‘‘आज मुझे एक बहुत बड़ा रोल मिला है. अगर यह पिक्चर हिट हुई तो समझो मैं रातोंरात स्टार बन जाऊंगा,’’ कहतेकहते उस ने मुझे अपनी बांहों में भर लिया.
‘‘यह सही नहीं है, रवि,’’ मैं ने खुद को उस से छुड़ाते हुए कहा.
‘‘प्यार में कुछ भी सही या गलत नहीं होता. प्यार तो सिर्फ प्यार होता है जो कुरबानी मांगता है. वैसे भी तुम्हारा और मेरा प्यार तो सच्चा प्यार है जो न जाने कब से एकदूसरे का साथ पाने को तड़प रहा है,’’ यह कह उस ने मुझे पैकेट थमा दिया.
जब मैं ने पैकेट खोला तो हैरान रह गई, उस में एक गुलाबी रंग की झीनी नाइटी थी. इधर मैं कपड़े बदलने चली गई तो उधर रवि सारे बिस्तर पर लाल गुलाबों की बरसात करने लगा. इत्र की भीनीभीनी खुशबू और धीमाधीमा संगीत, बस, सब कुछ मुझे मदहोश करने के लिए काफी था. बस, फिर वह सब हो गया, जो शायद बहुत पहले हो जाना चाहिए था. जब वर्षों पुरानी चाहत पूरी हुई तो ऐसा लगा मानो आज बिन बादल बरसात हो गई, जिस में हम दोनों भीग कर उस चरम सुख को पा गए, जिस से अब तक हम अछूते रहे थे. उस रात होटल के उस कमरे में रवि से लिपटी मैं उस तृप्ति को महसूस कर रही थी जो मुझे अब तक नहीं मिली थी.
‘‘रवि, आज तो मजा आ गया,’’ मैं भावावेश में उस के होंठों पर किस करते हुए बोली.
‘‘अरे मैडम, यह तो कुछ भी नहीं. आगेआगे देखो, मैं तुम्हें कैसे जन्नत का मजा दिलाता हूं,’’ कह कर रवि फिर से मुझ से लिपट गया. ‘‘मुझे बहुत दुख है जो समय रहते मैं तुम्हें अपनी नहीं बना पाया,’’ रवि मेरे सीने पर हाथ फेरते हुए बोला, ‘‘समीर बहुत खुशहाल इनसान है तभी तो यह हुस्न का प्याला उस की झोली में जा गिरा,’’ कह रवि मुझे पागलों की तरह चूमने लगा.
‘‘रवि इतना प्यार न करो, मुझे वरना…’’
‘‘वरना क्या ’’
‘‘अगर तुम मुझ से यों टूट कर प्यार करते रहोगे, तो तुम से अलग कैसे हो पाऊंगी ’’ और मैं अचानक रो पड़ी, ‘‘रवि, इस दिल पर तो तुम्हारा शुरू से अधिकार रहा है और आज तन पर भी हो गया,’’ मैं तड़पते हुए बोली.
मेरी तड़प देख कर रवि ने मुझे अपनी मजबूत बांहों के घेरे में कस लिया और मैं उस की पकड़ से खुद को छुड़ाने की नाकाम कोशिश करने लगी.
‘‘अच्छा, अब मैं चलती हूं,’’ सुबह की लौ देख मैं ने तुरंत कपड़े बदले और अपने घर आ गई. रवि से शारीरिक संपर्क के बाद मेरे अंदर एक सुखद सा परिवर्तन आया. अब मैं हर समय खिलीखिली सी रहती थी.
‘‘इतना खुश तो मैं ने पहले तुम्हें कभी नहीें देखा,’’ उस दिन मुझे एक फिल्मी गाना गुनगुनाते देख समीर ने मुझे टोका.
‘‘वह क्या है कि आजकल नए दोस्त बन रहे हैं न,’’ मैं ने बात बदलते हुए कहा.
‘‘अच्छा लगता है तुम्हें यों खुश देख कर,’’ कह समीर ने भावातिरेक में मेरा माथा चूम लिया.
सच, उस समय मुझे रवि की बहुत याद आई. आज रवि के कारण ही तो मेरे मन का सूनापन कम हो पाया था. उस के प्यार में पागल मैं आज दूसरी बार उस से मिलने उसी होटल में जाने वाली थी. पर उस समय बंटू स्कूल गया हुआ था, इसलिए दुविधा में थी कि कैसे जाऊं तब मेरी सास जो मेरे पास रहने आई हुई थीं, तुरंत बोलीं, ‘‘अरे बहू, परेशानी क्या है अब जब मैं घर पर हूं तो बंटू को देख लूंगी, तुम अभी निकल जाओ वरना तुम्हें सामने देख कर ज्यादा परेशान होगा.’’
मांजी के इतना कहते ही मैं तुरंत निकल पड़ी. इधर मेरा औटोरिकशा होटल की तरफ बढ़ रहा था तो उधर मेरी बेचैनी. सब कुछ अपनी चरसीमा पर था…उस दिन का चरमसुख और आज फिर. फिर अचानक मेरे विचारों पर विराम लग गया, क्योंकि मेरा होटल जो आ गया था. तेज कदमों से लौबी का रास्ता पार कर मैं होटल के कमरे के पास पहुंच गई. कमरे का दरवाजा आधा खुला था और मैं जल्दी से उसे धकेल कर अंदर जाना चाहती थी कि अचानक रवि के मुंह से अपना नाम सुन कर मेरे बढ़ते कदम ठिठक गए.
जब मैं ने दरवाजे की ओट में खड़े हो कर अंदर झांका तो हैरान रह गई. रवि किसी और के साथ बैठा ड्रिंक कर रहा था. पूरे कमरे में सिगरेट का धुआं फैला हुआ था.
‘‘तेरी वह मुरगी कब तक आएगी, मेरा मन बेचैन हो रहा है ’’ रवि के सामने वह आदमी शराब का खाली गिलास रखते हुए बोला.
‘‘बस सर आने ही वाली होगी,’’ रवि उस के खाली गिलास में शराब डालते हुए बोला.
‘‘पर यार वह तो तेरी गर्लफ्रैंड है, ऐसे में वह मेरे साथ…’’
‘‘आप उस की फिक्र न करो, सरजी…अरे, वह तो मेरे प्यार में इतनी पागल है कि मेरे एक इशारे पर कुछ भी करने को तैयार हो जाएगी,’’ रवि ठठा कर हंस पड़ा, ‘‘अरे मैं ने कच्ची गोलियां नहीं खेली हैं, जो हाथ आया मौका यों जाने दूं,’’ नशे में धुत्त रवि बोला, ‘‘आप आज सिर्फ मेरे अभिनय का कमाल देखना…मैं आज उसे इतना बेचैन कर दूंगा कि वह मेरे साथसाथ आप को भी पूरा मजा देगी. बड़ी गरमी भरी पड़ी है उस के अंदर,’’ और फिर उस ने सिगरेट सुलगा ली.
‘‘अच्छा, मैं चलता हूं. बाहर लौबी में तुम्हारे फोन का इंतजार करता हूं. जब मामला पट जाए तब आ जाऊंगा,’’ कह कर वह आदमी पागलों की तरह हंसने लगा. ‘‘आप मजे की फिक्र न करो. वह तो मैं आप को पूरा दिलवाऊंगा पर मेरा आप की आने वाली फिल्म में हीरो का रोल तो पक्का है न ’’ कह रवि ने वही गुलाबी नाइटी बैड पर फैला दी.
