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जानिए क्यों नहीं करना चाहिए अपने बेस्ट फ्रैंड से प्यार

अक्सर हर किसी के लाइफ में कोई न कोई बेस्ट फ्रैंड होता ही है. हम अपनी सारी बातें बेस्ट फ्रैंड से शेयर करते हैं, और ज्यादा समय उसी के साथ बिताना चाहते हैं. ऐसे में अगर बेस्ट फ्रैंड अपोजिट सैक्स का हो तो प्यार होने की संभावना ज्यादा होती है. लेकिन ये कतई जरूरी नहीं है कि अगर आप अपने बेस्ट फ्रेंड से प्यार करते हैं तो वो भी आपसे प्यार करें.

ऐसे में आपका दिल तो दुखेगा ही और इसके साथ ही आपकी दोस्ती भी इफेक्ट होती है. तो चलिए जानते हैं, बेस्ट फ्रेंड से प्यार क्यों नहीं करना चाहिए.

प्यार के कारण दोस्ती में भी दरार पड़ सकती है –  प्यार के कारण दोस्ती में भी दरार पड़ सकती है. ऐसा जरूरी नहीं है कि जैसा आप अपने बेस्ट फ्रेंड के बारे में सोच रहे हैं,  वे भी आपको लेकर वैसा ही महसूस करें. हो सकता है, वह आपको केवल बेस्ट फ्रैंड मानता हो या मानती हो. और उन्हें किसी और से प्यार हो जाएं तो यह भी आपके लिए एक दुख का कारण बन सकता है. इससे आपकी आपकी दोस्ती भी खराब हो सकती है.

आपको सलाह देने वाला कोई नहीं रहेगा – अपने लाइफ के सबसे अच्छे सलाहकार को खो सकते हैं. अगर आप परेशान होते हैं तो आपको समझाने वाला आपका बेस्ट फ्रैंड आपसे दूर चला जाएगा. आप दोनों के बीच हुई समस्या को सुलझाने वाला भी कोई नहीं रहेगा जिसकी वजह से आपका झगड़ा लंबे समय तक चल सकता है.

दोस्ती फिर पहले की तरह नहीं रहेगी – किसी भी  रिश्ते में गांठ पड़ जाती हैं तो बहुत मुश्किल होता है उस गांठ को सुलझाने में. वैसे ही आपकी दोस्ती का भी रिश्ता है. तो अगर आपके दोस्ती  में गाठ पड़ती हैं तो  फिर आपके लिए बहुत कठिन होगा उसे ठीक करना.

जी हां अगर आप अपने बेस्ट फ्रेंड को गर्लफ्रैंड या बौयफ्रैंड बनाने के बारे में सोच रहें हैं तो आपको सबसे पहले अपनी दोस्ती के बारे में सोचना चाहिए, क्योंकि प्यार की वजह से आप अपने बेस्ट फ्रैंड को खो सकते हैं.

हर दिन पैदल चलें, सेहतमंद रहें

जिंदगी की भागदौड़ में हम लोग इतना बिजी हो गए हैं कि चलना तक भूल गए हैं जबकि यही चलना हमारी सेहतमंद जिंदगी की कुंजी है. पर हो उल्टा रहा है. बाजार जाना है तो गाड़ी चाहिए. डौक्टर से मिलना है तो भी बिना गाड़ी के नहीं हिलेंगे चाहें 2-3 किलोमीटर ही क्यों न जाना हो.

हमारे इस आलस और रोजाना न चलने की गलत आदत की वजह से हम अनजाने में बड़ी बीमारियों को न्योता दे देते हैं. सांस फूलना, स्ट्रोक, डाइबिटीज और यहां तक कि कैंसर जैसी गंभीर बीमारी भी केवल न चलने के चलते हमें अपनी चपेट में ले सकती है.

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रोजाना पैदल चलने की वजह से न सिर्फ आप अपना वजन घटा सकते हैं, बल्कि मसल्स को भी मजबूत बना सकते हैं. हड्डियों और जौइंट्स को मजबूत कर सकते हैं. साथ ही, यह कसरत करने से न सिर्फ बेचैनी और तनाव कम होता है बल्कि डिप्रेशन से बाहर निकलने में भी मदद मिलती है.

क्या आप को पता है कि केवल 20 से 30 मिनट की वौक से मौत का खतरा 20 प्रतिशत तक कम हो सकता है? इस के लिए आप को दिनभर जिम में पसीना बहाने की जरूरत नहीं है, क्योंकि एक नई स्टडी में खुलासा हुआ है कि हर दिन सिर्फ औसतन 22 मिनट पैदल चल कर आप अपनी सेहत में काफी सुधार कर सकते हैं.

अमेरिकन जर्नल औफ प्रिवेंटिन मेडिसिन में छपी इस स्टडी के नतीजे बताते हैं कि जो लोग हर दिन कम से कम 20 से 30 मिनट की वौकिंग करते हैं उन की मौत का खतरा उन लोगों से 20 प्रतिशत कम हो जाता है जो इस मामले में आलस कर जाते हैं.

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इस स्टडी को पूरा होने में तकरीबन 13 साल का वक्त लगा. स्टडी के लेखक ने अपने निष्कर्ष में लिखा, ‘पैदल चलना अपने आप में एक पूरी कसरत है. इस के लिए किसी तरह के उपकरण या साजोसामान या ट्रेनिंग की जरूरत नहीं होती है और इसे किसी भी उम्र का व्यक्ति आसानी से कर सकता है.’

तो फिर देरी किस बात की. तैयार हो जाइए चलने के लिए. हम तो कहते हैं कि कमर कस लीजिए और रोजाना कुछ मिनट पैदल चल कर अपनी जिंदगी को बीमारियों से दूर भगाइए.

‘सोशल मीडिया’ हो गया ‘एंटी सोशल’

उत्तर प्रदेश के बस्ती जिले के डीएम आशुतोष निरंजन ने ट्विटर पर अपने दीवाली संदेश में लिखा ‘यह दीवाली प्रदूषण मुक्त मनाने के साथ साथ लोगों से पटाखों की जगह दीपक से उजाला करके एक स्वस्थ वातावरण से दीपावली मनाने की अपील करता हं’.  डीएम बस्ती की यह अपील सोशल मीडिया पर विरोधी मत वाले लोगों के निशाने पर आ गई. सोशल मीडिया पर लोगों ने डीएम बस्ती को ‘ट्रोल’ किया जाने लगा. सोशल मीडिया पर उनको तमाम तरह की सलाह दी जाने लगी. किसी ने उनको दीवाली पर ज्ञान देने की जगह बस्ती जिले की समस्याओं पर ध्यान देने के लिये कहा. तो किसी ने ऐसे संदेश ईद पर देने के लिये कहा. डीएम साहब का मामला था होने के बाद भी उनको जबरदस्त ‘ट्रोल’ किया गया.

यह बात केवल डीएम बस्ती की नहीं है सोशल मीडिया पर ‘ईको फ्रेंडली’ दीवाली मनाने का संदेश देते सभी मैसेजों के साथ ऐसे ही ‘ट्रोल’  किया गया. सोशल मीडिया पर ‘ट्रोल’  करने वालों ने ईद, बकरीद, क्रिसमस और नये साल पर ऐसे संदेश देने की चुनौती देते कहा गया कि ‘सारे प्रदूषण रोकने का ठेका हिन्दू त्योहारों में ही क्यों लिया जाता है?’ वैसे उत्तर प्रदेश की सरकार ने इस दीवाली मिटटी के दिये जलाने की अपील की. सरकार ने प्रदूषण और पटाखों को लेकर कोई बड़ी मुहिम नहीं चलाई. सोशल मीडिया से अलग इस बार स्कूल और दूसरे आयोजनों में प्रदूषण रहित दीवाली मनाने की मुहिम फीकी दिखी.

