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ईशा देओल के घर आने वाला हैं नन्हा मेहमान

बौलीवुड एक्ट्रेस ईशा देओल जल्द ही दूसरी बार मां बनने वाली है. ईशा के दोस्तों ने उनके पति भरत तख्तानी के साथ मिलकर उनका बेबी शौवर किया. इस दौरान ईशा ने सभी के साथ जमकर मस्ती भी की. तो चलिए दिखाते हैं तस्वीर.

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ईशा के बेबी शावर की रस्मों को टेरिस पर निभाया गया. इस दौरान उनके दोस्तों ने तो जमकर धमाल मचाया.

सेटर्सः विषय के साथ न्याय करने में विफल

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अपने बेबी शौवर के दौरान ईशा ने बहन आहना देओल और अपनी बेस्ट फ्रेंड शैलारना के साथ खूब सारी तस्वीरें खिंचवाई.

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ईशा ने इस दौरान के कई खूबसूरत मूवमेंट्स को कैमरे में कैप्चर कर लिया. ईशा के दोस्तों का रीयूनियन इसी बहाने ईशा के सभी दोस्त काफी लम्बे समय बाद इकठ्ठे हो पाए और सभी एक दूसरे से मिलकर काफी खुश थे.

दया बेन बनी एकता जैन

इसलिए केजरीवाल के साथ नहीं अग्रवाल समाज

यह थप्पड़ भी जानबूझकर सार्वजनिक रूप से मारा इसीलिए गया था कि इसकी गूंज दूर दूर तक सुनाई दे और समझने वाले यह समझ लें कि जो भी अपनी दम पर लोकप्रिय और कामयाब नेता बनेगा. उसे हतोत्साहित करने ऐसा भविष्य में भी किया जाता रहेगा. दिल्ली के मुख्यमंत्री अरविंद केजरीवाल को मारे गए नए थप्पड़ में यह मैसेज भी चस्पा है कि यह सभ्यों और शिक्षितों का नहीं, बल्कि गंवारों और जाहिलों का समाज है. जिसमें लात घूंसे थप्पड़ जूतें और कड़वे बोल बेहद आम हैं और यही हमारी असल संस्कृति है.

अरविंद केजरीवाल अग्रवाल वैश्य समाज से आते हैं जो मूलत व्यापारी हैं. यह समुदाय आमतौर पर शांत स्वभाव का है और बेहद संगठित भी है, सामूहिक उन्नति पर इसका हमेशा ही जोर रहा है. इसमें भी कोई शक नहीं कि शांत होने के चलते इन्हें डरपोक बनिया भी कहा जाता है क्योंकि यह हिंसा से यथासंभव दूर रहने में ही यकीन करते हैं. कहने को अग्रवालों के कई बड़े बड़े राष्ट्रीय संगठन हैं जिनके सम्मेलनों की भव्यता देखते ही बनती है.  लेकिन यह बात समझ से परे है कि सम्पूर्ण वैश्य समाज अरविंद केजरीवाल के अपमान पर खामोश क्यों रहता है जबकि उन्होंने दिल्ली का मुख्यमंत्री बनकर समाज का गौरव बढ़ाया ही हैं.

लोकसभा चुनाव:- “बेहाल कर रही चुनावी ड्यूटी”

दरअसल ये वैश्य या बनिए हमेशा से ही ब्राह्मणों के इशारों पर नाचते रहे हैं जिन्हें पंडितों ने अपने मकड़जाल और पोंगा पंथ में बुरी तरह उलझा रखा है. सियासी तौर पर इन बनियों की गिनती भाजपा समर्थक जाति में होती है और खुले तौर पर वैश्य समुदाय मनुवादी व्यवस्था को मंजूरी देता है. ब्राह्मण बनिया गठजोड़ जो पूरे देश भर में फैला है, एक दूसरे का कारोबार चमकाने का कोई मौका नहीं छोड़ता  .

अरविंद केजरीवाल की किसी भी बेइज्जती पर अग्रवाल समुदाय के आका कभी एतराज जताना तो दूर की बात है कोई नोटिस भी नहीं लेते हैं. ऐसे में ताजे-ताजे थप्पड़ पर आम आदमी पार्टी के पदाधिकारियों का यह आरोप एकदम नजरंदाज भी नहीं किया सकता कि उनके सार्वजनिक अपमान के पीछे हाथ भाजपा का है. खासतौर से उस वक्त जब कुछ ही दिन पहले अरविंद केजरीवाल ने मोदीशाह की जोड़ी को हराने किसी से भी हाथ मिलाने की बात कही थी. इस बात पर गंभिरता पूर्वक सोचा जाना जरूरी है कि क्या ऐसे वक्तव्यों के जवाब में हर बार उन्हें थप्पड़ खाना पड़ेगा और क्या बात कभी थप्पड़ से आगे नहीं बढ़ेगी.

चुनाव प्रचार अब देश भर में हिंदूवाद और गैर हिंदूवाद के बीच सिमट कर रह गया है बाकी सब मुद्दे हवा हो चुके हैं. अरविंद केजरीवाल खुलेतौर पर हिंदूवादी राजनीति के विरोधी हैं जो शायद उन्हीं की जाति के लोगों को भी रास नहीं आ रहा है. कोई भी समाज या जाति कम से कम ज्यादती या गलत बात पर तो अपनों के साथ खड़ा नजर आता है, जो कुछ और दें न दे पर एक, साथ और सुरक्षा का आश्वासन तो होता है.

सांसत में छोटे भाजपा नेता

अग्रवाल समाज अगर निरपेक्ष होता और वर्ण व्यवस्था का पालक पोषक न होता तो उसकी चुप्पी के माने समझ भी आते कि चूंकि वह जातिगत विचारधारा को नहीं मानता इसलिए कोई बात नहीं. लेकिन, अपने ही समाज के एक लोकप्रिय, सफल और स्व निर्मित नेता की बेइज्जती पर वह दोषियों की निंदा करने की भी हिम्मत नहीं जुटा पाता तो उसकी बुझदिली पर तरस आना भी स्व्भाविक बात है. अपने ब्राह्मण आकाओं को खुश रखने या नाराज न करने की शर्त अगर अपने ही समाज के एक होनहार नेता को चुपचाप पिटते देखते रहना है. तो उसे स्वाभिमान का मिथ्या दंभ नहीं भरना चाहिए और न ही अग्रसेन जयंती जैसे पर्वों पर एकता वगैरह का राग समारोहपूर्वक अलापना चाहिए.

रही बात अरविंद केजरीवाल की तो लगता नहीं कि ऐसे थप्पड़ कभी उनका मनोबल गिरा पाएंगे उनसे बेहतर कोई समझ भी नहीं सकता कि देश को खतरा किन लोगों से है. और इनसे कैसे निपटना है. धार्मिक कट्टरता का मुकाबला विकास कार्यों से कर रहे इस नेता को इकलौता अफसोस बस इसी बात का हो सकता है, कि उन्हीं के समाज के लोग थप्पड़ मारने वालों का अप्रत्यक्ष साथ दे रहे हैं.

पालक की भुर्जी रेसिपी

पालक की भुर्जी बनाना काफी आसान है, और यह खाने में बहुत हेल्दी भी है. इसे आप रोटी या परांठे के साथ सर्व कर सकती हैं. आप चाहे तो इस डिश को क्रीम और साबुत लाल मिर्च से गार्निश कर सकती हैं.

सामग्री

पालक (एक बंच)

तेल (आवश्यकतानुसार)

लहसुन का पेस्ट (4 टी स्पून)

घी (1 टेबल स्पून)

अदरक पेस्ट (2 टी स्पून)

टुकड़ों में कटा हुआ (2-3 टमाटर)

जीरा पाउडर (1 टी स्पून)

धनिया पाउडर (1 टी स्पून)

3 बड़ा बटर क्यूबस

2 प्याज टुकड़ों में कटा हुआ

2 टी स्पून लाल मिर्च पाउडर

4-5 हरी मिर्च

हरा धनिया (टुकड़ों में कटा हुआ)

अदरक का पीस ( कटा हुआ)

अचारी बैंगन रेसिपी

बनाने की वि​धि

पालक को काट लें और एक पैन में तेल गर्म करें.

इसमें लहसुन का पेस्ट, पालक और नमक डालकर कुछ देर पकाएं.

एक पैन में देसी घी गर्म करें और  इसमें लहसुन का पेस्ट, अदरक का पेस्ट डालकर भूनें.

एक बार जब लहसुन ब्राउन हो जाए तो इसमें टमाटर, जीरा पाउडर और धनिया पाउडर डालें और इसे थोड़ी देर पकाएं.

एक पैन में मक्खन डालें, इसमें कटा हुआ प्याज डालकर भूनें.

अब इसमें पालक, टमाटर पेस्ट, नमक, लाल मिर्च पाउडर, पनीर, हरी मिर्च और हरा धनिया डालें.

पालक भुर्जी को थोड़ी देर पकाएं और बारीक कटी हुई अदरक से इसे गार्निश करें और गर्मागर्म सर्व करें.

ग्रीन सैलेड विद फेटा

कजरारी आंखों के लिए ऐसे करें मेकअप

चेहरे की खूबसूरती बरकरार रखने के लिए हम तमाम तरह के ब्यूटी प्रौडक्ट का इस्तेमाल करते हैं, ताकि हमारा चेहरा सुंदर दिखे. लेकिन चेहरे की खूबसूरती के साथ-साथ आंखों का भी खूबसूरत होना बहुत जरूरी है. आंखें हमारे चेहरे का वो हिस्सा हैं जिससे हमारी खूबसूरती और निखर जाती है. ऐसे बहुत सी लड़कियां हैं जो आंखों को आकर्षित दिखाने के लिए ज्यादातर काजल, लाइनर का इस्तेमाल करती हैं. लेकिन क्या आपने सोचा हैं,  कि बिना काजल और लाइनर के भी आंखें खूबसूरत और आकर्षित दिख सकती हैं.

काजल और लाइनर लगाने वक़्त कई बार काजल मोटा लग जाता, लाइनर बिगड़ जाता है, फैल जाता है. ऐसे में बार बार आंखों को क्लीन करना पड़ता है जिससे आंखें लाल और काली नजर आने लगती है. कई बार काजल न लगाने पर आंखें कुछ अजीब दिखने लगती है. ऐसे में मजबूरन काजल लगाना ही पड़ता है. लेकिन अब आप बिना काजल और लाइनर के इस्तेमाल के भी आंखें सुंदर और आकर्षित दिखा सकती हैं.

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काजल और लाइनर के अलावा भी कुछ ऐसे ब्यूटी प्रौडक्ट है जिनके इस्तेमाल से आपको काजल और लाइनर की जरूरत नहीं पड़ेगी.

वैसलीन

सर्दियों में रूखी त्वचा से छुटकारा पाने के लिए हम सब वैसलीन का प्रयोग करते हैं. वैसलीन के अनेक गुण हैं. जलने-कटने पर दवा के रूप में इस्तेमाल होने वाला यह पेट्रोलियम जैली सौंदर्य को निखारने में भी मदद करता है.

आंखों को आकर्षित बनाने के लिए भी आप वैसलीन का इस्तेमाल कर सकती है. कई बार ऐसा होता है कि काजल या लाइनर लगाने का मन नहीं करता ऐसे में आप वैसलीन को आंखों के ऊपर लगा सकती हैं यह एक वैट मेकअप लुक देगा, जिससे आपकी आंखें सुंदर और आकर्षित नजर आएंगी.

