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हनीमून- भाग 2: क्या था मुग्धा का दूसरा हनीमून प्लैन

उसी क्षण उन्होंने पति को सारी बातें बताईं तो उन्होंने बेटी को डांटडपट कर और आत्महत्या की धमकी दे कर बिना किसी विलंब के अपने मित्र के बेटे आशीष के साथ उस का रिश्ता पक्का कर दिया था. उन्होंने एक हफ्ते के अंदर ही शादी पक्की कर दी. उन्होंने एक बार पति से कहा भी था, ‘जल्दबाजी मत कीजिए. बेटी को संभलने का एक मौका तो दीजिए. लड़के का रंग बहुत काला है. अपनी मुग्धा उस के साथ खुश नहीं रह पाएगी.’

व नाराज हो उठे थे, ‘सब तुम्हारे लाड़प्यार का नतीजा है. यदि उसे एक मौका दिया तो निश्चय ही तुम्हारी लाड़ली धर्मपरिवर्तन कर के, उस की जीवन सहचरी बन कर कुरान की आयतें पढ़नी शुरू कर देगी.’ वे सहम कर चुप हो गई थीं. परंतु उन की आंखें डबडबा उठी थीं. पिता के क्रोध और धमकी के कारण मुग्धा ने उन के समक्ष समर्पण कर दिया था. स्पष्टरूप से विरोध तो नहीं किया था परंतु उस के नेत्रों से अश्रु निरंतर झरते रहे थे. बेटी के मन की पीड़ा की कसक से मजबूर उन की आंखों में भी आंसू उमड़ते रहे थे.

जयमाला और विवाहमंडप में मुग्धा के चेहरे पर विरक्ति व घृणा के भाव थे. तो आशीष सुंदर अर्धांगिनी को पा कर गर्व से फूला नहीं समा रहा था. उस का चेहरा गर्व से प्रदीप्त हो रहा था तो मुग्धा निर्जीव पुतले के समान चुप थी.आशीष मुंबई आईआईटी का गोल्ड मैडलिस्ट था. मुंबई में उस का अपना फ्लैट था. 30 लाख रुपए का उस का सैलरी पैकेज था. उस ने हनीमून के लिए मौरीशस का पैकेज लिया हुआ था.  मौरीशस की हरीभरी, सुंदर वादियों में भी वह अपनी पत्नी के चेहरे पर मुसकराहट लाने में कामयाब न हो सका था. मुग्धा को खुश करने के लिए उस के हर संभव प्रयास असफल रहे थे. मुग्धा चाह रही थी कि  वह उस की हरकतों से परेशान हो कर उसे अपनी मां के यहां जाने को कह दे ताकि उस के पापा ने उस के साथ जो अन्याय किया है, उस का परिणाम उन्हें भुगतना पड़े और फिर वह अपने प्रियतम एहसान की बांहों में चली जाएगी.

एक दिन वह बोला था, ‘मुग्धा, क्या तुम्हें यहां पर आ कर अच्छा नहीं लगा? तुम्हारा सुंदर, प्यारा सा चेहरा हर समय बुझाबुझा सा रहता है.’ वह तपाक से बोली थी, ‘हां, बिलकुल भी अच्छा नहीं लगा क्योंकि मैं तुम्हें प्यार नहीं करती. तुम से पहले मेरी जिंदगी में कोई दूसरा जगह ले चुका है.’ ‘होता है मुग्धा, प्यार किसी से किया नहीं जाता बल्कि हो जाता है. फिर तुम तो इतनी खूबसूरत परी हो, जिस को तुम ने प्यार किया होगा वह भी बहुत सुंदर रहा होगा. और तुम्हारी सुंदरता पर तो कोई भी अपनी जान कुरबान कर सकता है.’

वह सोचने लगी कि यह इंसान किस मिट्टी का बना हुआ है. इस के चेहरे पर न तो कोई क्रोध है न आक्रोश. ‘आप ने भी तो अपने कालेज के दिनों में किसी न किसी को प्यार किया होगा?’‘मेरा यह आबनूसी काला चेहरा देख कर भला मुझ से कौन इश्क करेगा?’

‘मैं तो बहुत खुश हूं, जो मुझे तुम सी सुंदर पत्नी मिली. मैं तो तुम्हारे लिए अपनी जान भी दे सकता हूं.’

‘मैं किसी दूसरे को पहले से प्यार करती थी, यह जान कर आप को बुरा नहीं लगा?’

‘बुरा लगने की भला क्या बात है? तुम अकेली थीं. आजाद थीं. किस को चाहो, किसे न चाहो, यह तुम्हारा व्यक्तिगत फैसला था. शादी मुझ से की है, इसलिए मेरी पत्नी हो, मैं तो केवल यही जानता हूं. तुम बहुत ही खूबसूरत हो और इसलिए मैं अपने पर इतरा रहा हूं.’

आशीष को परेशान करने के लिए वह जल्दीजल्दी अपनी मां के पास जाने की जिद करती, परंतु वह बिना किसी नानुकुर के उस की फ्लाइट की टिकट बुक करवा देता. उस की उपेक्षा और तिरस्कार का आशीष पर कोई प्रभाव ही नहीं पड़ता. वह तो अपनी पत्नी की सुंदरता पर मुग्धभाव से मुसकराता रहता. हर क्षण उस की प्रसन्नता के लिए प्रयास करता रहता. वह उसे अंटशंट बोलती व प्रताडि़त करने के अवसर खोजती रहती. खाली समय में अपने एहसान के खयालों में खोई रहती. सुधाकर को मुग्धा का जल्दीजल्दी आना अच्छा नहीं लगा था. एक दिन वे पत्नी से बोले थे, ‘अपनी लाड़ली को समझाओ, पति के घर रहने की आदत डाले.

‘वह तो हम लोगों का समय अच्छा है कि हमें इतना अच्छा दामाद मिला है, जो उस की हर इच्छा को पूरी करता है. ‘मैं तो यही चाहता हूं कि वह आशीष के प्यार को समझे.’ ‘आप ने अपनी बेटी के प्यार को समझा था? आप को उस की हर बात से परेशानी होती है. पहले आप ने बिना उस की रजामंदी के शादी करवा दी. अब आप चाहते हैं कि वह तुरंत उसे अपना ले जबकि आप अच्छी तरह जानते हैं कि बचपन से ही काले रंग के लोगों से वह नफरत करती है. आप को याद नहीं है, पहले मैं भी तो जल्दीजल्दी मायके जाने की जिद करती थी. उस को समय दीजिए, वह आशीष के प्यार की कद्र करने लगेगी.’

‘मैं भी तो यही चाहता हूं कि वह पति के प्यार को समझे, उसे इज्जत दे और उसे प्यार भी करे,’ वे नाराज हो उठे थे, ‘ठीक है, तुम उसे शह देती रहो. जब शादी टूट जाए और दोनों के बीच तलाक हो जाए तो मेरे कंधे पर सिर रख कर मत रोना कि अब क्या करूं? समाज में सब के सामने, मेरी इज्जत खराब हो गई. तुम्हीं तो उस दिन कह रही थीं कि गीता भाभी कह रही थीं कि क्या बात है, मुग्धा की पति से बनती नहीं है क्या?’ ‘ऐसा नहीं होगा. लोगों की तो आदत होती है दूसरों के फटे में हाथ डालने की.’

