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सुशांत की मौत के बाद सोनाक्षी सिन्हा के इस बयान पर फूटा लोगों का गुस्सा, ऐसे सुनाई खरी खोटी

सुंशात के मौत से अभी पूरा देश सदमें में है. वहीं कुछ तबका बॉलीवुड पर सोशल मीडिया  के जरिए निशाना भी बना रहा है. सुशांत के जाने का गम उनके परिवार के साथ-साथ पूरे को है.

सुशांत अपने परिवार के एकलौते चिराग थें. उन्होंने अपने जीवन में जो कुछ चाहा था वह सबकुछ उन्हें मिला था. सुशांत के जाने के बाद सोशल मीडिया पर कई तरह के सवाल जवाब चल रहे हैं.

वहीं फिल्म अभिनेत्री सोनाक्षी सिन्हा ने ट्वीट करते हुए लिखा था कि ‘सुअरों के साथ लड़ने में परेशानी यह है कि आप गंदे हो जाते हो और उन्हें मजा आ जाता है’.

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आगे उन्होंने लिखा कुछ लोगों के लिए यह एक मुद्दा है और हमारी इंडस्ट्री ने एक कलाकार खो दिया है. सोनाक्षी के इस ट्वीट को देखने को बात लोगों ने उन्हें कमेंट करना शुरू किया और उन्हें नेपोटिज्म का शिकार भी बनाया.

एक यूजर ने कमेंट करते हुए लिखा तब कहा थी आप जब वह परेशान था, उसे डिप्रेशन की दवा खानी पड़ रही थी. उस वक्त आप सभी को एक-दूसरे का साथ देना चाहिए लेकिन तब तो आपने फोन पर हाल भी नहीं पूछा होगा.

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सोनाक्षी को लोगों ने खूब खरी-खोटी सुनाई. और कहां आपका यह परिवार एक साल से कहा था. अब जाने के बाद उसे याद कर रहे हैं. और उसके ऊपर प्यार बरस

अभी भी कुछ लोगों को भरोसा नहीं हो रहा है कि सुशांत सिंह राजपूत इस दुनिया में नहीं है. सभी को छोड़कर जा चुके है.

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सुशांत के परिवार वालों का बुरा हाल है. उन्होंने आखिरी पोस्ट अपने मां के नाम लिखा था. वह हर वक्त अपने मां को बहुत ज्यादा मिस करते थें.

सुशांत के पापा का बहुत बुरा हाल है. वह खुद को संभाल नहीं पा रहे हैं.

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हर मां चाहती है कि उसके बच्चे को भरपूर पोषण मिले, इसके लिए वह बच्चे के जन्म लेते ही उसे अपना दूध पिलाती है, चाहे उसे इसके लिए कितनी भी पीड़ा क्यों सहनी पड़े. आखिर ये रिश्ता होता ही ऐसा है. मां से अपने बच्चे की पीड़ा देखी नहीं जाती. वह जानती है कि अगर बच्चे को हैल्थी रखना है, उसकी इम्युनिटी को बढ़ाना है तो उसे मां का दूध पिलाना ही होगा

लेकिन कई बार ऐसी स्थिति  जाती है जब मां चाहा कर भी अपने बच्चे को दूध नहीं पिला पाती. जैसे कई बार स्तनों में दूध नहीं आता या फिर अधिक दूध आने के कारण स्तनों में अत्यधिक पीड़ा होती है या जौब के कारण मजबूरन उसे अपने बच्चे का पेट भरने के लिए  फार्मूला मिल्क का सहारा लेना ही पड़ता है. जो भले ही बच्चे की भूख को शांत कर दे लेकिन इससे बच्चे को सभी जरूरी न्यूट्रिएंट्स नहीं मिल पाते हैं, जो आगे चलकर उसमें कई कमियों का कारण भी बन सकते हैं

लेकिन अब नई टेक्नोलॉजी के आने के कारण हमारा जीवन आसान हो गया है. हमारे सामने आज ढेरों विकल्प होते हैं. इसी में एक है ब्रैस्ट पंपअब ऐसे ब्रैस्ट पंप्स  गए हैं जिसने मां की परेशानी को दूर करने का काम किया है

क्या है ब्रैस्ट पंप 

ब्रैस्ट पंप एक ऐसा यंत्र है, जिसकी मदद से मां अपने दूध को संग्रहित करके रख सकती है और जब बच्चे को इसकी जरूरत हो आसानी से पिलाया जा सकता है. एक बार दूध संग्रहित होने के बाद मां दूसरे काम भी आसानी से टेंशन फ्री हो कर कर सकती है. हर मां के मन में ये सवाल जरूर आता है कि कहीं ब्रैस्ट पंप के इस्तेमाल से हमें दर्द तो नहीं होगा या फिर बच्चे को इस दूध से कोई नुकसान तो नहीं पहुंचेगा. तो आपको बता दें कि ये पूरी तरह से सेफ है. बस आप पंप की साफ़ सफाई का खास ध्यान रखें

आपको बता दें कि ब्रैस्ट पंप वैक्यूम के कारण काम करते हैं. जब इन पंप्स को दोनों स्तनों पर अच्छे से लगाया जाता है तो वैक्यूम के कारण स्तनों से दूध निकल कर पंप से जुड़ी हुई बोतल में भरने लगता है. जिन्हें आप आसानी से फ्रिज में स्टोर करके रख सकती हैं. बस इस बात का ध्यान रखें कि बच्चे को दूध तभी पिलाएं जब दूध नोर्मल टेम्परेचर पर जाए. इससे जहां आपको सुविधा होगी वहीं आपके बच्चे को सभी जरूरी न्यूट्रिएंट्स भी मिल जाएंगे

वैसे को मार्केट में आपको ढेरों ब्रैस्ट पंप मिल जाएंगे. लेकिन सवाल है बच्चे की हैल्थ का जिससे कोई समझौता नहीं हो सकता. ऐसे में मेडेला फ्लेक्स ब्रैस्ट पंप का जवाब नहीं. क्योंकि उन्होंने एक मां की जरूरतों को ध्यान में रखकर ब्रेस्ट पंप बनाए हैं. जिसमें  हैल्थ भी और कम्फर्ट भी. चाहे बच्चा जन्म से पहले जन्मा  हो, स्तनों से दूध बाहर पा रहा हो, ऐसे में उच्च क्षमता वाले मेडेला फ्लेक्स ब्रैस्ट पंप मां के दूध को स्तनों से आसानी से बाहर निकाल के  बच्चे तक मां के दूध को पहुंचाने का काम करते हैं. इसके अधिकांश पम्प में 2 फेज एक्सप्रेशन टेक्नोलोजी है, जो काफी यूनिक है

तो फिर मेडेला फ्लेक्स ब्रैस्ट पंप से आप भी रहें रिलैक्स और बच्चे को भी दें पूरा पोषण. साथ ही में अपनी पर्सनल और प्रौफेशनल लाइफ का भी रखें ख्याल.

