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रंगोली ने कंगना को बताया रेखा की कौपी, तो फैंस का ये रहा रिएक्शन

बौलीवुड आदाकारा कंगना रनौत की बहन रंगोली चंदेल  आए दिन विवादों में घिरी रहती है.  मशहूर आदाकार रेखा के जन्मदिन पर रंगोली चंदेल  अपनी बहन को लेकर ऐसा कुछ कह दिया. जिससे फैंस उन्हें ट्रोल करने लगे. जी हां, दरअसल रंगोली चंदेल मशहूर आदाकारा रेखा को सोशल मीडिया पर बर्थ डे विश करना चाह रही थीं.

बता दें, अभिनेत्री रेखा के बर्थडे पर रंगोली ने ट्वीट करते हुए कहा कि आज मैं कंगना को एक्सपोज करूंगी. वो रेखा की सस्ती कौपी हैं. ये कुछ तस्वीरें हैं. आप देखिए और डिसाइड कीजिए. हालांकि रंगोली के इस ट्वीट पर कई लोगों ने उन्हें ट्रोल किया. और काफी सारे कमेंटस भी आने लगे. आपको यूजर्स के कुछ कमेंट्स बताते हैं.

 

एक यूजर्स ने लिखा कि कंगना, रेखा के पैर के धूल के बराबर भी नहीं है. तो वही दूसरे यूजर्स ने कहा कि रेखा एक क्लासी और लेजेंड महिला हैं लेकिन कंगना मुंहफट है और वे कभी भी रेखा के स्तर की बराबरी नहीं कर पाएंगी. एक शख्स ने ये भी लिखा कि वे सिर्फ राखी सावंत की कौपी हो सकती हैं,  रेखा की नहीं.

आपको बता दें कि कंगना और रेखा एक दूसरे के प्रति प्रेम को पहले भी जाहिर कर चुकी हैं. रेखा ने कंगना की तारीफ करते हुए ये भी कहा था कि अगर मेरी बेटी होती तो वो जरुर कंगना की तरह ही होती. रेखा ने उन्हें रियल लाइफ झांसी की रानी भी कहा था जब उनके द्वारा डायरेक्ट की गई फिल्म मणिकर्णिका रिलीज हुई थी. इस फिल्म में कंगना ने मेन लीड भी प्ले किया था.

बिन सजनी घर : भाग 1

टिंगटौंग, टिंगटौंग…लगातार बजती दरवाजे की घंटी से समीर हड़बड़ा कर उठ बैठा. रात पत्नी मौली को मुंबई के लिए रवाना कर एयरपोर्ट से लौटा तो घोड़े बेच कर सोया था. आज दूसरा शनिवार था, औफिस की छुट्टी जो थी, देर तक सोने का प्लान किस कमबख्त ने भंग कर दिया. वह अनमनाया सा स्लीपर के लिए नीचे झुका, तो रात में उतार फेंके बेतरतीब पड़े जूतेमोजे ही नजर आए. घंटी बजे जा रही थी, साथ ही मेड की आवाज-

‘‘अब जा रही हूं मैं, साहब, 2 बार पहले भी लौट चुकी हूं.’’

समीर ने घड़ी देखी, उफ, 10 बज गए, मर गया, ‘‘अरे रुको, रुको, आता हूं.’’ वह नंगेपांव ही भागा. मोजे के नीचे बोतल का ढक्कन, जो कल पानी पी कर बेफिक्री से फेंक दिया था, पांव के नीचे आया और वह घिसटता हुआ सीधा दरवाजे से जा टकराया. माथा सहलाते हुए दरवाजा खोला, तो मेड ने गमले के पास पड़ी दूध की थैली और अखबार उसे थमा दिए.

‘‘क्या साहब, चोट लगी क्या?’’ खिसियाया सा ‘कोई नहीं’ के अंदाज में उस ने सिर हिलाया था.

‘‘मैं तो अब वापस घर को जाने वाली थी,’’ कह कर रामकली ने दांत निपोरे, ‘‘घर पर बच्चे खाने के लिए बैठे होंगे.’’

‘‘अरे मुझे क्यों थमा रही है, बाकी काम बाद में करना, पहले मुझे चाय बना दे और यह दूध भी उबाल दे. बाकी मैं कर लूंगा,’’ समीर माथा सहलाते स्लीपर ढूंढ़ता बाथरूम की ओर बढ़ गया.

चाय तैयार थी. उस ने टीवी औन किया, न्यूज चैनल लगा, चाय की चुस्कियों के साथ पेपर पढ़ने लगा.

साहब, ‘‘मोटर सुबह नहीं चलाया क्या आप ने, पानी बहुत कम कम आ रहा, ऐसे तो काम करते घंटों लग जाएंगे, साहब.’’

समीर की जबान दांतों के बीच आ गई. शाम को मौली ने मेरे कपड़े धोए थे, बोला भी था कि सुबह मोटर याद से चला लेना वरना पानी नहीं मिलेगा?

‘‘मैं भूल गया, खाली किचेनकिचेन कर लो और जाओ. वैसे भी घर कोई गंदा नहीं रहता. मौली फुजूल में करवाती रहती है सफाई, कुछ ज्यादा ही शौक है उसे.’’

काम खत्म कर मेड जाने को हुई, ‘‘बाहर बालकनी से कपड़े याद से उतार लेना, साहब, अभी सूखे नहीं. बारिश वाला मौसम हो रहा है. दरवाजा बंद कर लो, साहब.’’ वह चली गई.

‘‘ठीक है, ठीक है, जाओ.’’

चलो बला टली. अब आराम से जैसे चाहे रहूंगा. वह सोफे पर कुशन पर कुशन लगा टांगें फैला कर लेट गया. कितना आराम है. वाह, 2 बजे मैच शुरू होने वाला है, अब मजे से देखूंगा. वरना मौली सोफे पर कहां लेटने देती. उस के दिमाग में अचानक आया कि रोहित, जतिन, सैम को भी साथ मैच देखने के लिए बुला लेता हूं, कुछ दिन तो पहले सी आजादी एंजौय करूं.

उस ने कौल किया तो एक के साथ दो दो और आ गए.

‘‘अरे वाह, यार रितेश, विवेक, मोहित तुम भी. अरे वाह, कमाल हो गया, यार, कितने दिनों बाद हम मिले.’’

‘‘तेरी तो शादी क्या हुई, दोस्तों को पराया ही कर दिया, और आज बुलाया है वह भी जब भाभी घर पर नहीं.’’

‘‘तभी तो हिम्मत पड़ी बेचारे की,’’ सभी हंसने लगे.

‘‘यार, कहां भेज दिया भाभी को?’’

‘‘और कहां, मुंबई यार, हफ्तेदस दिनों के लिए. मायका भी है और उस की सहेली की शादी भी.’’

‘‘तब तो आजादी, बेटा समीर, 10 दिन मजे कर.’’

‘‘अच्छा, बोल, चाय या कौफी पीनी है तुम सब को? हां, तो किचेन उधर है और फ्रिज इधर. बना लो मेरे लिए भी.’’ समीर हंसा था.