मुग्धा कमरे के बाहर से सब बातें सुन रही थी. वह तमक कर बोली थी, ‘पापा, आप ने मेरी शादी करवा कर समाज में अपनी इज्जत जरूर बचा ली परंतु आप ने कभी यह नहीं सोचा कि काले, बदसूरत और नापसंद आदमी के साथ एक घर में रह कर वह रोज कितनी तकलीफ से गुजरती होगी. ‘आप ने हमेशा अपने बारे में सोचा, समाज क्या कहेगा, यह सोचा. मेरे प्यार, मेरी चाहत और मेरे जख्मों के बारे में कभी नहीं सोच पाए. आप स्वार्थी हैं. यदि मेरे बारबार आने से आप की समाज में बदनामी होती है तो अब मैं नहीं आया करूंगी. आज से मैं आप से रिश्ता तोड़ती हूं.’ वह नाराज हो कर चली गई थी. उस के बाद से मुग्धा न तो कभी उन के पास आई और न ही अपने पापा से कभी फोन पर बात की.

उस का जीवन निरुद्देश्य था. वह टीवी सीरियल्स से सिर फोड़ती या अपने फोन पर उंगलियां चलाती और सब से थकहार कर वह  आशीष को कोसना शुरू कर देती. ‘उफ, मुझे इस आबनूसी अफ्रीकन से मुक्त कर दो,’ वह मन ही मन सोचती रहती, ‘इस का ऐक्सिडैंट क्यों नहीं हो जाता, यह मर क्यों नहीं जाता.’ आशीष सुंदर पत्नी के प्रेम में पागल औफिस से बारबार उसे फोन करता रहता. उस का दिल हर समय डरता रहता कि जब वह औफिस से शाम को घर लौटे तो कहीं वह घर से नदारद हो कर अपने प्रेमी की बांहों में न पहुंच चुकी हो.

इंटर कास्ट मैरिज: फायदे ही फायदे

किसी ब्राह्मण परिवार में पलाबढ़ा अर्जुन जाति के फर्क या भेदभाव को नहीं मानता था. अपनी पढ़ाई पूरी करते करते उसे एक दूसरी जाति की लड़की से प्यार हो गया. उस ने अपने परिवार को बताया, तो घर में कुहराम मच गया. अर्जुन के पिता ने डांटते हुए कहा, ‘‘तुम्हें ब्राह्मण लड़की से ही शादी  करनी है, नहीं तो हम तुम्हारे टुकड़ेटुकड़े कर देंगे.’’ अर्जुन ने अपने मातापिता को बहुत समझाया, पर किसी ने उस की एक न सुनी. उसे समझ आ गया कि परिवार का साथ नहीं मिलेगा और उन्हें एकदूसरे से दूर कर दिया जाएगा.

अर्जुन उस लड़की रीता को ले कर मिरजापुर से दिल्ली आ गया, जहां वह कुछ दिन अपने दोस्त के घर रहा और वहीं उन्होंने आर्यसमाज रीति से शादी कर ली. उस के दोस्त ने उसे नौकरी भी दिलवा दी. अर्जुन का कहना है, ‘‘सब को छोड़ कर हमें यहां आना पड़ा. मैं अब किसी को अपना पता भी नहीं दे सकता. अगर पता दे दिया, तो आज भी समस्या खड़ी हो सकती है. ‘‘मैं ने सरकारी और गैरसरकारी संस्थाओं से मदद चाही, पर किसी से कोई मदद नहीं मिली. ऐसा कोई कानून नहीं है, जो मेरे जैसे लोगों की मदद करे. हमारा कानून दूसरी जाति में शादी करने की इजाजत देता है, पर उन लोगों की हिफाजत नहीं कर पाता, जो अपनी जाति से बाहर शादी कर लेते हैं.

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‘‘जाति और धर्म के नाम पर प्यार को कब तक दबाया जाता रहेगा  आजादी के इतने साल बाद भी यही सुनने को मिलता है कि ब्राह्मण लड़के को ब्राह्मण लड़की से ही शादी करनी है, नीची जाति की लड़की से नहीं. ‘‘जीवनसाथी चुनने का हक सब को मिलना चाहिए. धर्म और जातिवाद की इस सामाजिक बुराई ने कई जिंदगी बरबाद की हैं.’’ दूसरी जाति में शादी करने का तो भारतीय समाज की एकता बढ़ाने में बड़ा योगदान हो सकता है. ऐसी शादियों से नुकसान तो कुछ है ही नहीं, फायदे ही फायदे हैं, जैसे:

* दूसरी जाति में शादी के चलन को अपना कर समाज में छोटी मानी जाने वाली जातियों को भी ऊपर उठने का मौका दिया जा सकता है.

* ऐसी कामयाब शादियां आने वाली पीढ़ी को भी धार्मिक पाखंडों और आडंबरों से छुटकारा दिलाने में मददगार होती हैं.

* दूसरी जाति में शादी करने वाले ही अपने समाज के साथसाथ दूसरे समाज के प्रति भी सब्र के साथ अपने विचार रखते हैं.

* सामाजिक विरोध का सामना करने के लिए ऐसे पतिपत्नी को बहुत मजबूत होना पड़ता है. एकदूसरे का साथ देते हुए जिंदगी में आगे बढ़ते हुए यह रिश्ता मजबूत होता चला जाता है. भारत को धर्मनिरपेक्ष बनाने के लिए समाज में ऐसी शादियां खुशी से स्वीकार कर लेनी चाहिए.

* लड़कालड़की दोनों ने अपनी मरजी से शादी की होती है, इसलिए वे रिश्ता निभाने में कोई भी कसर नहीं छोड़ते. दोनों ही यह सोचते हैं कि उन्हें ही एकदूसरे का साथ देना है. परिवार वालों से कोई उम्मीद नहीं होती और किसी को अपने फैसले का मजाक उड़ाने का मौका नहीं देना होता है. पतिपत्नी ज्यादा ईमानदारी से यह रिश्ता निभाने की कोशिश करते हैं.

* इन के बच्चे भी हर धर्म का आदर करना सीख जाते हैं. दोनों धर्मों के बुरे रीतिरिवाज छोड़ कर पतिपत्नी अपनी सुखी शादीशुदा जिंदगी के लिए नई दुनिया बसा कर केवल सुखदायी बातों पर ही ध्यान देते हैं.

* समाज में फैले अंधविश्वास, पाखंड, आडंबर जैसी कुरीतियों को मिटाने के लिए ऐसी शादियां बड़ी फायदेमंद साबित होती हैं.

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* सामाजिक भेदभाव, एकदूसरे के धर्म को नीचा दिखाना, यह सब रोकने के लिए समाज को दूसरी जाति में शादी स्वीकार करने में कोई हिचकिचाहट नहीं होनी चाहिए.

* दोनों धर्मों के त्योहारों का मजा ले कर जिंदगी में एक जोश सा बना रहता है, मिलजुल कर एकदूसरे के रंग में रंग कर जीने का मजा ही कुछ और होता है.

