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उन्नाव रेप कांड: अपराध को बढ़ाता राजनीतिक संरक्षण

उन्नाव के विधायक कुलदीप सेंगर जेल के अंदर से अपने रसूख का प्रयोग करते रहे. कोर्ट के आदेश के बाद भी सीबीआई ने उन्नाव रेप कांड की जांच धीमी रखी. सीबीआई पर सत्ता का दबाव साफ दिखता है. रेप पीडि़त लड़की ने सुप्रीम कोर्ट को अपनी परेशानी बताने के लिए पत्र लिखा तो वह पत्र भी उस तक नहीं पहुंचा.

पीडि़त लड़की को जान से मारने के लिए विधायक ने चक्रव्यूह रचा. सड़क दुर्घटना में उस को मारने की साजिश में रेप पीडि़त लड़की और उस के परिवार को मारने के लिए कार पर ट्रक के टक्कर मारने की योजना बनी. रेप की घटना के 3 वर्षों बाद भी रेप कांड पर सत्ता का दबाव देखा जाता है. कुलदीप की घटना बताती है कि भाजपा दबंग नेताओं को पार्टी में शामिल कर रही है. दबंग और गुंडे टाइप के जो नेता पहले समाजवादी पार्टी में होते थे, अब वे भाजपा में शामिल हो रहे हैं.

ऐसे दबंग विधायकों की कहानी नई नहीं है. मधुमिता हत्याकांड के बाद उस की बहन निधि ने मजबूती से लड़ाई लड़ी तो बाहुबलि नेता अमरमणि त्रिपाठी और उन की पत्नी मधुमणि को जेल के अंदर ही जिंदगी तमाम करनी पड़ रही है. ऐसे कई और मामले भी हैं. रेप कांड में फंसे उन्नाव के बाहुबलि विधायक कुलदीप सिंह सेंगर ने रेप के मामले में पीडि़त को कमजोर करने के लिए हर दांव आजमा लिया पर उस की एक न चली. पूरा देश एक स्वर में कुलदीप सेंगर को सजा दिए जाने की मांग करते हुए पीडि़त के साथ खड़ा नजर आने लगा. इस का प्रभाव यह हुआ कि भारतीय जनता पार्टी को कुलदीप सेंगर को पार्टी से बाहर करना पड़ा.

28 जुलाई को रायबरेली के गुरुबख्शगंज थाना क्षेत्र में रेप पीडि़ता अपने परिवार व वकील के साथ रायबरेली जेल में बंद अपने चाचा से मिलने जा रही थी. इसी दौरान उस की कार को मौरंग से लदे एक ट्रक ने टक्कर मार दी. इस में पीडि़त और उस का वकील महेंद्र सिंह बुरी तरह से घायल हो गए और पीडि़त की चाची व मौसी की मौके पर ही मौत हो गई. सड़क दुर्घटना के मामले में पीडि़त लड़की के परिवारजनों ने यह मुकदमा लिखाया कि विधायक कुलदीप सेंगर ने रेप पीडि़ता को जान से मारने के उद्देश्य से यह हादसा कराया है.

कसौटी पर सीबीआई

कुलदीप सेंगर का नाम सामने आते ही राजनीति तेज हो गई. संसद से सड़क तक हंगामा शुरू हो गया. केंद्र और प्रदेश में सरकार चला रही भारतीय जनता पार्टी पर यह आरोप लगा कि भाजपा अपने विधायक को बचाने का प्रयास कर रही है. सरकार के संरक्षण में विधायक कुलदीप सेंगर ने अपने खिलाफ बलात्कार के मुकदमे के सुबूत मिटाने के लिए सड़क हादसे की साजिश रची थी. भाजपा ने इस मामले के बाद कुलदीप सेंगर को पार्टी से बरखास्त कर दिया है. इस के अलावा सुप्रीम कोर्ट ने सरकार से कहा कि वह पीडि़त परिवार को 25 लाख रुपए मुआवजा दे.

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सड़क हादसे की जांच भी सीबीआई को सौंप दी गई. सुप्रीम कोर्ट ने कहा कि पूरा मुकदमा दिल्ली ट्रांसफर कर दिया जाए. रेप पीडि़ता की सुरक्षा की जिम्मेदारी उत्तर प्रदेश पुलिस की जगह सीआरपीएफ को सौंप दी गई. सुप्रीम कोर्ट ने सीबीआई से कहा कि वह दुर्घटना मामले की जांच 7 दिनों में पूरी करे. इस के साथ ही साथ सुप्रीम कोर्ट ने कहा कि 45 दिनों में केस को खत्म किया जाए. सीबीआई ने अपनी शुरुआती जांच में रेप के आरोप में विधायक कुलदीप सेंगर के खिलाफ सुबूत जमा करने की बात कही है. ऐक्सिडैंट की घटना के 10 दिनों बाद भी रेप पीडि़ता की हालत गंभीर बनी हुई है. उस को बेहतर इलाज के लिए लखनऊ मैडिकल कालेज से दिल्ली के एम्स अस्पताल भेज दिया गया है.

देखने वाली बात यह है कि सुप्रीम कोर्ट के आदेश के बाद सीबीआई कैसे 45 दिनों में मामले की पूरी जांच कर के अदालत से फैसला दिलाती है. सीबीआई के सामने सब से बड़ी चुनौती उन तथ्यों तक पहुंचने की भी है कि सड़क हादसा कुलदीप सेंगर की शह पर हुआ है. इस के लिए सीबीआई लाई डिटैक्टर से ले कर दूसरी वैज्ञानिक जांच का सहारा ले रही है.

क्या है पूरी घटना

उत्तर प्रदेश की राजधानी लखनऊ से 56 किलोमीटर दूर उन्नाव जिले के माखी गांव का मामला कुछ ऐसा था. कविता (बदला हुआ नाम) के पिता और दोनों चाचा 15 साल पहले कुलदीप सेंगर के करीबी हुआ करते थे. एक ही जाति के होने के कारण आपसी तालमेल भी बेहतर था. एकदूसरे के सुखदुख में साझीदार होते थे. इन की आपस में गहरी दोस्ती थी. दोनों ही परिवार माखी गांव के सराय थोक के रहने वाले थे. कविता के ताऊ सब से दबंग थे.

कुलदीप सेंगर ने कांग्रेस से अपनी राजनीति शुरू की. चुनावी सफर में कांग्रेस का सिक्का कमजोर था तो वे विधानसभा का पहला चुनाव बसपा यानी बहुजन समाज पार्टी के टिकट पर लडे़ और 2002 में पहली बार उन्नाव की सदर विधानसभा सीट से विधायक बने.

कुलदीप के विधायक बनने के बाद कविता के परिवारजनों के साथ कुलदीप का व्यवहार बदलने लगा. जहां पूरा समाज कुलदीप को ‘विधायकजी’ कहने लगा था वहीं कविता के ताऊ कुलदीप को उन के नाम से बुलाते थे. अपनी छवि को बचाने के लिए कुलदीप ने इस परिवार से दूरी बनानी शुरू की.

कविता के पिता और उन के दोनों भाइयों को यह लगा कि कुलदीप के भाव बढ़ गए हैं. वे किसी न किसी तरह से उन को नीचा दिखाने की कोशिश में लगे रहे. यह मनमुटाव बढ़ता गया. एक तरफ जहां कविता का परिवार कुलदीप का विरोध कर रहा था वहीं कुलदीप अपना राजनीतिक सफर बढ़ाते गए.

