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पाखंड: प्रेतयोनि से मुक्ति के नाम पर लूटने का गोरखधंधा- भाग 2

षोडमासिक श्राद्ध जिस का नहीं होता, उस का प्रेतत्व सैकड़ों श्राद्ध के बाद भी नहीं जाता. गरुड़पुराण कहता है कि प्रेतत्व नाश के लिए विष्णु की पूजा करें तथा ब्राह्मणों को 13 पददान व घट का दान करें.

तपाए हुए सोने का घट बना कर ब्रह्मा, ईश, केशव व लोकपालों (इंद्र, यम, वरुण, कुबेर) का आह्वान कर इस घड़े में शामिल करें. फिर उस में घी और दूध भर कर भक्ति व नम्रता के साथ, ब्राह्मण को दान करें. प्रेतत्व दूर करने के लिए घट का दान अवश्य करना चाहिए.

– जो ब्राह्मण को गौदान नहीं करता, वह मांस, रक्त व हड्डी से पूरित वैतरणी पार नहीं कर पाता.
– प्रेतमुक्ति के लिए सोने का घट दान करने से यमलोक न जा कर प्राणी स्वर्गलोक जाता है.
– जो पुरुष, कंठ में आए प्राणों के समय गंगा कहता भर है, वह विष्णुपुर जाता है, पृथ्वी पर फिर उत्पन्न नहीं होता. भले ही सारी जिंदगी गंगा में जहरीले रसायन बहाया हो, तो भी?

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– सर्प के काटने से मरने पर सोने का सांप बना कर दान करें.
– सिंह द्वारा मारे जाने पर मृत की शांति के लिए एक ब्राह्मण की कन्या का विवाह अपने खर्चे पर करें.
– बैल द्वारा मरने पर यथाशक्ति सुवर्ण दान दें.
– घोड़ाघोड़ी से मरने पर 3 निष्क सोना दान दें.
– शीतला रोग से मरने पर ब्राह्मणों को स्वादिष्ठ भोजन कराएं.
– बिजली से मरने पर विद्यादान करें.
– वृक्ष द्वारा मरने पर वस्त्रसहित सोने का वृक्ष दान दें.

इस के अलावा राजा को भूदान व शेष को गौदान देने को कहा गया है. कहा जाता है कि पृथ्वी पर मनुष्य जो चीजें ब्राह्मणों को दान देता है, वह यमलोक मार्ग पर मृतक के काम आती हैं.
गर्भवती स्त्री की मृत्यु पर गरुड़पुराण कहता है कि ऐसी स्त्री का पेट चीर, बच्चा निकाल लें. स्त्री को जला दें और बच्चे को गाड़ दें. यह तो क्रूरता की सारी हदें पार करता है.

मृतक के जलने के बाद सारी हड्डियां बटोर कर चंदन से धो कर उन्हें गंगा में बहा दें. हड्डियां गंगा में डूब जाएं, तो समझिए मृतक ब्रह्मलोक चला गया. जितने वर्ष तक हड्डियां गंगा में पड़ी रहेंगी, उतने हजार वर्ष तक वह स्वर्गलोक का आनंद लेगा. मिसाल के तौर पर, भस्म हुए सागर में 60 हजार पुत्रों को गंगा ने स्वर्ग पहुंचाया क्योंकि उन की हड्डियां गंगा में पड़ी थीं. गंगा के प्रदूषित होने का एक बहुत बड़ा कारण यह भी है. लोग हड्डियों को गंगा में देवलोक की आशा में बहा देते हैं.

पुनर्जन्म के बारे में पुस्तक कहती है कि धर्मात्मा स्वर्ग का आनंद लेते हुए निर्मल कुल में जन्म लेते हैं. जाहिर है धर्मात्मा वही होगा जिस ने ब्राह्मणों को खूब दानदक्षिणा दी होगी?

स्थानीय पुस्तक के एक लेखक का कहना है कि 20 हजार वर्ष तक नर्क भोगने के बाद आदमी चीलकौए के रूप में जन्म लेता है. ऐसे आदमी ने निश्चय ही दानदक्षिणा नहीं दी होगी. कुल की अवधारणा भी पंडेपुजारियों द्वारा बनाई भ्रामक अवधारणा है. गरीब, अनपढ़ व मूढ़ जनता को उच्च कुल में पुनर्जन्म का सपना दिखा कर, पंडेपुरोहितों ने उन से खूब सेवा कराई.

तमाम अंतिम संस्कारों व खटकर्मों तथा स्वर्गनर्क भोगने के बाद पुनर्जन्म होता है, यह कैसे सिद्ध होगा? 60 साल आतेआते आदमी की याददाश्त कमजोर पड़ने लगती है. हजारों वर्षों की यात्रा कर के पुनर्जन्मा कैसे बता सकता है कि फलाने जन्म में वह क्या था? क्या किसी ने बताया?

 

गौतम बुद्ध ने कहा है कि इच्छापूर्ति न होने की स्थिति में पुनर्जन्म होता है. मनुष्य बगैर इच्छा के जन्म ले कर क्या करेगा? फिर तो वह शिखंडी हुआ? इच्छा, कर्म करने के लिए प्रेरित करती है. कर्म ही जीवन है. इच्छा कभी नहीं मरती. इस हिसाब से तो आदमी मर कर आदमी ही बनता है. गीता में श्रीकृष्ण कहते हैं, ‘मरे हुए को क्या मारना.’ फिर तो पुनर्जन्म का सवाल ही नहीं उठता.

दरअसल, स्वर्गनर्क पंडेपुजारियों द्वारा रचा गया गोरखधंधा है. गरुड़पुराण में नर्क का जैसा दृश्य खींचा गया है वह सिर्फ ब्राह्मणों को दान देने के लिए ही है. पुलिसिया मार से बचने के लिए लोग रिश्वत देते हैं, ब्राह्मणदान भी वैसा ही है.

अंतिम संस्कारों के विधिविधान पर नजर डाली जाए, तो एक ही निष्कर्ष निकलता है कि यह प्रेतयोनि से मुक्ति के नाम पर पंडेपुजारियों द्वारा खानेपीने व दानदक्षिणा ऐंठने का जरिया है. इस से सिवा धन व समय के अपव्यय के कुछ नहीं मिलता. पंडेपुरोहित तो अपने समय का उपयोग कर के दानदक्षिणा पा जाते हैं पर हमें क्या मिला? महज अंधविश्वास का झुनझुना, जिसे सदियों से पीढ़ीदरपीढ़ी बजा रहे हैं.

धर्मग्रंथों ने इंसान के मरने के बाद कर्मकांडों के करने के नियम भी तय कर रखे हैं. मृतक का कर्मकांड विधिविधान से न करने पर अर्थात पंडेपुजारियों को उठावनी और पितरों को विदा करने के नाम पर मोटी दक्षिणा न देने पर मृतक की आत्मा भटकती रहती है और वह आला भूत बन कर परिवार वालों को सताती है. यह भी प्रचारित किया गया है कि ऐक्सिडैंट में मारे जाने वाले व्यक्तियों की आत्माएं भी भटकती रहती हैं, जबकि असलियत यही है कि जिस आत्मा को आज तक किसी ने देखा नहीं और उस का कोई अस्तित्व ही नहीं है तो वह किसी को नुकसान क्या पहुंचाएगी?

