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हनीमून: भाग 2

अगले 3 दिन तैयारी और इंतजार में बीते. मुन्नू का मन टैलीविजन से हटा देख रश्मि भी रम गई. वह भी बच्चों के साथ नन्ही बच्ची बन गई. उस का बस चलता तो बच्चों के साथ वह भी पिकनिक पर पहुंच जाती, पर बच्चे बहुत चालाक थे. उन के पास बड़ों का प्रवेश वर्जित था.

नन्हेमुन्नों का उल्लास देखते ही बनता था. आखिर वादविवाद, शोरशराबेभरी तैयारियां पूरी हुईं. पिकनिक वाले दिन मुन्नू मां की एक आवाज पर जाग गया. दूध और नाश्ते का काम भी झट निबट गया. 9 भी नहीं बजे थे कि नहाने और बननेठनने की तैयारी शुरू हो गई.

नहाने के बाद मुन्नू बोला, ‘‘मां, मेरा कुरतापजामा निकालना और अचकन भी.’’

‘‘अरे, तू पिकनिक पर जा रहा है या किसी फैंसी ड्रैस शो में.’’

‘‘नहीं मां, आज तो मैं वही पहनूंगा…’’ स्वर की दृढ़ता से ही रश्मि समझ गई कि बहस की कोई गुंजाइश नहीं है.

‘मुझे क्या,’ वाले अंदाज में रश्मि ने कंधों को सिकोड़ा और नीचे दबे पड़े कुरतापजामा व अचकन को निकाल लाई और प्रैस कर उन की सलवटों को भी सीधा कर दिया.

अचकन का आखिरी बटन बंद कर के रश्मि ने बेटे को अनुराग से निहारा और दुलार से उस के गाल मसले तो बस, छोटे मियां तो एकदम ही लाड़ में आ कर बोले, ‘‘मां…मां, तुम्हें पता है, सिंह आंटी कितनी कंजूस हैं.’’

‘‘मुन्नू…, बुरी बात’’, मां ने टोका.

‘‘सच मां, सब दोस्त कह रहे थे, पता है अंकुश पिकनिक में सिर्फ बिछाने की दरी ला रहा है.’’

‘‘तो क्या? बिछाने की दरी भी तो जरूरी है. फिर सिंह आंटी तो काम

पर भी जाती हैं. कुछ बनाने का समय नहीं होगा.’’

‘‘नकुल की मम्मी औफिस नहीं जातीं क्या? वह भी तो केक और बिस्कुट ला रहा है.’’

‘‘अच्छा, चुप रहो. अंकुश से कुछ कहना नहीं. वह तुम्हारा दोस्त है, मिलजुल कर खेलना,’’ रश्मि बेटे को समझाते हुए बोली.

तभी सामान उठाए सजेधजे शोर मचाते बच्चों के झुंड ने प्रवेश किया. लहंगे, कोटी और गोटेकिनारी वाली चूनर में ठुमकती नन्ही सी विधा अलग ही चमक रही थी.

‘‘आज कितनी सुंदर लग रही है मेरी चुनमुन,’’ लाड़ में आ कर रश्मि ने उसे गोद में उठा लिया.

‘‘पता है आंटी, आज इस की…’’ शादाब कुछ बोलता, उस से पहले मनप्रीत ने उसे जोर से टोक दिया. कुछ बच्चे उंगली होंठों पर रख कर शादाब को चुप रहने का संकेत करने लगे.

रश्मि समझ गई कि जरूर कोई बात है, जो छिपाई जा रही है पर उस ने कुछ भी न कहा, क्योंकि वह जानती थी कि शाम तक इन के सारे भेद बिल्ंिडग का हर एक फ्लैट जान जाएगा. इन नन्हेमुन्नों के पेट में कोई बात आखिर पचेगी भी कब तक?

सभी बच्चे अपनीअपनी डलियाकंडिया उठाए खड़े थे. कुछ मोटामोटा सामान पहले ही छत पर पहुंचाया जा चुका था. रोल की हुई दरी उठाए खड़े 4 बच्चे चलोचलो का शोर मचा रहे थे. मुन्नू की टोकरी भी तैयार थी. लड्डू का डब्बा, मठरियों का डब्बा, पेपर प्लेट्स और पेपर नैपकिंस आदि सभी रखे थे. रश्मि ने टोकरी ऊपर तक पहुंचाने की पेशकश की, पर मुन्नू ने उसे बिलकुल ही नामंजूर कर दिया.

यद्यपि छत की बनावट इस प्रकार की थी कि कोई दुर्घटना न हो, फिर भी रश्मि ने बच्चों को हिदायतें दीं. सबक देना अभिभावकों का स्वभाव जो ठहरा.

‘‘दीवारों पर उचकना नहीं और न ही पानी की टंकी पर, न छत पर. पहुंचते ही लिफ्ट का दरवाजा और फैन बंद कर देना,’’ सुनीसुनाई हिदायतें बारबार सुन कर बच्चे परेशान हो गए थे.

‘‘हम सब देख लेंगे, आप चिंता न करो और आप ऊपर न आना.’’

बाहर बराबर लिफ्ट का दरवाजा धमाधम बज रहा था. ऊपर आनेजाने के चक्कर जारी थे. कुछ बच्चे अभी भी लिफ्ट के इंतजार में बाहर दरवाजे पर खड़े थे. मुन्नू भी उन में शामिल हो गया. तभी 10वीं मंजिल के रोशनजी ने सीढि़यों से उतरते हुए बच्चों को धमकाया, ‘‘क्या धमाचौकड़ी मचा रखी है. बंद करो यह तमाशा. कब से लिफ्ट के इंतजार में था, पर यहां तो तुम लोगों का आनाजाना ही बंद नहीं हो रहा है.’’

बच्चों को डांटते हुए रोशनजी सामने वाले अली साहब के फ्लैट में हो लिए. रश्मि दरवाजे की ओट में थी.

तभी लिफ्ट के वापस आते ही रेलपेल मच गई. वहां खड़े सभी बच्चे अपनीअपनी डलियाकंडिया संभाले लिफ्ट में समा गए.

कृषि क्षेत्र में हैं  रोजगार के ढेरों अवसर

लेखक-डा. राकेश सेंगर, अभिषेक सिंह, आलोक कुमार सिंह

हमारे देश के तकरीबन 64 फीसदी लोग किसी न किसी रूप से कृषि से जुड़े हैं. इस में रोजगार की अपार संभावनाएं हैं. नए दौर में कृषि का सही तरीके से अध्ययन कर के आप एक अच्छा कैरियर बना सकते हैं.

12वीं पास होने के बाद छात्र बहुत परेशान से रहते हैं कि आगे चल कर किस फील्ड को चुनें, जिस से बेहतर रोजगार मिल सके. किसी से पूछने पर अधिकतर लोग इंजीनियरिंग, डाक्टर आदि जैसे कोर्स या डिगरी करने की सलाह ही देते हैं, लेकिन आप के पास इस के अलावा भी विकल्प मौजूद हैं.

जैसा कि आप को पता ही है कि किसी भी व्यक्ति की प्रारंभिक जरूरतें रोटी, कपड़ा और मकान हैं. अगर आप इन से जुड़े कोई कोर्स करना चाहते हैं, तो आप एक अच्छाखासा रोजगार तलाश सकते  हैं.

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एग्रीकल्चर यानी कृषि का नाम सुनते ही मन में बस एक ही बात आती है कि क्या इतना पढ़ कर किसान बनेंगे? तो हम आप की इस सोच को बदलना चाहेंगे कि एग्रीकल्चर का मतलब केवल पारंपरिक किसान बनना ही नहीं, बल्कि इस क्षेत्र में तकनीक से जुड़े अनेक विषय हैं, जिन की पढ़ाई कर के आजकल के युवा अपना कैरियर बना सकते हैं.

एग्रीकल्चर क्या है क्या : यह शब्द एक लैटिन शब्द है. यह 2 शब्दों से मिल कर बना है, ‘एगर’ और ‘कल्चर’. ‘एगर’ का  मतलब होता है ‘मिट्टी’ और ‘कल्चर’ का मतलब होता है ‘संस्कृति’. दूसरे शब्दों में, ‘पौधों या पशुओं से संबंधित उत्पादों की खेती करना या उत्पादन करना एग्रीकल्चर कहलाता है.’

एग्रीकल्चर या कृषि के अंतर्गत फसल उत्पादन, पशुपालन और डेरी विज्ञान, कृषि रसायन और मृदा विज्ञान, बागबानी, कृषि अर्थशास्त्र, कृषि इंजीनियरिंग, वनस्पति विज्ञान, प्लांट पैथोलौजी, विस्तार शिक्षा और विज्ञान जैसे अनेक विषय शामिल हैं. ये कोर्स भी अब अपनी अलगअलग शाखाओं में विस्तार कर रहे हैं और देश के अनेक कृषि विश्वविद्यालय में इन विषयों को पढ़ाया जाता है.

खास एग्रीकल्चर कोर्स

एग्रीकल्चर कोर्सों में डिप्लोमा, स्नातक और परास्नातक डिगरी शामिल हैं. इन कोर्सों में छात्रों को कृषि और बागबानी की मूल बातें सिखाई जाती हैं. साथ ही, ‘एग्रीकल्चर को व्यवसाय कैसे बनाना है’ आदि भी सिखाते हैं. आधुनिक तरीके से फसलों की खेती कर के और कृषि उत्पादों की मार्केटिंग कर के भी अपना बेहतर भविष्य बना कर अच्छी आमदनी कमा सकते हैं.

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विज्ञान की ही एक प्रमुख विधा कृषि विज्ञान है जिस में कृषि उत्पादन, खाद्य पदार्थों की आपूर्ति, फार्मिंग की क्वालिटी सुधारने, क्षमता बढ़ाने आदि के बारे में बताया जाता है. इस का सीधा संबंध बायोलौजिकल साइंस से है. इस में बायोलौजी, फिजिक्स, कैमिस्ट्री, मैथमैटिक्स के सिद्धांतों को शामिल करते हुए कृषि क्षेत्र की समस्याओं को हल करने का प्रयास किया जाता है.

प्रोडक्शन तकनीक को बेहतर बनाने के लिए ‘रिसर्च एवं डवलपमैंट’ को इस सिलेबस में शामिल किया गया है. इस की कई शाखाएं प्लांट साइंस, फूड साइंस, एनिमल साइंस व सौयल साइंस आदि हैं, जिन में स्पैशलाइजेशन कर इस क्षेत्र का जानकार बना जा सकता है.

कृषि के क्षेत्र में कैरियर बनाने के इच्छुक छात्रों को बौटनी, फिजिक्स, कैमिस्ट्री व गणित की जानकारी होना बहुत जरूरी है. ऐसे कई अंडरग्रेजुएट, पोस्ट ग्रेजुएट, डिप्लोमा

6 डौक्टरल कोर्स हैं, जो एग्रीकल्चर साइंस की डिगरी प्रदान करते हैं.

एग्रीकल्चर में पढ़ने के क्षेत्र

प्राकृतिक संसाधन : इस कोर्स में वानिकी (वन विज्ञान), मिट्टी और वन्यजीव से जुड़े विषयों को पढ़ाया जाता है. छात्रों को ऊर्जा स्रोतों, जैसे कि इलैक्ट्रिक मोटर्स और कंबशन इंजन और साथ ही सरकारी नियमों और कार्यक्रम, जो प्राकृतिक संसाधन संरक्षण से संबंधित हैं आदि की जानकारी दी जाती है.

