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फाल के बाद

भाग-1

स्कूल बस से उतरते ही नेहल की नजर आसपास खड़े पेड़ों पर गई. पतझड़ का मौसम आ चुका है. पत्तों के बिना पेड़ कितने उदास और अकेले लगते हैं. ठीक वैसे ही जैसे मम्मी के मरने के बाद नई जूलियन मौम, पापा और छोटी बहन स्नेहा के होने के बावजूद, घर बेहद सूना और उदास लगता है.

जूलियन मौम के आते ही 8 वर्ष की नेहल, अचानक बड़ी बना दी गई. हर बात में उसे जताया जाता कि वह बड़ी हो गई है. शी इज नो मोर ए बेबी. 4 साल की स्नेहा की तो वह मां ही बन गई है. पहली बार स्नेहा को शावर देती नेहल के आंसू शावर के पानी के साथ बह रहे थे. मम्मी जब दोनों बहनों को टब में बबल बाथ देती थीं तो कितना मजा आता था. पूरी तरह से भीगी नेहल को देख, जूलियन मौम ने डांट लगाई, ‘‘सिली गर्ल, इतनी बड़ी हो गई, छोटी बहन को ढंग से शावर भी नहीं दे सकती. तुम्हारी मम्मी ने तुम्हें कुछ नहीं सिखाया है. इन फैक्ट, स्नेहा को भी खुद बाथ लेना चाहिए.’’

मम्मी के नाम पर नेहल की आंखें फिर बरसने लगीं.

‘‘डोंट बिहेव लाइक ए चाइल्ड. गो टु योर रूम एंड क्राई देयर,’’ जूलियन मौम ने झिड़का था.

नियमानुसार 12 वर्ष से कम उम्र के बच्चों को घर में अकेले नहीं छोड़ा जा सकता. जूलियन मौम से उन की बार की नौकरी छोड़ने के लिए पापा ने रिक्वेस्ट की थी. पापा को अच्छा वेतन मिलता था. नौकरी छोड़ कर जूलियन ने पापा पर एहसान किया था. फें्रड््स के साथ दिन बिता कर घर जरूर आ जातीं, पर नेहल के स्कूल से लौटने का वक्त, उन के आराम का होता. उन के आराम में खलल न पड़े, इसलिए नेहल को घर की चाबी थमा दी गई. उसे सख्त हिदायत थी कि वह बिना शोर किए घर में आए और जूलियन मौम को परेशान न करे.

अकसर नेहल को रोता देख कर स्नेहा भी रो पड़ती थी. अचानक नेहल चैतन्य हो जाती… सोचती, प्यार करने वाली मम्मी अब नहीं हैं तो क्या वह तो स्नेहा को मां जैसा प्यार दे सकती है. आंसू पोंछ नेहल जबरन हंस देती.

घर का बंद दरवाजा खोलती नेहल को याद आता, मम्मी उसे लेने बस स्टैंड आती थीं. कई कोशिशों के बावजूद मम्मी कार ड्राइव नहीं कर पाईं. मजबूरी में नेहल को स्कूल बस से आना पड़ता. मम्मी अपनी इस कमी के लिए दुखी होतीं. काश, वह अपनी बेटियों को खुद कार से ला पातीं. ड्राइविंग के प्रति उन के मन का भय कभी नहीं छूट पाया.

स्कूल से लौटी नेहल को मम्मी हमेशा उस का मनपसंद स्नैक कितने प्यार से खिलाती थीं. स्नेहा तो उन की गोद में बैठ कर ही खाना खाती. पनीली आंखों से ब्रेड और जैम गले से उतारती नेहल को याद आया कि आज स्नेहा की छुट्टी जल्दी होती है. अधखाई ब्रेड किचन ट्रैश में डाल, नेहल बस स्टैंड तक दौड़ती गई. अगर वह वक्त पर नहीं पहुंची तो बस से उतरी स्नेहा कितनी डर जाएगी. मम्मी कहा करती थीं, ‘यह अजनबी देश है. यहां कभी भी कोई हादसा हो सकता है. बस स्टैंड से घर के सूने रास्ते में भी कोई दुर्घटना हो सकती है.’

पहली बार अकेले घर तक आनेजाने में नेहल को सचमुच डर लगा था, पर छोटी बहन को बस स्टैंड तक पहुंचाने और लाने के दायित्व ने उस का डर दूर कर दिया.

पापा के साथ भारत से आते समय मम्मी कितनी उत्साहित थीं. नए घर को सजाती, गुनगुनाती मम्मी के साथ घर में खुशी का संगीत बिखर जाता. नन्हेनन्हे हाथों से मम्मी की मदद करती 4 वर्ष की नेहल का मुंह चूमते मम्मी थकती नहीं थीं. एक दिन पापा ने मम्मी को समझाया, ‘कभी भी कोई जरूरत हो, खतरा हो, फोन पर 911 डायल कर देना. तुरंत पुलिस मदद को आ जाएगी.’

पापामम्मी के साथ नेहल और स्नेहा डिजनीलैंड गई थीं. डिजनीलैंड की सैर करतीं राजकुमारियों के परिधान में सजीं नेहल और स्नेहा की सिंडरेला, एरियल और बेल के साथ पापा ने ढेर सारी फोटो ली थीं. उन चित्रों में नेहल और स्नेहा राजकुमारी जैसी दिखतीं. मम्मी गर्व से कहतीं, ‘मेरी दोनों बेटियां सच में राजकुमारी ही लगती हैं. इन के लिए राजकुमार खोजने होंगे.’

‘अरे, देखना, हमारी राजकुमारियों को लेने खुद राजकुमार दौड़े आएंगे.’

सबकुछ कितना अच्छा था, पर अब तो वह सब सपना ही लगता है.

पापा के प्रमोशन के साथ आफिस की पार्टियां बढ़ गई थीं. कभीकभी पापा बार भी जाने लगे थे. मम्मी देर रात तक उन के इंतजार में जागती रहतीं. इस के बाद ही मम्मी बेहद उदास रहने लगी थीं. मां को रोते देख, नेहल मां से चिपट जाती.

‘मम्मी, तुम रो क्यों रही हो?’

‘कुछ नहीं, आंखों में कुछ चला गया था, बेटी.’

‘तुम्हारी आंखों में हमेशा कुछ क्यों चला जाता है, मम्मी?’

‘अब नहीं जाएगा. आदत पड़ जाएगी.’

मां के इस जवाब से संतुष्ट नेहल, उन के आंसू पोंछ देती.

अब पापा के पास घर के लिए जैसे समय ही नहीं था. नेहल और स्नेहा घर के बाहर जाने को तरस जातीं. अकसर रात में मम्मीपापा की बातें नेहल को जगा देतीं. ऐसी ही एक रात नेहल ने मम्मी को कहते सुना था :

‘मेरा नहीं तो इन बच्चियों का तो खयाल कीजिए. नेहल बड़ी हो रही है. अगर उसे सचाई का पता लगा तो सोचिए, उस पर क्या बीतेगी?’

‘वह आसानी से सचाई स्वीकार कर लेगी. यह अमेरिका है. यहां तलाक बहुत कामन बात है. उस के कई साथियों की सौतेली मां या पिता होंगे.’

