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जनवरी माह में खेती के ये हैं खास काम

साल का सब से ठंडा महीना जनवरी का होता है. इस महीने लोहड़ी व मकर संक्रांति जैसे पारंपरिक तीजत्योहार भी होते हैं. जनवरी के महीने में तापमान बहुत ज्यादा गिर जाने की वजह से पाला पड़ने लगता है, जिस का असर फसलों पर भी पड़ता है. पाले के नुकसान से बचने के लिए शाम के समय खेतों के आसपास आग जला कर धुआं करें.  इस से तापमान बढ़ जाता है और पाले का असर कम पड़ता है.

* गेहूं इस मौसम की खास फसल है. उस का खास ध्यान रखना होता है. 25 से 30 दिन के अंतर पर गेहूं में सिंचाई करते रहें. इस समय सिंचाई अच्छी पैदावार के लिए बहुत जरूरी है, क्योंकि इस माह गेहूं के पौधों में शिखर जडें़ और कल्ले फूटते हैं. जनवरी के आखिरी सप्ताह तक हलकी मिट्टी वाली जमीन में यूरिया भी दे सकते हैं.

* दीमक का प्रकोप बारानी इलाकों में होने की संभावना बनी रहती है. ऐसी स्थिति में क्लोरोपाइरीफास को 2 लिटर पानी में 20 किलोग्राम रेत के साथ मिलाएं और गेहूं की खड़ी फसल में बुरकाव कर के सिंचाई कर दें. जौ में भी दीमक और पाले से बचाव के लिए गेहूं की तरह ही उपाय करें.

* इस माह सरसों की फसल में फलियां बनने लगती हैं, इसलिए खेत में नमी जरूरी है. नमी बनाए रखने के लिए एक सिंचाई जरूर करें. इस से दाने मोटे और ज्यादा लगेंगे. सरसों की फसल में इस समय चेंपा का भी प्रकोप होता है. इस की उचित तरीके से रोकथाम करें.

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* चने की फसल में भी इस माह फूल आने की अवस्था होती है, इसलिए समय पर एक सिंचाई देने से अच्छा मोटा दाना बनेगा और पैदावार में बढ़ोतरी होगी. कईर् दफा जस्ते की कमी होने पर फसल में पुरानी पत्तियां पीली और बाद में जली सी हो जाती हैं. जिंक सल्फेट का स्प्रे से उपचार करें. कटवा सूंड़ी उगते पौधों के तनों को या शाखाओं को काट कर नुकसान पहुंचाते हैं. उस की रोकथाम करें. पत्तों, फूलों व फलियों को खा जाने वाली सूंड़ी से रोकथाम के लिए 400 मिलीलिटर इंडोसल्फान 35 ईसी को 100 लिटर पानी में घोल कर छिड़कें और 15 दिन बाद फिर छिड़काव करें. अगर फसल बोने से पहले बीजोपचार किया है, तो बहुत सी बीमारियों की रोकथाम अपनेआप हो जाती है.

* मटर में भी सिंचाई जरूरत के मुताबिक देते रहें. वहीं मसूर की खेती में निराईगुड़ाई करें. मुमकिन हो तो ह्वील हैंड हो से खोद कर खरपतवार निकाल दें. इस से फसल पैदावार में बढ़ोतरी होगी. जरूरत के मुताबिक सिंचाई भी करें.

* चारा फसल बरसीम, रिजका व जई की हर कटाई के बाद सिंचाई करते रहें. इस से बढ़वार अच्छी होगी और उम्दा किस्म का चारा मिलता रहेगा. जई में कटाई के बाद आधा बोरा यूरिया भी डालें.

* तिलहनी फसल सूरजमुखी की बीजाई जनवरी माह में भी हो सकती है. दिसंबर माह में बोई गई सूरजमुखी की फसल में नाइट्रोजन की दूसरी व अंतिम किस्त डालें व एक बोरा यूरिया बीजाई के महीनेभर बाद दें और पहली सिंचाई भी करें. फसल उगने के 15 से 20 दिन बाद गुड़ाई कर के खरपतवार निकाल दें.

* शरदकालीन गन्ने में एकतिहाई नाइट्रोजन की तीसरी किस्त दें व आखिरी बार यूरिया डाल दें. जस्ते की कमी नजर आए, तो 0.5 फीसदी जिंक सल्फेट और 2.5 फीसदी यूरिया का घोल छिड़कें. खरपतवार की स्थिति में गुड़ाई व सिंचाई करें. दीमक लगने पर 2.5 लिटर क्लोरोपाइरीफास 20 ईसी 600 लिटर पानी में घोल कर स्प्रे करें.

* नवंबर माह में लगाई टमाटर की नर्सरी जनवरी माह में रोपी जा सकती है. टमाटर के खेत में खरपतवार बिलकुल नहीं होने चाहिए. इन्हें समयसमय पर निकालते रहें. पुरानी फसल में अगर फली छेदक कीट का हमला हो जाए, तो खराब फलों को तुरंत तोड़ कर नष्ट कर दें.

* अगर आम के पास पहले लगाई मिर्च की पौध तैयार है, तो मिर्च की नर्सरी जनवरी माह में रोपी जा सकती है. लाइनों व पौधों में 18 इंच का फासला रखें. फैलने वाली किस्मों में पौधों  से पौधों के बीच की दूरी अधिक रखें.

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* मटर में हलकी सिंचाई 10-15 दिन बाद करते रहें. इस से फूल, फलियां और कोंपलें भी पाले से बची रहेंगी. कीट नियंत्रण के लिए 0.1 फीसदी मैलाथियान या 0.1 फीसदी इंडोसल्फान का स्पे्र 15 दिन बाद करते रहें. पाउडरी मिल्ड्यू के लिए 0.3 फीसदी यानी 3 ग्राम प्रति लिटर पानी में घुलनशील सल्फर का स्प्रे 7 दिन के अंतर पर करें.

* मैदानी इलाकों में जनवरी माह के अंत तक फै्रचबीन बोई जा सकती है. झाड़ीनुमा किस्म जैसे पूसा सरवती के 35 किलोग्राम बीज को 2 फुट लाइनों में और 8 इंच पौधों में दूरी पर लगाएं. लंबी ऊंची किस्म हेमलता के 15 किलोग्राम बीज को 3 फुट लाइनों में और 1 फुट पौधे में दूरी पर लगाएं. बेल चढ़ने के लिए लकड़ी या लोहे के खंभे लगाएं. बीजाई से पहले खेत में उचित मात्रा में उर्वरकों का इस्तेमाल करें.

* पालक व मैथी की हर 15-20 दिन बाद कटाई करते रहें. इस तरह पत्तेदार सब्जियों की फसल में कीट नियंत्रण के लिए दवा का प्रयोग कम से कम करें.

