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गुलाब की महक से गुलजार

एक समय में गुलाब की खेती को कांटों की खेती कह कर खिलाफत करने वाले ही अब गुलाब के बगीचे लगा रहे हैं. गुलाब के फूलों की खेती से एक छोटे से गांव मालीखेड़ा के लोगों की जिंदगी में माली तरक्की की महक घुल गई है. भीलवाड़ा और चित्तौड़गढ़ जिलों की सीमा पर स्थित इस गांव की पहचान अब गुलाब की खेती से बनती जा रही है.

भीलवाड़ा जिले की सीमा पर स्थित चित्तौड़गढ़ जिले के बेगूं इलाके की मोतीपुरा ग्राम पंचायत के इस छोटे से गांव मालीखेड़ा में गुलाब की खेती की शुरुआत गांव के ही देवीलाल और कालूलाल धाकड़ ने साल 2008 में की थी. उन्होंने महज आधा बीघा जमीन पर गुलाब के पौधे रोपे. जब उत्पादन और मुनाफा अच्छा हुआ तो उन्हें गुलाब की खेती रास आने लगी. ऐसे में उन्होंने बोआई का क्षेत्र बढ़ा दिया. गुलाब के फूलों से उन्हें प्रति बीघा सालाना डेढ़ लाख रुपए तक की कमाई होने लगी.

देवीलाल और कालूलाल धाकड़ के मुताबिक, गुलाब की खेती हमारे लिए वरदान साबित हो रही है. भले ही शुरुआत में गांव व परिवार में इसे घाटे की खेती बनाने का विरोध हुआ था, लेकिन अब माहौल बदल गया है. पूरे गांव के किसान साथी गुलाब की खेती करने लगे हैं.

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गांव के दूसरे किसानों ने गुलाब की खेती से देवीलाल और कालूलाल की तरक्की देखी तो उन्होंने भी देखादेखी गुलाब की खेती करना शुरू कर दिया. धीरेधीरे पूरा गांव ही गुलाब की खेती करने लगा.

इतना ही नहीं, आसपास के गांवों मोतीपुरा, किशनपुरा, बरनियास, हमेरपुर, बरूनंदनी सरीखे गांवों के किसानों ने भी गुलाब की खेती करना शुरू कर दिया. नतीजतन, गुलाब उत्पादन से इलाके के गांवों की पहचान आज गुलाबी गांवों के रूप में होती है.

मालीखेड़ा में खासतौर से लाल (बिलायती) और गुलाबी (देशी) किस्म के गुलाब की खेती होती है. जहां लाल गुलाब के फूल माला बनाने के काम में आते हैं, वहीं गुलाबी गुलाब के फूल की पत्तियों को सुखा कर बेचा जाता है. इन पत्तियों का इस्तेमाल गुलकंद बनाने में होता है.

मालीखेड़ा में गुलाब की खेती के माहिर देवीलाल व कालूलाल धाकड़ का कहना है कि एक बार पौध रोपण के बाद यदि इन की ठीक तरीके से देखभाल की जाए व खादपानी दिया जाए तो इन से 20-25 साल तक फूलों का अच्छाखासा उत्पादन लिया जा सकता है. पौधा लगाने के 2-4 माह के भीतर ही इन पर फूल खिलने लगते हैं. गुलाब के पौधों पर फूल आमतौर पर जुलाई से अक्तूबर माह और जनवरी से अप्रैल माह की अवधि में ज्यादा खिलते हैं. गुलाब की पौध कलमों द्वारा बेहतर तरीके से तैयार की जाती है.

गुलाब की खेती कई माने में किसानों के लिए फायदेमंद है. इस की खेती में हकाई, जुताई व यूरिया जैसे कैमिकलों की जरूरत नहीं होती?है. इस का प्रति बीघा उत्पादन से कमाई भी दूसरी फसलों के मुकाबले ज्यादा होती है.

मालीखेड़ा के किसानों का मानना है कि गेहूं, सरसों, मक्का व दूसरी मौसमी फसलों के मुकाबले गुलाब की खेती ज्यादा मुनाफा देती है.

शुरुआत में यहां के किसान फूल बेचने के लिए भीलवाड़ा, चित्तौड़गढ़ व अजमेर का सफर तय करते थे, लेकिन फूलों के बाहरी कारोबारी अब सीधे खेतों से ही फूल खरीद कर ले जाने लगे हैं. इस से किसानों को आनेजाने के झंझट से नजात मिल गई है.

किसानों के मुताबिक, लाल गुलाब के फूल 70 से 80 रुपए प्रति किलोग्राम की दर से बिकते हैं, वहीं गुलाबी फूल की सूखी पत्तियों के 400 से 500 रुपए प्रति किलोग्राम की दर से दाम मिल जाते हैं.

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हालांकि गुलाब में छाछिया व फफूंदी रोग लगने की समस्या ज्यादा रहती है. अमूमन रोग लगने की समस्या फसल की शुरुआत के समय ज्यादा रहती है.

गुलाब की खेती के माहिरों के मुताबिक, गुलाब में डाइबैक रोग से बचाव के लिए सूखी टहनियों को काट कर कटे हुए हिस्से पर बोर्डो पेस्ट लगा दें.

वापसी की राह : भाग 1

लेखक : विनय कुमार सिंह

रोरो कर जरीना का बुरा हाल था. बेटी कल से वापस नहीं लौटी थी. शाम जैसेजैसे रात की तरफ बढ़ रही थी, उस का दिल बैठा जा रहा था. रोज की ही तरह वह घर से कालेज के लिए निकली थी. घर से कालेज वैसे तो ज्यादा दूर नहीं था लेकिन औटो और बस दोनों लेने पड़ते थे उसे वहां पहुंचने के लिए. उस ने बेटी को गेट तक छोड़ा था और जब वह औटो में बैठ गई थी तो जरीना वापस आ गई थी.

तकरीबन रोजाना ही अखबार में अपहरण और ह्यूमन ट्रैफिकिंग की खबरें छपती रहती थीं. पढ़ कर जरीना कई बार बहुत दुखी भी हो जाती थी और अकसर उसे गुस्सा भी आ जाता था. कोसने लगती थी सब को, कानून व्यवस्था, समय, लड़कों और सब से ज्यादा अपनेआप को. वजह थी, उस का लड़की की मां होना और ऐसी लड़की की जिस का पिता नहीं है.

यह इंसानी फितरत ही है जिस में कमजोर व्यक्ति अकसर अपनेआप को सब से पहले कारण मान लेता है किसी घटना के लिए, चाहे वह उस के लिए जिम्मेदार हो या न हो. यह स्वभावगत कमजोरी होती है, खासतौर से महिलाओं की, क्योंकि उन के पास ज्यादा विकल्प नहीं होते. और यही वजह थी कि जरीना भी अपनेआप को इस का जिम्मेदार मानने लगी थी.

रात आंखों में ही बीती और हर खटके पर उसे लगता जैसे बेटी आ गई हो. लेकिन सुबह की रोशनी ने जब उस के कमरे में प्रवेश किया. वह कुरसी पर ही औंधी पड़ी हुई थी. अब तक पड़ोसियों को भी खबर हो चुकी थी और हर कोईर् अपने हिसाब से कयास लगा रहा था. सब की अपनीअपनी राय और अलगअलग सलाह.

जरीना को कुछ समझ नहीं आ रहा था. आखिरकार, लोगों के कहने पर वह पुलिस स्टेशन गई. आज पहला अवसर था वहां जाने का और उस का अंतस बुरी तरह कांप रहा था. वैसे भी किसी भी सामान्य व्यक्ति को अगर पुलिस स्टेशन जाना पड़े तो उस की मनोदशा दयनीय हो जाती है. यही कुछ हुआ था जरीना के साथ भी. कहने को तो पड़ोसी इस्माइल साथ था, लेकिन जरीना से ज्यादा वह खुद भी घबराया हुआ था.

जैसे ही वह थाने के गेट पर पहुंची, बेहद अजीब निगाहों से उस को गेट पर खड़े संतरी ने घूरा. उसे देख कर वह उस की हालत समझ गया था.

‘‘क्या हुआ, क्यों चली आई यहां,’’ उस के सवाल के लहजे और उस की बंदूक पर उस के कसे हुए हाथ को देख कर जरीना थर्रा गई.

‘‘साहब, बेटी कल से कालेज से वापस नहीं लौटी है,’’ किसी तरह घबराते हुए उस ने कहा. ‘‘अपनी रिश्तेदारी में पूछा सब जगह?’’ उस ने बेहद रूखे तरीके से कहा.

‘‘हां साहब, सब जगह फोन कर लिया है, कहीं भी नहीं है.’’

‘‘अच्छा, क्या उम्र थी उस की,’’ अभी भी वह संतरी सवाल दागे जा रहा था. इस्माइल बिलकुल खामोशी से थोड़ी दूर पर खड़ा था. उसे अब समझ में आ गया था कि सब बात उस को ही करनी है.

‘‘साहब, 18 साल की है, मुझे रिपोर्ट लिखवानी है, किस से मिलूं,’’ बोलते हुए वह अंदर की तरफ चली.

