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उधार के गहनों से करें तौबा

कई साल पुरानी बात है. पूर्वी दिल्ली के एक घर में शादी थी. मेहमानों का खूब जमावड़ा लगा हुआ था. दूल्हे की छोटी बहन रचना की खुशियों का ठिकाना नहीं था. बड़े भाई ने उसे सोने के झुमके जो तोहफे में दिए थे. बरात दुलहन के घर गई, खूब नाचगाना हुआ, फेरे पड़े और फिर नईनई ननद बनी रचना अपनी भाभी को घर ले आई.

शादी में रचना के झुमकों की भी खूब तारीफ हुई थी. खूबसूरत होने के साथसाथ वे महंगे भी थे. शादी की गहमागहमी कम हुई, तो रचना ने वे झुमके संभाल कर लोहे की अपनी अलमारी में रख दिए.

कुछ दिनों के बाद रचना के पड़ोस की एक सहेली मेनका के मामा की बेटी की शादी थी. एक दिन वह रचना से बोली, ‘‘सुन, तू मुझे 2 दिन के लिए अपने नए झुमके उधार दे दे. शादी में उन्हें पहनूंगी तो लड़कों पर रोब पड़ेगा.’’

रचना का मन तो नहीं था, पर वह अपनी दोस्ती भी नहीं तोड़ना चाहती थी. उस ने अपनी मां से पूछे बिना ही मेनका को झुमके दे दिए और संभाल कर रखने की भी हिदायत दी.

रचना को जिस बात का डर था, वही हुआ. मेनका से वे झुमके खो गए. दरअसल, शादी के घर में एक दिन जब वह बाथरूम से नहा कर निकली तो

वे झुमके वहीं भूल गई. फिर उन झुमकों पर किस ने हाथ साफ किया, पता ही नहीं चला.

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मेनका की तो जैसे जान सूख गई. मातापिता से खूब डांट खाई, लेकिन उस की असली समस्या तो यह थी कि रचना का सामना कैसे करेगी. और जब रचना को यह खबर लगी तो उस का रोरो कर बुरा हाल हो गया. घर में पता चला तो सब को बहुत दुख हुआ, पर अब कर भी क्या सकते थे. मेनका से झुमकों के पैसे भी किस मुंह से मांगते. लेकिन उस दिन के बाद रचना और मेनका में पहले जैसी पक्की दोस्ती नहीं रही.

यह कोई एक किस्सा नहीं है, बल्कि न जाने कितने सालों से हमारे देश में औरतों और लड़कियों में एकदूसरे के गहने उधार लेने का चलन सा रहा है.

क्या वजह है कि औरतें या लड़कियां कुछ समय के लिए ही सही, इतनी आसानी से महंगे गहनों की उधारी कर लेती हैं? इस का सब से आसान जवाब उन का गहनों के प्रति प्रेम होता है. अगर वे महंगी धातु जैसे सोने या चांदी के हों तो यह मोह पूरी तरह उमड़ने लगता है. फिर मुफ्त का माल कौन नहीं चाहेगा, क्योंकि उन्हें लगता है कि वे गहनों को संभाल कर रखेंगी. पर जब वे चोरी हो जाते हैं या उन में किसी तरह का दूसरा नुकसान हो जाता है तो फिर मचता है घमासान.

मालती और राधा के मामले में गहनों की चोरी भी नहीं हुई थी, पर गहनों को ले कर उन की दोस्ती में खटास जरूर आ गई थी. हुआ यों था कि राधा ने मालती से उस का गहनों का एक नकली सैट कुछ दिनों के लिए उधार लिया था. सैट ज्यादा महंगा भी नहीं था, पर चूंकि नकली था तो इस्तेमाल करने पर उस की पौलिश थोड़ी उतर गई थी.

जब राधा ने वह सैट वापस किया तो मालती को अपने सैट की हालत देख कर बुरा लगा. उस ने शिकायत की तो राधा ने गलती मानने के बजाय कहा कि सैट की पौलिश तो पहले से उतरी हुई थी. बस, इसी बात पर मामला इतना बिगड़ा कि आज वे दोनों एकदूसरे का मुंह तक देखना पसंद नहीं करती हैं.

पराए गहनों के लिए यह प्यार गांवदेहात की औरतों में भी खूब देखा जाता है. बड़े भाई की शादी हुई नहीं कि छोटी बहन भाभी के गहनों पर अपना हक समझने लगती है. गहने क्या वह तो उस की सिंगारदानी, चमकीले कपड़ों को अपनी बपौती मानने लगती है. भाभी थोड़ी चिंता जता दे या इशारों में मना करने की कोशिश करे तो पूरा ससुराल पक्ष ही उसे दुश्मन समझने लगता है.

यहां पर दहेज के सामान को साझा इस्तेमाल करने का मनोविज्ञान ससुराल वालों पर हावी रहता है कि बाप ने बेटी को जो दिया, उस पर बहू की सास, ननद और भाभीदेवरानियों का हक बनता है. इस में गहनों के इस्तेमाल और उन के खोने या खराब होने पर मचे बवाल से ही कई बार घर बनने के बजाय बिगड़ते चले जाते हैं.

रिश्ते की हमउम्र कुंआरी बहनों में गहनों की अदलाबदली की यह रीत ज्यादा दिखाई देती है. चूंकि उन्हें गहने मातापिता या बड़े भाई बनवा कर देते हैं इसलिए उन्हें उन की कीमत का अंदाजा नहीं होता है. पर उन की इस उधारी के गहनों के नुकसान का खमियाजा कई बार उन के आपसी संबंधों को कमजोर कर देता है.

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लिहाजा, जो गहने आपसी रिश्तों में खटास लाएं, उन की उधारी नहीं करनी चाहिए. खुद के पास जैसे भी गहने हों असली या नकली, कम या ज्यादा, उन्हीं से काम चला लेना चाहिए. वैसे भी आजकल गांव हों या शहर, औरतों के साथ होने वाली लूट की वारदातों में इतनी ज्यादा बढ़ोतरी हो गई है कि गहनों को मांग कर पहनने की सोच को ही दूर से सलाम कर देना चाहिए. सादगी से रहें, सुखी रहें.

प्यार या समझौता : भाग 2

लेखिका- ममता परनामी

मैं सीमा को मना नहीं कर पाई और अगले दिन आने को कह दिया.

अगले दिन समीर के घर जा कर घंटी बजाई तो सीमा ने ही दरवाजा खोला. मुझे देख कर वह बोली, ‘‘अंदर आइए न, मेघाजी, मैं तो आप का ही इंतजार कर रही थी.’’

‘‘कैसी हो, सीमा,’’ मैं ने पूछा, ‘‘तुम्हारी पढ़ाई कैसी चल रही है.’’

‘‘पढ़ाई तो ठीक चल रही है, मेघाजी,’’ सीमा बोली, ‘‘बस, समीर भैया की चिंता है. हम दोनों का एकदूसरे के सिवा है ही कौन और मैं तो होस्टल में रहती हूं और भैया यहां पर बिलकुल अकेले. जब से मैं घर आई हूं देख रही हूं कि भैया बहुत उदास रहने लगे हैं. आप ही देखो न कितना बुखार है लेकिन ढंग से दवा भी नहीं लेते. आप तो उन की दोस्त हैं, आप ही बात कीजिए, शायद उन की समझ में आ जाए.’’

मैं सीमा के साथ समीर के कमरे में गई तो वह लेटे हुए थे. बहुत कमजोर लग रहे थे. मैं ने माथे पर हाथ रखा तो बुखार अभी भी था. मैं ने सीमा से कुछ खाने के लिए और ठंडा पानी लाने के लिए कहा और समीर को बैठने में मदद करने लगी.

सीमा खिचड़ी ले आई. मैं खिलाने लगी तो समीर बच्चों की तरह न खाने की जिद करने लगे. मैं ने कहा, ‘‘समीरजी, आप अपना नहीं तो कम से कम सीमा का तो खयाल कीजिए… वह कितनी परेशान है.’’