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सुशांत के जाने का सदमा बर्दाश्त नहीं कर पाई भाभी, हुई मौत

सुशांत सिंह राजपूत इस दुनिया को अलविदा कह दिए हैं लेकिन उनके घर में लगातार दुखों का पहाड़ टूट रहा है. सुशांत के मौत से लोग उबर ही नहीं पाए थे कि उनकी भाभी की मौत हो गई है.

उनकी भाभी को जब से पता चला था सुशांत के आत्महत्या का उस दिन से उन्होंने खाना पीना छोड़ दिया था. सदमें की वजह से उनकी मौत हो गई है.

सुशांत के परिवार में मातम छा गया है. उनके पापा कि हालत भी खराब लग रही है. उन्हें जैसे –तैसे संभाला जा रहा है.

 

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सुशांत की कजिन भाभी पूर्णिया में रहती थी. वह देवर के जाने का गम बर्दाश्त नहीं कर पाई. मुंबई पुलिस ने पूरी छानबीन के साथ यह बताया है कि सुशांत ने आत्महत्या कि है. जबकी परिवार वालों का कहना है कि वह कभी इस तरह का कदम नहीं उठा सकते हैं.

सुशांत की बहन ने इस बात का खुलासा किया है कि वह बीते कुछ दिनों से अपने निजी कारणों से परेशान थे. इस बात का जिक्र उन्होंने अपने फैमली में भी किया था. लेकिन इस तरह के कदम उठाएंगे मुझे समझ नहीं आ रहा है.

परिवार वालों ने सीबीआई जांच की मांग की है. उन्हें समझ नहीं आ रहा है उनका बेटा ऐसे कैसे उनसे दूर चला गया.

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सुशांत की उम्र सिर्फ 34 साल थी. उन्होंने अपने जीवन में जो कुछ चाहा वह सब मिला लेकिन इस तरह से दुनिया छोड़कर चले जाना सभी को दुखी कर दिया है.

घर वालों ने इस बात का खुलासा किया है कि उनकी शादी भी इस साल के नवंबर में होने वाली थी. सभी लोग शादी कि तैयारी मे जुटे हुए थे.

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किसी को अंदाजा नहीं था शादी से पहले वह सभी को छोड़कर चले जाएंगे. सुशांत बेहद ही सुलझा हुआ इंसान थे. उनकी आखिरी फिल्म राब्ता थी.

मिर्च की फसल में लगने वाले  कीट और रोग

मिर्च एक ऐसा मसाला है, जो लोगों की जिंदगी को तीखा और चटपटा बना देता है. यह हर घर की रसोई में पाई जाती है, इसलिए दुनियाभर में इस की मांग बनी रहती है. बहुत से किसान इस की खेतीबारी से रोजीरोटी कमाते हैं. पर इस में कुछ कीट और रोग ऐसे लग जाते हैं, जो फसल को नुकसान पहुंचाते हैं. आइए, जानते हैं उन के बारे में :

पीली माइट कीट

यह पीले रंग की छोटी माइट है. यह आकार में इतनी छोटी होती है, जो आसानी से दिखाई नहीं देती है. इस का प्रकोप होने पर परर्ण कुंचन (लीफ कर्ल) की तरह पत्तों में सिकुड़न आ जाती है.

इस कीट के शिशु और प्रौण दोनों ही पत्तियों का रस चूस कर हानि पहुंचाते हैं. इस का अत्यधिक प्रकोप होने पर पौधों की बढ़वार एकदम रुक जाती है और फलनेफूलने की क्षमता अकसर समाप्त हो जाती है.

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मिर्च का रसाद कीट

(थ्रिप्स)

प्रौण कीट 1 मिलीमीटर से कम लंबा, कोमल और हलके पीले रंग का होता है. इस के पंख झालरदार होते हैं. ये अल्पायु कीट पंखरहित होते हैं. ये सैकड़ों की संख्या में पौधों की पत्तियों की निचली सतह पर छिपे रहते हैं और कभीकभी ऊपरी सतह पर भी पाए जाते हैं.

शिशु और प्रौण कीट मार्च से नवंबर माह तक मिर्च की पत्तियों का रस चूस कर हानि पहुंचाते हैं, जिस से पत्तियां मुड़ जाती हैं और ऊपरी भाग सूख जाता है.

प्रबंधन : यदि फसल में दोनों कीट नहीं आए हैं, तो नीम तेल 1500 पीपीएम की

3 मिलीलिटर दवा प्रति लिटर पानी में घोल

बना कर 15-15 दिन के अंतराल पर छिड़काव करते रहें.

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यदि दोनों कीट आ गए हैं, तो इमिडाक्लोप्रिड 17.8 एसएल की 10 मिलीलिटर दवा प्रति 15 लिटर पानी में घोल बना कर तुरंत छिड़काव करें.

आर्द्र गलन रोग

अंकुरण का कम होना, बीज का अंकुरण से पहले गल जाना, नर्सरी में अंकुरण के बाद पौधा सड़ कर गिरने लगता है आदि इस बीमारी की प्रमुख लक्षण हैं.

प्रबंधन : बीज का उपचार बोने से

पहले थीरम 2.0 ग्राम प्रति किलोग्राम बीज

के हिसाब से बीज को शोधित कर के बोना चाहिए.

जमाव होने के बाद 2 ग्राम कौपर औक्सीक्लोराइड को प्रति लिटर पानी में घोल बना कर नर्सरी में पौधों पर छिड़काव करना चाहिए.

शीर्ष मरण रोग (डाई बैक)

या फल सड़न

इस में पौधों के शीर्ष का भाग और शाखाएं ऊपर से नीचे की ओर सूखने लगती हैं. ऐसे पौधों के फल सड़ने लगते हैं और पौधे बौने रह कर सूख जाते हैं.