* आजकल के बच्चे तो गर्व से अपने दोस्तों को बताते हैं कि उन के मम्मीपापा ने दूसरी जाति में शादी की है. ऐसे नौजवान अपने मातापिता को आदर से देखते हैं. उन के मातापिता ने यह रिश्ता जोड़ने के लिए कितने सुखदुख झेले हैं, यह बात उन्हें भावनात्मक रूप से मजबूत बनाती है.

* जहां औनर किलिंग जैसी शर्मनाक बातें समाज को गिरावट की ओर ले जाती हैं, वहीं ऐसी शादियों के समर्थन में उठे कदम उम्मीद की किरण बन कर राह भी दिखाते हैं.

* बड़े शहरों में तो अब उतना विरोध नहीं दिखता, पर छोटे शहरों, कसबों में आज भी होहल्ला मचाया जाता है. धर्म की जंजीरों में जकड़े लोग दूसरे समुदाय को अच्छी नजर से देख ही नहीं पाते. हर धर्म अपने को ही अच्छा कहता है. ‘वसुधैव कुटुंबकम’ की भावना कहीं देखने को नहीं मिलती, फिर जब यह कहा जाता है कि छोटा शहर, छोटी सोच, तो ऐसे लोगों को बुरा भी बहुत लगता है, पर अपने को बदलने के लिए भी ये लोग कतई तैयार नहीं हैं.

* दूसरी जाति में शादी करने वालों के बच्चों में भी दूसरों के मुकाबले ज्यादा मजबूत जींस होते हैं. ये बच्चे एक ही जाति के पतिपत्नी के बच्चों से ज्यादा होशियार होते हैं.

* ऐसी शादियों का एक बड़ा फायदा यह भी है कि दहेज प्रथा का यहां कोई वजूद नहीं रहता.

* जहां एक ओर अपनी जातबिरादरी में शादी तय करते समय लड़की की बोली लगाई जाती है, वहीं दूसरी तरफ ऐसी शादी सिर्फ प्यार, विश्वास और समर्पण पर टिकी होती है. दहेज, रुपएपैसे से इन्हें कोई मतलब नहीं होता. मिलजुल कर घर बसाते हैं. न कोई लालच, न किसी से कोई उम्मीद.

तो जब समाज की बेहतरी के लिए दूसरी जाति में शादी करने के इतने फायदे हैं, तो लोगों को एतराज क्यों है ?  वैसे भी ‘जब मियांबीवी राजी तो क्या करेगा काजी’ की तर्ज पर प्यार करने वालों का साथ दे कर उन्हें सुखी शादीशुदा होने की शुभकामनाएं ही क्यों न दें. समाज से धार्मिक आडंबर, जातिवाद, पाखंड, अंधविश्वास, दहेज मिट जाएगा, तो भला तो सब का ही होगा न.

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स्मज फ्री मेकअप: टिकेगी आपकी खूबसूरती

गरमी से राहत पाने के लिए हम सभी मौनसून का बेसब्री से इंतजार करते हैं लेकिन मौनसून का चिपचिपा मौसम चेहरे और मेकअप दोनों को ही बिगाड़ देता है. इसलिए मौनसून में अधिकतर लड़कियां यह सोच कर कन्फ्यूज्ड रहती हैं कि कैसा मेकअप करें जो लंबे समय तक चेहरे पर टिका रहे.

मौनसून में हमेशा वाटरप्रूफ मेकअप ही करना चाहिए. इस से मेकअप फैलता नहीं है और लंबे समय तक टिका रहता है.

ऐसे करें परफैक्ट आई मेकअप

जिन लड़कियों को मेकअप से प्यार है उन के लिए बरसात का मौसम किसी फैले हुए रायते से कम नहीं है. घर से निकलते ही उमस के कारण उन का चेहरा भी रायते जैसा हो जाता है. ऐसे में जरूरी हैं कुछ ऐक्सपर्ट ब्यूटी टिप्स जिन्हें फौलो करने के बाद आप भी मौनसून में खिला हुआ चेहरा पा सकती हैं.

आंखों और आईब्रो को स्मज फ्री रखने के लिए हमेशा जैल या पाउडर प्रोडक्ट का इस्तेमाल करना चाहिए.

आईब्रोज को शेप देने के लिए जैलबेस प्रोडक्ट का इस्तेमाल करें. यदि जैलबेस प्रोडक्ट नहीं है तो आप वाटरप्रूफ मसकारा से भी आईब्रो को डिफाइन कर सकती हैं. आईलैसेज पर वाटरप्रूफ मसकारा लगाएं.

अगर आप आईशैडो का इस्तेमाल करना चाहती हैं तो मौनसून में हलके या न्यूड शेड ही चुनें. इस से अगर वो स्मज भी होगा तो पता नहीं चलेगा.

आप आंखों को अट्रैक्टिव लुक देने के लिए अलगअलग रंगों के जैलबेस लाइनर का इस्तेमाल कर सकती हैं.

मौनसून में काजल को भूल जाएं. काजल कितने भी अच्छे ब्रैंड का क्यों न हो, थोड़े समय के बाद फैलने लगता है जिस से आंखों के आसपास कालापन आ जाता है और आप का पूरा लुक बिगड़ सकता है.

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मौनसून में नो ग्लौसी लिप्स

मौनसून में ग्लौसी लिपस्टिक या लिप ग्लौस लगाने का कोई फायदा नहीं होता. गरमी से पसीना, उमस और चिपचिपाहट के कारण वह जल्दी लिप्स से हट जाता है. इसलिए लिप्स पर हमेशा मैट लिपस्टिक का ही इस्तेमाल करें.

लिप्स को परफैक्ट शेप देने के लिपलाइनर का इस्तेमाल करें. लिप्स को हाईलाइट करने के लिए अपर लिप्स पर आप हाईलाइटर लगा सकती हैं.

(यह लेख ब्यूटी एक्सपर्ट कनिका कुशवाहा से बातचीत पर आधारित है.)

मेकअप को हाथ से ब्लैंड न करें. इस से आप के चेहरे पर परफैक्ट लुक नहीं आएगा. मेकअप को ब्लैंड करने के लिए ब्लैंडर का ही इस्तेमाल करें.

मौनसून में क्रीमी प्रोडक्ट से दूर रहें.

मेकअप करते वक्त चेहरे और गले दोनों हिस्सों को कवर करें.

मौनसून में ब्यूटी प्रोडक्ट खरीदने से पहले उस के बारे में पढ़ लें कि वह वाटरप्रूफ है या नहीं, कितने घंटे टिकेगा आदि. मेकअप करने से पहले टोनर और बर्फ का इस्तेमाल जरूर करें.

मौनसून में काजल का इस्तेमाल न करें.

ऐसे करें वाटरप्रूफ मेकअप

स्टेप 1

मेकअप शुरू करने से पहले चेहरे पर बर्फ का इस्तेमाल करें. इस से मेकअप चेहरे पर जल्दी सैट हो जाता है और आप के चेहरे पर पसीना भी नहीं आता.

स्टेप 2

चेहरे पर वाटर बेस मौइस्चराइजर लगाएं.

