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वो जलता है मुझ से : भाग 1

विजय का जब मन चाहा अपने बरसों पुराने मित्र को बुला लिया अपनी दौलत की नुमाइश दिखाने के लिए इस बार भी बुलाया था अपने बच्चे के जन्मदिन पर. पर मित्र के न आने पर विजय को तकलीफ क्यों होने लगी थी.

‘‘सुपीरियरिटी कांप्लेक्स जैसी  कोई भी भावना नहीं होती.

वास्तव में जो इनसान इनफीरियरिटी कांप्लेक्स से पीडि़त है उसी को सुपीरियरिटी कांप्लेक्स भी होता है. अंदर से वह हीनभावना को ही दबा रहा होता है और यही दिखाने के लिए कि उसे हीनभावना तंग नहीं कर रही, वह सब के सामने बड़ा होने का नाटक करता है.

‘‘उच्च और हीन ये दोनों मनोगंथियां अलगअलग हैं. उच्च मनोग्रंथि वाला इनसान इसी खुशफहमी में जीता है कि सारी दुनिया उसी की जूती के नीचे है. वही सब से श्रेष्ठ है, वही देता है तो सामने वाले का पेट भरता है. वह सोचता है कि यह आकाश उसी के सिर का सहारा ले कर टिका है और वह सहारा छीन ले तो शायद धरती ही रसातल में चली जाए. किसी को अपने बराबर खड़ा देख उसे आग लग जाती है. इसे कहते हैं उच्च मनोगं्रथि यानी सुपीरियरिटी कांप्लेक्स.

‘‘इस में भला हीन मनोगं्रथि कहां है. जैसे 2 शब्द हैं न, खुशफहमी और गलतफहमी. दोनों का मतलब एक हो कर भी एक नहीं है. खुशफहमी का अर्थ होता है बेकार ही किसी भावना में खुश रहना, मिथ्या भ्रम पालना और उसी को सच मान कर उसी में मगन रहना जबकि गलतफहमी में इनसान खुश भी रह सकता है और दुखी भी.’’

‘‘तुम्हारी बातें बड़ी विचित्र होती हैं जो मेरे सिर के ऊपर से निकल जाती हैं. सच पूछो तो आज तक मैं समझ ही नहीं पाया कि तुम कहना क्या चाहते हो.’’

‘‘कुछ भी खास नहीं. तुम अपने मित्र के बारे में बता रहे थे न. 20 साल पहले तुम पड़ोसी थे. साथसाथ कालिज जाते थे सो अच्छा प्यार था तुम दोनों में. पढ़ाई के बाद तुम पिता के साथ उन के व्यवसाय से जुड़ गए और अच्छेखासे अमीर आदमी बन गए. पिता की जमा पूंजी से जमीन खरीदी और बैंक से खूब सारा लोन ले कर यह आलीशान कोठी बना ली.

‘‘उधर 20 साल में तुम्हारे मित्र ने अपनी नौकरी में ही अच्छी इज्जत पा ली, उच्च पद तक पहुंच गया और संयोग से इसी शहर में स्थानांतरित हो कर आ गया. अपने आफिस के ही दिए गए छोटे से घर में रहता है. तुम से बहुत प्यार भी करता है और इन 20 सालों में वह जब भी इस शहर में आता रहा तुम से मिलता रहा. तुम्हारे हर सुखदुख में उस ने तुम से संपर्क रखा. हां, यह अलग बात है कि तुम कभी ऐसा नहीं कर पाए क्योंकि आज की ही तरह तुम सदा व्यस्त रहे. अब जब वह इस शहर में पुन: आ गया है, तुम से मिलनेजुलने लगा है तो सहसा तुम्हें लगने लगा है कि उस का स्तर तुम्हारे स्तर से नीचा है, वह तुम्हारे बराबर नहीं है.’’

‘‘नहीं, ऐसा नहीं है.’’

‘‘ऐसा ही है. अगर ऐसा न होता तो उस के बारबार बुलाने पर भी क्या तुम उस के घर नहीं जाते? ऐसा तो नहीं कि तुम कहीं आतेजाते ही नहीं हो. 4-5 तो किटी पार्टीज हैं जिन में तुम जाते हो. लेकिन वह जब भी बुलाता है तुम काम का बहाना बना देते हो.

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‘साल भर हो गया है उसे इस शहर में आए. क्या एक दिन भी तुम उस के घर पर पहले जितनी तड़प और ललक लिए गए हो जितनी तड़प और ललक लिए वह तुम्हारे घर आता रहता था और अभी तक आता रहा? तुम्हारा मन किया दोस्तों से मिलने का तो तुम ने एक पार्टी का आयोजन कर लिया. सब को बुला लिया, उसे भी बुला लिया. वह भी हर बार आता रहा. जबजब तुम ने चाहा और जिस दिन उस ने कहा आओ, थोड़ी देर बैठ कर पुरानी यादें ताजा करें तो तुम ने बड़ी ठसक से मना कर दिया. धीरेधीरे उस ने तुम से पल्ला झाड़ लिया. तुम्हारी समस्या जब यह है कि तुम ने अपने बेटे के जन्मदिन पर उसे बुलाया और पहली बार उस ने कह दिया कि बच्चों के जन्मदिन पर भला उस का क्या काम?’’

‘‘मुझे बहुत तकलीफ हो रही है राघव…वह मेरा बड़ा प्यारा मित्र था और उसी ने साफसाफ इनकार कर दिया. वह तो ऐसा नहीं था.’’

‘‘तो क्या अब तुम वही रह गए हो? तुम भी तो यही सोच रहे हो न कि वह तुम्हारी सुखसुविधा से जलता है तभी तुम्हारे घर पर आने से कतरा गया. सच तो यह है कि तुम उसे अपने घर अपनी अमीरी दिखाने को बुलाते रहे हो, अचेतन में तुम्हारा अहम संतुष्ट होता है उसे अपने घर पर बुला कर. तुम उस के सामने यह प्रमाणित करना चाहते हो कि देखो, आज तुम कहां हो और मैं कहां हूं जबकि हम दोनों साथसाथ चले थे.’’

‘‘नहीं तो…ऐसा तो नहीं सोचता मैं.’’

‘‘कम से कम मेरे सामने तो सच बोलो. मैं तुम्हारे इस दोस्त से तुम्हारे ही घर पर मिल चुका हूं. जब वह पहली बार तुम से मिलने आया था. तुम ने घूमघूम कर अपना महल उसे दिखाया था और उस के चेहरे पर भी तुम्हारा घर देखते हुए बड़ा संतोष झलक रहा था और तुम कहते हो वह जलता है तुम्हारा वैभव देख कर. तुम्हारे चेहरे पर भी तब कोई ऐसा ही दंभ था…मैं बराबर देख रहा था. उस ने कहा था, ‘भई वाह, मेरा घर तो बहुत सुंदर और आलीशान है. दिल चाह रहा है यहीं क्यों न आ जाऊं…क्या जरूरत है आफिस के घर में रहने की.’

‘‘तब उस ने यह सब जलन में नहीं कहा था, अपना घर कहा था तुम्हारे घर को. तुम्हारे बच्चों के जन्मदिन पर भागा चला आता था और आज उसी ने मना कर दिया. उस ने भी पल्ला खींचना शुरू कर दिया, आखिर क्यों. हीन ग्रंथि क्या उस में है? अरे, तुम व्यस्त रहते हो इसलिए उस के घर तक नहीं जाते और वह क्या बेकार है जो अपने आफिस में से समय निकाल कर भी चला आता है. प्यार करता था तभी तो आता था. क्या एक कप चाय और समोसा खाने चला आता था?

‘‘जिस नौकरी में तुम्हारा वह दोस्त है न वहां लाखों कमा कर तुम से भी बड़ा महल बना सकता था लेकिन वह ईमानदार है तभी अभी तक अपना घर नहीं बना पाया. तुम्हारी अमीरी उस के लिए कोई माने नहीं रखती, क्योंकि उस ने कभी धनसंपदा को रिश्तों से अधिक महत्त्व नहीं दिया. दोस्ती और प्यार का मारा आता था. तुम्हारा व्यवहार उसे चुभ गया होगा इसलिए उस ने भी हाथ खींच लिया.’’

‘‘तुम्हें क्या लगता है…मुझ में उच्च गं्रथि का विकास होने लगा है या हीन ग्रंथि हावी हो रही है?’’

