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मोहजाल: भाग-2

‘‘अम्माजी, उन्हें क्या पता कि किस समय कौन सी दवा डालनी है.’’

‘‘तुम से तो कुछ कहना ही बेकार है. लो, डालो.’’

शाम को मनोहर को जल्दी आया हुआ देख श्यामाजी बोलीं, ‘‘आज तो तुम बहुत जल्दी आ गए. क्या बात है?’’

‘‘हां, अम्मा. हम ने सोचा, मोहिनी आई है, इन्हें अमीनाबाद की चाट खिला दें और हजरतगंज से शौपिंग करवा दें.

‘‘और अम्मा, आप को आंख से अब साफ दिख रहा है? अब तो चश्मा भी आप का बन कर कल आ जाएगा.’’

‘‘नहीं बेटा. धुंधलाधुंधला ही दिखता है.’’

‘‘डाक्टर साहब तो कह रहे थे कि माताजी की आंख की रोशनी बहुत अच्छी आई है.’’

‘‘तुम उन्हीं की बात मानो. हमारा क्या है?’’ श्यामाजी ने नाराजगी दिखाते हुए मुंह फेर कर करवट ले ली.

मनोहर लडि़याते हुए अम्मा का पैर दबाते हुए बोला, ‘‘मेरी अच्छी अम्मा, आप नाराज मत हुआ करो.’’

मनोहर ने बहन मोहिनी को आवाज दी, ‘‘मोहिनी, जल्दी आओ.’’

मोहिनी और मानसी दोनों तैयार हो कर आ गईं. श्यामाजी ने कनखियों से उन लोगों पर निगाह मार ली थी.

‘‘मंजरी कहां है?’’

मानसी बोली, ‘‘वह कह रही है मुझे पढ़ना है.’’

‘‘ठीक है, वह अम्मा के पास रहेगी. इसी कमरे में पढ़ेगी.’’

‘‘जी, अच्छा.’’

मानसी बोली, ‘‘अम्मा, आप के लिए कुछ लाना है तो बता दीजिए.’’

‘‘न, मुझे कुछ नहीं चाहिए.’’

उन लोगों के जाते ही मंजरी दादी के कमरे में आ गई. श्यामाजी ने मंजरी से टीवी चलाने को कहा और आराम से सीरियल का आनंद उठाने लगीं.

‘‘दादी, आप तो कह रही थीं कि मुझे धुंधला दिखता है, फिर टीवी कैसे देख रही हैं?’’

मंजरी की बात अनसुनी कर के श्यामाजी दत्तचित्त हो कर टीवी में मग्न रहीं.

थोड़े समय बाद बाहर से हंसतीखिलखिलाती मोहिनी मानसी के आने की आहट सुनते ही उन्होंने आंख लग जाने का अभिनय किया.

जम्हाई लेते हुए घड़ी पर निगाह डालते हुए बोलीं, ‘‘कितने बज गए. बड़ी जल्दी आ गईं. सारा बाजार ही खरीद लाईं क्या?’’

मोहिनी प्रसन्न मन से बोली, ‘‘भैयाभाभी माने ही नहीं. 5 साडि़यां तो मुझे ही दिला दीं. चीनानीना के लिए जींसटौप और मदनजी के लिए भी सूट दिलवा दिया.’’

श्यामाजी धीरे से बोलीं, ‘‘महारानीजी अपने लिए कितनी साडि़यां लाई हैं.’’

‘‘अम्मा, तुम भी, भाभी ने तो अपने लिए एक भी नहीं ली है. भैया इतना कहते रहे, लेकिन उन्होंने कह दिया कि मेरे पास बहुत सारी नई रखी हैं. मैं अभी नहीं लूंगी.’’

‘‘कुछ नहीं, तुम्हारे सामने दिखावा कर रही थी.’’

‘‘अम्मा, तुम कब समझोगी कि भाभी बहुत अच्छी हैं.’’

‘‘तुम्हें क्या मालूम? रोज एक नई साड़ी पहनती है.’’

‘‘अम्मा, तुम्हें तो खुश होना चाहिए कि तुम्हारी बहू अच्छे कपड़े पहन कर सजधज कर रहती है.’’

‘‘मोहिनी, अब बस भी करो. आज तुम्हारा भाभीपुराण कुछ ज्यादा ही हो रहा है. हम देख रहे हैं कि अब तुम्हें मेरी कोई परवा नहीं है. मेरी आंखों का औपरेशन हुए पूरे 20 दिन हो गए. तुम मुझे देखने तक नहीं आईं.’’

‘‘अम्मा, हम तो आ रहे थे लेकिन भैया ने कहा कि मोहिनी, हफ्तेभर बाद आना. तब मंजरी के सैमैस्टर हो चुकेंगे. औपरेशन जैसा कुछ नहीं है. केवल लैंस बदल दिया गया है. अम्मा बिलकुल ठीक हैं.’’

‘‘हांहां, मनोहर को तो अम्मा ठीक ही लगती है. सुबहशाम तुम्हारा इंतजार करती रही कि मोहिनी अब आ रही है, अब आ रही है. मन की बात कहती तो कहती किस से?’’

‘‘अम्मा, कोई परेशानी हो तो बताओ. क्या भाभी आप का ध्यान नहीं रखतीं?’’

‘‘कुछ नहीं बिटिया, तुम से चार घड़ी दिल की बात कर लेते हैं तो मन हलका हो जाता है.

‘‘बहू को दिनभर घर के कामों से और फिर घूमनाफिरना व किट्टी पार्टियों से भला फुरसत कहां रहती है. मैं उस से ज्यादा बात नहीं करती. मुझे वह शुरू से पसंद नहीं है. मंजरी का पढ़ाई, ट्यूशन, कालेज, मोबाइल और लैपटौप से समय ही नहीं बचता. मनोहर कभी घड़ी दो घड़ी पास में खड़ा हो जाता है.

‘‘‘अम्मा कैसी हो? कोई चीज की जरूरत हो तो बताओ.’ 5-10 हजार की गड्डी हाथ में पकड़ा देता है. इस से ज्यादा कुछ नहीं. अब हम रुपयों का क्या करेंगे. ज्यादा से ज्यादा तुम्हारे हाथ पर रख देंगे और सब खर्च ये लोग करते ही हैं. इसीलिए अकेलापन बहुत लगता है. इतना बड़ा दिन काटे नहीं कटता.’’

‘‘हां, अम्मा. आप सही कह रही हो. मैं भी दिनभर घर में अकेली ही रहती हूं. ये दिनभर औफिस में रहते हैं. चीना और नीना को कालेज और औफिस से फुरसत ही नहीं रहती. घर में रहती हैं तो लैपटौप और मोबाइल से चिपकी रहती हैं. बस, यह है कि घर के कामों में मेरा दिन बीत जाता है.’’

‘‘मोहिनी, जब मेरा शरीर चलता था तो मुझे भी पता नहीं चलता था. महीनों से मंजरी से कह रही हूं, मेरी अलमारी की साफसफाई कर के ठीक से लगा दो. लेकिन वह क्यों सुने? बहू ने ही सिखापढ़ा दिया होगा, नहीं तो वह पहले ऐसी नहीं थी, एक बार कहने में ही तुरंत कर देती थी. एकएक काम के लिए सब की खुशामद करनी पड़ती है.’’

‘‘अम्मा, कल सुबह हम आप की अलमारी की सफाई कर देंगे. आप छोटीछोटी बातों के लिए परेशान मत हुआ करो. आप को अब क्या करना है? सबकुछ मानसी भाभी को सौंप दो और निश्ंिचत हो कर रहो. भैया अच्छा कमा रहे हैं, भाभी आप का पूरा ध्यान रखती ही हैं. मंजरी तो बच्ची है. मेरी भी बेटियां हर काम से जान बचाती हैं.’’

‘‘देखो लल्ली, हर समय भैयाभाभी, भैयाभाभी मत किया करो, अभी जाने कितनी लंबी जिंदगी बाकी है. इन जेवरों के लालच में कम से कम दो वक्त इज्जत से 2 रोटी तो मिल जाती हैं.’’

मन ही मन मोहिनी ने सोचा, इन को समझाना बहुत कठिन है, ‘‘छोड़ो अम्मा, सो जाओ, मुझे बहुत जोर से नींद आ रही है.’’

‘‘लल्ली बिटिया, तुम 2 दिन के लिए ही क्यों आईं? कल भर रहोगी, परसों सुबह जाने को कह रही हो.’’

‘‘अम्मा, बेटियों को घर पर अकेले छोड़ने में डर लगता है न.’’

‘‘हां, यह बात तो है. आजकल जमाना बहुत खराब है.’’