कविता के ताऊ पर करीब एक दर्जन मुकदमे माखी और दूसरे थानाक्षेत्र में कायम थे. करीब 10 वर्षों पहले उन्नाव शहर में भीड़ ने ईंटपत्थरों से हमला कर के कविता के ताऊ को मार दिया. कविता के परिवार के लोगों ने इस घटना का जिम्मेदार विधायक कुलदीप को ही माना था.

कविता के ताऊ की मौत के बाद उस के चाचा उन्नाव छोड़ कर दिल्ली चले गए. वहां उन्होंने अपना इलैक्ट्रिक वायर का बिजनैस शुरू किया. उन के ऊपर करीब 10 मुकदमे थे. कविता के पिता अकेले रह गए. उन के ऊपर भी 2 दर्जन मुकदमे कायम थे. नशा और मुकदमों का बोझ उन को बेहाल कर चुका था.

कुलदीप ने 2007 का विधानसभा चुनाव समाजवादी पार्टी के टिकट पर बांगरमऊ विधानसभा से जीता और 2012 में भगवंत नगर विधानसभा से जीता. 2017 के विधानसभा में कुलदीप ने भाजपा का दामन थामा और बांगरमऊ से विधायक बन गए. विधायक कुलदीप सिंह सेंगर के परिवार की कविता के परिवार से रंजिश बनी रही. उन्नाव जिले की पहचान दबंगों वाली है. यहां अपराधी प्रवत्ति के लोगों की बहुतायत है. माखी गांव बाकी गांवों से संपन्न माना जाता है. यहां कारोबार भी दूसरों की अपेक्षा अच्छा चलता है.

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कविता से बलात्कार

कविता के साथ हुए बलात्कार के मसले पर जो जानकारी सामने आई उस के अनुसार, जून 2017 में राखी (बदला हुआ नाम) नामक महिला कविता को ले कर विधायक कुलदीप के पास गई. वहां विधायक ने उसे बंधक बना लिया. उस के साथ बलात्कार किया गया.

बलात्कार का आरोप विधायक के भाई और साथियों पर लगा. घटना के 8 दिनों बाद कविता औरैया जिले के पास मिली. कविता और उस के पिता ने इस बात की शिकायत थाने में की. तब पुलिस ने 3 आरोपी युवकों को जेल भेज दिया. घटना में विधायक का नाम शामिल नहीं हुआ. कविता और उस का परिवार विधायक के नाम को भी मुकदमे में शामिल कराना चाहते थे.

एक साल तक कविता और उस का परिवार विधायक के खिलाफ गैंगरेप का मुकदमा लिखाने के लिए उत्तर प्रदेश के गृहविभाग से ले कर उन्नाव के एसपी तक भटकता रहा. इस के बाद भी विधायक के खिलाफ एफआईआर दर्ज नहीं हुई. विधायक के खिलाफ मुकदमा न लिखे जाने के कारण कविता और उस के परिवार के लोगों ने सीआरपीसी की धारा 156 (3) के तहत कोर्ट से मुकदमा लिखे जाने की अपील की. कविता का यह प्रयास करना उस पर भारी पड़ गया. विधायक के लोगों ने उस पर मुकदमा वापस लेने का दबाव बनाना शुरू किया. ऐसा न करने पर खमियाजा भुगतने को तैयार रहने की धमकी मिली.

मारपीट, जेल और हिरासत में मौत

3 अप्रैल, 2018 को विधायक के छोटे भाई ने कविता के पिता के साथ मारपीट की और मुकदमा वापस लिए जाने के लिए कहा. कविता और उस के परिवारजनों ने पुलिस में मुकदमा लिखाया. इस के साथ ही साथ विधायक के लोगों की तरफ से भी मुकदमा लिखाया गया. पुलिस ने क्रौस एफआईआर दर्ज की पर केवल कविता के पिता को ही जेल भेजा.

कविता का आरोप है कि जेल में विधायक के लोगों ने उस के पिता की खूब पिटाई की. 8 अप्रैल को कविता अपने परिवारजनों के साथ राजधानी लखनऊ आई और सीधे मुख्यमंत्री योगी आदित्यनाथ के आवास, कालीदास मार्ग पहुंच गई. यहां उस ने आत्मदाह करने की कोशिश की. पुलिस ने उस को पकड़ लिया. गौतमपल्ली थाने में कविता को रखा गया. वहां से पूरे मामले की जांच के लिए एसपी उन्नाव को कहा गया. इस बीच जेल में ही कविता के पिता

की मौत हो गई. पोस्टमौर्टम रिपोर्ट के अनुसार, पिटाई और घाव में सैप्टिक हो जाने से मौत हुई. किसी लड़की के लिए इस से दर्दनाक क्या हो सकता है कि जिस समय वह न्याय की मांग ले कर मुख्यमंत्री से मिले उसी समय उस का पिता मौत के मुंह में चला जाए.

सरकार की सक्रियता के बाद कविता के पिता पर एकतरफा कार्यवाही करने के साथ जेल भेजने के दोषी माखी थाने के एसओ अशोक सिंह भदौरिया सहित 6 पुलिस वालों को सस्पैंड कर दिया गया. मामले की जांच क्राइम ब्रांच को सौंप दी गई. उन्नाव की एसपी पुष्पाजंलि ने बताया कि 3 अप्रैल को कविता के पिता के साथ की गई मारपीट में शामिल सभी 4 आरोपियों को जेल भेज दिया गया.

3 अप्रैल की मारपीट की घटना में जिस तरह से पुलिस ने केवल कविता के पिता को जेल भेजा उसी तरह से अगर विरोधी पक्ष के नामजद 4 लोगों को जेल भेज दिया होता तो मामला इतना गंभीर न होता. इस से साफ पता चलता है कि पुलिस पद और पैसे के दबाव में काम करती है. कविता के पिता के साथ दूसरे लोगों को जेल भेजा गया होता तो शायद उन की मौत न होती.

कविता का आरोप है कि कोर्ट द्वारा कायम गैंगरेप के मुकदमे में विधायक का नाम आने के बाद उन पर मुकदमा वापस लिए जाने का दबाव बनाया गया, जिस की वजह से यह घटना घटी. सड़क दुर्घटना में पीडि़त की चाची और मौसी की मौत के बाद अब मामला नए मोड़ पर पहुंच चुका है. पीडि़त को न्याय की उम्मीद है. अदालत के आदेश के बाद जल्द न्याय की उम्मीद और भी अधिक बलवती हो गई है.

बीमार मानसिकता की निशानी है बलात्कार

सालदरसाल बलात्कार की घटनाओं की तादाद बढ़ती जा रही है जिन में बलात्कार के बाद हत्या और दूसरे जघन्य अपराधों को अंजाम दिया जाता है. पुलिस, वकील और बलात्कार में फंसे लोगों से की गई बातचीत से बलात्कार के 3 कारण पता चलते है. एक, जब आदमी नशे की हालत में हो, दूसरा, जब वह किसी से बदला लेना चाहे और तीसरा, जब औरत आदमी के बीच आपसी सहमति से संबंध बने, फिर किसी वजह से औरत बलात्कार का आरोप लगाने लगे.