प्रबंधन : बीज को कार्बंडाजिम के

2.5 ग्राम दवा प्रति किलोग्राम बीज की दर से उपचारित कर के बोएं.

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खड़ी फसल में लक्षण दिखाई पड़ते ही मैंकोजेब एम 45 की 3 ग्राम दवा प्रति लिटर पानी में घोल बना कर तुरंत छिड़काव करें.

बुकनी रोग

इस में पत्तियों के निचले भाग पर सफेद चूर्ण जम जाता है, जिस से प्रभावित पौधे मुरझाने लगते हैं.

प्रबंधन : इस रोग की रोकथाम के लिए रोग रोधी किस्म का चयन करें. रोग का प्रकोप होने पर सल्फैक्स 3 ग्राम को प्रति लिटर पानी में घोल कर 10 दिन के अंतराल पर 2 से 3 बार छिड़काव करें.

गुरुचा या पत्ती मरोड़ रोग

यह बीमारी विषाणुजनित होती है, जो सफेद मक्खी द्वारा एक पौधे से दूसरे पौधे पर पहुंचाई जाती है.

इस रोग के प्रकोप से पत्तियां सिकुड़ कर कुरूप हो जाती हैं. प्रभावित पौधे में फल कम या नहीं लगता है.

प्रबंधन : इस रोग रोधी पौधों को उखाड़ दें और गड्ढा खोद कर इन बीमार पौधों को मिट्टी में दबा देना चाहिए.

सफेद मक्खी पर अच्छी तरह से नियंत्रण पाने के लिए इमिडाक्लोप्रिड 17.8 एसएल की

10 मिलीलिटर दवा प्रति 15 लिटर पानी में घोल बना कर तुरंत छिड़काव करें.

अधिक जानकारी के लिए कृषि विज्ञान केंद के वैज्ञानिकों से संपर्क करें.

मैं फिर हार गया: भाग 2

पर अच्छी बात यह थी कि उस का चयन देश के सब से प्रतिष्ठित आईआईटी में हो गया था. फर्स्ट न आने की अपनी असफलता को एक बुरा स्वप्न समझ कर वह आईआईटी चला गया और वहां हर साल वह पूरे आईआईटी में फर्स्ट आता रहा.  बाद में वह उच्च शिक्षा के लिए अमेरिका चला गया. और फिर वहीं उस को एक बड़ी कंपनी में शानदार नौकरी भी मिल गई.  अब वह कंपनी के दुबई औफिस का हेड था.  लगभग हर महीने वह किसी देश के टूर पर होता.  आज सबकुछ तो था अमित के पास.  पत्नीप्यारा सा बेटाबंगलागाड़ियांऔर बड़ा सा बैंक बैलेंसलेकिन फिर भी उस के दिल में एक शूल थाराहुल.

 आज इतने दिनों बाद उस को राहुल की याद आ गईतो मन विचलित हो गया.  क्या कर रहा होगा राहुल?  किसी बड़ी कंपनी में ऊंची पोस्ट पर होगा या अपनी कोई कंपनी खोल ली होगी?

 अपने स्कूली दिनों को याद करतेकरते पूरी रात बीत गई लेकिन अमित की आंखों में नींद कहां थी.  फर्स्ट न आ पाने की अपनी असफलता उस को अपनी हार जैसी लग रही थी.  ऐसे में उस के दिमाग में यह विचार भी आया कि वह स्कूल में भले ही राहुल को हरा न पाया हो लेकिन कामयाबी की इस दौड़ में वह जरूर राहुल को हराएगा.

 सुबह होतेहोते उस ने फैसला कर लिया था कि इस बार भारत जा कर वह राहुल को ढूंढ़ निकालेगा और उस को एहसास दिला देगा कि असल में अमित ही नंबर वन है.

 फिर अगले कुछ दिनों में अमित दिल्ली में था.  उस के मातापिता कभी दिल्ली में तो कभी उस के साथ दुबई में रहते थे.  डिफेन्स कौलोनी में अपने शानदार बंगले को देख कर अमित को अनायास ही राहुल का ध्यान आ गया.  उस के दोस्त कहते थे कि ऐसा शानदार बंगला पूरी दिल्ली में कहीं नहीं है.  अगर राहुल के पास ऐसा बंगला होता तो उन को जरूर पता होता.  अमित को अपनी पहली जीत का आभास सा हुआ तो उस के होंठों पर एक विजयी मुसकान फैल गई.

 अगले कुछ दिनों में अमित ने अपने सभी क्लासमेट्स को एक पार्टी देने का प्लान बनाया.  दिल्ली के सब से महंगे पांचसितारा होटल में उस ने पार्टी का प्रबंध किया था.  काफी सारे लोग आएलेकिन राहुल नहीं आया.  उस का क्लासमेट फैसल इसी होटल में जनरल मैनेजर था.  उसी ने बताया कि राहुल अपने शहर बिजनौर में ही रह कर किसी स्कूल में टीचर बन गया है.

 “स्कूल टीचर,” अमित ने एक व्यंग्यात्मक हंसी बिखेरी.

 यह जान कर कि राहुल किसी छोटे से स्कूल में टीचर हैअमित उस से मिलने के लिए बेचैन ही हो उठा.  अब तो अपनी हार का बदला लेने का अवसर उस को साफसाफ नजर आ रहा था.

 अगले दिन ही अमित ने अपनी बीएमडब्लू निकाली और बिजनौर की तरफ चल दिया.  राहुल का स्कूल ढूंढ़ने में उसे ज्यादा दिक्कत नहीं हुई.  वह स्कूल के गेट पर पहुंचा तो वौचमैन से राहुल के बारे में पूछा. वौचमैन ने अमित को ऊपर से नीचे तक देखा और बोला, ““बिलकुलयहीं तो काम करते हैं हमारे राहुल सर. आप कौन हैं वैसे?”

 सवाल के जवाब में अमित ने कुछ सोचते हुए कहा, ““हम एक ही स्कूल के हैं.””

 ““अरेआप राहुल सरजी के दोस्त हैं. आइए नमैं ले चलता हूं आप को उन तक.””