खैर, उन्हें खिचड़ी खिला कर दवा दी और लिटा दिया. मैं माथे पर पानी की पट्टियां रखने लगी. कुछ देर बाद बुखार कम हो गया. समीर सो गए तो मैं ने सीमा से कहा, ‘‘सीमा, मैं जा रही हूं. तुम अपने भैया का ध्यान रखना. अगर हो सका तो मैं कल फिर आने की कोशिश करूंगी.’’

मैं घर आ गई लेकिन दिमाग में एक सवाल घूम रहा था कि क्या समीर की इस हालत की जिम्मेदार मैं हूं? क्या मेरी बेरुखी से वह इतने आहत हो गए कि उन की तबीयत खराब हो गई. मुझे ऐसा व्यवहार नहीं करना चाहिए था. ये बातें सोचतेसोचते न जाने कब मेरी आंख लग गई.

फोन की घंटी की आवाज सुन कर मेरी नींद खुली. घड़ी में सुबह के 8 बज चुके थे.

आज भी स्कूल की छुट्टी हो गई, यह सोचते हुए मैं ने फोन उठाया तो दूसरी तरफ सीमा थी. मैं ने उस से पूछा, ‘‘समीरजी की तबीयत कैसी है?’’

‘‘मेघाजी, भैया ठीक हैं. बस, मुझे एक जरूरी काम से अपनी सहेली के साथ बाहर जाना है और भैया अभी इस लायक नहीं हैं कि उन्हें अकेला छोड़ा जा सके इसलिए आप की मदद की जरूरत है. क्या आप कुछ देर के लिए यहां आ सकती हैं?’’

मैं ने कहा, ‘‘ठीक है, मैं आती हूं,’’ और फोन रख दिया. मैं तैयार हो कर वहां पहुंची तो सीमा और उस की सहेली मेरा ही इंतजार कर रही थीं. वह मुझे थैंक्स कहती हुई चली गई.

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मैं ने समीर के कमरे में जा कर देखा तो वह सो रहे थे. मैं ड्राइंगरूम में आ कर सोफे पर बैठ गई और मेज पर रखी किताब के पन्ने पलटने लगी. थोड़ी देर बाद समीर के कमरे में कुछ आवाज हुई…मैं ने जा कर देखा तो समीर अपने बिस्तर पर नहीं थे. शायद बाथरूम में थे, मैं वहां से आ गई और रसोई में जा कर चाय का पानी चूल्हे पर रख दिया. चाय बना कर जब मैं बाहर आई तो समीर नहा चुके थे. उन की तबीयत पहले से ठीक लग रही थी लेकिन कमजोरी बहुत थी. मुझे देख कर वह चौंक गए. शायद उन्हें पता नहीं था कि मैं वहां पर हूं.

‘‘मेघाजी…आप, सीमा कहां है?’’

‘‘उसे किसी जरूरी काम से जाना था, आप की तबीयत ठीक नहीं थी. अकेला छोड़ कर कैसे जाती इसलिए मुझे बुला लिया. आप चाय पीजिए, वह आ जाएगी.’’

‘‘सीमा भी पागल है. अगर उसे जाना था तो चली जाती…आप को क्यों परेशान किया,’’ समीर बोले.

मैं ने समीर की तरफ देखा और चुपचाप चाय का प्याला उन्हें थमा दिया. हम खामोशी से चाय पीने लगे. कुछ भी कहने की हिम्मत न तो मुझ में थी और न शायद उन में.

चाय पी कर मैं बर्तन रसोई में रखने के लिए उठी तो समीर ने मेरा हाथ पकड़ लिया. एक सिहरन सी दौड़ गई मेरे पूरे शरीर में. टे्र हाथ से छूट जाती अगर मैं उसे मेज पर न रख देती. मैं ने हाथ छुड़ाने की कोशिश की तो उन्होंने और कस कर मेरा हाथ पकड़ लिया और बोले, ‘‘मेघा, तुम ने मेरे लिए यह सबकुछ क्यों किया?’’

समीर के मुंह से अपने लिए पहली बार मेघाजी की जगह मेघा और आप की जगह तुम का उच्चारण सुन कर मैं चौंक गई. इस तरह से मुझे पुकारने का अधिकार उन्होंने कब ले लिया. मैं कुछ बोल ही नहीं पा रही थी कि उन्होंने फिर से पूछा, ‘‘मेघा, तुम ने मेरे सवालों का जवाब नहीं दिया. तुम ने मेरे लिए यह सब क्यों किया?’’

बहुत हिम्मत कर के मैं ने अपना हाथ छुड़ाया और कहा, ‘‘एक दोस्त होने के नाते मैं इतना तो आप के लिए कर ही सकती थी, इतना भी अधिकार नहीं है मेरा?’’

‘‘पहले तुम यह बताओ कि क्या हमारे बीच अभी भी सिर्फ दोस्ती का रिश्ता है? मेघा, तुम्हारा अधिकार क्या है और कितना है इस का फैसला तो तुम्हें ही करना है,’’ समीर बोले.

मैं ने अपनी नजरें उठाईं तो समीर मुझे ही देख रहे थे. कितना दर्द, कितना अपनापन था उन की आंखों में. दिल चाह रहा था कि कह दूं…समीर, मैं आप से बेइंतहा प्यार करती हूं…नहीं जी सकती मैं आप के बिना. अपने सभी जज्बात, सभी एहसास उन के सामने रख दूं…उन की बांहों में समा जाऊं और सबकुछ भुला दूं लेकिन होंठ जैसे सिल गए थे.

बिना कुछ कहे ही हम एकदूसरे के जज्बात और हालात समझ रहे थे. मुझे भी यह एहसास हो चुका था कि समीर भी मुझे उतना ही प्यार करते हैं जितना मैं उन्हें करती हूं. वह भी अपने प्यार की मौन सहमति मेरी आंखों में पढ़ चुके थे और शायद उस अस्वीकृति को भी पढ़ लिया था उन्होंने. कुछ नहीं बोल पाए…हम बस, यों ही जाने कितनी देर बैठे रहे. फिर अचानक समीर ने मेरे चेहरे को अपने हाथों में लिया और मेरे माथे को चूम लिया. अब मैं खुद को रोक नहीं पाई और उन की बांहों में समा गई. कितनी देर हम रोते रहे मुझे नहीं पता. दिल चाह रहा था कि यह पल यहीं रुक जाए और हम यों ही बैठे रहें.

फिर समीर ने कहा, ‘‘मेघा, तुम जहां भी रहो खुश रहना और एक बात याद रखना कि मुझे तुम्हारी आंखों में आंसू और उदासी अच्छी नहीं लगती. मैं चाहे तुम्हारे पास न रहूं, लेकिन तुम्हारे साथ हमेशा रहूंगा. बहुत देर हो गई है, अब तुम जाओ.’’

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मैं ने अपना बैग उठाया और वहां से अपने घर आने के लिए निकल पड़ी. इसी प्यार ने एक बार फिर मुझे नए मोड़ पर ला कर खड़ा कर दिया. मैं ने सोच लिया था कि अब मैं समीर से कभी नहीं मिलूंगी. आज तो उस तूफान को हम पार कर गए, खुद को संभाल लिया, लेकिन दोबारा मैं ऐसा शायद न कर पाऊं और मैं नहीं चाहती थी कि समीर के आगे कमजोर पड़ जाऊं.

मैं अपने प्यार को अपना तो नहीं सकती थी लेकिन उसी प्यार को अपनी शक्ति बना कर अपने फर्ज के रास्ते पर कदम बढ़ा चुकी थी. मैं ने अगले दिन स्कूल में अपना इस्तीफा भेज दिया. मैं ने एक बार फिर प्यार और समझौते में से समझौते को चुन लिया.

मेरे अंदर जो प्यार समीर ने जगाया वह एहसास, उन की कही हर एक बात, उन के साथ बिताए हर एक पल मेरी जिंदगी का वह अनमोल खजाना है, जो न तो कभी कोई देख सकता है और न ही मुझ से छीन सकता है. कितना अजीब सा एहसास है न यह प्यार, कब किस से क्या करवाएगा, कोई नहीं जानता. यह एहसास किसी के लिए जान देने पर मजबूर करता है तो किसी की जान लेने पर भी मजबूर कर सकता है.

