शर्माजी अपनी लालबत्ती लगी गाड़ी का इस्तेमाल दुनियाभर में रोब जमाने के लिए करते. लेकिन जब सरकारी हंटर ने उन से यह सुविधा छीनी तो लालबत्ती के मारे बेचारे ऐंबुलैंस की शरण में जा पहुंचे. क्यों? अरे भई, लालबत्ती का बुखार जो ठहरा.

‘‘शर्माजी, जब से आप की गाड़ी से लालबत्ती हटा दी गई है, आप तो नजरें ही नहीं मिलाते, शर्म से पानीपानी क्यों हुए जा रहे हैं?’’ मेरे इस प्रश्न पर वे बोले, ‘‘सक्सेनाजी, आप को क्या पता लालबत्ती वाली गाड़ी के जलवे. लालबत्ती वाली गाड़ी स्टेटस सिंबल होती है. यह स्टेटस को अपग्रेड ही नहीं करती बल्कि गाड़ी रखने वाले के कौन्फिडैंस को भी बढ़ाती है. नगरपालिका के स्कूल से वर्षों पहले 5वीं फेल हुए चेहरे का विश्वास भी इन गाडि़यों से उतरने के बाद बढ़ा हुआ नजर आता है. श्याम रंग भी श्वेत प्रतीत होता है. उन में शर्म भाव नहीं रहता, बल्कि विश्वास भाव की मात्रा कई गुना बढ़ जाती है. स्टेटस हो या न हो, स्टैंडर्ड में तो चारचांद लगा ही देती है लालबत्ती वाली गाड़ी.

बिना स्टेटस वाले लोगों के लिए तो सोने के पत्रक (वरक, आवरण) का काम करती है लालबत्ती वाली गाड़ी. कभी भी, कहीं भी और किसी भी सड़क की रैडलाइट जंप कर सकती है लालबत्ती वाली गाड़ी, उस का चालान नहीं होता. लालबत्ती वाली गाडि़यों को दिल्ली के इंडिया गेट तक पर दूर से ही देख कर ट्रैफिक पुलिस वाले अन्य वाहनों को रोक कर राजपथ पर पहले गुजरने देते हैं और सलाम अलग से ठोकते हैं. जिस के पास लालबत्ती वाली गाड़ी नहीं होती उस के पास कितना भी बैंक बैलेंस, कई लक्जरी गाडि़यां क्यों न हों, सब बेकार. अब तो आप समझ ही गए होंगे कि आम से खास बनने के लिए कितनी जरूरी होती है लालबत्ती वाली गाड़ी.’’

मैं ने फिर से निसंकोच हो कर उन से कहा, ‘‘जनाब, आप तो जानते ही हैं कि अपने देश में कितने लोग ऐसे हैं जो अधिकृत न होने के बावजूद अपनी गाडि़यों पर लालबत्ती लगा लेते हैं. ऐसे में जो मुहिम चलाई जा रही है उस के तहत जज, सैक्रेटरी, होम सैक्रेटरी, विधायक, मेयर और सुपरिंटैंडैंट का ट्रैफिक पुलिस ने पिछले दिनों अवैध लालबत्ती के इस्तेमाल पर किसी को नहीं बख्शा. इस संबंध में देशभर में एक जागरूकता अभियान भी चलाया गया कि राष्ट्रपति, प्रधानमंत्री, उपराष्ट्रपति, पूर्व राष्ट्रपति, लोकसभा के अध्यक्ष, प्रधान न्यायाधीश और संवैधानिक संस्थाओं के प्रमुखों व राज्यों के उन के समकक्षों के लिए ही लालबत्ती वाली गाड़ी की व्यवस्था की गई है. इसे संवैधानिक पदों पर बैठे हुए लोगों तक सीमित किया गया है मगर आप तो फिर भी नहीं माने, अब आ गए लपेटे में और हट गई आप की गाड़ी की लालबत्ती तो इस में शर्म की क्या बात है?’’

