इस कोरोना काल में बहुत सारे सामाजिक मान्यताएँ रश्मों रिवाज और धर्म के प्रति दकियानूसी और पारम्परिक मान्यताएं टूटती हुवी दिख रही है. इन मान्यताओं को सदियों से लोग बिना समझे बुझे अपने कंधों पर ढो रहे थे. जब लोग पूछते हैं. ऐसा क्यों करते हैं तो सिर्फ एक जवाब होता है कि हमारे बाप दादा करते आये हैं. इसलिए हम भी कर रहे हैं.

इस लॉक डाउन के दौरान अचानक किसी भी कारणवश जब किसी ब्यक्ति की मृत्यु हो रही है तो सोशल डिस्टेंस की वजह से दस बीस लोग ले जाकर दफना या जला रहे हैं.हिन्दू रीति रिवाज के अनुसार जलाए गए शव की हड्डी राख सहित जिसे लोग सन्त डुबाना कहते हैं. उसे गंगाजी में ले जाकर डुबाते हैं. बिहार और यू पी के अधिकांशतः लोग वाराणशी काशी गंगा जी में डुबाने के लिए ले जाते हैं. वहाँ पंडा लोग हैसियत के अनुसार दान दक्षिणा लेते हैं. आपको इतना मजबूर कर दिया जाएगा कि अधिक से अधिक लोग सन्त डुबाने के लिए इन पण्डों को राशि और दान दक्षिणा देते हैं.लेकिन इस दौरान आवागमन पर विराम लगने से ये सब नहीं हो पा रहा है.

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बिहार राज्य के औरंगाबाद जिला अंतर्गत पशुपति बिगहा निवासी 80 वर्षीय ब्यास महतो ने बताया कि हमें याद नहीं है कि हमारे गाँव के किसी ब्यक्ति की मृत्यु हुवी हो और उसका सन्त डुबाने के लिए लोग नहीं ले गए हों.स्थिति कितनी भी खराब हो लोग कर्ज और जमीन गिरवी रखकर मृत्युभोज करते थे.अपनी झूठी औकात दिखाने के लिए भी लोग बढ़ चढ़कर मृत्युभोज में खाने वाला कई तरह के आइटम बनवाते हैं.कर्ज में पड़े मृतक के परिवार वालों को कई तरह के आवश्यक जरूरत पर भी रोक लगानी पड़ती है.इस कोरोना के कहर ने यह सिख भी दी है कि मृत्युभोज,रश्मों रिवाज ,शादी विवाह में हम अनावश्यक खर्च नहीं करें.

जरूरत है इसे सदा के लिए लागू करने की. मृत्युभोज पर प्रतिबंध

लोग जमीन गिरवी रखकर सूद पर कर्ज लेकर आर्थिक रूप से कमजोर ब्यक्ति भी मृत्युभोज करता था.लेकिन लॉक डाउन के चलते सोशल डिस्टेंस का पालन करने की वजह से हजारों लोगों को खिलाने की परंपरा समाप्त हो गयी है. समाज भी इसे आसानी से स्वीकार कर ले रहा है. मृत्युभोज बंद करने हेतु कई संगठनों और स्वयंसेवियों द्वारा पहल किया जा रहा था .लेकिन सफलता नहीं मिल पा रही थी.

औरंगाबाद जिले के पूर्णाडिह ग्राम निवासी रामप्रसाद सिंह ने कहा कि हर हाल में मृत्युभोज बन्द होनी चाहिए और शादी विवाह में अनावश्यक खर्च से हम हर हाल में बचें.जिस तरह से इस समय लॉक डाउन और कोरोना की वजह से हो रहा है.शादी विवाह और मृत्युभोज में लोगों को नहीं बुलाया जा रहा है.प्रशासनिक पदाधिकारी एवं कोरोना बीमारी के डर से भी सोशल डिस्टेंस का पालन किया जा रहा है.इसकी वजह से लोग फिजूलखर्ची से भी बच रहे हैं.पैसे भी बच रहे हैं.और परेशानी भी नहीं हो रही है.उसी पैसे से बच्चों को पढ़ाने और परिवार के स्वास्थ्य पर पौष्टिक खाने पर खर्च कर सकते हैं.