* आलू की फसल में जब पत्तियां व तने पीले पड़ने लगें तो समझ लें कि आलू की फसल तैयार हो गई है. उस की खुदाई कर सकते हैं. कुछ दिन बाद मिट्टी खोद कर आलू निकाल लें. यह काम आप मजदूरों द्वारा भी करा सकते हैं. इस के अलावा आलू खुदाई मशीन पौटेटो डिगर से भी आलू की खुदाई कर सकते हैं. इस के बाद आलू की ग्रेडिंग भी कर सकते हैं. आलू के ढेर को पुआल वगैरह से ढक कर रखना चाहिए, वरना हवापानी के संपर्क में आने पर आलू हरा हो जाता है.

* बागों में साफसफाई का खास ध्यान रखें. गुड़ाई, काटछांट, खाद वगैरह देने का काम जनवरी माह में कर सकते हैं. कटाईछंटाई में पुरानी बीमार व सूखी टहनियां निकाल दें और फफूंदनाशक दवा 0.3 फीसदी कौपर औक्सीक्लोराइड का स्पे्र करें. पौधों के थालों यानी थमलों की भी साफसफाई व मरम्मत करें.

* जनवरी माह में अंगूर, आड़ू, अलुचा, अनार व नाशपाती के पेड़ लगाने के लिए अच्छा समय है. पेड़ लगाने के समय दीमक नियंत्रण जरूर करें.

* फूलगोभी, पत्तागोभी व गांठगोभी इस समय तैयार हो चुकी होती है, अच्छी तरह से कटाईछंटाई कर के मंडी में भेजें व आगे के लिए बीज बनाने के लिए सेहतमंद पौधों का चुनाव करें. इन के आसपास से खरपतवार हटा दें.

* इस समय प्याज रोपाई का भी अच्छा समय है. प्याज रोपने के बाद उस की सिंचाई करें. लहसुन की फसल की भी उचित निराईगुड़ाई व सिंचाई करें.

* जनवरी माह में अधिक ठंड होने के चलते पशुओं की भी देखभाल जरूरी है. उन्हें सूखी जगह पर रखें और ठंड से बचाव करें व नियमित रूप से संतुलित आहार दें. पशुओं को कृमिनाशक दवाएं देना न भूलें. इस मौसम में पशुओं को गुड़ भी खिलाते रहें.

* मुरगियों को ठंड से बचाने के लिए खास ध्यान दें. मुरगीघरों में बिछावन को गीला न होने दें. अधिक ठंड के समय बिजली के बल्बों को जला कर रखें.

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* इस के अलावा अगर पशुओं में कोई समस्या दिखे तो पशु विशेषज्ञ डाक्टर से उचित सलाह लें.

* वर्मी कंपोस्ट बनाने के लिए उचित तापमान 28 डिगरी सैंटीग्रेड है, लेकिन इसे पूरे साल बनाए रखा जा सकता है. सर्दियों में जब खेत पर काम कम होता है और पशुशाला का कूड़ाकरकट व गोबर काफी मात्रा में उपलब्ध रहता है, तो केंचुओं की मदद से उच्च गुणवत्ता का वर्मी कंपोस्ट बना सकते हैं. इस से मिट्टी की सेहत सुधरेगी व पैदावार में बढ़ोतरी होगी.

सेहत का खजाना है लहसुन

क्या आप जानते हैं, दाल  और सब्जी में तड़का लगाने के लिए इस्तेमाल होने वाला लहसुन कई गुणों का खान है. खाने में स्वाद लाने के साथ-साथ यह बीमारियों को दूर भगाने का काम भी करता है. लहसुन से होने वाले लाभ और इसके चिकित्सीय गुणों की चर्चा सदियों से होते आ रही हैं. कई शोध और अध्ययन से पत्ता चलता हैं कि हमारे देश में लहसुन का इस्तेमाल आज से करीब 5000 वर्ष पहले से होते आ रही हैं, आर्युवेद में भी लहसुन से उपचार के बातों का उल्लेख मिलता है. कहा जाता हैं कि लहसुन  रसोई में उपस्थित होने के साथ-साथ दवाखाने में भी उपस्थित रहता हैं. कई लोग जानकारी के अभाव में केवल इसके गंध के कारण इस से परहेज करते है. इसके नियमित उपयोग से कई बीमारिया और परेशानियां पल में दूर हो जाती हैं. तो आईए जानते हैं, कि लहसुन अपने किन औषधीय गुणों के सेहत का खजाना है.

  • लहसुन की एक कली का प्रतिदिन सेवन से मानव शरीर को विटामिन ए, बी और सी के साथ आयोडीन, आयरन, पोटेशियम, कैल्शियम और मैग्नीशियम जैसे कई पोषक तत्व एक साथ मिलते हैं.
  • सर्दी के मौसम में होने वाले सर्दी, जुकाम और कफ बनने की समस्या से राहत पाने के लिए नियमित रूप से लहसुन का सेवन फायदेमंद माना गया है.

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  • उच्च रक्तचाप वालो के लिए लहसुन काफी उपयोगी होता है. लहसुन में पाया जाने वाला सल्फाइड्स रक्तचाप को कम करने में मदद करता है. वे सल्फाइड्स लहसुन को पकाने के दौरान भी नष्ट नहीं होते हैं.
  • वायरस और बैक्टीरिया से बचने के लिए ताजा लहसुन खाना ही फायदेमंद होता है. इसके एंटीबैक्टीरियल गुण इन्फेक्शन से लडने में मदद करते हैं.
  • कैंसर के उपचारऔर बचाव में लहसुन की महत्वपूर्ण भूमिका है. कई चिकित्सीय  शोध में बताया गाया हैं कि जो लोग नियमित लहसुन का सेवन करते है उन्हे कैंसर होने की आशंका बेहद कम होती है.

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  • कौलेस्ट्रोल की समस्या से पीडि़त लोगों के लिए लहसुन का नियमित सेवन अमृत साबित हो सकता है. षोधो में यह पुष्टि हो चुका है कि लगातार चार हफ्ते तक लहसुन खाने से कौलेस्ट्रोल का स्तर 12 प्रतिशत तक कम हो जाता है.
  • आंखों की रोशनी के लिए भी लहसुन लाभदायक माना जाता है.
  • हृदय संबंधी विकारों को कम करने के लिए लहसुन को भोजन में शामिल करना जरूरी माना जाता है.

निखरी त्‍वचा पाने के लिए अपनाएं ये 4 खास टिप्स

आप निखरी त्‍वचा पाने के लिए बहुत सारे क्रीम, लोशन और कई तरह के चीजों का इस्तेमाल करती हैं. पर क्या आप जानती हैं कि त्वचा को सुंदर और कोमल बनाने के लिए खान-पान की चीजों पर भी ध्यान देना जरूरी है. तो चलिए जानते  हैं आप निखरी त्वचा पाने के लिए क्या करें.

