आपने ख़बरों में विजय माल्या, नीरव मोदी सरीखे ढेरों उद्योगपतियों के नाम सुने होंगे जिन्होंने बैंक से लोन लिया और विदेशों में रफ्फुचक्कर हो गए. इन लोगों को आम बोलचाल की भाषा में भगोड़ा कहा जाता है. भगोड़ा मतलब जो धोखे से वार कर के भाग जाए. अब बैंक के मामले में यह वार है लोन का. बड़े उद्योगपति करोड़ों का लोन बैंकों से तो ले लेते हैं लेकिन चुकाने की बारी आती है तो वीजा पर सरकारी स्टाम्प लगा विदेशों में फुर्र हो जाते हैं.

ऐसा ही नया मामला आया है दिल्ली से. देश के बेंकों से सेकड़ों करोड़ रूपए का लोन लेकर विदेश भागने वालों की फेहरिस्त में एक और नाम जुड़ गया है. नाम है बासमती चावल का व्यापार करने वाली ‘राम देव इंटरनेशनल लिमिटेड कम्पनी’. आरोप है कि दिल्ली में रहने वाले इस कंपनी के मालिक ने एसबीआई और दुसरे अलग अलग 6 बैंकों से लगभग 414 करोड़ रूपए का लोन लिया था.

खबर के मुताबिक 4 साल पहले यानि 2016 में ही कंपनी को एनपीए घोषित कर दिया था. लेकिन इन 4 सालों में एसबीआई ने कंपनी के खिलाफ शिकायत करने की सूद नहीं ली. इस बीते फरवरी एसबीआई को चेत आई और शिकायत कर दी. जिसके बाद 28 अप्रैल को सीबीआई ने एफआईआर दर्ज कर दी है.

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किन बैंको से कितना उधार

मिली जानकारी के अनुसार कंपनी ने 6 बैंकों से 414 करोड़ रूपए लोन लिया था. जिसमें सबसे ज्यादा एसबीआई से 173.11 करोड़ का लोन लिया गया था. इसके बाद 76.9 करोड़ रूपए केनरा बैंक से, 64.31 करोड़ रूपए यूनियन बैंक ऑफ़ इंडिया से, 51.31 करोड़ रूपए सेंट्रल बैंक ऑफ़ इंडिया से, 39.51 करोड़ कॉर्पोरशन बैंक से और 12.27 करोड़ रूपए आईडीबीआई बैंक से लिए गए उधार लिए गए थे.

इस मामले में सीबीआई ने कंपनी तथा कंपनी के निदेशक संगीता, नरेश कुमार, सुरेश कुमार और अज्ञात सरकारी अधिकारीयों के खिलाफ एफआईआर दर्ज की है. जिन पर धोखाधड़ी का मामला दर्ज किया गया है. यह आरोपी व्यक्ति 2016 से लापता थे. शिकायत के बाद इन पर 28 अप्रैल पिछले माह में धोखाधड़ी, क्रिमिनल ब्रीच और ट्रस्ट और भ्रष्टाचार के तहत का मामला दर्ज हुआ है.

आरोपी के भागने से जुडी जानकारी

एसबीआई बैंक ने शिकायत करने में हुई देरी को लेकर कहा कि उन्हें साल भर पहले ही कंपनी के मालिक के गायब होने की पुष्टि मिली है. यह जानकारी तब मिली जब एक और कम्पनी एनसीएलटी गई थी. एनसीएलटी मतलब ‘नेशनल कम्पनी लॉ ट्रिब्यूनल’. इसके पास मौजूदा दस्तावेजों से पता चला कि मुस्सदी लाल कृष्णा लाल नामक कंपनी के डीफौल्टर होने के बाद राम देव इंटरनेशनल लिमिटेड को ट्रिब्यूनल में लाया गया था. जिसके तहत ट्रिब्यूनल द्वारा 3 बार राम देव इंटरनेशनल लिमिटेड कम्पनी के निदेशकों को नोटिस दिया गया लेकिन न तो उनका कोई पता चला और न कोई जवाब नहीं मिला.

एसबीआई कह रही है कि उन्होंने शिकायत करने में देरी नहीं की लेकिन जानकारी के मुताबिक एसबीआई को इसकी खबर 1 साल पहले लग चुकी थी जब दूसरी कंपनी द्वारा 30 लाख के भुगतान के मामले में भगोड़े कंपनी को ‘नेशनल लॉ ट्रिब्यूनल’ में घसीटा था. जिसमें पता चला था कि आरोपी 2018 में ही देश छोड़ दुबई भाग चुका है.  इस मामले की जाँच में लगे अधिकारियों ने एनडीटीवी को बताया कि आरोपियों ने देश छोड़ने से पहले अपनी सारी संपत्ति बेच डाली थी.

