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सांप सीढ़ी : भाग 2

रहरह कर एक ही प्रश्न हृदय को मथ रहा था कि प्रशांत ने ऐसा क्यों किया? मांबाप का दुलारा, 2 वर्ष पहले ही इंजीनियरिंग की पढ़ाई पूरी की थी. अभी उसे इसी शहर में एक साधारण सी नौकरी मिली हुई थी, पर उस से वह संतुष्ट नहीं था. बड़ी कंपनियों में नौकरी के लिए आवेदन कर रहा था. अपने दोस्त की बहन उसे जीवनसंगिनी के रूप में पसंद थी. मौसी और मौसाजी को एतराज होने का सवाल ही नहीं था. लड़की उन की बचपन से देखीपरखी और परिवार जानापहचाना था. तब आखिर कौन सा दुख था जिस ने उसे आत्महत्या का कायरतापूर्ण निर्णय लेने के लिए मजबूर कर दिया.

सच है, पासपास रहते हुए भी कभीकभी हमारे बीच लंबे फासले उग आते हैं. किसी को जाननेसमझने का दावा करते हुए भी हम उस से कितने अपरिचित रहते हैं. सन्निकट खड़े व्यक्ति के अंतर्मन को छूने में भी असमर्थ रहते हैं.

अभी 2 दिन पहले तो प्रशांत मेरे घर आया था. थोड़ा सा चुपचुप जरूर लग रहा था, पर इस बात का एहसास तक न हुआ था कि वह इतने बड़े तूफानी दौर से गुजर रहा है. कह रहा था, ‘दीदी, इंटरव्यू बहुत अच्छा हुआ है. चयन की पूरी उम्मीद है.’

सुन कर बहुत अच्छा लगा था. उस की महत्त्वाकांक्षा पूरी हो, इस से अधिक भला और क्या चाहिए.

और आज? क्यों किया प्रशांत ने ऐसा? मौसी और मौसाजी से तो कुछ पूछने की हिम्मत ही नहीं हुई. मन में प्रश्न लिए मैं और दिवाकर घर लौट आए.

धीरेधीरे प्रशांत की मृत्यु को 5-6 माह बीत चुके थे. इस बीच मैं जितनी बार मौसी से मिलने गई, लगा, जैसे इस दुनिया से उन का नाता ही टूट गया है. खोईखोई दृष्टि, थकीथकी देह अपने ही मौन में सहमी, सिमटी सी. बहुत कुरेदने पर बस, इतना ही कहतीं, ‘इस से तो अच्छा था कि मैं निस्संतान ही रहती.’

उन की बात सुन कर मन पर पहाड़ सा बोझ लद जाता. मौसाजी तो फिर भी औफिस की व्यस्तताओं में अपना दुख भूलने की कोशिश करते, पर मौसी, लगता था इसी तरह निरंतर घुलती रहीं तो एक दिन पागल हो जाएंगी.

समय गुजरता गया. सच है, समय से बढ़ कर कोई मरहम नहीं. मौसी, जो अपने एकांतकोष में बंद हो गई थीं, स्वयं ही बाहर निकलने लगीं. कई बार बुलाने के बावजूद वे इस हादसे के बाद मेरे घर नहीं आई थीं. एक रोज उन्होंने अपनेआप फोन कर के कहा कि वे दोपहर को आना चाहती हैं.

जब इंसान स्वयं ही दुख से उबरने के लिए पहल करता है, तभी उबर पाता है. दूसरे उसे कितना भी हौसला दें, हिम्मत तो उसे स्वयं ही जुटानी पड़ती है.

मेरे लिए यही तसल्ली की बात थी कि वे अपनेआप को सप्रयास संभाल रही हैं, समेट रही हैं. कभी दूर न होने वाले अपने खालीपन का इलाज स्वयं ढूंढ़ रही हैं.

8-10 महीनों में ही मौसी बरसों की बीमार लग रही थीं. गोरा रंग कुम्हला गया था. शरीर कमजोर हो गया था. चेहरे पर अनगिनत उदासी की लकीरें दिखाई दे रही थीं. जैसे यह भीषण दुख उन के वर्तमान के साथ भविष्य को भी लील गया है.

मौसी की पसंद के ढोकले मैं ने पहले से ही बना रखे थे. लेकिन मौसी ने जैसे मेरा मन रखने के लिए जरा सा चख कर प्लेट परे सरका दी. ‘‘अब तो कुछ खाने की इच्छा नहीं रही,’’ मौसी ने एक दीर्घनिश्वास छोड़ा.

मैं ने प्लेट जबरन उन के हाथ में थमाते हुए कहा, ‘‘खा कर देखिए तो सही कि आप की छुटकी को कुछ बनाना आया कि नहीं.’’

उस दिन हर्ष की स्कूल की छुट्टी थी. यह भी एक तरह से अच्छा ही था क्योंकि वह अपनी नटखट बातों से वातावरण को बोझिल नहीं होने दे रहा था.

प्रशांत का विषय दरकिनार रख हम दोनों भरसक सहज वार्त्तालाप की कोशिश में लगी हुई थीं.

तभी हर्ष सांपसीढ़ी का खेल ले कर आ गया, ‘‘नानी, हमारे साथ खेलेंगी.’’ वह मौसी का हाथ पकड़ कर मचलने लगा. मौसी के होंठों पर एक क्षीण मुसकान उभरी शायद विगत का कुछ याद कर के, फिर वे खेलने के लिए तैयार हो गईं.

बोर्ड बिछ गया.

‘‘नानी, मेरी लाल गोटी, आप की पीली,’’ हर्ष ने अपनी पसंदीदा रंग की गोटी चुन ली.

‘‘ठीक है,’’ मौसी ने कहा.

‘‘पहले पासा मैं फेंकूंगा,’’ हर्ष बहुत ही उत्साहित लग रहा था.

दोनों खेलने लगे. हर्ष जीत की ओर अग्रसर हो रहा था कि सहसा उस के फेंके पासे में 4 अंक आए और 99 के अंक पर मुंह फाड़े पड़ा सांप उस की गोटी को निगलने की तैयारी में था. हर्ष चीखा, ‘‘नानी, हम नहीं मानेंगे, हम फिर से पासा फेंकेंगे.’’

‘‘बिलकुल नहीं. अब तुम वापस 6 पर जाओ,’’ मौसी भी जिद्दी स्वर में बोलीं.

दोनों में वादप्रतिवाद जोरशोर से चलने लगा. मैं हैरान, मौसी को हो क्या गया है. जरा से बच्चे से मामूली बात के लिए लड़ रही हैं. मुझ से रहा नहीं गया. आखिर बीच में बोल पड़ी, ‘‘मौसी, फेंकने दो न उसे फिर से पासा, जीतने दो उसे, खेल ही तो है.’’

‘‘यह तो खेल है, पर जिंदगी तो खेल नहीं है न,’’ मौसी थकेहारे स्वर में बोलीं.

मैं चुप. मौसी की बात बिलकुल समझ में नहीं आ रही थी.

‘‘सुनो शोभा, बच्चों को हार सहने की भी आदत होनी चाहिए. आजकल परिवार बड़े नहीं होते. एक या दो बच्चे, बस. उन की हर आवश्यकता हम पूरी कर सकते हैं. जब तक, जहां तक हमारा वश चलता है, हम उन्हें हारने नहीं देते, निराशा का सामना नहीं करने देते. लेकिन ऐसा हम कब तक कर सकते हैं? जैसे ही घर की दहलीज से निकल कर बच्चे बाहर की प्रतियोगिता में उतरते हैं, हर बार तो जीतना संभव नहीं है न,’’ मौसी ने कहा.

मैं उन की बात का अर्थ आहिस्ताआहिस्ता समझती जा रही थी.

‘‘तुम ने गौतम बुद्ध की कहानी तो सुनी होगी न, उन के मातापिता ने उन के कोमल, भावुक और संवेदनशील मन को इस तरह सहेजा कि युवावस्था तक उन्हें कठोर वास्तविकताओं से सदा दूर ही रखा और अचानक जब वे जीवन के 3 सत्य- बीमारी, वृद्धावस्था और मृत्यु से परिचित हुए तो घबरा उठे. उन्होंने संसार का त्याग कर दिया, क्योंकि संसार उन्हें दुखों का सागर लगने लगा. पत्नी का प्यार, बच्चे की ममता और अथाह राजपाट भी उन्हें रोक न सका.’’

मौसी की आंखों से अविरल अश्रुधार बहती जा रही थी, ‘‘पंछी भी अपने नन्हे बच्चों को उड़ने के लिए पंख देते हैं. तत्पश्चात उन्हें अपने साथ घोंसलों से बाहर उड़ा कर सक्षम बनाते हैं. खतरों से अवगत कराते हैं और हम इंसान हो कर अपने बच्चों को अपनी ममता की छांव में समेटे रहते हैं. उन्हें बाहर की कड़ी धूप का एहसास तक नहीं होने देते. एक दिन ऐसा आता है जब हमारा आंचल छोटा पड़ जाता है और उन की महत्त्वाकांक्षाएं बड़ी. तब क्या कमजोर पंख ले कर उड़ा जा सकता है भला?’’

मौसी अपनी रौ में बोलती जा रही थीं. उन के कंधे पर मैं ने अपना हाथ रख कर आर्द्र स्वर में कहा, ‘‘रहने दो मौसी, इतना अधिक न सोचो कि दिमाग की नसें ही फट जाएं.’’

‘‘नहीं, आज मुझे स्वीकार करने दो,’’ मौसी मुझे रोकते हुए बोलीं, ‘‘प्रशांत को पालनेपोसने में भी हम से बड़ी गलती हुई. बचपन से खेलखेल में भी हम खुद हार कर उसे जीतने का मौका देते रहे. एकलौता था, जिस चीज की फरमाइश करता, फौरन हाजिर हो जाती. उस ने सदा जीत का ही स्वाद चखा. ऐसे क्षेत्र में वह जरा भी कदम न रखता जहां हारने की थोड़ी भी संभावना हो.’’ मौसी एक पल के लिए रुकीं, फिर जैसे कुछ सोच कर बोलीं, ‘‘जानती हो, उस ने आत्महत्या क्यों की? उसे जिस बड़ी कंपनी में नौकरी चाहिए थी, वहां उसे नौकरी नहीं मिली. भयंकर बेरोजगारी के इस जमाने में मनचाही नौकरी मिलना आसान है क्या? अब तक सदा सकारात्मक उत्तर सुनने के आदी प्रशांत को इस मामूली असफलता ने तोड़ दिया और उस ने…’’

मौसी दोनों हाथों में मुंह छिपा कर फूटफूट कर रो पड़ीं. मैं ने उन का सिर अपनी गोद में रख लिया.