फिर तो जिस का मन जो आया, जब आया, बनाया, खायापिया. खाना समीर ने बाजार से मंगवा लिया. डायनिंग टेबल तक कोई न गया, वहीं सोफे के पास सैंटर टेबल घसीट कर सब ने खापी लिया. मैच खत्म हुआ तो जीत का जश्न मनाने के लिए पिज्जापेस्ट्री की पार्टी हुई. सारे घर में हर प्रकार के जूठे बरतनों की नुमाइश सी लग गई. खानेपीने के सामान भी मनमरजी से बिखरे पड़े थे जैसे. उन के जाने के बाद समीर का ध्यान घर के बिगड़े नक्शे की ओर गया, शुक्र मनाया कि मौली घर पर नहीं है, वरना इतना एंजौय न कर पाता. वह अभी ही बिखरा हुआ सब सही करवाती. कोई नहीं, कल छुट्टी है. कौन सा औफिस जाना है, मिनटों में सब अस्तव्यस्त ठीक कर लूंगा कल. तभी बिजली कड़की और घर की लाइट गुल हो गई. घुप अंधेरा. कोई सामान तो ठिकाने पर था नहीं. पौकेट में हाथ डाला तो मोबाइल भी नहीं था, जो टौर्च यूज कर लेता. शायद किचेन में रखी थी. वह तेजी से किचेन की ओर लपका तो टेबल से टकराया और नीचे गिर गया. उस ने उठने के लिए टेबल का सहारा लिया तो फैले रायते में हाथ सन गया. कटोरे का रायता टेबल से नीचे गिर कर कपड़ेजूते पर से होता कारपेट पर फैल गया था. ‘क्या मुसीबत है…चल कोई नहीं, 10 मिनट तो लगेंगे, हो जाएगा सब साफ,’ सोचते हुए सोफा कवर से हाथ साफ कर डाले. फिर ध्यान आया, अरे यार, एक और काम बढ़ा लिया. कोई नहीं, मेड को ऐक्स्ट्रा पैसे दे दूंगा, ऐसी क्या आफत है?

आखिरकार माचिसमोमबत्ती टटोलते हुए सही जगह पहुंच गया.

‘शुक्र है, मिल गई अपनी जगह,’ उस ने राहत की सांस ली, मोमबत्ती जलाई तो उस के चेहरे की मुसकराहट के साथ रोशनी चारों ओर फैल गई.

‘अब साले मेरा खून पी रहा था…’ उस ने पटाक से हाथ पर खून पीते मच्छर को मारा था. मौली 10 दिनों से सचेत कर रही थी समीर को. ‘इन्वर्टर का पानी कब से खत्म है, डाल दो वरना किसी दिन लाइट जाएगी तब पता चलेगा, मोटेमोटे मच्छर काटेंगे, पानी ला कर भी रख दिया.’ याद आया था समीर को. कैंडल एक ओर जमा कर, उस ने पानी डाल कर इन्वर्टर चालू किया, तो लाइट आ गई. कमरा प्रकाश से नहा गया.

‘जय हो मौली श्री की, यार तुम ने बौटल ला कर न रखी होती तो आज ये मच्छर मेरा कचूमर निकाल देते. डेंगू, चिकनगुनिया करवा ही डालते. उफ, नहीं … थैंक्यू मौली डियर.’

प्रकाश में कमरे में बिखरी गंदगी चमकने लगी और कारपेट पर फैला रायता भी. उस का ध्यान अपने कपड़ों की ओर गया.

पहले तो इन्हें बदलता हूं…कहां गया वो स्लीपिंग सूट, नाहक ही वह खूंटी पर ढूंढ़ रहा था. वह बैड पर तो सिकुड़ा सा एक ओर पड़ा था जहां सुबह उतार कर फेंका था. मौली थोड़े ही यहां है जो झाड़ कर टांग देती. वह मुसकराया. मौली को याद करते हुए बिस्तर पर औंधा लेट गया.

बादल जोर से कड़के और मूसलाधार बारिश शुरू हो गई.

‘उफ, भूल गया’, हड़बड़ा कर खड़ा हो गया, ‘बालकनी से कपड़े ही नहीं उतारे.’

वह भागा, सारे कपड़े पानी से सराबोर थे. सुबह से कई बार बूंदाबांदी पहले ही झेल चुके थे. थोड़ी गंध सी आने लगी थी कपड़ों में. उस ने नाक सिकोड़ी, ‘उंह, कैसी अजीब गंध है. क्या दिमाग पाया है बेटा समीर, उतारने से फायदा क्या. और धुलने दे इन्हें बारिश के साफ पानी में. चल, सो जा.’ वह कमरे में आ कर वाशरूम गया. वहां तो और सड़ी सी गंध व्याप्त थी.

‘छिछि दिनभर यारों ने जाजा कर यह हाल किया है. शिट…’ फ्लश किया, तो हुआ ही नहीं, पानी ही नहीं था. सुबह 5 बजे मोटर औन करनी ही है बेटा समीर याद से, वरना तो गया काम से…’ वह अलार्म लगा बेफिक्री से सो गया.

‘‘साहब, कितनी गंदगी मचा दी एक दिन में, क्या हाल बना दिया घर का, सारे के सारे बरतन ही निकाल डाले. मुझ से तो न हो पाएगा, साहब. किसी और को बुला लो,’’ रामकली की किटकिट शुरू हो गई थी.

‘‘कोई नहीं, तू कर, हो जाएगा. आज पानी भरा हुआ है, तेजतेज आएगा. मैं सौ रुपए अलग से भी दे दूंगा.’’

रामकली एक घंटे तक काम करते हुए बड़बड़ाती ही रही. ‘जमादार को कूड़ा भी क्यों नहीं दिया, गंध मार रहा है.’

‘कैसे काम कराती है मौली ऐसी गंवारों से, उफ,’ समीर पेपर ले कर बैठ गया.

‘‘साहब, कारपेट पकड़ लो, आज तो धूप खिली है, बाहर ही साफ कर दूंगी, सूख भी जाएगी. यहां नीचे का फर्श भी साफ हो जाएगा.’’

‘‘क्या मुसीबत है, चलो जल्दी करो,’’ वह मुंह बनाते हुए उठने लगा.

‘‘साहब, कल के बरतन भी आप ने नहीं समेटे थे, आज के धुले बरतनों से तो पूरा पलेटफौर्म ही भर गया. अच्छे से सहेज लेना, साहब, बहुत संभाल कर धोए हैं, कांच ही कांच, रे बाबा.’’ दोनों कारपेट उठाए हुए धूप में आ गए थे.

‘‘ओ तेरी की, साहब, आप ने तो कपड़े भी नहीं उतारे तार पर से. क्या साहब? सब गंध मारने लगे, फिर से धोने पड़ेंगे, साहबजी.’’

‘‘6 पैंट, 6 शर्टें, स्लीपिंग सूट, चादरें, मौली को अभी ही सब धो कर जाना था, क्या करूंगा, कल तो औफिस है…शिट.’’

‘‘सब ले जा कर मशीन में ही तो घुमाना है, साहब, ये पकड़ो,’’ उस ने कपड़े उतार कर समीर को पकड़ा दिए और अंदर काम निबटाने चली गई. समीर ने वाश्ंिग मशीन का ढक्कन खोला और सारे कपड़े उस में पटक दिए. पानी व साबुन डाला और मशीन सैट कर चालू कर दी. फोन पर ब्रैड, बटर, अंडे, मैगी और्डर कर के मंगा लिए. रामकली चली गई तो उस ने चल रहा हलका म्यूजिक लाउड कर लिया और अपना नाश्ता बनाने साफ किचेन में एक शेफ के अंदाज में घुसा.

‘आज बनाऊंगा अपना पहले वाला जिंजरगार्लिक औमलेट, करारे बटर टोस्ट और बेहतरीन कौफी. यार, इतने बरतन… मौली ही आ कर रखेगी, पर मैं पैन और चाय के लिए भगौना कहां से ढूंढ़ूं, मिल गया.’ उसे हैंडल दिखा, पकड़ कर जो खींचा, कई सारे बरतन धड़धड़ा कर नीचे गिर गए, जो कांच के थे, टूट गए थे. उस की जबान दांतों के बीच आ गई थी, मौली के मायके के महंगे वाले इंपौर्टेड सैट के 3 कप 2 गिलास एक प्लेट धराशायी पड़े थे.

‘अजब आफत है, कैसे बेतुके रख गई बेवकूफ मेड,’ उस ने पैर से टुकड़े एक ओर किए, बड़े टुकड़े डस्टबिन में डाले और मनोयोग से नाश्ता बनाने जुट गया.

‘वाह, क्या खुशबू है, क्या स्वाद.’ तभी मोबाइल बज उठा. उधर से मौली थी, बोली, ‘‘क्या चल रहा है?’’

