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फेसबुक की दोस्ती का जंजाल: भाग 1

भाग 1

छत्तीसगढ़ राज्य के जिला राजनांदगांव में एक कस्बा है पारा. इसी कस्बे की रहने वाली सुनीता आर्य प्राथमिक स्वास्थ्य केंद्र में स्टाफ नर्स थी. उस ने हाल ही में सोशल मीडिया के फेसबुक की रंगीन दुनिया  में कदम रखा था. नएनए लोगों को फ्रैंड बनाना, उसे कल्पनालोक के सुनहरे संसार में पहुंचा देता था.

फेसबुक के अनोखे संसार ने उस की रगरग में रूमानियत भर दी थी. नित्य नएनए फेसबुक फ्रैंड बनते जा रहे थे. उस के फेसबुक फ्रैंड की संख्या बढ़ती जा रही थी. इसी दौरान उस के पास डेविड सूर्ययन नाम के एक युवक की फ्रैंड रिक्वेस्ट आई. सुनीता आर्य ने उस की प्रोफाइल देखी तो पता चला वह युवक लंदन का रहने वाला है.

सुनीता मन ही मन खुश हुई कि वह कितनी भाग्यशाली है जो उस के पास लंदन से फ्रैंड रिक्वेस्ट आई है. उस ने खुशीखुशी उस की फ्रैंड रिक्वेस्ट स्वीकार कर ली.

सुनीता आर्य के पति चैतूराम सरकारी नौकरी में थे. शाम को जब वह घर आए तो सुनीता ने खुश होते हुए कहा, ‘‘आज तो कमाल हो गया.’’

चैतूराम ने उस की ओर देख कर पूछा, ‘‘क्या कमाल हो गया भई?’’

सुनीता बोली, ‘‘लंदन चलना है क्या?’’

पति ने आश्चर्य से सुनीता की ओर देख कर कहा, ‘‘लंदन? बात क्या है, बताओ तो?’’

सुनीता खिलखिला कर हंसती हुई बोली, ‘‘मेरी फेसबुक पर लंदन से फ्रैंड रिक्वेस्ट आई है. क्या नाम है उस का. हां, डेविड, मैं ने उसे अपना फ्रैंड बना लिया है.’’

‘‘तो क्या हो गया?’’ भौचक चैतूराम ने उस की ओर देखा.

‘‘तुम समझे नहीं, अब जब मैं ने लंदन के डेविड से दोस्ती कर ली है तो अगर वह भारत आया तो क्या हम से नहीं मिलेगा. क्या हम उस की खातिरदारी नहीं करेंगे. ऐसे ही अगर हम लंदन जाएं तो वहां कम से कम कोई एक पहचान वाला तो होगा. जो हमें सैरसपाटे करवाएगा है. तभी तो कह रही हूं कि लंदन चलना है क्या?’’

चैतूराम के चेहरे पर मुसकराहट तैर गई. उन्होंने कहा, ‘‘चलो ठीक है, लंदन जाएं या न जाएं कम से कम, कोई तो है जो तुम्हें जानता है, लेकिन यह तो बताओ उस ने तुम्हें खोजा कैसे?’’

‘‘देखो जी फेसबुक का संसार बहुत बड़ा है, सारी दुनिया समाई है. इस में डेविड को भारत में कोई फ्रैंड चाहिए होगा. उसे हमारी प्रोफाइल अच्छी लगी होगी. उस ने मुझे फ्रैंड रिक्वेस्ट भेज दी और मैं ने भी उस की रिक्वेस्ट को सहर्ष स्वीकार कर लिया.’’

उस दिन के बाद सुनीता और डेविड सूर्ययन के बीच फेसबुक के माध्यम से बातें होने लगीं. डेविड सुनीता को बहनजी कहता था और उसे बड़े सम्मान के साथ अपनी भावनाओं से अवगत कराता था.

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डेविड सुनीता से कभी ताजमहल, कभी लाल किला और कभी चारमीनार के बारे में जानकारी लेता था. इस के अलावा वह स्वयं भी लंदन में घूमने लायक जगहों की जानकारी देता था. इस तरह से उन के बीच दोस्ती बढ़ती गई.

बाद में कभीकभी डेविड सुनीता को फोन भी कर लेता था. सुनीता आर्य फेसबुक की दुनिया में खोई हुई थी, तभी एक दिन अचानक उस के मोबाइल पर डेविड सूर्ययन का फोन आया,  ‘‘बहनजी, मैं डेविड सूर्ययन बोल रहा हूं.’’

‘‘हां बताइए कैसे हैं आप?’’ सुनीता बोली.

यह सुन कर डेविड ने कहा, ‘‘बहनजी, मैं ठीक हूं और इस वक्त फिनलैंड में हूं. यह बहुत खूबसूरत देश है. मैं यहां आया हूं तो सोचा, अपनी बहन के लिए कुछ गिफ्ट ले लूं.’’

‘‘अरे भैया, इस सब की क्या जरूरत है. तकल्लुफ मत करो.’’ सुनीता बोली.

‘‘मैं यहां परिवार के साथ घूमने आया हूं. बाजार में घूमते हुए मुझे आप की याद आई तो आप के लिए भी गिफ्ट खरीद रहा हूं. बस आप इस के लिए मना मत करना.’’ डेविड ने कहा.

उस की इस तरह अनुनयविनय पर सुनीता को मन ही मन खुशी हुई. बाद में उस ने पति को बताया, ‘‘सुनो जी, आज डेविड का फोन आया था. सोचो तो क्या कहा होगा, उस ने?’’

‘‘बताओ, क्या कहा है तुम्हारे लंदन वाले भैया ने.’’ चैतूराम बोले.

सुनीता ने खुशीखुशी बताया, ‘‘डेविड ने मेरे लिए बहुत सारे गिफ्ट खरीदे हैं वह सपरिवार फिनलैंड में है. हमें तो यह भी पता नहीं कि फिनलैंड है कहां?’’

‘‘फिनलैंड भी एक छोटा सा देश है. यह जो नोकिया मोबाइल है, वहीं का है. मगर मैं यह नहीं समझा कि गिफ्ट का क्या चक्कर है. भई. तुम्हें साफसाफ मना कर देना चाहिए था. वैसे भी किसी अजनबी दोस्त से गिफ्ट लेना, क्या अच्छी बात है.’’

‘‘मैं ने  मना किया, मगर उस ने कुछ ऐसा कहा कि मैं मना नहीं कर पाई, सोचा कहीं उस का दिल न टूट जाए.’’

पत्नी की बातें सुन और उस के हंसते मुसकराते चेहरे को देख कर चैतूराम अपने काम में व्यस्त हो गए.

दूसरे दिन मोबाइल की घंटी बजी तो सुनीता ने खुशीखुशी मोबाइल उठा कर देखा किस की काल है. नंबर अंजान था उस ने काल रिसीव की तो दूसरी तरफ से आवाज आई, ‘‘क्या आप मैडम सुनीता बोल रही हैं.’’

‘‘हां, मैं सुनीता आर्य ही बोल रहा हूं.’’

‘‘जी नमस्कार, मैं फिनलैंड से कस्टम औफिसर स्टेनली बोल रहा हूं.’’

‘‘हां कहिए… क्या बात है?’’ सुनीता ने पूछा.

‘‘यहां से आप के नाम पर भारत भेजे जा रहे सोने के गहने कस्टम ने जब्त किए हैं. हम ने काररवाई को रोक रखा है. अगर आप को सोने के गहने छुड़ाने हों तो कस्टम चार्ज चुकाना होगा.’’ उस ने बताया.

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‘‘कितना चार्ज है.’’ सुनीता ने पूछा. वह सोचने लगी कि डेविड सूर्ययन ने उस के लिए  सोने के महंगे गहने ले लिए होंगे और बेचारा कस्टम में फंस गया होगा.

‘‘मैडम, आप को 61,500 रुपए चुकाने होंगे. फिर यह गोल्ड ज्वैलरी आप को भेज दी जाएगी.’’ उस ने बताया. सुनीता बड़ी खुश हुई और तुरंत बैंक जा पहुंची. उस ने बताए गए बैंक अकाउंट में तुरंत 61,500 रुपए भिजवा दिए. सुनीता ने फोन कर के उसे अकाउंट में पैसे जमा कराने की जानकारी भी दे दी. तभी उस व्यक्ति ने सुनीता को धन्यवाद देते हुए ज्वैलरी कस्टम फ्री हो जाने का आश्वासन दिया.