दीवाली 2019 : राजीव और उसके परिवार के जीवन में आई नई खुशियां

‘‘देखो, शालिनी, मैं तुम से कितनी बार कह चुका हूं कि यदि साल में एक बार तुम से पैसे मांगूं तो तुम मुझ से लड़ाई मत किया करो.’’

‘‘साल में एक बार? तुम तो एक बार में ही इतना ज्यादा हार जाते हो कि मैं सालभर तक चुकाती रहती हूं.’’

शालिनी की व्यंग्यभरी बात सुन कर राजीव थोड़ा झेंपते हुए बोला, ‘‘अब छोड़ो भी. तुम्हें तो पता है कि मेरी बस यही एक कमजोरी है और तुम्हारी यह कमजोरी है कि इतने सालों में भी मेरी इस कमजोरी को तुम दूर नहीं कर सकीं.’’

राजीव के तर्क को सुन कर शालिनी भौचक्की रह गई. राजीव जब चला गया तो शालिनी सोचने लगी कि उस के जीवन की शुरुआत ही कमजोरी से हुई थी. एमए का पहला साल भी वह पूरा नहीं कर पाई थी कि उस के पिता ने राजीव के साथ उस की शादी की बात तय कर दी. राजीव पढ़ालिखा था और देखने में स्मार्ट भी था.

सब से बड़ी बात यही थी कि उस की 40 हजार रुपए महीने की आमदनी थी. शालिनी ने तब सोचा था कि वह अपने मातापिता से कहे कि वे उसे एमए पूरा कर लेने दें, पर राजीव को देखने के बाद उसे स्वयं ऐसा लगा था कि बाद में शायद ऐसा वर न मिले. बस, वहीं से शायद राजीव के प्रति उस की कमजोरी ने जन्म लिया था.उसे आज लगा कि विवाह के बाद भी वह राजीव की मीठीमीठी बातों व मुसकानों से क्यों हारती रही.

शादी के बाद शालिनी की वह पहली दीवाली थी. सुबहसुबह ही जब राजीव ने उस से कहा कि 10 हजार रुपए निकाल कर लाना तो शालिनी चकित रह गई थी कि कभी भी 1-2 हजार रुपए से ज्यादा की मांग न करने वाले राजीव ने आज इतने रुपए क्यों मांगे.

शालिनी ने पूछा, ‘‘क्यों?’’

‘‘लाओ यार,’’ राजीव हंस कर बोला था, ‘‘जरूरी काम है. शाम को काम भी बता दूंगा.’’

राजीव की रहस्यपूर्ण मुसकराहट देख कर शालिनी ने समझा था कि वह शायद उस के लिए नई साड़ी लाएगा. शालिनी दिनभर सुंदर कल्पनाएं करती रही. पर जब शाम के 7-8 बजने पर भी राजीव घर नहीं लौटा तो दुश्चिंताओं ने उसे आ घेरा. तरहतरह के बुरे विचार उस के मन में आने लगे, ‘कोई दुर्घटना तो नहीं हो गई. किसी ने राजीव की बाइक के आगे पटाखे छोड़ कर उसे घायल तो नहीं कर दिया.’

8 बजने के बाद इस विचार से कि घर की दहलीज सूनी न रहे, उस ने 4 दीए जला दिए. पर उस का मन भयानक कल्पनाओं में ही लगा रहा. पूरी रात आंखों में कट गई पर राजीव नहीं आया.

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हड़बड़ा कर जब वह सुबह उठी थी तो अच्छी धूप निकल आई थी और उस ने देखा कि दूसरे पलंग पर राजीव सोया पड़ा है. उस के पास पहुंची, पर तुरंत ही पीछे भी हट गई. राजीव की सांसों से शराब की बू आ रही थी. तभी शालिनी को रुपयों का खयाल आया. उस ने राजीव की सभी जेबें टटोल कर देखीं पर सभी खाली थीं.

‘तो क्या किसी ने राजीव को शराब पिला कर उस के रुपए छीन लिए?’ उस ने सोचा. पर न जाने कितनी देर फिर वह वहीं खड़ीखड़ी शंकाओं के समाधान को ढूंढ़ती रही थी और आखिर में यह सोच कर कि उठेंगे तब पूछ लूंगी, वह काम में लग गई थी.

दोपहर बाद जब राजीव जागा तो चाय देते समय शालिनी ने पूछा, ‘‘कहां थे रातभर? डर के मारे मेरे प्राण ही सूख गए थे. तुम हो कि कुछ बताते भी नहीं. क्या तुम ने शराब पीनी भी शुरू कर दी? वे रुपए कहां गए जो तुम किसी खास काम के लिए ले गए थे?’’

शालिनी ने सोचा था कि राजीव झेंपेगा, शरमाएगा, पर उसे धोखा ही हुआ. शालिनी की बात सुन कर राजीव मुसकराते हुए बोला, ‘‘धीरेधीरे, एकएक सवाल पूछो, भई. मैं कोई साड़ी खरीदने थोड़े ही गया था.’’

‘‘क्या?’’ शालिनी चौंक कर बोली थी.

‘‘चौंक क्यों रही हो? हर साल हम एक दीवाली के दिन ही तो बिगड़ते हैं.’’

‘‘तो तुम जुआ खेल कर आ रहे हो? 10 हजार रुपए तुम जुए में हार गए?’’ वह दुखी होते हुए बोली थी.

तब राजीव ने उस के कंधे पर हाथ रख कर कहा था, ‘‘अरे यार, सालर में एक ही बार तो रुपया खर्च करता हूं.

तुम तो साल में 5-6 हजार रुपयों की 4-5 साडि़यां खरीद लेती हो.’’

शालिनी ने सोचा कि थोड़ी ढील दे कर भी वह राजीव को ठीक कर लेगी, पर यही उस की दूसरी कमजोरी साबित हुई.पहले 10 हजार रुपए पर ही खत्म हो जाने वाली बात 20 हजार रुपए तक पहुंच गई, जिसे चुकाने के लिए अगली दीवाली आ गई थी.

पिछली बार तो उस ने छिपा कर बच्चों के लिए 10 हजार रुपए रखे थे, पर राजीव उन्हीं को ले कर चल दिया. जब राजीव रुपए ले कर जाने लगा तो शालिनी ने उसे टोकते हुए कहा था, ‘कम से कम बच्चों के लिए ही इन रुपयों को छोड़ दो,’ पर राजीव ने उस की एक न मानी.

उसी दिन शालिनी ने सोच लिया था कि अगली दीवाली पर इस मामले को वह निबटा कर ही रहेगी.

शाम को 5 बजे राजीव लौटा. बच्चों ने उसे खाली हाथ देखा तो निराश हो गए, पर बोले कुछ नहीं. शालिनी ने उन्हें बता दिया था कि पटाखे उन्हें किसी भी हालत में दीए जलने से पहले मिल जाएंगे. राजीव ने पहले कुछ देर तक इधरउधर की बातें कीं, फिर शालिनी से पूछा, ‘‘क्यों, हमारी मां के घरसे आए हुए पटाखे यों ही पड़े हैं न?’’

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शालिनी ने कहा, ‘‘पड़े थे, हैं नहीं.’’

‘‘क्या मतलब?’’

‘‘मैं ने कामवाली के बच्चों को दे दिए.’’

‘‘पर क्यों?’’

‘‘उस के आदमी ने उस से रुपए छीन लिए थे.’’

राजीव ने कुछ सोचा, फिर बोला, ‘‘ओहो, तो यह बात है. घुमाफिरा कर मेरी बात पर उंगली रखी जा रही है.’’

‘‘देखो, राजीव, मैं ने आज तक कभी ऊंची आवाज में तुम्हारा विरोध नहीं किया. तुम्हें खुद ही मालूम है कि तुम्हारी आदतें क्याक्या गजब ढा सकती हैं.’’

शालिनी की बात सुन कर राजीव झुंझला कर बोला, ‘‘ठीक है, ठीक है. मुझे सब पता है. अभी तुम्हारा बिगड़ा ही क्या है? तुम्हें किसी के आगे हाथ तो नहीं फैलाना पड़ा है न?’’