मौसी का आत्मविश्लेषण बिलकुल सही था और मेरे लिए सबक. मां के अनुशासन तले दबीसिमटी मैं हर्ष के लिए कुछ ज्यादा ही उन्मुक्तता की पक्षधर हो गई थी. उस की उचित, अनुचित, हर तरह की फरमाइशें पूरी करने में मैं धन्यता अनुभव करती. परंतु क्या यह ठीक था?

मां और पिताजी ने हमें अनुशासन में रखा. हमारी गलतियों की आलोचना की. बचपन से ही गिनती के खिलौनों से खेलने की, उन्हें संभाल कर रखने की आदत डाली. प्यार दिया पर गलतियों पर सजा भी दी. शौक पूरे किए पर बजट से बाहर जाने की कभी इजाजत नहीं दी. सबकुछ संयमित, संतुलित और सहज. शायद इस तरह से पलनेबढ़ने से ही मुझ में एक आत्मबल जगा. अब तक तो इस बात का एहसास भी नहीं हुआ था पर शायद इसी से एक संतुलित व्यक्तित्व की नींव पड़ी. शादी के समय भी कई बार नकारे जाने से मन ही मन दुख तो होता था पर इस कदर नहीं कि जीवन से आस्था ही उठ जाए.

मैं गंभीर हो कर मौसी के बाल, उन की पीठ सहलाती जा रही थी.

हर्ष विस्मय से हम दोनों की इस अप्रत्याशित प्रतिक्रिया को देख रहा था. उसे शायद लगा कि उस के ईमानदारी से न खेलने के कारण ही मौसी को इतना दुख पहुंचा है और उस ने चुपचाप अपनी गोटी 99 से हटा कर 6 पर रख दी और मौसी से खेलने के लिए फिर उसी उत्साह से अनुरोध करने लगा.

जगमग दीप जले : भाग 1

अंजलि को यहां आ कर कितना सूना लगता है. जब से विवेक के साथ उस का विवाह हुआ है, उस की जिंदगी सूनी हो गई है. विवाह से पहले की जितनी भी कल्पनाएं और आकांक्षाएं थीं वे सब धूल में मिल गईं. उस ने कितने स्वप्न देखे थे विवेक के साथ आनंद मनाने के, पर वे सब एकदम मिट्टी में मिला दिए उस ने. उसे क्या मालूम था कि ऊपर से इतना खुशमिजाज दिखाई देने वाला व्यक्ति दिल का इतना कंजूस होगा कि उस की सारी आशाओं को पैरों तले रौंद कर रख देगा. उफ, क्या उस ने इसीलिए विवाह किया था कि दिनरात पैसेपैसे का हिसाबकिताब रखती रहे, दिन में 3 बार खाना बनाने की चिंता को सिर से बांधे रहे, उस पर भी हर समय बचतबचत का रोना सुने?

कई बार स्वयं उसे अपने किए पर रोना आता था. उस ने स्वयं ही तो विवेक को चाहा, उस से प्रेम किया और मातापिता की इच्छा के विरुद्ध उस से विवाह भी कर लिया. उस ने तो सोचा था कि विवेक डाक्टर है. ढाई लाख रुपए प्रतिमाह वेतन है. कुछ ऊपर की भी कमाई होगी. दोनों खूब मजे से रहेंगे. यदि यह पता होता कि विवेक के साथ ऐसी जिंदगी गुजारनी पड़ेगी तो वह कदापि उस से विवाह न करती.

आज उसे पश्चात्ताप हो रहा है कि उस ने पिताजी की पसंद के लड़के विक्रांत से शादी क्यों नहीं की, जो उस की हर फरमाइश पूरी करने के योग्य था, आभूषण, अच्छेअच्छे कपड़े, कार व ऐशोआराम की जिंदगी, सबकुछ होता उस के पास. एक विवेक है कि शादी के 2 वर्ष बाद भी कोई अच्छा सा महंगा गिफ्ट उसे ला कर नहीं दे सका. वह घृणा से मुंह बना लेती है जैसे विवेक का नाम अब उस के लिए कोई कड़वी वस्तु बन गया हो.

दीवाली आने में केवल 10 दिन बाकी हैं. पर विवेक को इस से कोई मतलब नहीं. न घर में सजावट की कोई नई चीज, न घर की लिपाईपुताई का खयाल, न रोशनी के प्रबंध की चिंता. बस, अपनी ड्यूटी से मतलब है. दिनरात मरीजों से जू झता रहता है. जैसे घर में बस, उसे खानापीना बनाने के लिए ही रख छोड़ा हो.

ऊंह, ऐसे व्यक्ति को तो शादी ही नहीं करनी चाहिए थी. प्रेम का ढोंग रचाते हैं एक लड़की को अपनी महरी बनाने के लिए. न विवाह का कोई उत्साह, न जवानी की उमंग. और तो और शादी के बाद पिताजी ने हनीमून के लिए जो पैसा दिया था उसे भी गांठ में बांध कर रख लिया और मु झे टका सा जवाब पकड़ा दिया, ‘डाक्टरों के पास हनीमून मनाने का समय नहीं होता, अंजलि. इन दिनों मेरे कई मरीजों की हालत गंभीर है. उन्हें मरता हुआ छोड़ कर मैं हनीमून मनाने चला जाऊं तो कुछ भी आनंद नहीं आएगा. क्षमा करना मुझे.’

एकएक दिन कठिनाई से गुजार रही है वह विवेक के साथ. पिछली दीवाली को पापा के घर की कितनी याद आई थी. बहुत जिद की थी उस ने कि दीवाली पर या तो वे दोनों ही चलें या केवल उसे ही भेज दिया जाए.

पर विवेक ने उस की एक न सुनी. ‘वाह, विवाह के पश्चात हमारी पहली दीवाली है. हम इकट्ठे मनाएंगे यहीं अपने घर में. हां, तुम चाहो तो कुछ घंटों के लिए तुम्हें वहां ले जाऊंगा.’

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अंजलि ने ज्यादा जिद फिर इसी आशा से नहीं की कि विवेक वास्तव में ही उस के साथ दीवाली बहुत अच्छे ढंग से मनाने वाला है. पर दीवाली के नाम पर हुआ कुछ नहीं. थोड़े से पटाखे, कुछ मोमबत्तियां और दीए. थोड़ाबहुत खानेपीने का सामान. उन्हीं में ऐसा खुश हो रहा था मानो क्या कुछ ले आया हो. न तो कोई उपहार ही उसे ला कर दिया, न घर को बिजली की फिटिंग से सजाया. ‘थोड़े से दीयों और मोमबत्तियों से भी कोई दीवाली मनाई जाती है? जब तक आसपास के सब मकानों में अपना मकान सब से अधिक न जगमगाए तब तक दीवाली ही कैसी?’ वह दिल ही दिल में जल उठी थी विवेक की कंजूसी पर.

अब की बार तो चाहे कुछ भी हो, वह अपने घर की सजावट पर अच्छाखासा खर्च करेगी. आखिर वह हर महीने रुपए किसलिए बचाती है. बस, विवेक को तो यही धुन सवार है कि अपनी आमदनी में से इतना तो हर महीने बचना ही चाहिए. पर दीवाली के आने पर तो वह पूरा वेतन खर्च करेगी. आखिर साल में एक ही बार तो आती है दीवाली. यदि विवेक उसे ऐसा नहीं करने देगा तो वह अपना रास्ता अलग अपनाएगी, वह अपनी इच्छाओं को और अधिक नहीं मार सकती.

पलंग पर लेटेलेटे उसे उन दिनों की याद हो आई जब दीवाली से महीना पहले ही घर में मेला लगने लगता था. एक ओर तो मां घर की सजावट व सफाई के लिए नौकरों को निर्देश देती रहतीं, दूसरी ओर दीवाली की खरीदारी चलती रहती. दिनभर कोई न कोई सामान के लिए बाजार दौड़ता रहता. नित्य नई खरीदी वस्तुओं से घर भर जाता. घर के सभी व्यक्तियों के लिए अपनीअपनी पसंद के कपड़े बनते, रात के समय पिताजी के मित्रों का जमघट शुरू हो जाता. घर के सामने कारों की लाइन लग जाती. हंसी के कहकहों के साथ कब रात ढल जाती और सुबह के 3-4 बज जाते, किसी को पता भी न चलता. कितनी हसीन व रंगीन रातें होती थीं वे. यह सब याद कर के अंजलि की आंखें भर आईं. उस के आंसू तकिए पर गिरने लगे पर पोंछने की भी सुध उसे नहीं रही.

ज्यों ही उस की नजर ऊपर उठी, उस ने विवेक को सामने खड़ा पाया. उस ने  झट से अपने आंसू पोंछ लिए. विवेक उसे रोता देख कर मुसकरा उठा. बोला, ‘‘मैं जानता हूं तुम क्यों रो रही हो. मु झ से शादी कर के पछता रही हो न?’’

अंजलि को भी कहने का अवसर मिल गया, ‘‘हां, पछता रही हूं. मैं क्या कोई भी लड़की मेरी जैसी स्थितियों में रह कर आप जैसे व्यक्ति के साथ कभी सुखी नहीं रह सकती. यह भी कोई जिंदगी है? हर वक्त रुपएपैसे की चिंता करो, अपनी इच्छाओं को मारो. आखिर व्यक्ति कमाता किसलिए है? खर्च करने के लिए ही तो?’’

‘‘तुम मु झे गलत सम झ रही हो, अंजलि. मैं ने कभी तुम से अपनी आवश्यक वस्तुएं खरीदने के लिए मना नहीं किया. पर इच्छाओं का नाम ले कर मैं घर फूंक कर तमाशा नहीं देखना चाहता, दीवाली के नाम पर दीवालिया कभी नहीं बनूंगा. इतना याद रखो.’’

‘‘तुम स्वयं खर्च नहीं कर सकते तो चलो अब की बार अभी से पापा के यहां चलते हैं. वहीं शान से दीवाली मनाएंगे.’’ अंजलि ने अपने मन की बात कह दी.

‘‘पिछले वर्ष ले तो गया था तुम्हें कुछ घंटों के लिए वहां. सच पूछो तो मेरा तो दम ही घुट रहा था. शराब और जुआ, पूरी रात का जागरण, अगले दिन ड्यूटी भी नहीं कर पाया ढंग से. मु झे ऐसी अनियमित जिंदगी से नफरत है,’’ अपने एकएक शब्द पर जोर देते हुए विवेक ने कहा.

