बहुत ही कम समय में फिल्म ‘‘उरी द सर्जिकल स्ट्राइक’’ के लिए सर्वश्रेष्ठ अभिनेता का राष्ट्रीय पुरस्कार जीत लेने वाले अभिनेता विक्की कौशल ने लगातार  अलग अलग विषयों वाली फिल्में करते आ रहे हैं. बीच में उन्होंने ‘जुबान’ व रामन राघव 2’ जैसी असफल फिल्में भी की. पर उन्हें अपनी किसी भी फिल्म को करने का अफसोस नही है. अब वह पहली बार हौरर फिल्म ‘‘भूत पार्ट वन : द हंटेड शिप’’ में नजर आने वाले है, जो कि 21 फरवरी को रिलीज होगी.

फिल्म ‘‘उरी द सर्जिकल स्ट्राइक’’ के लिए राष्ट्रीय पुरस्कार पाकर खुश होंगे ?

बेहद खुश हूं. सच कहूं तो ‘उरी द सर्जिकल स्ट्राइक’ से हमने कोई उम्मीद नहीं की थी. मैं तो सिर्फ यह सोच रहा था कि लोग मेरी इस फिल्म को देख लें. क्योंकि पहली बार मुझे एक बड़ी फिल्म में मेनलीड किरदार निभाने का अवसर मिला था.मेरे कंधे पर बहुत बड़ी जिम्मेदारी थी. फिल्म के निर्देशक नए थे. यह हमारे लिए बहुत बड़ी परीक्षा थी. पर उपर वाला और लोग हम पर मेहरबान रहे. बहुत प्यार मिला.फिल्म को लोगों ने सराहा. बाक्स आफिस पर भी फिल्म ने कमाल का व्यवसाय किया. लोगों के साथ एक ऐसा इमोशन जुड़ा कि लोगों ने हमें अपना लिया. फिर ‘उरी : द सर्जिकल स्ट्राइक’ के लिए ही राष्ट्रीय पुरस्कार भी मिला. यह मेरे सपनों से परे था. मैंने सपने में भी नहीं सोचा था कि ऐसा कुछ इतनी जल्दी हो जाएगा.

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क्या अब आप ‘‘जुबान’’ और ‘‘रामन राघव 2’’ को करना गलती मानते हैं ?

बिलकुल सही था. मैं अपने किसी भी कदम को गलत नहीं मानता. मुझे मेरे किसी भी कदम का अफसोस नहीं है. बल्कि मैं तो इन फिल्मों के निर्माता व निर्देशकों का शुक्रगुजार हूं कि उन्होंने मुझे उस वक्त काम दिया, जिस वक्त मुझे कोई नहीं जानता था. मैं काम पाने के लिए संघर्ष कर रहा था. उस वक्त फिल्म ‘‘जुबान’’ के निर्देशक मोजेस सिंह ने मुझे इस फिल्म में अभिनय करने का मौका दिया. मुझे ‘मसान’ से पहले ‘जुबान’ में ही काम करने का अवसर मिला था. मेरे लिए यह बड़ी बात है कि उन्हे मेरे जैसे नए लड़के में कुछ बात नजर आयी और उन्होंने मुझ पर पैसा लगाने का निर्णय लिया. जबकि वह पहली बार फिल्म निर्देशित कर रहे थे. पहली बार फिल्म निर्देशित करते समय हर निर्देशक एक चर्चित चेहरे को अपनी फिल्म का हिस्सा बनाना चाहता है. जिससे उन्हें एक सुरक्षा मिले, पर उन्होंने रिस्क ली थी. उन्होंने मुझ पर यकीन कर, मुझ पर रिस्क ली,  इसके लिए मैं उनका शुक्रगुजार हूं. मैंने उनके साथ मेहनत की. वैसे हर फिल्म की अपनी तकदीर होती है. मैं मानता हूं कि ‘‘जुबान’’ और ‘‘रामन राघव 2’’ दोनो सफल नही हुई. दर्शकों तक ठीक से नहीं पहुंची. हमें सिर्फ सच्चे मन और मेहनत के साथ काम करना होता है. ‘मसान’ के बाद जितनी के्रडीबिलिटी मिली थी, उसके चलते फिल्म इंडस्ट्री के हर इंसान ने इस फिल्म को देखा था और उनके दिमाग में मेरी ईमेज बन गयी थी कि यह उत्तर प्रदेश या बिहार का छोरा@ लड़का  है. मेरे पास उसी तरह के किरदार वाली फिल्में आ रही थी और मैंने तय कर लिया था कि मै उस तरह की फिल्में नही करुंगी अन्यथा में टाइपकास्ट होकर रह जाउंगा. परिणामतः ‘‘मसान’’ के बाद सात माह तक मैं घर पर बैठा रहा.