अपनी पड़ोसी औरत के साथबलात्कार के आरोप में जेल में बंद रामअधीन (बदला हुआ नाम) नामक युवक का कहना है, ‘‘हम लोग आपस में संबंध रखे हुए थे. कहीं कोई परेशानी नही थी. एक दिन जब उस की ननद ने हमें अंतरंग अवस्था में देख लिया तो उस औरत ने बलात्कार का आरोप लगा दिया.’’

बलात्कार के आरोप में पकडे़ गए और फिर जमानत पर छूटे दिनेश पाल (बदला हुआ नाम) कहता है, ‘‘बलात्कार का मजे से कोई लेनादेना नहीं होता है. एक पल को संबंध बनाने का खयाल आता है. उसी के बाद जो भी सामने आता है उसी के साथ शारीरिक संबंध बन जाते हैं. इस के बाद बहुत पछतावा होता है. जब मामला अदालत और थाने तक जाता है तो बहुत परेशानी होती है.’’

एक बार बलात्कार का दाग दामन पर लग जाता है तो समाज बहुत खराब नजरों से देखता है. दिनेश की शादी की बात चल रही थी उसी समय उस पर बलात्कार का आरोप लगा. दिनेश जमानत पर छूट आया लेकिन उस की शादी टूट गई. अब कोई भी उस से रिश्ता जोड़ने नहीं आ रहा है.

दिनेश बताता है कि बलात्कार बहुत ही परेशानी की बात होती है. एक तो लड़की किसी तरह का कोई सहयोग नहीं करती. दूसरे, अपने बचाव में वह हाथपांव चलाती है. ऐसे में चोट लगने का खतरा रहता है. शायद यही वजह होती है कि कभीकभी बलात्कार की शिकार लड़की के अंग के बाहर ही वीर्यपात हो जाता है.

बलात्कार करने वाले महसूस करते हैं कि अगर रजामंदी के साथ किसी लड़की से संबंध बनाए जाएं तो वह आसान होता है. रजामंदी के साथ सैक्स करने वाली लड़की की तलाश करना भी आसान काम नहीं होता. इस के लिए बहुत पैसों की जरूरत होती है. समय की जरूरत होती है. इस के अलावा वही लड़की सैक्स के लिए राजी होती है जिस को आप से लाभ हो.

जो लड़कियां वास्तव में बलात्कार का शिकार होती हैं, वे पुरुष के साथ संबंधों से भयभीत हो जाती हैं.

लखनऊ की पारिवारिक अदालत में रमा (बदला हुआ नाम) का एक  मुकदमा चल रहा है. रमा जब 14 साल की थी, उस के मामा के लड़के ने जबरदस्ती सैक्स संबंध बनाए जिस से वह बहुतडर गई थी. जब रमा की शादी हुई और उस का पति सैक्स संबंध बनाने आया तो रमा डर गई. उस ने संबंध बनाने से इनकार कर दिया. यह बात आगे बढ़ी, तो पति ने रमा के साथ मारपीट की और उस को तलाक देने के लिए कह दिया. कुछ लड़कियां बलात्कार की बात को भूल जाती हैं. उन का जीवन आगे ठीक रहता है.

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मानसिक इलाज जरूरी

मनोचिकित्सक डा. मधु पाठक कहती हैं, ‘‘बलात्कार की शिकार लड़कियां यह जानने की कोशिश करती हैं कि उन को बच्चा तो नहीं ठहरने वाला होगा. बलात्कार की शिकार लड़कियों की काउंसलिंग होनी चाहिए, जिस से उन के मन का डर निकल जाए. अब बाजार में इस तरह की दवाएं आती हैं जिन को खाने से बलात्कार के बाद बच्चा ठहरने की संभावना नहीं होती. जरूरत इस बात की है कि यह दवा बलात्कार होने के 72 घंटे के अंदर ही खा ली जाए.’’

वे कहती हैं कि बलात्कार करना या करने की सोचना पुरुष की एक तरह की मानसिक बीमारी होती है. इस के लिए काफी हद तक ब्रेन और हार्मोंस जिम्मेदार होते हैं. शरीर के बढ़े हुए हार्मोंस आदमी को सैक्स करने के लिए भड़काते हैं. इन लोगों का ब्रेन हार्मोंस का संतुलन बना कर नहीं रख पाता है, इसीलिए बलात्कारी पहले गलती करता है, फिर पछताता है.

बच्चों को जरूर बताएं, क्या होता है गुड टच और बैड टच

राष्ट्रीय अपराध रिकार्ड ब्यूरो (एनसीआरबी) की एक रिपोर्ट के मुताबिक चौंकने वाली बात सामने आई हैं. यह जानकार हैरानी होती है कि बच्चों के साथ यौन हरकत करने वाले अधिकांश बड़े उम्र के खुद के रिश्तेदार थे.

आज छोटी छोटी बच्चियां खुद के घर में खुद का बचाव नहीं कर सकतीं. इसमें कहीं न कहीं माँ बाप की भी गलती होती है. अगर वे अपने बच्चों के साथ समय बिता कर इन विषय पर खुल कर बात करें तो वे सही गलत को समझ पाएंगी. इन शिक्षा का ज्ञान हम बहुत की कम घरों में देखते है. अधिकतर घरों में किताबी ज्ञान को ज्यादा महत्व दिया जाता है.

डौक्टर सुषमा का कहना है, “ जहां किताबी ज्ञान जरूरी है वहीं बाहरी शिक्षा का ज्ञान भी जरूरी है. मैं जब भी ऐसे केस देखती हूं तो मुझे बहुत अफसोस होता है खुद को भारतीय समाज का हिस्सा बोलते हुए. हम अपराधियों को अपराध करने से नहीं रोक सकते लेकिन हम खुद को उससे बचा जरूर सकते हैं. लड़का हो या लड़की दोनों को ही समय के अनुसार हमे सही टच और गलत टच के बारे में बताना चाहिए. बच्चों को हमेशा बच्चा बन कर ही समझाना चाहिए. यदि आप किसी बच्ची को समझा रहे हैं तो उसे एकांत में ले जा कर न समझाएं. इससे बच्ची ज्यादा डर सकती है. जब भी कोई उसे नौर्मल भी टच करेगा तो वो सहम जाएगी”.

डौक्टर सुषमा कहती हैं कि सबसे ज्यादा जरूरी बात यह भी है की हमें बच्चों के साथ हमेशा फ्रैंडली रहना चाहिए ताकि वह हमसे अपनी सभी बातें शेयर कर सकें. कुछ मां बाप जरूरत से ज्यादा सख्त होते हैं, जिससे बच्चें अपनी दिक्कतें मां बाप को बताने में डरते हैं.

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आज बेटियां अपने परिवार जनों के बीच भी सुरक्षित नहीं हैं. सबसे बड़ी गलती तो स्कूली शिक्षा को लेकर भी होती है क्योंकि उन्हें सही टच और गलत टच के बारे में वहीं से बताया नहीं जाता. न उन्हें रिश्तों के मर्यादाओं के बारे में बताया जाता है. जिन रिश्तेदारों के बीच माँ-बाप अपने बच्चों को महफूज समझते हैं, वही रिश्तेदार इनके साथ गलत हरकत करते नजर आते हैं. जिससे अधिकतर बच्चें मानसिक बीमारियों के गिरफ्त में आ जाते हैं. इसलिए बच्चों को बचपन से ही रिलेशनशिप और सैक्स संबधित शिक्षा का ज्ञान देना बहुत जरूरी है. खासकर अभिभावकों को भी.