अगली सुबह श्यामाजी मुंह अंधेरे ही मोहिनी के जागने का इंतजार कर रही थीं.

‘‘लल्ली, लल्ली, मेरी अलमारी अभी ठीक करोगी?’’

आगे पढ़ें- मोहिनी झुंझला कर बोली, ‘‘अरे…

हेल्दी रहने के लिए इन 6 बातों का करें फौलो

अनहेल्दी खानपान, खराब लाइफस्टाइल और काम के टेंशन से लोग शारीरिक और मानसिक रूप से बीमार होते जा रहे हैं. एक ओर खराब खानपान और लाइफस्टाइल से लोगों के शरीर पर बुरा असर होता है तो वहीं काम के स्ट्रेस और आम जीवन की परेशानियों से होने वाला स्ट्रेस हमारे मेंटल हेल्थ का काफी नुकसान करता है.

डाइट में चीनी और नमक की मात्रा कम करें

डाइट में अधिक मात्रा में नमक या चीनी का सेवन करने से ब्लड प्रेशर की परेशानी होती है. इसके साथ ही दिल की बीमारी होने का खतरा भी अधिक बना रहता है. वहीं, चीनी खाने का स्वाद तो बढ़ाती है लेकिन सेहत को काफी नुकसान पहुंचाती है. कई स्टडी में भी इस बात की पुष्टि हो चुकी है. इसलिए डाइट में चीनी और नमक का कम से कम इस्तेमाल करें.

फल और सब्जियों का अधिक सेवन करें

फल और सब्जियों में भरपूर मात्रा में विटामिन, मिनरल्स और फाइबर मौजूद होते हैं. हेल्दी रहने के लिए जरूरी है कि आप दिनभर में 5 फलों का सेवन करें. सुबह के नाश्ते में फलों का जूस लेना फायदेमंद होता है. वहीं, स्नैक्स के रूप में सेब और तरबूज आदि फल ले सकते हैं.

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नींद भरपूर लें

हेल्द रहने के लिए नींद का पूरा होना बेहद जरूरी है. अच्छी सेहत के लिए जरूरी है कि आप 7-8 घंटे सोएं. अगर नींद पूरी ना हो तो कई तरह की बीमारियां होने लगती हैं. नींद पूरी ना होने से डायबिटीज, स्ट्रोक और मोटापा जैसी गंभीर बीमारियों के होने की संभावना अधिक हो जाती है. हेल्थ एक्सपर्ट का मानना है कि, भरपूर नींद लेने से दिमाग को शांति मिलती है, पाचन क्रिया दुरुस्त रहती है. साथ ही इम्यून सिस्टम की क्षमता भी तेज होती है.

वजन को रखें कंट्रोल में

हेल्दी लाइफस्टाइल के लिए वजन का कंट्रोल में रखना बेहद जरूरी है. वजन के बढ़ने से कई तरह की गंभीर बीमारियां होती हैं. इनमें डायबिटीज, हार्ट अटैक और कैंसर जैसी घातक बीमारियां शामिल हैं.

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पिएं अधिक पानी

अच्छी सेहत के लिए जरूरी है कि आप पर्याप्त मात्रा में पानी पिएं. सेहतमंद रहने के लिए शरीर में पर्याप्त मात्रा में पानी का रहना अनिवार्य है. व्यक्ति को दिनभर में कम से कम तीन लीटर पानी जरूर पीना चाहिए. पानी पीने से शरीर हाइड्रेटेड रहता है और शरीर से टौक्सिंस बाहर निकल जाते हैं.

एक्सरसाइज करें

फिजिकली फिट रहने के लिए एक्सरसाइज करते रहना जरूरी है. इससे कैलोरीज बर्न होती हैं. दिल सेहतमंद रहता है साथ ही शरीर का सर्कुलेटरी सिस्टम ठीक तरीके से काम करता है. एक्सरसाइज करने से मांसपेशियां भी मजबूत होती हैं. दिनभर में कम से कम 150 मिनट एक्सरसाइज करने की आदत को अपने रूटीन का हिस्सा बना लें.

पेरिस में ये कारनामा करने वाली पहली बॉलीवुड एक्ट्रेस बनीं नोरा फतेही

​हिंदी फिल्म इंडस्ट्री के इतिहास में ऐसा पहली बार हुआ कि किसी बॉलीवुड स्टार ने ओलंपिया में परफॉर्म किया है. जी हां, बॉलीवुड एक्ट्रेस नोरा फतेही जिन्होंने परदे पर अपने धमाकेदार डांस से लोगों के दिलों को चुराया और फिर पेरिस में ओलंपिया में प्रदर्शन किया.​

पेरिस में है ओलंपिया…

ओलंपिया, पेरिस दशकों से सबसे प्रतिष्ठित कॉन्सर्ट स्थल है. मैडोना, द बीटल्स, जेनेट जैक्सन, पिंक फ्लोयड, बेयॉन्से, टैलिओर स्विफ्ट और कई अन्य हस्तियों जैसे कई प्रतिष्ठित हॉलीवुड के लोगों ने वहां परफॉर्म किया है. यहां अब तक केवल विदेशी ए-लिस्टर कलाकारों ने ओलंपिया में प्रदर्शन किया है और यह पहली बार है की नोरा के रूप में किसी बॉलीवुड कलाकार परफॉर्म किया.

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इन गानों से हुई फेमस…

​नोरा ने यहां दिलबर, साकी साकी, कमरिया, एक तो कम  जिंदगानी और गरमी जैसी सुपर हिट गानों पर परफॉर्म किया . अपने बॉलीवुड गानों के अलावा, नोरा ओलंपिया में दर्शकों के लिए अपने पेप्पी हिट अंतर्राष्ट्रीय नंबर ‘पेपेटा’ को लाइव गाया.​

शो के समापन पर, नोरा प्रसिद्ध कलाकार फनेर के साथ भी परफॉर्म करते हुए दिखाई दीं, जिसके साथ उन्होंने दिलबर के अरबी संस्करण के लिए सहयोग किया था, जो अभी भी हमारे दिमाग में ताजा है. यह अब तक का सबसे पावर पैक्ड प्रदर्शन था.

नोरा ने ही प्लान किया था सब…

यह पहली बार था जब पूरे कॉन्सर्ट की योजना 2 अलग-अलग देशों भारत और मोरक्को की टीमों द्वारा बनाई जा रही है और इस कॉन्सर्ट के पीछे का कांसेप्ट मोरक्कन-कनाडाई सुंदरी नोरा फतेही के दिमाग की उपज है. वह पिछले चार महीनों से इस कार्यक्रम के लिए हर छोटी आवश्यकता और हर छोटी से बड़ी चीज के पीछे लगातार काम कर रही है, जिसमें वेशभूषा से लेकर संपूर्ण मेकअप लुक और स्टेज सेटअप शामिल हैं.

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‘सिर्फ अदालत ही नहीं, हर इंसान के दिमाग में 377 को मान्यता मिले’- शुभ मंगल ज्यादा सावधान

18 वर्ष की उम्र से लेखन की शुरूआत करने वाले हितेश केवल्या ने अपनी जिंदगी में काफी पापड़ बेले हैं. कुछ दिन ऑल इंडिया रेडियों पर काम करने, नाटकों में अभिनय करने के बाद वो दस वर्ष तक विभिन्न टीवी सीरियलों के संवाद लिखते रहे. उसके बाद फिल्म ‘‘शुभ मंगल सावधान’’ की पटकथा व संवाद लिखे. अब उसी फिल्म का सीक्वअल ‘‘शुभ मंगल ज्यादा सावधान’’ का लेखन करने के साथ साथ निर्देशन किया है. ये फिल्म दो ‘‘गे’’ लड़कों की प्रेम कहानी है जिसमें आयुष्मान खुराना, जीतेंद्र कुमार, नीना गुप्ता,  गजराज राव जैसे कलाकारों के अहम किरदार हैं.

अपनी अब तक की यात्रा को किस तरह रेखांकित करेंगे?

मैं राजस्थानी हूं, मगर मेरी परवरिश दिल्ली में हुई है. मां गृहिणी हैं. पापा नौकरी करते थे. घर पर लिखने पढ़ने का माहौल रहा है. बचपन से मुझे थिएटर का शौक था, जो कि मैं स्कूल में करता रहा. मेरे नाना के छोटे भाई रवि ओझा फिल्में व सीरियल बनाते थे. मुझे कहानियों का शौक भी है. इंजीनियर वगैरह बनने की बात मेरे दिमाग में कभी नहीं रही. मैने ऑल इंडिया रेडियो में काम किया है. 18 वर्ष की उम्र से लिखना शुरू कर दिया था. नाटकों में अभिनय करने के अलावा बैक स्टेज भी किया. फिर मैने अहमदाबाद के इंडियन इंस्टीट्यूट आफ डिजाइन से फिल्म विधा की शिक्षा ग्रहण की. फिर मुंबई आकर विज्ञापन जगत से जुड़ गया. लिखने के शौक के चलते कुछ समय बाद टीवी के प्रोमों लिखने लगा. फिर दस साल तक सीरियलों के संवाद लिखता रहा. तो वहीं मैंने बतौर लेखक, निर्माता व निर्देशक ‘इस मोड़ पर कुछ नहीं होता’ सहित अपनी कुछ लघु फिल्में बनायी.