‘‘अरे यार मैं जुबान का पक्का हूं. इधर वह लड़की गई तो उधर तेरा हीरो का रोल पक्का.’’ यह सब सुन कर मेरे तो होश उड़ गए. मेरी तो उस समय ऐसी स्थिति थी कि काटो तो खून नहीं. पहले तो मेरे मन में आया कि अंदर जा कर उन दोनों मुंह नोच लूं पर फिर मैं तुंरत संभल गई कि नीचता पर उतर आए ये दोनों मेरे साथ कुछ भी गलत कर सकते हैं. फिर मैं ने समय न गंवाते हुए बाहर का रुख किया ताकि उन की पकड़ से बाहर निकल जाऊं. वैसे भी वह आदमी कभी भी बाहर आ सकता था. उस समय मेरा तनमन गुस्से से उबल रहा था और मेरी आंखें लगातार बह रही थीं. रवि के प्यार का यह वीभत्स रूप देख कर मेरे रोंगटे खड़े हो गए थे. मैं औटोरिकशा में अपने घर जा रही थी. रवि के कई फोन मेरे मोबाइल पर आए, मेरा मन उस समय इतना बेचैन था कि उस से बात करना तो दूर मैं उस की आवाज भी नहीं सुनना चाहती थी. इसलिए मैं ने अपना मोबाइल औफ कर दिया और बीती बातें भुला कर अपने घर चली गई.
‘‘अरे समीर, तुम कब आए ’’ समीर को बंटू के साथ खेलते देख कर मुझे सुकून सा मिला.
‘‘चलो, आज पिक्चर देखने चलते हैं, खाना भी बाहर ही खा लेंगे,’’ समीर ने अचानक मुझ से कहा तो मैं अचकचा सी गई, ‘‘पर बंटू का तो सुबह स्कूल है,’’ मैं ने बात बदलते हुए कहा. अब समीर से कैसे कहती कि मेरा मूड खराब है.
‘‘बंटू को तो मैं देख लूंगी. समय से खाना खिला कर सुला दूंगी,’’ सासूमां कमरे में प्रवेश करते हुए बोलीं.
‘‘क्यों बंटू, दादी के साथ खेलेगा न और फिर वह दिन वाली स्टोरी भी तो पूरी करनी है न,’’ सासूमां के इतना कहते ही बंटू उन से लिपट गया.
‘‘चलो, अब तो तुम्हारी समस्या हल हो गई. अब जल्दी से तैयार हो जाओ,’’ समीर ने मेरा कंधा थपथपाते हुए कहा.
फिर हम तैयार हो कर मूवी देखने चले गए. जब पिक्चर देख कर बाहर निकले तो बाहर काले बादल घिर आए थे. देखते ही देखते तेज बारिश शुरू हो गई. समीर कार का दरवाजा खोल कर अंदर बैठने लगा तो मैं ने अचानक उस का हाथ पकड़ कर बाहर खींच लिया.
‘‘मैडम, बारिश शुरू हो गई है और तुम्हें बारिश में भीगने से ऐलर्जी है,’’ उस के स्वर में व्यंग्य था.
‘‘अब मुझे बारिश में भीगना अच्छा लगता है,’’ कह कर में ने समीर को हाथ से पकड़ बाहर खींच लिया और फिर दोनों देर तक बारिश में भीगने का मजा लेते रहे. जब बारिश की ठंडी फुहारें मेरे तनमन की तपिश निकालने में कामयाब हुईं तब मैं समीर के कंधे से जा लगी. मेरे अंदर आए अचानक इस बदलाव को देख कर समीर को इतना अच्छा लगा कि उस ने एक चुंबन मेरे होंठों पर अंकित कर दिया. जब समीर की मजबूत बांहों ने मेरे तन को कसा तो ऐसा लगा मानो अब मेरे मन पर सिर्फ और सिर्फ समीर का ही अधिकार है और तब ऐसा लगने लगा मानो रवि की यादों का अक्स धुंधला पड़ने लगा है.
‘‘नेहा, आओ मेरे साथ इस बारिश में भीगो. देखो, कितना मजा आ रहा है.’’
‘‘न बाबा न, ठंड लग गई तो तुम भी यहां आ जाओ,’’ मैं अपना छाता खोलते हुए बोली.
‘‘जानेमन, ठंड लगने के बाद मैं तुम्हें ऐसी गरमी दूंगा कि मेरे प्यार में पिघलपिघल जाओगी.’’
समीर की इस बात पर आसपास खड़े लोग हंस रहे थे पर मैं शर्म से लाल हुई जा रही थी. हिल स्टेशन की बारिशों में देर तक भीगने से समीर को ठंड लग गई थी और फिर वह 3 दिन तक बिस्तर से नहीं उठ पाया था. वह तो दवा ले कर गहरी नींद सो गया था पर मैं रवि की याद में तड़प कर रह गई थी. बारबार सोचती कि काश, आज समीर की जगह रवि होता तो इस हनीमून का, इस बारिश का मजा ही कुछ और होता. वैसे समीर ने हनीमून पर मुझे पूरा मजा दिया था, लेकिन मैं चाह कर भी पूरे मन से उस का साथ नहीं दे पाई थी. में जब भी समीर मेरे पास होता मुझे ऐसा लगता मानो मेरा शरीर तो समीर के पास है, लेकिन मन कहीं पीछे छूट गया है, रवि के पास. मुझे हमेशा ऐसा लगता कि हम दोनों के बीच रवि का वजूद आज भी बरकरार है, जो मुझ से रहरह कर अपना हक मांगता है.
यह शायद रवि के वजूद का ही असर था कि मैं चाह कर भी समीर से खुल नहीं पाई. मेरे मन का एक कोना अभी भी रवि की याद में तड़पता रहता था. जब भी बादल बरसते समीर बारिश में भीगते हुए उस का आनंद लेता, मगर मैं दरवाजे की ओट में खड़ी रवि को याद कर रोती. तब अचानक समीर का चेहरा रवि का रूप ले लेता और फिर मेरी यह बेचैनी तड़प में बदल जाती. तब मैं सोचने लगती कि काश, मेरी इस तड़प में रवि भी मेरा हिस्सेदार बन पाता तो कितना अच्छा होता. बारिश की ठंडी फुहारों के बीच अगर मैं अपनी इस तड़प से रवि को अपना दीवाना बना देती और टूट कर उसे प्यार करती तो शायद मेरा मन भी इस मौसमी ठंडक से सराबोर हो उठता.वैसे मैं ने अपने मन की सारी बातें अपने मन के किसी कोने में छिपा रखी थीं तो भी समीर की पारखी नजरों ने मेरे मन की बेचैनी को भांप लिया था.‘‘घर से बाहर निकलो, नएनए दोस्त बनाओ. घर की चारदीवारी में कैद हो कर क्यों बैठी रहती हो ’’ एक दिन समीर मुझे समझाते हुए बोला.
समीर की बात मुझे जंच गई और मैं अपनी सोसाइटी की किट्टी पार्टी की सदस्य बन गई. नएनए लोगों से मिलने से मेरा अकेलापन कम होने लगा, जिस कारण मन में छाई निराशा आशा में बदलने लगी. अपनी जिंदगी में आए इस बदलाव से मैं खुश थी. धीरेधीरे मुझे ऐसा लगने लगा शायद अब मेरी जिंदगी में एक ठहराव आ गया है. पर यह ठहराव ज्यादा समय तक नहीं टिक पाया, क्योंकि शांत नदी में अचानक रवि ने आ कर अपने प्यार का पत्थर जो फेंक दिया था, जिस कारण मेरी जिंदगी में फिर से तूफान आ गया. मैं उस दिन अकेली पिक्चर देखने गई थी. वैसे समीर भी मेरे साथ आने वाला था, लेकिन अचानक जरूरी काम आने से वह नहीं आ आ सका. अत: अकेली पिक्चर देखने आई थी. लेकिन पिक्चर शुरू होने से पहले ही अचानक रवि से मुलाकात हो गई.