‘‘अभी अपना बढि़या सा ब्रैकफास्ट तैयार किया है, बाद में वेज तड़का मैगी का लंच.’’

‘‘इतनी लेट ब्रैकफास्ट, क्या बनाया शेफ साहब ने, जरा मैं भी तो सुनूं,’’ वह हंसी.

‘‘तुम होती तो हैरान होती, तुम होती तो खुश होती, तुम होती तो ये खाती, तुम होती तो वो…’’ वह अमिताभ बच्चन के डायलौग के अंदाज में बोलते हुए मुसकरा रहा था.

‘‘अच्छा अच्छा, बस. कल की तैयारी कर ली? कपड़े कल प्रैस होने के लिए दे दिए थे न?’’ वह हंसते हुए बोली.

उसे ध्यान आया कपड़े, मशीन में कब से पड़े रह गए, भूल ही गया था, मरा…

 

‘ये रिश्ता क्या कहलाता है’: क्या कायरव को पता चल गई कस्टडी की सच्चाई

स्टार प्लस का मशहूर सीरियल ‘ये रिश्ता क्या कहलाता है’  में हाई वोल्टेज ड्रामा चल रहा है. जिससे दर्शकों का काफी इंटरटेन हो रहा है. पिछले एपिसोड में आपने देखा  कि नशे की हालत में कार्तिक और नायरा गुंडों से बचकर भाग जाते हैं.

घर के मंदिर में दोनों शादी करना चाहते हैं. नायरा, कार्तिक को अपने कमरे में ले आती है, वो कहती है कि रूम से दूसरी चुनरी ले लेंगे, दोनों कमरे में जाकर सो जाते हैं. वहां नायरा का भाई नक्ष आता है लेकिन कार्तिक को देख नहीं पाता और कायरव को वहां सुलाकर चला जाता है.

उधर वेदिका रोते हुए सुबह दादी के पास आती है और कहती है कि कार्तिक कल रात भी घर नहीं आए है. वो दादी से कहती है कि उसने कार्तिक को कौल किया था पर कार्तिक का फोन कायरव ने उठाया और उसने बताया कि वो यहीं सो रहे हैं. कार्तिक नायरा के पास हैं.

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उधर नायरा की नींद खुलती है और कार्तिक को वहां देखकर हैरान रह जाती है. कार्तिक और नायरा दोनों याद करने की कोशिश करते हैं लेकिन उन्हें ज्यादा कुछ याद नहीं आता है. इसके बाद कार्तिक वहां से घर चला जाता है. वहां सभी उससे सवाल करते हैं लेकिन वो बताता है कि उसकी किडनैपिंग हुई इसके अलावा उसे कुछ याद नहीं है.

उधर कार्तिक और नायरा दामिनी मिश्रा (वकील) के घर पहुंचते हैं. वहां एक बार फिर कार्तिक और नायरा मिलकर एक दूसरे से यही पूछने की कोशिश करते हैं, कि कुछ याद आया क्या लेकिन उन्हें कुछ याद नहीं आता है.

इसके बाद दोनों को वहां किसी की शादी की तस्वीर दिखती है देखते ही दोनों को याद आ जाता है कि दोनों ने नशे में शादी कर ली थी.  वेदिका वहां आती है और ये सब सुनकर उसके होश उड़ जाते है.

वेदिका वहां से चली जाती है. दोनों वकील दामिनी मिक्षा और कुमार वहां आते हैं. दोनों ज्वाइंट कस्टडी के पेपर पर साइन करने को कहते हैं. नायरा और कार्तिक पेपर पर साइन कर देते हैं. कार्तिक को नायरा को साथ देखकर वकील दामिनी मिश्रा सोचती है कि वो कार्तिक के साथ इतना नौर्मल क्यों है.

अपकमिंग एपिसोड में ये देखना दिलचस्प होगा जब कायरव को पता चलेगा कि उसकी मम्मी और पापा कस्टडी का केस कर रहे हैं. तो उसका रिएक्शन क्या होगा.

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अगर आपके भी पैरों में है शू बाइट के निशान तो पढ़ें ये खबर

नए जूते पहनने की खुशी तब दुख में बदल जाती है जब पैरों में छाले पड़ जाते हैं. हो सकता है आपका पैर भी कभी कटा हो और आपने भी यह दर्द झेला हो. इससे गंदे छाले हो जाते हैं, जिनमें कुछ दिनों तक बहुत दर्द होता है और बाद में वह निशान के रूप में उभर आता है.

शू बाइट से बचने के लिए कोई भी नया जूता पहनने से पहले उसके किनारों पर पेट्रोलियम जेली लगाएं, जिससे वहां का एरिया मुलायम हो जाए और पहनने पर वह ना काटे. अगर शू बाइट की वजह से त्वचा में जलन शुरू हो गई हो तो, उस पर ऐलोवेरा का रस लगा लें.

अगर आपके पैरों में भी शू बाइट के निशान हैं तो, इन खास टिप्स से ये दाग दूर हो जाएंगे.

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हल्दी और नीम

अगर जूते से पैरों में छाले पड़ गए हों या फिर उसके दाग रह गए हों तो आप हल्दी और नीम का पेस्ट लगा सकते हैं. इस पेस्ट को 20 मिनट तक लगाएं. यह छाले को पूरी तरह से सुखा देगा और दाग भी नहीं बनेगा.

कपूर और नारियल

पैरों में छाले अगर खुजली कर रहे हैं तो कपूर के चूरे में कुछ बूंद नारियल तेल डाल लें. इसे थोड़ी-थोड़ी देर पर घाव पर लगाने से दर्द ठीक हो जाएगा और दाग भी नहीं बनेगा.

बादाम और जैतून

बादाम को पीस कर उसमें जैतून का तेल मिलाकर प्रभावित त्वचा पर मसाज करें. जब चमड़ी मुलायम हो जाए तब पैरों को धो लें.

चावल के आटे का पेस्ट

चावल के आटे का पेस्ट बनाएं और उसे छाले पर लगाएं. 15 मिनट लगाए रखने के बाद जब वह सूख जाए तब पैरों को गुनगुने पानी से धो लें.

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ऐसे बनाएं आलू मटर पनीर

आज आपको आलू मटर पनीर बनाने की रेसिपी बताने जा रहे हैं.जो बनाने में बेहद आसान है. आलू मटर पनीर को रोटी या चावल के साथ सर्व कर सकती है. तो चलिए जानते हैं इसकी रेसिपी.

समाग्री

250 ग्राम मटर

250 ग्राम पालक

500 ग्राम आलू

250 ग्राम पनीर (छोटे टुकड़ों में कटा एवं तला हुआ)

एक टुकड़ा अदरक

2 टमाटर

3-4 तेजपत्ता

2 बड़ी इलायची

2 हरी मिर्च (बारीक कटी)

लाल मिर्च का पाउडर

एक छोटा चम्मच जीरा

1/2 पिसा हुआ कच्चा नारियल

आधा चम्मच हल्दी पाउडर

2 बड़े चम्मच धनिया पाउडर

250 ग्राम घी

1/2 चम्मच गर्म मसाला

नमक स्वादानुसार

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बनाने की विधि:

सबसे पहले पालक को अच्छी तरह धोकर उबाल लें.

इसके बाद इसे पीस लें और फिर मटर के दानों को हल्का सा उबालें.

इसके बाद आलू को भी उबाल लें.

आलू को घी में हल्का तलें और अब इसमें हरी मिर्च, टमाटर,अदरक और सारे मसाले मिलाकर घी में भून लें, तुरंत इसमें पालक को भी डालकर भून लें.

अब तले हुए आलू मटर, पनीर को मिला लें और स्वाद अनुसार नमक डाल लें.

फिर इसमें पानी डालकर गाढ़ा रस तैयारकर लें.

अंत में आंच से उतार कर बारीक कटा हुआ हरा धनिया ऊपर से डालकर पूरी के साथ गरमागरम परोसें.

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पतिपत्नी के बीच क्यों कम हो रहा प्यार?

