लेखक- आरबी सिंह, डा. एसएन सिंह, कृषि विज्ञान केंद्र, बस्ती

फसलों से ज्यादा उत्पादन प्राप्त करने के लिए रासायनिक खादों का अंधाधुंध प्रयोग किया जाता है, जिस से मिट्टी में जीवाश्म की कमी हो जाती है और मिट्टी की सेहत लगातार नीचे गिर रही है. ऐसे हालात में किसानों को उत्पादन बढ़ाने के लिए ऐसे उर्वरक (खाद) का प्रयोग करना चाहिए, जिस से मिट्टी में जीवाणुओं की कमी न हो.

खेत में जीवाश्म की मात्रा को बढ़ाने व उर्वराशक्ति के विकास में जैविक व हरी खाद का प्रयोग काफी लाभदायक रहता है. हरी खाद के रूप में प्रयोग की जाने वाली ढेंचा की फसल से मिट्टी की उर्वराशक्ति बढ़ती है. इस से फसल उत्पादन बढ़ा कर लागत कम की जा सकती है.

ढेंचा की फसल बोने के 55-60 दिनों के बाद खेत में पलटाई कर दी जाती है. इस के बाद खेत में पानी भर दिया जाता है, जिस से ढेंचा खेत में अच्छी तरह सड़ जाए.

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ढेंचा से हरी खाद को लगभग 75-80 किग्रा नाइटोजन और 200-250 किग्रा कार्बनिक पदार्थ प्राप्त होता है, जिस से खेतों में पोषक तत्त्वों का संरक्षण होता है. मृदा में नाइट्रोजन के स्थिरीकरण के साथ मृदा की क्षारीय व लवणीय शक्ति बढ़ती है. ढेंचा के अन्य हरी खादों के मुकाबले नाइट्रोजन की ज्यादा मात्रा मिलती है.

ढेंचा की उन्नत किस्में

वर्तमान में ढेंचा की अनेक उन्नत किस्में हैं, जैसे पंजाबी ढेंचा-1, सीएसडी-137, हिसाब ढेंचा-1, पंत ढेंचा-1 आदि.

अनुकूल मृदा

वैसे तो हरी खाद के लिए ढेंचा की बोआई किसी भी तरह की मिट्टी में की जा सकती है, लेकिन जलमग्न, क्षारीय व लवणीय व सामान्य मिट्टियों में ढेंचा की फसल लगाने से अच्छी गुणवत्ता वाली हरी खाद मिलती है.

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