दरअसल, आत्मा व भूतप्रेत हमारे मन का डर है जो पंडेपुजारियों ने हमारे अंदर भरा हुआ है. लोगों को भूतप्रेतों, आत्माओं से डरा कर ही तो ये पंडेपुजारी अपनी तोंदों को और भी मोटा करते रहे हैं.

 

जायकेदार करौंदा की खेती

करौंदा को अकसर बाड़ के रूप में लगाया जाता है, क्योंकि इस की कांटेदार झाडि़यां जानवरों से आप के बाग को बचाती हैं. इस के पके फल में बहुत से गुण भी
होते हैं.

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करौंदे के कांटेदार और झाड़ीनुमा पौधे को अकसर बाग के चारों तरफ बाड़ के रूप में लगाया जाता है. पौधे बड़े हो जाने पर घनी कांटेदार झाड़ी बन जाते हैं, जानवरों से बाग की हिफाजत करते हैं. पौधों की ऊंचाई 3 मीटर या इस से ज्यादा होती है.

करौंदा एक झाड़ी है, जो ज्यादा जाड़े वाले इलाकों को छोड़ कर उपोष्ण व उष्ण आबोहवा में लगाया जा सकता है. कम उपजाऊ मिट्टी में इसे आसानी से उगाया जा सकता है.
करौंदा नमकीन व खार वाली मिट्टी के प्रति कुछ हद तक सहनशील है, लेकिन ज्यादा बारिश व बाढ़ वाले इलाके इस के लिए सही नहीं हैं. करौंदे पर बीमारियों व कीड़ों का हमला नहीं होता है.
करौंदा पैक्टिन, कार्बोहाइड्रेट्स और विटामिन सी का अच्छा जरीया है. पके हुए करौंदे में कैलोरी 745 से 753 फीसदी, नमी 83.7 फीसदी, प्रोटीन 0.39 फीसदी, फैट 2.57 से 4.63 फीसदी, चीनी 7.35 से 11.58 फीसदी, रेशा 0.62 से 1.8 फीसदी, खनिज लवण 0.78 फीसदी, विटामिन सी 9 मिलीग्राम प्रति सौ ग्राम में और लोहा 31.9 मिलीग्राम प्रति सौ ग्राम में पाया जाता है.
पकने से थोड़ा पहले फलों को तोड़ कर

2 फीसदी नमक के घोल में उपचारित और सुखा कर रखा जा सकता है. इस का इस्तेमाल अचार, जैली, चटनी, सब्जी, स्क्वैश व सिरप बनाने में किया जाता है. फलों का इस्तेमाल मिठाई और पेस्ट्री वगैरह को सजाने के लिए चेरी की जगह पर भी किया जाता है.
करौंदा को दवा के तौर पर भी इस्तेमाल किया जाता है. इस की पत्ती का रस बुखार के इलाज के लिए और पत्तियों को रेशम के कीड़ों के चारे के रूप में इस्तेमाल किया जाता है. इस की लकड़ी का इस्तेमाल चम्मच और कंघा बनाने में होता है.

करौंदे की 4 किस्में होती हैं. हरे रंग के फलों वाली, गुलाबी रंग वाली, सफेद रंग के फलों वाली और करौंदा-1 व नरेंद्र हैं. हर किस्म का इस्तेमाल अचार व जैली बनाने में किया जाता है.
करौंदा की पौध बीज द्वारा तैयार की जाती है. लेकिन 500 पीपीएम इंडोल ब्यूटीरिक एसिड के घोल से उपचार के साथ स्टूल लेयरिंग व 10,000 पीपीएम इंडोल ब्यूटीरिक एसिड के घोल के उपचार के साथ स्टूल लेयरिंग तरीके द्वारा भी पौध तैयार की जा सकती है.

पके हुए फलों से बीजों को जुलाईअगस्त महीने में निकाल कर नर्सरी में बो देना चाहिए. अगर बीजों को स्टोर करना है तो छाया में सुखा कर या 2 ग्राम थीरम प्रति किलोग्राम बीजों में मिला कर सूखी हुई बोतलों में रखें. बीजों को ज्यादा दिन तक रखने से उन की क्वालिटी कम हो जाती है. जितनी जल्दी हो सके, उन की बोआई कर देनी चाहिए. नर्सरी में बीज जमने के बाद छोटे पौधो की खरपतवार, बीमारी और कीटों

से हिफाजत करनी चाहिए. बीजू पौधे 2 साल बाद बाग में रोपने लायक हो जाते हैं.
बाड़ बनाने के लिए पौधे से पौधे की दूरी 60 सैंटीमीटर रख कर बाग के चारों तरफ लगाएं. बाग में पौधे व लाइन से लाइन की दूरी 3 मीटर रखनी चाहिए. इस तरह से एक एकड़ रकबे में 435 पौधे लगाए जा सकते हैं.
करौंदे के पौधे लगाने से एक महीना पहले फरवरीमार्च और सितंबरअक्तूबर माह में 60×60×60 सैंटीमीटर आकार के गड्ढे खोद कर उन में गोबर की खाद और मिट्टी को बराबर मात्रा में मिला कर भरें. दीमक की रोकथाम करने के लिए 30 मिलीलिटर क्लोरोपायरीफास दवा को हर गड्ढे में डालें. बाग में पौधे जुलाई से सितंबर महीने तक लगाए जाते हैं. अगर सिंचाई का सही इंतजाम हो तो फरवरी महीने में भी पौधे लगाए जा सकते हैं.

करौंदे की झाड़ी बिना खाद दिए भी अच्छी पैदावार देती है, लेकिन शुरू के सालों में नाइट्रोजन के इस्तेमाल से पौधे तेजी से बढ़ते हैं. एक पौधे में 20 किलोग्राम गोबर की सही खाद हर साल बारिश शुरू होने से पहले जून महीने में डालें. अगर सिंचाई का इंतजाम हो तो शुरू के सालों में 100 ग्राम यूरिया खाद प्रति पौधा डालनी चाहिए. नाइट्रोजन से पौधे की बढ़वार ज्यादा होती है. 3 साल बाद करौंदे को खाद की जरूरत नहीं होती.

पौधे लगाने के 2-3 साल बाद फूल आने शुरू हो जाते हैं. जुलाई से सितंबर महीने तक फल लगते हैं. जब पौधा छोटा होता है, तो शुरू के सालों में 4-5 किलोग्राम फल मिलता है. बाद में एक पौधे से 30 किलोग्राम तक फल हासिल होते हैं.

करौंदे पर लगने वाले कीट छोटे, गोल व पीले भूरे रंग के होते हैं. ये सफेद मोम जैसे चूर्णी पदार्थ से ढके होते हैं और मुलायम टहनियों और पत्तियों के नीचे चिपक कर रस चूसते हैं, इस से पेड़ों का विकास रुक जाता है. ये कीट मीठा रस भी छोड़ते हैं, जिस से पौधे पर चींटियां आ जाती हैं और फफूंदी भी लग जाती है. इन कीटों की उचित रोकथाम के लिए सही कीटनाशकों का छिड़काव करें. ठ्ठ

19 दिन 19 टिप्स: एलोवेरा से हो सकते हैं साइड इफैक्ट्स

एलोवेरा जैसी वनस्पतियों के अनेक स्वास्थ्य लाभ हैं. किसी अच्छी दवा के साइड इफैक्ट्स भी होते हैं, पर उस के सकारात्मक असर बहुत ज्यादा होने के चलते साइड इफैक्ट्स को नजरअंदाज कर दिया जाता है, और संभावित साइड इफैक्ट्स के लिए सचेत कर दिया जाता है. उसी तरह एलोवेरा के भी कुछ साइड इफैक्ट्स हैं.

