Download App

एक लड़की ऐसी भी : भाग 1

किसी लड़के से लड़की को और लड़की को लड़के से प्यार होना स्वाभाविक होता है. काजल ने हरिमोहन से प्यार कर के कोई गुनाह नहीं किया था. लेकिन प्यार की मंजिल तक पहुंचने के लिए उस ने जो किया, वह गुनाह था.

आखिर काजल ने…

उस दिन तारीख थी 10 सितंबर, 2019 और समय था शाम के करीब 5 बजे का. गोरखपुर जिले के चौरीचौरा के ओमनगर में रहने वाले शिक्षक अनिल कुमार पांडेय विद्यालय से थकेमांदे घर लौटे थे. बड़ी बेटी सुमन पिता के लिए चायनाश्ते का इंतजाम करने लगी.

नाश्ता कर के अनिल आराम करने के लिए अपने कमरे में चले गए. तभी उन के वाट्सऐप पर एक मैसेज और कई फोटो आए. मैसेज में लिखा था, ‘मैं ने तुम्हारी बेटी से बदला ले लिया है. उस की हत्या कर के लाश ऐसी जगह फेंक दी है कि तुम सात जन्मों तक भी नहीं ढूंढ पाओगे.’

अनिल पांडेय सोचने लगे कि यह भद्दा मजाक किस ने किया है. लेकिन जब उन्होंने मैसेज के साथ आए फोटो को ध्यान से देखा तो वह सन्न रह गए. उन के हाथ से मोबाइल छूटतेछूटते बचा. जो 3-4 फोटो वाट्सऐप पर आए थे, वे उन की दूसरे नंबर की बेटी काजल के थे.

फोटो देखने से साफ पता चल रहा था कि किसी ने काजल की हत्या कर के लाश जंगल में कहीं फेंक दी है. उस के सिर से खून निकल रहा था. मुंह और दोनों पैर किसी कपड़े से बंधे थे. उस के दोनों हाथ भी पीछे की ओर बंधे हुए थे.

हड़बड़ाए से अनिल मोबाइल ले कर पत्नी के पास पहुंचे. बच्चों को आवाज दे कर अपने पास बुलाया. उस समय उन के चेहरे की रंगत उड़ी हुई थी और सांसों की रफ्तार तेज हो चली थी. पत्नी ने उन की इस हालत के बारे में पूछा तो उन्होंने पत्नी की ओर मोबाइल फोन बढ़ा दिया.

पत्नी और बच्चों ने जब वाट्सऐप पर काजल की लाश की फोटो देखीं तो उन की आंखें फटी रह गईं और मुंह से चीख निकल गई.

घर में रोनापीटना शुरू हो गया. अनिल पांडेय के घर में अचानक रोना सुन कर पासपड़ोस के लोग भी उन के यहां पहुंच गए. जब उन्हें पता चला कि काजल की हत्या हो गई है, तो सभी के चेहरों पर दुख की छाया उतर आई.

पड़ोसियों ने पांडेयजी को सुझाया कि यह पुलिस केस है, इसलिए पुलिस को यह सूचना दे देनी चाहिए ताकि वे काजल की लाश का पता लगा सकें.

उन की सलाह पर अनिल पांडेय पड़ोसियों के साथ चौरीचौरा थाने पहुंच गए. उस समय शाम के करीब 7 बज रहे थे. थानाप्रभारी नीरज राय थाने में मौजूद थे. अनिल पांडेय ने सारी जानकारी थानाप्रभारी को दे दी.

थानाप्रभारी ने वाट्सऐप पर आई तसवीरों को गौर से देखा. इस के बाद उन्होंने अनिल पांडेय से पूछा कि उन्हें किसी पर कोई शक है? तब अनिल पांडेय ने पड़ोस में रहने वाले 3 युवकों के नाम बता दिए, जिन पर उन्हें शक था. उन्होंने बताया कि इन से उन का पिछले कई महीनों से विवाद चल रहा था. विवाद के चलते उन युवकों ने धमकी दी थी कि वे उन के परिवार वालों की हत्या कर देंगे.

थानाप्रभारी नीरज राय ने बिना समय गंवाए अनिल पांडेय की निशानदेही पर तीनों युवकों को उन के घरों से हिरासत में ले लिया और पूछताछ के लिए थाने ले आए. तीनों युवक पांडेयजी के पड़ोसी थे.

पुलिस ने तीनों युवकों से पूरी रात सख्ती से पूछताछ की. पूछताछ के दौरान कोई ऐसी वजह निकल कर सामने नहीं आई जिस से यह साबित होता कि काजल की हत्या उन्हीं तीन युवकों ने की है. तब पुलिस ने उन्हें कड़ी हिदायत दे कर छोड़ दिया.

अगले दिन सुबह अनिल पांडेय यह पता लगाने थाने पहुंचे कि उन तीनों ने किस वजह से बेटी की हत्या की थी, उन्होंने क्या बताया? थानाप्रभारी नीरज राय ने अनिल को बताया कि युवकों से काजल की हत्या की कोई ऐसी बात नहीं पता चल सकी, जिस से उन की संलिप्तता दिखती. फिलहाल उन्हें हिदायत दे कर छोड़ दिया गया है. यह सुन कर अनिल पांडेय मायूस हो गए.

इसी बीच पुलिस को कहीं से एक चौंकाने वाली खबर मिली. सूचना यह थी कि बीते दिन 2 युवकों को काजल का अपहरण करते देखा गया था.

इस जानकारी के बाद अनिल पांडेय ने भोपा बाजार चौराहा स्थित एक मोबाइल दुकानदार अनूप जायसवाल और उस के कर्मचारी विजय पाठक पर अपहरण कर बेटी की हत्या किए जाने की नामजद तहरीर थानाप्रभारी को दे दी. इस के पीछे एक खास वजह थी.

अनिल पांडेय ने बताया कि काजल और विजय पाठक के बीच कई दिनों से किसी बात को ले कर गहरा विवाद चल रहा था. संभव है उसी विवाद के चलते विजय और दुकानदार ने मिल कर बेटी का अपहरण किया हो और उस की हत्या कर लाश जंगल में फेंक दी हो. अनिल पांडेय की इस बात में थानाप्रभारी को दम नजर आ रहा था.

अनिल पांडेय की इस तहरीर पर पुलिस ने विजय पाठक और दुकान मालिक अनूप जायसवाल के खिलाफ अपहरण और हत्या का मुकदमा दर्ज कर लिया. मुकदमा दर्ज होने के बाद पुलिस ने दोनों को भोपा बाजार स्थित मोबाइल की दुकान से हिरासत में ले लिया.

काजल की हत्या की सूचना थानाप्रभारी ने एसएसपी डा. सुनील गुप्ता, सीओ (चौरीचौरा) सुमित शुक्ला को पहले ही दे दी थी और वह उन्हीं अधिकारियों के दिशानिर्देश पर फूंकफूंक कर कदम रख रहे थे.

दुकान मालिक अनूप जायसवाल ने पूछताछ में बताया कि काजल को दुकान पर काम करने के लिए विजय पाठक ले कर आया था. वह मेहनती लड़की थी. इस से ज्यादा वह काजल के बारे में कुछ नहीं बता सका.

विजय ने पुलिस को बताया कि वह पांडेय जी के पड़ोस में रहता है. इस वजह से उन के परिवार को अच्छी तरह जानता है. कुछ दिनों पहले काजल ने उस से कहा था कि वह कोई नौकरी करना चाहती है. इस पर उस ने अपने दुकान मालिक से बात कर के काजल को उसी की दुकान पर नौकरी दिला दी थी.

कुछ दिनों बाद काजल की बड़ी बहन सीमा ने भी काम करने की इच्छा जाहिर की और कहा कि जहां काजल काम करती है, उसी दुकान पर उस की भी नौकरी लगवा दे. जब इस बात की जानकारी काजल को हुई, तो वह मुझ से झगड़ने लगी थी.

उस ने कहा था कि उस की बहन को यहां नौकरी पर न रखवाए, नहीं तो इस का अंजाम बहुत बुरा होगा. इसी बात को ले कर उस के और मेरे बीच मतभेद हो गया था. इस बारे में चाहें तो आप सीमा से पूछ लें. पुलिस ने सीमा से पूछताछ की तो उस ने भी विजय की बातों का समर्थन किया.

इस से एक बात तो तय हो गई थी कि विजय पाठक जो कह रहा था, वह सच था. लेकिन काजल की लाश वाली तसवीर झुठलाई नहीं जा सकती थी.

इस सब से पुलिस इस सोच में फंस कर रह गई कि काजल की हत्या अनूप और विजय ने नहीं की तो फिर किस ने की? आखिर यह माजरा है क्या. हत्या की गुत्थी को कैसे सुलझाया जाए. सोचविचार के बाद पुलिस ने कानूनी काररवाई कर के अनूप जायसवाल और विजय को हिरासत में ले लिया. पुलिस ने दोनों को कोर्ट में पेश किया, जहां से उन्हें जेल भेज दिया गया.

घटना के तीसरे दिन यानी 12 सितंबर, 2019 को सीओ सुमित शुक्ला ने थानाप्रभारी नीरज राय और स्वाट टीम के प्रभारी के साथ अपने कार्यालय में एक मीटिंग की. मीटिंग में तय हुआ कि काजल हत्याकांड की गुत्थी सुलझाने के लिए काजल के मोबाइल फोन की घटना से 15 दिनों पहले तक की काल डिटेल्स निकलवा कर जांच की जाए. घटना के खुलासे के लिए काल डिटेल्स ही आखिरी सहारा थीं.

‘छोटी सरदारनी’ और ‘विद्या’ महासंगम: इनकी जिंदगी में कौन सा नया मोड़ लाएगा चुलबुल पांडे

कलर्स के शो ‘छोटी सरदारनी’ और ‘विद्या’  में आज रात होने वाले महासंगम में फैंस के लिए कई दिलचस्प ट्विस्ट आने वाले हैं. जहां सरब के दोस्त चुलबुल पांडे यानी की सुपरस्टार सलमान खान नजर आएंगे तो वहीं मेहर की जिंदगी से जुड़ा एक खुलासा भी इस महासंगम में होने वाला है. आइए आपको बताते हैं क्या होगा इस महासंगम एपिसोड में खास…

चुलबुल पांडे का होगा शो में स्वागत

sonakshi

छोटी सरदारनी और विद्या के इस महासंगम में सरब के खास दोस्त चुलबुल पांडे की एंट्री एक अनोखे अंदाज में होगी.

