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तमाम बातें उस की समझ के परे थीं. उस का मन मानने को तैयार नहीं था कि एक हट्टाकट्टा नौजवान भी कभी यौन शोषण का शिकार हो सकता है. पर यह एक हकीकत थी जिसे झुठलाया नहीं जा सकता था. अत: अपने मन को कड़ा कर वह पिछली सभी बातों पर गौर करने लगी. पूरा समय मजाकमस्ती के मूड में रहने वाले मयंक का रात के समय बैड पर कुछ अनमना और असहज हो जाना, इधर स्त्रीसुलभ लाज के चलते विभा का उस की प्यार की पहल का इंतजार करना, मयंक की ओर से शुरुआत न होते देख कई बार खुद ही अपने प्यार का इजहार कर मयंक को रिझाने की कोशिश करना, लेकिन फिर भी मयंक में शारीरिक सुख के लिए कोई उत्कंठा या भूख नजर न आना इत्यादि कई ऐसी बातें थीं, जो उस वक्त विभा को विस्मय में डाल देती थीं. खैर, बात कुछ भी हो, आज एक वीभत्स सचाई विभा के सामने परोसी जा चुकी थी और उसे अपनी हलक से नीचे उतारना ही था.

हलकेफुलके माहौल में रात का डिनर निबटाने के बाद विभा ने बिस्तर पर जाते ही मयंक को मस्ती के मूड में छेड़ा, ‘‘तुम्हें मुझ पर जरा भी विश्वास नहीं है न?’’ ‘‘नहीं तो, ऐसा बिलकुल नहीं है. अब तुम्हीं तो मेरे जीने की वजह हो. तुम्हारे बगैर जीने की तो मैं कल्पना भी नहीं कर सकता,’’ मयंक ने घबराते हुए कहा.

‘‘अच्छा, अगर ऐसा है तो तुम ने अपनी जिंदगी की सब से बड़ी सचाई मुझ से क्यों छिपाई?’’ विभा ने प्यार से उस की आंखों में देखते हुए कहा. ‘‘मैं तुम्हें सब कुछ बताना चाहता था, लेकिन मुझे डर था कहीं तुम मुझे ही गलत न समझ बैठो. मैं तुम्हें बहुत प्यार करता हूं विभा और किसी भी कीमत पर तुम्हें खोना नहीं चाहता था, इसीलिए...’’ कह कर मयंक चुप हो गया.

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