मानस फाउंडेशन के मनोवैज्ञानिक, नवीन कुमार का कहना है, “भारतीय समाज का महत्वपूर्ण हिस्सा होते हैं रिश्तेदार, जिन्हें हम जरूरत से ज्यादा महत्व देते हैं. यदि यहां बच्चा 4 दिन या 4 घंटे के लिए भी गायब है, तो कोई भी इससे सवाल नहीं पूछने वाला. छोटी बच्चियां हों या छोटे बच्चे, दोनों ही यौन शोषण का शिकार होते हैं. बहुत से लोग यौन शोषण के पीछे परवरिश को दोष देते हैं. हां वह भी महत्वपूर्ण है, लेकिन इन बातों से जो बात सबसे अहम मालूम देती है कि अपने बच्चों को हम दिखा क्या रहे हैं? माहौल कैसा दे रहे हैं? बच्चों को बचाना है तो बच्चों को बचपन से ही सही और गलत का ज्ञान देना जरूरी है. बच्चों के स्कूल में अलग से इसकी क्लास देनी चाहिए, जहां बच्चें आसानी से यह सब समझ पाएं और वक्त आने पर खुद को बचा सकें.

स्विम सूट के जरिए ऐसे बताएं गुड और बैड टच

अपने बच्चे को गुड टच और बैड टच के बारे में बताने के लिए स्विम सूट का उधाहरण ले सकते हैं. उन्हें बताएं कि स्विमिंग के दौरान पहने जाने वाला कास्टूयम से शरीर के जो हिस्से ढके होते हैं वे निजी अंग होते हैं और उन्हें कोई भी नहीं छू सकता. बच्चों को यह भी बताएं कि अगर कोई भी बड़ा आदमी उन्हें इन जगहों पर छुता या छूने की कोशिश करे तो तुरंत अपने मम्मी पापा या स्कूल के अध्यापक को बाताएं.

बच्चों को बताएं क्या होता है सेफ टच

बच्चों को सेफ टच के बारे में भी जरूर बताएं. जैसे जब बच्चों की मां या फिर उनके डॉक्टर उनके शरीर को छूते हैं तो वह यह चेक करते हैं कि शरीर में कहीं कोई मैडिकल समस्या तो नहीं है. लेकिन डॉक्टर सिर्फ माँ या पापा की मौजूदगी में ही टच कर सकता है. इस तरह का टच सेफ होता है. इसके अलावा कोई भी उन्हें टच या कपड़े उतारने को नहीं बोल सकता.

आज के बढ़ते अपराध के अनुसार बच्चों को यह सभी बातें बताना और सीखाना बहुत जरूरी हैं आज के समय में बच्चों से जितना खुल कर रहेंगे उतना ही उनके और आपके लिए बेहतर है.

ऐसे बच्चों को सिखाएं गुड टच और बैड टच

बच्चों को शुरुआत से ही उनकी शारीरिक संरचना के बारे में पूरी जानकारी दें. बच्चों को बताएं की उनके निजी अंग कौन से हैं. और इन अंगों को किसी दूसरे को छूने नहीं देना चाहिए.

बच्चों को बताएं की उनके शरीर पर सिर्फ उनका अधिकार है कोई भी इसे जबर्दस्ती टच नहीं कर सकता और यदि कोई ऐसा करता है तो तुरंत माँ-पापा को बताना चाहिए.

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बच्चों को उनके शरीर के बनावट के बारे में बताएं और बताने वक्त सही भाषा का प्रयोग करें. साथ ही उन्हें लड़का और लड़की के शरीर के फर्क के बारे में भी बताएं.

डिलीवरी के बाद ऐसे घटाएं अपना वजन

बच्चे को जन्म देने के बाद महिला के लिए सब से बड़ी चुनौती होती है अपना वजन कम करना. गर्भावस्था में पेट और कूल्हों का साइज बढ़ जाता है. डिलिवरी के बाद पहले वाली शेप में आने के लिए महिला को बहुत मेहनत करनी पड़ती है.

डिलीवरी के 3 से 6 महीने बाद महिला व्यायाम कर सकती है, लेकिन जब तक वह बच्चे को दूध पिला रही हो तब तक उसे वेट लिफ्टिंग और पुशअप्स नहीं करने चाहिए. उसे किसी भी तरह की डाइटिंग या व्यायाम शुरू करने से पहले डाक्टर से जरूर सलाह लेनी चाहिए.

स्तनपान: बच्चे को दूध पिलाने से वजन आसानी से कम होता है, क्योंकि शरीर में दूध बनने के दौरान कैलोरीज बर्न हो जाती हैं. यही कारण है कि वे महिलाएं जो बच्चे को दूध पिलाती हैं, उन का वजन जल्दी कम होता है.

पर्याप्त मात्रा में पानी पीना: अगर आप अपनी पतली कमर फिर से वापस देखना चाहती हैं तो रोजाना कम से कम 3 लिटर पानी पीएं. पानी पीने से शरीर के टौक्सिस बाहर निकल जाते हैं और शरीर में फ्लूइड बैलेंस बना रहता है. इस के अलावा पानी पीने से शरीर का अतिरिक्त फैट भी निकल जाता है.

गुनगुने पानी में नीबू का रस और शहद मिला कर लें: रोज सुबह खाली पेट इसे पीएं. इस से शरीर के टौक्सिंस निकल जाते हैं और फैट भी बर्न होता है. हर बार खाना खाने से पहले भी इस का सेवन कर सकती हैं. ऐसा करने से पाचन ठीक रहेगा और फैट जल्दी बर्न होगा.

ग्रीन टी पीएं: ग्रीन टी में ऐसे बहुत सारे अवयव होते हैं जो फैट बर्निंग की प्रक्रिया को तेज करते हैं. इस में मौजूद मुख्य तत्व ऐंटीऔक्सीडैंट होता है, जो मैटाबोलिज्म को तेज करता है. इसलिए दूध और चीनी वाली चाय के बजाय ग्रीन टी बेहतर विकल्प है. यह न केवल सेहतमंद है, बल्कि वजन पर नियंत्रण रखने में भी मदद करती है.

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खान के लिए  सेहतमंद पदार्थ चुनें: प्रोसैस्ड फूड से बचें. ज्यादा कैलोरी वाले खा-पदार्थों का सेवन भी न करें जैसे कैंडी, चौकलेट व बेक की गई चीजें जैसे कुकीज, केक, फास्ट फूड तथा तला हुआ भोजन जैसे फ्राइज और चिकन नगेट्स. प्रोसैस्ड फूड में सब से ज्यादा कैलोरीज और चीनी होती है, जो वजन बढ़ाती है. ऐसे भोजन में उचित पोषक पदार्थों की कमी होती है. इन के बजाय सेहतमंद विकल्प चुनें जैसे मौसमी फल, सलाद, घर में बना सूप और फलों का रस आदि.

इन घरेलू उपायों के अलावा भरपूर मात्रा में सब्जियों और फलों का सेवन करने से पेट की चरबी कम होती है. अगर आप बच्चे को दूध पिला रही हैं, तो आप को रोजाना 1800 से 2,200 कैलोरीज का सेवन करना चाहिए ताकि आप के बच्चे को उचित पोषण मिले.

अगर आप स्तनपान नहीं करा रही हैं तो आप को कम से कम 1200 कैलोरीज का सेवन करना चाहिए. रोजाना 3 बार कम कैलोरी युक्त खा-पदार्थों का सेवन करें. इस के लिए आप को प्रोसैस्ड फूड के बजाय प्राकृतिक खा-पदार्थ चुनने चाहिए.