‘‘18 साल की है, तो अपनी मरजी से कहीं भाग गई होगी. जाओ, अंदर साहब बैठे हैं.’’ संतरी की आंखों और चेहरे पर अजीब सा लिजलिजापन था और अंदर जाते समय उसे उस की निगाह अपना पीछा करती लग रही थी.

अंदर एक टेबल के सामने एक पुलिस वाला बैठा था. टोपी उस ने टेबल पर ही रखी थी और उस के शर्ट के सामने के बटन खुले हुए थे. अब हिम्मत जवाब दे गई जरीना की, यह आदमी उस की मदद क्या करेगा जो खुद ही किसी मवाली जैसा लग रहा हो. उस पुलिस वाले ने आंखों से उस के सारे बदन का एक्सरे किया औैर बेहद भद्दे अंदाज में दांत को एक सींक से खोदते हुए बोला, ‘‘क्या हुआ, किसलिए आई यहां पर?’’

जरीना ने फिर से वही सब दोहराया और इस ने भी वही सवाल पूछा. उस की ज्यादा दिलचस्पी जरीना को घूरने में थी. जब जरीना ने एक बार फिर हाथ जोड़ कर कहा कि उस की रपट लिख ले, तो उस ने टरका दिया.

‘‘उस की कोई फोटो लाई है, तो दे जा और उस के सब यारदोस्तों से पूछ. ऐसी उम्र में कोई प्यारवार का चक्कर ही होता है, भाग गई होगी किसी यार के साथ. कुछ दिन देख ले, अगर नहीं लौटी तो हम लोग पता लगाएंगे,’’ कहते हुए वह वापस अपने दांत खोदने लगा.

जरीना ने उसे बेटी की एक फोटो दी और एक कागज पर अपना नाम व फोन नंबर लिख कर दिया. फिर टूटे कदमों से बाहर निकली. आज तक उस की जो भी धारणा पुलिस के प्रति थी, वह पुख्ता हो गई थी. वहीं एक दीवार पर लिखा एक वाक्य, ‘‘पुलिस आप की मित्र है,’’ उसे अपना भद्दा मजाक उड़ाता लगा.

वापसी के समय इस्माइल बोल रहा था कि अपने एरिया के नेता के पास चलेंगे, वे जरूर मदद करेंगे. जरीना ने सुन के भी अनसुना कर दिया, पता नहीं कितने सवाल वहां भी पूछे जाएं और आंखों से उस के जिस्म का एक्सरे फिर से हो.

घर वापस आ कर उस ने एक बार फिर सब रिश्तेदारों के यहां फोन किया, जवाब हर जगह से नकारात्मक ही था. शाम तक वह लगभग हर परिचित और उस की सब सहेलियों के यहां हो आईर् थी, कहीं कुछ पता नहीं चल रहा था. अब करे तो क्या करे. पति था नहीं और इकलौती लड़की गायब थी.

अब तो एक ही उम्मीद लगी थी कि शायद कोई फोन आए फिरौती के लिए और वह सबकुछ बेच कर भी उसे छुड़ा ले.

3 दिन बीत गए, फिरौती के लिए कोई फोन नहीं आया, हां सब रिश्तेदार और परिचित जरूर फोन करते और कहते कि कोई जरूरत हो तो बताना. सब को पता था कि अभी उसे किस चीज की जरूरत है लेकिन उस के लिए कोईर् भी मदद नहीं कर पा रहा था. चौथे दिन फिर वह पुलिस स्टेशन गई. लेकिन टका सा जवाब मिला कि कुछ पता नहीं चला है, जब पता चलेगा, खबर कर देंगे.

खानापीना सब छूट गया था, पूरीपूरी रात जाग कर बीत रही थी उस की. जहां भी उम्मीद होती, भागती चली जाती कि शायद कुछ पता चले. जब भी बाहर निकलती, लोग सहानुभूतिपूर्वक ही पूछते कि कुछ पता चला, लेकिन उन के लहजे से लगता जैसे व्यंग्य ज्यादा कर रहे हों. और पीछे से कई बार वह सुन चुकी थी कि बेटी को ज्यादा पढ़ाने का नतीजा देख लिया, भाग गई किसी के साथ. कुछ लोगों ने कहा कि अखबार भी देखते रहो, कभीकभी कोई खोया इस में भी मिल जाता है.

कुछ तो इतने बेरहम थे कि उन्होंने कह दिया कि कभीकभी लावारिस लाश की भी फोटो छपती है अखबार में. यह सुन कर उस का कलेजा कांप गया था. लेकिन मजबूरी में वह अखबार भी देख लेती थी, शायद कोई खबर मिल ही जाए. इन्हीं उलझनों में उलझी हुई थी कि अचानक उस की नजर अखबार की एक खबर पर गई. खबर बल्लू के बारे में थी. किसी कत्ल के केस में उस का नाम उछल रहा था अखबार में. उसे ध्यान आया कि बल्लू तो कभी उस के ही क्लास में साथ पढ़ता था.

शुरू से ही बल्लू की संगत खराब थी और वह पढ़ाई भी पूरी नहीं कर पाया. उस के कदम जरायम की दुनिया की ओर मुड़ गए थे और आज अखबार में उस की गुंडागर्दी की खबर पढ़ कर उसे कुछ अजीब नहीं लगा. उस ने क्लास में कभी बल्लू से ज्यादा बातचीत नहीं की थी, वैसे भी वह लड़कों से खुद को दूर ही रखती थी. लेकिन बल्लू की हरकतों के चलते सब उसे जानते थे और कभीकभी बात भी करनी पड़ जाती थी.

जरीना सोच में पड़ गई, क्या वह बल्लू से मिले, शायद वह कुछ मदद कर पाए. लेकिन उस ने अपने विचार को ही झटक दिया, कहीं कोई गुंडा भी किसी की मदद कर सकता है, वह तो सिर्फ लोगों को परेशान ही कर सकता है.

कुछ कहानियों में उस ने पढ़ा भी था कि कुछ ऐसे बदमाश भी होते हैं जो जरूरतमंदों की मदद करते हैं. रातभर उस के दिमाग में ये सब विचार अंधड़ मचाते रहे. क्या वह बल्लू के पास जाए? किसी से पूछने की न तो इच्छा थी उस की और उसे उम्मीद भी नहीं थी कि कोई इस में सही राय दे पाएगा. रात बीती, सुबह होने तक उस ने एक फैसला कर लिया था. पुलिस का हाल वह देख ही चुकी थी और नेताओं से कोई उम्मीद वैसे भी नहीं थी. तो अब बल्लू को आजमाने के अलावा और कोई चारा उसे नजर नहीं आ रहा था. 4 दिनों में ही रिश्तेदार और परिचित अब बहाने बनाने लगे थे. बेटी को पाने की कम होती उम्मीद ने उसे अब बल्लू के पास जाने के लिए मजबूर कर दिया.

ऐसे लोगों का पता लगाना पुलिस के अलावा हर किसी के लिए बहुत आसान होता है. जरीना हैरान भी थी कि कितनी आसानी से उसे बल्लू का अड्डा पता चल गया जबकि पुलिस उसे नहीं ढूंढ़ पा रही है. वह पता पूछते हुए उस के अड्डे पर पहुंची, अंधेरे घर में शराब की बदबू और सिगरेट के धुएं की गंध चारों ओर फैली हुई थी.

वहां के लोगों की चुभती निगाहों ने उसे पस्त कर दिया और उसे पुलिस स्टेशन की याद आ गई. लेकिन उस अनुभव ने उस की मदद की और वह उन नजरों को बरदाश्त करती बल्लू के पास पहुंची. उस ने तो बल्लू को पहचान लिया, अखबार में उस की तसवीर देखी थी उस ने, लेकिन बल्लू उसे पहचान नहीं पाया. उस की निगाहों में उभरे प्रश्न को समझते हुए उस ने पहले अपने स्कूल की बात बताई तो वह चौंक गया. अभी भी कुछ लिहाज बचा था बल्लू में, वह तुरंत उसे ले कर अंदर के कमरे में गया और जब तक बल्लू कुछ पूछे, जरीना फूटफूट कर रो पड़ी.

ऐसी स्थिति से बल्लू का पाला बहुत कम ही पड़ता था, इसलिए पहले तो उसे समझ में ही नहीं आया कि वह क्या करे, फिर उस ने किसी तरह जरीना को शांत कराया और आने का कारण पूछा. जरीना ने सारा किस्सा एक सांस में कह डाला और उस के सामने हाथ जोड़ कर खड़ी हो गई. बल्लू के चेहरे पर कई भाव आजा रहे थे. कुछ तय नहीं कर पा रहा था वह. समझ में तो उसे आ गया था कि किसी गिरोह ने ही अगवा किया है जरीना की बेटी को, लेकिन वह कुछ कह नहीं पा रहा था.

अब तो जरीना को लगा कि शायद यहां भी उस का आना व्यर्थ ही हुआ, लेकिन वह बल्लू को लगातार आशाभरी निगाहों से देखे जा रही थी. एक बार तो बल्लू की भी इच्छा हुई कि जरीना को टरका दे. लेकिन फिर जरीना के जुड़े हुए हाथों ने उसे कशमकश में डाल दिया. आखिर वह उस के साथ पढ़ी थी और बहुत उम्मीद के साथ आईर् थी. उस ने जरीना के जुड़े हुए हाथों को अपने हाथों में ले कर दृढ़ शब्दों में कहा, ‘‘जाओ जरीना, अपने घर जाओ. बस, बेटी की एक फोटो देती जाओ. मैं हर तरह से कोशिश करूंगा कि किसी भी हालत में उसे तुम्हारे पास वापस ले आऊं.’’

