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दुर्घटना पर्यटन: भाग-4

कन्हैयालाल से उस ने शानदार अमेरिकन ऐक्सैंट वाली अंगरेजी में पूछा कि क्या कार के मालिक आप ही हैं. हिंदी समाचार चैनल वाला ऐसी अंगरेजी क्यों झाड़ रहा था, यह कुतूहल मन में दबाए हुए कन्हैयालाल ने हामी भरी तो उस ने उन को समझाया कि चैनल की जो मशहूर ऐंकर उन का इंटरव्यू लेगी उस से बात करते हुए चैनल पर दिखाए जाने के लिए बड़ीबड़ी राजनीतिक पार्टियों के नेता दसियों हजार रुपए खर्चने को तैयार रहते हैं.

कन्हैयालाल कच्ची गोलियां नहीं खेले थे. उन्होंने वापस उसे समझाया कि राजनीतिक नेताओं के लिए तो यह सब रोज का खेल है पर उन के जीवन में तो ऐसा मौका एक ही बार आया था जिसे वे मुफ्त में नहीं गंवाएंगे. नीली जींस वाले ने तंग आ कर हथियार डाल दिए और कन्हैयालाल से कहा कि वे कैमरे के सामने आने के लिए अपने मुख पर मेकअप वाले से थोड़ा टचअप करवा लें कि तभी कन्हैयालाल के मन में आया कि टीवी चैनल पर इंटरव्यू देने से पहले अपने वकील पड़ोसी से बात कर लें तो अच्छा रहेगा. पर जब उन्होेंने मोबाइल पर नंबर लगा कर सलाह मांगी तो वकील साहब ने बहुत कड़क आवाज में उन को ऐसा करने से सख्त मना किया.

वकील साहब ने उन्हें बताया कि जिस इंटरव्यू को देने के लिए और कार को टीवी स्क्रीन पर दिखाने का वे कुल 10 और 10 अर्थात 20 हजार मांग रहे थे उसी इंटरव्यू को न देने के लिए, अगर दे दिया हो तो प्रसारित होने से रोकने के लिए, कार बनाने वाली कंपनी शायद कई लाख रुपए देने के लिए तैयार हो जाए. कन्हैयालाल ने कहा कि वे टीवी वालों से सौदा तय कर चुके हैं, बात से मुकरना कैसे संभव होगा तो वकील साहब ने सुझाया कि अभी तक उन्होंने केवल कार की दशा कैमरे में कैद करने और उन का इंटरव्यू करने का मोल मांगा था, इस का यह अर्थ नहीं था कि वे उसे प्रसारित भी कर सकते हैं. उस का प्रसारण करने के लिए वे 5 लाख और मांगें.

इस बीच, वकील साहब कार बनाने वालों से संपर्क साधेंगे और उन से इस इंटरव्यू आदि के प्रसारण को रोकने के लिए 10 लाख और मांगेंगे. यदि वे मान गए तो कन्हैयालाल चैनल वालों के साथ हुए सौदे से मुकर जाएं, आखिर लिखापढ़ी तो अभी कुछ हुई नहीं थी.

कन्हैयालाल ने जब अपनी मांगें टीवी वालों के सामने रखीं तो उन के भी छक्के छूट गए. जींस वाला घबरा कर बोला कि उसे अपने बौस से बात कर के अपू्रवल लेना पड़ेगा और इस के लिए कन्हैयालाल से उस ने थोड़ी देर रुकने और तब तक किसी और चैनल से बात न करने की प्रार्थना की. कन्हैयालाल भी यही चाहते थे. थोड़ा नखरा दिखा कर मान गए. उधर, वकील साहब ने बताया कि कार निर्माता कंपनी दिल्ली में अपने स्थायी प्रतिनिधि को 2 घंटे के अंदर बातचीत अर्थात मोलभाव के लिए भेज रही है और प्रार्थना कर रही है कि तब तक न्यूज चैनल वाले मामले में कोई जल्दबाजी न की जाए.

कन्हैया को सपने में भी ऐसे धन बरसाऊ विचार नहीं आए थे. उन्हें लगातार डर बना रहा कि वकील साहब की बातें हवाई किला न साबित हों. यह भी लगा कि कार के निर्माता यदि वकील साहब के झांसे में न आए तो कहीं टीवी चैनल से मिलती हुई रकम भी हाथ से न निकल जाए. पर वकील साहब ने कन्हैयालाल को आखिरकार राजी कर ही लिया कि वे जल्दबाजी से काम न लें.

वकील साहब से बात हुए अभी 2 घंटे भी नहीं बीते थे कि पार्किंग में एक काले रंग की मर्सिडीज कार आ कर रुकी और उस से उतर कर काला बिजनैस सूट पहने एक व्यक्ति ने कन्हैयालाल की जली हुई कार की ओर रुख किया. कन्हैयालाल को भांपने में देर न लगी कि वह कार निर्माता कंपनी से आया था, बल्कि उन्हें यह देख कर हंसी भी आई कि वह अपनी कंपनी की बनाई कार में नहीं आया था. क्या कन्हैयालाल की कार में लगी आग से वह स्वयं इतना डर गया था कि अपनी कंपनी की कार में आने की हिम्मत नहीं कर पाया? चलो, अच्छा हुआ, अब यह भी समझ गया होगा कि दूसरे लोगों को जब उन की कार के अग्निकांड के विषय में पता चलेगा तो वे इस मौडल की कार से कितना डरेंगे.

कार कंपनी का नुकसान लाखों में नहीं बल्कि करोड़ों में आएगा, इतना तो तय था.कन्हैयालाल सोचसोच कर खुश होते रहे जैसे कार नहीं जली हो, लौटरी लग गई हो. कन्हैयालाल उस मर्सिडीज की तरफ बढ़ने ही वाले थे पर वकील साहब ने फुसफुसा कर कहा कि ऐसा कर के वे अपनी कमजोरी न दिखाएं, काला बिजनैस सूट स्वयं उन तक आएगा.

यही हुआ. वह आया. अकेले ही आया. और आने के बाद चौकन्ने हो कर चारों तरफ देख कर उस ने पहले अपना परिचय दिया. हालांकि इस की जरूरत नहीं थी. कन्हैयालाल ने पहले ही सही भांप लिया था. फिर एकदम कन्हैयालाल के कान के पास अपना मुंह ला कर धीरे से उस ने पूछा कि अभी तक उन्होंने कोई इंटरव्यू तो नहीं दिया और कार की फोटो तो नहीं खींचने दी.

वकील साहब ने कन्हैयालाल को इस के बाद बात करने का कोई मौका ही नहीं दिया. पहले तो उन्होंने दुर्घटना से कन्हैयाजी की पत्नी के कमजोर दिल पर होने वाले आघात का ऐसा हृदयविदारक वर्णन किया कि स्वयं कन्हैयालाल की आंखों में आंसू आने को हो गए, फिर उन्होंने ‘परसों तक’ चैनल से प्राप्त होने वाले लाखों का जिक्र किया और आखिर में उन्होंने बताया कि कन्हैयालाल अपनी जली हुई कार को स्थायी रूप से उस पार्किंग में छोड़ने का निश्चय कर चुके थे ताकि इस मेक और मौडल की कार खरीदने का इरादा रखने वालों को सावधान किया जा सके और यह सब वे केवल समाजसेवा की भावना से करना चाहते थे.

उस के बाद क्या हुआ, बजाय वह सब बताने के, इतना ही बताना काफी है कि कन्हैयालाल आजकल एक बिलकुल नई कार में चलते दिखते हैं. अपनी छोटी दुकान उन्होंने बंद कर दी है और वकील रामलाल व मौल की पार्किंग के ठेकेदार साहब की पार्टनरशिप में उन्होंने एक नई कंपनी बना ली है.

यह कंपनी देशविदेश से आने वाले पर्यटकों को उन स्थलों पर ले जाती है जहां कोई बहुत भयंकर दुर्घटना घटी हो. रेत, प्लास्टर औफ पेरिस, लकड़ी आदि से बने हुए लाइफसाइज मौडलों की सहायता से वे भूकंप, बाढ़, सूनामी आदि के हैरतअंगेज दृश्य बना कर दिखाते हैं. पर्यटकों से पीडि़त लोगों से बातचीत आदि कराते हैं और जहां तक संभव हो चीत्कार, रोने आदि की आवाजों व मूवी कैमरे में कैद दुर्घटनास्थल पर मची तबाही के ध्वनि और प्रकाश कार्यक्रम विदेशी सैलानियों के सामने प्रस्तुत कर के देश के लिए काफी  विदेशी मुद्रा भी अर्जित करते हैं.

जाफराबाद और चांदबाग में भी CAA के खिलाफ प्रदर्शन

सीएए के खिलाफ प्रदर्शन खत्म होने का नहीं ले रहा है एक तरफ दिल्ली के शाहीन बाग में 70 दिन से धरना जारी है,इस बीच जाफराबाद में महिलाओं ने जाम लगा दिया है, वहां पर भी सीएए और एनआरसी के खिलाफ मुस्लिम महिलाओं ने मोर्चा खोल दिया है, सड़क पर उतर कर धरना प्रदर्शन कर रही हैं.

बड़ी संख्या में मुस्लिम महिलाएं देर रात से जाफराबाद मेट्रो स्टेशन के नीचे बैठ गई औऱ धरना करने लगीं. जिसकी वजह से मेट्रो स्टेशन को बंद करना पड़ा औऱ आम लोगों को दिक्कत भी उठानी पड़ रही है. इसके साथ सीलमपुर को जाने वाला मेन रोड भी बंद हो गया है, मौके पर भारी फोर्स मौजूद है.

दिल्ली के चांद बाग में तीसरा शाहीन बाग बन गया है, यहां भी मुस्लिम महिलाएं धरने पर बैठ गई हैं, सुबह 10 बजे से चांद बाग में प्रदर्शन चल रहा है. महिलाओं ने रोड जाम कर दिया है. नौबत ये आ गई कि पुलिस को लाठीचार्ज का सहारा लेना पड़ा क्योंकि प्रदर्शनकारियों ने रोड जाम कर रखा था. वहीं दूसरी ओर बीजेपी के नेता कपिल मिश्रा ने ट्वीट किया है कि वो कुछ देर में जाफराबाद को जवाब देने के लिए सीएए के समर्थन में सड़क पर उतरेंगे.