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अंजलि तड़प उठी, ‘‘पैसा बचाने की फिक्र में तुम जैसा व्यक्ति उस आनंद को कैसे जान पाएगा? त्योहार पर भी आनंद न मनाया तो जिंदगी कैसी?’’

‘‘जो मेहनत से कमाता है, वह अपनी कमाई को कभी भी यों शराब और जुए में नहीं बहा सकता. न ही काम करने वाला व्यक्ति इस प्रकार अपने समय को बरबाद कर सकता है. इस बार तो मैं बिलकुल वहां नहीं जाऊंगा,’’ उस ने दृढ़ता से कहा.

‘‘फिर यदि मेरे साथ यहीं दीवाली मनाना चाहते हो तो जैसे मैं चाहूं, वही करना होगा. मेरी शर्त नहीं मानोगे तो मैं तुम्हारी एक नहीं सुनूंगी और चली जाऊंगी अपने मायके. मेरा भी यह दृढ़ निर्णय है,’’ अंजलि रूठे स्वर में बोली.

‘‘मैं तुम्हारी हर उचित शर्त मानने को तैयार हूं, अंजलि, पर यदि तुम चाहो कि मैं भी तुम्हारे पापा की तरह अपने घर में शराब और जुए का दौर चलाऊं, रोशनी के नाम पर हजारों रुपए फूंक दूं, तो वह मु झ से कभी नहीं होगा.’’

‘‘क्या साल में एक बार भी मेरे लिए इतना नहीं कर सकते? क्या तुम्हारे लिए रुपए का महत्त्व मेरी खुशी से ज्यादा है?’’ और भी रुष्टताभरे शब्दों में अंजलि ने कहा.

‘‘तुम्हीं सोचो, अंजलि, दीवाली हर साल आएगी और जिंदगी लंबी है. हर वर्ष इतना पैसा फूंकने के बजाय बचाएंगे, तो हमारे ही काम आएगा,’’ विवेक ने सम झाने के लहजे से कहा.

‘‘पापा के घर में तो कभी रुपया बचाने का नाम ही मैं ने नहीं सुना. पैसा तो आदमी के हाथ का मैल होता है. इसे तो धोने में ही भलाई है. मैं ने तो मां से यही सुना था.’’

‘‘जब तक मनुष्य के पास अंधाधुंध पैसा रहता है वह यही सोचता है. मेरे पास तुम्हारे पापा जितनी अंधाधुंध कमाई नहीं है. न ही मैं ऐसे पैसे का कुछ ही महत्त्व सम झता हूं. अब तुम मेरी पत्नी हो. तुम्हें मेरे साथ जिंदगी गुजारनी है. पैसे के महत्त्व को सम झना है. बस, यही मैं तुम से चाहता हूं.’’

‘‘तो तुम भी कान खोल कर सुन लो. मैं भी ऐसे गिनगिन कर पैसे खर्च करने की आदी नहीं हूं,’’ अंजलि तड़प उठी.

अगले दिन विवेक जब अस्पताल से लौटा तो घर के बाहर ताला लगा देख कर वह जान गया कि अंजलि चली गई है. उस ने पड़ोस के घर से चाबी मांगी. सूने घर में प्रवेश कर के उस का हृदय विदीर्ण हो उठा, पर वह जानता था कि अंजलि को अवश्य ही एक दिन अपनी गलती, महसूस होगी और वह उस के पास लौट आएगी. आशा का एक दीप अब भी उस की आंखों के आगे जगमगा रहा था.

सम्मान : भाग 1

यों तो इस तरह के पत्र आते रहते थे और मैं उन्हें अनदेखा करता रहता था, लेकिन इन पत्रों पर गौर करना तब से शुरू कर दिया जब से शहर के एक लेखक ने मित्रमंडली में बताया कि उसे अब तक देश की विभिन्न साहित्यिक संस्थाओं से एक हजार सम्मान मिल चुके हैं. मित्र लोग वाहवाह कर उठे. एक दिन मुझ से पूछा, ‘‘तुम्हें कोई सम्मान नहीं मिला आज तक? तुम भी तो काफी समय से लिख रहे हो.’’ उस समय मैं ने स्वयं को अपमानित सा महसूस किया.

मेरे शहर के इस लेखक मित्र के बारे में अकसर अखबार में छपता रहता था कि शहर का गौरव बढ़ाने वाले लेखक को दिल्ली की एक प्रसिद्ध साहित्यिक संस्था से एक और पुरस्कार. मैं ने अपने लेखक मित्र से पूछा, ‘‘इन पुरस्कारों की क्या योग्यता होती है?’’

उस ने गर्व से कहा, ‘‘मेहनत, लगन और लेखन. इस में कोई भाईभतीजावाद नहीं चलता. जो अच्छा लेखक होता है उसे सम्मान मिलता ही है.’’

मैं ने कहा, ‘‘आप की आयु तो मुझ से बहुत कम है. आप ने शायद मेरे बाद ही लिखना शुरू किया है. अब तक कितना लिख चुके हो.’’

उन्होंने नाराज हो कर कहा, ‘‘ कितना लिखा है, यह जरूरी नहीं है और आयु का लेखन से लेनादेना नहीं है. मेरी 2 किताबें छप चुकी हैं. मैं ने 20 कविताएं और 10 के आसपास कहानियां लिखी हैं. लेकिन लेखन इतना शानदार है कि साहित्यिक संस्थाएं स्वयं को रोक नहीं पातीं मुझे सम्मान देने से.’’

मैंने कहा, ‘‘मुझे भी बताइए कहां से कैसे सम्मान मिलते हैं? क्या करना पड़ता है? पुस्तकें कैसे छपती हैं?’’

उन्होंने कहा, ‘‘आप बड़े स्वार्थी हैं. साहित्य सेवा का काम है. साहित्य से यह उम्मीद मत रखिए कि आप को कुछ मिले. आप को देना ही देना होता है. 2 पुस्तकें मैं ने स्वयं के खर्च पर छपवाई हैं. और सम्मान मिलते हैं योग्यता पर.’’

खैर, दोस्त ने अपना उत्तर दे दिया. मैं ने फिर वे पत्र निकाले जिन्हें मैं अनदेखा करता रहता था. जो पत्र बचे हुए थे, उन्हें पढ़ना शुरू किया. काफी तो मैं फाड़ चुका था, बेकार समझ कर. ठीक वैसे ही जैसे अकसर मोबाइल पर एसएमएस आते रहते हैं कि आप को 10 करोड़ मिलने वाले हैं कंपनी की ओर से. आप इनकम टैक्स और अन्य खर्च के लिए हमारी बैंक की शाखा में फलां नंबर के अकाउंट में 10 हजार रुपए डिपौजिट करवा दें.

बाद में समाचारपत्रों से खबर मिलती है कि इन्हें ठग लिया गया है. इन की रकम डूब चुकी है. बैंक अकाउंट से सारे रुपए निकाल कर इनाम का लालच देने वाले गायब हो चुके हैं. खाता बंद हो चुका है. पुलिस की विवेचना जारी है. ऐसे ठगों से जनता सावधान रहे.

पहले पत्र में लिखा था कि हमारी अंतर्राष्ट्रीय साहित्यिक संस्था ने आप को श्रेष्ठ लेखन का पुरस्कार देने का निर्णय लिया है. यदि आप इच्छुक हों तो कृपया अपना पासपोर्ट साइज कलर फोटो, संपूर्ण परिचयपत्र, साहित्यिक उपलब्धियां और 1,500 रुपए का एमओ या नीचे दिए बैंक खाते में राशि जमा करें. एक फौर्म भी संलग्न था. प्रविष्टि भेजने की अंतिम तारीख निकल चुकी थी. दूसरा पत्र भी इसी तरह था. बस, अंतर राशि की अधिकता और पुरस्कार श्रेष्ठ कविता पर था. साथ में पुस्तक की 2 प्रतियां भेजनी थीं. इस की भी अंतिम तिथि निकल चुकी थी.

सम्मान का लोभ हर लेखक को होता है, थोड़ा सा मुझे भी हुआ. मैं ने पत्र के अंत में दिए नंबरों पर बात करने की सोची. पहले को फोन किया, कहा, ‘‘महोदय, आप की संस्था अच्छा कार्य कर रही है. अंतिम तिथि निकल चुकी है. कुछ प्रश्न भी हैं मन में.’’

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उन्होंने उधर से कहा, ‘‘आप भेज दीजिए. अंतिम तिथि की चिंता मत कीजिए. हम आप की प्रविष्टि को एडजस्ट कर लेंगे.’’

मैं ने दूसरा प्रश्न किया, ‘‘जनाब, साहित्यिक उपलब्धियों में क्या लिखूं? लिख तो पिछले 20 साल से रहा हूं लेकिन कोई उपलब्धि नहीं हुई. बस, कहानियां, लेख लिख कर अखबार में भेजता रहता हूं. फिर उसी अखबार, जिस में रचना छपी होती है, को खरीदता भी हूं क्योंकि समाचारपत्र वालों से पूछने पर यही उत्तर मिलता है, ‘हम छाप कर एहसान कर रहे हैं. आप 2 रुपए का अखबार नहीं खरीद सकते. हमारे पास और भी काम हैं.’

‘‘‘हम अखबार की प्रति नहीं भेज सकते. आप चाहें तो अपनी रचनाएं न भेजें. हमें कोई कमी नहीं है रचनाओं की. रोज 10-20 लेखकों की रचनाएं आती हैं और हां, भविष्य में रचनाएं छपवाना चाहें तो पहला नियम है कि अखबार की वार्षिक, आजीवन सदस्यता ग्रहण करें. साथ ही, समाचारपत्र में दिया साहित्य वाला कूपन भी चिपकाएं. आजकल नया नियम बना है लेखकों के लिए. आप लोगों को छाप रहे हैं तो अखबार को कुछ फायदा तो पहुंचे.’’’

उधर से साहित्यिक संस्था वाले ने अखबार वालों को कोसा. उन्हें व्यापारी बताया और खुद को लेखकों को प्रोत्साहन देने वाला सच्चा उपासक. ‘‘आप उपलब्धि में जो चाहे लिख कर भेज दीजिए. जैसे, पिछले कई वर्षों से लगातार लेखन कार्य. चाहे तो अखबार में छपी रचनाओं की फोटोकौपी भेज दीजिए. ज्यादा नहीं, दोचार.’’

