क्षेत्रफल के हिसाब से महादेश व शक्ति के लिहाज से सुपरपावर कहलाने वाला कई जनसंस्कृतियों से युक्त देश अमेरिका नस्लीय नफरत के पोषक होने के चलते कठघरे में है.

लोकतांत्रिक मूल्यों का झूठा डंका पीटने वाला संयुक्त राज्य अमेरिका यानी यूनाइटेड स्टेट्स औफ अमेरिका (यूएसए) गोरे पुलिसकर्मी के घुटने तले अफ्रीकी अमेरिकी नागरिक जौर्ज फ़्लोएड के दम घुटने से गुस्साए इंसानियतपरस्त व इंसाफपरस्त अमेरिकियों के टारगेट पर है. वे सड़कों पर गुस्से का जबरदस्त इजहार कर रहे हैं.

दुनिया को सीख देने वाला अमेरिका खुद ही समता, सामाजिक न्याय और मानवाधिकारों की रक्षा करने में नाकाम रहा है. इंसाफ की मांग करते हुए गुस्साए इंसानियतपरस्त अमेरिकियों ने राष्ट्रपति डोनाल्ड ट्रंप के निवास ‘व्हाइट हाउस’ की चौखट पर भी विरोधप्रदर्शन किया.

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सड़क पर इंसानियतपरस्त:

अमेरिकी सरकार की विचारधारा से तंग इंसानियतपरस्त अमेरिकियों से हट कर भी देखें तो दुनिया के विभिन्न इलाक़ों में हिंसा, विवादों और झगड़ों में सब से अधिक हाथ अमेरिका का ही रहा है. अमेरिका अपने दुश्मनों की सूची में दर्ज देशों में हंगामे करने और दसियों लाख लोगों को भूखा मरने में तनिक भी संकोच नहीं करता. यही वजह है कि पूरी दुनिया में अमेरिकी सरकार से घृणा बढ़ रही है. और यह घृणा अब खुद अमेरिका के भीतर भी पहुंच गई है.

विशेषकर, सत्ता में डोनाल्ड ट्रंप के आने के बाद से इन 4 बरसों में अमेरिकी सरकार से स्वंय अमेरिकियों में घृणा बढ़ी है, क्योंकि ट्रंप ने गोरे अमेरिकियों  की तरफ साफतौर पर झुकाव और बाकी अमेरिकियों के प्रति लापरवाही का प्रदर्शन किया. ट्रंप प्रशासन ने, खासतौर से, अफ्रीकीमूल व दक्षिणी अमेरिकीमूल के अपने नागरिकों की पूरी तरह से अनदेखी की. इसलिए नस्लभेद में डूबे अमेरिका के इस राष्ट्रपति को अब अमेरिका की सड़कों पर ही सबक़ सिखाया जा रहा है.

नस्लभेद पुरानी बीमारी:

अमेरिकी समाज में नस्लभेद एक बहुत ही पुरानी बीमारी है, जिस की पीड़ा अब सभी विचारधाराओं, समानता व स्वतंत्रता के दावों पर भारी पड़ रही है, क्योंकि न्याय के बिना तो शांति व सुरक्षा स्थापित हो ही नहीं सकती. अमेरिका के काले वर्ण के नागरिक कब तक अन्याय और पुलिस की हिंसा सहन करेंगे?

अफ्रीकी मूल के काले जौर्ज फ्लोयड की पुलिसकर्मी के हाथों क्रूरता से हत्या कर देने के बाद से अमेरिका में हिंसक प्रदर्शन जारी हैं. कई लोग मारे गए और हज़ारों घायल हुए हैं. अमेरिकी प्रशासन ने 5 हज़ार इंसानियतपरस्त प्रदर्शनकारियों को गिरफ्तार किया है. आने वाले दिनों में हालात और खराब हो सकते हैं.

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अमेरिका में नस्लभेद के खिलाफ पहले भी प्रदर्शन हो चुके हैं, लेकिन इस बार के प्रदर्शन अलग हैं क्योंकि काले अमेरिकियों का संयम खत्म हो चुका है और फिर उन का गुस्सा अमेरिकी राष्ट्रपति ट्रंप के नस्लभेद की वजह से ही नहीं बल्कि देश की अर्थव्यवस्था बचाने और कोरोना से मुकाबले में उन की नाकामी ने भी प्रदर्शनकारियों के गुस्से को बढ़ाया है.

बंकर में छिपे ट्रंप:

अमेरिकी राष्ट्रपति यानी दुनिया का सब से ताकतवर शख्स डोनाल्ड ट्रंप किसी डरे हुए चूहे की तरह की तरह व्हाइट हाउस के तहखाने में बने स्ट्रेटजिक बंकर में छिप गए क्योंकि व्हाइट हाउस के बाहर मौजूद इंसाफपरस्त प्रदर्शनकारियों से वे बुरी तरह डर गए थे.

व्हाइट हाउस के तहखाने में बने बंकर में अमेरिकी राष्ट्रपति तकरीबन एक घंटे तक छिपे रहे. यह बंकर किसी आतंकी हमले की स्थिति में राष्ट्रपति के शरण लेने के लिए बनाया गया है.