लेकिन कई दिन बीत जाने के बावजूद जब उस के पास वह ज्वैलरी नहीं पहुंची तो उस ने आखिरकार एक दिन पति चैतूराम को बताया कि उस ने डेविड द्वारा भेजी गई ज्वैलरी कस्टम में पकडे़ जाने पर 61,500 रुपए का कस्टम चार्ज भेज दिया था. मगर अभी तक उस के पास वह ज्वैलरी नहीं पहुंची.

पत्नी की बातें सुन कर चैतूराम बोले, ‘‘विदेश से गिफ्ट आने में समय तो लगेगा. थोड़ा इंतजार करो. जब तुम ने इतनी कस्टम ड्यूटी दी है तो जरूर वह 4-5 लाख रुपए का गिफ्ट होगा.’’

क्रमश:

दीवाली स्पेशल : पटाखे जलाते समय इन 9 बातों का रखें ध्यान

दीवाली के त्योहार पर पटाखे जलाते समय सावधानी बरतनी बेहद जरूरी है, खासकर तब जब घर में बच्चे पटाखे फोड़ रहे हों. ऐसे में मातापिता यदि बच्चों के साथ न हों तो दुर्घटना कभी भी हो सकती है. लेकिन, अगर किसी तरह पटाखे फोड़ते वक्त शरीर का कोई हिस्सा जल जाए तो क्या करना चाहिए और क्या नहीं, बता रहे हैं दिल्ली स्थित विनायक स्किन ऐंड कौस्मेटोलौजी क्लिनिक के त्वचा विशेषज्ञ डा. विजय कुमार गर्ग.

  1. पटाखे जलाते समय शरीर का कोई हिस्सा जल जाए तो जल्द से जल्द क्या करना चाहिए, इस के लिए पहले यह जान लेना जरूरी है कि जलने का प्रकार क्या है. एक होता है माइनर बर्न जो छोटे साइज का बर्न है जिस से स्किन लाल पड़ जाती है या एकआधा छाला हो जाता है. इस तरह के माइनर बर्न्स में जल्द से जल्द ठंडे पानी में हाथ डाल देना चाहिए. इस से राहत मिलेगी.

2.  दूसरा, कोई भी एंटीसैप्टिक क्रीम लगा लेनी चाहिए. सिल्वर सल्फाडाइजीन एंटीसैप्टिक क्रीम है जो  साधारणतया इस्तेमाल किया जाने वाला ड्रग है. इसे जल्द ही लगाने से फायदा पहुंचता है.

4. कुछ लोग जले पर बरनौल, मेहंदी, टूथपेस्ट आदि लगा लेते हैं जोकि नहीं लगाना चाहिए. लोग बर्फ भी लगाते हैं जिसे लगाने में कोई बुराई तो नहीं है लेकिन पानी से जितना फायदा पहुंचता है उतना बर्फ से नहीं पहुंचता. बर्फ से रक्त का थक्का बन सकता है. हां, यदि उस बर्फ को किसी पौलिथीन में डाल कर सिंकाई की जाए तो फायदा है.

5. पानी और बर्फ से होता यह है कि जलने वाले स्थान पर जो रैडनेस है उस की इन्फ्लेमैंशन को ये दोनों कम करते हैं.

6. बच्चों में अकसर पटाखों से या तो हाथ जलता है या चेहरा. यदि ज्यादा जला है तो प्लास्टिक रैप से जले स्थान को कवर कर अस्पताल पहुंचा जाए और किसी क्वालिफाइड डाक्टर से ट्रीटमैंट कराया जाए. प्लास्टिक रैप से सैकंडरी इन्फैक्शन होने की संभावना कम हो जाती है.

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6. प्लास्टिक रैप जोकि आसानी से मैडिकल की दुकान पर मिल जाता है, घाव पर ढीला रैप करने से चिपकता नहीं है और इस से घाव के इन्फैक्टेड होने का खतरा भी कम हो जाता है.

7. यदि जलने का अनुपात बहुत ज्यादा है, बहुत सारे छाले हो गए हैं या स्किन काफी ज्यादा जल गई है तो जल्द से जल्द अस्पताल में  भरती कराने की सलाह है. क्योंकि एंटीबायोटिक तो चाहिए ही, पेनकिलर भी चाहिए, ये सब रोगी की मेजर जरूरत हैं.

8. एक और महत्त्वपूर्ण बात यह है कि जब पटाखों का धुआं आंखों में जाए और इरिटेशन होने लगे तो उसे भी ठंडे पानी से साफ कर लेना चाहिए. इस से फायदा मिलता है. चेहरे पर पटाखों के धुएं और धूल से होने वाली किसी भी तरह की एलर्जी को एवौएड करने के लिए साबुन और पानी से मुंह को अच्छी तरह धोएं. इस के अलावा कुछ न करें.

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9. स्किन जलने पर यदि छाला हो तो उसे फोड़ने की कोशिश न करें, वह एक से दो दिन में खुद ही बैठ जाएगा. छाले फोड़ने से स्किन ओपन हो जाती है और उस में इन्फैक्शन हो जाता है. कभीकभार जब छाला काफी बड़ा हो और उस में पानी भर जाए तो उसे फोड़ देने से पानी निकल जाता है और स्किन उस के ऊपर बैठ जाती है जिस से इन्फैक्शन के चांसेस कम होते हैं.

प्यार या समझौता : भाग 1

लेखिका- ममता परनामी

कहने को निखिल मुझ से बहुत प्यार करते हैं. सभी कहते हैं कि निखिल जैसा पति संयोग से मिलता है. घर में सभी सुखसुविधाएं हैं. मैं जो चाहती हूं वह मुझे मिल जाता है लेकिन लोग यह क्यों नहीं समझते कि मैं इनसान हूं. मुझे घर में सजी रखी वस्तुओं से ज्यादा छोटेछोटे खुशी के पलों की जरूरत है.

शादी के इतने साल बाद भी मुझे यह याद नहीं पड़ता कि कभी निखिल ने मेरे पास बैठ कर मेरा हाथ पकड़ कर यह पूछा हो कि मेघा, तुम खुश तो हो या मैं तुम्हें उतना समय नहीं दे पाता जितना मुझे देना चाहिए लेकिन फिर भी मैं तुम से बहुत प्यार करता हूं.

निखिल और मुझ में हमेशा एक दूरी ही रही. मैं अपने उस दोस्त को निखिल में कभी नहीं देख पाई जो एक लड़की अपने पति में ढूंढ़ती है. मैं कभी अपने मन की बात निखिल से नहीं कह पाई. मुझे निखिल के रूप में हमसफर तो मिला लेकिन साथी कभी नहीं मिला. इतने अपनों के होते हुए भी आज मैं बिलकुल अकेली हूं. जिस रिश्ते में मैं ने प्यार की उम्मीद की थी, मेरे उसी रिश्ते में इतनी दूरी है कि एक समुद्र भी छोटा पड़ जाए.

मैं अपने इस रिश्ते को कभी प्यार का नाम नहीं दे पाई. मेरे लिए वह बस, एक समझौता ही बन कर रह गया जिसे मुझे निभाना था…चाहे घुटघुट कर ही सही.

मैं ने धीरेधीरे अपने हालात से समझौता करना सीख लिया था. अपने आसपास से छोटीछोटी खुशियों के पल समेट कर उन्हीं को अपने जीने की वजह बना लिया था. मैं ने इस के लिए एक स्कूल में नौकरी कर ली थी, जहां बच्चों की छोटीछोटी खुशियों में मैं अपनी खुशियां भी ढूंढ़ लेती थी. बच्चों की प्यारी और मासूमियत भरी बातें मुझे जीने का हौसला देती थीं.

किसी इनसान के पास अगर उस के अपनों का प्यार होता है तो वह बड़ी से बड़ी मुसीबत का सामना भी आसानी से कर लेता है, क्योंकि उसे पता होता है कि उस के अपने उस के साथ हैं. लेकिन उसी प्यार की कमी उसे अंदर से तोड़ देती है, बिखरने लगता है सबकुछ…मैं भी टूट कर बिखर रही थी लेकिन मेरे अंदर का टूटना व बिखरना किसी ने नहीं देखा.