नैचुरल ब्रेकफास्ट चुनें जैसे ओट्स, दलिया या अंडों के सफेद हिस्से से बना आमलेट. दोपहर के भोजन में साबूत अनाज की चपाती, बेक्ड चिकन या कौटेज चीज, हरा सलाद और फल खाएं. रात के भोजन की बात करें तो आप की आधी प्लेट फलों और सब्ज्यों से भरी होनी चाहिए. एक चौथाई प्लेट में प्रोटीन और एकचौथाई प्लेट में साबूत अनाज होना चाहिए.

सेहतमंद आहार के साथसाथ नियमित व्यायाम करना भी बहुत जरूरी है.

भोजन के बाद तेज चलें: खाना खाने के बाद 15 से 20 मिनट तेज चलें. इस से पेट की चरबी कम होगी. ऐसा जरूरत से ज्यादा न करें. बच्चे को स्ट्रौलर में लिटा कर सैर कर सकती हैं. यह व्यायाम शुरू करने का सब से अच्छा तरीका है.

ऐब्स क्रंच: पेट की चरबी कम करने का सब से अच्छा तरीका है ऐब्स क्रंच. इस से पेट की पेशियों में मौजूद कैलोरीज बर्न होंगी और पेट की चरबी कम होने लगेगी.

लोअर एब्डौमिनल स्लाइड: यह व्यायाम बच्चे के जन्म के बाद नई मां के लिए अच्छा है. खासतौर पर अगर बच्चे का जन्म सीसैक्शन से हुआ हो, क्योंकि सर्जरी के बाद पेट के निचले हिस्से की पेशियों पर असर पड़ता है. यह व्यायाम उन्हीं पेशियों पर काम करता है.

पीठ के बल लेट जाएं, पैर जमीन पर फैला दें, बाजुएं साइड में सीधी रखें और हथेलियां नीचे की ओर हों. अपनी पेट की पेशियों को सिकोड़ते हुए दाईं टांग को बाहर की ओर स्लाइड करें. फिर सीधा कर यही प्रक्रिया बाईं टांग से दोहराएं. दोनों टांगों से इसे 5 बार दोहराएं.

पैल्विक टिल्ट: अपनी पेट की पेशियों को सिकोड़ें. इन का इस्तेमाल करते हुए अपने कूल्हों को आगे की ओर मोड़ें. ऐसा आप लेट कर, बैठ कर या खड़े हो कर कर सकती हैं. इसे रोजाना जितनी बार हो सके करें.

नौकासन: नौकासान के कई फायदे हैं. इस से पेट की पेशियां टोन हो जाती हैं, पाचन में सुधार आता है तथा रीढ़ की हड्डी और कूल्हे भी मजबूत होते हैं.

टांगों को उठाएं: अपनी टांगों को 30 डिग्री, 45 डिग्री और 60 डिग्री पर उठाएं. हर अवस्था में 5 सैकंड्स के लिए रुकें. इस से पेट की पेशियां मजबूत होती हैं.

उस्थासन: उस्थासन के कई फायदे हैं. इस से कूल्हों की चरबी कम होती है, कूल्हों और कंधों में खिंचाव आता है.

मौडीफाइड कोबरा: अपनी हथेलियों को फर्श पर टिकाएं. कंधे और कुहनियां अपनी पसलियों के साथ टिके हों. अपने सिर और गर्दन को ऊपर उठाएं, इतना भी नहीं कि पीठ पर खिंचाव पड़ने लगे. अब ऐब्स को अंदर की ओर ऐसे खींचें जैसे आप अपने पेल्विस को फर्श से उठाने की कोशिश कर रही हों.

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अन्य तरीके

पोस्टपार्टम सपोर्ट बैल्ट: यह बैल्ट पेट की पेशियों को टाइट करती है. इस से आप का पोस्चर ठीक रहता है, साथ ही पीठ के दर्द में भी आराम मिलता है.

बैली रैप इस्तेमाल करें: बैली रैप या मैटरनिटी बैल्ट आप की ऐब्स को टक कर देती है, जिस से आप के यूट्रस और पेट का हिस्सा अपनी सामान्य शेप में आने लगता है. यह पेट की चरबी कम करने का सब से पुराना तरीका है. इस से पीठ के दर्द में भी आराम मिलता है.

फुल बौडी मसाज करवाएं: मसाज शरीर के लिए बेहद फायदेमंद होती है. इस से आप बिना जिम गए बिना पसीना बहाए वजन कम कर सकती हैं. इस तरह से मसाज करवाएं कि आप के पेट की चरबी पर असर हो. इस से फैट शरीर में बराबर फैल जाएगा, मैटाबोलिज्म में सुधार होगा और आप को चरबी से छुटकारा मिलेगा.

– डा. रीनू जैन, कंसलटैंट ओब्स्टेट्रिक्स ऐंड गाइनेकोलौजी, जेपी हौस्पिटल, नोएडा

130 फीट ऊंची पहाड़ी पर अकेला रहता है ये शख्स

दुनिया में  ऐसी बहुत सारी चीजें हैं, जिसके बारे में जानकर हम हैरान हो जाते हैं. जैसा हम सोच भी नहीं सकते वैसी हैरान करने वाली चीजें होती है. आज आपको एक ऐसी ही हैरतअंगेज करने वाली जगह के बारे में बताते हैं.जिसे जानकर आप चौंक जाएंगे.

जौर्जिया में एक ऐसा जगह है, जहां 130 उंची फीट पहाड़ी स्थित है. आपको बता दें, इस 130 उंची फीट पहाड़ी  पर एक शख्स  घर बनाकर रहता है. हैरान करने वाली बात ये है कि ये शख्स इस घर में बिल्कुल अकेला रहता है. इस शख्स का नाम है मेक्जिम. यह करीब 25 सालों से इस पहाड़ी पर अकेला रहता है.

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यह शख्स सप्ताह में सिर्फ दो बार ही नीचे उतरता है. यहां 131 फीट की सीढ़ियां बनाई गई हैं, जहां से लोग चढ़ और उतर सकते हैं. इस पहाड़ी पर चढ़ने में करीब 20 मिनट का समय लगता है. इस पहाड़ी को ‘कात्स्खी पिलर’ के नाम से जाना जाता है.  अगर मेक्जिम को  किसी समान की जरूरत पड़ती है तो उनके चाहनेवाले  उन तक पहुंचा देते हैं.

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दिल्ली में बांग्ला थियेटर को जिंदा रखे हैं तोरित दा

दिल्ली के चितरंजन पार्क में एक घर के बेसमेंट में बने छोटे से स्टूडियो में एक जबरदस्त चीख लोगों के रोंगटे खड़े कर देती है. चंद मिनटों में वह चीख रविन्द्रनाथ टैगोर के मधुर गीत में बदल जाती है. मधुर स्वर लहरी धीरे-धीरे सिसकियों में और सिसकियां अचानक उन्मुक्त हंसी में तब्दील हो जाती है. रोशनी के एक वृहद गोले के भीतर मंच पर महाभारत काल की स्त्री के विभिन्न रूपों, मनोभावों, छटपटाहटों, पीड़ा और भय को आज के सन्दर्भ में प्रकट करते हुए बंगाली नायिका कौशिकी देब एक ऊंचे सीढ़ीनुमा स्थान पर आकर बैठती है. चारों ओर रोशनी उग आती है.