किसी भी दवा को लेने से पहले डाक्टर की सलाह लेनी जरूरी है. दवा की कितनी मात्रा कितने दिन के लिए लेनी है आदि के बारे में हमें डाक्टर की सलाह माननी होती है. एलोवेरा के साथ भी यह लागू होता है. देखा गया है कि ज्यादा लोग किसी से सुन कर या स्वयं भी एलोवेरा के पत्ते के जेल को खाते हैं या त्वचा पर लगाते हैं.

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हानिकारक एलोवेरा

एलोवरा को किस रूप में इस्तेमाल कर रहे हैं, इस पर भी बहुतकुछ निर्भर करता है, पत्ता, जूस या जेल, और इसे मुंह से खा या पी रहे हैं या त्वचा पर लगा रहे हैं. ऐलोवरा के कुछ प्रोडक्ट्स प्रोसैस्ड कर बनाए जाते हैं. हमारे शरीर पर इस का क्या असर होगा, इस बात पर निर्भर करता है कि उसे किस तरह से प्रोसैस किया जाता है. एक प्रोसैस में इस के पत्तों को रंगमुक्त करने के लिए उन्हें चारकोल फिल्टर से गुजरना होता है. इस दौरान एलोवेरा में मौजूद एक रसायन एलोइन को निकाल देते हैं. एलोइन पत्ते की बाहरी सतह में होता है.

पशुओं पर एक शोध में देखा गया है कि एलोइन से ट्यूमर होता है. एलोवेरा के कुछ प्रोडक्ट्स होल लीफ यानी पूरे पत्ते से बने होते हैं जिन में हानिकारक एलोइन मौजूद रहता है.

एलोवेरा में लैटेक्स (रबर की तरह का पदार्थ) होता है. इस के ज्यादा मात्रा में सेवन करने से पेट में दर्द और ऐंठन होती है. इस के दीर्घकालीन इस्तेमाल से दस्त, किडनी की समस्या, पोटैशियम की कमी, वजन का घटना, मांसपेशियों की कमजोरी, दिल की तकलीफ, अतिसंवेदनशील व्यक्ति में लिवर की समस्या आदि की संभावना है.

बच्चों के लिए : 12 वर्ष से कम के बच्चों की त्वचा पर इसे लगा सकते हैं. पर उन के लिए इस के मौखिक प्रयोग से दस्त, पेट में दर्द और ऐंठन हो सकती है.

डायबिटीज : एलोवेरा का जूस ब्लडशुगर कम करता है. इसलिए अगर डायबिटीज के रोगी हैं तो इस का उपयोग सावधानी से करें और अपने शुगर लैवल को चैक करते रहें.

सर्जरी : चूंकि यह ब्लडशुगर लैवल पर असर करता है, इसलिए किसी भी सर्जरी के पहले और तुरंत बाद में इस का प्रयोग न करना बेहतर है.

बवासीर : एलोवेरा के पत्तों की त्वचा के नीचे जो जैल है उस में लैटेक्स होता है. यह बवासीर रोग में तकलीफ को और बढ़ा सकता है. इस के होल (संपूर्ण) पत्तों से बनी दवा में लैटेक्स होता है.

एलर्जी : कुछ लोगों की त्वचा पर इसे लगाने से एलर्जी होती है, जिस से त्वचा पर लाल दाने, जलन या खुजलाहट होती है.

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गर्भवती महिला के लिए : एलोवेरा से गर्भाशय में संकुचन होता है, जिस के चलते प्रसव संबंधित समस्या हो सकती है.

डिहाइडे्रशन : कब्ज में एलोवेरा का प्रयोग किया जाता है. इस की ज्यादा मात्रा से डिहाइड्रेशन हो सकता है.

पोटैशियम की कमी : इस का जूस पीने से शरीर में पोटैशियम की कमी हो सकती है, जिस के चलते असामान्य हृदय गति, कमजोरी, थकावट आदि की समस्या होती है. इसलिए खासकर बुजुर्गों को सावधानी बरतनी होती है.

लिवर : एलोवेरा के कुछ रसायन लिवर की कार्यप्रणाली में बाधा डाल सकते हैं, जिस से लिवर की समस्या हो सकती है.

किडनी : एलोवेरा में मौजूद लैटेक्स का किडनी पर भी प्रतिकूल असर पड़ता है.

कैंसर : कैंसर रिसर्च की एक अंतर्राष्ट्रीय एजेंसी ने एलोवेरा के होल लीफ एक्सट्रैक्ट को  क्लास 2 बी श्रेणी में रखा है, जो मानव में कैंसर होने का कारण हो सकता है.

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कुछ दवाओं से इंटरऐक्शन यानी पारस्परिक क्रिया एलोवेरा कुछ दवाओं के साथ इंटरऐक्ट करता है, जिस से दवाओं से होने वाले लाभ पर असर पड़ता है. ऐसी कुछ दवाएं हैं-डाईजोक्सिन या लेनोक्सिन (हृदय रोग की दवा), मधुमेह की दवाएं, सेवोल्फुरेन या उल्टेन (एनिथेशिया की दवा), वौरफेरिन (ब्लड क्लौट रोकने की दवा), वाटर पिल्स या डाइयुरेटिक  (ब्लडप्रैशर, लिवर, गुरदे की दवा) आदि.

सुनीसुनाई घरेलू चीजों की दवाओं के प्रयोग में कठिनाई यह है कि उन पर शोध नहीं हुआ होता है और न समय पर कितनी लेनी है, कैसे लेनी है, पता नहीं होता है. भेड़चाल में पंडेपुजारियों के कहेनुसार की तरह घरेलू डाक्टरों की सलाह से भी बचना ही चाहिए.

मैं 25 साल का हूं और मेरी शादी हो चुकी है,मैं एक लड़की से भी प्यार करता हूं. वह मेरे साथ शादी करना चाहती है,हम क्या करें?

सवाल
मैं 25 साल का हूं और मेरी शादी हो चुकी है. मैं एक लड़की से भी प्यार करता हूं. वह मेरे साथ शादी करना चाहती है. हम क्या करें?

जवाब
दूसरी शादी कानूनन अपराध है. वैसे भी बीवी के होते इश्क लड़ाना कोई समझदारी की बात नहीं बल्कि अपने ही हाथों अपनी घरगृहस्थी चौपट करना है. अगर बीवी ठीकठाक है तो उसी से निभाने की कोशिश करें. कल को किसी तीसरी से प्यार हो जाए तो क्या दूसरी को भी छोड़ने की बात करेंगे?

बेहतर होगा कि अपनी माशूका को धीरेधीरे समझाएं कि वह आप को भूल कर कहीं और शादी कर सुकून से रहे. अगर उस के लिए बीवी को तलाक देंगे तो यह उस के साथ ज्यादती ही होगी और तलाक देना आसान काम है भी नहीं.

हां, अगर सचमुच माशूका के बगैर नहीं रह सकते हैं तो दोनों को आमनेसामने बैठा कर बात करें, फिर शायद अपनी गलती या भूल समझ आ जाए.

