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घर पहुंच कर मेरे रोष का शिकार बनी शकुंतला. उस ने सिर्फ इतना ही कहा था कि सिर में दर्द है क्या? कहो तो एक प्याला चाय बना दूं?

‘‘नहीं, मेरी चिंता करने की जरूरत नहीं है. मेरे सिर में दर्द भी नहीं है. हां, तुम मेरे सिर पर इसी तरह खड़ी रहोगी तो सिर फट सकता है.’’

शकुंतला कुछ न बोली. वह चुपचाप काम कर के चली गई. खाना खा कर रात को जब बिस्तर पर लेटी तो आंखों में नींद  के स्थान पर वह चेहरा घूम रहा था...

उस चेहरे का नाम था मुकुल. कालेज के दिनों की बात है. मैं बीए अंतिम वर्ष में थी. मुकुल मेरा सहपाठी था. अकसर अंगरेजी के नोट्स लेने वह मेरे घर भी आ जाता था. कालेज की कैंटीन में भी वह मुझे मिल जाता था. कुछ दिनों से मैं उस के व्यवहार में काफी परिवर्तन देख रही थी. वह अकसर मुझे अजीब निगाहों से देखता था.

एक दिन मैं ने टोका था, ‘मुकुल, यह घूरने की आदत कब से पड़ गई?’

‘नहीं तो, ऐसा कुछ भी नहीं है,’ वह हड़बड़ा कर बोला. ‘है तो. अगर यही हाल रहा तो तुम्हारा नाम घूरेलाल रख दूंगी.’

‘अंजू, अब तुम जो भी नाम रख दो, मुझे मंजूर है.’

‘ए जनाब, हंसबोल लेने का गलत अर्थ मत लगाना. मैं ऐसीवैसी लड़की नहीं हूं,’ मैं कड़क कर बोली थी.

‘अंजू, यकीन करो, मैं भी ऐसावैसा नहीं हूं. पर तुम्हें देख कर मुझे पता नहीं क्या हो जाता है. जानती हो, हर चीज में मैं तुम्हें ही देखता हूं...किताब में, कौपी में, ब्लैकबोर्ड में, खाने में...’

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