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‘‘इस मोड़ पर कुछ नही होता’’ को 2006 में राष्ट्रीय पुरस्कार मिला था. इसके अलावा फिल्मों की पटकथा लिखकर रखता चला गया. करीबन सात फिल्मों की पटकथा लिख डाली, पर पर यह फिल्में किसी न किसी वजह से नहीं बन पायी. 2016 में आनंद एल राय से मुलाकात हुई और उन्होंने मुझे फिल्म ‘‘शुभ मंगल सावधान’’ की पटकथा व संवाद लिखने का मौका दिया. फिल्म को सफलता मिली. मेरे लेखन की तारीफ हुई. उसके बाद उन्हंने मुझे ‘‘शुभ मंगल ज्यादा सावधान’’ लिखने व निर्देशन करने की जिम्मेदारी दे दी.

फिल्म ‘‘शुभ मंगल ज्यादा सावधान’’ के बारे में बताइए?

-यह दो समलैंगिक पुरूषों कार्तिक सिंह (आयुष्मान खुराना) और अमन त्रिपाठी (जीतेंद्र कुमार) की प्रेम कहानी है. इसमें से एक लड़के अमन त्रिपाठी का परिवार है, जब परिवार के सदस्यों को पता चलता है कि उनका बेटा ‘गे’ है तो वह किस तरह से रिएक्ट करते हैं, ये उसी की कहानी है.

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फिल्म ‘‘शुभ मंगल ज्यादा सावधान’’ के लिए रिसर्च करने की जरुरत पड़ी…?

-जी हां! यह काफी लंबा प्रोसेस रहा. इस फिल्म को लिखने से पहले काफी पढ़ा. कई लोगों से मिला, उनसे बातचीत की. कुछ लोगों को आब्जर्व करता रहा. ‘एलजीबीटी’ संगठन में मेरे कई दोस्त हैं. कुछ कालेज के दोस्त हैं, तो इन्हे समझने का प्रोसेस तो कालेज के दिनों से ही शुरू हो गया था. किसी भी इंसान के संघर्ष को समझना बहुत जरुरी होता है, उसके संघर्ष की वजह चाहे जो हो. एक इंसान को समाज में खुद को जीवित रखने/सर्वावाइब करने के लिए जिन तकलीफों से गुजरना पड़ता है, उसे समझना भी आवश्यक था. फिर जब ऐसे लोग आपके दोस्त हो, तो एक सेंसीटीविटी आपके अंदर आ जाती है. आप किसी अन्य की कहानी सुनकर उससे जुड़ते नहीं हैं, पर यदि वह आपका करीबी हो, आपके आसपास का हो या आपका दोस्त हो, उसके संग आप बहुत जल्द जुड़ जाते हैं. तो ‘गे’ लोगों की समझ मेरे अंदर लंबे समय से एक रूप ले ही रही थी. तो इस कहानी में मैने अपने कालेज के जमाने के दोस्तों व एलजीबीटी के अपने कुछ साथियों की उन सभी बातों का निचोड़ पेश किया है. इंटरनेट पर कुछ लेख पढे़ं, कुछ किताबे पढ़ीं.

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क्या रिसर्च के दौरान आपने इस विषय पर बनी फिल्में भी देखी?

इस विषय पर भारत में कुछ ज्यादा फिल्में नहीं बनी हैं, इसलिए फिल्में नहीं देखी. फिर हमारे दिमाग में यह साफ था कि हमें इस विषय पर मेनस्ट्रीम वाली फिल्म बनानी है, हमें ऐसी फिल्म नहीं बनानी थी, जो कि फिल्म फेस्टिवल तक सीमित होकर रह जाए. हमने  कुछ विदेशी फिल्में जरुर देखीं, मगर उनका कल्चर व हमारा कल्चर बहुत अलग है, इसलिए वह हमारे लिए उपयोगी नहीं रही. इसके अलावा एलजीबीटी समुदाय के मेरे कुछ दोस्तों ने कुछ फिल्में बनायी हुई हैं, तो उनकी फिल्में मैने देखी हुई हैं. मेरी पत्नी एनीमेशन डायरेक्टर हैं. ‘शुभ मंगल सावधान’ से भी पहले ‘‘सिक्स पैक म्यूजिक बैंड’’ बना था. जिसमें ट्रांसजेंडर लोगों को लिया गया था. उनकी अपनी संगीत की समझ थी. पर फिर उन्हें थोड़ी सी ट्रेनिंग देकर उनका यह म्यूजिक बैंड लॉन्च किया गया था. तब हमने इसके लिए दो म्यूजिक वीडियो बनाए थे. एक म्यूजिक वीडियो में गेस्ट अपियरेंस के रूप में रितिक रोशन भी थे.

यह एक कैम्पेन था, जिसे अच्छा प्रोत्साहन भारत व पूरे विश्ल में मिला था. कान्स में एडवरटाइजिंग सेशन में तो पूरे कैम्पेन को पुरस्कृत किया गया था. तो उस दौरान भी मैने ट्रांसजेंडरों को बहुत बारीकी से हर दिन आब्जर्व किया था, जो कि कहीं न कहीं मेरे दिमाग में अंकित था, उसका भी उपयोग लेखन के वक्त हुआ. मेरी कोशिश यही रही है कि पूरी संजीदगी के साथ इस कहानी को पूरे परिवार के दर्शकों को ध्यान में रखकर लिखा जाए.

आपने क्या कहने की कोशिश की है?

-देखिए,हमारे समाज में सेक्स ऐसा टैबू विषय है, जिस पर लोग बात करना पसंद नहीं करते. हमने सेक्स विषय पर इतना ताले लगा रखे हैं कि क्या कहूं. अब इन तालों पर भी जाले लग गए हैं. तो अब समाज ऐसे मुकाम पर पहुंच गया है कि वह इस विषय पर नया नरेशन सुनना चाहती है. जिन चीजों पर जाले पड़ जाते हैं, वह बेकार हो जाती हैं. उस पर नए सिरे से बात करना, सोचना आवश्यक हो जाता है.

अब हम हमने इस सेक्स के विषय को इतने उंचे पायदान पर पहुंचा दिया है कि लोग खुलकर बात करने लगे हैं. कहानी का मकसद यही है कि हम अपनी फिल्म के विषय, संवाद और किरदारों के जरिए सेक्स जैसे विषय के टैबू को तोड़ें और इसे बातचीत के स्तर तक लेकर आएं. किसी भी बात को स्वीकार करना या न करना, किसी पर उंगली उठाना हमारा काम नही है. मेरी राय में फिल्में समाज को नहीं बदल सकता. सिनेमा लोगों व समाज को सिर्फ उनका आइना दिखाता है. बाकी हर इंसान अपनी जिंदगी की जरुरत के अनुसार काम करे. अब आप किस दौर से गुजरे हैं, किस तरह के अनुभव रहे हैं, आपकी सोच क्या है, उस आधार पर निर्णय लेने का हक आपको है. मेरी राय में ‘च्वॉइस ऑफ सेक्सुआलिटी’ नहीं होती, बल्कि प्राकृतिक है.

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हमने यह कहने का प्रयास किया है कि जिस तरह से हम किसी पेड़ से नहीं पूछते कि वह इस तरफ क्यों झुका हुआ है या सीधा क्यों खड़ा हुआ है, वह जैसे भी रहता है, हम पेड़ को उसी रूप में स्वीकार कर लेते हैं. जिस तरह हम नदी से नहीं कहते कि वह किस दिशा में बह रही है. तो हम यानी कि हर इंसान भी प्रकृति का हिस्सा है. तो फिर हमने ‘सेक्सुएलिटी’ को अलग क्यों कर दिया. सेक्सुएलिटी भी नेचर/प्रकृति का ही हिस्सा है. हमें पुरूष और औरत के बीच के स्पेक्ट्रम में रहने वालों को भी स्वीकार करने की जरुरत है.

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एलजीबीटी समुदाय ने कई आंदोलन किए. अब जबकि उच्च न्यायालय व सरकार द्वारा इसे मान्यता दी जा चुकी है. तो अब आपकी फिल्म कितनी महत्वपूर्ण है?