जब हम एकदूसरे के सामने आए तब न जाने कितनी देर तक हम दोनों एकदूसरे को बिना कुछ बोले निहारते रहे. ‘‘मैं कोई सपना देख रही हूं क्या ’’ मैं ने चुप्पी तोड़ते हुए पूछा.
‘‘हां, शायद यह सपना ही है,’’ कहतेकहते रवि का गला भर आया.
फिर हम दोनों भीड़ से दूर एक तरफ ओट में जा कर खड़े हो गए.
‘‘कहां थे न कोई फोन…जाओ, मुझे तुम से कोई बात नहीं करनी,’’ मैं लगभग रो पड़ी थी.
‘‘नेहा, आज तक कोई पल ऐसा नहीं बीता होगा, जब मैं ने तुम्हें याद न किया हो. बस यह समझ लो कि मेरा तन मेरे पास था पर मन हमेशा तुम्हारे पास रहा है,’’ रवि भरे गले से बोला.
इस से पहले कि मैं कुछ और बोल पाती, रवि ही बोल पड़ा, ‘‘अच्छा, अब ये गिलेशिकवे छोड़ो और अंदर चलो, आज की पिक्चर में मेरा हीरो का रोल तो नहीं है नैगेटिव है पर हीरो के रोल से ज्यादा दमदार है,’’ कह कर उस ने मेरा हाथ पकड़ा और दोनों हौल के अंदर चले गए. वाकई रवि का अभिनय दमदार था. इतने सालों की उस की मेहनत नजर आ रही थी. जब वह हौल से बाहर निकला तो उस के प्रशंसकों की भीड़ ने उस का रास्ता रोक लिया. उस के बाद से तो रवि का जादू मेरे सिर चढ़ कर बोलने लगा. अब मुझे न दिन की सुध थी और न रात की.
मेरा अब ज्यादा समय रवि के साथ ही बीतने लगा था. कभीकभी तो मैं शूटिंग के समय भी उस के साथ होती. मैं ने कई बार उस से कहा कि वह चल कर समीर से मिल ले पर हर बार टाल जाता. जब भी मैं उस के सामने समीर का जिक्र करती, वह गमगीन हो उठता और तड़पते हुए कहता, ‘‘मेरे उस दुश्मन का नाम मेरे सामने ले कर मेरे जख्मों को हरा मत किया करो.
‘‘नेहा, बस यह समझ लो कि तुम से मेरी शादी न हो पाना मेरी सब से बड़ी हार है, जिसे मैं एक दिन जीत में बदल कर ही रहूंगा.’’ तब मेरा मन करता कि मैं उस से लिपट जाऊं और अपना सर्वस्व उसे सौंप दूं पर लोकलाज के भय से अपने बढ़े कदम रोक लेती.
कई बार मेरे मन में आया कि उस से पूछूं कि वह मेरी शादी के समय कहां था, पर यह सोच कर चुप रह जाती कि इस से रवि को दुख पहुंचेगा और मैं उसे दुखी नही करना चाहती. एक दिन शाम के 5 बजे थे जब मेरे पास रवि का फोन आया.
‘‘क्या कर रही हो जान ’’
‘‘कुछ भी तो नहीं.’’
‘‘तो चली आओ, आलीशान होटल में,’’
‘‘पर अचानक…’’
‘‘ज्यादा सवाल न पूछो एक सरप्राइज है.’’
रवि का इतना कहना था कि मैं उस के प्यार में खिंची होटल के लिए निकल पड़ी. उस दिन समीर टूअर पर था और मैं ने अपने बेटे बंटू को अपनी सहेली राधिका के यहां छोड़ दिया. जब रवि के पास पहुंची तो देखा वह एक सजे कमरे में मेरी प्रतीक्षा कर रहा है.
‘‘जान, बहुत देर कर दी आने में…’’
‘‘यह सब क्या है ’’ मैं अचकचाते हुए उस से पूछ बैठी.
उत्तराखंड में पलायन इस कदर बढ़ गया था कि गांव के गांव खाली हो गए थे, यहां तक कि कई गांवों में तो बस एकआध बुजुर्ग ही बचा था या फिर वह परिवार जो बाहर रोजगार नहीं करता था, लेकिन लॉकडाउन के बाद प्रवासियों की घर वापसी से उत्तराखंड की वादियों में फिर रौनक लौट आई है.
युवाओं में बढ़ा स्वरोजगार का जनून
प्रवासी लोगों ने अब स्वरोजगार के लिए कमर कस ली है. उन का मानना है कि बजाय नौकरी करने के अपना ही कुछ छोटामोटा धंधा शुरू किया जाए. इन में अधिकतर युवा होटल, मॉल और छोटीमोटी फैक्टरी या फिर दुकानों में काम करते थे. ये युवा गांव में या तो मनरेगा के अंतर्गत चल रही योजनाओं में काम कर रहे हैं और कुछ बंजर पडी जमीन में उगी कंटीली झाड़ी को काटकर उसे समतल और उपजाऊ
बना रहे ह
ये भी पढ़ें-कोरोना संकट ने शुरु किया वर्चुअल रैलियों का युग
मिलजुल कर करना चाहते हैं काम
पौड़ी गढ़वाल के पोखड़ा और थैलीसैन ब्लॉक के बुरांसी गांव के युवाओं ने 8-8, 10-10 के ग्रुप में ऑर्गेनिक खेती शुरू कर दी है और उन्हें उम्मीद है कि वे लोग इस काम में सक्षम होंगे.यहां पर तिलहन और ऑर्गेनिक सब्जियां आसानी से उगाई जा सकती हैं, क्योंकि यहां सिंचाई के लिए पर्याप्त पानी भी है. लेकिन
यहां पर सब से बड़ी समस्या है इन के लिए बाजार तलाशने की, क्योंकि आसपास कोई सब्जी मंडी या बड़ा बाजार नहीं है.
राज्य सरकार ने दिखाए सपने
राज्य सरकार को चाहिए कि इन युवाओं को सब्जियां मंडी तक पहुंचाने के लिए उचित व्यवस्था की जानी चाहिए, तभी ये लोग अपना स्वरोजगार कर पाएंगे. उत्तराखंड सरकार ने पिछले दिनों पलायन रोकने के लिए की योजनाएं बनाई और प्रवासियों को कई तरह की सुविधाएं देने की भी बात कही. यही नहीं मुख्यमंत्री त्रिवेंद्र सिंह ने इस कार्य को सुचारू रूप से आगे बढ़ाने के लिए पलायन आयोग का ही गठन कर दिया, लेकिन अब देखना होगा कि राज्य सरकार इन प्रवासियों को कितनी मदद करती है, कहीं हाथी के दांत दिखाने के और व खाने के और तो नहीं.
ये भी पढ़ें-भारत सरकार द्वारा जनहित में जारी…
वीरान पड़े गांव फिर हुए गुलजार
25 साल के जयदेव अपने खेत में खड़े हैं. वे जमीन से फूट रही हरियाली को निहार रहे हैं. उन की और उन के जैसे गांव के दूसरे युवाओं की मेहनत रंग लाने लगी है. जयदेव के गांव का नाम है धनेटी, जो उत्तराखंड के उत्तरकाशी ज़िले के डुंडा ब्लॉक में पड़ता है. कुछ माह पहले तक यहां के कई खेत खाली थे, जिन में अब फिर से खेती होने लगी है.
यह बदलाव आया उस लॉकडाउन में, जिस ने सबकुछ थाम दिया था, जिस लॉकडाउन में शहरों ने ख़ामोशी की चादर ओढ़ ली, सड़कें वीरान हो गईं और बाज़ारों ने चुप्पी साध ली थी. उसी लॉकडाउन के कारण अब पहाड़ों की जवानी लौट आई. खाली पड़े गांव फिर से गुलजार हो गए हैं. उत्तराखंड पलायन आयोग की 23 अप्रैल को प्रकाशित रिपोर्ट के अनुसार, कोरोना काल में लगभग 60 हज़ार लोग अपने गांव पहुंच चुके हैं.