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प्यार की बदलती परिभाषा

21 वर्षीया सीमा होंठों पर प्यारी सी मुसकान लिए और हाथों में गुलाब का बड़ा सा गुलदस्ता लिए दिल्ली के आईटीओ बस स्टैंड पर किसी का इंतजार कर रही है. उसे देख यह अंदाजा लगाना मुश्किल नहीं है कि वह किस का इंतजार कर रही है. भले यह वैलेंटाइन डे की शाम न हो फिर भी उस के हावभाव कह रहे हैं, वह अपने दिलदार का इंतजार कर रही है. सीमा के हाथ में खूबसूरत से लिफाफे में बंद एक बड़ा डब्बा भी है, जो शायद उस के बौयफ्रैंड के लिए बर्थडे गिफ्ट होगा.

पिछले कुछ सालों में सीमा जैसी युवतियों की संख्या में काफी इजाफा हुआ है. हालांकि प्यार चाहे आदिम युग में किया गया हो या इंटरनैट युग में, वह कभी नहीं बदला. लेकिन पिछले कुछ सालों में जिस तरह हर क्षेत्र में आमूलचूल ढंग से परिवर्तन देखने को मिले हैं, प्यार भी इन बदलावों से अछूता नहीं है. आज इजहार का तरीका बदल गया है, इकरार के अंदाज बदल गए हैं. इंटरनैट युग में हर चीज तुरतफुरत वाली हो गई है. ऐसे में भला प्यार कैसे पीछे रह सकता था? अब न कोई लड़का प्रेम प्रस्ताव देने के लिए कई दिनों का इंतजार करता है और न ही कोई लड़की उस की हामी में वक्त लगाती है.

अगर कहा जाए कि आज की तारीख में प्यार पहले की तुलना में ज्यादा वास्तविक हो गया है तो कतई गलत नहीं होगा. जी, हां. लैलामजनू, हीररांझा जैसे प्यार अब बमुश्किल ही देखने को मिलते हैं. इस का मतलब यह कतई नहीं है कि प्यार पहले के मुकाबले अब लोगों में कम हो गया है या फिर अब वादों और इरादों की जगह खत्म हो गई है. दरअसल, प्यार अब गिव ऐंड टेक की पौलिसी बन चुका है. बेशक ये शब्द थोड़े रूखे हैं लेकिन वास्तविकता यही है. ऐसा नहीं है कि यह बदलाव एकाएक देखने को मिल रहा है. पिछले कुछ सालों में धीरेधीरे चल कर यह बदलाव यहां तक पहुंचा है.

इस में सब से बड़ी वजह महिलाओं का आत्मनिर्भर होना है. इन बातों को बहुत समय नहीं गुजरा है जब प्रेमी जोड़े एकसाथ बाहर घूमने जाया करते थे, लड़कियां आमतौर पर लड़कों पर पूरी तरह निर्भर होती थीं. यहां तक कि कहां घूमने जाना है, क्या खाना है जैसे सारे फैसले लड़के ही करते थे. मगर अब ऐसा नहीं है.

आज लड़कियां पढ़ीलिखी हैं, समझदार हैं और आर्थिक रूप से आत्मनिर्भर हैं. आर्थिक रूप से मजबूत होने के कारण ही अब वे किसी और पर फैसले नहीं छोड़तीं और न ही दूसरे के फैसले खुद पर लदने देती हैं. कहीं जाना हो, कुछ खाना हो या कोई तोहफा खरीदना हो तो वे मन मार कर नहीं रहती हैं. वे बिंदास हो कर इन बातों को अपने बौयफ्रैंड से साझा करती हैं.

यही कारण है कि अब प्यार बेफिक्री का नाम भी हो गया है. लड़कियों में बढ़ती आत्मनिर्भरता के कारण लड़कों में भी बेफिक्री की आदत आ गई है. बदलते दौर के प्यार के कारण लड़कों में बचपना भर गया है. अब तक माना जाता रहा है कि जिंदगी से जुड़े तमाम फैसले सिर्फ लड़के को ही करने होते हैं. आखिर वह भविष्य में घर का मुखिया बनता है. इसलिए जवानी के दिनों से ही उसे गंभीर होना होता है. यही वजह है कि वह हमेशा अपने संबंधों में भी गंभीर ही रहता था. लेकिन लड़कियों के फैसले लेने की ताकत ने लड़कों को बेफिक्र कर दिया है. ऐसा नहीं है कि लड़कियां परेशानियों और फैसले करने के बोझ तले दबती जा रही हैं. लड़कों ने इस संबंध में लड़कियों का हाथ बराबरी देने के लिए थामा है.

अब अजय को ही लें. 26 साल का अजय 2 साल बाद अपनी गर्लफ्रैंड रैना से शादी करने वाला है. रैना एक मल्टीनैशनल कंपनी में काम करती है. उस की मासिक आय इतनी है कि एक परिवार न सिर्फ गुजरबसर कर सकता है बल्कि ऐश की जिंदगी भी जी सकता है. अजय को आर्थिक रूप से घर के लिए ज्यादा चिंतित होने की जरूरत नहीं है. रैना महत्त्वाकांक्षी है. लेकिन जब से उस की मुलाकात अजय से हुई है तब से रैना की जिंदगी में तमाम बदलाव हुए हैं.

पहले जहां काम के चलते रैना हमेशा परेशान दिखती थी, वहीं अब प्यार ने उस में मिठास भर दी है. उन की जिंदगी से जुड़े सारे फैसले दोनों मिल कर करते हैं. 2 साल बाद शादी का फैसला भी दोनों ने मिल कर किया है. अजय तो अपने भविष्य को ले कर बेफिक्र हुआ ही है, साथ ही रैना को भी अपनी आजादी, अपने फैसलों को लेने में कोई कठिनाई नहीं होती. वह जानती है कि अजय उस का हर मोड़ पर साथ देगा. इस संबंध में वह बिलकुल बेफिक्र है.

यह बात और है कि अब भी ऐसे प्रेमी युगलों %

19 दिन 19 टिप्स: आखिर क्यों सेहत के लिए जरूरी है सेक्स ?

सेक्स एक शारीरिक क्रिया है जो जीवन में प्रजनन के अलावा भी बहुत महत्व रखती है. सेक्स का मकसद केवल बच्चे पैदा करना ही नहीं है, यह एंटरटेनमेंट, रेलशनशिप को बनाए रखने और सैटिस्फैक्शन पाने के लिए भी किया जाता है. सेक्स कामेच्छा की पूर्ती करता है और 16 -17 साल की उम्र से वृद्धावस्था तक मनुष्यों में यह इच्छा बनी रहती है.  लेकिन सेक्स महीने में एक बार की जाने वाली क्रिया नहीं है, यह हफ्ते में कम से कम दो बार तो करना ही चाहिए.  रेगुलर बेसिस पर सेक्स करने के इतने फायदे हैं कि जान कर आप भी दंग रह जाएंगे. तो चलिए जानते हैं, सेक्स करने के क्या फायदे हैं?

अमेरिकन हार्ट एसोसिएशन के एक स्टेटमेंट के अनुसार सेक्सुअल एक्टिविटी साइकिल चलाने या सीढ़ियां चढ़ने जैसी ही गतिविधि है. सेक्स के दौरान शरीर की जो मूवमेंट होती है वह पेट और पेल्विक की मसल्स को टाइट करती है. महिलाओं में यह मासपेशियां मूत्राशय नियंत्रण को बेहतर भी बनाती हैं. 2018 की एक अन्य स्टडी के मुताबिक़ 6,000 लोगों पर हुई रिसर्च के आधार पर पाया गया कि वह लोग जो नियमित रूप से सेक्स करते हैं उन की याददाश्त उन लोगों से कही ज्यादा बेहतर होती है जो सेक्स नियमित रूप से नहीं करते.