विद्या और छोटी सरदारनी का महासंगम

vidya

विद्या की इंग्लिश टीचर बनने की कहानी में जिस तरह विवेक ने विद्या का साथ दिया है, इससे इन दोनों का रिश्ता और मजबूत हो गया है. विद्या और विवेक के बीच कुछ खास है लेकिन विद्या को इसका एहसास नही है. अब जानना ये है कि क्या टिप देंगे इन दोनों को चुलबुल पांडे उर्फ सलमान खान .

ये भी पढ़ें- छोटी सरदारनी: क्या परम का डर बन जाएगा मेहर के बच्चे के लिए मुसीबत

परम होगा एक्साइटेड

param

सरब अपने खास दोस्त चुलबुल पांडे का पार्टी में वेलकम करेगा और कहेगा कि परम और मेहर उनके बहुत बड़े फैन है.

मेहर की जिंदगी से जुड़ा खुलासा करेंगे चुलबुल पांडे

CHOTI-sardarni

इस खास एपिसोड में आप देखेंगे कि चुलबुल पांडे की एंट्री होने के साथ मेहर की जिंदगी से जुड़ा खुलासा करेंगे, जिसके बाद पूरा गिल परिवार हैरान होता हुआ नजर आएगा.

डांस का लगेगा तड़का

salman

छोटी सरदारनी और विद्या के किरदार चुलबुल पांडे यानी सलमान खान के साथ ‘हुड़-हुड़ दबंग’ और ‘मुन्ना बदनाम’ सौंग्स पर डांस करते हुए नजर आएंगे.

 

 

ये भी पढ़ें- छोटी सरदारनी : क्या अतीत को भूलकर नई जिंदगी की शुरुआत कर पाएगी

अब देखना ये है कि मेहर की जिंदगी से जुड़े कौनसे बड़े राज का खुलासा करने वाले हैं चुलबुल पांडे, जिससे मेहर, परम और सरब की जिंदगी में आएगा नया मोड़. इसी के साथ विद्या और विवेक को चुलबुल पांडे कौन सी एडवाइस देंगे. इस धमाकेदार महासंगम का हिस्सा बनने के लिए देखना ना भूलें ‘छोटी सरदारनी और विद्या महासंगम स्पेशल’ आज रात 7:00 से 8:00 बजे, सिर्फ कलर्स पर.

लगातार 3 फिल्मों में छाने वाली इस एक्ट्रेस के लिए ये साल रहा खास

बौलीवुड एक्ट्रेस भूमि पेडनेकर इस साल खूब कामयाबी बटोर रही है. उनके लिए साल 2019 खास रहा इस साल भूमि  एक के बाद एक लगातार 3 हिट फिल्मों की हैट्रिक लगा चुकीं है. भूमि की ये फिल्में हैं, ‘बाला’, ‘सांड की आंख’ और ‘पति पत्नी और वो’. तीनों ही फिल्मो को दर्शकों को जमकर प्यार मिल रहा है हिंदी सिनेमा में दशकों बाद ऐसा हुआ है कि किसी हीरोइन की तीन फिल्में एक ही समय सिनेमाघरों में हिट चल रही हैं.

आपको बता दे भूमि की अब तक कुल सात फिल्में रिलीज हुई हैं और इनमें से छह हिट रही हैं. अपनी हर फिल्म में एक अलग किरदार निभा कर फैंस के दिल में खास जगह बना ली है इन दिनों भूमि के फिल्म पति पत्नी और वो में निभाए गए एक मॉडर्न बीवी के किरदार को लोग काफी पसंद कर रहे है है, इससे पहले फिल्म बाला  में और सांड की आंख में भी भूमि ने किरदार के हिसाब से अपने लुक्स में बदलाव करके दर्शकों को चौंकाया था.

ये भी पढ़ें- ‘ये रिश्ता क्या कहलाता है’ : नायरा और कार्तिक के बीच फिर से आएंगी दूरियां !

हिंदी सिनेमा में करियर की शुरूआत में ही ऐसी कामयाबी पाने वाली वह पहली अभिनेत्री बन चुकी हैं. दरअसल हिंदी सिनेमा में दशकों बाद ऐसा हुआ है कि किसी हीरोइन की तीन फिल्में एक ही समय सिनेमाघरों में सफलता के साथ चल रही हैं. भूमि की ये फिल्में हैं, ‘बाला’, ‘सांड की आंख’ और ‘पति पत्नी और वो’. तीनों ही फिल्मो को दर्शकों को जमकर प्यार मिला था

इन दिनों भूमि के फिल्म ‘पति पत्नी और वो’ में निभाए गए एक मौडर्न वाइफ के किरदार की खूब तारीफ हो रही है, इससे पहले फिल्म ‘बाला’ में उन्होंने एक डार्क स्कीन वाली लड़की का किरदार निभाया था जिसे समाज में रंग के चलते बेइज्जती का सामना करना होता है. और वही फिल्म ‘सांड की आंख’ में शूटर दादी बनीं नज़र आई थीं. भूमि ने अलग किरदार के हिसाब से अपने लुक्स और एक्टिंग में बदलाव करके अपनी कामयाबी के झंडे गाड़ दिए.भूमि पेडनेकर के लिए ये साल खास रहा.

ये भी पढ़ें- छोटी सरदारनी: शूटिंग के बाद ऐसे पुशअप्स करते हैं परम और सरबजीत

ब्रेकफास्ट में बनाएं टेस्टी आलू कटलेट

हर किसी के लिए सुबह का नाश्ता बहुत जरूरी होता है और अगर नाश्ता मनपसंद हो तो पूरा दिन बन जाता है. इसीलिए आज हम आपको आलू और ब्रेड की रेसिपी बताएंगे, जिससे आपकी फैमिली को एक अच्छा और टेस्टी ब्रेकफास्ट दे पाएंगी.

सामग्री

– मैश किए हुए 2 आलू उबले

– 2 ब्रेड स्लाइस

– 1 छोटा बारीक कटा प्याज

– 1 बारीक कटी हरी मिर्च

– 1/4 चम्मच लाल मिर्च पाउडर

– 1/3 -छोटी चम्मच चाट मसाला

– 1/4 चम्मच आमचूर पाउडर

– स्वादानुसार नमक

– तलने के लिए तेल

– आवश्यकतानुसार हरा धनिया बारीक कटा

ये भी पढ़ें- ऐसे बनाएं हेल्दी और टेस्टी पोहा

बनाने का तरीका

-पहले आलू उबालकर छील लें.

-और ब्रेड की स्लाइस के किनारे कट कर लें.

-अब एक बर्तन में आलू लेकर प्याज, अमचूर, नमक, लाल मिर्च पाउडर, हरी मिर्च, चाट मसाला और हरा धनिया बारीक कटा डाल कर अच्छे से मिला लें.

– एक प्लेट में पानी लें और ब्रेड को पानी में डूबा कर जल्दी से निकाल लें. हल्के हाथों से ब्रेड को दबा कर पानी निकाल लें.

-अब ब्रेड में आलू का तैयार मसाला भर दें और किसी भी आकार में बना लें.

-इसके बाद एक कड़ाई में तेल गरम करके सभी कटलेट को तल लें. और फैमिली को हरी चटनी या टोमैटो सौस के साथ परोसें.

ये भी पढ़ें- Janmashtami Special: घर पर बनाएं शकरकंद का हलवा

बंदूक : जान बचाने का नहीं, जान लेने का हथियार

मार्च 2018 में 20 लाख से ज्यादा अमेरिकी लोग ‘नो वौयलैंस’ स्लोगन के साथ सड़कों पर उतरे. वे यह मांग कर रहे थे कि बंदूकों को ले कर अमेरिकी नीति में पूरी तरह से परिवर्तन हो ताकि गोलीबारी से होने वाली हिंसा पर रोक लग सके. दरअसल, अमेरिका में जिस तरह से बहुत आसानी से हर किसी को बंदूक उपलब्ध है, वे इस के खिलाफ थे.

लेकिन, इस का मतलब यह नहीं है कि अमेरिका में सभी लोग बंदूकों के खिलाफ हैं. सच बात तो यह है कि बंदूक को ले कर अमेरिकी नागरिक बंटे हुए हैं और पिछले दशक से इस पर अमेरिका में जबरदस्त बहस हो रही है. कुछ सालों में अमेरिका में बंदूक से 2 दर्जन से ज्यादा गोलीबारी की घटनाएं हुई हैं, जिन में गोलीबारी करने वाले न तो आपराधिक इतिहास वाले थे और न ही प्रोफैशनल बंदूकबाज. ये तो साधारण छात्र थे, बेरोजगार नौजवान थे या परिस्थितियों से परेशान हो कर चिड़चिड़े हो गए सामान्य नागरिक थे. बंदूक की सहज उपलब्धता के कारण हाल की तमाम घटनाओं में ऐसे लोगों ने सैकड़ों लोगों की जानें ले ली हैं.

साल 1999 से साल 2018 तक अमेरिका में गोलीबारी की 38 से ज्यादा घटनाएं हुई हैं, जिन में 500 से ज्यादा लोगों की जानें गई हैं. गोलीबारी में 2,000 से ज्यादा लोग बुरी तरह घायल भी हुए हैं. यही वजह है कि पिछले कुछ सालों से अमेरिका में यह जबरदस्त बहस छिड़ी हुई है कि बंदूक पाने का लाइसैंस जो मौजूदा समय में बेहद आसानी से मिल जाता है, उसे ऐसे ही बनाए रखा जाए या उसे पाना जटिल बना दिया जाए.