जयदेव भी इन्हीं में थे. वह बताते हैं, ‘लगभग ढाई साल मैं चंडीगढ़ में 3के होटल में कार्यरत रहा. 10 हज़ार रुपये वेतन मिलता था. इस में से 2 हज़ार अपने पास रख-कर बाकी घर भेज देता. जब तालाबंदी की वजह से होटल बंद हुआ तो कुछ दिनों बाद पैसे खत्म हो गए. मालिक ने कहा कि जब होटल खुलेगा, तब काम आगे बढ़ेगा. इसलिए मैं गांव आ गया.’
जयदेव के गांव में फल, सब्ज़ियां और जरूरी खाद्य सामग्री मैदान से आती है. गांव में खेत हैं, लेकिन उन में हल चलाने वाले नहीं हैं. जंगली सुअर, बंदर, नीलगाय जैसे जानवर फसल तहसनहस कर देते हैं. सुअर और बंदरों ने तो तबाही मचा रखी है. कई खेत बंजर हो चले थे. जयदेव और गांव के दूसरे युवक जब घर लौटे तो इन खेतों से सामना हुआ। प्रधान के नेतृत्व में सभी ने अपने गांव में ही सब्ज़ी उगाने की पहल की है.
ये भी पढ़ें-अमेरिका से लेकर भारत में धर्म का मकड़जाल
पलायन की मार
धनेटी के जयदेव जैसे कई युवक इसलिए अहम हो जाते हैं, क्योंकि इन की कहानी कमोबेश एक पूरे राज्य की कहानी है. उत्तराखंड का गठन साल 2000 में हुआ था. इस के कुछ बरस बाद ही पहाड़ी ज़िलों से पलायन होने लगा. इस के पीछे कई कारण थे, मसलन, पानी का संकट, लचर स्वास्थ्य सेवा, बेरोज़गारी, आगे की पढ़ाई.
इस पलायन को रोकने और रोज़गार के अवसर पैदा करने के लिए सरकार ने पर्यटन को बढ़ावा दिया. नतीजा हुआ टूरिस्टों की तेज़ आमद. चारधाम यात्रा, वॉटर स्पोर्ट्स, योग साधना के अलावा बड़े पावर प्रोजेक्ट और प्रगतिशील परियोजनाएं चलने लगीं, लेकिन बहुत समय तक नहीं. 2013 की केदारनाथ त्रासदी ने कई गांव उजाड़ दिए. जानमाल का भारी हानि हुई. पर्यटन क्षेत्र को भारी नुकसान पहुंचा और बड़ी संख्या में लोग मैदानी क्षेत्रों की तरफ चले गए.
पौड़ी और अल्मोड़ा से अधिक पलायन
पलायन की सब से ज्यादा मार गढ़वाल क्षेत्र के पौड़ी और कुमाऊं के अल्मोड़ा ज़िले ने झेली. उत्तराखंड मानव विकास संसाधन 2017 सर्वेक्षण रिपोर्ट के अनुसार, अल्मोड़ा से 72 और चंपावत से 51 फीसदी लोगों ने रोज़गार के लिए अपना घरगांव छोड़ा. सर्वेक्षण से यह भी मालूम होता है कि सब से ज्यादा अंतरराज्यीय पलायन हुआ अल्मोड़ा से, करीब 80 प्रतिशत. देहरादून से करीब 78 और पौड़ी गढ़वाल से 76 फीसदी से थोड़ा ज्यादा.
आपदा ने खोए थे, आपदा ने लौटाए
पलायन आयोग की रिपोर्ट बताती है कि कोविड-19 की वजह से बेरोज़गार हुए 59,360 प्रवासी उत्तराखंड के 10 पहाड़ी जिलों में लौटे हैं. देहरादून, उधम सिंह नगर और हरिद्वार में वापस आए प्रवासियों को इस आंकड़े में शामिल नहीं किया गया है. ज्यादातर लौटने वाले 30 से 40 साल की आयु वर्ग के हैं.
परेशानी का करना पड़ा सामना
शहरों को कई बरस दे कर जब ये युवा गांव लौटे तो इन्हें कुछ बदलाव नहीं दिखा. पहाड़ की गोद में बसे गांव तक का रास्ता पैदल ही तय करना पड़ा. कहीं नदी पार करनी पड़ी तो कहीं संकरी पगडंडियों पर पैर जमाने पड़े. सूबे के तमाम गांव ऐसे ही हैं. अब चमोली ज़िले के सुराई थोटा को ही लीजिए. जोशीमठ विकास खंड में पड़ने वाला यह गांव आज तक रोड से नहीं जुड़ा है.
ग्राम प्रधान बताते हैं कि 1992 में उन के गांव के लिए सड़क योजना पास हुई थी, लेकिन 28 बरस बाद भी लोग नदी के रास्ते ही आवाजाही करते हैं. शहरों से मज़बूरी में लौटे युवकों को भी अपने घरों तक ऐसे ही जाना पड़ा और तब उन्हें ख्याल आया कि विकास का रास्ता उन के गांव तक भी होना चाहिए.
युवाओं का जज्बा
चमोली के ही बेतालघाट ब्लॉक के दूरस्थ गांव जिनोली में वापस लौटे युवकों ने तीन किलोमीटर लंबी सड़क बना दी है. वह भी बिना सरकारी मदद के श्रमदान से. अब इस पर बाइक आराम से चल सकती है. इसी तरह विकास खंड मूनाकोट के खरकड़ौली के ग्रामीणों ने एक सड़क को फिर से चलने लायक बना दिया.
श्रमदान कर बनाई सड़क
गढ़वाल मंडल में पड़ता है पौड़ी ज़िला. यहां के यमकेश्वर ब्लॉक के बीरकाटल बूंगा गांव में 80 परिवार रहते हैं जो अभाव में जीने को लाचार हैं. अगर कोई बीमार पड़ता है तो गांव वाले उसे कुर्सी या चारपाई से बांध कर मोहनचट्टी लाते हैं. सड़क के लिए सरकार से कई बार आवेदन किए गए, लेकिन कोई सुनवाई नहीं हुई. इसी बीच लॉकडाउन के करण नौजवान घर आए और उन्होंने बुजुर्गों के कहने पर श्रमदान से आधा किलोमीटर लंबी सड़क बना दी। अब इनकी योजना है उस नहर की मरम्मत, जो 2013 की आपदा में टूट गई थी और इससे बंजर पड़ी भूमि को फिर से हराभरा कर दिया.
बागबानी को बनाया आजीविका का साधन
चमोली के नारायणगढ़ स्थित बैनोली गांव के प्रधान सुनील कोठियाल ने प्रवासियों के साथ मिल कर गांव के सुंदरीकरण का काम शुरू किया है. इसी तरह कुमाऊं के रानीखेत में वापस आए स्टूडेंट्स ने अपने मातापिता के साथ मिल कर दो बीघा बंजर भूमि पर सेब के पेड़ लगा दिए.
पहाडों की जवानी को पहाड़ रोका जा सकता है
पूरे पहाड़ में ऐसे कई उदाहरण बिखरे मिल जाएंगे। ज़रूरतों ने युवाओं को घर से दूर किया था और अब एक संकट इन्हें वापस ले आया है. युवा न केवल लौटे, बल्कि उन्होंने अपने गांवों को संवारा भी है.ये उदाहरण बताते हैं कि अगर सही मार्गदर्शन मिले तो पहाड़ों की जवानी को पहाड़ छोड़ने से रोका जा सकता है.