जरीना ने कृतज्ञता से उस की ओर देखा और फोटो के साथ नंबर उसे थमा कर बाहर निकली. घर लौटते हुए जरीना के कदमों में एक दृढ़ता आ गई थी. आज पहली बार वह सोच रही थी कि लोग जिन्हें बुरा कहते हैं, क्या सचमुच वे बुरे होते हैं या उन्हें बुरा कहने वाले समाज के ये तथाकथित शरीफ और सभ्य लोग? उस के दुख में काम आना तो दूर की बात, गलत बातें बनाना और उस से मुंह चुराने लगे थे लोग. क्या एक इंसान का फर्ज अदा करने वाला बल्लू बेहतर इंसान नहीं है भले ही वह गुंडागर्दी करता है. अब वह कुछ और सोच नहीं पा रही थी. बस, उसे तो बल्लू के रूप में एक ही आसरा दिखाई पड़ रहा था जो उस की बेटी को ढूंढ़ सकता था.

जरीना के जाने के बाद बल्लू सिर पकड़ कर बैठ गया. अब क्या करे. एक बार तो उस ने सोचा कि एकदो दिनों बाद वह फोन कर के बता देगा कि उसे कोई खबर नहीं मिली, लेकिन जैसे ही उसे जरीना के जुड़े हुए हाथ और उस की आंखें याद आईं, वह सोच में पड़ गया. एक तरफ तो बेमतलब का सिरदर्द लग रहा था, दूसरी तरफ उसे किसी की आस दिख रही थी. कहीं न कहीं उस के मन में भी यह बात तो थी ही कि वह भी कुछ अच्छा करे. आखिर दिल से तो वह एक इंसान ही था जिस में कुछ अच्छी चीजें भी थीं. उस ने फोटो और कागज उठा कर अलमारी में रख दिए और कुरसी पर पसर गया.

अब बल्लू का दिमाग काफी साल पहले के स्कूल के दिनों की ओर चला गया था. वह जरीना को स्कूल में याद करने की कोशिश करने लगा. बहुत धुंधला सा कुछ उसे याद आया और उस के चेहरे पर मुसकराहट छा गई. यही एक पल था जब उस ने जरीना की बेटी का पता लगाने का निश्चय कर लिया.

देश का भला नहीं

सुस्ती, डर और मंदी का माहौल अब कश्मीर के श्रीनगर या जम्मू में ही नहीं है, देशभर में फैलने लगा है. बढ़ती बेकारी, बाजारों का ठंडापन, सरकारी कामों में देर होना, सरकार के भुगतान रुकने आदि का नतीजा यह है कि जो उत्साह और उमंग एक वर्ग में कश्मीर के 370 व 35ए अनुच्छेदों को लगभग समाप्त करने से उत्पन्न हुई थी वह सप्ताहों में ही गायब हो गई है.

कश्मीर में जो किया गया उस का फायदा अगर मिलेगा तो वर्षों बाद मिलेगा. सोशल मीडिया पर जो वहां जमीनें खरीदने या वहां की गोरियों को लाने की बातें कर रहे थे, वे नहीं जानते थे कि कश्मीर तो एक जेल की तरह बन जाएगा जहां न कुछ बनेगा न जहां कोई जा पाएगा.

आज कश्मीर बुरी तरह आहत है. जो यह सोच रहे थे कि सरकार का यह कदम कश्मीर के लिए संवैधानिक जंजीर को तोड़ना होगा, गलत थे, क्योंकि ये 2 धाराएं कश्मीरियों के लिए एक वादे को निभाने के लिए थीं. उन के प्रावधानों को हटाने से कश्मीरियों को कोई लाभ होगा, यह समझना जरूरी था. अपने गरूर और संसद में बहुमत के आधार पर भारत सरकार ने तो वहां संचार साधन ही बंद कर दिए जिस से कश्मीर की जनता को न लाभहानि का पता है न सरकार की मंशा का. अगर कश्मीरियों को यह एहसास दिलाया जा सकता कि इन प्रावधानों के हटने से वे देश की उन्नति में बराबर के हिस्सेदार बन जाएंगे तो बात दूसरी थी. पर इन दिनों शेष देश खुद कराहने लगा है, वह कश्मीर या किसी और का क्या भला करेगा.

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एक सरकार केवल धर्मादेशों पर नहीं चल सकती. जिन पुराणों पर सरकार के शासकों की आज नजर रहती है उन में किसी भी प्रसंग को देख लें, वहां किसी न किसी तरह की निराशा ही टपकेगी. दशरथ को एक अंधे मांबाप के युवा बेटे को अकारण मार डालने के कारण जो बुराभला सुनना पड़ा वह एक शासक के लिए शर्म की बात है. अंधे मातापिता कहते हैं कि वे ऋषि हैं पर चूंकि वे जन्म से वैश्य व शूद्र हैं और उन की दशरथ द्वारा मारी गई संतान वर्णसंकर है, इसलिए राजा को ब्रह्महत्या का पाप तो नहीं लगेगा पर वे दशरथ को ऐसी ही मौत मिलने की कामना कर जाते हैं. इस तरह के ग्रंथों पर विश्वास करने के

दंभ में डूबी मौजूदा सरकार की सोच दूरदर्शी न हो, तो यह स्वाभाविक है. आर्थिक और राजनीतिक दोनों क्षेत्रों में लड़खड़ाती सरकार वोट तो अवश्य पाएगी पर देश का कोई खास भला कर पाएगी, इस में संदेह है.

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इस गड्ढे से निकले 2720 किलो हीरे

बीती सदी के उत्तरार्द्ध तक धरती के ऊपर या नीचे पानी की कमी नहीं थी. हां, धरती से पानी निकालने वाले संसाधनों की कमी जरूर थी. धीरेधीरे दुनिया भर में नएनए साधनों का विकास हुआ. एक से एक अच्छी तकनीक सामने आती चली गईं.

तकनीकों का यह आलम है कि धरती के हजारों फीट नीचे से पानी निकालना तो आसान हो ही गया, इंसान अथाह गहराइयों वाले समुद्र के नीचे से गैस और तेल निकालने लगा है. कई जगहों पर तो अंडरवाटर रेस्टोरेंट तक बन गए हैं.

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लेकिन पिछली और उस से पिछली सदी में स्थिति यह थी कि आदमी को जमीन में गड्ढा कर के पानी निकालना पड़ता था. दक्षिण अफ्रीका के विंबरले स्थित इस बड़े गहरे गड्ढे को देखिए. दावा है कि हाथों से खोदा गया यह दुनिया का सब से बड़ा गड्ढा है. हालांकि इस बात पर विवाद है.

वैसे कहा यह भी जाता है कि इस गड्ढे को 1871 से 1914 के बीच 50 हजार मजदूरों ने कुदाल और फावड़े से खोद कर यहां से 2720 किलोग्राम (1,36,00,000 कैरट) हीरे निकले थे. यह गड्ढा 42 एकड़ में फैला है. इस की चौड़ाई 463 मीटर और गहराई 240 मीटर है. हां, पानी और मलबा गिरने से अब इस की गहराई केवल 215 मीटर रह गई है.

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बुढ़ापे में जो दिल बारंबार खिसका : भाग 2

‘‘कोई घर पर इंतजार तो नहीं कर रहा होगा?’’ वह मुसकराई.

‘‘नहीं, ऐसा कुछ नहीं, अभी शादी नहीं की. मां को इंतजार रहता है, फोन कर देता हूं.’’ और वे दोनों कौम्प्लैक्स के हल्दीराम रैस्टोरैंट में आराम से बैठ गए. मां को तभी आज उस ने 8 बजे घर पहुंचने का टाइम बता दिया. दोनों बचपन के किस्सों में खो गए. फिर अब तक क्याक्या, कैसे किया वगैरह एकदूसरे से शेयर करते व हंसते बाहर निकल आए. रणवीर बहुत दिनों बाद इतना हंसा था. जयंति अब भी वैसी ही मस्तमौला खुराफाती है. उस को उस का साथ बहुत भला लगा. ‘इतनी परेशानियां झेली… पिता का असमय अचानक देहांत, मां का कैंसर से निधन, भाई का ससुराल में घरजमाई बन कर चले जाना और जाने क्याक्या उस ने इतने दिनों में. पर अपने मस्तमौला स्वभाव पर कोई असर न आने दिया. यह सीखने वाली बात है,’ यह सोच कर वह हलका महसूस कर रहा था.