स्टेप 3

मौइस्चराइजर के बाद चेहरे पर प्राइमर का इस्तेमाल करें. प्राइमर से भी मेकअप लौंगलास्टिंग रहता है.

स्टेप 4

यदि आप चाहती हैं कि आप का मेकअप स्मज न हो तो नौर्मल फाउंडेशन का इस्तेमाल न करें. फाउंडेशन की जगह आप मैट मूस फाउंडेशन का इस्तेमाल कर सकती हैं. मैट मूस फाउंडेशन चेहरे का अतिरिक्त औयल सोख लेता है और क्लीन लुक देता है. यह बहुत वेटलैस फाउंडेशन होता है. अगर आपके पास मूस फाउंडेशन नहीं है तो आप फेस पाउडर का भी इस्तेमाल कर सकती हैं.

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स्टेप 5

अगर आप के चेहरे पर डार्क सर्कल्स, पिंपल्स जैसी प्रौब्लम्स हैं तो आप कंसीलर लगाना न भूलें. कंसीलर चेहरे के दागधब्बे छिपा देता है.

स्टेप 6

अगर आप का कंटूरिंग करने का मन है तो मौनसून में लिक्विड कंटूर का बिलकुल इस्तेमाल न करें. चेहरे को परफैक्ट शेप देने के लिए पाउडर कंटूर का ही इस्तेमाल करें.

स्टेप 7

गालों पर नैचुरल शेड वाले ब्लशर का इस्तेमाल करें जिस में ज्यादा स्पार्कल न हो.

स्टेप 8

आप चाहें तो अपने चीकबोन को हाईलाइट करने के लिए हाईलाइटर का भी इस्तेमाल कर सकती हैं. पर, हाईलाइटर का इस्तेमाल ज्यादा न करें, तो अच्छा है.

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पलभर का सच : भाग 1

उस दिन रात में लगभग 12 बजे फोन की घंटी बजी तो नींद में हड़बड़ाते हुए ही मैं ने फोन उठाया था और फिर लड़खड़ाते शब्दों में हलो कहा तो दूसरी ओर से मेरे दामाद सचिन की चिरपरिचित आवाज मुझे सुनाई दी :

‘‘मैं सचिन बोल रहा हूं सा मां.’’

मेरी सब से प्रिय सहेली शुभ का बेटा सचिन पहले मुझे ‘आंटी’ कह कर बुलाता था. मगर जब से मेरी बेटी पूजा के साथ उस की शादी हुई है वह मुझे मजाक में ‘सा मां’ यानी सासू मां कह कर बुलाता था. उस रात उस की आवाज सुन कर मैं अनायास ही खुश हो गई थी और बोल पड़ी थी :

‘‘हां, बोलो बेटे…क्या बात है? इतनी रात गए कैसे फोन किया…सब ठीक तो है?’’

‘‘हां हां, सबकुछ ठीक है सा मां… पर आप को एक सरप्राइज दे रहा हूं. पूजा और मम्मी कल राजधानी एक्सप्रेस से दिल्ली आप के पास पहुंच रही हैं.’’

‘‘अरे वाह, क्या दिलखुश करने वाली खबर सुनाई है…और तुम क्यों नहीं आ रहे उन के साथ?’’

‘‘अरे, सा मां…आप को तो पता ही है कि मैं काम छोड़ कर नहीं आ सकता. और इन दोनों का प्रोग्राम तो अचानक ही बन गया. तभी तो प्लेन से नहीं आ रहीं. मैं तो कल से आप का फोन ट्राई कर रहा था. मगर फोन मिल ही नहीं रहा था…तभी तो आप को इतनी रात को तंग करना पड़ा… ये दोनों कल 10 साढ़े 10 बजे निजामुद्दीन रेलवे स्टेशन पर उतरेंगी… राजू भैया को लेने के लिए भेज देना.’’

‘‘हां हां, राजू जरूर जाएगा और वह नहीं जा सका तो उस के डैडी जाएंगे… तुम चिंता मत करना.’’

यह कहते हुए मैं ने फोन रख दिया था और खुशी से तुरंत अपने पति को जगाते हुए उन्हें पूजा के आने की खबर सुना दी.

‘‘गुडि़या आ रही है यह तो बहुत अच्छी बात है पर उस के साथ तुम्हारी वह नकचढ़ी सहेली क्यों आ रही है?’’ हमेशा की तरह उन्होंने शुभा से नाराजगी जताते हुए मजाक में कहा.

‘‘अरे, उस का और एक बेटा भी यहां दिल्ली में ही रहता है. उस से मिलने का जी भी तो करता होगा उस का. पूजा को यहां पहुंचा कर शुभा कल चली जाएगी अपने बेटे के पास.’’

शुभा को शुरू से ही जाने क्यों यह पसंद नहीं करते थे जबकि वह मेरी सब से प्रिय सहेली थी. स्कूल और कालिज से ही हमारी अच्छीखासी दोस्ती थी. कालिज में शुभा को मेरी ही कक्षा के एक लड़के शेखर से प्यार हो गया था. उन दोनों के प्यार में मैं ने किसी नाटक के ‘सूत्रधार’ सी भूमिका निभाई थी. मुझे कभी शेखर की चिट्ठी शुभा को पहुंचानी होती तो कभी शुभा की चिट्ठी शेखर को. शुभा अपने प्यार की बातें मुझे सुनाती रहती थी.

खूबसूरत और तेज दिमाग की शुभा अमीर बाप की इकलौती बेटी होने के बावजूद मेरे जैसी सामान्य मिडल क्लास परिवार की लड़की से दोस्ती कैसे रखती है…यह उन दिनों कालिज के हर किसी के मन में सवाल था शायद. दोस्ती में जहां मन मिल जाते हैं वहां कोई कुछ कर सकता है भला?

शुभा का शेखर से प्यार हो जाने के बाद यह दोस्ती और भी पक्की हो गई थी. शेखर के पिता बहुत बड़े उद्योगपति थे. साइंस में इंटर करने के बाद शेखर इंजीनियरिंग की पढ़ाई करने मुंबई चला गया मगर शुभा को वह भूला नहीं था. आखिर कालिज की पढ़ाई पूरी करतेकरते ही शुभा और शेखर का प्रेम विवाह हम सब सहपाठियों के लिए एक यादगार बन कर रह गया था.

शुभा की शादी के साल भर बाद ही मेरी भी शादी हो गई और मैं यह जान कर बेहद खुश थी कि शादी के बाद मैं भी शुभा की ही तरह मुंबई में रहने जा रही थी.

मुंबई में हम जब तक रहे थे दोनों अकसर मिलते रहते थे मगर शुभा और शेखर के रईसी ठाटबाट से मेरे पति शायद कभी अडजस्ट नहीं हो सके थे. इसी से जब भी शुभा से मिलने की बात होती तो ये अकसर टाल देते.

मेरे पहले बेटे राजू के जन्म के बाद मेरे पति ने पहली नौकरी छोड़ कर दूसरी ज्वाइन की तो हम दिल्ली आ गए. यहां आने के 3 साल बाद पूजा का जन्म हुआ और फिर घरगृहस्थी के चक्कर में मैं पूरी तरह फंस गई.