शालिनी ने कहा, ‘‘यही तो डर है. कल कहीं मुझे कामवाली की तरह किसी और के सामने हाथ न फैलाना पड़े.’’ ऐसा कह कर शालिनी ने शायद राजीव की कमजोर रग पर हाथ रख दिया था. वह बोला, ‘‘बकवास बंद करो. पता भी है क्या बोल रही हो? जरा से रुपयों के लिए इतनी कड़वी बातें कह रही हो.’’

‘‘जरा से रुपए? तुम्हें पता है कि साल में एक बार शराब पी कर बेहोशी में तुम हजारों खो कर आते हो. तुम्हें तो बच्चों की खुशियां छीन कर दांव पर लगाने में जरा भी हिचक नहीं होती. हमेशा कहते हो कि साल में एक बार ही तुम्हारे लिए दीवाली आती है. कभी सोचा है कि मेरे और बच्चों के लिए भी दीवाली एक बार ही आती है? कभी मनाई है कोई दीवाली तुम ने हमारे साथ?’’

शालिनी के मुंह से कभी ऐसी बातें न सुनने वाला राजीव पहले तो हक्काबक्का खड़ा रहा. फिर बिगड़ कर बोला, ‘‘अगर तुम मुझे रुपए न देने के इरादे पर पक्की हो तो मैं भी अपने मन की करने जा रहा हूं.’’ और जब तक शालिनी राजीव से कुछ कहती, वह पहले ही मोटरसाइकिल निकालने चला गया.

शालिनी सोचने लगी कि इन 11 सालों में भी वह नहीं समझ पाई कि हमेशा मीठे स्वरों में बोलने वाला राजीव इस तरह एक दिन में बदल सकता है.

‘कहीं राजीव दीवाली के दिन दोस्तों के सामने बेइज्जती हो जाने के डर से तो नहीं खेलता. लगता है अब कोई दूसरा ही तरीका अपनाना पड़ेगा,’ शालिनी ने तय किया.

उधर मोटरसाइकिल निकालने जाता हुआ राजीव सोच रहा था, ‘वह क्या करे? पटाखे ला कर देगा तो उस की नाक कट जाएगी. शालिनी रुपए भी नहीं देगी, उसे इस का पता था. अचानक उसे अपने मित्र अक्षय की याद आई. क्यों न उस से रुपए लिए जाएं.’ वह मोटरसाइकिल बाहर निकाल लाया.

तभी ‘‘कहीं जा रहे हैं क्या?’’ की आवाज सुन कर राजीव चौंका. उस ने देखा, सामने से अक्षय की पत्नी रमा और उस के दोनों बच्चे आ रहे हैं.

‘‘भाभी, तुम? आज के दिन कैसे बाहर निकल आईं?’’ उस ने मन ही मन खीझते हुए कहा.

‘‘पहले अंदर तो बुलाओ, सब बताती हूं,’’ अक्षय की पत्नी ने कहा.

‘‘हां, हां, अंदर आओ न. अरे इंदु, प्रमोद, देखो तो कौन आया है,’’ मोटरसाइकिल खड़ी करते हुए राजीव बोला.

इंदु, प्रमोद भागेभागे बाहर आए. शालिनी भी आवाज सुन कर बाहर आ गई, ‘‘रमा भाभी, तुम, भैया कहां हैं?’’ ‘‘बताती हूं. पहले यह बताओ कि क्या तुम लोग एक दिन के लिए मेरे बच्चों को अपने घर में रख सकते हो?’’

शालिनी ने तुरंत कहा, ‘‘क्यों नहीं. पर बात क्या है?’’

रमा ने उदास स्वर में कहा, ‘‘बात यह है शालिनी कि तुम्हारे भैया अस्पताल में हैं. परसों उन का ऐक्सिडैंट हो गया था. दोनों टांगों में इतनी चोटें आई हैं कि 2 महीने तक उठ कर खड़े नहीं हो सकेंगे. और सोचो, आज दीवाली है.’’ राजीव ने घबरा कर कहा, ‘‘इतनी बड़ी बात हो गई और आप ने हमें बताया तक नहीं?’’

रमा ने कहा, ‘‘तुम्हें तो पता ही है कि मेरे जेठजेठानी यहां आए हुए हैं. अब ये अस्पताल में पड़ेपड़े कह रहे हैं कि पहले ही मालूम होता तो उन्हें बुलाता ही नहीं. कहते हैं तुम लोग जा कर घर में रोशनी करो. मेरा तो क्या, किसी का भी मन इस बात को नहीं मान रहा.’’

राजीव और शालिनी दोनों ही जब चुपचाप खड़े रहे तो रमा ही फिर बोली, ‘‘अब मैं ने और उन के भैया ने कहा कि हमारा मन नहीं है तो वे कहने लगे, ‘‘मैं क्या मर गया हूं जो घर में रोशनी नहीं करोगी? आखिर थोड़ी सी चोटें ही तो हैं. बच्चों के लिए तो तुम्हें करना ही पड़ेगा.’’

‘‘मैं सोचती रही कि क्या करूं. तुम लोगों का खयाल आया तो बच्चों को यहां ले आई. तुम्हें कोई एतराज तो नहीं है?’’

इंदु, जो रमा की बातें ध्यान से सुन रही थी, राजीव से बोली, ‘‘पापा, आप राकेश, पिंकी के लिए भी पटाखे लाएंगे न?’’

राजीव चौंक कर बोला, ‘‘हां, हां. जरूर लाऊंगा.’’ राजीव ने कह तो दिया था, पर उसे समझ में नहीं आ रहा था कि क्या करे. वह इसी उधेड़बुन में था कि शालिनी अंदर से रुपए ला कर उस के हाथों में रखती हुए बोली, ‘‘जल्दी लौटिएगा.’’

तभी इंदु बोली, ‘‘पापा, आप को अपने दोस्त के घर जाना है न.’’

‘दोस्त के घर,’ राजीव ने चौंक कर इंदु की ओर देखा, ‘‘हां पापा, मां कह रही थीं कि आप के एक दोस्त के हाथ और पैर टूट गए हैं, वहीं आप उन के लिए दीवाली मनाने जाते हैं.’’

राजीव को समझ में नहीं आया कि क्या कहे. उस ने शालिनी को देखा तो वह मुसकरा रही है.

मोटरसाइकिल चलाते हुए राजीव का मन यही कह रहा था कि वह चुपचाप अपनी मित्रमंडली में चला जाए, पर तभी उसे अक्षय की बातें याद आ जातीं. राजीव सोचने लगा कि एक अक्षय है जो अस्पताल में रह कर भी बच्चों की दीवाली की खुशियों को ले कर चिंतित है और एक मैं हूं जो बच्चों को दीवाली मनाने से रोक रहा हूं. शालिनी भी जाने क्या सोचती होगी मेरे बारे में? उस ने बच्चों से उन के पिता की गलती छिपाने के लिए कितनी अच्छी कहानी गढ़ कर सुना रखी है.

मोटरसाइकिल का हौर्न सुन कर सब बच्चे भाग कर बाहर आए तो देखा आतिशबाजियां और मिठाई लिए राजीव खड़ा है. प्रमोद कहने लगा, ‘‘इंदु, इतनी सारी आतिशबाजियां छोड़ेगा कौन?’’

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‘‘ये हम और तुम्हारी मां छोड़ेंगे,’’ राजीव ने कहा और दरवाजे पर आ खड़ी हुई शालिनी को देखा जो जवाब में मुसकरा रही थी. शालिनी ने शरारत से पूछा, ‘‘रुपए दूं, अभी तो रात बाकी है?’’

राजीव ने जब कहा, ‘‘सचमुच दोगी?’’ तो शालिनी डर गई. तभी राजीव शालिनी को अपने निकट खींचते हुए बोला, ‘‘मैं कह रहा था कि रुपए दोगी तो बढि़या सा एक खाता तुम्हारे नाम से किसी बैंक में खुलवा दूंगा.’’

क्या आप जानते हैं, बिस्किट पर क्यों होते हैं छोटे छेद

अकसर  नाश्ते में  आप जरूर बिस्किट खाते होंगे. आजकल बिस्किट के कई डिजाइन हैं. इन डिजाइन के अलावा बिस्किट पर छोटे-छोटे छिद्र भी होते हैं. क्या आपने इस पर कभी गौर किया हैं.