पहला प्यार तो सावन की उस पहली बारिश के समान होता है, जिस की पहली फुहार से ऐसा लगता है मानो मन की सारी तपिश दूर हो गई हो. मेरा पहला प्यार रवि जब मुझे अचानक मिला तो ऐसा लगा जैसे मैं ने उस क्षितिज को पा लिया, जहां धरती व आसमान के सिरे एक हो जाते हैं. वैसे मैं चाहती नहीं थी कि रवि और मेरे बीच शारीरिक संबंध स्थापित हों पर जब सारे हालात ही ऐसे बन जाएं कि आप अपने प्यार के लिए सब कुछ लुटाने के लिए तैयार हो जाएं तब यह सब हो ही जाता है.
सच, रवि से एकाकार होने के बाद ही मैं ने जाना कि सच्चा प्यार क्या होता है. रवि के स्पर्श मात्र से ही मेरा दिल इतनी जोरजोर से धड़कने लगा मानो निकल कर मेरे हाथ में आ जाएगा. रवि से मिलने के बाद ही मुझे एहसास हुआ कि अब तक की जितनी भी रातें मैं ने अपने पति समीर के साथ बिताई हैं वह मात्र एक शारीरिक उन्माद था या फिर हमारे वैवाहिक संबंध की मजबूरी. शादी से ले कर आज तक जबजब भी समीर मेरे नजदीक आया, तबतब मेरा शरीर ठंडी शिला की तरह हो गया. वह अपना हक जताता रहता, लेकिन मैं मन ही मन रवि को याद कर के तड़पती रहती. यह शायद रवि के प्यार का ही जादू था कि शादी के इतने साल बाद भी मैं उसे भुला नहीं पाई थी. तभी तो मेरे मन का एक कोना आज भी रवि की एक झलक पाने को तरसता था.
‘‘मैं शादी करूंगी तो सिर्फ रवि से वरना नहीं,’’ शादी से पहले मैं ने यह ऐलान कर दिया था.
‘‘हां, वह तो ठीक है, पर जनाब मिलने आएं तो पता चले कि वे भी यह चाहते हैं या नहीं,’’ भैया के स्वर में व्यंग्य था.
‘‘हांहां, मैं जानती हूं कि आप का इशारा किस तरफ है वह हीरो बनना चाहता है, इसीलिए तो दिनरात स्टूडियो के चक्कर काटता है. बस एक ब्रेक मिला नहीं कि उस की निकल पड़ेगी. इसीलिए वह मुंबई चला गया है.’’
‘‘न नौ मन तेल होगा न राधा नाचेगी,’’ भैया न हंसते हुए कहा और बाहर चले गए.
‘‘देखो मां, भैया कैसे रवि का मजाक उड़ाते रहते हैं. देख लेना वह एक दिन बहुत बड़ा आदमी बन कर दिखाएगा,’’ मैं यह कहतेकहते रो पड़ी थी.
‘‘बेटी, वह हीरो जब बनेगा तब बनेगा, असली बात तो यह है कि वह अभी कर क्या रहा है ’’ पापा ने चाय पीते हुए मुझ से पूछा.
अब उन से क्या कहती. मैं खुद नहीं जानती कि वह आजकल मुंबई में क्या कर रहा है. मुझे तो बस इतना मालूम था कि शायद अभी फिर से विज्ञापन की शूटिंग कर रहा है.
जब सब कुछ धुंधला सा था तब भला कोई सटीक निर्णय कैसे लिया जाता फिर मैं ने हथियार डाल दिए यानी समीर से शादी के लिए हामी भर दी.
मेरे इस निर्णय से घर के सभी लोग बहुत खुश थे पर मेरे भीतर अवश्य कुछ दरक कर टूट गया था. मैं ने न जाने कितनी बार रवि को फोन किया पर वह शायद मुंबई से बाहर था. एक बार तो मैं ने भावावेश में मुंबई जाने का मन भी बना लिया पर तब मातापिता के रोते चेहरे मेरी आंखों के आगे घूम गए और तब मैं ने हथियार डाल दिया. वैसे भी रवि मुंबई में कहां है, यह पता तो मुझे नहीं था. समीर से शादी हुई तो मैं उस के जीवन की महत्त्वपूर्ण हिस्सा बन गई. समीर ने मुझे वह सब दिया, जिस पर मेरा हक था. पर शायद मैं समीर के साथ पूरी तरह न्याय न कर पाई.
जिस मन पर किसी और का अधिकार हो, उस मन पर किसी और के अरमानों का महल बनना मुश्किल ही था. मैं जब भी अकेली होती रवि को याद कर के रो पड़ती. मुझे उस की ज्यादा याद तब आती जब बारिश आती. मुझे आज भी याद है वह दिन जब बहुत ज्यादा उमस के बाद अचानक काले बादल घिर आए थे और देखते ही देखते मूसलाधार बारिश शुर हो गई थी. उस समय रवि और मैं पिक्चर देख कर मोटरसाइकिल पर लौट रहे थे. बारिश तेज होती देख कर रवि मोटरसाइकिल रोक कर सड़क की दूसरी ओर मैदान में जा कर बारिश का मजा लेने लगा. उसे ऐसा करते देख मुझे बहुत अजीब लगा. मैं एक पेड़ के नीचे खड़ी बारिश का मजा ले रही थी. तभी अचानक वह आया और मुझे खींच कर मैदान में ले गया.
‘‘नेहा, अपनी दोनों बांहें खोल कर इस रिमझिम का मजा लो. इन बूंदों में भीगने का मजा लोगी तभी तुम्हें लगेगा कि शरीर की तपिश कम हो रही है और तुम्हारा तनमन हवा की तरह हलका हो गया है.’’
पहले तो मुझे रवि का ऐसे भीगना अजीब लगा पर फिर मैं भी उस के रंग में रंग गई. जब मैं ने अपने दोनों हाथ फैला कर बारिश की ठंडी बूंदों को अपने में आत्मसात करने की कोशिश की तो ऐसा लगा मानो मैं किसी जन्नत में पहुंच गई हूं. बहुत देर तक बारिश में भीगने के बाद मुझे हलकी ठंड लगने लगी और मैं कांपने लगी. तब रवि मेरा हाथ पकड़ मुझे सड़क किनारे बने एक छोटे टीस्टाल में ले गया. रिमझिम बारिश के बीच गरमगरम चाय पीते हुए हम ने अपने कपड़े सुखाए और फिर अपनेअपने घर चले गए. उस के बाद न जाने कितनी बारिशों में मैं और रवि साथसाथ थे. भीगे बदन पर जबजब रवि के हाथों का स्पर्श हुआ तबतब मैं एक नवयौवना सी चहक उठी. समीर को भी रवि की तरह तेज बारिश में भीगना पसंद है. मुझे याद है जब हम लोग हनीमून के लिए मसूरी गए थे. मालरोड पर घूमते हुए अचानक बारिश शुरू हो गई. समीर तो वहीं खड़ा हो कर बारिश का मजा लेने लगा पर मैं एक पेड़ की ओट में खड़ी हो गई.
लेखिका-डा. स्मिता वैद
असामान्य मासिकधर्म न केवल आप के दैनिक जीवन को प्रभावित करता है, बल्कि गर्भवती होने की आप की क्षमता को भी प्रभावित कर सकता है. अपने मासिकधर्म चक्र पर ध्यान रखने से खुद के स्वास्थ्य के बारे में बहुत कुछ पता चल सकता है.
मासिकधर्म चक्र क्या है
यदि शरीर प्राकृतिक नियमों और उन के क्रियाकलापों का पालन करता है, तो हर लड़की और महिला को पीरियड 21 से 35 दिनों के अंदर होता है. इस का साफ मतलब यह भी हो सकता है कि आप को एक कैलेंडर महीने में 2 बार पीरियड हो सकता है. प्रत्येक चक्र को 2 चरणों में विभाजित किया जा सकता है- फौलिक्यूलर फेज और ल्यूटियल फेज.