 ““नहींनहींमैं इंतजार कर कर लूंगाकोई बात नहीं,” अमित ने कहा और वह वहीं खड़ा हो कर स्कूल की छुट्टी होने का इंतजार करने लगा.

 दोपहर बाद स्कूल की छुट्टी हो गई और थोड़ी देर बाद राहुल भी स्कूल से बाहर आता दिखाई दिया.  साधारण से कपड़े पहने राहुल अपनी स्कूटी पर बैठा ही था कि अमित उस के सामने आ गया.

 “हाय राहुल.  कैसे हो?  पहचाना?”  अमित ने राहुल की तरफ हाथ बढ़ाते हुए कहा.

 महंगे सूटबूट पहने अमित को एक क्षण के लिए तो राहुल पहचान ही नहीं पाया.

 “अरे यारमैं अमित.  हम लोग डीपीएस में साथ पढ़ते थे,” अमित ने राहुल को याद दिलाते हुए कहा.

 “अरेअमित,  तुम यहां?  सौरी इतने दिनों बाद देखा तो एकदम से पहचान नहीं पाया,”  राहुल ने अमित का हाथ अपने हाथों में लेते हुए बड़ी खुशी से कहा.

 “वह मैं जरा अपनी कंपनी के काम से चांदपुर आया था.  फैसल ने बताया था तुम आजकल बिजनौर में ही होते होतो सोचा मिलता चलूं,” अमित ने अपनी कंपनी‘ पर जोर देते हुए कहा. राहुल बात का जवाब देताउस से पहले ही उस का फोन बज उठा.

 राहुल ने फोन उठा लिया और हैलो’ कहते ही रुक कर सुनने लगा और फिर बोला, ““सब ठीक है यहांतुम बताओ,” फिर रुक कर कहा, ““हांतुम मेल भेज दो मैं आगे फौरवर्ड कर दूंगा.

 अमित राहुल की बात ध्यान से सुन रहा थाबोला, ““स्कूल का काम?”

 “”अरे नहींएक स्टूडेंट हैं सिंगापुर में रहता हैप्रोफेसर है. जिस कालेज में वह पढ़ाता है वहां एक हिन्दी के प्रोफेसर के लिए जगह खाली है उसी के लिए पूछ रहा था. मैं हिन्दी के प्रोफेसर को मेल सेंड करने की बात कर रहा था.

 “”अच्छा,”” अमित ने कहा.

 पिछली छोड़ी हुई बात को आगे बढ़ाते हुए राहुल ने कहा, ““यहां आ कर तुम ने बहुत अच्छा किया.  चलोबाकी बातें घर चल कर करेंगे.”

  राहुल अमित से मिल कर बहुत खुश नजर आ रहा था.

 “अरेभाभी को परेशान करने की क्या जरूरत है. चलोआज तुम्हें किसी फाइवस्टार होटल में लंच कराता हूं,” अमित के दिल को धीरेधीरे बड़ा आनंद आ रहा था.

 “परेशानी कोई नहीं है.  और यहां बिजनौर में तुम्हें कोई फाइवस्टार होटल नहीं मिलेगा,”  राहुल ने हंसते हुए कहा.

मैं फिर हार गया: भाग 1

“सरएक बार फिर से बेस्ट सीईओ का अवार्ड जीतने पर आप को लखलख बधाइयां,” औफिस में साथ काम करने वाले हरविंदर ने अमित को गले लगाते हुए कहातो वहां मौजूद सभी लोगों ने तालियों से अमित का अभिवादन किया.

 “थैंक्यू वैरी मच.  आप सभी की शुभकामनाएं मेरे लिए बहुत माने रखती हैं.  आप सब के सहयोग से ही मैं लगातार दूसरी बार यह अवार्ड जीत पाया हूं.  थैंक्स अगेन,”  अमित ने सभी सहकर्मियों का आभार प्रकट करते हुए कहा.

 “सरखाली थैंक्यू से काम नहीं चलेगा.  पार्टी देनी होगी,” राकेश ने हंसते हुए कहा तो सभी लोग पार्टी…पार्टी’ चिल्लाने लगे.

 “हांक्यों नहीं.  जब और जहां आप सब कहें,”  अमित ने भी हंसते हुए जवाब दिया.

 “सरबुर्ज खलीफा में एक बड़ा अच्छा इटालियन रेस्टोरेंट है.  उस से अच्छा इटालियन खाना पूरे दुबई में कहीं नहीं मिलेगा,”  नवेद ने एक रेस्टोरेंट का नाम सुझाया.

 “हांमैं भी वहां जा चुका हूं.  वाकई वह दुबई का नंबर वन रेस्टोरेंट है,” वर्मा जी ने नवेद से सहमति जताते हुए कहा.

 “फिर तो पार्टी वहीं होनी चाहिए.  वैसे भीहमारे अमित सर हर बात में नंबर वन हैं तो पार्टी भी नंबर वन रेस्टोरेंट में होनी चाहिए,”  यासिर ने उंगली से एक नंबर का इशारा करते हुए कहा तो सब के साथसाथ अमित भी हंसने लगा.

 “सही में. सर,  यू आर द बेस्ट एंड नंबर वन,”  पन्नेलाल ने अमित की तारीफ करते हुए कहा.

 “सरआप तो स्कूल कालेज में भी हमेशा नंबर वन रहे होंगे,” आबिद ने कहा तो अमित की हंसी को मानो ब्रेक लग गया.  एकदम से उस को राहुल की याद आ गई.

 राहुल.  अमित के पूरे जीवन में एकमात्र ऐसा व्यक्ति जो कभी उस से आगे निकला हो.  वह भी एकदो बार नहींपूरे 4 साल वह क्लास में पहले नंबर पर आता रहा और अमित दूसरे नंबर पर. फिर पूरे दिन अमित का मन खिन्न सा रहा.  रहरह कर उस को अपने स्कूल और राहुल की याद आती रही.  रात को बिस्तर पर लेटने के बाद भी नींद उस की आंखों से कोसों दूर थी.  ऐसा लग रहा था मानो कल की ही बात हो जब वह पहली बार दिल्ली पब्लिक स्कूल आया था.  8वीं कक्षा तक की पढ़ाई उस ने देहरादून के सब से मशहूर दून पब्लिक स्कूल से की थी.  उस के पापा बड़े सरकारी अफसर थे और उन का ट्रांसफर दिल्ली हो गया तो अमित को भी देहरादून से दिल्ली आना पड़ा.