-देखिए, हमारी फिल्म अभी भी अति महत्वपूर्ण है. अदालत का इसे कानूनी जामा पहनाना एक महत्वपूर्ण कदम है. परिणामतः अब इस समुदाय को लेकर खुलकर बात हो रही है. जरुरी यह है कि हम फिल्म के माध्यम से ऐसी कहानी तैयार करें, जिससे अदालत का 377 नहीं,हर इंसान के अंदर के 377 को मान्यता मिल जाए.

प्यार को लेकर आपकी सोच क्या है?

-प्यार हम सभी का बेसिक इमोशन है. यह किसी भी तरह से उमड़ सकता है. मैं प्यार को महज रोमांटिक तरीके से नहीं देखता. मां बेटी, पिता पुत्र और दो दोस्तों में भी प्यार होता है. प्यार हर तरह का होता है. मेरी राय में प्यार ही सबसे बड़ा इमोशन है. यही इमोशन हमारे समाज को आगे बढ़ाता है. हमें एक दूसरे से जुड़ने का मौका देता है.

महंगाई रानी को नमन है !

एक इंडियन- “आज गैस सिलेंडर  के दाम तुम्हारे प्रकोप से सीधे एक सौ पचास रूपये  बढ़ गए.”
दूसरा इंडियन- देखते ही देखते टमाटर 5 रूपये से 30 रूपये केजी हो गए .”
तीसरा इंडियन- “आलू 10 से 20 रूपये  किलो हो गए .”
चौथा इंडियन-” खाने का तेल भी महंगा हो गया.”
पांचवा इंडियन- ” बीच बीच में रेल यात्रा भी महंगी हो रही है .”
सैकड़ों इंडियन महंगाई रानी के समक्ष, उनके सिहांसन के  सामने हाथ जोड़ कर खड़े हैं । किसी के चेहरे पर बारह बज रहे हैं, तो किसी के एक और किसी के चेहरे पर दो बजे हैं.
महंगाई रानी की मुस्कुराहट और मादक हो गई है. वह मधुर स्वर में बोली,- “तुम इंडियन, मेरी पूजा अर्चना नहीं करते, मुझसे घृणा करते हो. मेरी और देखना भी पसंद नहीं करते.यह अब और बर्दाश्त नहीं करूंगी. देखो, मेरी अक्षुण्ण  शक्ति को पहचानो, और मेरी देवी! की भांति, पूजा करना प्रारंभ करो.
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एक इंडियन-” हमने तो सदैव देवी- देवताओं की पूजा की है.”
दूसरा इंडियन- “हमारे किसी धार्मिक ग्रंथ में तुम्हारी पूजा के संदर्भ में कोई संकेत नहीं मिलता”
तीसरा इंडियन- “हमारे किसी ऋषि महर्षि ने कभी कोई स्तुति तुम्हारी नहीं गायी है”
चौथा इंडियन- “हे देवी ! हम विवश ह. हम लकीर के फकीर हैं…”
 महंगाई रानी हंसती है.उसकी कल- कलकाती हंसी सभी के कानों में  गूंज रही है . महंगाई रानी कह रही है-” देखो ! तुम सभी की पूजा करते हो, सांप हो या उल्लू, कुत्ता हो या हाथी, बकरी हो या गाय, आकाश हो या धरती… फिर मेरा अपमान क्यों करते रहते हो!”
 सभी इंडियन के चेहरे पर अनेक भाव आ जा रहे हैं.
एक इंडियन- “मगर हम भी क्या करें, हमारे पूर्वजों ने कभी तुम्हारा महत्व हमें बताया ही नहीं… हम क्या करें.”
महंगाई रानी-” तुम बहुत भोले हो, मेरी शक्ति और महाशक्ति का आभास तुम्हें निरंतर हो रहा है, की नहीं.
सभी इंडियंस हाथ जोड़ कर समवेत – “हम तो आपकी महाशक्ति के  मर्मांतक  पीड़ा से आहत हैं त्राहि  त्राहि कर रहे हैं.”
महंगाई रानी-( जोर से हंस कर ) -“मेरी चमत्कारी  ताकत से, देश की सरकार, सत्ता, जन-जन कांपते हैं.”
इंडियंस हाथ जोड़कर- “सचमुच ! हम यह अपनी आंखों से देख रहे हैं.”
 महंगाई रानी- “तो मूर्खों की तरह गुटूर- गुटूर क्या देख  रहे हो,क्यों नहीं, श्रद्धा और भक्ति का चोला ओढ़कर मेरे समक्ष पंक्तिबद्ध खड़े हो जाते. क्यों नहीं घंट बजाते, मेरी स्तुतिका गान करते.”
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इंडियन एक-“हमें सोचने का वक्त दो… हम निरीह गरीब इंडियन पर रहम करो.”
महंगाई रानी- “मैं लगातार, अपनी शक्ति का प्रकोप दिखा रही हूं.”
इंडियंस दो-“हम देख रहे हैं.”
महंगाई रानी-” मैं अपनी ताकत से, तुम्हारा कचूमर निकाल रहीं हूं.”
 इंडियन तीन-” हम लोग खून के आंसू रो रहे हैं.”
महंगाई रानी- “देखो ! जब तक तुम श्रद्धा भक्ति के आवेग का प्रदर्शन करते हुए, मेरी अर्चना नहीं करोगे, मैं तुम्हें इसी तरह प्रताड़ित करती रहूंगी. देखो… तुम भ्रम में मत रहना,तुम्हें मुझसे कोई नहीं बचा सकता. मुझे तुम्हारी एक-एक हरकत की, आहट का पता चल जाता है.”
इंडियन चौथा- “वह कैसे महंगाई रानी !”
 महंगाई हंसकर- “मुझे पता है,मुझसे बचने तुम सरकार के पास जाकर रोते गिड़गिड़ाते हो… हा… हा… हा .”
इंडियन पांचवा- “सरकार हमारी माई बाप है, महंगाई रानी .”
महंगाई रानी-( हंसकर ) “सरकार, जब तुम्हारी और ध्यान नहीं देती तब तुम विपक्ष के पास जाते हो… हा हा हा मगर विपक्ष मेरी राई रत्ती नहीं बिगाड़ सकता, तुम्हारी रक्षा वह नहीं कर सकता । वह ढोंग करता है देश  बंद कराने का ढोंग, मगर क्या उससे मुझसे मुक्ति मिलती है.”
सभी इंडियन समवेत स्वर में- “त्राहिमाम… त्राहिमाम । हमारी रक्षा अब तुम ही करो । हमें रास्ता बताओ । ऐसा रास्ता जिससे हमारा धर्म भी बच जाए और जान भी.”
महंगाई रानी”-एक ही रास्ता है, जो मैं बता चुकी हूं । तुम श्रद्धा भक्ति के साथ जैसे अन्य देवी-देवताओं की पूजा अर्चना करते हो मेरी भी करो.”
सभी इंडियन आंखें फाड़ महंगाई रानी की ओर देख रहे हैं । आंखों में विराट शून्य है ।
महंगाई रानी- “तुम इंडियंस बेहद समझदार हो. खुश हो जाओ. देखो, मेरा प्रकोप त्रेता मे भी था, सतयुग में, भी द्वापर में भी.मगर आज कलयुग में मैं अपने उध्दाम स्वरूप में हूं हा हा हा…”
 सभी इंडियन- “हमें सोचने का वक्त दो, किसी सहृदय  से मशविरा कर ले.”
 महंगाई रानी-” ठीक है,मैं फिर आऊंगी । हा हा हा…”
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गैर फिल्मी परिवार से आने वाले हर कलाकार को संघर्ष करना पड़ता है- जैद शेख

मॉडलिंग की दुनिया के सुपर स्टार और दीपानिता शर्मा व अनुष्का शर्मा जैसी एक्ट्रेसेस के साथ रैंप शो का हिस्सा रहे अभिनेता जैद शेख पिछले 15 वर्षों से लगातार काम करते जा रहे हैं. वह रितुपर्णा सेन गुप्ता के साथ बंगला फिल्म के अलावा हिंदी फिल्म ‘‘बी केअरफुल’’ में हीरो बनकर आए थे. उसके बाद से ‘विराम’ सहित कई फिल्में की. इन दिनों दुष्यंत प्रताप सिंह निर्देशित फिल्म ‘‘द हंड्रेड बक्स’’ को लेकर चर्चा में हैं, जो कि 21 फरवरी को रिलीज होने वाली है.

सवाल. बौलीवुड में अपने 15 साल के संघर्ष को किस रूप में देख रहे हैं?

