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मोहब्बत के दुश्मन: भाग 2

मोहब्बत के दुश्मन: भाग 1

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आखिरी भाग

पूजा के धौलपुर से आने के बाद गांव में पंचायत भी हुई थी, जिस में दोनों के मिलने पर पाबंदी लगा दी गई थी. लेकिन प्रेमी युगल ने पंचायत का फरमान नहीं माना. घर वालों की बंदिशों के बाद भी पूजा छिपछिप कर श्यामवीर से मिलती रही.

26 जून, 2019 को श्यामवीर धौलपुर से गांव आया हुआ था. उस के छोटे भाई कान्हा ने पुलिस को बताया कि रात को भाई उस के साथ पशुओं के बाड़े के बाहर सो रहा था. रात लगभग 11 बजे उस के मोबाइल पर फोन आया. फोन सुन कर बिस्तर से उठ कर चला गया.

कान्हा के मुताबिक, उस ने सोचा कि कोई काम होगा इसलिए भाई कहीं चला गया होगा. इसलिए वह सो गया. श्यामवीर के गांव में आते ही पूजा के परिजन सतर्क हो गए थे. उन्हें लगता था कि पाबंदी के बाद भी पूजा श्यामवीर से बात करती है.

26 जून की रात 11 बजे पूजा ने ही श्यामवीर को फोन किया था. योजना के अनुसार दोनों पूजा के घर के पास चरी के एक खेत में मिले. प्रेमी को देखते ही पूजा उस के सीने से लग गई. उस ने श्यामवीर से कहा कि वह उसे अपने साथ ले जाए. अब वह घर वालों की पाबंदी बरदाश्त नहीं कर सकती.

हमारी जातियां अलग होने से मेरे परिवार वाले शुरू से ही हमारी शादी का विरोध कर रहे हैं. अब वह उस से एक पल भी दूर नहीं रह सकती. श्यामवीर ने पूजा को समझाया, ‘‘कुछ दिन की बात है, तुम्हारे बालिग होते ही मैं तुम्हें अपने साथ ले जा कर शादी कर लूंगा. फिर हम दोनों को कोई अलग नहीं कर सकेगा.’’

घटना के बाद पुलिस ने पूजा की मां मुनीश व बड़ी बहन रूमिका को हिरासत में ले लिया था. इस के बाद पुलिस ने ताबड़तोड़ दबिश दे कर पूजा के पिता मोहनलाल, भाई कमल तथा चाचा रामनिवास को भी गिरफ्तार कर लिया. आरोपियों ने पुलिस के सामने प्रेमी युगल की हत्या का जुर्म कबूल कर लिया.

पुलिस की गिरफ्त में आने के बाद पूजा ने पिता मोहनलाल ने दोनों की हत्या की वारदात की कहानी बयां करते हुए बताया कि श्यामवीर और पूजा को कई बार साथ छोड़ने को समझा चुके थे. दोनों को कई बार बात करते हुए भी पकड़ा गया. हर बार उन्हें हिदायत दे कर छोड़ दिया गया, लेकिन दोनों नहीं माने.

रात डेढ़ बजे पूजा के पिता मोहनलाल की आंखें खुलीं तो देखा, पूजा बिस्तर पर नहीं थी. घर वाले उस पर पैनी नजर रख रहे थे. घर में उस की तलाश की गई. लेकिन वह नहीं मिली.

पिता ने सोचा कि पहले की तरह श्यामवीर के साथ न चली गई हो. रात में ही घर वालों को जगा कर यह बात बताई गई. इस के बाद पूरा परिवार पूजा की तलाश में जुट गया.

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दोनों घर से कुछ दूरी पर चरी के खेत में मिल गए तो दोनों को पकड़ लिया गया. इसी बीच पूजा की मां मुनीशा और बड़ी बहन रूमिका भी वहां आ गईं. पूजा को श्यामवीर के साथ देख क्रोधित घर वालों ने उसे पीटना शुरू कर दिया.

पूजा ने उसे बचाने की कोशिश की. घर वालों के सामने दोनों ने कहा कि हम साथ रहना चाहते हैं. साथ नहीं रहने दिया गया, तो जान दे देंगे. यह सुन कर घर वालों का खून खौलने लगा. श्यामवीर को भागने का मौका भी दिया गया, लेकिन वह अकेला जाने को तैयार नहीं था. इस के बाद दोनों की जम कर पिटाई की गई.

दोनों ने एक साथ भागने का प्रयास भी किया लेकिन उन के चंगुल से न छूट सके. पूजा के परिजनों ने श्यामवीर को लाठीडंडों से जम कर पीटा. उसे गिरा कर उस का मुंह जमीन में दबाया, कुछ लोग उस के ऊपर बैठ गए और उस की हत्या कर दी.

पूजा श्यामवीर को छोड़ने के लिए चीखती रही, लेकिन सुनसान इलाके में उस की चीख सुनने वाला कोई नहीं था. पूजा की आंखों के सामने ही उस के प्रेमी की हत्या कर दी गई. पूजा ने उन्हें हत्या करते देख लिया था. उन्होंने उस से पूछा कि वह क्या चाहती है, इस पर वह चीखने लगी, ‘‘अब मेरी दुनिया उजड़ गई है. मैं जिंदा नहीं रहना चाहती.’’

यह सुन कर बड़ी बहन रूमिका ने नाखूनों से उस का चेहरा नोंच लिया.  पिता ने बताया कि पूजा अगर दूसरी जगह शादी करने को तैयार हो जाती तो उसे छोड़ देते. उस के इनकार करने पर दुपट्टे से उस का भी गला घोंट दिया गया.

दोनों की हत्या के बाद उन के शव ठिकाने लगाने की तैयारी थी, लेकिन तब तक सुबह हो चुकी थी. इसलिए उन की लाशों को नाले के पास खेतों में डाल दिया गया.

दोनों की हत्या के बाद पिता व भाई घर में ताला लगा कर फरार हो गए. जाने से पहले कमल ने अपने फोन से रूमिका से 100 नंबर पर फोन कराया. उस ने अपना नाम रूमिका कुशवाहा बताते हुए पुलिस को जानकारी दी कि उस की बहन पूजा को गांव का ही रहने वाला श्यामवीर तोमर जबरदस्ती अपने साथ ले जा रहा था. गांव वालों ने दोनों को पकड़ लिया है और दोनों को पीट रहे हैं.

यह जानकारी दे कर वह अपने घर वालों को निर्दोष साबित करने के साथ ही पुलिस को गुमराह करना चाहती थी. जबकि हकीकत यह थी कि तब तक दोनों की हत्या की जा चुकी थी.

जिस समय पुलिस घटनास्थल पर पहुंची, उस समय श्यामवीर का शरीर ठंडा पड़ चुका था और हाथपैर अकड़ गए थे. जबकि पूजा का शरीर गरम था. इस से पुलिस ने अंदाजा लगाया कि पहले श्यामवीर की और बाद में पूजा की हत्या की गई थी.

पोस्टमार्टम रिपोर्ट से भी पूजा के घर वालों के कथन की पुष्टि हुई कि श्यामवीर की मौत पिटाई और पूजा की पिटाई व गला घोंटने से हुई थी.

प्रेमी श्यामवीर और प्रेमिका पूजा की प्रेम कहानी भले ही 2 साल की थी, लेकिन वे मौत के मुंह तक साथसाथ जाने की कसम खा चुके थे. बुधवार की रात को पूजा के घर वालों ने उन की हत्या से पहले दोनों को बैठा कर एकदूसरे का साथ छोड़ने को कहा था. जान से मारने की धमकी भी दी थी. मगर वे जुदा होने को तैयार नहीं हुए थे.

प्रेमी युगल की हत्या के मुकदमे में 6 नामजद हैं. पुलिस को आशंका है कि घटना में इस से अधिक लोग शामिल थे. घर वाले बेटी की प्रेम कहानी से अपने आप को अपमानित महसूस कर रहे थे. उन्हें लग रहा था कि बेटी ने बिरादरी में उन की नाक कटा दी है. उन के सिर पर खून सवार था.

एसपी देहात (पश्चिम) रवि कुमार ने बताया कि आरोपी पुलिस को गुमराह कर रहे थे. पहले बता रहे थे कि सिर्फ 2 ही लोग खेत में गए थे. लगातार पूछताछ में यह खुलासा हुआ कि हत्या के समय आधा दरजन से अधिक लोग खेत में मौजूद थे.

औनर किलिंग में शुक्रवार को पुलिस ने पूजा के पिता मोहनलाल, मां मुनीशा, भाई कमल, बहन रूमिका, चाचा रामनिवास को गिरफ्तार कर के न्यायालय के समक्ष पेश किया, जहां से उन्हें जेल भेज दिया गया.

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पुलिस चचेरे भाई हरेंद्र और ओमवीर की तलाश कर रही है. इस दोहरे मर्डर की विवेचना थाना खैरागढ़ के प्रभारी इंसपेक्टर जसवीर सिंह कर रहे हैं. पुलिस फरार चचेरे भाइयों की सरगरमी से तलाश कर रही थी.

जातिवाद के कारण एक प्रेम कहानी ने 2 परिवार तबाह कर दिए. दोनों परिवारों में जानी दुश्मनी हो गई अलग. अब जरूरत है अंतरजातीय विवाह करने वाले जोड़ों के पक्ष में एक अभियान चलाने की. यह शुरुआत कैसे होगी, यह भी प्रेम विवाह का विरोध करने वालों को तय करना होगा.

—कथा पुलिस सूत्रों पर आधारित

सौजन्य: मनोहर कहानी

हम हैं राही प्यार के : भाग 2

उस के पापा ने कहा ‘‘प्रेमा, हमें तुम से पूरी सहानुभूति है पर जैसा कि डाक्टर ने बताया है अब आजीवन तुम्हें व्हीलचेयर पर रहना होगा. और तुम्हारी चोटों के चलते मूत्र पर से तुम्हारा नियंत्रण जाता रहा है. आजीवन पेशाब का थैला तुम्हारे साथ चलेगा… तुम अब मां बनने योग्य भी नहीं रही.’’

प्रेमा के पिता भी वहीं थे. अभी तक श्री ने खुद कुछ भी नहीं कहा था. प्रेमा और उस के पिता उन के कहने का आशय समझ चुके थे. प्रेमा के पिता ने कहा, ‘‘ये सारी बातें मुझे और प्रेमा को पता हैं. यह मेरी संतान है. चाहे जैसी भी हो, जिस रूप में हो मेरी प्यारी बनी रहेगी. वैसे भी प्रेमा बहादुर बेटी है. अब आप बेझिझक अपनी बात कह सकते हैं.’’