हालांकि सिर्फ अमेरिका में ही बंदूक से होने वाली हत्याएं बड़ा सिरदर्द नहीं हैं, बल्कि करीबकरीब दुनिया के हर देश में पिछले एक दशक के दौरान बंदूक एक बड़ी समस्या बन कर उभरी है. यही वजह है कि पूरी दुनिया में बंदूकों को ले कर बहस बहुत तेज हुई है. इस की औपचारिक शुरुआत 2009-10 में तब हुई थी जब संयुक्तराष्ट्र की मादक पदार्थ और अपराध शाखा ने हथियारों का सामाजिक विश्लेषण प्रस्तुत करने का निर्णय लिया और इस के गंभीर निष्कर्ष दुनिया के सामने नमूदार हुए. तभी से बंदूक के हाहाकारी किस्से हर तरफ सुनाई दे रहे हैं. यहां तक कि अब तो यह चिंता पाकिस्तान और अफगानिस्तान जैसे देशों में भी की जाने लगी है. वहां आलूप्याज की तरह हथियारों की न सिर्फ आम दुकानें हैं बल्कि वहां कुटीर उद्योग की तरह हथियार बनाने का काम होता भी है. विशेषकर क्लासीनोफ, राइफलें जो वैसे 75,000 रुपए से ऊपर की होती हैं, अफगानिस्तान में 3,000 से 5,000 रुपए के बीच आसानी से मिल जाती हैं.

ये भी पढ़ें- इन्टर कास्ट मैरिज: फायदे ही फायदे

अमेरिका दुनिया के उन 6 देशों में से एक है जहां हर साल बंदूक से होने वाली कुल वैश्विक मौतों में से 50 फीसदी मौतें होती हैं. अमेरिका के साथ 5 और देश जो बंदूक से होने वाली हत्याओं के जबदरस्त शिकार हैं, उन में हैं ब्राजील, मैक्सिको, कोलंबिया, वेनेजुएला और ग्वाटेमाला. साल 2016 में इन देशों में बंदूक से होने वाली हत्याएं अमेरिका सहित इस प्रकार हैं- 43,200 ब्राजील, 37,200 अमेरिका, 15,400 मैक्सिको, 13,300 कोलंबिया, 12,800 वेनेजुएला और 5,090 ग्वाटेमाला.

हैरानी की बात यह है कि इन 6 देशों की आबादी कुल मिला कर दुनिया की आबादी की महज 10 फीसदी है. लेकिन जहां तक बंदूक से होने वाली हत्याओं का सवाल है, तो दुनिया में हर साल जितने लोग बंदूक से होने वाली हिंसा का शिकार होते हैं, उन में ये 50 फीसदी हैं. संयुक्तराष्ट्र ने जब से हथियारों को ले कर गंभीर अध्ययन और विश्लेषण का सिलसिला शुरू किया है तब से हर गुजरते साल इस के भयावह किस्सों में बेतहाशा वृद्धि हो रही है.

दुनिया का शायद ही कोई ऐसा देश हो जहां बंदूकप्रेम न मौजूद हो. यहां तक कि जिन देशों में बाकी किसी किस्म की प्रगति नहीं हुई, जैसे अंगोला, हैती, इरीट्रिया, सेनेगल, कांगो आदि, वहां भी सब से बड़ा नशा बंदूक का ही है.

हालांकि अफगानिस्तान, पाकिस्तान और मध्यपूर्व के देशों की तरह हम होश संभालते ही बंदूक के खिलौने से वास्तविक दुनिया में खेलने के शौकीन नहीं हैं फिर भी शादीब्याह हो, मुंडनछेदन हो या कोई भी खुशी का समारोह, हम चाहते हैं एकदो बंदूक के फायर तो हो ही जाएं. इस से आसपास वाले लोगों को हमारी हैसियत बड़ी दिखती है. शायद यह देश में मुगलिया शानोशौकत का हैंगओवर है. वैसे हमारे यहां यह बीमारी विशेषतौर पर उत्तर भारत में ही है और उस में भी सब से ज्यादा इस बीमारी से ग्रस्त उत्तर प्रदेश, बिहार, मध्य प्रदेश,  झारखंड, छत्तीसगढ़ और राजस्थान के लोग हैं.

लेकिन इस का मतलब यह भी नहीं है कि बंदूक को ले कर शेष भारत में कोई ललक ही नहीं है. दुनिया में मौजूद कुल 85 करोड़ 70 लाख बंदूकें, जिन में करीब 85 फीसदी सिविलियन लोगों के पास हैं, अकेले अमेरिका में ही 39 करोड़ 3 लाख बंदूकें हैं, जो कि दुनिया में कुल सिविलियन बंदूकों का 46 फीसदी है. जबकि, भारत में 4 करोड़ से ज्यादा बंदूकें हैं, लेकिन, जहां तक लाइसैंस की बात है, तो लाइसैंसी बंदूकें महज 26 लाख के आसपास हैं. पहले उन की संख्या ज्यादा थी, लेकिन पिछले कुछ सालों से सरकार बंदूकों के लाइसैंस रद्द कर रही है या लोगों को इस के लिए प्रोत्साहित नहीं कर रही है, इस वजह से कमी आई है.

भारतीयों का बंदूकप्रेम

भारतीय लोग भी न सिर्फ बड़े पैमाने पर बंदूकों से लगाव रखते हैं बल्कि इस बंदूकप्रेम के कारण हमारे यहां भी बड़े पैमाने पर हर साल बंदूक से लोगों की जानें जाती हैं. हालांकि हमारे यहां बंदूक का लाइसैंस आसानी से नहीं मिलता लेकिन इसे पाने के लिए लोग अपनी सारी हैसियत, अपने सारे संपर्कों को  झोंक देते हैं.

खैर, बंदूक हासिल जैसे भी होती हो, इस की व्यापकता दुनिया के कोनेकोने तक है. नैशनल क्राइम ब्यूरो रिकौर्ड्स औफ इंडिया के मुताबिक, हर तीसरी हत्या बंदूक के जरिए होती है. इस से भी बड़ी बात यह है कि बंदूक से जितनी हत्याएं आपराधिक घटनाओंदुर्घटनाओं के चलते होती हैं, उस से कहीं ज्यादा लोग पुलिस व अर्द्धसुरक्षाबलों के साथ मुठभेड़ों आदि में मारे जाते हैं.

1999 में जब बंदूकों से होने वाली मौतों का आंकड़ा पहली बार पेश किया गया था तो यह 12,147 मौतों का था, यानी इतने लोगों की मौतें बंदूक के जरिए हुई थीं. मगर 2008 में किए गए एक सर्वेक्षण से यह राहत देने वाली बात सामने आई थी कि बंदूकों का इस्तेमाल शायद घट रहा है.

ये भी पढ़ें- तलाक समाधान नहीं

अब यह मनोवैज्ञानिक सुरक्षा के लिए कहीं ज्यादा इस्तेमाल होती है. 2008 में बंदूक से मारे गए लोगों का आंकड़ा 6,219 था. लेकिन 2015 और 2016 में एक बार फिर से बंदूक से होने वाली मौतों के आंकड़ें में बढ़ोतरी हुई. 2017 में 28,653 लोगों की हत्या हुई. इन में 16 हजार से ज्यादा लोगों की हत्या बंदूक के जरिए यानी बंदूक के इस्तेमाल के चलते हुई है.

लेकिन बंदूक का सब से सिहरन कर देने वाला असर अमेरिका में दिखता है. वहां फैडरल ब्यूरो औफ इंवैस्टिगेशन (एफबीआई) के मुताबिक, साल 2001 से 2005 के बीच 47,500 लोगों की हत्याएं बंदूक के जरिए की गईं. वहीं अकेले साल 2016 में बंदूक द्वारा मारे गए अमेरिकियों की संख्या बढ़ कर 37,200 हो गई. इस से अंदाजा लगाया जा सकता है कि अमेरिका में बंदूक किस तरह अपराधों की बढ़ोतरी में शामिल है. अमेरिका में हर 10 में से 8 लोगों की हत्या बंदूक की गोली से होती है. इस से भी खौफनाक आंकड़ा यह है कि पिछले डेढ़ दशकों में अमेरिका सहित विकसित देशों में किशोरों और बच्चों द्वारा सिरफिरे अंदाज में गोलीबारी की घटनाओं को अंजाम दिया गया था. गोलीबारी की घटनाओं में 170 फीसदी से ज्यादा का इजाफा हुआ है.

अमेरिका में बच्चों तक में बंदूक से खूनी खेल खेलने की लत पड़ चुकी है. पिछले 2 दशकों में अमेरिका सहित तमाम पश्चिमी देशों के बच्चों में बड़ी तेजी से हिंसक प्रवृत्ति बढ़ रही है, जिस के लिए समाजशास्त्रियों और बाल मनोवैज्ञानिकों का एक वर्ग यह कहता रहा है कि इस के लिए वीडियो गेम्स की लत और बच्चों द्वारा कंप्यूटर पर ज्यादा से ज्यादा बिताए गए वक्त की ऊब जिम्मेदार है. विशेषज्ञों का स्पष्ट रूप से मानना है कि बच्चे इसलिए हिंसक हो रहे हैं क्योंकि वे ज्यादा से ज्यादा वक्त कंप्यूटर पर बिताते हैं. इस दौरान वे अधिक से अधिक खूनी जंग वाले खेल खेलते हैं. इस कारण उन में ऐसे हिंसक खेलों के प्रति रु झान बढ़ रहा है. नतीजा यह है कि वे आदत से हिंसक और खूंखार हो रहे हैं.

लेकिन विशेषज्ञों का एक दूसरा वर्ग ऐसा भी है जो यह मानने को तैयार नहीं. उस के मुताबिक, बच्चों में वीडियो गेम खासतौर पर खौफनाक खूनखराबे से भरे गेम उन की मानसिक सजगता को बढ़ा रहे हैं. उन्हें इस दुर्दांत दुनिया में जीने और अपराध से बचे रहने के लिए होशियार कर रहे हैं. ये उन में खौफनाक हिंसक आदत नहीं पैदा कर रहे. हालांकि यह बहस शाश्वत है कि हिंसक वीडियो गेम बच्चों में हिंसक प्रवृत्ति पैदा कर रहे हैं या उन में दिमागी सजगता बढ़ा रहे हैं, लेकिन यह संयोग देखने और डरने के लिए विवश कर देता है कि जैसेजैसे हिंसक वीडियो गेम्स का बाजार बढ़ रहा है वैसेवैसे अमेरिका जैसे देशों में सिरफिरी गोलीबारी की घटनाएं भी बढ़ रही हैं.