‘पर हम तो अमेरिकी नहीं हैं. जरा सोचो, तुम इतने ऊंचे ओहदे पर हो, एक बार में काम करने वाली औरत के साथ संबंध जोड़ना क्या ठीक है?’

‘जूलियन बहुत अच्छी है. हालात की वजह से उसे बार में काम करना पड़ रहा है. उस का पति उसे पैसा कमाने के लिए मजबूर करता है. उस ने वादा किया है कि शादी के बाद वह काम छोड़ देगी.’

‘उस का वादा आप को याद है पर अपना वादा आप भूल गए? हमेशा मेरा साथ निभाने का वादा किया था. इन्हीं बच्चियों पर आप जान देते थे,’ मम्मी का गला रुंध गया.

‘तुम जो चाहो, करने को आजाद हो. मैं अब और साथ नहीं निभा सकता,’ रुखाई से पापा ने कहा.

‘तुम्हारे विश्वास पर ही मैं अपने पापा से रिश्ता तोड़ कर तुम्हारे साथ आई थी. मां तो पहले ही नहीं थीं. अब पापा भी साथ नहीं देंगे,’ बात पूरी करतीकरती मम्मी रो पड़ी थीं.

‘अपना रोनाधोना छोड़ो. तुम्हें हर महीने तुम्हारे खर्च के पैसे मिलते रहेंगे. जूलियन के बिना मैं नहीं जी सकता. उसे अपने पति से तलाक लेने में कुछ समय लगेगा. इस बीच तुम्हारे लिए अपार्टमेंट का इंतजाम कर दूंगा.’

‘नहींनहीं, आप ऐसा मत कहो. इन छोटी बच्चियों के साथ अकेली इस अनजाने देश में जिंदगी कैसे काटूंगी.’

‘वक्त पड़ने पर इनसान और उस की आदतें बदल जाती हैं. तुम भी हालात से एडजस्ट कर लोगी. मुझे और परेशान मत करो. अगर ज्यादा तंग किया तो कल से होटल में शिफ्ट कर जाऊंगा. मुझे नींद आ रही है.’

उस के बाद मम्मी की सिसकियां धीमी पड़ गई थीं.

सुबह मम्मी का उदास चेहरा देख, नेहल जैसे सब जान गई कि मम्मी की आंखों में अकसर कुछ क्यों पड़ जाता है. शंका मिटाने के लिए पूछ बैठी :

‘मम्मी, जूलियन कौन है?’

‘तुझे जूलियन का नाम किस ने बताया, नेहल?’

‘रात को सुना था…’

‘देख नेहल, अगर कभी तेरी मम्मी न रहे तो स्नेहा के साथ अपने नाना के पास भारत चली जाना.’

‘तुम क्यों नहीं रहोगी, मम्मी? हम ने तो नाना को कभी देखा भी नहीं है. हम तुम्हारे साथ रहेंगे,’ नेहल डर गई थी.

‘डर मत, बेटी. मैं कहीं नहीं जाऊंगी,’ डरी हुई नेहल को मां ने सीने से चिपटा लिया.

मम्मी अब अकसर बीमार रहने लगीं. असल में उन के अंदर जीने की इच्छा ही खत्म हो गई थी. डाक्टर को कहते सुना था कि बीमारी से लड़ने के लिए विल पावर का मजबूत होना जरूरी है. आप की पत्नी कोआपरेट नहीं करतीं. उन्होंने तो पहले ही हार मान ली है.

बीमारी की वजह से मम्मी और बच्चियों की मदद के लिए जरीना को बुलाया गया था. विधवा जरीना पाकिस्तान से अपने इकलौते बेटे और बहू के पास हमेशा के लिए रहने आई थीं. बहू जूलियन को सास का हमेशा के लिए आना कतई बरदाश्त नहीं था. बहू की हर बेजा बात जरीना सह जातीं. बहू के साथ बेटा भी पराया हो चुका था, यह बात जल्दी ही उन की समझ में आ गई थी. एक दिन बहू ने साफसाफ कहा, ‘इस देश में कोई मुफ्त की रोटियां नहीं तोड़ता. आप दिन भर बेकार बैठी रहती हैं. किसी के घर खाना पकाने का काम शुरू कर दें तो दिल लग जाएगा. हाथ में चार पैसे भी आ जाएंगे.’

‘क्या मैं मिसरानी का काम करूं? तुम्हारी इज्जत को बट्टा नहीं लग जाएगा?’

‘किसी भी काम को नीची नजर से नहीं देखा जाता. आप के बेटे के बौस की बीवी बीमार हैं. घर में 2 छोटी लड़कियां हैं. आप उन की मदद कर देंगी तो उन पर हमारा एहसान होगा. शायद आप के बेटे को जल्दी प्रमोशन भी मिल जाए.’

जरीना बहू को फटीफटी आंखों से देखती रह गईं. इंजीनियर बेटे की मां दूसरे के घर खाना पकाने का काम करेगी. मां के आंसुओं को नकार, एक सुबह बेटा उन्हें नेहल के घर पहुंचा आया.

संकुचित जरीना को मम्मी ने अपने प्यार और आदर से ऐसा अपनाया कि जरीना को मम्मी के रूप में एक बेहद प्यार करने वाली बेटी मिल गई. मम्मी उन्हें अम्मां पुकारतीं और बेटियों से उन का परिचय नानी कह कर कराया था. जरीना नानी का प्यार पा कर नेहल और स्नेहा खुश रहने लगीं. अच्छीअच्छी कहानियां सुना कर नानी उन का मन बहलातीं. उन की हर फरमाइश पूरी करतीं. मम्मी कहतीं, ‘आप इन्हें बिगाड़ रही हैं, अम्मां. आने वाले समय में जाने इन्हें क्या दिन देखने पड़ें.’

‘ऐसा क्यों कहती हो, बेटी. यह तो मेरी खुशकिस्मती है, जो इन की फरमाइशें पूरी कर पाती हूं. अपने पोते के लिए तो मैं….’ गहरी सांस लेती नानी आंचल से आंसू पोंछ लेतीं.

शायद मम्मी की बीमारी की वजह से पापा ने जूलियन का नाम लेना बंद कर दिया था. नेहल सोचती अगर मम्मी बीमार ही रहें तो शायद पापा जूलियन को भूल जाएं. मम्मी का उदास चेहरा देख, उसे अपने सोच पर गुस्सा आता. काश, मम्मी अच्छी हो जातीं.

अचानक एक रात पापा ने उसे यह कहते हुए उठाया था, ‘तुम्हारी मम्मी को अस्पताल ले जाना है. स्नेहा को भी उठा दो.’

क्या होगा सुपरहीरोज का खात्मा

निर्माताः केविन फिएग

निर्देशक: एंथनी रूसो, जौ रूसो

कलाकार: रौबर्ट डाउनीक्रिस इवांस, क्रिस हेम्सवर्थ, स्कारलेट जोहानसन और अन्य

रेटिंग: चार स्टार

बुराई पर अच्छाई की जीत पर भारत में सैकड़ों फिल्में बन चुकी हैं. मगर हौलीवुड ने अपने सुपर हीरो द्वारा पूरे विश्व को बुरी शक्तियों से बचाने वाली 22वीं फिल्म बना डाली, जिसका अंत ‘‘अवेंजर्स गेम एंड’ के साथ हो गया. बहरहाल, इस फिल्म में इसी सीरीज की पुरानी फिल्मों के सीन्स के साथ कई जटिल नाटकीय घटनाक्रमों के साथ ही कभी न मरने वाले यानी कि अजेय सुपर हीरो को श्रृद्धांजली भी दी गयी है.