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जाफराबाद के ठीक सामने मौजपुर चौक की रेड लाइट पर प्रदर्शन करेंगे. कपिल मिश्रा ने अपने एक बयान में कहा कि “हम सीएए वापस नहीं लेंगे क्योंकि कद बढ़ा नहीं करते एड़ियां उठाने से और सीएए वापस नहीं होगा सड़कों पर बीबीयां बिठाने से.” अब कपिल मिश्रा का बयान उनके लिए मुसीबत खड़ा कर सकती है क्योंकि उनका ये बयान आपत्तिजनक है. ये उनका जुमलानुमा बयान था.

इनकी सिर्फ एक ही मांग है की सीएए को वापस लेना चाहिए क्योंकि ये हमारे हक छीन सकता है उन्हें लगता है कि ये उनकी नागरिकता पर असर डालेगा जबकि खुद गृह मंत्री अमित शाह ये बात बता चुके हैं इससे यहां के लोगों की नागरिकता पर कोई असर नहीं पड़ेगा लेकिन फिर भी प्रदर्शन जारी है और जाहिर है कि यदि ये धरना प्रदर्शन ऐसे ही चलता रहा तो कहीं कुछ बड़ी अनहोनी ना हो जाए क्योंकि इसकी आशंका लग रही है.

अब देखना यही होगा कि सरकार इसके लिए क्या कड़े रुख अपनाती है? क्योंकि फैसला करना बहुत ही जरूरी है वरना दिल्ली की हर जगह कहीं शाहीन बाग न बनने लगे.

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मर्दांनगी को लेकर हमने एक अलग धारणा बना रखी है- आयुष्मान खुराना

समाज में टैबू समझे जाने यानी कि वर्जित विषयों के पर्याय बन चुके और ‘‘अंधाधुन’’ के लिए सर्वश्रेष्ठ अभिनेता का राष्ट्रीय पुरस्कार हासिल कर चुके अभिनेता आयुष्मान खुराना (Ayushmann Khurrana) के लिए कहानी व किरदार ही मायने रखते हैं. इन दिनों वह आनंद एल रौय और टीसीरीज निर्मित तथा हितेश केवल्या निर्देशित फिल्म ‘‘शुभ मंगल ज्यादा सावधान’’ (Shubh Mangal Zyada Saavdhan) को लेकर अति उत्साहित हैं, जिसमें दो समलैंगिक पुरूषों की प्रेम कहानी है. प्रस्तुत है ‘‘गृहशोभा’’ (Grihshobha) पत्रिका के लिए आयुष्मान खुराना से हुई एक्सक्लूसिव बातचीत के अंश…

आप अपने आठ वर्ष के करियर में किसे टर्निंग प्वाइंट मानते हैं?

-सबसे पहली फिल्म ‘‘विक्की डोनर’’मेरे कैरियर की टर्निंग प्वाइंट थी. उसके बाद ‘‘दम लगा के हईशा’’टर्निंग प्वाइंट थी. यह फिल्म मेरे लिए एक तरह से वापसी थी. क्योंकि बीच के 3 साल काफी गड़बड़ रहे. ‘‘दम लगा के हाईशा’’के बाद ‘‘अंधाधुन’’टर्निंग प्वाइंट रही. जिसने मुझे सर्वश्रेष्ठ अभिनेता का राष्ट्रीय पुरुस्कार दिलाया. फिर फिल्म‘आर्टिकल 15’भी एक तरह का टर्निंग प्वाइंट था. इस फिल्म के बाद एक अलग व अजीब तरह की रिस्पेक्ट /इज्जत मिली. फिल्म‘‘आर्टिकल 15’’में मैने जिस तरह का किरदार निभाया,उस तरह के लुक व किरदार में लोगों ने पहले मुझे देखा नहीं था.  फिर जब फिल्में सफल हो रही हों,तो एक अलग तरह की पहचान मिल जाती है. मुझे आपका,दशकों से, क्रिटिक्स से भी रिस्पेक्ट मिल रही है. यह अच्छा लगता है.

‘‘अंधाधुन’’के लिए राष्ट्रीय पुरस्कार मिलने के बाद आपके प्रति फिल्मकारो में किस तरह के बदलाव आप देख रहे हैं?

-फिल्म‘‘अंधाधुन’’ ने बहुत कुछ दिया है. मुझे राष्ट्रीय पुरस्कार मिला. यह फिल्म चाइना में बहुत बड़ी फिल्म बनी. बदलाव यह आया कि अब लोग मुझे अलग नजरिए से देखते हैं. मुझे रिस्पेक्ट देते हैं. अब दर्शक भी जदा इज्जत दे रहे हैं. जब मैं पत्रकारों से मिलता हूं, तो अच्छा लगता है. क्योंकि ‘अंधाधुन’ एक ऐसी फिल्म है, जिसे मैंने खुद जाकर मांगी थी.

आप अक्सर कहते है कि आप ‘गृहशोभा मैन’हैं. इसके पीछे क्या सोच रही है?

-कई लोगों ने मुझसे कहा कि मैं तो ‘गृहशोभा’ पत्रिका हूं. उनका कहना था कि मैं जिस तरह के विषय वाली फिल्में सिलेक्ट करता हूं, वह इतने निजी होते हैं, जिस पर आप खुलकर बात करने से कतराते नही हैं. पर आप ‘गृहशोभा’ पत्रिका की तरह खुल कर बात करते हैं. आप ‘गृहशोभा’ के लिए लिखते हैं,तो कितनी मजेदार लाइफ है आपकी.

आपने वर्जित विषयों पर आधारित फिल्में की, जिन पर लोग बात करना तक पसंद नहीं करते. जब आपने यह निर्णय लिया था, तो आपके घर में किस तरह की प्रतिक्रिया मिली थी?

-मेरा पूरा कैरियर रिस्क पर बना है. बाकी कलाकार जिन विषयों को रिस्की मानते हैं,उन्हीं विषयों पर बनी फिल्में कर मैंने अपना कैरियर बनाया. इस तरह की रिस्क मैं आगे भी लेता रहूंगा. मतलब मैं रिस्क ना लूं, ऐसा कैसे हो सकता है. कई लोगों के लिए समलैंगिकता विषय पर फिल्म एक रिस्क है. पर मुझे लगता है कि आज के दौर में इसकी जरूरत है.  सुप्रीम कोर्ट ने भी सेक्शन 377 को जायज ठहरा दिया है. देखिए ‘गे’ लोगो की अपनी निजी जिंदगी है.

‘‘शुभ मंगल सावधान’’ भी एक वर्जित विषय पर थी. इसके प्रर्दशन के बाद किस प्रतिक्रिया ने ज्यादा संतुष्टि दी?

-ऐसी तो कोई प्रतिक्रिया नहीं मिली. पर फिल्म हर किसी को बहुत अच्छी लगी थी. वास्तव में हमारी धारणा होती है कि हीरो को ऐसा होना चाहिए. मर्दांनगी को लेकर हमने अपनी एक धारणा बना रखी है, जो कि हमारे देश में बिस्तर तक की सीमित होती है. इस फिल्म में मर्दांनगी को लेकर लोगों की सोच पर एक कटाक्ष था. उस सोच पर एक तरह का प्रहार था,जो कि बहुत सफल भी रहा. फिल्म के प्रदर्शन के बाद उस पर लोगों ने खुलकर बात करना भी शुरू किया. लोगों की समझ में आया कि खांसी या जुखाम की तरह इसका भी इलाज किया जा सकता है. अब लोग इसका इलाज करने लगे है. कुछ लोग मुझसे मिले और इस विषय पर फिल्म करने के लिए मेरा शुक्रिया अदा किया. पर खुले में किसी ने कुछ नही कहा. पर मेरे पास आकर जरूर बोलते थे.

मतलब अभी भी वह टैबू बना हुआ है?

-जी हां!! अभी भी वह टैबू बना हुआ है. पर फिल्म के प्रदर्शन के बाद कुछ तो बातचीत हुई. हमने पहला कदम उठाया.

होमोसेक्सुएलिटी जैसे विषय पर अपनी नई फिल्म‘‘शुभ मंगल ज्यादा सावधान’’को आप पारिवारिक फिल्म मानते हैं. जबकि इस तरह के विषय में अश्लीलता आने की संभावनाएं ज्यादा होती हैं. ऐसे में बतौर कलाकार  स्क्रिप्ट सुनते वक्त आपने किस बात पर ध्यान दिया?

-फिल्म के निर्माता आनंद एल राय पारिवारिक फिल्म के लिए जाने जाते हैं. जब वह आपके साथ हों, तो आपको इतनी चिंता की जरूरत नहीं होती. जब मुझे आनंद एल राय की तरफ से इस फिल्म का आफर मिला,तो मुझे यकीन था कि वह पारिवारिक फिल्म ही बनाएंगे. इसके बावजूद मैं स्क्रिप्ट जरुर सुनता हूं. स्क्रिप्ट सुनते समय मैं इस बात पर पूरा ध्यान देता हूं कि फिल्म में क्या होना चाहिए और क्या नहीं होना चाहिए.  इस फिल्म में कुछ भी ऐसा नहीं है, जिसे आप परिवार के साथ बैठकर न देख सकें. वैसे भी अब तो बच्चे बच्चे को पता है कि समलैंगिकता क्या होती है. पर इसे अपनाना जरूरी है.