बंदूक की विडंबना देखिए कि उस का जहां ज्यादातर इस्तेमाल हत्याओं में हो रहा है, वहीं उसे आमतौर पर आत्मरक्षा के लिए लिया जाता है यानी जो बंदूकें जान बचाने के लिए खरीदी जाती हैं, वही जान लेने का सब से बड़ा सबब बन रही हैं. सब से बड़ी बात यह है कि बंदूक का इस्तेमाल सिर्फ दूसरे द्वारा जान लेने में नहीं हो रहा. खुद भी लोग अपनी जान बड़े पैमाने पर बंदूकों के जरिए ही ले रहे हैं. भारत में जितनी आत्महत्याएं हो रही हैं, उन में 30 फीसदी तक आत्महत्याएं अपनी ही बंदूक से अपनी जीवनलीला समाप्त कर देने वाली कहानियां हैं.

बंदूक के लिहाज से देश का सब से खतरनाक शहर मेरठ है. मेरठ के बाद दूसरे नंबर पर प्रयागराज आता है, फिर बिहार की राजधानी पटना. इस के बाद वाराणसी, कानपुर, आगरा, इंदौर और दिल्ली का नंबर आता है. इन तमाम शहरों में औसतन 5 में से 3 आत्महत्याएं अपनी ही बंदूक द्वारा की जाती हैं. इन शहरों की सूची में यह स्वाभाविक ही है कि किसी दक्षिण भारत के शहर का नाम नहीं है, क्योंकि बंदूक की संस्कृति, दरअसल, उत्तर भारत में ही अधिक मुखर है.

बंदूक की संस्कृति के लोकप्रिय होने का मतलब महज हिंसाप्रिय होने का सुबूत नहीं है बल्कि बंदूक की संस्कृति एकसाथ कई बातें बताती है. बंदूक की संस्कृति बताती है कि अभी आप कबीलाई मानसिकता से बाहर नहीं निकले. यह अकारण नहीं है कि उन तमाम देशों, जहां लोगों के दिलोदिमाग

में अपना वर्चस्व कायम करने की कबीलाई ललक होती है, बंदूक का वर्चस्व देखने को मिलता है. एशियाई देश इस बाबत खासतौर पर सब से आगे हैं. अफगानिस्तान और पाकिस्तान तो मानो बंदूक की संस्कृति के स्रोत हैं. वहां बंदूक के बिना लोग अपनेआप को असुरक्षित ही नहीं, अधूरा भी महसूस करते हैं जैसे इन दिनों महानगरों में मोबाइल के बिना जिंदगी कुछ थमीथमी, रुकीरुकी सी लगती है.

ये भी पढ़ें- सुबह इंसाफ का जश्न मनाया, शाम होते होते उन्नाव की बेटी दुनिया को अलविदा

 बंदूक का मनोविज्ञान

बंदूक हमारे मन की हिंसा को व्यावहारिक, विस्तार तो देती ही है, वह यह भी बताती है कि हम अपना वर्चस्व किसी भी कीमत पर करना चाहते हैं, चाहे इस के लिए दूसरे को नेस्तनाबूद ही क्यों न करना पड़े. बंदूक से प्यार हमारे दिलोदिमाग में मौजूद हमारी असुरक्षाबोध का भी प्रतीक है. यों लगता है कि बंदूक ले कर चलने वाले लोग काफी दुस्साहसी और निडर होते होंगे. पर नहीं, ऐसा नहीं है. वास्तव में बंदूक रखने वाले लोग उन लोगों के मुकाबले, जो बंदूक नहीं रखते, कहीं ज्यादा कमजोर, कहीं ज्यादा डरपोक होते हैं. यह अकारण नहीं है कि आमतौर पर जिस के घर में एक बंदूक है, वह एक से ज्यादा बंदूक हासिल करने की जुगाड़ में लगा रहता है. नेताओं के पास शायद इसीलिए कईकई हथियार होते हैं क्योंकि वे अपनेआप को सामान्य लोगों के मुकाबले कहीं ज्यादा असुरक्षित पाते हैं.

ज्यादा बंदूकें, ज्यादा मौतें : एक मिथ और दिमाग से निकाल दीजिए कि बंदूक हमारी रक्षा करती है, बंदूक हमें बचाती है. अगर ऐसा होता तो अफगानिस्तानी और पाकिस्तानी सब लोग सुरक्षित होते. क्योंकि वहां लोगों के पास अगर शतप्रतिशत नहीं तो 80 फीसदी से ज्यादा लोगों के पास बंदूकें हैं. चाहे वे खरीद कर हासिल की गई हों या खुद ही बना कर.

अफगानिस्तान और पाकिस्तान में बंदूकें बनाना कुटीर उद्योग की तरह है. बावजूद इस के, देखा जाए तो दुनिया में इंसान के लिए अगर सब से नारकीय देश हैं तो उन में पाकिस्तान और अफगानिस्तान के नाम जरूर जुड़ते हैं. बल्कि, ये शीर्ष में रहते हैं. वहां के अनुभव बताते हैं कि बंदूक से लोग सुरक्षित नहीं, असुरक्षित ज्यादा होते हैं.

कराची दुनिया का वह महानगर है जहां घोषित तौर पर हर चौथे आदमी के पास कोई न कोई आग्नेयास्त्र है. अब जरा दूसरा आंकड़ा भी देखिए. कराची दुनिया का अकेला वह शहर है जहां सब से ज्यादा मौतें बंदूकों के जरिए होती हैं. अगर बंदूकें किसी को सुरक्षित रखतीं तो अफगानिस्तान, पाकिस्तान और वे तमाम देश, जहां व्रिदोह की स्थिति है, लोग कहीं ज्यादा सुरक्षित होते. पर ऐसा है नहीं.

बंदूकें जितनी ज्यादा होती हैं, मौतें उतनी ही ज्यादा होती हैं और सुरक्षा उतनी ही ज्यादा कमजोर होती है. राष्ट्रसंघ भारत में बढ़ती आत्महत्याओं से इसलिए भी चिंतित है क्योंकि हथियार, विशेषकर बंदूक के प्रति बढ़ता मोह, हताश, निराश और प्रतिस्पर्धा में पिछड़े लोगों को एक ही रास्ता दिखाता है, वह है आत्महत्या करने का रास्ता. इसलिए, बंदूक का निजी हाथों में पड़ना अच्छा संकेत नहीं है.

 बच्चे, बंदूक और इंटरनैट

2 दशकों में जैसेजैसे कंप्यूटर और इंटरनैट हमारी जिंदगी के अभिन्न हिस्से बने हैं, वैसेवैसे हमारी स्वाभाविक गतिविधियों में कमी आई है. सब से ज्यादा यह प्रभाव किशोरों और युवाओं की जीवनशैली में देखने को मिल रहा है. अमेरिका और यूरोप की तो बात ही छोड़ दें, हिंदुस्तान तक में महानगरों में किशोरों की घर से बाहर की गतिविधियां पिछले एक दशक में 20 से 70 फीसदी तक घटी हैं.

एक सर्वेक्षण से पता चला है कि पार्कों में खेलने जाने वाले बच्चों की संख्या पिछली सदी के 80 और 90 के दशकों के मुकाबले 40 फीसदी तक कम हो गई है. आउटडोर खेलों में किशोरों की रुचियां और भागीदारी दोनों घट रही हैं. दूसरी तरफ, पिछले एक दशक में कंप्यूटर पर बैठ कर वीडियो गेम खेलने या बेमतलब की चैटिंगशैटिंग में काफी ज्यादा वक्त जाया हो रहा है.

मुंबई की एक संस्था ने तो बाकायदा अपने सर्वेक्षण से यह साबित किया है कि अगर जल्द ही मांबाप इस बारे में सजग नहीं हुए तो 2020 के बाद की पीढ़ी घर से बाहर के यानी आउटडोर खेलों को भूल जाएगी. जैसे वन्यजीव अब महज कागजों और तसवीरों में बचे हैं वैसे बहुत सारे खेल कहीं यादों और किताबों में ही बचेंगे. गिल्लीडंडा जैसे खेल अब गांव में भी लगभग न के बराबर ही खेले जाते हैं.

सवाल है, क्या घर के बाहर की गतिविधियां घटने से किशोर हिंसक हो रहे हैं? भले कुछ विशेषज्ञ इस बात को न मानें और जिद करें कि आंकड़े ऐसा नहीं कह रहे, मगर यह महज आंकड़ों की बात नहीं है. हम अपने इर्दगिर्द इस सच को घटते देख सकते हैं.

मनोवैज्ञानिक कहते हैं, जब हम घर के बाहर होते हैं तो हम रिचार्ज होते हैं. जब हम शारीरिक गतिविधियां करते हैं तो हमारे शरीर से कईर् ऐसे हार्मोन जारी होते हैं जो हमें खुश रखते हैं, हमें सकारात्मक रखते हैं और हमें उत्साह से भरते हैं. वहीं दूसरी ओर जब हम लगातार बैठे रहते हैं, किसी एक चीज पर अपनेआप को फोकस रखते हैं तो हमारे शरीर में हार्मोन नहीं बनते, बल्कि ऊब पैदा होती है. यह ऊब हमें नकारात्मकता से भरती है क्योंकि हमें उस समय कोई चीज अच्छी नहीं लग रही होती.

