किया.

‘‘इट्स औल राइट मौम. जिंदगी ऐसे ही चलती है,’’ फिर थोड़ा रुक कर रोज आगे कहती है, ‘‘मौम, अंदर चलेंगी? आप का तुलसी का चौरा…’’

‘‘हां, और कोई तो मिला नहीं…’’ राजी दुखी थी.

‘‘चलिए, अंदर देखते हैं,’’ रोज उस का ध्यान बटाना चाहती थी.

‘‘हां,’’ कह कर रज्जो ने हाथ में पकड़ा हुआ चाय का प्याला मेज पर रखा और उठ खड़ी हुई. उस के साथ लाखी चाची भी अपना डंडा उठा कर उस के घर की ओर बढ़ चलीं. उन के पीछेपीछे दोनों घूंघट वाली बहुएं भी.

रोज आगे बढ़ कर सहन पार कर गई थी. पीछेपीछे राजी आ रही थी. तुलसी का अधटूटा चौरा सहन में मृत्युशैया पर पड़े बूढ़े की तरह मानो किसी की प्रतीक्षा कर रहा था. रज्जो ने सिंहद्वार में प्रवेश किया ही था कि ऊपर से अधटूटी लटकी हुई बल्ली उस के सिर पर गिरी और वह वहीं पसर गई. लाखी चाची को बहुओं ने पीछे खींच लिया था. जोरदार आवाज सुन कर रोज ने पीछे मुड़ कर देखा. ‘‘मौम…’’ वह चिल्लाई.

पर…मौम की आवाज शांत हो गई थी…हमेशाहमेशा के लिए. उस की आंखें उलट चुकी थीं और प्रतीक्षारत तुलसी के टूटे हुए चौरे पर अटक गई थीं. ‘राज कपूर’ की फिर से रज्जो बनने की हसरत पूरी हो गई थी. समय ने उसे कहांकहां घुमाफिरा कर, उस के साथ न जाने कितने प्रयोग कर के रज्जो को फिर से उसी धूल में मिला दिया था जिस से निकल कर वह ताउम्र समय के साथ आंखमिचौनी करती रही थी. अब वह गिनीपिग नहीं रही थी. अब उस पर कोई ऐक्सपैरिमैंट नहीं कर सकता था.

बदला : बेवफा पति को पत्नी ने कैसे सिखाया सबक ?

‘इस बार आप इतने दुखी क्यों हो? आप को क्या हो गया है? इस से पहले आप को इतना परेशान कभी नहीं देखा था. आप की हंसी कहां चली गई? इस बार छुट्टियों में जब से आप आए हो, न तो स्वयं चैन से हो और न दूसरों को चैन से जीने दे रहे हो,’ पत्नी अमृता की पीड़ा मानों उस की जुबां पर आ रही थी. उस ने अपने पति को पहले इतना बेसुध कभी नहीं देखा था. वह कोई साधारण व्यक्ति नहीं थे. विश्वविद्यालय के शिक्षक थे.

 

भावी पीढ़ी को तैयार करना जिन का मुख्य उद्देश्य था, उस की यह स्थिति सचमुच चिंताजनक थी. उसे यह समझ में नहीं आ रहा था कि वह क्या करे? इतना प्यार करने वाला पति इतनी उपेक्षा करेगा, यह कभी सोचा नहीं था. यह सोचते हुए कब नींद आ गई पता ही नहीं चला.

 

सुबह उठी तो वह बाथरूम में थे. नाश्ता तैयार कर के लाई तो कौन कहे नाश्ता करने को, वह तो नाश्ते की तरफ देख भी नहीं रहे थे. कुछ पूछो तो एकटक देखने के सिवा कुछ बोलते नहीं थे. उन की स्थिति एक चुप हजार चुप जैसी थी.

 

मैं उस के व्यवहार में आए बदलाव से आश्चर्यचकित थी. मैं क्षणभर के लिए अतीत के सुनहरे ख्वाबों में खो गई. उन के अगाध प्यार को पा कर मेरी खुशी का ठिकाना न था. मायके की सुखसुविधा भी याद नहीं रही. 12वीं पास मुझे किस प्रकार बीए और एमए इतिहास में कराया. देखतेदेखते मैं ने नेट की परीक्षा दी और प्रथम प्रयास में पास कर ली. यह सब इन की तपस्या का परिणाम था कि मैं असिस्टैंट प्रोफैसर बनने की योग्यता प्राप्त कर ली. मेरी खुशी का ठिकाना न था.

 

मैं अपनेआप को सब से खुशनसीब पत्नी मानती थी मगर यह अचानक क्या से क्या हो गया? पता नहीं किस के ध्यान में हर समय खोए रहते हैं? मैं यह सोच ही रही थी कि भाभी, आप ने मुझे याद किया… आवाज से मैं वर्तमान में लौटी और बोल पड़ी,”आओ देवरजी, बैठो. कैसे हो आप? पढ़ाईलिखाई कैसी चल रही है आप की?”

 

“ठीक चल रही है, भाभीजी. पढ़ाई तो करनी ही है. अगर नहीं पढ़ाई करेंगे तो नौकरी कैसे मिलेगी,” देवर के ऐसा कहने पर वह बोली, “तुम्हें पढ़ाने वाले कौन हैं? वे कैसे पढ़ाते हैं? कोर्स के अतिरिक्त कुछ जीवनव्यवहार की भी शिक्षा मिलती है या नहीं?”