‘प्यार का पंचनामा’ एक्ट्रेस की आंखों में क्यों आए आंसू

कहानीः

थैनोस (जोश ब्रोलिन) के खिलाफ आइरन मैन (रौबर्ट डाउनी), कैप्टन अमरीका (क्रिस इवांस), थौर (क्रिस हैम्सवर्थ), हल्क (मार्क रैफलो), ब्लैक विडो (स्कारलेट जोहानसन), जरेमी रेनर, ऐंट मैन (पौल रड), कैप्टन मार्वल (ब्री लार्सन) ने एकजुट होकर जंग छेड़ दी हैं. वास्तव में एंट मैन (पौल रड) इन सुपर हीरोज को आकर बताता है कि क्वांटम थ्योरी के जरिए वह अतीत में जाकर थैनोस से पहले उन मणियों को हासिल करें, तो इंफीनिटी वार की स्थिति से बचा जा सकता है. उस जंग में जिन अपनों को खो दिया गया था,उन्हें भी वापस लाया जा सकता है.

लेकिन क्या यह सभी क्वांटम थियरी को चाक चैबंद करके अतीत में जाकर विभिन्न जगहों से मणियों को हासिल कर पाएंगे. क्या अब थैनोस की बुराइयों का अंत हो पाएगा? क्या अवेंजर्स अपने प्यारों को वापस ला पाते हैं? क्या सुपर हीरोज का जलवा बरकरार रह पाता है? इन सारे दिलचस्प सवालों व कहानी के उतार चढ़ाव के लिए आपको अवेंजर्स देखनी होगी.

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कैसी है फिल्म…

इस साल की बहुप्रतीक्षित यह फिल्म दर्शकों की उम्मीदों पर खरी उतरती है. मार्वल सिनेमैटिक यूनिवर्स के लिए यह शानदार एंडिंग है. दर्शकों ने इसके कुछ पात्रों को काफी पसंद किया. इसमें जिस तरह से कहानी का विस्तार होता रहा है, वह सदैव रोमांचक रहा. क्रिस्टोफर मार्कस व स्टीफन एम सी फीली की पटकथा फिल्म की असली हीरो तो इसकी पटकथा ही है. लेखक व निर्देशक ने हिंसा व नाटकीय घटनाक्रमों के बीच भावनाओं के सागर को भी बरकरार रखने में अद्भुत सफलता पायी. इस फिल्म से क्वांटम भौतिकी थियरी को नए आयाम मिले.

केसरी : इतिहास के अध्याय का सजीव चित्रण

डायरेक्शन…

फिल्म ‘‘अवेंजर्स एंडगेम’’की गति धीमी है, पर लगता है कि ऐसा जान बूझकर किया गया. जिससे चरित्रों का गहन विकास और उनसे मिलने वाली सशक्तप्रेरणा अच्छे ढंग से उभर सके. निर्देशक ने इंफरनिटी वार के बाद के हालात में सबसे पहले सुपर हीरो को स्थापित किया, कि वह किस तरह अपने कारनामों और सुपर पावर्स से दूर आम जीवन बिता रहे हैं. मगर जब एंट मैन आकर उनके अंदर अपनों को दोबारा वापास लाने का जज्बा भरता है, तब कहानी सरपट दौड़ती है. इस तरह तीन घंटे की फिल्म में से आखिरी आधे घंटे की फिल्म ही महत्वपूर्ण है, इसके बावजूद फिल्म बोर नही करती है. इसके लिए फिल्म के एडीटर भी बधाई के पात्र हैं.

यह सुहागरात इम्पौसिबलः प्रताप सौरभ सिंह का बेहतरीन अभिनय

एक्टिंग….

जहां तक एक्टिंग का सवाल है, तो हर कलाकार ने बेहतरीन अभिनय किया है. आइरन मैन (रौबर्ट डाउनी जूनियर), कैप्टन अमरीका (क्रिस इवांस), थौर (क्रिस हैम्सवर्थ), हल्क (मार्क रैफलो), ब्लैक विडो (स्कारलेट जोहानसन), जरेमी रेंटर, ऐंट मैन (पौल रड) सुपर हीरो का रोल करते हुए अपनी अभिनय प्रतिभाकी छाप छोड़ जाते हैं. (थैनोस) जोश ब्रोलिन तो लार्जर देन लाइफ ही नजर आते हैं.

Edited by- Nisha Rai

मोदी का अयोध्या से बस चुनावी रिश्ता

कलयुग में राम की उपेक्षा के बहुत सारे उदाहरण हैं. इनमें से एक यह भी है कि प्रधानमंत्री नरेन्द्र मोदी शंकर की नगरी वाराणसी से तो गहरा रिश्ता रखते हैं पर राम की नगरी अयोध्या से उनका केवल चुनावी रिश्ता ही रह गया है. 2014 के लोकसभा चुनाव में वह राजकीय इंटर कालेज के मैदान पर चुनावी सभा करने के लिये गये थें. उस समय वह भारतीय जनता पार्टी के प्रधानमंत्री पद के प्रत्याशी थें. 2014 का लोकसभा चुनाव जीत कर नरेन्द्र मोदी देश के प्रधानमंत्री बनें.

डिग्री और पत्नी त्याग पर खामोशी क्यों ?

2014 से 2019 के बीच देश विदेश के हर शहर वें गये होंगे पर अयोध्या में राम मंदिर नहीं आये. अपनी चुनावी जीत के बाद धन्यवाद देने काशी गयें. कुंभ में डुबकी लगाने प्रयागराज गये पर अयोध्या नहीं आयें. 2019 के लोकसभा चुनाव प्रचार में भी वह अयोध्या ना आकर फैजाबाद और अंबेडकर नगर संसदीय सीट को जोड़ने वाली मया बाजार में रैली करने ही आ रहे हैं जो अयोध्या से 27 किलोमीटर दूर है.

नेता तो नेता, जनता महा बेवकूफ

2014 के चुनाव जीत कर केन्द्र सरकार में प्रधानमंत्री बनने के बाद नरेद्र मोदी को अयोध्या बुलाने के तमाम प्रयास यहां के संतों ने किया. संतों का मानना था कि प्रधानमंत्री बनने के बाद नरेन्द्र मोदी को अयोध्या आना चाहिए था. नरेन्द्र मोदी अयोध्या आने के बाद भी राम मंदिर नहीं गये हैं. इससे मंदिर की राजनीति करने वाले संतों में निराशा का भाव है. भाजपा के नेता और कार्यकर्ता इस पर खुलकर बोलने से बचते हैं. वें इसे कोई मुददा नहीं मानते. पर वह इस सवाल का जबाव नहीं दे पाते हैं कि राम मंदिर और अयोध्या से प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी की दूरी का मर्म क्या है ?