प्यार के बाद प्रेमी जोड़े शादी तो बड़ी आसानी से कर लेते हैं, मगर जब निभाने की बारी आती है तब वही रिश्ता बोझ लगने लगता है. आजकल ऐसे शादीशुदा जोड़ों की संख्या तेजी से बढ़ रही है जिन के बीच वक्त के साथ प्यार में कमी आने लगी है और नतीजा यह कि सालों रिश्ते में टिके रहने के बाद एक दिन तलाक लेने का फैसला ले लेते हैं.

विवाह का बंधन बहुत ही पेचीदा इंसानी रिश्ता है और अधिकतर लोग बहुत कम तैयारी के साथ इस बंधन में बंधते हैं, क्योंकि उन्हें लगता है कि वे एकदूसरे के लिए ही बने हैं. डा. डीन एस. ईडैल कहते हैं कि हमें ड्राइविंग लाइसैंस पाने के लिए कुछ हद तक अपनी काबिलीयत दिखानी पड़ती है पर वहीं शादी का सर्टिफिकेट पाने के लिए सिर्फ मात्र दस्तखत ही काफी हैं.

हालांकि बहुत से पतिपत्नी अंत समय तक खुशहाल जीवन व्यतीत करते हैं, मगर काफी पतिपत्नी के बीच तनाव रहता है और इस का कारण है एकदूसरे से काफी उम्मीदें पाले रखना. शादी के पहले पतिपत्नी एकदूसरे से काफी उम्मीदें पाल बैठते हैं, मगर जिंदगीभर साथ निभाने के लिए जो हुनर चाहिए होता है, वह उन के पास नहीं होता. शुरूशुरू में जब लड़कालड़की एकदूसरे के करीब आते हैं, तब उन्हें लगता है दोनों एकदूजे के लिए ही बने हैं और उन के साथी जैसा दुनिया में और कोई है ही नहीं. उन्हें लगता है, एकदूसरे का स्वभाव भी काफी मिलताजुलता है, लेकिन शादी के कुछ सालों बाद ही उन की एकदूसरे के प्रति भावनाएं खत्म सी होने लगती हैं और जब ऐसा होता है तब यह वैवाहिक जीवन को तबाह, बरबाद कर सकता है.

कुछ शादियां तो अपनी मंजिल तक पहुंच जाती हैं, मगर कुछ बीच में ही दम तोड़ देती हैं, क्यों? आइए जानते हैं:

जरूरत से ज्यादा उम्मीदें: स्नेहा कहती है कि जब उसे राहुल से प्यार हुआ तब लगा वही उस के सपनों का राजकुमार है. उस के जैसा दुनिया में दूसरा कोई नहीं है और अब उस के जीवन में सिर्फ रोमांस ही रोमांस होगा. दोनों एकदूसरे की बांहों में बांहें डाल कर हंसतेखेलते जीवन गुजार देंगे. मगर शादी के कुछ सालों बाद ही स्नेहा को अपने सपनों के राजकुमार में एक शैतान नजर आने लगा, क्योंकि वह उस की एक भी उम्मीद पर खरा नहीं उतरा.

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लव स्टोरी वाली फिल्में, रोमांटिक गाने प्यार की ऐसी तसवीरें पेश करते हैं कि हकीकत में भी हमें वही नजर आने लगता है. मगर हम भूल जाते हैं कि यह सचाई से कोसों दूर होता है. लैलामजनूं, हीररांझा का प्यार इसलिए अमर हो गया, क्योंकि वे विवाह के बंधन में नहीं बंध पाए, अगर बंधते तो शायद उन के भी कुछ ऐसे ही बोल होते. शादी से पहले की मुलाकातों में शायद लड़कालड़की को लगे कि उन के सारे सपने साकार हो जाएंगे, मगर शादी के बाद वे इस नतीजे पर पहुंचते हैं कि वाकई वे सपनों की दुनिया में ही खोए हुए थे. बेशक पतिपत्नी को अपनी जिंदगी में एकदूसरे से उम्मीदें पालना गलत नहीं है, मगर इच्छाएं इतनी भी न पालें कि सामने वाला पूरा ही न कर पाए.

आपसी तालमेल की कमी: एक शादीशुदा औरत का कहना है कि वह और उस के पति हर मामले में एकदम अलग राय रखते हैं. कभी उन के विचार मिले ही नहीं मानों एक पूरब है तो दूसरा पश्चिम. उस का एक दिन भी ऐसा नहीं जाता, जब वह अपने पति से शादी करने के फैसले पर पछताती न हो.

शादी के कुछ समय बाद ही उसे लगने लगा कि उस का साथी बिलकुल भी वैसा नहीं है जैसा उस ने सोचा था. इस बात पर डा. नीना एस. फील्ड्स का कहना है कि अकसर शादी के बाद एक इंसान के गुण साफ नजर आते हैं, जिन्हें शादी के पहले नजरअंदाज कर दिया जाता है. इस का परिणाम यह होता है कि शादी के कुछ सालों बाद पतिपत्नी शायद इस नतीजे पर पहुंचें कि उन का एकदूसरे के साथ कोई तालमेल बैठ ही नहीं सकता. एकदूसरे के विचार न मिलने के बावजूद कितनी जोडि़यां इसलिए शादी के बंधन में बंधी रह जाती हैं, क्योंकि समाज और लोग क्या कहेंगे और कुछ तो समझ ही नहीं पाते कि इस रिश्ते को निभाएं या तोड़ दें.

लड़ाईझगड़े: पतिपत्नी के बीच तकरार न हो, ऐसा हो ही नहीं सकता. लेकिन तकरार जब हद से ज्यादा बढ़ जाए तब क्या किया जाए? इस पर डा. गोलमैन लिखते हैं कि अगर शादी का बंधन मजबूत है तो पतिपत्नी को लगता है कि वे बेझिझक एकदूसरे से शिकायत कर सकते हैं, लेकिन अकसर गुस्से में आ कर शिकायत ऐसे तरीके से की जाती है जिस से नुकसान होता है और इस के जरीए अपने साथी के चरित्र पर कीचड़ उछाला जाता है, जिसे दूसरा कतई बरदाश्त नहीं कर पाता और झगड़ा बढ़ता जाता है.

जब पतिपत्नी गुस्से में आपे से बाहर हो जाते हैं तब उन का घर घर न रह कर एक जंग का मैदान बन जाता है और पिसते हैं उन के बच्चे. झगड़ा सुलझाने के बजाय वे अपनी जिद पर अड़े रहते हैं. उन के शब्द कब हथियार का रूप ले लेते हैं पता ही नहीं चलता.

इस बारे में विशेषज्ञों का कहना है कि जो झगड़े काबू से बाहर हो जाते हैं उन में सब से ज्यादा नुकसान तब होता है जब पतिपत्नी एकदूसरे को कुछ ऐसी बातें कह देते हैं जो उन के वैवाहिक जीवन को खतरे में डाल देती हैं. उन्हें ऐसी बातें नहीं बोलनी चाहिए.

पल्ला झाड़ लेना: शादी के कुछ सालों बाद अपने वैवाहिक जीवन से ऊब कर एक पत्नी ने कह दिया कि अब उस से नहीं होगा, क्योंकि अपने वैवाहिक जीवन को बचातेबचाते वह थक चुकी है. उसे मालूम है जब इस से कोई फायदा ही नहीं, तो फिर क्यों वह रिश्ता बचाने की कोशिश में लगी हुई है? अब उसे सिर्फ अपने बच्चे से मतलब है.

कहते हैं जब पतिपत्नी एकदूसरे से प्यार करते हैं, तो बेइंतहा प्यार करते हैं. मगर जब बेरुखी बढ़ती है, तो बढ़ती ही चली जाती है. एकदूसरे से वैमनस्य पाल लेते हैं. मगर कुछ पतिपत्नी इसलिए रिश्ते निभाते चले जाते हैं कि और चारा क्या है?