शुभा से मेरी निकटता फिर धीरेधीरे कम होती गई थी. इस बीच शुभा भी 2 बच्चों की मां बन गई थी और दोनों बार लड़के हुए थे. यह सब खबरें तो मुझे मिलती रही थीं, मगर अब हमारी दोस्ती दीवाली, न्यू ईयर या बच्चों के जन्मदिनों पर बधाई भेजने तक ही सिमट कर रह गई थी.

पूजा को मुंबई के एक कालिज में एम.बी.ए. में एडमिशन मिल गया और वहीं उस की मुलाकात सचिन से हो गई.

पहले मुलाकात हुई, फिर दोस्ती हुई और फिर ठीक शुभा और शेखर की ही तरह पूजा और सचिन का प्यार भी परवान चढ़ा था.

मुझे धुंधली सी आज भी याद है… जब शादी तय करने की बारी आई थी तो सब से पहले शुभा ने ही शादी का विरोध किया था. कुछ अजीब से अंदाज में उस ने कहा था, ‘शादी के बारे में हम 2 साल बाद सोचेंगे.’

मैं तो उस के मुंह से यह सुन कर हैरान रह गई थी. शुभा के बात करने के तरीके को देख कर गुस्से में ही मैं ने झट से कहा था, ‘तू ने भी तो कभी लव मैरिज की थी… तो आज अपने बच्चों को क्यों मना कर रही है?’

इस पर बड़े ही शांत स्वर में शुभा बोली थी, ‘तभी तो मुझे पता है कि लव और मैरिज ये 2 अलगअलग चीजें होती हैं.’

ये दर्शनशास्त्र की बातें मत झाड़. तू सचसच बता…क्या तुझे पूजा पसंद नहीं? या फिर हमारे परिवारों की आर्थिक असमानताओं के लिए तू मना कर रही है?’

‘नहींनहीं, ऐसी कोई बात नहीं है. दरअसल, मैं शादी का विरोध नहीं कर रही हूं. मैं तो सिर्फ यह कह रही हूं कि शादी 2 साल बाद करेंगे.’

‘लेकिन क्यों, शुभा? सचिन तो अब अच्छाखासा कमा रहा है और पूजा की पढ़ाई खत्म हो चुकी है. फिर अब बेकार में 2 साल रुकने की क्या जरूरत है?’

‘यह मैं तुम्हें आज नहीं बता सकती,’ और पता नहीं कभी बता भी पाऊंगी कि नहीं.’

हम सब तो चुप हो गए थे लेकिन सचिन और पूजा दोनों ठहरे आज के आधुनिक विचारों के बच्चे. वे दोनों कहां समझने वाले थे. उन दोनों ने अचानक एक दिन कोर्ट में जा कर शादी कर ली थी और हम सब को हैरान कर दिया था.

शुभा और शेखर ने हालात को समझते हुए एक भव्य फाइव स्टार होटल में शादी की जोरदार पार्टी दी थी और फिर सबकुछ ठीकठाक हो गया था.

पूजा की शादी को साल भर हो चुका था. इस दौरान वह और सचिन अकसर दिल्ली मेरे यहां आया करते थे मगर शुभा पहली बार मेरे यहां बतौर समधन आ रही थी इसलिए भी मैं मन ही मन बहुत खुश हो रही थी. मुझ में बहुत सी पुरानी यादें उमड़ती जा रही थीं और उन मीठी सुहानी यादों की डोर मुझे कभी बचपन में तो कभी जवानी में ले जा कर ‘मायके’ पहुंचा रही थी.

ठीक 11 बजे राजू पूजा और शुभा को घर ले आया. कार से उतरते हुए मैं ने उन दोनों को देखा तो पूजा सिर्फ एक बैग ले कर आई थी मगर शुभा तो 3-4 बैग के साथ आई थी. बैगों को देख कर मेरे चेहरे पर आए अजीबोगरीब भावों को देख कर कुछ झेंपते हुए शुभा बोली, ‘‘मेरा सामान बहुत ज्यादा है न. दरअसल, मैं अब दिल्ली में अपने बेटे मुन्ना के पास रहने के इरादे से आई हूं. मेरा सामान यहीं बाहर ही रहने दो…अभी थोड़ी देर में मुन्ना आ जाएगा तो मैं उस के साथ चली जाऊंगी.’’

‘‘मेरी प्यारी समधन जी, आप हमारे घर अपनी इच्छा से आई हैं, मगर जाएंगी हमारी इच्छा से, समझीं? अब ज्यादा नखरे मत दिखाओ और चुपचाप अंदर चलो.’’

मैं ने शुभा से मजाक करते हुए कहा था तो मेरे बोलने के अंदाज से वह बहुत खुश हो गई और मेरे गले लग कर पहले की तरह हंसनेबोलने लगी थी.

खाना खा लेने के बाद हम सब कुछ देर तक गपशप करते रहे. पूजा अपने डैडी से अपने काम की बातें करती जा रही थी. पूजा की बातों से प्रभावित हो कर राजू भी अपनी छोटी बहन से सवाल पर सवाल पूछता जा रहा था. कुछ देर तक उन तीनों की बातें सुन लेने के बाद मैं शुभा को ले कर अपने कमरे में चली गई थी.

कमरे में जा कर हम दोनों जब पलंग पर लेट गए तो मैं ने सोचा कि हम दोनों एकसाथ होते ही पहले की तरह अनगिनत बातें शुरू कर देंगे और बातें करने को समय कम पड़ जाएगा लेकिन ऐसा हुआ नहीं था.

क्या उम्र के तकाजे ने या बदलते रिश्ते ने हमारे होंठ सिल दिए थे? मैं सोचने लगी कि शुभा बड़े धीरगंभीर और संयत स्वर में अचानक बोली थी, ‘‘मैं तलाक ले रही हूं, शालो.’’

‘‘क…क्याऽऽऽ?’’ कहते हुए मैं पलंग पर उठ कर बैठ गई थी.

‘‘हां, शालो, यह सच है. तुम्हें कहीं बाहर से खबर मिले और फिर तुम लोग परेशान हो जाओ, इस से अच्छा है कि मैं ही बता दे रही हूं…इसीलिए पहले मैं ने पूजा व सचिन की शादी 2 साल बाद करने की बात कही थी… सोचती थी कि बेटे की शादी के बाद यह सब अच्छा नहीं लगेगा… लेकिन अब मुझ से सहा नहीं जा रहा. अब मैं ने अपना मन पक्का कर लिया है.’’

‘‘लेकिन इतने सालों बाद यह फैसला क्यों, शुभा?’’

‘‘वैसे तो बहुत लंबी कहानी है, मगर जिस किसी को सुनाऊं उसे तो यह बहुत ही छोटी सी बात लगती है. कोई क्या जाने कि कभीकभी छोटी सी बात ही दिल में बवंडर बन कर समूचे जीवन को तहसनहस कर देती है.