‘‘दोनों हैं. एक तरफ तुम सोचने लगे हो कि तुम इतने अमीर हो गए हो कि किसी को भी खड़ेखडे़ खरीद सकते हो. तुम उंगली भर हिला दोगे तो कोई भी भागा चला आएगा. यह मित्र भी आता रहा, तो तुम और ज्यादा इतराने लगे. दोस्तों के सामने इस सत्य का दंभ भी भरने लगे कि फलां कुरसी पर जो अधिकारी बैठा है न, वह हमारा लंगोटिया यार है.

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‘‘दूसरी तरफ तुम में यह ग्रंथि भी काम करने लगी है कि साथसाथ चले थे पर वह मेज के उस पार चला गया, कहां का कहां पहुंच गया और तुम सिर्फ 4 से 8 और 8 से 16 ही बनाते रह गए. अफसोस होता है तुम्हें और अपनी हार से मुक्ति पाने का सरल उपाय था तुम्हारे पास उसे बुला कर अपना प्रभाव डालना. अपने को छोटा महसूस करते हो उस के सामने तुम. यानी हीन ग्रंथि.

‘‘सत्य तो यह है कि तुम उसे कम वैभव में भी खुश देख कर जलते हो. वह तुम जितना अमीर नहीं फिर भी संतोष हर पल उस के चेहरे पर झलकता है…इसी बात पर तुम्हें तकलीफ होती है. तुम चाहते हो वह दुम हिलाता तुम्हारे घर आए…तुम उस पर अपना मनचाहा प्रभाव जमा कर अपना अहम संतुष्ट करो. तुम्हें क्या लगता है कि वह कुछ समझ नहीं पाता होगा? जिस कुरसी पर वह बैठा है तुम जैसे हजारों से वह निबटता होगा हर रोज. नजर पहचानना और बदल गया व्यवहार भांप लेना क्या उसे नहीं आता होगा. क्या उसे पता नहीं चलता होगा कि अब तुम वह नहीं रहे जो पहले थे. प्रेम और स्नेह का पात्र अब रीत गया है, क्या उस की समझ में नहीं आता होगा?

पारिवारिक सुगंध : भाग 1

रिश्तों की सुगंध ही जीवन में सुखशांति लाती है. लेकिन राजीव अपनी धनदौलत के घमंड में डूबा रहता. रिश्तों की अहमियत उस के लिए कोई माने नहीं रखती थी. परिवार, सगेसंबंधी होते हुए भी वह खाली हाथ था. साथ था तो केवल एक दोस्त.

अपने दोस्त राजीव चोपड़ा को दिल का दौरा पड़ने की खबर सुन कर मेरे मन में पहला विचार उभरा कि अपनी जिंदगी में हमेशा अव्वल आने की दौड़ में बेतहाशा भाग रहा मेरा यार आखिर जबरदस्त ठोकर खा ही गया.

रात को क्लिनिक कुछ जल्दी बंद कर के मैं उस से मिलने नर्सिंग होम पहुंच गया. ड्यूटी पर उपस्थित डाक्टर से यह जान कर कि वह खतरे से बाहर है, मेरे दिल ने बड़ी राहत महसूस की थी.

मुझे देख कर चोपड़ा मुसकराया और छेड़ता हुआ बोला, ‘‘अच्छा किया जो मुझ से मिलने आ गया पर तुझे तो इस मुलाकात की कोई फीस नहीं दूंगा, डाक्टर.’’

‘‘लगता है खूब चूना लगा रहे हैं मेरे करोड़पति यार को ये नर्सिंग होम वाले,’’ मैं ने उस का हाथ प्यार से थामा और पास पड़े स्टूल पर बैठ गया.

‘‘इस नर्सिंग होम के मालिक डाक्टर जैन को यह जमीन मैं ने ही दिलाई थी. इस ने तब जो कमीशन दिया था, वह लगता है अब सूद समेत वसूल कर के रहेगा.’’

‘‘यार, कुएं से 1 बालटी पानी कम हो जाने की क्यों चिंता कर रहा है?’’

‘‘जरा सा दर्द उठा था छाती में और ये लोग 20-30 हजार का बिल कम से कम बना कर रहेंगे. पर मैं भी कम नहीं हूं. मेरी देखभाल में जरा सी कमी हुई नहीं कि मैं इन पर चढ़ जाता हूं. मुझ से सारा स्टाफ डरता है…’’

दिल का दौरा पड़ जाने के बावजूद चोपड़ा के व्यवहार में खास बदलाव नहीं आया था. वह अब भी गुस्सैल और अहंकारी इनसान ही था. अपने दिल के दौरे की चर्चा भी वह इस अंदाज में कर रहा था मानो उसे कोई मैडल मिला हो.

कुछ देर के बाद मैं ने पूछा, ‘‘नवीन और शिखा कब आए थे?’’

अपने बेटेबहू का नाम सुन कर चोपड़ा चिढ़े से अंदाज में बोला, ‘‘नवीन सुबहशाम चक्कर लगा जाता है. शिखा को मैं ने ही यहां आने से मना किया है.’’

‘‘क्यों?’’

‘‘अरे, उसे देख कर मेरा ब्लड प्रेशर जो गड़बड़ा जाता है.’’

‘‘अब तो सब भुला कर उसे अपना ले, यार. गुस्सा, चिढ़, नाराजगी, नफरत और शिकायतें…ये सब दिल को नुकसान पहुंचाने वाली भावनाएं हैं.’’

‘‘ये सब छोड़…और कोई दूसरी बात कर,’’ उस की आवाज रूखी और कठोर हो गई.

कुछ पलों तक खामोश रहने के बाद मैं ने उसे याद दिलाया, ‘‘तेरे भतीजे विवेक की शादी में बस 2 सप्ताह रह गए हैं. जल्दी से ठीक हो जा मेरा हाथ बंटाने के लिए.’’

‘‘जिंदा बचा रहा तो जरूर शामिल हूंगा तेरे बेटे की शादी में,’’ यह डायलाग बोलते हुए यों तो वह मुसकरा रहा था, पर उस क्षण मैं ने उस की आंखों में डर, चिंता और दयनीयता के भाव पढ़े थे.

नर्सिंग होम से लौटते हुए रास्ते भर मैं उसी के बारे में सोचता रहा था.

हम दोनों का बचपन एक ही महल्ले में साथ गुजरा था. स्कूल में 12वीं तक की शिक्षा भी  साथ ली थी. फिर मैं मेडिकल कालिज में प्रवेश पा गया और वह बी.एससी. करने लगा.

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पढ़ाई से ज्यादा उस का मन कालिज की राजनीति में लगता. विश्वविद्यालय के चुनावों में हर बार वह किसी न किसी महत्त्वपूर्ण पद पर रहा. अपनी छात्र राजनीति में दिलचस्पी के चलते उस ने एलएल.बी. भी की.

‘लोग कहते हैं कि कोई अस्पताल या कोर्ट के चक्कर में कभी न फंसे. देख, तू डाक्टर बन गया है और मैं वकील. भविष्य में मैं तुझ से ज्यादा अमीर बन कर दिखाऊंगा, डाक्टर. क्योंकि दौलत पढ़ाई के बल पर नहीं बल्कि चतुराई से कमाई जाती है,’ उस की इस तरह की डींगें मैं हमेशा सुनता आया था.

उस की वकालत ठीक नहीं चली तो वह प्रापर्टी डीलर बन गया. इस लाइन में उस ने सचमुच तगड़ी कमाई की. मैं साधारण सा जनरल प्रेक्टिशनर था. मुझ से बहुत पहले उस के पास कार और बंगला हो गए.

हमारी दोस्ती की नींव मजबूत थी इसलिए दिलों का प्यार तो बना रहा पर मिलनाजुलना काफी कम हो गया. उस का जिन लोगों के साथ उठनाबैठना था, वे सब खानेपीने वाले लोग थे. उस तरह की सोहबत को मैं ठीक नहीं मानता था और इसीलिए हम कम मिलते.

हम दोनों की शादी साथसाथ हुई और इत्तफाक से पहले बेटी और फिर बेटा भी हम दोनों के घर कुछ ही आगेपीछे जन्मे.

