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कंगना के निशाने पर आई तापसी पन्नू तो ऐसे दिया करारा जवाब

बॉलीवुड अभिनेत्री कंगना रनौत अपने बेबाक अंदाज के लिए जानी जाती हैं. आएं दिन वह अपने नए-नए सवाल को लेकर चर्चा में बनी रहती हैं. कंगना इन दिनों अभिनेता सुशांत सिंह राजपूत के मौत के बाद से खुलकर नेपोटिज्म पर बोल रही हैं.

जिस पर कई लोग सवाल खड़े कर रहे हैं तो वहीं कुछ लोग कंगना का समर्थन भी कर रहे हैं. कंगना रनौत के टीम ने हाल ही में एक ट्विट किया था. जिसमें उन्होंने अभिनेत्री तापसी पन्नू पर सीधा निशाना साधा था.


कंगना के टीम ने लिखा था कि शर्म आनी चाहिए लोगों को जो नेपोटिज्म का सपोर्ट करते हैं. और दूसरे के अंदर के संधर्ष को मार देते हैं. ऐसे लोग सिर्फ ऐसा इसलिए करते हैं ताकी वह अपने आप को गलत लोगों के सामने गुडलुक साबित कर सके.

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कंगना के टीम का यह ट्विट सोशल मीडिया पर खूब वायरल हो रहा है. इस ट्विट पर कई तरह के कमेंट भी आ रहे हैं. वहीं कुछ लोग खुलकर कंगना के टीम का साथ दे रहे हैं.

इस ट्विट के बाद तापसी पन्नू ने भी एक ट्विट किया है. जिसमें उन्होंने लिखा है कि मेरे जीवन में पिछले कुछ महीनों से ऐसा हो रहा है जिसे समझ नहीं पा रही हूं मुझे खुद को शांति चाहिए इसलिए मैं यह ट्विट कर रही हूं.

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तापसी का यह ट्विट सोशल मीडिया पर खूब वायरल हो रहा है. तापसी के फैंस इस ट्विट पर कई तरह के सवाल जवाब कर रहे हैं तो वहीं कुछ लोग चुटकी भी ले रहे हैं. तापसी अपनी ट्विट पर कोई रिप्लाई नहीं दे रही हैं.

वहीं बात करे कंगना रनौत की तो कंगना इन दिनों अपने परिवार के साथ मनाली में हैं. वह अपनी फैमली के साथ खूब मस्ती कर रही हैं. कंगना की बहन रंगोनी आए दिन सोशल मीडिया पर नए-नए पोस्ट शेयर करती रहती हैं.

विकास दुबे और कोई नहीं बल्कि यूपी राज्य की छुपाई गई हकीकत है

साल 2016 ख़त्म होने को था, देश के सबसे बड़े राज्य उत्तरप्रदेश को फतेह करने के लिए चुनाव प्रचार जोरों पर था. भाजपा लीड में लग रही थी. प्रधानमंत्री मोदीजी की सूबे में धडाधड रैलियां चल रही थी. 11 दिसंबर आया, मोदीजी की बहराइच में परिवर्तन रैली थी. खराब मौसम के कारण मोदीजी का चोपर लैंड नहीं कर पाया लेकिन जो भाषण कहने की वे ठान के आए थे उसे जरूर कहा. बस विधा बदली और अपना भाषण मोबाइल से दे दिया.

भाषण के मुख्य बिंदु में से एक उत्तरप्रदेश में चल रहे “गुंडाराज” को लेकर था. उन्होंने अपनी बात में कहा “अगर भाजपा सत्ता में आती है तो वह भरोसा देते है कि प्रदेश में चल रहे गुंडाराज को ख़त्म कर देंगे.” उन्होंने आगे कहा “आज यहां गुंडाराज है, हर कोई इससे तंग आ चुका है. यहां तक कि पुलिस भी इसे रोकने में नाकाम रही है.” गुंडाराज को लेकर इसी तरह की बातें भाजपा के दुसरे नेता भी अपने चुनाव प्रचार में करते रहे. खैर, इन बातों की अपने आप में एहमियत तो थी. लोग बदलाव चाहते भी थे. लोगों ने बदलाव पा भी लिया. लेकिन सवाल यह कि क्या यह सिर्फ सत्ता का बदलाव था या गुंडाराज में भी बदलाव हो पाया? क्या अब अपराध ख़त्म हो गए या पहले से कम हो गए?

2019 के असेंबली चुनाव चल रहे थे. तब भाजपा के स्टारप्रचारात्क व यूपी के मुख्यमंत्री योगी आदित्यनाथ 3 मई को रायबरेली में एक सभा संबोधित करते है. और वे फिर गुंडाराज पर बात करते हुए यहां तक कह देते हैं कि “भाजपा सरकार ने अराजकता ख़त्म कर दी है, पिछली सरकारों से चलती आ रही गुंडागर्दी ख़त्म हो गई, अब प्रदेश में शांति स्थापित हो चुकी है.” अब “शांति” को समझने की भी जरुरत है. क्या यह परिवार में हुई किसी सदस्य की मौत के बाद पसरे सन्नाटे वाली शांति है? खैर, इसपर विचार करना आज के समय में अत्यंत जरुरी है. लेकिन अगर योगी की माने कि गुंडाराज ख़त्म हो गया तो विकास दुबे कौन सी बला निकली जो इन दिनों मीडिया में सुर्खियाँ बटोर रहा है?

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विकास दुबे प्रकरण वाले दिन क्या हुआ

विकास दुबे, उम्र 55, वह नाम जिसने रातों रात भारतीय मीडिया और लोगों के दिमाग में कब्ज़ा जमा लिया. मामला ऐसा कि सूबे की सरकार तक हिलने लग गई. कोन है विकास दुबे, यह सवाल लोगों के दिमाग की गुत्थी बन गया. आखिर मामला क्या है?

2-3 जुलाई की रात, विकास दुबे के लोगों ने 8 पुलिस कर्मियों को योजना बना कर जान से मार दिया. यह घटना कानपुर के बिठुर इलाके में बिकरू गांव की है. विकास दुबे वहीँ का स्थानीय दबंग है जिसके नाम पर कई अपराधिक मामले पहले से ही थानों में धूल खा रहे थे. उस रात पुलिसकर्मी विकास दुबे को मर्डर के आरोप में गिरफ्तार करने गई थी. गांव में घुसते ही विकास की योजना पर उसके गुर्गों ने पुलिस कर्मियों को बीच सड़क पर एक जेसीबी से रोका. पुलिस जब तक माजरा समझ पाती तब तक देर हो चुकी थी. विकास के गुर्गों ने अंधाधुन्द फायरिंग करनी शुरू कर दी जिसमें सीओ देवेन्द्र कुमार मिश्र, एसो महेश यादव, चौकी इन्चार्गे अनूप कुमार, सब इंस्पेक्टर नेबुलाल और कांस्टेबल सुल्तान सिंह, राहुल, जीतेन्द्र और बल्लू शहीद हो गए. यहां तक की अपराधीयों ने पुलिस की बंदूकें भी हथिया ली.

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यह घटना ही काफी है यह बताने के लिए कि यह कोई ऐरा गैरा गुंडा नहीं बल्कि ठोक पीट कर पाला गया दबंग है जिसकी कहानी शुरू कहीं और से होती है. विकास दुबे को लेकर कहा जा रहा है कि वह “हिस्ट्रीशीटर” रहा है. उसके ऊपर 60 से अधिक अपराधिक मामले चल रहे हैं. विकास को लेकर बताया जा रहा है कि 1990 के बाद से ही विकास अपराधिक मामलों में सक्रिय होने लगा था. स्थानीय राजनीति से उसे बल मिलता रहा और वह जमीन कब्जाने, किडनेपिंग, डकेती इत्यादि करने लगा था. लेकिन कानपुर में दहशत उसने सन 2000 के बाद बनाया जब कानपूर के शिवली ठाणे स्थित ताराचंद इंटर कॉलेज के मेनेजर सिधेश्वर पांडे की हत्या कर दी थी, ठीक उसी साल जेल में रहते हुए विकास ने रामबाबू यादव नाम के सख्श की हत्या करवा दी.

एक घटना जो दब गई

उत्तर प्रदेश में हाल फिलहाल की यह एकलौती घटना नहीं है जिसमें सूबे का प्रशासनिक हाल बिगड़ा दिखाई दे रहा हो. बल्कि ऐसी घटनाएं लगातार हो रही हैं. ऐसी ही एक हैरान कर देने वाली वीडियो सोशल मीडिया में वायरल हो रही है. ऐसा ही दबंगई वाला मामला 27 जून को सामने आया. घटना मेरठ जिले के ट्रांसपोर्ट नगर की है. एक 19 साल की एससी(दलित) युवती जिसकी शादी अगले दो दिन बाद होने वाली थी. उसे और उसके पिताजी को घर में घुस कर जान से मार दिया.