त्‍वचा को निखारने के उपाय

डार्क चौकलेट – चौकलेट में फ्लैवलाएड्स नाम के एंटी-एजिंग और एंटीऔक्सिडेंट्स पाए जाते हैं जो फ्री-रैडिकल्स से लड़कर आपकी त्वचा को अल्ट्रावायलेट  किरणों से होने वाले नुकसान से बचाते हैं. साथ ही ये झुर्रियों, और स्किन डिसकलरेशन को रोकती है. तो आप निखरी त्वचा पाने के लिए डार्क चौकलेट भी खा सकती हैं.

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पालक: पालक में प्रचुर मात्रा में बीटा कैरोटीन, विटामिन B, C, E, पोटैशियम, कैल्शियम, आयरन, मैग्नीशियम और ओमेगा-3 फैटी ऐसिड्स पाए जाते हैं जो बढ़ती उम्र की परेशानियों को कम करने में मदद करते हैं. इसमें मौजूद फैटी एसिड्स बालों की चमक को भी बनाए रखते हैं.

दही: दही में गुड बैक्टीरिया पाए जाते हैं जो एक्ने से छुटकारा दिलाते हैं, झाइयां और दाग-धब्बे कम करने में मदद करता है.

अखरोट: अखरोट में भारी मात्रा में ओमेगा-3 फैटी एसिड्स पाए जाते हैं जो त्वचा को हेल्दी रखता है.

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ऐसे बनाएं कौर्न पुलाव

कौर्न पुलाव एक बहुत ही आसान रेसिपी है,  यह ए​क कम्पलीट ​मील है. बासमती चावल में कौर्न के दाने और मसाले डालकर इसे बनाया जाता है.

सामग्री

बासमती चावल (250 ग्राम)

कौर्न के दाने (80 ग्राम)

जैतून का तेल (2 टी स्पून)

प्याज (1)

अदरक लहसुन का पेस्ट (1 टी स्पून)

नमक (1 टी स्पून)

हरी मिर्च (4)

जीरा (5 ग्राम)

तेजपत्ता (1)

कालीमिर्च (1/2 टी स्पून)

लौंग (8)

गर्म पानी (2 कप)

हरा धनिया, टुकड़ों में कटा हुआ (3 टेबल स्पून)

नींबू का रस (2 टेबल स्पून)

शिमला मिर्च ( टुकड़ों में कटा हुआ)

नारियल, (कद्दूकस)

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बनाने की वि​धि

बासमती चावल को धोकर 15 से 20 मिनट के लिए पानी में भिगो दें.

नारियल में हरी मिर्च, हरा धनिया डालकर पीस लें और एक पेस्ट बना लें.

एक पैन लें और इसमें जैतून का तेल डालें.

एक बार जब तेल गर्म हो जाएं तो इसमें जीरा, लौंग, तेजपत्ता, कालीमिर्च, प्याज, लम्बाई में कटी हरी मिर्च, अदरक लहसुन का पेस्ट और नारियल पेस्ट डालें.

इसे अच्छे से भूनें और इसमें कौर्न के दाने डालें.

चावल का पानी निकाल लें और इन्हें पैन में डालकर लगातार चलाएं.

इसमें गर्म पानी डालें, थोड़ा सा नमक डालकर 15 मिनट के लिए पकाएं.

एक बार जब चावल 3/4 तक पक जाए तो इसमें नींबू का रस डालें.

इसे भुनी हुई पीली शिमला मिर्च, कददूकस किए हुए नारियल और हरा धनिए से गार्निश करें.

इसे खीरे के रायते के साथ सर्व करें.

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कामयाब : भाग 1

हमेशा जिंदादिल और खुशमिजाज रमा को अंदर आ कर चुपचाप बैठे देख चित्रा से रहा नहीं गया, पूछ बैठी, ‘‘क्या बात है, रमा…?’’

‘‘अभिनव की वजह से परेशान हूं.’’

‘‘क्या हुआ है अभिनव को?’’

‘‘वह डिपे्रशन का शिकार होता जा रहा है.’’

‘‘पर क्यों और कैसे?’’

‘‘उसे किसी ने बता दिया है कि अगले 2 वर्ष उस के लिए अच्छे नहीं रहेंगे.’’

‘‘भला कोई भी पंडित या ज्योतिषी यह सब इतने विश्वास से कैसे कह सकता है. सब बेकार की बातें हैं, मन का भ्रम है.’’

‘‘यही तो मैं उस से कहती हूं पर वह मानता ही नहीं. कहता है, अगर यह सब सच नहीं होता तो आर्थिक मंदी अभी ही क्यों आती… कहां तो वह सोच रहा था कि कुछ महीने बाद दूसरी कंपनी ज्वाइन कर लेगा, अनुभव के आधार पर अच्छी पोस्ट और पैकेज मिल जाएगा पर अब दूसरी कंपनी ज्वाइन करना तो दूर, इसी कंपनी में सिर पर तलवार लटकी रहती है कि कहीं छटनी न हो जाए.’’

‘‘यह तो जीवन की अस्थायी अवस्था है जिस से कभी न कभी सब को गुजरना पड़ता है, फिर इस में इतनी हताशा और निराशा क्यों? हताश और निराश व्यक्ति कभी सफल नहीं हो सकता. जीवन में सकारात्मक ऊर्जा लाने के लिए सोच भी सकारात्मक होनी चाहिए.’’

‘‘मैं और अभिजीत तो उसे समझासमझा कर हार गए,’’ रमा बोली, ‘‘तेरे पास एक आस ले कर आई हूं, तुझे मानता भी बहुत है…हो सकता है तेरी बात मान कर शायद मन में पाली गं्रथि को निकाल बाहर फेंके.’’

‘‘तू चिंता मत कर,’’ चित्रा बोली, ‘‘सब ठीक हो जाएगा… मैं सोचती हूं कि कैसे क्या कर सकती हूं.’’

घर आने पर रमा द्वारा कही बातें चित्रा ने विकास को बताईं तो वह बोले, ‘‘आजकल के बच्चे जराजरा सी बात को दिल से लगा बैठते हैं. इस में दोष बच्चों का भी नहीं है, दरअसल आजकल मीडिया या पत्रपत्रिकाएं भी इन अंधविश्वासों को बढ़ाने में पीछे नहीं हैं. अगर ऐसा नहीं होता तो विभिन्न चैनलों पर गुरुमंत्र, आप के तारे, तेज तारे, ग्रहनक्षत्र जैसे कार्यक्रम प्रसारित न होते तथा पत्रपत्रिकाओं के कालम ज्योतिषीय घटनाओं तथा उन का विभिन्न राशियों पर प्रभाव से भरे नहीं रहते.’’

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विकास तो अपनी बात कह कर अपने काम में लग गए पर चित्रा का किसी काम में मन नहीं लग रहा था. बारबार रमा की बातें उस के दिलोदिमाग में घूम रही थीं. वह सोच नहीं पा रही थी कि अपनी अभिन्न सखी की समस्या का समाधान कैसे करे. बच्चों के दिमाग में एक बात घुस जाती है तो उसे निकालना इतना आसान नहीं होता.