चोपड़ा ने 3 साल पहले अपनी बेटी की शादी एक बड़े उद्योगपति खानदान में अपनी दौलत के बल पर की. मेरी बेटी ने अपने सहयोगी डाक्टर के साथ प्रेम विवाह किया. उस की शादी में मैं ने चोपड़ा की बेटी की शादी में आए खर्चे का शायद 10वां हिस्सा ही लगाया होगा.

रुपए को अपना भगवान मानने वाले चोपड़ा का बेटा नवीन कालिज में आने तक एक बिगड़ा हुआ नौजवान बन गया था. उस की मेरे बेटे विवेक से अच्छी दोस्ती थी क्योंकि उस की मां सविता मेरी पत्नी मीनाक्षी की सब से अच्छी सहेली थी. इन दोनों नौजवानों की दोस्ती की मजबूत नींव भी बचपन में ही पड़ गई थी.

‘नवीन गलत राह पर चल रहा है,’ मेरी ऐसी सलाह पर चोपड़ा ने कभी ध्यान नहीं दिया था.

‘बाप की दौलत पर बेटा क्यों न ऐश करे? तू भी विवेक के साथ दिनरात की टोकाटाकी वाला व्यवहार मत किया कर, डाक्टर. अगर वह पढ़ाई में पिछड़ भी गया तो कोई फिक्र नहीं. उसे कोई अच्छा बिजनेस मैं शुरू करा दूंगा,’’ अपनी ऐसी दलीलों से वह मुझे खीज कर चुप हो जाने को मजबूर कर देता.

आज इस करोड़पति इनसान का इकलौता बेटा 2 कमरों के एक साधारण से किराए वाले फ्लैट में अपनी पत्नी शिखा के साथ रह रहा था. नर्सिंग होम से सीधे घर न जा कर मैं उसी के फ्लैट पर पहुंचा.

नवीन और शिखा दोनों मेरी बहुत इज्जत करते थे. इन दोनों ने प्रेम विवाह किया था. साधारण से घर की बेटी को चोपड़ा ने अपनी बहू बनाने से साफ मना कर दिया, तो इन्होंने कोर्ट मैरिज कर ली थी.

चोपड़ा की नाराजगी को नजरअंदाज करते हुए मैं ने इन दोनों का साथ दिया था. इसी कारण ये दोनों मुझे भरपूर सम्मान देते थे.

चोपड़ा को दिल का दौरा पड़ने की चर्चा शुरू हुई, तो नवीन उत्तेजित लहजे में बोला, ‘‘चाचाजी, यह तो होना ही था.’’ रोजरोज की शराब और दौलत कमाने के जनून के चलते उन्हें दिल का दौरा कैसे न पड़ता?

‘‘और इस बीमार हालत में भी उन का घमंडी व्यवहार जरा भी नहीं बदला है. शिखा उन से मिलने पहुंची तो उसे डांट कर कमरे से बाहर निकाल दिया. उन के जैसा खुंदकी और अकड़ू इनसान शायद ही दूसरा हो.’’

‘‘बेटे, बड़ों की बातों का बुरा नहीं मानते और ऐसे कठिन समय में तो उन्हें अकेलापन मत महसूस होने दो. वह दिल का बुरा नहीं है,’’ मैं उन्हें देर तक ऐसी बातें समझाने के बाद जब वहां से उठा तो मन बड़ा भारी सा हो रहा था.

चोपड़ा ने यों तो नवीन को पूरी स्वतंत्रता से ऐश करने की छूट हमेशा दी, पर जब दोनों के बीच टकराव की स्थिति पैदा हुई तो बाप ने बेटे को दबा कर अपनी चलानी चाही थी.

जिस घटना ने नवीन के जीवन की दिशा को बदला, वह लगभग 3 साल पहले घटी थी.

उस दिन मेरे बेटे विवेक का जन्मदिन था. नवीन उसे नए मोबाइल फोन का उपहार देने के लिए अपने साथ बाजार ले गया.

वहां दौलत की अकड़ से बिगडे़ नवीन की 1 फोन पर नीयत खराब हो गई. विवेक के लिए फोन खरीदने के बाद जब दोनों बाहर निकलने के लिए आए तो शोरूम के सुरक्षा अधिकारी ने उसे रंगेहाथों पकड़ जेब से चोरी का मोबाइल बरामद कर लिया.

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‘गलती से फोन जेब में रह गया है. मैं ऐसे 10 फोन खरीद सकता हूं. मुझे चोर कहने की तुम सब हिम्मत कैसे कर रहे हो,’ गुस्से से भरे नवीन ने ऐसा आक्रामक रुख अपनाया, पर वे लोग डरे नहीं.

मामला तब ज्यादा गंभीर हो गया जब नवीन ने सुरक्षा अधिकारी पर तैश में आ कर हाथ छोड़ दिया.

उन लोगों ने पहले जम कर नवीन की पिटाई की और फिर पुलिस बुला ली. बीचबचाव करने का प्रयास कर रहे विवेक की कमीज भी इस हाथापाई में फट गई थी.

पुलिस दोनों को थाने ले आई. वहीं पर चोपड़ा और मैं भी पहुंचे. मैं सारा मामला रफादफा करना चाहता था क्योंकि विवेक ने सारी सचाई मुझ से अकेले में बता दी थी, लेकिन चोपड़ा गुस्से से पागल हो रहा था. उस के मुंह से निकल रही गालियों व धमकियों के चलते मामला बिगड़ता जा रहा था.

उस शोरूम का मालिक भी रुतबेदार आदमी था. वह चोपड़ा की अमीरी से प्रभावित हुए बिना पुलिस केस बनाने पर तुल गया.

एक अच्छी बात यह थी कि थाने का इंचार्ज मुझे जानता था. उस के परिवार के लोग मेरे दवाखाने पर छोटीबड़ी बीमारियों का इलाज कराने आते थे.

उस की आंखों में मेरे लिए शर्मलिहाज के भाव न होते तो उस दिन बात बिगड़ती ही चली जाती. वह चोपड़ा जैसे घमंडी और बदतमीज इनसान को सही सबक सिखाने के लिए शोरूम के मालिक का साथ जरूर देता, पर मेरे कारण उस ने दोनों पक्षों को समझौता करने के लिए मजबूर कर दिया.

हां, इतना उस ने जरूर किया कि उस के इशारे पर 2 सिपाहियों ने अकेले में नवीन की पिटाई जरूर की.

‘बाप की दौलत का तुझे ऐसा घमंड है कि पुलिस का खौफ भी तेरे मन से उठ गया है. आज चोरी की है, कल रेप और मर्डर करेगा. कम से कम इतना तो पुलिस की आवभगत का स्वाद इस बार चख जा कि कल को ज्यादा बड़ा अपराध करने से पहले तू दो बार जरूर सोचे.’

मेरे बेटे की मौजूदगी में उन 2 पुलिस वालों ने नवीन के मन में पुलिस का डर पैदा करने के लिए उस की अच्छीखासी धुनाई की थी.

उस घटना के बाद नवीन एकाएक उदास और सुस्त सा हो गया था. हम सब उसे खूब समझाते, पर वह अपने पुराने रूप में नहीं लौट पाया था.

फिर एक दिन उस ने घोषणा की, ‘मैं एम.बी.ए. करने जा रहा हूं. मुझे प्रापर्टी डीलर नहीं बनना है.’

यह सुन कर चोपड़ा आगबबूला हो उठा और बोला, ‘क्या करेगा एम.बी.ए. कर के? 10-20 हजार की नौकरी?’

‘इज्जत से कमाए गए इतने रुपए भी जिंदगी चलाने को बहुत होते हैं.’

‘क्या मतलब है तेरा? क्या मैं डाका डालता हूं? धोखाधड़ी कर के दौलत कमा रहा हूं?’

‘मुझे आप के साथ काम नहीं करना है,’ यों जिद पकड़ कर नवीन ने अपने पिता की कोई दलील नहीं सुनी थी.

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बाद में मुझ से अकेले में उस ने अपने दिल के भावों को बताया था, ‘चाचाजी, उस दिन थाने में पुलिस वालों के हाथों बेइज्जत होने से मुझे मेरे पिताजी की दौलत नहीं बचा पाई थी. एक प्रापर्टी डीलर का बेटा होने के कारण उलटे वे मुझे बदमाश ही मान बैठे थे और मुझ पर हाथ उठाने में उन्हें जरा भी हिचक नहीं हो रही थी.