घटना शादी से पहले वाले दिन समारोह की है. जिसमें मनचला लम्पट सागर ठाकूर और उसके इस अपराध में साथ देने वाले साथी आधी रात को युवती के घर में घुस जाते हैं. अंधाधुंध गोलियां बरसानी शुरू कर देते हैं. जिसकी चपेट में पहले लड़की के पिताजी आते है फिर लड़की. खबर के अनुसार लड़की की मौके पर मौत हो गई थी. और पिताजी अस्पताल पहुँचने के बाद मर गए.

यह घटना उन घटनाओं के साथ जुड़ेगी जिसमें एससीएसटी लोगों पर जातीय दबदबा बनाने के लिए उन पर अत्याचार किया जाता है. जाहिर है सीधा घर में घुस कर गोलियों से पिता पुत्री को मार देना यह किसी के लिए दहशत पैदा करता है, तो किसी के लिए जातीय प्रभुत्व का एहसास.

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ठीक इसी प्रकार विकास दुबे प्रकरण में भी सवर्णों लोगों का एक धड़ा विकास दुबे के इस कार्य की जयजयकार कर रहा है. ब्राह्मण का शेर, जय ब्राह्मण भी कहता दिखाई दे रहा है. इन सब चीजों को देख कर यह सवाल तो उठता ही है कि क्या वाकई यूपी राज्य में गुंडाराज ख़त्म हो गया है?

एनसीआरबी की रिपोर्ट क्या कहती है?

वैसे तो मौजूदा सरकार लोगों को अँधेरे में रखने का भरपूर प्रयास करती है. जो आधिकारिक डाटा(रिपोर्ट) सरकार की कार्यवाहियों पर सवाल उठाते हैं उन्हें या तो बाहर आने नहीं देते या ऐसे समय में उन रिपोर्ट्स को रिलीज़ करते हैं जब उसकी प्रासंगिकता कम हो जाती है. लेकिन जितने भी अधिकारी आकड़े सामने आएं है उनसे ऐसा तो बिलकुल भी नहीं लगता कि उत्तरप्रदेश में गुंडाराज ख़त्म या कम हुआ हो, बल्कि अधिकतर जगह आकड़े यह बता रहे हैं कि सूबे में हालत पहले से खराब हुए हैं.

महिलाओं पर बढ़ता दमन- एनसीआरबी की रिपोर्ट के अनुसार उत्तरप्रदेश में हर दो घंटे में 1 बलात्कार पुलिस स्टेशन में रजिस्टर्ड होता है. 2018 की वार्षिक रिपोर्ट जिसे लगभग डेढ़ साल बाद हाल फिलहाल में निकाला था उसमें बताया गया कि यूपी में महिलाओं के खिलाफ 20 फीसदी बढ़ोतरी हुई है. एनसीआरबी जो गृह मंत्रालय के अधीन आती है उसने बताया कि महिलाओं की सुरक्षा को लेकर देश का सबसे असुरक्षित राज्य यूपी है. मुख्यता इसमें दहेज़ के लिए मार पीट या जान से मार देना, किडनेपिंग, घरेलु हिंसा इत्यादि आते हैं.

इसी रिपोर्ट के अनुसार यह बात भी सामने आई कि उत्तर प्रदेश भारत का दूसरा ऐसा राज्य है जहां महिलाओं पर एसिड अटैक के अधिकाधिक मामले सामने आते हैं. इसी साल के शुरुआत महीने में ही 20 साल की युवती के ऊपर एसिड फेंकने की घटना सामने आई, पिछले साल के अंत में बुलंदशहर में रेप विक्टिम 30 वर्षीय महिला पर आरोपियों ने एसिड अटैक कर दिया.

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ऐसा नहीं है कि यह सिर्फ अपराधियों के द्वारा ही किया जाता है बल्कि सरकार में बैठे नेता भी इस गुनाह के भागीदार होते है. एंटी रोमिओ स्क्वाड बनाने से सरकारी कुंठा उभर का दिखने लगी थी. जिसमें राह चलते बेहुनाह जोड़ों को पीटा जा रहा था. इसके अलावा इसे इस तौर पर समझा जा सकता है की जिस राज्य में सत्ता पक्ष के नेता खुद इन गतिविधियों से जुड़ें हो वहां ऐसे अपराधियों के हौंसले बढ़ते ही है. इसका सबसे ज्वलंत उदाहरण कुलदीप सेंगर और चिन्मयानन्द हैं. जो फिलहाल सुर्ख़ियों में खबर बन पाए, अन्यथा कई नेता मामले को पहले ही रफा दफा कर चुके होते हैं.

दलितों के खिलाफ अपराध- भाजपा सरकार के सत्ता में आने के बाद यह सवाल उठ रहे थे कि हिंदूवादी अजेंडे में चलने वाली पार्टी क्या बदलते समाज में पुरानी जांतपांत की रीति-नीति को ख़त्म करने में योगदान देगी. लेकिन एनसीआरबी की वार्षिक रिपोर्ट में दलित उत्पीडन के मामले में यूपी ने राष्ट्रीय औसत को पीछे छोड़ा. यह राष्ट्रीय दर 21.3 फीसदी से कहीं अधिक 28.8 फीसदी है. वहीँ प्रदेश में दलितों के विरुद्ध अपराध देश में घटित कुल अपराध का 27.9 फीसदी है. यूपी में यह पिछले सालों से निरंतर बढ़ रहा है. जो योगी सरकार के आने के बाद और बढ़ा है.

पत्रकारों के खिलाफ अपराध- महिलाओं और दलितों के अलावा पत्रकारों के खिलाफ यूपी राज्य अव्वल नजर आती है. ‘कमिटी अगेंस्ट अस्सोल्ट जर्नलिस्ट’ ने रिपोर्ट जारी किया. जिसमें प्रदेश में योगी सरकार आने के बाद 5 पत्रकारों की हत्या हो चुकी है. वहीँ 60 पत्रकारों को विभिन्न धाराएं लगा कर उत्पीडित किया जा रहा है.

अन्य अपराध- इसी रिपोर्ट में पता चलता है कि राज्य में वृद्ध लोगों के खिलाफ अपराध में बढ़ोतरी हुई है. जिसमें 12 फीसदी की बढ़ोतरी दर्ज की गई. वही रॉबरी, छीना-छपती, मारपिटाई में भी बढ़ोतरी हुई. हत्या के मामले में राज्य में 1.2 फीसदी की वृद्धि देखी गई है.

फिर योगी ने गुंडाराज के नाम पर क्या ख़त्म किया?

विकास दुबे, सागर ठाकुर और एनसीआरबी के यह आकडे साफ़ बता रहे हैं कि न तो प्रदेश में किसी प्रकार के अपराध में कटौती हुई और न ही गुंडाराज ख़त्म हुआ. लेकिन इतने दिनों से जिस बात का हल्ला कर भाजपा विपक्ष को गाली देती रही और खुद सत्ता में बैठती रही तो वह माजरा क्या था? भाजपा जब सत्ता में आई तो उन्होंने महिलाओं के खिलाफ होने वाले अपराधों पर जीरो टोलरेन्स पालिसी की बात कही. लेकिन उसी दौरान चिन्मयानन्द और कुलदीप सेंगर पर भाजपा सरकार के हाथ पाँव फूलते दिखाई दिए. न सिर्फ सरकार की सिट्टीपिट्टी गुल हुई बल्कि चूं तक न निकली.

हमारे प्रत्याशी कैसे है- भाजपा सरकार लगातार कहती रही कि वह साफ़सुथरी सरकार है. लेकिन साफ़सुथरे के नाम पर हमें शुरू से ही चुनने के लिए ऐसे प्रत्याशी थमाए जिनके दामन में कई अपराध चिपके हुए हैं. कुछ तो हत्या, बलात्कार जैसे संगीन अपराध से लिप्त हैं. 2019 के लोकसभा चुनाव में प्रधानमंत्री के नेतृत्व में 40 प्रतिशत भाजपाई प्रत्याशी ऐसे थे जिन पर आपराधिक मामले दर्ज थे. वहीँ विपक्ष में ये 39 प्रतिशत तक थे.

बात अगर वर्ष 2017 में उत्तर प्रदेश की हो तो असेंबली चुनाव में भाजपा की तरफ से 37 प्रतिशत ऐसे एमएलए ऐसे चुन कर विधानसभा पहुंचे जिनका इतिहास अपराधिक मामलों से जुड़ा हुआ था. 403 सीट में से 143 ऐसे विधायक थे जिन पर संगीन अपराधिक मामले थे.