उस दिन रणवीर को कुछ मालूम नहीं चलने पाया कि कोई पड़ोसी फिर पापा की शिकायत कर के गए हैं. वह खाना खा कर सो गया और दूसरे दिन सुबह फिर औफिस चला गया. रेवती ने चैन की सांस ली. बेकार ही इन पर गुस्सा हो कर उलझता, और फिर बहुत बड़ा बखेड़ा हो जाता. घर बिखर जाए, इस से पहले मैं ही कुछ करती हूं. पिछली बार अपनी सहेली संध्या के दरोगा भतीजे ने इन पर विश्वास कर, भला जानते हुए इन्हें छेड़खानी के आरोप से छुड़ाया था. उसी से मदद लेती हूं. बिना शर्म के बताऊंगी कि ये ऐसे ही मस्तमिजाज हैं. लोग सही आरोप लगाते हैं. तू ही सुधार के लिए कुछ कर, यही ठीक रहेगा. यह सोचते हुए वह कुछ आश्वस्त हुई.

रणवीर और जयंति का तकरीबन रोज ही मिलना हो जाता. दोनों को एकदूसरे का बरसों बाद मिला साथ अच्छा लगने लगा था. एक दिन जब जयंति ने रणवीर से कहा, ‘‘यार, इतने दिन हो गए कई बार कहा भी, घर में तो सब से मिलवाओ, मेरा तो कोई है नहीं, लेदे के एक वही मस्ताना डौग है, वैसे वह भी मिलने लायक चीज है, चलोगे, मिलोगे?’’ वह हंसी थी.

‘‘चलूंगा, पर आज नहीं. मैं तुम्हें कुछ बताना चाहता हूं जयंति कि क्यों मैं तुम्हें घर नहीं ले जा पाता,’’ रणवीर ने पिता की वजह से घरबाहर फैले रायते को जयंति के सामने रख दिया. ‘‘छि, बड़ी शर्म आती है मुझे, घर से बाहर निकलते लोगों से मिलते. सब बाप की तरह बेटे को भी समझते होंगे. क्या करूं कोई उपाय सूझ नहीं पाता. मैं खुद उस घर में नहीं जाना चाहता. सिर्फ मां की वजह से वहां हूं. मां से अलग घर, मैं सोच भी नहीं पाता. ऐसे पिता की वजह से न घर में कोई आता है न ही हम किसी को बुलाने की हिम्मत कर पाते हैं.

मां की तो पूरी जिंदगी ही उन्होंने खराब कर दी, वही अब मेरे साथ भी कर रहे हैं. रानी दी ने तो सही किया, लड़की थीं, निकल गईं जंजाल से. पर मैं तो बेटा हूं, इन्हें छोड़ भी नहीं सकता, बुढ़ापे में मां को इन से अलग भी नहीं कर सकता. साथ रख कर ही पालना पड़ेगा. जब तक इन की हरकतें रहेंगी, ये जिंदा रहेंगे, तब तक कुछ नहीं हो सकता. कितना भी कर लूं, पर न मैं ऐसे में खुश रह सकता हूं, न मां को या किसी को खुशी दे सकता हूं. शादी के बारे में तो सोच ही नहीं सकता.’’

‘‘ओह, तो यह बात है जरा सी, जो तुम सब को कब से परेशान किए हुए है.’’

‘‘तुम्हें यह जरा सी बात लगती है?’’

‘‘इसीलिए तुम ने शादी न करने का फैसला कर लिया है,’’ वह बोली.

‘‘ऊं, न, नहीं, ऐसा कुछ नहीं. पर कुछ हद तक सही ही है. जहां खुद मेरा दम घुटता हो वहां किसी को लाने की मैं सोच भी कैसे सकता हूं.’’

‘‘लग तो कुछ ऐसा ही रहा है,’’ वह मुसकराई, तुम शादी तो करो, यार, मैं उसे ऐसे गुरुमंत्र दूंगी कि बस, फिर तुम कमाल देखते ही रहना. आई प्रौमिस यू, तुम तो जानते ही हो, जो मैं कहती हूं वह जरूर कर के रहती हूं.’’

‘‘कोई और क्यों, तुम क्यों नहीं. जानता हूं कि असलियत जान कर किसी को मुझ से शादी करना मंजूर नहीं होगा,’’ वह कुछ संकुचाते हुए बोल ही गया. उस के संबल में उसे एक उम्मीद की किरण सी उसे दिखने लगी.

पर जयंति अचानक दिए इस प्रपोजल पर हैरान थी. अपनी हैसियत से उसे ऐसी सपने में भी कल्पना न थी. जल्दी में कुछ न सूझा तो वह बोल पड़ी, ‘‘मेरे ऊपर तो बड़ी जिम्मेदारी है जो कभी पीछा नहीं छोड़ेगी.’’

‘‘अभी तो तुम ने कहा, कोई नहीं रहता, तुम अकेले हो?’’

‘‘भूल गए, मस्ताना, उस का भी कोई नहीं मेरे सिवा,’’ वह अमिताभ की फिल्म ‘द ग्रेट गैम्बलर’ के अंदाज में गा उठी.

‘‘मैं मजाक नहीं कर रहा, पूरी तरह से सीरियस हूं.’’

‘‘अच्छा, चलो, फिर कर लेते हैं, पर समझ लो, मैं तुम्हारी हस्ती से मैच भी करूंगी? एक पहिया गाड़ी का, एक स्कूटी का. आड़ातिरछा चलाचला के झूम…’’ और वह हंसने लगी. रणवीर की गंभीर गुस्से वाली मुद्रा देख कर वह फिर बोली, ‘‘अच्छा, अब सीरियस हो जाती हूं. मां से तो मिलवाओगे या सीधे कोर्ट मैरिज कर के घर ले चलना है.’’ वह फिर से हंसने वाली थी, अपने को रोक कर मुसकराई.

जयंति रणवीर की मां रेवती से मिली, आशीर्वाद लिया और फिर शहनाइयां बज उठीं. जयंति ब्याह कर रणवीर के घर आ गई. उस के साथ मस्ताना भी था. रेवती, रणवीर दोनों ही ने उसे साथ लाने को कहा था. रेवती ने देखा, हमेशा गंभीर दिखने वाले बेटे के चेहरे पर खुशी साफ झलक रही थी.

मस्ताना की चमकती आंखें रामशरण को लगता उन्हें ही घूर रही हैं. वह अपनी लहरदार, घनी पूंछ जब पटकता तो लगता उन्हें धमकी दे रहा हो. कई बार रामशरण मस्ताना की वजह से ताकझांक करते हुए, कहीं चोरी पकड़ी न जाए, गिरतेगिरते बचते क्योंकि मस्ताना कहीं न कहीं से उन्हें देख लेता. लहराती दुम उठा कर जो वह जोरजोर से भूंकना शुरू करता तो रुकने का नाम ही न लेता. जयंति को मालूम हो गया था कि ससुरजी मस्ताना से थोड़ा डरते हैं. वह अकसर उन्हें मस्ताना से काफी दूर घूम कर जाते हुए देखती तो मुसकराती. कोई शरारत उस के खुराफाती दिमाग में दौड़ने लगी थी. कुछ तो करना ही पड़ेगा घर में सब के सुकून के लिए.

सुबहशाम जयंति भी ससुरजी के  टाइम पर ही मस्ताना को टहलाने  के लिए जाने लगी. पहले बहुत जिद की थी पापाजी से, ‘‘आप ही उसे अपने साथ ले जाया कीजिए पापाजी, मैं मां का हाथ बंटा लूंगी. फिर औफिस भी जाना होता है.’’ पर रामशरण किसी न किसी बहाने से टाल गए. अगले वीक उस की छुटटी सैंक्शन हो गई. जितनी भी छुट्टियां बची थीं, सब ले डालीं. रणवीर तो उसे यह जौब छोड़ कर उसे अपना पसंदीदा एनीमेशन कोर्स कर कुछ बड़ा करने पर जोर दे रहा था जिसे वह अपने घर की परेशानियों के चलते पूरा न कर सकी थी.

‘‘अब ये सब करने की क्या जरूरत है? जो चाहती थी वह कर डालो न.’’

‘‘ओ थैंक्स डियर, तुम्हें अब भी याद है? मेरा तो सपना ही था. अभी कुछ दिन रुक जाओ, फिर देखती हूं.’’

रणवीर की आंखों में असीमित प्यार देख कर वह निहाल हुई जा रही थी. उसे सब याद आया कि वह ब्लैकबोर्ड पर, कौपी में अकसर सहपाठियों, टीचर के कार्टून बना दिया करती, हूबहू कोई भी पहचान लेता. एक बार प्रिंसिपल शशिपुरी का भी कार्टून बना डाला.

 

‘बिग बौस 13’: घर में नजर आएंगी हिना खान, इस वींकेंड होने वाला है धमाल

कलर्स टीवी पर प्रसारित होने वाला रियलिटी शो ‘बिग बौस 13’ में ये वीकेंड और भी शानदार होने वाला है. जी हां इस वीकेंड और भी धमाल होने वाला है. क्योंकि इस वीकेंड हिना खान बतौर गेस्ट आने वाली हैं. उन्होंने सलमान खान के साथ फोटो भी शेयर की हैं.

तो इससे यही लगता है कि हिना खान बिग बौस के घर में इस वीकेंड धमाल मचाने आने वाली हैं. दरअसल, हिना ने अपने इंस्टाग्राम अकाउंट से सलमान के साथ फोटो शेयर किए हैं. साथ ही कैप्शन में लिखा है, ‘जब मिस खान मिस्टर खान से मिलीं.’ सलमान के साथ स्टेज शेयर करना हमेशा सुखद रहता है. पिछले चार सीजन से आपको मिल रही हूं.