नियमित सेक्स केवल फिजिकल ही नहीं बल्कि इमोशनल, साइकोलौजिकल और व्यक्तिगत दृष्टि से भी अतिआवश्यक होता है.

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  • सेक्सुअल एक्टिवनेस महिलाओं में लिबिडो को बूस्ट करता है जिस से उन में सेक्स करने की इच्छा बढ़ती है.
  • सेक्स के दौरान हमारे शरीर में एंडोर्फिन्स रिलीज़ होते हैं जिन्हें ‘फील गुड’ केमिकल्स कहते हैं को डिप्रेशन और चिड़चिड़ेपन को दूर करने में सहायक होते हैं.
  • ओर्गास्म प्रोलैक्टिन नामक हार्मोन रिलीज़ करता है जो नींद में सहायक होता है.
  • सेक्स सेल्फ एस्टीम बढ़ाता है और इन्सेक्योरिटी को कम करता है.
  • स्टडीज के मुताबिक जितना ज्यादा पुरुष सेक्स करते हैं उतनी बेहतर उनके स्पर्म की क्वालिटी होती है.

आर्काइव्ज औफ सेक्सुअल बिहेवियर में पब्लिश्ड एक स्टडी के मुताबिक़ औसतन प्रौण एक साल में 54 बार, युवा 80 बार और वृद्ध 20 बार सैक्स करते हैं.

  • नियमित सेक्स से महिलाओं में हार्मोन्स का बैलेंस बना रहता है जिस से उन के पीरियड्स भी नौर्मल होते हैं और पीरियड क्रैम्प्स भी कम होते हैं.
  • सेक्स हफ्ते में एक से दो बार करने पर शरीर में इम्यूनोग्लोबिन ए लेवल को बढ़ा देता है. इस से शरीर की इम्युनिटी बढ़ती है और सर्दी जुकाम जैसे रोग नहीं होते. पेंसिलविनिया की विल्क्स यूनिवर्सिटी ने 112 स्टूडेंट्स पर एक रिसर्च की जिस में उन्होंने पाया कि नियमित सेक्स करने वाले स्टूडेंट्स का इम्यूनोग्लोबिन ए लेवल सैक्स न करने वाले स्टूडेंट्स की तुलना में 30 फीसदी ज्यादा था.
  • सेक्स से मनुष्यों में औक्सीटोसिन, डोपामाइन और सेरोटोनिन रिलीज़ होते हैं. यह मूड बूस्ट करते हैं और व्यक्ति रिलैक्स्ड फील करता है. वह खुश रहने लगता है और इस से उस की कार्यक्षमता और प्रोडक्टिविटी भी बढ़ती है.

रिलेशनशिप में सेक्स की कमी या कभी कभार ही सेक्स करने से कपल्स एक दूसरे से दूर होने लगते हैं, वे रिलेशनशिप के बाहर सैटिस्फैक्शन ढूंढ़ने की कोशिश करते रहते हैं. अनियमित सेक्स शादीशुदा दंपत्तियों में तलाक का कारण भी बनता है.

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  • ओस्ट्रोजन नामक हार्मोन का सैक्स के दौरान स्त्राव होता है. यह हार्मोन स्किन को स्मूथ बनाता है. एक अमेरिकन स्टडी के मुताबिक नियमित सैक्स करने वाली महिलाओं में ओस्ट्रोजन की मात्रा अन्य महिलाओं से दोगुनी होती है.
  • नियमित सेक्स कोर्टिसोल लेवल कम कर मनुष्य के दिमाग को भी प्रोटेक्ट करता है. सेक्सुअल इंटरकोर्स स्ट्रेस जैसी प्रतिक्रियाओं से लड़ने में दिमाग की क्षमता को बढ़ाता है. एक स्टडी के अनुसार इससे एंग्जायटी लेवल में भी गिरावट आती है.
  • कपल्स के बीच रेगुलर सेक्स से कमिटमेंट बढ़ता है. लव मेकिंग उन के रिश्ते को और मजबूत बनाती है. उन के आपसी प्यार और सौहार्द में बढ़ोत्तरी होती है.

सेक्स का पूरा लाभ सुरक्षित और मर्जी से हुए सैक्स से ही मिलता है. ध्यान रहे कि अनचाहे या एबनौर्मल सेक्स से फायदे नुक्सान में भी बदल सकते हैं. यहां सैक्स से साफतौर पर मतलब लव मेकिंग और पैशनेट सेक्स से है. तो नियमित सेक्स कीजिए और इस का भरपूर लाभ उठाइए.

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World Laughter Day, 2020: हंसते रहो हंसाते रहो

जब पुरे दुनिया में कोरोना ने कहाराम मचाया है , विश्व में फैले एक वैश्विक महामारी से सभी अपने घरों में कैद होने हो मजबूर है। इस तनाव के समय आपका हसंना कितना मायने रखता है , यह बात हम में से अधिकतर लोगो को नहीं पत्ता है , तो आज जानते है हसना क्यों जरुरी है । आज के भागदौड़ और तनाव के इस दौर में हंसी वाकई महंगी हो गई है। लोगों के पास सब चीजों के लिए वक्त है, हंसने-हंसाने के लिए नहीं, जबकि हंसी के फायदों की लिस्ट काफी लंबी है. फिर भी लोग हसना नहीं चाहते,  मानव जीवन में हंसी के माईने पर प्रकाश डाल रहे है –

* मई का पहला रविवारविश्व वर्ल्ड लाफ्टर डेहै :-  मई का पहला रविवार विश्व वर्ल्ड लाफ्टर डे है , तो जनाब तैयार हो जाये हंसने के लिए ! बिना किसी कारण, बिना किसी वजह  और  बिना किसी बात के जोरो से ठहाके लगईये, क्यों कि हंसी की कोई सीमा नहीं, न ही कोई भाषा है और न ही सांस्कृतिक बेड़ियां। तभी तो आज से 20 साल पहले सन 2000 में करीब 10,000 लोगों ने डेनमार्क के कोपनहेगन में साथ में हंसकर गिनीज बुक रिकॉर्ड दर्ज करवाया था। तो आप भी तैयार हो जाईये और आज जम  कर हंसिए   और हंसाते रहिए। उन पालो को दुबारा दोहरईये जब आप दिल खोलकर कब हंसे थे, हंसते-हंसते लोटपोट हो गए थे, मुंह थक गया था,  आंखों से आंसू बाहर आ गया था, पेट में दर्द होने लगा था ।

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* र्वल्ड वाइड लाफ्टर योगा मूवमेंट :- लाफ्टर डे मई के पहले रविवार को सेलिब्रेट किया जाता है। इसकी शुरुआत 1998 में डॉ. मदन कटारिया ने की थी, जो र्वल्डवाइड लाफ्टर योगा मूवमेंट के फाउंडर हैं. विश्व की शांति और आपसी भाईचारे को हंसी के जरिए बनाए रखने का यह सकारात्मक कदम है. इसकी पॉपुलैरिटी अचानक बढ़ गई, जिसमें लाफ्टर योगा मूवमेंट का बड़ा हाथ रहा है.