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हाइलाइटर

हाइलाइटर एक ऐसा ब्यूटी प्रौडक्ट है जिसके इस्तेमाल से चेहरे की खूबसूरती दोगुना बढ़ जाती हैं.हाइलाइटर आपके चेहरे की बनावट को हाइलाइट करता है जिससे आपके चेहरे के बोन्स को सही शेप मिल जाती है. हाइलाइटर को आप आंखों पर भी लगा सकती हैं.यदि आपकी आंखें छोटी हैं तो आप आंखों के इनर कौर्नर में शिमर हाइ लाइटकरें, इससे आपकी आंखें सुंदर, आकर्षित और बड़ी नजर आएगी.

मसकारा

आंखों को सुंदर बनाने के लिए हम काजल, लाइनर, आई शैडो आदि का प्रयोग करते है. लेकिन इनके अलावा एक और ब्यूटी प्रौडक्ट है जिससे आंखें बेहद खूबसूरत दिख सकती हैं. जब कभी आपका काजल लगाने का मन न करें तो आप सिर्फ मसकारे से ही आंखों को खूबसूरत बना सकती हैं.

मसकारा को नीचे और ऊपर दोनों पलकों पर अप्लाई करें. इससे आंखें बड़ी और सुंदर दिखेंगी. मसकारा लगाते समय पलकोंपर डबल कोटिंग लगाएं. इससे पलकें घनी और सुंदर नजर आएंगी.

न्यूड आई शैडो

न्यूड मेकअप के चलन में आंखों को भी न्यूड लुक देना जरूरी है. आंखों को न्यूड लुक देने के लिए शिमर आईशैडो का बिलकुल भी इस्तेमाल न करें. हमेशा मेट आईशैडो ही लगाएं.

न्यूड लुक के लिए ब्राउन या पीच आईशैडो का इस्तेमाल करें. आईशैडो का इस्तेमाल आयलिड और वाटरलाइन दोनों पर करें.

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फाउंडेशन और कंसीलर

फाउंडेशन और कंसीलर भी आंखों को एक बेहतर लुक दे सकती हैं. देर रात जागने, ज्यादा टेंशन लेने से आंखों के नीचे डार्कसर्कल जैसी प्रौबलम हो ही जाती है. ऐसे में बहुत सी

महिलाएं काजल को अवाइड करती हैं क्योंकि काजल लगाने से डार्कसर्कल और डार्क नजर आने लगता है. ऐसे में आप एक क्लीन लुक के लिए फाउंडेशन और कंसीलर का यूज कर सकती हैं. आयलेड पर फाउंडेशन लगाएं और आंखों के नीचे कंसीलर का इस्तेमाल करें. इससे आपकी आंखें सुंदर और बेदाग नजर आएंगी.

posted by-Saloni

बाप बड़ा न भैया…

उस दिन डाक में एक सुनहरे, रुपहले,  खूबसूरत कार्ड को देख कर उत्सुकता हुई. झट खोला, सरसरी निगाहों से देखा. यज्ञोपवीत का कार्ड था. भेजने वाले का नाम पढ़ते ही एक झनझनाहट सी हुई पूरे शरीर में.

ऐसी बात नहीं थी कि पुनदेव का नाम पढ़ कर मुझे कोई दुख हुआ, बल्कि सच तो यह था कि मुझे उस व्यवस्था पर, उस सामाजिक परिवेश पर रोना आया.

पुनदेव का तकिया कलाम था ‘दरबे से सरबा जे चहबे से करबा’ तब मुझे उस की यह स्वरचित पंक्तियां बेवकूफी भरी लगती थीं पर अब उस कार्ड को देख कर लग रहा था, शायद वही सही सोचता था और हमारी इस व्यवस्था को बेहतर जानता था.

कार्ड को फिर पढ़ा. लिखा था, ‘‘डाक्टर पुनदेव (एम.ए. पीएच.डी.) प्राचार्य, रामयश महाविद्यालय, हीरापुर, आप को सपरिवार निमंत्रित करते हैं, अपने तृतीय पुत्र के यज्ञोपवीत संस्कार के अवसर पर…’’

मेरी आंखें कार्ड पर थीं, पर मन बरसों पीछे दौड़ रहा था.

पुनदेव 5वीं बार 10वीं कक्षा में फेल हो गया था. उस के परिवार में अब तक किसी ने 7वीं पास नहीं की थी, पुनदेव क्या खा कर 10वीं करता. सारे गांव में जंगल की आग की तरह यही चर्चा फैली हुई थी. जिस केजो जी में आता, कहता और आगे बढ़ जाता.

एक वाचाल किस्मके अधेड़ व्यक्ति ने व्यंग्य कसते हुए कहा, ‘लक्ष्मी उल्लू की सवारी करेगी. पुनदेव के खानदान में सभी लोग उल्लू हैं.’

पर रामयश (पुनदेव के पिता) उन लोगों में से थे जो यह मान कर चलते थे कि इस दुनिया में लक्ष्मी की कृपा से सब काला सफेद हो सकता है. वह काले को सफेद करने की उधेड़बुन में लगे थे.

तब तक उन के दरबारी आ गए और लगे राग दरबारी अलापने. कोई स्कूल के शिक्षकों को लानत भेजता तो कोई गांव के उन परिवारों को गालियां देने लगता, जो पढ़ेलिखे थे और बकौल दरबारियों के पुनदेव के फेल हो जाने से बेहद प्रसन्न थे. रामयश चतुर सेनापति थे. वह अपने उन चमचों को बखूबी पहचानते थे, पर उस समय उन की बातों का उत्तर देना उन्होंने मुनासिब नहीं समझा.

थोड़ी देर हाजिरी लगा कर वे पालतू मानव अपनीअपनी मांदों में चले गए तो रामयश ने अपने एक खास आदमी को बुलावा भेजा.

विक्रमजी शहर का रहने वाला था. रामयश को बड़ेबड़े सत्ताधारियों तक पहुंचाने वाली सीढ़ी का काम वही करता था. उसे आया देख कर उन्होंने गहन गंभीर आवाज में कहा, ‘विक्रमजी, आप ने तो सुना ही होगा कि पुनदेव इस बार भी फेल हो गया, स्कूल बदलतेबदलते मेरी फजीहत भी हुई और हाथ लगे ढाक के वही तीन पात. पर मैं हार मानने वाले खिलाडि़यों में से नहीं हूं. धरतीआकाश एक कर दीजिए. कर्मकुकर्म कुछ भी कीजिए, पर मेरे कुल पर काला अक्षर भैंस बराबर का जो ठप्पा लगा है, उसे पुनदेव के जरिए दूर कीजिए. इस बार मैं उसे पास देखना चाहता हूं. मैं इन दो टके के मास्टरों के पास गिड़गिड़ाने नहीं जाऊंगा. पता नहीं, ये लोग अपनेआप को जाने क्या समझते हैं.’

विक्रम ने कुछ दिन बाद लौट कर कहा, ‘रामयशजी, सारा बंदोबस्त हो गया. गंगा के उस पार के हाईस्कूल में प्रधानाध्यापक से बात हो गई है. 10 हजार रुपए ले कर वह पुनदेव को पास कराने की गारंटी ले लेगा. पुनदेव को अपने कमरे में बैठा कर परचे हल करा देगा. बस, समझ लीजिए पुनदेव पास हो गया?’

रामयश गद्गद हो गए और कहा,

‘मुझे भी इतनी देर से अक्ल आई, विक्रमजी. पहले आप से कहा होता तो अब तक मेरा बेटा कालिज में होता.’

सचमुच ही पुनदेव पास हो गया. अब यह अलग बात थी कि वह इतने बड़े अश्वमेध के पश्चात दूसरी श्रेणी में ही पास हुआ था. पर जहां लोग एकएक बूंद को तरस रहे हों वहां लोटा भर पानी मिल गया देख रामयश का परिवार फूला न समा रहा था. उस सफलता की खुशी में गांव वालों को कच्चापक्का भोज मिला. रात्रि में नाचगाने की व्यवस्था थी. नाच देखने वालों के लिए बीड़ी, तंबाकू, गांजा, भांग, ताड़ी और देसी दारू तक की मुफ्त व्यवस्था थी. लग रहा था कि रामयश खुशी के मारे बौरा गए हों.

उन की पत्नी भी खुशी के इजहार में अपने पति महोदय से पीछे नहीं थीं. रिश्तेनाते की औरतों को बुला कर तेलसिंदूर दिया. सामूहिक गायन कराया. पंडित को धोतीकुरता, टोपीगंजी और गमछा दे कर 5 रु पए बिवाई फटे पैरों पर चढ़ा कर मस्तक नवाया. बेचारे पंडितजी सोच रहे थे कि यजमानिन का एक बेटा हर साल पास होता रहता तो कपडे़लत्ते की चिंता छूट जाती. नौकरों में अन्नवस्त्र वितरित किए गए.

शहर के सब से अच्छे कालिज में पुनदेव का दाखिला हुआ. छात्रावास में रहना पुनदेव ने जाने किन कारणों से गैरमुनासिब समझा. शुरू में किराए का एक अच्छा सा मकान उस के लिए लिया गया. कालिज जाने के लिए एक नई चमचमाती मोटरसाइकिल पिता की ओर से उपहारस्वरूप मिली. खाना बनाने के लिए एक बूढ़ा रसोइया तथा सफाई और तेल मालिश के लिए एक अलग नौकर रखा गया. कुल मिला कर नजारा ऐसा लगता था जैसे 20 वर्षीय पुनदेव शहर में डाक्टरी या वकालत की प्रैक्टिस करने आया हो.

10वीं कक्षा 6 बार में पास करने वाले पुनदेव के लिए उस की उम्र कुछ मानों में वरदान साबित हुई. कक्षा में पढ़ने वाले कम उम्र के छात्र स्वत: ही उसे अपना बौस मानने लगे. जी खोल कर खर्च करने के लिए उस के पास पैसों की कमी नहीं थी. लिहाजा, कालिज में उस के चमचों की संख्या भी तेजी से बढ़ी. अपने उन साथियों को वह मोटरसाइकिल पर बैठा कर सिनेमा ले जाता, रेस्तरां में उम्दा किस्म का खाना खिलाता. प्रथम वर्ष के पुनदेव के कालिज पहुंचने पर जैसी गहमागहमी होती, वैसी प्राचार्य के आने पर भी नहीं होती.

तिमाही परीक्षा के कुछ रोज पहले पुनदेव ने मुझे बुलाया और बडे़ प्यार से गले लगाता हुआ बोला, ‘यार, तुम तो अपने ही हो, पर परायों की तरह अलगअलग रहते हो. इतना बड़ा मकान है साथ ही रहा करो न. कुछ मेरी भी मदद हो जाएगी पढ़ाईलिखाई में.’

मैं ने कहा, ‘नहीं भाई, मेरे लिए छात्रावास ही ठीक है. तुम नाहक ही इस झमेले में पड़े हो. कालिज की पढ़ाई हंसीठट्ठा नहीं है, कैसे पार लगाओगे?’

पुनदेव ने हंस कर एक धौल मेरी पीठ पर जमाया और कहा, ‘‘दरबे से सरबा जे चहबे से करबा.’’

मैं ने कहा, ‘नहीं भाई, पैसा सब कुछ नहीं है.’

पुनदेव ने एक अर्थपूर्ण मुसकराहट बिखेरी. कुछ देर और इधरउधर की बातें कर के मैं वापस आ गया.