हैरानी इस बात की है कि विकास दुबे को विधायकी या सांसदी सीट के लिए मोका नहीं मिल पाया, हांलाकि उसके पुराने रिकॉर्ड देखकर तो लग रहा है कि चुनावी नेता बनने के लिए उसमें वह सारी काबिलियत थी जिससे वह सत्ता के 40 फीसदी और विपक्ष के 39 फीसदी के दायरे में आराम से फिट बैठ जाता. खैर, जानकारी के अनुसार वह इसी जुगत में लगा भी था. उसके हर पार्टी सरकार के साथ उठने बेठने वाले रिश्ते भी थे. क्या भाजपा, क्या बीएसपी, क्या सपा सभी ने इसके बाहुबल का भरपूर उपयोग किया. वह पोलिटिकल लिंक बना ही इसलिए रहा था कि कोई कहीं से उसे टिकेट देदे. विकास दुबे ने अपनी पत्नी को जिला पंचायत के चुनाव के लिए सपा की सीट से खड़ा किया था. उसके बाद वह खुद भी जेल में रहकर जिला स्तरीय चुनाव भी लड़ा और जीता भी. यानी चुनावी राजनीति में भी उसकी ख़ासा इच्छा थी. या यूँ कहा जा सकता है कि उसका अपराधिक जीवन और नेताओं संग मेलजोल समानांतर चलता रहता था.

विरोधों को दबाना- यह बात तो तय है कि जो पार्टी गुंडे बाहुबलियों को अपनी पार्टी में मनी-मस्सल पॉवर के लिए रख लेती है उससे क्या ख़ाक उम्मीद लगाईं जाए कि वह राज्य में गुंडागर्दी ठीक करेगी? यह तो ऐसी बात हुई कि डकैतों को बैंक की रखवाली करने को देदी. लेकिन सवाल यह कि इतने टाइम इन्होने गुंडाराज को ख़त्म करने के नाम पर क्या खत्म किया?

इसे जानने के लिए एक उदाहरण इस बात से लगाया जा सकता है कि पिछले साल सीएए और एनआरसी विरोध में चल रहे आन्दोलन को दबाने, डराने की भरषक कोशिश की गई. पुरे देश में उठे आन्दोलन में सबसे ज्यादा आन्दोलनकारियों की मौतें अकेले उत्तरप्रदेश में हुईं. यहां तक कि हाई कोर्ट और सुप्रीम कोर्ट के आदेशों का प्रदेश सरकार द्वारा पूरी तरह अवहेलना किया गया. आन्दोलनकारियों और विपक्ष को डराने के लिए पब्लिक प्रॉपर्टी ऑर्डिनेंस-2020 लाया गया. शहरों के चौराहों पर आन्दोलनकारियों के पोस्टर ऐसे लगाए गए जैंसे कोई घोषित आतंकवादी हों. यह दिखा रहा था कि सरकार अपना दम ख़म किसे दबाने में दिखा रही है.

इसके अलावा सरकार पर नेशनल सिक्यूरिटी एक्ट (एनएसए) का गलत उपयोग करने के आरोप लगते रहे. इतने गंभीर एक्ट का प्रयोग विरोधियों की आवाज दबाने के मकसद से लगाए गए. यहां तक कि तथाकथित गाय के मांस की तस्करी करने वाले आरोपियों पर भी इसे इस्तेमाल किया गया. वहीँ पुलिस पर फेक एनकाउंटर करने के आरोप भी लगते रहे है.

सरकार अपराध ख़त्म करने में नाकाम रही है

इस बात की गवाही खुद सरकारी रिपोर्ट कहती है कि यूपी में भाजपा सरकार न सिर्फ अपराधों को रोकने में नाकाम रही बल्कि उनके कार्यकाल में ऐसे अपराध और भी बढ़े हैं. सरकार ने अपराध ख़त्म करने के हवाहवाई जो बातें की थी वह आज सबके सामने उजागर है. आज विकास दुबे जैंसे गुंडे ने इस घटना के माध्यम से यह साफ़ कर दिया है कि “न तो अपराधी राज्य छोड़ कर भागे हैं और न ही वे जेल में है.” बल्कि उन्होंने सीधा राज्य की पुलिस पर हमला किया है. और यह हमला कोई ऐसा वैसा हमला नहीं बल्कि सीधा स्टेट को चुनौती देने वाला है. इसकी जांच होनी जरुरी है ताकि इसका पता लगाया जा सके कि इस तयबध योजना की गांठ कितने ऊपर तक गठी गई है. इसके साथ कुछ सवाल बनने लगे हैं जैसे दुबे के पास हथियार कहाँ से आए? आखिर उसे पुलिस के आने की खबर अन्दर से किसने दी? क्या उसके ऊपर किसी बड़े नेता का हाथ है?

जिस तरह से विकास दुबे को लेकर खबरे उठ उठ कर आ रही है, साथ ही उसके ऊपर के नेताओं के साथ मेल जोल की तस्वीरें देखने को मिल रहीं है उससे यह भी समझ आता है कि इन्ही नेताओं के साए में पल कर कहीं सहाबुद्दीन तो कहीं विकास दुबे सरीके गुंडे पैदा होते हैं, फर्क बस यह कि कुछ खास बन कर सत्ता के गलियारों में पारियां खेल कर आ जाते हैं कुछ उसी पारियों के लिए रास्ता बना रहे होते हैं. कुछ बेहद खास होते हैं जो अपने दामन से दाग भी हटा लेते हैं और सत्ता के बड़े औधे में डट जाते हैं. कल को अगर विकास दुबे का एनकाउंटर हो जाता है तो इसमें हैरान होने की जरुरत नहीं कि उस समय की सरकार अपनी पीठ थपथापाएगी, किन्तु जरुरी यह कि ऐसे गुंडे इन्ही राजनेताओं द्वारा पाले पोसे जाते हैं और जरुरत आने पर इनके लिए ही कुर्बानी देते हैं.

हवाई जहाज दुर्घटना – भाग 2 : आकृति किस बात से तनाव में थी ?

लेखक-डा. भारत खुशालानी,

विमान 7,000 फुट की ऊंचाई पर उड़ रहा था, दौड़पथ बिलकुल सामने था, शहर की इमारतें कुछ दूरी पर टिमटिमा रही थीं. कुछ ही सैकंडों में वायुयान के चालक स्थान में घंटियां बजने लगीं.

ये घंटियां विमान की अलगअलग प्रणालियों की विफलताओं की चेतावनी दे रही थीं. चालक स्थान लाल बत्तियों से चमक उठा था. हर लाल बत्ती किसी न किसी प्रणाली के खराब होने का संकेत था.

दुर्भाग्यवश, जिस समय विमान के इंजन को आग लगी और विमान को तेज झटका लगा, ठीक उसी समय विमान में आकृति की सहचालिका इंदरजीत कौर अपनी सहचालक की सीट से उठी, शायद टायलेट जाने के लिए. जैसे ही वह उठी, विमान को जोर का झटका लगा. इंदरजीत अपना संतुलन खो बैठी और अपनी ऊंचाई की वजह से उस का सिर कौकपिट की एकदम कम ऊंचाई वाली छत से टकरा गया. उस के सिर पर चोट आ गई और इंदरजीत वहीं बेहोश हो गई.

सहचालिका इंदरजीत कौर को बेहोश होते देख पहले तो आकृति को लगा कि ऐसी विकट परिस्थितियों में जो काम सहचालिका का होता है, वो काम वह कैसे कर पाएगी? और इतना ही नहीं, अब दोनों का काम उसे ही करना पड़ेगा.

इंजन में आग लगने की परिस्थिति में जांच सूची निकालना सहचालक का काम होता है. लेकिन इंदरजीत कौर को निश्चेत पा कर आकृति ने खुद ही जांच सूची निकाली.

किसी भी विमान में किसी भी प्रकार की खराबी आ जाने पर विमान के चालक को इस सूची के निर्देशों के अनुसार जाना पड़ता है. इंजन में आग लगने से अपने अंदर की बढ़ती दहशत को दबाने के लिए आकृति ने इस जांच सूची पर अपना ध्यान केंद्रित करना उचित समझा और इस सूची में से वह भाग निकाला, जिस में इंजन में आग लगने पर चालक को क्या करना चाहिए, इस के बारे में लिखा था.

आकृति ने वही किया, जो इस में लिखा था. उस ने बाईं ओर के इंजन की तरफ जाने वाले ईंधन को बंद कर दिया और बाईं इंजन की तरफ जाने वाली बिजली की कटौती कर दी. लेकिन इस से विमान बेतुकेपन से उड़ते हुए तीव्रता से मुड़ने लगा.