* अस्सी प्रतिशत बीमारियों से आप हंसते हंसते निपट सकते हैं :- हंसी को लेकर कई शोध हुए हैं और सभी ने ये साबित किया है कि अस्‍सी प्रतिशत बीमारियों से आप हंसते हंसते निपट सकते हैं. फिर चाहे वो अस्‍थमा हो, रक्‍तचाप हो या फिर अनिद्रा, स्‍ट्रेस का तो सबसे अच्‍छा इलाज हंसी ही है. हंसने से ‘इंडोरफिन’ नामक एक हारमोन सक्रिय होता है जिससे मनुष्‍य शारीरिक और मानसिक रूप से तरोताज़ा महसूस करता है.कई बीमारियों में भी लाफ्टर योगा ने सकारात्मक परिणाम दिखाए हैं. यही वजह है कि विश्व के कई लाफ्टर क्लब में कैंसर पीड़ित भी शामिल हैं. हंसी ने उनके जीवन में नए उद्देश्य और खुशी के पैमाने तय किए हैं.

* शरीर के अंदरूनी हिस्सों को मसाज मिलती है :- अब  बात आता है कि जब हम हंसते है, तो उसका प्रभाव हमारे शारीर पर कैसे पड़ता है, यह पूरी प्रक्रिया हंसी के दौरान  शरीर  के अन्दर होने वाला प्रतिक्रिया है. हमारे शरीर में कुछ स्ट्रेस हॉर्मोन होते हैं. यह हॉर्मोन हमारे क्रियाकल्पो को तय करती है, जैसे जब हम तनाव में  होते हैं तो इनका लेवल बढ़ने लगता है , जिससे घबराहट होती है. ज्यादा घबराहट होने पर सिर दर्द, सर्वाइकल, माइग्रेन, कब्ज हो सकती है और शुगर लेवल बढ़ जाता है. हंसने से सुखद आहसास वाले हॉमोर्न बढ़ जाते हैं, जिससे मन उल्लास और उमंग से भर जाता है. इससे दर्द और एंग्जाइटी कम होती है.इम्युन सिस्टम मजबूत होता है और बुढ़ापे की प्रक्रिया धीमी होती है. और हंसने से शरीर के अंदरूनी हिस्सों को मसाज मिलती है. इसे इंटरनल जॉगिंग भी कहा जाता है.

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* जोरदार हंसी हल्की कसरत के बराबर है:-  हंसी कार्डियो एक्सरसाइज है.हंसने पर चेहरे, हाथ, पैर, और पेट की मसल्स व गले, रेस्पिरेटरी सिस्टम की हल्की-फुल्की कसरत हो जाती है. 10 मिनट की जोरदार हंसी इतनी ही देर के हल्की कसरत के बराबर असर करती है इससे ब्लड सर्कुलेशन बढ़ता है और मसल्स रिलैक्स होती हैं. जब हम जोर-जोर से हंसते हैं तो झटके से सांस छोड़ते हैं. इससे फेफड़ों में फंसी हवा बाहर निकल आती है और फेफड़े ज्यादा साफ हो जाते हैं. तभी तो स्वस्थ रहने का मूल मन्त्र है, हंसते रहो हंसते रहो .

 *  कैंसर पीड़ितों की जिंदगी को बढ़ाता है :- विश्व के आंकड़े बताते हैं कि डिप्रेशन और हार्ट प्रॉब्लम्स के बाद कैंसर लोगों को अपनी चपेट में ले रहा है और मृत्यु का कारण बन रहा है. साइंटिफिक रिसर्च बता चुके हैं कि हंसी का हमारे इम्यून सिस्टम पर गहरा असर पड़ता है, जो कैंसर पीड़ितों की जिंदगी को बढ़ाता है कई कैंसर अस्पतालों में लाफ्टर योगा का निश्चित सेशन होता है, जो पीड़ितों और उनकी देखभाल करने वालों को दर्द और ट्रॉमा से उबरने की शक्ति देता है. अमेरिका के शिकागो का स्वीडीश कैंसर अस्पताल कीमोथेरेपी सेशन्स के दौरान नियमित तौर पर लाफ्टर योगा कराता है। हंसी का असर हमारे मस्तिष्क पर पड़ता है, यह बात तो अब प्रमाणित हो चुकी है।

* कोई भी बिना कारण के हंस सकता है :- लाफ्टर योगा अनकंडीशनल हंसी है , जिसमें प्राणायाम शामिल है। कोई भी बिना कारण के हंस सकता है, इसके लिए ह्यूमर, जोक या कॉमेडी की जरूरत नहीं। इसे बॉडी एक्सरसाइज के तौर पर लिया जाता है, जिसे आई कांटैक्ट के साथ और बच्चे के खेल के समान ग्रुप में किया जाता है। इसका कांसेप्ट साइंटिफिक फैक्ट पर आधारित है कि शरीर झूठ और सच की हंसी के बीच अंतर नहीं कर सकता. सबको एक समान ही फिजियोलॉजिकल और  साइकोलॉजिकल बेनिफिट मिलते हैं. इसका लक्ष्य बेहतर स्वास्थ्य, खुशी और विश्व शांति है.

*  हास्य योग से कई रोगों को दूर भाग सकते है : – हास्य और योग को मिलाकर बना है हास्य योग,यानि हँसते-हंसते प्राणायाम के प्रक्रिया को पूरा करना . अगर कुछ बातो का ध्यान रखते हुए हास्य योग करे तो यह सबके लिए फायदेमंद साबित होता है, केवल  हार्निया, पाइल्स, छाती में दर्द, आंखों की बीमारियों और हाल में बड़ी सर्जरी कराने वाले लोगों को हास्य योग नहीं करने का सलाह दिया जाता है . वही प्रेग्नेंट महिलाओं, टीबी और ब्रोंकाइटिस के मरीजों को भी इस योग से दूर रखने को कहा जाता है.बाकी सभी के लिए हास्य योग लाभदायक सिद्ध होता है. हास्य योग इस वैज्ञानिक आधार पर काम करता है कि शरीर नकली और असली हंसी के बीच फर्क नहीं कर पाता, इसलिए दोनों से ही एक जैसे फायदे होते हैं.हास्य योग के तहत जोर-जोर से ठहाके मारकर, बिना किसी वजह के बेबाक हंसने की प्रैक्टिस की जाती है. इसमें शरीर के आंतरिक हास्य को बाहर निकालना सिखाया जाता है, जिससे शरीर सेहतमंद होता है.शुरुआत में नकली हंसी के साथ शुरू होनेवाली यह क्रिया धीरे-धीरे हमारे व्यक्तित्व का हिस्सा बन जाती है और हम बिना किसी कोशिश के हंसने लगते हैं. जो लोग हास्य योग सीखना चाहते हैं, वे जगह-जगह पार्कों में लगनेवाले शिविरों से सीख सकते हैं. इसके बाद रोजाना घर पर प्रैक्टिस की जा सकती है.एक सेशन में करीब 15 से 40 मिनट का वक्त लगता है. अगर कुछ सावधानिय बरते तो आप खुद घर के अंदर भी हंसी की प्रैक्टिस कर सकते हैं. वे रोजाना 15 मिनट के लिए शीशे के सामने खड़े हो जाएं और बिना वजह जोर-जोर से हंसें. हंसी का असली फायदा तभी है, जब आप कुछ देर तक लगातार हंसें. इसके अलावा, बच्चों और दोस्तों के साथ वक्त गुजारना भी हंसने का अच्छा बहाना हो सकता है.

