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संपादकीय
मोहजाल
श्यामाजी की बहू मानसी श्यामाजी की सुखसुविधा का पूरा ध्यान रखती है, उन का पूरा सम्मान करती है फिर भी न जाने क्यों उन का मन छोटीछोटी चीजों के मोहजाल में उलझा रहता था.
भाग - 1
श्यामाजी ने जैसे ही अपनी अलमारी खोली तो एक बार फिर उन की त्योरियां चढ़ गईं. अपने कमरे से ही जोर से पुकार उठीं.
भाग - 2
शाम को मनोहर को जल्दी आया हुआ देख श्यामाजी बोलीं, ‘‘आज तो तुम बहुत जल्दी आ गए. क्या बात है?’’
भाग - 3
उनींदी मोहिनी अपनी अम्मा के बारे में सोचने लगी कि एक समय अम्मा कितनी सुंदर और सक्रिय थीं.
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