प्रदूषण रहित दीवाली को सोशल मीडिया पर लोगों ने धर्म से जोड़ दिया. उत्तर प्रदेश में धर्म एक बड़ा मुददा बन गया है. धार्मिक मसले सोशल मीडिया पर इस कदर हावी है कि दीवाली का प्रदूषण इसके लिये कोई मायने नहीं रखता. सोशल मीडिया पर धर्म का कट्टरपन अभी पूरी तरह से हावी है. ऐसे में दीवाली पर प्रदूषण रोकने के लिये पटाखे ना छुड़ाने की अपील पूरी तरह से फीकी नजर आई. उत्तर प्रदेश के मुख्यमंत्री योगी आदित्यनाथ ने अयोध्या में दीपोत्सव मनाया और 5 लाख 51 हजार दीप जलाकर विश्व रिकार्ड बनाया. इस अवसर पर 14 मठ मंदिरों को करीब डेढ़ लाख दीपों से रोशन किया. इस अवसर पर सरयू तट पर आतिशबाजी करने की तैयारी की.

असल में उत्तर प्रदेश में धर्म का प्रभाव छाया हुआ है. यहां पर तर्क को कोई मतलब नहीं रह जाता है. धार्मिक आयोजन सरकारी आयोजन की तरह हो गये है. उत्तर प्रदेश में धार्मिक मुददो पर वोटिंग होती है. धर्म के खिलाफ किसी भी तर्क को ऐसे दबाव जाता है जिससे वह बात दोबारा उभर कर सामने ना आ सके. ऐसे में धर्म के खिलाफ तर्क रखने वालों को बुरी तरह से ट्रोल किया जाता है. उनको गालियां दी जाती है. ऐसे लोग यह भूल जाते हैं कि आज उनको सुविधाभोगी जीवन विज्ञान की वजह से मिला है. धर्म और पूजा पाठ से अगर अगर बिजली, सड़क, आवास मिल सकते तो लोग फैक्ट्री और उद्योग धंधे क्यों लगाते ?

‘‘हाउसफुल 4’’: पैसे की बर्बादी

रेटिंग: एक स्टार

निर्माताः साजिद नाड़ियाडवाला और फौक्स स्टार स्टूडियो

निर्देशकः फरहाद सामजी

कलाकारः अक्षय कुमार, बौबी देओल, रितेश देशमुख, कृति सैनन, कृति खरबंदा,  पूजा हेगड़े, चंकी पांडे, रंजीत, नवाजुद्दीन सिद्दिकी, जौनी लीवर व अन्य.

अवधिः दो घंटे 26 मिनट

सफलतम फ्रेंचाइजी को बार बार भुनाना गलत नही है, मगर सफल फ्रेंचाइजी के नाम पर दर्शकों को मूर्ख बनाते हुए कुछ भी उल जलूल परोसना शर्मनाक है. हर फिल्म फिर चाहे वह सफल फ्रेंचाइजी ही क्यों न हो, का मकसद दर्शकों का स्वस्थ मनोरंजन करना होता है. मगर सफल फ्रेंचाइजी ‘हाउसफुल’ की नई प्रस्तुति ‘‘हाउसफल 4’’ खरी नही उतरती. इस हास्य फिल्म में वही पुरानी कहानी को अति घटिया संवादों के साथ पेश कर दिया गया है.

कहानीः

लंदन में नाई की दुकान चला रहे हैरी (अक्षय कुमार) अपनी भूलने की आदत के चलते खतरनाक माफिया डान माइकल (मनोज पाहवा) के पांच मिलियन डौलर्स को कपड़े समझकर वाशिंग मशीन में धो देते है. बस तभी से माइकल, हैरी और उसके दोस्तों मैक्स (बौबी देओल) और रौय (रितेश देशमुख) की जान के पीछे पड़ जाते हैं. पैसों का जुगाड़ करने के लिए यह तीनों मिलकर अरबपति ठकराल (रंजीत) की तीनों खूबसूरत बेटियों कृति (कृति सेनन),  नेहा (कृति खरबंदा) और पूजा (पूजा हेगड़े) से शादी करने की योजना बनाते हैं. ठकराल के गले में एक नंगी औरत की तस्वीर है और वह हमेशा तीन अर्धनग्न लड़कियों के कंधे पर अपना हाथ रखे नजर आते हैं. खैर, ठकराल भी इस शादी के लिए रजामंद हो जाते हैं. ठकराल की यह तीनों बेटियां डिस्टीनेशन वेडिंग करना चाहती हैं. इसके लिए ग्लोबल मैप को घुमाकर जगह तय की जाती है और यह जगह आती है भारत में स्थित सितमगढ़. पता चलता है कि 1419 में सितमगढ़ रियासत थी और उसी रियासत का एक किला है, जो कि अब होटल में तब्दील हो चुका है. होटल का मैनेजर( जौनी लीवर) और बेल ब्वाय पास्ता (चंकी पांडे) है.

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शादी की रस्म के लिए जब यह सभी लंदन से भारत के सितमगढ़ पहुंचते हैं, तो हैरी को याद आता है कि वह आज से तकरीबन 600 पहले अर्थात 1419 में सितमगढ़ का राजकुमार बाला देव सिंह था. उसे यह बात उसका विश्वासपात्र नौकर पास्ता (चंकी पांडे) याद दिलाता है. फिर कहानी 600 साल पहले चली जाती है. जब हैरी उर्फ बाला के सिर पर बाल नही थे. और किस तरह शादी के दिन ही दुश्मनों की चाल के चलते वह सब मारे गए थे. अतीत की कहानी खत्म होते ही हैरी को अहसास होता है कि इस जन्म में वह और उसके दोस्त अपने पूर्व जन्म की प्रेमिकाओं की बजाय अपनी पूर्व जन्म की भाभियों से शादी करने जा रहे हैं, तो वह अपने दोस्तों और उनकी प्रेमिकाओं को याद दिलाता है कि कैसे कृति पिछले जन्म में राजकुमारी मधु, रौय नृत्य के गुरु बांगड़ू,  मैक्स राजकुमारी का अंगरक्षक धरमपुत्र थे और नेहा राजकुमारी मीना, जबकि नेहा राजकुमारी माला थी. अब सभी सितमगढ़ पहुंच गए हैं, तो बाकी किरदार भी पहुंचेंगे ही तो 600 साल पहले के गामा (राणा दुगुबत्ती) अब कव्वाल पप्पू रंगीला और राघवन (शरद केलकर) भी इस जन्म में सितमगढ़ आ पहुंचते हैं. फिर शुरू होती है पिछले जन्म की बदले की कहानी को पूरा करने का खेल पर अंततः प्रेम की ही जीत होती है.

निर्देशनः

फिल्म का कुछ हिस्सा साजिद खान ने निर्देशित किया था,  मगर ‘‘मी टू’’ में साजिद खान के फंसने के बाद असफल फिल्म ‘‘इंटरटेनमेंट’’ के निर्देशक फरहाद सामजी ने इसका निर्देशन किया. फिल्म में वही किरदारों की अदला बदली का अति पुराना फार्मुला उपयोग कर लोगों को जबरन हंसाने का प्रयास किया गया है, पर दर्शकों को हंसी बजाय रोना आता है. इसमें ‘माइंडलेस कौमेडी’ के साथ कई घटिया, अति सतही व बचकाने पंच भी डाले पिरोए गए हैं. फिल्म का क्लायमेक्स भी बचकाना है. फिल्म के संवाद तो बहुत ही ज्यादा वाहियात हैं. अफसोस की बात यह है कि इसे छह लेखकों की फौज ने मिलकर लिखा है.

‘‘माइंडलेस कौमेडी” की कल्पना की पराकास्ठा यह है कि क्लायमेक्स में अक्षय कुमार के पिछवाड़े चार चार चाकू लगे हैं, पर खून नहीं निकलता और वह आगे बढ़ते रहते हैं. मगर कुछ देर बाद वह चाकू गायब भी हो जाते हैं. इतना ही नही हर कलाकार अष्लील हाव भाव करते हुए दर्शकों को हंसाने का असफल प्रयास करते हैं.

600 साल पुराना सितमगढ़ का किला 600 साल बाद भी उसी स्थिति में है. वाह..फिल्मकार की क्या कल्पना है. दर्शक सिनेमाघर से निकलते समय ही कहता रहता है कि ‘कहां फंसायो नाथ.’ कुछ दर्शक तो यह भी कहते सुने गए कि इस तरह की फिल्म बनाते समय निर्माता व कलाकारों का शर्म नहीं आयी.