लगातार एक जगह बैठे रहने से और कंप्यूटर की स्क्रीन पर नजर गड़ाए रखने से हम में आत्मविश्वास की कमी बढ़ती है, क्योंकि हमारी नजरें लगातार के ध्यान से थक रही होती हैं. थकी नजरें अच्छा और उत्साहपूर्ण सोच नहीं पाती हैं. चाहे वीडियो गेम हो या कंप्यूटर में बिताया गया यों ही वक्त, वह सही नहीं होता. कम से कम युवाओं और किशोरों के लिहाज से तो यह बिल्कुल ही सही नहीं होता क्योंकि उन की जिंदगी में अनुभवों की कमी होती है. इसलिए भी उन्हें घर के बाहर की गतिविधियों में अपनेआप को ज्यादा लगाना चाहिए क्योंकि घर के बाहर की गतिविधियां उन में उत्साह भरती हैं जिस से वे सकारात्मक रहते हैं.

क्या सच में जरूरी है शादी ?

हमेशा से समाज में शादी कर घर बसाने को युवाओं की जिम्मेदारी और जरुरत के रूप में देखा जाता रहा है. खास कर जो लड़कियां शादी नहीं करतीं उन्हें अजीब रिएक्शन दिए जाते हैं. लोग उन्हें डराना शुरू कर देते हैं कि आने वाले वक्त में तुम्हे अपने फैसले पर अफसोस होगा. मगर देखा जाए तो आज के समय में शादी उतना अनिवार्य नहीं जितना पहले था. आज लड़कियां अपने पैरों पर खड़ी हैं और खुद अपना ख्याल रख सकती हैं. आज उन्हें किसी सहारे की जरुरत नहीं.

  1. फाइनेंशियल सपोर्ट – आज के समय में लड़कियां काफी ऊंचे पदों पर पहुंच रही हैं. नाम और रुतबे के साथसाथ उन्हें अपने काम और काबिलियत की अच्छी कीमत भी मिल रही है. वे आर्थिक रूप से भी किसी पर निर्भर नहीं रहतीं. अपने बल पर अच्छी जिंदगी जी सकती हैं.

2. अकेलेपन का डर – अकेले होने और अकेलेपन में बहुत फर्क है. बहुत से शादीशुदा लोग भी अकेलेपन से बेहाल है. ये ऐसी घरेलू , सामाजिक महिलाएं होती हैं जिन के पति सुबह घर से निकलते हैं और देर रात वापस आते हैं. बच्चे थोड़े बड़े होते ही अपनी दुनिया में मशगूल हो जाते हैं. उन के लिए मां पुराने विचारों वाली पिछड़ी महिला होती है जिसे आज के समय की कोई बात पता नहीं होती. इसलिए बच्चे अपने हमउम्र दोस्तों या मोबाइल में वक्त बिताना ज्यादा पसंद करते हैं. वैसे भी स्कूल और ट्यूशन के बाद वे घर पर बहुत कम होते हैं. समय के साथ उन की जिंदगी में कोई खास भी आ चुका होता है और तब मां की उन की जिंदगी में बस यही अहमियत होती है कि घर आते ही उन्हें तरहतरह के स्वादिष्ट भोजन मिल जायेंगे. ऐसी महिलाएं पूरी जिंदगी अकेलेपन में गुजार देती है. उन के हाथ केवल रिमोट या बेलन ही रह जाता है. जब कि शादी न होने के बावजूद अच्छा करियर आप को आप को संतुष्टि और आत्मसम्मान देता है. आप अपनी इच्छा से फैसले ले पाती हैं, रूपए खर्च कर पाती हैं. जिंदगी अपने हिसाब से जी पाती हैं.

ये भी पढ़ें- टूटे हुए रिश्ते में ऐसे जगाएं प्यार

3. मेंटल और साइकोलौजिकल हैप्पीनेस – सब के लिए खुशी का मतलब अलग होता है. यदि किसी लड़की को शादी के बजाय कैरियर या किसी और चीज में खुशी हासिल होती है तो उसे ऐसा करने से रोका क्यों जाता है?  उसे समाज का डर क्यों दिखाया जाता है? क्यों नहीं उसे अकेले रहने के लिए तैयार होने दिया जाता? क्यों नहीं उसे हौसला दिया जाता कि वह खुद को मजबूत साबित कर सके?

4. शारीरिक जरूरत – जिन के जीवन का कोई ऊंचा मकसद होता है उन के लिए शारीरिक जरूरत से ज्यादा महत्त्व अपने क्षेत्र में सफलता के नए पायदानों को छूना होता है. उन्हें नाम की की भूख होती है और इस के लिए वे पूरी तरह काम में डूब कर ख़ुशी हासिल करती हैं. जहां तक बात शारीरिक जरुरत की है तो जिसे इस की ख्वाहिश है वह लिव इन पार्टनर या बौयफ्रेंड के साथ भी इस आवश्यकता की पूर्ति कर लेती हैं. वैसे भी आज के समय में यह कोई बड़ी बात नहीं रह गई है.

ये भी पढ़ें- क्या इन्फैचुएशन प्यार नहीं है?

5.परिवार और बच्चों की जरूरत – जाहिर है जिन लड़कियों के लिए करियर महत्वपूर्ण है वे अपने काम से ही शादी कर लेती हैं और औफिस वाले व पूरा समाज ही इन का परिवार होता है. अक्सर ये सामजिक कामों में भी इन्वौल्व हो जाती हैं और इस तरह दूसरों की भलाई कर आत्मसंतुष्टि भी पाती हैं. उन के पास समय भी होता है और साधन भी जिन्हे वे जनकल्याण के कार्यों में लगा कर अपनी अलग पहचान बना पाती हैं.

अंत में हमारा यह कहना नहीं कि शादी न करना अच्छा है मगर यदि परिस्थिति वश या अपनी प्राथमिकताओं के आधार पर किसी लड़की ने 40 की उम्र तक भी शादी न की हो या उम्र भर न करने का फैसला लिया हो तो उस के इस फैसले पर हजार सवाल उठाने या भविष्य का डर दिखाने के बजाय उस की इच्छा को मान देते हुए उसे समर्थन देना ही समाज का दायित्व होना चाहिए.

मेकअप टिप्स: 20 मिनट में ऐसे हो पार्टी के लिए तैयार

फ्रैंड की बर्थडे पार्टी में जाना हो लेकिन बिजी शैड्यूल के कारण पार्लर में जाने का टाइम न हो तो आप परेशान न हो बल्कि आप घर बैठे खुद को अपने हिसाब से मिनटों में बेहतर लुक दे कर अपने फ्रैंड्स के बीच सैंटर औफ अट्रैक्शन बन सकती हैं. जानिए इस संबंध में ब्यूटी ऐक्सपार्ट बुलबुल साहनी से.

मेकअप से पहले क्या करें

अगर आप अपने फेस पर इंस्टैंट ग्लो चाहती हैं तो मेकअप करने से 10 मिनट पहले आप अपने चेहरे पर दही अप्लाई करें. आप को बता दें कि दही ब्लीच का काम करता है. इस से स्किन ग्लोइंग दिखने के साथ मेकअप भी काफी अच्छा रिजल्ट देता है.

आप ग्लोइंग स्किन के लिए हफ्ते में 3 दिन दही में नीबू मिला कर या फिर दही में टमाटर मिला कर भी लगा सकती हैं. इस के बाद आप को मौइश्चराइजर लगाने की भी जरूरत महसूस नहीं होगी. यह प्राइमर का काम करता है.

ये भी पढ़ें- पार्लर क्यों जाना जब रसोई में है खजाना

घर पर रखें  कौस्मैटिक प्रोडक्ट्स

कभी भी घर में पार्टी फंक्शन हो सकता है और ऐसे में हर बार पार्लर से तैयार होना संभव नहीं होता. इसलिए आप घर पर मेकअप किट जिस में क्रीम, कंसीलर, फाउंडेशन, ब्रश,कौम्पैक्ट, आईशैडो, काजल, लाइनर, ब्लशर, लिपस्टिक, लिप पैंसिल, हेयर ऐक्सैसरीज बिंदी, नेल पौलिश वगैरा ला कर रखें ताकि आप के लिए मिनटों में मेकअप करना आसान हो सके.

कैसे करें मेकअप

अगर स्किन ज्यादा ड्राई दिखेगी तो मेकअप इतना इफैक्टिड नहीं लगेगा इसलिए सब से पहले स्किन की ड्राईनैस को दूर करने के लिए चेहरे पर कोल्ड क्रीम अप्लाई करें. इस से स्किन की ड्राईनैस दूर होती है. फिर आंखों के नीचे कंसीलर अप्लाई करें. यह डार्क सर्किल्स को छुपाने का काम करता है. इस के बाद चेहरे पर अच्छे से फाउंडेशन लगाएं. गर्दन पर भी फाउंडेशन लगाना न भूलें. इस से नैचुरल स्किन टोन के साथ स्किन क्लीयर नजर आने लगती हैं. फिर जब बेस तैयार हो जाए तो उस के बाद ब्रश की मदद से कौंपैक्ट लगाएं. यह आप को परफैक्ट लुक देने का काम करेगा. ध्यान रखें कौम्पैक्ट हमेशा ऐंटी क्लौक वाइज ही लगाएं. इस से मेकअप ज्यादा देर तक स्टे रहता है.

फिर आईशैडो ले कर आई मेकअप करें. आजकल स्मोकी आइज का काफी क्रेज है तो आप डार्क कलर से स्मोकी आईज के साथ आईब्रो को भी उसी से डिफाइन कर के उस पर थोड़ा गिलटर लगाएं. इस के बाद आंखों के ऊपर अपनी पसंद के अनुसार पतला या मोटा लाइनर अप्लाई करें. फिर मसकारे के 3-4 कोट्स अप्लाई करें. ये आईलैशिज को घना दिखाने का काम करता है, अब काजल लगाएं. इस से आप की आंखें और खूबसूरत दिखेंगी.

ये भी पढ़ें- चमकती त्वचा के लिए स्किन केयर के इन 5 टिप्स पर गौर जरूर करें

इस के बाद ब्लशर को नोज के पास से आईब्रो तक लगाएं और इसे अंगुलियों से अच्छे से मिलाएं. फिर ब्लशर के बाद हाईलाइटर लगाएं. इस से मेकअप थोड़ी देर बाद ग्लो करने लगता है. अब पेंसिल से लिप लाइन बनाएं और उस में लिपस्टिक अप्लाई करें. इस से लिपस्टिक फैलती नहीं है. आखिर में बालों को अपनी पसंद के हिसाब से लुक दें. आप खुले बाल भी रख सकती हैं या फिर अगर आप के बाल छोटे हैं तो आप पहले हलकी सी बैक कौंबिंग करें और बन बना कर पिन व डोनट से उसे अच्छे से कवर करें. आगे के बालों को प्रेसिंग से अच्छे से सैट करें. यह लुक आप के मेकअप व आउटफिट पर खूब जचेगा.