छात्रावास के संरक्षक प्रो. श्याम ने जब मुझे यह सूचना दी कि दर्शन शास्त्र विभागाध्यक्ष प्रो. मनोहर अपनी खूबसूरत, कोमल, सुशील कन्या की शादी पुनदेव से करने जा रहे हैं तो वाकई मुझे दुख हुआ. केवल दुख ही नहीं, क्रोध, घृणा और लज्जा की मिलीजुली अनुभूतियां हुईं. सारा कालिज जानता था कि पुनदेव ‘गजेटियर मैट्रिक’ है. संधि और समास भी कोई उस से पूछ ले तो क्या मजाल वह एक वाक्य बता दे. उस के पास जितने सूट थे, उतने वाक्यों का वह अंगरेजी में अनुवाद भी नहीं जानता था. वैसे उस से अपनी बेटी की शादी कर के प्रो. मनोहर दर्शनशास्त्र के किस सूत्र की व्याख्या कर रहे थे? क्या गुण देखा था उन्होंने? जी चाहा घृणा से थूक दूं उन के नाम पर, जो अपने को ज्ञानी कहते थे, पर उल्लू से हंसिनी की शादी रचाने जा रहे थे.

‘तुम क्या सोचने लगे?’ जब प्रोफेसर श्याम का यह वाक्य कानों में पड़ा तो मेरी तंद्रा भंग हुई.

मैं ने कहा, ‘कुछ नहीं, सर.’

वह हंस कर बोले, ‘‘मैं सब समझता हूं, तुम क्या सोच रहे हो? मैं ने ही नहीं, बहुत प्रोफेसरों ने मना किया, पर मनोहरजी का कहना है, ‘लड़के के पास सबकुछ है, विद्या के सिवा और विद्या केसिवा मेरे पास कुछ नहीं है. सबकुछ का ‘कुछ’ के साथ संयोग सस्ता, सुंदर और टिकाऊ होगा.’ अब तुम बताओ, हम लोग इस में क्या कर सकते हैं…उन की बेटी उन की मरजी.’’

शादी बड़ी धूमधाम से हुई. रामयश हाथ जोड़े, सिर झुकाए प्रो. मनोहर के सामने खड़े थे. विदाई के समय आमतौर पर जैसे कन्या पक्ष विनम्रता और सज्जनता में लिपटा अश्रुपूरित नेत्रों से देखता है, वैसे उस विवाह में वर पक्ष खड़ा था. खड़ा भी क्यों नहीं रहता, जिस घर में किसी ने इस से पूर्व हाईस्कूल नहीं देखा था, यूनिवर्सिटी का प्रोफेसर उस घर का समधी हो गया था. सुभद्रा कुमारी चौहान की कविता में ‘हुई वीरता की वैभव के साथ सगाई झांसी में…’ पढ़ा था. पर विद्या की मूर्खता के साथ शादी पहली बार देख रहा था. प्रो. मनोहर की पत्नी ससुराल से आए बेटी के गहने, कपड़े देखदेख कर मारे हर्ष के पागल सी हो गई थीं.

विवाहोपरांत रामयश ने एक बंगलानुमा मकान खरीद लिया था. पुनदेव अब नए मकान में सपत्नीक रहता था, एकदो और नौकरचाकरों को ले कर. छात्र जीवन का गृहस्थाश्रम के साथ इतना सुंदर समन्वय अन्यत्र कहां देखने को मिलता.

एक रोज प्रो. श्याम की पत्नी को ले कर प्रो. मनोहर की धर्मपत्नी अपने जामाता के घर गईं. बेटी का वैभव देख कर इतनी प्रसन्न हुईं कि बोल पड़ीं, ‘सारी जिंदगी प्रोफेसरी की, पर ऐसा गहनाकपड़ा, इतने नौकरचाकर हम ने सपने में भी नहीं देखे, बड़ा अच्छा रिश्ता खोजा है, नीलम के बाबूजी ने नीलम के लिए.’

छात्रावास में प्रो. श्याम की पत्नी के माध्यम से यह बात सभी लड़कों के लिए एक चुटकुला बन गई थी.

परीक्षा के दिन निकट आते गए. सभी लड़के अपनेअपने कमरों में सिमटते गए, किताबों और प्रश्नोत्तरों की दुनिया में दीनदुनिया से बेखबर, पर पुनदेव की दिनचर्या में कोई परिवर्तन नहीं आया. वह  वैसे ही मस्त था, पान की गिलौरियों और  ठंडाई के गिलासों में. हां, प्रोफेसर का जामाता बनने के बाद उस में एक तबदीली हुई थी.

अब वह उपन्यासों का रसिया हो गया था. मोटरसाइकिल की डिकी हो या तकिया, दोचार उपन्यास जरूर रखे होते. इस शौक के बारे में वह कहता, ‘मेरे ससुरजी कहते हैं कि इस से लिखने की क्षमता बढ़ती है, भाषा सुधरती है और परीक्षा में कम से कम, लिखना तो मुझे ही होगा.’

परीक्षा कक्ष में पुनदेव को देख कर लगा कि शायद वह बीमार हो, इसलिए अनुपस्थित है. पर उस के एक खास चमचे ने परचा खत्म होने पर कहा, ‘यार, पहुंच हो तो पुनदेव की तरह. विभागाध्यक्ष का दामाद है, पलंग पर बैठ कर परीक्षा दे रहा है. नए व्याख्याता उस के लिए प्रश्नोत्तर ले कर बैठते हैं. वह उन्हें अपनी कापी पर केवल उतार देता है. बेशक लोगों की नजरों में बीमार है पर असल में मजे लूट रहा है.’

मैं भौचक्का था इस जानकारी से.

परीक्षा खत्म होने पर सभी इधरउधर चले गए, पर पुनदेव अपने ससुर के साथ पर्यटन करता रहा. यह तो बाद में अन्य प्रोफेसरों से पता चला कि उस की कापियां जिन लोगों के पास गई थीं, वह उन सब की चरण रज लेने और बच्चों के लिए मिठाई देने निक ला था.

परीक्षाफल निकला. मुझे अपने प्रथम श्रेणी में आने की खुशी नहीं हुई, जब मैं ने देखा कि प्रथम श्रेणी में द्वितीय स्थान पुनदेव का था.

उस समय स्नातक और आनर्स की पढ़ाई साथसाथ ही होती थी. हम ने भी स्नातक आनर्स में दाखिला ले लिया और जिंदगी की गाड़ी पहले की तरह ही अपनी रफ्तार से चलती रही. पुनदेव बी.ए में 2 जुड़वां बेटों का बाप बन कर और भी अकड़ गया था. उस ने दर्शनशास्त्र में दाखिला लिया था. अत: विभागाध्यक्ष के दामाद होने का एक लाभ यह भी मिल रहा था कि बाकी छात्रों को उपस्थिति सशरीर बनवानी पड़ती, जबकि उस का काम कक्षा में आए बिना ही चल जाता.

इसी प्रकार पुनदेव को बी.ए. आनर्स में भी जैसतैसे बड़ेबड़े पापड़ बेल कर बस, प्रथम श्रेणी मिल सकी. इस बार उसे कोई स्थान नहीं मिला था. उस की निर्लज्जता मुझे अब भी याद है, जब उस ने प्रथम, द्वितीय और तृतीय स्थान पाने वाले हम तीनों विद्यार्थियों से मुबारकबाद देते हुए कहा था, ‘तुम तीनों को मेरा शुक्रगुजार होना चाहिए कि मैं ने परीक्षकों से कहा, ‘सर, मुझे केवल प्रथम श्रेणी चाहिए, कोई विशिष्टता नहीं क्योंकि जो पढ़ाकू दोस्त हैं, उन की छात्रवृत्ति बंद हो गई तो वे मुझ से नाराज हो जाएंगे.’ और तुम लोगों की नाराजगी मुझे कतई गवारा नहीं.’

गुस्सा तो बहुत आया, पर उस से बात कौन बढ़ाता. गुस्सा पी कर हम चुप रह गए.

पुनदेव ने इधर एम.ए. में दाखिला लिया, उधर रामयश को प्रो. मनोहर की कृपा एवं रामयश के पैसों के कारण विधायक का टिकट मिल गया. चुनाव अभियान में पुनदेव और उस केखास किस्म के साथी दिनरात लगे रहते, पोस्टर छपते, परचे लिखे जाते, दूसरी पार्टी वालों के बैनर रातोंरात नोच दिए जाते, दीवारों पर लिखे चुनाव प्रचार पर कालिख पोत दी जाती. सक्रिय विरोधियों को पिटवा दिया जाता. उन की चुनाव सभाओं में पुनदेव के फेल होने वाले दोस्त हंगामा कर देते. काले झंडे लहराने लगते. ईंटरोड़े बरसाने लगते, भीड़ तितरबितर हो जाती.

मेरा खून खौल जाता. जी चाहता अकेले ही मैदान में कूद पडं़ ू और उस की सारी कलई खोल कर रख दूं, पर मेरे मांबाप ऐसे कामों के विरोधी थे. उन्होंने जबरदस्ती मुझे वापस शहर भेज दिया और कहा, ‘तुम क्या कर लोगे अकेले? वह किसी से वोट मांगता नहीं है. साफ कहता है, ‘आप लोग बूथ पर आने का कष्ट न करें, सारे वोट शांतिपूर्वक खुद ब खुद गिर जाएंगे. आप लोगों के वहां जाने से, जाने क्या हुड़दंग हो जाए. फिर आप लोग यह न कहना कि तुम ने हमें सचेत नहीं किया.’ बेटे, इस जंगलराज में राजनीति को दूर से सलाम करो और अपना काम करो.’

एम.ए. तक आतेआते मुझ में परिपक्वता आ गई थी. मैं सोचता, ‘पुनदेव क्या करेगा ऐसी नकली डिगरी हासिल कर के. वह न बोल सकता है, न तर्क कर सकता है. बात की तह तक जाने की उस की सामर्थ्य ही नहीं है. केवल हल्ला कर सकता है, मारपीट कर सकता है.’

मुझे कभीकभी उस पर दया भी आती, ‘बेचारा पुनदेव, चोरी कर के, चापलूसी कर के पास तो हो गया, पर साक्षात्कार में क्या होगा. खेतीबाड़ी या व्यवसाय ही करना था तो इतने वर्ष स्कूलकालिज में व्यर्थ ही गंवा दिए.’ फिर मन में बैठा चोर फुसफुसाता, ‘उस का बाप विधायक है. उस के लिए हजारों रास्ते हैं, तुम अपनी फिक्र करो.’

अंतिम परचा देने के बाद मैं मोती झील पर अपने दोस्तों के साथ टहल रहा था. प्रो. श्याम थोड़ी देर पूर्व मिले थे और मेरी तथा मेरे अन्य 2 मित्रों की तारीफों के पुल बांध कर अभीअभी विदा हुए थे.

जाने किधर से कार लिए हुए पुनदेव आ गया और बड़ी गर्मजोशी से मिला. इधरउधर की बातें होती रहीं. पुनदेव की परेशानी यह थी कि इस बार कुलपति आई.ए.एस. पदाधिकारी आ गए थे और उन्होंने परीक्षा में ‘जंगलराज’ नहीं चलने दिया था. पुनदेव ने उन पर हर तरह का दबाव डलवा कर देख लिया था. भय दिखा कर, लोभ दे कर भी आजमा लिया था, पर वह टस से मस नहीं हुए थे. प्रो. मनोहर क्या करते, जब कुलपति खुद ही 2-3 बार परीक्षा हाल का चक्कर लगा जाते थे.

जब अपनी सारी परेशानी पुनदेव बयान कर चुका तो जाने क्यों मेरे मन को तसल्ली सी हुई.