जिंदगी का यह सफर सीधा चला जा रहा था कि अचानक उस में एक मोड़ आ गया और मेरी जिंदगी ने एक नई राह पर कदम रख दिया. मेरे दिल की सूखी जमीन पर जैसे कचनार के फूल खिलने लगे और उसी के साथ मेरे अरमान भी महकने लगे. स्कूल में एक नए टीचर समीर की नियुक्ति हुई. वह विचारों से जितने सुलझे थे उन का व्यक्तित्व भी उतना ही आकर्षक था. उन से बात कर के दिल को न केवल बहुत राहत मिलती थी बल्कि वक्त का भी एहसास नहीं रहता था. समीर कहा करते थे कि इनसान जो चाहता है उसे हासिल करने की हिम्मत खुद उस में होनी चाहिए.

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एक दिन बातों ही बातों में समीर ने पूछ लिया, ‘मेघा, तुम इतनी अलगअलग सी क्यों रहती हो? किसी से ज्यादा बात भी नहीं करती हो. क्यों तुम ने अपने अंदर की उस लड़की को कैद कर के रखा है, जो जीना चाहती है? क्या तुम्हारा दिल नहीं करता कि उड़ कर उस आसमान को छू लूं…एक बार अपने अंदर की उस लड़की को आजाद कर के देखो, जिंदगी कितनी खूबसूरत है.’

समीर की बातें सुनने के बाद मुझे लगने लगा था कि मेरा भी कुछ अस्तित्व है और मुझे भी अपनी जिंदगी खुशियों के साथ जीने का हक है. यों घुटघुट कर जीने के लिए मैं ने जन्म नहीं लिया है. इस तरह मुझे मेरे होने का एहसास दिया समीर ने और मुझे लगने लगा था जैसे मुझे वह दोस्त व साथी मिल गया है जिस की मुझे तलाश थी, जिसे मैं ने हमेशा निखिल में ढूंढ़ा लेकिन मुझे कभी नहीं मिला.

मैं फिर से सपने देखना चाहती थी लेकिन मन में एक डर था कि यह सही नहीं है. समीर की आंखों में एक कशिश थी जो मुझे मुझ से ही चुराती जा रही थी. उन की आंखों में डूब जाने का मन करता था और मैं कहीं न कहीं अपने को बचाने की कोशिश कर रही थी लेकिन असफल होती जा रही थी. मन कह रहा था कि सभी पिंजरे तोड़ कर खुले आकाश में उड़ जाऊं पर इस दुनिया की रस्मोरिवाज की बेडि़यां, जिन में मैं इस कदर जकड़ी हुई थी कि उन्हें तोड़ने की हिम्मत नहीं थी मुझ में.

मेरे अंदर एक द्वंद्व चल रहा था. दिल और दिमाग की लड़ाई में कभी दिल दिमाग पर हावी हो जाता तो कभी दिमाग दिल पर. कुछ समझ में नहीं आ रहा था कि क्या करूं. समीर का बातें करतेकरते मेरे हाथ को पकड़ना, मुझे छूने की कोशिश करना, मुझे अच्छा लगता था. उन के कहे हर एक शब्द में मुझे अपनी जिंदगी आसान करने की राह नजर आती थी.

मेरा मन करने लगा था कि मैं दुनिया को उन की नजरों से देखूं, उन के कदमों से चल कर अपनी राहें चुन लूं. भुला दूं कि मेरी शादी हो चुकी है. पता नहीं वह सब क्या था जो मेरे अंदर चल रहा था. एक अजीब सी कशमकश थी. अपने अंदर की इस हलचल को छिपाने की मैं कोशिश करती रहती थी. डरती थी कि कहीं मेरे जज्बात मेरी आंखों में नजर न आ जाएं और कोई कुछ समझे, खासकर समीर को कुछ समझ में आए.

समीर जब भी मेरे सामने होते थे तो मन करता था कि उन्हें अपलक देखती रहूं और यों ही जिंदगी तमाम हो जाए. उन की आंखों में डूब जाने का मन करता था. मुझे कुछ समझ में नहीं आ रहा था कि मैं क्या करूं और क्या न करूं. दिमाग कहता था कि मुझे समीर से दूरी बना कर रखनी चाहिए और दिल उन की ओर खिंचता ही जा रहा था. दिमाग कहता था कि नौकरी ही छोड़ दूं और दिल मेरे कदमों को खुद ब खुद उस राह पर डाल देता था जो समीर की तरफ जाती थी. बहुत सोचने के बाद मैं ने दिमाग की बात मानने में ही भलाई समझी और फैसला किया कि अपने बढ़ते कदमों को रोक लूंगी.

मैं ने समीर से कतराना शुरू कर दिया. अब मैं बस, काम की ही बात करती थी. समीर ने कई बार मुझ से बात करने की कोशिश की लेकिन मैं ने टाल दिया. वह परेशानी जो अब तक मैं ने अपने मन में छिपा रखी थी अब समीर की आंखों में दिखने लगी थी और मैं अपनेआप को यह कह कर समझाने लगी थी कि क्या हुआ अगर समीर मेरे पास नहीं हैं, कम से कम मेरे सामने तो हैं. क्या हुआ अगर हमसफर नहीं बन सकते, मगर वह मेरे साथ हमेशा रहेंगे मेरी यादों में…मेरे जीने के लिए तो इतना ही काफी है.

मैं अपने विचारों में खोई समीर से दूर, बहुत दूर जाने के मनसूबे बना रही थी कि अगले दिन समीर स्कूल नहीं आए. मेरी नजरें उन्हें ढूंढ़ रही थीं लेकिन किसी से पूछने की हिम्मत नहीं थी क्योंकि जब अपने मन में ही चोर हो तो सारी दुनिया ही थानेदार नजर आने लगती है. किसी तरह वह दिन बीता पर घर आने के बाद भी अजीब सी बेचैनी छाई हुई थी. अगले दिन भी समीर स्कूल नहीं आए और इसी तरह 4 दिन निकल गए. मेरी बेचैनी दिन पर दिन बढ़ती ही जा रही थी फिर बहुत हिम्मत कर के सोचा कि फोन ही कर लेती हूं. कुछ तो पता चलेगा.

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मैं ने फोन किया तो उधर से सीमा ने फोन उठाया. मैं ने उस से पूछा, ‘‘अरे, सीमा तुम, कब आईं होस्टल से?’’

‘‘दीदी, मुझे तो आए 2 दिन हो गए,’’ सीमा ने बताया.

‘‘सब ठीक तो है न…समीरजी भी 4 दिन से स्कूल नहीं आ रहे हैं.’’

‘‘दीदी, इसीलिए तो मैं यहां आई हूं. भैया की तबीयत ठीक नहीं है. उन्हें बुखार है और मेरी बातों का उन पर कोई असर नहीं हो रहा. न तो ठीक से कुछ खा रहे हैं और न ही समय पर दवा ले रहे हैं. मैं तो कहकह कर थक गई. आप ही आ कर समझा दीजिए न.’’

दीवाली 2019: ऐसे मनाते हैं दीवाली बौलीवुड स्टार्स

क्या आप जानते हैं, आपके फेवरेट बौलीवुड स्टार्स दीवाली कैसे सेलिब्रेट करते हैं. तो चलिए आपको बताते हैं, बौलीवुड में कैसे दीवाली मनाई जाती है.

‘‘दिवाली पर आप पार्टियां करें, मिठाइयां बांटे, दोस्तों से मिले, हंसी मजाक कर खुशी बांटे..’’