‘दूसरी तरफ आप के बेटे विवेक के साथ उन्होंने न गालीगलौज की, न मारपीट. क्यों उस के साथ भिन्न व्यवहार किया गया? सिर्फ आप के अच्छे नाम और इज्जत ने उस की रक्षा की थी.

उन्नाव कांड : प्रेम कहानी की आड़ में वीभत्सता दबाने की कोशिश

उत्तर प्रदेश राजधानी से 60 किलोमीटर दूर उन्नाव जिला फिर चर्चा में है. एक बार फिर चर्चा बलात्कार यानि रेप है. भाजपा के विधायक कुलदीप सेंगर के समय मामला राजनीतिक था. अब दूसरी घटना में लड़की को जलाने के बाद  मामला राजनीतिक कम सामाजिक अधिक बन गया है. अब लोकसभा में हंगामा होकर मांग की जा रही है कि महिला सुरक्षा दिवस मनाया जाये. उत्तर प्रदेश की विधानसभा के बाहर प्रमुख विपक्षी दल समाजवादी पार्टी के नेता और पूर्व मुख्यमंत्री अखिलेश यादव धरने पर बैठे. कांग्रेस की महासचिव प्रियंका गांधी लखनऊ के दो दिन के दौरे से समय निकाल कर उन्नाव लड़की के घर वालों से मिलने गई. देश में एक बार फिर रेप की घटना चर्चा में है. उत्तर प्रदेश सरकार को बचाने में लगे लोग पूरे मामले में लड़की जलाने की वीभत्स घटना की चर्चा करने के बजाय प्रेम प्रंसग की चर्चा करके मामले को कमजोर करने का प्रयास कर रहे हैं.

इस बार रेप कांड सामाजिक है. उन्नाव जिले की पुलिस पूरे मामले में घटना को प्रेमप्रसंग मानकर दरकिनार कर रही थी लड़की की मौत के बाद भी वह इसे प्रेम प्रंसग मान कर हैदराबाद वाली घटना जितना गंभीर नहीं मान रही है. लड़का लड़की दोनों ही गांव के रहने वाले थे. आपस में करीबी थे. दोनों का आपस में घरो में आना जाना था. अंतर था कि लड़की गरीब परिवार से थी. लड़के का परिवार गांव के प्रधान का करीबी परिवार था.

उत्तर प्रदेश में भारतीय जनता पार्टी की सरकार है. जहां प्रेम को रोकने के लिये मुख्यमंत्री योगी आदित्यनाथ के द्वारा शपथ ग्रहण करते ही ‘एंटी रोमियो दल’ का गठन किया गया था. मामला एक ही धर्म के लोगों का था ऐसे में ‘एंटी रोमियो दल’ और पुलिस के लिये यह कोई बड़ी बात नहीं थी. धर्म आधारित सत्ता तो रामायण और महाभारत काल से ही छले जाने पर औरत को ही दोषी मानती थी. अहिल्या का पत्थर बना दिया जाना, सीता का घर से निकाला जाना और कुंती का पुत्र को त्याग करने जैसी बहुत सी घटनायें उदाहरण है. ऐसे में उन्नाव के हिन्दूपुर गांव की लड़की को भी गलत ही माना जाना था.

पुलिस और समाज दोनों ही अपराध की गंभीरता की जगह पर सेक्स के औचित्य पर बहस कर रहे है. यहां यह भूल जाते है कि कानून बिना सहमति के पत्नी के साथ सेक्स संबंधों को भी अपराध मानती है. कानून लालच और लाचारी में बने सहमति के सेक्स संबंधों को भी बलात्कार मानता है. कानून की परवाह हैदराबाद से लेकर उन्नाव तक पुलिस में नजर नहीं आती. वह आदमी देखकर कानून का पालन करती है. यही वजह है हैदराबाद का बलात्कार और उन्नाव का बलात्कार उसे फर्क फर्क लगता है.

प्रेम प्रसंग की आड़ में छिपाया जा रहा गुनाह

उन्नाव कांड में लड़की का गुनाह प्रेम प्रसंग था. मामला प्रेम प्रंसग का था. इसी कारण पुलिस ने लड़की की शिकायत करने के बाद भी उसकी शिकायत पर रेप करने का मुकदमा नहीं लिखा. सामान्यतौर पर पुलिस प्रेम प्रसंग के मामलों में पुलिस का रवैया यही होता है. लड़की के गांव नाम हिन्दूपुर है. यह उन्नाव जिले से करीब 50 किलोमीटर दूर पर स्थित है. यह गांव उन्नाव के बिहार थाना क्षेत्र में आता है. लड़की का परिवार गांव के गरीब परिवार में आता है. लड़की पांच बहनों और दो भाइयों में सबसे छोटी थी. गांव के अंदर इनका कच्चे घर बना है. लड़की घर के कामकाज से अकेले ही घर से बाहर आती जाती रहती थी.

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हिन्दूपुर गांव की प्रधान महिला है. पीड़ित लडकी का प्रधान के घर आना जाना था. प्रधान के कारण ही लड़की के परिवार को सरकारी योजनाओं का लाभ भी मिल जाता था. इस कारण से लड़की का परिवार प्रधान के परिवार के दबाव में भी रहता था. लड़की के घर से कुछ दूरी पर ही लडके शिवम त्रिवेदी का भी घर है. इन लोगों की आपस में पहले जानपहचान हुई फिर मामला प्रेम प्रंसग में बदल गया. लड़की का आरोप है कि लड़का 2018 में उसको रायबरेली लेकर गया और वहां एक कमरा लेकर रहने लगा. वहां शारीरिक संबंधों के बाद जब लड़की ने शादी करने का दबाव डाला तो लड़का उसको शादी का झांसा देकर मंदिर ले गया. यहां उसने अपने दोस्तों के साथ गैंगरेप किया.

दिसम्बर 2018 में इस घटना की रिपोर्ट दर्ज कराने लब लड़की ने पुलिस के पास गई तो वहां मुकदमा दर्ज नही हुआ. तब लड़की ने कोर्ट का सहारा लेकर अपने गैंगरेप का मुकदमा लिखाया. इसी प्रकरण में आरोपी शिवम त्रिवेदी जेल गया. प्रेम प्रंसग के बाद ही उपजे इन हालातों की वजह से परिवारों में आपस में मनमुटाव शुरू हो गया. दोस्ती दुश्मनी में बदल गई. लड़के के परिवार के लोगों का मानना है कि लड़की ने रेप, गैंगरेप की बात झूठी बोली और मुकदमा लिखाया. मार्च 2019 में शिवम के जेल जाने के बाद वह जमानत पर छूटकर आया.

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रेप के मुकदमें का बदला

घटना के दिन गुरूवार 3 दिसम्बर 2019 को लड़की अपने केस की पैरवी के लिये वकील से मिलने रायबरेली जाने वाली थी. गांव से 2 किलोमीटर दूर रेलवे स्टेशन जा रही थी जहां 5 बजे ट्रेन आने का समय होता था. गांव से स्टेशन तक के रास्ते का कुछ हिस्सा दिन में सूनसान रहता था. सुबह 4 बजे तो वहां लोग होते ही नहीं थे. इसी वजह से लड़की को खुद को बचाने के लिये कुछ दूर दौड़ना पड़ा था. जली हालत में लड़की खुद को बचाने के लिये दौड़ी तो आग और भड़क गई और उसके कपडे जल कर जिस्म से चिपक गये थे. लड़की के कहने पर रास्ते में रहने वालों ने डायल 112 को जानकारी दी तब पुलिस वहां पहुंची.

लड़की ने जली हालत में पुलिस और प्रशासन को अपने उपर मिट्टी का तेल डालकर जलाने वालों के नाम बताये. 90 फीसदी जली हालत में लड़की को पहले उत्तर प्रदेश की राजधानी लखनऊ और फिर देश की राजधानी दिल्ली इलाज के लिये ले जायी गई. जिंदगी और मौत के बीच 3 दिन संघर्ष करने के बाद दम तोड़ दिया. लड़की के पिता को दुख है कि घटना के दिन वह लेकर छोड़ने स्टेशन तक नहीं गये. लड़की खुद अपनी लड़ाई लड़ रही थी. इस कारण वह आत्मविश्वास में थे. इसके पहले वह लड़की को छोड़ने स्टेशन तक जाते थे.