श्री के पिता ने कहा, ‘‘आई एम सौरी. यकीनन आप को दुख तो होगा, पर हमें यह सगाई तोड़नी ही होगी. श्री मेरा इकलौता बेटा है.’’

यह सुन कर प्रेमा को बहुत दुख हुआ. पर उसे उन की बात अप्रत्याशित नहीं लगी थी. खुद को संभालते हुए उस ने कहा, ‘‘अंकल, आप ने तो मेरे मुंह की बात छीन ली है. मैं स्वयं श्री को आजाद कर देना चाहती थी. मुझे खुशी होगी श्री को अच्छा जीवनसाथी मिले और दोनों सदा खुश रहें.’’

कुछ देर चुप रहने के बाद श्री की तरफ देख कर बोली, ‘‘मुबारक श्री. बैस्ट औफ लक.’’

श्री ने खुद तो कुछ नहीं कहा पर उस के पिता ने थैंक्स कह कर श्री से कहा, ‘‘अब चलो श्रीराम.’’

वे लोग चले गए. प्रेमा ने पिता की आंखों में आंसू देख कर कहा, ‘‘पापा, आप ने सदा मेरा हौसला बढ़ाया है. प्लीज, मुझे कमजोर न करें.’’

उन्होंने आंखें पोंछ कर कहा, ‘‘मेरा बहादुर बेटा, दुख की घड़ी में ही अपनों की पहचान होती है. एक तरह से अच्छा ही हुआ जो यह सगाई टूट गई.’’

प्रेमा अपने मातापिता के साथ पटना आ गई. कुछ दिनों के बाद श्री की शादी हो गई. प्रेमा ने अपनी तरफ से गुलदस्ते के साथ बधाई संदेश भेजा. प्रेमा को अब बैंक के लोन की किश्तें देनी थीं. वह गूगल के लिए घर से ही कुछ काम करती थी. गूगल ने उस का सारा लोन एक किश्त में ही चुका दिया. फिलहाल प्रेमा प्रतिदिन 2-3 घंटे घर से काम करती थी. वह गूगल के भिन्न ऐप्स और टूल्स में सुधार के लिए अपने टिप्स और सुझाव देती और साथ में उन के प्रोडक्ट्स के लिए मार्केट सर्वे करती थी. बाद में उस ने गूगल कार के निर्माण में भी अपना योगदान दिया.

इस बीच विकास एक प्राइवेट कार कंपनी जौइन कर चुका था. वह कंपनी की डिजाइन यूनिट में था. कार के पुरजे आदि की समीक्षा करता और समयानुसार उन में सुधार लाने का सुझाव देता था. करीब 2 साल बाद वह एक दुर्घटना का शिकार हो गया. किसी मशीन का निरीक्षण करते समय उस का दायां हाथ मशीन में फंस गया और फिर हाथ काटना पड़ा. वह फैक्टरी में काम करने लायक नहीं रहा. कंपनी ने समुचित मुआवजा दे कर उस की छुट्टी कर दी.

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विकास ने हिम्मत नहीं हारी. 1 साल के अंदर ही उस ने बाएं हाथ से लैपटौप पर डिजाइन का काम घर बैठे शुरू कर दिया. उस ने दिव्यांग लोगों के लिए एक विशेष व्हीलचेयर डिजाइन की. यह चेयर आम व्हीलचेयर्स की तुलना में काफी सुविधाजनक थी और बैटरी से चलती थी. इस के सहारे दिव्यांग आसानी से कार में चेयर के साथ प्रवेश कर सकते और निकल सकते थे. इस डिजाइन को उस ने अपनी पुरानी कंपनी को भेजा. उस कंपनी ने भी अपनी कार में कुछ परिवर्तन कर इसे दिव्यांगों के योग्य बनाया.

एक दिन कंपनी ने विकास को डैमो के लिए आमंत्रित किया था. उस दिन विकास कंपनी के दफ्तर पहुंचा. डैमो के दौरान ही प्रेमा की भी वीडियो कौन्फ्रैंस थी. विकास ने प्रेमा को एक अरसे के बाद देखा. दोनों ने आपस में बातें की. कंपनी ने दोनों के योगदान की प्रशंसा की. इस के कुछ ही दिनों के बाद विकास प्रेमा से मिलने उस के घर गया.

विकास प्रेमा के मातापिता के साथ बैठा था. करीब 10 मिनट के बाद प्रेमा भी व्हीलचेयर पर वहां आई. वह उठ कर प्रेमा के समीप आया और बोला, ‘‘शाबाश प्रेमा, तुम सचमुच एक जांबाज लड़की हो. इतनी विषम परिस्थितियों से निकल कर तुम ने अपनी अलग पहचान बनाई है.’’

‘‘थैंक्स विकास. तुम कैसे हो? मुझे तुम्हारे ऐक्सीडैंट की जानकारी नहीं थी. ये सब कैसे हुआ?’’ प्रेमा बोली.

‘‘तुम्हारे ऐक्सीडैंट के मुकाबले मेरा ऐक्सीडैंट तो कुछ भी नहीं. तुम तो मौत के मुंह से निकल कर आई हो और तुम ने संघर्ष करते हुए एक नया मुकाम पाया है.’’

दोनों में कुछ देर अपनेअपने काम के बारे में और कुछ निजी बातें हुईं. इस के बाद से विकास अकसर प्रेमा से मिलने आने लगा. वह अब पहले की अपेक्षा ज्यादा फ्रैंक हो गया था.

एक दिन विकास प्रेमा के घर आया. वह उस के मातापिता के साथ बैठा था. प्रेमा के पिता ने कहा, ‘‘वैसे तो प्रेमा बहुत बोल्ड और आत्मनिर्भर लड़की है. जब तक हम लोग जिंदा हैं उसे कोई दिक्कत नहीं होने देंगे पर हम लोगों के बाद उस का क्या होगा, सोच कर डर लगता है.’’

तब तक प्रेमा आ चुकी थी. उस ने कहा, ‘‘अभी से इतनी दूर की सोच कर चिंता करने या डरने की कोई बात नहीं है. आप ने मुझ में इतनी हिम्मत भरी है कि मैं अकेले भी रह लूंगी.’’

‘‘नहीं बेटे, अकेलापन अपनेआप में एक खतरनाक बीमारी है. यह अभी तुझे समझ में नहीं आएगा.’’

‘‘अंकल, आप चिंता न करें. मैं भी आता रहूंगा.’’

‘‘हां बेटा, आते रहना.’’

विकास का सोया प्यार फिर से जगने लगा था. जो बात वह कालेज के दिनों में प्रेमा से नहीं कह सका था वह उस की जबान तक आ कर थम गईर् थी. अपनी अपंगता और स्वभाव के चलते अभी तक कुछ कह नहीं सका था. प्रेमा की प्रतिक्रिया का भी उसे अंदाजा नहीं था.

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एक दिन अचानक प्रेमा के पिता ने विकास से पूछ लिया, ‘‘बेटे, अब तो तुम दोनों अच्छे दोस्त हो, एकदूसरे को भलीभांति समझने लगे हो. क्यों नहीं दोनों जीवनसाथी बन जाते हो?’’

‘‘अंकल, सच कहता हूं. आप ने मेरे मन की बात कह दी. मैं बहुत दिनों से यह कहने की हिम्मत नहीं जुटा पा रहा था.’’

तभी प्रेमा के अप्रत्याशित सवाल से सभी उस की तरफ देखने लगे. उस ने कहा, ‘‘कहीं आप दया या सहानुभूति के नाते तो ये सब नहीं कर रहे हैं?’’

‘‘दया का पात्र तो मैं हूं प्रेमा. मेरा दायां हाथ नहीं है. मैं ने सोचा कि तुम्हारा साथ मिलने से मुझे अपना दाहिना हाथ मिल जाएगा,’’

विकास बोला.

प्रेमा सीरियस थी. उस ने कुछ देर बाद कहा, ‘‘तुम्हें पता है न कि न तो मैं तुम्हें पत्नी सुख दे सकती हूं और न ही मैं कभी मां बन सकती हूं.’’

‘‘इस के अलावा भी तो अन्य सुख और खुशी की बातें हैं जो मैं तुम में देखता हूं. तुम मेरी अर्धांगिनी होगी और मेरी बैटर हाफ. तुम्हारे बिना मैं अधूरा हूं प्रेमा.’’

‘‘पर संतान सुख से वंचित रहोगे.’’

‘‘गलत. हमारे देश में हजारों बच्चे अनाथ हैं, जिन के मातापिता नहीं है. हम अपनी मरजी से बच्चा गोद लेंगे. वही हमारी संतान होगी…’’

प्रेमा के पिता ने बीच ही में कहा, ‘‘हां, तुम लोग एक लड़का और एक लड़की 2 बच्चों

को गोद ले सकते हो. बेटा और बेटी दोनों का सुख मिलेगा.’’

‘‘नहीं पापा हम 2 बेटियों को ही गोद लेंगे.’’

‘‘क्यों?’’ विकास ने पूछा.

‘‘लड़कियां अभी भी समाज में कमजोर समझी जाती हैं. हम उन्हें पालपोस कर इतना सशक्त बनाएंगे कि समाज को उन पर गर्व होगा.’’

कुछ दिनों के बाद प्रेमा और विकास विवाह बंधन में बंध गए. उसी रात प्रेमा ने विकास को कालेज के फेयरवैल के दिन की याद दिलाते हुए कहा, ‘‘तुम्हें याद है तुम ने बोर्ड पर क्या लिखा था? हम थे राही प्यार के… इस का क्या मतलब था? शायद कोईर् भी नहीं समझ सका था.’’

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‘‘मतलब तो साफ था. इशारा तुम्हारी तरफ था. अपने पास उस समय तुम नहीं थीं, पर आज से तो हम भी राही प्यार के हो गए.’’

महापुरुष : भाग 1

रवि प्रोफेसर गौतम के साथ व्यवसाय प्रबंधन कोर्स का शोधपत्र लिख रहा था. उस का पीएच.डी. करने का विचार था. भारत से 15 महीने पहले उच्च शिक्षा के लिए वह मांट्रियल आया था. उस ने मांट्रियल में मेहनत तो बहुत की थी, परंतु परीक्षाओं में अधिक सफलता नहीं मिली.