मूल बागबानी : बागबानी एक ऐसा विज्ञान है, जो पौधों की बागबानी और प्राकृतिक विकास का अध्ययन करता है. इस कोर्स में छात्रों को पौधे की वृद्धि और विकास को नियंत्रित करने का कौशल विकसित करने में मदद मिलती है. अध्ययन के विशिष्ट विषयों में पौध उत्पादन, छंटाई, पौधे की वृद्धि और भंडारण प्रक्रियाओं के नियम शामिल हैं.

जंतु विज्ञान : एग्रीकल्चर कोर्स पर फोकस करते हुए पशु विज्ञान पर भी ध्यान दे सकते हैं. इस में सभी जानवरों पर ध्यान केंद्रित करने के बारे में बताया जाता है. घोड़ों, गायों और खेती से जुड़े दूसरे जानवरों के बारे में पढ़ाई होती है.

इस कोर्स में छात्र जैविक नजरिए से पशु विकास के बारे में जान सकते हैं जैसे पशु उत्पादों, पशु आहार और पशु प्रजनन में इस के विशिष्ट विषय हैं. पशु विज्ञान पाठ्यक्रम के दौरान छात्र पशु उद्योग के इतिहास, पशु रोग और पशु पालन में वर्तमान रुझान भी सीखते हैं.

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मिट्टी और कीटनाशक : कृषि के छात्रों को मिट्टी और कीटनाशकों के बारे में जानने के लिए रासायनिक प्रक्रिया और प्रभाव को समझाया जाता है कि कौन से तत्त्व फसल विकास के लिए अच्छे हैं. मिट्टी और कीटनाशक के कोर्स में पानी और मिट्टी, उर्वरक उपयोग और मिट्टी के निर्माण का संरक्षण शामिल है.

यह एक ऐसा पाठ्यक्रम है, जो व्याख्यान और प्रयोगशाला में सिखाया जाता है, ताकि छात्र इन चीजों को अच्छी तरह से समझ सकें और अपने कौशल को विकसित

कर सकें.

खाद्य सिस्टम : चाहे कृषि उत्पाद में फसल या पशु भोजन, किसानों और दूसरे लोगों को उपलब्ध कराया जाए, उन्हें यूएस खाद्य प्रणाली और प्रक्रियाओं की एक मजबूत समझ की आवश्यकता है. इस कोर्स में छात्र अमेरिकी खाद्य प्रणाली का अध्ययन करते हैं, क्योंकि यह वर्तमान अर्थव्यवस्था, स्वास्थ्य कारकों और विनियामक कानूनों से संबंधित हैं. अध्ययन के विशिष्ट विषयों में राजनीतिक व्यवस्था, स्वास्थ्य, पर्यावरण, खाद्य खुदरा बिक्री और अंतर्राष्ट्रीय खाद्य नियम शामिल हो सकते हैं.

एग्रीकल्चर सर्टिफिकेट कोर्स

(अवधि 1-2 साल)

10वीं या 12वीं जमात के बाद आप एग्रीकल्चर सर्टिफिकेट कोर्स भी कर सकते हैं:

* सर्टिफिकेट इन एग्रीकल्चर साइंस

* सर्टिफिकेट इन फूड एंड बेवरीज सर्विस

* सर्टिफिकेट इन बायोफर्टिलाइजर प्रोडक्शन

एग्रीकल्चर डिप्लोमा कोर्स

(अवधि 2 साल)

इस कोर्स में दाखिले के लिए साइंस, कृषि, गणित में 50 फीसदी अंकों के साथ 12वीं पास होना जरूरी है.

*      डिप्लोमा इन एग्रीकल्चर

*      डिप्लोमा इन एग्रीकल्चर एंड अलाइड प्रैक्टिस

*      डिप्लोमा इन फूड प्रोसैसिंग

स्नातक कोर्स (अवधि 4 साल)

इस के बैचलर कोर्स (बीएससी इन एग्रीकल्चर) में दाखिले के लिए साइंस, कृषि, गणित के साथ 50 फीसदी अंकों के साथ 12वीं पास होना जरूरी है.

* बीटैक इन एग्रीकल्चरल इंजीनियरिंग

* बीटैक इन एग्रीकल्चरल  इनफौर्मेशन टैक्नोलौजी

*      बीटैक इन एग्रीकल्चर एंड डेरी टैक्नोलौजी

*      बीटैक इन एग्रीकल्चरल एंड फूड इंजीनियरिंग

बीएससी बैचलर औफ साइंस (बीएससी):

इस के लिए 12वीं (विज्ञान, कृषि, गणित) उत्तीर्ण होना आवश्यक है.

* बीएससी इन एग्रीकल्चर

* बीएससी (औनर्स) इन एग्रीकल्चर

* बीएससी इन क्रौप साइकोलौजी

* बीएससी इन डेरी साइंस

* बीएससी इन फिशरीज साइंस

*      बीएससी इन प्लांट साइंस

*      बीएससी इन बागबानी

*      बीएससी इन वानिकी

*      बीएससी-एग्रीकल्चर जैव प्रौद्योगिकी

बीबीए इन एग्रीकल्चर मैनेजमैंट

(कोर्स की अवधि 4 साल)

बीबीए (बैचलर औफ बिजनैस एडमिनिस्ट्रेशन). यह एक स्नातक स्तर का प्रबंधन कार्यक्रम है. इस कोर्स को करने के लिए 12वीं होना आवश्यक है.

परास्नातक (कोर्स अवधि 2 साल)

मास्टर डिगरी, पीजी डिप्लोमा और पीजी प्रमाणपत्र कार्यक्रम पीजी (स्नातकोतर) स्तर पाठ्यक्रम हैं. बैचलर डिगरी कोर्स पूरा करने वाले उम्मीदवार इन पाठ्यक्रमों को आगे बढ़ाने के पात्र हैं:

* एमएससी इन एग्रीकल्चर बायोलौजिकल साइंस

* एमएससी इन एग्रीकल्चर बौटनी

* एमएससी इन एग्रीकल्चर सस्य विज्ञान

* एमएससी इन एग्रीकल्चर प्लांट जैनेटिक्स

* एमएससी इन एग्रीकल्चर मृदा विज्ञान

*      एमएससी इन एग्रीकल्चर कीट विज्ञान

*      एमएससी इन एग्रीकल्चर कृषि अर्थशास्त्र

*      एमएससी इन एग्रीकल्चर कृषि मौसम विज्ञान

* एमएससी इन एग्रीकल्चर प्लांट पैथोलौजी

* एमएससी इन एग्रीकल्चर कृषि विस्तार

* एमएससी इन एग्रीकल्चर बायोटैक्नोलौजी

* एमएससी इन एग्रीकल्चर बागबानी

डाक्टरल कोर्स (कोर्स की अवधि

3 साल या उस से ज्यादा)

पीएचडी एक शोध आधारित डाक्टरेट कार्यक्रम है. ऐसे उम्मीदवार, जिन्होंने पीजी कोर्स पूरा कर लिया है, वे इसे आगे बढ़ाने के पात्र हैं :

*      डाक्टर औफ फिलोसफी इन एग्रीकल्चर बायोटैक्नोलौजी

*      डाक्टर औफ फिलोसफी इन एग्रीकल्चरल एंटोमोलौजी

*      डाक्टर औफ फिलोसफी इन एग्रीकल्चर बायोलौजिकल साइंस

*      डाक्टर औफ फिलोसफी इन एग्रीकल्चर बौटनी

*      डाक्टर औफ फिलोसफी इन एग्रीकल्चर सस्य विज्ञान

*      डाक्टर औफ फिलोसफी इन एग्रीकल्चर प्लांट जैनेटिक्स

*      डाक्टर औफ फिलोसफी इन एग्रीकल्चर मृदा विज्ञान

*      डाक्टर औफ फिलोसफी इन एग्रीकल्चर कीट विज्ञान

*      डाक्टर औफ फिलोसफी इन एग्रीकल्चर कृषि अर्थशास्त्र

*      डाक्टर औफ फिलोसफी इन एग्रीकल्चर कृषि मौसम विज्ञान

*      डाक्टर औफ फिलोसफी इन एग्रीकल्चर प्लांट पैथोलौजी

*      डाक्टर औफ फिलोसफी इन एग्रीकल्चर कृषि विस्तार

दलहनी के बाद खुलते रास्ते

कृषि में 12वीं के बाद कैरियर बनाने के रास्ते खुल जाते है. इस में बीएससी से ले कर पीएचडी तक के कोर्स उपलब्ध हैं. ग्रेजुएशन में प्रवेश 12वीं के बाद मिलता है. इस के बाद विभिन्न विषयों से पोस्ट ग्रेजुएशन और पीएचडी हो सकती है.

इस में दाखिला लेने के बाद विषयों पर अच्छी पकड़ होना चाहिए, क्योंंकि प्रवेश एग्जाम के आधार पर अच्छी यूनिवर्सिटी या कालेज में अध्ययन के लिए दाखिला मिल सकता है.

इन सभी कोर्स को करने के लिए प्रमुख स्टेट, सैंट्रल, डीम्डटूबी एग्रीकल्चर यूनिवर्सिटी निम्नलिखित हैं:

केंद्रीय विश्वविद्यालय कृषि संकाय के साथ

*      बनारस हिंदू विश्वविद्यालय, वाराणसी, उत्तर प्रदेश.

*      अलीगढ़ मुसलिम विश्वविद्यालय, अलीगढ़, उत्तर प्रदेश.

*      विश्व भारती, शांति निकेतन, पश्चिम बंगाल

*      नागालैंड विश्वविद्यालय, मेडिजिपहर्मा, नागालैंड

डीम्डटूबी यूनिवर्सिटीज

* भारतीय कृषि अनुसंधान संस्थान, पूसा, नई दिल्ली-110012

*      भारतीय पशु चिकित्सा अनुसंधान संस्थान, इज्जतनगर, बरेली-243122, उत्तर प्रदेश