आरोपियों के परिवार के लोग कहते है कि गुनाह उनके घर वालों ने नहीं किया उनको साजिश के तहत फंसाया जा रहा है. साजिश का पर्दाफाश करने के लिये सीबीआई जांच की जरूरत है. परिवार के लोग कहते हैं कि लड़की को जलाने की घटना जिस समय ही है उस समय उनके लड़के घरो में सो रहे थे. पुलिस ने उनको सोते समय घर से पकड़ा है. अगर उन्होंने अपराध किया होता तो आराम से घर में सो नहीं रहे होते. कानून मानता है कि मरते समय का दिया गया बयान सत्य माना जाता है. ऐसे में कौन सच है यह जांच का विषय हो सकता है. अगर लड़की को जलाते किसी ने लड़कों को उन्नाव में नहीं देखा तो हैदराबाद में भी लड़कों को कुकर्म करते किसी ने नहीं देखा था.

सवाल उठाता है उन्नाव कांड में लड़की ने जली अवस्था में लड़कों के नाम क्यों बताये ? उस समय तक लड़की यह समझ चुकी थी कि उसकी मौत तय है. वह सबसे पहले अपने साथ हुई घटना की गवाही देना चाहती थी. जिसकी वजह से उसने पुलिस और प्रशासन के लोगों को बयान दिया.

पहली युद्ध विरोधी फिल्म “बंकर” में रेखा भारद्वाज का ये शानदार गीत “लौट के घर जाना”

फिल्मकार जुगल राजा पहली युद्ध विरोधी फिल्म ‘‘बंकर’’ लेकर आ रहे हैं, जिसमें कश्मीर के पुंछ में सीमा पर तैनात लेफ्टिनेंट विक्रम सिंह के जीव की कथा है. जो सीजफायर (युद्धविराम) उल्लंघन के दौरान एक गुप्त बंकर में मोर्टार शेल से गंभीर रुप से जख्मी होने के बावजूद अकेले जिंदा रहते हैं. देश की सुरक्षा में सीमा पर तैनात जवानों से प्रेरित इस फिल्म को विभिन्न फिल्म फेस्टिवल में व्यापक तौर पर सराहा जा चुका है.

यह फिल्म कई महत्वपूर्ण मुद्दों को सामने लाती है. मसलन सैनिकों के परिवारों की मानसिक दशा, उनके आपसी रिश्ते और किस तरह सीमा पर तनाव की सबसे बड़ी कीमत एक जवान और उसके परिवार को चुकानी पड़ती है.

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‘‘वैगिंग टेल एंटरटेनमेंट’’ द्वारा प्रस्तुत और ‘‘फाल्कन पिक्चर्स प्रोडक्शन’’ द्वारा निर्मित फिल्म ‘‘बंकर’’ के एक गीत “लौट के घर जाना है” को राष्ट्रीय पुरस्कार से सम्मानित गायिका रेखा भारद्वाज ने अपनी दिल छू लेनेवाली आवाज में गाया है.

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भारतीय सेना और उनके परिवारों को समर्पित 2020 के सबसे ज्यादा दिल को छू लेनेवाले इस शांति गीत का लोकार्पण करते हुए राष्ट्रीय पुरस्कार से सम्मानित गायिका रेखा भारद्वाज ने कहा- ‘‘गीत लौट के घर जाना है’ से बेहतर कोई गाना मैं चुन ही नहीं सकती थी. क्योंकि मैंने पहली बार एक ऐसा गाना गाया है, जिसमें एक राष्ट्रवाद की भावना झलकती है.इसके साथ ही इस फिल्म ‘बंकर’ को बनाने के लिए कई बेहतरीन लोग एक साथ आए हैं.” इस गाने के बोल शकील आजमी ने लिखे हैं और इसके लिए संगीत तैयार किया है कौशल महावीर ने.

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फिल्म की चर्चा करते हुए फिल्म के लेखक निर्देशक जुगल राजा ने कहते हैं- ‘‘जंग में किसी की भी जीत नही होती है. फिर चाहे वह हमारी तरफ का सैनिक हो या दूसरे देश का, हमेशा जवान का परिवार ही नुकसान सहता है. यह फिल्म और गाना सैन्य जीवन की इस वेदना पर प्रकाश डालते हैं.यह गाना फिल्म का अभिन्न अंग है और हमें यह भी लगता है कि रेखाजी केवल एक गायिका नही, बल्कि इस फिल्म का वह एक महत्वपूर्ण पात्र हैं. फिल्म का 95 फीसदी हिस्सा 12 बाय 8 फीट के बंकर में शूट किया गया है. सैनिक के दिमाग के लिए बंकर को प्रतीक के तौर पर इस फिल्म में इस्तेमाल किया गया है, जो हमेशा अपने देश के प्रति कर्तव्य और अपने परिवार के प्रति कर्तव्य को लेकर संघर्ष की स्थिति में रहता है. इस फिल्म के लिए मैंने काफी शोध किया. लेह से लेकर उत्तर पूर्व में तवांग तक यात्रा के दौरान सैनिकों से मिलकर उनसे बातचीत कर मैंने महसूस किया कि उनके परिवार भी अपनी ही तरह से जंग लड़ रहे थे और किसी भी तरह वो एक सैनिक से कम नहीं हैं.”

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फिल्म में लेफ्टिनेंट विक्रम सिंह की प्रमुख भूमिका निभाने वाले अभिजीत सिंह कहते हैं-‘‘फिल्म ‘बंकर’ उन सैनिकों की जीवनी है, जिनका नाम आपने जीवन में कभी नहीं सुना होगा. यह उन सभी लोगों की कहानी है जो एक में पराकाष्ठा तक पहुंचती है. इस बेहतरीन स्क्रिप्ट के लिए दो माह तक मैंने तैयारियां की. यह मौलिक कथा है.’’

अंकिता लोखंडे ने फैंस के साथ शेयर किया अपना ग्लैमरस लुक

टीवी की मशहूर अभिनेत्री अंकिता लोखंडे काफी टाइम से छोटे पर्दे से दूर है. उन्होंने फिल्मी करियर की शुरूआत ‘मणिकर्णिका : द क्वीन्स औफ झांसी’ से की है. वैसे तो ये फिल्म रिलीज हुए काफी वक्त हो गए. लेकिन अंकिता लोखंडे  सोशल मीडिया पर अपने फैंस के लिए एक्टिव रहती है.

हाल ही में एक्ट्रेस ने सोशल मीडिया पर अपनी बेहद ही खूबसूरत तस्वीर शेयर की है. इन तस्वीरों में अंकिता का ग्लैमरस लुक देखने को मिल रहा है. इंस्टाग्राम पर अंकिता इन तस्वीरों के जरिए कहर ढ़ा रही है.

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इन तस्वीर में अंकिता पीच कलर के ड्रेस में नजर आ रही हैं. फैंस भी अंकिता के इस खूबसूरत अंदाज को खूब पसंद कर रहे हैं.  अंकिता के काम की बात करे तो अब टाइगर श्रौफ और श्रद्धा कपूर स्टारर  बागी 3′ में नजर आने वाली है.

एक रिपोर्ट के अनुसार अंकिता ने कहा, ‘मणिकर्णिका’ के बाद मैं एक कमर्शियल फिल्म करना चाहती थी और बागी एक सक्सेजफुल फ्रेंचाइजी है. अहमद सर, टाइगर और श्रद्धा के साथ काम करना बहुत अच्छा अनुभव होगा.

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उन्होंने अपने किरदार के बारे में बात करते हुए कहा,  यह मेरे लिए काफी चुनौतीपूर्ण होगा लेकिन मैं आश्वस्त हूं कि मेरा कैरेक्टर दर्शकों को खुद से जोड़ लेगा. ‘बागी 3’ फिल्म पिछली दो फिल्मों से अलग है. इसमें फैमिली बौन्डिंग पर फोकस किया गया है. मैंने इसमें एक फन लविंग गर्ल का किरदार निभाया है जो श्रद्धा कपूर की बहन है.

‘ये रिश्ता क्या कहलाता है’ : कायरव ने चुनी नायरा कार्तिक की शादी की अंगूठी

स्टार प्लस का मशहूर सीरियल ‘ये रिश्ता क्या कहलाता है’ में दर्शकों को लगातार धमाकेदार ट्विस्ट देखने को मिल रहे हैं. जिससे दर्शकों को भरपूर मनोरंजन हो रहा है. फिलहाल इस शो की कहानी एक नया मोड़ ले चुकी है. शो में नायरा और कार्तिक की शादी की तैयारी जोरों शोरों पर है. तो चलिए जानते हैं क्या होने वाला है अपकमिंग एपिसोड में.