मैं ने फिर पूछा, ‘‘श्रीमानजी, ये 1,500 रुपए किस बात के भेजने हैं?’’ उन्होंने समझाया. मैं ने समझने की कोशिश की. ‘‘देखिए सर, सम्मानपत्र छपवाने का खर्चा, संस्था के बैनरपोस्टर लगवाने का खर्चा और आप के लिए चायनाश्ता का इंतजाम भी करना होता है. आप को संस्था का स्मृतिचिह्न भी दिया जाएगा. शौल ओढ़ा कर माला पहनाई जाएगी. आप को जो सुंदर आमंत्रणपत्र भेजा है उस की छपवाई से ले कर डाक व्यय तक. फिर मुख्य अतिथि के रूप में बड़े अधिकारी, नेताओं को बुलाना पड़ता है. उन की खातिरदारी, सेवा में लगने वाला व्यय. बहुत खर्चा होता है साहब. जो हौल हम किराए पर लेते हैं उस का भी खर्चा.’’

ऐसे कई खर्च उन्होंने गिनाते हुए कहा, ‘‘संस्था की आर्थिक स्थिति अच्छी नहीं है, इसलिए हम सब से सहयोग लेते हैं. चंदा करते हैं. ऐसे में लेखकों का दायित्व भी है कि वे अपने ही सम्मान के लिए कुछ तो खर्च करें. आखिर नाम तो लेखकों का ही होता है. हमारी जेब से भी बहुत खर्च होता है. लेकिन साहित्य सेवा का बीड़ा उठाया है, तो कर रहे हैं साहित्य की सेवा. आप जल्दी करिए. हमें गर्व होगा आप को सम्मानित करने में. भविष्य में योजना है कि लेखकों को नकद पुरस्कार भी दिया जाए. आनेजाने का खर्च भी. अब आप से इतने सहयोग की तो अपेक्षा कर ही सकते हैं.’’

मैं ने कहा, ‘‘ठीक है, बाकी तो सब भेज दूंगा लेकिन जिसे आप प्रविष्टि शुल्क या रजिस्ट्रेशन शुल्क कहते हैं वह भेज पाना संभव नहीं है.’’

उधर से कुछ नाराजगीभरी आवाज आई, ‘‘संस्था का नियम है कि बिना शुल्क के सम्मान पर विचार नहीं किया जाएगा. बाकी भले ही कुछ न भेजें लेकिन शुल्क जरूर भेजें. आजकल तो बड़ीबड़ी पत्रिकाएं छापने से पहले शर्त रखती हैं कि पत्रिका की वार्षिक, आजीवन सदस्यता लेने वालों की रचनाएं ही छापी जाएंगी. फिर, हमारी संस्था तो छोटी है.’’

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मैं ने कहा, ‘‘विचार कर के बताता हूं.’’

उन्होंने कहा, ‘‘जल्दी करिए.’’

मैं ने दूसरे पत्र को पढ़ कर उस के अंत में दिए फोन नंबर पर फोन लगाया.

मैं ने कहा, ‘‘महोदय, आप ने मुझे कविता पर सम्मान देने के लिए आमंत्रणपत्र भेजा है. लेकिन मैं तो कविताएं लिखता ही नहीं हूं.’’

‘‘अरे, तो साहब लिख डालिए. न लिख सकें तो जो लिखा है उसी पर सम्मान दे देंगे. फोटो, परिचय और 2,500 रुपए का मनीऔर्डर भेज दीजिए. जल्दी करिए.’’

ऐसा लगा जैसे किसी कंपनी का लुभावना औफर निकला हो. मैं ने प्रविष्टि/सहयोग/रजिस्ट्रेशन शुल्क के विषय में पूछा तो पहले सेवा करने वाले की तरह ही उत्तर मिला, ‘‘बिना शुल्क के कुछ नहीं. पहली और अनिवार्य शर्त है शुल्क.’’

समझ में तो सब आ रहा था लेकिन मन में सम्मान की इच्छा थी, तो सोचा, एक बार चल कर देखा जाए और मैं ने प्रविष्टि शुल्क सहित सबकुछ भेज दिया. कुछ समय बाद निमंत्रणपत्र आया कि आप को सम्मान 28 अगस्त, 2019 समय 2 बजे रामप्रसाद शासकीय विद्यालय में दिया जाएगा. हम अपने साथ 2 जोड़ी कपड़े ले कर ट्रेन में चढ़े. समयपूर्व रिजर्वेशन करवा लिया था. 500 किलोमीटर के लंबे सफर की थकान के बाद एक होटल पहुंचे. 1,000 रुपए एक दिन के हिसाब से होटल में कमरा मिला. 100 रुपए प्लेट के हिसाब से भोजन किया. फिर रिकशा कर के नियत समय पर कार्यक्रम में सम्मानित होने की लालसा लिए पहुंचे. वहां अपना परिचय दिया. संस्था के सचिव ने हाथ मिला कर बधाई देते हुए कहा, ‘‘आप बैठिए.’’

‘‘समारोह कब शुरू होगा?’’

‘‘मुख्य अतिथि के आने पर. वे ठहरे बड़े आदमी. आराम से आएंगे. तब तक बैनर, पोस्टर लग जाएंगे. आप चाहें तो थोड़ी मदद कर सकते हैं.’’

मैं ने हामी भर दी. उन्होंने मुझे मंच पर मुख्य अतिथियों की कुरसी लगाने में लगा दिया. धीरेधीरे लोग आते रहे. मैं अपना काम समाप्त कर के दर्शक दीर्घा में पड़ी कुरसी पर बैठ गया. छोटा सा हौल भर गया. हौल में 50 लोगों के बैठने की जगह थी. कैमरामैन भी आ गया.

मंच पर 8-10 लोगों को नाम ले कर बिठाया गया जिन में कोई शिक्षा विभाग का कुलपति, अखबार का प्रधान संपादक, राजनीति से जुड़े हुए स्थानीय नेता थे. एक वयोवृद्ध लेखक जिन का नाम तभी पता चला कि ये लेखक हैं, इस शहर के बहुत बड़े लेखक. एकदो ऐसे लोग भी थे जिन्होंने अपने दिवंगत मातापिता के नाम पर पुरस्कार रखे थे.

सारा मंच मुख्य अतिथियों से भरा हुआ था और दर्शक दीर्घा में मेरे जैसे लेखक बैठे हुए थे.

जनता हम ही थे. दर्शक हम लेखक लोग ही थे. पढ़ने वाला, सुनने वाला कोई नहीं था. सब से पहले मुख्य अतिथियों महोदय ने दीप प्रज्ज्वलित किए. इसी बीच कुछ कन्याओं ने अपने गीतों से सब को मंत्रमुग्ध कर दिया. इस के बाद संस्था अध्यक्ष, जोकि मंच संचालक भी थे, ने एक घंटे तक संस्था के कार्यों पर, सेवा पर उल्लेखनीय प्रकाश डाला.

दर्शक दीर्घा में बैठे लेखक ताली बजाते प्रतीक्षा करते रहे कि कब उन्हें सम्मान मिलेगा. लेकिन अभी तो कार्यक्रम की शुरुआत थी. इस के बाद अपनेअपने क्षेत्र के आमंत्रित 10 मुख्य अतिथियों को फूलमाला पहना कर उन्हें बोलने के लिए बुलाया गया. अपनेअपने क्षेत्र के मुख्य अतिथि अपनेअपने क्षेत्र की बातें बोलते रहे. बोलते रहने का तात्पर्य यह है कि वे अपने विरोधी लेखकों, दूसरी विचारधाराओं के लोगों, अपने शत्रुओं को जीभर कर कोसते रहे. अपने मन की भड़ास निकालते रहे.

25000 करोड़ के मालिक ने की हत्या: भाग 1

भाग 1

29जुलाई, 2019 को दोपहर बाद 60 वर्षीय वीरप्पा गंगैय्या सिद्धार्थ हेगड़े उर्फ वीजी सिद्धार्थ नहाधो कर तैयार हुए तो वे काफी खुश थे. जब वे बाथरूम से बाहर निकले थे तो उन की पत्नी मालविका सिद्धार्थ उन के सामने आ कर खड़ी हो गईं. पति को खुश देख कर उन्होंने मजाक में कहा, ‘‘क्या बात है, साहब. आज तो आप बड़े मूड में लग रहे हो. कहीं घूमने जाना है क्या?’’

‘‘नहीं कंपनी के काम से हासन जाना है, वहां मीटिंग है.’’ वीजी सिद्धार्थ ने दीवार घड़ी पर नजर पर नजर डालते हुए कहा, ‘‘तुम ऐसा करो, मेरा नाश्ता टेबल पर लगा दो. वैसे भी बहुत देर हो गई है. मैं नहीं चाहता कि मेरी वजह से मीटिंग लेट हो. मैं कपड़े पहन कर आता हूं.’’

‘‘आप कपड़े पहन कर आओ, नाश्ता टेबल पर तैयार मिलेगा.’’ मालविका ने कहा.

‘‘सुनो, मालविका… जरा देखना, बासवराज कहां है? उस से कहो गाड़ी तैयार रखे, मैं तुरंत आता हूं.’’

‘‘जी ठीक है. मैं देखती हूं. आप तैयार हो कर आओ.’’

कहती हुई मालविका किचन की ओर चली गई. उन्होंने अपने हाथों से पति का नाश्ता तैयार कर के डाइनिंग टेबल पर लगा दिया. साथ ही पति को आवाज दे कर बता भी दिया कि नाश्ता डाइनिंग टेबल पर लगा दिया है, नाश्ता कर के ही बाहर जाएं. उन्होंने ड्राइवर बासवराज को आवाज दे कर साहब की गाड़ी तैयार करने को भी कह दिया. बासवराज साहब की गाड़ी तैयार कर उन के आने का इंतजार करने लगा.

वीजी सिद्धार्थ नाश्ता कर के डाइनिंग रूम से बाहर निकले तो पत्नी मालविका भी उन के पीछेपीछे आईं. और उन्हें बाहर आ कर सी औफ किया. जब कार आंखों के सामने से ओझल हो गई तो मालविका अपने कमरे में लौट आईं. उस समय दोपहर के 2 बजे थे. बंगलुरु से हासन 182 किलोमीटर था यानी करीब साढ़े 3 घंटे का सफर.

सिद्घार्थ के दोनों बेटे अमर्त्य सिद्धार्थ और ईशान सिद्धार्थ अपनी कंपनी कैफे कौफी डे इंटरप्राइजेज लिमिटेड की ड्यूटी पर चले गए थे. पिता के व्यवसाय को उन के दोनों बेटों ने ही संभाल रखा था. दरअसल, कौफी का व्यवसाय उन के पूर्वजों से चला आ रहा था.

वीजी सिद्धार्थ ने पूर्र्वजों के व्यवसाय को  आगे बढ़ाने के लिए पिता से 5 लाख रुपए ले कर सन 1996 में बेंगलुरु के ब्रिगेट रोड पर कारोबार शुरू किया था. उन्होंने कड़ी मेहनत और लगन से उस व्यवसाय को 25000 करोड़ के एंपायर में बदल दिया था. इसी बिजनैस के सिलसिले में वह बंगलुरु से हासन की मीटिंग करने जा रहे थे.