‘चलो, कहीं तो तुम्हारा ‘दरबे से सरबा जे चहबे से करबा’ वाला फार्मूला गलत हुआ.’ मैं ने भड़ास निकालते हुए कहा, ‘आगे क्या इरादा है, क्योंकि जैसा तुम बतला रहे हो, उस हिसाब से तुम पास नहीं हो सकोगे. पास हो भी गए तो प्राध्यापक तो बन नहीं पाओगे.’

पुनदेव ने अपनी आंखों में लाखों वाट के बल्ब की रोशनी भर कर एक हथेली से दूसरी को जकड़ते हुए पुन: वही राग अलापा, ‘दरबे से सरबा जे चहबे से करबा.’ तुम देखते रहे हो, मैं एक बार फिर साबित कर दूंगा कि बाप बड़ा न भैया, सब से बड़ा रुपय्या.’

जाने कैसे पुनदेव की खींचखांच कर दूसरी श्रेणी आ गई. मुझे अपनी नौकरी के सिलसिले में इस शहर में आना पड़ा. बरसों बाद एक सहपाठी मोहन मिला तो उस ने बतलाया, ‘मनोहरजी की सलाह पर रामयश ने शहर में एक कालिज खोल दिया है. 20-20 हजार

रुपए दान दे कर पुनदेव किस्म के व्याख्याताओं की नियुक्तियां हुई हैं. उसी में पुनदेव भी लग गया है.’

मैं ने मुंह बना कर कहा, ‘ऐसे कालिज का क्या भविष्य है, मोहन?’

पर अब उस कार्ड को देख कर पता चल रहा था कि पुनदेव के पिता के नाम पर खोला गया वह कालिज विश्व- विद्यालय का अंगीभूत कालिज है और पुनदेव की तरह विद्या का दुश्मन विद्यार्थी उस का प्राचार्य है. पता नहीं, कैसे यह सब संभव हुआ, मैं नहीं जानता. पर उस का रटारटाया वाक्य रहरह कर मेरे कमरे की दीवारों में गूंजने लगा.

मैं दांत पीसता हुआ चीख उठा, ‘नहीं, पुनदेव, नहीं. तुम्हारा दरबे यानी द्रव्य सब कुछ नहीं है, तुम भूल जाते हो कि भौतिक सुखों के अलावा भी मन का एक जगत है, जहां व्यक्ति खुद को, खुद की कसौैटी पर ही खरा या खोटा साबित करता है. तुम्हारा मन तुम्हें धिक्कारता होगा. तुम ज्ञानपिपासु छात्रों से मुंह चुराते होगे. तुम्हें खुद पता होगा कि जिस जिम्मेदारी की कुरसी पर तुम बैठे हो, उस के काबिल तुम न थे, न हो, न होगे. यह सब संयोग था या…याद रखना अवसर या संयोग प्रकृति केशाश्वत नियम नहीं होते, बल्कि अपवाद होते हैं.’

सहसा मेरे कंधे पर स्पर्श सा हुआ और मैं चेतनावस्था में आ गया.

पत्नी ने चाय की प्याली मेरे सामने मेज पर रखते हुए कहा, ‘‘क्या अपवाद होता है?’’

मैं ने कार्ड उस के हाथों में देते हुए कहा, ‘‘14 वर्ष बाद गांव के किसी व्यक्ति ने साग्रह बुलाया है. तुम भी चलना. हजारों किलोमीटर की यात्रा करनी है, तैयारी शुरू कर दो.’’

थोड़ी सी जमीं थोड़ा आसमां

काम की व्यस्तता के चलते रंजन कविता से जितना दूर होता जा रहा था उतनी ही वह राघव के करीब पहुंचती जा रही थी. नईनवेली कविता को तलाश थी प्यार की और राघव को अकेलापन बांटने वाले साथी की. और दोनों ही एकदूसरे के करीब आ गए लेकिन वे कब मर्यादा की सीमारेखा लांघ गए पता ही नहीं चला. कृतिका केशरी द्वारा लिखित जिंदगी की राह चुनती स्त्री की कहानी.

कविता ने ससुराल में कदम रखते ही अपनी सास के पैर छुए तो वह मुसकरा कर बोलीं, ‘‘बेटी, अपने जेठजी के भी पैर छुओ.’’

कविता राघव के पैरों पर झुक गई तो वह अपने स्थान से हटते हुए बोले, ‘‘अरे, बस…बस कविता, हो गया, तुम थक गई होगी. जाओ, आराम करो.’’

राघव को देख कर कविता को याद आ गया कि जब दोनों भाई उसे देखने पहली बार आए थे तो उस ने राघव को ही रंजन समझा था. वह तो उसे बाद में पता चला कि राघव रंजन का बड़ा भाई है और उस की शादी राघव से नहीं रंजन से तय हुई है. कविता की इस गलत- फहमी की एक वजह यह भी थी कि देखने में रंजन अपने बड़े भाई राघव से बड़ा दिखता है. उस के चेहरे पर बड़े भाई से अधिक प्रौढ़ता झलकती है.

ससुराल आने के कुछ दिनों बाद ही कविता को पता चला कि उस के जेठ राघव अब तक कुंआरे हैं और उन के शादी से मना करने पर ही रंजन की शादी की गई है.

एक दिन कविता ने पूछा था, ‘‘रंजन, जेठजी अकेले क्यों हैं? उन्होंने शादी क्यों नहीं की?’’

तब रंजन ने कविता को बताया कि मेरे पिताजी का जब देहांत हुआ तब राघव भैया कालिज की पढ़ाई पूरी कर चुके थे और मैं स्कूल में था. राघव भैया पर अचानक ही घर की सारी जिम्मेदारी आ गई थी. जैसेतैसे उन्हें नौकरी मिली, फिर भैया ने पत्राचार से एम.बी.ए. किया और तरक्की की सीढि़यां चढ़ते ही गए. उन्होंने ही मुझे पढ़ायालिखाया और अपने पैरों पर खड़े होने के काबिल बनाया. जब उन की शादी की उम्र थी तब वह इस परिवार की जरूरतों को पूरा करने में व्यस्त थे और जब उन्हें शादी का खयाल आया तो रिश्ते आने बंद हो चुके थे. बस, फिर उन्होंने शादी का इरादा ही छोड़ दिया. कविता राघव भैया के सम्मान को कभी ठेस न पहुंचाना.’’

यह सब जानने के बाद तो कविता के मन में राघव के लिए आदर के भाव आ गए थे.

एक दिन कविता राघव को चाय देने गई तो देखा कि वह कोई पेंटिंग बना रहे हैं. कविता ने पूछा, ‘‘भैया, आप पेंटिंग भी करते हैं?’’

राघव ने हंस कर कहा, ‘‘हां, इनसान के पास ऐसा तो कुछ होना चाहिए जो वह सिर्फ अपनी संतुष्टि के लिए करता हो. बैठो, तुम्हारा पोटे्रट बना दूं, फिर बताना मैं कैसी पेंटिंग करता हूं.’’

कविता बैठ गई, फिर अपने बालों पर हाथ फिराते हुए बोली, ‘‘क्या आप किसी की भी पेंटिंग बना सकते हैं?’’

राघव ने एक पल को उसे देखा और कहा, ‘‘कविता, हिलो मत…’’

उन की बात सुन कर कविता बुत बन गई. उसे खामोश देख कर राघव ने पूछा, ‘‘कविता, तुम चुप क्यों हो गईं?’’

कविता ने ठुनकते हुए कहा, ‘‘आप ने ही तो मुझे चुपचाप बैठने को कहा है.’’

राघव ने जोरदार ठहाका लगाया तो कविता बोली, ‘‘जानते हैं, कभीकभी मेरा भी मन करता है कि मैं फिर से डांस करना और लिखना शुरू कर दूं.’’

राघव ने आश्चर्य से कहा, ‘‘अच्छा, तो तुम डांसर होने के साथसाथ कवि भी हो. अच्छा बताओ क्या लिखती हो?’’

‘‘कविता.’’

राघव ने मुसकरा कर कहा, ‘‘मैं ने तुम्हारा नाम नहीं पूछा.’’

‘‘मैं ने भी अपना नाम नहीं बताया है, बल्कि आप को यह बता रही हूं कि मैं कविता लिखती हूं.’’

राघव ने कहा, ‘‘कुछ मुझे भी सुनाओ, क्या लिखा है तुम ने.’’

कविता ने सकुचाते हुए अपनी एक कविता राघव को सुनाई और प्रतिक्रिया जानने के लिए उन की ओर देखने लगी, तो वह बोले, ‘‘कविता, तुम्हारी यह कविता तो बहुत ही अच्छी है.’’

कविता ने खुश होते हुए कहा, ‘‘आप को सच में अच्छी लगी?’’ फिर अचानक ही उदास हो कर वह बोली, ‘‘पर रंजन को तो यह बिलकुल पसंद नहीं आई थी. वह तो इसे बकवास कह रहे थे.’’

राघव कविता के सिर पर स्नेह से हाथ फिराते हुए बोले, ‘‘वह तो पागल है, तुम उस की बात पर ध्यान मत दिया करो और मैं तो कहूंगा कि तुम लिखो.’’

रात को कविता ने रंजन से कहा, ‘‘तुम मेरी कविताओं का मजाक बनाते थे न, पर जेठजी को तो बहुत पसंद आईं, देखो, उन्होंने मेरा कितना सुंदर स्केच बनाया है.’’

रंजन ने बिना स्केच की ओर देखे, फाइलें पलटते हुए कहा, ‘‘अच्छा है.’’

कविता नाराज होते हुए बोली, ‘‘तुम्हें तो कला की कोई कद्र ही नहीं है.’’

रंजन हंस कर बोला, ‘‘तुम और भैया ही खेलो यह कला और साहित्य का खेल, मुझे मत घसीटो इस सब में.’’

रंजन की बातों से कविता की आंखों में आंसू आ गए तो वह चुपचाप जा कर लेट गई. थोड़ी देर बाद कविता के गाल और होंठ चूमते हुए रंजन बोला, ‘‘तुम्हारी कविता…और वह स्केच…दोनों ही सुंदर हैं,’’ इतना कहतेकहते उस ने कविता को अपने आगोश में ले लिया.

अगले दिन रंजन आफिस से जाते समय कविता से बोला, ‘‘सुनो, बहुत दिनों से हम कहीं घूमने नहीं गए, आज शाम को तुम तैयार रहना, फिल्म देखने चलेंगे.’’

पति की यह बात सुन कर कविता खुश हो गई और वह पूरे दिन उत्साहित रही, फिर शाम 5 बजे से ही तैयार हो कर वह रंजन का इंतजार करने लगी.

राघव ने उसे गौर से देखा, धानी रंग की साड़ी में कविता सचमुच बहुत सुंदर लग रही थी. वह पूछ बैठे, ‘‘क्या बात है कविता, आज कहीं जाना है क्या?’’

कविता मुसकरा कर बोली, ‘‘आज रंजन फिल्म दिखाने ले जाने वाले हैं.’’

धीरेधीरे घड़ी ने 6 फिर 7 और फिर 8 बजा दिए, पर रंजन नहीं आया. कविता इंतजार करकर के थक चुकी थी. राघव ने देखा कि कविता अनमनी सी खड़ी है, तो पल भर में उन की समझ में सारा माजरा आ गया. उन्हें रंजन पर बहुत गुस्सा आया. फिर भी वह हंस कर बोले, ‘‘कोई बात नहीं कविता, चलो, आज हम दोनों आइसक्रीम खाने चलते हैं.’’