विमान के चालक स्थान में लगे कांच में से नजर आने वाला शाम का आसमान अब बगल की खिड़की से नजर आने लगा था. आकृति विमान को सीधा करने के लिए जूझती रही. किसी भी तरह से विमान को सीधा कर के उसे मार्ग पर लाना था. लेकिन वह ऐसा नहीं कर पाई.

विमान को उडाना आकृति के लिए लगभग असंभव हो गया था. विमान एक तरफ की ओर झूलने लगा था, और जब आकृति ने उसे केंद्र में लाने की कोशिश की तो वह दूसरी ओर झुकने लगा.

आकृति को ऐसा लगा कि वह वातावरण के साथ कुश्ती खेल रही है और इस कुश्ती में काफी दम लग रहा था और उस की ताकत की खपत हो रही थी. और फिर उस के दिल की धड़कन थोडा रुक सी गई, जब उसे महसूस हुआ कि शायद विमान का इंजन बंद हो गया है और विमान रुक गया है.

विमान का ‘स्टौल’ एक ऐसी अवस्था होती है, जिस में ऐसा प्रतीत होता है कि विमान रुक सा गया है और शायद अब आसमान से नीचे गिर जाएगा. जब विमान उड़ रहा होता है, तो उस के पंखों के ऊपर की हवा कम दबाव की होती है, जो विमान को ऊपर की ओर खींचती है, और पंखों के नीचे की हवा उच्च दबाव की होती है, जो विमान को ऊपर की ओर धकेलती है. दोनों का नतीजा यह होता है कि विमान ऊपर की ओर उड़ने लगता है. जब विमान सीधा उड़ रहा होता है, तो उस के पंखों के ऊपर और नीचे की यह हवा विमान के पूरे वजन को ऊपर उठा कर रखने में सक्षम रहती है और पंखों पर से हवा का प्रवाह सहज बना रहता है.

आकृति ने पूरी कोशिश की थी कि विमान की यह समतल उड़ान बनी रहे. लेकिन लाल बत्तियों की अफरातफरी में उसे शायद महसूस ही नहीं हुआ था कि विमान की नाक वाला भाग ऊपर उठ गया है और पीछे की तरफ का भाग नीचे झुक गया है.

जैसेजैसे विमान के सामने का भाग ऊपर की ओर उठ रहा था, वैसेवैसे विमान में उस के वजन और बाहर की हवा के दबाव का संतुलन बिगड़ रहा था. वजन और दबाव का संतुलन बिगड़ने से विमान अस्थिर होता जा रहा था.

चेतावनी देती घंटियों के शोर में आकृति को इस बात का पता देर से चला. विमान के सामने की ओर का नाक का भाग शायद इतना ऊपर उठ गया था कि विमान ‘स्टौल’ की खतरनाक अवस्था में पहुंच गया था.

आकृति ने मन ही मन कहा कि ऐसा ना हो, ‘स्टौल’ की अवस्था में उस के विमान के बाहर की हवा का दबाव इतना कम हो जाने के आसार थे कि वह विमान के भार को आसमान में बनाए रखने में नाकाम हो जाए.

अगर ऐसा हुआ, तो ‘स्टौल’ के कारण विमान की ऊंचाई गिरती जाएगी. आकृति के दिमाग में यह बात सब से ऊपर थी कि ‘स्टौल’ होने पर विमान के पंखों पर चलने वाली हवा विमान को ऊपर उठाने में नाकाम हो जाएगी.

आकृति ने अपने अनुभव से अनुमान लगाया कि पंखों के ऊपर से हवा बहुत ही कम रफ्तार से जा रही थी. विमान की धातु का ढांचा चीखने और कराहने लगा. इस्पात की भयावह ध्वनि भयंकर संकट का संदेश थी.

आकृति ने सोचा, ‘अगर मुझे तुरंत विमान की गति बढ़ाने का कोई रास्ता नहीं मिला तो विमान तेजी से गुरुत्वाकर्षण के कारण जमीन की ओर मुड़ जाएगा और नीचे शहर में गिर जाएगा.’

आकृति की समझ में नहीं आ रहा था कि वो क्या करे. जिस प्रकार दुपहिया वाहन में दाहिनी हथेली में वाहन की गति बढ़ाने का ‘थ्रौटल’ होता है, उसी प्रकार से विमान में उस की गति बढाने का ‘थ्रौटल’ होता है, जो किसी कार के गियर बदलने वाले हैंडल के जैसा ही होता है.

कार में यह हैंडल चालक के बाईं ओर होता है, जिस से वह अपने बाएं हाथ से गियर बदल सके, जबकि विमान में थ्रौटल विमान चालक के दाईं ओर होता है, ताकि चालक दाएं हाथ से थ्रौटल का इस्तेमाल कर सके.

बाजरे की फसल में सफेद लट प्रबंधन

लेखक- डा. रूप सिंह

सफेद लट एक बहुभक्षी लट है जो किसानों के खेत में आमतौर पर खरीफ की फसलों जैसे मूंगफली, मूंग, मोठ, बाजरा, सब्जियों वगैरह की जड़ों को काट कर हानि पहुंचाती है. राजस्थान जैसे हलके बालू मिट्टी वाले क्षेत्रों में होलोट्राइकिया नामक भृंगों की सफेद लटें एक साल में केवल एक ही पीढ़ी पूरी करती हैं.

सफेद लट की पहचान व जीवनचक्र

1. किसानों को सफेद लट के जीवनचक्र के बारे में जानकारी होना जरूरी है. सफेद लट के प्रौढ़ का रंग बादामी होता है. मानसून की पहली बारिश या मानसून से पहले की पहली अच्छी बारिश के बाद इस कीट के भृंग शाम को गोधूलि वेला के समय रोजाना जमीन से बाहर निकलते व आसपास के परपोषी वृक्षों जैसे नीम, अमरूद, आम वगैरह पर बैठ जाते हैं.

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2. कुछ समय तक प्रजनन की क्रिया करने के बाद वे पत्तों को खाना शुरू कर देते हैं. सुबह जल्दी मादा प्रौढ़ जमीन में पहुंचने के बाद अंडे देने का काम करती है.

3. एक मादा भृंग 25-30 अंडे देती है. अंडों से 7 से 10 दिन के बाद पहली अवस्था की लटें निकल जाती हैं और तकरीबन 10-15 दिन बाद दूसरी अवस्था की लटें बन कर फसलों की जड़ों को तेजी से खाना शुरू कर देती हैं, जिस से पौधा सूख कर मर जाता है.

4. यह कीट 3-4 हफ्ते तक दूसरी अवस्था में रहने के बाद तीसरी अवस्था की अंग्रेजी के ‘सी’ अक्षर के आकार की मुड़ी हुए अर्द्धचंद्राकार रूप में लट बन जाती है, जो फसलों की जड़ों के फैलाव क्षेत्र तक पहुंच जाती है. इस अवस्था में इस कीट को मारना मुश्किल काम है. यह अवस्था तकरीबन 6 हफ्ते तक रहती है. उस के बाद ये लटें प्यूपों में बदल जाती हैं और तकरीबन 2-3 हफ्ते के बाद प्रौढ़ बन जाती हैं.

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प्रारंभिक निवारक उपाय

  1. मई महीने में खेत की गहरी जुताई करें, जिस से तेज धूप के चलते इस के प्यूपा नष्ट हो जाते हैं.

2. अच्छी तरह से सड़ी हुई गोबर की खाद का इस्तेमाल करें.

3. परपोषी पौधों में शाम के समय क्यूनाल्फौस 25 ईसी कीटनाशी का 2 मिलीलिटर प्रति लिटर पानी की दर से छिड़काव करें, जिस से इस कीट के भृंग मर जाएं.

4. बारिश के बाद खेतों में रात के समय प्रकाश पाश लगाएं.

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5.भृंग नियंत्रण के लिए फेरोमोन पाश (मैंथौक्सी बेंजीन-ऐनिसोल) 15 मीटर के दायरे में लगाएं.

6. बाजरे की बोआई से पहले क्यूनालफास पाउडर 25 किलोग्राम प्रति हेक्टेयर की दर से मिट्टी में मिलाएं.

7.बाजरे की बोआई से पहले बीज को क्लोथाइनिडियन 50 डब्ल्यूडीजी (डेनटोट्स) से 2 ग्राम प्रति किलोग्राम की दर से बीजोपचार करें.

हवाई जहाज दुर्घटना – भाग 1: आकृति किस बात से तनाव में थी ?