इस फोटो और कैप्शन से तो यही अंदाजा लगाया जा सकता है कि वे इस वीकेंड बिग बौस के घर में मेहमान बनकर आ रही हैं. फिलहाल ये बात सच है या नहीं,  ये तो शो देखने के बाद ही पता चलेगा.

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आपको बता दें, हिना खान ‘बिग बौस 11’ के कंटेस्टेंट रह चुकी हैं. उनका ड्रामा और परफौर्मेंस ने दर्शकों का भरपूर मनोरंजन किया. खबरों की माने तो हिना शो की सबसे महंगी कंटेस्टेंट थीं.  वैसे हिना बिग बौस 11 की विनर शिल्पा शिंदे को कड़ी टक्कर दी.

टीवी का मशहूर सीरियल ‘ये रिश्ता क्या कहलाता है’ से हिना खान काफी पौपुलर हुई. ‘कसौटी जिंदगी के 2’ में  भी कोमोलिका का किरदार निभा चुकी हैं. इसके अलावा ‘खतरों के खिलाड़ी 8’ में भी हिस्सा ले चुकी हैं.

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‘ये रिश्ता क्या कहलाता है’: नायरा और कार्तिक की लव स्टोरी लेगी एक नयी मोड़

छोटे पर्दे का मशहूर सीरियल ‘ये रिश्ता क्या कहलाता है’  में आपको लगातार धमाकेदार ट्विस्ट देखने को मिलने वाला है. जी हां, अपकमिंग एपिसोड में इस सीरियल की कहानी एक नयी मोड़ लेते हुए नजर आएगी. आने वाले एपिसोड में कार्तिक और नायरा की जिंदगी पूरी तरह बदल जाएगी.

तो आइए आपको बताते है, कार्तिक और नायारा की जिंदगी में क्या नया बदलाव आने वाला है. खबरों की माने तो इस शो में ऐसा ट्विस्ट आने वाला है कि नायरा और कार्तिक  ना चाहते हुए भी एक दूसरे के करीब आने लगेंगे. तो वही इस रोमांटिक ट्विस्ट के पहले दिखाया जाएगा कि नायरा और कार्तिक एक दूसरे से वादा करेंगे कि वह कोर्ट में एक दूसरे के सम्मान को ठेस नहीं पहुंचाएंगे.

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उधर कार्तिक अपनी वकील दामिनी से रिक्वेस्ट करेगा कि वह नायरा से कोई भी ऐसा सवाल ना पूछे जिससे उस पे कोई आच आए. ऐसे में कार्तिक के इस कदम को देखकर नायरा इमोशनल तो जरुर होगी.

तो दूसरी ओर इस शो में डांडिया उत्सव मनाया जाएगा. रिपोर्टस के मुताबिक अपकमिंग एपिसोड में कैरव सभी के सामने अपने मम्मी-पापा की लव-स्टोरी बताने वाला है. कैरव सभी को बताएगा कि किस तरह डांडिया खेलते-खेलते उसके मम्मी पापा यानी नायरा और कार्तिक को एक दूसरे से प्यार हो गया था.

त्यौहार के मौके पर कार्तिक नायरा को कुछ खास गिफ्ट भी देने वाला है. ऐसे में नायरा का क्या रिएक्शन होगा. ये देखना दिलचस्प होगा. तो दर्शकों को अपकमिंग एपिसोड में बहुत सारे धमाकेदार ट्विस्ट  देखने को मिलेंगे.

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बुढ़ापे में जो दिल बारंबार खिसका : भाग 1

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पार्क के ट्रैक पर जौगिंग कर रही नेहा को अपनी आंखों पर विश्वास नहीं हुआ. यह तो माथुर अंकल ने मुझे आंख मारी, एक बार नहीं बल्कि 2 बार. पिछले हफ्ते ही तो घर पर आए थे, पापाजी से बात कर रहे थे. मैं चाय दे कर आई थी. शायद धोखा हुआ है, पर दोबारा घूम कर आई तो फिर वही हरकत. नहीं, वही हैं माथुर अंकल, बदतमीज इंसान, इन्हें तो नमस्ते भी नहीं करना. वह शिखा के साथ आगे बढ़ गई.

‘‘क्या हुआ अचानक तेरा मुंह क्यों उतर गया और बोलती बंद?’’ शिखा उस के चेहरे को ध्यान से देख रही थी.

‘‘अरे यार, देख रही है ब्लू स्ट्राइप्स की टीशर्ट में जो अंकल 3 बंदों के बीच बैठे हैं, उस ने बिना सिर घुमाए आंखों से इशारा किया था. वे हर राउंड पर मुझे आंख मारे जा रहे हैं और मेरे घुसते ही हाथ का इशारा कर के गाना गाने लगे ‘जरा हौलेहौले चलो मोरे साजना…’ शिट, फादर इन लौ के जानपहचान के हैं वरना इन्हें अच्छे से सबक सिखा देती अभी. पिछले हफ्ते घर आए थे. मुझ से मिले भी थे. फिर भी ऐसी हरकत, न उम्र का लिहाज न रिश्ते की मर्यादा. मम्मीजी को बोलूंगी, वही बताएंगी इन्हें.’’

‘‘तू अभी नई है न यहां. अरे, ये चारों बुड्ढ़े हैं ही ऐसे. सभी को आएदिन चेतावनी मिलती रहती है, पर जबतब ये किसी को छेड़ने से बाज नहीं आते. मजाल है कि सुधर जाएं. कभी चाट वाले के पास, तो कभी कहीं…रोजरोज कौन मुंह लगे इन के. लेने दो इन को मजा. तुझे नहीं पता, नई खोज है, वैज्ञानिक बता रहे हैं कि महिला को छेड़नाघूरना आदमी की सेहत के लिए अच्छा होता है, उम्र बढ़ती है. बीवी बूढ़ी होगी तो ठीक से करवाचौथ रख नहीं पाती होगी, सेंकने दो इन्हें आंखें, बढ़ा लेने दो उम्र, इस से ज्यादा कर भी क्या पाएंगे. यार, इग्नोर कर, बस,’’ यह कह कर शिखा हंसने लगी.

‘‘समझा लीजिए इन्हें रेवती बहन, पानी सिर से ऊपर जा रहा है, रामशरणजी तो बहूबेटियों पर भी छींटाकशी से बाज नहीं आ रहे. बुढ़ापे में मुफ्त जेल की सैर हो जाएगी. कैसे रहती हैं ऐसे घटिया, लीचड़ आदमी के साथ. आप की भी बहू आने वाली है, तब देखेंगे,’’ भन्नाई हुई पड़ोसिन लीला निगम धमकी दे कर चली गईं.

रामशरण माथुर अपनी आदत से लाचार थे. 60 साल के होने के बावजूद वे सड़कछाप आशिक बने हुए थे. बुढ़ापे में भी यही उन का शगल था. 2 ही बच्चे थे उन के. बड़ी लड़की रानी और बेटा रणवीर छोटा था. उन की ऐसी ओछी बातें सुनते ही वे दोनों बड़े हुए थे. पहले तो पड़ोस की औरतों के लिए लवलैटर क्या, पूरा रजिस्टर लिख कर अपने ही बच्चों को पढ़ापढ़ा कर हंसते, तो कभी चुपके से खत उन के घर फेंक आने को कहते और दोस्तों के साथ मजे लेते.

रेवती उन की बुद्धि पर हैरानपरेशान होती, अपने बच्चों के साथ कोई पिता ऐसा कैसे कर सकता है. नादान बच्चे गलत रास्ते पर न चल पड़ें, आशंका से रेवती गुस्सा करती, मना करती तो लड़ने बैठ जाते, समझते वह दूसरी औरतों से जलन के मारे ऐसा कह रही है. उसे चिढ़ाने के लिए वे ऐसी हरकतें और करने लगते.

मां कुछ कहे, बाप कुछ और सिखाए, तो बच्चों पर अलग प्रभाव पड़ना ही था. रानी ने रोधो कर किसी तरह बीए किया. वह अपनी शादी के लिए लालायित रहती. जल्दी से जल्दी घर बसा कर इस माहौल से दूर चले जाना चाहती थी. बाप की हरकतों से जबतब कालोनी, कालेज की सखीसहेलियों में उसे शर्मिंदगी झेलनी पड़ती. ‘पापाजी तो अभी अपने में ही रमे हुए हैं, मेरी शादी क्या खाक करेंगे,’ यह सोच कर उस ने फेसबुक पर किसी रईस से पींगें बढ़ाईं और उस से शादी कर सुदूर विदेश चली गई.