उन की मित्रता आज की नहीं 25 वर्ष पुरानी थी. चित्रा को वह दिन याद आया जब वह इस कालोनी में लिए अपने नए घर में आई थी. एक अच्छे पड़ोसी की तरह रमा ने चायनाश्ते से ले कर खाने तक का इंतजाम कर के उस का काम आसान कर दिया था. उस के मना करने पर बोली, ‘दीदी, अब तो हमें सदा साथसाथ रहना है. यह बात अक्षरश: सही है कि एक अच्छा पड़ोसी सब रिश्तों से बढ़ कर है. मैं तो बस इस नए रिश्ते को एक आकार देने की कोशिश कर रही हूं.’

और सच, रमा के व्यवहार के कारण कुछ ही समय में उस से चित्रा की गहरी आत्मीयता कायम हो गई. उस के बच्चे शिवम और सुहासिनी तो रमा के आगेपीछे घूमते रहते थे और वह भी उन की हर इच्छा पूरी करती. यहां तक कि उस के स्कूल से लौट कर आने तक वह उन्हें अपने पास ही रखती.

रमा के कारण वह बच्चों की तरफ से निश्ंिचत हो गई थी वरना इस घर में शिफ्ट करने से पहले उसे यही लगता था कि कहीं इस नई जगह में उस की नौकरी की वजह से बच्चों को परेशानी न हो.

विवाह के 11 वर्ष बाद जब रमा गर्भवती हुई तो उस की खुशी की सीमा न रही. सब से पहले यह खुशखबरी चित्रा को देते हुए उस की आंखों में आंसू आ गए. बोली, ‘दीदी, न जाने कितने प्रयत्नों के बाद मेरे जीवन में यह खुशनुमा पल आया है. हर तरह का इलाज करा लिया, डाक्टर भी कुछ समझ नहीं पा रहे थे क्योंकि हर जांच सामान्य ही निकलती… हम निराश हो गए थे. मेरी सास तो इन पर दूसरे विवाह के लिए जोर डालने लगी थीं पर इन्होंने किसी की बात नहीं मानी. इन का कहना था कि अगर बच्चे का सुख जीवन में लिखा है तो हो जाएगा, नहीं तो हम दोनों ऐसे ही ठीक हैं. वह जो नाराज हो कर गईं, तो दोबारा लौट कर नहीं आईं.’

आंख के आंसू पोंछ कर वह दोबारा बोली, ‘दीदी, आप विश्वास नहीं करेंगी, कहने को तो यह पढ़ेलिखे लोगों की कालोनी है पर मैं इन सब के लिए अशुभ हो चली थी. किसी के घर बच्चा होता या कोई शुभ काम होता तो मुझे बुलाते ही नहीं थे. एक आप ही हैं जिन्होंने अपने बच्चों के साथ मुझे समय गुजारने दिया. मैं कृतज्ञ हूं आप की. शायद शिवम और सुहासिनी के कारण ही मुझे यह तोहफा मिलने जा रहा है. अगर वे दोनों मेरी जिंदगी में नहीं आते तो शायद मैं इस खुशी से वंचित ही रहती.’

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उस के बाद तो रमा का सारा समय अपने बच्चे के बारे में सोचने में ही बीतता. अगर कुछ ऐसावैसा महसूस होता तो वह चित्रा से शेयर करती और डाक्टर की हर सलाह मानती.

धीरेधीरे वह समय भी आ गया जब रमा को लेबर पेन शुरू हुआ तो अभिजीत ने उस का ही दरवाजा खटखटाया था. यहां तक कि पूरे समय साथ रहने के कारण नर्स ने भी सब से पहले अभिनव को चित्रा की ही गोदी में डाला था. वह भी जबतब अभिनव को यह कहते हुए उस की गोद में डाल जाती, ‘दीदी, मुझ से यह संभाला ही नहीं जाता, जब देखो तब रोता रहता है, कहीं इस के पेट में तो दर्द नहीं हो रहा है या बहुत शैतान हो गया है. अब आप ही संभालिए. या तो यह दूध ही नहीं पीता है, थोड़ाबहुत पीता है तो वह भी उलट देता है, अब क्या करूं?’

अगले भाग में पढ़ें- अभिनव में क्यों बदलाव आया ?

4 फरवरी को अंकित सिवाच अपनी प्रेमिका नुपुर भाटिया संग जिम कार्बेट में लेंगे सात फेरे

‘रिश्तो का चक्रव्यूह’’, ‘‘इश्कबाज’’, ‘‘लाल इश्क’’ और ‘‘मनमोहिनी’’जैसे सीरियलों में अभिनय कर चुके टीवी कलाकार अंकित सिवाच अपनी प्रेमिका नुपुर भाटिया के साथ 4 फरवरी को शादी करने जा रहे हैं.सूत्रों के अनुसार अंकित सिवाच और नुपुर भाटिया बचपन से एक दूसरे के साथ हैं. पहले दोनों अच्छे दोस्त थे और फिर इनके बीच प्रेम पनपा. अंकित सिवाच की प्रेमिका और होने वाली पत्नी नुपुर भाटिया एक मल्टीनेशनल कंपनी में सीनियर मार्केटिंग मैनेजर हैं. सूत्रों के अनुसार शादी और शादी से जुडे़ सभी रीति रिवाज जिम कार्बेट में पारिवारिक सदस्यों की मौजूदगी में संपन्न होंगे. उसके बाद अंकित सिवाच और नुपुर अपने दोस्तों के लिए पार्टी का आयोजन मेरठ के अलावा मुंबई में करेंगे.

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शादी की खबर को लेकर जब हमने अंकित सिवाच से बात की, तो अंकित ने अपनी प्रेमिका नुपुर सहित शादी का लेकर कहा- ‘‘नुपुर और मैं किंडरगार्डेन से एक साथ पढ़ते रहे हैं. हम सहपाठी हैं और कम से कम पिछले बीस साल से अच्छे दोस्त हैं .हमने एक साथ काफी लंबा समय बिताया है. हम दोनों के कैरियर में बीच में काफी उतार भी आया. पर जिंदगी के उतर चढ़ाव झेलते हुए एक दूसरे के साथ खड़े रहे हैं,एक दूसरे की कमियों व अच्छाइयों को समझा है. हर परिस्थिति में हम दोनों ने एक दूसरे को अपनाया. बीच में ऐसा भी वक्त आया,जब हम दोनों अलग अलग शहर ही नहीं अलग अलग देश में भी रहे, पर हमारे बीच जुड़ाव बना रहा. अब हम खुश हैं कि हम अपने संबंध को एक नए रिश्ते में बांधने जा रहे हैं. मैं नुपुर के साथ 4 फरवरी को शादी करने के फैसले से बहुत खुश और उत्साहित हूं.’’