‘‘तुम तो जानती ही हो कि शेखर मुझ से बेहद प्यार करता था. प्यार तो वह शायद आज भी बहुत करता है लेकिन शादी के बाद ही मैं ने उस के प्यार में बहुत बड़ा अंतर पाया है. शादी के पहले मुझे यह तो पता था कि हमारे यहां शादी सिर्फ पति से ही नहीं उस के पूरे परिवार से होती है. लेकिन शेखर से शादी करने के बाद मुझे लगा कि मेरी शादी शेखर के परिवार से नहीं उस के  परिवार की अजीबोगरीब अमीरी से हुई है.

घर पर बनाएं पनीर दो प्याजा

पनीर खाने में भी टेस्टी लगता है और सेहत के लिए काफी हेल्दी भी होता है. यह बच्चों के साथ-साथ  बड़ों  को भी पसंद आती है. तो चलिए आपको झट से बताते हैं पनीर दो प्याजा की रेसिपी.

सामग्री

पनीर – 250 ग्राम

प्याज – 03

हरी मिर्च – 01

अदरक – 02 इंच का टुकड़ा

गरम मसाला पाउडर – 01 छोटा चम्मच

धनिया पाउडर – 01 छोटा चम्मच

धनिया पत्ती – 01 बड़ा चम्मच

लाल मिर्च पाउडर – 01 छोटा चम्मच

जीरा – 01 छोटा चम्मच

तेल – 02 बड़े चम्मच

नमक – स्वादानुसार

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बनाने की विधि‍

पनीर दो प्याजा बनाने के लिये सबसे पहले कड़ाही में तेल डाल कर गर्म करें. तेल गर्म हो जाने पर उसमें जीरा डालें. जीरा पक जाने पर कड़ाही में कटी हुई हरी मिर्च डालें और हल्का सा चला लें.

इसके बाद पैन में अदरक और प्याज डालें और सुनहरा होने तक भूनें. इसके बाद गरम मसाला, धनिया पाउडर और लाल मिर्च का पाउडर डालें. इस सारी सामग्री को सुनहरा होने तक भून लें.

प्याज भूनते समय अगर वह जलने लगे, तो उसमें थोड़ा सा पानी मिला लें. जब प्याज अच्छी तरह से पक जाए, तो उसमें कटे हुए पनीर के टुकड़े डाल दें और उसे 2 मिनट तक पकायें.

अब आपका पनीर दो प्याजा तैयार है. बस इसे कटी हुई धनिया से सजाएं और गरमा गरम सर्व करें.

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छोटी सरदारनी: शूटिंग के बाद ऐसे पुशअप्स करते हैं परम और सरबजीत

कलर्स का शो छोटी सरदारनी इन दिनों टीवी औडियंस को काफी पसंद आ रहा है, जिसका अंदाजा शो के कलाकारों की औफस्क्रीन बौंडिंग से लगाया जा सकते हैं. छोटी सरदारनी के मेहर, सरब और परम अक्सर औफ स्क्रीन एक-दूसरे के साथ वक्त बिताते हैं, जिसके साथ वह मस्ती भी करते हैं. आइए आपको दिखाते हैं औनस्क्रीन पिता-बेटे की जोड़ी की औफस्क्रीन मस्ती…

एक साथ नजर आए सरब और परम

सीरियल छोटी सरदारनी के सेट से आई फोटो में परम और सरब एक साथ वक्त बिताने के साथ वर्कआउट करते हुए नजर आ रहे हैं.

 

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परम ने दी पुशअप करने की चुनौती

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सरबजीत गिल के किरदार को निभाने वाले एक्टर अविनाश रेखी परम के साथ एक खास बौंडिंग रखते हैं, जिसका अंदाजा इस फोटो से लगाया जा सकता है, जिसमें परम सरबजीत को पुश-अप्स करने की चुनौती देते हुए नजर आ रहे हैं. वहीं चुनौती को कबूलते हुए परम की खुशी के लिए सरबजीत हारने का नाटक करते हुए नजर आए.

परम के साथ बौंडिंग को लेकर ये कहते हैं सरब

 

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एक्टर अविनाश रेखी ने परम के साथ बौंडिंग का जिक्र करते हुए कहा, “मैं रियल लाइफ में एक बेटे का पिता हूं, इसलिए एक तरह से, मेरे पास बच्चों के साथ कैसा व्यवहार करना चाहिए इसका एक्सपीरियंस है. परम हैप्पी और लकी बच्चा है, जो 24X7 एनर्जी से भरपूर रहता है. ऐसे में जब हम अपने लंबे टाइम तक की शूटिंग से चिढ़ और थक जाते हैं, तो परम हमें एंटरटेन करता रहता है. इसी बीच हम काफी मस्ती भी करते हैं.

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बता दें, शो में इन दिनों मेहर की प्रेग्नेंसी को लेकर कईं नए-नए ट्विस्ट फैंस को काफी पसंद आ रहे हैं. ऐसे ही शो में परम, सरब और मेहर की बौंडिग अब आप एक दिन और देख पाएंगे. तो देखते रहिये  ‘छोटी सरदारनी’, सोमवार से शनिवार, शाम 7:30 बजे, सिर्फ कलर्स पर.

शुभारंभ: राजा-रानी की मुलाकात से होगा एक नई दोस्ती का शुभारंभ

कलर्स चैनल पर आने वाले शो ‘शुभारंभ’ में दो अलग-अलग स्वभाव के राजा-रानी की कहानी में जल्द ही नया मोड़ नजर आने वाला है. शो मे राजा-रानी जितना एक-दूसरे के पास हैं, उतना ही एक दूसरे से दूर हैं. वहीं अब शो में दोनों की ये दूरी खत्म होने वाली है. आइए आपको बताते हैं कि कैसी होगी राजा-रानी की ये खास मुलाकात…

रानी की तलाश में है राजा

अब तक आपने देखा कि राजा, रानी को सोशल मीडिया पर ढूंढकर फ्रेंड रिक्वेस्ट भेजता है. इसी के साथ रानी की तलाश करते हुए राजा का सामना रानी के पिता छगन से हो जाता है.

रानी ने नहीं किया राजा पर भरोसा

रानी की तलाश करते हुए राजा को गरबा प्रतियोगिता के दौरान रानी मिल जाती हैं जहाँ दीपन के असली रूप के बारे में राजा, रानी को बताने की कोशिश करता है, लेकिन रानी उसपर भरोसा नही करती.

रानी का टूटेगा दिल

आज आप देखेंगे कि जब रानी को दीपन के बुरे इरादों का पता चलेगा तो रानी को एहसास होगा कि राजा पर भरोसा ना करके उसने गलती की है और उसे इस बात का बेहद पछतावा भी होगा.

क्या राजा बनेगा रानी का डांस पार्टनर

दीपन के इरादों को जानने के बाद जहाँ एक तरफ रानी का दिल टूटेगा वहीं डांस प्रतियोगिता में पार्टनर नही होने से वह निराश हो जाएगी. लेकिन राजा-रानी का डांस पार्टनर बनने के लिए तैयार हो जाएगा और दोनों प्रतियोगिता जीत जाएंगे. वहीं राजा की भेजी हुई फ्रेंड रिक्वेस्ट को रानी कबूल कर लेगी.