न जाने क्यों अचानक वीजी सिद्धार्थ का मूड बदल गया. उन्होंने रास्ते में ड्राइवर बासवराज पाटिल से हासन के बजाए मंगलुरु की ओर गाड़ी मोड़ने को कहा. मालिक के आदेश पर बासवराज ने गाड़ी हासन के बजाए मंगलुरु की ओर मोड़ दी.  मंगलुरु से पहले रास्ते में जिला कन्नड़ पड़ता था.

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कन्नड़ जिले से हो कर ही मंगलुरु जाया जाता था. बासवराज ने कार कन्नड़ मंगलुरु के रास्ते पर दौड़ानी शुरू कर दी. उस समय शाम के 5 बज कर 28 मिनट हो रहे थे. करीब एक घंटे बाद यानी शाम के 6 बज कर 30 मिनट पर उन की कार कन्नड़ जिले की ऊफनती हुई नेत्रवती नदी के पुल पर पहुंची.

पुल पर पहुंच कर सिद्धार्थ ने बासवराज से गाड़ी रोकने के लिए कहा. मालिक का आदेश मिलते ही बासवराज पाटिल ने गाड़ी पुल शुरू होते ही रोक दी. चमकदार शूट पहने सिद्धार्थ ने गाड़ी से उतर कर ड्राइवर से कहा कि वह टहलने जा रहे हैं. उन के वापस लौटने तक वहीं इंतजार करे. फिर वह टहलते हुए आगे चले गए.

सिद्धार्थ की यह बात बासवराज को कुछ अजीब लगी. उस की समझ में नहीं आया कि साहब को अचानक क्या सूझा जो उन का पुल पर टहलने का मन बन गया. लेकिन उस में इतनी हिम्मत नहीं थी कि मालिक से इस बारे में कुछ पूछ सके. वह अपलक और चुपचाप मालिक को आगे जाते हुए देखता रहा.

वीजी सिद्धार्थ को टहलने को निकले करीब डेढ़ घंटा बीत चुका था. बासवराज बारबार कलाई घड़ी पर नजर डालतेडालते थक चुका था. सिद्धार्थ टहल कर वापस नहीं लौटे थे. फिर उस ने हिम्मत जुटा कर उन के फोन पर काल की तो उन का फोन स्विच्ड औफ मिला.

उस ने जितनी बार सिद्धार्थ के फोन पर काल की उतनी ही बार उन का फोन स्वीच्ड औफ मिला. मालिक का फोन स्विच्ड औफ मिला तो ड्राइवर बासवराज पाटिल परेशान हो गया. उस के मन में कई तरह की आशंकाएं उमड़नेघुमड़ने लगीं. वह समझ नहीं पा रहा था कि वह क्या करे?

बासवराज पाटिल को जब कुछ समझ में नहीं आया तो उस ने मालकिन मालविका को फोन कर के पूरी बात बता दी और वहां से घर लौट आया.

पहले तो मालविका ड्राइवर की बात सुन कर हैरान रह गई. फिर वह पति के फोन पर काल कर के उन से संपर्क करने की कोशिश करने लगीं, लेकिन हर बार उन का फोन स्विच्ड औफ ही मिला. पति का  फोन बंद देख मालविका परेशान हो गईं. उन्होंने ये बातें अपने दोनों बेटों अमर्त्य और ईशान को बता कर पिता का पता लगाने को कहा.

बेटों ने भी पिता के फोन पर बारबार काल कीं, लेकिन उन का फोन स्विच्ड औफ ही मिला. रात गहराती जा रही थी. बेटों ने पिता के दोस्तों और उन के करीबियों को फोन कर के उन के बारे में पूछा तो सब ने अनभिज्ञता जताते हुए कहा कि सिद्धार्थ न तो उन के पास आए और न ही  उन्होंने फोन किया.

बहरहाल, मालिक का पता न चलने पर घर लौटे ड्राइवर बासवराज पाटिल से मालविका और उन के दोनों बेटों ने सवालों की झड़ी लगा दी. उन के सवालों का उस ने वही जवाब दिया जो वह जानता था. बासवराज की बात सुन कर मालविका और उन के बेटों को पिता के अपहरण किए जाने की आशंका सताने लगी, लेकिन वे किसी नतीजे पर नहीं पहुंच सके. वीजी सिद्धार्थ के रहस्यमय तरीके से लापता होने घर में कोहराम मचा था.

सिद्धार्थ कोई मामूली इंसान नहीं थे. वह जानेमाने बिजनैस टायकून थे. 25000 हजार करोड़ की संपत्ति के मालिक और कर्नाटक के पूर्व मुख्यमंत्री एस.एम. कृष्णा के दामाद. सिद्धार्थ के लापता होने की खबर मीडिया तक पहुंच गई थी. इस के बाद यह खबर न्यूज चैनलों की लीड खबर बन कर न्यूज पट्टी पर चलने लगी.

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अगले दिन 30 जुलाई को अमर्त्य छोटे भाई ईशान और चालक बासवराज पाटिल को ले कर कन्नड़ जिले के लिए रवाना हो गए. वहां पहुंच कर अमर्त्य पुलिस उपायुक्त से मिले ओर उन्हें पूरी बात बता कर पिता का पता लगाने को कहा. उन के आदेश पर कर्नाटक पुलिस ने सिद्धार्थ की गुमशुदगी की सूचना दर्ज कर के उन की खोजबीन शुरू कर दी.

दूसरी ओर मालविका पति को ले कर परेशान थीं. दरअसल सिद्धार्थ पिछले कई दिनों से बिजनैस को ले कर काफी तनाव में थे. पूछने पर उन्होंने अपनी परेशानी का कोई ठोस जवाब नहीं दिया था.

मालविका ने पति की अलमारी खोली तो अलमारी से उन की एक डायरी हाथ लग गई. उत्सुकतावश मालविका डायरी खोल कर उस के पन्नों को उलटनेपलटने लगीं. इस कवायद में उन के हाथ पति की हाथ से लिखी एक चिट्टी मिली.

वह चिट्ठी उन्होंने अपनी कंपनी के कर्मचारियों को संबोधित करते हुए लिखी थी. पत्र पढ़ कर मालविका के पैरों तले से जमीन खिसक गई. वीजी सिद्धार्थ ने पत्र में जो लिखा था, उस का आशय साफ था. पत्र के हिसाब से वीजी सिद्धार्थ का अपहरण नहीं हुआ था, बल्कि उन्होंने आत्महत्या कर ली थी.

वह पत्र सिद्धार्थ ने कैफे कौफी डे के कर्मचारियों और निदेशक मंडल को संबोधित करते हुए लिखा था. पत्र में उन्होंने लिखा था कि हर वित्तीय लेनदेन मेरी जिम्मेदारी है. कानून को मुझे और केवल मुझे जवाबदेह मानना चाहिए.

सिद्धार्थ ने आगे लिखा कि जिन लोगों ने मुझ पर विश्वास किया उन्हें निराश करने के लिए मैं माफी मांगता हूं. मैं लंबे समय से लड़ रहा था, लेकिन आज मैं हार मान गया हूं, क्योंकि मैं एक प्राइवेट लेंडर पार्टनर का दबाव नहीं झेल पा रहा हूं, जो मुझे शेयर वापस खरीदने के लिए विवश कर रहा है.

इस का आधा लेनदेन मैं 6 महीने पहले एक दोस्त से बड़ी रकम उधार लेने के बाद पूरा कर चुका हूं. उन्होंने आगे लिखा कि दूसरे लेंडर भी दबाव बना रहे थे, जिस की वजह से वह हालात के सामने झुक गए.

पत्र पढ़तेपढ़ते मालविका की आंखें नम हो गईं उन्होंने बेटों को फोन कर के बता दिया कि उन के पापा का अपहरण नहीं हुआ है, बल्कि उन्होंने नदी में कूद कर आत्महत्या कर ली है. उस के बाद उन्होंने पति के हाथों लिखे  गए सुसाइड नोट के बारे में सारी बातें बता दी.

अमर्त्य ने यह बात जब पुलिस उपायुक्त शशिकांत सेतिल को बताई तो वे भी चौंके. यह बात उन की समझ में आ गई कि सिद्धार्थ ड्राइवर वासवराज को पुल पर खड़ा कर अकेले टहलने क्यों गए थे.

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पुलिस उपायुक्त शशिकांत सेतिल ने सिद्धार्थ के शव की खोज में नैशनल डिजास्टर रिस्पांस फोर्स (एनडीआरएफ), तटरक्षक, अग्निशमन दल और तटवर्ती पुलिस की टीमों को लगा दिया. पुलिस और गोताखोरों की टीमें भी उन की तलाश में लग गईं.

क्रमश:

विश्व धरोहर मोंट सेंट माइकल चर्च     

क्षेत्र भले ही कोई भी हो, नई टैक्नोलौजी ने हर काम को आसान बना दिया है. लेकिन सदियों पहले इंसान के पास जब सीमित साधन थे, तब भी तमाम ऐसे निर्माण कार्य हुए, जो आजकल असंभव से लगते हैं. ऐसा ही एक चर्च फ्रांस के नौरमंडी प्रांत में एक टापू पर है, जिस का नाम है मोंट सेंट माइकल चर्च. इस चर्च को यूनेस्को ने 1979 में विश्व धरोहरों की सूची में शामिल किया था.

7 हेक्टेयर में फैला मोंट सेंट माइकल चर्च शिल्पकला का अद्भुत नमूना है. जिस टापू पर यह बना है, 708 ईस्वी में उस की खोज बिशप औबर्ट औफ एवरांचेज ने की थी. उन्होंने यहां चर्च बनवाया, जिसे 1203 में फ्रांस के राजा फिलिप (द्वितीय) ने नष्ट करवा दिया था. बाद में 1863 में इस का पुनरुद्धार कर इसे ऐतिहासिक इमारत घोषित किया गया. बाद में 1979 में इसे विश्व धरोहर में शामिल कर लिया गया.

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मध्यकाल में यह टापू समुद्र से 5 किलोमीटर दूर था, लेकिन धीरेधीरे खाड़ी में गाद जमा होने की वजह से किनारा नजदीक आता गया और इस की दूरी घट कर महज डेढ़ किलोमीटर रह गई. आज भी यह टापू महीने में 2 बार पूरी तरह पानी से घिर जाता है. इस टापू को यूरोप में अपने तीव्र ज्वार के लिए जाना जाता है. अमावस्या और पूर्णिमा को तो यहां 15 मीटर ऊंची लहरें उठती हैं.