जब अनुराग कश्यप सर ने मुझे ‘‘रामन राघव 2’’आफर की थी, तो मुझे पता था कि यह एक डार्क फिल्म है. मुझे पता था कि दर्शकों के लिए इस फिल्म को स्वीकार करना आसान नहीं होगा. कम से कम पारिवारिक दर्शकों के लिए यह फिल्म नहीं है. पर मुझे अहसास हुआ कि अगर मुझे इसमें अपनी प्रतिभा को दिखाने का अवसर मिल गया,तो मेरे प्रति फिल्मकारों की सोच बदल जाएगी.एक सीधे साधे रोमांटिक लड़के से मैं एक ऐसा किरदार कर रहा था, जो कोकीन पीता है, ड्रग्स लेता है और एक गंदा पुलिस वाला है. एक डार्क फिल्म में एकदम विपरीत किरदार निभाने का अवसर मिलना मेरे लिए सबसे बड़ी चुनौती और एक सुनहरा अवसर था. मेरी सोच यह थी कि फिल्म इंडस्ट्री के लोगों को मेरी अभिनय की रेंज दिख जाएगी. फिर मैंने अनुराग सर से ही बहुत कुछ सीखा है. मैंने उनके साथ बतौर सहायक निर्देशक फिल्म ‘‘गैंग आफ वासेपुर’’ की थी और अब उनके निर्देशन में अभिनय करने का अवसर मिल रहा था. इस तरह मेरा एक सपना सच हो रहा था. इससे मुझे यह भी लगा कि अब मुझे दूसरे मौके मिल जाएंगे. एक तरह से यह फिल्म इंडस्ट्री से जुड़े लोगों के लिए मेरा औडीशन था.

Vicky-Kaushal-in-Bhoot--

आपकी एक फिल्म ‘‘लव स्क्वायर फुट’’ सिनेमाघरों की बजाय ओटीटी प्लेटफार्म ‘नेटफ्लिक्स’पर आ गयी.उसके बाद आपने नेटफिलक्स के लिए ‘लस्ट स्टोरी’ भी की. कलाकार के तौर पर आप इसे किस तरह से लेते हैं ?

कलाकार के तौर पर हमारे अभिनय में कोई फर्क नहीं आता. हमें एक इमोशन दिखाना होता है, तो हम उसे उसी सच्चाई के साथ निभाते हैं. उस वक्त हम यह नहीं सोचते कि सिनेमाघर के लिए अलग इमोशन होगा और ओटीटी प्लेटफार्म के लिए अलग इमोशन होगा. इसके अलावा अभी फिलहाल ओटीटी प्लेटफार्म बहुत अच्छे दौर से गुजर रहा है .इसके अपने दर्शक हैं. अच्छा कंटेंट परोसा जा रहा है. यह एक नया एवेन्यू खुला है. मेरे लिए भी यह बहुत नया है. मैं भी देखना चाहता था कि हां पर क्या है? ओटीटी प्लेटफार्म पर बाक्स आफिस का दबाव नहीं होता. यह दबाव नहीं होेता कि तीन दिन में फिल्म थिएटर से उतर जाएगी. एक बार ओटीटी प्लेटफार्म पर फिल्म आ गयी,तो आ गयी,फिर आप इसे उसी दिन देखें या छह माह बाद देखें.

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पर ओटीटी प्लेटफार्म पर बोल्ड सीन या बोल्ड कंटेंट को ज्यादा प्रधानता दी जा रही है ?

ऐसा आप कह सकते हैं.क्योंकि सेंसर का दबाव नही है.ऐसे मंे यदि किसी के पास ऐसा विषय है, जिसमें बोल्डनेस दिखाना है या अति हिंसा दिखानी है, तो उसके लिए उस विषय पर काम करना सहूलियत वाला हो रहा है.फिर चाहे गाली गलौज का मसला हो. तो फिल्मकार महसूस करता है कि यहां पर दर्शक हैं,और उसके लिए अपनी बात कहने में बंदिशें भी नही है. वह कहानी को सच्चाई से दिखा पाएगा,तो वह ओटीटी प्लेटफार्म की ओर रूख कर लेता है.