कविता ने भी बेहिचक बच्चों की तरह मुसकरा कर हामी भर दी.

राघव ने चलतेचलते कविता से कहा, ‘‘तुम रंजन की बातों का बुरा मत माना करो, वह जो कुछ कर रहा है, सब तुम्हारे लिए ही तो कर रहा है.’’

कविता व्यंग्य से बोली, ‘‘वह जो कर रहे हैं मेरे लिए कर रहे हैं? पर मेरे लिए तो न उन के पास समय है न मेरी परवा ही करते हैं. अगर मैं ही न रही तो उन का यह किया किस काम आएगा?’’

कविता के इस सवाल का राघव ने कोई जवाब नहीं दिया. शायद वह जानते थे कि कविता सही ही कह रही है.

वे दोनों आइसक्रीम खा रहे थे कि एक भिखारी उन के पास आ कर बोला, ‘‘2 दिन से भूखा हूं, कुछ दे दो बाबा.’’

राघव ने जेब से 10 रुपए निकाल कर उसे दे दिए.

वह आशीर्वाद देता हुआ बोला, ‘‘आप दोनों की जोड़ी सलामत रहे.’’

कविता ने एक पल को राघव की ओर देखा और अपनी नजरें झुका लीं.

दोनों घर पहुंचे तो देखा कि रंजन आ चुका था. कविता को देखते ही रंजन भड़क कर बोला, ‘‘कहां चली गई थीं तुम? कितनी देर से तुम्हारा इंतजार कर रहा हूं, अब जल्दी चलो.’’

कविता ने भी बिफर कर कहा, ‘‘मुझे पूरी फिल्म देखनी थी, उस का अंत नहीं. मैं बहुत थक गई हूं, अब मुझे कहीं नहीं जाना है.’’

रंजन की आंखें क्रोध से दहक उठीं, ‘‘क्या मतलब है इस का? नहीं जाना था तो पहले बतातीं, मैं अपना सारा काम छोड़ कर तो नहीं आता…’’

कविता की आंखों में आंसू छलक आए, ‘‘काम, काम और बस काम…मेरे लिए कभी समय होगा तुम्हारे पास या नहीं? मैं 5 बजे से इंतजार कर रही हूं तुम्हारा, वह कुछ नहीं…तुम्हें 5 मिनट मेरा इंतजार करना पड़ा तो भड़क उठे?’’

गुस्से से पैर पटकते हुए रंजन बोला, ‘‘तुम्हारी तरह मेरे पास फुरसत नहीं है और फिर यह सब मैं तुम्हारे लिए नहीं तो किस के लिए करता हूं?’’

कविता ने शांत स्वर में कहा, ‘‘मैं तुम से बस, तुम्हारा थोड़ा सा समय मांगती हूं, वही दे दो तो बहुत है, और कुछ नहीं चाहिए मुझे,’’ इतना कह कर कविता अपने कपड़े बदल कर लेट गई.

राघव ने उन दोनों की बातें सुन ली थीं, उन्हें लगा कि दोनों को अकेले में एकदूसरे के साथ समय बिताना बहुत जरूरी है,  अगले दिन शाम को जब राघव आफिस से आए तो बोले, ‘‘मां, मैं आफिस के काम से 15 दिन के लिए बनारस जा रहा हूं, तुम भी चलो मेरे साथ, रास्ते में तुम्हें मौसी के पास इलाहाबाद छोड़ दूंगा और लौटते हुए साथ ही वापस आ जाएंगे.’’

राघव की बात पर मां तैयार हो गईं. कविता ने जब यह सुना तो एक पल को वह उदास हो गई. वह मां से बोली, ‘‘मैं  अकेली पड़ जाऊंगी मां, आप मत जाओ.’’

मां ने कविता को समझाते हुए कहा, ‘‘रंजन तो है न तेरा खयाल रखने के लिए, अब कुछ दिन तुम दोनों एकदूसरे के साथ बिताओ.’’

अगले दिन राघव और मां चले गए. रंजन आफिस जाने लगा तो कविता अपने होंठों पर मुसकान ला कर बोली, ‘‘आप आज आफिस मत जाओ न, कितने दिन हो गए, हम ने साथ बैठ कर समय नहीं बिताया है.’’

रंजन बोला, ‘‘नहीं, कविता, आज आफिस जाना बहुत जरूरी है, पर मैं शाम को जल्दी आ जाऊंगा, फिर हम कहीं बाहर खाना खाने चलेंगे.’’

शाम के नारंगी रंग, स्याह रंग ले चुके थे. आकाश में तारों का झुरमुट झिलमिलाने लगा था, पर रंजन नहीं आया. अकेली बैठी कविता फोन की ओर देख रही थी. तभी फोन की घंटी बजी, ‘‘हैलो, कविता, राघव बोल रहा हूं, कैसी हो? और रंजन कहां है?’’

‘‘वह तो अब तक आफिस से नहीं लौटे.’’

‘‘चलो, आता ही होगा, तुम अपना और रंजन का खयाल रखना.’’

‘‘जी,’’ कहते हुए कविता ने फोन रख दिया.

न चाहते हुए भी कविता दोनों भाइयों की तुलना कर बैठी, कितना फर्क है दोनों में. एक नदी सा शांत तो दूसरा सागर सा गरजता हुआ. मेरी शादी रंजन से नहीं राघव से हुई होती तो…वह चौंक पड़ी, यह कैसा अजीब विचार आ गया उस के मन में और क्यों?

तभी रंजन घर में दाखिल हुआ. कविता ने घड़ी की ओर देखा तो रात के 10 बज चुके थे.

‘‘कविता, मुझे खाना दे दो, मैं बहुत थक गया हूं, सोना चाहता हूं.’’

कविता ने चौंक कर कहा, ‘‘मैं ने तो खाना बनाया ही नहीं.’’

‘‘क्यों…’’ रंजन ने पूछा.

‘‘तुम्हीं तो कह कर गए थे न कि खाना मत बनाना, कहीं बाहर चलेंगे.’’

‘‘ओह, मुझे तो इस का ध्यान ही नहीं रहा…आज तो मैं इतना थका हूं कि कहीं जाना नहीं हो सकता. चलो, तुम जल्दी से मेरे लिए कुछ बना दो,’’ इतना कह कर रंजन कमरे की ओर बढ़ गया और कविता अपना होंठ काट कर रसोई में चली गई.

एक सप्ताह में ही कविता अकेलेपन से घबरा उठी. रंजन रोज घर से जल्दी जाता और बहुत देर से वापस आता. कभी थकान से चूर हो कर सो जाता तो कभी अपने शरीर की जरूरत पूरी कर के. जब यह सब कविता के लिए असहाय हो जाता तो वह अनायास ही राघव की यादों में खो जाती. राघव ने उस से कहा था कि जब बहुत परेशान हो और किसी काम में मन न लगे तो वह करो जो तुम्हें सब से अच्छा लगता हो, यह तुम्हें मन और तन की सारी परेशानियों से मुक्त कर देगा. वह यही करती और सारीसारी शाम नाचते हुए बिता देती थी.

एक शाम रंजन को जल्दी घर आया देख कविता खुशी से चहक कर बोली, ‘‘अरे, आज तुम इतनी जल्दी कैसे आ गए? क्या मेरे बिना मन नहीं लग रहा था?’’

रंजन ने हंस कर कहा, ‘‘ज्यादा खुश मत हो और जल्दी से मेरा सामान पैक कर दो, आफिस के काम से मुझे आज शाम क ो ही दिल्ली जाना है.’’

कविता मायूस हो कर बोली, ‘‘रंजन, तुम भूल गए क्या, कल हमारी शादी की सालगिरह है.’’

रंजन अपने सिर पर हाथ मारते हुए बोला, ‘‘ओह…मैं तो भूल ही गया था, कोई बात नहीं, मेरे वापस आने पर हम सालगिरह मना लेंगे.’’

कविता ने पति को मनाते हुए कहा, ‘‘आप प्लीज, मत जाओ, मैं घर में अकेली कैसे रहूंगी?’’

रंजन ने झल्लाते हुए कहा, ‘‘तुम कोई छोटी सी बच्ची नहीं हो, जो अकेली नहीं रह सकतीं, मेरा जाना जरूरी है.’’

रंजन को जाना था सो वह चला गया. कविता अपनी उम्मीदों और सपनों के साथ अकेली रह गई. सालगिरह के दिन राघव ने फोन किया तो कविता की बुझी आवाज को भांपते हुए उन्होंने पूछा, ‘‘क्या हुआ, कविता, तुम उदास हो? रंजन कहां है?’’

राघव की बातें सुन कर कविता बोली, ‘‘वह आफिस के काम से दिल्ली गए हैं.’’

कविता को धैर्य बंधाते हुए राघव ने कहा, ‘‘तुम परेशान मत हो, मैं और मां कल ही वापस आ रहे हैं.’’

अगली शाम ही राघव और मां को घर के दरवाजे पर देख कविता खिल उठी. सामान रखते हुए राघव बोले, ‘‘कैसी हो कविता?’’ तो कविता ने उन के जाने के बाद रंजन से हुई सारी बातें बता दीं. राघव एक लंबी सांस ले कर बोले, ‘‘मैं तो यहां से यह सोच कर गया था कि इस तरह तुम दोनों को करीब आने का मौका मिलेगा, पर यहां तो सारा मामला ही उलटा दिखता है.’’

कविता ने चौंक कर कहा, ‘‘इस का मतलब आप बिना कारण यहां से गए थे? अब आप मुझे अकेला छोड़ कर कभी मत जाना. आप के होने से मुझे यह एहसास तो रहता है कि कोई तो है, जिस से मैं अपनी बात कह सकती हूं.’’

‘‘अच्छा बाबा, नहीं जाऊं गा.’’

कविता ने हंस कर कहा, ‘‘पर इस बार जाने की सजा मिलेगी आप को.’’

‘‘वह क्या?’’

‘‘आज आप को हमें आइसक्रीम खिलानी होगी.’’

उस शाम बहुत अरसे बाद कविता खुल कर हंसी थी. वह अपने को बहुत हलका महसूस कर रही थी. दोचार दिन में रंजन भी वापस आ गया. आते ही उस ने कविता को मनाने के लिए एक शानदार पार्टी दी. अब वह कविता को भी वक्त देने लगा था. कविता को लगा मानो अचानक सारे काले बादल कहीं खो गए और कुनकुनी धूप खिल आई हो.

तभी एक शाम आफिस से आते ही रंजन ने कहा, ‘‘कविता, मेरा सामान पैक कर दो. मुझे आफिस के काम से लंदन जाना है.’’

कविता ने खुश हो कर पूछा, ‘‘अरे, वाह, कितने दिन के लिए?’’

रंजन नजरें झुका कर बोला, ‘‘6 माह के लिए.’’

कविता के साथ राघव और मां भी अवाक् रह गए.

मां ने रंजन से कहा भी कि 6 माह बहुत होते हैं बेटा, कविता को इस वक्त तेरी जरूरत है और तू जाने की बात कर रहा है, ऐसा कर, इसे भी साथ ले जा.

रंजन ने झल्ला कर कहा, ‘‘ओह मां, मैं वहां घूमने नहीं जा रहा हूं, कविता वहां क्या करेगी? और फिर 6 माह कैसे बीत गए पता भी नहीं चलेगा.’’

कविता कमरे में जा कर शांत स्वर में बोली, ‘‘रंजन, प्लीज मत जाओ. इस वक्त मुझे तुम्हारी बहुत जरूरत है.’’