*      राष्ट्रीय डेरी अनुसंधान संस्थान, करनाल-132001, हरियाणा

*      केंद्रीय मत्स्य शिक्षा संस्थान, मुंबई-400061, महाराष्ट्र

राज्यवार कृषि विश्वविद्यालय

आंध्र प्रदेश

२      आचार्य एनजी रंगा कृषि विश्वविद्यालय, गुंटूर

२      डा. वाईएसआर होर्टिकल्चर यूनिवर्सिटी

२      श्री वेंकटेश्वर पशु चिकित्सा विश्वविद्यालय, तिरुपति

असम

२ असम कृषि विश्वविद्यालय, जोरहाट

बिहार

२      बिहार कृषि विश्वविद्यालय, सबौर, भागलपुर

२      बिहार पशु विज्ञान विश्वविद्यालय, पटना

छत्तीसगढ़

२      इंदिरा गांधी कृषि विश्वविद्यालय, रायपुर

२      छत्तीसगढ़ कामधेनु विश्वविद्यालय, दुर्ग

गुजरात

२      सरदार कृषिनगर दांतीवाड़ा कृषि विश्वविद्यालय, दांतीवाड़ा

२      आनंद कृषि विश्वविद्यालय, आनंद

२      नवसारी कृषि विश्वविद्यालय, नवसारी

२      जूनागढ़ कृषि विश्वविद्यालय, जूनागढ़

२      कामधेनु विश्वविद्यालय, गांधीनगर

हरियाणा

२      चौधरी चरण सिंह हरियाणा कृषि विश्वविद्यालय, हिसार

२      लाला लाजपत राय पशु चिकित्सा एवं पशु विज्ञान विश्वविद्यालय, हिसार

२      हरियाणा राज्य बागबानी विज्ञान संस्थान, करनाल

हिमाचल प्रदेश

२      चौ. सरवन कुमार हिमाचल प्रदेश कृषि विश्वविद्यालय, पालमपुर

२      डा. यशवंत सिंह परमार बागबानी एवं वानिकी विश्वविद्यालय, सोलन

झारखंड

२      बिरसा कृषि विश्वविद्यालय, रांची

जम्मू और कश्मीर

२      शेर ए कश्मीर कृषि विज्ञान और प्रौद्योगिकी विश्वविद्यालय, श्रीनगर

२      शेर ए कश्मीर कृषि विज्ञान और प्रौद्योगिकी विश्वविद्यालय, जम्मू

कर्नाटक

२      कृषि विज्ञान विश्वविद्यालय, बैंगलुरु

२      कर्नाटक पशु चिकित्सा, पशु और मत्स्य विज्ञान विश्वविद्यालय, बीदर

२      कृषि विज्ञान विश्वविद्यालय, रायचूर

२      कृषि विज्ञान विश्वविद्यालय, धारवाड़

२      बागबानी विज्ञान विश्वविद्यालय, बगलकोट

२      कृषि और बागबानी विज्ञान विश्वविद्यालय, शिमोगा

केरल

२      केरल कृषि विश्वविद्यालय, त्रिशूर

२      केरल यूनिवर्सिटी औफ फिशरीज ऐंड ओशन स्टडीज, पनांगड, कोच्चि

२      केरल पशु चिकित्सा और पशु विज्ञान विश्वविद्यालय, पूकोड, वायानंद, केरल

मध्य प्रदेश

२      राजमाता विजयाराजे सिंधिया कृषि विश्वविद्यालय, ग्वालियर

२      नानाजी देशमुख पशु चिकित्सा विश्वविद्यालय, जबलपुर

२      जवाहरलाल नेहरू कृषि विश्वविद्यालय, जबलपुर

महाराष्ट्र

२      डाक्टर बालासाहिब सावंत कोकन कृषि विद्यापीठ, दापोली

२      महाराष्ट्र पशु और मत्स्य पालन विज्ञान विश्वविद्यालय, नागपुर

२      वसंतराव नायक मराठवाड़ा कृषि विद्यापीठ, परभणी

२      माततम फुले कृषि विद्यापीठ, राहुरी

२      डाक्टर पंजाबराव देशमुख कृषि विद्या विद्यालय, अकोला

ओडिशा

२      ओडिशा कृषि और प्रौद्योगिकी विश्वविद्यालय, भुवनेश्वर

पंजाब

२      गुरु अंगद देव वैटरनरी ऐंड एनिमल साइंसेज यूनिवर्सिटी, लुधियाना

२      पंजाब कृषि विश्वविद्यालय, लुधियाना

राजस्थान

२      महाराणा प्रताप कृषि एवं प्रौद्योगिकी विश्वविद्यालय, उदयपुर

२      स्वामी केशवानंद राजस्थान कृषि विश्वविद्यालय, बीकानेर

२      राजस्थान पशु चिकित्सा एवं पशु विज्ञान विश्वविद्यालय, बीकानेर

२      एसकेएन कृषि विश्वविद्यालय, जोबनेर

२      कृषि विश्वविद्यालय, कोटा

२      कृषि विश्वविद्यालय, जोधपुर

तमिलनाडु

२      तमिलनाडु कृषि विश्वविद्यालय, कोयंबटूर

२      तमिलनाडु पशु चिकित्सा और पशु विज्ञान विश्वविद्यालय, चेन्नई

२      तमिलनाडु मत्स्य विश्वविद्यालय, नागपट्टिनम

तेलंगाना

२      श्री कोंडा लक्ष्मण तेलंगाना राज्य बागबानी विश्वविद्यालय, हैदराबाद

२      श्री पीवी नरसिम्हा राव तेलंगाना पशु चिकित्सा विश्वविद्यालय, हैदराबाद

२      प्रोफैसर जयशंकर तेलंगाना राज्य कृषि विश्वविद्यालय, हैदराबाद

उत्तराखंड

२      जीबी पंत कृषि एवं प्रौद्योगिकी विश्वविद्यालय, पंतनगर

२      वीसीएसजी उत्तराखंड बागबानी और वानिकी विश्वविद्यालय, भरसार

उत्तर प्रदेश

२      चंद्रशेखर आजाद कृषि एवं प्रौद्योगिकी विश्वविद्यालय, कानपुर

२      नरेंद्र देव कृषि एवं प्रौद्योगिकी विश्वविद्यालय, फैजाबाद

२      सरदार वल्लभभाई पटेल कृषि एवंम प्रौद्योगिकी विश्वविद्यालय, मेरठ

२      पं. दीनदयाल उपाध्याय पशु चिकित्सा विज्ञान विद्यालय एवं गो अनुसंधान संस्थान, मथुरा.

२      बांदा कृषि एवं प्रौद्योगिकी विश्वविद्यालय, बांदा

२      सैम हिगिनबौटम कृषि विश्वविद्यालय, प्रौद्योगिकी एवं विज्ञान, इलाहाबाद

पश्चिम बंगाल

२      विधान चंद्र कृषि विश्वविद्यालय, मोहनपुर

२      पश्चिम बंगाल पशु एवं मत्स्य विज्ञान विश्वविद्यालय, कोलकाता

२      उत्तर बंगा कृषि विश्वविद्यालय, कूचबिहार

कृषि क्षेत्र में रोजगार

मैनेजमैंट में पीजी डिप्लोमा इन एग्री वाटर मैनेजमैंट कृषि विज्ञान के क्षेत्र में प्रोफैशनल्स का वेतन उन की योग्यता, संस्थान और काम करने के अनुभव पर निर्भर करता है.

सरकारी क्षेत्र में कदम रखने वाले ग्रेजुएट प्रोफैशनल्स को प्रारंभ में 20-25 हजार प्रति माह मिलते हैं. कुछ साल के अनुभव के बाद यह राशि 40-50 हजार प्रतिमाह हो जाती है, जबकि प्राइवेट सैक्टर में प्रोफैशनल्स की स्किल्स के हिसाब से वेतन दिया जाता है.

यदि आप अपना फर्म या कंसल्टैंसी सर्विस खोलते हैं, तो आमदनी की रूपरेखा, फर्म के आकार व स्वरूप पर निर्भर करती है. टीचिंग व रिसर्च के क्षेत्र में भी अच्छी तनख्वाह मिलती है. कृषि विज्ञान में डिगरी/डिप्लोमा कोर्स करने के बाद निम्नलिखित पदों पर नियुक्ति हो सकती हैं:

*      एग्रीकल्चर ऐक्सटैंशन औफिसर

*      रूरल डवलपमैंट औफिसर

*      फील्ड औफिसर

*      एग्रीकल्चर क्रेडिट औफिसर

*      एग्रीकल्चर प्रोबेशनरी औफिसर

*      प्लांट प्रोटैक्शन औफिसर

*      सीड प्रोडक्शन औफिसर

*      प्लांट पैथोलौजिस्ट

*      एग्रीकल्चर असिस्टैंट/ टैक्निकल असिस्टेंट

इन सभी कोर्सों में दाखिला प्रवेश प्रक्रिया के बाद मिलता है. प्रवेश परीक्षाएं संबंधित संस्थान, यूनिवर्सिटी अथवा इंडियन काउंसिल औफ एग्रीकल्चरल रिसर्च (आईसीएआर), नई दिल्ली द्वारा कराई जाती हैं.

आईसीएआर से मान्यताप्राप्त संस्थान आईसीएआर के अंक को आधार बना कर प्रवेश देते हैं. आईसीएआर पोस्ट ग्रेजुएट के लिए फैलोशिप भी प्रदान करता है.

प्रवेश लेने का समय

बीएससी, एमएससी, पीएचडी, जैसे कोर्सों में सामान्य तौर पर दाखिले से संबंधित नोटिफिकेशन प्रत्येक साल के फरवरी से मार्च माह के बीच तक आ जाता है और इन की परीक्षा मई माह से जून माह के बीच करवाई जाती है. जुलाई माह के अंत तक दाखिले की प्रक्रिया चलती रहती है.

ध्यान देने योग्य बातें

भारतीय कृषि अनुसंधान परिषद द्वारा अनुमोदित कालेज में अध्ययन करना बेहतर है. इस के अलावा भारतीय कृषि अनुसंधान परिषद द्वारा मान्यता न प्राप्त करने वाले गैर एग्रीकल्चर यूनिवर्सिटी या कालेज से बीएससी एग्रीकल्चर के छात्र एमएससी पीएचडी में प्रवेश लेने के अलावा कृषि अधिकारी (एओ) जैसी सरकारी नौकरियों के लिए पात्र नहीं होते हैं.

सरकार ने स्पष्ट रूप से उल्लेख किया है कि भारतीय कृषि अनुसंधान परिषद द्वारा अनुमोदित यूनिवर्सिटी और कालेज से शिक्षा लिए छात्र ही केवल भारतीय कृषि अनुसंधान परिषद के द्वारा आयोजित प्रतियोगी परीक्षाओं जैसे जूनियर रिसर्च फैलो, एमएससी के लिए सीनियर रिसर्च फैलो, पीएचडी में एडमिशन ले पाएंगे, इसलिए भारतीय कृषि अनुसंधान परिषद द्वारा अनुमोदित यूनिवर्सिटी व कालेज से ही कृषि संबंधी शिक्षा लेना बेहतर है.

हनीमून: भाग 1

मुन्नू का मन रखने के लिए जब खिलौना गाड़ी से दार्जिलिंग जाना तय हुआ तब सोचा था कि समय बिताना समस्या बन जाएगा, पर हर पल रंग बदलते मनोरम दृश्यों ने मन को बांध लिया.

ऊंचाई पर मौसम के तेवर कुछ और थे. घाटियों में धुंध की चादरें बिछी थीं. जब भी गाड़ी बादलों के गुबार के बीच से गुजरती तो मुन्नू की रोमांचभरी किलकारी छूट जाती.

ऊंची खड़ी चढ़ाई पर डब्बे खींचते इंजन का दम फूल जाता, रफ्तार बिलकुल रेंगती सी रह जाती. छुकछुक की ध्वनि भकभक में बदल जाती, तो मुन्नू बेचैन हो जाता और कहता, ‘‘मां, गाड़ी थक गई क्या?’’

कहींकहीं पर सड़क पटरी के साथसाथ सरक आती. ऐसी ही एक जगह पर जब सामने खिड़की पर बैठी सलोनी सी लड़की ने बाहर निहारा तो समानांतर सड़क पर दौड़ती कार से एक सरदारजी ने फिकरा उछाला, ‘‘ओए, साड्डे सपनों की रानी तो मिल गई जी.’’

सरदारजी के कहे गए शब्दों को सुन कर लड़की ने सिर खिड़की से अंदर कर लिया.