 बचपन से अमित पढ़नेलिखने में बहुत अच्छा था और हमेशा ही क्लास में फर्स्ट आता था.  स्कूल के सारे टीचर उस से बहुत खुश थे.  मनुज सर ने तो भविष्यवाणी कर दी थी कि अमित एक महान वैज्ञानिक या इंजीनियर बनेगा.

 9वीं क्लास में रिजल्ट आने से पहले ही अमित को पूरा विश्वास था कि वह यहां भी फर्स्ट आएगालेकिन जब उस ने रिजल्ट देखा तो उस को मानो एक झटका सा लगा.  उसे अपनी आंखों पर यकीन ही नहीं आ रहा था कि वह क्लास में दूसरी पोजीशन पर था.  क्लास में ज्यादा किसी से बात न करने वाला राहुल फर्स्ट आया था. उसे विश्वास ही नहीं हो रहा था कि बिजनौर जैसे छोटे शहर से आया राहुल कभी उसे पछाड़ कर फर्स्ट आ सकता है.

 अब तो मानो अमित पर एक जनून सा छा गया.  भले ही इस बार राहुल तुक्के से फर्स्ट आ गया हो लेकिन अगली बार वह उस को अपने आसपास भी नहीं आने देगा.  अमित ने पढ़ाई में अपनी पूरी ताकत लगा दी.  10वीं की परीक्षा में उस ने अपना सर्वश्रेष्ठ प्रदर्शन दियालेकिन नतीजा वही निकला.  राहुल न केवल क्लास में बल्कि स्कूल के साथसाथ पूरे देश में फर्स्ट आया था और अमित सेकंड.

 अमित के मम्मीपापा उस की सफलता पर बेहद खुश थेलेकिन अमित तो दुनिया का सब से दुखी इंसान बना हुआ था.  पूरे दिन वह अपने कमरे से बाहर नहीं निकला.  उस के मम्मीपापा ने उस को बहुत समझाया कि सेकंड आना कोई विफलता नहीं हैलेकिन अमित पर इन सब बातों का कोई प्रभाव नहीं पड़ा.  अब उसेबसएक ही बात कचोट रही थी कि वह राहुल से पीछे कैसे रह गया.

 एक बार फिर से अमित ने अपनेआप से वादा किया कि वह इस बार जरूर फर्स्ट आएगा.  वह फिर से पढ़ाई में डूब गया.  अगले 2 साल अमित ने सबकुछ भुला दियादोस्तमूवीजक्रिकेटसबकुछ.  उस का एक ही लक्ष्य थाक्लास में फर्स्ट आना.  लेकिन प्रकृति को तो कुछ और ही मंजूर था. न सिर्फ 11वीं बल्कि 12वीं क्लास में भी राहुल ही फर्स्ट आया था और अमित सेकंड.  अमित बुरी तरह टूट चुका था.  99 प्रतिशत से भी ज्यादा अंक लाने के बाद भी वह दुखी था. कई बार उस के मन में स्वयं को समाप्त कर लेने का विचार आयालेकिन मम्मीपापा का ध्यान आते ही उस ने ऐसा कुछ भी करने का विचार त्याग दिया.

मैं फिर हार गया: भाग 3

“अरे यार, तुम्हारे घर तक मेरी गाड़ी चली भी जाएगी या नहीं?” अमित ने व्यंग्य का एक और तीर फेंका.

“हां, यह प्रौब्लम तो है.  चलो, तुम्हारी गाड़ी मैं अपने एक मित्र के घर खड़ी करा दूंगा. उस का घर पास ही है,” राहुल अमित के व्यंग्य को समझ नहीं पाया.

“”अच्छा, चलो आओ, बैठो, चलते हैं,” अमित ने अपनी नई कार की ओर अहंकार से देखते हुए कहा.

“”लेकिन मेरा स्कूटर…चलो छोड़ो, इसे बाद में ले जाऊंगा.””

अमित और राहुल कार में बैठे और आगे बढ़ गए. रास्ते में राहुल और अमित स्कूल के क्लासमेट्स की बातें कर रहे थे कि बगल में पुलिस की गाड़ी चलती दिखाई दी. गाड़ी से एक पुलिस वाले ने राहुल की तरह हाथ हिलाया तो राहुल ने अमित को कार साइड में रोकने के लिए कहा. पुलिस की गाड़ी भी साथ में आ कर रुक गई. गाड़ी में से 2 पुलिस वाले बाहर निकले. उन में एक ठाटबाट वाला सीनियर इंस्पेक्टर और एक हवलदार था. दोनों ने राहुल को देखा और कहा, ““नमस्ते, राहुल सर.””

““कैसे हो, बहुत दिन बाद मिले हो,”” फिर अमित का परिचय कराते हुए कहा, ““ये मेरे दोस्त हैं अमित, विदेश में बड़ी कंपनी में उच्च अधिकारी हैं.”

“”नमस्ते,”” सीनियर इंस्पेक्टर ने अमित से कहा और फिर राहुल की तरफ मुखरित हो कर बोला, “”सर, बेटे का एडमीशन आप के स्कूल में कराना है, सोचा, एक बार खुद ही आप से कह कर सुनिश्चित कर लूं कि आप ही उसे पढ़ाएंगे. आप ने मुझे पढ़ालिखा कर यहां तक पहुंचा दिया है, तो मेरे बेटे को भी आप से सीखने का मौका मिले, इस से ज्यादा अच्छा और क्या हो सकता है.””

“”अरे, तुम मुझे यह कौल कर के कह देते,” राहुल ने कहा.

““बिलकुल नहीं, ऐसा अनादर कैसे कर सकता हूं मैं. मैं तो कल आने वाला था आप से मिलने, पर आप आज ही दिख गए.””

““अच्छा, चलो यह भी सही ही हुआ.”

कुछ देर घरबार की बात कर राहुल अमित के साथ वापस कार में बैठ गया.अमित ने सब ध्यान से सुना और राहुल का इतना आदर देख कर थोड़ा चौंका भी.