जी हां,  बिस्किट पर जो छोटे-छोटे छेद बनाए जाते हैं, वे वास्तव में किसलिए होते हैं. क्या आप इसके बारे में जानते हैं? कई  लोगों ये भी कहेंगे  कि ये छेद  बिस्किट का डिजाइन होता है, लेकिन  ये वास्तव में सच नहीं है. तो चलिए आज  आपको बताते हैं कि बिस्किट पर छोटे-छोटे छेद क्यों  होते हैं.

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दरअसल आप  क्रीम वाले और सौफ्ट बिस्किट पर ऐसे छेद  देखे होंगे. इस तरह के छेद बिस्किट से भाप निकलने के लिए  किये जाते हैं. दरअसल, बिस्किट को बनाने के दौरान उसके अंदर पहले क्रीम भरते हैं. उस दौरान वे गर्म होते हैं फिर ऊपर से बिस्किट रखते हैं. अंदर से भाप निकलने की जगह नहीं होगी तो बिस्किट टूट जाएंगे और उन्हें मैनेज करना मुश्किल हो जाएगा. इसलिए बिस्किट पर छोटे-छोटे छेद बनाए जाते हैं.

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दीवाली स्पेशल : पेंट्स से सजाएं पेंटिंग सी दीवारें

दीवारें भी अब बोलती हैं. हर दीवार का अपना महत्त्व होता है. इन का रंगरोगन इन के महत्त्व को देखते हुए किया जाता है. दीवारें तब बोलती हैं जब इन को पेंट्स के जरिए पेंटिंंग सा सजाया जाता है. एक जमाना था जब दीवारों को सफेद चूने से रंगा जाता था. समय के साथ बदलाव हुए तो चूने में रंग मिलाया जाने लगा. बाद में चूने की जगह डिस्टैंपर और सीमेंट मिक्स कलर आने लगे. अब तरहतरह के रंग आने लगे हैं. इन में औयल बेस्ड कलर प्रमुख हैं. दीवारों पर टैक्स्चर पेंट का दौर है. रंगों द्वारा दीवारों को एंटीक, इनफिनिटैक्स, स्टुडो, ड्यून, टैक्सटाइल, मैटेलिक, स्पैशल इफैक्ट और सफारी इफैक्ट्स भी दिए जा सकते हैं. ऐसे में लोग एक ही कमरे में अलगअलग इफैक्ट्स देने के लिए दीवारों पर अलगअलग रंग भी करने लगे हैं.

लखनऊ की एकता सिंह को अपने

ई-बाजार के लिए शोरूम तैयार करना था. शोरूम के 4 हिस्से थे. एक हिस्से में औफिस था. दूसरा हिस्सा मीटिंग के लिए था. तीसरे हिस्से में शोरूम की वह जगह थी जिस में लोग अपनी पसंद की ड्रैस का चुनाव करते थे. सब से अहम हिस्सा वह था जहां पर उन की वर्कशौप थी. वहीं लोगों की पंसद के कपडे़ तैयार होते थे. एकता का मन था कि हर हिस्सा अपनी पहचान के अनुसार ही दिखे. ऐसे में एक इंटीरियर डिजाइनर की सलाह पर उन्होंने अपने कमरों को अलग रंग, डिजाइन के पेंट्स से रंगरोगन कराया. ऐसा करने से उन के घर के हर कमरे में अलग फीलिंग आने लगी. एकता कहती हैं, ‘‘कलर्स आप के मूड को बदलने की क्षमता रखते हैं. कई बार कस्टमर बहुत तनाव में रहता है. ऐसे में जरूरी है कि शोरूम में आते ही उस को अच्छा सा फील हो. इस के बाद वह कस्टमर आप से खुश हो कर ही जाएगा.’’

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हर रंग कुछ कहता है

प्रतिष्ठा इनोवेशंस की आर्किटैक्ट प्रज्ञा सिंह कहती हैं, ‘‘जिस तरह अलगअलग तरह की खशबू और रोशनी लोगों को पसंद आती है उसी तरह दीवारों पर अलगअलग किस्म के रंग भी लोगों को पसंद आते हैं. अब दीवारों पर रंगरोगन भी इंटीरियर डिजाइन का हिस्सा हो गया हैं. कई बार बदलते मौसम के हिसाब से भी लोग रंग पसंद करते हैं. कमरे के माहौल को बदलने के लिए जरूरी नहीं है कि चारों दीवारों का रंग बदला जाए. अब एक ही दीवार के रंग को बदलने से कमरे का पूरा लुक बदल जाता है. जैसे चारों दीवारों में से एक दीवार पर एंटीक सा कुछ देखना है तो एंटीक लुक दिखाने वाले रंग का प्रयोग किया जा सकता है. इस में बाकी 3 दीवारों का रंग बदलने की जरूरत नहीं होती है. ऐसे में सस्ते में ही कमरे का लुक बदला जा सकता है.’’

एक दीवार का रंग अलग रखने से केवल कमरे का लुक ही नहीं बदलता बल्कि कमरा बड़ा और खुलाखुला दिखने लगता है. रंगों के अलगअलग टैक्स्चर के अलावा 2 कौंबिनेशन में भी रंग होने लगे हैं. इन में औरेंज ग्रीन, पिंक ब्लू और वायलेट गोल्डन प्रमुख हैं. इस से कमरे खुलेखुले से लगते हैं. ऐसे में रंगों से ही दीवारों की सजावट पूरी हो जाती है. अलग से दीवार की सजावट की जरूरत नहीं पड़ती. अब पूरी की पूरी दीवार  किसी पेंटिंग की तरह दिखती है. हर सीजन के आने पर केवल एक दीवार का रंग बदल कर पूरे कमरे के रंग को बदला जा सकता है.

रंगों में दिखे बाहरी दुनिया

एंटीक, इनफिनिटैक्स, स्टुडो, ड्यून, टैक्सटाइल, मैटेलिक, स्पैशल इफैक्ट और सफारी इफैक्ट रंगों से दीवार को अलग तरह से सजाया जा सकता है. अगर कमरे को एंटीक लुक देना है तो रौयल प्ले एंटिकों का प्रयोग किया जा सकता है. इस से दीवार को पूरी तरह से एंटीक यानी पुरानी इमारत का लुक दिया जा सकता है. ऐसे में कमरे के अंदर बैठ कर किसी पुरानी ऐतिहासिक इमारत में बैठने का एहसास होने लगता है. ऐसे ही अगर रेगिस्तान के रंगों को देखना है तो सफारी शेड्स के रंगों का प्रयोग किया जा सकता है. कुछ रंग स्पैशल इफैक्ट्स वाले भी होते हैं. इन के इस्तेमाल से दीवार पर अलग ही रंग दिखता है. पत्थर सी दीवार देखनी है तो दूसरे रंगों का प्रयोग कर सकते हैं. कुछ लोगों को जीवंत रंग पंसद आते हैं, ऐसे में वे जीवंत रंगों के लिए इनफिनिटैक्स का प्रयोग कर सकते हैं.

रंगों द्वारा केवल एक कमरे की ही दीवार को उस की पहचान नहीं दिलाई जा सकती. कमरे को अलग पहचान भी दी जा सकती है, जैसे किचन, बाथरूम, बच्चों का कमरा, बैडरूम, ड्राइंगरूम और लौबी. हर कमरे को उस की पहचान का रंग दिया जा सकता है.

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बच्चों के कमरों को ले कर अब तरहतरह के प्रयोग होने लगे हैं. कुछ लोग आज भी यह मानते हैं कि दीवारों पर बच्चों द्वारा लिखना दीवार को खराब नहीं करता बल्कि वह बच्चे में सीखने की प्रक्रिया को बढ़ाता है. ऐसे में लोग बच्चों के रहने वाले कमरे की दीवार को ऐसा जरूर तैयार कराते हैं जिस से बच्चा कुछ न कुछ लिखने लगे. यह देख कर खुश होना एक स्वाभाविक प्रक्रिया होती है. बच्चे द्वारा लिखी गई यह दीवार भी किसी खूबसूरत पेंटिंग से कम नहीं होेती. ऐसे में कुछ रंगों के डिजाइन ऐसे आते हैं जिन के प्रयोग करने से दीवार पर बच्चों के लिखने का एहसास होता है.