यद्यपि सर्दी में वहां भीड़भाड़ कम थी, लेकिन फिर भी सर्दी के दार्जिलिंग ने कुछ अलग अंदाज से ही स्वागत किया. ऐसा भी नहीं कि पूरा शहर बिलकुल ही बियावान पड़ा हो. ‘औफ सीजन’ की एकांतता का आनंद उठाने के इच्छुक एक नहीं, अनेक लोग थे.

माल रोड पर मनभावन चहलपहल थी. कहीं हाथों में हाथ, कहीं बांहों में बांहें तो कहीं दिल पर निगाहें. धुंध में डूबी घाटियों की ओर खिड़कियां खोले खड़ा चौक रोमांस की रंगीनी से सरोबार था.

‘‘लगता है, देशभर के नवविवाहित जोड़े हनीमून मनाने यहीं आ गए हैं,’’ रोहित रश्मि का हाथ दबा कर आंख से इशारा करते हुए बोला, ‘‘क्यों, हो जाए एक बार और?’’

‘‘क्या पापा?’’ मुन्ने के अचानक बोलने पर रश्मि कसमसाई और रोहित ने अपनी मस्तीभरी निगाहें रश्मि के चेहरे से हटा कर दूर पहाड़ों पर जमा दीं.

‘‘पापा, आप क्या कह रहे हैं,’’ मुन्ने ने हठ की तो रश्मि ने बात बनाई, ‘‘पापा कह रहे हैं कि वापसी में एक बार और ‘टौय ट्रेन’ में चढ़ेंगे.’’

‘‘सच पापा,’’ किलक कर मुन्नू पापा से लिपट गया. फिर कुछ समय बाद बोला, ‘‘पापा, हनीमून क्या होता है?’’

इस से पहले कि रोहित कुछ कहे, रश्मि बोल पड़ी, ‘‘बेटा, हनीमून का मतलब होता है शादी के बाद पतिपत्नी का घर से कहीं बाहर जा कर घूमना.’’

‘‘मम्मी, क्या आप ने भी कहीं बाहर जा कर हनीमून किया था?’’

‘‘हां, किया था बेटे, नैनीताल में,’’ इस बार जवाब रोहित ने सहज हो कर दिया था.

‘‘क्या आप ने पहाड़ पर चढ़ कर गाना भी गाया था टैलीविजन वाले आंटीअंकल की तरह?’’

‘‘ओह,’’ बेटे के सामान्य ज्ञान पर रश्मि ने सिर थाम लिया और बात को बदलने का प्रयत्न किया.

‘‘नहीं, सब लोग टैलीविजन वाले आंटीअंकल जैसे गाना थोड़े ही गा सकते हैं. चलो, अब हम रोपवे पर घूमेंगे.’’

एक पहाड़ से दूसरे पहाड़ के बीच की गहरी घाटियों के ऊपर झूलती ट्रालियों में सैर करने की सोच से मुन्ना रोमांचित हो उठा तो रश्मि ने राहत की सांस ली.

पर कहां? मुन्नू को तो नवविवाहित जोड़ों की अच्छी पहचान सी हो गई थी.

उस दिन होटल के ढलान को पार करने के बाद पहला मोड़ घूमते ही पहाड़ी कटाव के छोर पर एक नवविवाहित युगल को देख मुन्नू चहका और पिता के कान में फुसफुसाया, ‘‘पापा, पापा… हनीमून.’’

‘‘हिस,’’ होंठों पर उंगली रख कर रश्मि झेंपी. रोहित ने बेटे को गोद में उठा कर ऊपर हवा में उछाला.

दुनिया से बेखबर, बांहों में बाहें डाले प्रेमीयुगल एकदूसरे को आइसक्रीम खिलाने में मगन थे. उन की देखादेखी मुन्नू भी मचला, ‘‘पापा, हम भी आइसक्रीम खाएंगे.’’

‘‘अरे, इतनी सर्दी में आइसक्रीम?’’ रोहित ने बेटे को समझाया.

‘‘वे आंटीअंकल तो खा रहे हैं, पापा?’’ उस ने युगल की ओर उंगली उठा कर इशारा किया.

‘‘वह…वे तो हनीमून मना रहे हैं,’’ मौजमस्ती के मूड में रोहित फिर बहक रहा था.

‘‘हनीमून पर सर्दी नहीं लगती, पापा?’’ मुन्ने ने आश्चर्य जताया.

‘‘नहीं, बिलकुल नहीं,’’ रोहित ने शरारतभरा अट्टाहास किया और बेटे को उकसाया, ‘‘अपनी मां से पूछ लो.’’

गुस्से से रश्मि तिलमिला कर रह

गई. उस समय तो किसी तरह

बात को टाला, पर अवसर मिलते ही पति को लताड़ा, ‘‘तुम भी रोहित, बच्चे के सामने कुछ भी ऊटपटांग बोल देते हो.’’

‘‘शाश्वत तथ्यों का ज्ञान जरूरी नहीं क्या,’’ रोहित ने खींच कर पत्नी को पास बैठा लिया, पर रश्मि गंभीर ही बनी रही.

रश्मि की चुप्पी को तोड़ते हुए रोहित बोला, ‘‘तुम तो व्यर्थ में ही तिल का ताड़ बनाती रहती हो.’’

‘‘मैं तिल का ताड़ नहीं बना रही. तुम सांप को रस्सी समझ रहे हो. जब देखो, बेटे को बगल में बैठा कर टैलीविजन खोले रहते हो. ये छिछोरे गाने, ये अश्लील इशारे, हिंसा, मारधाड़ के नजारे. कभी सोचा है कि इन्हें देखदेख कर क्या कुछ सीखसमझ रहा है हमारा मुन्नू. और अब यहां हर समय का यह हनीमून पुराण के रूप में तुम्हारी ठिठोलबाजी मुझे जरा भी पसंद नहीं है.’’

‘‘अरे, हम छुट्टियां मना रहे हैं, मौजमस्ती का मूड तो बनेगा ही,’’ रोहित रश्मि को बांहों में बांधते हुए बोला.

दार्जिलिंग की वादियों में छुट्टियां बिता कर वापस लौटे तो रोहित कार्यालय के कामों में पहले से भी अधिक व्यस्त हो गया. चूंकि मुन्नू की कुछ छुट्टियां अभी बाकी थीं, इसलिए रश्मि मुन्नू को रचनात्मक रुचियों से जोड़ने के लिए रोज  नईनई चीजों के बारे में बताती. चित्रमय किताबें, रंगारंग, क्रेयंस, कहानियां, कविताएं, लूडो, स्क्रेंबल, कैरम और नहीं तो अपने बचपन की बातें और घटनाएं मुन्नू को बताती.

एक दिन रश्मि बोली, ‘‘पता है मुन्नू, जब हम छोटे थे तब यह टैलीविजन नहीं था. हम तो, बस, रेडियो पर ही प्रोग्राम सुना करते थे.’’

‘‘पर मां, फिर आप छुट्टियों में क्या करती थीं?’’ हैरान मुन्नू ने पूछा.

‘‘छुट्टियों में हम घर के आंगन में तरहतरह के खेल खेलते, घर के पिछवाड़े में साइकिल चलाते और नीम पर रस्सी डाल कर झूला झूलते.’’

मां की बातें सुन कर मुन्नू की हैरानी और बढ़ जाती, ‘‘पर मां, झूला तो पार्क में झूलते हैं और साइकिल तुम चलाने ही नहीं देतीं,’’ इतना कह कर मुन्नू को जैसे कुछ याद आ गया और कोने में पड़े अपने तिपहिया वाहन को हसरतभरी निगाह से देखने लगा.

‘‘मां, मां, कल मैं भी साइकिल चलाऊंगा. शैला के साथ रेस होगी. तुम, बस, मेरी साइकिल नीचे छोड़ कर चली जाना.’’

रश्मि ने बात को हंसी में टालने का यत्न किया. स्वर को रहस्यमय रखते हुए वह बोली, ‘‘और पता है, क्याक्या करते थे हम छुट्टियों में…’’

‘‘क्या मां? क्या?’’ मुन्नू उत्सुकता से उछला.

‘‘गुड्डेगुडि़यों का ब्याह रचाते थे. नाचगाना करते थे. पैसे जोड़ कर पार्टी भी देते थे. इस तरह खूब मजा आता.’’

पर मुन्नू को इस तरह की बातों में उलझाए रखना बड़ा मुश्किल था. चाहे जितना मरजी बहलाओ, फुसलाओ, लेकिन घूमफिर कर वह टैलीविजन पर वापस आ जाता.

‘‘मां, अब मैं टीवी देख लूं?’’

रश्मि मनमसोस कर हामी भरती. कार्टून चैनल चला देती. डिस्कवरी पर कोई कार्यक्रम लगा देती, पर थोड़ी देर बाद इधरउधर होती तो मुन्नू पलक झपकते ही चैनल बदल देता और कमरे में बंदूकों की धायंधायं के साथ मुन्नू की उन्मुक्त हंसी सुनाई देती.

‘नासमझ बच्चे के साथ आखिर कोई कितना कठोर हो सकता है,’ रश्मि सोचती, ‘टैलीविजन न चलाने दूं तो दिनभर दोस्तों के पास पड़ा रहेगा. यह तो और भी बुरा होगा.’ इसी सोच से रश्मि ढीली पड़ जाती और बेटे की बातों में आ जाती.

‘‘मां, हम लोग बुधवार को पिकनिक पर जा रहे हैं,’’ उस दिन शाम को खेल से लौटते ही मुन्नू ने घोषणा की तो रश्मि को बहुत अच्छा लगा.

‘‘पर बेटे, बुधवार को कैसे चलेंगे, उस दिन तो तुम्हारे पापा की छुट्टी नहीं है.’’

‘‘नहीं मां, आप नहीं, हम सब दोस्त मिल कर जाएंगे,’’ मुन्नू ने स्पष्ट शब्दों में मां से कहा.

‘‘रविवार को पिकनिक मनाने हम सब एकसाथ चलेंगे बेटे. तुम अकेले कहां जाओगे?’’

‘‘हम सब जानते थे, यही होगा इसलिए हम लोगों ने छत पर पिकनिक मनाने का प्रोग्राम बनाया है,’’ मुन्नू किसी वयस्क की तरह बोला.

‘‘ओह, छत पर,’’ रश्मि का विरोध उड़नछू हो गया. मन ही मन वह खुश थी.

‘‘मां…मां, हम लोग दिनभर पिकनिक मनाएंगे. सब दोस्त एकएक चीज ले कर आएंगे,’’ इतना कह कर मुन्नू मां के गले में बांहें डाल कर झूल गया.

‘‘पर तुम सब मिला कर कितने बच्चे हो?’’ रश्मि ने पूछा.

‘‘चिंटू, मिंटू, सोनल, मीनल, मेघा, विधा…’’ हाथ की उंगलियों पर मुन्नू पहले जल्दीजल्दी गिनता गया, फिर रुकरुक कर याद करने लगा, ‘‘सोनाक्षी, शैला, शालू वगैरह.’’

‘‘ऐसे नहीं,’’ रश्मि ने उसे टोका, ‘‘कागजपैंसिल ले कर याद कर के लिखते जाओ, फिर सब गिन कर बताओ.’’