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जैविक खेती से सुधरे जमीन की सेहत

 डा. मनोज कुमार, डा. ओमकार सिंह, डा. सतीश कुमार

हरित क्रांति के बाद उत्पादन बढ़ाने के लिए कैमिकल खादों और कीटनाशकों का अंधाधुंध इस्तेमाल किया गया. इस से उत्पादन तो बढ़ा, पर प्राकृतिक असंतुलन भी बढ़ता चला गया. पेड़पौधों के साथसाथ इनसानों में भी तरहतरह की बीमारियां पनपने लगी हैं, मिट्टी ऊसर होती जा रही है और खेती से उपजने वाली चीजों की क्वालिटी भी खराब हो रही है. ऐसी स्थिति में जैविक खेती का महत्त्व और भी बढ़ जाता है.

खेती की ऐसी प्रक्रिया जिस में उत्पादन के लिए इस्तेमाल किए जाने वाले निवेशों के आधार पर जीव अंश से उत्पादित हो और पशु, इनसान और जमीन की सेहत को टिकाऊ बनाते हुए स्वच्छता के साथ पर्यावरण को भी पोषित करे, जैविक खेती कही जाएगी.

यानी जैविक खेती एक ऐसा तरीका है, जिस में कैमिकल खादों, कीटनाशकों और खरपतवारनाशियों के बजाय जीवांश खाद पोषक तत्त्वों (गोबर की खाद, कंपोस्ट, हरी खाद, जीवाणु कल्चर, जैविक खाद वगैरह) जैवनाशियों (बायोपैस्टीसाइड) व बायोएजेंट जैसे क्राईसोपा वगैरह का इस्तेमाल किया जाता है, जिस से न केवल जमीन की उपजाऊ कूवत लंबे समय तक बनी रहती है, बल्कि पर्यावरण भी प्रदूषित नहीं होता. साथ ही, खेती की लागत घटने व उत्पाद की क्वालिटी बढ़ने से किसानों को ज्यादा फायदा भी मिलता है.

जैविक खेती को अपनाने के लिए पशुपालन को बढ़ावा देना होगा. अगर हमारा पशुधन अच्छा, स्वस्थ और अधिक नहीं है तो जैविक खेती संभव नहीं है. जैविक खेती में देशी खादें जैसे गोबर की खाद, नाडेप कंपोस्ट, वर्मी कंपोस्ट व हरी खादों का ज्यादा से ज्यादा इस्तेमाल करना चाहिए.

जैविक खेती की प्रक्रिया : जैविक खेती के लिए हमेशा गरमी में जुताई करना, उस के बाद उस में हरी खाद की बोआई करना जरूरी रहता?है. खेत की तैयारी पशुओं द्वारा पशुचालित यंत्रों से करनी चाहिए.

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जैविक उर्वरक प्रयोग विधि

बीज का उपचार: 200 ग्राम नाइट्रोजन स्थरीकरण के लिए (एजोटोबैक्टर/ राइजोबियम) जैव उर्वरक और 200 ग्राम पीएसबी जैव उर्वरक 300 से 400 मिलीलिटर पानी में अच्छी तरह मिला लें. इस?घोल में

50 ग्राम गुड़ भी घोल लेते हैं, ताकि बीजों पर घोल अच्छी तरह से चिपक जाए.

इस?घोल को 10-12 किलोग्राम बीज पर डाल कर हाथ से तब तक मिलाएं, जब तक कि सभी बीजों पर एकसमान परत न चढ़ जाए. अब इन बीजों को छायादार और हवादार जगह पर सूखने के लिए रख दें.

अम्लीय या क्षारीय मिट्टी वाली जमीन के लिए किसानों को यह सलाह दी जाती है कि जैव आधारित बीजों को 1 किलोग्राम बुझा चूना अम्लीय मिट्टी में या जिप्सम पाउडर क्षारीय मिट्टी द्वारा उपचारित करें.

जड़ का उपचार : 1 किलोग्राम से 2 किलोग्राम नाइट्रोजन स्थरीकरण जैव उर्वरक (एजोटोबैक्टर/एजोस्पाइरिलम) और पीएसबी जैव उर्वरक को सही पानी (5-10 लिटर या

1 एकड़ में लगाई जाने वाली पौध की मात्रानुसार) का घोल बनाएं. बाद में रोपाई की जाने वाली पौध की जड़ों को इस घोल में 20-30 मिनट तक रोपाई करने से पहले डुबो कर रखें.

धान की रोपाई के लिए खेत में एक?क्यारी (2 मीटर×1.5 मीटर×0.15 मीटर) बनाएं. इस क्यारी को 5 सैंटीमीटर तक पानी से भर दें और इस में 2 किलोग्राम एजोस्पाइरिलम और 2 किलोग्राम पीएसबी डाल कर धीरेधीरे मिलाएं. इस के बाद रोपे जाने वाले पौधों की जड़ों को 8-10 घंटे के लिए डुबो कर रख दें और रोपाई करें.

मिट्टी का उपचार : 2-4 किलोग्राम एजोटोबैक्टर या एजोस्पाइरिलम और 2-4 किलोग्राम पीएसबी 1 एकड़ के लिए सही है. इन दोनों तरह के जैव उर्वरकों को 2-4 लिटर पानी में अलगअलग मिला कर 50-100 किलोग्राम कंपोस्ट के अलगअलग ढेर बना कर उन पर छिड़काव करें और दोनो ढेरों को अलगअलग मिला कर पूरी रात के लिए?छोड़ दें. 12 घंटे बाद दोनों ढेरों को आपस में अच्छी तरह मिला लें.

अम्लीय मिट्टी के लिए 25 किलोग्राम बुझा चूना इस?ढेर के साथ मिला लें. फल वृक्षों के लिए हर जड़ के पास खुरपी की मदद से इस मिश्रण को पेड़ के चारों ओर डाल दें. बोई जाने वाली फसलों के लिए पूरे खेत में बोआई से पहले इस मिश्रण को अच्छी तरह छिड़क दें और यह काम शाम के समय जब गरमी कम हो, तब करें.

बोआई के लिए यथासंभव जैविक बीज का इस्तेमाल करते हुए जैविक विधि या जैव उर्वरकों से बीज शोधन कर के बीज की बोआई पशुचालित यंत्र जैसे बैलचालित सीड ड्रिल या नाई चोंगा वगैरह से करना चाहिए. गोमूत्र, बीजामृत, दही वगैरह से भी बीज शोधन कर सकते हैं.

खाद : जैविक खेती अपनाने के लिए गोबर की खाद का इस्तेमाल करना चाहिए. गोबर की खाद सड़ी होनी चाहिए. यदि खेत में कच्चा गोबर डाल देते हैं तो उस से फायदे की अपेक्षा नुकसान हो जाता है. इस से खेतों में दीमक का प्रकोप बढ़ जाता है. गोबर की सड़ी खाद को फसल बोने से पहले आखिरी जुताई के समय मिट्टी में मिला देनी चाहिए.

पोषक तत्त्वों की पूर्ति के लिए जीवांशों से बनी खाद का इस्तेमाल करना चाहिए. जैसे मलमूत्र, खून, हड्डी, चमड़ा, सींग, फसल अवशेष, खरपतवार से बनने वाली खादें या वर्मी कंपोस्ट, नाडेप कंपोस्ट, काउपैट पिट कंपोस्ट वगैरह का इस्तेमाल करना चाहिए और जैव उर्वरकों से जमीन का शोधन जरूर करना चाहिए.

सिंचाई और खरपतवार नियंत्रण : पशुचालित यंत्रों जैसे बैलचालित सैंट्रीफ्यूगल पंप, सोलर पंप, नहर वगैरह से सिंचाई करनी चाहिए. खरपतवार पर नियंत्रण हाथ से निराईगुड़ाई कर के या पशु या इनसान से चलने वाले यंत्रों का इस्तेमाल कर के करनी चाहिए.

कीटों से हिफाजत : कीटों से हिफाजत के लिए गोमूत्र, नीम, धतूरा, लहसुन, मदार, मिर्च, अदरक वगैरह से बनने वाले कीटनाशकों या जैविक कीटनाशियों जैसे ट्राइकोग्राम कार्ड, बावेरिया बेसियाना, बीटी, एनपीवी वायरस, मित्र कीट, फैरोमौन ट्रैप व पक्षियों को बुलाने वगैरह एकीकृतनाशी जीव प्रबंधन की विधियां अपना कर करनी चाहिए.

रोगों से रक्षा: रोगों से रक्षा के लिए ट्राइकोडर्मा द्वारा जैविक बीज शोधन करना चाहिए. जमीन शोधन के लिए माइकोराजा, वैसिलस, स्यूडोमोनास वगैरह जैविक रोग नियंत्रकों का इस्तेमाल करना चाहिए और नियमित निगरानी के साथ खेत की मेंड़ों को खरपतवार मुक्त रखना चाहिए.

कटाई, मड़ाई और भंडारण: फसल की कटाई, मड़ाई इनसान या बैलचालित यंत्रों का इस्तेमाल कर के करनी चाहिए और इन्हीं का इस्तेमाल कर के उत्पादों को खलिहान तक लाने व ले जाने के लिए और दूसरे परिवहन के लिए करना चाहिए.

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भंडारण के लिए अनाज को खूब अच्छी तरह सुखा कर नीम की पत्ती या नमक या राख वगैरह मिला कर साफ जगह पर या भूसा वगैरह में भंडारित करना चाहिए.

फसलचक्र और बहुफसल प्रणाली : फसल चक्र सिद्धांत का इस्तेमाल करने से फसलों में रोग व कीड़े कम लगते हैं और जमीन की उर्वरता बनी रहती?है. साथ ही, पोषक तत्त्वों का सही प्रबंधन और उपयोग होता?है.

जैसे उथली जड़ वाली फसलों के बाद गहरी जड़ वाली फसलें मटर, गेहूं के बाद अरहर, सरसों वगैरह.

अधिक खाद के बाद कम खाद लेने वाली फसलें जैसे आलू के बाद प्याज, गन्ना के बाद जौ वगैरह.

फलदार के बाद बिना फलीदार फसलें जैसे मूंग के बाद गेहूं, मटर के बाद धान वगैरह.

अधिक निराईगुड़ाई करने के बाद कम निराईगुड़ाई वाली फसलें जैसे मक्का के बाद जौ, चना वगैरह.

मिश्रित फसलोत्पादन जैविक खेती का मूल आधार है. इस में कई तरह की फसलों को एकसाथ मिश्रित रूप में या अलगअलग समय पर एक ही जमीन पर बोया जाता है.