मेनका के बिगड़े सुर

अयोध्या में राम मंदिर ही वह मुददा है जिस के आधार पर भाजपा ने अपनी विजय यात्रा तय कीं. इसी मुददे पर 1992 में भाजपा की उत्तर प्रदेश, मध्य प्रदेश और राजस्थान की चुनी हुई सरकारें बर्खास्त की गई थी. आज बहुमत की सरकार बनाने के बाद भी नरेंद्र मोदी की अयोध्या यात्रा चुनावी होकर रह गई है. एक तरफ वह काशी में शिव की महिमा का बखान करते हैं दूसरी तरफ अयोध्या से उनकी दूरी बनी है. वें अयोध्या आकर भी राम मंदिर नहीं जा सके हैं.

कागरः क्या राजनीतिक बदलाव रक्त क्रांति के बिना संभव नहीं

रेटिंग:तीन स्टार

कागर का हिंदी में अर्थ हुआ अंकुरित/पल्लवित होता प्यार.पर यह प्रेम अंकुरित होता है राज्य में राजनीतिक बदलाव के लिए रक्तरंजित क्रांति के बीच, जिसमें प्रेमिका के पिता की राजनीतिक महत्वाकांक्षा, राजनीतिक व शतरंजी चालों की भेंट चढ़ता है प्रेमी को.

मराठी फिल्म‘‘रिंगणे’’के लिए राष्ट्रीय पुरस्कार प्राप्त फिल्मकार मकरंद माने इस बार देश की कुल्सित राजनीति के चेहरे और रक्तरंजित राजनीति के चेहेरे को बेनकाब करती फिल्म ‘‘कागर’’ लेकर आए हैं. इसमें चुनाव के चलते राजनीतिक प्रचार, कार्यकर्ताओं द्वारा किया जा रहा प्रचार, राजनीतिक उठापटक, राजनीतिक शत्रुता, शतरंजी चालें और गुरू जी राजनीतिक महत्वाकांक्षा के चलते बहते रक्त के बीच रानी व युवराज की प्रेम कहानी भी है. मगर गुरूजी की राजनीतिक महत्वाकांक्षा के चलते अंततः युवराज का भी रक्त बहता है.

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कहानीः

फिल्म की कहानी का केंद्र महाराष्ट्र का ग्रामीण इलाका वीराई नगर है. जहां वर्तमन विधायक भावदया के राजनीतिक गुरू प्रभाकर देशमुख उर्फ गुरूजी (शशांक शिंदेे) पिछले 15 साल से भावदया के साथ हैं, पर किसी को नहीं पता कि राजनीतिक शतरंज के माहिर खिलाड़ी प्रभाकर देशमुख उर्फ गुरूजी (शशांक शिंदे) की अपनी कोई राजनीतिक महत्वाकांक्षा है. फिल्म की कहानी ज्यों ज्यों आगे बढ़ती है. त्यों त्यों पता चलता है कि गुरू जी इस बार भावदया की बजाय अपनी बेटी प्रियदर्शनी देशमुख उर्फ रानी (रिंकू राज गुरू) को अपनी पार्टी से विधायक बनाना चाहते हैं. इसके लिए वह साफ्ट वेअर इंजीनियर और गन्ना किसानों के प्रति हमदर्दी रखने वाले युवक युवराज (शुभंकर तावड़े) को अपना मोहरा बनाते हैं. युवराज के मन में भावदा के प्रति नफरत यह बताकर करते हैं कि उनके पिता के वह हत्यारे हैं. युवराज और रानी एक दूसरे से सच्चा प्यार करते हैं. रानी तो युवराज के प्यार में मरने को भी तैयार है. शातिर राजनीतिज्ञ की तरह गुरू जी पार्टी के नेतृत्व को बता देते है कि इस बार वह अपनी बेटी प्रियदर्शनी देशमुख उर्फ रानी को विधायक का चुनाव लड़वाना चाहते हैं. मगर भावदया व लोगों के सामने अपने मोहरे के रूप में भैयाजी (शांतनु गांगने) में उतारते हैं. भैयाजी के चुनाव प्रचार शुरू करते ही भावदया और गुरूजी दुश्मन बन जाते हैं. फिर दोनों के बीच शीतयुद्ध शुरू हो जाता है. जिस दिन गुरू जी को पता चलता है कि रानी और युवराज मंदिर में देशादी करने जा रहे हैं, उसी दिन गुरूजी अपनी शतंरजी चाल में युवराज को ऐसा फंसाते हैं कि युवराज शादी भूलकर गुरूजी की मदद के लिए दौड़ता है, उधर मंदिर में रानी इंतजार करती रह जाती है. इसके बाद गुरूजी की चाल के अनुसार ही युवराज भैयाजी की हत्या कर देता हैं, भैयाजी की हत्या के जुर्म में विधायक भावदया जेल चले जाते हैं और गुरूजी नाटकीय तरीके से अपनी बेटी रानी को विधायक के चुनाव में खड़ा कर देते हैं. चुनाव प्रचार के दौरान रानी को अपने पिता की असलियत पता चल जाती है. रानी, युवराज मिलकर उसे जुर्म कबूल करने के लिए कहती है. रानी कहती है कि वह सजा काटकर आने तक युवराज का इंतजार करेगी, पर तभी गुरूजी अपने दलबल के साथ पहुंच जाते हैं. फिर कई लोग मौत के घाट उतारे जाते हैं. अंततः रानी के विरोध के बावजूद युवराज को भी गुरूजी मौत दे देते हैं. रानी को गुरूजी समझाते हैं कि वह जो खुद नहीं बन सके. वह उसे बनाना चाहते हैं. रानी अपनी कलाई काटकर आत्महत्या करने का असफल प्रयास करती है. अंततः चुनाव के दिन वोट देने के लिए जाते समय रानी अपने पिता से कहती है कि वह इस बात को कभी नहीं भूलेगी कि उसके पिता हत्यारे हैं. बेटी की बातों से आहत गुरूजी आत्महत्या कर लेते हैं. रानी विधायक बन जाती है. पर वह अपने प्यार व युवराज को भुला नही पायी हैं.

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लेखन व निर्देशनः

चुनाव के वक्त राजनीतिक दलों के अंदर होने वाली उठा पटक, एक ही दल से जुड़े लोगों के बीच एक दूसरे के खून के प्यासे हो जाने की हद तक की आपसी दुश्मनी, चुनाव प्रचार, चुनाव प्रचार रैली सहित जिस तरह से लोग अपनी अपनी राजनीतिक महत्वाकांक्षा और अपनी अपनी कुर्सी बचाने के लिए दूसरों का खून बहाने पर आमादा रहते हैं, उसका यथार्थपरक चित्रण करने में फिल्मकार मकरंद माने पूर्ण रूपेण सफल रहे हैं. मगर लेखक के तौर पर वह दिग्भ्रमित सा लगते हैं. इसी के चलते इंटरवल तक यह फिल्म पूर्णरूपेण प्रेम कहानी नजर आती है. इंटरवल के बाद अचानक यह रोमांचक और राजनीतिक फिल्म बन जाती है. परिणामतः प्रेम की हार होती है और स्वार्थपूर्ण रक्त रंजित राजनीति की विजय होती है. निर्देशक के तौर पर मकरंद माने फिल्म के क्लाइमैक्स को गढ़ने में मात खा गए. फिल्म के कुछ दृश्यों को जिस तरह से गन्ने के खेतों ,गांव आदि जगहों पर फिल्माया गया है, उससे फिल्म सुंदर बन जाती है. फिल्म के कुछ संवाद काफी अच्छे बन पड़े हैं. निर्देशक के तौर पर महारास्ट्र में खुरदरी ग्रामीण राजनीति के साथ ही छोटे शहर के रोजमर्रा के जीवन का सटीक चित्रण करने में मकरंद माने सफल रहे हैं. फिल्म को एडीटिंग टेबल पर कसे जाने की भी जरुरत थी.