काम उलझन से भरा था, पर मुन्नू फौरन मान गया.

‘‘सब दोस्त मिल कर बैठो, फिर जरूरी सामान की लिस्ट बना लो. इस से तुम्हें बारबार नीचे नहीं उतरना पड़ेगा,’’ रश्मि ने बेटे को समझाया.

पीरियड्स, धर्म और बेटी

लेखक-नीरज कुमार मिश्रा

मासिकधर्म को अधर्म बताने का षड्यंत्र आज भी रचा जाता है. जाने क्यों धर्म के दुकानदार इसे सहजता से नहीं लेते और न ही लेने देते हैं. क्या है इस के पीछे की अवैज्ञानिक मानसिकता, आइए देखें.

मैं पुरुष हूं, इस नाते मुझे महिलाओं के जैसे होने वाले मासिकधर्म का कोई डर नहीं रहा. पर 2 ऐसी घटनाएं मैं ने अपनी बहन के साथ देखीं जिन्होंने मेरे मन को पूरी तरह हिला दिया, न केवल हिलाया बल्कि स्त्री के प्रति और भी श्रद्धा से भर दिया.

मेरी दीदी, जो मुझ से 5 साल बड़ी हैं, जब 10वीं में थीं तब वे अचानक कालेज से एक दिन जल्दी ही घर वापस आ गईं. उन के चेहरे का रंग उड़ा हुआ था. उन के कुरते के पिछले हिस्से पर खून के निशान थे जिसे उन्होंने पानी से धोया था. उन के कपड़े पूरी तरह गीले हो गए थे. मेरे पूछने पर वे बात टाल गईं और मां ने मुझे डांट कर चुप रहने को कहा था. बड़े होने पर धीरेधीरे मैं स्वयं ही समझ गया कि उस दिन दीदी के साथ क्या हुआ होगा. जो भी हुआ, उस समय दीदी की मनोदशा को सोच कर मैं आज भी कांप उठता हूं.

मुझे मेरे बचपन की दूसरी घटना याद आती है. दीदी की शादी के बाद मैं पहली बार उन के घर गया था. एक सुबह मैं ने देखा कि दीदी जमीन पर सो रही थीं, जबकि जीजाजी ऊपर बिस्तर पर सो रहे थे. दीदी से मैं ने इस का कारण पूछा तो उन्होंने सहजता से बता दिया कि स्त्रियों में जब मासिकचक्र होता है तो वे अछूत हो जाती हैं और उन को जमीन पर ही सोना पड़ता है. उस समय तो उन की बात बहुत अजीब लगी पर मैं करता भी क्या, इसलिए चुप ही रहा.

अपने जीवनकाल में हर महिला को मासिकचक्र से गुजरना पड़ता है, जो कि एक बहुत ही सामान्य प्रक्रिया है. लेकिन धार्मिक दृष्टि से औरतों को अपवित्र माना जाता है. कम से कम हिंदू धर्म में तो ऐसा आज भी माना जाता है. पर यदि मासिकधर्म के होने से महिलाएं अपवित्र हो जाती हैं तब तो इस दुनिया का हर एक पुरुष और महिला अपवित्र है क्योंकि जन्म के समय हर बच्चा उसी रक्त में लिप्त और सना हुआ होता है.

अगर खुलेदिमाग से गौर किया जाए तो मासिकचक्र के दौरान स्त्री को अपने से अलग रखना पुरुष के मिथ्या अहंकार को पोषित करने के अलावा और कुछ नहीं. हिंदू धर्म के पुराणों की एक कथा के अनुसार, इंद्र देवता ने अपने हिस्से का पाप औरतों को भी दे दिया था और इसी कारण महिलाओं को प्रतिमाह इस मासिकधर्म की पीड़ा से गुजरना पड़ता है.

अंधविश्वास के कारण हिंदू धर्म में मासिकधर्म के दौरान कईर् काम करने की मनाही होती है.

गाय माता को न छूना : मासिकधर्म के समय महिलाओं को गाय तक को छूने की मनाही होती है क्योंकि अगर रजस्वला स्त्री ने गाय माता को छू

लिया तो गाय दूध देना बंद कर देगी. यह कितनी अजब, हास्यप्रद और अवैज्ञानिक बात है. न गाय माता है और न उस रजस्वला स्त्री के छूने से उस का दूध बंद होगा. कोई पशु इस का भेद कर ही नहीं सकता कि छूने वाला किस स्थिति में है.

तुलसी के पौधे से दूर रहना : महिलाओं को तुलसी के पौधे से भी दूर रहना होता है. अगर मासिकधर्म के दौरान स्त्री की छाया भी तुलसी के पौधे पर पड़ गई तो पुराणपंथियों के अनुसार, वह सूख जाएगा. इस का वैज्ञानिक कारण पूछने पर कोई बता नहीं पाता और सिर्फ यह कह कर पल्ला झाड़ लेते हैं कि यह बात उसे उस के बड़ेबुजुर्गों ने बताई है. इसलिए, वह इस को मानता आ रहा है.

कोने में पड़ी रहना  : अचार न छूना, किसी को पानी तक न देना और घर के एक कोने में ही पड़ी रहना जो पूरी तरह से किसी भी यातना से कम नहीं है, रजस्वला औरत के लिए जरूरी है.

गंभीर मनाही : इन दिनों के दौरान हिंदू स्त्रियों को मंदिर जाने की भी मनाही होती है, सबरीमाला के मंदिर में 10 साल से ले कर 50 साल की स्त्रियों के प्रवेश की जो मनाही है वह स्त्री के रजस्वला होने के कारण ही बनाई गई है और स्त्रियां घर में ही किसी प्रकार का पूजापाठ नहीं कर सकती हैं. और तो और, महिलाएं इन दिनों भगवान के नामों का उच्चारण भी नहीं कर सकती हैं. अगर ऐसा कर दिया तो उन को बड़ा पाप लग सकता है. मंदिर में जाने से औरतों का कल्याण तो नहीं होता, पर न जाने देना उन पर सामाजिक अत्याचार है.

धर्मों में मासिकधर्म : ईसाई धर्म में स्त्रियों को किसी तरह की खास मनाही नहीं है. अगर स्त्रियां चाहें तो वे चर्च जा सकती हैं. वहीं, सिख धर्म एक रजस्वला स्त्री को इन दिनों में और भी ज्यादा पवित्र मानता है.

सिख धर्म के अनुसार, जिस रक्त से जीवन पनपता है और जो स्त्री पूरे संसार को जन्म देती है, वह भला अपवित्र कैसे हो सकती है बल्कि वह तो इन दिनों में और भी पवित्र हो जाती है. इसी अवधारणा के चलते सिख महिलाओं पर कोई पाबंदी नहीं होती, वे गुरुद्वारे भी जा सकती हैं.

मां की ड्यूटी : हर मां को चाहिए

कि वह अपनी बेटी को मासिकधर्म के बारे में सहीसही बताएं.

जैसे ही आप की बेटी 9 से 10 साल की हो जाए, तभी आप उस को मासिकधर्म के बारे में सबकुछ बताना शुरू करें, ताकि बेटी का बालमन उसे आसानी से समझ सके.

अगर मातापिता दोनों बाहर काम पर जाते हैं तो बेटी के लिए एक आकस्मिक मासिक किट तैयार कर दें जिस में एक पैंटी का जोड़ा और 2 से 3 पैड्स रख दें. शुरुआत में मासिकधर्म काफी अनियमित हो सकता है. ऐसे में यह किट आप की बेटी को स्कूल में भी भयमुक्त रखेगी. यदि हो सके तो बेटी को यह भी बताएं कि यह जीवन को आगे बढ़ाने के लिए आवश्यक प्रक्रिया है. इस से उस से शर्म न महसूस कर के अपनेआप को गौरवान्वित महसूस करना चाहिए. अपनी बिटिया को बताएं कि यह एक नैसर्गिक क्रिया है.

हैप्पी टू ब्लीड : पिछले दिनों सोशल मीडिया पर ‘हैप्पी टू ब्लीड’ नामक कैंपेन काफी लोकप्रिय हुआ था. इस कैंपेन में एक लड़की को समय से पहले ही मासिकधर्म होने लगा था, जिस का उसे पता नहीं चला और पुरुष उसे अजीब नजरों से घूरते रहे. उस की अनभिज्ञता देख रास्ते में एक महिला ने उसे सैनिट्री पैड दिया तब उस की समझ में आया कि उसे मर्द रास्ते में क्यों घूर रहे थे.

उस लड़की ने खून में भीगा हुआ अपना पजामा सोशल मीडिया पर भी शेयर किया था और लिखा, ‘‘मेरी यह पोस्ट उन महिलाओं के लिए है जिन्होंने मेरे स्त्रीत्व को छिपाने में मेरी मदद की. मेरे लिए यह कोई शर्म की बात नहीं है, बल्कि हर महीने दर्द के साथ होने वाली एक सामान्य प्रक्रिया है.’’

जिस स्त्री को पीरियड नहीं आते, वह भी तनाव में रहती है और हर महिला को इसे सामान्य ढंग से ही लेना चाहिए, न कि इसे एक पाप और टैबू मान कर अंधविश्वास में जिंदगी बसर करनी चाहिए.

ICU में भर्ती एक्टर आशीष रॉय ने फेसबुक पर मांगी मदद

वक्त वक्त की बात है.एक वक्त वह था जब हास्य कलाकार के तौर पर छोटे परदे के स्टार कलाकार के रूप में अभिनेता आशीश रौय की तूती बोलती थी.यह भी महज संयोग ही है कि इन दिनों जब दूरदर्शन पर 1997 में बने सीरियल ‘‘ब्योमकेश बक्षी’’का पुनः प्रसारण हो रहा है,तब इसी सीरियल में अभिनय कर चुके 55 वर्षीय अभिनेता आशीश रौय अपने इलाज के लिए अपने फेशबुक पेज के माध्यम से लोगों से मदद की गुहार लगा रहे हैं.आशीश रौय ने सत्रह मई को अपने फेशबुक पेज पर लिखा कि वह अस्पताल में आई सीयू में भती हैं.उन्हे डायलेसिस करवानी है,इसलिए उन्हें मदद चाहिए.

आशीश रौय के फेशबुक पेज पर लोगों ने जो लिखा है,उसके अनुसार अब तक अभिनेता हितेन पेंटल,आनंद दसानी,फिल्मकार हंसल मेहता,विन्टा ंनंदा आदि ने उन्हे मदद भेजी है.
ज्ञातब्य है कि अभिनेता आशीश रौय को 2019 में लकवा मार गया था,तभी से वह बीमार चल रहे हैं.जनवरी 2020 में उन्हें एक बार फिर अस्पताल में भर्ती कराया गया था.उस वक्त उनकी सेहत अचानक तेजी से गिरने लगी थी.तब फेशबुक पेज पर आशीश रौय ने ईश्वर से मौत की गुहार लगाते हुए लिखा था-‘‘सुबह की काफी बिना शक्कर की,….ये मुसकुराहट मजबूरी में है जी..भगवान उठा ले मुझे..’’