शमा सिकंदर

मैं बहुत धार्मिक इंसान नहीं हूं. बल्कि मैं बहुत ही ज्यादा स्प्रिच्युअल इंसान हूं. मुझे लगता है कि इंसान को जो अच्छा लगे, उसे वही करना चाहिए. पटाखे वगैरह मुझे पसंद नहीं. वैसे भी दिवाली में जो पौलूशन/ प्रदूषण व गंदगी होती है, वह मेरी समझ से परे है. ऐसा दुनिया के किसी कोने में नहीं होता, जो हमारे यहां होता है. हम खुद अपने ही घर के अंदर इतना धुआं व गंदगी करते है, वह सही नही है. यह बात मुझे बहुत बुरी लगती है. इसकी बजाय आप पार्टियां करें, मिठाइयां बांटे, दोस्तों से मिले, हंसी मजाक कर खुशी मनाएं. यदि लड़की या कोई महिला सजना संवरना चाहती है, तेा जरुर करे. लेकिन अपने घर, सड़क व शहर में प्रदूषण से पूरे संसार का पर्यावरण खराब न करें. बढ़ते प्रदूषण के ही चलते  पूरी दुनिया में वातावरण खराब हो रहा है. दिवाली वाले दिन इतना धुंआ और प्रदूषण हो जाता है कि सांस लेने में तकलीफ होने लगती है. मुझे तो सांस लेने के लिए मास्क लगाना पड़ता है. इसके अलावा बेजुबान जानवर तो अपनी जिंदगी तक खो देते हैं. मेरे कितने दोस्तों ने अपने पालतू जानवरों को खोया है. दिवाली के दिन पटाखों की आवाज व धुएं के चलते जानवरों का दम घुट जाता है. इसका जिम्मेदार तो हम ही हैं ? तो हमें ही एक इंसान के तौर पर यह जिम्मेदारी उठानी पड़ेगी कि भाई कोई भी त्यौहार हो, उसका मकसद बर्बादी नहीं होना चाहिए. उसका मकसद खुशी का माहौल बनाना और एक दूसरे से प्रेम मोहब्बत होना चाहिए.

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‘‘मुझे इस दिवाली कुछ नही करना है..’’

आथिया शेट्टी

इस दिवाली मुझे कुछ नहीं करना.पता नहीं क्यों? पर दिवाली का माहौल ही नहीं है. ऐसा लग रहा है कि कोई त्यौहार आ ही नहीं रहा. मुझे लगता है दिवाली में शोर शराबा नही होना चाहिए. पटाखे नहीं फोड़ने चाहिए. परिवार और फ्रेंड्स के साथ खाना खाना चाहिए.

‘‘इसमें रोशनी के साथ रंगोली के विभिन्न रंग भी होते हैं.’’

नील नितिन मुकेश

यह एक ऐसा त्यौहार है,जो पूरे परिवार को इकट्ठा करता है और खुशियां बांटता है.यह रंगीन और  उजाले के साथ एक माहौल से जोड़ देता है.इसमें रोषनी के साथ रंगोली के विभिन्न रंग भी होते हैं. दिवाली के दिन पूरा परिवार एक साथ इकट्ठा होता है. हम लोग एक साथ बहुत सारा समय बिताते हैं.हम लोग साथ मिलकर दिवाली का त्यौहार मनाते हैं.

‘‘मुझे दिवाली का इंतजार रहता है..’’

आलिया भट्ट

दिवाली रोशनी और उजाले का त्योहार है. मुझे रोशनी से ज्यादा प्यार है, तो हमें अपने घर को दीपों और फेयरी लाइट्स से सजाने के लिए अवसर का इंतजार रहता है. इसलिए मुझे दिवाली के त्योहार की उत्सुकता से प्रतीक्षा रहती है. मुझे अपने घर को डेकोरेटिव लाइट्स से सजाने का बहुत शौक है. जब रात के अंधेरे में पूरा घर लाइट्स से जगमग हो, तो बहुत सुंदर लगता है. घर की सफाई का काम तो मेरी मां ही करती हैं. मैं अपना वार्डरोब जरुर दिवाली से पहले संवार लेती हूं. दिवाली के दिन सुबह हम करण जौहर के आफिस में संपन्न होने वाली दिवाली की पूजा में शामिल होने के लिए जाते हैं. रात को दीवाली की पार्टी और गेट टुगेदर को इंज्वाय करती हूं. मैं पटाखे फोड़ने के सख्त खिलाफ हूं. मैं ठहरी पशु प्रेमी. पटाखों की आवाज से पशुओं को तकलीफ होती है. इसके अलावा पटाखे फोड़ने से निकलने वाला धुआं प्रदूषण फैलाता है, जिससे लोगों को सांस लेने में तकलीफ होती है.

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‘‘मुझे ताश के पत्ते खेलना नही आता..’’

अदा शर्मा

अभी तो मैं अपनी एक नवंबर को प्रदर्षित होने वाली फिल्म ‘‘बाय पास रोड’’ को प्रमोट कर रही हूं. उम्मीद करती हूं कि लोग मेरी फिल्म ‘‘बायपास रोड’’ को देखें. मेरी तरफ से यही दिवाली का तोहफा सभी के लिए होगा. पर दिवाली के त्योहार पर ताश के पत्ते का जुआ खेलना गलत है. मुझे ताश के कार्ड खेलना तो आता नहीं हैं. मैं पटाखे जलाती नहीं हूं. क्योंकि मुझे जानवरों से बहुत प्यार है. मैं हर इंसान से कहना चाहूंगी कि उन्हें पटाखे नहीं जलाना चाहिए. क्योंकि जानवरों को पटाखों से बहुत डर लगता है. उनके लिए यह बम की तरह होता है. पटाखों को फोड़ना गलत मानती हूं.’’

‘‘पटाखों से दूर..’’

एकता जैन

फिल्म अभिनेत्री और टिकटौक स्टार एकता जैन दिवाली के पर्व को लेकर कहती हैं- ‘‘यूं तो मुझे हर पर्व अच्छे लगते हैं. मगर दिवाली का पर्व मुझे कुछ ज्यादा ही अच्छा लगता है. दिवाली से पहले घर की सफाई, उसके बाद पूजा पाठ करके मन की सफाई, और चारो तरफ दिए की रोशनी बहुत अच्छी लगती है. फिर इतने सारे पकवान, मिठाई का पूरा माहौल प्रसन्नचित कर देता है. मुझे यही बात सबसे अधिक आनंद प्रदान करती है. मगर मुझे पटाखे फोड़ना पसंद नहीं. इससे बहुत ज्यादा प्रदूषण होता है. जिससे हर इंसान और हर जानवर को तकलीफ होती है. मैं तो हर किसी से एक ही बात कहती हूं कि दिवाली में सिर्फ दिए जलाएं, पटाखे नहीं.

दीवाली स्पेशल : दीवाली कभी पति के घर कभी पत्नी के मायके

मधु की शादी के बाद की पहली दीवाली थी. ससुराल में सब खुश थे. पूरे घर में चहलपहल थी. घर में नई बहू आई थी, सो ननद परिवार समेत दीवाली सैलिब्रेट करने आई थी. मधु ससुराल वालों की खुशी में खुश थी मगर उस के मन के एक कोने में मायके के सूने आंगन का एहसास कसक पैदा कर रहा था. वह एकलौती बेटी थी. शादी के बाद उस के मांबाप अकेले रह गए थे. मां की तबीयत ठीक नहीं रहती थी. वैसे भी, पहले पूरे घर में उस की वजह से ही तो रौनक रहती थी. अब उस आंगन में कौन दौड़दौड़ कर दीये जलाएगा, यह एहसास उस के दिल के अंदर एक खालीपन पैदा कर रहा था.

मधु ने पति से कुछ कहा तो नहीं, मगर उस के मन की उदासी पति से छिपी भी न रह सकी. पति ने मधु से रात 9 बजे के करीब कार में बैठने को कहा. मधु हैरान थी कि वे कहां जा रहे हैं. गाड़ी जब उस के मायके के घर के आगे रुकी तो मधु की खुशी का ठिकाना न रहा. घर में सजावट थी पर थोड़ीबहुत ही. वह दौड़ती हुई अंदर पहुंची. मां बिस्तर पर बैठी थीं और पापा किचन में कुछ बना रहे थे. अपनी लाड़ली को देखते ही दोनों ने उसे गले लगा लिया. बीमार मां का चेहरा खुशी से दमकने लगा. दोनों करीब 1 घंटे वहां रहे. घर को रोशन कर जब वापस लौटे तो मधु का दिल पति के प्रेम में आकंठ डूबा हुआ था.

खुशियों के त्योहार दीवाली का आनंद पूरे परिवार के साथ मनाने में आता है.  एक लड़की के लिए उस का मायका और ससुराल दोनों ही महत्त्वपूर्ण होते हैं.  शादी के बाद उसे अपनी ससुराल में ही दीवाली मनानी होती है और तब वह अपनी मां के हाथों की मिठाई व भाईबहनों की चुहलबाजियां बहुत मिस करती है.  आज जबकि परिवार वैसे ही काफी छोटे होते हैं, दीवाली में सब के साथ मिल कर ही खुशियां बांटी जा सकती हैं.

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शरीर से स्त्री भले ही ससुराल में हो  पर उस के मन का कोना मायके की याद में गुम रहता है. क्यों न इस दीवाली की रोशनी हर आंगन में बिखेरें. कभी पति की ससुराल तो कभी पत्नी की ससुराल खुशियों से आबाद करें.