मांट्रियल की भीषण सर्दी, भिन्न संस्कृति और रहनसहन का ढंग, मातापिता पर अत्यधिक आर्थिक दबाव का एहसास, इन सब कारणों से रवि यहां अधिक जम नहीं पाया था. वैसे उसे असफल भी नहीं कहा जा सकता, परंतु पीएच.डी. में आर्थिक सहायता के साथ प्रवेश पाने के लिए उस के व्यवसाय प्रबंधन की परीक्षा के परिणाम कुछ कम उतरते थे.

रवि ने प्रोफेसर गौतम से पीएच.डी. के लिए प्रवेश पाने और आर्थिक मदद के लिए जब कहा तो उन्होंने उसे कुछ आशा नहीं बंधाई. वे अपने विश्वविद्यालय और बाकी विश्वविद्यालयों के बारे में काफी जानकारी रखते थे. रवि के पास व्यवसाय प्रबंधन कोर्स समाप्त कर के भारत लौटने के सिवा और कोई चारा भी नहीं था.

रवि प्रोफेसर गौतम से जब भी उन के विभाग में मिलता, वे उस को मुश्किल से आधे घंटे का समय ही दे पाते थे, क्योंकि वे काफी व्यस्त रहते थे. रवि को उन को बारबार परेशान करना अच्छा भी नहीं लगता था. कभीकभी सोचता कि कहीं प्रोफेसर यह न सोच लें कि वह उन के भारतीय होने का अनुचित फायदा उठा रहा है.

एक बार रवि ने हिम्मत कर के उन से कह ही दिया, ‘‘साहब, मुझे किसी भी दिन 2 घंटे का समय दे दीजिए. फिर उस के बाद मैं आप को परेशान नहीं करूंगा.’’

‘‘तुम मुझे परेशान थोड़े ही करते हो. यहां तो विभाग में 2 घंटे का एक बार में समय निकालना कठिन है,’’ उन्होंने अपनी डायरी देख कर कहा, ‘‘परंतु ऐसा करो, इस इतवार को दोपहर खाने के समय मेरे घर आ जाओ. फिर जितना समय चाहो, मैं तुम्हें दे पाऊंगा.’’

‘‘मेरा यह मतलब नहीं था. आप क्यों परेशान होते हैं,’’ रवि को प्रोफेसर गौतम से यह आशा नहीं थी कि वे उसे अपने निवास स्थान पर आने के लिए कहेंगे. अगले इतवार को 12 बजे पहुंचने के लिए प्रोफेसर गौतम ने उस से कह दिया था.

प्रोफेसर गौतम का फ्लैट विश्व- विद्यालय के उन के विभाग से मुश्किल से एक फर्लांग की दूरी पर ही था. उन्होंने पिछले साल ही उसे खरीदा था. पिछले 22 सालों में उन के देखतेदेखते मांट्रियल शहर कितना बदल गया था, विभाग में व्याख्याता के रूप में आए थे और अब कई वर्षों से प्राध्यापक हो गए थे. उन के विभाग में उन की बहुत साख थी.

सबकुछ बदल गया था, पर प्रोफेसर गौतम की जिंदगी वैसी की वैसी ही स्थिर थी. अकेले आए थे शहर में और 3 साल पहले उन की पत्नी उन्हें अकेला छोड़ गई थी. वह कैंसर की चपेट में आ गई थी. पत्नी की मृत्यु के पश्चात अकेले बड़े घर में रहना उन्हें बहुत खलता था. घर की मालकिन ही जब चली गई, तब क्या करते उस घर को रख कर.

18 साल से ऊपर बिताए थे उन्होंने उस घर में अपनी पत्नी के साथ. सुखदुख के क्षण अकसर याद आते थे उन को. घर में किसी चीज की कभी कोई कमी नहीं रही, पर उस घर ने कभी किसी बच्चे की किलकारी नहीं सुनी. इस का पतिपत्नी को काफी दुख रहा. अपनी संतान को सीने से लगाने में जो आनंद आता है, उस आनंद से सदा ही दोनों वंचित रहे.

पत्नी के देहांत के बाद 1 साल तक तो प्रोफेसर गौतम उस घर में ही रहे. पर उस के बाद उन्होंने घर बेच दिया और साथ में ही कुछ गैरजरूरी सामान भी. आनेजाने की सुविधा का खयाल कर उन्होंने अपना फ्लैट विभाग के पास ही खरीद लिया. अब तो उन के जीवन में विभाग का काम और शोध ही रह गया था. भारत में भाईबहन थे, पर वे अपनी समस्याओं में ही इतने उलझे हुए थे कि उन के बारे में सोचने की किस को फुरसत थी. हां, बहनें रक्षाबंधन और भैयादूज का टीका जब भेजती थीं तो एक पृष्ठ का पत्र लिख देती थीं.

प्रोफेसर गौतम ने रवि के आने के उपलक्ष्य में सोचा कि उसे भारतीय खाना बना कर खिलाया जाए. वे खुद तो दोपहर और शाम का खाना विश्वविद्यालय की कैंटीन में ही खा लेते थे.

शनिवार को प्रोफेसर भारतीय गल्ले की दुकान से कुछ मसाले और सब्जियां ले कर आए. पत्नी की बीमारी के समय तो वे अकसर खाना बनाया करते थे, पर अब उन का मन ही नहीं करता था अपने लिए कुछ भी झंझट करने को. बस, जिए जा रहे थे, केवल इसलिए कि जीवनज्योति अभी बुझी नहीं थी. उन्होंने एक तरकारी और दाल बनाई थी. कुलचे भी खरीदे थे. उन्हें तो बस, गरम ही करना था. चावल तो सोचा कि रवि के आने पर ही बनाएंगे.

रवि ने जब उन के फ्लैट की घंटी बजाई तो 12 बज कर कुछ सेकंड ही हुए थे. प्रोफेसर गौतम को बड़ा अच्छा लगा, यह सोच कर कि रवि समय का कितना पाबंद है. रवि थोड़ा हिचकिचा रहा था.

प्रोफेसर गौतम ने कहा, ‘‘यह विभाग का मेरा दफ्तर नहीं, घर है. यहां तुम मेरे मेहमान हो, विद्यार्थी नहीं. इस को अपना ही घर समझो.’’

रवि अपनी तरफ से कितनी भी कोशिश करता, पर गुरु और शिष्य का रिश्ता कैसे बदल सकता था. वह प्रोफेसर के साथ रसोई में आ गया. प्रोफेसर ने चावल बनने के लिए रख दिए.

‘‘आप इस फ्लैट में अकेले रहते हैं?’’ रवि ने पूछा.

‘‘हां, मेरी पत्नी का कुछ वर्ष पहले देहांत हो गया,’’ उन्होंने धीमे से कहा.

रवि रसोई में खाने की मेज के साथ रखी कुरसी पर बैठ गया. दोनों ही चुप थे. प्रोफेसर गौतम ने पूछा, ‘‘जब तक चावल तैयार होंगे, तब तक कुछ पिओगे? क्या लोगे?’’

‘‘नहीं, मैं कुछ नहीं लूंगा. हां, अगर हो तो कोई जूस दे दीजिएगा.’’

प्रोफेसर ने रेफ्रिजरेटर से संतरे के रस से भरी एक बोतल और एक बीयर की बोतल निकाली. जूस गिलास में भर कर रवि को दे दिया और बीयर खुद पीने लगे. कुछ देर बाद चावल तैयार हो गए. उन्होंने खाना खाया. कौफी बना कर वे बैठक में आ गए. अब काम करने का समय था.

रवि अपना बैग उठा लाया. उस ने 89 पृष्ठों की रिपोर्ट लिखी थी. प्रोफेसर गौतम रिपोर्ट का कुछ भाग तो पहले ही देख चुके थे, उस में रवि ने जो संशोधन किए थे, वे देखे. रवि उन से अनेक प्रश्न करता जा रहा था. प्रोफेसर जो भी उत्तर दे रहे थे, रवि उन को लिखता जा रहा था.

रवि की रिपोर्ट का जब आखिरी पृष्ठ आ पहुंचा तो उस समय शाम के 5 बज चुके थे. आखिरी पृष्ठ पर रवि ने अपनी रिपोर्ट में प्रयोग में लाए संदर्भ लिख रखे थे. प्रोफेसर को लगा कि रवि ने कुछ संदर्भ छोड़ रखे हैं. वे अपने अध्ययनकक्ष में उन संदर्भों को अपनी किताबों में ढूंढ़ने के लिए गए.

प्रोफेसर को गए हुए 15 मिनट से भी अधिक समय हो गया था. रवि ने सोचा शायद वे भूल गए हैं कि रवि घर में आया हुआ है. वह अध्ययनकक्ष में आ गया. वहां किताबें ही किताबें थीं. एक कंप्यूटर भी रखा था. अध्ययनकक्ष की तुलना में प्रोफेसर के विभाग का दफ्तर कहीं छोटा पड़ता था.

प्रोफेसर ने एक निगाह से रवि को देखा, फिर अपनी खोज में लग गए. दीवार पर प्रोफेसर की डिगरियों के प्रमाणपत्र फ्रेम में लगे थे. प्रोफेसर गौतम ने न्यूयार्क से पीएच.डी. की थी. भारत से उन्होंने एम.एससी. (कानपुर से) की थी.

‘‘साहब, आप ने एम.एससी. कानपुर से की थी? मेरे नानाजी वहीं पर विभागाध्यक्ष थे,’’ रवि ने पूछा.

प्रोफेसर 3-4 किताबें ले कर बैठक में आ गए.

‘‘क्या नाम था तुम्हारे नानाजी का?’’

‘‘रामकुमार,’’ रवि ने कहा.

‘‘उन को तो मैं बहुत अच्छी तरह से जानता हूं. 1 साल मैं ने वहां पढ़ाया भी था.’’

‘‘तब तो शायद आप ने मेरी माताजी को भी देखा होगा,’’ रवि ने पूछा.

‘‘शायद देखा होगा एकाध बार,’’ प्रोफेसर ने बात पलटते हुए कहा, ‘‘देखो, तुम ये पुस्तकें ले जाओ और देखो कि इन में तुम्हारे मतलब का कुछ है कि नहीं.’’