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ज्ञातब्य है कि आशीश रौय मुंबई में अकेले ही रहते हैं.उन्होने विवाह नही रचाया.उनकी एक बहन कोलकोता में रहती हैं.आशीश रॉय ने ‘ब्योमकेश बक्षी’,‘बनेगी अपनी बात’, ‘मूवर्स एंड शेकर्स’,‘बा बहू और बेबी’,‘मेरे अंगने में ’,‘आंरभ’,कुछ रंग प्यार के’,‘ससुराल सिमर का’ सहित कई सीरियलों के अलवा ‘नेताजी सुभाषचंद्र बोस’,‘होम डिलीवरी’,‘राजा नटवरलाल’ और ‘बरखा’फिल्मों में अभिनय कर बतौर अभिनेता जबरदस्त शोहरत बटोरी.इतना ही नहीं आशीश रॉय ने कई कलाकारों को अपनी आवाज देते हुए फिल्मों में उनके संवाद डब किए हैं.उन्होने ‘सुपरमैन रिटर्न’,‘द डार्क नाइट’,‘मैन आफ स्टील’,‘गार्डियंस आफ ग्लैक्सी’,‘द लीजेंड आफ टार्जन’जैसी हौलीवुड की अंग्रेजी फिल्मों के संवाद हिंदी में डब किए हैं.पर पिछले तीन वर्ष से उन्हे कोई काम नहीं मिल रहा था.जबकि वह लगातार टीवी निर्माताओ और फिल्मकारों को काम देेने की गुहार लगाते रहे हैं.

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लॉकडाउन में पति के साथ मिलकर ये काम कर रही है दिव्यांका त्रिपाठी, शेयर की Photos

टीवी के मशहूर कपल में दिव्यांका त्रिपाठी और विवेक दहिया का नाम शूमार है. दिव्यांका और विविके दहिया इन दिनों क्वालिटी स्पेंड कर रहे हैं एक-दूसरे के साथ. लॉकडाउन में दोनों के लिए अच्छा मौका है एक-दूसरे का सेथ समय बीताने का. दिव्याकां और विवेक आएं दिन सोशल मीडिया पर नए-नए पोस्ट शेयर करते रहते हैं.

विवेक दहिया ने अपनी पत्नी दिव्यांका के साथ मिलकर अपने घर के बॉलकनी में कुछ पौधे लगाएं है जिसका दोनों मिलकर खूब ध्यान रखते हैं. हाल ही में उन्होंने अपने सोशल मीडिया पर कुछ पोस्ट शेयर किया है जिसमें दोनों साथ में अपने पौधों का ध्यान रख रहे हैं.

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When the world is #LivingOnThrowbacks…here’s mine. #Scenery I would love to go back to!?

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दिव्यांका के इस तस्वीर को देखकर मालूम हो रहा है कि क्वारेंटाइऩ में दोनों घर में इस पल को खूब एंजॉय कर रहे हैं. दोनों साथ में मिलकर पौधे को पानी देते हैं उनके एक्स्ट्रा पार्टस को निकालते है.

वहीं विवेक दहिया नए-नए पोस्ट शेयर करते रहते हैं जिसमें कभी वो दिव्यांका के साथ कैमरा चलाते नजर आते हैं तो कभी कुत्तों के बच्चों के साथ मस्ती करते नजर आते हैं. इस पोस्ट को देखकर लगता हैं मानों एक लंबे समय के बाद दोनों साथ में कुछ खास कर रहे हैं. फिलहाल दोनों के काम बंद है. इस वक्त में हर एक्टर और एक्ट्रेस अपने फैमली के साथ समय बीता रहा है.

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कुछ दिन पहले ही विवेक दहिया नर्सरी से नए पौधे खरीद कर लाएं थें इसकी जानकारी उन्होंने अपने सोशल मीडिया पर दी थी. उन्होंने यह भी बताया था कि उनकी पत्नी को भी पौधे लगाने का बहुत शौक है. अब दोनों इनका खूब ध्यान रख रहे हैं.

दिव्याकां त्रिपाठी के फैंस इस तस्वीर को देखकर कमेंट कर रहे हैं. उन्हें नए-नए कमेंट लगातार आ रहे हैं.  लॉकडाउन के खत्म होने के बाद दिव्यांका त्रिपाठा जल्द ही अपने काम पर वापस जाएगीं

इस TV एक्ट्रेस ने लॉकडाउन में की गुपचुप सगाई तो दीपिका कक्कड़ ने ऐसे दी बधाई

टीवी जगत की जानी-मानी एक्ट्रेस सोनाली कुलकर्णी ने सोमवार को अपना जन्मदिन मनाया है. इस खास मौके पर सोनाली ने खुलासा किया है कि उन्होंने तीन महीने पहले ही सगाई कर ली है. साथ ही उन्होंने अपनी तस्वीर भी सोशल मीडिया पर साझा की है.

2 फरवरी को उन्होंने कुणाल बेनोडेकर से सगाई रचाई है. सगाई की तस्वीर में सोनाली पीले रंग की खूबसूरत सी साड़ी में नजर आ रही हैं. वहीं मंगेतर कुणाल धोती औऱ कुर्ता में नजर आ रहे हैं.

तस्वीर शेयर करते हुए सोनाली ने लिखा है कि  जन्मदिन खत्म होने से पहले मैं किसी खास चीज को बताना चाहती हूं. आगे लिखा मेरे मंगेतर कुणाल से मिलिए.

 

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Cannot thank you all enough for your best wishes and love pouring in since yesterday. This is so overwhelming in many ways, as I celebrated my birthday away from my family, friends fans for the first time due to lockdown but with just my fiancé! But thanks to social media we all could connect. And yes, thank you so much for all the love and blessings you’ve been showering on our engagement. Here’s sharing a special picture from my most special day! Thank you @kohinoorahmednagar for this custom-made #kanjeevaram ? @tanishqjewellery for the amazing traditional jewellery @astghikastghik for makeup @pratikshachandak & @nikitadsule for arranging it and @yashkaklotar for capturing it all so perfectly! #blessed #gratitude #grateful #thankful #overwhelmed #thankyou #sakharpuda #engaged #palindrome #02022020 #precovid #engagement #fiancé

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जबसे सोनाली ने इस बात का खुलासा किया है लगातार उन्हें बधाइयां आ रही हैं. वहीं उनकी खास फ्रेंड दीपिका कक्कड़ ने भी उन्हें खास अंदाज में बधाई दी है. दीपिका ने लिखा है बहुत-बहुत बधाई सोनाली भगवान हमेशा तुम्हें खुश रखें.

 

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Before my birthday ends, I want to mark it by making a SPECIAL ANNOUNCEMENT!!! Introducing my fiancé Kunal Benodekar! @keno_bear आमचा ०२.०२.२०२० ला साखरपुडा झाला, आणि आमचा हा आनंद तुम्हा सगळ्यांसोबत वाटण्यासाठी आजच्या पेक्षा योग्य दिवस असूच शकत नाही असं मला वाटतं… आपले शुभाशीर्वाद कायम पाठीशी असू द्या…!!! #sakharpuda #engaged #palindrome #02022020 #precovid #engagement #fiancé Thank you @yashkaklotar for capturing our moment!

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सोनाली और कुणाल ने अपनी सगाई गुपचुप तरीके से रचाई थी. जिसमें दोनों के परिवार वाले ही लोगो मौजूद थे. फैमली फोटो सोनाली ने शेयर किया है जिसमें दोनों बहुत खुश नजर आ रहे हैं साथ ही दोनों की फैमली भी हंसते हुए नजर आ रही हैं.

 

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कुठल्याही सिनेमा साठी, जाहिराती साठी नाही, कार्यक्रमासाठी नाही, हा श्रृंगार आहे माझ्या साखरपुड्या साठी…. @kohinoorahmednagar ने खास ही कांजीवरम साडी बनवली @tanishqjewellery चे पारंपरिक दागिने @astghikastghik चा मेकअप @yashkaklotar ने टिपलेले छायाचित्र @pratikshachandak आणि @nikitadsule चं हे सगळं आयोजन ?? #sakharpuda #engaged #palindrome #02022020 #precovid #engagement #fiancé

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बात करें सोनाली की तो वह अपने सगाई वाले दिन बला की खूबसूरत लग रही हैं. दोनों को अपने परिवार वालों का आशीर्वाद मिला है. हालांकि दोनों शादी कब करने जा रहे हैं इस बात की उन्होंने खुलासा नहीं किया है. उम्मीद है सोनाली अपनी शादी से पहले अपने फैंस को जरूर बताएंगी फिलहाल दोनों अपने-अपने परिवार के साथ लॉकडाउन में समय बीता रहे हैं.

बसों की जगह चल रहे दांव पेंच

उत्तर प्रदेश के मुख्यमंत्री योगी आदित्यनाथ पौराणिक काल के उस संत की तरह लगते है जिसे बात बात पर गुस्सा आता है और श्राप देने को तत्तपर दिखते हैं. आज के समय में वो श्राप भले ही ना दे सकते हो पर मुकदमा कायम करा कर जेल जरूर भेजने की ताकत रखते हैं. उनका यह गुस्सा बार बार देखने को मिलता है कभी वह किसी आंदोलनकारी को जेल भेजने का काम करते हैं तो कभी धरना प्रदर्शन के नुकसान से क्षतिपूर्ति के लिए  जेल भेज दे की धमकी देते है.

योगी आदित्यनाथ ऐसे मुख्यमंत्रियों में शामिल हो गए है जिनको अपनी पुलिस पर सबसे अधिक यकीन है उनके लिए पुलिस उस चाबी की तरह है जो हर ताला खोल सकती है. पुलिस हर ताला खोल लेती हो या नहीं पर वह मन में एसी गांठ जरूर डाल देती है जिसकी क्षतिपूर्ति आने वाले भविष्य में नहीं हो पाती है.

साख बचाने में जुटी भाजपा :

मजदूरों को बस के द्वारा लाने के लिए जब कांग्रेस पार्टी ने उत्तर प्रदेश सरकार के सामने 1000 बसों का परमिट दिए जाने की बात की तब योगी सरकार और उसके अफसरों ने इसमें हर तरीके से अड़ंगा लटकाने का काम शुरू कर दिया .

कभी यह कहा गया की फिटनेस टेस्ट के लिए नोएडा से पहले बसे लखनऊ लाई जाए उसके बाद वह मजदूरों को लाएं जब इस बात का विरोध शुरू हुआ और इसकी कोई आवश्यकता समझ नहीं दिखी, तब योगी सरकार के अफसरों ने नया पैंतरा अपनाया और बसों का फिटनेस नोएडा और गाजियाबाद में देने को कहा.

 

 

 

 

इसके अलावा उत्तर प्रदेश सरकार के अफसरों ने कांग्रेस को चिट्ठी लिखकर कहा कि वह 1000 बसों की सूची भेजें इसके साथ ही साथ बसों के चालक और परिचालक का पूरा विवरण भेजे.

जब कांग्रेस ने यह सूची भेज दी. तब उनमें यह देखा गया कि कुछ बसों के नंबर की जगह दूसरे वाहनों के नंबर लिख दिए गए. इस पर नियम कानून की बात करके बसों को लाने अनुमति नहीं दी गई.

कोंग्रेस इस बात को बारबार दोहराती रही कि जिन 800 से अधिक बसों के कागजात सही पाए गए है उनकी अनुमति दी जाए. इसके विपरीत  उत्तर प्रदेश सरकार ने कांग्रेस महासचिव प्रियंका गांधी के निजी सचिव संदीप सिंह पर आरोप लगाते हुए उनके खिलाफ हजरतगंज थाने में मुकदमा दर्ज करा दिया.