मुझे लगता है कि यहां पर गैर फिल्मी परिवार से आने वाले हर कलाकार को संघर्ष करना ही पड़ता है. मेरे अंदर भी एक कमर्शियल फिल्म का हीरो बनने की क्वालिटी मौजूद हैं. अच्छा लुक है और अच्छी कद काठी है. मगर मेरा यहां कोई गॉड फादर नहीं रहा. मुझे सलाह देने वाला कोई नहीं था. इसके अलावा सब कुछ तकदीर की बात है. इसलिए मुझे किसी से कोई गिला शिकवा नहीं हैं. ईमानदारी से अपना काम करता जा रहा हूं. मेरी खुशकिस्मती यही है कि मुझे अच्छा काम करने का अवसर मिलता आया है. मैने बतौर हीरो रितुपर्णा सेन गुप्ता के साथ बंग्ला फिल्म की. हिंदी फिल्म ‘‘बी केयरफुल‘‘ में हीरो बनकर आया. नरेंद्र झा के साथ फिल्म ‘वीरम’ से शोहरत पायी. मेरी एक अति बेहतरीन फिल्म ‘‘सिक्स एट’’ पिछले कई वर्ष से रिलीज नहीं हो पा रही थी. अब सुना है कि यह फिल्म किसी ओटीटी प्लेटफार्म पर वेब फिल्म के तौर पर रिलीज होने वाली है. इस फिल्म में मेरा एक गाना हैं, जिसने पांच मिलियन व्यूज पाए हैं.

सवाल. आपको लगता है कि वेब सीरीज/डिजिटल मीडिया के चलते आपके लिए नए रास्ते खुले हैं?

जी हां! इससे नए रास्ते तो खुलेंगे ही. पर मुझे दुख इस बात का है कि काश यह आज से दस बारह साल पहले शुरू हो गया होता. क्योंकि पहले मैंने जो स्ट्रगल देखा है, वह बहुत कठिन था. अब जो कलाकार आ रहे हैं, उन्हे तो संघर्ष के सही मायने ही नहीं पता. आज लघु फिल्में, वेब फिल्में और वेब सीरीज इतनी अधिक बन रही है कि हर किसी के पास काम है, अगर यही दस बारह वर्ष पहले होता, तो मुझे भी संघर्ष न करना पड़ता. पर सब वक्त वक्त की बात है. मगर मैं फीचर फिल्में भी लगातार कर रहा हूं. बतौर हीरो मेरी नई फिल्म ‘‘द हंड्रेड बक्स’’ आगामी 21 फरवरी को रिलीज होगी, जिसके निर्देशक दुष्यंत प्रताप सिंह हैं.

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सवाल. फिल्म ‘‘हंड्रेड बक्स’’ से जुड़ने के पीछे क्या सोच रही है?

सबसे पहले मुझे इस फिल्म की कहानी बहुत अच्छी लगी. यह एक वेश्या की एक रात की पूरी कहानी है. इसमें मेरा किरदार भी अहम है. फिल्म में शुरू से अंत तक मोहिनी नामक इस लड़की के साथ जो कुछ घटित होता हैं, उसमें उसे सभी नकारात्मक इंसान ही मिलते हैं. मगर फिल्म का हीरो यानी कि मेरा किरदार ही पूरी तरह से सकारात्मक है. यह लड़की मेरे किरदार से मिलकर खुश होती है कि पूरी रात हर जगह उसके साथ बहुत कुछ बुरा हुआ, पर सूरज निकलते निकलते कुछ तो अच्छा हुआ. उसके साथ होने वाली इस अच्छाई की वजह मेरा किरदार ही होता है. यह इतना बेहतरीन किरदार था कि मैं इसे करने से न नहीं कर सका.

ZAID-SHEIKH

सवाल. फिल्म के अपने किरदार को लेकर क्या कहेंगे?

फिल्म ‘हंड्रेड बक्स’ में मैंने पीयूष का किरदार निभाया है, जो टूटे हुए दिल के चलते शराब में डूबा हुआ है. पीयूष को सच्चे प्यार की तलाश है. प्यार में धोखा खाने के बाद भी उसे प्यार की ही तलाश है. फिर रात के अंधेरे में उसे मोहिनी (कविता त्रिपाठी) मिलती है. लोगों को लगता तो यही है कि शायद यह भी कुछ बुरा ही करेगा, पर ऐसा होता नहीं है.

अब आप किस तरह के किरदार निभाना चाहते हैं?

मुझे सदैव अच्छी कहानियों का हिस्सा बनना है. मुझे सुपर हीरो तो नहीं बनना है,पर दबंग पुलिस ऑफिसर का किरदार निभाना चाहता हूं. चुलबुल पांडे या सिंघम की तरह का नहीं, पर मैं ऐसा किरदार निभाना चाहता हूं, जो कि कमाल का हो. मैं सकारात्मक और नकारात्मक हर तरह के किरदार निभाना चाहता हूं.

भविष्य की योजना?

अभिनय के साथ ही अब निर्माण के क्षेत्र में कूद पड़ा हूं. अपना प्रोडक्शन हाउस शुरू किया है. अभी मैंने खुद निर्माता की हैसियत से एक वेब सीरीज ‘‘द डेविल सिंस डिजायर’’ का निर्माण किया है. सोच रहा हूं कि वक्त के साथ-साथ खुद को थोड़ा सा मोड़ते हुए दूसरे क्षेत्र में भी काम करुं. इस तरह अब अपना प्रोडक्शन स्थापित कर रहा हूं. मेरी इस वेब सीरीज को कई ओटीटी प्लेटफार्म लेना चाहते हैं. इसके बाद कुछ दूसरी वेब सीरीज बनाने की भी योजना है.

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हवा का झोंका: भाग-1

यह विडंबना ही थी कि जो खुशियां श्वेता के हिस्से में आनी चाहिए थीं वे उस की छोटी बहन पल्लवी के दामन में चली गई थीं. श्वेता ने भी हालात से समझौता कर लिया था. लेकिन यह वक्त का कैसा फेर था कि पल्लवी की वजह से खुशियां एक बार फिर उसे मिल रही थीं?

छोटी बहन पल्लवी की मृत्यु का तार पाते ही मैं व्यग्र हो उठी. मन सैकड़ों प्रकार की आशंकाओं से भर उठा. तार झूठा तो नहीं, भला बिना किसी बीमारी के पूरी तरह स्वस्थ युवती की मृत्यु हो सकती है? ऐसा कैसे हो सकता है?

मैं कई बार उलटपलट कर तार के कागज को घूरती रही, उस पर छपे अक्षरों को पढ़ती रही, कहीं भी कुछ जाली नहीं था. मेरे तनमन में शीतलहर सी दौड़ती चली गई. पिछले महीने ही तो मैं दिल्ली जा कर पल्लवी, उस के पति तरुण व 3 महीने की प्यारी सी रुई के गोले जैसी बिटिया नूरी से मिल कर आई थी. तब कहां सोचा था, कुछ दिन बाद मुझे पल्लवी की मृत्यु की सूचना मिलेगी.

उस वक्त पल्लवी मुझे देख कर प्रसन्नता से खिल उठी थी. अपनी बिटिया को छाती से चिपकाए, वह सैकड़ों प्रकार की सुखद कल्पनाओं में डूबी रहती थी. उस के राहतभरे संतुष्ट चेहरे से सुखी दांपत्य जीवन का आभास मिलता था. फिर अचानक ऐसा क्या हादसा हो गया? कौन सी आकस्मिक बीमारी ने पल्लवी को छीन कर उस हरीभरी बगिया को उजाड़ डाला?

अपने कमरे में लगी पल्लवी की मुसकराती तसवीर को देख कर मैं देर तक आंसू बहाती रही. रात में दिल्ली के लिए कोई गाड़ी नहीं थी. रातभर रोती रही. सुबह छुट्टी का आवेदनपत्र छात्रावास की एक सहेली को पकड़ा कर व पहली गाड़ी पकड़ मैं रवाना हो गई.

उस के घर पहुंची तो बाहर सड़क तक जनसमूह फैला हुआ था. लोगों की भीड़ ने सफेद चादर से ढकी पल्लवी की लाश को घेर रखा था. भीड़ में खड़ी कई महिलाएं, जो किसी महिला संस्था की सदस्याएं प्रतीत होती थीं, पल्लवी के ससुराल वालों के खिलाफ नारे लगा रही थीं, गिरफ्तारी की मांग कर रही थीं. भीड़ के लोग भी ससुराल वालों के विरुद्ध बोल रहे थे.

मैं भीड़ को चीर कर अंदर पहुंची तो देखा अंदर मांपिताजी, भैयाभाभी सभी उपस्थित थे. सभी चीखचिल्ला कर पल्लवी के सासससुर व पति पर दोषारोपण कर रहे थे कि उन्होंने पल्लवी को दहेज के लालच में आग में जला कर मार डाला है.