रवि कुछ मिनट और बैठा रहा. 6 बजने को आ रहे थे. लगभग 6 घंटे से वह प्रोफेसर के फ्लैट में बैठा था. पर इस दौरान उस ने लगभग 1 महीने का काम निबटा लिया था. प्रोफेसर का दिल से धन्यवाद कर उस ने विदा ली.

रवि के जाने के बाद प्रोफेसर को बरसों पुरानी भूलीबिसरी बातें याद आने लगीं. वे रवि के नाना को अच्छी तरह जानते थे. उन्हीं के विभाग में एम.एससी. के पश्चात वे व्याख्याता के पद पर काम करने लगे थे. उन्हें दिल्ली में द्वितीय श्रेणी में प्रवेश नहीं मिल पाया था. इसलिए वे कानपुर पढ़ने आ गए थे. उस समय कानपुर में ही उन के चाचाजी रह रहे थे. 1 साल बाद चाचाजी भी कानपुर छोड़ कर चले गए पर उन्हें कानपुर इतना भा गया कि एम.एससी. भी वहीं से कर ली. उन की इच्छा थी कि किसी भी तरह से विदेश उच्च शिक्षा प्राप्त करने के लिए जाएं. एम.एससी. में भी उन का परीक्षा परिणाम बहुत अच्छा नहीं था, जिस के बूते पर उन को आर्थिक सहायता मिल पाती. फिर सोचा, एकदो साल तक भारत में अगर पढ़ाने का अनुभव प्राप्त कर लें तो शायद विदेश में आर्थिक सहायता मिल सकेगी.

उन्हीं दिनों कालेज के एक व्याख्याता को विदेश में पढ़ने के लिए मौका मिला था, जिस के कारण गौतम को अस्थायी रूप से कालेज में ही नौकरी मिल गई. वे पैसे जोड़ने की भी कोशिश कर रहे थे. विदेश जाने के लिए मातापिता की तरफ से कम से कम पैसा मांगने का उन का ध्येय था. विभागाध्यक्ष रामकुमार भी उन से काफी प्रसन्न थे. वे उन के भविष्य को संवारने की पूरी कोशिश कर रहे थे.

एक दिन रामकुमार ने गौतम को अपने घर शाम की चाय पर बुलाया.

रवि की मां उमा से गौतम की मुलाकात उसी दिन शाम को हुई थी. उमा उन दिनों बी.ए. कर रही थी. देखने में बहुत ही साधारण थी. रामकुमार उमा की शादी की चिंता में थे. उमा विभागाध्यक्ष की बेटी थी, इसलिए गौतम अपनी ओर से उस में पूरी दिलचस्पी ले रहा था. वह बेचारी तो चुप थी, पर अपनी ओर से ही गौतम प्रश्न किए जा रहा था. कुछ समय पश्चात उमा और उस की मां उठ कर चली गईं.

अब कंगना रनौत के एक्स बौयफ्रेंड के साथ काम करेंगी हिना खान

‘कोमोलिका’ के रोल में फैंस का दिल जीतने वाली टीवी एक्ट्रेस हिना खान अब जल्द ही बौलीवुड और डिजीटल प्लेटफौर्म पर भी नजर आएंगी. इतना ही नहीं खबरों की माने तो हिना बौलीवुड एक्ट्रेस कंगना रनौत के एक्स बौयफ्रेंड के साथ स्क्रीन शेयर करती दिखेंगी. हिना ने खुद इस बात का खुलासा एक इंटरव्यू के दौरान किया है.

‘Damaged 2’ में दिखेंगे साथ…

हिना और अध्ययन वेब शो डैमेज्ड 2 (Damaged 2) में साथ आने वाले हैं. यह वेब शो एक साइकोलौजिकल क्राइम ड्रामा है. शो के बारे में बताते हुए हिना ने कहा, ‘मैं खुद को भाग्यशाली मानती हूं, जो मुझे यह मौका मिला है. इन सालों में मेरे काम की सराहना करने और मेरा समर्थन करने के लिए मैं अपने प्रशंसकों और दर्शकों का शुक्रिया अदा करना चाहती हूं.’

अभिनेत्री ने आगे कहा, ‘मैं ‘डैमेज्ड’ सीजन 2 का हिस्सा बनकर काफी उत्साहित हूं. भूमिका के तौर पर देखा जाए तो यह काफी अलग और चुनौतीपूर्ण हैं. मुझे यकीन है कि जब शो रिलीज होगा, दर्शकों को इसे देखने में काफी मजा आएगा.’

 

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Meet “Gosha” My first Indo-Hollywood project, Directed by our very own and talented @rahatkazmi #CountryOfBlind

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ऐसा होगा हिना का रोल…

इस सीरीज में हिना गौरी बत्रा के किरदार में दिखेंगी, जो एक ऐसे गेस्टहाउस की मालकिन हैं, जो अपने अंदर कई राज छुपाए हुए है. वहीं अध्ययन आकाश बत्रा के किरदार में नजर आएंगे, वह भी गेस्टहाउस के सह-मालिक हैं. शो का निर्देशन एकांत बबानी करेंगे. यह हंगामा प्ले पर जल्द ही रिलीज होगा.

बता दें कि अध्यन सुमन मशहूर टीवी होस्ट और एंकर शेखर सुमन के बेटे हैं. अध्यन सुमन और कंगना रनौत ने काफी दिनों तक एक दूसरे को डेट किया था. लेकिन इसके बाद दोनों अलग हो गए. वैसे तो अध्ययन ने कई फिल्मों में काम किया है लेकिन उन्हें खास सक्सेस नहीं मिली.

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Naagin 4: मौनी और सुरभि के बाद एकता को नहीं मिल रही परफेक्ट ‘नागिन’

एकता कपूर के पौपुलर टीवी सीरीज ‘नागिन’ ने फैंस को खूब लुभाया है, जिसकी बदौलत ये इसके तीनों सीजन ने खूब पौपुलैरिटी हासिल की और टीआरपी चार्ट्स में भी नंबर वन रहा. हाल ही में ‘नागिन’ शो का सीजन 3 खत्म हुआ है और अब लोग बेसब्री से ‘नागिन: सीजन 4’ का इंतजार कर रहे हैं. लेकिन शो के फैंस के लिए एक बुरी खबर है और वो ये कि अभी इस शो को शुरू होने में काफी वक्त लग सकता है. क्योंकि शो की प्रोड्यूसर एकता को उनकी परफेक्ट ‘नागिन’ नहीं मिल रही हैं.

मौनी और सुरभि के बाद अब कौन…

जैसा कि आप जानते हैं कि शो के पहले और दूसरे सीजन में मौनी रौय ने लीड रोल निभाया था और इसके बाद तीसरे सीजन में सुरभि ज्योति ने अपनी एक्टिंग से बखूबी फैंस का दिल जीता. लेकिन इसके बाद चौथे सीजन के लिए एकता को मनचाही एक्ट्रेस नहीं मिल रही है. खबरों की माने तो अभी तक शो के लिए कई एक्ट्रेसेस के औडिशन्स हो चुके हैं. लेकिन कोई भी एक्ट्रेस एकता कपूर को इंप्रेस नहीं कर पाई है. जिसकी वजह से इस टीवी शो के शुरू होने में देरी हो रही है.

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एकता लौन्च करना चाहती हैं नई एक्ट्रेस…

खबरों की माने तो शो के तीसरे सीजन को मिले बेहतरीन रिस्पौन्स के चलते एकता कपूर जल्द से जल्द ‘नागिन’ का चौथा सीजन धमाकेदार अंदाज में शुरू करना चाहती हैं और इसमें किसी तरह की कमी नहीं करना चाहती. लेकिन इसमें उन्हें ये दिक्कत आ रही है. रिपोर्ट्स की मानें तो टीवी शो में नागिन के आइकौनिक किरदार के लिए एकता कपूर नई एक्ट्रेस को लौन्च करना चाहती है. जो मौनी रौय और सुरभि ज्योती की तरह फैंस के दिलों में अपनी जगह बना सके. इसके लिए कई औडिशन्स हो रहे है. लेकिन अभी तक बात नहीं बनी है.

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खूबसूरती बढ़ाने के लिए बेसन फेसपैक का ऐसे करें इस्तेमाल

पकौड़े, कड़ी, लड्डू जैसे कई व्यंजन बनाने वाले बेसन में कई गुण होते हैं. त्वचा पर बेसन का फेस पैक एवं मास्क का प्रयोग कर के आप उसे गोरा तथा चमकदार बना सकती हैं. आइए, जानते हैं कि बेसन  फैसपैक को अपनी त्वचा के मुताबिक कैसे इस्तेमाल करें:

रूखी त्वचा में जान लाता है बेसन

ड्राई स्किन के लिए बेसन, दूध, शहद और हलदी पाउडर मिला कर पेस्ट बना लें. उसे चेहरे पर लगा कर 15 मिनट लगा रहने दें. सूखने के बाद चेहरे को पानी से धो लें.इस मिश्रण के प्रयोग से त्वचा नम व चमकदार बन जाती है.

औयली स्किन के लिए 1 चम्मच बेसन और 1 चम्मच ऐलोवेरा को अच्छी तरह मिला कर पेस्ट तैयार कर चेहरे पर लगाएं. 10 मिनट बाद चेहरे को पानी से धो लें. इस फेस पैक का प्रयोग हफ्ते में 2-3 बार करें. ऐलोवेरा में काफी मात्रा में विटामिंस, खनिज पदार्थ, ऐंटीऔक्सीडैंट्स आदि होते हैं, जो त्वचा को पोषण प्रदान करते हैं.

यह फेसपैक सन टैन, सनबर्न, काले धब्बे एवं पिगमैंटेशन कम करने में काफी असरदार साबित होता है.

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मुंहासों में कारगर

मुंहासों को दूर करने के लिए कटोरे में बेसन ले कर उस में खीरे का पेस्ट अच्छी तरह मिलाएं. फिर इसे फेस मास्क की तरह चेहरे पर लगाएं और 20 मिनट बाद कुनकुने पानी से धो लें. इस के बाद चेहरे को सूती कपड़े से हलके से सुखाएं. इसका उपयोग थोड़ेथोड़े समय बाद करने से मुंहासे दूर हो जाते हैं.

स्किन टैन में फायदेमंद

धूप में जाने से स्किन टैन हो जाती है. ऐसे में उस पर टमाटर के रस में बेसन मिला कर लगाया जाए तो उस का असर कई गुना बढ़ जाता है. बस इस के लिए आप को चाहिए 1 पका टमाटर, 1 चम्मच नीबू का रस और 1 चम्मच बेसन. ध्यान रखें टमाटर के बीज निकाल लें.