रेवती चाहती थी छोटा बेटा रणवीर भी शादी कर अपना घर बसा ले. उस का माहौल बदले और वह खुश रहे. पर वह शादी के लिए तैयार ही नहीं हो रहा था. ऐसे वातावरण में होता भी कैसे, घर की प्रतिष्ठा पर पिता ही कीचड़ उछाल रहा था. वह किसी बड़ी कंपनी में सौफ्टवेयर इंजीनियर के पद पर जौब करने लगा था. बढि़या कमा रहा था. सो, घर की सारी जिम्मेदारी बाप द्वारा उस पर डाल दी गई कि उस के ऊपर इतना खर्च हुआ है, अब वह नहीं करेगा तो क्या हम बूढ़े करेंगे. जवानी में खूब पैसे उड़ाए, कुछ बुढ़ापे के लिए न जोड़ा न छोड़ा, कि बेटा आखिर होता किसलिए है? पढ़ायालिखाया, खर्च किया किसलिए? रेवती क्या, निर्लज्ज से वे बेटे को भी उस पर खर्च हुआ जुड़ाने लग जाते.

रेवती को गुस्सा आता, तो कह उठती, ‘‘ऐसा भी कोई बाप होता है? बेटे के लिए लोग क्याक्या नहीं करते, कितना कुछ कर गुजरते हैं उन के सुंदर भविष्य के लिए. इस ने तो हर जगह अपने दम से ऐडमिशन लिया, शुरू से स्कौलरशिप से पढ़ाई की. तुम तो उसे खिलाया आलूगोभी, आटादाल भी जोड़ लो, छि, कैसे पिता हो.’’

अब तो बेटा ही घर का सारा खर्च उठा रहा था, फिर भी जबतब अलग से कभी चाटजलेबी खाने, तो कभी वाकिंग शू, शर्ट कुछ भी खरीदने के लिए रामशरण आतुर रहते और बिना झिझके रणवीर के सामने हाथ फैला देते. पत्नी रेवती इस तरह के व्यवहार से पहले ही बहुत शर्मिंदा रहती. अब जो लोगों से बहूबेटियों को छेड़ने की शिकायत सुनती तो जमीन में धंसती जाती. वह उन्हें समझासमझा कर थक गई. वे कुछ सुनने को राजी नहीं. उस पर से हंसते कहते, ‘जोर किस का, बुढ़ाने में जो दिल खिसका.’

इस बार अगर रणवीर के कानों में यह बात पड़ गई तो गुस्से और शर्मिंदगी में वह जाने क्या कर डाले. पिछली बार भी ऐसी ओछी हरकत से शर्मिंदा हो कर कितना फटकारा था बाप को और फिर तंग आ कर आखिरी चेतावनी भी दी थी कि अगर नहीं सुधरे, तो वह घर छोड़ कर चला जाएगा. ‘अच्छा है, रणवीर आज 8 बजे तक आएगा, तब तक शायद मामला ठंडा पड़ जाए,’ रेवती सोचने लगी.

औफिस से निकलते समय रणवीर एक बैंक के एटीएम में जा घुसा, उस का कार्ड ब्लौक हो गया. वह अंदर बैंक में गया तो ‘मे आई हैल्प यू’ सीट पर जयंति सिन्हा का साइन बोर्ड रखा था. सीट खाली थी. कुछ जानापहचाना सा नाम लग रहा है, वह यह सोच ही रहा था कि सीट वाली आ गई.

‘‘सर, मैं आप की क्या हैल्प कर सकती हूं,’’ जयंति ने कुछ पेपर टेबल पर रख कर सिर उठाया था.

दोनों एकदूसरे को देख कर आवाक रह गए.

‘मिस खुराफाती सिन्हा?’ वह मन ही मन बोल कर मुसकराया. इतने सालों बाद भी रणवीर 7वीं-8वीं क्लास में साथ पढ़ी जयंति को पहचान गया, ‘यही नाम तो रखा था उस के सहपाठियों ने इस का.’

‘‘अरे तुम, मास्टर रोंदूतोंदू, खुला बटन, बहती नाक, पढ़ाकू वीर,’’ वह थोड़ा झिझकी थी फिर फ्लो में बोल कर खिलखिला उठी, ‘‘वाउ, तोंद तो गायब हो गई है. ओहो, अब तो बड़े स्मार्ट हो गए हो, चमकता सूटबूटटाई, महंगी वाच…क्या बात है, क्या ठाठ हैं?’’ अगलबगल खड़े लोग भी सुन रहे थे, रणवीर झेंप गया.

‘‘तो अब मास्टर से मिस्टर शर्मीले बन गए हो, अच्छा छोड़ो ये सब, यार बताओ, किस काम से आना हुआ यहां. मैं पहले दूसरी ब्रांच में थी, अभी कल ही यहां जौइन किया है. अच्छा इत्तफाक है, जल्दी बोलो, ड्यूटी आवर खत्म होने को है, फिर बाहर निकल कर ढेर सारी बातें करेंगे,’’ वह मुसकराई.

संक्रमण काल से बाहर आता नेपाल : उपेंद्र यादव उपप्रधानमंत्री, नेपाल

बातचीत

नेपाल में गणतंत्र की स्थापना हुए अभी 11 साल ही हुए हैं. इस दौरान वहां कई राजनीतिक और सामाजिक बदलाव देखने को मिले हैं जिन में से कुछ सुखद भी हैं तो कुछ कटु भी. अच्छी बात यह है कि नेपाल में अब कई परिवर्तन हो रहे हैं. एक तरफ कभी गुलाम न रहे इस देश की समृद्ध और संपन्न विरासत है तो दूसरी तरफ गरीबी और क्षेत्रीय व जातिगत संघर्ष भी हैं.

नेपाल की राजनीति में इन दिनों उपप्रधानमंत्री उपेंद्र यादव एक प्रमुख चेहरा हैं जो हर लिहाज से भारत से संबंध मधुर बनाए रखने के प्रबल पक्षधर हैं. यहां पेश हैं उन से की गई बातचीत के अंश :

बाढ़ को ले कर बिहारवासी कह रहे हैं कि हर वर्ष नेपाल की यही कहानी है. नेपाल से कोसी नदी का पानी छोड़ने से बिहार के कई इलाकों में बाढ़ से लोगों का जीवन अस्तव्यस्त हो जाता है. मौतें हो जाती हैं. इस के लिए क्या आप कोई ठोस कदम उठा रहे हैं.

कोसी नदी व बाढ़ की बात है तो यह दोनों देशों की समस्या है. समस्या के साथसाथ अपौर्चुनिटी भी है. बारिश होगी तो बाढ़ आएगी. बाढ़ न तो नेपाल को पहचानती है और न भारत को. भारत में खासकर बिहार ज्यादा प्रभावित होता है. बाढ़ को पासपोर्ट और वीजा भी नहीं लगता. कोई पुलिस भी इसे रोक नहीं पाती. उधर भी बाढ़ इधर भी बाढ़. बाढ़ से दोनों मुल्कों के लोगों को बचाने के लिए, उस से जो नुकसान हुआ है उस को मिनिमाइज करने के लिए नेपाल और भारत को मिल कर काम करने होंगे, क्योंकि सोर्स तो नेपाल है और सोर्स से ही कंट्रोल करते आना होगा ताकि दोनों मुल्कों के लोग इस समस्या से बचें. दूसरी ओर पानी काफी उपयोगी चीज है, उसे स्टोर कर इरिगेशन, इलैक्ट्रिक व कई चीजों में उपयोग किया जा सकता है. इस से दोनों देशों को फायदा है.

नेपाल में पिछले कुछ वर्षों में बहुत परिवर्तन हुआ है. पहले राजशाही थी, अब लोकतंत्र है. पहले राजतंत्र अब गणतंत्र है. यह राजनीतिक परिवर्तन हुआ. अब जरूरत है आर्थिक परिवर्तन की, विकास की, समानता की. इस बीच में जो गैप है वह 2 तरह का है. एक तरह के गैप में दलित, जनजातीय व महिलाएं हैं. ये लोग कई वर्षों से बुनियादी सुविधाओं से वंचित रह गए हैं.

दूसरी तरफ आर्थिक विपन्नताएं हैं, गरीबी बहुत ज्यादा है, बेरोजगारी है. भोजन, शिक्षा आदि बुनियादी सुविधाओं की पूर्ति नहीं हो पा रही है. यहां के युवा मलयेशिया या अन्य जगह जा कर रोजीरोटी कमा रहे हैं.

2 बड़े चैलेंज हैं- डैवलपमैंट और डैस्टिनेशन को खत्म करना और डैवलपमैंट को आगे बढ़ाना. कहने का मतलब इन चुनौतियों के साथ नेपाल को आगे बढ़ाना है.

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फायदे और नुकसान की बातें तो सालों से हो रही हैं?

इस को फिर से सोचना होगा. दोनों देशों के बीच कौऔपरेशन को आगे बढ़ाना होगा. इस का उपयोग कैसे करें, इस पर ध्यान देना होगा. नेपाल में पहले पौलिटिकली स्टैबिलिटी नहीं थी, अब पौलिटिकल स्टैबिलिटी है. अब वक्त आया है कि इस पर कुछ किया जाए.

नेपाल एक हिंदू राष्ट्र है. नेपाल के हिंदुओं और भारत के हिंदुओं में क्या फर्क महसूस करते हैं?