देखिए,समलैंगिकता ऐसा नहीं है कि आप एक दिन सुबह सोकर जगे और आपको ऐसा लगा कि मैं ‘गे’ बन जाऊंगा. ऐसा होता नहीं है. बचपन से आपकी वही सोच होती है,जो आपको पसंद है. वही आपको पसंद है. हर युवक लड़के या लड़कियां या कुछ लोग दोनों पसंद करते हैं.  लेकिन यह आपकी निजी जिंदगी है,आप जिसका चयन करना चाहें, उसका चयन करें. आपकी जिंदगी में अगर उससे फर्क नहीं पड़ता है,तो फिर दूसरों को क्या तकलीफ?

जैसा कि आपने कहा कि सुप्रीम कोर्ट ने सेक्शन 377 को कानूनी जामा पहना दिया है. तो अब आपकी यह फिल्म कितनी महत्वपूर्ण हो गई है?

-मेरी राय में यह ह्यूमन राइट की बात है. ‘गे’ लोगों को ‘बुली’ किया जाता है. बचपन से इनका मजाक उड़ाया जाता है. बचपन से इनको नीची नजरों से देखा जाता है. तो हमारा और हमारी फिल्म का मकसद उनमें समानता लाना जरूरी है. यह फिल्म भी फिल्म ‘आर्टिकल 15’ की तरह से ही है. एक तरह से देखा जाए, तो यह उसका कमर्शियल वर्जन है. फिल्म ‘‘आर्टिकल 15’’में पिछड़े वर्ग को समानता दिलाने की बात है. यहां हम होमोसेक्सुआलिटी की बात कर रहे हैं. लेकिन यह कमर्शियल और पारिवारिक फिल्म है. जबकि ‘‘आर्टिकल 15’’कमर्शियल नहीं थी. वह डार्क थी. जबकि ‘‘शुभ मंगल ज्यादा सावधान’’ कॉमेडी फिल्म है. यह फिल्म इंसानों के बीच समानता को जरूरी बताती है. फिर चाहे जैसा इंसान हो,चाहे जिस जाति का और  जिस सोच का भी हो.

फिल्म ‘‘शुभ मंगल ज्यादा सावधान’’ की स्क्रिप्ट पढ़ने पर किस बात ने आपको इसे करने के लिए प्रेरित किया?

-सबसे पहले तो इसका विषय समसामायिक और बहुत अच्छा है. मेरी राय में होमोसेक्सुअलिटी पर आज तक कोई भी अच्छी फिल्म नहीं बनी है. जो बनी हैं, वह पूर्ण रूपेण कलात्मक रही,जो कि दर्षको तक पहुंचने की बजाय केवल फिल्म फेस्टिवल तक सीमित रही. जबकि हमारा हिंदुस्तान इस तरह की फिल्में देखने के लिए तैयार है.

दूसरी बात इस फिल्म की स्क्रिप्ट पढ़ते समय मुझे फिल्म ‘‘ड्रीम गर्ल’’की शूटिंग के वक्त का आंखों देखी घटना याद आयी. मैं मथुरा जैसे छोटे शहर में रात के वक्त शूटिंग कर रहा था. मैने देखा कि पार्किंग में दो लड़के एक दूसरे को ‘किस’कर रहे हैं. तो मेरे दिमाग में बात आयी कि भारत इसके लिए तैयार है. क्योंकि खुले में कभी भी लड़के या लड़कियों का ‘किस’नहीं होता है. मुंबई में ऐसा हो सकता है,पर छोटे शहरों में संभव नही. तो मैंने कहा कि हम इसके लिए तैयार तो हैं. सुप्रीम कोर्ट ने भी कानूनन मंजूरी दे ही दी है. मैंने खुले में भी देख लिया हैं. इसलिए इसके ऊपर फिल्म बनाई जा सकती हैं.

जब से मैने दो लड़को को ‘किस’करते हुए देखा था,तब से मैं ‘होमोसेक्सुएलिटी के विषय को एक्स्प्लोरर कर रहा था. फिर मुझे पता चला कि हितेश जी इसी विषय पर फिल्म लिख रहे है,तो मैने उनसे कहा था कि स्क्रिप्ट पूरी होने पर मुझे सुनाएं. जब उन्होने स्क्रिप्ट सुनाई,तो मुझे तो बहुत फनी लगी.  इस विषय की फिल्म का फनी होना बहुत जरूरी है. अगर फिल्म गंभीर हो जाएगी,तो लोग इंज्वॉय नहीं कर पाएंगे और हम जो बात कह रहे हैं,वह वहां तक पहुंची नहीं पाएगी.  इसी विषय पर इससे पहले बनी गंभीर होने के चलते ही सिर्फ फेस्टिवल में ही दिखाई गई है. फिल्म फेस्टिवल में इस तरह की फिल्मों के दर्शक ‘गे’ समलैंगिक या समलैंगिकों के साथ खड़े रहने वाले लोग ही रहे. जबकि हमें यह फिल्म उनको दिखानी है,जो ‘गे’ समलैंगिकता के विरोध में हैं. इन तक हम तभी अपनी फिल्म को पहुंचा सकते हैं, जब हम इन्हें मनोरंजन दें. फिर पता भी नहीं चलेगा कि कैसे उन तक संदेश पहुंच जाता है. तो वही चीज हमने भी इस फिल्म के जरिए सोचा है.

इस फिल्म के अपने किरदार को कैसे परिभाषित करेंगें?

-मैने इसमें कार्तिक का किरदार निभाया है, जो कि समलैंगिक है और उसे एक अन्य समलैंगिक युवक अमन से प्यार है.

इस फिल्म के अपने किरदार को निभाने के लिए किस तरह के मैनेरिज्म या बौडी लैंगवेज अपनायीं?

-हमने यह दिखाया है कि हाव भाव कोई जरूरी नहीं है कि लड़कियों की तरह हों. रोजमर्रा की जिंदगी में आप किसी भी आदमी को देख सकते हैं, जो समलैंगिक हो सकता है. एक नजर में आपको नही पता चलेगा कि सामने वाला समलैंगिक है. यह कटु सच्चाई भी है. यही बात हमारी फिल्म के अंदर भी है. हमने कुछ भी स्टीरियोटाइप नहीं दिखाया है कि यह हाव भाव होना चाहिए. लड़कियों की तरह बात करता है,कभी-कभी ऐसा होता भी है,पर जरूरी नहीं है.  मैं फिल्में कम देखता हूं. किताबें ज्यादा पढ़ता हूं. मैं एक अंग्रेजी किताब पढ़ रहा हूं ‘लिव विथ मी. ’यह किताब मैंने पढ़़ी है,जो कि ‘गे’लड़कों की कहानी है. इस किताब से मैंने कुछ चीजें कार्तिक के किरदार को निभाने के लिए ली हैं.

इसके अलावा भी आपने कुछ पढ़ने की यह जानने की कोशिश की है?

-जी हां! हमारी फिल्म इंडस्ट्री में भी काफी समलैंगिक लोग हैं. फैशन इंडस्ट्री में भी हैं. यूं तो हर जगह हैं और होते हैं. पर इस तरह के लोगों को हमारी इंडस्ट्री में ज्यादा स्वीकार किया जाता है. कॉरपोरेट में भी होते हैं,लेकिन वहां वह खुलकर आ नहीं पाते. वहां वह बंधन में महसूस करते हैं. जबकि हमारी फिल्म इंडस्ट्री बहुत खुली है. यहां आप जैसे हैं, वैसे रहिए.  यह बहुत बड़ी बात है. इस बात को मुंबई आने के बाद से तो मैं जानता ही हॅूं. आप तो मुझसे पहले से मुंबई में हैं और फिल्लम नगरी में सक्रिय हैं,तो आप ज्यादा बेहतर ढंग से जानते व समझते हैं.

जब मैं कौलेज में पढ़ रहा था,तब हमारे कौलेज में ‘‘गे’’ क्लब हुआ करता था. एक दिन मुझे इस ‘गे’क्लब के अंदर गाना गाने के लिए बुलाया गया. उन्होंने मुझसे कहा कि,‘हम सभी को आपका गाना बहुत पसंद आया है. आप हमारे क्लब में आकर गाना गाए. ’आप यकीन नहीं करेंगे, पर उनकी बात सुनकर मैं डर गया था. मैंने कह दिया था कि यह मुझसे नहीं हो पाएगा. मैं आप लोगों से नहीं मिल सकता. पर आज मैं उन्ही ‘गे’/ समलैंगिक लोगों के साथ खड़ा हूं. तो समय के साथ यह बदलाव मुझमें भी आया है. मैं चाहता हूं कि यही बदलाव देश के बाकी लोगों में भी आ सके.

बदलाव हो रहा है?

-जी हां! हमारी इस फिल्म के अंदर भी वही है कि जब दो इंसान प्यार करते हैं, भले वह लड़के लड़के हो या लड़की लड़की हो,इस पर यदि इन दोनों की निजी एकमत है,तो इन्हें अपने हिसाब से जिंदगी जीने देना चाहिए.

हम पटना गए थे. वहां हमसे किसी पत्रकार ने पूछा यदि यह होगा तो वंश कैसे आगे बढ़ेगा? मैंने कहा कि,‘सर आपको जिंदगी जीने के लिए वंश की पड़ी है. ज्यादा से ज्यादा क्या होगा? आप बच्चे को गोद ले सकते हैं? इसके अलावा अब तो  बच्चे पैदा करने के लिए कई वैज्ञानिक तकनीक आ गयी हैं,जिससे आप बच्चा कर सकते हैं. इस तरह की सोच को बदलना जरूरी है. यह सोच रातों रात नहीं बदलेगी,वक्त लगेगा. लेकिन पहला कदम हम ले चुके हैं.

आप अपनी तरफ से क्या करना चाहेंगे कि इंसानी सोच बदल सके?

-मैं तो फिल्मों के जरिए ही कर सकता हूं. मैं एक्टिविस्ट नहीं हूं. मैं हर मुद्दे पर फिल्म के जरिए ही बात करता रहूंगा. एक्टिविस्ट बनने का निर्णय आपका अपना होता है. मैं समाज में जो भी बदलाव लाना चाहता हूं,उसका प्रयास अपनी कला के जरिए ही करना चाहता हूं. मुझे लगता है कि जो आप चौराहे पर खड़े होकर नहीं कर सकते हैं,उसे आप फिल्म के जरिए ज्यादा बेहतर ढंग से कर सकते हैं. एक अंधेरे कमरे में फिल्म इंसान को हिप्नोटाइज कर लेता है. आपको अपने अंदर ले जाता है और आपको समझा देता है. फिल्म के साथ भावनात्मक रुप से आप जुड़ जाते हैं. फिल्म के जरिए रिश्ता जो बन जाता है.