इसी पर एक पति का कहना है कि बेमन से विवाह  के बंधन में बंधे रहना ऐसी नौकरी के समान है जिसे करने का मन नहीं है, पर फिर भी करनी पड़ती है. आप अपनी ओर से लाख अच्छा करने की कोशिश करें, पर सामने वाले को उस बात की कद्र नहीं होती. वहीं एक पत्नी का कहना है कि वह अपनी शादीशुदा जिंदगी से अब निराश हो चुकी है. बहुत कोशिश की उस ने रिश्ते सुधारने की, पर सब बेकार.

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निराशा, तालमेल की कमी, लड़ाईझगड़ा और बेरुखी तो सिर्फ चंद वजहें हैं जिन की वजह से पतिपत्नी के बीच प्यार की कमी हो सकती है. लेकिन क्या सिर्फ यही वजहें हैं या कुछ और भी हैं?

कुछ और कारण शादी दरकने के पैसा: पतिपत्नी के बीच पैसा एक सैंसिटिव इशू होता है. जब दोनों कमाऊ हैं, तो अपना वेतन कैसे खर्च करना है और कहां इन्वैस्ट करनी है, यह विवाद का विषय बन जाता है और झगड़ा होने लगता है. अत: इस से बचने के लिए पतिपत्नी को मिलबैठ कर हर महीने का बजट बनाना चाहिए और जहां भी पैसा लगाना है एकदूसरे को जानकारी होनी चाहिए.

जिम्मेदारियां: देखा गया है कि 67% पतिपत्नी के प्यार में पहला बच्चा आते ही कमी आ जाती है और पहले से 8 गुना ज्यादा झगड़े होने लगते हैं. कुछ हद तक इस की वजह यह होती है कि दोनों अपने कामों से इतने थक जाते हैं कि खुद के लिए भी उन्हें फुरसत नहीं मिलती.

फरेब, धोखा: एकदूसरे पर भरोसा, सफल शादीशुदा जिंदगी के लिए निहायत जरूरी है. एकदूसरे पर भरोसा टूटना, पतिपत्नी के रिश्ते को बरबाद कर सकता है.

लैंगिक संबंध: चाहे कितना भी मनमुटाव हो जाए दोनों के बीच, अगर सैक्स संबंध सही है, तो झगड़ा, मनमुटाव भी ज्यादा देर नहीं टिक पाता. लेकिन जब वही संबंध नहीं रह पाता उन के बीच तो फिर नौबत के तलाक तक पहुंचते देर नहीं लगती.

हस्तक्षेप: पतिपत्नी के संबंधों में हस्तक्षेप करना, पतिपत्नी के संबंधों में किसी दूसरे का दखल या सैक्स से संतुष्ट न होने के कारण किसी दूसरे को चाहने लगना आदि कारणों से भी मनमुटाव उत्पन्न होने लगता है.

बच्चों पर क्या होता है असर: आप की शादीशुदा जिंदगी कैसी है इस का साफ असर बच्चों पर पड़ता है. डा. गोलमैन ने शादीशुदा जोड़ों पर लगभग 20 साल तक खोजबीन की. 10-10 साल के 2 अध्ययनों में उन्होंने देखा कि नाखुश मातापिता के बच्चों की हृदय गति, अठखेलियां करते वक्त ज्यादा तेज चलती है और उन्हें शांत होने में वक्त लगता है. मातापिता के कारण बच्चे पढ़ाई में भी अच्छे अंक नहीं ला पाते, जबकि बच्चे पढ़ने में होशियार होते हैं. वहीं दूसरी तरफ जिन पतिपत्नी के बीच सही तालमेल होता है उन के बच्चे पढ़ाई के साथसाथ सामाजिक कार्यों में भी बेहतर होते हैं.

पतिपत्नी के रिश्ते में मनमुटाव न हो, रिश्ता न टूटे, दांपत्य जीवन सुखमय हो, वैवाहिक जीवन में कोई समस्या न हो इस के लिए जरूरी है पतिपत्नी आपसी समस्याएं खुद निबटा लें. किसी तीसरे को अपनी जिंदगी में हस्तक्षेप न करने दें.

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दिल्ली, मुंबई, बैंगलुरु जैसे महानगरों में बसने वाले मध्यम और उच्चवर्गीय एकल परिवारों की संख्या निरंतर बढ़ती जा रही है. ऐसे परिवारों की महिलाओं के पास शिक्षा, समय और पैसे की कमी नहीं है. पति के काम पर और बच्चों के स्कूल चले जाने के बाद उन के पास काफी खाली वक्त होता है. आज इसी खाली वक्त, शिक्षा और क्षमता का प्रयोग कर के बहुत सी महिलाओं ने बड़ेबड़े व्यवसाय खड़े कर लिए हैं. इस तरह उन्होंने न सिर्फ पैसा कमाने में पति का सहयोग किया, बल्कि घर में रहते हुए, घर को, कामों को नजरअंदाज किए बगैर पारिवारिक जिम्मेदारियों को निभाते हुए अपने समय का बेहतरीन उपयोग किया है.

खाने ने दिया रोजगार

दिल्ली की कैलाश कालोनी में रहने वाली सरन कौर की उम्र करीब 60 साल है. उन के 3 बेटे हैं. तीनों ही अब सैटल हो चुके हैं. उन की पढ़ाईलिखाई, शादियां और नौकरी में सैटल होने में सरन कौर की महत्त्वपूर्ण भूमिका रही है. वे पंजाब से ब्याह कर दिल्ली आई थीं. पति के पास नौकरी नहीं थी. घर में ही आगे के कमरे में उन्होंने एक किराने की दुकान खोल रखी थी. परिवार में तब सरन कौर के पति, सास, देवर और देवरानी थे.

सरन कौर के बच्चे हुए, परिवार बढ़ा तो किराने की दुकान से घर का खर्चा निकालना मुश्किल होने लगा. तब सरन कौर ने पति के काम में सहयोग करने की ठानी. उन्हें खाना बनाने का शौक था. पंजाबी खाना बनाने में तो उन्हें महारत हासिल थी. अत: उन्होंने कैलाश कालोनी के थाने में जा कर अपने महल्ले के सीनियर सिटिजन की लिस्ट हासिल कर ली. फिर उन्होंने घरघर जा कर उन बूढ़े लोगों से मुलाकात की, जो अपने बच्चों की नौकरी के सिलसिले में दूसरे शहर या विदेश में बसने के कारण अकेले पड़ गए थे और जिन से चूल्हाचौका अब नहीं हो पाता था.

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बहुत से बुजुर्ग होटल से खाना मंगवाते थे या नौकरों के हाथ से बने कच्चेपक्के खाने पर जी रहे थे. सरन कौर ने उन्हें बहुत कम रेट पर अपने घर से खाना भिजवाने की बात कही. धीरेधीरे महल्ले के कई घरों में बुजुर्गों को घर का बना ताजा और गरम खाना सरन कौर पहुंचाने लगीं. उन के बनाए खाने की प्रशंसा होने लगी तो जल्द ही उन के ग्राहकों की संख्या बढ़ने लगी. सरन कौर का टिफिन सिस्टम चल निकला. पैसा बरसने लगा.

आज सरन कौर के पास एक बड़ी किचन है, जिस में 10-12 नौकर हैं, जो रोजाना करीब 300 टिफिन तैयार करते हैं. डिलिवरी बौय समय से टिफिन ग्राहकों तक पहुंचाते हैं. आज सरन कौर के ग्राहकों में सिर्फ बुजुर्ग लोग ही नहीं, बल्कि पेइंगगैस्ट के तौर पर दूसरे शहरों से आ कर रहने वाले लोग और औफिस में काम करने वाले लोग भी शामिल हैं. होटल या रेहड़ी के मसालेदार और अस्वस्थकर खाने की जगह मात्र 100 रुपए में घर की बनी दाल, चावल, सब्जी, रोटी, सलाद, दही उन्हें ज्यादा स्वादिष्ठ और सेहतमंद लगता है. सरन ने अपनी मेहनत और लगन से न सिर्फ परिवार को संभाला, बल्कि कई अन्य लोगों को भी रोजगार उपलब्ध कराया.