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अभिनयः

जहां तक अभिनय का सवाल है तो प्रियदर्शनी देशमुख उर्फ रानी के किरदार को परदे पर जीवंतता प्रदान कर रिंकू राजगुरू ने एक बार फिर साबित कर दिखाया कि अभिनय में उनका कोई सानी नहीं है. मगर वह प्रतिभाशाली अभिनेत्री रिंकू राजगुरू की प्रतिभा का सही ढंग से उपयोग नहीं कर पाए. यह उनके लेखन व निर्देशन दोनो कमियों को उजागर करता है. एक चतुर राजनीतिज्ञ के हाथों की कठपुतली बने युवराज के किरदार में नवोदित अभिनेता शुभंकर तावडे़ में काफी संभावना नजर आती हैं. गुरूजी के किरदार में शशांक शिंदे की भी तारीफ की जानी चाहिए. अन्य कलाकारों ने भी ठीक ठाक काम किया है.

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फिल्म का गीत संगीत उत्कृष्ट होने के साथ ही सही जगह पर उपयोग किया गया है. दो घटे दस मिनट की अवधि वाली फिल्म‘‘कागर’’ का निर्माण ‘‘वौयकाम 18 मोशन पिक्चर्स’’ ने किया है. फिल्म के लेखक व निर्देशक मकरंद माने तथा कलाकार हैं- रिंकू राजगुरू, शुभांकर तावड़े, शशांक शिंदे, शांतनु गांगने व अन्य.

कहीं आप भी तो नहीं करती हैं ये 6 ब्यूटी मिस्टेक्स

सुंदर दिखना हर महिलाओं को खूब भाता है. सुंदरता को निखारने में सबसे अहम रोल मेकअप का होता है. लेकिन सुंदरता के चक्कर में अधिकतर महिलाएं ऐसी गलतियां कर बैठती हैं कि उनका चेहरा सुंदर दिखने के बजाय ओल्ड या डल दिखने लगता है. मेकअप के बाद भी डल दिखने के पीछे ऐसी कौन सी गलतियां हैं, जो अधिकतर महिलाएं दोहराती है आइए जानते हैं-

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  1. मौइस्चराइजर

मेकअप की शुरुआत हम सभी मौइस्चराइजर से करते हैं. जब मौइस्चराइजर अच्छे से ड्राई हो जाता है, उसके बाद फाउंडेशन अप्लाई करते हैं. लेकिन अधिकतर महिलाएं मौइस्चराइजर लगाने के तुरंत बाद ही फाउंडेशन अप्लाई कर लेती हैं. मौइश्‍चराइज़र की नमी के कारण चेहरे पर मेकअप की पतली परत साफ दिखती है. इसलिए जब स्किन अच्छी तरह से मौइश्‍चराइज़र को सोख ले, तभी फाउंडेशन का इस्तेमाल करें, नहीं तो चेहरे पर फाउंडेशन साफ नजर आता है.

 2. फाउंडेशन

कई बार देखा जाता है कि मेकअप के बाद चेहरा स्किन टोन से ज्यादा ब्राइट या ज्यादा डार्क नजर आता है, जिससे चेहरा बहुत ओवर दिखता है. फाउंडेशन के गलत चयन से पर्फेक्ट लुक नहीं आ पाता. इसलिए जब भी फाउंडेशन खरीदें तो अपनी स्किन टोन से मैच कर लें. यदि आप रेगुलर यूज के लिए फाउंडेशन ले रही हैं तो अपने स्किन टोन का ही फाउंडेशन खरीदें. किसी पार्टी-फंकशन में यूज के लिए एक शेड लाइट फाउंडेशन खरीदें.

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3. काजल

हर महिलाओं के मेकअप किट में काजल जरूर होता है. काजल लगाने से आंखों और चेहरे दोनों की खूबसूरती निखर जाती है. लेकिन काजल का सही यूज न किया जाए तो ये आपकी खूबसूरती बिगाड़ भी सकता है.  अगर आपके आंखों के नीचे डार्क सर्कल्स है तो आप काजल न लगाएं. काजल लगाने से डार्क सर्कल्स ज्यादा हाईलाइट हो जाते हैं, जिससे आपका लुक डल दिखने लगता है.अगर आपकी आंखें बड़ी हैं तो आप काजल ज्यादा मोटा न लगाएं.काजल हमेशा वाटरलाइन के अंदर ही लगाएं.

4.  कंसीलर

कंसीलर लगाते समय बहुत सी महिलाएं पूरे चेहरे पर ही कंसीलर लगा लेती हैं. लेकिन कंसीलर सिर्फ चेहरे के खास भाग पर ही लगाया जाता है. कंसीलर का इस्तेमाल चेहरे पर स्पौट, पिंपल्समार्क, मुहांसे, डार्क सर्कल्स को छिपाने के लिए किया जाता है. कंसीलर को पूरे चेहरे पर लगाना सही नहीं है. ऐसा करने से आपका चेहरा ज्यादा व्हाइट नजर आने लगता है. कंसीलर हमेशा अपनी स्किन टोन से एक शेड हल्का खरीदें.

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5. लिपस्टिक और लिपलाइनर 

लिपस्टिक मेकअप का सबसे अहम हिस्सा माना जाता है. लिपस्टिक और लिपलाइनर को लगाने में अक्सर लड़कियां व महिलाएं गलतीयां कर बैठती हैं. लिपस्टिक लगाने से पहले मैचिंग लिपलाइनर का इस्तेमाल करें. यदि लिपस्टिक और लिपलाइनर अलग शेड के होंगे तो आपका चेहरा सबसे अलग और अजीब दिखेगा. कई बार ड्रेस और लिपस्टिक का मैच नहीं हो पाता, जिससे आपका पूरा लुक बिगड़ जाता है इसलिए लिपस्टिक लगाते वक्त कपड़ों का खास ध्यान रखें. अगर आप ज्यादा डार्क कलर का ड्रेस पहनने वाली हैं तो उसके साथ डार्क शेड का लिपस्टिक का ही इस्तेमाल करें. और अगर आपका आउटफिट ज्यादा लाइट कलर का है तो आप न्यूड या पिंक शेड का लिपस्टिक का यूज कर सकती हैं.