इस फिल्म को देखने के बाद दर्शक अपने साथ क्या लेकर जाएगा?

-सबसे पहले तो दर्शक अपने साथ मनोरंजन लेकर जाएगा. फिल्म देखते समय बहुत ठहाके लगेंगे. इस फिल्म में दिखाया गया है कि एक छोटे आम मध्यम वर्गीय परिवार को जब  पता चलता है कि उनका बेटा ‘गे’/समलैंगिक है, तो वह इसे किस तरह से लता है. उसके इर्द -गिर्द कैसा मजाक होता है? फिर वह परिवार कैसे इसे स्वीकार करता है.

आपके लिए प्यार क्या मायने रखता है?

– मुझे लगता है दोस्ती सबसे बड़ी चीज होती है. अगर आपकी बीवी आपके दोस्त नहीं है, उनका साथ आपको अच्छा नहीं लगता,तो आपकी उनसे कभी नहीं निभ सकती. आकर्षण तो कुछ वर्षों का होता है. उसके बाद तो दोस्ती होती है. आप कितने कंपैटिबल है. आपको साथ में फिल्में देखना अच्छा लगता है या एक ही तरह की किताबें पढ़ना अच्छा लगता है या एक ही तरह के गाने सुनना अच्छा लगता है. जब तक यह ना हो तब तक प्यार नहीं बरकरार रहता. शाहरुख खान साहब ने बोला कि प्यार दोस्ती है,तो सही कहा है.

इस बार वैलेंटाइन डे की कोई प्लानिंग है?

-मैं वैलेंटाइन डे में विश्वास नहीं रखता. मुझे लगता है कि यह तो सिर्फ कार्ड और फूल बेचने के लिए एक मार्केटिंग का जरिया है. प्यार तो आप रोज कर सकते हैं,उसके लिए एक दिन रखने की क्या जरूरत है? जितने भी दिन बने हुए हैं,वह सिर्फ फूलों और केक की बिक्री के लिए बने है,इसके अलावा कुछ नहीं है.

आप लेखक व निर्देशक कब बन रहे हैं?

-अभी तो नहीं. . . जब तक लोग मुझे कलाकार के तौर पर देखना चाहते हैं,तब तक तो एक्टिंग ही करूंगा.  क्योंकि अभिनय करना बहुत आसान काम है. लेखन व निर्देषन बहुत कठिन काम है.

वेब सीरीज करना चाहते हैं?

-ऐसी कोई योजना नहीं है. पर अगर कुछ अलग व अंतरराष्ट्रीय स्तर का हो,तो बिल्कुल करना चाहूंगा.

सोशल मीडिया पर क्या लिखना पसंद करते हैं?

-सोशल मीडिया पर कभी कविताएं लिख देता हूं. कभी मैं अपनी फिल्म के संबंध में लिख देता हूं. ऐसा कुछ नियम नहीं है कि क्या लिख सकता हूं. आजकल तो फिल्म ही प्रमोट कर रहा हूं.

कभी आपने यह नहीं सोचा कि किसी एक विषय को लेकर लगातार कुछ न कुछ सोशल मीडिया पर लिखते रहें?

-पहले ब्लौग लिखता था. मैं कुछ ना कुछ लिखता रहता था. पर अब समय नहीं मिलता है. लिखना तो चाहता हूं,पर समय नहीं मिलता है. क्योंकि आजकल लगातार फिल्म की शूटिंग कर रहा हूं.

नमस्ते ट्रंप बनाम नमस्ते भारत!

अमेरिका के राष्ट्रपति डोनाल्ड ट्रंप भारत आ गए हैं और जैसा कि प्रधानमंत्री नरेंद्र दामोदर दास मोदी के कार्यकाल में होता रहा है कि हर कार्यक्रम को “एक वृहद इवेंट” बना दिया जाता है. डोनाल्ड ट्रंप के भारत आगमन को भी वैसे ही रंग दिया गया है. जैसे कि हमारे प्रधानमंत्री मोदी की शैली है. मोदी चाहते हैं हर चीज बड़े पैमाने पर हो, यही कारण है कि डोनाल्ड ट्रंप का भारत आगमन भारत की आवाम पर 100 करोड़ से अधिक बेशकीमती रुपए की होली साबित हो चुका  है.

विगत 70 वर्षों में जाने कितने दिग्गज, देश दुनिया के राष्ट्राध्यक्षों का भारत आगमन हुआ. मगर जैसा बेतहाशा अपव्यय  करोड़ों रुपयों का डोनाल्ड ट्रंप के आगमन पर दिखाई दे रहा है, वैसा कभी नहीं हुआ था. यह एक चिंता का विषय है. अतिथियों का सम्मान होना चाहिए, लेकिन उसमें अतिरेक व अपव्यय  आज बेहद दुखद और चिंता का सबब है.

इसकी वजह है भारत का एक विकासशील देश होना, हमारे देश का आम आदमी बड़ी मेहनत से धन अर्जित करता है और जब वह पैसा सरकार के पास जाता है तो सरकार का दायित्व है उस पैसे का सदुपयोग करना. इसी तरह उद्योगपति जो धन टैक्स के रूप में देते हैं उसका वितरण राष्ट्रहित में समृद्धि के लिए होना चाहिए ना कि दिखावे  के लिए.

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जब नरेंद्र मोदी महात्मा गांधी की बात करते हैं, गांधी को उन्होंने आत्मसात किया है तो फिर यह गलतियां क्यों हो रही है? महात्मा गांधी  तो दिखावे के सख्त खिलाफ थे. क्या आज हमारे  प्रधान मंत्री नरेन्द्र मोदी की कथनी और करनी में अंतर नहीं  है? अगर है तो यह भी दुखद है और देश  के  लिए  चिंता का सबब भी है. आज हम कुछ प्रश्न आपके सामने रखने का प्रयास कर रहे हैं, आप स्वयं तय करें कि अमेरिका के राष्ट्राध्यक्ष डोनाल्ड ट्रंप की यात्रा और भारत के रुपयों  को उल्लास की तरह उड़ाना कितना समीचीन है-

हमारे न्यूज़ चैनल तो धन्य है!

भारतीय मीडिया के दो पक्ष है. एक है प्रिंट और दूसरा इलेक्ट्रॉनिक. निसंदेह प्रिंट मीडिया अपनी सीमा में रहकर देश को दिशा और जागरूक बनाने का काम करता रहा है. मगर हमारा इलेक्ट्रौनिक मीडिया बारंबार दिशा से भटक जाता है यही स्थिति दुनिया के सबसे बड़े ताकतवर राष्ट्र अमेरिका के राष्ट्रपति के भारत आगमन के दरमियान भी दिखाई दे रही है. जैसी प्रस्तुति इलेक्ट्रॉनिक चैनलों  की है उस संदर्भ में कहा जा सकता है कि “हमने कहा था, तेल लगाने के लिए, तो न्यूज़ चैनल मक्खन लगाने लगे” ट्रंप की भारत यात्रा, गुजरात, आगरा और दिल्ली की है इधर  टीवी चैनलों के संवाददाता चीख चीख कर बता रहे हैं कि किस दीवार पर कौन सा रंग लगा और कैसा चित्र बनाया गया. क्या यही सब पत्रकारिता का सामाजिक सरोकार है?

जगह-जगह मोदी और ट्रंप की दोस्ती उकेरी गई.  दूसरी तरफ व्हाइट हाउस के एक अधिकारी ने कहा कि ट्रंप भातर में सीएए और एनआरसी पर भी चर्चा करेंगे. भारत में धार्मिक स्वतंत्रता और समानता पर हाल ही में घटित घटनाओं से अमेरिका चिंतित है. अगरचे,  डोनाल्ड ट्रंप ने  इस पर  कुछ विपरीत कह दिया तो प्रधानमंत्री  के नाते मोदी को ना उबलते उगलते बनेगा ना निगलते, यह भी याद रखना चाहिए कि  डोनाल्ड ट्रंप कभी भी कुछ भी कह देते हैं जिस पर अक्सर प्रश्नचिन्ह लग जाता है. इसके पहले ट्रंप बयान दे चुके हैं कि अमेरिका के साथ भारत का व्यवहार अच्छा नहीं रहा है.

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डोनाल्ड ट्रंप की यात्रा: करोड़ों रुपए की होली 

अमेरिकी राष्ट्रपति डोनाल्ड ट्रंप भारत आने और उल्लास से भरे स्वागत के निचोड़ के रूप में हम पूछ सकते हैं कि भारत को क्या मिलेगा? सार तथ्य है कि कोई बड़ी “ट्रैड डील” भी इस यात्रा में संभव नहीं. ट्रंप अमेरिका में दिए अपने बयानों में कई बार उल्लेख करते हैं की भारत यात्रा के दरमियान 7000000 से लेकर एक करोड़ तक जनता उनके स्वागत के लिए खड़ी रहेगी. 100 करोड़ से अधिक की राशि उनकी इस यात्रा पर भारत सरकार खर्च कर रही है.

अमेरिका में पिछले बार संपन्न हुए राष्ट्रपति चुनाव में, ट्रंप पर यह आरोप लगा था की उन्होंने अमेरिकी मतदाताओं को प्रभावित करने के लिए रूस का सहारा लिया था. उन पर इसी आरोप को लेकर महाभियोग भी अमेरिकी संसद में चलाया गया था. ट्रंप को मालूम है की भारतीय मूल के अमेरिकी नागरिक डेमोक्रेट्स को ही वोट देते हैं. पिछली बार भारतीय मूल के 40% मतदाताओं ने डेमोक्रेट्स को वोट दिया था.