इस तरह मिनटों में आप खुद को पार्टी के लिए रैडी कर सकती हैं.

चार सुनहरे दिन : भाग 3

रेखा सन्न रह गई. बोली, ‘‘तुम्हारे पिताजी यदि तुम पर जोर दे कर…’’

‘‘नहीं, मैं ने साफ इनकार कर दिया है. लेकिन पिताजी का कहना है कि वे उन लोगों का कर्ज अपनी पैंशन से नहीं चुका सकेंगे, वे लोग हमारा घर नीलाम कराने की धमकियां दे रहे हैं.’’

रेखा ने सूखे गले से पूछा, ‘‘तब तुम क्या करोगे?’’

इसीलिए तो मैं नौकरी ढूंढ़ रहा हूं. मैं ने पिताजी से कह दिया है कि नौकरी कर के उन्हें हर महीने अपना वेतन देता रहूंगा और कर्ज पट जाएगा. लेकिन नौकरी मिले तब तो.’’

रेखा चिंता में पड़ गई थी. प्रदीप को यदि नौकरी न मिली, और कर्ज के दबाव में वह वहां शादी के लिए राजी हो गया, तो…

3 दिनों के बाद प्रदीप वहीं मिला, बस स्टौप पर. घबराया हुआ सा था. बोला, ‘‘डार्लिंग, कुछ जरूरी बातें करनी हैं. चलो…’’

वह उसे अपने घर नहीं, पास के एक रैस्तरां में ले गया. एक केबिन में बैठ कर सैंडविच और चाय का और्डर दिया और धीरेधीरे कहने लगा, ‘‘डार्लिंग, मैं आज तुम से विदा लेने आया हूं.’’

रेखा सन्न रह गई, ‘‘विदा लेने…’’

‘‘हां, बात बिगड़ गईर् है. लड़की वालों ने अपनी बेटी की शादी कहीं और तय कर दी है. यह तो मेरे सिर से एक बला टली, लेकिन अब वे लोग सख्ती से अपना रुपया मांग रहे हैं. पिताजी पर दबाव डाल रहे हैं. दबंग आदमी हैं, बड़ी विनतीचिरौरी करने पर 3 दिनों का समय दिया है. वरना घर नीलाम करा लेंगे.’’

‘‘तो?’’ सूखे गले से रेखा ने पूछा.

‘‘मैं ने सोचा है कि मैं कहीं भाग जाऊं. पिताजी उन लोगों पर मेरे अपहरण का केस दायर कर देंगे. यों वे हमारा घर नहीं ले सकेंगे. मामला चलेगा, और फिर देखा जाएगा. शायद मु झे बाहर नौकरी मिल जाए. तब सब ठीक हो जाएगा.’’

रेखा ने कांपते स्वर में पूछा, ‘‘फिर कब लौटोगे?’’

‘‘फिलहाल तो भागना ही पड़ेगा, लौटने का कुछ ठीक नहीं. शायद न भी लौटूं. नौकरी के बिना या रुपए की व्यवस्था के बिना लौटने पर तो अपहरण का केस भी टिक न सकेगा. इसलिए अलविदा.’’

रेखा चुप रही. उस के दिल में तूफान चल रहा था. इधर पुरुष सहवास का जो अनोखा आनंद उसे मिला था वह उस के लिए एक अनिवार्य नशा जैसा हो गया था. वह इतने सुख के दिन बिताने के बाद अब इसे हाथ से नहीं जाने देना चाहती थी. भागने के बाद प्रदीप का उस से शादी कर पाना मुश्किल हो जाएगा. न जाने कहांकहां छिपता फिरेगा. वह सोचने लगी कि क्या उस को फिर से अकेले जीवन गुजारना पड़ेगा? सवेरे से शाम तक सूखे रजिस्टरों, लेजरों में सिर खपा कर पैसे बैंक पहुंचाना, लौट कर थके शरीर से अकेली बिस्तर पर रात काट देना और सवेरे उठ कर फिर उसी एकरस दिनचर्या की तैयारी. उस का मन जैसे हाहाकार कर उठा. कांपते स्वर में बोली, ‘‘कितने पैसे देने हैं उसे?’’

‘‘ठीक से पता नहीं,’’ प्रदीप लापरवाही से बोला, ‘‘लेकिन पिछले साल तक यह 32 हजार रुपए के लगभग था. सूद की मोटी राशि जुड़ती रहती है. सो, अब 40 हजार रुपए से कम क्या होगा. लेकिन क्या फायदा इस गिनती से. न मैं यह जुटा सकता हूं न पिताजी. ये लोग इतने खूंखार हैं और कह चुके हैं कि 3 दिनों में रुपया न मिला तो मेरे हाथपैर तोड़ देंगे. मु झे तो भागना पड़ेगा ही.’’

रेखा कांप गई. इस बीच बैरे ने खाने का सामान ला कर रख दिया. रेखा ने उसे छुआ भी नहीं. बोली, ‘‘क्या तुम्हारे चाचाजी कुछ मदद नहीं करेंगे?’’

‘‘चाचा.’’ प्रदीप फीकी मुसकान से बोला, ‘‘वे तो उड़ाऊखाऊ आदमी हैं. उन के पास पैसा कहां. उन्हें इस साल ललिता की शादी भी करनी है. उस के लिए कर्ज लेने वाले हैं.’’

प्रदीप आगे बोला, ‘‘खाओ, चिंता मत करो. वही तरीका ठीक है कि मैं यहां से भाग जाऊं. यहीं से चला जाऊंगा. मोटरसाइकिल एक दोस्त के घर पर रख कर मैं स्टेशन चला जाऊंगा.’’

‘‘क्या पैसे की कुछ भी व्यवस्था नहीं कर सकते?’’ रेखा बोली, ‘‘मेरे पास 3 हजार रुपए हैं.’’

प्रदीप फीकी हंसी हंसा, ‘‘कभी शौक से मोटरसाइकिल ली थी. आज बेच दूं तो शायद 7-8 हजार रुपए मिलें. ये 10 हजार रुपए हुए. लेकिन 30 हजार रुपए का सवाल रह जाता है. नहीं भई, यों नहीं होगा. मु झे भागना पड़ेगा.’’

रेखा कुछ सोच कर बोली, ‘‘मैं रुपए की व्यवस्था कर दूं तो?’’

‘‘तुम?’’ प्रदीप चौंका, ‘‘तुम कहां से लाओगी 30 हजार रुपए?’’

‘‘मैं ला दूंगी.’’

‘‘क्या अपने पिताजी से मांगोगी? तब तो.’’

‘‘ उन से मतलब नहीं, और न उन के पास हैं. मैं इंतजाम कर दूंगी. मु झे जरा सोचने दो.’’

‘‘जरूर औफिस से लोन लोगी, लेकिन वे इतनी रकम दे देंगे? 3 दिनों में ही चाहिए.’’

‘‘मैं तुम्हें ला दूंगी रुपए, बस. फिर तो तुम्हें घर छोड़ने की जरूरत न होगी?’’

‘‘नहीं तो,’’ प्रदीप खुश हो कर बोला, ‘‘तब क्यों कहीं जाऊंगा. रुपए उन हरामियों को सूद समेत चुका कर निश्ंिचत हो जाएंगे हम लोग. फिर तो ठाट से हमारी शादी अगले लगन में ही पक्की सम झो.’’

‘‘क्या सच में?’’ रेखा उत्सुक हुई.

‘‘बिलकुल सच. तब बाधा ही क्या रहेगी भला. लेकिन मैं नहीं सम झ सकता कि कैसे.’’

‘‘छोड़ो. तुम ऐसा करना कि कल सवेरे ठीक साढ़े 9 बजे वहीं मिलना जहां बस खड़ी होती है.’’

रात में रेखा गंभीरता से विचार करती रही. रोज वह कंपनी का जो रुपया जमा कराती है, वह आजकल 30 हजार रुपए से ज्यादा ही होता है. दीवाली नजदीक है, बसों में भीड़ होने लगी है.

2 दिनों बाद भीड़ और बढ़ जाएगी. उसे वही रुपया हथियाना होगा. कंपनी बहुत बड़ी है और रोज इतना रुपया जमा होता है. एक दिन की आमदनी यदि न भी जमा हो तो क्या फर्क पड़ता है.

रेखा के जीवन का सवाल है. 8 साल से उस ने यहां मेहनत की है. वेतन सिर्फ

3 हजार रुपए मिलता है, जबकि रेखा 2-3 लोगों के बराबर काम अकेली कर देती है. अकाउंटैंसी, फाइलिंग, कौरेस्पौंडेंस, रुपए जमा कराना. उस के परिश्रम से कंपनी को लाखों रुपए का लाभ होता रहता है. क्या उसे 8 साल के कुछ बोनस का अधिकार नहीं? कंपनी को तो चाहिए कि उसे कम से कम 4 हजार रुपए वेतन दे. इसी बहाने वह अपना घाटा भी पूरा कर लेगी. इस में कुछ दोष या पाप बिलकुल नहीं. रेखा का जीवन बनेगा, एक परिवार का बचाव होगा, और कंपनी का कुछ खास नहीं बिगड़ेगा.

रातभर वह इसी उधेड़बुन में रही. सवाल केवल रामलाल का था. उस सीधे आदमी को आसानी से उल्लू बनाया जा सकता है. उस ने एक उपाय सोचा.

सवेरे देर से जागी. उस का मुर झाया चेहरा देख कर शोभा ने पूछा, ‘‘क्या तबीयत खराब है?’’ उसे टाल कर वह समय पर औफिस के लिए चल दी. साढ़े 9 बजे बसस्टौप पर प्रदीप पहले से मौजूद था.

