हम में से बहुत कम ही लोग जानते होंगे कि एक ऐसी भी खेती होती हैं, जो ना समतल जमीन पर ना पर्वतीय सीढ़ीनुमा खेती पर और ना ही पठारी भूमि पर यह खेती होती हैं प्रकृति के सबसे अनोखे पादप पेड़ पर. जी हां वृक्ष पर होती हैं अद्भूत खेती जहां उगता हैं लाख.

भारत के छोटानागपुर का इलाके में लाख की खेती सबसे अधिक होती हैं. इसके अलावा भारत के कई जगंलो में पोषक पेड़ पर इसकी खेती होती है.

 लाख की दो प्रजातियां भारत में सदियों से पाई जाती हैं-

1.कुसुम लाख

2.रंगीन लाख

इन दोनों प्रजातियों में कुसुम लाख को उतम माना जाता हैं.

लाख के कीड़े नरम एवं नये डालियो पर बैठना पसंद करते हैं. करीबन 34 हजार लाख कीट मिल कर एक किलो रंगीन लाख उत्पन्न करते हैं और करीबन 14 हजार 4 सौ लाख कीट मिलकर कुसुम लाख उत्पन्न करते हैं. लेकिन लगभग 40 प्रतिशत लाख के कीडों को उनके शत्रु कीडे खा जाते हैं. जिससे लाख उत्पादन की क्षमता पर प्रभाव पड़ता हैं साथ ही लाख के गुणों पर भी प्रभाव पड़ता हैं. इसलिए लाख के कीडों को उसके शत्रु कीट से बचाने के लिए कारगर कदम उठाया जाता हैं.

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वैज्ञानिक भाषा में इसे लेसिफर लाख  कहा जाता हैं. लाख शब्द की उत्पति प्राचीन भाषा संस्कृत से हुई हैं संस्कृत के लक्ष शब्द से उत्पन्न हुआ हैं लाख. आयुवैदिक ग्रंथो में भी लाख के बारे में जिक्र मिलता हैं. इसके साथ ही हमारे कई धार्मिक ग्रंथो में भी इसकी चर्चा मिलती हैं, जैसे महाभारत में लक्षागृह की बात .

कहा जाता हैं कि इस पूरे संसार में लाख ही प्रकृतिक का एक मात्र राल हैं, बाकि सभी राल कृत्रिम हैं . इस प्रकृतिक राल को प्रकृति का वरदान भी कहा जाता हैं. लाख की खेती और लाख संबधित उद्योगो का अतीत प्रचीन काल से ही काफी स्र्वाणिक रहा, लेकिन आज के समय में इस क्षेत्र में बहुत कम लोगो लगे हैं. फिर भी हमारे देश से हजारो किलो टन लाख का निर्यात अमेरिका इंगलैण्ड रुस अरब देशो के साथ कई यूरोपिय देशो में किया जाता हैं.

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घटते कृषि भूमि एवम् बडते जनसंख्या के लिए रोजगार के घटते अवसरों की कमी को लाख के खेती को बढावा देकर काफी हद तक पूरा किया जा सकता है. इसके लिए सरकार को लाख आधारित छोटे.बडे उद्योगो के लिए विशेष योजना बनाकर उसे बढावा देना होगा और जगंलो के वृक्षो पर इसके खेती को बढावा देना होगा. जिससे भविष्य में हम लाख निर्यात देश में पहले स्थान पर आ सकें.

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