राहुल के दोस्त की गली में जब अमित की लंबीचौड़ी व महंगी कार पहुंची तो लोगों की नजरें भी कार के साथसाथ चलने लगीं. अमित के चहरे पर अत्यंत खुशी के भाव उभरने लगे थे. कार राहुल के दोस्त के घर से बाहर निकली तो लोग और बच्चे “नमस्ते राहुल सर”” कहते हुए आनेजाने लगे. अमित ने कार खड़ी की और राहुल के साथ उस के घर की तरफ बढ़ने लगा.

“मैं तो सोच रहा था, तुम किसी बड़ी कंपनी में इंजीनियर बन गए होगे. यह तुम टीचर कहां बन बैठे,”  पैदल चलतेचलते अमित ने राहुल से कहा.

“मैं तो हमेशा से टीचर ही बनना चाहता था,” राहुल ने संक्षिप्त सा उत्तर दिया.

“अच्छा, अगर टीचर ही बनना था तो यह फटीचर स्कूल ही रह गया था.  तुम कहो तो अमेरिका या इंग्लैंड में किसी से बात करूं.  यों चुटकियों में तुम्हारा चयन करा दूंगा. या कहो तो दिल्ली या दुबई में एक स्कूल ही खुलवा देता हूं.  दोस्तों के लिए इतना तो कर ही सकता हूं.” अमित ने बड़े गर्व के साथ राहुल से कहा.

“अरे भाई, मैं भी इसी स्कूल में पढ़ चुका हूं.  हां, स्कूल की बिल्डिंग जरूर पुरानी है लेकिन यहां की पढ़ाई पूरे जिले में सब से अच्छी मानी जाती है.” अपने स्कूल के बारे में बताते हुए राहुल की आंखों में एक चमक सी थी.

“और तुम्हारे औफर के लिए धन्यवाद, लेकिन मैं यहीं खुश हूं,” राहुल ने मुसकराते हुए कहा तो अमित को थोड़ी निराशा सी हुई.

“लेकिन इस छोटे से शहर में रह कर तुम कितनी तरक्की कर पाओगे?  अपना नहीं तो अपने बच्चों के बारे में सोचो.  कल उन को भी किसी बड़े शहर जाना ही होगा.  मेरी मानो तो मेरे साथ दुबई चलो.  चाहो तो मेरी कंपनी में जौब कर लेना या फिर तुम्हें किसी स्कूल में सेट करा दूंगा,” अमित ने राहुल को समझाने की कोशिश की.

राहुल के घर जाने तक गली के कई लोग राहुल को ‘नमस्ते सर’ कहते सत्कार व्यक्त करने लगे. अमित के साथ कभी ऐसा नहीं हुआ था. राहुल के प्रति लोगों के इस प्रकार के सत्कारभाव को देख वह थोड़ा सकुचाया.

एक आदमी अपने बेटे को ले कर जा रहा था और राहुल को देख, रुक कर कहने लगा, ““अरे सर, कैसे हैं आप. सब बढ़िया तो है न?”

“”हां, सब ठीक है, आप बताइए.””

““हम भी बहुत अच्छे हैं. यह पिंकू जब से आप की क्लास में गया है, इतना तेज हो गया है कि हर समय गणित के जाने कैसेकैसे प्रश्न पूछने लगता है, हम तो कान पकड़ लेते हैं,” कह कर वह आदमी हंसने लगा. उसे देख राहुल भी हंस दिया.

अमित यह सब देखसुन असमंजस में पड़ गया. क्या उसे कभी इतना सम्मान, इतना प्यार मिला है लोगों से? वह जहां काम करता है वहां तो जिस की जेब में जितने बड़े नोट हैं उतनी ही बड़ी उस की इज्जत है या कहें उतना ही लोग उसे भाव देते हैं. यहां तो राहुल के साधारण होने पर भी लोग जहां देखते उस के आगेपीछे लग जाते. वह तो किसी को इस तरह का कोई लाभ भी नहीं पहुंचा सकता जिस के लालच में लोग ये सब करते हों. जिस तरह राहुल के छात्रों ने उसे याद रखा है और रख रहे हैं, क्या ऐसा कोई है जो अमित को याद रखेगा?

अमित यह सब सोच ही रहा था कि चलतेचलते राहुल का घर भी आ गया.  2 कमरों का छोटा सा घर था, लेकिन सबकुछ बड़ा व्यवस्थित और साफसुथरा था.

“ये हैं मेरे स्कूल के मित्र अमित.  विदेश में रहते हैं.  आज कितने ही सालों के बाद मिले हैं.  जल्दी से कुछ खाना खिलवाओ,”  राहुल ने अमित का परिचय अपनी पत्नी से कराते हुए कहा.

राहुल की पत्नी ने झटपट गर्मागर्म रोटी और सब्जी परोस दी.  अमित ने इतना स्वादिष्ट खाना कई वर्षों बाद खाया था.

“सच कह रहा हूं भाभीजी,  इतना स्वादिष्ट खाना मैं ने शायद पूरे जीवन में कभी नहीं खाया,” अमित ने दिल से खाने की तारीफ करते हुए कहा.

खाने के बाद अमित ने फिर से राहुल को दुबई चलने का औफर दे डाला.  इस बार राहुल थोड़ा गंभीर हो कर बोला, “यह सच है कि मैं बहुत ही मामूली पगार पर काम कर रहा हूं और मेरा घर भी छोटा सा है, लेकिन जो चीज मुझे यहां रोकती है वह है मेरी आत्मसंतुष्टि.  बचपन से ही मैं एक टीचर बनना चाहता था.  एमएससी और पीएचडी करने के बाद देशविदेश से मुझे कई औफर आए, लेकिन मैं ने अपने शहर के इस स्कूल को ही चुना क्योंकि मैं अपने शहर के लिए कुछ करना चाहता था.

“जानते हो, पहले यहां 10 में से एक छात्र ही इंजीनियरिंग या मेडिकल कालेज में एडमीशन ले पाता था.  मैं अपनी तारीफ नहीं कर रहा लेकिन पिछले 10 सालों में मेरे स्कूल से  50 बच्चे मेडिकल और 100 से ज्यादा बच्चे इंजीनियरिंग कालेज में प्रवेश ले चुके हैं.  इन बच्चों की सफलता मुझे वह खुशी और आत्मसंतुष्टि देती है जो शायद किसी कंपनी का सीईओ बनने पर भी नहीं मिलती.  और अगर अपना मन खुश है तो चाहे बिजनौर में रहो या बेंगलुरु या फिर बोस्टन, इस से कोई फर्क नहीं पड़ता.  और फिर यहां मेरी पत्नी और बच्चे भी खुश हैं. मुझे और क्या चाहिए.”   राहुल के चेहरे पर आत्मसंतुष्टि की चमक थी.