‘‘क्यों, इस वक्त में क्या खास है?’’

कविता ने सकुचाते हुए कहा, ‘‘मैं तुम्हारे बच्चे की मां बनने वाली हूं.’’

रंजन चौंक कर बोला, ‘‘क्या… इतनी जल्दी…’’ फिर कुछ पल खामोश रह कर उस ने कहा, ‘‘सौरी कविता, इस के लिए मैं तैयार नहीं था, लेकिन अब किया क्या जा सकता है.’’

कविता रंजन के सीने पर अपना सिर टिकाती हुई बोली, ‘‘तभी तो कह रही हूं कि मुझे छोड़ कर मत जाओ.’’

रंजन ने उसे अपने से अलग किया और फिर बोला, ‘‘तुम अकेली कहां हो कविता, यहां तुम्हारा ध्यान रखने को मां हैं, भैया हैं.’’

कविता ने चिढ़ते हुए कहा, ‘‘तुम क्यों नहीं समझते कि औरत का घर परिवार उस के पति से होता है, वही न हो तो क्या घर, क्या घर वाले? तुम्हारी कमी कोई पूरी नहीं कर सकता, रंजन.’’

‘‘तुम्हारे साथ बिताने को तो सारी उम्र पड़ी है, कविता,’’ रंजन बोला, ‘‘पर विदेश जाने का यह मौका फिर नहीं आएगा.’’

इस के बाद कविता कठपुतली की तरह रंजन का सारा काम करती रही, पर उस से एक बार भी रुकने को नहीं कहा. रंजन को एअरपोर्ट छोड़ने भी राघव अकेले ही गए थे. रंजन के जाने के बाद कविता सारा दिन काम करती और खुश रहने का दिखावा करती पर उस की आंखों की उदासी को भांप कर राघव उस से कहते, ‘‘कविता, तुम मां बनने वाली हो, ऐसे समय में तो तुम्हें सदा खुश रहना चाहिए. तुम उदास रहोगी तो बच्चे की सेहत पर इस का असर पड़ेगा.’’

जवाब में कविता हंस कर कहती, ‘‘खुश तो हूं, आप नाहक मेरे लिए परेशान रहते हैं.’’

मां और राघव भरसक कोशिश करते कि कविता को खुश रखें, पर रंजन की कमी को वे पूरा नहीं कर सकते थे. राघव कविता के मुंह से निकली हर इच्छा को तुरंत पूरी करते. इस तरह कविता को खुश रखने की कोशिश में वह कब उस को चाहने लगे, उन्हें खुद पता नहीं चला.

अपने ही छोटे भाई की पत्नी के प्रति मन में पनपते अनुराग ने उन्हें एक अपराधभाव से भर दिया. वह चाह कर भी इस समय कविता से दूर नहीं जा सकते थे. लेकिन मन ही मन राघव ने निर्णय कर लिया था कि रंजन के आते ही वह उन दोनों के जीवन से कहीं दूर चले जाएंगे.

अचानक एक शाम काम करतेकरते कविता आंगन में फिसल कर गिर गई. राघव तुरंत उसे ले कर अस्पताल भागे पर तब तक बहुत देर हो चुकी थी और कविता अपने बच्चे को खो चुकी थी. राघव ने जब रंजन को इस बारे में बता कर उसे लौट आने को कहा तो रंजन बोला, ‘‘भैया, जो होना था सो हो गया. इस वक्त तो मेरा आ पाना संभव नहीं, पर जल्दी आने की कोशिश करूंगा.’’

इस घटना के बाद तो कविता एकदम ही गुमसुम रहने लगी थी. इस दौरान राघव ने अपने दफ्तर से छुट्टी ले कर एक छोटे बच्चे की तरह कविता की देखभाल की.

कविता को यों मन ही मन घुटते देख, एक दिन मां ने उस से कहा, ‘‘कविता, मैं तुम्हारा दर्द समझती हूं, बेटा, पर इस का मतलब यह तो नहीं कि जीना छोड़ दिया जाए.’’

मां की बात सुन कर कविता ने सिसकते हुए कहा, ‘‘तो और क्या करूं, अब किस के लिए जीने की इच्छा रखूं मैं, रंजन के लिए, जिस ने यह खबर सुन कर भी आने से मना कर दिया…सोचा था बच्चे के आने पर सब ठीक हो जाएगा, पर…मां, रंजन अपने बड़े भाई जैसे क्यों नहीं हैं…’’ कहते हुए कविता मां के गले से लग गई.

कविता के स्वास्थ्य में कुछ सुधार आने के बाद राघव एक दिन एक व्यक्ति को ले कर घर आए और बोले, ‘‘कविता, मैं जानता हूं तुम बहुत अच्छा डांस करती हो और मैं चाहता हूं कि तुम नृत्य की विधिवत शिक्षा लो.’’

अब कविता को एक नया लक्ष्य मिल गया था. वह लगन से डांस सीखने लगी. उसे खुश देख कर राघव को बहुत संतुष्टि मिलती थी.

एक दिन मां ने राघव से कहा, ‘‘बेटा, तेरी मौसी का फोन आया था, वह तीर्थयात्रा पर जा रही हैं, मैं भी साथ जाना चाहती हूं, तुम मेरे जाने का इंतजाम कर दो.’’

राघव कुछ चिंतित हो कर बोले, ‘‘मां, कविता से तो पूछ लो, वह यहां मेरे साथ अकेली रह लेगी.’’

मां ने इस बारे में जब कविता से पूछा तो वह मान गई.

मां के जाने के बाद राघव कविता से कुछ दूरी बना कर रहने की कोशिश करते और कविता भी अपने डांस में व्यस्त रहती थी. एक दिन कविता ने राघव से कहा, ‘‘मुझे आप को एक अच्छी खबर सुनानी है. गुरुजी एक स्टेज शो ‘अभिज्ञान शाकुंतलम्’ कर रहे हैं और मैं उस में शकुंतला बन रही हूं.’’

राघव खुश हो कर बोले, ‘‘अरे, वाह, कब है वह?’’

‘‘अगले शुक्रवार…’’

राघव ताली बजा कर बोले, ‘‘वाह, इसे कहते हैं संयोग, उसी दिन तो रंजन और मां वापस  आ रहे हैं. बड़ा मजा आएगा, जब रंजन तुम्हें स्टेज पर शकुंतला बना देखेगा.’’

शाम को राघव घर लौटे तो तेज बारिश हो रही थी. आते ही उन्होंने आवाज दी, ‘‘कविता, एक कप चाय दे दो.’’

बहुत देर तक जब कविता नहीं आई तो वह बाहर आ कर कविता को देखने लगे, कविता वहां भी न थी, तभी उन्हें छत पर पैरों के थाप की आवाज सुनाई दी. वह छत पर गए तो देखा कि कविता बारिश में भीगते हुए नृत्य का अभ्यास कर रही थी और उस की गुलाबी साड़ी उस के शरीर से चिपक कर शरीर का एक हिस्सा लग रही थी. उस पल कविता बहुत खूबसूरत लग रही थी. राघव ने अपनी नजरें झुका लीं और बोले, ‘‘कविता… नीचे चलो, बीमार पड़ जाओगी.’’

राघव की आवाज सुन कर कविता चौंक पड़ी और उन के पीछेपीछे चल पड़ी. थोड़ी देर बाद जब वह चाय ले कर राघव के कमरे में आई तब भी उस के गीले केशों से पानी टपक रहा था.

चाय पीते हुए राघव बोले, ‘‘कविता, बैठो, तुम्हारा एक पोट्रेट बनाता हूं,’’ कविता बैठ गई. पोटे्रट बनाते हुए राघव ने देखा कि कविता की आंखों से आंसू बह रहे हैं. वह ब्रश रख कर कविता के पास आ गए और उस के आंसू पोंछते हुए बोले, ‘‘कविता, अब तो रंजन आने वाला है, अब इन आंसुओं का कारण?’’

कविता तड़प उठी और राघव के सीने से जा लगी. राघव चौंक पडे़. कविता ने सिसकते हुए कहा, ‘‘आप ने मुझे अपने लिए क्यों नहीं चुना…चुना होता तो आज मैं इतनी अतृप्त और अधूरी न होती.’’

कविता भी उन से प्यार करने लगी है, यह जान कर राघव अचंभित हो उठे. अनायास ही उन के हाथ कविता के बालों को सहलाने लगे. कविता ने राघव की ओर देखा, तो उन्होंने कविता की भीगी हुई आंखों को चूम लिया.

राघव के स्पर्श से बेचैन हो कर कविता ने अपने प्यासे अधर उन की ओर उठा दिए. कविता की आंखों में उतर आए मौन आमंत्रण को राघव ठुकरा न सके और दोनों कब प्यार के सुखद एहसास में खो गए उन्हें पता ही न चला.

सुबह जब राघव की नींद खुली तो कविता को अपने पास न पा कर वह हड़बड़ा कर उस के कमरे की ओर भागे, देखा, वह चाय बना रही थी. तब उन की जान में जान आई. कविता ने मुसकरा कर कहा, ‘‘आप उठ गए, लो, चाय पी लो.’’

राघव नजरें झुका कर बोेले, ‘‘कविता, कल रात जो हुआ…’’

‘‘मुझे उस का कोई अफसोस नहीं…’’ कविता राघव की बात बीच में ही काटती हुई बोली, ‘‘और आप भी अफसोस जता कर मुझे मेरे उस सुखद एहसास से वंचित मत करना.’’

कविता ने राघव के पास जा कर कहा, ‘‘सच राघव, मैं ने पहली बार जाना है कि प्यार क्या होता है. रंजन के प्यार में सदा दाता होने का दंभ पाया है मैं ने, पर आप के साथ मैं ने अपनेआप को जिया है, उस कोमल एहसास को आप मुझ से मत छीनो.’’

‘‘पर कवि… आज रंजन वापस आने वाला है, फिर…’’ कहते हुए राघव ने कविता को जोर से अपने सीने से लगा लिया, मानो अब वह कविता को अपने से दूर जाने नहीं देना चाहते हैं.

तभी दरवाजे की घंटी बजी. कविता ने दरवाजा खोला तो मां को सामने पा कर वह खुशी  से उछल पड़ी. मां ने कविता के चेहरे पर छाई खुशी को देख कर पूछा, ‘‘क्या बात है, कविता, बहुत खुश लग रही हो, रंजन आ गया क्या?’’

मां की बात सुन कर कविता ने राघव की ओर देखा तो बात को संभालते हुए वह बोले, ‘‘रंजन आज शाम को आएगा, और आज कविता का स्टेज शो है न इसीलिए यह बहुत खुश है.’’

शाम को कविता को मानस भवन छोड़ कर राघव, रंजन को लेने एअरपोर्ट चले गए. एअरपोर्ट से लौटते समय घर न जा कर कहीं और जाते देख रंजन बोला, ‘‘हम कहां जा रहे हैं, भैया?’’

‘‘चलो, तुम्हें कुछ दिखाना है.’’

स्टेज पर अपनी पत्नी कविता को शकुंतला के रूप में देख कर रंजन निहाल हो गया. वह बहुत ही आकर्षक लग रही थी, उस का डांस भी बहुत अच्छा था. नाटक खत्म होने पर जब राघव और रंजन, कविता से मिलने गए तो वहां लोगों की भीड़ देख कर हैरान रह गए. लौटते हुए रंजन ने कविता से कहा, ‘‘मुझे नहीं पता था कि तुम इतनी अच्छी डांसर हो.’’