पिछले एपिसोड में आपने देखा कि नायरा और कार्तिक की शादी को लेकर पूरे घरवाले खुश है, लेकिन सबसे ज्यादा खुश तो कायरव है…  कायरव अपने मम्मी पापा की शादी को लेकर कुछ ज्यादा ही एक्साइटेड है. जी हां, कायरव को अपने मम्मी पापा की शादी में शामिल होने के लिए बेसब्री से इंतजार कर रहा है. हालांकि इससे पहले कायरव ने अपने मम्मी पापा की शादी में आमंत्रित नहीं करने के लिए शिकायत की थी.

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कायरव अपने मम्मी पापा की शादी की अंगूठी भी चुनने के लिए पूरी तरह से तैयार है. तो वही आपको जल्द ही मजेदार पल देखने को मिलने वाला है. जब स्वर्णा नायरा से कहती है, केवल वही कायरव को संभाल सकते है. क्योंकि वो किसी और की सुनता ही नहीं है. स्वर्णा ये भी उन्हें बताती है, कायरव इस बात पर भी अड़ा है कि केवल वो ही अपने मम्मी पापा की शादी के लिए अंगूठी चुनेगा. तो उधर कार्तिक नायारा कायरव के कमरे में झांकते है कि वो क्या कर रहा है, जहां वो देखते है कि वीडीयो कौल पर कायरव वंश से बात कर रहा है और अपनी पसंद की हुई अंगूठी, जो कि खिलौने की तरह है. वो दिखा रहा होता है.

कायरव की अंगूठी देखकर नायरा और कार्तिक आश्चर्यचकित हो जाते हैं और ये सोचते है अगर उन्होंने कायरव की बात मान ली तो उन्हें पूरी लाइफ इस खिलौने वाली रिंग को पहनकर घुमना पड़ेगा. बता दें कि कहानी के इस ट्रैक से फैंस काफी खुश है. क्योंकि कार्तिक नायरा का मिलन जो होने वाला है लेकिन अब ये देखना दिलचस्प होगा कि कार्तिक नायरा का मिलन इस बार पूरा होगा या फिर अधूरा ही रहा जाएगा.

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छोटी सरदारनी : रियल लाइफ में ऐसे ‘परम’ का होमवर्क कराती हैं ‘मेहर मम्मा’

कलर्स के शो ‘छोटी सरदारनी’ में ‘परम’ की मां ‘मेहर’ के रोल में नजर आने वाली निमृत कौर सीरियल में ‘परम’ को कितना प्यार करती हैं ये सभी को दिखता है, लेकिन रियल लाइफ में भी ‘मेहर’ ‘परम’ का ख्याल रखने का कोई मौका नही छोड़तीं, जिसका सबूत ये फोटो है. आइए आपको दिखाते हैं किस तरह औफस्क्रीन मां ‘मेहर’ ‘परम’ का ख्याल रखती हैं.

औन स्क्रीन मां के साथ वक्त बिताता है परम

निमृत कौर और ‘परम’ सीरियल में मां बेटे का रोल निभाते-निभाते इतने करीब आ गए हैं कि दोनों सेट पर शूटिंग के दौरान काफी समय बिताते हुए नजर आते हैं, इसलिए उनका रिश्ता समय के साथ काफी मजबूत हो गया है.

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‘परम’ का होमवर्क करवातीं हैं औनस्क्रीन मां ‘मेहर’

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हाल ही में ब्रेक टाइम के दौरान निमृत को ‘परम’ का डेली होमवर्क कराते और पढ़ाई में मदद कराते हुए देखा गया था, जिसका सबूत ये फोटो है. एक इंटरव्यू में निमृत ने कहा था,- “पर्सनली, मुझे बच्चे बहुत पसंद है और ‘परम’ के आसपास रहना मेरे लिए एक एंजायमेंट है. ‘परम’ एक स्मार्ट बच्चा है और मुझे खुशी है कि मैं उसे पढ़ाई और होमवर्क में मदद कर रही हूं. ज्यादा समय तक शूटिंग होने के बावजूद मुझे ‘परम’ के साथ थकान महसूस नही होती.”

 

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शो में इन दिनों दिखा रहे हैं कि कितनी मुश्किलों से गुजर के आखिरकार मेहर वापस आ गई है. वहीं दूसरी तरफ सरब पर लगाया हुआ मेहर के मर्डर का आरोप रद्द हो गया है. पूरा परिवार मेहर को जिंदा देखकर बेहद खुश है. अब देखना ये है कि क्या मेहर, सरब और परम फिर से साथ रहेंगे. क्या होगा जानने के लिए देखना न भूलें ‘छोटी सरदारनी’, सोमवार से शनिवार, शाम 7:30 बजे, सिर्फ कलर्स पर.

अपने ही परिवार का दुश्मन

17जून, 2019 की सुबह हरवंत सिंह लगभग हांफते हुए थाना झंजेर पहुंचा. उस ने थाना  इंचार्ज एसआई जुगराज सिंह को बताया कि बीती रात उस की पत्नी, बेटी और दो बेटों सहित परिवार के 4 सदस्य लापता हो गए हैं. जल्द काररवाई कर उन्हें ढूंढा जाए.

हरवंत सिंह की गिनती गांव में बड़े किसानों में होती थी और उन का परिवार शिक्षित परिवार के रूप में जाना जाता था. इसलिए पुलिस ने हरवंत सिंह की शिकायत दर्ज कर तेजी से काररवाई शुरू कर दी.

हरवंत सिंह का परिवार अजनाला अमृतसर के देहाती इलाके के थाना झंजेर क्षेत्र में पड़ने वाले गांव तेडा खुर्द में रहता था. करीब 30 साल पहले हरवंत की शादी अजनाला के ही गांव पंधेर कंभोज निवासी मंगल की बेटी दविंदरपाल कौर से हुई थी. उस के परिवार में पत्नी के अलावा 28 वर्षीय बेटी शरणजीत कौर, 26 वर्षीय ओंकार सिंह और 24 वर्षीय लवरूप सिंह उर्फ लवी नाम के 2 बेटे थे.

तीनों बच्चे उच्चशिक्षा प्राप्त थे और अविवाहित थे. वे अपने कैरियर को ले कर गंभीर थे. ओंकार सिंह इन दिनों जौब के लिए आस्ट्रेलिया जाने की तैयारी कर रहा था.

16 जून की रात पूरा परिवार खाना खाने के बाद जल्दी सो गया था. अगली सुबह जब हरवंत सिंह अपने पशुओं को चारा डालने के लिए उठा तो यह देख कर हैरान रह गया कि परिवार के सभी सदस्य घर से लापता हैं. उस ने काफी देर तक अपने बीवीबच्चों को ढूंढा और उन के न मिलने पर पुलिस में सूचना दर्ज करवा दी.

गांव वालों के साथ पुलिस की समझ में भी यह बात नहीं आ रही थी कि सोतेसोते पूरा परिवार अचानक कैसे गायब हो गया. वे कहां हैं, इस के बारे में न तो हरवंत के रिश्तेदारों को कोई जानकारी थी और न ही गांव के सरपंच को. पुलिस ने गांव तेडा खुर्द जा कर पूछताछ की तो उन्हें घर के मुखिया हरवंत सिंह के बारे में कई चौंका देने वाली बातें पता चलीं.

पुलिस इस मामले में अभी और जानकारी हासिल कर ही रही थी कि 19 जून को हरवंत सिंह के साले मेजर सिंह ने झंजेर थाने पहुंच कर अपने जीजा हरवंत सिंह के खिलाफ रिपोर्ट दर्ज करवाते हुए बताया कि उस की बहन और भांजेभांजी का अपहरण हरवंत सिंह ने ही किया है. मेजर सिंह ने उन के अपहरण की कई वजह भी पुलिस को बताईं.

