कभी छुपम- छुपाई तो कभी पकड़म- पकड़ाई यही हुआ करता था बचपन. बच्चे खेल- खेल में ही अपना शारारिक व्यायाम भी कर लिया करते थे. अब के मुकाबले पहले के बच्चे कम बीमार हुआ करते थे. लेकिन जमाना बदल गया है और सदी भी बदल गयी है. और बच्चो के खेलने का अंदाज भी बदल गया है. अब बच्चों के खेल भी आधुनिक दुनिया की भेट चढ़ गये हैं. मोबाइल और टीवी ही बच्चों की दुनिया बन कर रह गये हैं.
रंग बिरंगे चित्र, वीडियो, गेम्स इसी तरह की विशाल श्रृंखला ने बच्चों को अपनी उम्र से बड़ा कर दिया हैं और इसी को अपना मनोरंजक खेल बना लिया हैं. जब कोई छोटा बच्चा मोबाइल में गेम या यूट्यूब खोल कर देखने लगता हैं तो आप (माता पिता )सोचते हैं, बच्चा बहुत ही टेक्निकल गुरु हैं लेकिन यह आंकलन सरासर गलत हैं बच्चे की गुणवता मोबाइल ,रिमोट से नहीं आंकनी चाहिये.
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ऐसे में क्या करें
पहले खुद को रोकें
बच्चे वहीं सीखते हैं जो अपने आस पास देखते हैं .सब से पहले आप (माता पिता) खुद को रोकें. अगर हम बच्चों के सामने ज्यादा मोबाइल का प्रयोग करते हैं तो बच्चो को भी उसका देखने का मन करता है और हमारे मना करने पर बच्चों में हमारे प्रति नकारत्मक सोच पैदा होने लगती है, जिस काम के लिये बच्चों को ज्यादा मना किया जाता है. बच्चों की लालसा उसके लिये बढ़ती जाती है. हमें अपने बच्चो के लिये आदर्श बनना चाहिये.
बच्चों को पार्क लेकर जाएं
बच्चों को शाम के वक्त पार्क लेकर जाएं.जिससे बच्चे का मन खेल में लगे और वहां उसके नये दोस्त बने पार्क की हरियाली देख बच्चा प्रकृति से जुड़ता हैं. नई नई चीजें सीखता है.