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हर रिश्ते की ही तरह अंकित सिवाच और नुपुर भाटिया के रिश्ते में भी कई तरह की दरारें आयीं. पर हर बार यह दोनो और इनका रिश्ता समय की कसौटी पर खरा उतरते हुए मजबूत बनकर सामने आया. खुद अंकित कहते हैं-‘‘एक समय था निजी स्तर पर  हम अपने अपने व्यवसायों के कारण बड़े बदलावों से गुजरे थे. जिस तरह से हमने जीवन को देखा, वह बिलकुल अलग था. हमारे दृष्टिकोण अलग थे. मेरा मानना है कि हर कोई जीवन में उस निम्न चरण को हिट करता है, जो धीरे-धीरे गुजरता है. यह सब इस बात पर निर्भर करता है कि आप इससे कैसे बाहर निकलते हैं. पीछे मुड़कर देखता हूं, तो मुझे लगता है कि हमने जिन उथल-पुथल का सामना किया है, उससे हमारे रिश्ते और मजबूत हुए हैं.”

क्या होता है डोप ?

बीता हुआ साल में डोप एक बार फिर चर्चा में उस समय आ गया जब पूर्व एशियाई रजत पदक विजेता मुक्केबाज सुमित सांगवान पर डोप टेस्ट में नाकाम रहने के कारण राष्ट्रीय डोपिंग निरोधक एजेंसी (नाडा) ने एक साल का प्रतिबंध लगा दिया. उन्हें ओलंपिक क्वालीफायर ट्रायल खेलना था लेकिन उन पर प्रतिबंध तुरंत प्रभाव से लागू हो गया है. आईए जानते हैं क्या होता है डोप ?

डोप यानी वह शक्तिव‌र्द्धक पदार्थ जिसके जरिए खिलाड़ी अपनी मूल शारीरिक क्षमता में इजाफा कर मैदान पर प्रतिद्वंदियों को पीछे छोड़ने का शौर्टकट रास्ता अपनाते हैं. जाहिर है, यह तरीका खेल के मूल सिद्धांत के विपरीत है. लिहाजा, इसे दुनिया के खेल नियामकों ने अवैध ठहराया है. इसके दोषियों को दो साल से लेकर आजीवन प्रतिबंध तक की सजा का प्रावधान किया गया है.

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आधुनिक तौर-तरीकों और प्रक्रियाओं से डोपिंग करने वाले खिलाड़ियों का पकड़ा जाना आसान हो गया है, लेकिन खेलों में डोपिंग कोई नई बात नहीं है. पीछे देखें तो 1904 के ओलंपिक खेलों में इसका पहला मामला सामने आया था, जब पता चला कि मैराथन धावक थौमस हिक ने रेस जीतने के लिए कच्चे अंडे, सिंथेटिक इंजेक्शन और ब्रांडी का शक्तिव‌र्द्धन के लिए इस्तेमाल किया. तब हालांकि इसे लेकर कोई नियम नहीं था, लेकिन 1920 में खेलों में इस तरह की युक्ति पर प्रतिबंध लगाने की दिशा में कड़े कदम उठाए गए. खेल संस्थाओं की बात करें तो अंतरराष्ट्रीय एथलेटिक्स महासंघ पहली अंतरराष्ट्रीय खेल संस्था थी, जिसने 1928 में डोपिंग पर नियम बनाए और इस पर प्रतिबंध लगाया. 1966 में अंतरराष्ट्रीय ओलंपिक समिति (आइओसी) ने एक मेडिकल काउंसिल की स्थापना की. इसका काम डोप टेस्ट करना था. 1968 के ओलंपिक खेलों में पहली बार डोप टेस्ट अमल में आए. आगे समस्या यह आई कि जैसे-जैसे ‘डोप एलीमेंट्स’ को चिन्हित किया जाने लगा, खिलाड़ियों ने नए-नए डोप एलीमेंट्स अपनाने शुरू कर दिए. लिहाजा, टेस्ट के तरीकों को भी अपडेट करना पड़ा और 1974 तक डोप टेस्ट का बेहद सटीक और प्रमाणिक तरीका अस्तित्व में आ गया. तब तक प्रतिबंधित तत्वों की सूची भी काफी लंबी हो चुकी थी और ऐसे तमाम तत्व इस सूची में दर्ज किए जा चुके थे, जो डोपिंग के अंतर्गत आते हैं. डोप टेस्ट प्रयोगशालाएं भी आधुनिक होती चली गईं और टेस्ट के तरीके भी. 1988 के सियोल ओलंपिक में 100 मीटर दौड़ के चैंपियन बेन जौनसन को जब प्रतिबंधित तत्व (स्टेनोजोलोल एनाबॉलिक स्टेरौयड) के सेवन का दोषी पाया गया, तब दुनिया का ध्यान पहली बार सख्त हो चुकी एंटी-डोपिंग मुहिम की ओर गया.

खेलों में डोपिंग कोई नई बात नहीं है. पीछे देखें तो 1904 के ओलंपिक खेलों में इसका पहला मामला सामने आया था, जब पता चला कि मैराथन धावक थॉमस हिक ने रेस जीतने के लिए कच्चे अंडे, सिंथेटिक इंजेक्शन और ब्रांडी का शक्तिव‌र्द्धन के लिए इस्तेमाल किया. तब हालांकि इसे लेकर कोई नियम नहीं था, लेकिन 1920 में खेलों में इस तरह की युक्ति पर प्रतिबंध लगाने की दिशा में कड़े कदम उठाए गए.

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किसी भी खिलाड़ी का कभी भी डोप टेस्ट किया जा सकता है. इसके लिए संबंधित खेल संघों को भी जिम्मेदारी सौंपी गई है. किसी प्रतियोगिता से पहले या प्रशिक्षण शिविर के दौरान डोप टेस्ट अक्सर किए जाते हैं. ये टेस्ट नाडा या फिर वाडा, दोनों की ओर से कराए जा सकते हैं. इसके लिए टेस्ट सैंपल लेने वाली टीम फील्ड वर्क करती है. वह खिलाड़ियों के मूत्र के नमूने वाडा-नाडा की विशेष प्रयोगशाला में पहुंचा देती है. नाडा की प्रयोगशाला दिल्ली में स्थित है. यह भारतीय उपमहाद्वीप में स्थित एकमात्र डोप टेस्ट प्रयोगशाला है. नमूना एक बार ही लिया जाता है जबकि टेस्ट दो चरण में होते हैं. पहले चरण को ए और दूसरे को बी कहते हैं. ए टेस्ट में पॉजीटिव पाए जाने पर खिलाड़ी को निलंबित (खेल गतिविधियों में भाग लेने पर प्रतिबंध) कर दिया जाता है. तब यदि खिलाड़ी चाहे तो बी टेस्ट के लिए एंटी डोपिंग अपील पैनल में अपील कर सकता है. उसकी अपील के बाद उसके उसी नमूने की दोबारा जांच होती है. यदि बी टेस्ट भी पॉजीटिव आ जाए तो अनुशासन पैनल खिलाड़ी पर प्रतिबंध लगा देता है