चेहरे की रौनक बढ़ाता है बेसन

स्किन में ग्लो लाने के लिए 1 कप दही, 1 चम्मच बेसन डाल कर चम्मच से अच्छी तरह मिलाएं. फिर इसे चेहरे पर लगाएं. 15-20 मिनट बाद चेहरे को धो लें. इस फेस पैक को दिन में 3 बार लगाएं ताकि चेहरे का निखार, जो तेज धूप, धूलमिट्टी और प्रदूषण से खो गया है, फिर चेहरे पर आ जाए.

दर्द निवारक है बेसन

इस में कोई दोराय नहीं कि एक बेसन में कई गुण हैं और इन्हीं गुणों के कारण बेसन घरघर में उपयोग किया जाता है. शरीर के किसी हिस्से में चोट लग जाए तो उस दर्द से तत्काल राहत देता है बेसन. यह प्राथमिक उपचार का भी बेजोड़ जरीया है.चोट लगे निशान पर बेसन का लेप दर्द से तुरंत राहत देता है.

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ऐसे बनाएं मखनी मटर मसाला

मखनी मटर मसाला  बहुत ही टेस्टी डिश है. आप इसे बहुत कम समय में आसानी से बना सकते हैं.  इसे रोटी या चावल के साथ  सर्व करें. तो चलिए झट से बताते है आपको इसकी रेसिपी.

सामग्री

1 कप मटर उबले हुए

1 बड़ा चम्मच अदरक व लहसुन पेस्ट

1-2 हरीमिर्चें कटी

1 आलू

1 बड़ा चम्मच फ्रैश क्रीम या मलाई

तलने के लिए तेल

1/4 छोटा चम्मच गरम मसाला

1/4 छोटा चम्मच हलदी पाउडर

1 छोटा चम्मच धनिया पाउडर

1 बड़ा चम्मच घी

1 टमाटर कटा हुआ

नमक स्वादानुसार

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बनाने की विधि

आलू को धो कर छील लें. फिर इस के बड़े टुकड़े काट कर गरम तेल में डीप फ्राई कर लें. उबले मटर, अदरक व लहसुन पेस्ट, हरीमिर्च व टमाटर एकसाथ पीस लें.

कड़ाही में घी गरम कर हलदी, धनिया पाउडर, 1/4 चम्मच नमक व गरममसाला डाल कर भूनें. इस में उबले मटर का पेस्ट डाल कर भून लें.

फिर इसमें 3/4 कप पानी डाल कर उबलने दें. तले आलू के टुकड़े डालें व फ्रैश क्रीम डाल कर आंच से उतार लें. चावलों के साथ सर्व करें.

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– व्यंजन सहयोग : अनुपमा गुप्ता

अकेलेपन को कैसे दूर करें ?

अनुप्रिया के घर पर पार्टी चल रही थी. अनुप्रिया की घनिष्ठ सहेली रीना, अनुप्रिया की बेटी कनिका को ढूंढ़ती हुई उस के कमरे में गई. कनिका को गहरी सोच में डूबे देख रीना कुछ हैरान हुई. कनिका से उस के हालचाल पूछे तो उस ने बहुत ही निराश स्वर में कहा, ‘‘आंटी, आप कैसी हैं?’’

‘‘मैं ठीक हूं, तुम्हें क्या हुआ है?’’

ठंडी सांस ली कनिका ने, ‘‘कुछ नहीं, आंटी.’’

‘‘पार्टी छोड़ कर यहां क्या कर रही हो?’’

‘‘बाहर आने का मन नहीं है.’’

‘‘क्या हुआ, बेटा?’’ रीना के अनुप्रिया से पारिवारिक संबंध थे. इसलिए कनिका ने निसंकोच दिल का हाल कहा, ‘‘पता नहीं, आंटी, मुझे क्या हो गया है. रात को नींद भी नहीं आती. 90 फीसदी समय मैं डिप्रैस्ड ही रहती हूं. कई बार तो मन में सुसाइड करने का खयाल तक आता है.’’

रीना हैरान सी कनिका का मुंह देखती रह गई. कुछ देर बाद बोली, ‘‘तुम्हें किस बात का डिप्रैशन है, सबकुछ तो है तुम्हारे पास?’’

कनिका ने सपाट स्वर में कहा, ‘‘यदि मेरे पास सबकुछ है, फिर मैं खुश क्यों नहीं हूं?’’ कनिका की बात सुन कर रीना को कुछ नहीं सूझा. वह काफी देर तक कनिका से बहुत सी दूसरी बातें करती रही. उसे बहुतकुछ समझाती रही पर जानती थी कि उस के उपदेश का कनिका पर कोई असर नहीं हो रहा है. रीना बाहर आई, एक कोने में बैठ कर कनिका के बारे में सोच रही थी. अनुप्रिया बाकी मेहमानों में व्यस्त थी.

रीना को पिछले दिनों चर्चा में रहे पीटर मुखर्जी के बेटे राहुल का अचानक ध्यान आया कि राहुल जैसे युवा को डिप्रैशन हो तो बात समझ में आती है कि वह किस तरह मानसिक यंत्रणा से गुजर रहा होगा, जब उसे अपने पिता और अपनी बातचीत को टेप करना पड़ा होगा. ऐसा कौन करता है? केवल वही संतान जिस का अपने मातापिता पर से विश्वास उठ गया हो, एक ऐसी संतान जो सच जानने के लिए बेचैन हो और उसे आगे कई दुखद सत्यों के साथ जीवन जीना हो.

एक घटना और थी कि 2 युवा लड़कियों के आपस में प्रेमसंबंध थे. अलग होने के डर से वे अपना आपस का रिश्ता छिपा कर रखती थीं. कुछ रिश्तेदारों ने दोनों लड़कियों को मैरीन ड्राइव एरिया में आपत्तिजनक स्थिति में देख लिया और उन के मातापिता को सचेत कर दिया. मातापिता ने दोनों का जीवन दूभर कर दिया जिस के चलते दोनों ने आत्महत्या करने का प्रयास किया. जिस में एक की मौत हो गई और दूसरी बच गई. पर अब आगे क्या होगा? दोनों के मातापिता अपने को धिक्कारते हुए कैसे जी पाएंगे?

एक मामले में एक बेहद सुंदर युवा लड़की ने अपना चेहरा ही जला लिया, क्योंकि उस का पति उस के सुंदर होने पर ताने मारता था जिसे वह सहन नहीं कर पाई. अब यह असुरक्षित व ईर्ष्यालु, भावनाहीन पति एक बुरी तरह जले हुए चेहरे वाली पत्नी के साथ कैसे रहेगा? क्या अब पत्नी को तलाक दे पाएगा और दूसरी कम सुंदर लड़की से विवाह कर लेगा?

रोंगटे खड़े कर देने वाली एक घटना में एक बिजनैसमैन की उस की प्रेमिका ने गला घोंट कर हत्या कर दी, क्योंकि वह अफेयर खत्म करना चाह रही थी और वह व्यक्ति इस के लिए तैयार नहीं था. 6 वर्षों से यह अफेयर था जिस की भनक भी किसी को नहीं लगी थी. पुरुष विवाहित था, उस के 2 बच्चे भी थे. प्रेमिका का हाल ही में विवाह हुआ था.

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यह कितनी हैरान करने वाली बात है कि घर में रहने पर भी पुरुष के घर वालों को किसी भी तरह का संदेह नहीं हुआ. मतलब एकसाथ पास रहते हुए भी आजकल परिवार में एकदूसरे के रहनसहन, हावभाव, तौरतरीकों पर ध्यान देने की किसी को न रुचि है, न किसी के पास समय. जब यह पुरुष मृत अवस्था में पाया गया तब कहीं जा कर पूरा प्रकरण सामने आया.

इन घटनाओं से रिश्तों के भुरभुरेपन पर हैरानी और दुख होता है. या तो बहुत विश्वास है या धोखा, या फिर बहुत इमोशंस हैं या बिलकुल नहीं. पर दोस्तों और परिवार वालों से घिरे रहने के बावजूद इंसान इतना अकेलापन महसूस करने लगता है कि वह किसी से अपना दुख शेयर ही नहीं कर पाता.

इन तमाम उदाहरणों में शामिल लोग उन परिवारों से हैं जो बेहद धार्मिक हैं. ये लोग नियमित तौर पर मंदिरों, तीर्थस्थलों व तथाकथित गुरुओं के यहां चक्कर लगाते रहते हैं. वे पंडों, गुरुओं के बताए अनुसार समयसमय पर हवनयज्ञ, पूजापाठ व दानदक्षिणा देते रहते हैं लेकिन उन के जीवन में शांति नहीं है. धर्म, ईश्वर को सबकुछ मानने के बावजूद यह स्थिति है.

इन समस्याओं का उपाय धर्म और तथाकथित गुरुओं के पास नहीं है. अगर इन के पास उपाय होता तो परिवार में कोई भी सदस्य चिंता, तनाव, डिप्रैशन जैसी समस्याओं से पीडि़त न रहता. इस का इलाज मैडिकल साइंस और आप के व्यवहार में है. बात मैडिकल साइंस की करते हैं.

मानसिक दशा

विश्व स्वास्थ्य संगठन के अनुसार, लगभग 3 में से 1 व्यक्ति को चिंता और अवसाद जैसी आम मानसिक स्वास्थ्य समस्याएं हैं. आंकड़े बताते हैं कि यदि हमें ऐसी कोई समस्या नहीं है तो हमारे किसी मित्र, सहकर्मी या परिवार के किसी सदस्य को जरूर होगी. अपने मानसिक स्वास्थ्य के बारे में हम जल्दी किसी से बात नहीं करते और हम चिंता के लक्षण भी पहचान नहीं पाते. यह बात महिला व पुरुष दोनों के लिए है.

माइंड और्गेनाइजेशन, यूके की रिसर्च के अनुसार, 35 प्रतिशत महिलाओं की तुलना में 23 प्रतिशत पुरुषों ने कहा कि 15 दिन भी अगर वे ठीक महसूस नहीं करते तो वे डाक्टर के पास जाएंगे. विकसित देशों में, डब्लूएचओ के अनुसार, 12 में से एक स्त्री के मुकाबले, 5 में से एक पुरुष शराब पर निर्भर हो जाता है. 50 वर्ष से कम आयु के पुरुषों में सुसाइड की गिनती हर साल बढ़ रही है. उन की भावनाओं पर समाज का यह प्रैशर कि, क्या करना चाहिए, क्या नहीं, बहुत रहता है.