5 टिप्स: स्किन के लिए चाय है एक अच्छा ब्यूटी प्रोडक्ट

6. मेकअप रिमूव

मेकअप रिमूव करना ब्यूटी का सबसे महत्वपूर्ण हिस्सा माना जाता है. खुद को सुंदर दिखाने के लिए हम तरह-तरह के ब्यूटी प्रौडक्ट का तो इस्तेमाल करते हैं लेकिन इन्हें सही तरीके से रिमूव नहीं किया गया तो ये हमारी त्वचा को नुकसान भी पहुंचा सकते हैं. मेकअप रिमूव करने से चेहरे की सुंदरता बरकरार रहती है. रात को सोने से पहले मेकअप क्लीन करना बहुत जरूरी होता है. लेकिन कुछ महिलाएं इसे बिना रिमूव किए ही सो जाती हैं. मेकअप रिमूव न करने से त्वचा पर मुंहासे, पिंपल्स, रूखापन जैसी दिक्कतें होना शुरू हो जाती है. कई बार हम मेकअप फेशवाश से रिमूव कर लेते हैं जिससे हमारा चेहरा काफी डल और ड्राई नजर आने लगता है. मेकअप हमेशा रिमूवर से ही रिमूव करना चाहिए. यदि रिमूवर नहीं है तो आप नारियल के तेल से भी रिमूव कर सकती हैं.

5 टिप्स: स्किन को लेमन बनाएगा सौफ्ट और ब्यूटीफुल

हमारी स्किन अलग-अलग तरह की होती है कोई ड्राई तो कोई औयली. जिसके लिए मार्केट में कईं प्रोडक्ट मिलते है, लेकिन इन प्रोडक्टस के साइड इफेक्ट भी होते हैं. लेकिन होममेड चीजों के साइड इफेक्ट कम देखने को मिलते हैं. लेमन उन्हीं होममेड तरीकों में से है. इसमें विटामिन सी और विटामिन बी काफी मात्रा में होते है. जिससे यह हमारे बालों से लेकर स्किन की खूबसूरती को बढ़ती है. डेड स्‍किन, ब्‍लैकहेड को साफ करने के साथ यह खुले हुए पोर्स को भी ठीक करने में मददगार होता है. और अगर आप इसे कभी पैक में मिलाकर या कभी अलग अलग चीजों के साथ मिक्स करके या सीधे ही स्किन पर लगाएं तो यह आपकी स्किन को और भी खूबसुरत बना देगा.

  1. चेहरे में शाइन लाने के लिए लेमन

अंडे के सफेद भाग में लेमन की कुछ बूंदे मिलाकर इसे चेहरे पर लगाएं और सूखने दें, फिर इसे पील की तरह चेहरे से निकाल लें और चेहरे को ठंडे पानी से धो लें, इससे आपका चेहरा शाइन करेगा.

  1. झुर्रियों को खत्म करने के लिए लेमन

उम्र बढ़ने के साथ-साथ स्किन पर झुर्रियां पड़ने लगती है जिससे उनके निशान दिखने लगते हैं. लेमन एक अच्छा एंटीऔक्सीडेंट भी है, जो स्किन की झुर्रियों को खत्म करता है.

  1. औयली स्किन के लिए लेमन

औयली स्किन के लिए लेमन काफी कारगर साबित होता है. लेमन को पानी में मिला लें और रूई की मदद से चेहरे पर लगाएं. इससे पिंपल और ब्लैकहेड्स जैसी कई समस्याओं से छुटकारा पाया जा सकता है.

  1. सौफ्ट स्किन के लिए लेमन

ताजे लेमन के रस से स्किन नर्म और मुलायम होती है. यदि घुटने और कोहनी की स्किन को मुलायम और साफ करना है तो इसके रस को सीधे स्किन पर रगड़ने से काफी मदद मिलती है.

  1. सूखे और फटे होंठ के लिए लेमन

सूखे और फटे होंठ पर लेमन का रस लगाने से काफी फायदा पहुंचता है. आप मलाई और शहद में लेमन का रस मिलाकर प्राकृतिक लिप बाम भी बना सकते हैं. इसे लगाने से आपके होंठों की नमी बरकरार रहेगी.

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आलू का रायता बनाने की विधि

खाने के साथ जब रायता मिलता है, तो खाना बेहद  टेस्टी हो जाता है. और वो भी अगर आलू का रायता. आलू का रायता बहुत टेस्‍टी होता है और बनाने में भी बेहद आसान होता है. तो फिर चलिए आलू का रायता बनाने की विधि जानते हैं.

घर में बनाएं भरवां करेला

सामग्री :

आलू  (04 नग)

दही  02 कप (फेंटा हुआ)

हरी मिर्च  01 नग (कटी हुई)

भुना जीरा पाउडर ( 01 चम्मच)

लज्जतदार केले बेसन की सब्जी

चाट मसाला ( 01 चम्मच)

काली मिर्च पाउडर ( चुटकी भर)

काला नमक ( 1/2 चम्मच)

लाल मिर्च पाउडर (स्वादानुसार)

धनिया पत्ती ( आवश्यकतानुसार)

नमक ( स्वादानुसार)

पनीर मसाला बनाने की आसान रेसिपी

बनाने की विधि :

सबसे पहले आलू धो कर उबाल लें.

उबले आलुओं को ठंडा करके इन्हें छील लें और चाकू की मदद से छोटे-छोटे टुकड़ों में काट लें.

अब एक कटोरे में सभी सामग्री को अच्छे से मिला लें और ऊपर से भुने हुए जीरे का पाउडर, काली मिर्च का पाउडर, काला नमक और नमक छिड़कें.

चाप रोल रेसिपी

अगर आप रायता को स्पाइसी बनाना चाहें, तो थोड़ा सा पिसा हुआ लाल मिर्च भी मिला सकती हैं.

लीजिए आपकी आलू का रायता बनाने की विधि कम्‍प्‍लीट हुई.

इसे हरी धनिया से गार्निश करें और खाने के साथ परोसें.

posted by- saloni

अच्छी नींद के लिए खाएं ये 4 चीजें

अक्सर ऐसा होता है कि हमें न कोई तनाव होती है और न ही कोई परेशानी, फिर भी हमें नींद नही आती. और इसकी वजह हम समझ नहीं पाते. पर क्या आप जानते हैं कि आपका खानपान भी आपके नींद को प्रभावित करता है. जी हां आप डिनर में क्या खा रहे हैं यह इस बात को तय कर सकता है कि आपको आने वाली नींद गहरी होगी या नहीं. तो आइए जानते हैं कि अच्छी नींद पाने के लिए डिनर में क्या खाना चाहिए.

  1. बादाम

बादाम अच्छी नींद की इच्छा को पूरा करने में कारगर है. अगर आपको नींद नहीं आ रही तो बादाम अच्छा विकल्प साबित हो सकता हैं. इससे तेज नींद आने में मदद मिलती है और साथ ही नींद गहरी भी आती है. आप चाहें तो बादाम को शहद के साथ ले सकते हैं या फिर एक ग्लास गर्म दूध के साथ भी.

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2. केले

केले में भरपूर मात्रा में कार्बोहाइड्रेट्स होते हैं. कार्बोहाइड्रेट्स ट्रिप्टोफेन बनाने में मदद करता है जो दिमाग को अच्छी नींद दिलाता है. इसके अलावा केले में काफी अच्छी मात्रा में मैग्नेशियम भी पाया जाता है, जो मसल्स और नसों को आराम दिलाता है.