कहा यह भी जा सकता है कि जब ट्रंप को डर कर बंकर में छिपना पड़ा तो साफ है कि अमेरिका में लोकतंत्र और आजादी का दावा कितना बड़ा झूठ है.

अशांति से ट्रंप की राजनीति:

नवंबर माह में होने वाले राष्ट्रपति चुनाव के मद्देनजर डोनाल्ड ट्रंप अपने राजनीतिक फायदे के लिए शांतिपूर्ण विरोध करने वालों पर फायरिंग करने व कुत्ते छोड़ने जैसी बेतुकी बातों से हिंसा को और बढ़ावा दे रहे हैं.

आलोचकों का कहना है कि राष्ट्रपति ट्रंप समाज में विभाजन पैदा कर रहे हैं और अशांति की लहरों पर सवार हो कर आगामी राष्ट्रपति चुनाव का प्रचार कर रहे हैं.

गौरतलब है कि ट्रंप व्हाइट हाउस से पैदल चल कर नजदीक ही स्थित चर्च में गए और वहां बाइबल हाथ में ले कर फोटोशूट करवाया. ट्रंप की इस हरकत की सोशल मीडिया पर खूब आलोचना की गई, यहां तक कि चर्च के पादरी ने भी ट्रंप के अपने राजनीतिक फायदे के लिए धार्मिकग्रंथ के इस्तेमाल की निंदा की है.

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बराक ओबामा की सोच:

अमेरिका की हालत का जायजा लेते हुए पूर्व राष्ट्रपति बराक ओबामा ने मीडियम वैबसाइट पर अपने लेख में  लिखा कि आख़िरकार इस तरह के गंभीर हालात के लिए रणनीतियां बना ली जाएंगी लेकिन मेरा मानना है कि अतीत में जो संघर्ष हुए हैं उन से भी कुछ पाठ लेने की ज़रूरत है.

प्रदर्शनों की ये लहरें साबित करती हैं कि एक वास्तविक और जायज़ निराशा मौजूद है जिस की वजह कई दशकों के दौरान पुलिस के बरताव और न्याय व्यवस्था में सुधार की कोशिशों का नाकाम रहना है. प्रदर्शनों में अधिकतर शांतिप्रेमी, साहसी और सम्मानजनक लोग हैं. वहीं कुछ संख्या उन लोगों की भी है जो हिंसा का रास्ता अपनाते हैं और पूरे प्रकरण को अलग रंग दे देते हैं.

ओबामा लिखते हैं, मैं ने कई प्रदर्शनकारियों को यह कहते सुना कि न्यायिक व्यवस्था में बारबार नस्लवादी भेदभाव देखने में आ रहा है और इसे केवल प्रदर्शनों से ही सुधारा जा सकता है राजनीतिक प्रक्रिया का हिस्सा बन कर सुधार की उम्मीद करना समय नष्ट करना है.

मगर, सचाई यह है कि वास्तविक बदलाव के लिए प्रदर्शनों और राजनीति में से किसी एक विकल्प को चुनना सही नहीं बल्कि दोनों विकल्पों को एकसाथ ले कर आगे बढ़ने की ज़रूरत है.

ओबामा का कहना है कि हालिया महीने बहुत कठिन और निराश कर देने वाले थे. कोरोना वायरस की महामारी ने जो ख़ौफ़, दुख, शक और कठिनाइयां पैदा की हैं वे सब पीछे रह गईं जबकि ये घटनाएं सब से ऊपर आ गई हैं. ये हमें एहसास दिलाती हैं कि अत्याचार और भेदभाव अब भी अमेरिकी ज़िंदगी का सब से बड़ा हिस्सा हैं.

राष्ट्रपति नहीं रहे !

अमेरिका के पूर्व श्रम मंत्री रौबर्ट राएख ने तो यह कह तक कह दिया है कि डोनाल्ड ट्रंप अब अमेरिका के राष्ट्रपति नहीं रहे, वे उसी समय से पद से हट गए जब उन्होंने देश पर टूट पड़ने वाले संकटों से निबटने में कोई ठोस कदम नहीं उठाया.

ब्रिटेन के गार्डियन अखबार में प्रकाशित अपने लेख में रौबर्ट राएख ने लिखा कि नस्लभेदी आग, महामारी से देश अपने खिलाफ ही युद्ध कर रहा है.

केलिफोर्निया यूनिवर्सिटी में पढ़ाने वाले राएख ने लिखा है कि ट्रंप इस समय देश को संभालने के बजाय गोल्फ का मैदान संभाले हुए हैं. इस से पहले ट्रंप ने कोरोना वायरस की महामारी के समय बहुत घटिया तरीके से काम किया. उन्होंने महामारी को भरपूर छूट दी, यहां तक कि उस ने अमेरिका को त्रस्त कर डाला.

पूर्व अमेरिकी मंत्री राएख का कहना है कि ट्रंप जब से व्हाइट हाउस में पहुंचे हैं, तब से ही वे अपने मामलों में उलझे हुए हैं. ट्रंप एक राष्ट्रपति की बुनियादी जिम्मेदारियों से पूरी तरह दूर हो गए हैं.

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