थाना इंचार्ज को मेजर सिंह के बयान में सच्चाई नजर आई. पुलिस ने उसी समय मेजर सिंह की तहरीर के आधार पर हरवंत सिंह, उस के भांजे कुलदीप सिंह तथा 2 और अज्ञात व्यक्तियों को नामजद करते हुए हरवंत सिंह की पत्नी दविंदरपाल कौर, बेटी शरणजीत कौर, बेटे ओंकार सिंह और लवरूप सिंह उर्फ लवी के अपहरण का मुकदमा दर्ज कर काररवाई शुरू कर दी.

पुलिस पूछताछ करने जब गांव पहुंची तो हरवंत घर से लापता मिला. थाना इंचार्ज जुगराज सिंह ने इस घटना की सूचना एसपी (देहात) विक्रमजीत सिंह, एसपी (तफ्तीश) हरपाल सिंह और डीएसपी (अजनाला) हरप्रीत सिंह को भी दे दी थी.

बड़े अधिकारियों के निर्देश पर 2 पुलिस टीमें बनाई गईं. एक टीम हरवंत की तलाश में जुट गई और दूसरी टीम ने परिवार के बाकी सदस्यों को ढूंढना शुरू कर दिया.

एक गुप्त सूचना के आधार पर पुलिस ने 20 तारीख को हरवंत सिंह और उस के 2 साथियों सोनू सिंह और रछपाल सिंह को गिरफ्तार कर लिया. तीनों आरोपियों को उसी दिन अदालत में पेश कर 26 तारीख तक पुलिस रिमांड पर ले लिया गया.

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रिमांड के दौरान हरवंत ने अपना अपराध कबूल करते हुए बताया कि उसी ने अपने भांजे कुलदीप और 2 साथियों सोनू व रछपाल के साथ मिल कर अपने परिवार के चारों सदस्यों की हत्या कर उन की लाशें नहर में बहा दी थीं.

हरवंत का चौंका देने वाला बयान सुन कर पुलिस अधिकारी सकते में आ गए. वे इस बात पर यकीन करने को तैयार ही नहीं थे कि गबरू जवान 2 बेटों, पत्नी और बेटी की हत्या करने के बाद कोई उन्हें वहां से ले जा कर नहर में फेंक सकता है.

बहरहाल पुलिस ने हरवंत की निशानदेही पर जगदेव कलां की लाहौर नहर से दविंदरपाल कौर की लाश बरामद कर ली, जिस की शिनाख्त उस के भाई मेजर सिंह ने कर दी.

दविंदर की लाश एक बोरी में बंद थी और बोरी में ईंटें भरी हुई थीं. उस की लाश बरामद होने के बाद पुलिस को पूरा विश्वास हो गया था कि हरवंत ने अपने बयान में जो कहा है, वह सच ही होगा. उस ने वास्तव में अपने पूरे परिवार की हत्या कर दी है.

एसडीएम हरफूल सिंह गिल की देखरेख में पुलिस ने बीएसएफ के गोताखोरों की सहायता से बाकी लाशों के लिए पूरी नहर को खंगालना शुरू कर दिया. 2 दिनों की तलाश के बाद 24 जून को अलगअलग जगहों से शरणजीत कौर, ओंकार सिंह और लवरूप सिंह उर्फ लवी की लाशें भी बरामद हो गईं. पुलिस ने चारों लाशों को पोस्टमार्टम के लिए सिविल अस्पताल भेज दिया.

दरअसल, पुलिस को शुरू से ही हरवंत सिंह पर संदेह था. पुलिस ने जब मामले की गहनता से जांच की तो पाया कि हरवंत के घर में बनी पशुओं के चारा खाने वाली खुरली (हौदी) की काफी ईंटें उखाड़ी हुई थीं. यह देख पुलिस को शक हुआ कि यहां कुछ न कुछ तो जरूर हुआ था, पर पुलिस के पास कोई पुख्ता सबूत नहीं था और ईंटों का गायब होना महज एक इत्तफाक भी हो सकता था.

पुलिस रिमांड के दौरान हरवंत द्वारा अपनी पत्नी, बेटी और 2 बेटों की हत्या करने की जो कहानी प्रकाश में आई, वह अय्याशी में डूबे एक ऐसे बाप की कहानी थी, जिस ने अपनी अय्याशी में रोड़ा बन रहे पूरे परिवार को ही मौत के घाट उतार दिया था.

इस जघन्य और घिनौने अपराध को अंजाम देने के लिए हरवंत सिंह की प्रेमिका व उस के भांजे कुलदीप ने भी उस का साथ दिया था.

हरवंत सिंह जवानी से ही अय्याश किस्म का था. उस के अपने गांव के अलावा आसपास के गांवों की कई औरतों के साथ नाजायज संबंध थे. शराब और शबाब उस के पसंदीदा शौक थे. जब तक उस के बच्चे छोटे थे, तब तक उसे इस सब से कोई फर्क नहीं पड़ा था. रोकने वाली केवल उस की पत्नी दविंदरपाल थी, जिसे वह डराधमका कर चुप करा दिया करता था.

लेकिन जब उस के तीनों बच्चे बड़े हुए और उन्होंने लोगों से अपने पिता की करतूतें सुनीं तो उन्होंने हरवंत को टोकना शुरू कर दिया. अपने पिता की हरकतों पर लगाम कसने के लिए उन्होंने कोई कसर नहीं छोड़ी थी. पंचायत से ले कर रिश्तेदारों तक को बीच में डाला, पर कोई फायदा नहीं हुआ.

हरवंत सिंह को अपने भांजे कुलदीप सिंह से बड़ा लगाव था. कुलदीप अधिकांशत: अपने मामा हरवंत के पास ही रहता था. जब कुलदीप जवान हुआ तो वह भी अपने मामा के नक्शेकदम पर चलने लगा. हरवंत को इस की बड़ी खुशी हुई कि कोई तो उस का साथ देने वाला है.

अब मामाभांजे दोनों मिल कर अय्याशी करने लगे थे. हरवंत और कुलदीप की इन हरकतों ने उस के परिवार को कहीं मुंह दिखाने लायक नहीं छोड़ा था. जगहजगह उन की बदनामी होती थी. इसी कारण बच्चों के कहीं से रिश्ते भी नहीं आ रहे थे. जिस घर में अय्याश बाप हो, वहां कौन अपनी बेटी ब्याहना चाहेगा.

पिता की हरकतों से तंग आ कर पूरे परिवार ने उस का जम कर विरोध करना शुरू कर दिया. रोजरोज की किचकिच से गुस्साए हरवंत ने अपने भांजे कुलदीप के साथ मिल कर पूरे परिवार को ही मिटाने की योजना बना डाली. उस ने अपने 2 दोस्तों सोनू और रछपाल को भी अपनी योजना में शामिल कर लिया.

हत्याकांड को अंजाम देने के लिए उन्होंने सफेदा (यूकेलिप्टस) के पेड़ की टहनियां तोड़ीं और उन के आगे वाले हिस्से को नुकीला कर के उसे हथियार के रूप में प्रयोग किया. हरवंत सहित सभी हत्यारों के पास लकड़ी का बनाया एकएक हथियार था. इस के अलावा उन्होंने अपने साथ .32 बोर और .315 बोर की पिस्तौलें भी ले ली थीं. अपनी योजना के अनुसार 16 जून, 2019 को हरवंत ने रात के खाने की दाल में नशे की गोलियां मिला दी थीं.

16 जून की रात खाना खाने के बाद जब पूरा परिवार बेहोशी की हालत में सोया हुआ था, तब हरवंत ने कुलदीप, सोनू और रछपाल को अपने घर बुला लिया. परिवार के सभी लोग सोए हुए थे. सभी सदस्यों के सिरहाने एकएक आरोपी मोर्चा संभाल कर खड़ा हो गया.

फिर चारों ने एक साथ सब पर हमला बोल दिया. सब से पहले हरवंत ने एक ही कमरे में सोए दोनों बेटों लवरूप सिंह और ओंकार सिंह के सिर पर लकड़ी के नुकीले हथियार से हमला किया. इसी दौरान कुलदीप सिंह और अन्य ने उस की पत्नी दविंदर कौर व बेटी सिमरनजीत पर प्रहार किया.

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जब चारों की मौत हो गई तो हरवंत ने कुलदीप और अपने 2 साथियों की मदद से सब से पहले खून के दागों को धोया. फिर पशुओं के चारे की खुरली से ईंटें उखाड़ कर उन की लाशों से ईंटें बांध दीं. फिर लाशों को बोरी में डाल कर जिप्सी में लादा और ले जा कर नहर में फेंक आए. लाशों के साथ ईंटें इसलिए बांधी गईं कि वे कभी ऊपर न आ सकें.