कविता ने धन्यवाद कहा.

घर लौटते ही कविता बोली, ‘‘मां, मैं अपने घर जा रही हूं.’’

कविता की बात सुन कर सभी सकते में आ गए. मां ने चौंक कर कहा, ‘‘आज ही तो रंजन आया है और तुम अपने घर जाने की बात कर रही हो.’’

‘‘इसीलिए तो जा रही हूं मां, अब मैं रंजन के साथ एक छत के नीचे नहीं रह सकती.’’

कविता की यह बात सुन कर रंजन ने गुस्से से कहा, ‘‘यह क्या बकवास कर रही हो, कविता. मैं तुम्हारा पति हूं, कोई गैर नहीं.’’

कविता बिफर कर बोली, ‘‘पति… तुम जानते भी हो कि पति शब्द का मतलब क्या होता है? नहीं…तुम्हारे लिए बस, काम, पैसा, तरक्की, स्टेटस यही सबकुछ है. भावनाएं, प्यार क्या होता है इस से तुम अनजान हो.’’

रंजन भड़क कर बोला, ‘‘तुम इस तरह मुझे छोड़ कर नहीं जा सकतीं…’’

‘‘क्यों…क्यों नहीं जा सकती? ऐसा क्या किया है तुम ने आज तक मेरे लिए, जो तुम मुझे रोकना चाहते हो? जबजब मुझे तुम्हारी जरूरत थी, तुम नहीं थे, यहां तक कि जब मैं ने अपना बच्चा खोया तब भी तुम मेरे साथ नहीं थे और तुम्हें तो इस से खुशी ही हुई होगी, तुम उस झंझट के लिए तैयार जो नहीं थे. मन का रिश्ता तो तुम मुझ से कभी जोड़ ही नहीं सके और इस तन का रिश्ता भी मैं आज तोड़ कर जा रही हूं.’’

कविता के तानों से तिलमिला कर रंजन ने तल्खी से कहा, ‘‘तुम्हें क्या लगता है कि तुम यों ही चली जाओगी और मैं तुम्हें जाने दूंगा,’’ इतना कह कर रंजन कविता की बांह पकड़ कमरे की ओर ले जाते हुए बोला, ‘‘चुपचाप अंदर चलो, मैं तुम्हें अपने को इस तरह अपमानित नहीं करने दूंगा. आखिर मेरी भी समाज में कोई इज्जत है.’’

‘‘रंजन…कविता का हाथ छोड़ दो…’’ मां ने तेज स्वर में कहा.

‘‘मां, तुम भी इस का साथ दे रही हो?’’ रंजन चौंक कर बोला.

कविता की बांह रंजन से छुड़ाते हुए मां बोलीं, ‘‘हां, रंजन, क्योंकि मैं जानती हूं कि यह जो कर रही है, सही है. आज भी तुम उसे अपने प्यार की खातिर नहीं, समाज में बनी अपनी झूठी प्रतिष्ठा के कारण रोकना चाहते हो. कविता को यह कदम तो बहुत पहले उठा लेना चाहिए था. जाने दो उसे…’’

कविता ने नम आंखों के साथ मां के पैर छुए और राघव की ओर पलट कर बोली, ‘‘आप ने मुझे जीने की जो नई राह दिखाई है उस के लिए आप की आभारी हूं, अब नृत्य साधना को ही मैं ने अपने जीवन का लक्ष्य बना लिया है. आप से जो भी मैं ने पाया है वह मेरे लिए अनमोल है. वह सदा मेरी अच्छी यादों में अंकित रहेगा…’’

इतना कह कर कविता चल पड़ी, अपने लिए, अपने हिस्से की थोड़ी सी जमीं और थोड़ा सा आसमा

कब तक जवानों की आहुति देते रहेंगे हम?

पुलवामा आतंकी हमले में मारे गये 40 जवानों की चिताएं अभी ठंडी भी नहीं पड़ीं, उनके परिजनों के आंसू अभी थमे भी नहीं कि मजदूर दिवस 1 मई के रोज महाराष्ट्र के गढ़चिरौली में नक्सलियों ने ब्लास्ट करके सी-60 के 15 कमांडोज और एक ड्राइवर को मौत की नींद सुला दिया. नक्सलियों ने घात लगा कर कमांडोज को ले जा रही बस को आईईडी ब्लास्ट से उड़ा दिया. करखुड़ा से छह किलोमीटर दूर कोरची मार्ग पर लेंदारी पुल पर यह हमला हुआ. इससे पहले रात में ही नक्सलियों ने यहां एक सड़क निर्माण कम्पनी के करीब 30 वाहनों को आग के हवाले कर दिया था. वाहनों को जलाने के बाद सुरक्षाकर्मियों की गश्त जरूर होगी, इसी साजिश के तहत वाहनों को जलाया गया था. नक्सलियों ने सटीक योजना बनायी थी. वाहनों के जलने की खबर सुनते ही कमांडोज का एक जत्था रवाना कर दिया गया. पहले 60 कमांडोज का जत्था भेजा जाना था, मगर पहली गाड़ी में सिर्फ 15 ही गये और नक्सलियों की आसान सी साजिश का शिकार होकर अपनी जानें गंवा बैठे.

लोकसभा चुनाव:- “बेहाल कर रही चुनावी ड्यूटी”

यूपीए सरकार हो, या मोदी सरकार, नक्सली समस्या पर नकेल कसने में दोनों ही नाकाम रहे हैं. नक्सली लगातार हमारे जवानों की सामूहिक हत्याएं कर रहे हैं, उनके वाहनों को ब्लास्ट में उड़ा रहे हैं, उनके हथियार लूट रहे हैं और शासन-प्रशासन इन्हें काबू कर पाने में अक्षम है. नक्सलियों के झुंड एक राज्य से दूसरे राज्य में आसानी से मय हथियारों के आवागमन करते हैं, अनेक ग्रामीण और आदिवासी क्षेत्रों पर वे कब्जा जमाये बैठे हैं, उनका खुफिया तन्त्र सरकार के खुफिया तन्त्र से ज्यादा मजबूत है, यही वजह है कि किसी भी वारदात के पहले और बाद में उनका कोई सुराग नहीं मिलता है. सच कहें तो नक्सलियों के मामले में हमारी पूरी इंटेलिजेंस फेल हो चुकी है. गढ़चिरौली की घटना देखिए. एक क्षेत्र में सैकड़ों नक्सली अत्याधुनिक हथियारों और खतरनाक विस्फोटकों के साथ इकट्ठा हो जाते हैं, वह पुलिस और सेना की रेकी कर लेते हैं, उनके आवागमन के रास्तों पर बकायदा बारूदी सुरंगे बिछा देते हैं, पुलिस के वाहन को ब्लास्ट करके उड़ा देते हैं, 15 जवानों को मौत की नींद सुला कर आसानी से निकल जाते हैं और लोकल इंटेलिजेंस और पुलिस लकीर पीटती रह जाती है. हमारी एजेंसियां उनकी सरल साजिशों तक को नहीं भेद पाती हैं और हर आतंकी हमले के बाद प्रधानमंत्री सहित सरकार के तमाम नुमांइदे एक सुर में बयान जारी करते हैं – ‘घटना के जिम्मेदार लोगों को बख्शा नहीं जाएगा.’ इतिश्री.

आश्चर्य है कि सीमा पार बालाकोट में तीन सौ आतंकियों की जानकारी रखने वाले और एयर स्ट्राइक करके उन्हें नेस्तनाबूद करने का दावा करने वाले प्रधानमंत्री नरेन्द्र मोदी को अपने ही घर में बैठे दहशतगर्दों की खबर नहीं मिल पा रही है! सीमा पार की इतनी जानकारी रखने वाला खुफिया तन्त्र देश के अन्दर ऐसा सोया रहता है कि दहशतगर्द चलती सड़कों की खुदाई करके बारूद बिछा आते हैं, और किसी को कानोंकान खबर नहीं होती है! जिन क्षेत्रों में लोकल इंटेलिजेंस को सबसे ज्यादा चौकन्ना होना चाहिए आखिर वहीं इतनी सुस्ती क्यों है? इनको जगाए रखने की जिम्मेदारी आखिर किसकी है? इनकी लापरवाही पर सवाल उठाने की जिम्मेदारी किसकी है?

सांसत में छोटे भाजपा नेता

देश के लिए पाक-आतंक और लाल-आतंक ऐसे नासूर बन चुके हैं जो लाखों सुरक्षाकर्मी और करोड़ों रुपये का सुरक्षा बजट होने के बाद भी लचर सरकारी नीतियों के कारण खत्म होने का नाम नहीं ले रहे हैं. मोदी सरकार घर के बाहर लाख एयर स्ट्राइक करती फिरे, घर के अन्दर नोटबंदी करके लाख दावे करे कि इससे आतंकवाद की कमर टूट जाएगी, नक्सलियों को हथियार मिलने बंद हो जाएंगे और देश से आतंकवाद का पूरी तरह सफाया हो जाएगा, मगर सच तो यह है कि ऐसा कुछ नहीं हो रहा है. देश के अलग-अलग हिस्सों में लगातार जारी आतंकी घटनाएं हमारे जवानों को लगातार लीलती जा रही हैं. पिछले 10 सालों में हजारों सुरक्षाकर्मी और कमांडोज नक्सल हमलों में शहीद हो चुके हैं और हजारों घायल हुए हैं. एक तरफ सरकार पुलवामा हमले के बाद से पाकिस्तान और पाकिस्तानी आतंकवादियों के पीछे पड़ी होने का दिखावा कर रही है, मौलाना अजहर मसूद को वैश्विक आतंकवादी घोषित किये जाने पर ऐसी खुशी जता रही है, जैसे सबकुछ उसी के दम पर हुआ है, मगर यही तथाकथित ‘मजबूत मोदी सरकार’ देश के अन्दर बैठे नक्सलियों को पांच साल में तनिक भी काबू नहीं कर पायी. एक मई को हुई गढ़चिरौली की घटना के बाद अब गृहमंत्री राजनाथ सिंह कह रहे हैं कि वर्ष2023 तक नक्सलियों का समूल नाश कर दिया जाएगा, लेकिन ‘लाल गलियारे’ की जमीनी हकीकत कुछ और ही स्थिति बयां कर रही है.

पश्चिम बंगाल के नक्सलबाड़ी से शुरू हुआ नक्सलवाद अब देश के 11 राज्यों के 90 जिलों में फैल चुका है. देश के 11 राज्यों छत्तीसगढ़, महाराष्ट्र, मध्य प्रदेश, आंध्र प्रदेश, बिहार, झारखंड, ओडिशा, तेलंगाना, उत्तर प्रदेश और पश्चिम बंगाल के 90 जिलों में नक्सलियों का ‘रेड कॉरिडोर’ फैला हुआ है. इन जिलों में नक्सली लगातार सुरक्षाकर्मियों को अपना निशाना बना रहे हैं. अभी 2019 को शुरू हुए मात्र चार माह ही हुए हैं कि 15 जवानों के खून से गढ़चिरौली की धरती लाल हुई.  इससे पहले वर्ष 2018 में यहां 58 जवान शहीद हुए थे. वर्ष 2017 में 24 जवान मारे गये. वर्ष 2016 में 22 जवान, 2015 में 16 जवान और 2014 में 30 जवान गढ़चिरौली में शहीद हो चुके हैं. यूपीए सरकार के वक्त भी गढ़चिरौली में लाल आतंक का कहर जारी था. वर्ष 2013 में यहां 43 जवान नक्सली हमले का शिकार हुए, 2012 में 36 जवान, 2011 में 65 जवान और 2010 में 43 जवान अपनी जान से हाथ धो बैठे.