एलोवेरा से आमदनी

एलोवेरा एक अफ्रीकी वनस्पति है. इस का वैज्ञानिक नाम एलो वार्बाडेंसिस है. यह देश के अलगअलग हिस्सों में अलगअलग नामों से जाना जाता है. इसे घृतकुमारी, घीकुंवार, ग्वारपाठा, कुमारी और एलोय सहित कुछ अन्य नामों से भी जानते?हैं. शुरुआत में लोग इसे अनउपयोगी जमीनों पर लगाते थे, मगर अब इस की व्यावसायिक खेती जोर पकड़ चुकी है. एलोवेरा की व्यावसायिक खेती का दायरा बढ़ने की खास वजह इस का औषधीय महत्त्व है. एलोवेरा को किसानों से बहुतराष्ट्रीय कंपनियां ऊंची कीमत पर खरीद रही हैं. तमाम आयुर्वेदिक और यूनानी दवाओं में इसे मुख्य रूप से इस्तेमाल किया जाता है. इस का इस्तेमाल चेहरे को चमकदार बनाने के अलावा पेट के रोगों, आंखों के रोगों और त्वचा के रोगों को?ठीक करने में किया जाता है. इसे सैंदर्य प्रसाधन सामग्रियां बनाने में भी बड़े पैमाने पर इस्तेमाल किया जाता है.

कैसा होता है एलोवेरा : एलोवेरा छोटे तने और मांसल पत्तियों वाला तकरीबन 1 मीटर तक का पौधा होता है. पत्तियों की नसों पर कांटे पाए जाते?हैं. इस में लाल और पीले रंग के फूल आते हैं.

कैसी हो मिट्टी : अच्छे जल निकास वाली बलुई दोमट मिट्टी जिस का पीएच मान 6.5 से 8.5 के बीच हो इस की खेती के लिए बेहतर होती है. वैसे इस की खेती चट्टानी, रेतीली, पथरीली समेत किसी भी तरह की जमीन में की जा सकती है.

कैसी हो आबोहवा : गरम और शुष्क जलवायु एलोवेरा की खेती के लिए सही होती है. जहां पर कम बारिश होती है और अधिक तापमान बरकरार रहता?है, वहां भी इस की खेती आसानी से की जा सकती है.

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रोपाई का समय : जहां पर सिंचाई की सुविधा मौजूद हो, वहां बरसात खत्म होने के बाद दिसंबरजनवरी व मईजून छोड़ कर कभी भी इस की रोपाई कर सकते?हैं.

खेत की तैयारी : सब से पहले खेत को समतल कर लें. फिर 2 बार जुताई करने के बाद पाटा लगा कर ऊपर उठी हुई क्यारियां बना कर रोपाई करें.

प्रजाति : अपने इलाके के मुताबिक प्रजाति का ही चयन करें. इस के लिए आप जिला उद्यान कार्यालय या कृषि विज्ञान केंद्र के उद्यान विशेषज्ञ से मिल सकते?हैं. वैसे केंद्रीय औषधि और सगंध पौध संस्थान लखनऊ के वैज्ञानिकों ने सिम सीतल नाम की उन्नत प्रजाति विकसित की है, जिसे लगा सकते हैं.

रोपाई : 50 सेंटीमीटर लाइन से लाइन और 40 सेंटीमीटर पौध से की दूरी रखते हुए रोपाई करें.

खाद और उर्वरक : अच्छी पैदावार के लिए 5-10 टन खूब सड़ी हुई गोबर की खाद, वर्मी कंपोस्ट या कंपोस्ट का प्रति हेक्टेयर इस्तेमाल करना चाहिए. इस के अलावा 50 किलोग्राम नाइट्रोजन, 50 किलोग्राम फास्फोरस और 50 किलोग्राम पोटाश का प्रति हेक्टेयर हर साल इस्तेमाल करना चाहिए. नाइट्रोजन की मात्रा को 3 बार में दिया जाना चाहिए.

सिंचाई : रोपाई के तुरंत बाद सिंचाई करना बहुत जरूरी है. इस के बाद जरूरत के मुताबिक सिंचाई करनी चाहिए. वैसे बीचबीच सिंचाई करने से फसल की बढ़वार कई गुना बढ़ जाती है.

देखभाल : कुछ समस्याओं के अलावा एलोवेरा में कीड़ों और बीमारियों का कोई खास प्रकोप नहीं होता है. कई बार देखने में आता है कि बरसात के मौसम में पत्तियों पर फफूंद जनित सड़न और धब्बे पड़ जाते?हैं. इस की रोकथाम के लिए मैंकोजेब की 3 ग्राम मात्रा प्रति लीटर पानी में मिला कर छिड़काव करना चाहिए. कई बार जमीन के अंदर तने और जड़ों को ग्रब कुतरकुतर कर नुकसान पहुंचाते रहते?हैं. इस की रोकथाम के लिए 60-70 किलोग्राम नीम की खली प्रति हेक्टेयर की दर से इस्तेमाल करनी चाहिए.

कटाई : तकरीबन 10-12 महीने बाद इस की पत्तियां कटाई के लिए तैयार हो जाती हैं. बढ़त के मुताबिक नीचे की 2-3 पत्तियों की कटाई पहले करनी चाहिए. तकरीबन 2 महीने के बाद से परिपक्व हो चुकी 3-4 पत्तियों की कटाई करते रहना चाहिए.

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उपज : एलोवेरा की 50-60 टन ताजी पत्तियां प्रति हेक्टेयर हासिल हाती हैं, जिन से 35-40 फीसदी तक उपयोगी रस (बार्वेलोइन रहित) मिल जाता है. यदि इसे दूसरे साल के लिए भी छोड़ दिया जाए तो उत्पादन में 10-15 फीसदी की बढ़ोतरी पाई जाती है. वैसे असिंचित दशा में उत्पादन थोड़ा कम मिलता है. भंडारण : ताजी पत्तियों को कम तापमान में 1-2 दिनों तक रखा जा सकता है.

मुनाफा : एलोवेरा की खेती से होने वाली आय बाजार की समझ, मूल्य और खरीदार पर निर्भर होती है. फिर भी मोटे तौर पर इस से 1.5 लाख से 3 लाख रुपए प्रति हेक्टेयर सालाना कमाए जा सकते हैं. इस की खेती करने से पहले मार्केटिंग के बारे में गहराई से जानकारी हासिल कर लेनी चाहिए, ताकि बिक्री के लिए भटकना न पड़े और वाजिब कीमत भी मिल सके.

6 फैस्टिव लुक विद LIVA फैब्रिक

1. फैस्टिव गेट टु गेदर लुक

LIVA फैब्रिक से बनी श्री कुर्ती और ब्राड वेस्ट बेल्ड का कांबिनेशन आपको देगा स्टाइलिश और फैस्टिव गेट टु गेदर लुक.

2. दीवाली फैस्टिव लुक

LIVA फैब्रिक से बनी एलनी रेड कलर कुर्ते के साथ गोल्डन कलर के प्लाजो का टीमअप साथ ही बनारसी दुपट्टा आपको बना देगा फैस्टिव रेडी.

3. औफिस फैस्टिव लुक

LIVA फैब्रिक से बने गो कलर के पटियाला पेंट और कॉनट्रास्टिंग कलर की जैकेट आपके परफेक्ट औफिस फैस्टिव लुक को और निखारेगा.

4. आउटडोर फैस्टिव लुक

LIVA फैब्रिक से बने प्रिज्मा प्लाजो के साथ न्यूडल स्ट्रेप टॉप और ट्रेडिशनल दुपट्टा आपके आउटडोर फैस्टिव सेलिब्रेशन में स्टाइलिश लुक देगा.

5. क़ॉलेज फैस्टिव लुक

LIVA फैब्रिक से बने मोनिका के फ्लोरल स्टोल को मैचिंग कलर के शर्ट हेरम पेंट के साथ स्टाइलिश अंदाज में ड्रेप करें और बन जाये कॉलेज फैस्टिव रेडी.