दरअसल, सामान्य चिंताएं, सामाजिक चिंताएं, कई तरह के फोबिया, कंपलसिव बिहेवियर, पैनिक अटैक्स, खाने से संबंधित डिस्और्डर और पोस्ट ट्रौमेटिक स्ट्रैस डिस्और्डर आदि के चलते इंसान अवसाद का शिकार हो जाता है. हर व्यक्ति में इन के लक्षण अलगअलग जाहिर होते हैं, जैसे मांसपेशियों में तनाव, सिरदर्द, सीने में दर्द, हृदयगति बढ़ना, सांस लेने में कठिनाई, पसीना आना, उलटी या चक्कर आना, पेटदर्द, डायरिया, दम घुटना आदि.

मदद करें

भावनात्मक रूप से चिंता से प्रभावित व्यक्ति आराम करने में असमर्थ होता है. उसे बहुत गुस्सा आता है, निराशा या भय महसूस होता है.

चिंता और तनाव से प्रभावित व्यक्ति की मदद की जा सकती है. अगर कोई आप को बताता है कि उसे एंजाइटी डिस्और्डर है तो सब से पहले आप खुद इस के बारे में जान लें. औनलाइन जानकारी ले कर ही काफीकुछ समझ लें. उसे डाक्टर के पास जाने के लिए कहें. डाक्टर ऐसी समस्याएं हर समय देखते हैं. वे मरीज के साथ शांति से बात करते हैं. उन की बातें सुनते हैं और समझते हैं.

प्रभावित लोगों को सलाह दें कि हर समय चिंता में डूब कर जीवन बिताने के बजाय उस का इलाज करवाएं. यह न सोचें, न कहें कि तुम्हें ज्यादा नींद, कम काम करने, कम पीने, कम दवा लेने, ज्यादा व्यायाम की जरूरत है. उन की बात ध्यान से सुनें, उन की परेशानियां, लक्षण सुन कर हैरान न हों. उन से कहें, मुझे बताओ तुम्हें क्या परेशान कर रहा है.

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यह कैसा खालीपन

किसी अपने की गुडमौर्निंग सुन कर या पुरानी अलार्म घड़ी की आवाज से आजकल हम कम ही उठते हैं. इन आवाजों की जगह अब हमारे मोबाइल फोन ने ले ली है. बैड से उठने से पहले ही लोग नया फेसबुक अपडेट चैक करते हैं, व्हाट्सऐप के मैसेज पढ़ते हैं. यह हायपर कनैक्टेड दुनिया है जहां अकेलापन हमारी सोच से भी ज्यादा आम हो गया है.

रिलेशनशिप विशेषज्ञों का मानना है कि जहां लोग पूरी दुनिया से सोशल नैटवर्किंग प्लेटफौर्म जैसे फेसबुक, ट्विटर और इंस्टाग्राम से आसानी से जुड़ जाते हैं वहीं बराबर में बैठे व्यक्ति से नहीं जुड़ पाते.

वैलनैस ऐक्सपर्ट आनंद वाच्छानी कहते हैं, ‘‘रैस्तरां में जब हमें खाना सर्व किया जाता है, पहले हम इसे इंस्टाग्राम पर डालते हैं, क्योंकि गरम खाने का स्वाद लेने से ज्यादा महत्त्वपूर्ण हमें सोशल मीडिया पर अपनी प्रोफाइल अपडेट करना लगता है.’’

गृहिणी सीमा कश्यप कहती हैं, ‘‘मैं ने अपने 30वें बर्थडे पर रात 12 बजे अपना फोन अपनी दोस्तों के फोन के इंतजार में उत्साह से उठा लिया. मुझे विश्वास था कि मेरी खास दोस्त बर्थडे केक ले कर घर भी आएंगी. हमेशा यही होता आया था. हम एक ही कालोनी में रहती हैं. इस बहाने कुछ मनोरंजन हो ही जाता था पर मुझे बहुत निराशा हुई. बस, व्हाट्सऐप ग्रुप का नाम उस दिन बदल दिया गया और अगली सुबह फेसबुक पर कई बर्थडे मैसेज थे. किसी का कोई फोन नहीं, कोई बात नहीं.’’

अपनों से जुड़ें

क्लिनिकल साइकोलौजिस्ट और लेखिका सीमा हिंगोरानी कहती हैं कि अपने प्रियजनों से ज्यादा आजकल लोग अपने डाक्टर्स के साथ कंफर्टेबल हैं. लोग दूसरों को यह दिखाना ही नहीं चाहते कि वे कमजोर हैं, इसलिए लोगों से व्यक्तिगत रूप से मिलने के बजाय सोशल मीडिया के बाहरी दिखावे के पीछे रहना ज्यादा पसंद करते हैं.’’

लोगों से घिरे रहने के बावजूद व्यक्ति को अकेलापन महसूस हो सकता है. अकेलापन चिंता और अवसाद का ही लक्षण है, यह युवा और वरिष्ठ नागरिकों में ज्यादा दिख रहा है. सामाजिक अकेलापन कई कारणों से होता है, जैसे किसी प्रियजन की मृत्यु, कानूनी अलगाव, शारीरिक अस्वस्थता, रिटायरमैंट या नौकरी छूट जाना, पुनर्वास आदि.

भावनात्मक रूप से प्रभावित करने के साथसाथ अकेलापन इंसान के इम्यून सिस्टम यानी जिस्म की रोग प्रतिरोधक प्रणाली को भी प्रभावित करता है. शिकागो यूनिवर्सिटी की रिसर्च के अनुसार, अकेलेपन से हृदयरोग, अल्जाइमर और तेजी से बढ़ते कैंसर के पनपने की आशंका रहती है. लोगों के अलगथलग रहने से नोरीपाइनफेरिन हार्मोन का लैवल बढ़ जाता है जो वायरस से लड़ने की हमारी क्षमता को कमजोर करता है. इस से हार्टअटैक की आशंका भी बढ़ जाती है.

अवसाद, अनियमित नींद, स्ट्रैस हार्मोन कोर्टिसोल का स्तर बढ़ जाना, ब्लडप्रैशर बढ़ना आदि बीमारी अकेलेपन के चलते उत्पन्न होती हैं.

एकांत और अकेलेपन में फर्क यह है कि अकेलेपन में अकेले हो जाने की नकारात्मक भावना रहती है. जब तक हम महत्त्वपूर्ण महसूस करने के लिए सोशल मीडिया का प्रयोग नहीं करते तब तक ठीक है. आज चाहे रैस्तरां हो या पार्टी, हर व्यक्ति अपने सैलफोन से चिपका रहता है. यह आदत अकेलापन बढ़ा रही है. जो कोई सार्थक वार्त्तालाप करना चाहते हैं, उन पर इस का बहुत प्रभाव पड़ता है. असली रिश्तों को अकेला करते सोशल मीडिया पर वर्चुअल कनैक्शंस बढ़ रहे हैं.

इंस्टाग्राम, स्नैपचैट और बाकी प्लेटफौर्म पर आप अपनेआप को एक अलग ही रूप में दिखाने की कोशिश करते रहते हैं. इस का मतलब यह नहीं है कि टैक्नोलौजी बुरी चीज है.

अपने आसपास के लोगों, परिवार, प्रियजनों को थोड़ा समय दें. उन का और अपना सुखदुख कहें, सुनें. एकदूसरे के जीवन में बढ़ते अकेलेपन को दूर करने की कोशिश करें, न कि सोशल मीडिया का सहारा ले कर एक स्वरचित झूठे संसार का हिस्सा बनें, जहां सिर्फ सब अच्छा ही अच्छा दिखता है. सोचें, क्या यह संभव है.

अपनों को अकेलेपन का शिकार न होने दें, एकदूसरे को समय दें, खुद स्वस्थ रहें और दूसरों को भी स्वस्थ रहने में सहयोग दें.

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हम हैं राही प्यार के : भाग 1

उस समय आंध्र प्रदेश अविभाजित था. हैदराबाद के एक प्राइवेट इंजीनियरिंग कालेज में श्रीराम और प्रेमा पढ़ रहे थे. श्रीराम आंध्र प्रदेश से था जबकि प्रेमा बिहार के पटना शहर से थी. दोनों ही कंप्यूटर साइंस फाइनल ईयर की परीक्षा दे चुके थे और दोनों को कैंपस से जौब मिल चुकी थी. मगर दोनों का एमबीए करने का इरादा था जिस के लिए उन्होंने जी मैट और जी आर ई टैस्ट भी दिए थे. दोनों का चयन हैदराबाद के ‘इंडियन स्कूल औफ बिजनैस’ के लिए हो चुका था.

कालेज में फर्स्ट ईयर के दिनों में दोनों में कोईर् खास जानपहचान नहीं थी. दोनों एक ही सैक्शन में थे बस इतना जानते थे. सैकंड ईयर से प्रेमा और श्रीराम दोनों लैब के एक ही ग्रुप में थे और प्रोजैक्ट्स में भी दोनों का एक ही ग्रुप था. प्रेमा को तेलुगु का कोई ज्ञान नहीं था, जबकि श्रीराम अच्छी हिंदी बोल लेता था. दोनों में अच्छी दोस्ती हुई. प्रेमा ने धीरेधीरे तेलुगु के कुछ शब्द सीख लिए थे. फिर दोनों कैंपस के बाहर एकसाथ जाने लगे. कभी लंच, कभी डिनर या कभी मूवी भी. दोस्ती प्यार का रूप लेने लगी तो दोनों ने मैनेजमैंट करने के बाद शादी का निर्णय लिया.

श्रीराम को प्रेमा श्री पुकारती थी. श्री हैदराबाद के अमीर परिवार से था. उस के पापा पुलिस में उच्च पद पर थे. श्री अकसर कार से कालेज आता था. प्रेमा मध्यवर्गीय परिवार से थी. पर इस फासले से उन के प्यार में कोई फर्कनहीं पड़ने वाला था. अपनी पढ़ाई के लिए प्रेमा ने बैंक से कर्ज लिया था. फाइनल ईयर में जातेजाते श्री ने प्रेमा को भी ड्राइविंग सिखा दी और फिर उसे लाइसैंस भी मिल गया था.