इधर भारत में मोदी दिल्ली चुनाव मैं हुई करारी हार से अत्यधिक आहत है. ऐसे में यह कहा जा सकता है की आगामी बिहार विधानसभा चुनाव के मद्देनजर ट्रंप की इस यात्रा मे सकारात्मकता ढूंढ रहे हैं. और इसी तरह ट्रंप महाभियोग के आरोपों से विचलित तथा भारतीय मूल के मतदाताओं का वोट बटोरने के लिए, यह यात्रा कर रहे हैं.

पर सवाल अभी भी अनुत्तरित है की इतने सरकारी खर्च से भारत या उसके नागरिकों को क्या हासिल होगा? सबसे महत्वपूर्ण प्रश्न यह है  डोनाल्ड ट्रंप का साबरमती आश्रम जाना. महात्मा गांधी ने दुनिया को सत्य अहिंसा और एक  “सादगी” का मार्ग दिखाया था और अगर आप महात्मा गांधी को श्रद्धांजलि देने जा रहे हैं नमन करते हैं तो फिर करोड़ों रूपए की होली क्यों. और हां! अगर यह कार्यक्रम, इवेंट “नमस्ते ट्रंप” की जगह “नमस्ते भारत” होता तो देश का सम्मान  बढ़ता.

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बेबी कौर्न से बनाएं ये 6 टेस्टी डिश और पाएं सबकी तारीफे

बेबी कौर्न यानी मकई बहुत छोटा और अपरिपक्व अनाज है. यह आमतौर पर सालभर खाया जाता है. बेबी कौर्न कच्चा और पका कर दोनों तरह से खाया जाता है. यह एशियाई व्यंजनों में बहुत आम है. इसे आप सलाद में सब्जी की तरह से या फिर कटलेट में या व्हाइट सौस में डाल कर बेक कर सकते हैं, ग्रिल करें या तंदूरी बेबी कौर्न बनाएं, जैसे चाहें, इस्तेमाल करें.

1 बेबी कौर्न कबाब

सामग्री
10-15 बेबी कौर्न, 25 ग्राम चीज, 2 उबले आलू, 1 बड़ा चम्मच कटा हरा धनिया, 2 हरीमिर्चें, 1/2 कप ब्रैड का चूरा, नमक स्वादानुसार, तेल सेंकने के लिए.

विधि
बेबी कौर्न बारीक पीस कर उस में उबले आलू, नमक, हरा धनिया और चीज डाल कर मिलाइए, कटलेट का आकार दीजिए और ब्रैड के चूरे में लपेट कर गरम तवे पर थोड़ा तेल लगा कर सेंक लें. कबाब तैयार हो गए. गरमागरम, हरे धनिए की चटनी या टमाटर की चटनी के साथ खाइए.

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2 भरवां पैकेट कौर्न

सामग्री
1 कप मैदा, 2 बड़े चम्मच तेल, 1/4 छोटा चम्मच नमक, 1 कप  व्हाइट सौस, 5-6 बेबी कौर्न, 4 बड़े चम्मच लाल, पीले, हरे रंग की शिमलामिर्च, नमक स्वादानुसार, 1/4 छोटा चम्मच पिसी कालीमिर्च पाउडर, तलने के लिए तेल.

विधि
मैदे में नमक और तेल डाल कर अच्छी तरह मिलाएं, पानी से पूरी के आटे से भी सख्त आटा गूंध लें. गुंधे आटे को ढक कर 20 मिनट के लिए रख दें. भरावन के लिए बेबी कौर्न को नमक के पानी में उबाल लें और उस के छोटे टुकड़े कर लें. लाल, पीली, हरी शिमलामिर्च को बारीक काट कर व्हाइट सौस में डालें. नमक और मिर्च पाउडर डाल कर मिश्रण तैयार करें. गुंधे आटे से छोटीछोटी लोई बनाएं. लोई से पतली पूरी बेल कर चौकोर आकार में काटें. 1/2 चम्मच मिश्रण पूरी के बीच में रख कर पैकेट बनाएं. पैकेट को बंद कर के गरम तेल में तल लें.

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3 आलू कौर्न सब्जी

सामग्री
6 बेबी कौर्न, 1 कटा प्याज, 1/4 छोटा चम्मच पिसी लालमिर्च, 2 साबुत सूखी लालमिर्च, 1 हरीमिर्च, 2 कटे हुए टमाटर, 1 चम्मच अदरकलहसुन पेस्ट, 2 उबले आलू, 1/4 कप मटर के दाने, 1 बड़ा चम्मच तेल, 1 छोटा चम्मच सरसोंदाना, 1 चम्मच उड़द की दाल, 1 छोटा चम्मच पिसी हलदी,1/2 चम्मच नीबू का रस, नमक स्वादानुसार.

विधि
बेबी कौर्न उबाल लें. एक पैन में तेल गरम करें. उड़द दाल, 2 सूखी लालमिर्चें, सरसोंदाना चटकाएं. अदरकलहसुन पेस्ट, प्याज, हलदी पाउडर और टमाटर डाल कर भूनें. बारीक कटी हुई हरीमिर्च, उबला हुआ बेबी कौर्न, उबले मैश किए हुए आलू, नमक, पानी डाल कर कुछ मिनट के लिए उबाल लें. नीबू का रस डाल कर हरी धनिया पत्ती से गार्निश कर चपाती, पूरी, इडली या डोसे के साथ गरमगरम परोसें.

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4 तंदूरी बेबी कौर्न

सामग्री
10-15 बेबी कौर्न, 1/2 छोटा चम्मच नमक, 1/4 कप बेसन, 4 बड़े चम्मच दही, 2 हरीमिर्चें, 1 इंच अदरक का टुकड़ा, 1/4 छोटा चम्मच पिसी लालमिर्च, तलने के लिए तेल, नमक स्वादानुसार.

विधि
बेसन में दही, अदरक, पिसी हरीमिर्च डालें और पानी की सहायता से घोल तैयार कर लें. घोल में नमक और बेबी कौर्न भी डाल कर मिलाएं और मैरिनेशन के लिए 1/2 घंटे के लिए रखें. तंदूर में ग्रिल करें या फिर गरम तवे पर हलका तेल डाल कर दोनों तरफ से सेंक लें. चटपटे तंदूरी बेबी कौर्न तैयार हैं.

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5 कौर्न चीज चीला

सामग्री
10-15 बेबी कौर्न, 1 कप मैदा, 1/2 छोटा चम्मच नमक, 2 हरीमिर्चें, 1/4 छोटा चम्मच कालीमिर्च पाउडर, 3 बड़े चम्मच मौजरेला चीज, 3 बड़े चम्मच तेल.

विधि
मैदे का नमक और कालीमिर्च पाउडर के साथ घोल तैयार कर लें. गरम तवे पर हलका तेल डाल कर घोल से पतला चीला बना कर दोनों तरफ से सेंक लें. बेबी कौर्न को धो कर और लंबाई में आधा करते हुए 2 भागों में काट लें. कटे हुए बेबी कौर्न में नमक लगा कर10 मिनट के लिए रख दें. अब उस में मौजरेला चीज भर कर दूसरे टुकड़े से बंद कर दें. फिर तैयार चीले में लपेट कर गरम तवे पर दोनों तरफ से सेंक लें. गरमागरम चीला टमाटर सौस व हरे धनिए की चटनी के साथ परोसें.

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6 चटपटे बेबी कौर्न चावल

सामग्री
1 कप बासमती चावल, 1/4 कप तेल, 1/2 छोटा चम्मच जीरा, 1 इंच  अदरक का टुकड़ा कद्दूकस किया हुआ, 2 हरीमिर्चें, 1 छोटा चम्मच पिसा सूखा धनिया, 1/4 छोटा चम्मच पिसी लालमिर्च, 1 कप कटी ब्रोकली, 1 प्याज, 1/2 कप कटी गाजर, 3 बड़े चम्मच लाल, पीली, हरी शिमलामिर्च, 1/2 कप कटी फ्रैंच बींस, 1 जुकीनी, 1 टमाटर, नमक स्वादानुसार.

विधि
चावल को साफ कर के, धो कर 20 मिनट के लिए पानी में भिगो दें. बाद में उबाल लें. कड़ाही में थोड़ा तेल डाल कर गरम करें. प्याज के लंबे टुकड़े हलके भूरे होने तक भूनें. उस के बाद ब्रोकली, जुकीनी, फ्रैंच बींस, शिमलामिर्च और गाजर डाल कर इतना भूनें कि ज्यादा गलें नहीं. कड़ाही में गरम तेल में जीरा चटकाएं. अदरक पेस्ट और हरीमिर्च डाल कर थोड़ा सा भूनें और सूखा धनिया, नमक डालें. मसाले को थोड़ा सा भूनिए. चावल और सब्जियां डाल कर मिलाएं, हरी धनिया पत्ती और पुदीना पत्ती हाथ से तोड़ कर डाल दें. पुलाव को चटनी या रायते के साथ परोसें.

Sridevi Death Anniversary: जान्हवी की मां और नाना की मौत के बीच है ये अजीब कनेक्शन

24 फरवरी को बॉलीवुड की मशहूर एक्ट्रेस श्रीदेवी दूसरी डेथ एनिवर्सरी है. इस मौके पर हम आपको बता रहे हैं उनकी जिंदगी से जुड़ा हुआ एक ऐसा इत्तेफाक जिसके बारे में जानकर आप भी हैरान हो जाएंगे.

श्रीदेवी ने अभिनय के क्षेत्र में अपने पिता की अनिच्छा के बावजूद एक अजीबोगरीब इत्तेफाक के साथ कदम रखा था और जिस दिन उनके पिता की मौत हुई थी. उस दिन वह अपनी एक फिल्म की शूटिंग में व्यस्त थीं.