रेखा ने कहा, ‘‘मेरे साथ थोड़ी दूर तक टहलने चलो. राह में बातें करेंगे.’’

चलते हुए उस ने प्रदीप को धीरेधीरे अपनी योजना बतानी शुरू की. फिर कहा, ‘‘बैंक और उस चाय की दुकान को तो जानते ही हो. चाय की दुकान और बैंक के बीच नीम का एक बड़ा मोटा सा पेड़ है. रात में वह सड़क सूनी रहती है. बैंक के पास 1-2 दुकानें हैं, जिन की रोशनी वहां तक आती है. पेड़ से बैंक का फासला मुश्किल से सौडेढ़सौ कदम होगा. तुम पेड़ के पीछे रहना. और जो सम झाया है, वही करना. हां, वह चीज आज मु झे किसी तरह औफिस में दे देना.’’

‘‘कुछ मुश्किल नहीं,’’ प्रदीप बोला, ‘‘मैं पेड़ के पास रहूंगा. मोटरसाइकिल भी है. ठीक से चेक किए रखूंगा. वह चीज तुम्हें आज किसी के हाथों पहुंचा दूंगा.’’

‘‘तुम खुद औफिस क्यों नहीं आते? तुम्हें कौन जानता है वहां?’’

‘‘असल में, मु झे दिन में कुछ जरूरी काम है, डार्लिंग. लेकिन, मैं पहुंचा दूंगा, तुम निश्चिंत रहो.’’

रेखा को उस दिन भी उखड़े मूड में काम करते देख जगतियानी ने पूछा, ‘‘क्या आज भी तबीयत खराब है, रेखा? तब तो भई, घर जा कर…’’

‘‘नहीं सर, बस यों ही.’’ वह चुस्ती दिखाती हुई काम करने लगी. हिसाब निबटाते हुए दिमाग उस तरफ लगा था जो प्रदीप को सम झाया था. अब होथियारी रखनी है.

12 बजे छोकरे से उस ने चाय मंगवाई. चाय आईर् ही थी कि एक बाहरी लड़के ने आ कर कहा, ‘‘आप रेखाजी हैं?’’

‘‘हां,’’ वह सतर्क हुई, ‘‘क्या बात है?’’

‘‘यह लीजिए,’’ लड़के ने उसे एक पुडि़या दी और तुरंत लौट गया. मैनेजर 2-3 लोगों से बातें कर रहा था. अपनी जगह से ही पूछा, ‘‘क्या बात है? कौन छोकरा….’’

‘‘किसी रमेश के बारे में पूछ रहा था, सर,’’ उसे विश्वास था जगतियानी ने पुडि़या लेते देखा नहीं है, ‘‘मैं ने कह दिया यहां कोई रमेश नहीं रहता.’’

धीरे से पुडि़या मुट्ठी में दबा कर वह बाथरूम चली गई. वहां उसे खोला, 2 सफेद गोलियां थीं. पुडि़या ठीक से लपेट कर ब्रा में छिपा ली और निकल आई.

समय बीत नहीं रहा था. किसी तरह साढ़े 8 बजे. नोट गिने गए. आज तो पूरे 38 हजार 3 सौै रुपए हुए. रजिस्टर पर हिसाब चढ़ा कर रुपयों को बैग में रख कर वह रामलाल के साथ निकल गई.

रेखा का मन कांप रहा था. उसे हलका पसीना आने लगा था. वह पहली बार ऐसा काम करने जा रही थी, जो उसे वर्षों के लिए जेल भिजवा सकता था. नौकरी तो जाती ही. लेकिन जिंदगी में ऐसे भी क्षण आते हैं जब आदमी जुआ खेलने को मजबूर हो जाता है.

अब पीछे कदम हटाना कठिन था.

बसअड्डे पर चाय और पान की दुकानें थीं, किंतु रेखा थोड़ा आगे वाली दुकान पर बैंक से लौटते वक्त रोज चाय पीती थी. वहां पहुंची तो बोली, ‘‘भई रामलाल, आज मेरे सिर में दर्द है. अभी चाय पीते चलें, अभी टाइम है.’’

रामलाल आसानी से मान गया, ‘‘चलो बिटिया, मु झे भी भूख लगी है. एकाध बिस्कुट भी ले लेना.’’

वे चायखाने में आए तो 2-3 लोग ही थे. रेखा ने जल्दी 2 चाय लाने को कहा. चाय तुरंत आ गई. वह रामलाल से बोली, ‘‘खुद ही जा कर बिस्कुट ले लो. नौकर गंदे हाथ से निकालता है.’’

रेखा ने कोने की जगह चुनी थी. रामलाल बिस्कुट लाने काउंटर की ओर गया तो उस ने वे गोलियां निकाल कर चाय में डाल दीं. ऐसा करते उसे किसी ने नहीं देखा. बिस्कुट ले कर रामलाल लौटा तो बोली, ‘‘जल्दी करो.’’

रामलाल ने बिस्कुट खा कर जल्दी से चाय पी ली. पैसे चुका कर रेखा चली तो बैंक बंद होने में कुल 7 मिनट बाकी थे. थोड़ी दूर आगे बैंक था. चायखाने के आगे कुछ बढ़ कर नीम का वह पेड़ था. रेखा ने गौर से देखा. उधर कोई था.

रामलाल ने कहा, ‘‘बिटिया, मेरा सिर चकरा रहा है.’’

‘‘खाली पेट थे, सो, गैस चढ़ी होगी,’’ रेखा बोली.

कांपते गले से रामलाल बोला, ‘‘हाथपैर सनसना रहे हैं, बिटिया. मु झे तो नींद आने लगी है.’’

‘‘कोईर् बात नहीं, अभी बैंक पहुंचते हैं. आराम कर लेना, ठीक हो जाओगे.’’

पेड़ के पास पहुंचने के लिए उस का कलेजा उछल रहा था. जैसे ही वे पेड़ के नीचे आए. उस के पीछे से कोई उछल कर निकला और रामलाल के सिर पर किसी चीज से चोट की. रामलाल लड़खड़ा कर गिर पड़ा. वह आदमी रेखा की ओर  झपटा, उस ने देख लिया प्रदीप था. कुछ कहने ही वाली थी कि प्रदीप ने  झटके के साथ उस के कंधे से बैग ले लिया और भिंचे गले से बोला, ‘‘धन्यवाद.’’

रेखा हतबुद्धि थी. उसे खुद बैग प्रदीप को देना था, लेकिन यह गुंडों, अपराधियों की तरह छीन लेना. उस ने कुछ कहने के लिए मुंह खोला कि प्रदीप के पीछे खड़ी मोटरसाइकिल पर उस की नजर पड़ी पिछली सीट पर एक लड़की. रेखा ने पलक मारते उसे पहचान लिया. वही लड़की, जिसे प्रदीप ने अपनी चचेरी बहन बताया था. तब तक प्रदीप ने बैग उस लड़की को थमा दिया, और पीछे मुड़ा, ‘‘अब.’’

पलक  झपकते उस का हाथ उठा, रेखा को पता नहीं चला कि किस चीज से उस पर जोरदार चोट की गई है. उस की आंखों के आगे सितारे नाच उठे, वह नीचे गिर पड़ी.

उसे होश आया तो औफिस में बैंच पर लेटी थी. मैनेजर जगतियानी वहीं खड़ा था. उस के चेहरे पर हवाइयां उड़ रही थीं. नीचे चटाई पर रामलाल पड़ा हुआ था. उस के माथे पर पट्टी थी और डाक्टर उसे इंजैक्शन दे रहा था. रेखा का सिर फोड़े की तरह दुख रहा था. टटोला, माथे पर पट्टी लपेटी हुई थी.

‘‘क…क्या हुआ?’’ रेखा ने कमजोर आवाज में पूछा.

हाथ मलता जगतियानी बोला, ‘‘रास्ते में बदमाशों ने तुम लोगों पर हमला कर रुपए छीन लिए, और क्या. ताज्जुब तो है, रामलाल 5-6 पर भारी पड़ता है, लेकिन यह भी मार खा गया. पुलिस को फोन किया है मैं ने.’’

‘‘सब रुपए ले गए?’’

‘‘सब. यह दूसरी बार कंपनी को चूना लगा है. 2 साल पहले की बात तुम्हें याद होगी. जब दि प्रीमियर ट्रांसपोर्ट कंपनी के मैनेजर के नाम से किसी ने  झूठा फोन किया था. जब मैं 4 दिनों की छुट्टी पर गया था और मेरा असिस्टैंट मेरा काम संभाल रहा था. उस बदमाश ने  झूठा फोन किया, और जाली हुंडी मैनेजर के नकली दस्तखत बना कर ले आया था और नकद 10 हजार रुपए ले गया था. यह काम प्रीमियर ट्रांसपोर्ट के ही एक आदमी अजीत का था. पुलिस ने जांचपड़ताल की तो उसी का नाम सामने आया था लेकिन, सुबूत की कमी से वह छूट गया था. मैं छुट्टी के बीच से ही दौड़ा आया था. तुम्हें याद होगा. मैं ने उस पाजी को कोर्ट में अच्छी तरह देखा था. मामूली सूरत बदल कर उस ने जाली हुंडी से पैसे लिए और मेरे असिस्टैंट ने रुपए दे भी दिए. प्रीमियर वालों ने अजीत को नौकरी से निकाल दिया है. वह कभीकभी शहर में घूमता दिखाई देता है. मोटरसाइकिल पर घूमता है बदमाश. तुम ने शायद उसे न देखा हो. माथे पर कटे का निशान है और एक दांत आधा टूटा हुआ…’’

प्रदीप का हुलिया सुन कर रेखा का माथा घूम गया.

डाक्टर बोला, ‘‘दवाएं लिख देता हूं, मिस्टर जगतियानी.’’

डाक्टर के जाने के बाद जगतियानी ने बताया, ‘‘चाय की दुकान वाला तो बताता है कि रात में उसे मोटरसाइकिल स्टार्ट होने की आवाज सुनाई दी थी. यह काम भी उसी बदमाश का हो सकता है. अब तो पुलिस ही पता लगाएगी, आने दो.’’