प्रेमा के मातापिता को बेटी और श्रीराम की लव मैरिज पर आपत्ति नहीं थी, पर श्रीराम के मातापिता उस की शादी किसी तेलुगु लड़की से ही करना चाहते थे. शुरू में उन्होंने इस का विरोध किया पर बेटे की जिद के सामने एक न चली. हैदराबाद का बिजनैस स्कूल पूर्णतया रैजिडैंशियल था, इसलिए प्रेमा के पिता चाहते थे कि दोनों की शादी मैनेजमैंट स्कूल में जाने से पहले हो जाए, पर श्रीराम के मातापिता इस के खिलाफ थे. तय हुआ कि कम से कम उन की सगाई कर दी जाए.

श्री और प्रेमा की सगाई हो गई. दोनों बहुत खुश थे. उसी दिन शाम को कालेज में फाइनल ईयर के छात्रों का बिदाई समारोह था. प्रेमा श्री

के साथ उस की कार में कालेज आई थी. उस अवसर पर सभी लड़कों और लड़कियों से कहा गया कि अपने मन की कोई बात बोर्ड पर आ कर लिखें.

सभी 1-1 कर बोर्ड पर आते और अपने मन की कोई बात लिख जाते. जब श्री की बारी आई तो उस ने प्रेमा की ओर इशारा करते हुए लिखा ‘‘हम हैं राही प्यार के हम से कुछ न बोलिए, जो भी राह में मिला हम उसी के हो लिए…’’

पूरा हाल तालियों की गड़गड़ाहट से गूंज उठा, पर प्रेमा ने शर्म से सिर झुका लिया. कुछ देर के बाद प्रेमा की बारी आई तो उस ने बोर्ड पर लिखा, ‘‘कुछ मैं ने कसम ली, कुछ तुम ने कसम ली, नहीं होंगे जुदा हम…’’

एक बार फिर हाल तालियों से गूंज उठा.

अंत में जिस लड़के की बारी आई वह विकास था. विकास भी बिहार के किसी शहर का रहने वाला था, पर वह काफी शर्मीला और अंतर्मुखी था. दरअसल, विकास और प्रेमा बिहारी स्टूडैंट्स गैटटुगैदर में मिलते तो दोनों में बातें होती थीं. इस के अलावा वे शायद ही कभी मिलते थे.

विकास का ब्रांच मैकेनिकल था. कभी किसी लैब ग्रुप या प्रोजैक्ट में साथ काम करने का मौका भी न मिला था. पर साल में कम से कम 2 बार उन का गैटटुगैदर होता था. एक साल के पहले दिन और दूसरा 22 मार्च बिहार डे के अवसर पर. दोनों मिलते थे और कुछ बातें होती थीं. विकास मन ही मन प्रेमा को चाहता था, पर एक तो अपने स्वभाव और दूसरे श्री से प्रेमा की नजदीकियों के चलते कुछ कह नहीं सका था.

विकास धीरेधीरे चल कर बोर्ड तक गया और बड़े इतमीनान से बोर्ड पर लिखा, ‘‘हम भी थे राही प्यार के, पर किसी को क्या मिला यह अपने हिस्से की बात है…’’

इस बार हाल लगभग खामोश था सिवा इक्कादुक्का तालियों के. सभी की सवालिया निगाहें उसी पर टिकी थीं. वह धीरेधीरे चल कर वापस अपनी सीट पर जा बैठा. उस की बात किसी की समझ में नहीं आई.

इस घटना के 2 दिन बाद श्री और प्रेमा दोनों हैदराबाद के निकट मशहूर रामोजी फिल्मसिटी जा रहे थे. श्री की कार थी और वह खुद चला रहा था. रास्ते में दोनों ने कोमपल्ली के पास रनवे 9 में रुक कर गो कार्टिंग का मजा लेने की सोची. वहां दोनों ने 1-1 कार्ट लिया और अपनाअपना हैलमेट और जैकेट पहनी. वहां के सुपरवाइजर ने उन के कार्ट्स में तेल भरा और दोनों अपनी गाड़ी रनवे पर दौड़ाने लगे. एकदूसरे को चीयर करते हुए वे भरपूर आनंद ले रहे थे.

रनवे से निकल कर श्री ने कहा, ‘‘अब रामोजी तक कार तुम चलाओ. हम शहर से निकल चुके हैं और सड़क काफी अच्छी है.’’

प्रेमा ने कहा, ‘‘ठीक है, मैं चलाती हूं पर स्पीड 50 किलोमीटर से ज्यादा नहीं रखूंगी.’’

‘‘कोई बात नहीं है. इतने पर भी हम समय पर पहुंच जाएंगे.’’

थोड़ी दूर जाने के बाद दूसरी तरफ से एक बस तेज रफ्तार से आ रही थी. एक औटो को ओवरटेक करने के दौरान बस कार से टकरा गई. उन की कार पलट कर हाईवे के नीचे एक खड्ड में जा गिरी. प्रेमा को काफी चोटें आईं और वह बेहोश हो गई. कुछ चोटें श्री को भी आई थीं पर वह कार से निकलने में सफल हो गया. उस ने अपने पापा को फोन किया.

कुछ ही देर में पुलिस की 2 गाडि़यां आईं. उस के पापा भी आए थे. श्री को एक गाड़ी में बैठा कर अस्पताल में लाया गया. प्रेमा अभी भी बेहोश थी. उसे कार से निकालने में काफी दिक्कत हुई. उस की हालत गंभीर देख कर उसे ऐंबुलैंस में अस्पताल भेजा गया. प्रेमा के मातापिता को फोन पर दुर्घटना की सूचना दी गई.

श्री को प्राथमिक उपचार के बाद मरहमपट्टी कर अस्पताल से छुट्टी मिल गई. कुछ देर बाद वह भी प्रेमा से मिलने गया. दूसरे दिन प्रेमा के मातापिता भी आए. प्रेमा की हालत देख कर वे काफी दुखी हुए.

डाक्टर ने उन से कहा, ‘‘अगले 48 घंटे इन के लिए नाजुक हैं. इन्हें मल्टीपल फ्रैक्चर हुआ है. हम ने कुछ टैस्ट्स कराने के लिए भेजे हैं और कुछ इंजैक्शंस इन्हें दिए हैं. बाकी रिपोर्ट आने पर सही अंदाजा लगा सकते हैं. हम अपनी ओर से पूरी कोशिश कर रहे हैं. आप धीरज रखें.’’

अगले दिन प्रेमा की टैस्ट रिपोर्ट्स मिलीं. वह अभी भी बेहोश थी और उसे औक्सीजन लगी थी. डाक्टर ने कहा, ‘‘इन्हें सीरियस इंजरीज हैं. इन के शोल्डर और कौलर बोंस के अलावा रिब केज में भी फ्रैक्चर है. रीढ़ की हड्डी में भी काफी चोट लगी है. इसी कारण इन के लिवर और लंग्स पर बुरा असर पड़ा है. रीढ़ की हड्डी में चोट आने से हमें लकवा का भी संदेह है. पर इन का ब्रेन ठीक काम कर रहा है. उम्मीद है इन्हें जल्दी होश आ जाएगा.’’

प्रेमा के पापा ने पूछा, ‘‘इस के ठीक होने की उम्मीद तो है? प्रेमा कब तक ठीक हो जाएगी?’’

‘‘अभी कुछ भी कहना जल्दबाजी होगी.

इन की जान को कोई खतरा तो नहीं दिखा रहा है, पर चलनेफिरने लायक होने में इन्हें महीनों लग सकते हैं. हमें शक है कि इन के नीचे के अंग लकवाग्रस्त हों, इन्हें होश आने दीजिए तब

लकवे का असर ठीक से पता चलेगा. आप लोग हौसला रखें.’’

अगले दिन प्रेमा ने आंखें खोलीं. सामने श्री और मातापिता को देखा. उस दिन विकास भी उस से मिलने आया था. प्रेमा के होंठ फड़फड़ाए. टूटीफूटी आवाज में बोली, ‘‘मैं अपने पैर नहीं हिला पा रही हूं.’’

प्रेमा की आंखों में आंसू थे. श्री की ओर देख कर उस ने कहा, ‘‘हम ने क्याक्या सपने देखे थे. मैनेजमैंट के बाद हम अपनी कंपनी खोलेंगे. मैं ने कभी किसी का बुरा नहीं सोचा. फिर भी मेरे साथ ही ऐसा क्यों हुआ?’’

‘‘धीरज रखो,’’ श्री ने कहा.

प्रेमा को अस्पताल के बैड पर पड़ेपड़े कुछ हफ्ते बीत गए.

कुछ दिन तक तो श्री आता रहा और उस का हालचाल पूछता रहा पर फिर धीरेधीरे उस का आना कम हो गया. उस के बरताव में अब काफी परिवर्तन आ गया था. एक तरह से बेरुखी थी. श्री के रवैए पर वह दुखी थी.

कालेज के दिनों में प्रेमा गूगल कंपनी को ‘गूगल मैप’ ऐप पर अपना सुझाव भेजती थी. गूगल ने अपने मैप पर उस के सुझाव से मैप में सुधार कर उसे बेहतर बनाया. कंपनी ने उस की प्रशंसा करते हुए एक प्रमाणपत्र और पुरस्कार दिया था. उसे गूगल कंपनी से औफर भी मिला था, पर प्रेमा ने पहले एमबीए करना चाहा था.

धीरेधीरे प्रेमा ने अपनी हालत से समझौता कर लिया था. करीब 2 महीने बीत गए. तब उस ने डाक्टर से एक दिन कहा, ‘‘डाक्टर, मैं ऐसे कब तक पड़ी रहूंगी? मैं कुछ काम करना चाहती हूं. क्या मैं अपने लैपटौप से यहीं बैड पर लेटे कुछ कर सकती हूं?’’

‘‘हां, बिलकुल कर सकती हो. नर्स को बोल कर बैड को सिर की तरफ थोड़ा ऊंचा करा कर तुम लैपटौप पर काम कर सकती हो, पर शुरू में लगातार देर तक काम नहीं करना.’’

साथ वाले दूसरे डाक्टर ने कहा, ‘‘तुम एक बहादुर लड़की हो. शायद हम तुम्हें पूरी तरह से ठीक न कर सकें, पर तुम व्हीलचेयर पर चल सकती हो.’’