लेखक-डा. भारत खुशालानी,

आकृति अपने टीवी सेट से गढ़ी हुई थी. खबर थी, लाहौर से कराची जाने वाला विमान दुर्घटनाग्रस्त हो गया.

उसी की खबर को हर चैनल पर दिखाया जा रहा था.

अलविदा जुम्मा… ईद से पहले का जुम्मा… उस पर ऐसा कहर बरपा था कुदरत ने… जैसे वायरस का प्रकोप कम पड़ गया हो प्रकृति को कहर ढाने के लिए.

कराची हवाईअड्डे के पास ही में एक कालोनी पर दुर्घटनाग्रस्त हो कर विमान गिर गया था. काले धुएं का भयंकर गुबार उठ रहा था. कोरोना वायरस के कारण लौकडाउन होने के बावजूद लोग ईद मनाने के लिए अपने रिश्तेदारों के घर आजा रहे थे.

हवाईअड्डे के पास की छोटी तंग गलियों के इलाके में मकानों के ऊपर यह हवाईजहाज गिर गया था. एंबुलेंस वहां आ रही थीं. अग्निशामक दस्ते पानी के बड़े फव्वारों को टूटे हुए विमान के जलते हुए टुकड़ों पर डाल कर ठंडा कर रहे थे.

वहां लोगों की भारी भीड़ खडी हो कर अविश्वसनीय आंखों से यह दृश्य देख रही थी. बहुत से लोग मलबे से लाशों को निकालने में जुटे हुए थे.

एक चैनल पर विमान चालक के साधारण से शब्द सुनाए जा रहे थे, “मे डे, मे डे, मे डे … पकिस्तान 8303.” इस का मतलब था कि पाकिस्तान की हवाई उड़ान पी-आई-ए संख्या 8303 इतनी खतरे में पहुंच गई थी कि उस का बच पाना लगभग नामुमकिन था.

हवाईजहाज के दोनों इंजनों में आग लग गई थी. 3 बार रनवे का चक्कर काटने के बावजूद हवाईजहाज रनवे पर उतर ही नहीं सका, जबकि टावर से उस के विमान तल पर उतरने के लिए दोनों रनवे खाली करवा दिए गए थे.

2 यात्री घायल हो गए, मगर उन की जान बच गई. विमान में मौजूद बाकी सारे यात्री, विमान के स्टाफ समेत सभी मौत की नींद सो गए.

आकृति बेहद विचलित थी. पिछले महीने ही उस ने गर्भपात कराया था, अपने कैरियर को ध्यान में रखते हुए. पहले से ही वह तनावपूर्ण अवस्था में थी. उस पर यह विमान दुर्घटना.

आकृति ने अपने माथे को जोर से पकड़ लिया. सोमवार 25 मई, 2020 को उड़ान भरने वाले चालकों की सूची में उस का भी नाम था. 2 महीने लौकडाउन में रहने के बाद घरेलू उड़ानें उड़ने के लिए तैयार हो रही थीं. दिल्ली से नागपुर जाने वाली उड़ान में उस का नाम चालिका के रूप में था. उस की सहचालिका इंदरजीत कौर थी.

आकृति बेहद तनाव में आ गई. रातभर उसे नींद नहीं आई. हर बार आंख लगने पर उसी दुर्घटनाग्रस्त विमान का उन 10 बिल्डिंगों पर गिर कर उन को नष्ट कर देने की तसवीरें. मलबे में दबे हुए लोगों की निकाली जा रही लाशें. रिश्तेदारों के रोनेबिलखने की तसवीरें. हवाईजहाज की धीमी उतराव की तसवीरें और उस के बाद सब खत्म.

कुछ लोगों का यह मानना है कि हमारी सोच ही हमारा निर्माण करती है. हमारे व्यक्तित्व का तो वो निर्माण करती ही है, लेकिन हमारे आसपास की परिस्थितियों का भी वो निर्माण करती है. हमारी सोच ही हमारे आसपास ऐसी परिस्थितियां बना देती है, जो हमारी सोच के अनुकूल हो. जरूरी नहीं कि हमारी सोच सकारात्मक हो. नकारात्मक सोच नकारात्मक परिस्थितियों का निर्माण करने में सक्षम होती है. ऐसी धारणा है.

पता नहीं, यह कहां तक सच है. अगर किसी के मन में किसी बीमारी को ले कर डर बना हुआ है और वो लगातार इस बीमारी के बारे में सोचता जा रहा है, जो मनोविज्ञान के जटिल सिद्धांतों के अनुसार, उस व्यक्ति के इसी बीमारी से रोगी होने के पूरेपूरे आसार हैं.

कराची विमान दुर्घटना ने भी ऐसी ही बीमारी का रूप आकृति के मन में धर लिया. वैसे तो हादसे हजारों होते हैं. विमान से संबंधित हादसे भी कई होते हैं, लेकिन मन में डर तब बैठ जाता है, जब मन में चोर छिपा हो.

नियम के अनुसार, आकृति को अपने गर्भपात के बारे में विमान कंपनी को बता देना चाहिए था. लेकिन इतना समय यों ही घर में बैठे रहने या वापस अपने काम पर जाने की चाह से, आकृति ने किसी को कुछ भी बताना उचित नहीं समझा. कंपनी नियम के इस उल्लंघन ने उस के मन में चोर की भावना पैदा कर दी.

जाहिर है, गर्भपात के बाद कंपनी आकृति को 2-3 महीने और घर में बिठा कर रखती, और आकृति किसी भी दृष्टि से अपनेआप को हवाईजहाज उड़ाने में नाकाबिल नहीं समझ रही थी. गर्भपात कोई इतनी बड़ी बात नहीं थी. लेकिन कंपनी वालों के लिए यह मनोवैज्ञानिक असंतुलन की बात थी. हवाई यात्रियों की सुरक्षा, कंपनी वालों की हर सूची में सब से ऊपर थी.

उड़ान के दिन, मास्क और ग्लब्स पहने हुए यात्रियों के जनसमुदाय ने दिल्ली से नागपुर जाने वाले आकृति के विमान में अपनीअपनी जगहें लीं. निश्चित समय पर विमान अपने गंतव्य स्थान की ओर उड़ चला.

उड़ान के दौरान आकृति की नजरों के आगे दुर्घटनाग्रस्त विमान के हजारों टुकड़े रहरह कर आ रहे थे.

एक बात से आकृति और भी ज्यादा व्यथित हो गई थी. उस का विमान भी एयरबस 320 था. ठीक वही विमान, जो कराची में दुर्घटनाग्रस्त हुआ था.

वैसे तो एयरबस 320 का खुद का सुरक्षा रिकार्ड बहुत ही उम्दा था, लेकिन मस्तिष्क पर भय के हौवे के आगे बड़ी से बड़ी सुरक्षा में भी भेद ढूंढ़ पाना आसान था.

आकृति के दिमाग में रहरह कर यही बात आ रही थी कि 2 दिन पहले की दुर्घटना में हवाईजहाज में मौजूद सभी स्टाफ की मौत हो गई थी. चालक, सहचालक और कर्मी दल मिला कर 8 स्टाफ के लोग थे. आठों की मृत्यु हो गई थी. और उस से भी बड़ा इत्तिफाक यह था कि दुर्घटनाग्रस्त विमान भी लाहौर से एक बजे निकल कर कराची ढाई बजे पहुंचने वाला था, और आकृति की उड़ान भी दिल्ली से एक बजे निकल कर पौने 3 बजे नागपुर पहुंचने वाली थी. इतने बड़े संयोग एकसाथ हो रहे थे. इन्हीं के चलते आकृति के दिल की धडकनें तेज हो गई थीं.

पता नहीं, वह कैसा संयोग था या आकृति के मस्तिष्क की किरणों से उत्पन्न नकारात्मक परिस्थिति कि जब आकृति अपने विमान को नागपुर के बाबासाहेब अंबेडकर अंतर्राष्ट्रीय हवाईअड्डे के एकदम पास ले कर आ गई तो विमान के बाईं ओर के इंजन में आग लग गई.