लोकसभा चुनाव 2019 : लड़ाई अब सेंचुरी और डबल सेंचुरी की है

मई 2014 के बाद जब मोदी सरकार आयी तो नक्सलवाद को लेकर बड़े-बड़े वादे चुनाव के दौरान किये गये थे, लेकिन पांच साल में उनको पूरा किये जाने की बात तो दूर, इस दिशा में कोई पुख्ता कदम तक उठाये जाने की कवायद कभी नहीं दिखायी दी. नक्सल समस्या से निपटने के लिए बजट में विशेष प्रावधान तो किया गया, मगर नक्सली हमले नहीं थमे. मोदी सरकार इस गंभीर समस्या के निपटने के लिए आज तक कोई ठोस एकीकृत राष्ट्रीय नीति नहीं बना पायी. नक्सली समस्या से जूझते राज्यों की अलग-अलग नीतियों के साथ केन्द्र सरकार कोई सामन्जस्य नहीं बिठा पायी. नक्सली एक राज्य में खूनी खेल खेल कर आराम से दूसरे राज्य में जाकर छिप जाते हैं और हमारी पुलिस और खुफिया तंत्र उन्हें ढूंढ पाने में विफल रहता है क्योंकि ग्रामीणों और आदिवासियों के साथ सरकारी तन्त्र का कोई संवाद या सामन्जस्य नहीं है. उलटे नक्सलियों को ग्रामीणों का पूरा सपोर्र्ट मिलता है. यही वजह है कि हमले से पहले उन्हें छिपने और रहने-खाने में कोई दिक्कत नहीं होती और हमले के बाद उनके निकल भागने के रास्ते भी किसी को पता नहीं चलते हैं.

नक्सली समस्या से जूझ रहे बस्तर जिले में आज करीब 50 हजार सीआरपीएफ जवान तैनात हैं, वहीं गढ़चिरौली में भी 10 हजार जवान जंगलों की खाक छान रहे हैं. इसी तरह से देश के अन्य हिस्सों में भी बड़ी संख्या में सुरक्षाकर्मी तैनात हैं. इतने वर्षों से यहां सुरक्षाबलों की भारी तैनाती के बावजूद अगर स्थानीय लोगों में उनके प्रति विश्वास पैदा नहीं हो पाया है, उनसे अपनी सुरक्षा का अहसास पैदा नहीं हो पाया है, और वह नक्सलियों को अपने बीच छिपने का मौका देते हैं, तो यह सेना और सरकार की कमी और घोर विफलता है. साफ है कि ग्रामीणों और आदिवासियों को पुसिल और सेना से ज्यादा नक्सलियों पर भरोसा है इसीलिए नक्सलियों के क्षेत्र में होने की सूचना इंटेलिजेंस डिपार्टमेंट को नहीं मिलती है.

आज ओडिशा, महाराष्ट, पश्चिम बंगाल, झारखंड और बिहार में नक्सलियों ने तांडव मचा रखा है. छत्तीसगढ़ तो नक्सलियों के गढ़ के रूप में ख्यात हो चुका है. मोदी सरकार के दौर में यहां कई बड़ी नक्सली घटनाएं हुई हैं, जिनमें सैकड़ों जवान शहीद हो चुके हैं. जवानों को मार कर हजारों की संख्या में उनकी सरकारी बन्दूकें, पिस्तौलें, वायरलेस सेट, दूरबीन, बुलेटप्रूफ जैकेट, माइन डिटेक्टर, जिंदा कारतूस,मैग्जीन और अंडर बैरल ग्रेनेड लॉन्चर लूट कर नक्सली फरार हो चुके हैं और उनकी परछार्इं तक खुफिया एजेंसियों को कभी नहीं मिली. ऐसे में गोली का जवाब गोली से देते रहने से और देश की धरती को देश के नागरिकों और देश के जवानों के खून से रक्तरंजित करते रहने से इस समस्या का समाधान कभी नहीं होगा. इसके समाधान के लिए इन तमाम क्षेत्रों के वाशिंदों के साथ समन्वय बनाने और लगातार वार्तालाप करने की जरूरत है.

उनका विश्वास प्राप्त करने के लिए नेताओं को, जन प्रतिनिधियों को उन तक पहुंचने की जरूरत है. उनकी जमीनें छीन कर, उनके घर उजाड़ कर, उनकी महिलाओं से बलात्कार करके, उनका उत्पीड़न और उनका दमन करके, उनके बच्चों के मुंह से निवाले छीन कर, उनके युवाओं के सीने में बारूद उतार कर अगर सेना और सरकार सोचती है कि नक्सली समस्या का समाधान हो जाएगा तो ऐसा कतई मुमकिन नहीं है. विकास के दावे करने वाले, विकास का ढोल पीटने वाले जब तक सचमुच में इन क्षेत्रों के विकास के लिए तत्पर नहीं होंगे, लाल आतंक हावी रहेगा और खून की नदियां बहती रहेंगी.

कल अगली कड़ी में पढ़िए- नक्सलवाद की पृष्ठभूमि

ख्वाबों का हश्र ऐसा भी देखा है…

जिंदगियां रोज कई जीता हूं मैं,

इनमें कोई मेरी है पूछता हूं मैं.

एक रात जो टूट गई थी बेसबब

हर रात बिछड़ी नींद ढ़ूंढ़ता हूं मैं.

ख्वाबों का हश्र ऐसा भी देखा है

पलकें बंद करने से डरता हूं मैं.

अधूरेपन का अहसास हमेशा रहा

तुझसे खुद को पूरा करता हूं मैं.

उजड़ना, बिखरना नसीब मेरा

ए मरूधर, बस यूं ही संवरता हूं मैं…

सुष्मिता सेन के घर गूंजेगी शहनाई

बौलीवुड एक्ट्रेस सुष्मिता सेन के घर शहनाई बजने वाली है, जी हां सही सुना आपने. लेकिन ये शहनाई सुष्मिता सेन की नहीं है बल्कि उनके छोटे भाई राजीव सेन बहुत जल्द दूल्हा बनने वाले हैं. राजीव सेन टीवी एक्ट्रेस चारू असोपा के साथ शादी करने जा रहे हैं. इसकी जानकरी सुष्मिता सेन ने खुद सोशल मीडिया के जरिए अपने फैंस को दी हैं.

पूर्व मिस यूनिवर्स और एक्ट्रेस सुष्मिता सेन ने अपनी खुशी जाहिर करते हुए सोशल मीडिया पर लिखा- उसने शादी के लिए हां कह दी हैं. आप मेरे राजा भैया हो… आप दुनिया के सबसे लकी लड़के हो. इस खूबसूरत परी को हमारे जीवन में लाने के लिए शुक्रिया. अब मैं, आप दोनों की शादी का इंतजार नहीं कर सकती. मैं आपके शादी में डांस करुंगी.

सेटर्सः विषय के साथ न्याय करने में विफल

 

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इंगेजमेंट रिंग पहन बौयफेंड संग पोज देती दिखी सुष्मिता सेन, कई तरह के सवाल पूछ रहे हैं फैंसइस खबर के साथ सुष्मिता सेन ने सोशल मीडिया पर जो तस्वीर शेयर की है वो तेजी से वायरल हो रही है. कुछ घंटो पहले शेयर इस फोटो को अब तक एक लाख से ज्यादा लोग लाइक का चुके हैं.

 

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ब्लैंकः सिर्फ सनी देओल के फैंस ही खुश होंगे

आपको बता दें, सुष्मिता के छोटे भाई राजीव सेन टीवी सीरियल ‘मेरे अंगने में’ की एक्ट्रेस के साथ शादी के बंधन में बंधने वाले है. इस टीवी शो में चारू असोपा बहुत छोटे से किरदार में नजर आई थी. इस सीरियल के साथ- साथ चारू असोपा ये रिश्ता क्या कहलाता है, संगिनी में भी दिखाई दी थी. इस फोटो के साथ सुष्मिता ने दूसरी तस्वीर भी सोशल मीडिया पर शेयर की है. दूसरी वायलर हो रही फोटो में सुष्मिता के साथ बौयफ्रेंड रोहमन शौल, भाई राजीव सेन और भाई की मंगेतर चारू हैं. इस फोटो के साथ सुष्मिता ने कैप्शन में लिखा- ‘परिवार, सर्कल औफ लव, मैं तुम सबसे बहुत बहुत प्यार करती हूं. आपका शुक्रिया.

हक न मांगें बेटियां!

हक न मांगें बेटियां!

पिता की संपत्ति में बेटियों का हक

क्या कहता है कानून

साल 2005 में संशोधन होने के पहले हिंदू उत्तराधिकार अधिनियम 1956 के तहत प्रौपर्टी में बेटे और बेटियों के अधिकार अलग-अलग हुआ करते थे. इसमें बेटों को पिता की संपत्ति पर पूरा हक दिया जाता था, जबकि बेटियों का सिर्फ शादी होने तक ही इस पर अधिकार रहता था. विवाह के बाद बेटी को पति के परिवार का हिस्सा माना जाता था.

हिंदू उत्तराधिकार अधिनियम 2005 में शादीशुदा बेटियों का अब उनके पिता की संपत्ति पर अधिकार हैं.
9 सितंबर 2005 को हिंदू उत्तराधिकार अधिनियम 2005, जो हिंदुओं के बीच संपत्ति का बंटवारा करता है, में संशोधन कर दिया गया. हिंदू उत्तराधिकार अधिनियम 2005 के मुताबिक लड़की चाहे कुंवारी हो या शादीशुदा, वह पिता की संपत्ति में हिस्सेदार मानी जाएगी. इतना ही नहीं उसे पिता की संपत्ति का प्रबंधक भी बनाया जा सकता है. इस संशोधन के तहत बेटियों को वही अधिकार दिए गए, जो पहले बेटों तक सीमित थे. हालांकि बेटियों को इस संशोधन का लाभ तभी मिलेगा, जब उनके पिता का निधन 9 सितंबर 2005 के बाद हुआ हो. इसके अलावा बेटी सहभागीदार तभी बन सकती है, जब पिता और बेटी दोनों 9 सितंबर 2005 को जीवित हों.

मेरी कोई जाति भी नहीं

संशोधन से पहले पैतृक संपत्ति का सांकेतिक बंटवारा पहले पिता और पुत्रों के बीच  होता था और पिता के हिस्से आई संपत्ति का फिर से बराबर बंटवारा पुत्र-पुत्रियों (भाई-बहनों) के बीच होता था.

मान लें कि पिता के तीन पुत्र और दो पुत्रियां हैं और पिता के हिस्से आई पैतृक संपत्ति 100 रुपये की है, तो यह यह माना जाता था कि अगर बंटवारा होता तो पिता और तीन पुत्रों को 25-25 रुपये मिलते. फिर पिता के हिस्से में आये 25 रुपयों का बंटवारा तीनों पुत्रों और दोनों पुत्रियों के बीच पांच-पांच रुपये बराबर बांट दिया जाता. मतलब तीन बेटों को 25+5=30×3=90 रुपये और बेटियों को 5×2=10 रुपये मिलते. संशोधन के बाद पांचों भाई-बहनों को 100÷5=20 रुपये मिलेंगे या मिलने चाहिए. अधिकांश ‘उदार बहनें’ स्वेच्छा से अपना हिस्सा अभी भी नहीं लेतीं.

औरतें ‘बेवफा’ होने के लिए मजबूर क्यों हो जाती हैं?

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