नेपाल में 8 धर्म हैं. केवल हिंदू ही नहीं, बल्कि मुसलिम, बुद्धिस्ट, सिख और थोड़ेबहुत ईसाई भी हैं. नेपाल कई धर्मों वाला देश है. केवल हिंदुओं का देश नहीं है. हां, हिंदुओं की संख्या अधिक है और नेपाल का जो कल्चर है नेपाली कल्चर, उस में बुद्धिज्म, हिंदुइज्म और जैनिज्म यानी सब का प्रभाव रहा है. नेपाल भारत की तरह सैकुलर कंट्री है. अगर दोनों देशों के हिंदू मिल कर गरीबी व बेरोजगारी को खत्म करते हैं तो यह अच्छी बात है.

भारत में हिंदुत्व के नाम पर कुछ हिंदू भटक गए हैं, आप क्या कहेंगे?

कुछ लोग केवल इलैक्शन में नारे लगाते हैं. उस से तो कुछ नहीं होने वाला. हिंदू में पंडित लोग, इसलाम में मौलवीमौलाना लोग, बुद्धिज्म में लामा लोग और इसी तरह क्रिश्चियन में कुछ धार्मिक कट्टर लोग हैं. धर्मगुरु अपनेअपने अनुयायियों को जहांतहां ले जाते हैं. दरअसल, धर्मगुरु उन्हें भटकाते हैं. हिंदुइज्म का जो ह्यूमैनिटेरियन ग्राउंड है, जस्टिस के जो ह्यूमैनिटेरियन पक्ष हैं उन को ले कर चलेंगे, तो भटकेंगे नहीं.

आप राजशाही को सही मानते हैं या लोकतंत्र को?

लोकतंत्र व गणतंत्र के लिए हम ने लड़ाई लड़ी है. राजशाही दुनिया में कहां सही है? यदि राजशाही सही होती तो सारे संसार में राजशाही ही होती, लोकतंत्र व गणतंत्र क्यों होता.

क्या नेपाल में माओवाद अब खत्म हो रहा है?

माओवाद अब नहीं है. माओवाद का नाम लेने वाले लोग हैं. माओवाद का नाम ले कर अपना उल्लू सीधा करने वाले लोग हैं. लेकिन माओ के सिद्धांत में चलने वाले लोगों को मैं ने कभी देखा ही नहीं. उन के नारे दिए जाते हैं. नारे देने से तो कुछ होगा नहीं. डकैत भी अगर गेरुआ वस्त्र पहन ले और चंदन लगा ले तो वह साधु या संत थोड़े ही हो जाएगा, वह तो डकैत ही रहेगा.

क्या नेपाल में कम्युनिस्ट सरकार आने के बाद भारत से दूरियां बढ़ी हैं?

नेपाल में कम्युनिस्ट कहां हैं. कम्युनिस्ट का नाम लेने वाले लोग जरूर हैं. पर अब ऐसा नहीं है. केवल माला जपी जा रही है. चीन की अपनी पौलिसी है. व्यापार में वह आगे बढ़ रहा है. चीन भी जानता है कि केवल अब नाम का कम्युनिस्ट रह गया है. सामंतवाद व पूंजीवाद है, कम्युनिज्म नहीं है.

भारत व नेपाल के संबंध और मजबूत कैसे हो सकते हैं?

भारत और नेपाल के संबंध मजबूत ही हैं. ये हम ने या नेताओं ने नहीं बनाए. कई हजार वर्षों से हमारे पूर्वजों द्वारा बनाए हुए हैं. दोनों एक परिवार के लोग हैं. दोनों देशों का खून का रिश्ता रहा है. दोनों देशों की संस्कृति एक है. दोनों के कई तरह के रिश्ते हैं जिन की हम राजनीतिक व कूटनीतिक तौर पर व्याख्या नहीं कर सकते. रिश्तों को कोई भी नहीं तोड़ पाया. सरकार व नेताओं के बीच में कभीकभार मनमुटाव हो जाता है जिस से कोई फर्क नहीं पड़ने वाला. नेपाल अब संक्रमण काल से बाहर आ रहा है.

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कभीकभी देखने को मिलता है कि नेपाल का झुकाव चीन की तरफ ज्यादा हो जाता है?

इसे अगर आप भारत से देखते हैं तो चीन दिखाई देता है और चीन से देखते हैं तो भारत दिखाई देता है. भारत और नेपाल का संबंध रोटी और बेटी का है. राजनीतिक, सांस्कृतिक, प्रकृति और मानव ने दोनों देशों को जोड़ रखा है.

अब तो नेपाल में कई जगह चाइनीज शिक्षण संस्थान खुल गए हैं. इस पर आप क्या कहेंगे?

ऐसा नहीं है. ये अफवाहें हैं. कहींकहीं नेपाल के लोग चाइनीज भाषा सीखना चाहते हैं. भाषा इंस्टिट्यूट कहींकहीं हैं. चाइनीज भाषा से प्रभाव पड़ने वाला नहीं है. कुछ कारोबार तिब्बत से जुड़ा है, तो इस के लिए वे चाइनीज भाषा सीखते हैं.

नेपाल में गरीबी, बेरोजगारी व पलायन की समस्या बहुत है?

नेपाल लंबे समय तक राजशाही में रहा और एक तरफ फ्यूडलिज्म भी रहा. इंडस्ट्रियलाइजेशन नहीं हो पाया. और अब बिजनैस इंडस्ट्री धीरेधीरे पनप रही है. बहुत देर हो गई. अभी इस में समय लगेगा. एग्रीकल्चर को ठीक करना होगा. पलायन की जहां तक बात है, तो वह ग्लोबल समस्या है. गांव से लोग शहर की ओर आ रहे हैं, शहर के लोग डैवलप्ड कंट्री की तरफ भाग रहे हैं. यह तो भारत व नेपाल सहित दुनिया में कई मुल्कों की समस्या है.

जब लोग अपने यहां बेहतरीन सुविधाएं नहीं पाते हैं तो विदेशों की ओर दौड़ लगाते हैं. गांव से लोग बेहतर अपौरचुनिटी के लिए शहर जाते हैं. बेहतर अपौरचुनिटी या मूवमैंट ह्यूमन सिविलाइजेशन है. आर्य लोग सिंधु घाटी से उस पार से इस पार क्यों आए. अपौरचुनिटी ढूंढ़तेढूंढ़ते आए. यह ह्यूमन नेचर है. ईस्ट डैवलप्ड कंट्रीज में यह ज्यादा होता है. डैवलपिंग कंट्री में यह कम होता है. आज यूरोप की प्रौब्लम इंमिग्रैंट्स की है. मेजर पौलिटिकल एजेंडा बन रहा है इस में. यह ह्यूमन नेचर है. इस के लिए ग्लोबली सोचना होगा.

मधेशियों की समस्या का हल कब और कैसे होगा?

सब से बड़ी चिंता का विषय मधेशियों को ले कर है वह है नागरिकता. इस के लिए हम लंबी लड़ाई लड़ रहे हैं. मधेशियों के साथ विभेद उत्पीड़न आज भी है. तराई के साथसाथ यह पहाड़ी इलाकों में भी है लेकिन धीरेधीरे हर चीज में अब मधेशियों की भागीदारी बढ़ रही है. अब परिस्थितियां बदल रही हैं.

भारत में जो लोग नेपाल से आ कर रह रहे हैं, उन की स्थिति को और बेहतर कैसे बनाया जा सकता है?

यहां के लोग भी नेपाल में हैं और नेपाल के लोग भारत में हैं. डिफैंस सिक्योरिटी सर्विस में काफी लोग हैं. उन लोगों की तरक्की हो, चाहे वहां रहते हों, चाहे यहां रहते हों. 1950 में भारत व नेपाल की जो संधि हुई थी उस को लोग एंजौय कर रहे हैं.

नेपाल सुंदर देश है. पर्यटन को बढ़ावा देने के लिए आप क्या कर रहे हैं?

पर्यटन को बढ़ावा देने के लिए बहुत काम कर रहे हैं. नैचुरल ब्यूटी से लोग आकर्षित हो रहे हैं और पर्यटन बढ़ रहा है. अब तो पौलिटिकल स्टैबिलिटी भी है. ऐसे में अब पर्यटन और भी बढ़ेगा.

शातिर बहू की चाल: भाग 1

भाग 1

थाने के फोन की घंटी बजी तो हलवदार ने रिसीवर उठाते ही कहा, ‘‘सर, थाना सुलतानपुरा से हवलदार जसवंत सिंह.’’

‘‘मैं सरकारी टीचर संदीप शर्मा बोल रहा हूं. कोठी नंबर 534 बी, आदर्श नगर से. आप जल्दी यहां आ जाइए. किसी ने कोठी की मालकिन सतनाम कौर की हत्या कर दी है. उन की लाश बेडरूम में पड़ी है.’’ दूसरी ओर से कहा गया.

हवलदार जसवंत सिंह ने यह सूचना थाने के एसएचओ इंसपेक्टर ओंकार सिंह बराड़ को दे दी. आेंकार सिंह पुलिस टीम के साथ आदर्श नगर स्थित घटनास्थल पर पहुंच गए. वहां पहले से ही लोगों की भीड़ जमा थी. भीड़ में से एक व्यक्ति ने आगे बढ़ कर बताया, ‘‘सर, मेरा नाम संदीप शर्मा है, मैं ने ही थाने में फोन किया था.’’