मुझे देखते ही शोकविह्वल मां मुझ से लिपट कर रो पड़ीं. पिताजी पल्लवी की लाश की ओर व तरुण की ओर इशारा कर के गरज उठे, ‘‘देख लिया, इस नराधम ने मेरी फूल सी बेटी को कितनी बर्बरता से जला कर मारा है? क्या कमी थी मेरी बच्ची में? कौन सी कमी छोड़ी थी मैं ने दहेज देने में? रंगीन टीवी, फ्रिज, स्कूटर सभी कुछ तो दिया था.’’

भैया बिफर उठे, ‘‘ये लोग दहेज के लालची हैं, ये दहेज में मोटरगाड़ी चाहते थे, हम लोग देने में असमर्थ थे. इसीलिए इन लोगों ने मेरी बहन को जला कर मार डाला, ताकि दूसरा विवाह कर के लाखों का दहेज फिर से पा सकें.’’

पहली बार मैं ने पिताजी व भैया के मुंह से तरुण व उस के मांबाप के लिए अशोभनीय शब्द सुने थे, मोटरगाड़ी के बारे में सुना था. कभी किसी ने तरुण को दहेज का लालची नहीं बतलाया था. सभी उन्मुक्त स्वर में उस के भले स्वभाव की प्रशंसा करते नहीं थकते थे.

भीड़ में तरुण भी था, जो लोगों की जलीकटी, आरोप, प्रत्यारोप, नफरत, आक्रोश बरदाश्त करता हुआ, आंसुओं में तरबतर निरीह चेहरा लिए मां के सान्निध्य को तरसती अपनी दुधमुंही बच्ची को चुप कराने, संभालने में लगा हुआ था.

उस के घबराए मांबाप लोगों के सामने अपनी सफाई पेश कर रहे थे कि उन को तरुण के अतिरिक्त अन्य कोई बेटा या बेटी नहीं है. वे खूब देखभाल कर अपनी पसंद की बहू घर में लाए थे. फिर वे अपनी प्यारी बहू को जला कर क्यों मारेंगे?

लेकिन उन की आवाज नक्कारखाने में तूती की भांति दब कर रह गई थी. उन की सुनने वाला कोई नहीं था. सभी उन्हें दोषी ठहराने के लिए कटिबद्ध थे.

आक्रोश से उबलते पिताजी व भैया ने मेरे आने से पूर्व ही थाने में तरुण व उस के मांबाप के खिलाफ दहेज कानून के अंतर्गत रपट लिखवा दी थी. पल्लवी की लाश का पोस्टमार्टम हो चुका था. मृत्यु का कारण, अत्यधिक जल जाना सिद्ध हो चुका था.

पुलिस वालों ने गिरफ्तारी से पूर्व तरुण व उस के मांबाप को पल्लवी की शवयात्रा में शामिल होने व शवदाह करने की अनुमति प्रदान कर दी थी.

लोग अरथी उठा कर बाहर ले जाने लगे तो तरुण शोकविह्वल हो कर पल्लवी की कोयला बन चुकी काया से लिपट कर फफकफफक कर रोने लगा. लोग व्यंग्य कसने लगे कि पुलिस, कानून व जनआक्रोश से बचने के लिए ही तरुण यह सब दिखावा कर रहा है, नहीं तो क्या दहेजलोभियों के सीनों में भी दिल हुआ करता है?

तरुण व उस के मातापिता से किसी को रत्तीभर सहानुभूति नहीं थी. पल्लवी का अंतिम संस्कार हो चुकने के बाद जब पुलिस वाले उन तीनों को गिरफ्तार कर के ले गए तभी लोगों का क्रोध शांत हो पाया.

इतनी बड़ी कोठी में मैं, मांपिताजी, भैयाभाभी व तरुण के पुराने बूढ़े नौकर के अतिरिक्त और कोई बाकी नहीं रहा. पल्लवी की ससुराल के दूर के रिश्तेदार भी पुलिस के पचड़े में पड़ने के डर से घबरा कर अपनेअपने घर चले गए.

मांपिताजी अपनी लाड़ली, दुलारी बेटी पल्लवी की असामयिक मृत्यु से कुछ इस प्रकार बौखलाए हुए थे कि तरुण व उस के मांबाप की गिरफ्तारी से भी उन के मन को शांति नहीं मिल पाई थी.

नींद किसी की आंखों में नहीं थी. सभी बैठक में सोफों पर बैठ कर परस्पर विचारविनिमय करने लगे कि तरुण व उस के मांबाप को कड़ी से कड़ी सजा किस प्रकार दिलवाई जाए. सभी तरुण को फांसी के फंदे पर लटका हुआ देखने को उतावले थे.

मैं पल्लवी की दुधमुंही बिटिया को छाती से चिपकाए न मालूम कहां, किस विचार में खोई हुई थी कि भैया के स्वर ने मुझे चौंका दिया, ‘‘श्वेता, तुम्हारे पास भी तो पल्लवी के पत्र आते होंगे. अपनी ससुराल में मिल रहे अत्याचारों के बारे में उस ने अवश्य लिखा होगा.’’

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मचलते अरमान

टीवी सीरियल देख कर हमारे मन में लड्डू फूटा कि एक दिन हमें भी हमारी बीवी अपने हाथों से दूल्हा बना कर सजाए. सारा दिन टीवी देखती है, शायद कुछ सीख ले ले. लेकिन मन के मचलते अरमान धरे के धरे रह गए…

एक दिन ऐसे ही आराम से बैठा टीवी चैनल बदल रहा था. एक  सीरियल में दिखाया गया कि हीरोइन के सिर में दर्द हो रहा है. पता चला कि उसे ट्यूमर है, वह मरने वाली है तो उस ने अपनी सहेली को बुला लिया अपने पति की शादी उस से करवाने के लिए. फिर चैनल बदला तो इस सीरियल में भी हीरोइन मरने वाली थी और मरने से पहले ही वह अपने पति की दूसरी शादी करवा रही थी. उस का पति फेरे ले रहा था और वह मरने के इंतजार में खड़ी थी. एक और सीरियल में हीरोइन ने पैसे ले कर अपने पति की शादी करवा दी. हर सीरियल कमोबेश यही कह रहा था.

मैं अलसाया पड़ा देख रहा था. आहें भर रहा था, कसक दबा रहा था. काश, ऐसा ही कुछ मेरे साथ भी होता. कितने लकी हैं ये पति, इन की पत्नियां खुद मरने से पहले शादी करवा रही हैं, पति को दूल्हे के रूप में सजा रही हैं. ‘हाय,’ एक गहरी आह मेरे मुंह से निकली और मैं ने सुमि को आवाज लगाई, ‘‘सुमि, सुमि, यहां आओ, जल्दी.’’

सिर पकड़े सुमि आई. बोली, ‘‘क्या हुआ? क्यों चिल्ला रहे हो? क्या काम है? मेरे सिर में दर्द हो रहा है. बंद करो यह टीवी…’’

मेरे मन में एक लड्डू फूटा, ‘‘सच, इस का मतलब तुम्हें भी ब्रेन ट्यूमर है. तुम्हारी कोई सहेलीवहेली नहीं है कुंआरी जिसे तुम यहां बुला लो और मेरी शादी करवा दो.’’

दर्द से फटते सिर के समान सुमि भी फटी, ‘‘मेरे सिर्फ सिर में दर्द हो रहा है, मरी नहीं हूं अभी, मन में इतने लड्डू फोड़ने की जरूरत नहीं है. जरा से सिरदर्द में शादी की बात आ गई,

मर जाऊंगी तो तीसरा दिन भी नहीं लगाएंगे घर में दूसरी लाने में. सहेली, शादी, हुंह.’’

मैं थोड़ा निराश हुआ, ‘‘तो सारा दिन बैठ कर टीवी क्यों देखती रहती हो. अच्छी बातें तो उस से कुछ सीखीं नहीं, बीमारी और ले कर बैठ गईं. देखो, जरा देखो यह सीरियल. यह तो तुम्हारा फेवरेट है न, क्या सीखा तुम ने इस से?’’

सुमि भी भन्नाई, ‘‘नहीं देखना मुझे अभी टीवीवीवी और मेरा सिरदर्द टीवी देखने से नहीं आप के बकबक करने से हुआ है. बीवी का सिर दुख रहा है तो यह नहीं कि उस का थोड़ा सिर दबा दें, सहला दें, दवा दे दें. बस, अपनी दूसरी शादी के बाजे बजने लगे मन में.’’