ये भी पढ़ें-रक्तदान के जरिये इंसान भी दे सकता है जीवनदान
आप के पीरियड का पहला दिन आप के चक्र का पहला दिन है और फौलिक्यूलर फेज की शुरुआत को चिन्हित करता है, जिस के दौरान मस्तिष्क के उत्तेजित हारमोन (एफएसएच), जोकि फीमेल सैक्स हारमोन है, मस्तिष्क से निकलता है ताकि एक प्रमुख फौलिकल (कूप) जिस में एक अंडाणु होता है उस के विकास को प्रोत्साहित कर सके. चूंकि अंडाणु परिपक्व होता है, फौलिकल गर्भाशय के स्तर की वृद्धि को उत्तेजित करने के लिए ऐस्ट्रोजन को निर्गत करता है.
दूसरे चरण की शुरुआत ओव्युलेशन की शुरुआत के साथ होती है जो ल्यूटियल फेज की शुरुआत को चिन्हित करता है. इस फेज के दौरान अंडाशय गर्भाशय की परत को परिपक्व करने के लिए प्रोजेस्टेरौन को निर्गत करता है और इसे भ्रूण के प्रत्यारोपण के लिए तैयार करता है. अगर गर्भावस्था अस्तित्व में नहीं आती है, तो प्रोजेस्टेरौन का स्तर गिरता है और रक्तस्राव 14 दिनों के अंदर होता है जब ल्यूटियल फेज समाप्त हो जाता है.
21 से 35 दिनों का सामान्य मासिकचक्र यह दर्शाता है कि ओव्युलेशन अस्तित्व में आया और सभी यौन हारमोन प्राकृतिक रूप से गर्भधारण करने के लिए संतुलित हैं. 35 दिनों या इस से अधिक समय तक जारी लंबे या अनियमित मासिकधर्म चक्र से यह संकेत मिलता है कि ओव्युलेशन नियमित नहीं है या यह अस्तित्व में ही नहीं आ रहा है. ऐसा तब होता है जब एक फौलिकल परिपक्व और अंडाकार नहीं होता है और प्रोजेस्टेरौन को निर्गत करने की अनुमति नहीं देता है.
ये भी पढ़ें-चिंता और विकार से भरा रोग ओसीडी
गर्भाशय की परत ऐस्ट्रोजन के कारण निर्माण जारी रखती है और इतनी मोटी हो जाती है कि यह अस्थिर हो जाती है और अंत में इस की वजह से रक्तस्राव होता है. अकसर भारी रक्तस्राव होता है.
एक छोटा मासिकधर्म चक्र 21 दिनों से कम समय में होता है जो इंगित करता है कि ओव्युलेशन बिलकुल अस्तित्व में नहीं आया. यह यह भी संकेत दे सकता है कि आप के अंडाशय में सामान्य से कम अंडाणु पैदा हो रहे हैं और रजोनिवृत्ति समीप आने वाली है. इस की पुष्टि करने के लिए आप को खून की जांच करने की जरूरत होती है. अंडाशय में अंडाणुओं की घटती संख्या के साथ मस्तिष्क एक फौलिकल विकसित करने के लिए अंडाशय को उत्तेजित करने के लिए अधिक एफएसएच निर्गत करता है. इस का परिणाम समय से पहले फौलिकल और ओव्युलेशन के विकास में होता है. इस के अलावा कभीकभी रक्तस्राव तब भी हो सकता है जब आप छोटे मासिकचक्र की वजह से ओव्युलेट की स्थिति को प्राप्त नहीं कर पाती हैं.
यदि आप को रक्तस्राव 5 से 7 दिनों से अधिक समय तक हो रहा है, जिस के परिणामस्वरूप सिलसिलेवार तरीके से यह दर्शाता है कि आप को ओव्युलेशन प्राप्त नहीं हुआ है. यदि आप को इस से अधिक समय तक या फिर पीरियड के बीच में रक्तस्राव होता है, तो यह गर्भाशय या गर्भाशय के भीतर संभावित पौलिप्स, फाइब्रौयड, कैंसर या फिर संक्रमण के कारण हो सकता है. यदि भू्रण इस समय गर्भाशय में प्रवेश करता है, तो गर्भधारण कर पाने में अक्षमता या गर्भपात की संभावना से इनकार नहीं किया जा सकता.
ये भी पढ़ें-खरबूजा : गरमी में खूब खाएं जानिए, सेहत से जुड़े गजब के फायदे
छोटा मासिकचक्र
छोटा मासिकचक्र निम्नलिखित में से किसी एक को इंगित कर सकता है:
अंडाणु की खराब गुणवत्ता: छोटा चक्र विशेषरूप से उम्रदराज महिलाओं में डिंबग्रंथि की गुणवत्ता में कमी को दर्शाता है. आप का मासिकधर्म चक्र उम्र के साथ घटता जाता है. खासतौर से पहले भाग के समय जिस के दौरान अंडाणु परिपक्व होता है और ओव्युलेशन के लिए तैयार होता है. एक अविकसित अंडाणु पूरी तरह परिपक्व नहीं हो सकता है और इस की वजह से गर्भाधान की स्थिति कमजोर हो सकती है.
गर्भपात का जोखिम: छोटे मासिकधर्म चक्र वाली महिलाओं की तुलना में 30 से 31 दिनों के मासिकधर्म चक्र वाली महिलाओं में गर्भधारण करने की अत्यधिक संभावना होती है. जिन महिलाओं का मासिकधर्म छोटा होता है वे गर्भधारण तो कर लेती हैं, लेकिन उन में गर्भावस्था के नुकसान या फिर गर्भपात होने की संभावना अधिक रहती है. यदि ल्यूटियल फेज छोटा होता है, तो गर्भावस्था के अवसर को बढ़ाने वाली स्थिति के लिए छोटी जगह ही मिलती है.
ये भी पढ़ें-मोबाइल के ज्यादा इस्तेमाल से हो सकती है फोन नेक की समस्या
सीनियर कंसलटैंट, ओब्स्टेट्रिक्स ऐंड एएमपी, गाइनोकोलौजी (स्त्रीरोग), फोर्टिस ला फेमे, जयपुर
कोरोना वायरस को ध्यान में रखते हुए जिन किसान भाइयों ने आरोग्य सेतु ऐप डाउनलोड नहीं किया है, वे अतिशीघ्र उस को डाउनलोड कर लें. इस ऐप के माध्यम से आप के आसपास अगर कोई कोरोना वायरस पौजिटिव गुजरता है तो यह आप को मैसेज के द्वारा अलर्ट करेगा.
जिन किसान भाइयों ने किसान रथ ऐप डाउनलोड नहीं किया है, वे भी इस को जरूर डाउनलोड कर लें. यह आप को अपने अनाज को बेचने, खरीदने, ट्रांसपोर्टेशन में मदद करेगा.
इसी के साथ परवल और धनिया की फसल में लगने वाले प्रमुख कीट और रोगों के बारे में विस्तृत जानकारी प्रस्तुत है :
ये भी पढ़ें-मिर्च की फसल में लगने वाले कीट और रोग
परवल
फल मक्खी कीट : प्रोन कीट कोमल अवयस्क फलों की त्वचा के नीचे अंडे देती है, जिस से यह गिडार निकल कर गूदे को खा कर फलों को सड़ा देती है. फल पीले पर कर सड़ने लगते हैं.
प्रबंधन : कीट आने से पहले नीम तेल 1500 पीपीएम की 3 मिलीलिटर दवा प्रति लिटर पानी में घोल बना कर छिड़काव करें.
यदि कीट आ गया है तो क्विनालफास
25 ईसी की 2 मिलीलिटर दवा प्रति लिटर पानी में घोल बना कर छिड़काव करें.