‘‘लाश कहां है?’’ इंसपेक्टर ओंकार सिंह ने पूछा तो संदीप शर्मा ने कोठी की ऊपरी मंजिल की ओर इशारा करते हुए बताया, ‘‘सर, लाश बेडरूम में पड़ी है.’’

ओंकार सिंह अपनी टीम के साथ कोठी के ऊपर वाले भाग में पहुंचे. बेडरूम में बेड पर एक बुजुर्ग महिला की लाश पड़ी थी. इंसपेक्टर ओंकार सिंह ने घटना की सूचना उच्च अधिकारियों को दी और घटनास्थल पर क्राइम टीम को बुलवा लिया.

फौरेंसिक एक्सपर्ट और फिंगरपिं्रट विशेषज्ञों ने आते ही अपना काम शुरू कर दिया. इस बीच सूचना पा कर एसपी कपूरथला मनदीप सिंह भी मौकाए वारदात पर पहुंच गए थे. घटनास्थल और लाश का निरीक्षण करने से पता चला कि मृतका की हत्या गला घोंट कर की गई थी.

पूछताछ के दौरान संदीप शर्मा ने बताया कि मृतका सतनाम कौर कनाडा की रहने वाली थीं. वह करीब 5 महीने पहले अपने रिश्तेदारों से मिलने यहां आई थीं. संदीप शर्मा ने यह भी बताया कि उस ने मृतका के बेटे मनमोहन सिंह को कनाडा फोन कर के घटना की सूचना दे दी है.

इंसपेक्टर ओंकार सिंह अभी संदीप शर्मा का बयान नोट कर रही रहे थे कि राजपुर महतानियां, जिला होशियारपुर निवासी राजिंदर सिंह ने वहां आ कर बताया कि मृतका उस की बहन सतनाम कौर है. दरअसल, संदीप शर्मा ने मृतका के बेटे मनमोहन सिंह को फोन कर के घटना के बारे में बता दिया था.

मनमोहन ने अपने मामा को फोन कर के कहा कि वह मां के पास जा कर देखें, खबर सच है या किसी ने भद्दा मजाक किया है. भांजे का फोन मिलने के बाद राजिंदर सिंह आदर्शनगर आ गए थे.

बहरहाल, राजिंदर सिंह के बयान पर 30 मार्च, 2019 को अज्ञात लोगों के खिलाफ सतनाम कौर की हत्या का मुकदमा भादंवि की धारा 302 के तहत दर्ज कर लिया गया. इस के साथ ही मृतक की लाश को पोस्टमार्टम के लिए जिला अस्पताल भेज दिया गया.

पोस्टमार्टम रिपोर्ट के अनुसार मृतका की हत्या दम घुटने के कारण हुई थी. उन के गले पर दुपट्टे वगैरह से कसने के निशान थे. हत्या का दिन 29 मार्च और समय दिन के 11 बजे से 12 बजे के बीच बताया गया था.

अब तक की पूछताछ में यह बात स्पष्ट हो गई थी कि मृतका की किसी से कोई दुश्मनी या अनबन नहीं थी. वह 2-3 साल में एक बार कुछ दिनों के लिए कनाडा से अपने रिश्तेदारों से मिलने आया करती थी. वह जब भी आती थीं, ज्यादातर अपनी आदर्शनगर वाली कोठी में ही रहा करती थीं.

चूंकि मामला एक एनआरआई बुजुर्ग महिला से जुड़ा था इसलिए एसपी मनदीप सिंह के आदेश पर इसे जल्द से जल्द सुलझाने के लि ए 3 टीमें गठित की गईं.

हत्या के इस मामले में अजीब बात यह थी कि घर में कोई चीज चोरी नहीं हुई थी. घर का सारा सामान ज्यों का त्यों था. किसी चीज को छेड़ा तक नहीं गया था. बेडरूम में चाय के 3 खाली गिलास रखे मिले. इस से साफ था कि घर में सतनाम कौर का कोई परिचित आया था.

पुलिस ने मृतका सतनाम कौर के पारिवारिक सदस्यों और निजी जिंदगी के बारे में पूछताछ की तो पता चला कि सतनाम कौर के पति बलदेव सिंह की साल 1998 में मौत हो गई थी. मृतका के 2 बेटे थे बड़ा बेटा जगमोहन सिंह जग्गा और छोटा मनमोहन सिंह उर्फ मनी.

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मनमोहन सिंह उर्फ मनी कनाडा में रहता था. जबकि बड़े बेटे जगमोहन उर्फ जग्गा की साल 2017 में मृत्यु हो गई थी. जगमोहन की पत्नी हरजोत कौर अपने बच्चों के साथ गांव दादूवाल में रहती थी.

बलदेव सिंह की मौत के समय इस परिवार के पास 12 किले उपजाऊ जमीन थी, जिसे 3 बराबर हिस्सों में बोट दिया गया था. हरेक के हिस्से में 4-4 किले जमीन आई थी. दोनों बेटों के साथसाथ एक हिस्सा सतनाम कौर का था.

पति की मौत के बाद सतनाम कौर छोटे बेटे मनमोहन के पास कनाडा चली गई थीं. पुलिस जांच में एक अहम बात यह सामने आई कि बड़े बेटे जगमोहन की पत्नी हरजोत कौर की अपनी सास सतनाम कौर से बिलकुल नहीं बनती थी. जगमोहन की मौत के समय भी सतनाम कौर केवल उस की अंतिम अरदास पर ही गई थीं.

इस पूरे मामले की जांच के बाद शक की सुई हरजोत कौर की ओर घूम गई. इस बीच इंसपेक्टर ओंकार सिंह ने इलाके के सीसीटीवी फुटेज निकालवा कर चेक किए तो एक सरकारी दफ्तर के बाहर लगे कैमरे में एक्टिवा पर सवार एक पुरुष और उस के पीछे बैठी महिला को सतनाम कौर की कोठी में जाते देखा गया.

हालांकि दोनों ने अपने चेहरे कपड़े से ढक रखे थे. लेकिन एक्टिवा का नंबर- पीबी 37 एच-3277 स्पष्ट दिखाई दे रहा था.

आरटीओ औफिस से पता चला कि उक्त नंबर की एक्टिवा मृतका की बड़ी बहू हरजोत कौर की है. पुलिस का शक अब पूरी तरह यकीन में बदल गया था. जब हरजोत कौर को उस के गांव दादूवाल से हिरासत में ले कर पूछतछ की गई तो उस ने तुरंत अपन अपराध स्वीकार कर लिया. उस ने बताया कि उस ने पैसों के लालच में अपनी सास की हत्या की थी.

इस हत्याकांड में उस के साथ उस का परिचित विक्रमजीत सिंह उर्फ विक्की भी था जो गांव समरावा, जिला जालंधर का रहने वाला है. पुलिस ने हरजोत की निशानदेही पर विक्की को भी गिरफ्तार कर लिया.

दोनों आरोपियों को 1 अप्रैल को फगवाड़ा की अदालत में पेश कर उन का 2 दिन का पुलिस रिमांड लिया गया. रिमांड के दौरान दोनों आरोपियों से की गई पूछताछ के बाद मृतका सतनाम कौर की हत्या की जो कहानी सामने आई वह इस प्रकार थी.

हरजोत कौर जब ब्याह कर ससुराल आई थी तभी से अपनी सास सतनाम कौर के साथ उस की कभी नहीं बनी थी. सतनाम कौर भी अपनी बहू को नापसंद करती थी. इस का एक कारण शायद यह था कि बलदेव सिंह और सतनाम कौर अपने छोटे बेटे मनमोहन के साथ कनाडा में रहते थे.

हरजोत ने भी कनाडा जाने की जिद की थी, अपने पति जगमोहन को उकसाया भी था, पर सतनाम कौर ने उस की एक नहीं चलने दी थी. इसी वजह से वह सतनाम कौर से रंजिश रखने लगी थी.

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बलदेव सिंह की मौत के बाद जब जमीन का बंटवारा हो गया तो हरजोत कौर अपने हिस्से की जमीन और पैसा ले कर पति और बच्चों के साथ जिला जालंधर के गांव दादूवाल में जा कर रहने लगी थी. अपने हिस्से की जमीन उस ने ठेके पर विक्की के पिता हरजीत को दे दी थी.

हरजोत चालाक और ज्यादा पैसा खर्च करने वाली औरत थी. जमीन से होने वाली कमाई उस के लिए पूरी नहीं पड़ती थी. उस की नजर हर समय अपनी सास के हिस्से वाली जमीन और उन के बैंक बैलेंस पर रहती थी. जबकि सतनाम कौर उसे अपने घर में घुसने तक नहीं देती थी.

हरजोत कौर पर इन दिनों काफी कर्जा हो गया था. कर्जदार उसे परेशान कर रहे थे, ऊपर से उस के बच्चे जवान हो रहे थे. उन के शादीब्याह की चिंता अलग से थी. हरजोत कौर को अपनी सास से यह रंजिश भी थी कि वह उस पर और उस की जवान होती बेटी पर तरहतरह के लांछन लगाती थीं.

क्रमश:

—कथा पुलिस सूत्रों पर आधारित

सौजन्य: मनोहर कहानियां

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