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अभिनयः

फिल्म देखकर अहसास होता है, जैसे कि हर कलाकार के बीच प्रतिस्पर्धा चल रही है कि कौन सबसे घटिया/वाहियात अभिनय कर सकते है. हीरोईनों के हिस्से करने के लिए कुछ खास रहा ही नहीं. छोटे से किरदार में नवाजुद्दीन सिद्दिकी और जौनी लीवर जरुर अपनी छाप छोड़ जाते हैं.

फेसबुक की दोस्ती का जंजाल: भाग 2

फेसबुक की दोस्ती का जंजाल: भाग 1

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आखिरी भाग

पति की बात सुन कर वह बहुत खुश हुई. इस के 5-6 दिन बाद सुनीता के मोबाइल पर अंजान नंबर से काल आई. उस ने काल रिसीव की तो एक शख्स ने कहा, ‘‘क्या आप सुनीता आर्य बोल रही हैं?’’

सुनीता ने ‘हां’ कहा तो वह बोला, ‘‘फिनलैंड में आप के खिलाफ मुकदमा दर्ज हुआ है, गंभीर आपराधिक धारा लगी है. अब आप को कई साल जेल में गुजारने होंगे.’’

यह सुन कर सुनीता कांपने लगी, डरतेडरते उस ने कहा, ‘‘मगर मेरा कुसूर क्या है?’’

‘‘आप ने डेविड सूर्ययन द्वारा स्मलिंग का सोना भारत मंगवाने का षड्यंत्र रचा, उसे जब्त कर किया गया है. डेविड ने आप का नाम बताया है. जल्द ही कस्टम विभाग की टीम आप की गिरफ्तारी के लिए आ रही है.’’

यह सुन कर सुनीता के हाथपांव फूल गए वह घबराते हुए बोली, ‘‘मुझे माफ करो. मैं ने कोई गलती नहीं की है. मेरा कोई कसूर नहीं है.’’

उधर से आवाज आई, ‘‘मैडम, आप लोग सच्चे हो या झूठे यह तो यहां की अदालत ही तय करेगी. मगर, मुझे आप एक भली महिला जान पड़ती हैं. इसलिए यदि आप चाहें तो आप की कुछ मदद कर सकता हूं.’’

‘‘हां भैया, मदद करो.’’ सुनीता गिड़गिड़ाई.

‘‘तो सुनो, मैं तुम्हारा नाम आरोपियों की सूची से हटा दूंगा. लेकिन इस के एवज में 5 लाख रुपए देने होंगे, वह भी आज ही.’’

डरीसहमी सुनीता ने स्वीकार कर लिया और उसी दिन बताए गए बैंक अकाउंट में 5 लाख रुपए ट्रांसफर कर दिए. इस के बाद उस की जान में जान आई. वह सोचने लगी कि दोस्ती कर के वह कहां, किस जाल में फंस गई. यह फेसबुक की दोस्ती तो उसे बहुत महंगी पड़ गई.

इस बीच सुनीता को फिर फोन आया. उसे डरायाधमकाया गया और कहा गया कि ऊपर के अफसरों का मुंह भी बंद करना है इसलिए और पैसे भेजो. इस तरह सुनीता ने बताए गए बैंक खातों में धीरेधीरे 44 लाख रुपए जमा करा दिए.

अब वह डरीसहमी सी रहती, जाने क्या होगा, मामला खत्म हो जाएगा या फिर उसे जेल हो जाएगी. यह सोचसोच कर उस का स्वास्थ्य भी खराब रहने लगा. आखिरकार एक दिन उस ने पति चैतूराम को सारी बातें बता दीं और सुबकसुबक कर रोने लगी.

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पत्नी के कारनामे सुन चैतूराम की आंखें फटी की फटी रह गईं. उन्होंने पत्नी को आश्वासन दिया और कहा कि तुम ने इतने पैसे ट्रांसफर कर दिए और मुझे बताया तक नहीं.

चैतूराम पढ़ेलिखे शख्स थे. उन्होंने पत्नी को भरोसा देते हुए कहा, ‘‘तुम चिंता मत करो. मैं कल ही एसपी साहब से मिलूंगा.’’

‘‘इस से तो मैं खुद ही फंस जाऊंगी, मेरा क्या होगा?’’ सुनीता घबराते हुए बोली.

‘‘तुम बिलकुल चिंता न करो, तुम्हें कुछ नहीं होगा.’’ पति ने समझाया.

दूसरे दिन चैतूराम राजनांदगांव के एसपी कमल लोचन कश्यप के पास पहुंचे और उन्हें पत्नी के साथ घटी घटना की सारी जानकारी बता दी. चैतूराम की बात सुन कर एसपी समझ गए कि उन के साथ साजिशन ठगी हुई है. उन्होंने चैतूराम से कहा कि तुम लोगों को ठगा गया है. इसलिए तुम अभी कोतवाली जाओ और मामले की रिपोर्ट लिखाओ.

एसपी साहब के निर्देश पर चैतूराम पत्नी सुनीता को ले कर पहली दिसंबर, 2018 को लालबाग पहुंचे और कोतवाली प्रभारी एलेक्जेंडर कीरो से मिल कर उन्हें पूरी वस्तुस्थिति से अवगत कराया. कोतवाली प्रभारी ने सुनीता की तरफ से अज्ञात के खिलाफ भादंवि की धारा 420, 66 , 34 के तहत रिपोर्ट दर्ज कर उन का बयान दर्ज किया.

उन्होंने चैतूराम को बताया कि यह मामला किसी कस्टम पुलिस का कतई नहीं है. अगर कोई कस्टम फ्रौड होता तो पहले हमारे पास जानकारी आती.

कोतवाल एलेक्जेंडर कीरो ने एसपी कमल लोचन कश्यप के निर्देश पर एक टीम बना कर इस केस की जांच शुरू कर दी. जांच टीम ने सबसे पहले उन फोन नंबरों की काल डिटेल्स निकलवाई, जिन नंबरों से सुनीता के पास काल आई थी.

जांच टीम ने जांच आगे बढ़ते ही चौंकाने वाले तथ्य सामने आते चले गए. जिस फोन नंबर से सुनीता को ठगा गया था, पुलिस ने उस पर काल की तो वह बंद मिला.

जांच में पता चला कि वह सिम दिल्ली से अपडेट होता रहा है. इस से यह बात सामने आ चुकी थी कि इस अपराध के तार दिल्ली से जुड़े हुए हैं. जिस अकाउंट में सुनीता आर्य ने पैसे ट्रांसफर किए थे, पुलिस उन लोगों तक पहुंच गई. इस के बाद तो मामला खुली किताब की तरह उजागर होता चला गया.

ठगों का जो मोबाइल फोन बंद चल रहा था, वह चालू हो गया. पुलिस ने जब उस नंबर पर बात की तो पता चला कि वह फोन नंबर झारखंड के रांची में रमन्ना नाम के व्यक्ति के पास है. पुलिस टीम रमन्ना के पास पहुंच गई. उस ने बताया कि इस नंबर का सिम कार्ड उसे दिल्ली में रहने वाले नाइजीरियन युवक स्टेनली ने बेचा था.

रमन्ना की निशानदेही पर पुलिस टीम दिल्ली स्थित 25 फुटा रोड चाणक्य पैलेस, नाइजीरियन कालोनी पहुंच गई. दिल्ली पुलिस के सहयोग से किबी स्टेनली ओकवो और नवाकोर एमानुएल को हिरासत में ले लिया. दोनों आरोपियों को गिरफ्तार कर पुलिस टीम राजनांद गांव लौट आई.

एसपी कमललोचन कश्यप भी ठगों की गिरफ्तारी की सूचना पर कोतवाली पहुंच गए. उन की मौजूदगी में दोनों आरोपियों से सख्ती से पूछताछ की गई तो दोनों ने अपना अपराध स्वीकार कर लिया. उन्होंने बताया कि ठगी की घटना को अंजाम देने के बाद वह उस फोन नंबर को किसी को बेच दिया करते थे.

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वे लोग पहले लोगों से फेसबुक पर दोस्ती करते थे, इस के बाद ज्वैलरी, मोबाइल फोन, महंगे गिफ्ट भेजने का झांसा दे कर उन से मोटी ठगी करते थे. पुलिस ने दोनों आरोपियों से लगभग 5 लाख रुपए भी बरामद करने में सफलता प्राप्त की. उन दोनों ने काफी रकम बीते 7 माह में अय्याशी में उड़ा दी थी.