गुड अर्थ गुड जौब

दिल्ली के छतरपुर में एक फार्महाउस में बनी ‘गुड अर्थ’ कंपनी की वर्कशौप को देख कर मैं दंग रह गई. यह कंपनी आज किसी परिचय की मुहताज नहीं है. इस में तैयार होने वाला सामान अपनी खूबसूरती, कलात्मकता और ऊंचे दाम की वजह से अमीर वर्ग में काफी लोकप्रिय है.

‘गुड अर्थ’ की मालकिन अनीता लाल उन बड़े उद्योगपतियों में से एक हैं, जिन्होंने अपने शौक को अपना व्यवसाय बना कर न सिर्फ अपनी रचनात्मकता को नए आयाम दिए, बल्कि सैकड़ों महिलाओं के लिए रोजगार के रास्ते भी तैयार कर दिए. उन की लगन, हिम्मत, जिद, कुछ नया करने का शौक और प्रतिभा ने ‘गुड अर्थ’ जैसी कंपनी की नींव डाली.

आज देशभर में ‘गुड अर्थ’ के तमाम शोरूम्स में विभिन्न प्रकार की कलात्मक वस्तुओं, वस्त्र, ज्वैलरी आदि की बिक्री होती है. इन वस्तुओं पर जो कलाकारी, नक्काशी, रंगरोगन, बेलबूटे दिखाई पड़ते हैं, वे अद्भुत होते हैं और उन्हें बनाने वाली महिलाओं की उच्च रचनात्मकता का परिचय देते हैं.

‘गुड अर्थ’ की वस्तुओं पर मुगलकालीन चित्रकारी, राजस्थानी लोककला के नमूने, लखनवी और कश्मीरी कढ़ाई के जो बेहद खूबसूरत बेलबूटे नजर आते हैं, उस की वजह है स्वयं अनीता लाल का देश की कला के प्रति गहरा लगाव. भारत की कलात्मक विरासत को जीवित रखने और उसे नए रंग में ढाल कर आगे ले जाने वाली अनीता लाल ने 20 साल पहले अपना व्यवसाय तब शुरू किया था, जब अपने बच्चों को उन्होंने सैटल कर दिया था, क्योंकि उन की पहली वरीयता उन का परिवार और उन के बच्चे थे.

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वे शुरू से ही आजाद खयाल की थीं उन की अपनी सोच थी, क्षमता और प्रतिभा थी. मातापिता का सहयोग उन्हें प्राप्त था. घर में इस बात की आजादी थी कि अपनी शिक्षा, क्षमता और प्रतिभा का प्रयोग वे जहां और जैसे करना चाहें, कर सकती हैं.

वे कहती हैं, ‘‘चूंकि घर में कोई दकियानूसी खयालों का नहीं था और लड़कियों को भी लड़कों की तरह शिक्षा, प्यार और पालनपोषण मिला, लिहाजा मेरे काम में कभी कोई व्यवधान नहीं आया. आज मैं एक सफल व्यवसायी हूं

तो अपने परिवार के प्यार और सहयोग के कारण ही.’’

अनीता लाल की शादी एक धनी व्यवसायी परिवार में हुई, जहां पैसे की कोई कमी नहीं थी. वे चाहतीं तो आराम से घर में बैठ कर अपना जीवन व्यतीत कर सकती थीं, लेकिन उन्होंने हाथ पर हाथ धरे घर में बैठे रहने या हाइप्रोफाइल पार्टियां ऐंजौय करने के बजाय एक ऐसे व्यवसाय को शुरू करने की सोची, जिस में वे ज्यादा से ज्यादा महिलाओं को जोड़ कर उन्हें अपने पैरों पर खड़ा कर सकें. उन का लक्ष्य पैसा कमाना नहीं था, वरन हिंदुस्तान की कला और कारीगरों को नए आयाम देना, महिलाओं को रोजगार से जोड़ना और लीक से हट कर कुछ नया और बेहतर करना था.

अनीता कहती हैं, ‘‘हम ने अपनी महिला कर्मियों के लिए कभी कोई सख्त नियम नहीं रखे. वे अपनी सुविधानुसार अपने काम के घंटे खुद तय करती हैं. यहां उन्हें हर तरह की सुविधा और आजादी है. मेरा मानना है कि औरत की पहली जिम्मेदारी उस का घर और बच्चे हैं. मैं ने भी अपने बच्चों के बड़े होने के बाद ही अपना व्यवसाय शुरू किया था. इसलिए ‘गुड अर्थ’ में कार्यरत किसी भी महिला के लिए उस का घर प्रथम है.

‘‘मेरा मानना है कि जिंदगी भी अच्छी तरह चले और काम भी. इस के लिए जरूरी है कि महिलाएं मानसिक रूप से तनावमुक्त रहें. तनावमुक्त वे तभी रहेंगी जब हम उन की परेशानियों को समझें और उन्हें मिल कर दूर करें.

‘‘हमारे देश में महिलाएं लगातार हिंसा, बलात्कार, भेदभाव का शिकार हो रही हैं. यदि उन्हें सिर्फ 2 चीजें- पहली शिक्षा और दूसरी रोजगार हासिल हो जाए तो उन पर होने वाले अपराधों पर विराम लग जाए. शिक्षा से समझ बढ़ेगी और रोजगार से पैसा आएगा.’’

सरन कौन, अनीता लाल जैसी महिलाओं को देख कर कहा जा सकता है कि मजबूत और सकारात्मक सोच रखने वाली महिलाएं न सिर्फ खुद सशक्त हो रही हैं, बल्कि दूसरों को भी सशक्त बना रही हैं.

व्यावहारिकता, अनुभव और कौशल विपरीत से विपरीत स्थिति में भी जीवनयापन में सहायता करता है. ऐसा नहीं है कि अशिक्षित महिलाओं में कौशल एवं हुनर कम है. कृषि, कुटीर उद्योग, पारंपरिक व्यवसाय, पशुपालन, दुग्ध व्यवसाय जैसे कार्यों की तरफ महिलाएं तेजी से बढ़ रही हैं.

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औरत के सशक्त होने से एक परिवार ही नहीं, बल्कि समाज और राष्ट्र भी सशक्त होता है. महानगरों में एकल परिवार की कितनी ही महिलाएं हैं, जिन के पास खूब खाली वक्त है, जिस का सदुपयोग कर के वे अपनी शिक्षा, शौक और क्षमता को नष्ट होने से बचा सकती हैं और परिवार, समाज और देश को कुछ अद्भुत दे सकती हैं.

उंची उड़ान: भाग 1

समाज में ऐसी औरतों और ऐसे पुरुषों की कमी नहीं है, जो जीवनसाथी को खिलौना समझ बैठते हैं. हालांकि वक्त आने पर उन्हें इस की सजा भी जरूर मिलती है. तृप्ति ऐसी ही औरत थी जो पहले पति से खेलती रही और फिर उसे कैंसर रोगी साबित कर के…

घटना 13 नवंबर, 2018 की है. तृप्ति जय तेलवानी जिस समय अपने 3 साल के बेटे के साथ पुणे शहर के थाना चिखली पहुंची, उस वक्त दोपहर का एक बजने वाला था. महिला एसआई रत्ना सावंत उस समय किसी पुराने मामले की फाइल देख रही थीं. घबराई और रोती हुई तृप्ति जब उन के पास पहुंची तो वह समझ गई कि इस के साथ जरूर कुछ गलत हुआ है.

उन्होंने तृप्ति को सामने कुरसी पर बैठा कर उस से इत्मीनान से बात की. उस ने आंसू पोंछते हुए कहा, ‘‘मैडम मेरा नाम तृप्ति जय तेलवानी है. मैं चिखली के घरकुल इलाके की साईं अपार्टमेंट सोसायटी में पति के साथ रहती हूं.’’ कह कर तृप्ति फिर से रोने लगी.