चीन को महंगा पड़ेगा भारत से पंगा लेना

एक पुरानी मंगोलियन कहावत है, ‘हमलावर हमेशा डरा रहता है.’ इसलिए जब किसी हमलावर के खिलाफ कोई पलटकर खड़ा हो जाता है, तो एक बार को तो हमलावर की सिट्टीपिट्टी गुम हो जाती है, चाहे फिर वह कितना ही ताकतवर क्यों न हो. पिछले लगभग 5 दशकों से जब से 1962 में भारत और चीन के विरूद्ध हुई लड़ाई में चीन को बढ़त हासिल हुई थी, तब से लगातार चीन जब तब भारत के साथ हमलावर अंदाज में हरकतें करता रहा है और आमतौर पर भारत बातचीत के जरिये चीन की आक्रामकता को काबू में करने की कोशिश करता रहा है. लेकिन इस बार मामला कुछ अलग हो गया है. जिस तरह 3 जुलाई 2020 को अचानक प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी लद्दाख पहुंच गये और वहां जवानों को संबोधित करते हुए पूरी दुनिया का भारत की दृढ़ता का संदेश दिया, उसके साथ ही चीन कूटनीति के वैश्विक चक्रव्यूह में घिरने लगा है.
प्रधानमंत्री मोदी ने लद्दाख के अपने संबोधन में चीन का नाम नहीं लिया, उन्होंने सिर्फ इतना भर कहा है कि यह विस्तारवाद का दौर नहीं है, यह विकासवाद का दौर है. विस्तारवादी जिद पूरी दुनिया की शांति भंग करेगी. इस प्रतीक वाक्य में निश्चित रूप से चीन को ही संबोधित किया गया है, लेकिन चीन का कहीं नाम नहीं लिया गया. अंतर्राष्ट्रीय कूटनीति का ये बहुत बुनियादी सिद्धांत है कि जब तक किसी का साफ तौरपर नाम न लिया जाए, उसे कोई देश अपने लिए कहा गया नहीं समझता. लेकिन चीन की बौखलाहट से साफ पता चलता है कि उसके पास कूटनीतिक तौर तरीकों में बने रहने का धैर्य नहीं बचा. यही वजह है कि चीन के भारत स्थित राजदूत ने साफ तौरपर कहा है कि चीन विस्तारवादी नहीं है.

ऐसा नहीं है कि प्रधानमंत्री मोदी के लद्दाख जाने के पहले चीन को लेकर दुनिया की सोच कुछ अलग थी. दुनिया चीन को लेकर पहले भी वही सोच रखती थी, जो 3 जुलाई 2020 को प्रधानमंत्री मोदी के लद्दाख दौरे के बाद सोच रखती है. लेकिन मोदी के इस दौरे के बाद दुनिया खुलकर वे बातें कहने लगी है, जो पहले इशारों से कही जा रही थीं. सबसे पहले तो चीन का धुर विरोधी जापान खुलकर भारत के साथ आ गया है. जापान ने साफ तौरपर कह दिया है कि एलएसी के साथ किसी तरह की छेड़छाड़ नहीं होनी चाहिए. दूसरी बड़ी बात यह हुई है कि यूनाइटेड नेशन में भारत के प्रतिनिधि ने हांगकांग को लेकर बयान दिया है कि वहां भारतीय नागरिक भी रहते हैं. भारत के इस बयान को आनन फानन में 27 देशों ने समर्थन किया है.
इन दो संदेशों के अलावा एक और बड़ा संदेश है, जो रूस की तरफ से आया है. रूस ने भारत को रक्षा संबंधी सैन्य साजोसामान आपूर्ति करने की अपनी वचनबद्धता दोहरायी है. इससे साफ होता है कि रूस भारत के साथ खड़ा है, जबकि पिछले दो पखवाड़ों से चीन हर हाल में रूस को अपने साथ खड़े रखने की कोशिश कर रहा था. आज की तारीख में दुनिया का कोई भी ताकतवर देश चीन के साथ सार्वजनिक तौरपर खड़ा नहीं है. चीन के साथ सार्वजनिक तौरपर सिर्फ पाकिस्तान है, जिसकी अंतर्राष्ट्रीय परिदृश्य में जरा भी हैसियत नहीं है. अमरीका पहले ही चीन के सख्त विरोध में था, यहां तक कि अमेरिका के विदेश मंत्री और खुद प्रेसिडेंट डोनाल्ड ट्रंप ने साफ साफ शब्दों में कह दिया है कि चीन की सैन्य दादागिरी पर न सिर्फ उनकी नजर है बल्कि किसी भी आपात समय पर इस पर काबू करने के लिए अमेरिका अच्छी खासी तादाद में अपने सशस्त्र सैनिकों को यूरोप से निकालकर दक्षिण एशिया की सुरक्षा में लगाने जा रहा है.

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देखा जाए तो चीन को अब के पहले किसी ने इस कदर डिप्लोमेटिक तौरपर अलग थलग नहीं किया था, जैसा भारत ने फिलहाल कर दिया है. दुनिया के 13 देश चीन से किसी न किसी तरह से पीड़ित हैं, लेकिन इनमें से वियतनाम के अलावा कोई भी देश अब तक चीन के विरूद्ध खुलकर कुछ नहीं कह रहा था. अब भारत के डटकर चीन के खिलाफ खड़े हो जाने के कारण इन 13 देशों में से लगभग सभी देश बोलने लगे हैं और अगले कुछ महीनों में ये बहुत मुखर ढंग से चीन से मुकाबिल हो जाएं तो इसमें आश्चर्य की बात नहीं होनी चाहिए. प्रधानमंत्री मोदी के अचानक किये गये लद्दाख दौरे ने सिर्फ चीन को ही यह संदेश नहीं दिया कि भारत अपनी आन, बान और शान के लिए आखिरी सांस तक पूरे जज्बे के साथ मोर्चे पर खड़ा है बल्कि इससे चीन के अलावा भी तमाम दूसरे देशों को साफ संदेश गया है कि भारत और चीन के बीच में उन्हें जिसे भी चुनना है स्पष्ट तौरपर चुनना पड़ेगा.

पिछले कुछ दिनों में जिस तरह से चीन के साथ साथ पाकिस्तान ने भी सरहद पर हरकतें करने की कोशिश की हैं और नेपाल ने हास्यास्पद तरीके से कुछ बयानबाजियां की थीं, उससे लग रहा था कि जैसे सिर्फ चीन ही मुगालते में नहीं है बल्कि उसके चलते पाकिस्तान और नेपाल जैसे देश भी भारत को लेकर मुगालता पाल रहे हैं. लेकिन प्रधानमंत्री के इस दृढ़ और जीवंत कदम ने पाकिस्तान और नेपाल को ही नहीं पूरी दुनिया को संदेश दे दिया है कि भारतीय सीमाएं न सिर्फ सुरक्षित है, वहां भारत के सैनिक खड़े हैं और जब चाहें यहां भारत के प्रधानमंत्री जा सकते हैं. ऐसा होना हमेशा सरहद के सुरक्षित होने का सबूत होता है.
प्रधानमंत्री मोदी के लद्दाख दौरे के बाद आॅस्ट्रेलिया, जापान, वियतनाम, यूरोप, अमेरिका आदि हांगकांग के मामले में ज्यादा मुखर हो गये हैं. यह इस बात का सबूत है कि चीन अलग थलग पड़ रहा है. चीन की सबसे बड़ी निराशा रूस को लेकर है, क्योंकि रूस कई बार चीन और अमेरिका के मामले में हमेशा चीन के साथ खड़े होता रहा है. लेकिन जिस तरह से तनाव की चरम सीमा पर रूस ने भारत को बेहद ताकतवर हथियार बेचने के लिए राजी है, उससे चीन को साफ संदेश है कि भारत के विरूद्ध रूस उसके साथ नहीं है. हम सब जानते हैं कि चीन का एक महत्वाकांक्षी चीनी सपना है और वह पिछले एक दशक से धीरे धीरे मजबूती से आगे बढ़ भी रहा था. चाहे अमेरिका के साथ, द्विपक्षीय व्यापारिक रिश्तों में चीन का अपरहैंड रहना रहा हो या साउथ चाइना सी में दुनिया की तमाम चेतावनियों के बावजूद चीन के दबदबे की बात रही हो या कहें चीनी कब्जे की लगातार ज्यादा मजबूत रहने की बात रही हो.

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लेकिन मोदी के लद्दाख दौरे के बाद चीन के अपने इस महत्वाकांक्षी सपने को धक्का लगा है. दुनिया के तमाम देश जो पहले ही चीन से खफा बैठे थे, लेकिन उन्हें कोई नैतिक और राजनीतिक मुद्दा नहीं मिल रहा था कि वो चीन के विरूद्ध कैसे खुलकर सामने आयें. लेकिन भारतीय सरहद पर अतिक्रमण करने की कोशिश करके और अब वहां जमे रहने की दादागिरी दिखाकर चीन ने इन देशों को आधार दे दिया है कि वो उसे किस तरह घेरें. कुल मिलाकर अगर व्यापक परिप्रेक्ष्य में देखा जाए तो चीन ने भारत से पंगा लेकर अपने महत्वाकांक्षी चीनी सपने के पैर में कुल्हाड़ी मार ली है. अब भी वक्त है चीन की आंखें खुल जाएं वरना उसे ये सब बहुत भारी पड़ेगा.