ये भी पढ़ें-ढेंचा की खेती से बढ़ाएं खेतों की उर्वराशक्ति
गलन रोग : इस रोग का प्रकोप अविकसित फलों पर अधिक होता है, जिस के कारण पूरा फल सड़ कर गिर जाता है.
प्रबंधन : इस रोग के नियंत्रण के लिए कौपर औक्सिक्लोराइड 50 डब्ल्यूपी की 3 ग्राम दवा प्रति लिटर पानी में घोल बना कर छिड़काव करें.
खर्रा रोग : इस के प्रकोप से पत्तियों और फलों पर सफेद चूर्ण दिखाई देते हैं. परिणामस्वरूप पत्तियां पीली पड़ कर नीचे गिर जाती हैं.
प्रबंधन : इस रोग के नियंत्रण के लिए कसुगमायसिन्न 3 फीसदी की 2 मिलीलिटर दवा प्रति लिटर पानी में घोल बना कर
छिड़काव करें.
धनिया
ये भी पढ़ें-लेजर लैंड लैवलर खेत करे एक सार
माहू कीट : यह कीट फूल आने के समय शिशु एवं प्रोण दोनों ही रस चूस कर नुकसान करते हैं. इस से प्रभावित फलों व बीजों का आकार छोटा हो जाता है.
प्रबंधन : कीट आने से पहले नीम तेल 1500 पीपीएम की 3 मिलीलिटर दवा प्रति लिटर पानी में घोल बना कर छिड़काव करें.
यदि कीट आ गया है तो इमिडाक्लोप्रिड 17.8 एसएल की 10 मिलीलिटर दवा प्रति
15 लिटर पानी में घोल बना कर तुरंत छिड़काव करें.
स्टेम गाल रोग : यह धनिया का प्रमुख रोग है. इस में पत्तियों के ऊपरी भाग, तना, शाखाएं, फूल और फूल व फल पर रोग के लक्षण कुछ उभरे हुए फफोलों जैसे दिखाई देते हैं. आरंभ में रोग से संक्रमित तना पीला होने लगता है और मिट्टी के पास से तने पर छोटी गाल उभार लिए हुए भूरे रंग की होती है.
प्रबंधन : बीज को बोने से पूर्व थीरम
2.5 ग्राम दवा प्रति किलोग्राम बीज की दर से उपचारित कर लें. पौधों के अवशेष को नष्ट
कर दें.
यदि रोग आ गया है तो कार्बंडाजिम
1.5 ग्राम प्रति लिटर पानी में घोल बना कर छिड़काव करें.
उकठा रोग : इस रोग से प्रभावित पौधे शुरू में पीला पड़ने लगते हैं. कुछ ही दिनों में इन का शीर्ष मुरझा कर सूख जाता है और पौधा मर जाता है.
प्रबंधन : खेत की अप्रैलमई माह में सिंचाई कर के गरमियों की गहरी जुताई करें और खाली छोड़ दें. 2 वर्ष का फसल चक्र अपनाएं. धनिया के स्थान पर अदरक या सरसों उगाएं.
बोआई से पहले और आखिरी जुताई के साथ ट्राइकोडर्मा 4 से 5 किलोग्राम और गोबर की 50 से 60 किलोग्राम सड़ी हुई खाद मिला कर 1 हेक्टेयर खेत में फैला कर जुताई कराएं.
ये भी पढ़ें-मोरिंगा खेती से बढ़ेगी किसान की आय
बुकनी रोग : इसे खर्रा रोग भी कहते हैं. इस रोग के कारण पत्तियों और तनों पर सफेदी आ जाती है व पत्तियां पीली पड़ जाती हैं.
प्रबंधन : इस के उपचार के लिए घुलनशील गंधक (सल्फैक्स) 3 किलोग्राम अथवा 600 मिलीलिटर डाई कूनो कैप प्रति हेक्टेयर की दर से 800 लिटर पानी में घोल कर फसल पर छिड़काव करें.
अधिक जानकारी के लिए नजदीकी कृषि विज्ञान केंद्र के वैज्ञानिकों से संपर्क करें.
हुंडई Aura आती है एक ऐसे वारंटी के साथ, जिसे हुंडई कहती है वंडर वारंटी. यह एक ऐसा प्रोग्राम है, जहां आप अपने इस्तेमाल के अनुसार वारंटी की लंबाई चुन सकते है. यहां आप वारंटी के तीन विकल्प में से चुन सकते हैं, जो आपको 3 साल से 5 साल तक की कवरेज देता हैं. तीन साल वाले विकल्प में आपको 1,00,000 किलोमीटर या 3 साल का समय, जो भी पहले पूरा हो जाए, उतनी वारंटी मिलती है. इसके अलावा 4 साल / 50,000 किमी और 5 साल की वारंटी है, जो 40,000 किमी के लिए अच्छी है. वंडर वारंटी के साथ, आप अपनी जरूरतों के हिसाब से वारंटी चुन सकते हैं.
ऐसी वारंटी और भरोसे के साथ हुंडई Aura हमारा आत्मविश्वास बढ़ाती है. #AllRoundAura
ये भी पढ़ें- Hyundai #AllRoundAura: राइड क्वालिटी भी है मजेदार
प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी ने महज 4 घंटे के नोटिस में पूरे देश में लौकडाउन की घोषणा की थी. इस कारण जो जहां थे वहीं थम गए. लौकडाउन के कारण जिस तबके को सब से बड़ी समस्या झेलनी पड़ी, वह प्रवासी मजदूर तबका था जो अपने गृहराज्य से दूसरे राज्य में काम की तलाश में गया था.
जाहिर सी बात है, कोरोना के डर से ज्यादा देश के गरीबों को भूख से मरने का डर था. यही कारण था कि प्रवासी मजदूरों ने पहले ही लौकडाउन को तोड़ते हुए तीसरे दिन से ही चहलकदमी शुरू कर दी थी. हजारों की संख्या में मजदूरों ने पैदल ही अपने घरों के लिए सैकड़ों किलोमीटर की लंबी यात्रा करनी शुरू की.
इस दौरान कई मजदूरों और उन के छोटेछोटे बच्चों ने भूख और थकान के कारण अपनी जान भी गंवाई. कइयों की रोड एक्सीडेंट में जान चली गई. दुधमुहे बच्चों से ले कर गर्भवती महिलाओं तक, जवान मजूरों से ले कर बुजुर्गों तक ने भूख और सरकार पर अति अविश्वास के कारण यह यात्रा शुरू की.
ये भी पढ़ें-गफलत में कांग्रेस सामंत को भेजे या दलित को
जब सरकार ने इन मजदूरों को डंडे के जोर पर रोकने की कोशिश की तो कहींकहीं मजदूर और पुलिस के बीच टसल की खबरें भी आईं. पिटते, मार खाते जैसेतैसे इन की स्वकार्यवाहियों के आगे सरकार को झुकना पड़ा और लौकडाउन के ठीक 37 दिन बाद प्रवासी मजदूरों के लिए यातायात के लिए श्रमिक ट्रेन की व्यवस्था करनी पड़ी. जिसे ले कर कहा गया कि मजदूरों को ट्रेन से मुफ्त उन के गृह राज्य पहुंचाया जाएगा. जिसे ले कर केंद्र से लेकर राज्य सरकारें किराया को ले कर आएदिन अपनाअपना हिसाब समझाने में लगी रहती थी. उस समय भारतीय लोग समझ तो रहे थे कि सरकार मजदूरों से किराया वसूल रही है, लेकिन सरकारें अपनी पीठ थपथपा रही होती थीं. जिस कारण कन्फ्यूजन की स्थिति बनी रही, लेकिन अब धीरेधीरे सरकार के लौकडाउन का हिसाब सामने आ रहा है.