 

“जीवन मूल्यों की शिक्षा, इसे तो भूल ही जाओ, भाभी. कैंपस का वातावरण ठीक नहीं है, भाभीजी. जब बाड़ ही खेत खाने लगे तो खेत की रक्षा कैसे संभव है? जब रक्षक ही भक्षक बन जाए तो भला कौन बचा सकता है? मेरा मतलब शिक्षकों से है. उन के दायित्व बोध में स्पष्ट गिरावट दिख रही है.’’

 

“यदि ऐसी बात है तो तुम लोगों को सामने आना चाहिए. इस के लिए बड़ी लड़ाई की जरूरत है. अच्छा यह बताओ कि तुम्हें पढ़ाने वाले शिक्षक कौन है?”

 

“एक तो सर (भ्राताश्री) हैं और एक इन की बहुत खास डाक्टर दीपिका हैं और 2 अन्य हैं. जब हमारे शिक्षक चर्चा में हों और उन पर प्रश्नचिह्न लग रहे हों तो उन से जीवन मूल्यों की शिक्षा बेमानी समझी जाएगी.”

 

“खास डाक्टर दीपिका से तुम्हारा क्या मतलब है?” मेरे कड़क आवाज में कहने पर वह बोला, “प्लीज भाभी, मुझे क्षमा करें, मुझ से गलती हो गई. भविष्य में ध्यान रखूंगा. अब ऐसी गलती नहीं होगी.”

 

उस की बात सुन कर मैं ने उस से कहा,”तुम्हें डरने की जरूरत नहीं है. मुझे दीपिका के बारे में बताओ. मैं उस के बारे में सबकुछ जानना चाहती हूं.”

 

मेरी प्रार्थना को अस्वीकार करते हुए उस ने मुझे कुछ भी बताने से मना कर दिया. निस्सहाय मैं रो पड़ी. मेरे बहते आंसुओं को देख कर वह घबरा गया और बोला,”चुप हो जाओ, भाभी. भैया और डाक्टर दीपिका की प्रेम कहानी इतिहास विभाग में खूब चर्चित है. दोनों एकदूसरे के प्रेम में खोएखोए से रहते हैं. मगर भाभी, मेरा नाम कहीं नहीं आना चाहिए.”

 

मैं ने उसे आश्वस्त कर भेज दिया और इस उधेड़बुन में खो गई कि अब मुझे क्या करना चाहिए. अपने प्राणप्यारे पति को किसी के प्यार पर कुरबान तो कर नहीं सकती. क्या दीपिका यह जानती है कि वह जिस से प्यार कर रही है वह शख्श शादीशुदा है. अगर इस सचाई को जानते हुए वह आगे बढ़ी है तो मैं उसे कभी माफ नहीं करूंगी.

 

दूसरे दिन पति डाक्टर अमित से मैं ने दीपिका के बारे में पूछा तो वह अनजान बनने की कोशिश करने लगे. जब मैं ने उन से कहा कि मुझ से कुछ मत छिपाने की कोशिश मत करो, मुझे सब कुछ पता चल गया है तो वह बोले,”अमृता, मैं उसे बहुत चाहता हूं और उस के बिना जीवित नहीं रह सकता.”

 

“अच्छा यह बताओ कि उसे यह बताए हो कि तुम शादीशुदा हो. यदि बताए हो फिर भी वह आगे बढ़ी है तो दोनों की नौकरी को खतरा है.”

 

मुझे ‘पता नहीं कह कर’ उन्होंने बात टालने की कोशिश की. उन की बात से मुझे सचाई समझने में देरी नहीं हुई. आगे की रणनीति पर मैं विचार करने लगी.

 

पति अमित की बेवफाई से बेचैन मैं कुछ समझ नहीं पा रही थी कि मैं क्या करूं? अंत में निराश हो कर मैं अपने बड़े भाई को फोन पर सबकुछ बता दिया. छुट्टियों के बाद वह मुझे ले कर कुलपति के पास गए. उन्होंने हमारी बात को बड़े ध्यान से सुना. उन के चेहरे से अप्रसन्नता साफ झलक रही थी. उन्होंने डाक्टर दीपिका को याद किया. उन के आने पर उन से मेरा परिचय कराते हुए कहा,”इन से कभी मिली हो? कभीकभी अनजान में व्यक्ति से बहुत बड़ी गलती हो जाती है. यह महिला डाक्टर अमित की पत्नी हैं,” यह सुन कर डाक्टर दीपिका आश्चर्यचकित हो कर बोलीं,”डाक्टर अमित शादीशुदा, ऐसा नहीं हो सकता, सर. यदि ऐसा है तो मेरे साथ बहुत बड़ा धोखा हुआ है, सर. मुझे माफ कर देना सर.”

 

कुलपति बोले, “स्थायी समाधान के लिए मैं तुम्हें तुम्हारे गृहजिले के विश्वविद्यालय में भेजना चाहता हूं, वहां के कुलपति से बात हो गई है,” यह सुन कर दीपिका बहुत खुश हुई और अपने गृहजिले में चली गई. इस के बाद अमित बुलाए गए.

 

उस के आने पर कुलपति ने कहा,”अमित, दीपिका नौकरी छोड़ कर यहां से चली गई और अब उस के स्थान पर तुम्हारी पत्नी नौकरी जौइन करेगी. अब मेरे पास कोई शिकायत नहीं आनी चाहिए,” इतनी कठिन समस्या का इतना सरल और स्थायी  समाधान पा कर खुशी के कारण पत्नी अमृता की आंखें छलछला उठीं.

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