मानसून स्पेशल: मजेदार खस्ता आलू नाश्ता

खस्ता उत्तर भारत में शौक से खाया जाता है. आलू की सब्जी के साथ यह ज्यादा स्वादिष्ठ लगता है. सुबह के नाश्ते में यह बहुत पसंद किया जाता है. करीबकरीब हर शहर में दुकानों पर सुबहसुबह नाश्ते के लिए गरमागरम खस्ता तैयार किया जाता है. यह उड़द की दाल भर कर भी बनाया जाता है. आलू की सब्जी, मिर्च और चटनी के साथ इसे खाया जाता है. 2 से 4 खस्ते अच्छेखासे भोजन की तरह पेट को भर देते हैं. कई जगहों पर इसे जलेबी के साथ भी खाया जाता है. खस्ता और जलेबी का खाने में चोलीदामन वाला साथ होता है. शहरों की दुकानों से ले कर छोटे बाजारों तक में खस्ता खूब बिकता है. इस के कारोबार में भरपूर मुनाफा है. जरूरत है कि आप का खस्ता खाने वाले को पसंद आ जाए. इस तरह की दुकानें खोलने में लागत कम आती है, इस वजह से मुनाफा ज्यादा होता है. यह किसी सीजन का मुहताज नहीं, पूरे साल इस की बिक्री होती है.

सामग्री

मैदा 400 ग्राम, रिफाइंड तेल 100 ग्राम, धुली उड़द 70 ग्राम, हींग 1-2 चुटकी, जीरा चौथाई छोटा चम्मच, धनिया पाउडर 1 छोटा चम्मच, सौंफ पाउडर 1 छोटा चम्मच, गरममसाला आधा छोटा चम्मच, हरी मिर्च 2 बारीक कटी हुई, अदरक 1 टुकड़ा बारीक कटा हुआ, हरा धनिया 2 चम्मच बारीक कटा, नमक स्वादानुसार और तलने के लिए तेल.

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बनाने की विधि

खस्ता बनाने के लिए सब से पहले दाल को 3-4 घंटे के लिए पानी में भिगो दें और दूसरी तरफ मैदे में रिफाइंड तेल और स्वादानुसार नमक डाल कर मिला लें और उसे पानी में नरम गूंध लें और फिर 20 मिनट के लिए ढक कर रख दें. भीगी हुई दाल को मिस्की में दरदरा पीस लें. कड़ाही में 2-3 टेबल स्पून तेल डाल कर गरम करें फिर उस में जीरा, हींग, धनिया पाउडर, सौंफ पाउडर, हरी मिर्च और अदरक डाल कर भून लें. फिर उस में पिसी हुई दाल मिला दें और चम्मच से धीरेधीरे चलाएं. जब वह भुन कर भूरे रंग की हो जाए तो उस में हरा धनिया और गरममसाला मिला कर 2 मिनट तक और भून लें. अब खस्तों में भरने के लिए दाल की पिट्ठी तैयार है. खस्ता तलने के लिए कड़ाही में तेल डाल कर गैस पर रख दें. गूंधे हुए मैदे से बराबर की 20 लोइयां बना लें. हर लोई को चकले पर बेलन से थोड़ा सा बेल कर उस में 1-1 छोटा चम्मच भर के दाल की पिट्ठी रख दें. चारों ओर से लोई उठाएं और दाल को बंद कर दें. दाल भरी लोई को हथेली से थोड़ा सा दबा कर चपटा करें और फिर बेलन से कम ताकत लगा कर उसे 3-4 इंच के व्यास में बेल लें.

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ध्यान रखें कि लोई फटे नहीं, इसलिए उसे थोड़ा मोटा ही रखें. बेला गया खस्ता गरम तेल में डालें और पलटपलट कर दोनों ओर से भूरा होने  तक धीमी गैस पर तलें. फिर उसे कड़ाही से निकाल कर प्लेट में नैपकिन के ऊपर रखें. आप एकसाथ 3 या 4 खस्ते तल सकते हैं. सभी खस्ते इसी तरह तल कर तैयार कर लें और हरे धनिए की चटनी या आलू की सब्जी के साथ खाएं. आलू की रसेदार सब्जी के अलावा कहींकहीं लोग इसे सूखी सब्जी के साथ खाना पसंद करते हैं, तो कई जगहों पर इसे मटर की सब्जी के साथ भी खाते हैं. खस्ता खानेपीने की छोटीबड़ी हर दुकान में मिल जाता है. यह 10 रुपए से  कर 25 रुपए  प्रति प्लेट तक मिलता है. 1 प्लेट में आमतौर पर 2 खस्ते और सब्जी होती है. कई दुकानों में इस के साथ मीठी या तीखी चटनी भी दी जाती है.

CrimeStory: दहेज में आया बहू का प्रेमी भाई

गत वर्ष नैशनल क्राइम रिकौर्ड ब्यूरो की एक रिपोर्ट आई थी जिस में कहा गया था कि बच्चों और किशोरों के साथ यौन संबंध बनाने वाले निकट संबंधी होते हैं. लेकिन इस रिपोर्ट में यह जिक्र नहीं था कि मायके से बने यौन संबंध जब ससुराल तक जाते हैं तो क्या होता है. विक्रम की जान ऐसे ही… उत्तर प्रदेश के जिला आगरा की तहसील एत्मादपुर के थाना बरहन के क्षेत्र में एक गांव है खांडा. यहां के निवासी

सुरेंद्र सिंह का 27 वर्षीय बेटा विक्रम सिंह उर्फ नितिन नोएडा के सेक्टर-6 में स्थित एक प्राइवेट कंपनी में कंप्यूटर आपरेटर था. उस की शादी नवंबर 2015 में अछनेरा थानांतर्गत कुकथला निवासी किशनवीर सिंह की बेटी रानी उर्फ रवीना के साथ हुई थी. दोनों का 2 साल का एक बेटा है.

विक्रम नोएडा में अपने मातापिता, भाई अमित, बीवी व बच्चे के साथ रहता था. कोरोना वायरस फैलने और लौकडाउन की घोषणा के बाद 27 मार्च, 2020 को विक्रम परिवार सहित अपने गांव खांडा आ गया था. इस के लिए विक्रम को 50 किलोमीटर पैदल भी चलना पड़ा था. उस के पिता सुरेंद्र सिंह नोएडा में ही रह गए थे.

विक्रम को घर आए 5 दिन हो गए थे. 31 मार्च की रात विक्रम अपनी बीवी रानी के साथ कमरे में सोने चला गया. जबकि उस की मां कृपा देवी मकान की छत पर सोने चली गई. छोटा भाई अमित गांव में ही रहने वाली मौसी के यहां सो रहा था. रात डेढ़ बजे रानी अचानक कमरे से चीखती हुई बाहर निकली और छत पर बने कमरे में सो रही सास को जगा कर बताया कि विक्रम ने आत्महत्या कर ली है.

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यह सुनते ही कृपा देवी बदहवास सी नीचे उतर कर कमरे में पहुंचीं. कमरे का मंजर देख उन के होश उड़ गए. बिस्तर पर विक्रम खून से लथपथ पड़ा था. उस की गरदन से खून निकल रहा था. जिस

से तकिया व चादर खून से रंग गए थे.

घटना की जानकारी मिलते ही मृतक का चचेरा भाई राजेश सिकरवार घटनास्थल पर पहुंच गया. विक्रम की मौत की जानकारी होते ही परिवार की महिलाओं में कोहराम मच गया. राजेश ने इस घटना की सूचना पुलिस को दे दी. सूचना मिलते ही थाना बरहन के थानाप्रभारी महेश सिंह पुलिस टीम के साथ मौकाए वारदात पर पहुंच गए. तब तक सुबह हो चुकी थी. हत्या की जानकारी होते ही आसपड़ोस के लोग एकत्र हो गए थे.

पूछताछ में मां कृपा देवी ने बताया, ‘‘रात सभी ने हंसीखुशी खाना खाया था. उस समय विक्रम के चेहरे पर किसी प्रकार का कोई तनाव नहीं दिख रहा था. न ही उस ने किसी बात का जिक्र किया था. उस ने अचानक आत्महत्या क्यों कर ली, समझ से परे है.’’

सूचना मिलते ही सीओ (एत्मादपुर) अतुल सोनकर भी पहुंच गए. फोरैंसिक टीम भी बुला ली गई थी.