LIVA फैस्टिव लुक कौन्टेस्ट 2019

अब आप भी अपना फेस्टिव लुक हमसे शेयर कर सकती हैं. चुने हुए 10 सबसे फैस्टिव फैशन लुक की विजेताओं को LIVA की ओर से दिया जाएगा शानदार गिफ्ट हैंपर. इस कौंटेस्ट का हिस्सा बनने के लिए बस आपको अपनी कोई भी फैस्टिव लुक वाली सेल्फी या फोटो हमें भेजना है.

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आप अपनी एंट्रीज मेल द्वारा grihshobhamagazine@delhipress.in पर भेज सकती हैं या whatsapp नंबर 9650966493 पर भेज सकती हैं.

आप पत्र द्वारा भी गृहशोभा- LIVA फैस्टिव लुक कौंटेस्ट 2019, दिल्ली प्रैस, ई-8, झंडेवालान एस्टेट, रानी झांसी मार्ग, नई दिल्ली- 110055 पर अपनी फैस्टिव लुक वाली फोटो भेज कर इस कौंटेस्ट का हिस्सा बन सकती हैं.

‘कसौटी जिंदगी के 2’ : क्या शादी से पहले अपना बच्चा खो देगी प्रेरणा

मशहूर सीरियल ‘कसौटी जिंदगी के 2’ में इन दिनों धमाकेदार ट्विस्ट देखने को मिल रहे हैं. अब तक दर्शकों को मिस्टर बजाज और प्रेरणा के बीच ही इमोशनल ड्रामा देखने को मिल रहा था. फिलहाल इस शो के ट्रैक में  मिस्टर बजाज चले गए हैं. और प्रेरणा अनुराग के बीच सब कुछ ठीक हो रहा है.

प्रेरणा अनुराग शादी भी करने वाले हैं. सब घरवालें मिलकर इन दोनों की शादी की तैयारियों में जुट गए हैं. लेकिन इसी बीच एक धमाकेदार ट्विस्ट होने वाला है. जिसकी वजह से प्रेरणा और अनुराग एक बार फिर से दूर हो जाएंगे.

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जी हां, क्योंकि अनुराग अपनी याददाश्त खो देगा. अब आपको बताते हैं इस महाट्विस्ट के बारे में.  दरअसल, अनुराग अपने होने वाले बच्चे के बारे में जानकर बहुत खुश होगा. इस बात का जश्न मनाने के लिए वह प्रेरणा के साथ बाहर घूमने जाएगा. यह ट्रिप अनुराग की जिंदगी बदल देगी. ट्रिप से वापस के दौरान अनुराग और प्रेरणा का एक्सीडेंट होगा. एक्सीडेंट की वजह से अनुराग अपनी याददाश्त खो देगा.

आपको बता दें, कोमोलिका ने  अनुराग का एक्सीडेंट करवाया है. जैसे ही अनुराग की याददाश्त जाएगी, कोमोलिका की ये चाल सफल हो जाएगी.  तो उधर प्रेरणा की जिंदगी में तूफान आएगा क्योंकि, इस एक्सीडेंट में प्रेरणा अपने बच्चे को खो देगी. शो के अपकमिंग एपिसोड में धमाकेदार ट्विस्ट का सिलसिला जारी रहेगा.

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‘ये रिश्ता क्या कहलाता है’: जल्द ही सबके सामने खुलेगा वेदिका का राज, क्या करेगी नायरा ?

छोटे पर्दे का मशहूर शो ‘ये रिश्ता क्या कहलाता है’ में लगातार हाईवोल्टेज ड्रामा चल रहा है. आए दिन इस शो की कहानी में नए नए मोड़ आ रहे है.  आपको बता दें कि जल्द ही कार्तिक, नायरा और वेदिका के लव ट्रायंगल में जबरदस्त नया मोड़ आने वाला है. जी हां इस शो के अपकमिंग एपिसोड में वेदिका के एक्स हसबैंड का खुलासा सबके सामने होगा. अब तक वेदिका के पिछली जिंदगी के बारे में किसी को नहीं पता है.

वेदिका का ये राज किसी को नहीं पता है. दरअसल वेदिका का पास्ट भी रह चुका है. जी हां, जिसका खुलासा अब मेकर्स दर्शकों के सामने करने वाले है. वेदिका का यह राज नायरा और कार्तिक के साथ साथ दर्शकों को भी चौंकाने वाला है.

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इस शो में चल रहे ट्रैक के अनुसार गोयनका और सिंघानिया परिवार दशहरा सेलीब्रेशन की तैयारी में लगे हैं.  इस सेलिब्रेशन के दौरान एक सीक्रेट लेटर के माध्यम से वेदिका की एक्स हसबैंड की सच्चाई सबके सामने खुलेगी.  जिसके कारण वो परेशान हो जाएगी. क्योंकि वो कार्तिक को किसी भी हाल में  खोना नहीं चाहती है.

खबरों के अनुसार एक आदमी वेदिका का पीछा करेगा और उसे ब्लैकमेल करने की कोशिश भी करेगा. कार्तिक को भी नायरा के इस सच्चाई के बारे में जल्द ही पता चलेगा और वो चौंकाने वाला कदम उठाएगा. नायरा सबकुछ जानते हुए भी वेदिका की मदद करने की कोशिश करेगी. लेकिन देखना ये दिलचस्प होगा कि क्या वो वेदिका की मदद करने में सफल हो पाएगी.

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कम्मो : भाग 2

‘‘तुम्हारी किस्मत तो बहुत ही तेज है डियर, जो ऐसी जबरदस्त नौकरानी मिल गई. एकदम हीरोइन लगती है. अगर मैं तुम्हारी जगह होता तो ऐसी मस्त नौकरानी से खूब मजे लेता. अरे भाई, हमारे पास रुपएपैसे की कमी नहीं है. हमारी औलादें खूब मजे में हैं. वे बढि़या नौकरी पर हैं. हम क्यों और किस के लिए कंजूसी करें? हमें भी तो अपनी बाकी जिंदगी हंसीखुशी और मजे में गुजारनी चाहिए.’’

राजेश ने कोई जवाब नहीं दिया. कुछ देर बाद कम्मो चाय के खाली बरतन उठाने आई तो मदनलाल उस की तरफ एकटक देखता रहा.

‘‘अच्छा राजेश डियर, मैं चलता हूं,’’ एक घंटे बाद मदनलाल बोला.

‘‘वापस दिल्ली कब जाना है?’’

‘‘शाम को ही लौट जाऊंगा. अगर तुम रात को कम्मो को यहीं रोक सको तो मैं भी रुक जाऊंगा.’’

‘‘यार, लगता है कि तुम मेरी नौकरानी को भगा कर ही रहोगे.’’

‘‘यह तुम्हें छोड़ कर कहीं नहीं जाएगी, क्योंकि तुम जैसे इनसान बहुत कम हैं जो किसी की मजबूरी का फायदा नहीं उठाते. यह भी हो सकता है कि यह किसी दिन तुम्हारी मजबूरी का फायदा उठा ले.’’

‘‘वह कैसे?’’

‘‘मैं क्या बताऊं, यह तो समय ही बताएगा,’’ मदनलाल ने कहा और हंसते हुए राजेश से विदा ली.

रात का खाना खा कर राजेश आराम कुरसी पर बैठे थे. उन के दिमाग में मदनलाल की बातें घूमने लगीं. उन की आंखों के सामने कम्मो का हंसतामुसकराता चेहरा, गदराया बदन, ब्लाउज से बाहर निकलते उभार आने लगे. दिल और दिमाग में अजीब सी बेचैनी होने लगी. वे आराम कुरसी पर सिर पकड़ कर बैठ गए.

कुछ देर बाद कम्मो ने कमरे में आ कर कहा, ‘‘क्या हुआ बाबूजी? लगता है, आप की तबीयत खराब है.’’

‘‘सिर में दर्द हो रहा है,’’ राजेश ने झूठ बोल दिया.

‘‘मैं आप का सिर दबा देती हूं. आप बिस्तर पर लेट जाइए. माथे पर बाम भी लगा देती हूं.’’

