‘छुट्टा सांड’ एक पुरानी कहावत है. इस कहावत का अर्थ यह है कि जो नियमकानून के दायरे से बाहर हो, वह छुट्टा सांड है. वैसे देखा जाए तो सांड हमेशा छुट्टा ही रहता रहा है. उस को छुट्टा छोड़ा जाता था. कई बार इस को चरित्र के लिहाज से नहीं माना जाता. दुश्चरित्र पुरुषों के लिए भी छुट्टा सांड शब्द का प्रयोग किया जाता है. छुट्टा सांड के आसपास ‘आवारा’ शब्द की गणना भी होती है. अगर देखें तो छुट्टा सांड को छुट्टा सांड या आवारा पशु कहना अब अच्छी बात नहीं है.

छुट्टा सांड भले ही अपने व्यवहार को न बदल रहा हो पर अब उसे छुट्टा सांड नहीं कहा जा सकता. कारण यह है कि सांड को यह शब्द संसदीय नहीं लगता है. सांड को उत्तर प्रदेश में यह सही नहीं लगता है. ऐसे में इस वर्ग की मांग है कि उन को छुट्टा सांड या आवारा पशु नहीं घुमंतू जानवर कहा जाए.

छुट्टा सांड अब यह भी नहीं चाहता कि उस के खिलाफ किसी भी तरह का आपराधिक मुकदमा थाने या कचहरी में चले. पहले छुट्टा सांड गांव में घूमा करते थे. अब ये भी गांव को छोड़ कर शहरों में बसने आ गए हैं. गांव की रूखीसूखी घास की जगह पर अब इन को शहर की चटपटी, मसालेदार चीजें पसंद आने लगी हैं. गांव में इन को मिट्टीभरे रास्ते और जगहों में चलनाबैठना पड़ता है. शहर की पक्की सड़कें, चमचमाती गलियां और रोशनीभरे माहौल छुट्टा सांड को पसंद आने लगे हैं. गांव में आताजाता कोई भी आदमी बिना बात के 2 लाठी मार कर भगा देता था. शहर में किसी को मारने, गाड़ी में टक्कर मार गिरा देने और यहां तक कि जान लेने के बाद भी ‘छुट्टा सांड’ छुट्टा ही रहते हैं.

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