पुलिस ने संदीप सिंह पर आरोप लगाया कि उन्होंने जानबूझकर गलत नंबर दिए और उत्तर प्रदेश सरकार को गुमराह करने की कोशिश की.

सोशल मीडिया पर भक्त सक्रिय

बसों के नंबर की जगह पर दूसरी गाड़ियों के नंबर आने की बात सोशल मीडिया में भाजपा समर्थित लोगों के द्वारा तेजी से वायरल की गई . जिससे यह बात स्थापित की जा सके कि कांग्रेस बसों से मजदूरों को लाने की बात केवल राजनीतिक फायदे के लिए कर रही है उसका मजदूरों से कोई लेना-देना नहीं दरअसल यह रणनीति बहुत दिनों से चल रही है भाजपा पर जैसे ही कोई आरोप लगता है उसके पक्ष में माहौल बनाने वाले लोग ऐसा साबित करते हैं जैसे भाजपा पर आरोप लगाना ही गलत हो और आरोप लगाने वाला निजी स्वार्थ बस कर रहा हो इसको लेकर कई बार सोशल एक्टिविस्ट और मीडिया कर्मियों पर सोशल मीडिया के जरिए हमले किए जाते रहे है. यही नहीं कई बार पत्रकारों को सही मामले उजागर करने के आरोप में जेल की हवा खानी पड़ी.

कांग्रेस प्रदेश अध्यक्ष को जेल :

बसों के जरिए मजदूरों को लाने कार्यक्रम में लगे  उत्तर प्रदेश कांग्रेस के अध्यक्ष अजय कुमार ‘लल्लू’ को उत्तर प्रदेश सरकार ने हिरासत में ले लिया. अजय कुमार ‘लल्लू’ आगरा सीमा पर पहुंचकर बसों के रोके जाने का विरोध कर रहे थे. पहले दिन पूरा समय कांग्रेस और उत्तर प्रदेश सरकार के बीच रस्साकशी में बीत गया. दूसरे दिन भी कांग्रेस और उत्तर प्रदेश सरकार के बीच रस्साकशी जारी है. मजदूर इस प्रयास में है कि कैसे उनको अपने घर जाने का मौका मिले.

मुखर हो रहे मजदूर

भारतीय जनता पार्टी ये आरोप लगा रही है कि कांग्रेस मजदूरों के नाम पर राजनीति कर रही है उसका मजदूरों को घर तक पहुंचाने का कोई इरादा नहीं है. भारतीय जनता पार्टी की एक बात मॉन भी ली जाए  तो सवाल ये उठता है की लॉक डाउन के 60 दिन बीत जाने के बाद भी मजदूर सड़कों पर विवश होकर पैदल चलने और दुर्घटनाओं का शिकार होने के लिए मजबूर क्यों हो रहा है ?

असल मे भारतीय जनता पार्टी सरकार मजदूरों के प्रति भेदभाव  और सामंतवादी व्यवहार कर रही है. एक तरफ हो विदेशों से हवाई जहाज पर लोगों को बैठा कर अपने देश वापस लाया जा रहा है. उत्तर प्रदेश सरकार कोटा राजस्थान से बसों में सम्मान पूर्वक बैठा कर छात्रों को अपने घर वापस ला रही है. दूसरी तरफ गरीब मजदूरों को अपने घर वापस लाने के लिए किसी तरीके के साधन की व्यवस्था नहीं की जा रही है. बस और ट्रेन में सफर करने पर उनसे टिकट लिया जा रहा है. यही नहीं भाजपा की ही कर्नाटक जैसी सरकार ने तो मजदूरों को घर जाने से रोकने के लिए पहले से बुक ट्रेन कैंसिल कर दी . और साबित किया कि मजदूर आज भी बंधुवा मजदूर ही है.

देश मजदूरों की हालत देख रहा है ऐसे में भाजपा का यह व्यवहार उसके सामंतवादी चरित्र को दिखा रहा है जिसका परिणाम मजदूरों पर पड़ रहा है और वह मुखर होकर जोरदार तरीके से इस सरकार के सामंतवादी व्यवहार का विरोध कर रहे हैं. आजादी के बाद पहली बार मज़दूर बिना किसी नेता के पूरे देश मे अपने बल पर अपनी आवाज उठा रहे हैं. जिसकी अनदेखी शासन सत्ता को भारी पड़ेगी.

Crime Story: शीतल का अशांत मन

जब महिलाएं पति की व्यस्तता या किसी मजबूरी की वजह से अन्य पुरुष से संबंध बनाती हैं, तब उन्होंने कल्पना भी नहीं की होती है कि यह उन की बरबादी की शुरुआत है. सेना के जवान संजय की पत्नी शीतल ने भी यही किया. नतीजा यह निकला कि उस का पति संजय…   श अशोक शर्मा    38वर्षीय संजय भोसले महाराष्ट्र के जनपद सतारा के गांव एक्सल का रहने वाला था. उस के पिता पाडूरंग

भोसले की जो थोड़ीबहुत खेती की जमीन थी, उस की उपज से वह परिवार का भरणपोषण कर रहे थे. गांव में उन की काफी इज्जत और प्रतिष्ठा थी. वह सीधेसरल स्वभाव के व्यक्ति थे.

संजय भोसले एक महत्त्वाकांक्षी युवक था. उस की नौकरी भारतीय थल सेना में बतौर ड्राइवर लग गई थी. पुणे में 6 माह की ट्रेनिंग के बाद उस की पोस्टिंग हो गई थी. संजय की नौकरी लग चुकी थी, इसलिए मातापिता उस की शादी करना चाहते थे.

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मराठी समाज में जब लड़की शादी योग्य हो जाती है तो लड़की वाले लड़के की तलाश में नहीं जाते, बल्कि लड़के वालों को ही लड़की की तलाश करनी होती है. इसलिए पाडूरंग भोसले भी बेटे संजय के लिए लड़की की तलाश में जुट गए. उन्होंने जब यह बात अपने नाते रिश्तेदारों और जानपहचान वालों में चलाई तो उन के एक रिश्तेदार ने शीतल जगताप का नाम सुझाया.

28 वर्षीय शीतल पुणे शहर के तालुका बारामती, गांव ढाकले के रहने वाले बवन विट्ठल जगताप की बेटी थी. खूबसूरत होने के साथसाथ वह उच्चशिक्षित भी थी. वह डी.फार्मा कर चुकी थी. पाडूरंग भोसले ने बवन विट्ठल से मुलाकात कर अपने बेटे संजय के लिए उन की बेटी शीतल का हाथ मांगा.

संजय पढ़ालिखा था और सेना में नौकरी कर रहा था, इसलिए विट्ठल ने सहमति दे दी. फिर घरवालों ने शीतल और संजय की मुलाकात कराई. हालांकि संजय शीतल से 10 साल बड़ा था, लेकिन वह सरकारी मुलाजिम था, इसलिए शीतल ने उसे पसंद कर लिया. बाद में सामाजिक रीतिरिवाज से अक्तूबर 2008 में दोनों का विवाह हो गया.

जहां संजय शीतल को पा कर अपने आप को खुशनसीब समझ रहा था, वहीं शीतल भी मजबूत कदकाठी वाले फौजी संजय से शादी कर के गर्व महसूस कर रही थी. लेकिन शीतल का यह वहम शीघ्र ही धराशायी हो गया. शीलत के हाथों की मेंहदी का रंग अभी छूटा भी नहीं था कि संजय की छुट्टियां खत्म हो गईं. अपनी नईनवेली दुलहन शीलत को उस के मायके छोड़ कर संजय को अपनी ड्यूटी पर जाना पड़ा. जबकि शीतल चाहती थी कि संजय उस के पास कुछ दिन और रहे.

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एक खतरनाक इलाके में पोस्टिंग होने के कारण संजय को बहुत कम छुट्टी मिलती थी. ऐसे में शीतल को ज्यादातर समय अपने मायके और ससुराल में ही बिताना पड़ता था. साल दो साल में जब भी संजय को छुट्टी मिलती तभी वह घर आ पाता था. इस बीच शीतल एक बच्चे की मां बन गई थी.

आज के जमाने में कोई भी पत्नी अपने पति से दूर नहीं रहना चाहती. लेकिन किसी मजबूरी के चलते उसे समझौता करना पड़ता है. यही हाल शीतल का भी था. उसे अपने मन और तन की प्यास को दबाना पड़ा था.

8 साल इसी तरह बीत गए. इस के बाद संजय का ट्रांसफर पुणे के सेना कैंप में हो गया. शीतल के लिए यह खुशी की बात थी. यहां उसे रहने के लिए सरकारी आवास भी मिल गया था, सो संजय शीतल को पुणे ले आया. पति के संग रह कर शीतल खुश तो जरूर थी. लेकिन वह खुशी अभी भी उसे नहीं मिल रही थी, जो एक औरत के लिए ज्यादा महत्त्वपूर्ण होती है. यहां भी संजय पत्नी को पूरा समय नहीं दे पाता था.

भटकने लगा शीतल का मन

हालांकि शीतल 10 वर्षीय बच्चे की मां थी. लेकिन हसरतें अभी भी जवान थीं, जो पति के संपर्क के लिए तरस रही थीं. शीतल का दिन तो बच्चे और घर के कामों में गुजर जाता था लेकिन रात उस के लिए पहाड़ सी बन जाती.

एक कहावत है कि नारी सहनशील और बड़े ही धीरज वाली होती है. लेकिन थोड़ी सी सहानुभूति पाने पर वह बहुत जल्दी बहक भी जाती है और उस का फायदा कुछ मनचले लोग उठा लेते हैं. यही हाल शीतल का भी हुआ. उस के कदम बहक गए. जिस का फायदा योगेश कदम ने उठाया. वह उस की निजी जिंदगी में कब आ गया, इस का शीतल को आभास ही नहीं हुआ.

संजय को जो सरकारी क्वार्टर मिला था, किसी वजह से 3 साल बाद उसे वह छोड़ना पड़ा. वह अपनी फैमिली ले कर पुणे के नखाते नगर स्थित अंबर अपार्टमेंट की दूसरी मंजिल के फ्लैट में आ गया. जिस फ्लैट में संजय भोसले अपनी पत्नी और बच्चे को ले कर रहने के लिए आया था.

उसी के ठीक सामने वाले फ्लैट में योगेश कदम रहता था. वह एक कैमिकल कंपनी में नौकरी करता था. पड़ोसी होने के नाते पहले ही दिन दोनों का परिचय हो गया. बाद में योगेश का संजय के यहां आनाजाना शुरू हो गया.

अविवाहित योगेश कदम ने जब से शीतल को देखा था, तब से वह उस का दीवाना हो गया था. ऐसा ही हाल शीतल का भी था. जबजब वह योगेश कदम को देखती, उस के मन में एक हूक सी उठती थी. शारीरिक रूप से भी योगेश कदम उस के पति संजय भोसले से ज्यादा मजबूत था. जबजब दोनों की नजरें एकदूसरे से टकरातीं, दोनों के दिलों में हलचल सी मच जाती थी. उन की नजरों में जो चमक होती थी, उसे अच्छी तरह से महसूस करते थे. यही कारण था कि उन्हें एकदूसरे के करीब आने में समय नहीं लगा.