और दूसरी तरफ अमित हैरान था.  उस को याद आ रही थी अपनी तनावभरी जिंदगी, न सेहत का ध्यान न परिवार संग बिताने के लिए समय.  कभीकभी तो उस को अपने बेटे के साथ डिनर किए हफ्तों बीत जाते.  छुट्टी के नाम पर साल में 2-4 दिन परिवार को कहीं विदेश घुमा लाता, उस में भी उस का फोन लगातार बजता रहता.  नौकरों के हाथों से बना खाना खाखा कर वह बचपन के स्वादिष्ट खानों का स्वाद ही भूल चुका था. इतनी कम उम्र में ही उस को हाई ब्लडप्रेशर और हलकी शुगर भी हो गई थी.

सामने दीवार पर राहुल, उस की पत्नी और उन के बेटे की तसवीर लगी थी.  सब कितने खुश नजर आ रहे थे.  वहीं दूसरी तरफ उस को अपनी पत्नी से लड़ने तक की फुरसत नहीं थी.  बेटे के स्कूल में क्या चल रहा है, उस को पता ही नहीं.  मम्मीपापा साल में कुछ दिन उस के साथ रहने आते तो उन से भी, बस, थोड़ीबहुत ही बातचीत हो पाती.

अब उस को लग रहा था कि राहुल तो कभी रेस में था ही नहीं, वह तो खुद अपनेआप से ही रेस लगा रहा था, और बारबार अपनेआप से ही हार रहा था.

“मैं फिर हार गया,”  अमित के मुंह से निकल गया.”कुछ कहा तुम ने,” राहुल ने उस को सवालिया नजरों से देखा.”कुछ नहीं,” अमित ने मुसकराते हुए कहा. अब उस को अपनी हार पर कोई दुख नहीं था.

 

फादर्स डे स्पेशल: मेरे पापा -7

उत्तर प्रदेश का एक जिला है प्रतापगढ़. उस की एक तहसील है कुंडा और उसी के नजदीक है एक गांव, जिसे लोग अधार का पुरवा कहते हैं. वहीं उन का जन्म हुआ. वे और कोई नहीं मेरे पिताजी थे जिन्हें मैं ‘बाबू’ कहती थी. सेवानिवृत्ति से पहले उन्होंने मेरी तथा मेरे 3 भाइयों व छोटी बहन की भी शादी कर दी थी. हम सब की पूरी पढ़ाई करा कर ही विवाह बंधन में बांधा.

अपनी मेहनत और लगन से उन्होंने पुलिस के गिनेचुने बहादुर अफसरों में अपना नाम लिखवाया. वीरता के 3 पुरस्कार लिए जिन में राष्ट्रपति द्वारा दिया गया ‘वीरता का पुलिस पदक’ भी शामिल था. मेरी बेटी के विवाह में मेरे बाबू बराबर व्यस्त रहे. बेटा यदि कहता ‘नाना, आप आराम से बैठ कर सब को काम बताइए’ तो उन का जवाब होता, ‘मैं पुलिस का जवान हूं, कैसे बैठ जाऊं.’  बाबू मेरे भतीजे तथा भतीजियों से पूछते, ‘क्यों, मैं कितने रन बना पाऊंगा?’ तो बच्चे हंस कर जवाब देते, ‘बाबा, आप पूरी सैंचुरी बनाएंगे.’ बाबू जोर से हंसते हुए कहते, ‘सौ नहीं, हां, 80 रन तो बना ही लूंगा.’ वे 78 साल की उम्र तक निरोग शरीर के स्वामी रहे.

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एक रात खाना खा कर सोए तो सोते ही रहे. कई साल बीत गए पर अभी भी लगता है बाबू हम लोगों को बुलाते हुए अपने कमरे से बाहर आ रहे हैं. हम सब भाईबहनों के लिए जो उन्होंने हमारे बचपन में योजनाएं बनाईं, बड़े हो कर हम सब वही बने. मेरे बाबू, अब सिर्फ यादों में बसते हैं, पर महसूस होता है कि आसपास ही कहीं हैं.

कृष्णा सिंह, इलाहाबाद (उ.प्र.)

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मैं समाज में देखती हूं कि लड़के की गलती पर भी लड़की को डांट पड़ती है लेकिन हमारे घर में यदि मुझ से कोई गलती होती है तो पापा, मेरे भाइयों को डांट लगाते. इस से मुझे भी अपनी गलती का एहसास हो जाता.

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बात कुछ समय पहले की है. हम माउंटआबू घूमने गए थे. इसी बीच 10वीं कक्षा का रिजल्ट आ गया. हमारे स्कूल से पापा के पास फोन आया और उन्होंने पापा को मेरे नंबर बताए व अखबार में देने के लिए फोटो मंगवाया. पापा ने वहीं पर मेरी पसंदीदा चौकलेट ली और मुझे बधाई देते हुआ कहा कि और तो यहां पर कुछ है नहीं, तुम ये चौकलेट्स सब को बांट दो. वहां पर काम कर रहे कारीगरों व मजदूरों में भी पापा ने चौकलेट बंटवाईं. और घर पर फोन मिला कर बारिश में ही मेरा फोटो स्कूल में भिजवाया. पापा के कारण ही आज मुझ में इतना आत्मविश्वास है कि मैं किसी भी गलत बात को सहन नहीं करती.

 

Crime Story: दहशत का सबब बनी डाटा लीक की आशंका

पिछले दिनों सोशल मीडिया में एक लड़की ने अपना एक ऐसा सच साझा किया, जिसको पढ़कर या जानकर अब हजारों लोगों की नींद उड़ी हुई है. लड़की ने जो अनुभव साझा किया है वह यह है कि उसने अपने न्यूड्स प्राइवेटली अपने बॉयफ्रेंड को पोस्ट किये थे. बाद में उन दोनों ने ही  इन्हें डिलीट कर दिया, लेकिन उनके डिलीट कर दिये जाने के बाद भी किसी ने उन्हें क्लाउड से निकालकर सार्वजनिक कर दिया. इस दुर्घटना से वह बात सच साबित हो रही है कि एक बार इंटरनेट के माध्यम में कोई चीज पहुंच जाये तो फिर वह कभी खत्म नहीं होती. भले हमें वो न दिखे लेकिन अगर कोई आपराधिक इरादे से इंटरनेट में मौजूद हमारी खुराफातों को ढूंढ़कर सार्वजनिक रूप से हमें बेनकाब कर दे तो इसमें किसी किस्म की अतिश्योक्ति नहीं होगी.