कहां मनाएं दीवाली

आमतौर पर शादी के बाद की पहली दीवाली रिश्तों को बनाने और उन्हें रंगों से सजाने में खास महत्त्वपूर्ण होती है. यह दिन ससुराल में ही बीतना चाहिए ताकि नई बहू के आने की खुशी दोगुनी हो जाए. पर ध्यान रहे आप की बहू किसी घर की बेटी भी है. वह आप के घर में रौनक ले कर आई है पर उस का मायका सूना हो चला है. तो क्यों न पत्नी के मायके को भी नए दामाद के आने की खुशी से रोशन किया जाए.

यदि पत्नी का मायका और ससुराल एक ही शहर में हैं तो दोनों परिवार मिल कर भी दीवाली मना सकते हैं. इस से दोनों परिवारों को आपस में घुलनेमिलने का मौका मिलेगा और बच्चे भी दोनों परिवारों से जुड़ सकेंगे. दोनों घरों की खुशियों के लिए यह भी किया जा सकता है कि पतिपत्नी दोचार घंटे के लिए बच्चों को नानानानी के पास छोड़ आएं.

यदि दोनों घर अलगअलग शहरों में हैं तो पतिपत्नी बच्चों को ले कर एक दीवाली ससुराल में तो दूसरी मायके में मना सकते हैं.

आजकल कई घरों में एकलौती  बेटियां होती हैं. ऐसे में लड़की के मायके वाले यानी उस के मांबाप को भी हक  है कि वे अपनी बेटी और उस के बच्चों के साथ अपने जीवन की खुशियां बांटें.

जब पति दीवाली में अपनी ससुराल जाए तो दामाद के बजाय बेटे की तरह जाए.  अपनी आवभगत  कराने के बजाय इस बात का खयाल ज्यादा रखे कि सासससुर के लिए तोहफा क्या ले जाना है या मिठाइयों, कपड़ों, पटाखों और सजावटी सामानों का बढि़या इंतजाम कैसे किया जाए या घर को इस दिन कैसे अधिक खूबसूरत बनाया जाए या फिर सासससुर के स्वास्थ्य से जुड़ी समस्याएं कैसे दूर की जाएं.

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पति की ससुराल का अर्थ है पत्नी के मांबाप का घर. जब पत्नी पति के मांबाप को अपने मांबाप और उस के घर को अपना घर मान सकती है तो पति क्यों नहीं? आखिर मांबाप तो लड़के के हों या लड़की के, उतने ही प्यारदुलार और केयर के साथ अपने बच्चों का पालनपोषण करते हैं. तो क्या लड़की के मांबाप को  बुढ़ापे में अपने बच्चों का प्यार और साथ पाने का हक नहीं है?

झगड़े दूर करें

यदि किसी बात को ले कर दोनों घरों में किसी भी तरह का मनमुटाव है तो दीवाली के मौके पर उसे जरूर दूर कर दें. परस्पर आगे बढ़ने और खुशियों को बांटने से ही जीवन सुखद बनता है.

करण जौहर के साथ काम करना गर्व की बात- विक्रमजीत विर्क

इन दिनों डिजिटल और ओटीटी प्लेटफार्म ने कई फिल्मकारों के लिए एक नई राह खोल दी है. जो फिल्में सिनेमा घरों में नहीं पहुंच पा रही हैं, कम से कम वह डिजिटल या ओटीटी प्लेटफार्म पर आकर दर्शकों से रूबरू हो रही हैं. यह एक कड़वा सच है. मशहूर फिल्मकार करण जौहर ने भी सुशांत सिंह राजपूत और दक्षिण भारत की फिल्मों में अपने अभिनय का जलवा दिखा चुके अभिनेता विक्रमजीत विर्क को लेकर फिल्म ‘‘ड्राइव’’ का निर्माण किया था. यह फिल्म लंबे समय से अपने प्रदर्शन का इंतजार कर रही थी. अब खबर है कि यह फिल्म एक नवंबर को सिनेमाघरों की बजाय ‘‘नेटफ्लिक्स’’ पर आएगी.

फिल्म ‘‘ड्राइव’’ के नेटफ्लिक्स पर आने की खबर से विक्रमजीत विर्क काफी खुश व उत्साहित हैं. मूलतः हरियाणवी जाट विक्रमजीत विर्क ने दस साल के अंदर दक्षिण भारत की 15 फिल्मों में अभिनय कर अपनी खास पहचान बनायी है. मगर वह लंबे समय से हिंदी फिल्मों से जुड़ने के लिए इंतजार कर रहे थे. जब उन्हें करण जौहर की प्रोडक्शन कंपनी ‘‘धर्मा प्रोडक्शन” की फिल्म ‘‘ड्राइव’’ में सुशांत सिंह राजपूत के साथ समानांतर लीड के रूप में अभिनय करने का मौका मिला, तो वह अति उत्साहित थे. मगर इस फिल्म के प्रदर्शन के अधर में लटक जाने से वह काफी निराश भी थे. पर अब वह खुश हैं क्योंकि उनकी फिल्म ‘‘ड्राइव’’ एक नवंबर को ‘‘नेटफ्लिक्स’’ पर आएगी. इससे वह अब अंतरराष्ट्रीय स्तर पर अपनी अभिनय प्रतिभा को पहुंचा सकेंगे.

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करण जौहर प्रतिभा को तराशने में माहिर माने जाते हैं और उनके साथ इस फिल्म के माध्यम से विर्क का मार्गदर्शन करने के साथ, उनकी सीमाओं का भी विस्तार हुआ है और उन्हें हर दृश्य में खुद को आगे बढ़ाने का अवसर भी मिला है.

तरूण मनसुखानी निर्देशित एक्शन व रोमांच से भरपूर फिल्म ‘‘ड्राइव’’ में जैकलीन फर्नांडिस, बोमन ईरानी, पंकज त्रिपाठी, विभा छिब्बर और सपना पब्बी भी हैं. इसके गाने पहले से ही हिट हो चुके हैं.

खुद विक्रमजीत विर्क कहते हैं- ‘‘करण जोहर के प्रोडक्शन की फिल्म से हिंदी फिल्मों यानी कि बौलीवुड में कदम रखना सौभाग्य की बात है. उनके निर्देशन और मार्गदर्शन की तुलना नहीं की जा सकती है और मैं इस अवसर को पाकर बेहद भाग्यशाली महसूस कर रहा हूं. उन्होंने मुझे अभिनय के बारे में एक नया दृष्टिकोण दिया और मुझे खुद को चुनौती देने में मदद की.

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‘ड्राइव’ एक सम्मोहक कहानी है, जिसमें एक्शन से लेकर इमोशन तक सब कुछ है. हमें यकीन है कि यह फिल्म डिजिटल जगत की सभी सीमाओं को तोड़ देगी. मैं खुद को गौरवान्वित महसूस कर रहा हूं कि बौलीवुड में कदम रखते हुए मुझे करण जौहर के साथ ही ‘नेटफ्लिक्स’ का साथ मिल गया.’’

एडिट बाय- निशा राय

कच्चे पंखों की फड़फड़ाहट : भाग 2

एक रात बिजली नहीं थी और लावण्या के घर का इनवर्टर भी डाउन हो गया था. गरमी के चलते उस की नींद खुल गई और प्यास भी लगने लगी थी. पानी पी आती लेकिन आलस भी होरहा था. इसी उधेड़बुन में वह चुपचाप लेटी रही.

तभी लावण्या को अपनी तरफ सोनू के हाथ की हरकत महसूस हुई. लावण्या को कुछ अलग सी छुअन लगी सो वह यों ही लेटी रही कि देखे आगे क्या होगा.

उन हाथों के पड़ावों के बारे में जैसेजैसे लावण्या को पता चलता गया, उस के आश्चर्य की सीमाएं टूटती गईं. उस का दिल जोरजोर से धड़कने लगा और प्यास से सूखे मुंह में कसैले स्वाद ने भी अपनी जगह बना ली. जी तो चाहा कि सोनू को उठा कर थप्पड़ मारने शुरू कर दे, लेकिन विचारों के बवंडर ने ऐसा करने नहीं दिया.