हर मौसम में ध्यान रखना होगा कि दलहनी फसलें तकरीबन 40 फीसदी में बोई जाएं. मिश्रित फसलोत्पादन से न केवल बेहतर प्रकाश संश्लेषण होता है, बल्कि विभिन्न पौधों के बीच पोषक तत्त्वों के लिए होने वाली मांग को भी नियंत्रित किया जा सकता है.

नोट : उपरोक्त विधियां जैविक खेती की वास्तविक प्रक्रिया?हैं, लेकिन किसान को तुरंत इस तरह से जैविक खेती करने में समस्या आ सकती?है. इसलिए जुताई, बोआई, सिंचाई, परिवहन, कटाई, मड़ाई वगैरह में पशुचालित यंत्रों की जगह किसान डीजल से चलने वाले यंत्र या बिजली से चलने वाले यंत्रों का इस्तेमाल कर सकते?हैं. लेकिन किसी भी तरह कैमिकल दवा का सीधा इस्तेमाल फसल पर या उत्पादित उत्पाद पर नहीं करना चाहिए. जैविक खेती टिकाऊ खेती का आधार है, पर यह पशुपालन पर आश्रित?है.

जैविक खेती से लाभ

*     जमीन की सेहत सुधरती है.

*     पशु, इनसान और लाभदायक सूक्ष्म जीवों की सेहत सुधरती है.

*     पर्यावरण प्रदूषण कम होता?है.

*     पशुपालन को बढ़ावा मिलता?है.

*     टिकाऊ खेती का आधार बनता?है.

*     गांव, कृषि और किसान की पराधीनता कम होती?है, जिस से वे स्वावलंबी बनते हैं.

*     उत्पादों का स्वाद और गुणवत्ता बढ़ती है

*     पानी की खपत कम होती है.

*     रोजगार में बढ़ोतरी होती है और पशु और इनसानी मेहनत का उपयोग बढ़ता है.

*     रसायनों का दुष्प्रभाव पशु, पक्षी, इनसान, जमीन, जल, हवा वगैरह पर कम होता है.

चुटकियों में पाएं कमर दर्द से राहत

जिस तरह की हमारी जीवनशैली हो गई है उसके कारण हमें कई तरह की परेशानियां होने लगी हैं. इनमें कमर दर्द कुछ प्रमुख परेशानियों में से एक हैं. सुस्त लाइफस्टाइल और लंबे समय तक औफिस में बैठने से कमर दर्द की परेशानी होती है. पर अगर आपकी लाइफस्टाइल एक्टिव है, आप एक्सरसाइजेज करते रहते हैं तो आप इस परेशानी से निजात पा सकते हैं.  पर जिस तरह की लोगों की जिंदगी भागदौड़ वाली हो गई है, सबके लिए एक्सरसाइज कर पाना मुश्किल होता है. लोगों के पास उतना वक्त नहीं होता.  ऐसे में हम आपको कुछ बेहद आसान एक्सरसाइजेज बताने वाले हैं जिसमें बिना पसीना बहाए, सिर्फ घर में बैठ कर आप कमर दर्द को दूर सर सकते हैं.

  • कुर्सी पर बैठ कर अपने हाथों को अपनी जांघ के नीचे दबा लें. इसके बाद अपने शरीर को आगे की ओर झुकाएं. इससे आपकी कमर में खिचाव होगा. इसे 3 से 5 बार तक करें.
  • अपनी ऐड़ी को जमीन पर रख लें. उसे बिल्कुल सीधा रखें. इसके बाद अपने शरीर को आगे की ओर खींचे. इस दौरान अपने शरीर को बिल्कुल सीधा रखें. इसे करीब 30 सेकेंड्स तक 5 से 6 बार करें.

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  • कुर्सी पर बैठ कर एक हाथ ऊपर की ओर ले जाएं और दूसरे हाथ की ओर झुकें. कम से कम 20 सेकेंड तक इस पोजिशन में रहें और दूसरे हाथ से भी ऐसा ही करें.
  • अपने हाथों से अपने दोनों घुटनों को पकड़ें और उसे ऊपर की ओर खीचें. इससे आपकी कमर में खिंचाव होगा. इस पोजिशन में 15 से 20 सेकेंड तक रहें और इसे 4 से 5 बार तक करें.

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बैकुंठ : भाग 1

बाथरूम में नहाते हुए लगातार श्यामाचरण की कंपकंपाती स्वरलहरी गूंज रही थी. उन की पत्नी मालती उन के कोर्ट जाने की तैयारी में जुटी कभी इधर तो कभी उधर आजा रही थी. श्यामाचरण अपनी दीवानी कचहरी में भगत वकील नाम से मशहूर थे. मालती ने पूजा के बरतन धोपोंछ कर आसन के पास रख दिए, प्रैस किए कपड़े बैड पर रख दिए, टेबल पर जल्दीजल्दी नाश्ता लगा रही थी. मंत्रपाठ खत्म होते ही श्यामाचरण का, ‘देर हो रही है’ का चिल्लाना शुरू हो जाता. मुहूर्त पर ही उन्हें कोर्ट भी निकलना होता. आज 9 बज कर 36 मिनट का मुहूर्त पंडितजी ने बतलाया था. श्यामाचरण जब तक कोर्ट नहीं जाते, घर में तब तक अफरातफरी मची रहती. लौटने पर वे पंडित की बतलाई घड़ी पर ही घर में कदम रखते.

बड़ा बेटा क्षितिज और बहू पल्लवी, बेटी सोनम और छोटा बेटा दक्ष सभी उन की इस पुरानी दकियानूसी आदत से परेशान रहते, पर उन का यह मानना था कि वे ऐसा कर के बैकुंठधाम जाने के लिए अपने सारे दरवाजे खोलते जा रहे हैं.

यों तो श्यामाचरण चारों धाम की यात्रा भी कर आए थे और आसपास के सारे मंदिरों के दर्शन भी कर चुके थे, फिर भी सारे काम ठीकठाक होते रहें और कहीं कोई अनर्थ न हो जाए, इस आशंका से वे हर कदम फूंकफूंक कर रखते और घर वालों को भी डांटतेडपटते रहते कि वे भी उन के जैसे विधिविधानों का पालन किया करें.

‘‘अम्मा, अब तो हद ही हो गई, आज भी पापाजी की वजह से मेरा पेपर छूटतेछूटते बचा. अब से मैं उन के साथ नहीं जाऊंगा, बड़ी मुश्किल से मुझे परीक्षा में बैठने दिया गया, पिं्रसिपल से माफी मांगनी पड़ी कि आगे से ऐसा कभी नहीं होगा,’’ दक्ष पैंसिलबौक्स बिस्तर पर पटक कर गुस्से में जूते के फीते खोलने लगा और बोलता रहा, ‘‘फिर मुझे राधे महाराज वाले मंदिर ले गए, शुभमुहूर्त के चक्कर में उन्होंने जबरदस्ती 10 मिनट तक मुझे बिठाए रखा कि परीक्षा अच्छी होगी. जब परीक्षा ही नहीं दे पाता तो क्या खाक अच्छी होती. उस राधे महाराज का तो किसी दिन, दोस्तों से घेर कर बैंड बजा दूंगा.’’

‘‘ऐसा नहीं कहते दक्ष,’’ मालती ने उसे रोका, उसे दक्ष के कहने के ढंग पर हंसी भी आ रही थी. श्यामाचरण के अंधभक्ति आचरण और पंडित राधे महाराज की लोलुप पंडिताई ने, जो थोड़ीबहुत पूजा वह पहले करती थी, उस से भी उसे विमुख कर दिया. लेकिन चूंकि पत्नी थी, इसलिए वह उन का सीधा विरोध नहीं कर पा रही थी. मन तो बच्चों के साथ उस का भी कुछ यही करता इस महाराज के लिए जो बस अपना उल्लू सीधा कर पैसे बटोरे जा रहा है.

सोनाक्षी, क्षितिज और पल्लवी सब अपनीअपनी जगह इन मुहूर्त व कर्मकांड के ढकोसलों से परेशान थे. सोनाक्षी को महाराज के कहने पर अच्छा वर पाने के लिए जबरदस्ती 72 सोमवार के व्रत रखने पड़ रहे थे. पता नहीं कौन सा ग्रहदोष बता कर पूजा व उपवास करवाए जा रहे थे. सोमवार के दिन कालेज में उस की अच्छी खिंचाई होती.

‘अरे भई, सोनाक्षी को पढ़ाई के लिए अब क्यों मेहनत करनी है, इस की लाइफ तो इस के व्रतों को सैट करनी है. पढ़लिख कर भी क्या करना है, बढि़या मुंडा मिलेगा इसे. अपन लोगों का तो कोई चांस ही नहीं,’ सब ठिठोली करते, ठठा कर हंस पड़ते.

बड़ा बेटा क्षितिज भी धार्मिक ढकोसलों से परेशान था. एक दिन उस ने छत की टंकी में गिरी बिल्ली को जब तक निकाला तब तक वह मर ही गई. श्यामाचरण ने सारा घर सिर पर उठा लिया, ‘‘अनर्थ, घोर अनर्थ, बड़ा पाप हो गया. नरक में जाएंगे सब इस के कारण,’’ उन्होंने फौरन राधे महाराज को फोन खड़खड़ा दिया. राधे पंडित को तो लूटने का मौका मिलना चाहिए, वे तुरंत सेवा में हाजिर हो गए.

‘‘मैं यह क्या सुन रहा हूं. यजमान से ऐसा पाप कैसे हो गया, मंदिर में अब कम से कम सवा किलो चांदी की बिल्ली चढ़ानी पड़ेगी. 12 पंडितों को बुला कर 7 दिनों तक लगातार मंत्रोच्चारहवन तथा भोजन कराना पड़ेगा, फिर घर के सभी सदस्य गंगास्नान कर के आएंगे, तभी जा कर शुद्धि हो पाएगी. बैकुंठ धाम जाना है तो यजमान, यह सब करना ही पड़ेगा,’’ राधे महाराज ने पूजाहवन के लिए सामग्री की अपनी लंबी लिस्ट थमा दी. उस में सारे पंडितों को वे कपड़ेलत्ते शामिल करने से भी नहीं चूके थे. क्षितिज को बड़ा क्रोध आ रहा था. एक तो पैसे की बरबादी, उस पर औफिस से जबरदस्ती छुट्टी लेने का चक्कर. औफिस में कारण बताए भी तो क्या. जिस को बताएगा, वह मजाक बनाएगा.