पिता के आखिरी वक्त में नहीं थीं साथ…

खुद श्रीदेवी ने हमारी मैगजीन को दिए एक इंटरव्यू में बताया था. ‘‘मैं अपने पिता की मौत को कभी नहीं भुला सकती. जिस दिन मेरे पिता की मौत हुई, उस दिन मैं फिल्म‘‘लम्हें’’ की शूटिंग कर रही थी. मैंने उनसे कुछ समय पहले ही फोन पर लंबी चौड़ी बात की थी, पर मुझे यह दुःख हमेशा सताता रहता है कि जिस वक्त उनकी मौत हुई, उस वक्त मैं उनके पास नहीं थी. काश! मैं उस वक्त उनके पास होती.

अब इसे भी हम तकदीर की बात कह सकते हैं. मेरे पिता ने मुझे बहुत प्यार दिया. मैं पूरी जिंदगी उनके बहुत करीब थी. उन्होंने मुझे बहुत सिखाया था. मेरे पिता कि मेरे दिलों दिमाग में बहुत खूबसूरत यादें हैं. जिन्हें कोई छीन नहीं सकता. मैं उन्हें कभी भुला नहीं सकती.’’

 

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बेटी जाहन्वी के साथ भी हुआ हादसा…

अब इसे इत्तेफाक कहें या इतिहास का दोहराव कहें कि श्रीदेवी ने अपनी बेटी जान्हवी कपूर को अनिच्छा के साथ बौलीवुड से जुड़ने की इजाजत दी थी और जब दुबई में श्रीदेवी का हृदय गति रूकने से निधन हुआ, तो श्रीदेवी की बेटी जान्हवी कपूर भी उनके पास नहीं थी, बल्कि जान्हवी कपूर मुंबई में अपनी फिल्म धड़क की शूटिंग में व्यस्त थीं.

बता दें जान्हवी कपूर आज बॉलीवुड की पौपुलर एक्ट्रेसेस की लिस्ट में शामिल हो चुकी है और जल्द ही ‘दोस्ताना-2’ और ‘कारगिल गर्ल-गुंजन सक्सेना’ की बायोपिक में नजर आएंगी. जान्हवी अपनी मां के बेहद करीब थी और आज भी हर खास मौके पर वो श्रीदेवी को याद करती हैं.

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मैं रोजाना अपनी बीवी के साथ संबंध बनाता हूं, क्या ऐसा करना सेहत के लिए ठीक नहीं है?

सवाल
मैं 21 साल का हूं और रोजाना अपनी बीवी से हमबिस्तरी करता हूं. क्या ऐसा करना सेहत के लिए ठीक नहीं है?

जवाब
इस से सेहत पर कोई असर नहीं पड़ता है, लिहाजा आप बेखौफ ऐसा कर सकते हैं.

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सैक्स बोरिंग लगने लगे तो अपनाएं ये नुसखे

विवाह के कुछ वर्ष बाद न सिर्फ जीवन में बल्कि सैक्स लाइफ में भी एकरसता आ जाती है. कई बार कुछ दंपती इस की तरफ से उदासीन भी हो जाते हैं और इस में कुछ नया न होने के कारण यह रूटीन जैसा भी हो जाता है. रिसर्च कहती है कि दांपत्य जीवन को खुशहाल व तरोताजा बनाए रखने में सैक्स का महत्त्वपूर्ण योगदान है. लेकिन यदि यही बोरिंग हो जाए तो क्या किया जाए?

पसंद का परफ्यूम लगाएं

अकसर महिलाएं सैक्स के लिए तैयार होने में पुरुषों से ज्यादा समय लेती हैं और कई बार इस वजह से पति को पूरा सहयोग भी नहीं दे पातीं. इसलिए यदि आज आप का मूड अच्छा है तो आप वक्त मिलने का या बच्चों के सो जाने का इंतजार न करें. अपने पति के आफिस से घर लौटने से पहले ही या सुबह आफिस जाते समय कानों के पीछे या गले के पास उन की पसंद का कोलोन, परफ्यूम लगाएं, वही खुशबू, जो वे रोज लगाते हैं. किन्से इंस्टिट्यूट फौर रिसर्च इन सैक्स, जेंडर एंड रिप्रोडक्शन के रिसर्चरों का कहना है कि पुरुषों के परफ्यूम की महक महिलाओं की उत्तेजना बढ़ाती है और सैक्स के लिए उन का मूड बनाती है.

साइक्लिंग करें

अमेरिकन हार्ट फाउंडेशन द्वारा जारी एक अध्ययन में स्पष्ट हुआ कि नियमित साइक्लिंग जैसे व्यायाम करने वाले पुरुषों का हृदय बेहतर तरीके से काम करता है और हृदय व यौनांगों की धमनियों व शिराओं में रक्त के बढ़े हुए प्रवाह के कारण वे बेडरूम में अच्छे प्रेमी साबित होते हैं. महिलाओं पर भी साइक्लिंग का यही प्रभाव पड़ता है. तो क्यों न सप्ताह में 1 बार आप साइक्लिंग का प्रोग्राम बनाएं. हालांकि साइक्लिंग को सैक्स विज्ञानी हमेशा से शक के दायरे में रखते हैं, क्योंकि ज्यादा साइक्लिंग करने से साइकिल की सीट पर पड़ने वाले दबाव के कारण नपुंसकता हो सकती है. लेकिन कभीकभी साइक्लिंग करने वाले लोगों को ऐसी कोई समस्या नहीं होती.

स्वस्थ रहें

वर्जिनिया की प्रसिद्ध सैक्स काउंसलर एनेट ओंस का कहना है कि कोई भी शारीरिक क्रिया, जिस के द्वारा आप के शरीर के रक्तप्रवाह की मात्रा कम होती है, सैक्स से जुड़ी उत्तेजना को कम करती है. सिगरेट या शराब पीना, अधिक वसायुक्त भोजन लेना, कोई शारीरिक श्रम न करना शरीर के रक्तप्रवाह में गतिरोध उत्पन्न कर के सैक्स की उत्तेजना को कम करता है. एक स्वस्थ दिनचर्या ही आप की सैक्स प्रक्रिया को बेहतर बना सकती है.

दवाइयां

वे दवाइयां, जिन्हें हम स्वस्थ रहने के लिए खाते हैं, हमारी सैक्स लाइफ का स्विच औफ कर सकती हैं. इन में से सब से ज्यादा बदनाम ब्लडप्रेशर के लिए ली जाने वाली दवाइयां और एंटीडिप्रेसेंट्स हैं. इन के अलावा गर्भनिरोधक गोलियां और कई गैरहानिकारक दवाइयां भी सैक्स की दुश्मन हैं. इसलिए कोई नई दवा लेने के कारण यदि आप को सैक्स के प्रति रुचि में कोई कमी महसूस हो रही हो तो अपने डाक्टर से बात करें.

सोने से पहले ब्रश

बेशक आप अपने साथी से बेइंतहा प्रेम करती हों, लेकिन अपने शरीर की साफसफाई का ध्यान अवश्य रखें. ओरल हाइजीन का तो सैक्स क्रीडा में महत्त्वपूर्ण स्थान है. यदि आप के मुंह से दुर्गंध आती हो तो आप का साथी आप से दूर भागेगा. इसलिए रात को सोने से पहले किसी अच्छे फ्लेवर वाले टूथपेस्ट से ब्रश जरूर करें.

स्पर्श की चाहत को जगाएं

आमतौर पर लोगों को गलतफहमी होती है कि अच्छी सैक्स क्रीडा के लिए पहले से मूड होना या उत्तेजित होना आवश्यक है, लेकिन यह सत्य नहीं है. एकसाथ समय बिताएं, बीते समय को याद करें, एकदूसरे को बांहों में भरें. कभीकभी घर वालों व बच्चों की नजर बचा कर एकदूसरे का स्पर्श करें, फुट मसाज करें. ऐसी छोटीछोटी चुहलबाजी भी आप का मूड फ्रेश करेगी और फोरप्ले का काम भी.

थ्रिलर मूवी देखें

वैज्ञानिकों का मानना है कि डर और रोमांस जैसी अनुभूतियां मस्तिष्क के एक ही हिस्से से उत्पन्न होती हैं, इसलिए कभीकभी कोई डरावनी या रोमांचक मूवी एकसाथ देख कर आप स्वयं को सैक्स के लिए तैयार कर सकती हैं.

फ्लर्ट करें

वैज्ञानिकों का मानना है कि फ्लर्टिंग से महिलाओं के शरीर में आक्सीटोसिन नामक हारमोन का स्राव होता है, जो रोमांटिक अनुभूतियां उत्पन्न करने में महत्त्वपूर्ण भूमिका निभाता है. इसलिए दोस्तों व सहेलियों के बीच सैक्सी जोक्स का आदानप्रदान करें, कभीकभी किसी हैंडसम कुलीग, दोस्त के साथ फ्लर्ट भी कर लें. अपने पति के साथ भी फ्लर्टिंग का कोई मौका न छोड़ें. आप स्वयं सैक्स के प्रति अपनी बदली रुचि को देख कर हैरान हो जाएंगी.

मोहजाल: भाग-1

श्यामाजी ने जैसे ही अपनी अलमारी खोली तो एक बार फिर उन की त्योरियां चढ़ गईं. अपने कमरे से ही जोर से पुकार उठीं, ‘‘मंजरी, मंजरी.’’

‘‘जी, दादी.’’

‘‘कहां थी? पुकारतेपुकारते मेरा गला सूख गया, लेकिन तुम लोगों को तो बातों से फुरसत नहीं है. कान से मोबाइल चिपका ही रहता है.’’

‘‘क्या काम है, जल्दी बताइए. कल मेरा पेपर है.’’

‘‘तुम से कितनी बार कह चुकी हूं, मेरी अलमारी की सफाई कर के ठीक से लगा दो. नहीं करना है तो साफ मना कर दो. हम रोजरोज तुम से क्यों कहें?

‘‘मुझे आंखों से दिखाई नहीं देता, इसलिए कहना पड़ता है, नहीं तो मुझे तुम लोगों से भला क्या काम?’’