अब देखना ये है कि राजा-रानी की ये दोस्ती दोनों को किस मोड़ पर ले जाती है. जानने के लिए देखते रहिए शुभारंभ’, हर सोमवार से शुक्रवार रात 9 बजे सिर्फ कलर्स पर.

छोटी सरदारनी: क्या परम का डर बन जाएगा मेहर के बच्चे के लिए मुसीबत

कलर्स के शो छोटी सरदारनी मे जहां मेहर, सरब और परम की जिंदगी से जुड़ती जा रही है तो वहीं सरबजीत का परिवार भी मेहर को अपना चुका है, लेकिन शो में अब जल्द ही नए ट्विस्ट देखने को मिलने वाले हैं. आइए आपको बताते हैं परम का कौन सा डर मेहर के बच्चे के लिए मुसीबत बनने वाला है…

पहले प्यार को भूलकर आगे बढ़ेगी मेहर


पिछले एपिसोड में आपने देखा कि मेहर को धीरे-धीरे फैमिली को अपनाने लगी है. इसी के साथ मेहर अपने अतीत मानव को भी भुलाने की पूरी कोशिश कर रही है.

क्या परम का डर बन जाएगा मेहर के बच्चे के लिए मुसीबत

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आज के एपिसोड में आप देखेंगे कि परम दूसरा भाई या बहन नही चाहता, जिसके पीछे कारण है उसका डर. दरअसल, परम के मन में ये डर आ गया है कि अगर उसकी मेहर मम्मा ने बच्चे को जन्म दिया तो वह मर जाएगी और वह उसकी जिंदगी से दूर हो जाएगी.

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अब देखना ये है कि मेहर और सरब किस तरह परम को मना पाते हैं? जानने के लिए देखते रहिए ‘छोटी सरदारनी’, सोमवार से शनिवार, शाम 7:30 बजे, सिर्फ कलर्स पर.

मामांगम फिल्म रिव्यू: ‘‘ऐतिहासिक घटनाक्रम का असफल चित्रण… ’’

रेटिंगःढाई स्टार

निर्माताःवेणु कुन्नाप्पल्ली

निर्देशकः एम पदमकुमार

कलाकारःममूटी,प्राची तेहलानमास्तर अच्युतन,उन्नी मुकुंदन,तरूण अरोड़ा,मोहन शर्मा,मणिकंदन अचारी व अन्य.

अवधिः दो घंटे 36 मिनट      

पंद्रहवी से 18 वीं सदी के बीच केरला के मालाबार क्षेत्र में नदी किनारे आयोजित होने वाले उत्सव ममंकम की कहानी को फिल्मकार एम पद्मकुमार फिल्म ‘‘मामांगम’’में लेकर आए हैं. जो कि समुद्री शासक  के खिलाफ वल्लुवनाड के आत्मघाती अनाम योद्धाओं के साथ छल विश्वासघात की रोचक कथा है. मगर यह फिल्म सदियों पुराने एक्शन दृश्यों और उत्पीड़न का ऐसा कोलाज बनकर रह गयी है कि दर्शकों को लगता है कि वह कोई टीवी सीरियल देख रहा हो. मूलतः मलयालम में बनी इस फिल्म को हिंदी,तमिल,कन्नड़ व तेलगू में डब करके एक साथ प्रदर्शित किया गया है.

कहानीः

फिल्म सत्रहवीं सदी में युद्ध के दृश्य के साथ शुरू होती है,जहां चंद्रोत वाल्या पणिक्कर(ममूटी)और आत्मघाती योद्धाओं का एक समूह समुद्री शासक की सेना से लड़ता है. मगर समुद्री शासक को मारने के करीब आने के बाद युद्ध के मैदान से भाग जाते हैं. जिससे वल्लुवनाड़ योद्धा कबीले की निर्भयता की प्रतिष्ठा प्रभावित होती है. वल्लुवनाड़ कबीले के लोग उनका नाम तक लेना पसंद नहीं करते. इस युद्ध के 24 साल के  बाद वल्लुवनाड़ कबीले के नए प्रमुख चंद्रोथ पणिक्कर (उन्नी मुकुंदन)फिर से सम्रदी राजा के खिलाफ युद्ध करने का फैसला करते हुए मामांगम उत्सव का हिस्सा बनने का निर्णय लेते हैं. वह अपने परिवार के सदस्यों से कहते है कि ममंकम उत्सव का हिस्सा बनने का आदेश उन्हे भगवती देवी ने दिया है. कबीले की महिलाएं यह जानते हुए भी अपने पुरुषों को युद्ध के मैदान में भेजती रही है कि उनके जीवित रहने की संभावना धूमिल है.

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चंद्रोथ पणिक्कर के साथ उनका 12 साल का भांजा चान्थुनी (मास्टर आच्युतन), जो कि अति कम उम्र का योद्धा हैं,वह भी अपेन मामा के साथ मामांगम जाने का फैसला लेता है. चंद्रोथ और चन्थुनी मामांगम के लिए रवाना होते है. पता चलता है कि जमोरियन समुद्री शासक ने अपने सैनिकों की सीमा पर ऐसी घेरे बंदी की है कि वल्लुवनाड़ कबीले का कोई योद्धा उनके देश में प्रवेश न कर पाए.

तभी पता चलता है कि   तिरुवनवय के एक वेश्यालय में समुद्री राा के खास व्यापारी की हत्या से हड़कंप मच गया है. समुद्री राजा के कहने पर इसकी जांच करने सेनापति पहंुचता है. वहीं पर कहानी में कई मोड़ आते हैंं. यह देवदासी यानीकि मुख्य वेश्या उन्नीमाया(प्राची तेहलान)का महल है. यहीं चंद्रोत वाल्या पणिक्कर एक चित्रकार के अवतार में अपने परिवार की नई पीढ़ी के सदस्यों चंद्रोत पणिक्कर और चांथुन्नी से मिलते हैं,जो लड़ाई लड़ने के लिए दृढ़ होते हैं. और चंद्रोत वाल्या पणिक्क्र के ही हाथ व्यापारी की हत्या होती है,मगर उन्नीमाया, उनकी सह वेश्याएं और अन्य लोग पूरी तरह से सेनापति से इस सच को  पाने का असफल प्रयास करती है.

 ‘यहां चंद्रोत शांति के उपदेशक के रूप में नजर आते हैं. उनका मानना है कि 350 साल से बदले की आग वल्लुवनाड़ के योद्धा,समुद्री शासक को मारने आते हैं और राजा की सेना द्वारा मारे जाते हैं. यहां तक कि उनका शव भी वल्लुवनाड़ नहीं पहुंच पाता. परिणामतः अब वल्लुवनाड़ में एक भी पुरूष नही बचा है. वह अपने परिवार के सदस्यों को उस भाग्य के बारे में चेतावनी देते हैं, जो आत्मघाती योद्धा कबीले का इंतजार करता है. मगर चंद्रोथ पणिक्कर और चान्थुनी मामांगम के लिए दृढ़ संकल्प हैं. अब वल्लुवनाड के यह योद्धा युद्ध के मैदान में सफल होते हैं या अपने कबीले की शहादत के भाग्य को बदलते हैं, यह तो फिल्म देखने पर ही पता चलेगा.