‘अंधाधुंध’ फेम की अभिनेत्री, रश्मि अगड़ेकर अपने लेटेस्ट शो में रित्विक सहोरे के साथ रोमांस करेंगी

बौलीवुड एवं डिजिटल दुनिया के लिए नया चेहरा, रश्मि औनस्क्रीन दी गई अपनी बेहतरीन परफौर्मेंस से लोगों का दिल जीत चुकी हैं. वो अनेक वेब सीरीज और टीवी कमर्शियल्स का हिस्सा रह चुकी हैं. टीएसपी की लेटेस्ट सीरीज में वो अनन्या का किरदार निभा रही हैं. यह युवा एवं दृढ़निश्चित लड़की सीरीज के मुख्य पुरुष किरदार के साथ रिलेशनशिप में है. एक दूसरे की टांग खींचने से लेकर अजीबोगरीब स्थितियों से बचने और बेबाक बातचीत करने तक यह जेन जैड युगल अपनी बेहतरीन आन-स्क्रीन केमिस्ट्री से इंटरनेट की दुनिया में हलचल मचा रहा है.

अपने लेटेस्ट शो के बारे में रश्मि ने बताया कि अपने को-स्टार रित्विक सहोरे के साथ काम करने का उनका अनुभव कैसा रहा. बहुआयामी प्रतिभा वाले रित्विक के साथ काम करने के बारे में रश्मि ने कहा, ‘‘टीवीएफ की पूरी टीम के साथ शूटिंग का अनुभव बहुत सुगम था. हर दृश्य बहुत मजेदार था. रित्विक और मैं शो से पहले से ही एक दूसरे को जानते थे. इसलिए हमारे किरदारों को निभाना अजीब नहीं लगा. बल्कि इशान एवं अनन्या के बीच की केमिस्ट्री बाहर लाने के लिए हमें अजीब अभिनय करना पड़ा. उसके साथ काम करने का अनुभव बहुत अच्छा था. वह बहुत धैर्यशाली और सौहार्द्रपूर्ण है. हमारे बीच बेहतरीन बौन्ड है, जिसके कारण व्यक्तिगत एवं व्यवसायिक स्तर पर बातचीत करना काफी आसान है.’’

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बेहतरीन केमिस्ट्री के साथ यह निराला युगल टीएसपी की अजीब बातचीत द्वारा उन विलक्षण स्थितियों को दिखा रहा है, जिनसे जेन जैड युगल गुजरते हैं. इस शो की शानदार कास्ट में आकाशदीप अरोड़ा, सिमरन नाटेकर, सुनाक्षी ग्रोवर, प्रणति राय प्रकाश आदि हैं.

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एक मुलाकात ऐसी भी : भाग 1

मौल में पहुंचे ही थे कि मिशिका को उस के फ्रेंडस सामने दिख गए और वह मुझे तेजी से बायबाय कह कर उन के साथ हो ली. वह नोएडा के एमिटी कालिज से इंजीनियरिंग कर रही है. उस के सभी मित्रों को अच्छी कैंपस प्लेसमेंट मिल गई थी सो इसी खुशी में उस के ग्रुप के सभी साथी यहां पिज्जा हट में खुशियां मना रहे थे.

नोएडा का यह मशहूर जीआईपी यानी ‘गे्रट इंडिया प्लेस’ मौल युवाओं का पसंदीदा स्थान है. हम गाजियाबाद में रहते हैं. मिशिका अकेले ही रोज गाजियाबाद से कालिज आती है मगर इस तरह पार्टी आदि में जाना हो तो मैं या उस के पापा साथ आते हैं. यों अकेले तैयार हो कर बेटी को घूमनेफिरने जाने देने की हिम्मत नहीं होती. एक तो उस के पापा का जिला जज होना, पता नहीं कितने दुश्मन, कितने दोस्त, दूसरे आएदिन होने वाले हादसे, मैं तो डरी सी ही रहती हूं. क्या करूं? आखिर मां हूं न…

बच्चे अपने मातापिता की भावनाओं को कहां समझ पाते हैं. उन्हें तो यही लगता है कि हम उन की आजादी पर रोक लगा रहे हैं. कई बार मिशिका भी बड़ी हाइपर हुई है इस बात को ले कर कि ममा, आप ने तो मुझे अभी तक बिलकुल बच्चा बना कर रखा है. अब मैं बड़ी हो गई हूं. अपना ध्यान रख सकती हूं. अब उस नादान को क्या समझाएं कि मातापिता के लिए तो बच्चे हमेशा बच्चे ही रहते हैं. चाहे वे कितने भी बड़े क्यों न हो जाएं.

हां, मेरी तरह शायद जज साहब से वह इतना कुछ नहीं कह पाती. उन की लाडली, सिर चढ़ी जो है. जो बात मनवानी होती है, मनवा ही लेती है. बात तो शायद मैं भी उस की मान ही लेती हूं लेकिन उसे बहुत कुछ समझाबुझा कर, जिस से वह मुझ से खीझ सी जाती है.

अब क्या करूं, जब मुझे इस तरह के आधुनिक तौरतरीके पसंद नहीं आते तो. मैं तो हर बार इसे ही तरजीह देती हूं कि वह अपने पापा के संग ही आए. दोनों बापबेटी के शौकमिजाज एक से हैं. कितनी ही देर मौल में घुमवा लो, दोनों में से कोई पहल नहीं करता घर चलने की. मैं भी कभीकभी बस फंस ही जाती हूं. जैसे आज वह नहीं वक्त निकाल पाए. कोर्ट में कुछ जरूरी काम था.

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मैं थोड़ी देर तक यों ही एक दुकान से दूसरी दुकान में टहलती रही. खरीदारी तो वैसे भी मुझे कुछ यहां करनी नहीं होती है. वह तो मैं हमेशा अपने शहर की कुछ चुनिंदा दुकानों से ही करती हूं. सरकारी गाड़ी में अर्दलियों और सिपाहियों के संग रौब से जाओ और बस, रौब से वापस आ जाओ. सामान में कोई कमी हो तो चाहे महीने भर बाद दुकान पर पटक आओ. यहां मौल में, इतनी भीड़ में किस को किस की परवा है, कौन पहचान रहा है कि जज की बीवी शौपिंग कर रही है या कोई और. शायद इतने सालों से इसी माहौल की आदी हो गई हूं और कुछ अच्छा ही नहीं लगता.

खैर समय तो गुजारना ही था. यों ही बेमतलब घूमते रहने से थकान सी भी होने लगी थी. घड़ी पर नजर डाली तो बस, आधा घंटा ही बीता था. सोचतेविचरते मैं मैकडोनाल्ड की तरफ आ गई. कार्य दिवस होने के बावजूद वहां इतनी भीड़ थी कि बस, लगा कालिज बंक कर के सब बच्चे यहीं आ गए हों. माहौल को देख कर मिशिका का खयाल फिर दिलोदिमाग पर छा गया कि पता नहीं, यह क्या मौलवौल में पार्टी करने का प्रचलन हो गया है. अरे, तसल्ली से घर में मित्रों को बुलाओ, खूब खिलाओपिलाओ, मौजमस्ती करो, कोई मनाही थोड़े ही है.