लेखक-डायरेक्टर तोरित मित्रा और उनकी नाट्य संस्था ‘संन्सप्तक’ से जुड़ने की कहानी अपनी सुमधुर आवाज में सुनाते हुए नायिका कौशिकी देब की आंखें अचानक छलक पड़ती हैं. यह तोरित दा के प्रति नायिका की श्रद्धा और आत्मीयता का परिचय है. नाट्य मंच के नजदीक ही कुर्सियों पर बैठे कोई दर्शक मंत्रमुग्ध से हैं.

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अभी वह कौशिकी देब द्वारा अभिनीत नाटक की गहराइयों में डूब-उतरा ही रहे हैं कि अचानक इस मंच पर मां-बहन की गालियां बकती सिर पर सूखी घास और लकड़ियों का गट्ठर उठाये एक लड़की प्रवेश करती है. हिन्दी-हरियाणवी मिश्रित गंवार भाषा में वह अपनी बड़ी बहन के मासूम प्यार और बाप की मजबूरियों का बखान करती है. देखते ही देखते देश और समाज का नंगा सच उघड़ कर सामने आने लगता है और लोगों को शर्मिन्दा करने लगता है. खाप के कहर से खुद अपने बेटी का कत्ल करने वाले अपने मजबूर बाप की कहानी कहती सिमरन कभी आंसुओं के समन्दर में डूब जाती है तो कभी गुस्से से थर-थर कांपती खाप के दबंगों को मां-बहन की गालियों से नवाजने लगती है. दर्शक उसके आंसुओं के साथ गहरे दुख में उतर जाता है, तो उसके गुस्से के साथ आक्रोशित होने लगता है. नाटक ‘जन्मांतर’ के रूप में तोरित दा की कलम से निकली कहानी दर्शकों की रूह थर्रा देती है. नेपाल की मिट्टी में पैदा हुई और दिल्ली में पली-बढ़ी अदाकारा सिमरन जिस खूबी से आधे घंटे तक हरियाणवी टोन में गांव की छोरी का किरदार अदा करती है, उसे देखकर इस बात पर यकीन करना मुश्किल हो जाता है कि वह पहली बार एकल नाटक के मंच पर उतरी हैं. यह कमाल है तोरित दा के नाट्य मंच ‘संन्सप्तक’ और उनकी नाट्य शिक्षा का.

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चार अगस्त से लेकर उन्तीस सितम्बर तक चितरंजन पार्क के इस छोटे से स्टूडियो में चले नाट्य महोत्सव के अन्तर्गत तोरित मित्र द्वारा लिखित अनेकों नाटकों का मंचन हुआ. यह तमाम नाटक कई भाषाओं में खेले गये. जानेमाने अदाकारों के साथ कई अदाकार तो बिल्कुल पहली बार मंच पर उतरे, लेकिन उनके सधे हुए नाट्य कौशल को देखकर दर्शक हतप्रभ रह गये. अपने कलाकारों में यह कौशल और आत्मविश्वास जगाने का श्रेय यदि किसी को जाता है तो वह हैं सिर्फ और सिर्फ तोरित मित्रा, जिन्हें ‘संन्सप्तक’ से जुड़ा हर लेखक, नाटककार, निर्माता, निर्देशक, कलाकार, कवि, गायक, चित्रकार प्यार से ‘तोरित दा’ कहकर पुकारता है.

हैरानी की बात है कि बंगाली नाटककार व निर्देशक के रूप में विश्व विख्यात तोरित मित्रा ने अपने करियर की शुरुआत एक चित्रकार के रूप में की थी, लेकिन जल्दी ही रंगमंच के साथ हुए जुड़ाव ने उनके कैनवास को व्यापक बना दिया. 6 सितम्बर 1956 में दिल्ली में जन्मे तोरित मित्रा ने जब 1979 में दिल्ली कौलेज औफ आर्ट्स नई दिल्ली से स्नातक की उपाधि प्राप्त की थी, तब उन्हें गुमान भी नहीं था कि एक दिन वह अपनी पूरी रचनात्मक ऊर्जा नाट्य कला को समर्पित कर देंगे. एक पेशेवर चित्रकार के रूप में तोरित दा काफी समय तक अपने चित्रों की प्रदर्शनी आयोजित करने में ही व्यस्त रहे. उनके तमाम चित्र काले और सफेद रंग में डूबे एक प्रयोगात्मक टुकड़े थे. यह चित्र समाज की निराशा और दुख को व्यक्त करते थे. इन चित्रों में चमकीले रंगों का कोई स्थान नहीं था. यह चित्र समाज की काली और नंगी सच्चाइयों को सामने रखते थे. तोरित दा के चित्रों को समीक्षकों ने बहुत सराहा. वर्ष 1988 में तत्कालीन उपराष्ट्रपति डा. शंकरदयाल शर्मा ने उन्हें आल इंडिया फाइन आर्ट्स एंड क्राफ्ट्स सोसायटी गोल्डन जुबली अवार्ड से भी सम्मानित किया. एक चित्रकार के रूप में तोरित दा का भविष्य काफी उज्ज्वल था, लेकिन वे समाजिक-आर्थिक धुंधलेपन को प्रमुखता से उजागर करने के लिए किसी अन्य सशक्त माध्यम की तलाश में थे और यह माध्यम उन्हें मिला नाटकों के रूप में. शुरुआत में तो उन्होंने बंगाली थिएटर समूहों में सेट डिजाइनर और अभिनेता के रूप में काम किया, लेकिन उसी बीच उनकी लेखनी से ऐसे-ऐसे नाटक निकले, जो पढ़ने और देखने वालों के भीतर एक सिहरन सी पैदा कर देते थे. मात्र 21 वर्ष की आयु में तोरित मित्रा दिल्ली के थिएटर क्षेत्र में पुरस्कार प्राप्त करने वाले सबसे कम उम्र के नाटककार और निर्देशक बन गये. तोरित दा दिल्ली में शहरी बंगाली थियेटर समूहों की प्रथाओं से नाखुश और असंतुष्ट थे. वह बंगाली नाटकों में नया दृष्टिकोण, नई भाषा और नया निर्देशन चाहते थे. इसी सोच के तहत 1992 में उन्होंने अपनी नाट्य संस्था ‘संन्सप्तक’ का गठन किया. आज संन्सप्तक बंगाली रंगमंच के लिए महत्वपूर्ण मंच बन चुका है.

बीते 27 सालों में यह नाट्य समूह तोरित मित्रा द्वारा लिखित 60 बहुभाषीय नाटकों की कम से कम 800 अंतराष्ट्रीय, राष्ट्रीय और क्षेत्रीय प्रस्तुतियां दे चुका है. मंच प्रस्तुतियों के अलावा, तोरित मित्रा एवं संस्था की अध्यक्ष और रंगकर्मी रूमा बोस के नेतृत्व में, संन्सप्तक ने विभिन्न अंतरराष्ट्रीय, राष्ट्रीय एवं क्षेत्रीय नाट्य उत्सवों में भागीदारी भी की है, साथ ही वसुंधरा, पंचमवैदिक, एलिगेंस ऑफ इब्सन, एम्प्टीस्पेस, स्वयं वदन्ति, लिगेसी, लव एंड बियॉन्ड बॉंडेज जैसे नाट्य उत्सव, संगोष्ठी, कार्यशालाओं का आयोजन भी किया है. बांगला भाषा में प्रगतिशील विकास को बढ़ावा देने के लिए दिल्ली में एकमात्र समकालीन लेखक और निर्देशक होने का सम्मान आज तोरित मित्रा के नाम है.