योगेश कदम यह बात अच्छी तरह से जानता था कि शीतल अकसर घर में अकेली रहती है. बच्चे को स्कूल छोड़ने के बाद और कभीकभी संजय भोसले की नाइट ड्यूटी लग जाने पर योगेश को शीतल से बात करने का मौका मिल जाता था.

बाद में उस ने शीतल के पति संजय से भी दोस्ती बढ़ा ली, जिस के बहाने वह जबतब शीतल के घर आनेजाने लगा. इस तरह शीतल और योगेश के बीच अवैध संबंध कायम हो गए. जब एक बार मर्यादा की सीमा टूटी तो टूटती ही चली गई. जब भी शीतल और योगेश कदम को मौका मिलता, अपने तनमन की प्यास बुझा लेते थे.

योगेश कदम से मिलन के बाद शीतल खुश रहने लगी. उस के चेहरे का रंगरूप बदल गया. वह योगेश के प्यार में इतनी दीवानी हो गई थी कि अब वह पति संजय भोसले की उपेक्षा भी करने लगी. पत्नी के इस बदले रंगरूप और व्यवहार को पहले तो संजय समझ नहीं पाया. लेकिन जब तक समझ पाया, तब तक काफी देर हो चुकी थी.

मामला नाजुक था. लिहाजा एक दिन संजय ने पत्नी को काफी समझाया मानमर्यादा और समाज की दुहाई दी, लेकिन शीतल पर उस की बातों का कोई असर नहीं हुआ. पहले तो शीतल घर में ही योगेश के साथ रंगरलियां मनाती थी लेकिन जब संजय ने उस पर निगाह रखनी शुरू कर दी तो वह प्रेमी के साथ मौल और रेस्टोरेंट वगैरह में आनेजाने लगी. जब यह बात संजय को पता चली तो उस ने पत्नी पर सख्ती दिखानी शुरू कर दी. तो इस से शीतल बगावत पर उतर आयी. नतीजा मारपीट तक पहुंच गया.

दोनों के बीच अकसर रोजाना ही झगड़ा होता. रोजरोज की कलह से शीतल भी उकता गई. लिहाजा उस ने प्रेमी के साथ मिल कर पति को ही ठिकाने लगाने की योजना बना ली, लेकिन किसी कारणवश यह योजना सफल नहीं हो सकी. पत्नी की हरकतों से तंग आ कर आखिरकार संजय भोसले ने कहीं दूर जा कर रहने का फैसला किया. यह करीब 5 महीने पहले की बात है.

बनने लगी बरबादी की भूमिका

साल 2019 के अक्तूबर माह में एक माह की छुट्टी ले कर संजय भोसले ने अपना घर बदल दिया. वह पत्नी और बच्चे को ले कर पुणे के नखाते कालेबाड़ी स्थित एक सोसाइटी में आ गया. लेकिन उसे यहां भी राहत नहीं मिली. शीतल के व्यवहार में जरा भी परिवर्तन नहीं आया.

बच्चे के स्कूल और पति के ड्यूटी पर जाने के बाद शीतल फोन कर योगेश को फ्लैट पर बुला लेती थी. किसी तरह यह जानकारी संजय को मिल जाती थी. पत्नी की हठधर्मिता से वह इस प्रकार टूट गया कि उस ने शराब का सहारा ले लिया. शराब के नशे में वह पत्नी को अकसर मारतापीटता था.

इस के अलावा अब वह कभी भी वक्तबेवक्त घर आने लगा, जिस से शीतल और योगेश के मिलनेजुलने में परेशानियां खड़ी हो गईं. इस से छुटकारा पाने के लिए शीतल ने फिर वही योजना बनाई, जो पहले बनाई थी.

मौका देख कर शीतल ने योगेश कदम से कहा, ‘‘योगेश तुम अगर मुझ से प्यार करते हो और मुझे पूरी तरह अपना बनाना चाहते हो तो तुम्हें संजय के लिए कोई कठोर कदम उठाना होगा, मतलब उसे हम दोनों के बीच से हटाना पड़ेगा.’’ योगेश कदम भी यही चाहता था. वह इस के लिए तुरंत तैयार हो गया.

8 नवंबर, 2019 की सुबह करीब 5 बजे शिवपुर पुलिस चौकी पर तैनात एसआई समीर कदम को जो सूचना मिली उसे सुन कर वह चौंके. सूचना देने वाले एंबुलेंस ड्राइवर सूफियान मुश्ताक मुजाहिद, निवासी गांव बेलु, जनपद पुणे ने उन्हें बताया कि शिवपुर टोलनाका क्रौस पुणे सतारा हाइवे पर स्थित होटल गार्गी और कंदील के बीच सर्विस रोड पर एक युवक बुरी तरह घायल पड़ा है.

एसआई समीर कदम ने बिना किसी विलंब के इस मामले की जानकारी रायगढ़ थानाप्रभारी दत्तात्रेय दराड़े के अलावा पुलिस कंट्रोलरूम को दी और अपने सहायकों के साथ घटनास्थल की ओर रवाना हो गए.

घटनास्थल पर पहुंच कर एसआई अभी वहां का मुआयना कर ही रहे थे कि थानाप्रभारी दत्तात्रेय दराड़े, एसपी संदीप पाटिल और एएसपी अन्नासो जाधव मौकाएवारदात पर आ गए. तब तक वहां पड़ा युवक मर चुका था. उसे देख कर मामला रोड ऐक्सीडेंट का लग रहा था. इसलिए घटनास्थल का बारीकी से निरीक्षण कर शव पोस्टमार्टम के लिए पुणे के ससून अस्पताल भेज दिया गया.

पुलिस को घटना से एक मोबाइल फोन, ड्राइविंग लाइसेंस और एक डायरी मिली, जिस से पता चला कि मृतक का नाम संजय भोसले है. पुलिस ने फोन से उस की पत्नी शीतल का फोन नंबर हासिल कर के उसे पुलिस चौकी शिवपुर बुला लिया.

संजय भोसले की पत्नी शीतल ने संजय भोसले के मोबाइल फोन और ड्राइविंग लाइसेंस को पहचान लिया और दहाड़े मारमार कर रोने लगी. पूछताछ में शीतल ने कहा कि उसे नहीं पता है कि संजय घटनास्थल तक कैसे पहुंच गए.

आखिर सच आ ही गया सामने

शीतल ने आगे बताया कि कल रात उन्होंने परिवार के साथ खाना खाया था. रात 10 बजे के करीब उसे और बच्चे को सोने के लिए बेडरूम में भेज कर खुद हाल में सो गए थे. इस के बाद क्या हुआ, वह कुछ नहीं जानती.

मामला काफी उलझा हुआ था. जांच अधिकारी ने उस समय तो शीतल को घर जाने दिया था. लेकिन उन्होंने उसे क्लीन चिट नहीं दी. उन्हें शीतल के घडि़याली आंसुओं पर संदेह था. बाकी की रही सही कसर पोस्टमार्टम रिपोर्ट ने पूरी कर दी.

रिपोर्ट में बताया गया कि मामला दुर्घटना का नहीं है, उसे सल्फास नामक जहरीला पदार्थ दिया गया था, जिस का सेवन तकरीबन 12 घंटे पहले किया गया था. यह जहर कहां से आया, क्यों आया यह जांच का विषय था. पुलिस टीम ने जब गहराई से जांचपड़ताल की और शीतल के मोबाइल फोन की काल डिटेल्स देखी तो तो वह पुलिस के रडार पर आ गई.

पुलिस ने जब शीतल से सख्ती से पूछताछ की तो वह टूट गई और अपना गुनाह कबूल कर के प्रेमी योगेश कदम और उस के सहयोगियों का नाम बता दिए. उस ने बताया कि जिस जहरीले पदार्थ से संजय की मौत हुई, वह जहर 7 नवंबर, 2019 को योगेश कदम अपनी कंपनी से लाया था. उस ने वही जहर संजय के खाने में मिला दिया था. जहर खाने से जब उस की मौत हो गई तब उस ने योगेश को वाट्सएप मैसेज भेज कर जानकारी दे दी थी.

अब समस्या संजय के शव को ठिकाने लगाने की थी. योगेश ने अपने 2 दोस्तों मनीष कदम और राहुल काले के साथ मिल कर इस का बंदोबस्त पहले ही कर रखा था. उन्होंने एक कार किराए पर ली, उस कार से योगेश रात 2 बजे के करीब शीतल के घर पहुंचा और अपने दोस्तों के साथ संजय भोसले के शव को कार में डाल लिया, जिसे ये लोग यह सोच कर पुणे सतारा रोड की सर्विस लेन पर डाल आए कि मामला दुर्घटना का लगेगा, लेकिन इस में वह कामयाब नहीं हो सके.

शीतल से विस्तृत पूछताछ करने के बाद पुलिस ने मामले के अन्य अभियुक्तों की धड़पकड़ तेज कर दी और जल्दी ही संजय भोसले हत्याकांड के सभी अभियुक्तों को गिरफ्तार कर लिया.

गिरफ्तार शीतल संजय भोसले, योगेश कमलाकर राव कदम, मनीष नारायन कदम और राहुल अशोक काले को थानाप्रभारी ने अपने वरिष्ठ अधिकारियों के समक्ष पेश किया.

उन्होंने भी आरोपियों से पूछताछ की. इस के बाद उन्हें भादंवि की धारा 302, 201, 120बी, 109 के तहत गिरफ्तार कर कोर्ट में पेश कर पुणे की नरवदा जेल भेज दिया .

मैं एक लड़के से प्यार करती थी. अब मुझे मालूम हुआ है कि उस का एक लड़की से अफेयर चल रहा है. मैं क्या करूं ?

सवाल

मैं एक लड़के से बेहद प्यार करती थी. उस पर पूरा यकीन था मुझे. उस की हर बात सच्ची लगती. महसूस होता जैसे उस से अच्छा इंसान कोई हो ही नहीं सकता. लेकिन मुझे अब मालूम हुआ है कि मेरी सोच गलत थी. वह झूठ बोलने में माहिर है. उस का एक और लड़की से भी अफेयर चल रहा है. मैं बहुत असमंजस में हूं, क्या करूं? अपनी पसंद का यह हश्र देख कर जीने की इच्छा खत्म हो गई है.

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जवाब
जिंदगी में अकसर हम जिसे बेहद चाहने लगते हैं वही हमारा दिल तोड़ता है. वैसे जरूरी नहीं कि वह लड़का गलत ही हो. हर इंसान में कुछ कमियां और कुछ अच्छाइयां होती हैं. आप को इस तथ्य को स्वीकार करना होगा. थोड़ाबहुत झूठ हर व्यक्ति बोलता है. हां, यदि उस का अफेयर किसी और के साथ भी चल रहा है तो यह बरदाश्त करना किसी भी लड़की के लिए बहुत ही मुश्किल हो सकता है.

आप केवल अपने दिल की मत सुनिए. अंदाज पर मत जाइए. हो सकता है आप जिसे अफेयर समझ रही हों वह एक सामान्य दोस्ती हो. इसलिए पहले उस लड़के से स्पष्ट बात करें और तब ही कोई फैसला लें. यदि उस लड़के के बगैर जिंदगी जीनी पड़े तो भी स्वयं को टूटने मत दीजिए. वक्त के साथ नए रास्ते और नए रिश्ते स्वयं सामने आ जाएंगे.

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