इस के अलावा पुलिस ने भारतीय स्टेट बैंक से पत्र व्यवहार कर के संपूर्ण राशि जब्त करने की प्रक्रिया शुरू कर दी. पुलिस ने दोनों आरोपियों से पूछताछ कर उन्हें 19 अगस्त, 2019 को स्थानीय न्यायालय में पेश किया जहां से उन्हें न्यायिक हिरासत में जेल भेज दिया.

कथा संकलन तक ये शातिर ठग जेल में बंद थे.

उधार के गहनों से करें तौबा

कई साल पुरानी बात है. पूर्वी दिल्ली के एक घर में शादी थी. मेहमानों का खूब जमावड़ा लगा हुआ था. दूल्हे की छोटी बहन रचना की खुशियों का ठिकाना नहीं था. बड़े भाई ने उसे सोने के झुमके जो तोहफे में दिए थे. बरात दुलहन के घर गई, खूब नाचगाना हुआ, फेरे पड़े और फिर नईनई ननद बनी रचना अपनी भाभी को घर ले आई.

शादी में रचना के झुमकों की भी खूब तारीफ हुई थी. खूबसूरत होने के साथसाथ वे महंगे भी थे. शादी की गहमागहमी कम हुई, तो रचना ने वे झुमके संभाल कर लोहे की अपनी अलमारी में रख दिए.

कुछ दिनों के बाद रचना के पड़ोस की एक सहेली मेनका के मामा की बेटी की शादी थी. एक दिन वह रचना से बोली, ‘‘सुन, तू मुझे 2 दिन के लिए अपने नए झुमके उधार दे दे. शादी में उन्हें पहनूंगी तो लड़कों पर रोब पड़ेगा.’’

रचना का मन तो नहीं था, पर वह अपनी दोस्ती भी नहीं तोड़ना चाहती थी. उस ने अपनी मां से पूछे बिना ही मेनका को झुमके दे दिए और संभाल कर रखने की भी हिदायत दी.

रचना को जिस बात का डर था, वही हुआ. मेनका से वे झुमके खो गए. दरअसल, शादी के घर में एक दिन जब वह बाथरूम से नहा कर निकली तो

वे झुमके वहीं भूल गई. फिर उन झुमकों पर किस ने हाथ साफ किया, पता ही नहीं चला.

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मेनका की तो जैसे जान सूख गई. मातापिता से खूब डांट खाई, लेकिन उस की असली समस्या तो यह थी कि रचना का सामना कैसे करेगी. और जब रचना को यह खबर लगी तो उस का रोरो कर बुरा हाल हो गया. घर में पता चला तो सब को बहुत दुख हुआ, पर अब कर भी क्या सकते थे. मेनका से झुमकों के पैसे भी किस मुंह से मांगते. लेकिन उस दिन के बाद रचना और मेनका में पहले जैसी पक्की दोस्ती नहीं रही.

यह कोई एक किस्सा नहीं है, बल्कि न जाने कितने सालों से हमारे देश में औरतों और लड़कियों में एकदूसरे के गहने उधार लेने का चलन सा रहा है.

क्या वजह है कि औरतें या लड़कियां कुछ समय के लिए ही सही, इतनी आसानी से महंगे गहनों की उधारी कर लेती हैं? इस का सब से आसान जवाब उन का गहनों के प्रति प्रेम होता है. अगर वे महंगी धातु जैसे सोने या चांदी के हों तो यह मोह पूरी तरह उमड़ने लगता है. फिर मुफ्त का माल कौन नहीं चाहेगा, क्योंकि उन्हें लगता है कि वे गहनों को संभाल कर रखेंगी. पर जब वे चोरी हो जाते हैं या उन में किसी तरह का दूसरा नुकसान हो जाता है तो फिर मचता है घमासान.

मालती और राधा के मामले में गहनों की चोरी भी नहीं हुई थी, पर गहनों को ले कर उन की दोस्ती में खटास जरूर आ गई थी. हुआ यों था कि राधा ने मालती से उस का गहनों का एक नकली सैट कुछ दिनों के लिए उधार लिया था. सैट ज्यादा महंगा भी नहीं था, पर चूंकि नकली था तो इस्तेमाल करने पर उस की पौलिश थोड़ी उतर गई थी.

जब राधा ने वह सैट वापस किया तो मालती को अपने सैट की हालत देख कर बुरा लगा. उस ने शिकायत की तो राधा ने गलती मानने के बजाय कहा कि सैट की पौलिश तो पहले से उतरी हुई थी. बस, इसी बात पर मामला इतना बिगड़ा कि आज वे दोनों एकदूसरे का मुंह तक देखना पसंद नहीं करती हैं.

पराए गहनों के लिए यह प्यार गांवदेहात की औरतों में भी खूब देखा जाता है. बड़े भाई की शादी हुई नहीं कि छोटी बहन भाभी के गहनों पर अपना हक समझने लगती है. गहने क्या वह तो उस की सिंगारदानी, चमकीले कपड़ों को अपनी बपौती मानने लगती है. भाभी थोड़ी चिंता जता दे या इशारों में मना करने की कोशिश करे तो पूरा ससुराल पक्ष ही उसे दुश्मन समझने लगता है.

यहां पर दहेज के सामान को साझा इस्तेमाल करने का मनोविज्ञान ससुराल वालों पर हावी रहता है कि बाप ने बेटी को जो दिया, उस पर बहू की सास, ननद और भाभीदेवरानियों का हक बनता है. इस में गहनों के इस्तेमाल और उन के खोने या खराब होने पर मचे बवाल से ही कई बार घर बनने के बजाय बिगड़ते चले जाते हैं.

रिश्ते की हमउम्र कुंआरी बहनों में गहनों की अदलाबदली की यह रीत ज्यादा दिखाई देती है. चूंकि उन्हें गहने मातापिता या बड़े भाई बनवा कर देते हैं इसलिए उन्हें उन की कीमत का अंदाजा नहीं होता है. पर उन की इस उधारी के गहनों के नुकसान का खमियाजा कई बार उन के आपसी संबंधों को कमजोर कर देता है.

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लिहाजा, जो गहने आपसी रिश्तों में खटास लाएं, उन की उधारी नहीं करनी चाहिए. खुद के पास जैसे भी गहने हों असली या नकली, कम या ज्यादा, उन्हीं से काम चला लेना चाहिए. वैसे भी आजकल गांव हों या शहर, औरतों के साथ होने वाली लूट की वारदातों में इतनी ज्यादा बढ़ोतरी हो गई है कि गहनों को मांग कर पहनने की सोच को ही दूर से सलाम कर देना चाहिए. सादगी से रहें, सुखी रहें.

प्यार या समझौता : भाग 2

लेखिका- ममता परनामी

मैं सीमा को मना नहीं कर पाई और अगले दिन आने को कह दिया.

अगले दिन समीर के घर जा कर घंटी बजाई तो सीमा ने ही दरवाजा खोला. मुझे देख कर वह बोली, ‘‘अंदर आइए न, मेघाजी, मैं तो आप का ही इंतजार कर रही थी.’’

‘‘कैसी हो, सीमा,’’ मैं ने पूछा, ‘‘तुम्हारी पढ़ाई कैसी चल रही है.’’

‘‘पढ़ाई तो ठीक चल रही है, मेघाजी,’’ सीमा बोली, ‘‘बस, समीर भैया की चिंता है. हम दोनों का एकदूसरे के सिवा है ही कौन और मैं तो होस्टल में रहती हूं और भैया यहां पर बिलकुल अकेले. जब से मैं घर आई हूं देख रही हूं कि भैया बहुत उदास रहने लगे हैं. आप ही देखो न कितना बुखार है लेकिन ढंग से दवा भी नहीं लेते. आप तो उन की दोस्त हैं, आप ही बात कीजिए, शायद उन की समझ में आ जाए.’’

मैं सीमा के साथ समीर के कमरे में गई तो वह लेटे हुए थे. बहुत कमजोर लग रहे थे. मैं ने माथे पर हाथ रखा तो बुखार अभी भी था. मैं ने सीमा से कुछ खाने के लिए और ठंडा पानी लाने के लिए कहा और समीर को बैठने में मदद करने लगी.