* हास्य योग के छह चरण होते हैं :- 

आचमनइस दौरान अच्छे विचार करें. सोचें कि मुझे अच्छा बनना है. मैं अच्छा बन गया हूं. मुझे अच्छे काम करने हैं और खुश रहना है. ठान लें कि हमें पॉजिटिव सोचना है, पॉजिटिव देखना है और पॉजिटिव ही बोलना है.

आचरणइसमें जो चीज हमने आचमन में की है, उसे अपने आचरण में लाना होता है. मतलब, वे चीजें हमारे बर्ताव में आएं और दूसरे लोगों को नजर आएं.

हास्यासनइसमें वे क्रियाएं आती हैं, जो हम पार्क में करते हैं. इन क्रियाओं को लगातार करने से हंसमुख रहना हमारी आदत बन जाती है.

संवर्द्धनयोग करने का लाभ करनेवाले को मिलता है, लेकिन हास्य योग का फायदा उसे भी मिलता है, जो इसे देखता है. अगर कोई हंस रहा है तो वहां से गुजरने वाले को भी बरबस हंसी या मुस्कान आ जाती है.

ध्यानहास्य योग की क्रियाओं को करने से शरीर के अंदर जो ऊर्जा आई है, ध्यान के जरिए उसे कंट्रोल किया जाता है.

मौनमौन के चरण में हंसी को हम अंदर-ही-अंदर महसूस करते हैं.

* हास्यासन के दौरान आपको कई  क्रियाओं से गुजरना पड़ता है 


हास्य कपालभातिहास्य कपालभाति करने के लिए वज्रासन में बैठ जाएं। सीधा हाथ पेट पर रखें और हल्के से हां बोलें। ऐसा करने से सांस नाक और मुंह दोनों जगहों से बाहर आएगी और पेट अंदर जाएगा। आम कपालभाति में सांस सिर्फ नाक से बाहर जाती है, वहीं हास्य कपालभाति में सांस नाक और मुंह, दोनों जगहों से बाहर जाती है।

मौन हास्यकिसी भी आसन में बैठ जाएं. लंबा गहरा सांस लें। रोकें और फिर हंसते हुए छोड़ें.ध्यान रखें, बिना आवाज किए हंसना है.इसी क्रिया को बार-बार दोहराएं.

बाल मचलनजैसे बच्चा मचलता है, कमर के बल रोलिंग करता है, उसी तरह इसमें हंसने की कोशिश की जाती है. पूरे मन को उमंग मिलती है.

ताली हास्यबाएं हाथ की हथेली खोलें. सीधे हाथ की एक उंगली से पांच बार ताली बजाएं. फिर दो उंगली से पांच बार ताली बजाएं. इसी तरह तीन, चार और फिर पांचों उंगलियों से पांच-पांच बार ताली बजाते हुए जोरदार तरीके से हंसें. ताली बजाने से हाथ के एक्युप्रेशर पॉइंट्स पर प्रेशर पड़ता है और वे एक्टिवेट हो जाते हैं.

* बच्चे हंसने में सबसे आगे

हमसे बहुत काम लोग ही जानते होनेगे कि बच्चे हंसने में सबसे आगे है, एक दिन में बच्चे 300 से 400 बार हंसते हैं, जबकि वयस्क केवल 10-15 बार हंसाते है. इतना अंतर इसलिए क्योंकि वयस्क ह्यूमर को समझने के लिए पहले अपने दिमाग का इस्तेमाल करते हैं, फिर हंसते हैं।यानि वयस्क तभी हंसते है, जब उन्हें बातो में मजाकिया शब्द मिलता है अर्थात मनोरंजक होता है, लेकिन बच्चे बिना कुछ सोचे हंसते है.

* हंसी के अनेको फायदे  

– हंसी से टेंशन कम होता है

– हंसी से हम  डिप्रेशन से बाहर आ जाते है

– जोरदार हंसी कसरत का काम करती है

– हंसी नेचरल पेनकिलर का काम करती है

-हंसी हमें रोगों से लड़ने की क्षमता प्रदान करती है
– यह आत्मविश्वास और पॉजिटिव नजरिए में इजाफा करती है
– हंसी शारीर में रक्त प्रवाह  को नियत्रित करती है

– हंसी शरीर में ऑक्सिजन की मात्रा बढ़ाती है

-नित्य हंसते रहने से चेहरा खूबसूरत बनता है
– हंसी से आपके व्यव्हार में काफी फर्क पड़ता है

#WhyWeLoveTheVenue: हुंडई वेन्यू का इंजन कैसे है खास

हुंडई वेन्यू चार तरह के इंजन और ट्रांसमिशन कॉम्बो के साथ आता है, जो BS6-मानकों पर खड़े उतरते हैं. इसका 1.2 लीटर का बेस पेट्रोल इंजन 81 BHP के साथ 11.6 केजीएम का अधिकतम टॉर्क निकालता है और 5-स्पीड मैनुअल ट्रांसमिशन के साथ आता है.

यह चलाने में मज़ेदार होने के साथ अच्छा माइलेज निकालने वाला इंजन भी है. इंजन के मामले में वेन्यू के साथ आने वाला एक और बेहतर विकल्प भी दिया गया है इसका 1.5 लीटर का डीजल इंजन, जो 98 BHP के साथ 24.5 केजीएम का अधिकतम टॉर्क निकालता है और 6-स्पीड मैनुअल ट्रांसमिशन के साथ आता है.

वेन्यू गिनती के उन चुनिंदा कॉम्पैक्ट एसयूवी में से है जो बीएस6-मानकों के समय में भी डीजल इंजन का विकल्प देता है. अब बात करते हैं1 लीटर का टर्बो-पेट्रोल इंजन की, जो सब के पसंदीदा इंजन में से एक है. यह117 BHP के साथ 17.5 केजीएम का अधिकतम टॉर्क निकालता है और 6-स्पीड मैनुअल ट्रांसमिशन के अलावा 7-स्पीड ड्यूल क्लच ट्रांसमिशन के साथ भी आता है.

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यह टर्बो इंजन बहुत तेज़ी से घूमता है, जिससे आपको लो-एंड टॉर्क मिलता है. इसकी मदद से आप शुरुआत में ही तेज़ी से रफ़्तार बढ़ा सकते हैं. यह इंजन आपको मीटर के रेड लाइन तक पहुंचने पर भी टॉर्क देता रहता है.

इस इंजन को चलाते समय आपको ऐसा महसूस होगा जैसे आपके थ्रॉटल और पहियों के बीच कोई जादू है. इस इंजन की सबसे अच्छी बात है इसकी शानदार आवाज़, जो आपका दिल जीत लेगी. यह इंजन वेन्यू के शानदार लुक को पूरा करता है.

जब ऐसे पावरट्रेन ऑप्शन हों, तब यह समझना बहुत आसान है कि क्यों हम वेन्यू से प्यार करते हैं.

रश्मि देसाई ने शेयर की इरफान खान की ये खूबसूरत याद, जानें क्या कहा

भारत की संस्कृति में कई सदियों से यह परंपरा चली आ रही है जो आप करके इस धरती पर  जाते हैं ,आपके जाने के बाद लोग आपकी बातों और आपके द्धारा किए गए नेक कामों को याद करते है. यही आपकी जीवन की असली कमाी होती है.ऐसे में अभी-अभी एक नाम जुड़ा है जो हमारे देश के महान कलाकार थें.

इरफान खान अब हमारे बीच नहीं हैं उनके जाने के शोक में लोग अभी तक डूबे हुए हैं. ऐसे में लोगों का टीवी जगत की मशहूर कलाकार रश्मि देसाई का कहना है कि इरफान के जाने के गम से बाहर आना थोड़ा मुश्किल लग रहा है वह बहुत महान कलाकार थे.