‘‘मैं तो इतनी छुट्टी नहीं ले सकता. आज रविवार है, फिर पूरा एक हफ्ते का चक्कर. हवन के बाद सब के साथ एक दिन भले ही चांदी की बिल्ली मंदिर में चढ़ा कर गंगास्नान कर आऊं, वह भी सवा किलो की नहीं, केवल नाम की, पापाजी की तसल्ली के लिए,’’ क्षितिज खीझ कर बोला.

‘‘पापाजी इस के लिए मानेंगे कैसे? सब की बोलती तो उन के सामने बंद हो जाती है. अम्माजी ही चाहें तो कुछ कर सकती हैं,’’ पल्लवी अपने बेटे किशमिश को साबुन लगाती हुई बोली. 4 साल का शरारती किशमिश श्यामाचरण की नकल करते हुए खुश हो, कूदकूद कर अपने ऊपर पानी डालने लगा.

‘‘तिपतिप, हलहल दंदे…हलहल दंदे,’’ वह उछलकूद मचा रहा था, पल्लवी भी गीली हो गई.

‘‘ठहर जा बदमाश, दादाजी की नकल करता है, अम्माजी देखो, आप ही नहला सकती हो इसे,’’ पल्लवी ने आवाज लगाई.

‘‘अम्माजी, आप ही इस शैतान को नहला सकती हैं और इन के पापा की समस्या भी आप ही सुलझा सकेंगी, देखिए, कल से मुंह लटकाए खड़े हैं,’’ मालती के आने पर पल्लवी मुसकराई और कार्यभार उन्हें सौंप कर अलग हट गई.

‘‘सीधी सी बात है, पंडित पैसों के लालच में यह सब पाखंड करते हैं. कुछ पैसे उन्हें अलग से थमा दो, कुछ नए उपाय ये झट निकाल लेंगे. न तुम्हें छुट्टी लेनी पड़ेगी, न कुछ. तुम्हारी जगह तुम्हारे रूमाल से भी वे काम चला लेंगे. इतने लालची होते हैं ये पंडित.

मैं सब जानती हूं पर सवा किलो की चांदी की बिल्ली की तो बात पापाजी के मन में बचपन से ही धंसी है, मानेंगे नहीं, दान करेंगे ही वरना उन के लिए बैकुंठ धाम के कपाट बंद नहीं हो जाएंगे?’’ वह हंसी, फिर बोली, ‘‘मैं तो 30 सालों से इन का फुतूर देख रही हूं. मांजी थीं, सो पहले वे कुछ जोर न दे सकीं वरना उस वक्त की मैं संस्कृत में एमए हूं, क्या इतना भी नहीं जानती थी कि ये पंडित क्या और कितना सही मंत्र पढ़ते हैं, अर्थ का अनर्थ और अर्थ भी क्या, देवताओं के काल्पनिक रूप, शक्ति, कार्यों का गुणगान. फिर हमें यह दे दो, वह दे दो. हमारा कल्याण करो. बस, खुद कुछ न करो. खाली ईश्वर से डिमांड. बस, यही सब बकवास. अच्छा हुआ जो संस्कृत पढ़ ली, आंखें खुल गईं मेरी, वरना धर्म से डर कर इन व्यर्थ के ढकोसलों में ही पड़ी रहती,’’ मालती किशमिश को नहला कर उसे तौलिये से पोंछती मुसकरा रही थी.

पल्लवी मालती को बड़े ध्यान से सुन रही थी. सोच रही थी कि आज की पीढ़ी का होने पर भी अपने धर्म के विरोध में कुछ कहने का इतना साहस उस में नहीं था जितना अम्माजी बेधड़क कह गईं. मैं ने एमबीए किया हुआ है, जौब भी करती हूं पर धर्म का एक डर मेरे अंदर भी कहीं बैठा हुआ है. सोनाक्षी भी कालेज में है. उस ने 72 सोमवार के व्रत केवल पापाजी के डर से नहीं रखे, बल्कि खुद अपने भविष्य के डर से भी, अपने विश्वास से रखे हैं.

‘‘अम्मा, आप ही राधे महाराज से बात कर लीजिए,’’ क्षितिज बोला.

‘‘मैं करूंगी तो उन्हें शर्म आएगी लेने में, उन से उम्र में मैं काफी बड़ी हूं. क्षितिज, तुम ही अपनी तरफ से बात कर लेना, यही ठीक रहेगा.’’

‘‘ठीक है अम्मा, आज ही शाम को बात कर लूंगा वरना हफ्तेभर की छुट्टी की अरजी दी तो औफिस वाले मुझे सीधा ही बैकुंठ भेज देंगे,’’ कह कर क्षितिज मुसकराया.

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‘तारक मेहता का उल्टा चश्मा’: क्या वापस नहीं लौटेंगी दया बेन, जानने के लिए पढ़ें पूरी खबर

छोटे पर्दे का मशहूर सीरियल ‘तारक मेहता का उल्टा चश्मा’ में दयाबेन की वापसी होने वाली थी. खबरों के अनुसार गरबे के मौके पर उनकी एंट्री होने वाली थी.  इस शो के मेकर्स ने प्रोमो जारी कर दया बेन की एंट्री की ओर इशारा किया था. हालांकि दया बेन यानी दिशा वकानी की एंट्री 2 साल बाद होती.

इस खबर से दया बेन के फैंस काफी खुश थे. पर इसी बीच दिशा वकानी के पति ने इस बात का ऐलान कर दिया है कि, दिशा अब शो में कभी वापस नहीं आएंगी. एक रिपोर्ट के अनुसार दिशा वकानी के पति मयूर पांडया ने बताया,  दिशा वकानी आने वाले एपिसोड की कुछ शूटिंग तो पूरी कर ली है, लेकिन हमारे और मेकर्स के बीच अभी भी बात अधूरी है.

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आगे उन्होंने कहा मेकर्स अभी भी हमारी शर्त मानने के लिए तैयार नहीं हैं. ऐसे में अब दिशा वकानी दोबारा शो का हिस्सा नहीं बनेगी. वैसे अभी भी हम सब मिलकर इस परेशानी का समाधान ढूढ़ रहे हैं.

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दिशा वकानी के पति मयूर पांड्या के इस बयान के बीच यह भी खबर आई है कि, दिशा वकानी ने शो के लिए कुछ सीन्स शूट किए हैं, जिनमें दयाबेन अपने पति जेठालाल से फोन पर बात करती नजर आएंगी.

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वर्ल्ड फूड डे: टेक्नोलौजी में करियर

वर्ल्ड फूड डे 16 अक्टूबर यानी आज ही के दिन मनाया जाता है. जी हां सुयंक्त राष्ट्रीय संघ द्वारा 16 अक्टूबर 1945 मे संयुक्त राष्ट्र खाद्य एवं कृषि संगठन की स्थापना की गयी थी. इस दिन को मनाने का कारण दुनिया भर में खाद्य सुरक्षा को सुरक्षित और उन्नत करना है. विश्व खाद्य दिवस 150  देशों में मनाया जाता है. इसके अलावा वर्ल्ड फूड प्रोग्राम और अंतर्राष्ट्रीय कृषि विकास कोष द्वारा भी इसे व्यापक रूप से मनाया जाता है. खाद्य और कृषि विकास का यह एक अंतरराष्ट्रीय संगठन है जिसके अंतर्गत कृषि उत्पादन, वानिकी और कृषि विपणन का अध्ययन किया जाता है. इसके अलावा यह संगठन खाद्य और कृषि संबंधी ज्ञान और जानकारियों को आदान-प्रदान करने के लिए एक विश्वस्तरीय मंच भी प्रदान करता है. आज हम आपको इसी से जुड़े करियर फूड टेक्नोलौजी के बारे में बताने जा रहे हैं .

फूड टेक्नोलौजी

आज कल प्रोसेस्ड फूड मार्केट की डिमांड बहुत बढ़ गयी है इसी को देखते हुए फूड टेक्नोलौजिस्ट की डिमांड बढ़ रही है. चाहे मल्टीनेशनल कम्पनी हो या सरकारी दोनों मे फूड टेक्नोलौजिस्ट का बोलबाला है. फूड टेक्नोलौजिस्ट खाद्य वस्तुओं का स्वाद, रंग रूप हाइजीन और उनकी गुणवत्ता को देखते है और उनका स्टोरेज और एक्सपायरी जैसे मह्त्वपूर्ण कामों पर अपनी नजर बनाये रखते हैं. सीधे तौर पर कहें तो कम्पनी का भविष्य इन्हीं से जुड़ा होता है. सौफ्ट ड्रिंक, बटर, बिस्कुट, ब्रेड, आइसक्रीम, चौकलेट आज लोगों की रोजाना की जरूरत बन गये हैं और इसी को देखते हुए फूड टेक्नोलौजिस्ट कंपनियों की जरूरत बन गये है. यह दो भागों में बंटा हुआ है.

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मैनुफेक्चर्ड प्रोसेसेज और वैल्यु एडेड प्रोसेसेज

मैनुफेक्चर्ड प्रोसेसेज मे कच्चे उत्पाद जैसे अनाज, मीट, दुध सब्जियों आदि उत्पादों का भौतिक स्वरूप बदलकर उसे खाने और बिक्री योग्य बनाया जाता है.

वैल्यू एडेड प्रोसेसेज में कच्चे खाद्य उत्पादों में ऐसे कई बदलाव किए जाते है जिससे वह सुरक्षित और कभी भी खाने लायक बन जाते है. जैसे टमाटर सौस और आइसक्रीम.

योग्यता

यदि आप इस क्षेत्र से जुड़ना चाहते है तो आपको 12वीं साइंस (मैथ्स/बायो) के साथ पास करना होगा. 12वीं के बाद आप फूड टेक्नोलौजी में ग्रेजुएशन और पोस्ट ग्रेजुएशन कर सकते हैं.

प्रमुख कोर्सेस – बीएससी (औनर्स), फूड टेक्नोलौजी – बीटेक फूड टेक्नोलौजी -एमटेक फूड टेक्नोलौजी -पीजी डिप्लोमा इन फूड साइंस एंड टेक्नोलौजी – एमबीए (एग्री बिजनेस मैनेजमेंट).

नौकरी के अवसर

फूड प्रोसेसिंग यूनिट, रिटेल कंपनी, होटल्स, एग्री प्रोडक्ट बनाने वाली कंपनी से जुड़कर काम कर सकते है. इसके अलावा आपको कई प्रयोगशालाओं में भी काम मिल सकता है जो खाद्य वस्तुओं पर रिसर्च और उन्हें संरक्षित करने का काम करती है.

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सैलरी

शुरुआत में 10 -15  हजार कमा सकते हैं और अनुभव के बाद 30  हजार आसानी से कमा सकते हैं. चाहे तो अपना बिजनेस भी कर सकते हैं.

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