आपने पहली बार हौरर फिल्म ‘‘भूत पार्ट वन द हंटेड शिप’’ की है ?

कलाकार के तौर पर यह भूख मेरी रही है और हमेशा रहेगी कि हर बार कुछ अलग किया जाए.अब जैसे कि मैने एक हौरर फिल्म ‘‘भूत पार्ट वनः द हंटेड शिप’’की है,यह एक प्रयोग है. तो वहीं ‘‘उरी द सर्जिकल स्ट्राइक’’के बाद मैंने हौरर जैसे जानर की फिल्म की है, जिस जानर की फिल्में लोगों ने कई वर्षों से नहीं बनायी है. लंबे समय से कोई भी स्थापित कलाकार इस जानर की फिल्म कर ही नहीं रहा है.मेरी राय में कलाकार और दर्शकों के लिए एक बेहतरीन दौर चल रहा है. हम नई सोच, नई तरह की फिल्मों को मौका दे रहे हैं. ऐसे में यदि ‘‘धर्मा प्रोडक्शंस’’ जैसा बड़ा बैनर हौरर जौनर की फिल्म की पटकथा पर यकीन कर फिल्म बना रहा हो, तो लोग अपनाएंगे या नह अपनाएंगे. ऐसे में मैंने सोचा कि फिल्म करके देखा जाए. अब एक तरफ दर्शक कुछ नया चाहता है,  और मैं फिल्म की स्क्रिप्ट पढ़ता हूं, मुझे स्क्रिप्ट पसंद आती है, तो फिर मैं बहुत ज्यादा कलकुलेशन नहीं करता. मेरा मन स्क्रिप्ट पर आ गया, तो फिर मैं उस पर कूद पड़ता हूं. मैंने मन की सुनी और बिना किसी कलकुलेशन के फिल्म ‘‘भूत पार्ट वनः द हंटेड शिप’’ की है.

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फिल्म ‘‘भूत पार्ट वनः द हंटेड शिप’’ के अपने किरदार को लेकर क्या कहेंगे ?

फिल्म का ट्रेलर देखकर आपकी समझ में तो आ गया होगा कि मैंने इसमें पृथ्वी चैहान का किरदार निभाया है. यह ‘सी बर्ड’ शिप का सर्वेयर है. आपको पता होगा कि 2011 में एक दिन अचानक ‘विस्डम’नामक शिप भटक कर मुंबई के जुहू चैपाटी पर आकर लगा था. इसमें कोई इंसान नहीं था.यह लोगों के लिए पिकनिक स्पौट हो गया था. उसी को लेकर निर्देशक ने हौरर कहानी रची है. किसी को नहीं पता कि यह शिप कहां से आई है और इसकी क्या स्थिति है. अमूमन जब इस तरह कोई शिप आ जाता है, तब एक सर्वेयर टीम जाकर परीक्षण करती है कि की शिप किस हालत में है? यह आगे भेजे जाने लायक है या नहीं? कहीं डीजल तो नही बह रहा? इसके सभी कल पुर्जे बराबर हैं?क्या इसे स्क्रैप करना है? इसकी जांच के लिए पृथ्वी  चैहान जब इस ‘सी बर्ड’ शिप के अंदर जाता है, तो उसके साथ शिप के अंदर क्या-क्या होता है, वह क्या-क्या अजीब सी चीजें महसूस करता है? उसी की कहानी है. इसमें पृथ्वी के जीवन की कहानी भी है. वह कभी मर्चेंट नेवी मे था. उसने भागकर मेघा से शादी की थी और एक बेटी का पिता भी बना था. पर आज पत्नी व बेटी दोनो इस संसार में नही है.

आने वाली दूसरी फिल्में कौन सी हैं?

‘‘तख्त’’,‘‘सरदार उधम सिंह’,‘‘अश्वत्थामा’’ जैसी फिल्में कर रहा हूं.

इनके लिए आपको रिसर्च भी काफी करना पड़ रहा होगा ?

जी हां ! कहानी व किरदार के अनुसार काफी रिसर्च करना पड़ता है.वह तो एक बहुत बड़ा प्रोसेस है, जो कि हमें हर फिल्म के लिए करना ही पड़ता है.

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