कुछ देर बाद सोनू ने धीरे से करवट बदली और शांत हो गया. लावण्या उठ कर बिस्तर पर बैठ गई और अपनी हालत को देखने लगी. अकसर रात में अपने कपड़ों के बिखरने का राज जान कर उस की आंखों से झरझर आंसू बहने लगे थे. आखिर उन लड़कों का बुरा असर उस के कलेजे के टुकड़े को भी अपनी चपेट में ले गया था.

लावण्या सोच रही थी कि उस की परवरिश में आखिर कहां कमी रह गई, जो बाहरी चीजें इतनी आसानी से उस के खून में आ मिलीं? वह उसी हाल में पूरी रात पलंग पर बैठी रही.

अगली सुबह नाश्ता बनाते समय लावण्या ने सोनू के सामने अनजान बने रहने की भरसक कोशिश की लेकिन रहरह कर उस के अंदर का हाल उस के शब्दों से लावा बन कर फूटने को उतावला हो जाता और सोनू हैरानी से उस का मुंह ताकने लगता.

सोनू के स्कूल चले जाने के बाद लावण्या लगातार अपने मन को मथती रही. आनंद से इस बारे में बात करे या नहीं? अपनी मां को बताए कि दीदी को, वह फैसला नहीं ले पा रही थी.

कई दिनों तक लावण्या इसी उधेड़बुन में रही, लेकिन किसी से कुछ कहा नहीं. सोनू से बात करते समय अब उस ने मां वाली गरिमा का ध्यान रखना शुरू कर दिया.

आखिरकार उस के दिल ने फैसला कर लिया कि सोनू उस का जिगर है, उम्र के इस मोड़ पर वह भटक सकता है मगर खो नहीं सकता.

इस के अलावा सोनू बहुत कोमल मन का भी था. अपनी छोटी सी गलती के भी पकड़े जाने पर वह काफी घबरा उठता. और यहां तो इतनी बड़ी बात थी. सीधेसीधे उस से इस बारे में कुछ कहना किसी बुरी घटना को न्योता देने के बराबर था.

लावण्या ने तय किया कि वह उन जरीयों को तोड़ देगी जो उस के बेटे के कच्चे मन की फड़फड़ाहट को अपने अनुसार हांकना चाह रहे हैं.

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लावण्या ने उन लड़कों और सोनू के बीच हो रही बातचीत को छिपछिप कर सुनना शुरू किया. उस का सोचना बिलकुल सही निकला.

वे लड़के लगातार सोनू के बचपन को अधपकी जवानी में बदलना चाह रहे थे और उन की घिनौनी चर्चाओं का केंद्र लावण्या होती थी.

सोनू फटीफटी आंखों से उन की बातें सुनता रहता था. नए हार्मोंस से भरे उस के किशोर मन के लिए ये अनोखे अनुभव जो थे. लावण्या सबकुछ अपने मोबाइल फोन में रेकौर्ड करती गई.

लगातार उन को मार्क करने के बाद एक दिन लावण्या ने अपने संकल्प को पूरा करने का मन बना लिया और उन लड़कों के कमरे में गई.

सोनू अभीअभी वहां से निकला था. उसे देख कर दोनों चौंक उठे. एक ने बनावटी भोलेपन से पूछा, ‘‘क्या बात है आंटी? आप यहां…’’

लावण्या ने सोनू के साथ होने वाली उन की बातचीत की वीडियो रेकौर्डिंग चला कर मोबाइल फोन उन की ओर कर दिया. यह देख दोनों लड़के घबरा गए.

लावण्या गुस्साई नागिन सी फुफकार उठी, ‘‘अपने बच्चे पर तुम लोगों का साया भी मैं अब नहीं देख सकती. अभी और इसी वक्त यहां से अपना सामान बांध लो वरना मैं ये रेकौर्डिंग पुलिस को दिखाने जा रही हूं.’’

वे दोनों उस के पैरों पर गिर पड़े, पर लावण्या ने उन को झटक दिया और गरजी, ‘‘मैं ने कहा कि अभी निकलो तो निकलो.’’

वे दोनों उसी पल अपना बैग उठा कर वहां से भाग निकले. लावण्या सोनू के पास आई. वह इन बातों से अनजान बैठा कोई चित्र बना रहा था.

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लावण्या ने उस से पूछा तो बोला कि पूरा होने पर दिखाएगा. चित्र बना कर उस ने दिखाया तो उस में लावण्या और अपना टूटफूटा मगर भावयुक्त स्कैच बनाया था उस ने और लिखा था, ‘मेरी मम्मी, सब से प्यारी.’

लावण्या ने उसे गले लगा लिया और चूमने लगी. उस की आंखों से आंसू बह निकले और दिल अपने विश्वास की जीत पर उत्सव मनाने लगा. उस के कलेजे का टुकड़ा बुरा नहीं था, बस जरा सा भटका दिया गया था जिस को वापस सही रास्ते पर आने में अब देर नहीं थी.

सिगरेट की लत

‘‘आप कहीं जा रहे हैं?’’ पति को जाते देख कर मैं ने पूछा. ‘‘तुम खाना लगाओ, मैं बस 2 मिनट में आता हूं,’’ कह कर पतिदेव जो निकले तो घंटे भर के लिए लापता हो गए. उन की इस आदत से मैं वाकिफ हूं फिर भी पतिदेव की हुक्मउदूली नहीं  कर सकती. खाना मेज पर रखेरखे ठंडा हो गया. अपनी आदत के अनुसार वह घंटे भर बाद वापस आए. चाहे कितना कुछ कहूं पर चिकने घड़े की तरह उन पर कुछ असर ही नहीं होता है.

मेरा दिल तो शादी के बाद से ही पतिदेव को सिगरेट पीता देख कर सुलगना शुरू हो गया था. मैं जब भी उन के होंठों पर सौतन की तरह सिगरेट को चिपके देखती कसमसा कर रह जाती. अब तो सिगरेट पीने की लत, शौक से जनून की हद तक बढ़ गई है और घर की तमाम कीमती चीजें फुंकनी शुरू हो गई हैं.

कभी सोफे के कवर पर सिगरेट का जला निशान दिखाई देता है तो कभी कारपेट पर. सिगरेट पीने की कोई एक जगह तो बन नहीं सकती, इसलिए तकिए के कवर भी सिगरेट के वार से बच नहीं पाते. अखबार या पत्रिका पढ़तेपढ़ते हाथ में सिगरेट दबाए कब पतिदेव नींद में खर्राटे लेने लगते हैं, उन्हें खुद पता नहीं चलता है. वह तो जब मैं काम खत्म कर सोने के लिए कमरे में आती हूं तो रजाई व गद्दे से उठते धुएं का रहस्य समझ में आता है.

दुखी हो कर एक बार तो मैं ने पतिदेव को धमकी भी दे डाली थी, ‘‘या तो तुम सिगरेट पीना बंद कर दो, वरना मैं तुम से दोगुनी सिगरेट पीना शुरू कर दूंगी.’’

पतिदेव ने ठहाका लगाते हुए कहा, ‘‘यह शुभ काम तुम जितनी जल्दी चाहो शुरू कर लो.’’

पति को खुश देख कर सोचा कोई और चाल चलनी होगी, सो मैं ने ऐलान कर दिया, ‘‘आज से आप घर के अंदर सिगरेट नहीं पिएंगे.’’

‘अंधा क्या चाहे दो आंखें.’ यह कहावत यहां बिलकुल सटीक बैठी. अब तो पान की दुकान पर देर रात तक मित्रमंडली में जमे रहने का उन्हें एक बहाना मिल गया.

अब मैं पति के इंतजार में कुढ़ती रहती हूं. कुछ कह भी नहीं पाती.

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मसूरी में हिमपात हुआ तो पति ने मुझे खुश करने के लिए स्नोफाल देखने का प्रोग्राम बना डाला. वहां पहुंचे तो स्नोफाल नहीं देख सके, क्योंकि दिल्ली की बरसात की तरह स्नोफाल रूपी बादल बरस चुके थे. हां, वहां पहुंच कर बर्फ पर पैर फिसलने का खतरा मुझे जरूर लग रहा था. नीचे से आते हुए लोगों पर वहां पहले पहुंचे लोग बर्फ का गोला बना कर फेंक रहे थे. मेरी कनपटी पर ऐसे ही एक बर्फ का गोला लगने से मैं स्वयं को संभाल नहीं पाई और फिसल गई. आखिर वही हुआ जिस के लिए मैं डर रही थी. हिम्मत कर के उठी तब तक दूसरा गोला सिर पर पड़ा और दोबारा गिर पड़ी. अब दर्द से कराहती हुई मैं वापस उतरने लगी.