वे बोले, ‘‘देखिए, आप को पता है न कि अध्यक्ष तो मैं भी हूं. यह बात अलग है कि मैं लोकसभा अध्यक्ष नहीं हूं मगर लोक सोसायटी की प्रबंध समिति का अध्यक्ष तो हूं ही न? लोकसभा में भी सभाएं होती हैं और हमारी सोसायटी में भी रैजिडैंट वैलफेयर को ले कर सभाएं होती हैं. जनता का ध्यान उधर भी रखा जाता है और इधर भी. उधर नेता रखते हैं, इधर प्रबंध समिति के अध्यक्ष और उपाध्यक्ष. तो फिर मुझे भी अपनी गाड़ी पर लालबत्ती लगाने का हक तो मिलना ही चाहिए न?’’

मैं ने कहा, ‘‘शर्माजी, देशभर में लालबत्ती वाली गाडि़यों के अंधाधुंध दुरुपयोग पर चिंता जताई जा रही है, चैकिंग की जा रही है, उन्हें हटाया जा रहा है. ऐसे में यदि आप को लालबत्ती वाली गाड़ी से इतना ही प्रेम हो गया है कि इस के वियोग में आप के आंसू थम ही नहीं रहे तो अपनी रैजिडैंट वैलफेयर सोसायटी की प्रबंध समिति के अध्यक्ष पद से इस्तीफा दे दीजिए और किसी पांचसितारा अस्पताल की ऐंबुलैंस के ड्राइवर बन जाइए. जब आप की लालबत्ती वाली गाड़ी यानी ऐंबुलैंस सड़कों पर से गुजरेगी तो फिर आप को लोग सजगता के साथ पहले गुजरने का स्थान दे देंगे. यहां पर आप को किऊंकिऊं की आवाज वाले सायरन बजाने की छूट भी मिलेगी. परिणामस्वरूप, आप को सड़कों पर सायरन बजाने के लाभों के बारे में अतिरिक्त ज्ञान हो जाएगा, जो हो सकता है लालबत्ती वाली निजी गाड़ी के लाल बल्ब से ज्यादा हो.

‘‘आप तो समाजसेवी हैं, अपनी सोसायटी में भी समाजसेवा करते हैं और वहां पर भी करते रहेंगे. इसलिए आप को बिलकुल भी फर्क नहीं पड़ना चाहिए. हां, यह जरूर है कि वहां पर सभाएं जरूर नहीं हुआ करेंगी. लेकिन सुना है कि पांचसितारा अस्पतालों के ड्राइवरों को अस्पताल की प्रबंध समिति की तरफ से बेहतर ड्रैस और कैंटीन में खाना मुफ्त में मिलता है. ड्राइवरों को रोगी के तीमारदार की तरफ से कभीकभी टिप भी मिल जाती है.

‘‘ऐंबुलैंस में रखे हुए औक्सीजन के सिलैंडर आप के भी काम आ सकते हैं. अस्पताल के स्टोरकीपर से यदि सैटिंग हो जाए तो इन्हें बाजार में बेच कर मुनाफा कमा सकते हैं. कुल मिला कर, लाभ ही लाभ है, सोसायटी की प्रबंध समिति के अध्यक्ष पद से इस्तीफा दे कर किसी भी लालबत्ती वाली सायरनयुक्त एंबुलैंस का ड्राइवर बनने में.’’

शर्माजी बोले, ‘‘सक्सेनाजी, आप तो कमाल की सोच रखते हैं. पहले क्यों नहीं बताया. मैं तो खामखां परेशान हो रहा था अपनी निजी गाड़ी की लालबत्ती हटाए जाने पर. आज ही रैजिडैंट वैलफेयर सोसायटी की प्रबंध समिति के अध्यक्ष पद से इस्तीफा दे कर किसी अस्पताल में ऐंबुलैंस का ड्राइवर बनने का जुगाड़ लगाता हूं ताकि मेरा लालबत्ती वाली गाड़ी का सामाजिक रुतबा फिर से मुझे वापस मिल सके.’’

शर्माजी की बात सुन कर मुझे समझ आ गया कि आजकल रोब जमाने के लिए प्रतिष्ठित पद नहीं बल्कि लालबत्ती वाली गाड़ी जरूर होनी चाहिए क्योंकि इस देश के अधिकांश लोग स्टेटस और स्टैंडर्ड के फर्क को जानते ही नहीं, और न ही जालसाजी के कामों से बाज आना चाहते हैं.

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