सीमा खिचड़ी ले आई. मैं खिलाने लगी तो समीर बच्चों की तरह न खाने की जिद करने लगे. मैं ने कहा, ‘‘समीरजी, आप अपना नहीं तो कम से कम सीमा का तो खयाल कीजिए… वह कितनी परेशान है.’’

खैर, उन्हें खिचड़ी खिला कर दवा दी और लिटा दिया. मैं माथे पर पानी की पट्टियां रखने लगी. कुछ देर बाद बुखार कम हो गया. समीर सो गए तो मैं ने सीमा से कहा, ‘‘सीमा, मैं जा रही हूं. तुम अपने भैया का ध्यान रखना. अगर हो सका तो मैं कल फिर आने की कोशिश करूंगी.’’

मैं घर आ गई लेकिन दिमाग में एक सवाल घूम रहा था कि क्या समीर की इस हालत की जिम्मेदार मैं हूं? क्या मेरी बेरुखी से वह इतने आहत हो गए कि उन की तबीयत खराब हो गई. मुझे ऐसा व्यवहार नहीं करना चाहिए था. ये बातें सोचतेसोचते न जाने कब मेरी आंख लग गई.

फोन की घंटी की आवाज सुन कर मेरी नींद खुली. घड़ी में सुबह के 8 बज चुके थे.

आज भी स्कूल की छुट्टी हो गई, यह सोचते हुए मैं ने फोन उठाया तो दूसरी तरफ सीमा थी. मैं ने उस से पूछा, ‘‘समीरजी की तबीयत कैसी है?’’

‘‘मेघाजी, भैया ठीक हैं. बस, मुझे एक जरूरी काम से अपनी सहेली के साथ बाहर जाना है और भैया अभी इस लायक नहीं हैं कि उन्हें अकेला छोड़ा जा सके इसलिए आप की मदद की जरूरत है. क्या आप कुछ देर के लिए यहां आ सकती हैं?’’

मैं ने कहा, ‘‘ठीक है, मैं आती हूं,’’ और फोन रख दिया. मैं तैयार हो कर वहां पहुंची तो सीमा और उस की सहेली मेरा ही इंतजार कर रही थीं. वह मुझे थैंक्स कहती हुई चली गई.

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मैं ने समीर के कमरे में जा कर देखा तो वह सो रहे थे. मैं ड्राइंगरूम में आ कर सोफे पर बैठ गई और मेज पर रखी किताब के पन्ने पलटने लगी. थोड़ी देर बाद समीर के कमरे में कुछ आवाज हुई…मैं ने जा कर देखा तो समीर अपने बिस्तर पर नहीं थे. शायद बाथरूम में थे, मैं वहां से आ गई और रसोई में जा कर चाय का पानी चूल्हे पर रख दिया. चाय बना कर जब मैं बाहर आई तो समीर नहा चुके थे. उन की तबीयत पहले से ठीक लग रही थी लेकिन कमजोरी बहुत थी. मुझे देख कर वह चौंक गए. शायद उन्हें पता नहीं था कि मैं वहां पर हूं.

‘‘मेघाजी…आप, सीमा कहां है?’’

‘‘उसे किसी जरूरी काम से जाना था, आप की तबीयत ठीक नहीं थी. अकेला छोड़ कर कैसे जाती इसलिए मुझे बुला लिया. आप चाय पीजिए, वह आ जाएगी.’’

‘‘सीमा भी पागल है. अगर उसे जाना था तो चली जाती…आप को क्यों परेशान किया,’’ समीर बोले.

मैं ने समीर की तरफ देखा और चुपचाप चाय का प्याला उन्हें थमा दिया. हम खामोशी से चाय पीने लगे. कुछ भी कहने की हिम्मत न तो मुझ में थी और न शायद उन में.

चाय पी कर मैं बर्तन रसोई में रखने के लिए उठी तो समीर ने मेरा हाथ पकड़ लिया. एक सिहरन सी दौड़ गई मेरे पूरे शरीर में. टे्र हाथ से छूट जाती अगर मैं उसे मेज पर न रख देती. मैं ने हाथ छुड़ाने की कोशिश की तो उन्होंने और कस कर मेरा हाथ पकड़ लिया और बोले, ‘‘मेघा, तुम ने मेरे लिए यह सबकुछ क्यों किया?’’

समीर के मुंह से अपने लिए पहली बार मेघाजी की जगह मेघा और आप की जगह तुम का उच्चारण सुन कर मैं चौंक गई. इस तरह से मुझे पुकारने का अधिकार उन्होंने कब ले लिया. मैं कुछ बोल ही नहीं पा रही थी कि उन्होंने फिर से पूछा, ‘‘मेघा, तुम ने मेरे सवालों का जवाब नहीं दिया. तुम ने मेरे लिए यह सब क्यों किया?’’

बहुत हिम्मत कर के मैं ने अपना हाथ छुड़ाया और कहा, ‘‘एक दोस्त होने के नाते मैं इतना तो आप के लिए कर ही सकती थी, इतना भी अधिकार नहीं है मेरा?’’

‘‘पहले तुम यह बताओ कि क्या हमारे बीच अभी भी सिर्फ दोस्ती का रिश्ता है? मेघा, तुम्हारा अधिकार क्या है और कितना है इस का फैसला तो तुम्हें ही करना है,’’ समीर बोले.

मैं ने अपनी नजरें उठाईं तो समीर मुझे ही देख रहे थे. कितना दर्द, कितना अपनापन था उन की आंखों में. दिल चाह रहा था कि कह दूं…समीर, मैं आप से बेइंतहा प्यार करती हूं…नहीं जी सकती मैं आप के बिना. अपने सभी जज्बात, सभी एहसास उन के सामने रख दूं…उन की बांहों में समा जाऊं और सबकुछ भुला दूं लेकिन होंठ जैसे सिल गए थे.

बिना कुछ कहे ही हम एकदूसरे के जज्बात और हालात समझ रहे थे. मुझे भी यह एहसास हो चुका था कि समीर भी मुझे उतना ही प्यार करते हैं जितना मैं उन्हें करती हूं. वह भी अपने प्यार की मौन सहमति मेरी आंखों में पढ़ चुके थे और शायद उस अस्वीकृति को भी पढ़ लिया था उन्होंने. कुछ नहीं बोल पाए…हम बस, यों ही जाने कितनी देर बैठे रहे. फिर अचानक समीर ने मेरे चेहरे को अपने हाथों में लिया और मेरे माथे को चूम लिया. अब मैं खुद को रोक नहीं पाई और उन की बांहों में समा गई. कितनी देर हम रोते रहे मुझे नहीं पता. दिल चाह रहा था कि यह पल यहीं रुक जाए और हम यों ही बैठे रहें.

फिर समीर ने कहा, ‘‘मेघा, तुम जहां भी रहो खुश रहना और एक बात याद रखना कि मुझे तुम्हारी आंखों में आंसू और उदासी अच्छी नहीं लगती. मैं चाहे तुम्हारे पास न रहूं, लेकिन तुम्हारे साथ हमेशा रहूंगा. बहुत देर हो गई है, अब तुम जाओ.’’

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मैं ने अपना बैग उठाया और वहां से अपने घर आने के लिए निकल पड़ी. इसी प्यार ने एक बार फिर मुझे नए मोड़ पर ला कर खड़ा कर दिया. मैं ने सोच लिया था कि अब मैं समीर से कभी नहीं मिलूंगी. आज तो उस तूफान को हम पार कर गए, खुद को संभाल लिया, लेकिन दोबारा मैं ऐसा शायद न कर पाऊं और मैं नहीं चाहती थी कि समीर के आगे कमजोर पड़ जाऊं.

मैं अपने प्यार को अपना तो नहीं सकती थी लेकिन उसी प्यार को अपनी शक्ति बना कर अपने फर्ज के रास्ते पर कदम बढ़ा चुकी थी. मैं ने अगले दिन स्कूल में अपना इस्तीफा भेज दिया. मैं ने एक बार फिर प्यार और समझौते में से समझौते को चुन लिया.

मेरे अंदर जो प्यार समीर ने जगाया वह एहसास, उन की कही हर एक बात, उन के साथ बिताए हर एक पल मेरी जिंदगी का वह अनमोल खजाना है, जो न तो कभी कोई देख सकता है और न ही मुझ से छीन सकता है. कितना अजीब सा एहसास है न यह प्यार, कब किस से क्या करवाएगा, कोई नहीं जानता. यह एहसास किसी के लिए जान देने पर मजबूर करता है तो किसी की जान लेने पर भी मजबूर कर सकता है.