थोड़ी देर में ही सही, मेरा भी कौफी का नंबर आ ही गया था. कौफी और फ्रेंचफ्राइज ले कर भीड़ से बचतेबचाते मैं एक खाली सीट पर जा कर बैठ गई और अपने चारों तरफ देखती कौफी का सिप भरती जा रही थी.

तभी मेरे पास एक बड़ी स्मार्ट सी महिला आईं और खाली पड़ी सीट की ओर इशारा कर बोलीं, ‘‘क्या मैं यहां बैठ सकती हूं?’’

‘‘हांहां. क्यों नहीं…आप चाहें तो यहां बैठ सकती हैं,’’ इतना कहने के साथ ही मेरी इधरउधर की सोच पर वर्तमान ने बे्रक लगा दिया.

मैं उस संभ्रांत महिला को कौफी पीतेपीते देखती रही. उस ने कांजीवरम की भारी सी साड़ी पहन रखी थी. उसी से मेल खाता खूबसूरत सा कोई नैकलेस डाल रखा था. पर्स भी उस के हाथ में बहुत सुंदर सा था. कुल मिला कर वह हाइसोसाइटी की दिख रही थी.

मुझ से रहा नहीं गया. अटपटा सा लग रहा था कि उस के सामने मैं फे्रंचफ्राइज का मजा अकेले ही ले रही थी और वह सिर्फ कौफी ले कर बैठी थी. संकोच छोड़ मैं ने अपने चिप्स उस की ओर बढ़ाते हुए कहा, ‘‘अकेले ही शौपिंग हो रही है…’’

अपने होंठों पर हलकी सी हंसी ला कर वह बोलीं, ‘‘शौपिंग नहीं, आज तो अपने बेटे के संग आई हूं. दरअसल, आज बच्चों की गेटटूगेदर है. मेरे पति रिटायर्ड आई.ए.एस. हैं. यहीं सेक्टर 30 में हमारा छोटा सा घर है. पति तो अपनी ताशमंडली में व्यस्त रहते हैं और मैं बस, कभी क्लब, कभी किटी और कभी समाज- सेवा…रिटायर होने के बाद कहीं न कहीं तो अपने को व्यस्त रखना ही पड़ता है न.’’

‘‘आज मेरा छोटा बेटा समर्थ बोला कि ममा, मेरे संग मौल चलिए, आप को अच्छा लगेगा. सो आज यहां का कार्यक्रम बना लिया,’’ उस ने दोचार फ्रेंचफ्राइज बिना किसी झिझक के उठाते हुए बताया.

हम समझ गए थे कि हमारे बच्चे एक ही ग्रुप में हैं. थोड़ी देर में ही हम सहज हो क र बातें करने लगे. कुछ अपने परिवार के बारे में वह बता रही थीं और कुछ मैं. बीचबीच में हम खानेपीने की चीजें भी मंगाते जा रहे थे. अब किसी के संग रहने से अच्छा लगने लगा था. बातोंबातों में ही पता चला कि उन के 2 बेटे थे. छोटा समर्थ, मिशिका के संग पढ़ रहा था और बड़ा पार्थ इंजीनियरिंग के बाद पिछले साल सिविल सर्विस में सिलेक्ट हो गया था. इस समय लाल बहादुर शास्त्री एकेडमी, मसूरी में उस की टे्रनिंग चल रही थी.

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मैं ने सोचा कि बापबेटा दोनों आईएएस. शुरू में ही मुझे लग गया था कि मेरी तरह यह महिला कोई ऊंची हस्ती है.

उन का बेटा आईएएस है और जल्दी ही वह उस की शादी करने की इच्छुक हैं, यह जान कर तो मेरी रुचि उन में और भी बढ़ गई. मैं तो खुद मिशिका के लिए अच्छा वर ढूंढ़ने की कोशिश में थी और एक आईएएस लड़के को अपना दामाद बनाना तो जैसे मेरे ख्वाबों में ही था.

पार्थ के बारे में जान कर मुझे सबकुछ अच्छा लगा था, लेकिन एक अड़चन थी कि वे कायस्थ थे, हमारी तरह ब्राह्मण नहीं थे जो मेरे लिए तो जमीं और आसमान को मिलाने वाली बात थी. अपनी इकलौती बेटी की गैर जाति में शादी करना मेरी सोच में कहीं दूरदूर तक नहीं था. एक तरह से तो मैं इस तरह के विवाह के बिलकुल खिलाफ थी.

अगले भाग में पढ़ें- अंतरा अपनी बुआ से क्यों गुस्सा थी ?

एक मुलाकात ऐसी भी : भाग 2

मेरा मानना था कि अपनी जाति, अपने धर्म के लोगों के बीच ही शादीब्याह जैसे रिश्ते करने चाहिए ताकि दोनों एकदूसरे से, परिवारों से, आपसी समझ और तालमेल बैठा सकें और सुखी संसार बसा सकें. मुझे हमेशा से ही यह अनुभव होता था कि इस के विपरीत शादियां कभी सुखद और सफल नहीं होतीं. शुरूशुरू में तो सब ठीकठाक चलता है, पर कुछ समय बाद कहीं तलाक होता है, तो कहीं जबरदस्ती रिश्तों को ढोया जाता है. यहां तक कि अपने परिवारों में होने वाली कई इस तरह की शादियों में मैं ने अपना पूरा विरोध जाहिर किया था.

ऐसा नहीं है कि जातिबिरादरी में शादियां कर के किसी तरह की टेंशन नहीं होती है या इस तरह की शादियां टूटती नहीं हैं, फिर भी काफी हद तक इन झमेलों से बचा जा सकता है और मेरे अनुभवों ने मुझे यही सिखाया है कि जब एक हाथ की पांचों उंगलियां बराबर नहीं होतीं तो यह तो समाज की सोच है जो न कभी एक हुई है और न ही होगी.

इन सभी बातों में जज साहब और मेरे विचार एक से नहीं हैं तो औरों की क्या कहूं. कई बार उन्होंने अपनी बातों से मुझे भी समझाने की कोशिश की है, मगर मैं कभी इतने बड़े दिल की हो नहीं पाई.

पिछले साल मैं ने अपना यह विरोध अपने भैया पर थोप दिया था. जब उन्होंने बताया कि वह अंतरा यानी मेरी भतीजी की शादी एक ईसाई लड़के से तय कर रहे हैं. दोनों एकदूसरे को जहां बहुत चाहते हैं, वहीं लड़का और उस का परिवार सबकुछ बहुत बढि़या है. हम लोगों को बच्चों की खुशी के अलावा और क्या चाहिए.