मैं ने भी कहा, ‘‘हां, तो क्या गलत है, तुम्हें कुछ हो गया तो मेरी तो मुसीबत हो जाएगी न, कौन बनाएगा मेरे लिए खाना, कौन मेरे कपड़े धोएगा, कौन मेरा ध्यान रखेगा. इतना तो तुम्हें सोचना चाहिए न कि तुम्हारे बाद मुझे कोई तकलीफ न हो. तुम्हारा फर्ज नहीं बनता कि तुम पहले ही उस का इंतजाम कर जाओ.’’

सुमि बिफर गई, ‘‘हायहाय, कैसे आदमी से पाला पड़ा है. बीवी मर जाए, उस की चिंता नहीं. उस के मरने के बाद खुद को तकलीफ न हो, इस की अभी से चिंता हो रही है. पर आप चिंता मत करो न, अभी न मैं मरने वाली हूं और न पीछा छोड़ने वाली हूं. देखते रहो मेरे मरने की राह…’’

मैं मायूस हो गया, ‘‘मेरी समझ में नहीं आता कि तुम टीवी में देखती क्या हो? उस से कुछ सीखती नहीं हो. देखो, सीरियल में एक हीरोइन को ब्रेन ट्यूमर हुआ. उस ने अपने मरने से पहले ही अपनी सहेली को बुला लिया ताकि उस का पति उस की सहेली से शादी कर सके. और तो और, वह शादी करना नहीं चाहता तो भी उस ने ऐसा इंतजाम किया कि वह उस की तरफ अट्रैक्ट हो, उस से शादी कर ले जबकि वह तो मरी भी नहीं थी. तुम नहीं कर सकतीं ऐसा कुछ?

‘‘यह तो छोड़ो एक और सीरियल में, जिस में पत्नी को हिटलर दिखाया है जिस को कैंसर होता है, वह मरने से पहले अपने पति की विधिविधान से शादी करवा कर मरी. देखो, इसे कहते हैं पतिप्रेम, पति का ध्यान रखना, पति की चिंता करना. तुम को है मेरा ध्यान, ऐसी चिंता? यह जो टीवी के सामने बैठ कर सारा दिन आंखें फोड़ती रहती हो न, उस के बजाय कुछ काम की बात सीखो ताकि सिर्फ बिजली का बिल ही न बढ़े, मेरा दिल भी बढ़ता रहे.’’

सुमि भिनभिनाई, ‘‘अच्छा, मैं आप के लिए लड़की तलाश कर आप की शादी करवाऊं और फिर, आप की शादी में जूते छिपाऊं. पूरी घरवाली से आधी घरवाली मतलब साली बन जाऊं. सीरियल की हीरोइन बेवकूफ है तो मैं भी बेवकूफ बन जाऊं. अरे, जीतेजी तो छोड़ो, मैं तो मरने के बाद भी आप को दूसरी शादी नहीं करने दूंगी. इसी घर में घूमती रहूंगी. आप के आसपास. दूसरी शादी, माय फुट.’’

मैं ने कहा, ‘‘सच है न, चुड़ैल मरती थोड़ी है. तुम से मेरा कभी कोई सुख देखा गया है जो अब देख पाओगी. तुम तो यही चाहोगी कि मैं अकेला घिसटघिसट कर मर जाऊं और तुम ऊपर से मुझे इस तरह तड़पता मरता देख खुश होती रहो.’’

सुमि बोली, ‘‘ऊपर से नहीं, यहीं  से देखूंगी. अभी कह रहे थे न  कि टीवी से कुछ सीखती क्यों नहीं हो, तो सीख रही हूं न, अपने पति पर नजर रखना, उस पर अविश्वास करना, वरना आप आदमियों का क्या भरोसा कि कब घरवाली को छोड़ कर बाहरवाली को ले आएं. तब न बीवी का खयाल न बच्चों का. अभी मैं जिंदा हूं तो यह हाल है, मर जाऊंगी तो पता नहीं क्या करोगे.’’

मैं ने कहा, ‘‘इसीलिए तो कह रहा हूं, तुम खुद ही शादी करवा जाओ न मरने से पहले ताकि तुम को भी पता रहे कि मैं ने क्या किया?’’

सुमि ने हाथ नचाए, ‘‘अच्छा, मान लो कि मैं ने आप की शादी करवा दी और मैं नहीं मरी तो? तो क्या करोगे?’’

मैं सोच में पड़ गया, ‘‘ओह, यह तो मैं ने सोचा ही नहीं,’’ मैं ने चोर नजरों से सुमि की तरफ देखा. जिस हिसाब से इस की सेहत बनी हुई है, मरनेवरने का तो इस का कोई इरादा दिखाई नहीं दे रहा. मैं ने कहा, ‘‘तो क्या हुआ, एक और सीरियल है न, जिस में पत्नी अपने पति को बेच कर उस की शादी करवाती है, फिर दोनों बहनों की तरह साथ में रहती हैं, तुम भी रहना ऐसे ही…’’

सुमि तड़क कर बोली, ‘‘उस ने अपने पति की शादी करवाने के लिए ढेर सारे पैसे लिए थे. आप को बेचूंगी तो खरीदेगा कौन? कोई फूटी कौड़ी भी नहीं देगा आप के लिए. यह तो मैं ही हूं जो निभाए जा रही हूं वरना टके का मोल नहीं है आप का. एक शादी से मन नहीं भरा, दूसरी शादी के लिए लड्डू फूट रहे हैं मन में. सारा दिन बैठ कर टीवी मैं नहीं देखती, आप देखते रहते हैं ये फुजूल सीरियल, और घर में फसाद करते रहते हैं. और भी बातें आती हैं टीवी में, वो देखो न.’’

मैं ने कहा, ‘‘और क्या देखूं जो देख रहा हूं, दिखा रहा हूं उस पर तो ध्यान नहीं दे रही, बातें बना रही हो…कुछ और देखो. पर मैं तुम से फिर कह रहा हूं, तुम मरो तो मरने से पहले मेरी शादी करवा देना.’’

सुमि खड़ी हो गई, ‘‘हां, ठीक है. मेरा तो अभी यमराज के साथ  जोड़ी बनाने का कोई मूड नहीं है. पर अब आप न वह सीरियल भी देखो जिस में ‘बालिका वधू’ के साथ ‘क्या हुआ तेरा वादा’ निभाने की बात करते हुए ‘पुनर्विवाह किए जा रहे हैं वह भी दोदो, तीनतीन बच्चे होने के बाद भी…और पुराना पति अपनी बीवी के होने वाले नए पति के साथ अपनी पुरानी पत्नी के खुश रहने की कामना कर रहा है. मैं भी अभी आप की शादी करवाती हूं पर आप भी वादा करो कि मेरी शादी में जरूर आओगे. मैं भी अकेली तो नहीं रहूंगी न, बोलो है मंजूर?’’

मैं चौंक गया, ‘‘अरे, यह क्या बात हुई. मुझे कोई पिक्चर नहीं बनानी है ‘मेरी बीवी की शादी’, ‘मेरी भी शादी में आना’, हुंह. मैं अभी मरने वाला नहीं हूं. फिर सोचा कि लोग क्या कहेंगे. ये सीरियल वाले भी न, न जाने क्याक्या बकवास दिखाते रहते हैं.’’

मैं ने टीवी बंद कर दिया. सुमि मन ही मन बोली, ‘अब आया ऊंट पहाड़ के नीचे.’ पर प्रत्यक्षत: बोली, ‘‘अच्छा, अपनी बारी तो सब अच्छा, मेरी बारी तो बकवास. अब बंद करो यह ड्रामा और सिर दबाओ मेरा, चलो.’’

मैं ने भी लड्डू फोड़ने बंद किए. अपनी आह को दबाया, मायूस मन को समझाया और सुमि का सिर दबाने चल दिया. ये सीरियल वाले ऐसे सीरियल बनाते ही क्यों हैं जिन से मेरे जैसे बेबस आम आदमी के अरमान मचलने लगते हैं. बताइए जरा.

हवा का झोंका: भाग-3

भाभी के ऊंचे स्वर ने मुझे भी सहमा कर रख दिया. दूध को बोतल में डाल कर मैं शीघ्रता से निकल आई. मुझे मांपिताजी, भैयाभाभी किसी की बातों में दिलचस्पी नहीं थी. इसलिए मैं नूरी को ले कर दूसरे कमरे की ओर बढ़ गई.

यह पल्लवी व तरुण का शयनकक्ष था, साफसुथरा, कीमती सजावट से भरपूर. बढि़या लकड़ी के बने हुए खूबसूरत, नक्काशीदार पलंग के गुदगुदे गद्दों व रेशमी चादर पर लेटते ही मन का रोआंरोआं मीठी सिहरन से भर उठा.