दीवाली 2019 : राजीव और उसके परिवार के जीवन में आई नई खुशियां

‘‘देखो, शालिनी, मैं तुम से कितनी बार कह चुका हूं कि यदि साल में एक बार तुम से पैसे मांगूं तो तुम मुझ से लड़ाई मत किया करो.’’

‘‘साल में एक बार? तुम तो एक बार में ही इतना ज्यादा हार जाते हो कि मैं सालभर तक चुकाती रहती हूं.’’

शालिनी की व्यंग्यभरी बात सुन कर राजीव थोड़ा झेंपते हुए बोला, ‘‘अब छोड़ो भी. तुम्हें तो पता है कि मेरी बस यही एक कमजोरी है और तुम्हारी यह कमजोरी है कि इतने सालों में भी मेरी इस कमजोरी को तुम दूर नहीं कर सकीं.’’

राजीव के तर्क को सुन कर शालिनी भौचक्की रह गई. राजीव जब चला गया तो शालिनी सोचने लगी कि उस के जीवन की शुरुआत ही कमजोरी से हुई थी. एमए का पहला साल भी वह पूरा नहीं कर पाई थी कि उस के पिता ने राजीव के साथ उस की शादी की बात तय कर दी. राजीव पढ़ालिखा था और देखने में स्मार्ट भी था.

सब से बड़ी बात यही थी कि उस की 40 हजार रुपए महीने की आमदनी थी. शालिनी ने तब सोचा था कि वह अपने मातापिता से कहे कि वे उसे एमए पूरा कर लेने दें, पर राजीव को देखने के बाद उसे स्वयं ऐसा लगा था कि बाद में शायद ऐसा वर न मिले. बस, वहीं से शायद राजीव के प्रति उस की कमजोरी ने जन्म लिया था.उसे आज लगा कि विवाह के बाद भी वह राजीव की मीठीमीठी बातों व मुसकानों से क्यों हारती रही.

शादी के बाद शालिनी की वह पहली दीवाली थी. सुबहसुबह ही जब राजीव ने उस से कहा कि 10 हजार रुपए निकाल कर लाना तो शालिनी चकित रह गई थी कि कभी भी 1-2 हजार रुपए से ज्यादा की मांग न करने वाले राजीव ने आज इतने रुपए क्यों मांगे.

शालिनी ने पूछा, ‘‘क्यों?’’

‘‘लाओ यार,’’ राजीव हंस कर बोला था, ‘‘जरूरी काम है. शाम को काम भी बता दूंगा.’’

राजीव की रहस्यपूर्ण मुसकराहट देख कर शालिनी ने समझा था कि वह शायद उस के लिए नई साड़ी लाएगा. शालिनी दिनभर सुंदर कल्पनाएं करती रही. पर जब शाम के 7-8 बजने पर भी राजीव घर नहीं लौटा तो दुश्चिंताओं ने उसे आ घेरा. तरहतरह के बुरे विचार उस के मन में आने लगे, ‘कोई दुर्घटना तो नहीं हो गई. किसी ने राजीव की बाइक के आगे पटाखे छोड़ कर उसे घायल तो नहीं कर दिया.’

8 बजने के बाद इस विचार से कि घर की दहलीज सूनी न रहे, उस ने 4 दीए जला दिए. पर उस का मन भयानक कल्पनाओं में ही लगा रहा. पूरी रात आंखों में कट गई पर राजीव नहीं आया.

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हड़बड़ा कर जब वह सुबह उठी थी तो अच्छी धूप निकल आई थी और उस ने देखा कि दूसरे पलंग पर राजीव सोया पड़ा है. उस के पास पहुंची, पर तुरंत ही पीछे भी हट गई. राजीव की सांसों से शराब की बू आ रही थी. तभी शालिनी को रुपयों का खयाल आया. उस ने राजीव की सभी जेबें टटोल कर देखीं पर सभी खाली थीं.

‘तो क्या किसी ने राजीव को शराब पिला कर उस के रुपए छीन लिए?’ उस ने सोचा. पर न जाने कितनी देर फिर वह वहीं खड़ीखड़ी शंकाओं के समाधान को ढूंढ़ती रही थी और आखिर में यह सोच कर कि उठेंगे तब पूछ लूंगी, वह काम में लग गई थी.

दोपहर बाद जब राजीव जागा तो चाय देते समय शालिनी ने पूछा, ‘‘कहां थे रातभर? डर के मारे मेरे प्राण ही सूख गए थे. तुम हो कि कुछ बताते भी नहीं. क्या तुम ने शराब पीनी भी शुरू कर दी? वे रुपए कहां गए जो तुम किसी खास काम के लिए ले गए थे?’’

शालिनी ने सोचा था कि राजीव झेंपेगा, शरमाएगा, पर उसे धोखा ही हुआ. शालिनी की बात सुन कर राजीव मुसकराते हुए बोला, ‘‘धीरेधीरे, एकएक सवाल पूछो, भई. मैं कोई साड़ी खरीदने थोड़े ही गया था.’’

‘‘क्या?’’ शालिनी चौंक कर बोली थी.

‘‘चौंक क्यों रही हो? हर साल हम एक दीवाली के दिन ही तो बिगड़ते हैं.’’

‘‘तो तुम जुआ खेल कर आ रहे हो? 10 हजार रुपए तुम जुए में हार गए?’’ वह दुखी होते हुए बोली थी.

तब राजीव ने उस के कंधे पर हाथ रख कर कहा था, ‘‘अरे यार, सालर में एक ही बार तो रुपया खर्च करता हूं.

तुम तो साल में 5-6 हजार रुपयों की 4-5 साडि़यां खरीद लेती हो.’’

शालिनी ने सोचा कि थोड़ी ढील दे कर भी वह राजीव को ठीक कर लेगी, पर यही उस की दूसरी कमजोरी साबित हुई.पहले 10 हजार रुपए पर ही खत्म हो जाने वाली बात 20 हजार रुपए तक पहुंच गई, जिसे चुकाने के लिए अगली दीवाली आ गई थी.

पिछली बार तो उस ने छिपा कर बच्चों के लिए 10 हजार रुपए रखे थे, पर राजीव उन्हीं को ले कर चल दिया. जब राजीव रुपए ले कर जाने लगा तो शालिनी ने उसे टोकते हुए कहा था, ‘कम से कम बच्चों के लिए ही इन रुपयों को छोड़ दो,’ पर राजीव ने उस की एक न मानी.

उसी दिन शालिनी ने सोच लिया था कि अगली दीवाली पर इस मामले को वह निबटा कर ही रहेगी.

शाम को 5 बजे राजीव लौटा. बच्चों ने उसे खाली हाथ देखा तो निराश हो गए, पर बोले कुछ नहीं. शालिनी ने उन्हें बता दिया था कि पटाखे उन्हें किसी भी हालत में दीए जलने से पहले मिल जाएंगे. राजीव ने पहले कुछ देर तक इधरउधर की बातें कीं, फिर शालिनी से पूछा, ‘‘क्यों, हमारी मां के घरसे आए हुए पटाखे यों ही पड़े हैं न?’’

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शालिनी ने कहा, ‘‘पड़े थे, हैं नहीं.’’

‘‘क्या मतलब?’’

‘‘मैं ने कामवाली के बच्चों को दे दिए.’’

‘‘पर क्यों?’’

‘‘उस के आदमी ने उस से रुपए छीन लिए थे.’’

राजीव ने कुछ सोचा, फिर बोला, ‘‘ओहो, तो यह बात है. घुमाफिरा कर मेरी बात पर उंगली रखी जा रही है.’’

‘‘देखो, राजीव, मैं ने आज तक कभी ऊंची आवाज में तुम्हारा विरोध नहीं किया. तुम्हें खुद ही मालूम है कि तुम्हारी आदतें क्याक्या गजब ढा सकती हैं.’’

शालिनी की बात सुन कर राजीव झुंझला कर बोला, ‘‘ठीक है, ठीक है. मुझे सब पता है. अभी तुम्हारा बिगड़ा ही क्या है? तुम्हें किसी के आगे हाथ तो नहीं फैलाना पड़ा है न?’’