हरवंत सिंह, कुलदीप सिंह, सोनू सिंह और रछपाल सिंह की निशानदेही पर पुलिस ने हत्या में इस्तेमाल किए गए लकड़ी के 4 नुकीले डंडे, 2 पिस्तौल और 8 कारतूस बरामद किए गए.

हत्या के लिए बनाए गए लकड़ी के हथियार काफी वजनी थे. वहीं हरवंत की कथित प्रेमिका और एक अन्य साथी इस हत्याकांड में सीधे रूप जुड़े थे या नहीं, इस की जांच चल रही थी.

पुलिस ने हरवंत व उस के साथियों को घटनास्थल पर ले जा कर क्राइम सीन क्रिएट कर के भी जांच की थी. रिमांड अवधि समाप्त होने के बाद इस हत्याकांड से जुड़े आरोपियों को अदालत में पेश कर जिला जेल भेज दिया गया.

जब घर में ही औफिस बनाना हो

आजकल कुछ कंपनियां वर्क फ्रौम होम यानी घर से काम करने की सुविधा प्रदान करती हैं. इस के अतिरिक्त कुछ लोग अपनी निजी कंपनियां भी घर से चलाते हैं या घर से पार्टटाइम काम करते हैं या कोई विद्यार्थी जो पढ़ाई के साथ कुछ कमाना चाहता हो. ऐसे में अपने घर में ही एक जगह औफिस बनाना होता है जहां शांति से बैठ कर सुविधा के साथ काम कर सकें. खासकर महिलाओं के लिए वर्क फ्रौम होम एक सुनहरा मौका देता है. न दफ्तर के लिए ट्रैफिक का सामना करना है और न ही कौन सी ड्रैस आज पहननी है कि टैंशन. मेकअप की भी कोई चिंता नहीं होती. आइए, घर में ही अपना औफिस बनाने के कुछ विकल्प पर गौर करते हैं.

औफिस किसे और किसलिए : सब से पहले यह सुनिश्चित करना है कि औफिस किसे और किसलिए चाहिए. अगर किसी विद्यार्थी के लिए हो तो उसे कुछ ज्यादा जगह और बड़ी डैस्क चाहिए ताकि वह अपनी किताबें आदि रख सकें. यदि आर्किटैक्ट या ड्राइंग से संबंधित काम करना हो तो ड्राइंगबोर्ड रखने के लिए और वहां बैठ कर या खड़े हो कर काम करने की जगह होनी चाहिए. इस के अतिरिक्त फोन और कंप्यूटर के लिए डैस्क और कुरसी की जगह होनी चाहिए. अगर वीडियो कौन्फ्रैंसिंग करनी हो तो आप के औफिस का कुछ प्रोफैशनल लुक भी होना चाहिए. आजकल वर्क फ्रौम होम का मतलब कंप्यूटर होना जरूरी है, तो आप को डैस्कटौप कंप्यूटर चाहिए या लैपटौप या क्रोमबुक. आप का औफिस कहां और कितना बड़ा हो, इन सब बातों पर निर्भर करता है.

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अगर आप को बिलकुल शांत वातावरण चाहिए तो आप को एक अलग कमरा चाहिए जिस में दरवाजा हो.

क्लोजेट में औफिस : अगर आप को बड़े औफिस की जरूरत नहीं हो तो किसी स्पेयर स्पेस में – गैस्टरूम की क्लोजेट या किसी बड़े क्लोजेट के एक हिस्से में औफिस बना सकते हैं. क्लोजेट के गैरजरूरी शेल्व्ज या रैक्स, उन के रौड्स, हैंगर्स और दरवाजे निकाल कर सफेद या हलके रंग से रंग दें. डार्क कलर से जगह छोटी दिखती है और रोशनी भी कम लगती है.

गैराज में औफिस : अपने गैराज के एक हिस्से में कुछ मामूली बदलाव ला कर उसे रीमौडल कर अपना प्राइवेट औफिस बनाया जा सकता है, जहां आप को शांति भी मिलेगी.

एंट्री वे पर औफिस : एक स्लिम या अर्द्धचंद्राकार आकार का साइडटेबल और एक छोटी वर्किंग चेयर एंट्री वे में रख कर छोटा और साफसुथरा औफिस बनाया जा सकता है. चेयर बैकलैस हो तो उसे डैस्क के अंदर रख सकते हैं. साइड में वर्किंग डैस्क के नीचे छोटामोटा सामान भी रख सकते हैं.

फैमिली या लिविंगरूम औफिस : लिविंगरूम के किसी कोने में एक एल शेप की डैस्क और उस के कुछ ऊपर तक दीवारों में कैबिनेट बना कर आप अपना औफिस बना सकते हैं. यहां डैस्क के नीचे में ताले वाले ड्रौअर बनवा सकते हैं. जब आप को थकान महसूस हो, यहां आप के आराम के लिए सोफे या काउच भी होंगे. अगर लिविंगरूम बड़ा हो तो एक फोल्डेबल डिवाइडिंग डोर या स्क्रीन भी लगा सकते हैं.

किसी भी कोने में आरामदायक औफिस : कुछ घरों के अंदर कोने में नुक्कड़नुमा पौपआउट होते हैं. किचन के ब्रेकफास्ट नुक्कड़ में आप छोटा औफिस बना सकते हैं. यहां से महिलाएं किचन के कुछ काम भी देख सकती हैं. दीवार के कोने में फोल्डेबल बिल्ट इन डैस्क लगा कर औफिस बनाया जा सकता है.

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पोर्टेबल औफिस : अगर आप के क्लोजेट, गैराज या लिविंगरूम में कोई स्पेयर जगह नहीं है तो चिंता न करें. आप एक छोटा पोर्टेबल औफिस बना सकते हैं. अपने किसी स्पेयर कौकटेल टेबल या अन्य किसी छोटे टेबल, जिन में रौलर्स लगे हों, पर अपना वर्किंग स्पेस बना सकते हैं. इस में ग्लासहोल्डर ग्रूव बनें हों तो और भी अच्छा है. इस पर पेन स्टैंड, एक कौपी, और लैपटौप रख कर कहीं से भी आसानी से काम कर सकते हैं.

ऐसे बनाएं अचारी परवल की सब्जी

आज आपको बताते है, अचारी परवल बनाने की रेसिपी. ये खाने में बहुत टेस्टी है और आप इसे आसानी से बना भी सकते है, वो भी बहुत कम टाइम में.. तो  आइए बताते हैं कैसे बनाएं अचारी परवल की सब्जी.

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सामग्री

400 ग्राम परवल

3 आलू

1 प्याज

1 टमाटर

2 बड़े चम्मच सरसों का तेल

1/2 छोटा चम्मच कलौंजी के बीज

1/2 छोटा चम्मच हल्दी पाउडर

1/2 छोटा चम्मच अमचूर पाउडर

नमक स्वादानुसार

1 छोटा चम्मच मसाले के लिए धनिए के बीज

1/2 छोटा चम्मच जीरा

1/2 छोटा चम्मच सौंफ

1/2 छोटा चम्मचकलौंजी के बीज

1/4 छोटा चम्मच मेथीदाना

3 साबुत लाल मिर्च

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बनाने की वि​धि

सबसे पहले परवल, आलू और टमाटर को पतला और सीधा काट लें और इसके साथ ही प्याज को भी बारीक काट लें.

फिर अचारी मसाला बनाने के लिए मीडियम आंच पर तवा गर्म करें और सभी साबुत मसाले व लाल मिर्च डालकर इसे भून लें. भूनने के बाद इसे ग्राइंडर में डालकर पीस लें.

अब एक कड़ाही में सरसों का तेल गर्म करें और इसमें कलौंजी डालें. फिर इसमें प्याज डालें और गोल्डन होने तक इसे पका लें.

इसके बाद इसमें पहले से काटकर रखे आलू, परवल और टमाटर डालें और इसे 4 से 5 मिनट के लिए पका लें.

अब इसमें नमक, हल्दी, पिसा हुआ मसाला, अमचूर डालें और सबको मिला ले.

थोड़ा पानी डालें, कड़ाही को 5 मिनट के लिए ढककर रख दें.

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