एसआई रत्ना सावंत ने उसे धीरज बंधाते हुए कहा, ‘‘देखिए, आप रोइए मत. आप के साथ जो भी हुआ है, मुझे विस्तार से बताएं ताकि मैं आप की मदद कर सकूं.’’

रत्ना सावंत की सहानुभूति पर तृप्ति अपने आंसू पोंछते हुए बोली, ‘‘मैडम, मैं बरबाद हो गई हूं. मेरी तो दुनिया ही उजड़ गई. मेरे पति ने फांसी लगा कर आत्महत्या कर ली है.’’

तृप्ति की बात सुन कर एसआई रत्ना सावंत चौंकी. वह उसी समय पुलिस टीम के साथ मौके की ओर रवाना हो गईं. इस की सूचना उन्होंने उच्चाधिकारियों को भी दे दी थी.

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एसआई रत्ना सावंत अपनी टीम के साथ जब मौके पर पहुंचीं तो वहां लोगों की भीड़ लगी थी. मृतक जय तेलवानी के मातापिता और अन्य लोग भी वहां मौजूद थे.

पुलिस जब बैडरूम  में पहुंची तो बैड पर जय तेलवानी का शव पड़ा था. मांबाप और अन्य लोग उस के शव के साथ लिपट कर रो रहे थे. एसआई रत्ना सावंत ने जब लाश का निरीक्षण किया तो उस के गले पर फंदे का निशान देख कर उन्हें पहली नजर में मामला आत्महत्या का लगा.

एसआई रत्ना सावंत ने मृतक की पत्नी तृप्ति जय तेलवानी से इस संबंध में पूछताछ की तो उस ने बताया कि वह पिछले कुछ दिनों से अपनी लाइलाज बीमारी से परेशान थे. इन्हें ब्लड कैंसर था. आज सुबह जब मैं 11 बजे अपने बच्चे को लेने स्कूल गई तो ये ठीक थे, लेकिन जब स्कूल से लौटी तो दरवाजा अंदर से बंद मिला.

कई बार कालबैल बजाने और आवाज देने के बाद भी जब दरवाजा नहीं खुला, न कोई आहट हुई तो मैं घबरा गई. मैं ने दूसरी चाबी ला कर दरवाजा खोला तो मेरी चीख निकल गई. जय गले में साड़ी बांध कर पंखे से लटके हुए थे.

चीखनेचिल्लाने की आवाजें सुन कर पड़ोसी फ्लैट में आ गए. उन्होंने पति को नीचे उतार कर बैड पर लिटा दिया और अस्पताल जाने के लिए एंबुलेंस भी मंगा ली, लेकिन तब तक उन की मौत हो चुकी थी.

पुलिस की जांच में आत्महत्या के निशान तो मिल रहे थे, लेकिन आत्महत्या का कारण समझ नहीं आ रहा था. तृप्ति तेलवानी अपने बयान में जिस लाइलाज बीमारी की बात कह रही थी, उस बीमारी के संबंध में वह यह भी नहीं बता सकी कि जय का किस अस्पताल में इलाज चल रहा था.

यह बात पुलिस के गले नहीं उतर रही थी. जब मृतक को ब्लड कैंसर था तो उस का किसी अस्पताल में इलाज क्यों नहीं कराया. और फिर बिना जांच कराए यह कैसे पता चला कि जय को ब्लड कैंसर है. उसी दौरान थानाप्रभारी बालाजी सोनटके मौकाएवारदात पर पहुंच गए. उन के साथ फोरैंसिक टीम भी थी.

मौकामुआयना करने के बाद अधिकारियों ने मृतक के घर वालों से इस बारे में पूछताछ की. इस के बाद वह थानाप्रभारी को आवश्यक दिशानिर्देश दे कर चले गए.

वरिष्ठ अधिकारियों के जाने के बाद थानाप्रभारी बालाजी सोनटके ने मौके की काररवाई पूरी कर के जय तेलवानी के शव को पोस्टमार्टम के लिए पुणे के सेसून डाक अस्पताल भेज दिया. थानाप्रभारी ने इस मामले की जांच एसआई रत्ना सावंत को सौंप दी.

एसआई रत्ना सावंत ने मृतक जय तेलवानी की कैंसर की बीमारी के संबंध में आसपड़ोस के लोगों से बात की. उन्होंने बताया कि इस बारे में उन्हें वाट्सऐप मैसेज द्वारा ही जानकारी मिली थी कि जय तेलवानी को ब्लड कैंसर है. लेकिन यह बात जय तेलवानी ने नहीं बताई, वह तो एकदम स्वस्थ दिखता था.

अगले दिन पुलिस के पास पोस्टमार्टम रिपोर्ट भी आ गई. पोस्टमार्टम रिपोर्ट में कैंसर जैसी घातक बीमारी का कोई जिक्र नहीं था. इस का मतलब यह था कि सोशल मीडिया पर जय तेलवानी को कैंसर रोगी होने की बात किसी ने एक सोचीसमझी साजिश के तहत फैलाई थी. यह बात फैला कर किसे लाभ हो सकता है, पुलिस इस की जांच में जुट गई.

इसी दौरान जय तेलवानी के मातापिता पुलिस थाने पहुंचे. उन्होंने थानाप्रभारी बालाजी सोनटके को बताया कि उन के बेटे की आत्महत्या की जिम्मेदार उन की बहू तृप्ति है. इस के बाद पुलिस ने अपनी तफ्तीश का रुख तृप्ति की तरफ मोड़ दिया.

तृप्ति पर नजर रख कर जांच अधिकारी उस वीडियो की तलाश में जुट गईं जो सोशल मीडिया पर वायरल हुई थी. इस वीडियो में जय तेलवानी को कैंसर रोगी बता कर आर्थिक सहायता की मांग की गई थी.

बताया जाता है कि यह वीडियो देख कर जय तेलवानी मानसिक रूप से परेशान हो गए थे. चूंकि वह भलेचंगे स्वस्थ थे और किसी ने उन का कैंसर रोगी का वीडियो बना लिया. वह वीडियो क्लिप जांच अधिकारी रत्ना सावंत को को भी मिल गई थी.

पुलिस की आईटी टीम ने जब उस वीडियो की जांच की तो पता चला कि तृप्ति ने ही उसे सोशल मीडिया प्लेटफार्म टिकटौक पर अपलोड किया था. तृप्ति के खिलाफ सबूत मिल गया तो पुलिस ने उसे पूछताछ के लिए थाने बुला लिया. वीडियो के आधार पर जब तृप्ति तेलवानी से पूछताछ की गई तो पहले तो वह साफ मुकर गई, लेकिन बाद में उस ने अपना गुनाह स्वीकार कर लिया.

21 वर्षीय तृप्ति तेलवानी ने बताया कि अपनी महत्त्वाकांक्षा और ख्वाहिशें पूरी करने के लिए उस ने सोशल मीडिया का सहारा लिया था. पूछताछ में यह बात सामने आई है कि पूछताछ में यह बात सामने आई है कि वह पुणे के छोटे से गांव की रहने वाली थी लेकिन उस के सपनों की उड़ान ऊंची थी. उस ने अपने दोस्तों और सहेलियों के बीच अपना एक क्रेज बना कर रखा था.

कालेज समय में नित नए फैशन के कपड़े पहनना, दिल खोल कर पैसे खर्च करना उस का शौक बन गया था. उस के इस अनापशनाप खर्च और मांग पर मांबाप परेशान रहते थे.

उन्हें चिंता इस बात की भी थी कि आगे चल कर इस लड़की का क्या होगा. वह तृप्ति को समझाने की काफी कोशिश करते थे पर तृप्ति ने मांबाप की सलाह को कभी गंभीरता से नहीं लिया.

तृप्ति के लक्षणों को देखते हुए मांबाप ने 16 साल की उम्र में ही उस की शादी पिपरी चिचवड़, पुणे के रहने वाले देवीदास तेलवानी के बेटे जय तेलवानी के साथ कर दी. यह 2017 की बात है. जय तेलवानी उस परिवार का एकलौता बेटा था.