रेखा का दिमाग ही सुन्न हो रहा था. प्रदीप…अजीत उस लड़की के साथ रुपए ले कर चंपत हो गया. उसे उल्लू बना गया. वह मैनेजर को कुछ नहीं बता सकती. उस की अपनी इज्जत और नौकरी का सवाल है. जो सोचा था सब उलटा हो गया. जिंदगी में हवा के  झोंके की तरह आए सुख के ये चार सुनहरे दिन चले गए. उन दिनों की बहुत बड़ी कीमत ले गया है वह.

हनीमून- भाग 3: क्या था मुग्धा का दूसरा हनीमून प्लैन

जब कभी वह औफिस से रात में देर से घर आता तो वह पूछ लेता, ‘मुग्धा, मैं देर से आता हूं तो तुम परेशान हो जाती होगी?’ हमेशा वह तपाक से बोलती, ‘भला, मैं क्यों परेशान होंगी? जाना चाहो तो हमेशा के लिए जा सकते हो.’

वह हर क्षण उस के अहं पर चोट पहुंचाती कि वह अब नाराज होगा. परंतु वह अपना हौसला नहीं छोड़ता. उस के चेहरे पर हर पल मुसकराहट बनी रहती. कुछ दिनों बाद एक दिन वह बोला, ‘मुग्धा, तुम दिनभर घर में बोर होती होगी, इसलिए तुम्हारे लिए मैं ने एक जौब की बात की है. तुम घर से निकलोगी तो वहां चार लोगों से मिलनाजुलना होगा तो तुम्हें अच्छा लगेगा. तुम्हें दिनभर की बोरियत से छुटकारा मिलेगा.’

आज एक पल को वह सोचने को मजबूर हो गई थी कि यह आदमी उस के बारे में कितना सोचता रहता है. वह बचपन से ही शिक्षाकार्य से जुड़ने का सपनादेखती रहती थी. परंतु दिखाने के लिए एहसान जताते हुए वह बोली थी, ‘अब आप ने बात कर ली है तो ठीक है, चलिए, मैं इंटरव्यू दे दूंगी. केवल आप की इच्छा पूरी करने के लिए.’ आज वह एक अरसे बाद ढंग से तैयार हुई थी. आईने में अपने ही अक्स को देख कर वह अपनी सुंदरता पर रीझ उठी थी. परंतु अपने साथ आशीष को देखते ही उस का मूड खराब हो गया था.

आशीष भी अपने को नहीं रोक पाया था और हिचकिचाहट के साथ उस के माथे पर प्यार की मुहर लगाते हुए बोला था, ‘मुग्धा, तुम सच में मुझे मुग्ध कर देती हो.’ आज वह नाराज होने की जगह शरमा गई थी.

शादी का एक साल पूरा हो चुका था. उसे अब आशीष की आदतें भाने लगी थीं. वह कालेज जाने लगी थी. वहां जा कर वह खुश रहने लगी थी. वह आशीष के साथ हंस कर बातें भी करने लगी थी.

एक शाम वह बिना बताए उसे लेने के लिए कालेज पहुंच गया था. उस समय वह अपने साथियों के साथ किसी बात पर जोरजोर से ठहाके लगा रही थी. उस को देखते ही वह गंभीर हो उठी थी और बुरा सा मुंह बना कर बोली थी, ‘क्यों, मुझे चैक करने आए थे?’

‘ऐसा क्यों कह रही हो?’

‘आज तुम्हारा बर्थडे है न, इसलिए सुबह ही तो शौपिंग की बात हुई थी. आज खाना भी बाहर ही खा लेंगे.’

‘ओके, ओके.’

शौपिंग के नाम से उस की आंखें चमक उठी थीं. बहुत दिनों बाद आज उस ने कई सारी ब्रैंडेड ड्रैसेज पसंद कर ली थीं. वह ट्रायलरूम से पहनपहन कर आशीष को दिखा कर पूछ भी रही थी, ‘कैसी लग रही हूं.’

फिर वह बोली थी, ‘बिल ज्यादा हो गया हो तो मैं ड्रैसेज कम कर दूं.’

प्रसन्नता से अभिभूत आशीष बोला था, ‘नहींनहीं, 2-4 और लेनी हो तो ले सकती हो. एक लाल रंग की सुंदर सी ड्रैस हाथ में उठा कर वह बोला था, यह वाली तुम पर बहुत फबेगी. यह मेरी ओर से ले लो.’

वह खुश हो कर बोली थी, ‘अरे, इस पर तो मेरी नजर ही नहीं पड़ी थी. सच में, यह तो सब से अधिक सुंदर ड्रैस है.’ आज पहली बार उस ने आशीष को प्यारभरी नजरों से देखा था.

‘मुग्धा इसी तरह मुसकराती और खुश रहा करो तो तुम बहुत सुंदर लगती हो.’

समय के अंतराल से दोनों के बीच की दूरियां कम होने लगी थीं. अब वह आशीष को स्वीकार करने लगी थी. दोनों के बीच पनपते हुए रिश्ते का फल मुग्धा के जीवन में अंकुरित होने लगा था. नवजीवन की सांसों की अनुभूति से आशीष के प्रति वह समर्पित अनुभव करने लगी थी. उस के  प्रति क्रोध और नफरत के स्थान पर प्यार पनपने लगा था.

आशीष पापा बनने वाला है, यह जान कर चमत्कृत था. उस की खुशी का ठिकाना नहीं था. उस ने तो मुग्धा के पांवों तले फूल बिछा दिए थे. उस की दीवानगी ने सारी सीमाएं पार कर दी थीं. उस समय उस ने मीरा को उस की देखभाल के लिए बुलाया था.

मीरा बेटी के पास आईं तो आशीष की मुग्धा के  लिए दीवानगी और प्यार देख कर गदगद हो उठी थीं. उन्होंने मुग्धा को बताया था कि एहसान शादी कर के अपने जीवन में आगे बढ़ चुका है, इसलिए अब उसे भी कसम खानी पड़ेगी कि वह भी आशीष के साथ प्यार व इज्जत के साथ रहेगी. यद्यपि कि वह भी आशीष से प्यार करने लगी थी परंतु आदत के अनुसार, पति के सामने आते उस की जबान कड़वाहट उगलने लगती थी.

एक दिन अंतरंग क्षणों में वह मुग्धा से बोला था, ‘मुझे तो बेटी चाहिए और वह भी तुम्हारी तरह सुंदर और प्यारी सी. यदि बेटा हो गया, वह भी मेरी तरह शक्लसूरत और काले रंग का तब तो तुम्हारे लिए बेटा भी दंडस्वरूप हो जाएगा क्योंकि अभी तो तुम्हें एक ही काले, बदसूरत आशीष को अपने इर्दगिर्द देखना पड़ता है. यदि बेटा भी ऐसा हो जाएगा तब तुम्हारे चारों तरफ बदशक्ल कुरूपों का जमावड़ा हो जाएगा और तुम्हारे लिए इस से बड़ी सजा अन्य कुछ हो ही नहीं सकती.’

मुग्धा द्रवित हो उठी थी. उस ने उस के मुंह पर अपना हाथ रख दिया था, ‘प्लीज, मेरी गलतियों के लिए मुझे माफ कर दो.’

समयानुसार उस की गोद में उस की हमशक्ल परी सी बेटी आ गई थी. मीरा बेटी को समझाबुझा कर लौट गई थीं. एक दिन आशीष को बहुत जोर का बुखार आ गया था. वह बेहोशी में भी मुग्धामुग्धा पुकार रहा था. उस की बिगड़ती हालत देख आज वह पहली बार अपने को असहाय अनुभव कर रही थी. वह डाक्टर को फोन करते ही आशीष के लंबे जीवन व स्वास्थ्य की कामना करने लगी थी. अब वह आशीष को दिल से चाहने लगी थी. जिस काले, बदशक्ल व्यक्ति से वह नफरत करती थी, वही अब उस का सर्वस्व बन चुका था. औफिस से आने पर उसे जरा भी देर होती तो वह पलपल में उसे फोन करती रहती. एक दिन वह आशीष से बोली थी, ‘आशीष, मैं ने तुम्हारा हनीमून बरबाद कर दिया था और उस के बाद भी मैं ने तुम्हें बहुत परेशान किया है, इसलिए मैं अब दोबारा उन्हीं पलों को उन्हीं जगहों पर जी कर एक नई शुरुआत करना चाहती हूं.’

‘ओके डियर, आप अपनी छुट्टी के लिए अप्लाई कर दीजिएगा.’

‘मैं ने आप को सरप्राइज देने के लिए सब बुकिंग करवा ली हैं.’

हर्षातिरेक में आशीष उसे बांहों में भर अपने प्यार की मुहर लगा कर हनीमून के बारे में सोचते हुए तेजी से औफिस के लिए निकल गया था.

उसी रात हुए इस हादसे से मुग्धा की मनोस्थिति जड़वत हो गई थी. वह निरुद्देश्य, निराधार आईसीयू के बाहर चहलकदमी कर रही थी. सुधाकर और मां मीरा को देखते ही वह अपने पापा के कंधे से लिपट कर बिलखबिलख कर रोने लगी थी. वह अस्फुट शब्दों में बोली, ‘‘पापा, प्लीज मेरे आशीष को बचा लीजिए. अभी तो मैं ने उसे प्यार करना शुरू ही किया है. मुझे उस के साथ हनीमून पर जाना है.’’ सुधाकर स्वयं को संभाल नहीं पा रहे थे. वे भी रोतेरोते बोले थे, ‘‘कुछ नहीं होगा तेरे आशीष को, तेरा प्यार जो उस के साथ है.

सिसकियों के साथ संज्ञाशून्य होतेहोते उस के मुंह से ‘हनीमून पर जाना है,’ निकल रहा था. वहां खड़े सभी लोगों की आंखों से बरबस आंसू निकल पड़े थे.

अनलिमिटेड कहानियां-आर्टिकल पढ़ने के लिएसब्सक्राइब करें