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3. शहद

सोने से पहले शहद लेना अच्छा विकल्प माना जाता है. शहद का पौजिटिव असर पूरे शरीर पर रहता है. शहद एंटी बैक्टीरियल, एंटी फंगल और एंटी ऑक्सीडेंट्स है. शहद भी ट्रिप्टोफेन के प्रोडक्शन का काम करता है.

4. दलिया

दलिया हमेशा एक अच्छा आहार माना गया है. यह हल्का होता है इसलिए इसे पचाने में दिक्कत नहीं होती. एक कटोरी दलिया रात के समय एक अच्छा मील साबित हो सकता है. दूध, शहर, केले या बादाम के साथ दलिया रात के समय में लिया जा सकता है. यह हल्का होता है इसलिए पचाने में आसानी होती है.

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सैक्स संबंधों में उदासीनता क्यों

बिना सैक्स के आदमी और औरत का संबंध अधूरा है.कुछ लोग चाहे जितना गुणगान कर लें कि सैक्स गंदा है, असल में आदमीऔरत में पूरा प्यार या लगाव सैक्स से ही होता है. यह बात दूसरी है कि कुछ मामलों में यह प्यार व लगाव कुछ मिनटों तक सिमट कर रह जाता है और शारीरिक प्रक्रिया पूरी होते ही दोनों अपनेअपने काम में व्यस्त हो जाते हैं. सैक्स के बराबर ही पेट भरना जरूरी है. शायद सैक्स से ज्यादा दूसरे मनोरंजन भी भारी पड़ते हैं.

खतरे में है व्यक्तिगत स्वतंत्रता

एक संस्थान जो लगातार अमेरिकी लोगों पर शोध कर रही है ने पता किया है कि अमेरिकियों में भी सैक्स की चाहत कम हो रही है और वे सैक्स की जगह वीडियो गेम्स या अपने कैरियरों पर समय और शक्ति अधिक लगाने लगे हैं. युवा लड़कियों में 18% और युवा लड़कों में 23% ने कहा कि उन्हें पिछले 1 साल में एक बार भी सैक्स सुख नहीं मिला. 60 वर्ष की आयु से अधिक के 50% लोग सैक्स से दूर रहते हैं.

सावधान, आप बेचे जा रहे हैं

बिना सैक्स के जीवन की बहुत महिमा गाई जाती है पर यह है गलत. आदमी-औरत का संबंध प्राकृतिक है, चाहे प्रकृति ने इस में आनंद डाला था या नहीं, कहा नहीं जा सकता. सभ्य समाज सैक्स पर आधारित है, क्योंकि सुरक्षित सैक्स और पार्टनर की ग्रांटेड मौजूदगी ने ही विवाह संस्था को जन्म दिया है. विवाह है तो घर है, घर है तो गांव है, गांव है तो शहर है, शहर है तो देश है. बिना सैक्स के लोग अकेले पड़ जाएंगे और जीवन के प्रति उन का नजरिया ही बदल जाएगा.

सभ्यता की जड़ में जो सुख पाने की बलवती इच्छा है उस के पीछे सैक्स सुख है चाहे इस सैक्स सुख को पाने के लिए धर्म के सहारे औरतों को गुलाम बनाया गया, आश्रमों, मठों में औरतों को जमा किया गया, राजाओं ने महलों में हरमों का निर्माण किया. अगर सैक्स की चाहत न होती तो वह बहुत कुछ नहीं दिखता जो आज दिख रहा है.

साजिश की शिकार शिक्षा

आज डिजिटल क्रांति के पीछे पोर्न और औरतों का व्यापार भी बहुत छिपा है. असल पैसा यहीं से आता है चाहे लोग इस की चर्चा कम करते हों. पहले लोग सैक्स को ज्यादा बुरा मानते थे पर जम कर सैक्सुअली ऐक्टिव रहते थे. तब समय भी था और पार्टनर भी. अब समय भी कम है और पार्टनरों के नखरे भी बढ़ गए हैं.

लड़कों को सैक्स सुख पाने के लिए बहुत कुछ कुरबान करना पड़ता है और लड़कियां मुफ्त में सैक्स सुख नहीं देना चाहतीं. जब दोनों तरफ से हिचकिचाहट होगी तो सैक्स संबंध तो कम बनेंगे ही. हमारे यहां क्या हो रहा है, पता नहीं पर बढ़ते तनाव और तलाकों का एक कारण सैक्स अभाव हो सकता है.

आज की नैतिकता पुरानी नैतिकता से अच्छी

लिटिल चैंप का घमासान

मैं चाहता हूं कि हमारा लाड़ला पिंटू नामीगिरामी क्रिकेटर बने, जिस में नाम, सम्मान और ऐश, सबकुछ है, जबकि करीना चाहती है कि वह ‘लिटिल चैंप’ बने.

कुछ लोग गृहस्थी को युद्ध का मैदान मानते हैं. लड़ने के लिए वैसे भी 2 पक्ष चाहिए ही. सच ही कहा गया है कि पतिपत्नी अलगअलग ग्रह से आते हैं. एक राहु होता है तो दूसरा केतु. सफल दांपत्य जीवन के लिए कितने ही लेख पढ़ लें, फिल्में देख लें, प्रवचन सुन लें, पूजापाठ कर लें, वास्तुशास्त्र के टोटके कर लें मगर आदर्श परिवार बनने का दूध अहमभाव के दही से फट ही जाता है.

सुबह हुई नहीं कि मैं भी फटे हुए दूध को क्षमायाचना की सूई से सीने बैठ गया.

‘‘सुनो प्रिये, मेरी बातों का बुरा मत माना करो. कल दफ्तर में बौस से झड़प हो गई. तुम तो जानती हो करीना कि धोबी अपना गुस्सा गधे पर उतारता है, सो मैं अपने दुर्व्यवहार के लिए क्षमा मांगता हूं,’’ मैं ने अपने कान पकड़ लिए.

‘‘तुम ने मुझे गधी कहा,’’ पत्नी दहाड़ी.

‘‘नहीं, भाग्यवान, यह तो मुहावरा है. अब अपना गुस्सा थूक दो,’’ मैं ने पुचकारते हुए कहा.

दांपत्य जीवन में इस प्रकार की तकरार को खुशहाली बनाए रखने का सूत्र माना जाता है. घर में चार बर्तन हों तो खड़केंगे ही. पत्नी करीना के साथ जब घमासान होने का खतरा दिखाई देता है तब मैं सफेद रुमाल निकाल कर समझौते की मुद्रा में आ जाता हूं.

उस से कहता हूं, ‘‘मेरी एग करी, जरा अपना मुंह फुलाने का कारण तो बताइए?’’

करीना का जब पारिवारिक घमासान करने का मूड होता है तो वह बेडरूम, जिसे मैं आधुनिक कोप भवन की संज्ञा देता हूं, में जा कर औंधे मुंह लेट जाती है. उस की घनी बिखरी केश राशि किसी काले चमकीले घने बाल बनाने वाली केश तेल कंपनी का जीवित विज्ञापन लगती है. वह घायल नागिन की तरह फुफकारने लगती है. ऐसी स्थिति में पत्नी को न मनाते बनता है न छेड़ते बनता है.