मंजरी भुनभुनाते हुए मन ही मन बोली, ‘हो गया छुट्टी का कबाड़ा, एकएक रुपया गिनवाएंगी. एकएक डब्बी और रेशमी थैली से जेवर निकालनिकाल कर देखेंगी. घंटों का राग हो गया. उस के बाद मोहिनी बूआ की तारीफ के कसीदे काढ़ेंगी.’

‘‘क्या बड़बड़ा रही हो? मुझे ऊंचा सुनाई पड़ने लगा है न इसीलिए. तुम रहने दो. तुम्हारे बस का नहीं है, मैं खुद ही, जैसे बनेगा वैसे ठीक कर लूंगी.

‘‘पढ़े होते, तो आज तुम लोगों का मुंह न देखना पड़ता. क्या करूं? गिनती ही भूल जाती हूं. मोहिनी ने कितना तो सिखाने की कोशिश की, लेकिन मैं ही अच्छी तरह सीख नहीं पाई.’’

‘‘दादी, बूआ आने वाली हैं. उन्हीं से ठीक करवा लेना.’’

‘‘कब आ रही है मोहिनी? मुझे कौन बताने वाला है. यहां आ कर ठीक से बताओ.’’

‘‘पापा, मम्मी से कुछ बात कर रहे थे. मुझे ठीकठीक नहीं मालूम.’’

मानसी रसोई में नाश्ता बना रही थी साथ ही दादीपोती की बातें भी सुन रही थी. वह अम्माजी की आदत से परिचित थी.

श्यामाजी उम्रदराज महिला हैं. 85 वर्ष के आसपास उन की उम्र होगी. जमींदार परिवार से ताल्लुक रखती थीं. अपनी जवानी में सोने के जेवरों से लदी रहती थीं. पति असमय अकेला छोड़ गए थे. जमीनजायदाद सब परिवार के लोगों ने हड़प ली थी, तब उसी सोने की मदद से अपने दोनों बच्चों को पढ़ायालिखाया, फिर बेटी की शादी निबटाई. बेटे मनोहर को साडि़यों का कारोबार करने के लिए पूंजी दी. अब भी 2-4 पुराने कलात्मक जेवर उन की अलमारी के अंदर ताले में बंद हैं.

पहले राजकुमारी फिर रानी जैसा जीवन बिताने वाली श्यामाजी ने बहुत तंगहाली के दिन भी देखे हैं, इसलिए उन के मन में पैसे के लिए जरूरत से ज्यादा मोह हो गया है. वे शरीर से काफी कमजोर हो चुकी हैं. कमर झुक गई है, छड़ी ले कर भी दूसरों के सहारे से ही चल पाती हैं. अपने दैनिक कार्यों के लिए बहू मानसी या आया पर आश्रित हैं. अपनी मजबूर अवस्था के कारण मन ही मन कुंठित रहती हैं. इसलिए बातबात पर चिड़चिड़ाती रहती हैं. उम्र बढ़ने के साथसाथ मन में वहम पाल बैठी हैं कि बहू मानसी उन का जेवर, रुपया चुरा लेगी, इसलिए हर समय खीझती रहती हैं.

बेटी मोहिनी के पति मदनजी शादी के समय शिक्षा विभाग में क्लर्क थे. अब वे अफसर बन गए हैं. परंतु नौकरी में आमदनी तो सीमित ही होती है. चीना व नीना 2 बेटियां हैं. दोनों उच्च शिक्षा प्राप्त कर चुकी हैं. भाईबहन आपस में एकदूसरे से बहुत प्यार करते हैं. मनोहर यथासंभव बहन को उपहार आदि देता रहता है. परंतु श्यामाजी बहू मानसी की खुशहाली और समृद्धि देख कर मन ही मन कुढ़ती रहती हैं.

बेटा मनोहर बचपन से ही दोहरे बदन का था. छोटा था, तभी पोलियो ने उस का 1 पैर खराब कर दिया था. इसलिए वह हलका लंगड़ा कर चलता था. इसी कारण से उस की शादी नहीं हो पा रही थी. उस समय श्यामाजी की आर्थिक स्थिति भी बहुत अच्छी नहीं थी. अंत में मजबूरीवश श्यामाजी ने अपने दिल पर पत्थर रख कर पक्के सांवले रंग की मानसी के साथ बेटे का रिश्ता पक्का कर दिया था. परंतु उसे बहू का सम्मान आज तक न दे पाई थीं.

अब मनोहर साडि़यों का सफल व्यापारी है. उस की वाक्पटुता और कड़ी मेहनत से कारोबार दिनदूना रातचौगुना बढ़ता जा रहा है.

बहू मानसी साधारण मध्यम परिवार से है. वह संस्कारसंपन्न कुशल गृहिणी है. वह श्यामाजी की सुखसुविधा का पूरा ध्यान रखती है. उन का पूरा सम्मान करती है. सब ठीक सा ही रहता है लेकिन बेटी मोहिनी के आते ही सब गड़बड़ हो जाता है.

श्यामाजी का मोतियाबिंद का औपरेशन हुआ था. लगभग 20 दिन बाद बेटी मोहिनी उन से मिलने आई थी. बेटी को देख कर श्यामाजी का दिमाग सातवें आसमान पर था.

मानसी ने नाश्ते में चीला बनाया था.

‘‘देख लिया मोहिनी, बहू ने कितना मोटा चीला बनाया है? मैं ऐसा बनाती तो मेरी सास मेरे मुंह पर मार देती. हमें तो पेट भरना है. कच्चापक्का जो मिले, वही चुपचाप खा लेती हूं.’’

‘‘अम्मा, इतना करारा तो चीला है. लीजिए, आप मेरे वाला ले लीजिए. चटनी कितनी टेस्टी बनाई है भाभी ने,’’ फिर वह अम्मा की बात को दबाने के लिए बोली, ‘‘वाह भाभी, मजा आ गया.’’

‘‘अम्मा, आप धीरे बोलिए. भाभी सुनेंगी तो उन्हें कितना खराब लगेगा.’’

‘‘मुझे तुम्हारी भाभी का डर थोडे़ ही है. तू क्या समझे? मैं तो जानबूझ कर चिल्ला कर बोलती हूं, जिस से उस के मन में मेरा डर बना रहे.’’

‘‘अम्मा, आप तो जाने किस जमाने में जी रही हैं. बहू को भी बेटी की ही तरह बल्कि उस से भी ज्यादा प्यार की जरूरत रहती है. क्योंकि वह तो अपनों को छोड़ कर दूसरे घर में आई होती है.’’

‘‘रहने दे मुझे मत सिखा. मैं तो वैसे ही मुंह बंद कर के रहती हूं.’’

‘‘मोहिनी, तुम भी बदल गई हो, अब तुम्हें भी हर समय अम्मा में ही खोट नजर आती है.’’

मोहिनी अपनी अम्मा के क्रोध को जानती हुई चुप हो गई. वह मानसी भाभी का हाथ बंटाने रसोई में चली गई.

मानसी के लिए कुछ नया नहीं था. वह अम्माजी के स्वभाव से अच्छी तरह परिचित थी. जब तक मोहिनी जीजी रहेंगी, अम्माजी इसी तरह बातबात में उस पर तीर चलाती रहेंगी.

वह रोज की तरह आईड्रौप ले कर अम्माजी की आंखों में डालने के लिए आई.

‘‘अम्माजी, आंख खोलिए, दवा डाल दूं.’’

‘‘तुम बेकार ही परेशान होती हो. तुम्हें तो दस काम हैं. लल्ली डाल देती,’’ प्यार से वे मोहिनी को लल्ली कहती थीं.

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मोहजाल: भाग-3

मोहिनी झुंझला कर बोली, ‘‘अरे अम्मा, सारा दिन पड़ा है, मैं कर दूंगी न. आप अभी सो जाओ और मुझे भी सोने दो.’’

श्यामाजी रजाई से मुंह ढंक कर जाप करने लगीं.

उनींदी मोहिनी अपनी अम्मा के बारे में सोचने लगी कि एक समय अम्मा कितनी सुंदर और सक्रिय थीं. अब झुर्रीदार चेहरा, झुकी हुई कमर, छड़ी का सहारा, उन की जर्जर काया, कान से ऊंचा सुनना, आंखों से कम दिखाई देना, लेकिन इस हालत में भी अपनी अलमारी के लिए आज भी उसी मोहजाल में फंसी हुई हैं. यह भी क्या विडंबना है? शरीर तो साथ छोड़ता जाता है, परंतु मन संसार की छोटीछोटी चीजों में उलझा और जकड़ा रहता है.

वह अलसाई सी बिस्तर पर लेटी थी तभी मंजरी आई और बोली, ‘‘बूआ, आज शाम को थिएटर में बहुत बढि़या नाटक है, मैं ने 2 टिकटें मंगा ली हैं. शाम 5 बजे का शो है. आप तैयार रहना, मैं और आप चलेंगे.’’

‘‘मंजरी, छोड़ो भी थिएटर वगैरह, थोड़ी देर तुम सब के साथ बैठूंगी, कल तो मुझे जाना ही है.’’

मंजरी, बूआ के गले से लिपट कर बोली, ‘‘बूआ प्लीज, चलो न, मेरा एक बार थिएटर देखने का बहुत मन है. मम्मीपापा तो कभी जाते नहीं.’’

मोहिनी चुप ही रही.

‘‘मेरी अच्छी बूआ. तो फिर शाम का प्रोग्राम पक्का रहा न,’’ वह बाहर से दौड़ती हुई फिर लौट कर आई और फुसफुसा कर बोली, ‘‘बूआ, दादी की अलमारी दोपहर में जरूर ठीक कर देना, मुझ से बहुत दिन से कह रही हैं. मुझे यह काम बहुत बोरिंग लगता है.’’

मोहिनी, मंजरी को प्यार से निहारती रही. आज मंजरी में उसे अपना बचपन दिखाई पड़ रहा था.

मानसी सुबह श्यामाजी को नहला रही थीं, तभी उन की निगाह उस के मेहंदी रचे हाथों पर पड़ी. वे चौंक कर बोलीं, ‘‘अरे, यह मेहंदी कब रचा ली? बड़ा गहरा रंग आया है.’’