पोल खोल रिपोर्ट
हालिया सर्वे में पता चला है कि 85 प्रतिशत मजदूरों ने अपने गृह राज्य पहुंचने के लिए खुद अपने किराए का खर्चा उठाया. स्वयंसेवी संगठन स्ट्रैंडड वर्कर एक्शन नेटवर्क (स्वान) के सर्वेक्षण के अनुसार, लौकडाउन के दौरान घर पहुंचे प्रवासी मजदूरों में से 62 फीसदी ने यात्रा के लिए 1500 रुपए से अधिक खर्च किया.
ये भी पढ़ें-योगी सरकार के कामकाज पर किया सवाल, पूर्व आईएएस पर हो गई
स्वान की तरफ से यह सर्वेक्षण ‘टू लीव और नोट टू लीव: लौकडाउन, माइग्रेंट वर्कर्स एंड देयर जर्नीज होम’ नाम की रिपोर्ट शुक्रवार को जारी हुई. यह सर्वे 1 मई से जून के पहले सप्ताह के बीच किया गया है.
इस में बताया गया कि कुल मजदूरों में 33 फीसदी अपने घर जाने में सफल हुए और 67 फीसदी मजदूर अपने घर के लिए नहीं निकले.
इस सर्वे में कुल 1,963 प्रवासी मजदूर शामिल हुए, जो फोन के माध्यम से स्वान से जुड़े.
सर्वेक्षण से पता चलता है कि मजदूरों के अपने घरों की तरफ वापस जाने का मुख्य कारण बेरोजगारी था. लौकडाउन के बाद बड़ी संख्या में दिहाड़ी मजदूर, छोटे उद्योग मजदूर बेरोजगार हुए. इसे लेबकर सीएमआईई की रिपोर्ट पहले ही यह बात कह चुकी थी.
ये भी पढ़ें-मजदूरों के लिए रहे मौन रैलियों के लिये करोडो का खर्च
इस रिपोर्ट के अनुसार लौकडाउन के पहले दो हफ्तों में ही भारत की बेरोजगारी दर शहरों में 8 से 30 प्रतिशत तक जा पहुंचा.
जाहिर है, इस में अधिकतम लघु उद्योगों में काम करने वाले मजदूर थे, जो हर माल के हिसाब से मेहनताना पा रहे थे या तो कंस्ट्रक्शन के काम में लगे थे.
प्रवासी मजदूरों की बेरोजगारी पर स्वान की अधिकारी अनिंदिता ने कहा, “हमें पता चला कि सिर्फ महामारी का डर और परिवार के साथ रहने की इच्छा ने ही उन्हें घर लौटने पर मजबूर नहीं किया, बल्कि जिन शहरों में वे काम कर रहे थे वहां रोजगार और खाने की कमी ने उन्हें घर लौटने को मजबूर किया.”
इसी संस्था ने इस से पहले भी माइग्रेंट मजदूरों पर लौकडाउन में सर्वे किया था जिस में बताया कि लगभग जाने वाले 90 फीसदी मजदूर पैसे और राशन खत्म होने के चलते अपने घरों की तरफ वापस गए थे.
इस सर्वे में बताया गया कि अधिकतम लोगों ने बसों से अपने घरों की दूरी तय की, जिन की संख्या 44 फीसदी है, वहीं 39 फीसदी लोग श्रमिक ट्रेनों से अपने घरों तक गए और 11 फीसदी ट्रक, टेंपो से और 6 फीसदी पैदल ही अपने घरों की तरफ रवाना हुए. इन में से जिन 62 फीसदी मजदूरों में 1500 से ऊपर किराया दिया, उन की हालत किराया देने की नहीं थी. उस ने महामारी और बेरोजगारी के समय जबरन किराया वसूला गया.
ये भी पढ़ें-ट्रंप जब बंकर में छिप जाएं, मामला गंभीर है
सुप्रीम कोर्ट ने निर्देश देने में की देरी
स्वान के सर्वे में कहा गया कि 28 मई को सुप्रीम कोर्ट ने प्रवासी मजदूरों की घरवापसी की यात्रा के खर्चे को ले कर निर्देश दिया था जो काफी देर में दिया गया था.
सुप्रीम कोर्ट ने 28 मई को कहा था कि राज्य सरकारें मजदूरों के घरवापसी की यात्रा का खर्च उठाएगी. यह निर्देश श्रमिक ट्रेन खुलने के 28 दिन बाद और लौकडाउन लगने के 65 दिन बाद लिया गया.
इस पर यह समझने की जरूरत है कि सुप्रीम कोर्ट ने यह निर्देश भी मात्र औपचारिक तौर पर दिया. जाहिर है, इतनी देर में अधिकतम जाने वाले मजदूर अपने गृह राज्य की तरफ निकल चुके थे. या तो वह पैदल अपने घर चले गए थे या रेल, बस व अन्य माध्यमों से खर्चा कर के. इस में सुप्रीम कोर्ट ने यह फैसला सिर्फ खुद के दामन को साफ करने के लिए दिया, ताकि आगे उन के ऊपर उंगली न उठ सके.
यह सुप्रीम कोर्ट की स्वायत्त होने पर भी सवाल खड़ा करते हैं कि सिर्फ प्रवासी मजदूरों के किराया में देरी से निर्देश ही नहीं, बल्कि देश में जब सब से नीचे गरीब मजदूरों की सामाजिक सुरक्षा पर हमला हो रहा था, पुलिस लाठियोंडंडों से उन पर ताबड़तोड़ हमला कर रही थी, उस समय सुप्रीम कोर्ट इस पूरे प्रकरण में मूक बन कर देखती रही.
सरकार के झूठे वायदों की कलह खुली
इस रिपोर्ट के अनुसार यह समझ आता है कि केंद्र से ले कर राज्य सरकारें मजदूरों को ले कर सिर्फ राजनीति करती रही. पहले से ही बेहाल मजदूरों को और परेशान किया गया. फटेहाल मजदूरों से ट्रेन का किराया वसूला गया और मीडिया में आ कर सरकारें मजदूरों को ले कर झूठे दावे ठोंकती रहीं.
जब कि हकीकत उलट है. पहले तो मजदूरों को लंबे समय तक जबरन डंडे के दम पर भूखे, प्यासे रोका गया. 37 दिन बाद ट्रेन व्यवस्था खोली भी गई, तो इसे मजदूरों के लिए इतना जटिल और खर्चीला बनाया गया कि उन के लिए ‘कंगाली में आटा गीला’ वाली बात हो गई. अधिकतम मजदूर, जिन्हें श्रमिक ट्रेन के लिए आवेदन करना नहीं आता था, उन्हें अपने ठेकेदार या जानकार से पैसे दे कर आवेदन करवाना पड़ा. उस के बाद जैसेतैसे उन में से सक्षम मजदूर ट्रेन तक पहुंचने में कामयाब भी हुए तो उन से किराया वसूल किया जाने लगा.
मजदूरों के किराया देने की स्थिति के बाद भी उन्हें ट्रेन में भोजन, पानी की आधारभूत सुविधाओं से वंचित किया गया. कई मजदूरों ने रेलवे प्रशासन द्वारा ट्रेन में बासी (खराब) खाना दिए जाने की शिकायत भी की. वहीं कई ट्रेनें अपने रास्तों से भटकती भी पाई गईं. जिस के भीतर भूख और प्यास से मजदूरों के मरने की खबर भी आई.
सरकार ने देश के गरीबों को बुरे समय में उन के हाल पर यों ही मरने के लिए छोड़ा. बचीखुची पाईपाई तक उन से ली. सरकार ने ट्रेन व्यवस्था शुरू करते हुए कहा था कि मजदूरों से किसी प्रकार का किराया वसूल नहीं किया जाएगा. लेकिन मजदूरों के हाथो में रेल की टिकटें और स्वान की रिपोर्ट ने यह दिखा दिया है कि सरकार के ये सारे दावे फर्जी साबित हुए.