दूर से अपनी गाड़ी के पास भीड़ लगी देख कर मन में एकसाथ शंका के कई बुलबुले बनने व फूटने लगे. आखिर में मेरी सोच सिगरेट पर जा कर अटक गई. मुझे लगा कि शायद गाड़ी चलाते समय पति के हाथ में सिगरेट जलती ही होगी और नींद का झोंका आया होगा और हाथ की जलती सिगरेट छूट कर नीचे गिर गई होगी. जब फर्श का कारपेट जल कर गाड़ी में धुआं भर गया होगा तो उसे देख कर लोगों ने शीशा तोड़ कर आग बुझाई होगी.

पता नहीं क्या सोच कर मैं दुखी नहीं थी. शायद मैं सोच रही थी कि आज के बाद पति हमेशा के लिए ही सिगरेट छोड़ देंगे, क्योंकि बहुत बड़ा नुकसान होतेहोते बच गया.

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रात को खाना खाने से पहले मैं ने पति को बाहर जाते देख कर पूछा, ‘‘कहां जा रहे हैं?’’

‘‘सिगरेट खत्म हो गई है. बाहर पीने जा रहा हूं.’’

‘‘क्या…आप ने अब भी सिगरेट छोड़ने का फैसला नहीं किया?’’

‘‘तुम क्या समझती हो कि मेरी सिगरेट से गाड़ी जलने लगी थी?’’

‘‘और क्या. इस में कोई शक है क्या?’’

‘‘मैडम, तुम्हारी पूजापाठ की वजह से आज गाड़ी में आग लग जाती. घर से कहीं जाओगी तो गाड़ी में अगरबत्ती जलाना नहीं भूलती हो. आगे से यह सब नहीं चलेगा, समझीं.’’

मैं आंखें फाड़े आश्चर्य से पति को देख रही थी.

कम्मो : भाग 1

‘‘मैं जा रही हूं बाबूजी, 9 बजने वाले हैं,’’ कम्मो ने कहा.

‘‘ठीक है कम्मो, जरा देखभाल कर घर जाया करो रात को. आजकल ऐसा ही जमाना है.’’

‘‘बाबूजी, मुझे अकेले कोई डर नहीं लगता. मैं ऐसे लोगों से बखूबी निबटना जानती हूं,’’ कम्मो ने राजेश की ओर देखते हुए कहा और कमरे से बाहर निकल गई.

कुछ देर बाद राजेश उठे और दरवाजा बंद कर बिस्तर पर बैठ गए.

राजेश की उम्र 62 साल हो चुकी थी. 2 साल पहले वे एक सरकारी महकमे से अफसर रिटायर हुए थे. परिवार में पत्नी कमला और 2 बेटे विकेश और विजय थे. दोनों बेटों को पढ़ालिखा कर इंजीनियर बनाया. दोनों ने बेंगलुरु में नौकरी कर ली. दोनों की शादी कर दी गई और वे अपनी पत्नियों के साथ खूब मजे में रह रहे थे.

जब तक पत्नी कमला का साथ रहा, राजेश को कुछ भी कमी महसूस न हुई. नौकरी के दौरान खूब पैसा कमाया. बड़ा 4 कमरों का मकान बना लिया. पिछले साल एक दिन कमला को हार्ट अटैक हुआ और अस्पताल पहुंचने से पहले ही दम तोड़ दिया.

कमला के मरने के बाद राजेश बिलकुल अकेले हो गए. दिन तो किसी तरह कट जाता, पर रात काटनी बहुत मुश्किल हो जाती.

विकेश और विजय ने बारबार फोन कर के उन को अपने पास बुला लिया. दोनों के घर एकएक महीना बिता कर वे फिर यहां अपने मकान में आ गए.

सुबह का नाश्ता, सफाई, पोंछा व कपड़ों की धुलाई का काम जमुना करती थी. दोपहर व शाम का खाना शांति बनाती थी.

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एक दिन राजेश ने कहा था, ‘जमुना, मैं चाहता हूं कि तुम किसी ऐसी काम वाली को ढूंढ़ दो जो सुबह 9 बजे से रात के 8 बजे तक रहे. सुबह नाश्ते से रात के खाने तक के सारे काम कर सके.’

‘ठीक है बाबूजी, मैं तलाश करूंगी,’ जमुना ने कहा था.

एक दिन सुबह जमुना एक औरत को ले कर आई.

जमुना ने कहा, ‘बाबूजी, यह कम्मो है. जब मैं ने यहां काम के बारे में बताया तो यह तैयार हो गई. यह सुबह 9 बजे से रात के 8 बजे तक रहेगी.’

राजेश ने कम्मो की तरफ देखा. सांवला रंग, गदराया बदन, मोटीमोटी आंखें. उम्र तकरीबन 30-32 साल. माथे पर बिंदी और मांग में सिंदूर.

अगले दिन सुबह कम्मो आई तो राजेश अखबार पढ़ रहे थे.  कम्मो ने ‘नमस्ते बाबूजी’ कहा.

‘आओ कम्मो,’ राजेश ने उसे देखते हुए कहा, ‘बैठो.’

कम्मो वहां रखी कुरसी पर बैठ गई.

‘कम्मो, जरा अपने बारे में कुछ बताओ?’  राजेश ने पूछा.

‘बाबूजी, मेरा नाम कामिनी है, पर सभी मुझे कम्मो कहते हैं. मैं बिहार में पटना के पास ही एक गांव की रहने वाली हूं. मैं ने 10वीं तक पढ़ाई की है. मैं ने अपने मातापिता को नहीं देखा. वे दोनों मजदूरी करते थे. एक दिन एक मकान का लैंटर टूट गया तो उस में दब कर दोनों मर गए. मकान मालिक ने मेरे मामा को

3 लाख रुपए दे दिए थे तब मेरी उम्र 5 साल थी. मामामामी ने ही पाला है.

‘18 साल की उम्र में मामा ने मेरी शादी पास के ही एक गांव में कर दी. शादी के 3 महीने बाद मेरे पति की सड़क हादसे में मौत हो गई. कुछ समय बाद देवर मोहन के साथ मेरी शादी हो गई. वह शहर में एक फैक्टरी में काम करता था. रोज सुबह चला जाता और शाम को लौटता था.

‘मेरी सास नहीं थी. एक दिन दोपहर का खाना खा कर मैं आराम कर रही थी तो अचानक ही ससुर ने मुझे दबोच लिया. मैं ने बहुत मना किया, पर वह नहीं माना. मैं ने इस बारे में पति मोहन को बता दिया.

‘उन दोनों की लड़ाई हो गई. इस लड़ाई में ससुर के हाथ से मोहन की हत्या हो गई. ससुर को पुलिस ने पकड़ लिया. मैं वहां उस घर में अकेली कैसे रहती, इसलिए मैं अपने मामामामी के पास लौट गई.

‘कुछ महीने बाद एक आदमी मामा के घर आया. वह आदमी मेरी तरफ ही देख रहा था. मामा ने मुझे बताया कि यह किशनलाल है. मुजफ्फरनगर का रहने वाला है. यह सब्जी बेचने का काम करता है. इस की घर वाली को पीलिया हो गया था. इलाज कराने पर भी वह बच नहीं सकी. घर में 20 साल का बेटा कमल है. वह 7वीं क्लास तक ही पढ़ सका, किसी दुकान पर नौकरी करता है.

‘मामा ने एक मंदिर में मेरी शादी किशनलाल से कर दी. मैं अपने पति के साथ यहां आ गई. मुझे बाद में पता चला कि मेरे मामा ने इस शादी के लिए 40,000 रुपए लिए थे.

‘मेरी शादी कर के मामा बहुत खुश था कि रुपए भी मिल गए और छाती पर बैठी मुसीबत भी टल गई.

‘एक दिन मुझे पता चला कि मेरे ससुर को हत्या के जुर्म में उम्रकैद की सजा हो गई है. यहां सब ठीकठाक चल रहा था. पहले तो मेरा पति कभीकभार शराब पी कर आता था, पर धीरेधीरे उसे रोज पीने की आदत पड़ गई. वह जुआ भी खेलने लगा था.

