बीता हुआ साल में डोप एक बार फिर चर्चा में उस समय आ गया जब पूर्व एशियाई रजत पदक विजेता मुक्केबाज सुमित सांगवान पर डोप टेस्ट में नाकाम रहने के कारण राष्ट्रीय डोपिंग निरोधक एजेंसी (नाडा) ने एक साल का प्रतिबंध लगा दिया. उन्हें ओलंपिक क्वालीफायर ट्रायल खेलना था लेकिन उन पर प्रतिबंध तुरंत प्रभाव से लागू हो गया है. आईए जानते हैं क्या होता है डोप ?
डोप यानी वह शक्तिवर्द्धक पदार्थ जिसके जरिए खिलाड़ी अपनी मूल शारीरिक क्षमता में इजाफा कर मैदान पर प्रतिद्वंदियों को पीछे छोड़ने का शौर्टकट रास्ता अपनाते हैं. जाहिर है, यह तरीका खेल के मूल सिद्धांत के विपरीत है. लिहाजा, इसे दुनिया के खेल नियामकों ने अवैध ठहराया है. इसके दोषियों को दो साल से लेकर आजीवन प्रतिबंध तक की सजा का प्रावधान किया गया है.
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आधुनिक तौर-तरीकों और प्रक्रियाओं से डोपिंग करने वाले खिलाड़ियों का पकड़ा जाना आसान हो गया है, लेकिन खेलों में डोपिंग कोई नई बात नहीं है. पीछे देखें तो 1904 के ओलंपिक खेलों में इसका पहला मामला सामने आया था, जब पता चला कि मैराथन धावक थौमस हिक ने रेस जीतने के लिए कच्चे अंडे, सिंथेटिक इंजेक्शन और ब्रांडी का शक्तिवर्द्धन के लिए इस्तेमाल किया. तब हालांकि इसे लेकर कोई नियम नहीं था, लेकिन 1920 में खेलों में इस तरह की युक्ति पर प्रतिबंध लगाने की दिशा में कड़े कदम उठाए गए. खेल संस्थाओं की बात करें तो अंतरराष्ट्रीय एथलेटिक्स महासंघ पहली अंतरराष्ट्रीय खेल संस्था थी, जिसने 1928 में डोपिंग पर नियम बनाए और इस पर प्रतिबंध लगाया. 1966 में अंतरराष्ट्रीय ओलंपिक समिति (आइओसी) ने एक मेडिकल काउंसिल की स्थापना की. इसका काम डोप टेस्ट करना था. 1968 के ओलंपिक खेलों में पहली बार डोप टेस्ट अमल में आए. आगे समस्या यह आई कि जैसे-जैसे ‘डोप एलीमेंट्स’ को चिन्हित किया जाने लगा, खिलाड़ियों ने नए-नए डोप एलीमेंट्स अपनाने शुरू कर दिए. लिहाजा, टेस्ट के तरीकों को भी अपडेट करना पड़ा और 1974 तक डोप टेस्ट का बेहद सटीक और प्रमाणिक तरीका अस्तित्व में आ गया. तब तक प्रतिबंधित तत्वों की सूची भी काफी लंबी हो चुकी थी और ऐसे तमाम तत्व इस सूची में दर्ज किए जा चुके थे, जो डोपिंग के अंतर्गत आते हैं. डोप टेस्ट प्रयोगशालाएं भी आधुनिक होती चली गईं और टेस्ट के तरीके भी. 1988 के सियोल ओलंपिक में 100 मीटर दौड़ के चैंपियन बेन जौनसन को जब प्रतिबंधित तत्व (स्टेनोजोलोल एनाबॉलिक स्टेरौयड) के सेवन का दोषी पाया गया, तब दुनिया का ध्यान पहली बार सख्त हो चुकी एंटी-डोपिंग मुहिम की ओर गया.