इससे पहले भी कई बैंकों को चपत लग चुकी है

अभी ज्यादा दिन नहीं बीते हैं 16 मार्च को कांग्रेस ने लोकसभा में केंद्र सरकार से 50 विल्फुल डिफाल्टरों के नाम की घोषणा करने की मांग की थी. किन्तु सरकार ने उस दौरान इस विषय पर किसी प्रकार की जानकारी नहीं दी थी. किन्तु जब इस इस विषय पर आरटीआई वर्कर साकेत गोखले ने आरटीआई दायर की तो पता चला कि ‘रिज़र्व बैंक ऑफ़ इंडिया’ ने देश के 50 विल्फुल डिफाल्टर के लगभग 68,600 करोड़ के कर्ज को बट्टे खाते में डाल दिया यानी माफ़ कर दिया. ध्यान देने वाली बात यह कि विल्फुल डिफाल्टर वे होते हैं जिन व्यक्ति अथवा कम्पनी के पास लोन चुकाने की रक़म हो लेकिन वह लोन न चुका रहा हो, और बैंक उसके खिलाफ अदालत में चली जाए. जाहिर है हाल ही में बैंक अथवा सरकार ऐसे विल्फुल डिफाल्टरों से लोन उगाई करने में पूरी तरह नाकाम रही है. जिसके बाद उनके कर्ज को बट्टे खाते में डाल दिया गया.
50 लोगों की इस सूची में किंगफिशर एयर लाइन्स का नाम भी शामिल है जिसका मालिक विजय माल्या है. भारतीय रिजर्व बैंक के मुताबिक किंगफिशर एयरलाइन्स पर बेंकों का 1,943 करोड़ रूपए बकाया था. इसके इतर माल्या की सभी कंपनियों का बैकों पर कुल 9000 करोड़ रूपए बकाया है.

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इस लिस्ट में मेहुल चौकसी की कम्पनी गीतांजलि जेम्स का भी नाम शामिल था. इस कंपनी का 5492 करोड़ रूपए बैंकों का कर्जा माफ़ कर दिया गया है. वहीँ आरईआई एग्रो लिमिटेड कम्पनी का 4,314 करोड़ रूपए, विन्सोम डायमंड एंड ज्वेलरी का 4076 करोड़ रूपए, रोटोमेक का 2850 करोड़ रूपए, पतंजलि ग्रुप का 2212 करोड़.

इसके अलावा 18 कंपनिया ऐसी है जिनके ऊपर 1000 करोड़ से ऊपर की कर्जदारी थी, तथा 25 ऐसी कंपनिया थी जिन पर 1000 करोड़ तक की कर्जदारियां थीं. ध्यान देने वाले बात यह है कि इन छोटे कर्जों में विजय माल्या समेत कई बड़े कारोबारियों की कंपनिया थी जिनकी दुसरे नाम से कम्पनियाँ चल रही थी जिसे सरकार ने राईट ऑफ़ यानी माफ़ किया.

कोंग्रेस के अनुसार यह वही लिस्ट थी जिसकी बात राहुल गाँधी ने 16 मार्च को लोकसभा में की थी लेकिन सरकार ने लिस्ट को सदन के पटल में नहीं रखा था. हांलांकि सदन के बाहर आते ही उन्होंने 50 को बढ़ाकर 500 दिफौल्टरों को लेकर सरकार से सूची मांगी थी. किन्तु इससे पहले भी दिफौल्टर के नाम के लिए अलग अलग लोगों तथा संस्थाओं द्वारा आरटीआई डाली गई थी.

आरबीआई ने 30 बड़े डिफाल्टर के नाम तब जारी किये जब न्यूज पोर्टल ‘द वायर’ ने आरटीआई के जरिये सुचना मांगी थी. जिसमें गीतांजलि, रोटोमेक ग्लोबल, ज़ूम डेवेलोपेर्स, विन्सोम डायमंड्स, सिद्धि विनायक लोजिस्टिक इत्यादि कंपनियों के नाम शामिल थे.

आज फिर से यह नया मामला सामने आया है, जो लगातार यह साबित करती है कि सरकार इन पर शिकंजा कसने में पूरी तरह से नाकामियाब रही है. कमजोर होती अर्थव्यवस्था में इस तरह के आर्थिक हमले देश के लिए घातक सिद्ध होंगे. आज देश इस परिस्थिति में नहीं है कि इस तरह कि लापरवाहियों को वहन कर सके. ऊपर से सरकार और बैंकों की लापरवाहियां पुरे व्यवस्था को शक के घेरे में फिर से खड़ा कर रही है.

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