मैं ने नम्रतापूर्वक कहा, ‘‘हे करीना देवी, अब मान भी जाओ. अपना पिंटू बड़ा हो रहा है. वह तुम्हें इस रौद्र रूप में देखेगा तो उस के बालमन पर बुरा असर पड़ेगा. वह स्कूल से आता ही होगा. चलो, उठ कर कपड़े बदल लो.’’

पिंटू का नाम सुनते ही करीना झटके से उठ खड़ी हुई, ‘‘आप ठीक कहते हैं जी, पिंटू का मुझे तो खयाल ही नहीं रहा. इधर मैं कुछ दिनों से देख रही हूं कि उस का मन पढ़ने में नहीं लग रहा है. बाथरूम में दरवाजा बंद कर घंटों गुनगुनाता रहता है. लगता है उसे लिटिल चैंप बनने की सनक सवार हो गई है.’’

‘‘करीना, अच्छा हुआ जो तुम ने बता दिया. वरना हमारे बीच तूतू मैंमैं होती रहती. पिंटू के कैरियर को ले कर मैं चिंतित हूं. मैं तो उसे क्रिकेट का चैंपियन बनाना चाहता हूं. क्रिकेट में अच्छीखासी कमाई हो जाती है. दोचार टेस्ट खेलो और वारेन्यारे. पहले कहा जाता था :

पढ़ोगे लिखोगे बनोगे नवाब खेलोगे कूदोगे होगे खराब.’’

अब सबकुछ उलटापुलटा हो रहा है. सोच, स्टेटस सब बदल रहा है. अब बच्चों का कैरियर डाक्टर, इंजीनियर बनने में नहीं बल्कि ‘चक दे इंडिया’ की तर्ज पर फिल्म गोल, लगान के नायक की तरह खेल में है. मैं तो चाह रहा हूं करीना कि हम अपने पिंटू को अच्छा खिलाड़ी बनाएं. लान टेनिस, चेस में क्या कम आमदनी है? खिलाड़ी देश का गौरव होता है. इस में सम्मान है, पैसा है, विदेश यात्रा है,’’ मैं ने अपनी भावना करीना को बतलाई.

‘‘मगर खिलाड़ी बनने के लिए 18 वर्ष की आयु होनी जरूरी है. मैं अपने पिंटू के कैरियर के लिए इतना इंतजार नहीं कर सकती,’’ करीना ने अपना पैंतरा बदलते हुए कहा, ‘‘जब टीवी कार्यक्रम के लिए उम्र आड़े नहीं आती. आप देख रहे हैं कि 10-12 वर्ष के छोटेछोटे बच्चे भी गीतसंगीत के माध्यम से देशविदेश में छा रहे हैं, लाखों में खेल रहे हैं… मैं तो अपने पिंटू को अच्छा गायक बनाऊंगी जी.’’

करीना जिस उत्साह से बोल रही थी उस में उस का गजब का आत्मविश्वास झलक रहा था. मुझे लगा, जिद्दी करीना पिंटू को लिटिल चैंप बना कर ही रहेगी. पिंटू के स्कूल से आते ही मैं बोला, ‘‘बेटा पिंटू, तुम्हारी मम्मी कह रही थीं कि तुम आजकल ठीक से पढ़लिख नहीं रहे हो. दिन भर डीवीडी में फिल्मी गीत सुनते रहते हो, गाने गाते रहते हो, यह ठीक बात नहीं है, बेटा. यह तुम्हारे पढ़नेलिखने के दिन हैं.’’

‘‘मैं सोचता हूं पापा, आखिर पढ़लिख कर वैसे ही तो कमाना है. मैं लिटिल चैंप बन कर 5-10 लाख रुपए हर साल कमा कर आप को दे दूंगा. पढ़ाई तो बाद में भी होती रहेगी.’’

करीना ने पिंटू को पुचकारते हुए कहा, ‘‘बेटा, जब तू लिटिल चैंप के स्टेज पर झूमझूम कर गाएगा तब मुझे भी मंच पर बुलाएगा न?’’ यह कह रोमांचित हो करीना ताली बजाने लगी.

मुझे लगा, करीना व मेरे बीच पिंटू के भविष्य को ले कर घमासान अब हुआ तब हुआ. करीना हवा में उड़ने लगी. भोली करीना को मालूम नहीं कि एक अरब से अधिक की जनसंख्या वाले देश में गायक बनना इतना आसान नहीं है. संगीत के सुरताल को समझने में, उस्ताद के पास रियाज करने में सालों निकल जाएंगे फिर भी गारंटी नहीं होगी कि पिंटू इस स्पर्द्धा में टिका रहेगा. ऐसे में पिंटू न घर का रहेगा न घाट का.

मैं जानता हूं, करीना को समझाना इतना आसान नहीं है. एक बार रेत में से तेल निकाला जा सकता है मगर जिद्दी करीना को उस के भ्रमजाल से निकालना आसान नहीं.

मैं ने अपना आखिरी दांव खेलते हुए कहा, ‘‘करी, पहले पिंटू को शिक्षा पूरी कर लेने देते हैं फिर बड़ा होने पर उसे जो बनना है वह बने. मुझे भी पिंटू के उज्ज्वल भविष्य की चिंता है. टीवी कार्यक्रम प्रस्तुत करने के लिए जबर्दस्त आत्मविश्वास, साधना, श्रम व धैर्य की जरूरत पड़ती है. गायक बनने के लिए अच्छा गला भी होना चाहिए, जो अपने पिंटू का नहीं है.’’

‘‘पिंटू मेरा बेटा है जी,’’ करीना बोली, ‘‘बस, उस के मन में एक बार बैठ जाए कि उसे लिटिल चैंप बनना है, वह बन जाएगा. गले का क्या है. कालीमिर्च, तुलसी, मुलेठी, अदरक तो गले के लिए वरदान हैं जी. 2 दिन में ही उस की आवाज सुरीली हो जाएगी देखना… बस, अब मैं नहीं जानती और न कुछ सुनना चाहती हूं.’’

करीना रूठ कर कोप भवन में चली गई. जब नारी बेडरूम में जाती है तब वहां किसी घमासान की आधारशिला रखी जाती है, जिस से मजबूत से मजबूत गृहस्थी की ईंटें हिलने लगती हैं. मैं डर रहा हूं कि पिंटू के कैरियर को ले कर हमारे घर के घमासान के आडियो की जगह वीडियो से पड़ोसी मुफ्त का आनंद न लेने लगें.

मैं देख रहा था, पिंटू टीवी पर लिटिल चैंप का प्रोग्राम फुल वाल्यूम के साथ देख कर मजे ले रहा है. करीना खुश हो कर कह रही है, ‘‘जीयो मेरे लिटिल चैंप.’’

मैं लिटिल चैंप की दीवानी करीना को कैसे समझाऊं कि पिंटू को कितने एस.एम.एस. मिलेंगे. मेरे लिए एस.एम.एस. का अर्थ तो सुरीला महासंग्राम होता है.

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