‘पति ने रेहड़ी लगानी बंद कर दी. मंडी वालों का कर्ज सिर पर चढ़ गया था. घर में जो जमापूंजी, जेवर वगैरह रखे थे, मंडी वालों को दे कर पीछा छुड़ाया. इस के बाद मैं ने घरों में काम करना शुरू कर दिया,’ कम्मो ने अपने बारे में बताया.

‘ठीक है कम्मो, अब तुम घर का काम संभालो.’

‘बाबूजी, इतनी देर तक अपनी दुखभरी कहानी सुना कर मैं ने आप के सिर में दर्द कर दिया न? आप कहें तो सब से पहले मैं आप के लिए बढि़या सी चाय बना दूं?’ कम्मो ने हंसते हुए कहा था. राजेश मना नहीं कर सके थे.

कम्मो ने घर में काम करना शुरू कर दिया. सुबह नाश्ते से ले कर रात के खाने तक सभी काम बहुत सलीके से करती थी. उसे राजेश के यहां काम करते हुए 2 महीने हो चुके थे.

अकसर फर्श की सफाई करते हुए जब कम्मो पोंछा लगाती तो उस के उभार ब्लाउज से बाहर निकलने को हो जाते.

राजेश कुरसी पर बैठे हुए अखबार पढ़ रहे होते तो उन की नजरें उभारों पर टिक जातीं. वे इधरउधर देखने की कोशिश करते, पर फिर भी उन की नजर कम्मो की गदराई जवानी पर आ कर ठहर जाती. वे अखबार की आड़ ले कर एकटक उसे देखते रहते.

कम्मो भी यह सब जानती थी कि बाबूजी क्या देख रहे हैं. वह चुपचाप अपने काम में लगी रहती मानो उसे कुछ पता ही न हो.

एक दिन कम्मो ने राजेश से कहा, ‘‘बाबूजी, कमल के पापा की तबीयत ठीक नहीं चल रही है. उस को किसी अच्छे डाक्टर को दिखाना पड़ेगा.’’

‘‘क्या हो गया है उसे?’’

‘‘भूख नहीं लगती. कमजोरी भी आ गई है. महल्ले का डाक्टर कह रहा था कि शराब पीने के चलते गुरदे खराब हो रहे हैं.’’

‘‘जब इतनी शराब पीएगा तो गुरदे तो खराब होंगे ही.’’

‘‘बाबूजी, मुझे कुछ पैसे दे दीजिए.’’

‘‘कितने पैसे चाहिए?’’

‘‘5,000 रुपए दे दीजिए. डाक्टर की फीस, टैस्ट, दवा वगैरह में इतने तो लग ही जाएंगे.’

‘‘ठीक है, रात को जब घर जाएगी तो मुझ से लेती जाना.’’

कम्मो ने चेहरे पर मुसकान बिखेर कर कहा, ‘‘बाबूजी, आप बहुत अच्छे इनसान हैं जो हम जैसे गरीबों की कभी भी मदद कर देते हो.’’

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‘‘जब तुम यहां इतना अच्छा काम कर रही हो तो मेरा भी फर्ज बनता है कि मैं तुम्हारी मदद करूं,’’ राजेश ने कम्मो की तरफ देखते हुए कहा.

कुछ दिन बाद राजेश का एक पुराना दोस्त मदनलाल दिल्ली से आया. वह उन का पुराना साथी था. वह भी सरकारी नौकरी से रिटायर हुआ था.

कम्मो चाय व कुछ खाने का सामान ले कर आई और मेज पर सजा कर चली गई.

चाय पीतेपीते मदनलाल ने कहा, ‘‘यार राजेश, यह नौकरानी तो एकदम पटाखा है. कहां से ढूंढ़ कर लाए हो?’’

‘‘बस अपनेआप ही मिल गई.’’

ऐसे करें गन्ने के साथ राजमा की खेती

पश्चिमी उत्तर प्रदेश में गन्ना मुख्य फसल के रूप में उगाया जाता है. नकदी फसल होने और तमाम चीनी मिलें होने की वजह से किसानों के बीच गन्ना बहुत ही लोकप्रिय फसल है. इस की खेती ज्यादातर एकल फसल के?रूप में की जाती है. किसान गन्ने की फसल को नौलख या पेड़ी के रूप में 2-3 साल तक लेते रहते हैं. अनेक किसान गन्ने के साथ अन्य फसल भी लेते हैं जिसे हम सहफसली खेती के रूप में जानते हैं. ऐसा करने से गन्ने की खेती में मुनाफा भी बढ़ जाता है.

गन्ना और राजमा की सहफसली खेती

खेत का चुनाव व तैयारी : गन्ना और राजमा की खेती के लिए समतल जीवांशयुक्त बलुई दोमट मिट्टी का चुनाव करना चाहिए. गोबर की खाद को खेत में डाल कर 4-5 बार जुताई कर के मिट्टी को भुरभुरी बना लेना चाहिए.

बीज का चुनाव व बोआई : पंत अनुपमा, अर्का कोमल, करिश्मा, सेमिक्स, कंटेंडर वगैरह राजमा की उन्नत प्रजातियां हैं. राजमा के बीजों को कार्बंडाजिम की 2 ग्राम मात्रा से प्रति किलोग्राम बीज की दर से उपचारित करें. गन्ने के बीजोपचार के लिए कार्बंडाजिम की 200 ग्राम मात्रा को 100 लिटर पानी में घोल कर टुकड़ों को उस में 25-30 मिनट तक डुबोएं.

गन्ना और राजमा की सहफसली खेती में राजमा के 80 किलोग्राम और गन्ने के 60 क्विंटल बीज प्रति हेक्टेयर की दर से इस्तेमाल करने चाहिए. बोआई 25 अक्तूबर से 15 नवंबर के मध्य कर लेनी चाहिए. गन्ने की 2 लाइनों के बीच राजमा की 2 लाइनों की मेंड़ों पर बोआई करें.

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निराईगुड़ाई व सिंचाई : दोनों फसलों की बोआई सर्दी के मौसम में होने की वजह से खरपतवारों की समस्या कम रहती है, फिर भी खरपतवार निकालने के लिए फसल में 2-3 बार निराईगुड़ाई करें. पूरे फसलोत्पादन के दौरान जमीन को नम बनाए रखें, ताकि फसल को पाले से सुरक्षित रखा जा सके.

खाद व उर्वरक : खेत में 400 क्विंटल प्रति हेक्टेयर की दर से सड़ी गोबर की खाद मिलानी चाहिए. इस के अलावा 150 किलोग्राम नाइट्रोजन, 60 किलोग्राम फास्फोरस, 80 किलोग्राम पोटाश और 25 किलोग्राम जिंक सल्फेट उर्वरकों का प्रति हेक्टेयर की दर से इस्तेमाल करना चाहिए.

फसल सुरक्षा : बोआई से पहले बीजोपचार जरूर करें. आमतौर पर फलियां बनते समय फली भेदक, पर्ण सुरंगक व कुछ चूषक कीटों का हमला हो जाता?है. कभीकभी मोजैक रोग का संक्रमण भी हो जाता है.

उन्नत तकनीक से खेती करने पर राजमा की फलियों की औसत उपज 50-60 क्विंटल प्रति एकड़ तक हासिल हो जाती है और

तकरीबन 40,000 रुपए प्रति एकड़ अतिरिक्त आमदनी हो जाती है. इस के साथ ही गन्ने की उत्पादकता में भी इजाफा होता है.

खास वजह यह भी है कि खेत में डाली गई खाद व उर्वरकों का अधिकतम इस्तेमाल भी है. खरपतवार प्रबंधन का लाभ दोनों फसलों द्वारा हासिल किया जाता?है और सहफसल में अपनाए गए कीट व रोग प्रबंधन का लाभ मुख्य फसल को भी मिल जाता है.

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कीटों व रोगों की रोकथाम

* नीम का तेल 1.5 लिटर प्रति हेक्टेयर की दर से इस्तेमाल करें. इस के इस्तेमाल से फसल की सुरक्षा भी हो जाती है और इनसानों की सेहत पर बुरा असर नहीं पड़ता है.

* नीम का तेल न होने पर 2 लिटर क्विनालफास 25 ईसी या 1.25 लिटर मोनोक्रोटोफास 36 एसएल या 2 किलोग्राम कार्बारिल 50 डब्लूपी को 600-700 लिटर पानी में मिला कर प्रति हेक्टेयर की दर से 12-14 दिनों के अंतराल पर छिड़काव करें.

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