‘‘ओके, थैंक्स डाक्टर.’’

प्रेमा ने फिर से गूगल के लिए स्वेच्छा से काम करना शुरू किया. गूगल भी उस के संपर्क में रहा. उस के काम से कंपनी काफी खुश थी. उस से यह भी कहा गया कि वह अपने स्वास्थ्य और अपनी क्षमता के अनुसार जितनी देर चाहे बैड से काम कर सकती है.

इस बीच और 2 महीने बीत गए. इस दौरान श्री एक बार भी उस से मिलने न आया. उस दिन प्रेमा अस्पताल से डिस्चार्ज होने वाली थी जिस की सूचना उस ने श्री को दे दी थी. वह अपने पापा के साथ आया था.

बदलती जीवनशैली का नतीजा है अर्थराइटिस

अर्थराइटिस यानी गठिया को पहले बुढ़ापे का रोग माना जाता था. घुटने, कोहनी, कमर के जोड़ों में दर्द और चलने-फिरने में परेशानी कभी बुढ़ापे की निशानी कहलाती थी. डौक्टरों के मुताबिक जोड़ों के बीच का लिक्विड उम्र बढ़ने के साथ धीरे-धीरे खत्म होने लगता है, जिसके कारण शरीर में जोड़ों का लचीलापन खत्म होने लगता है, जिसे अर्थराइटिस करते हैं. जोड़ों का मूवमेंट प्रभावित होने से बूढ़े लोगों को अकड़न और दर्द महसूस होता है. साठ साल की उम्र के बाद ज्यादातर बुजुर्गों में गठिया के लक्षण दिखने लगते थे. लेकिन जैसे-जैसे हमारे खानपान और रहनसहन में बदलाव आ रहे हैं, अर्थराइटिस की समस्या सिर्फ बूढ़ों तक सीमित नहीं रह गयी है. अब गठिया का रोग जवान लोगों और बच्चों को भी अपना शिकार बना रहा है.

अट्ठाइस साल की आयुषी अपने औफिस की सीढ़ियां चढ़ने में परेशानी अनुभव करती है. उसका वजन 68 किलो है. मोटापे के कारण उसकी सांस भी फूलती है. मौल या मेट्रो स्टेशनों पर वह ज्यादातर लिफ्ट का इस्तेमाल करती है, लेकिन औफिस में लिफ्ट न होने के कारण उसे दूसरे माले पर जाने के लिए सीढ़ियां चढ़नी पड़ती हैं. यह थोड़ी सी सीढ़ियां भी उसकी जान की आफत हैं.

महानगरों में बदलती जीवनशैली, गलत खानपान, मोटापा, एक्सरसाइज की कमी, पैदल चलने में कोताही, ज्यादातर बैठे रहना ऐसे तमाम कारण हैं जो कम उम्र में ही इन्सान को अर्थराइटिस जैसी तकलीफदेह बीमारी की ओर ढकेल रहे हैं. अर्थराइटिस का सबसे अधिक प्रभाव घुटनों में और उसके बाद कूल्हे की हड्डियों में दिखायी देता है. अधिकतर लोग अपने बदन में दर्द और अकड़न महसूस करते हैं. कभी-कभी हाथों, कंधों और घुटनों में सूजन और दर्द भी रहता है. यही नहीं, रोग बढ़ने पर हाथ की उंगलियां तक मोड़ने में परेशानी होने लगती है.

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क्या होता है अर्थराइटिस

अर्थराइटिस जोड़ों के ऊतकों में जलन और क्षति के कारण होता है. जलन के कारण ही ऊतक लाल, गर्म, दर्दनाक और सूजे हुए हो जाते हैं. जोड़ वह जगह है, जहां पर दो हड्डियों का मिलन होता है, जैसे कोहनी या घुटना. जब इन जगहों पर जकड़न के साथ-साथ दर्द महसूस हो तो यह अर्थराइटिस के साइन हो सकते हैं. अर्थराइटिस कई प्रकार की होती है. डौक्टर कुछ प्रमुख जांचों के आधार पर अर्थराइटिस रोग और इसके प्रकार का पता लगाते हैं. खून में यूरिक एसिड का स्तर यदि जरूरत से ज्यादा है, तो इसका मतलब है कि व्यक्ति गाउटी अर्थराइटिस से पीड़ित है. साइसनोवियल फ्यूड, इसे श्लेष द्रव भी कहते हें, जोड़ों के बीच पाया जाता है. जोड़ों के अंदर से इस द्रव को लेकर इसका टेस्ट किया जाता है, जिसमें मोनोसोडियम यूरेट क्रिस्टल पाये जाते हैं. कभी-कभी यूरिक एसिड मूत्र में भी पाया जाता है, जिसके टेस्ट से गाउटी अर्थराइटिस का पता लगाया जा सकता है. आमतौर पर ब्लड टेस्ट से गाउटी अर्थराइटिस का पता चल जाता है. शरीर में यूरिक एसिड बढ़ने का मतलब है आपके खानपान में प्रोटीन युक्त चीजों की भरमार. चीज, मीट, मक्खन, राजमा, सोयाबीन, दालें प्रोटीन का भरपूर स्रोत हैं. इन पदार्थों के अत्याधिक सेवन से रक्त में यूरिक एसिड का स्तर बढ़ता है, जिसके चलते आप गाउटी अर्थराइटिस के शिकार हो सकते हैं. गाउट के कारण पैरों के टखने और उंगलियों व अंगूठे के आसपास यूरिक एसिड के जमा होने से वहां सूजन और दर्द रहने लगता है और चलने-फिरने में बहुत परेशानी होती है.

इम्यूनिटी भी अर्थराइटिस की वजह है. रूमेटाइड अर्थराइटिस रोग प्रतिरक्षण प्रणाली में असंतुलन से पैदा होने वाली बीमारी है, जो जोड़ों में सामान्य दर्द के रूप में शुरू होती है और इलाज के अभाव में शरीर के बाकी हिस्सों को प्रभावित करती है. यह लम्बे समय तक रहने वाला सूजन का विकार है, जो हाथों और पैरों के साथ अन्य जोड़ों को भी प्रभावित करता है.

कैसे करें इलाज और बचाव

गठिया के दर्द की पहचान यह है कि इसमें रात को जोड़ों का दर्द बढ़ता है और सुबह उठने पर थकान महसूस होती है. समय पर उपचार ही इसका बचाव है.

वजन घटाएं

गठिया के खतरे से बचने का बेहतर और आसान तरीका यही है कि आप अपने वजन को नियंत्रित रखें. हालांकि वजन बढ़ने के बाद कम करना आसान नहीं है. इसलिए कोशिश करें कि आपका वजन मेंटेन रहे. ज्यादा तला-भुना, प्रोटीनयुक्त खाने से बेहतर है कि आप अपने खाने में फाइबर और कार्बोहाइड्रेट को ज्यादा महत्व दें. मोटापे के शिकार लोगों में गठिया की समस्या आम होती है.

व्यायाम करें

गठिया से ग्रसित लोगों को एक्सरसाइज करनी चाहिए. यदि आपको व्यायाम करने में परेशानी होती है तो आप अपने घर या अपार्टमेंट में टहल भी सकते हैं. व्यायाम और सुबह के समय टहलने के साथ ही यदि आप स्विमिंग पूल या नदी में तैरते हैं तो यह भी आपके लिए फायदेमंद रहेगा.

एक्युपंचर

गठिया के दर्द से राहत पाने के लिए बहुत से लोग एक्युपंचर का भी सहारा लेते हैं. कई अध्ययनों में यह साफ हो चुका है कि एक्युपंचर थेरेपी गठिया के दर्द में फायदेमंद है.

प्रासंगिक उपचार

जिस पार्ट में गठिया का दर्द है उस पर मैंथा औयल से तैयार की गयी क्रीम लगाने पर भी आराम मिलता है. इस तरह की क्रीम को आप निश्चित मात्रा में लेकर दर्द वाले भाग पर मालिश करें. नियमित मालिश से दर्द में राहत मिलेगी.

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कैपसेसिन क्रीम

बाजार में मिलने वाली कैपसेसिन क्रीम का इस्तेमाल करने से भी जोड़ों के दर्द में आराम मिलता है. इसे आप डौक्टर से बिना परामर्श किये भी यूज कर सकते हैं.

इलेक्ट्रिसिटी एनर्जी

एलेक्ट्रिसिटी एनर्जी से जोड़ों में सूजन और दर्द से राहत मिलता है. फिजिकल थेरेपिस्ट युवाओं के जोड़ों में गुम चोट लगने पर इलेक्ट्रिसिटी एनर्जी से उपचार करते हैं.

अर्थराइटिस के लक्षण

शुरुआत में मरीज को बार-बार बुखार आता है, मांसपेशियों में दर्द रहता है, हमेशा थकान और टूटन महसूस होती है, भूख कम हो जाती है और वजन घटने लगता है. शरीर के तमाम जोड़ों में इतना दर्द होता है कि उन्हें हिलाने पर ही चीख निकल जाती है. खासकर सुबह के समय. इसके अलावा शरीर गर्म रहता है, त्वचा पर लाल चकत्ते पड़ जाते हैं और जलन की शिकायत होती है. जोड़ों में सूजन इस बीमारी में आम है.

डेंगू, चिकनगुनिया भी हैं जिम्मेदार

डेंगू और चिकनगुनिया के करीब 80 प्रतिशत मरीजों में हाथ-पैर के जोड़ों में दर्द रहता है. चार महीने के बाद रोगी इन लक्षणों से पूरी तरह मुक्त हो जाते हैं, लेकिन 20 प्रतिशत मरीजों को गठिया होने की आशंका होती है, ऐसे में इन मरीजों को अस्थि रोग चिकित्सक से परामर्श लेना जरूरी है.

ठंड में खतरनाक है गठिया

बदलते मौसम में जोड़ों में असहनीय दर्द और अर्थराइटिस की समस्या बढ़ जाती है. जैसे-जैसे तापमान में गिरावट आती है वैसे-वैसे जोड़ों का दर्द बढ़ने लगता है. ऐसा इसलिए होता है क्योंकि मौसम के ठंडा होने पर जोड़ों की रक्तवाहिनियां सिकुड़ने लगती हैं और उस हिस्से में रक्त का तापमान कम हो जाता है. जिसके चलते जोड़ों में जकड़न हो जाती है जो दर्द का कारण होता है.

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