पल्लवी की अनिंद्य सुंदरता बीच में न आई होती तो शायद यह सब मेरा ही होता. पल्लवी से पहले तरुण मेरा ही तो होने वाला था.

मन 2 वर्ष का फासला पार कर अतीत में जा पहुंचा, जब तरुण से मेरे रिश्ते की बात चली थी.

तरुण के मांबाप मुझे देखने मेरे घर आए हुए थे. मेरे घर वालों ने मुझे ब्यूटीपार्लर में सजवा कर गुडि़या सी बना कर उन के सामने बैठा दिया था.

परंतु सौंदर्य प्रसाधनों की ढेरसारी लीपापोती व बिजली की चकाचौंध भी मेरे सांवले रंग को नहीं छिपा पाई थी.

श्वेता नाम होने से ही कोई दूध जैसा गोरा तो हो नहीं जाता. पता नहीं, क्या सोच कर मेरे घर वालों ने मेरा नाम श्वेता रखा था.

मेरा रंग मेरे नाम के बिलकुल विपरीत था. नयननक्श आकर्षक होने से क्या होता है? मेरे घर वालों को विश्वास था कि तरुण के मांबाप मेरी उच्च शिक्षा, गुणों, मधुर व्यवहार, शहद जैसी मीठी व सुरीली आवाज से प्रभावित हो कर मुझे अपने घर की बहू बना लेंगे.

लेकिन उन दोनों ने स्पष्ट इनकार कर दिया. मुझे देख कर कड़वा सा मुंह बना कर दोनों ने मेरे घर वालों को खूब लताड़ा, कहा, ‘नाहक ही अपने घर बुला कर तुम लोगों ने हमारा कीमती वक्त बरबाद किया, जबकि हम पहले ही कह चुके हैं कि हमें अपने इकलौते बेटे के लिए, गोरीचिट्टी लड़की चाहिए, कौए जैसे कालीकलूटी नहीं.’

अपमान का जहरीला घूंट जैसेतैसे निगल कर मैं अपराधी भाव से सिर झुका कर जाने के लिए उठ कर खड़ी हो गई. आंसू थे कि रुकने का नाम ही नहीं ले रहे थे. जमीन में समा जाने को जी चाह रहा था.

तभी अपने कालेज की बैडमिंटन टीम के साथ खेल कर, उछलतीकूदती, हाथ में रैकेट नचाती हुई पल्लवी ने घर में प्रवेश किया तो तरुण के मांबाप उस की बेबाक चंचलता, चुस्तीफुर्ती, केसर घुला दूध जैसा रंग देख कर अवाक् रह गए.

तरुण की मां थोड़ी नम्र हो कर बोलीं, ‘हमें अपने घर की बहू बनाने के लिए जैसी लड़की की आवश्यकता है, वे गुण तुम्हारी इस छोटी बेटी में मौजूद हैं. चाहो तो रिश्ते के लिए हां कर दो. इस के लिए हमें दहेज की आवश्यकता भी नहीं है.’

अंधा क्या चाहे दो आंख. मेरे घर वाले बिना दहेज के मनचाहे रिश्ते को हाथ से निकालने वाले नहीं थे. मेरी भावनाओं की चिंता किए बगैर पल्लवी का विवाह तरुण के साथ संपन्न कर दिया गया.  मैं बगैर कोई शृंगार किए सादी साड़ी पहने हुए सूनी निगाहों से पल्लवी को दुलहन बनते देखती रही. वह विदा हो कर गई तो लगा, जैसे मेरा संपूर्ण अस्तित्व भी उस के साथ जा चुका है. घर में मन ही नहीं लग पाया.

फिर घर वालों के तीव्र प्रतिरोध के बावजूद मैं ने कानपुर के एक पब्लिक स्कूल में अध्यापिका की नौकरी कर ली और छात्रावास के एक कमरे में रहने लगी.

मां पिताजी के पत्र आते. लिखते रहते, ‘हम तुम्हारे लिए लड़का देख रहे हैं. बेटी का विवाह किए बगैर मर जाएंगे तो छाती पर पड़ा बोझ हमें मरने के बाद भी चैन नहीं लेने देगा.’

परंतु मेरी दिलचस्पी अब विवाह में नहीं रह गई थी. फिर मेरे जैसी कालीकलूटी लड़की को अच्छा लड़का मिलता भी कहां से?

‘‘क्या सो गईं, दीदी?’’ भाभी के स्वर ने मुझे चौंकाया तो मैं ने खयालों की दुनिया से निकल कर आंखें खोल दीं.

‘‘वे सब तो बैठक में ही सोफों पर पसर कर सोने लगे, मैं तुम्हारे पास चली आई, यहां आराम तो मिलेगा,’’ भाभी ने सिरहाने की ओर रखा तकिया अपनी ओर घसीटा.

भाभी बतलाती रहीं, ‘‘सब ने योजना तैयार कर ली है कि अगर हम पल्लवी की मौत को सुबूतों के अभाव में हत्या सिद्ध नहीं कर पाए तो आत्महत्या अवश्य सिद्ध कर देंगे. फिर आत्महत्या के लिए प्रेरित करने वाले सासससुर और पति के लिए कठोर सजा अवश्य मिल जाएगी.’’

मैं दुखी मन से देर तक सोचती रही, ‘मांपिताजी, भैयाभाभी नाहक ही लोगों के मन में अपनी धाक जमाने के लिए निर्दोष तरुण और उस के मांबाप को अपराधी सिद्ध करने में लगे हुए हैं.’

फिर मन की बात पचा न पाने के कारण मैं सुबह नाश्ते की मेज पर कह ही बैठी, ‘‘आप लोग पल्लवी की मौत को साधारण दुर्घटना मान कर खामोश हो कर क्यों नहीं बैठ जाते. अकारण बतंगड़ बना कर मामले को उलझा क्यों रहे हैं?’’

सब हैरानी से मेरा मुंह ताकते रह गए. भैया की आंखों में क्रोध उतर आया, ‘‘तुम्हारा मतलब है, हम कायरों की भांति मुंह छिपा कर भाग जाएं. तुम्हारे मन में अपनी बहन के प्रति क्या जरा सी भी हमदर्दी नहीं है? अगर इसे दुर्घटना भी मान लिया जाए तो सोचने की बात है कि नौकरों से भरेपूरे संपन्न घर में यह जानलेवा दुर्घटना कैसे हो गई? क्या इस दुर्घटना के लिए तरुण व उस के मातापिता दोषी नहीं हैं? बहू की सुरक्षा करने की जिम्मेदारी उन्हीं की तो थी.’’

लज्जित हो कर मैं चुप बैठ गई. अपनी बहन पल्लवी को मैं कम थोड़े ही चाहती थी पर क्रोध से उमड़ते घर वालों को मैं किस प्रकार समझा सकती थी. उन की नजरों में निर्दोष तरुण व उस के निर्दोष मांबाप को सजा दिलवाना ही पल्लवी के प्रति सच्ची सहानुभूति व आत्मीयता थी.

मुझे अपने ऊपर हैरानी थी. मैं तरुण व इस घर के प्रति मोह से क्यों बंधती जा रही हूं? मेरे मन में तरुण व इस घर के प्रति आत्मीयता क्यों पनप रही है? क्या इसीलिए कि यह सब कभी मेरा होने वाला था?

मेरे मन में तरुण के वे शब्द भी घूम रहे थे जो वह जानेअनजाने में जबतब कह बैठा था. मेरे अविवाहित रह जाने व एकाकीपन के लिए वह खुद को जिम्मेदार समझ कर पश्चात्तापभरे स्वर में कह बैठता था, ‘क्या गोरा रंग ही सबकुछ हुआ करता है? मेरे मांबाप ने तुम्हें ठुकरा कर तुम्हारे साथ जो अन्याय किया है उस के लिए मैं दोषी हूं. काश, मैं हिम्मत से काम लेता.’

‘अब रहने दो तरुण, कहने से कोई लाभ नहीं. तुम पल्लवी के हो, सिर्फ पल्लवी के.’ मैं सिहर कर कह बैठती और तरुण के शब्द अंदर ही अंदर घुट कर रह जाते. उस की आंखों से झांकती आत्मीयता मेरा हृदय चीर देती. एकांत मिलते ही मैं फूटफूट कर रो उठती. तब मेरे मन के कोने में पल्लवी के प्रति ईर्ष्या के भाव जाग जाते. सोचने लगती,

‘काश, मैं तरुण को उस से छीन लेने में सफल हो पाती.’

इसी मानसिक अशांति, ईर्ष्या व ऊहापोह से बचने के लिए मैं पल्लवी से दूर, बहुत दूर होती चली गई थी. मैं तरुण से भी बचने के प्रयास करती.

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