अब तक 300 से ज्यादा प्रोडक्शंस का निर्माण करने वाले तोरित दा को बंगला और हिन्दी में द्विभाषी थिएटर करने का दुर्लभ गौरव प्राप्त है. उनके मूल बांग्ला नाटकों के हिन्दी संस्करणों के लिए हिन्दी दर्शकों की जबरदस्त प्रतिक्रिया मिल रही है. उनके द्वारा लिखित नाटक ‘हरी-भरी ख्वाहिश’, ‘गर्भ’, ‘ना हन्यन्ते’ और ‘जवल-ए-अजीम’ के संकलन को हिन्दी विद्वान ज्योतिष जोशी ने मुक्तधारा सभागार में जारी किया था. उनकी कुछ प्रस्तुतियों को भारत रंग मोहत्सव और भारतेन्दु नाट्य उत्सव जैसे प्रतिष्ठित समारोहों में भी दिखाया जा चुका है.

 ‘मैं कुछ भी कर सकती हूं’: परिवार नियोजन पर आधारित है ये शो

अपने एडुटेनमेंट अप्रोच को ध्यन में रखते हुए, पौपुलेशन फाउंडेशन औफ इंडिया ने अपने लोकप्रिय टीवी शो ‘मैं कुछ भी कर सकती हूं’ के जरिए लोगों के लिए परिवार नियोजन और गर्भनिरोधक जैसे कठिन और वर्जित विषयों पर बातचीत करने के लिए एक नई शब्दावली पेश की है. “मस्त पिटारा” दंपत्ति के लिए उपलब्ध गर्भ निरोधकों के बास्केट को दर्शाता है. यह परिवार नियोजन के उन संदेशों को बदल देता है, जो अक्सर शर्मिंदगी का कारण बनते है. ये दंपत्ति के बीच एक प्रेमपूर्ण संबंध के साथ निकटता से जुड़ा हुआ है.

‘मैं कुछ भी कर सकती हूं’ में मस्त पिटारा विशेष रूप से गर्भनिरोधक के अस्थायी तरीकों पर जोर देती है, जिसमें ओरल गर्भनिरोधक गोलियां, इंजेक्शन, कंडोम और अंतर्गर्भाशयी उपकरण शामिल हैं. सरकारी आंकड़ों से पता चलता है कि भारत में, परिवार नियोजन का बोझ महिलाओं पर पड़ता है, जिसमें आधुनिक गर्भनिरोधक तरीकों का 75% से अधिक उपयोग होता है. दंपत्ति के लिए उपलब्ध विभिन्न विकल्पों को लोकप्रिय बनाकर, मस्त पिटारा यह बताता है कि कैसे वे गर्भ निरोधक का इस्तेमाल कर आनन्द उठा सकते है.

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पौपुलेशन फाउंडेशन औफ इंडिया की कार्यकारी निदेशक पूनम मुत्तरेजा कहती हैं, “एक ऐसे समाज के लिए जो सेक्स और गर्भनिरोधक को वर्जित विषय मानता है,  मस्त पिटारा लोगों परिवार नियोजन के बारे में बातचीत में शामिल होने का एक साधन है. ऐसे वर्जित विषय पर न चाहते हुए भी लोगों को तब शर्मिंदा होना पड़ता है, जब वे सेवा प्रदाताओं से स्वास्थ्य संबंधी उचित जानकारी लेना चाहते है.”

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शो ‘मैं कुछ भी कर सकती हूं’ पौपुलेशन फाउंडेशन औफ इंडिया की एक पहल है जो परिवार नियोजन और महिलाओं के सशक्तीकरण के मुद्दों पर लोगों के बीच जागरूकता बढ़ाने और व्यवहार को बदलने के लिए है. टेलीविजन कार्यक्रम के अलावा, इस शो में एक इंटरएक्टिव वायस रिस्पांस सिस्टम, सामुदायिक रेडियो, डिजिटल मीडिया और औन-ग्राउंड आउटरीच विस्तार भी शामिल हैं.

‘मैं कुछ भी कर सकती हूं’ एक युवा डौक्टर डा. स्नेहा माथुर की प्रेरक यात्रा के आसपास घूमती है, जो मुंबई में अपने आकर्षक कैरियर को छोड़ कर अपने गांव में काम करने का फैसला करती है. यह शो राष्ट्रीय प्रसारक के प्रमुख कार्यक्रमों में से एक है, जिसे 13 भारतीय भाषाओं में कई रिपीट टेलीकास्ट और किया गया. इसे देश के 216 औल इंडिया रेडियो स्टेशनों पर प्रसारित किया गया. शो के तीसरे सीजन का निर्माण आरईसी फाउंडेशन और बिल एंड मेलिंडा गेट्स फाउंडेशन के समर्थन से किया गया है.

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पौपुलेशन फाउंडेशन औफ इंडिया एक राष्ट्रीय गैर सरकारी संगठन है, जो लैंगिक संवेदनशील जनसंख्या, स्वास्थ्य और विकास रणनीतियों और नीतियों के प्रभावी निर्माण और कार्यान्वयन को बढ़ावा देता है और इसकी वकालत करता है. पी. एफ. आई महिलाओं और पुरुषों को सशक्त बनाने के साथ ही जनसंख्या के मुद्दों को संबोधित करता है, ताकि वे अपने स्वास्थ्य और कल्याण से संबंधित सूचित निर्णय लेने में सक्षम हों सके.

‘नच बलिये 9’: इस शो में दोबारा हिस्सा लेंगी उर्वशी ढोलकिया

स्टार प्लस पर प्रसारित होने वाला रियलटी शो ‘नच बलिये 9’ से कंटेंस्टेंट उर्वशी ढोलकिया और अनुज सचदेवा बाहर हो गए थे. इस शो से निकलते ही ‘नच बलिए 9’ के मेकर्स पर  उन्होंने गंभीर आरोप भी लगाया था.

उस दौरान उर्वशी का गुस्सा सातवे आसमान पर था. उर्वशी ने दोबारा शो में आने से ही इनकार कर दिया था. लेकिन अब लगता है कि उर्वशी का गुस्सा शांत हो गया है. क्योंकि उर्वशी ढोलकिया अब ‘नच बलिए 9’ में वाइल्ड कार्ड एंट्री लेने जा रही हैं. वैसे भी जब उर्वशी इस शो से बाहर हुईं तभी खबर आने लगी थी कि  मेकर्स इस एक्स जोड़ी को शो में वापस बुला सकते हैं.

खबरों के अनुसार वाइल्ड कार्ड एंट्री प्रोमो के लिए उर्वशी ढोलकिया और अनुज सचदेवा एक दो दिन में शूटिंग करने जा रहे हैं. तो वहीं अगले हफ्ते यह एक्स जोड़ी शो में वापसी कर सकती हैं. ऐसे में उर्वशी के फैंस तो उनका डांस का जलवा देखकर काफी उत्साहित हो जाएंगे.