शालिनी ने कहा, ‘‘यही तो डर है. कल कहीं मुझे कामवाली की तरह किसी और के सामने हाथ न फैलाना पड़े.’’ ऐसा कह कर शालिनी ने शायद राजीव की कमजोर रग पर हाथ रख दिया था. वह बोला, ‘‘बकवास बंद करो. पता भी है क्या बोल रही हो? जरा से रुपयों के लिए इतनी कड़वी बातें कह रही हो.’’

‘‘जरा से रुपए? तुम्हें पता है कि साल में एक बार शराब पी कर बेहोशी में तुम हजारों खो कर आते हो. तुम्हें तो बच्चों की खुशियां छीन कर दांव पर लगाने में जरा भी हिचक नहीं होती. हमेशा कहते हो कि साल में एक बार ही तुम्हारे लिए दीवाली आती है. कभी सोचा है कि मेरे और बच्चों के लिए भी दीवाली एक बार ही आती है? कभी मनाई है कोई दीवाली तुम ने हमारे साथ?’’

शालिनी के मुंह से कभी ऐसी बातें न सुनने वाला राजीव पहले तो हक्काबक्का खड़ा रहा. फिर बिगड़ कर बोला, ‘‘अगर तुम मुझे रुपए न देने के इरादे पर पक्की हो तो मैं भी अपने मन की करने जा रहा हूं.’’ और जब तक शालिनी राजीव से कुछ कहती, वह पहले ही मोटरसाइकिल निकालने चला गया.

शालिनी सोचने लगी कि इन 11 सालों में भी वह नहीं समझ पाई कि हमेशा मीठे स्वरों में बोलने वाला राजीव इस तरह एक दिन में बदल सकता है.

‘कहीं राजीव दीवाली के दिन दोस्तों के सामने बेइज्जती हो जाने के डर से तो नहीं खेलता. लगता है अब कोई दूसरा ही तरीका अपनाना पड़ेगा,’ शालिनी ने तय किया.

उधर मोटरसाइकिल निकालने जाता हुआ राजीव सोच रहा था, ‘वह क्या करे? पटाखे ला कर देगा तो उस की नाक कट जाएगी. शालिनी रुपए भी नहीं देगी, उसे इस का पता था. अचानक उसे अपने मित्र अक्षय की याद आई. क्यों न उस से रुपए लिए जाएं.’ वह मोटरसाइकिल बाहर निकाल लाया.

तभी ‘‘कहीं जा रहे हैं क्या?’’ की आवाज सुन कर राजीव चौंका. उस ने देखा, सामने से अक्षय की पत्नी रमा और उस के दोनों बच्चे आ रहे हैं.

‘‘भाभी, तुम? आज के दिन कैसे बाहर निकल आईं?’’ उस ने मन ही मन खीझते हुए कहा.

‘‘पहले अंदर तो बुलाओ, सब बताती हूं,’’ अक्षय की पत्नी ने कहा.

‘‘हां, हां, अंदर आओ न. अरे इंदु, प्रमोद, देखो तो कौन आया है,’’ मोटरसाइकिल खड़ी करते हुए राजीव बोला.

इंदु, प्रमोद भागेभागे बाहर आए. शालिनी भी आवाज सुन कर बाहर आ गई, ‘‘रमा भाभी, तुम, भैया कहां हैं?’’ ‘‘बताती हूं. पहले यह बताओ कि क्या तुम लोग एक दिन के लिए मेरे बच्चों को अपने घर में रख सकते हो?’’

शालिनी ने तुरंत कहा, ‘‘क्यों नहीं. पर बात क्या है?’’

रमा ने उदास स्वर में कहा, ‘‘बात यह है शालिनी कि तुम्हारे भैया अस्पताल में हैं. परसों उन का ऐक्सिडैंट हो गया था. दोनों टांगों में इतनी चोटें आई हैं कि 2 महीने तक उठ कर खड़े नहीं हो सकेंगे. और सोचो, आज दीवाली है.’’ राजीव ने घबरा कर कहा, ‘‘इतनी बड़ी बात हो गई और आप ने हमें बताया तक नहीं?’’

रमा ने कहा, ‘‘तुम्हें तो पता ही है कि मेरे जेठजेठानी यहां आए हुए हैं. अब ये अस्पताल में पड़ेपड़े कह रहे हैं कि पहले ही मालूम होता तो उन्हें बुलाता ही नहीं. कहते हैं तुम लोग जा कर घर में रोशनी करो. मेरा तो क्या, किसी का भी मन इस बात को नहीं मान रहा.’’

राजीव और शालिनी दोनों ही जब चुपचाप खड़े रहे तो रमा ही फिर बोली, ‘‘अब मैं ने और उन के भैया ने कहा कि हमारा मन नहीं है तो वे कहने लगे, ‘‘मैं क्या मर गया हूं जो घर में रोशनी नहीं करोगी? आखिर थोड़ी सी चोटें ही तो हैं. बच्चों के लिए तो तुम्हें करना ही पड़ेगा.’’

‘‘मैं सोचती रही कि क्या करूं. तुम लोगों का खयाल आया तो बच्चों को यहां ले आई. तुम्हें कोई एतराज तो नहीं है?’’

इंदु, जो रमा की बातें ध्यान से सुन रही थी, राजीव से बोली, ‘‘पापा, आप राकेश, पिंकी के लिए भी पटाखे लाएंगे न?’’

राजीव चौंक कर बोला, ‘‘हां, हां. जरूर लाऊंगा.’’ राजीव ने कह तो दिया था, पर उसे समझ में नहीं आ रहा था कि क्या करे. वह इसी उधेड़बुन में था कि शालिनी अंदर से रुपए ला कर उस के हाथों में रखती हुए बोली, ‘‘जल्दी लौटिएगा.’’

तभी इंदु बोली, ‘‘पापा, आप को अपने दोस्त के घर जाना है न.’’

‘दोस्त के घर,’ राजीव ने चौंक कर इंदु की ओर देखा, ‘‘हां पापा, मां कह रही थीं कि आप के एक दोस्त के हाथ और पैर टूट गए हैं, वहीं आप उन के लिए दीवाली मनाने जाते हैं.’’

राजीव को समझ में नहीं आया कि क्या कहे. उस ने शालिनी को देखा तो वह मुसकरा रही है.

मोटरसाइकिल चलाते हुए राजीव का मन यही कह रहा था कि वह चुपचाप अपनी मित्रमंडली में चला जाए, पर तभी उसे अक्षय की बातें याद आ जातीं. राजीव सोचने लगा कि एक अक्षय है जो अस्पताल में रह कर भी बच्चों की दीवाली की खुशियों को ले कर चिंतित है और एक मैं हूं जो बच्चों को दीवाली मनाने से रोक रहा हूं. शालिनी भी जाने क्या सोचती होगी मेरे बारे में? उस ने बच्चों से उन के पिता की गलती छिपाने के लिए कितनी अच्छी कहानी गढ़ कर सुना रखी है.

मोटरसाइकिल का हौर्न सुन कर सब बच्चे भाग कर बाहर आए तो देखा आतिशबाजियां और मिठाई लिए राजीव खड़ा है. प्रमोद कहने लगा, ‘‘इंदु, इतनी सारी आतिशबाजियां छोड़ेगा कौन?’’

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‘‘ये हम और तुम्हारी मां छोड़ेंगे,’’ राजीव ने कहा और दरवाजे पर आ खड़ी हुई शालिनी को देखा जो जवाब में मुसकरा रही थी. शालिनी ने शरारत से पूछा, ‘‘रुपए दूं, अभी तो रात बाकी है?’’

राजीव ने जब कहा, ‘‘सचमुच दोगी?’’ तो शालिनी डर गई. तभी राजीव शालिनी को अपने निकट खींचते हुए बोला, ‘‘मैं कह रहा था कि रुपए दोगी तो बढि़या सा एक खाता तुम्हारे नाम से किसी बैंक में खुलवा दूंगा.’’

क्या आप जानते हैं, बिस्किट पर क्यों होते हैं छोटे छेद

अकसर  नाश्ते में  आप जरूर बिस्किट खाते होंगे. आजकल बिस्किट के कई डिजाइन हैं. इन डिजाइन के अलावा बिस्किट पर छोटे-छोटे छिद्र भी होते हैं. क्या आपने इस पर कभी गौर किया हैं.