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राजेश बिस्तर पर लेट गए. कम्मो ने उन के माथे पर बाम लगाते हुए कहा, ‘‘बाबूजी, यह सिरदर्द ज्यादा सोचने से होता है, आप ज्यादा न सोचा कीजिए. भला आप को क्या कमी है? आप को किस बात की चिंता है? फिर इतना क्यों सोचते हैं आप?’’

राजेश के एक हाथ की उंगलियां कम्मो की कमर पर चलने लगीं.

‘‘बाबूजी, यह क्या कर रहे हैं आप?’’ कम्मो ने राजेश की ओर देखते हुए कहा.

‘‘कुछ नहीं कम्मो, आज मन बहुत बेचैन हो गया है,’’ राजेश ने धड़कते दिल से कम्मो को अपनी ओर खींच लिया. कम्मो ने मना नहीं किया.

कुछ देर बाद कम्मो ने कमरे से बाहर निकलते हुए कहा, ‘‘अच्छा बाबूजी, अब मैं चलती हूं.’’

‘‘ठीक है, जाओ,’’ राजेश ने कहा और बिस्तर पर लेटेलेटे वे बहुत देर तक उन पलों के बारे में सोचते रहे जो अभी कम्मो के साथ बिताए थे.

सुबह कम्मो आई तो एकदम नौर्मल थी. रात की घटना की कोई नाराजगी उस के चेहरे पर न थी.

यह देख राजेश को तसल्ली हुई कि कम्मो नाराज नहीं है.

एक रात कम्मो ने घर जाने से पहले राजेश के पास आ कर कहा, ‘‘बाबूजी, आप से एक बात कहनी थी.’’

‘‘हांहां, कहो.’’

‘‘पहले यह बताइए कि आप की तबीयत तो ठीक है न? कहो तो आप का सिर दबा दूं?’’ कम्मो ने राजेश की ओर देखा.

राजेश ने उसे अपनी तरफ खींच लिया. कुछ देर बाद कम्मो बिस्तर से उठ कर जाने लगी तो राजेश ने पूछा, ‘‘तुम कुछ कह रही थी न कम्मो?’’

‘‘हां बाबूजी, कमल फलों की रेहड़ी लगाना चाहता है. अगर आप कुछ मदद कर दें तो वह रेहड़ी लगा लेगा.’’

‘‘कितने रुपए में लग जाएगी रेहड़ी?’’

‘‘तकरीबन 15,000 रुपए…’’

‘‘ठीक है, कल ले जाना रुपए.’’

‘‘बाबूजी, आप बहुत अच्छे इनसान हैं,’’ कम्मो ने कहा और मुसकराते हुए चली गई.

एक महीने बाद काम करतेकरते कम्मो को अचानक उलटी हो गई.

राजेश ने कम्मो को बुला कर पूछा, ‘‘क्या बात है कम्मो? तबीयत तो ठीक है न?’’

‘‘बाबूजी लगता है कि मैं पेट से हो गई हूं. मुझे महीना भी नहीं हुआ है.’’

‘‘तुम डाक्टर से चैकअप कराओ. शाम को नर्सिंग होम में चली जाना. नर्सिंग होम से सीधे अपने घर पहुंच जाना. मुझे मोबाइल पर बता देना जैसा भी डाक्टर बताता है.’

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रात को राजेश को कम्मो ने सूचना दे दी कि वह पेट से हो गई है.

अगले दिन सुबह जब कम्मो काम करने आई तो राजेश ने उसे अपने कमरे में बुलाया.

कम्मो बोली, ‘‘बाबूजी, आप ने मेरे साथ संबंध बनाए तो उसी के चलते मैं पेट से हो गई हूं. अब मेरे पेट में आप का बच्चा पल रहा है.’’

‘‘कम्मो, यह तुम कैसे कह सकती हो कि यह मेरा ही बच्चा है, यह तुम्हारे पति का भी तो हो सकता है.’’

‘‘बाबूजी, कमल का पापा तो 3 महीने से मेरे पास आया ही नहीं, वह बीमार रहता है.’’

‘‘कम्मो, मेरा कहा मानोगी…’’

‘‘कहिए बाबूजी?’’

‘‘तुम अपना बच्चा गिरवा लो.’’

‘‘नहीं बाबूजी, मैं बच्चा नहीं गिराऊंगी. मैं हत्या नहीं कराऊंगी. चाहे यह बेटा हो या बेटी, मैं इसे पालपोस कर बड़ा करूंगी.

‘‘मेरा कहना मान लो कम्मो, तुम बच्चा गिरा दो.’’

‘‘नहीं बाबूजी, आप मुझे ऐसी सलाह न दें. इस के पैदा होने पर मैं सभी को बता दूंगी कि इस का पापा कौन है, क्योंकि इस की शक्ल आप से मिलेगी.’’

‘‘अगर मुझ से शक्ल न मिली तो…?’’

‘‘तो मैं इतनी भोली भी नहीं हूं जो चुपचाप बैठ जाऊंगी. मैं सब से पहले इस बच्चे का डीएनए टैस्ट कराऊंगी और मीडिया को बता दूंगी कि यह बच्चा भी आप की जायदाद का वारिस है,’’ कम्मो ने राजेश की ओर देखते हुए कहा. उस के चहरे पर मुसकान थी.

यह सुन कर राजेश को पसीना आ गया. वे तो कम्मो को बहुत भोली समझ रहे थे, पर यह तो जरूरत से ज्यादा समझदार व चालाक है. इस ने तो उसे ही जाल में फंसा दिया है.

राजेश ने कहा, ‘‘सुनो कम्मो, जो होना था हो गया. अब तुम यह बताओ कि इस मुसीबत से बचने के लिए मैं तुम्हें कितने रुपए दे दूं?’’

‘‘बाबूजी, मुझे आप पर तरस आता है. आप बस 5 लाख रुपए दे दो. मैं बच्चा गिरवा दूंगी.’’

‘‘5 लाख रुपए…? क्या कह रही हो तुम? पागल हो गई हो क्या?’’

‘‘बाबूजी, मैं नहीं उस रात तो आप पागल हो गए थे जिस का नतीजा मेरे पेट में पल रहा है.’’

‘‘मैं तुम्हें 5 लाख तो नहीं, 50,000 रुपए दे सकता हूं.’’

‘‘बाबूजी, आप की इज्जत और आप के इस बच्चे की कीमत महज 50,000 ही है क्या?’’

इस के बाद सौदेबाजी हुई और कम्मो 2 लाख रुपए लेने पर मान गई.

राजेश ने दोपहर को बैंक से 2 लाख रुपए निकाल कर कम्मो को दे दिए.

‘‘बाबूजी, मैं कल ही सफाई करा लूंगी. इस के बाद 5-7 दिन मुझे आराम भी करना पड़ेगा.’’

‘‘कोई बात नहीं, तुम अपने घर पर आराम कर लेना.’’

‘‘मैं किसी दूसरी कामवाली को

भेज दूंगी, ताकि आप को कोई परेशानी न हो.’’

‘‘तुम किसी को न भेजना. मैं कुछ दिन के लिए बेंगलुरु चला जाऊंगा अपने बेटे के पास,’’ राजेश ने कुढ़ते हुए कहा.

कम्मो चुपचाप काम में लग गई.

राजेश ठगे से कुरसी पर बैठ गए. उन को अपने किए पर पछतावा हो रहा था. अपनी इज्जत बचाने के लिए उन्हें 2 लाख रुपए देने पड़े. कम्मो ने उस रात की भरपूर कीमत वसूली है.

कुछ दिन बेटे के पास बेंगलुरु में रहने के बाद फिर वापस यहीं लौटना है. यहां लौट कर फिर अकेलापन घेर लेगा. अब तो इस अकेलेपन को दूर करने का कुछ न कुछ उपाय करना ही होगा.

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अगले दिन से ही राजेश ने अखबार व इंटरनैट पर ऐसे वैवाहिक विज्ञापन देखने शुरू कर दिए जिन में विधवा, छोड़ी गई व तलाकशुदा औरतों को जीवनसाथी की तलाश थी. उन को लग रहा था कि बाकी की जिंदगी अकेले बिना साथी के काटना बहुत मुश्किल होगा.

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