25 वर्षीय जय तेलवानी सीधासादा युवक था. वह अपनी पढ़ाई पूरी कर अपने एक रिश्तेदार के प्लंबिंग बिजनैस में सहयोगी था.

तृप्ति को बहू के रूप में पा कर देवीदास और सभी घर वाले खुश थे. उन्हें क्या पता था कि तृप्ति के सुंदर चेहरे के पीछे उस की कितनी गंदी सोच छिपी है. इस का एहसास उन्हें धीरेधीरे होने लगा था.

आजादी के साथ रहने वाली तृप्ति को ससुराल जेल की तरह लगती थी. वह वहां से बाहर निकलने के लिए फड़फड़ाने लगी तो सास ने उसे समाज की मर्यादा का पाठ पढ़ाया. उस ने सास की सीख न सिर्फ हवा में उड़ा दी बल्कि वह उन से झगड़ने भी लगी.

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बातबात पर वह जय तेलवानी के मांबाप और परिवार वालों से लड़ बैठती थी, जिसे ले कर जय परेशान हो जाता था. जब वह तृप्ति को समझाने की कोशिश करता तो उस का सीधा जवाब होता, ‘‘मेरी शादी तुम्हारे साथ हुई है, तुम्हारे मांबाप और परिवार वालों के साथ नहीं.’’

घर के बने कीटनाशक स्प्रे

घर के पिछवाड़े लहलहाती ताजा सब्जियां, टोकरियों में तैयार किया सलाद गार्डन, हर्बल क्यारी, पेड़ों से सटी लताओं पर लगी तोरई या लौकी, गुच्छों में लटकते टमाटर, तरहतरह के फूल किसी भी सुघड़ गृहिणी के बागबानी के शौक के परिचायक हैं.

बागबानी के शौकीन अपनी कड़ी मेहनत और लगन से किचन गार्डन को संभालने की हर संभव कोशिश में लगे रहते हैं. उन की कोशिशों के बावजूद सब्जियों की पत्तियों पर कीड़े व फफूंदी लग जाती है. इस के चलते पत्तियों का झड़ना जारी रहता है.

आम धारणा है कि सब्जियों की पत्तियों पर बाजार में मौजूद कीटनाशकों का छिड़काव करने से कीड़े मर जाते हैं, पर कृषि वैज्ञानिक पौधों पर दवाओं के छिड़काव का समर्थन नहीं करते. ऐसे में आप अपने किचन में उपलब्ध सामान से कुछ ऐसे कीटनाशक स्प्रे झटपट तैयार कर सकते हैं जो पेड़ों के लिए हानिकारक नहीं होते.

एफिड, पाउडरी मिल्ड्यू, छोटी मकड़ी, फफूंदी आदि पौधों की फोटोसिंथेसिस प्रक्रिया को निष्क्रिय  बना सकें, इस के लिए प्राकृतिक तरीके से कीटनाशक स्प्रे बनाएं जो बनाने में आसान, ईकोफ्रैंडली, वातावरण का संतुलन बनाने में सहायक होने के साथसाथ झटपट व आसानी से तैयार हो जाते हैं.

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पौधों की देखभाल के लिए कीटनाशक स्प्रे बनाने के लिए स्प्रे बोतल, लिक्विड सोप, लहसुन पाउडर या पेस्ट और मिनरल औयल या बेबी औयल की जरूरत होती है.

किसी भी साधारण से किचन गार्डन में कीटपतंगों से निबटने के लिए इन सामग्रियों से कई प्रकार के कीटनाशक स्प्रे बनाए जा सकते हैं.

सोप स्प्रे कीटनाशक

सामग्री : एक चम्मच लिक्विड सोप, 3 से 5 लिटर पानी.

विधि : इन दोनों को अच्छी प्रकार से मिला लें. स्प्रे बोतल में डाल कर पौधे के पत्तों के दोनों ओर हलकाहलका स्प्रे करें. कीट खुदबखुद मर जाएंगे. ऐसा करने से पहले इस बात पर ध्यान अवश्य दें, ऐसा तो नहीं कि आप बालटी भर साबुन का पानी सीधे गमले या क्यारी में डाल रही हैं.

बेकिंग सोडा स्प्रे

सामग्री : एक चम्मच डिश वाशिंग लिक्विड, 3 से 5 लिटर पानी, 3 चम्मच बेकिंग सोडा.

विधि : इन तीनों चीजों का मिश्रण बना लें. इस घोल को स्प्रे बोतल में डाल कर कीटों से ग्रसित पौधों के पत्तों के दोनों ओर स्प्रे करें.

यदि पौधे ज्यादा खराब हैं तो गलेसड़े पत्तों को निकाल कर फेंक दें. फफूंदी लगे पौधों के लिए यह स्प्रे बहुत कारगर होता है.

लहसुन स्प्रे

सामग्री : एक गांठ लहसुन, 3 से 5 लिटर पानी.

विधि : लहसुन छील कर इस की कलियों को मिक्सी में एक कप पानी में अच्छी तरह से पीस लें. स्प्रे बोतल में डाल कर फ्रिज में एक दिन के लिए रख दें. अगले दिन अच्छी प्रकार से छलनी से इसे छान लें. फिर पानी में इसे डालें. स्प्रे बोतल में भर कर कीटग्रसित पौधों पर इस का हफ्ते में 1 या 2 बार छिड़काव करें.

लहसुन और मिर्चीयुक्त स्प्रे

सामग्री : 7-8 कलियां लहसुन,

एक चम्मच लाल पिसी मिर्च, एक कद्दूकस किया प्याज, एक चम्मच लिक्विड सोप, 3 से 5 लिटर गरम पानी.

विधि : सारी सामग्री को गरम पानी में घोल लें. 2 दिन रखा रहने दें. इस घोल का स्प्रे बोतल में डाल कर रखें और ग्रसित पौधों पर इस का छिड़काव करें. यह स्प्रे गोभी में लगने वाले कीड़ों जैसे रेंगते कैटरपिलर, एफिड और फ्ली बीटल को नष्ट करने में बहुत ही फायदेमंद होता है.

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दूध का स्प्रे

सामग्री : कुछ मात्रा में दूध.

विधि : भगोने में जो दूध बच जाता है, कई गृहिणियां इसे सिंक में फेंक देती हैं. ऐसा न करें, बल्कि इस में कुछ पानी मिला दें. स्प्रे बोतल में भर कर इस का छिड़काव फफूंदीयुक्त पौधे या जिस पर पाउडरी मिल्ड्यू कीट रहता हो, सप्ताह में 3 बार करें. पौधा हराभरा हो जाएगा.

अजब गजब: इस जोड़े ने हनीमून के लिए बुक कर ली पूरी ट्रेन

आज आपको एक ऐसे कपल के बारे में बताने जा रहे हैं, जो अपने हनीमून को खास बनाने के लिए एक ऐसा काम कर गए, जिसे जानकर आप हैरान हो जाएंगे. जी हां, इस कपल  ने पूरी स्पेशल ट्रेन अपने हनीमून के लिए बुक करा ली. तो आइए जानते हैं इस कपल के बारे में.

एक रिपोर्ट के अनुसार रेल विभाग से जारी की गई सूचना में बताया गया है कि 30 साल के ग्राहम विलियम्स लिन और 27 की सिल्विया प्लासिक ने नीलगिरी की पहाड़ियों में अपने हनीमून के लिए मेत्तुपलयम से उधगमंडलम के बीच सफर करने के लिए ये पूरी ट्रेन बुक कराई थी.

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ग्राहम और सिल्विया ने अपनी वन वे ट्रिप पर करीब तीन लाख रुपये खर्च करके नीलगिरी के खूबसूरत नजारों का मजा लिया.  मेत्तुपलयम और कून्नूर स्टेशन  के प्रबंधकों ने इस जोड़े का सम्मान पूर्वक स्वागत किया था.

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