‘‘कल रात बिग बाजार में मेहंदी लगाने वाली बैठी थी. जीजी का मन था तो उन्हीं की जिद पर हम ने भी लगवा ली.’’

सुबह का नाश्तापानी निबट गया था. मनोहर अपनी दुकान चले गए थे. मंजरी सुबह ही कालेज जा चुकी थी. मानसी किचन में लंच की तैयारी में लगी थी.

तभी मोहिनी अम्मा के पास आई, बोली, ‘‘चलो अम्मा, आप की अलमारी की सफाई कर के ठीक से सैट कर दूं.’’

‘‘कर दो तो बहुत ही अच्छा है. हम से तो अब कुछ होता नहीं है. न जाने कब बुलावा आ जाए.’’

‘‘अम्मा, हर समय इस तरह की बातें मत किया करिए. अच्छा नहीं लगता.’’

7 परतों वाले पर्स से एक के बाद एक, कई जेबों के अंदर से उन्होंने चाबी निकाल कर दी.

अलमारी खोलते ही मोहिनी चौंक उठी, आज भी अम्मा, मानसी भाभी की शादी वाले जेवर अपनी अलमारी में ही रखे हुए थीं.

सबकुछ व्यवस्थित और साफसुथरे ढंग से रखा हुआ था. अम्मा हमेशा से सफाईपसंद स्वभाव की थीं.

कई डब्बों में नोटों की गड्डियां रखे हुए थीं जिन पर चिट लगी हुई थीं परंतु फिर भी उन्हें फिर से गिनवा कर मंजरी की विश्वसनीयता को परखना चाह रही थीं.

अम्मा की इस हरकत से मोहिनी का मन भी खट्टा हो गया था.

‘‘अम्मा, भाभी के जेवर आप के पास आज भी रखे हुए हैं. आप उन की चीज उन्हें देती क्यों नहीं?’’

‘‘क्या हम पहन लेंगे?’’

उन्होंने एक मखमली डब्बे से हथफूल निकाले. पुराने जमाने के कुंदन के हथफूल बहुत ही खूबसूरत थे.

मोहिनी बोल पड़ी, ‘‘अम्मा, ये हथफूल आप किस को देंगी?’’

‘‘लल्ली, तुम चुपचाप इसे आज ही अपने साथ ले जाओ. मेरे मरने के बाद ये लोग तुम्हें कुछ भी नहीं देंगे.’’

तभी हड़बड़ी में एक डब्बा उठा कर बोलीं, ‘‘लल्ली, पहले हमारे इस डब्बे के रुपए गिन कर बताओ, हमें लग रहा है कि मंजरी ने इस में से कुछ रुपए निकाल लिए हैं. हमें खूब याद है कि मनोहर ने हमें पूरे 8 हजार रुपए गिन कर दिए थे.’’

‘‘अम्मा, आप भी गजब करती हैं, मंजरी पर शक करती हैं. इस में तो 8,500 रुपए हैं.’’

‘‘लल्ली, हम तो गिन नहीं पाते. जब मंजरी से गिनवाते हैं तो लगता है कि उस ने 2-4 नोट निकाल लिए होंगे.’’

मोहिनी गुस्से से फट पड़ी थी, ‘‘अम्मा, आप का तो दिमाग खराब हो गया है. अपनी ही पोती पर चोरी का शक कर रही हो. रुपए भी भैया के ही दिए हुए हैं तो भी आप ऐसा कैसे सोच सकती हैं? लो संभालो, अपनी अलमारी. अब आप मुझ पर भी शक करना कि मोहिनी ने मेरा कोई जेवर और रुपया चुरा लिया है.’’

श्यामाजी सिटपिटा कर बोलीं, ‘‘न बिटिया न, तुम नाराज न हो. लो, ये चंपाकली, तुम चुपचाप अपने पास संभाल कर रख लो. न भैया को बताना न अपनी भाभी को. इस के बारे में तो मनोहर को भी नहीं मालूम है. बड़े चाव से रखा हुआ था कि मनोहर की बहू को दूंगी, लेकिन इस से तो मेरा मन नहीं मिलता. इस की तो सूरत से ही मुझे चिढ़ है. लो, ये 10 हजार रुपए भी तुम रख लो. मेरा अब क्या भरोसा कि मैं कितने दिन रहूं. मैं इन सब को जानती हूं, सब दिखावा करते हैं. मेरे मरने के बाद तुम्हें कोई एक चुटकी नमक भी न देगा.’’

‘‘अम्मा, आप अच्छी तरह समझ लीजिए. मुझे कोई कुछ दे या न दे, मैं अपनी दुनिया में बहुत खुश हूं. मुझे केवल भैया और भाभी का प्यार चाहिए. वही मेरे लिए सबकुछ है.’’

उसी समय मानसी भाभी की परछाईं दिखी और आहट हुई, मानो वे कमरे के बाहर से उन लोगों की बातें सुन रही थीं.

‘‘अम्मा, मेरी बात ध्यान से सुन लो कि यदि आप चाहती हैं कि मैं आप के पास आती रहूं तो आज आप को मेरी एक बात माननी ही होगी. आज और अभी मानसी भाभी को अपनी अलमारी की चाबी सौंपनी होगी.’’

‘‘तुम तो मुझे धमकी सी दे रही हो.’’

‘‘वे आप को बच्चों की तरह नहलातीधुलाती हैं, कपड़े पहनाती हैं. समयसमय पर आप को शौच, दवादारू, खानापीना, वे क्या नहीं करतीं और आप हैं कि उन को जलील करने का कोई मौका नहीं छोड़ती हैं. गैरों की तरह अंटशंट बोलती हैं, मेरे बक्से से रुपए निकाल लिए. मेरे चांदी के बरतन चुरा लिए. आप की ऊलजलूल बातों से मैं 2 दिन में ही तंग हो जाती हूं. भाभी जाने कैसे बरदाश्त करती हैं. आप को तो याद ही होगा जब मेरी सास ने मुझे जेवर नहीं दिए थे तो आप कैसे चीखचीख कर लड़ने को तैयार थीं, ‘मेरी बेटी के जेवर वे कैसे अपने पास रख सकती हैं? मैं समधनजी से बात करूंगी.’

‘‘वह तो मैं ने मना न किया होता तो अवश्य ही उसी दिन से आप लोगों से मेरा नाता टूट गया होता. वह तो भाभी सीधी और समझदार हैं, इसीलिए सब सह लेती हैं. मैं तो शायद कभी न कर पाती,’’ यह कह कर मोहिनी तेजी से कमरे से बाहर निकल गई थी.

श्यामाजी की तो बोलती ही बंद हो गई थी. उन को मोहिनी की बातें अक्षरश: सच लग रही थीं. उन की बेटी ने आज उन्हें ही आईना दिखा दिया था. वे पसोपेश में थीं, परंतु उन का अहं उन के आड़े आ रहा था. आज मन ही मन वे सोचने को मजबूर हो गई थीं कि क्या वे अपनी सास के द्वारा किए हुए दुर्व्यवहार का अपनी बहू से बदला ले रही थीं. अपने व्यवहार से वे इतिहास की पुनरावृत्ति कर रही थीं.

ड्राइंगरूम से बहू मानसी, मोहिनी और मंजरी की हंसीमजाक की आवाजें, बीचबीच में ठहाके उन के कानों से टकरा रहे थे. घंटों वे अनिश्चय की स्थिति में सन्न सी बैठी रहीं, फिर उन की आंखों के सामने मानसी बहू की प्यारभरी सहमी सी चितवन घूमने लगी. उन्होंने चाहे कितना भी डांटाफटकारा हो, परंतु मानसी के चेहरे पर कभी भी शिकन नहीं आई थी. हर क्षण ‘जी, अम्माजी’ कह कर हाजिर रहती थी.

वेस्वयं कितनी मूढ़ थीं. अपने खुशनुमा पलों को कुढ़कुढ़ कर गुजारती रहीं. यह तो अच्छा हुआ कि मोहिनी की धमकी से उन की आंखें खुल गईं. आज वे अपनी गलतियों का प्रतिकार तो कर सकती हैं. उन की आंखों में उन के निश्चय की अनोखी चमक थी.

उत्तेजनावश वे स्वयं छड़ी के सहारे उठ खड़ी हुईं. 2-4 कदम वे चल भी ली थीं. छड़ी की खटखट सुनते ही मानसी भागती हुई आई, मोहिनी और मंजरी उस के पीछेपीछे आ गईं.

‘‘अम्माजी, क्या बात है? आप घंटी बजा देतीं.’’

‘‘कमरे में पड़ीपड़ी उदास हो रही थी तो सोचा सब के साथ टीवी देखूं. अकेले देखने में कहां अच्छा लगता है,’’

फिर रुक कर बोलीं, ‘‘और आज सब्जी क्या बनाएगी?’’

‘‘अम्माजी, आलू और हरा सीताफल बना रही हूं.’’

‘‘अच्छा. तो यहीं चाकू के साथ दे दे. टीवी देखतेदेखते जितना हो सकेगा, छीलकाट दूंगी. ठीक कर लेना अगर छोटेबड़े टुकड़े हो जाएं. तू ने तो वर्षों से काम ही नहीं करने दिया.’’

मानसी भौचक्की सी खड़ी थी कि अम्मा ने फिर आवाज दी, ‘‘और सुन बहू, यह अलमारी की चाबी तू रख. इतने पैसेजेवर मुझ से नहीं संभाले जाते. तू जाने और तेरा काम जाने.’’

फिर मोहिनी की ओर मुंह कर के बोलीं, ‘‘और लल्ली, जरा वे साडि़यां तो दिखा जो बहू ने तुझे दिलाईं. उस की पसंद तो लाजवाब है. मुझे भी तो देखने दे. अब पहन तो नहीं सकती पर…’’

अम्मा बोलती रहीं और मानसी व मोहिनी मुंह खोले उन्हें देखती रहीं.

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