तब भैया की बात सुन कर मैं ने बवंडर मचा दिया था. ‘आप ने तो भैया हद ही कर दी. बच्चों की जिदें क्या यों ही आंखें मूंद कर पूरी की जाती हैं? ईसाई लड़के से विवाह करोगे अपनी अंतरा का? चार दिन भी नहीं निभा पाएगी वह इस अलग जाति और धर्म के लड़के के संग… और फिर कर लो जो आप की मर्जी हो, मैं तो इस गलत शादी में आने से रही.’ मेरी बातों के आक्रोश ने भैया को भयभीत कर दिया और उन्होंने यह कह कर उस रिश्ते को टाल दिया कि इकलौती छोटी बहन ही शादी में शरीक नहीं होगी तो दुनिया क्या कहेगी?

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उस दिन के बाद से अंतरा  अपने पापा से बात कर रही है और न मुझ से. एक दिन गुस्से में आ कर वह अपनी भड़ास निकाल गई थी, ‘‘बूआ, आप ने मेरा प्यार, मेरी जिंदगी मुझ से छीन ली. हम सब ने हमेशा आप को इतना प्यारसम्मान और स्नेह दिया, उस का यह सिला दिया आप ने. कल को आप को अपनी मिशिका की ऐसे ही किसी लड़के से शादी करनी पड़ी तब मैं देखूंगी कि कैसे आप जाति और धर्म का भेदभाव कर उस का दिल तोड़ पाती हैं.’’

उस की आंखों में भरे हुए आंसू और अपने लिए नफरत, आज भी मुझे विचलित कर देते हैं. मुझे इस बात का एहसास बाद में हुआ कि वह उस लड़के के प्यार में इतनी दीवानी है कि उस के बिना किसी और से शादी नहीं करेगी. कभीकभी खुद पर भी बहुत गुस्सा आता है कि मैं ने इस कदर क्यों अपनी इच्छा, अपने विचार भैया पर थोपे, फिर सोचती हूं तो लगता है कि आखिर मैं ने गलत ही क्या किया. वह मेरे अपने थे, अगर अपनों को उन की गलती का एहसास करा दिया तो क्या गलत किया? अंतरा मेरी कोई दुश्मन थोड़े ही थी. खुद भैया को भी पता था कि मैं अंतरा से कितना प्यार करती हूं, पर मुझे उस समय जो सही लगा मैं ने वही किया. अब वही बातें मेरे जेहन में आ रही थीं.

मैकडोनाल्ड की उस मुलाकात ने थोड़े ही समय में दोनों मांओं के बीच एक दोस्ती का सा रिश्ता बना दिया था. अपने- अपने मोबाइल नंबर और अतेपते दे कर हम ने विदा ली थी.

रास्ते भर मैं मिशिका से अपनी इस नई बनी दोस्त की बातें करती रही और वह भी अपनी तरहतरह की बातें मुझे बताती रही. उस के दोस्त की मम्मी के संग मैं आज सारे दिन रही और बोर नहीं हुई, इस से मेरी बेटी बहुत संतुष्ट थी. बोली, ‘‘ममा, आज आप बोर नहीं हुईं. नहीं तो पिछली बार की तरह मुझे सारे रास्ते आप के भाषण सुनने पड़ते. चलो, आगे से जब भी ऐसी कोई पार्टी होगी तो मैं आंटी से कहूंगी कि वह भी आप को कंपनी देने आ जाएं. तब तो ठीक रहेगा न मम्मी. मुझे भी टेंशन नहीं रहेगी कि ममा इतनी देर क्या करेंगी.’’ उस की बात सुन कर मैं मुसकरा पड़ी थी.

घर आने के बाद तरोताजा हो कर मैं बैठी ही थी कि मेरा मोबाइल बज उठा. नंबर देखा तो आज की बनी फें्रड मिसेज सक्सेना का ही था. तुरंत रिसीव किया. ‘‘आप घर पहुंच गईं क्या, मुझे तो आप की बड़ी याद आ रही है. सोच रही हूं कि जल्दी ही किसी रोज गाजियाबाद आ कर आप से मिलूं. आप से मिल कर बातें कर के बहुत अच्छा लगा.’’

‘‘हां, मैं भी बस, आप के बारे में ही सोच रही थी. कभीकभी किसी से अचानक मिलने पर भी ऐसा नहीं लगता कि हम जिंदगी में पहली बार मिले हैं.’’ मैं ने भी उन की बात का जवाब उन्हीं के अंदाज में दे दिया.

थोड़ी देर तक इसी तरह इधरउधर की बातें होती रहीं. फिर पता नहीं मुझे क्या हुआ कि उन्हें अपने घर अगले सप्ताह होने वाली पार्टी के लिए आमंत्रित कर दिया. मौल में श्रीमती सक्सेना से इसीलिए पार्टी में आने को नहीं कहा था कि जज साहब से पूछ कर कहूंगी पर अब जब उन्होंने यह बताया कि मसूरी से इस रविवार को 5 दिन के लिए पार्थ भी आ रहा है, तो बस, उसे देखने की इच्छा दिल में जाग उठी और बोल बैठी, ‘‘अरे, तो आप सब लोग इस रविवार को हमारे घर आइए न. एक छोटी सी पार्टी रखी है. जज साहब को अच्छा लगेगा.’’

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वह भी तुरंत तैयार हो गईं. जैसे आने के लिए बिलकुल तैयार बैठी हों.

शाम को जज साहब कोर्ट से लौटे तो चाय के दौरान मैं ने सबकुछ उन्हें बता दिया और अपने दिल की चाहत भी कह बैठी, ‘‘इतना अच्छा लड़का है. आईएएस है. परिवार भी समझदार और हैसियत वाला है. कायस्थ हैं, क्या ही अच्छा होता कि हमारी तरह वह भी ब्राह्मण होते तो हाथ जोड़ कर उन से मिशिका के लिए उन का पार्थ मांग लेती.’’

मेरे स्वभाव से परिचित जज साहब ने इस बात को जरा भी तूल नहीं दिया. सामान्य भाव से बोले, ‘‘अरे, निशि, जिस रास्ते जाना नहीं, उस बारे में क्या सोचना. जब हम मिशिका के लिए लड़का ढूंढ़ने निकलेंगे तो देखना लड़कों की कोई कमी नहीं आएगी. अभी तो हमारी बेटी का इंजीनियरिंग का ही एक साल बचा है फिर उसे एमबीए भी करना है. अभी कई साल हैं उस की शादी में.’’

मैं ने भी सोचा कि जज साहब सही तो कह रहे हैं. अपनी जाति में भी लड़कों की कोई कमी थोड़े ही है. अभी ऐसी जल्दी भी क्या है. अंतरा की तरह मिशिका का किसी गैर जाति में अफेयर थोड़े ही है, जो मैं इस विषय में सोचूं.

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