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लेखन व निर्देशनः

मूल पटकथा लेखक और निर्देशक संजीव पिल्लई को फिल्म के निर्माता ने असहमति के चलते हटाकर बाद में एम पदमकुमार को निर्देशक बनाया, इसका असर फिल्म में साफ तौर पर नजर आता है. अफसोस लेखक ऐतिहासिक घटना क्रम का सही ढंग से विवेचन नही कर पाए. फिल्म काफी सुस्त,थकाउ व सीरियल बनकर रह गयी है. लगता है जैसे कि फिल्म को एडिट ही नही किया गया. फिल्म में बदले की आग में अपने परिवार के पुरूषों को खो रही महिलाएं है,मगर उन्हे देखकर कहीं कोई इमोशंस नही उभरते.

अभिनयः

चंद्रोत वल्या पणिक्कर के किरदार में ममूटी निराश करते हैं. उम्र के चलते वह एक्शन दृश्यों में जमते नही है. ममूटी का किरदार महज एक कैरीकेचर बनकर रह गया है. इसके अलावा उन्नीमाया के महल में उनका स्त्रीलिंग में परिवर्तन हजम नही होता. बाल योद्धा चांथुन्नी के किरदार में मास्टर अच्युतन हर किसी का दिल मोह लेते हैं. कमाल का अभिनय और काल के एक्शन दृश्य किए हैं. उन्नी मुकुन्दन ने काफी हद तक बेहतरीन परफार्मेंस दी है. उन्नी माया के किरदार में प्राची तेहलान छाप छोड़ जाती हैं. प्राची तेहलान उम्मीद जगाती है कि उनके अंदर अभिनय क्षमता है, जिसे उकेरने के लिए उन्हे बेहतर कथा,किरदार व निर्देशक की दरकार है. अनु सीता और कान्हा के हिस्से करने को कुछ खास नही है. तरूण अरोड़ा,मणिकंदन अचारी ने ठीक ठाक काम किया है.

एक्शन स्टंटः

हवा में उड़ते योद्धाओं के साथ एक्शन दृश्य कहीं से भी वास्तविक नहीं लगते.  वीएफएक्स भी स्तरहीन है.

‘जुमांजी नेक्स्ट लेवल’ : बेहतरीन रोमांचक फिल्म

रेटिंग:  तीन स्टार

निर्देशकः जेक कासड

कलाकारः ड्वेन जौनसन, केविन हार्ट, जैक ब्लैक, करेन गिलन, निक जोनास, एलेक्स वोल्फ, मार्गन टर्नर, सेरियस डैरन, अक्वावाफिना, डैनी ग्लोवर, डैनी डेविटो और मैडिसन इस्मान आदि

अवधिः 2 घंटा 3 मिनट

फिल्म‘‘जुमांजीः द नेक्स्ट लेवल’’ 1995 के जुमांजी का यह तीसरा सिक्वअल है. दूसरा सिक्वअल ‘जुमांजीः वेलकम टू द जंगल’ 2017 में आयी थी. दो साल पहले आई ‘जुमांजीः वेलकम टु द जंगल‘ के दौरान किसी तरह जान बचाकर निकलने वाले स्पेंसर (एलेक्स वाल्फ) और उसके साथी फ्रिज (सरडेरियस ब्लेन), मार्था (मौर्गन टर्नर) और बेथनी (मैडिसन आइसमैन)ने तय किया था कि वह इस खतरनाक वीडियो गेम को कभी हाथ नहीं लगाएंगे. क्योंकि वह खेलने वाले को अपने भीतर खींच लेता है और उसे गेम के किरदारों में तब्दील कर खतरनाक जुमांजी द्वीप पर मुसीबतों से जूझने के लिए छोड़ देता है. लेकिन स्पेंसर की अपनी असुरक्षा की भावना उसे और उसके दोस्तों को एक बार फिर इसी फैंटसी द्वीप पर पहुंचा देती हैं. पर इस बार इनके किरदार बदल जाते हैं. इस बार फिल्म के किरदारों की अदला-बदली फिल्म की सबसे बड़ी रोचकता है.

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कहानीः

पिछली फिल्म में ‘जुमांजी’ से वापस आने के बाद मार्था, बेथनी और फ्रिज जहां भरपूर जिंदगी जी रहे हैं, वहीं स्पेंसर अपनी असुरक्षाओं से पूरी तरह बाहर नहीं आ पाया है. वह खुद को जुमांजी के ताकतवर किरदार डौक्टर स्मोल्डर ब्रेवस्टोन (ड्वेन जौनसन)के रूप में फिर से देखना चाहता है और इसी चक्कर में विडियोगेम के जरिए वह जुमांजी पहुंच जाता है. इधर स्पेंसर के गायब होने से परेशान उसके दोस्त मार्था, फ्रिज और बेथनी भी उसे बचाने वीडियो गेम के जरिए जुमांजी पहुंच जाते हैं. मजेदार बात यह है कि इस बार इनके किरदारों की अदला- बदली हो जाती है. जैसे कि स्पेंसर की बजाय उसके दादा जी एडी इस बार डौक्टर ब्रेवस्टोन बन जाते हैं, तो फ्रिज के बजाय एडी के दोस्त माइलो को मूज (केविन हार्ट) का किरदार मिल जाता है. मार्था इस बार भी रूबी राउंडहाउस (कैरेन गिलन) है, तो फ्रिज इस बार प्रोफेसर शेल्डन शैली (जेक ब्लैक) बन जाते हैं. उसके बाद इन किरदारो को कई रोमांचक व खतरनाक टास्क पूरे करने पड़ते हैं.

निर्देशनः

निर्देशक ने फिल्म में कौमेडी, इमोशन, एक्शन, रोमांच बेहतरीन समन्वय पेश किया है. वह विषय को लेकर अधिक महत्वाकांक्षी नजर आए हैं. उनके निर्देशकीय प्रतिभा की तारीफ करनी पड़ेगी. मगर पिछली फिल्म के मुकाबले इस बार पटकथा के सतर पर कमियां हैं. पटकथा की कमजोरी के चलते खलनायक के उद्भव पर फिल्म खामोश रहती है. पर स्पेंसर के वीडियो गेम से जुड़ने की ठोस वजह बतायी गयी है.

एक बार फिर इतिहास पर बनी कोई फिल्म बनी विरोध का कारण…

अभिनयः

एडी (डैनी डेविटो) और उनके दोस्त मिलो (डैनी ग्लोवर) जैसे दिग्गजों का जुड़ाव मजेदार है. दोनों का रिश्ता काफी प्यारा लगता है. करेन गिलन अपनी दमदार उपस्थिति दर्ज कराने में सफल रही हैं. निक जोनस हैंडसम लगे हैं. आक्वाफीना ने अपने किरदार के साथ न्याय किया है. ड्वेन जौनसन और केविन हार्ट ने शानदार अभिनय किया हैं. ड्वेन जौनसन और केविन हार्ट के बीच की केमिस्ट्री देखने लायक है. जैक ब्लैक मनोरंजक हैं.

फिल्म में औस्ट्रिचेज और भालुओं से भिड़ंत वाले सीन शानदार बन पड़े हैं.

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