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इस कोरोना के बहाने शुरुआत हुवी इस परम्परा को समाज के लोगों को सदा के लिए माननी चाहिए.अगर यह परम्परा सदा के लिए लागू हुआ तो कमजोर तबके के लोगों के लिए वरदान साबित होगा.

* शादी विवाह

शादी विवाह में शुभ मुहूर्त पण्डित से दिखाने का प्रचलन रहा है. इस बार भी अप्रैल मई जून माह में पण्डित ने बहुत लोगों को शुभ दिन तारीख देख कर शुभ लगन और मुहूर्त बता दिया.लोगों ने शादी का कार्ड भी छपवा लिया लेकिन लॉक डाउन ने सारा कुछ खत्म कर दिया.भूषण प्रसाद ने बताया कि मैं अपने लड़का की शादी का दिन तारीख पण्डित जी से पूछ कर रख दिया.शादी का कार्ड भी छपवा लिया लेकिन लॉक डाउन की वजह से शादी का तिथि टल गया.उन्होंने कहा कि मैंने पण्डित जी से पूछा कि यही शुभ मुहूर्त देखे थे कि उस तिथि पर शादी नहीं हो पा रही है. आपको तो सब मालूम होना चाहिए था.मैं हलुआई,बैंड बाजा ,गाड़ी सभी ठीक कर दिया.लोगों को ब्याना भी दे दिया.इसका जुर्माना तो पण्डित जी को ही चुकाना पड़ेगा.जब आपका शास्त्र यह सब ठीक ठीक नहीं बताता है तो इस तरह का काम क्यों करते हैं. लोगों को अब जागरूक होने की जरूरत है.यह सब सिर्फ भरमजाल है.कोरोना के बहाने ही सही हमलोगों को नई सिख मिला है.

* लॉक डाउन में शादियाँ

इस लॉक डाउन में भी कई जोड़े आपस में परिणय सूत्र में बंधे.नहीं हुआ कोई रश्म न तिलक,न मटकोर न मड़वा भतवान कुछ भी नहीं लड़का वाला तो कई जगह सिर्फ अपने बाईक से गया और दो चार लोगों के बीच शादी हुवी और दुल्हन को बाइक पर बैठाकर अपने घर ले आया.शायद इस कोरोना और लॉक डाउन की वजह से शादी में फिजूलखर्ची पर रोक लगा है.

अर्जक संघ से जुड़े रामानुज गौतम,उपेंद्र पथिक ने कहा कि इस कोरोना के कहर से हमलोग सिख लेकर फिजूलखर्ची और शादी विवाह में ब्याप्त अंधविस्वास ढोंग ढकोसलों से भी निजात पा सकते हैं. कमजोर तबके के लोग बचे हुवे पैसे का सदुपयोग अपने बच्चों को पढ़ाने में कर सकते हैं.इसे लगातार जारी रखने की जरूरत है.

* जब लड़की वाले ही लेकर गए बारात-

समाज में यह परम्परा कायम है कि लड़का वाले बारात लेकर लड़की वाले के यहाँ जाते हैं. लेकिन बिहार के औरंगाबाद जिला के पिरु ग्राम निवासी रामविनेश्वर साव अपनी बेटी मीना कुमारी की बारात लेकर नालन्दा हिलसा ले गए.जहां राजू साव के बेटे बैजू साव के साथ शादी सम्पन्न हुआ.इस शादी में महत्वपूर्ण भूमिका समाजसेवी एवं राजनीतिज्ञ अखलाक अहमद ने निभायी. अपनी गाड़ी से अखलाक अहमद लड़की के माता पिता के साथ बारात ले गए और सादे समारोह में शादी सम्पन्न करायी.

इस कोरोना काल और लॉक डाउन के दौरान कमजोर तबके के लोगों के बीच धार्मिक आडम्बर और रश्मों रिवाज टूटता नजर आ रहा है.

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