जी हां,  बिस्किट पर जो छोटे-छोटे छेद बनाए जाते हैं, वे वास्तव में किसलिए होते हैं. क्या आप इसके बारे में जानते हैं? कई  लोगों ये भी कहेंगे  कि ये छेद  बिस्किट का डिजाइन होता है, लेकिन  ये वास्तव में सच नहीं है. तो चलिए आज  आपको बताते हैं कि बिस्किट पर छोटे-छोटे छेद क्यों  होते हैं.

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दरअसल आप  क्रीम वाले और सौफ्ट बिस्किट पर ऐसे छेद  देखे होंगे. इस तरह के छेद बिस्किट से भाप निकलने के लिए  किये जाते हैं. दरअसल, बिस्किट को बनाने के दौरान उसके अंदर पहले क्रीम भरते हैं. उस दौरान वे गर्म होते हैं फिर ऊपर से बिस्किट रखते हैं. अंदर से भाप निकलने की जगह नहीं होगी तो बिस्किट टूट जाएंगे और उन्हें मैनेज करना मुश्किल हो जाएगा. इसलिए बिस्किट पर छोटे-छोटे छेद बनाए जाते हैं.

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दीवाली स्पेशल : पेंट्स से सजाएं पेंटिंग सी दीवारें

दीवारें भी अब बोलती हैं. हर दीवार का अपना महत्त्व होता है. इन का रंगरोगन इन के महत्त्व को देखते हुए किया जाता है. दीवारें तब बोलती हैं जब इन को पेंट्स के जरिए पेंटिंंग सा सजाया जाता है. एक जमाना था जब दीवारों को सफेद चूने से रंगा जाता था. समय के साथ बदलाव हुए तो चूने में रंग मिलाया जाने लगा. बाद में चूने की जगह डिस्टैंपर और सीमेंट मिक्स कलर आने लगे. अब तरहतरह के रंग आने लगे हैं. इन में औयल बेस्ड कलर प्रमुख हैं. दीवारों पर टैक्स्चर पेंट का दौर है. रंगों द्वारा दीवारों को एंटीक, इनफिनिटैक्स, स्टुडो, ड्यून, टैक्सटाइल, मैटेलिक, स्पैशल इफैक्ट और सफारी इफैक्ट्स भी दिए जा सकते हैं. ऐसे में लोग एक ही कमरे में अलगअलग इफैक्ट्स देने के लिए दीवारों पर अलगअलग रंग भी करने लगे हैं.

लखनऊ की एकता सिंह को अपने

ई-बाजार के लिए शोरूम तैयार करना था. शोरूम के 4 हिस्से थे. एक हिस्से में औफिस था. दूसरा हिस्सा मीटिंग के लिए था. तीसरे हिस्से में शोरूम की वह जगह थी जिस में लोग अपनी पसंद की ड्रैस का चुनाव करते थे. सब से अहम हिस्सा वह था जहां पर उन की वर्कशौप थी. वहीं लोगों की पंसद के कपडे़ तैयार होते थे. एकता का मन था कि हर हिस्सा अपनी पहचान के अनुसार ही दिखे. ऐसे में एक इंटीरियर डिजाइनर की सलाह पर उन्होंने अपने कमरों को अलग रंग, डिजाइन के पेंट्स से रंगरोगन कराया. ऐसा करने से उन के घर के हर कमरे में अलग फीलिंग आने लगी. एकता कहती हैं, ‘‘कलर्स आप के मूड को बदलने की क्षमता रखते हैं. कई बार कस्टमर बहुत तनाव में रहता है. ऐसे में जरूरी है कि शोरूम में आते ही उस को अच्छा सा फील हो. इस के बाद वह कस्टमर आप से खुश हो कर ही जाएगा.’’

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हर रंग कुछ कहता है

प्रतिष्ठा इनोवेशंस की आर्किटैक्ट प्रज्ञा सिंह कहती हैं, ‘‘जिस तरह अलगअलग तरह की खशबू और रोशनी लोगों को पसंद आती है उसी तरह दीवारों पर अलगअलग किस्म के रंग भी लोगों को पसंद आते हैं. अब दीवारों पर रंगरोगन भी इंटीरियर डिजाइन का हिस्सा हो गया हैं. कई बार बदलते मौसम के हिसाब से भी लोग रंग पसंद करते हैं. कमरे के माहौल को बदलने के लिए जरूरी नहीं है कि चारों दीवारों का रंग बदला जाए. अब एक ही दीवार के रंग को बदलने से कमरे का पूरा लुक बदल जाता है. जैसे चारों दीवारों में से एक दीवार पर एंटीक सा कुछ देखना है तो एंटीक लुक दिखाने वाले रंग का प्रयोग किया जा सकता है. इस में बाकी 3 दीवारों का रंग बदलने की जरूरत नहीं होती है. ऐसे में सस्ते में ही कमरे का लुक बदला जा सकता है.’’

एक दीवार का रंग अलग रखने से केवल कमरे का लुक ही नहीं बदलता बल्कि कमरा बड़ा और खुलाखुला दिखने लगता है. रंगों के अलगअलग टैक्स्चर के अलावा 2 कौंबिनेशन में भी रंग होने लगे हैं. इन में औरेंज ग्रीन, पिंक ब्लू और वायलेट गोल्डन प्रमुख हैं. इस से कमरे खुलेखुले से लगते हैं. ऐसे में रंगों से ही दीवारों की सजावट पूरी हो जाती है. अलग से दीवार की सजावट की जरूरत नहीं पड़ती. अब पूरी की पूरी दीवार  किसी पेंटिंग की तरह दिखती है. हर सीजन के आने पर केवल एक दीवार का रंग बदल कर पूरे कमरे के रंग को बदला जा सकता है.

रंगों में दिखे बाहरी दुनिया

एंटीक, इनफिनिटैक्स, स्टुडो, ड्यून, टैक्सटाइल, मैटेलिक, स्पैशल इफैक्ट और सफारी इफैक्ट रंगों से दीवार को अलग तरह से सजाया जा सकता है. अगर कमरे को एंटीक लुक देना है तो रौयल प्ले एंटिकों का प्रयोग किया जा सकता है. इस से दीवार को पूरी तरह से एंटीक यानी पुरानी इमारत का लुक दिया जा सकता है. ऐसे में कमरे के अंदर बैठ कर किसी पुरानी ऐतिहासिक इमारत में बैठने का एहसास होने लगता है. ऐसे ही अगर रेगिस्तान के रंगों को देखना है तो सफारी शेड्स के रंगों का प्रयोग किया जा सकता है. कुछ रंग स्पैशल इफैक्ट्स वाले भी होते हैं. इन के इस्तेमाल से दीवार पर अलग ही रंग दिखता है. पत्थर सी दीवार देखनी है तो दूसरे रंगों का प्रयोग कर सकते हैं. कुछ लोगों को जीवंत रंग पंसद आते हैं, ऐसे में वे जीवंत रंगों के लिए इनफिनिटैक्स का प्रयोग कर सकते हैं.

रंगों द्वारा केवल एक कमरे की ही दीवार को उस की पहचान नहीं दिलाई जा सकती. कमरे को अलग पहचान भी दी जा सकती है, जैसे किचन, बाथरूम, बच्चों का कमरा, बैडरूम, ड्राइंगरूम और लौबी. हर कमरे को उस की पहचान का रंग दिया जा सकता है.

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बच्चों के कमरों को ले कर अब तरहतरह के प्रयोग होने लगे हैं. कुछ लोग आज भी यह मानते हैं कि दीवारों पर बच्चों द्वारा लिखना दीवार को खराब नहीं करता बल्कि वह बच्चे में सीखने की प्रक्रिया को बढ़ाता है. ऐसे में लोग बच्चों के रहने वाले कमरे की दीवार को ऐसा जरूर तैयार कराते हैं जिस से बच्चा कुछ न कुछ लिखने लगे. यह देख कर खुश होना एक स्वाभाविक प्रक्रिया होती है. बच्चे द्वारा लिखी गई यह दीवार भी किसी खूबसूरत पेंटिंग से कम नहीं होेती. ऐसे में कुछ रंगों के डिजाइन ऐसे आते हैं जिन के प्रयोग करने से दीवार पर बच्चों के लिखने का एहसास होता है.

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