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इनके अलावा एक और जोड़ी नच बलिए 9 में लौट रही है. मधुरिमा तुली और विशाल आदित्य सिंह भी ‘नच बलिए 9’ में दोबारा एंट्री ले सकते हैं. दर्शकों को इनकी केमिस्ट्री काफी पसंद है. फिलहाल ये  शो काफी चर्चा में बना हुआ है क्योंकि इस बार की थीम ‘एक्स कपल’ जो  काफी दिलचस्प है. इस शो में एक्स कपल के साथ जोड़ियां परफौर्म कर रही हैं.

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700 साल पुराना है ये पेड़

मानव जीवन की रक्षा के लिए जो पेड़ सालों से औक्‍सीजन देते रहे हैं. इसमें से ऐसा ही बरगद का एक पेड़ जो  है 700 साल पुराना है, जो भारत ही नहीं बल्कि दुनिया का दूसरा सबसे बड़ा पेड़ है. यूं तो बरगद के पेड़ आमतौर पर कई सौ सालों तक जीते हैं, लेकिन तेलंगाना के महाबूबनगर जिले के पिल्ललमारी इलाके में मौजूद ये पेड़ करीब 700 सालों से इंसानों को औक्‍सीजन और छांव देता आ रहा है.

एक रिपोर्ट के मुताबिक यह पेड़ इतना अधिक पुराना है कि इसे भारत ही नहीं पूरी दुनिया में दूसरे सबसे उम्रदराज पेड़ का खिताब मिला हुआ है. इस इलाके में रहने वाले लोगों की कई पीढि़यां इस बरगद की छांव में अपनी जिदंगी के कुछ यादगार पल बिता चुकी हैं, तभी तो इस पेड़ के उनका दिली जुड़ाव भी है.

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दीमक के  कारण इस बरगद की जड़ों से लेकर, शाखाएं और तने तक जगह जगह से खोखले हो चुके हैं. उसके चलते पेड़ पल-पल टूट रहा है. कई सौ साल पुराने इस पेड़ की ऐसी हालत न सिर्फ वहां रहने वाले लोगों को परेशान कर रही है, बल्कि पर्यावरण से जुड़े लोग भी पेड़ की हालत देखकर दुखी हैं. इलाकाई लोगों को जब इस विशालकाय बरगद की ऐसी दयनीय हालत का एहसास हुआ तो उन्‍होंने इस पेड़ को बचाने के लिए एक मुहिम सी चला दी है. जिसमें कई विशेषज्ञ भी शामिल हो चुके हैं.

फिलहाल इस पेड़ की जिंदगी बचाए रखने के लिए लोग पूरी तरह से इसके इलाज में जुटे हैं. हालात यह है कि पेड़ में लगी दीमक को खत्‍म करने के लिए सैकड़ों की संख्‍या में सलाइन ड्रिप से पेड़ के तने, शाखाओं और जड़ों में नमकीन पानी इंजेक्‍ट किया जा रहा है. उम्‍मीद की जा रही है कि ऐसा करने से यह बुजुर्ग पेड़ दीमक से मुक्‍त होकर धीरे धीरे स्‍वस्‍थ हो जाएगा.

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ऐसे बनाएं चिकन पकोड़े

अगर आप नौनवेज की शौकीन हैं तो आप शाम के नाश्ते में  चिकन पकोड़े जरूर बनाएं. ये खाने में काफी टेस्टी है और इसकी रेसिपी भी बहुत आसान है. तो आइए जानते हैं इसकी रेसिपी.

सामग्री:

हल्दी- 1/4 टीस्पून,

नींबू का रस- 1 टीस्पून,

करी पत्ता- 5-6,

बेसन- 80 ग्राम,

चावल का आटा- 1 टेबलस्पून,

बोनलेस चिकन- 400 ग्राम,

लाल मिर्च- 2 टीस्पून,

धनिया पाऊडर- 1 टीस्पून,

अदरक-लहसुन पेस्ट- 1/2 टीस्पून,

नमक- 1 टीस्पून,

गरम मसाला- 1 टीस्पून,

सौंफ- 1 टीस्पून,

पानी- 70 मि.ली.,

तेल- तलने के लिए

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बनाने की विधि:

चिकन पकौड़ा बनाने के लिए एक कटोरी में 400 ग्राम बोनलेस चिकन ले लें.

अब इसमें दो चम्मच लाल मिर्च, एक चम्मच धनिया पाउडर, आधा चम्मच अदरक लहसुन का पेस्ट, आधा चम्मच नमक, एक चम्मच गरम मसाला, एक चम्मच जीरा व आधा चम्मच हल्दी डालकर अच्छे से मिक्स करें.

अब इसमें आधा चम्मच नींबू का रस डालकर 15 से 20 मिनट तक ढक कर रख दें. जिससे ये अच्छे से मैरीनेट हो जाए.

अब एक दूसरे कटोरे में 80 ग्राम बेसन, एक चम्मच चावल का आटा व 70 मिलीलीटर पानी डालकर पेस्ट बना लें.

अब एक पैन में औयल गर्म करके चिकन को बेसन के पेस्ट में लपेटकर डीप गोल्डन ब्राउन फ्राई करें.

अब इसे प्लेट में निकाल कर चटनी व टमाटो सौस के साथ गर्मागर्म सर्व करें.

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चेहरे की झुर्रियों से राहत पाने के लिए अपनाएं ये 4 टिप्स

चेहरे की झुर्रियां आ जाने से आप अक्सर  परेशान होने लगते हैं और इससे राहत पाने के लिए आप कई   उपाय करते हैं. तरह तरह के क्रीम, लोशन आदि का इस्तेमाल करते हैं लेकिन आपको कुछ खास फायदा नहीं होता  हैं.  झुर्रियों से राहत पाने के लिए घरेलू उपाय अपना सकते हैं. तो आइए जानते है  झुर्रियों से राहत पाने के लिए आप क्या करें.

नींबू और मलाई

नींबू और मलाई को आपस में मिलाकर चेहरे की झुर्रियों का हटाया जा सकता है. मलाई में मौजूद लैक्टिक एसिड चेहरे में निखार लाता है. नींबू के रस और मलाई को अच्छी तरह से मिलाकर पेस्ट बनाएं और चेहरे पर लगाकर छोड़ दें. चेहरे पर पेस्ट के सूख जाने के बाद चेहरा धो लें.

नींबू और गुलाब जल

नींबू और गुलाब जल का मिश्रण चेहरे पर आईं झुर्रियों को सही करने में बहुत सहायक होता है. आप नींबू और गुलाब जल के मिश्रण को रात में सोने से चेहरे पर लगाएं और कुछ देर हाथों से मसाज करें. सुबह उठने पर चेहरे को ठंडे पानी से धो लें.

जानें कैसे करें फुट डिटौक्स

नींबू और चीनी

नींबू और चीनी की मदद से आप चेहरे की झुर्रियों को हटा सकते हैं. इसके लिए नींबू के रस को चीनी के साथ मिलाएं और इस पेस्ट को चेहरे पर लगाकर स्क्रब करें. कुछ देर के बाद चेहरे को हल्के गर्म पानी से चेहरा धो लें.

नींबू और औलिव औयल

चेहरे की झुर्रियां हटाने के लिए नींबू के रस को औलिव औयल में मिलाकर चेहरे पर लगाएं और कुछ देर बाद चेहरा धो लें. यह पेस्ट लगाने के बाद चेहरे से झुर्रियां हटाने में सहायक है. औलिव औयल से स्किन में कसावट आती है.

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