एक मशहूर कहावत है कि जो पकड़ा जाये, उसे ही अपराधी माना जाता है वरना तो हर कोई किसी न किसी रूप में अपराधी ही होता है. इस बात को अगर हम एकांत के सेक्सुअल खुराफातों के दायरे में ले जाकर देखें तो शायद ही कोई ऐसा हो, जिसने कभी न कभी सेक्स संबंधी कोई खुराफात या हरकत न की हो. लेकिन जिस तरह उस लड़की ने बताया कि क्लाउड से डिलीट की गई तस्वीरें निकालकर सार्वजनिक की गई, उससे हर किसी को यह घटना डरा रही है. क्योंकि हर किसी के पास कोई न कोई छिपायी हुई बात है, जिसके अब सार्वजनिक हो जाने के खतरे पैदा हो गये हैं.

Crime Story: अपनी जिद में स्वाह

अगर किसी दिन हममें से हर किसी का कोई टेक्स्ट, चैट, ईमेल, न्यूड, गंदी बात, फेक अकाउंट, गॉसिप, पोर्न हिस्ट्री, कुल मिलाकर सोशल मीडिया पर की गई हर अच्छी व हर खराब बात लीक हो जाये? तो क्या होगा? यह कई लोगों के लिए सार्वजनिक रूप से की गई सोशल आत्महत्या के जैसे होगी. क्योंकि जो कुछ छिपा हुआ है, उसके सामने आ जाने से उनका मौजूदा व्यक्तित्व तहस-नहस हो सकता है. क्योंकि सेक्स के मामले में हमारे यहां जो असहजता है, उसके कारण हम सबको अपनी तमाम जिज्ञासाओं का निदान छुपते छुपाते प्रयोग के तौरपर ढूंढ़ना पड़ता है. कई बार यह प्रयोग इस हद तक बिगड़ जाता है कि उसे जीवनभर दफन करके जीना पड़ता है. अगर वह सार्वजनिक हो जाये तो हमारी मौजूदा छवि टुकड़े टुकड़े हो जाये.

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यही वजह है कि आज की तारीख में पर्सनल डाटा इस कदर सेंसिटिव मुद्दा बन गया है कि हर कोई चाहे वो आम हो या खास इसके लीक हो जाने की आशंका से डरा रहता है. ऐसा इसलिए भी है क्योंकि आज की तारीख में हम रोजमर्रा की जिंदगी में इतनी तेज रफ्तार गतिविधियों से गुजरते हैं कि पता ही नहीं चलता कि हम अपने आपको कब जोखिम में डाल लेते हैं. दरअसल आज सरकारी राशन पानी तक के लिए बायोमेट्रिक्स का इस्तेमाल हो रहा है. प्रदर्शनस्थलों पर चेहरा पहचानने वाले कैमरे लगाये जाते हैं. कई बार हमें पता ही नहीं होता, हमें लगता है कि हमें कोई नहीं देख रहा और हम कोई ऐसी हरकत कर बैठते हैं, जिसके सार्वजनिक खुलासे से शर्मसार हो जाएं. लेकिन हमारी इन हरकतों को घटनास्थल पर छिपा सीसीटीवी कैमरा पूरी तरह से रिकाॅर्ड कर लेता है. पिछले सालों में दिल्ली मेट्रो स्टेशनों में ऐसे छिपे सीसीटीवी कैमरों में सैकड़ों ऐसी ही हरकतों को कैद किया था, जिनके खुलासों से हड़कंप मच गई थी. यह अलग बात है कि इन खुलासों में ही धीरे-धीरे मेट्रो स्टेशनों को पल्प फिक्शन के अड्डों में तब्दील होने से बचा लिया.

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डाटा के लीक होने के तमाम रास्ते हैं, खासकर जब हैकर मौजूद हैं, कॉर्पोरेट अपने व्यापार के लिए आपकी जासूसी करा रहे हैं. ऐसे समय में हर किसी को यह चिंता सताती रहती है कि अगर उसका डाटा लीक हो गया तो क्या होगा? जिन लोगों के बारे में हम झूठ बोलते हैं, जिन्हें बेवकूफ बनाते हैं, जिनके साथ हम बेवफाई करते हैं. अगर वे सब सार्वजनिक हो जाएं जिनके होने पर अब कोई बड़ी तकनीकी जटिलता आड़े नहीं आ सकती तो क्या होगा? यह एक ऐसा सवाल है जो डराता है और कई बार डर को दूर भी करता है. समाजशास्त्रियों को आशंका है कि भविष्य में सबसे ज्यादा घर और दिल डाटा ही तोड़ेगा. अच्छे खासे लोगों के बीच ब्रेकअप होंगे, तलाक होंगी, परिवार टूटेंगे, दोस्तियां तहस-नहस होंगी, खुदकुशियां होंगी. यही नहीं इस डर से डाटा रिमूवर का नया कौशल पैदा होगा. यह तमाम लोगों को रोजगार देगा.

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कुल मिलाकर डाटा बड़ी उथल पुथल कर सकता है. यह स्थिति सबसे ज्यादा खतरनाक तो पत्रकारों के लिए होगी. उन्हें दूसरों की अलमारियों के कंकालों को देखने की बजाय अपनी अलमारी के कंकालों को संभालना भारी पड़ेगा. इसी रो में धर्मगुरु भी होंगे. बड़े बड़े मेंटर, प्रशिक्षक टीचर और जहां भी गुरु शिष्य का रिश्ता है, वहां के लोग होंगे. उस दिन हमें पता चल जायेगा कि ऋतिक व कंगना का ब्रेकअप क्यों हुआ, कौन से क्रिकेट मैच फिक्स हुए थे और जब आॅफिस की नजरों में मैं वर्क फ्राॅम होम में व्यस्त था, उस समय मैं वास्तव में किसके साथ डर्टी टाॅक कर रहा था.

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