 

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जब एक फिल्म की शूटिंग के दौरान जब मैं उनसे पहली बार मिली तब इरफान की सादगी को देखकर मैं हैरान रह गई थी. उन्हें देखकर और बात करके मैंने बहुत कुछ सीखा. बेहद ही उम्दा इंसान थें.

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इरफान के बारे में बात करते समय बार-बार रश्मि देसाई का गला भर आ रहा था. जिससे मालूल हो रहा था कि रश्मि इरफान की बहुत बड़ी फैन थीं.

 

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बॉलीवुड के साथ-साथ हॉलीवुड के मशहूर कलाकारों ने भी इरफान की अंतिम विदाई पर शोक जताया है. इरफान लंबे समय से कैंसर जैसे खतरनाक बीमारी से जूझ रहे थें.

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एक साल के करीब उन्होंने लंदन में अपना इलाज करवाया था बावजूद इसके उनके शरीर पर कोई फर्क नहीं पड़ा. इलाज के दौरान उनकी पत्नी सुतापा हर वक्त उनके साथ मौजूद थीं.

इरफान अपने पीछे दो बेटे और पत्नी सुतापा को छोड़कर  गए हैं. उनकी आखिरी फिल्म अंग्रेजी मीडियम थीं.

इस वजह से ऋषि कपूर के अंतिम संस्कार में आलिया ने थामा था फोन, ट्रोलिंग के बाद सामने आई सच्चाई

30 अप्रैल को ऋषि कपूर इस दुनिया को अलविदा कह एक नए यात्रा की तरफ चले गए. उनके मौत की खबर से पूरी इंडस्ट्री में शोक की खबर दौड़ गई है. परिवार वालों को लिए यह मुश्किल समय है. ऋषि के मौत के समय उनकी पत्नी नीतू कपूर और बेटे रणबीर कपूर मौजूद थे तो वहीं बेटी रिद्धिमा कपूर  लॉकडाउन की वजह से अपने पिता का अंतिम दर्शन नहीं कर पाई.

रिद्धिमा अपने पिता का अंतिम दर्शन वीडियो कॉल के जरिए कर पाई. जब आखिरी वक्त में उन्हें मुखअग्नि दी जा रही थी उस वक्त अभिनेत्री आलिया भट्ट रिद्धिमा कपूर को वीडियो कॉल के जरिए सारी चीजों को दिखा रही थी. ऐसे में रिद्धिमा का वहां न होना सभी को बहुत खल रहा था.

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आलिया की इस तस्वीर को देखकर कुछ यूजर्स उन्हें ट्रोल करते हुए यह सवाल कर रहे हैं कि आलिया भट्ट उस समय वहां मोबाइल फोन पर क्या कर रही थीं, हालाकिं सभी को इस बात की जानकारी है कि आलिया लगातार रणबीर की बहन के साथ फोन पर बनी हुई थीं.

अब उम्मीद है कि आलिया के बारे में लोग ऐसे सवाल नहीं करेंगे कि वह उस वक्त वहां पर क्या कर रही थीं.

बीती रात आलिया ने अपने सोशल मीडिया पर एक पोस्ट डाला है जिसमें उन्होंने लिखा है कि वह उन्हें पिछले दो साल से एक परिवार एक दोस्त की तरह जानती थीं. उन्हें खोने का गम हमेशा रहेगा.

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बीच-बीच में आलिया रणबीर की मां नीतू कपूर को भी संभालती हुई नजर आ रही थीं. नीतू वहां बार-बार बेहोश हो जा रही थी. वहीं पिता की अंतिम विदाई के समय रणबीर कपूर भी पूरे टूटे हुए नजर आ रहे थे. उन्हें समझ में नहीं आ रहा था कि क्या करें. उनके चेहरे पर पिता के खोने का दर्द साफ नजर आ रहा था.

#lockdown: ग्रीन और ऑरेंज जोन में सशर्त होगी  शादियां – समारोह

देश में लॉक डाउन 02 के ख़त्म होने से पहले ही लॉक डाउन 03 चौदह दिनों के लिए लागू हो गया है. लेकिन इसी बीच उनके लिए अच्छी खबर है जिनके घर शादी है और हर हाल में शादी करना ही छह रहे है . सरकार ने उनके मन की बातों को मानते हुए शादियों के इस मौसम में सदी समारोह करने का इजाजत सरकार ने सशर्त प्रदान कर दिया है . आइये 5 विन्दुओं में बताते है कि किन इलाकों में शादियां हो सकती है और सरकार का क्या दिशा निर्देश है .

* जल्द ही शादियों की शहनाई गूंजेगी  :- लॉकडाउन के दौरान सबसे बड़ी समस्या उन परिवारों की थी जिसमें शादी जैसे मांगलिक कार्यक्रम होने थे. इस बार सरकार ने इसे मामले में थोड़ी छूट दे दी है. अगर आप ग्रीन और ऑरेंज जोन में रहते है तो आपके घर या आस पास भी जल्द ही शादियों की शहनाई गूंजेगी . गृह मंत्रालय की तरफ से जारी की रियायतों के मद्देनजर यह रियायत प्रदान किया गया है .

* गैरजरूरी सामानों की ऑनलाइन डिलीवरी पर छूट :-  शादियों में खरीदारियों में कोई कमी ना रह जाये उसके लिए भी सरकार ने  ग्रीन और ऑरेंज जोन में  ई-कॉमर्स को भी छूट प्रदान कियाहै. इन जोन में गैर-जरूरी सामानों की ऑनलाइन डिलीवरी पर छूट दी गई है.

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* 50 फीसदी सवारी लेकर बसें चलाने की अनुमति :-  शादियों में आप एक जगह से दूसरे जगह जा सके इसके लिए सरकार ने पूरा ख्याल रखते हुए ,  ग्रीन जोन में 50 फीसदी सवारी लेकर बसें चलाने की अनुमति प्रदान कर दी है. ग्रीन जोन के बस डिपो 50 फीसदी कर्मचारी के साथ ही काम करेंcoronavirus

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* 50 से ज्यादा लोग जुटें  :- गृह मंत्रालय द्वारा जारी दिशा-निर्देशों के मुताबिक लॉकडाउन के दौरान शादी की इजाजत कुछ शर्तों के साथ दी गई है. लेकिन आपको इस बात का विशेष ध्यान रखना होगा कि लॉकडाउन में दी गई शादी की इजाजत समारोह में 50 से ज्यादा लोग न जुटें यानी वर पक्ष और वधु पक्ष दोनों की तरफ से कुल 50 लोग ही शादी का लुत्फ उठा पाएंगे.

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* देश में 130 को छोड़ कर बाकी जगह आयोजित हो सकता है सशर्त शादी समारोह :-  लॉकडाउन 3.0 के लिए देश के जिलों को तीन जोन (रेड, ऑरेंज और ग्रीन) में बांटा गया है. जानकारी के मुताबिक रेड जोन में देश के 130 जिले हैं. ऑरेंज जोन में 284 और ग्रीन जोन में 319 जिले शामिल हैं. इन जिलों का वर्गीकरण मौजूदा कोरोना केसों के आधार पर किया गया है. ऑरेंज जोन और ग्रीन जोन के लोग  शादी जैसे मांगलिक कार्यक्रम सशर्त आयोजित कर सकते है .

 

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