मृतक की बीवी रानी से भी पूछताछ की गई. उस ने बताया कि खाना खाने के बाद हम लोग कमरे में सो गए. रात में पति से झगड़ा हुआ था, हो सकता है उन्होंने गुस्से में गला काट कर आत्महत्या कर ली हो. मुझे तो आंखें खुलने पर घटना के बारे में पता चला, तभी मैं ने शोर मचाया और सास को छत पर जा कर जगाया. विक्रम ने बंद कमरे में आत्महत्या कैसे की? यह रानी नहीं बता सकी.

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पुलिस ने घटनास्थल का बारीकी से निरीक्षण किया. मृतक का गला रेता हुआ था. लेकिन कमरे में कोई चाकू या धारदार हथियार नहीं मिला था.

रानी की यह बात पुलिस के गले नहीं उतर रही थी कि बिस्तर पर आत्महत्या करते समय रानी भी सो रही थी लेकिन उसे आत्महत्या की कोई जानकारी नहीं हुई. ऐसा कैसे हो सकता है? पुलिस ने मौके की काररवाई निपटाने के बाद शव को पोस्टमार्टम के लिए जिला अस्पताल भिजवा दिया.

घटना की जानकारी मिलने पर मृतक के पिता भी नोएडा से आ गए. उन्होंने अपनी बहू रानी पर आरोप लगाते हुए कहा कि इस के प्रेम संबंध उस के फुफेरे भाई प्रताप सिंह उर्फ अनिकेत से हैं, जो खांडा का रहने वाला है. सुरेंद्र सिंह ने पहली अप्रैल को पुलिस को दी गई अपनी तहरीर में भी विक्रम की हत्या का आरोप रानी अनिकेत पर लगाया. इस पर पुलिस रानी को पूछताछ के लिए अपने साथ थाने ले गई.

मृतक के घरवालों ने पुलिस को बताया कि विक्रम की पत्नी रानी हर महीने बीमारी का बहाना बना कर इलाज के नाम पर विक्रम से दवाइयों का 28,000 रुपए तक का बिल लेती थी. इतना ही नहीं उस ने अपने खर्चे पूरे करने के लिए 10 हजार रुपए में अपनी सोने की चेन भी गिरवी रख दी थी. पुलिस ने थाने में रानी से घटना के बारे में गहराई से पूछताछ की, ‘‘जब विक्रम ने चाकू से अपना गला अपने आप काट कर आत्महत्या की है तो चाकू भी वहीं होना चाहिए था.’’ इस पर रानी ने चुप्पी साध ली.

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पुलिस ने यह भी पूछा, ‘‘अगर विक्रम की हत्या किसी बाहरी व्यक्ति ने की तो कमरे का दरवाजा किस ने खोला? और वह आदमी कौन था?’’

इन सवालों के भी रानी के पास कोई जवाब नहीं थे. उस की चुप्पी सच्चाई बयां कर रही थी. पहले दिन तो रानी पुलिस को गुमराह करती रही, लेकिन दूसरे दिन यानी 2 अप्रैल, 2020 को पुलिस ने जब उस से सख्ती से पूछताछ की तो वह टूट गई.

उस ने पति की हत्या का जुर्म कबूल करते हुए बताया कि उस ने अपने प्रेमी फुफेरे भाई प्रताप जो गांव में ही रहता है के साथ मिल कर रात में विक्रम की हत्या कर दी थी. पुलिस पूछताछ में विक्रम की हत्या की जो कहानी सामने आई वह कुछ इस तरह थी—

रानी की शादी उस के बुआ के बेटे प्रताप ने अपने ही गांव खांडा निवासी विक्रम सिंह से कराई थी. बहन के घर प्रताप का आनाजाना था. दोनों के बीच 2 साल से नजदीकियां बढ़ गई थीं. धीरेधीरे दोनों का प्रेमसंबंध नाजायज संबंधों में बदल गया.

बीवी की हरकतें देख कर विक्रम को उस पर शक हो गया था. यह बात रानी ने प्रताप को बताई. इस पर उस ने रानी के घर आना बंद कर दिया था. रानी जब मायके जाती तो प्रताप वहां पहुंच जाता था. वहां दोनों किसी तरह मिल कर अपने दिल की प्यास बुझा लेते थे.

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जब रानी गांव में रहती थी, तो पति से रुपए मंगा कर अपने प्रेमी के ऊपर खर्च करती थी. इस की जानकारी होने पर विक्रम ने बीवी के मायके जाने पर रोक लगा दी थी. उस ने रानी को समझाया भी, लेकिन रानी पर पति की बातों का कोई असर नहीं हुआ. इस पर विक्रम रानी को नोएडा में अपने साथ रखने लगा था. लौकडाउन होने पर विक्रम परिवार सहित 5 दिन पहले गांव आया था. गांव आने पर रानी को पता चला कि प्रताप की शादी तय हो गई है. 25 अप्रैल को उस की बारात जानी थी. रानी को यह बात नागवार गुजरी.

वह चाहती थी कि प्रताप शादी न करे. वह उस के बिना नहीं रह सकती. वह प्रताप से मिलना चाहती थी. जबकि विक्रम उसे घर से बाहर नहीं जाने दे रहा था. इस पर उस ने मोबाइल पर प्रताप से बात की. इस बातचीत के दौरान मिल कर विक्रम की हत्या की योजना बनाई.

योजना के मुताबिक रानी ने 31 मार्च की रात आलू की सब्जी में नींद की 8 गोलियां मिला कर विक्रम को खिला दीं. गोलियां प्रताप ने ला कर दी थीं. रात करीब एक बजे विक्रम की तबियत खराब हुई. उस ने रानी से कहा कि उसे बैचेनी हो रही है. इस पर रानी ने पति को अंगूर खिलाए. फिर जैसे ही वह सोया, रानी ने मैसेज कर के प्रताप को बुला लिया. प्रताप और रानी ने उस का गला दबा दिया. वह जिंदा न बच जाए. इस के लिए हंसिए से उस का गला भी रेत दिया. हत्या के बाद प्रताप हंसिया ले कर फरार हो गया.

रानी और प्रताप की साजिश थी कि विक्रम की हत्या कर उसे आत्महत्या का रूप दे देंगे. अगर विक्रम की मां रात में चिल्लाचिल्ला कर भीड़ जमा न करती तो वे ऐसा प्रयास भी करते. लेकिन हड़बड़ाहट में रानी मौके से खून नहीं साफ  कर सकी थी.

रानी को पुलिस ने 3 अप्रैल को कोर्ट में पेश किया, जहां से उसे जेल भेज दिया गया. इस के बाद पुलिस हत्यारोपी प्रताप की तलाश में जुट गई.

3 अप्रैल को ही पुलिस ने प्रताप को भी गिरफ्तार कर जेल भेज दिया. पुलिस ने उस की निशानदेही पर हत्या में इस्तेमाल हंसिया

भी बरामद कर लिया.  रानी ने रिश्तों को कलंकित कर एक हंसतेखेलते परिवार को उजाड़ लिया.

मानसून स्पेशल: वेजिटेरियन खाने से बनाएं सेहत

फास्ट फूड के जमाने में लोग अकसर अपनी सेहत की परवा कम करते हैं. अच्छे और लजीज खाने की बात जब भी आती है तो हर कोई मांसाहार की तरफ आकर्षित होता है. जबकि शाकाहारी होना सेहत के लिए अच्छा है. वैसे, मांसाहारी भोजन विटामिन, आयरन और प्रोटीन का अच्छा स्रोत माना जाता है लेकिन ऐसी कई शाकाहारी चीजें हैं जिन में आयरन, प्रोटीन और विटामिन की काफी मात्रा होती है.

शाकाहारी व्यंजन भी अगर सही विधि और सही सामग्री के साथ बनाया जाए तो उस का भी स्वाद बहुत अधिक लजीज हो सकता है. एक टैलीविजन चैनल के रिऐलिटी शो ‘मास्टर शेफ इंडिया’ के, सत्र 4 को तो पूरी तरह से शाकाहारी व्यंजनों पर केंद्रित रखा गया था.

मास्टर शेफ संजीव कपूर कहते हैं कि सही ढंग से शाकाहारी भोजन बनाना थोड़ा कठिन होता है. उन के मुताबिक खाने का रंग और स्वाद थोड़े से बदलाव से बदल जाता है. जैसे कि मटर और गाजर के रंग और उस के स्वाद को व्यंजन बनाने तक बनाए रखना कठिन होता है, लेकिन अगर आप को खाना बनाने की जानकारी हो तो आप उस के स्वाद और रंग को बनाए रख सकते हैं.

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खाने को आकर्षक बनाने की भी एक कला होती है. आकर्षक खाना कैसे पकाया जाए, यह पूछे जाने पर संजीव कपूर कहते हैं, ‘‘खाने का महत्त्व हमेशा से रहा है और आगे भी रहेगा. मौके के मुताबिक खाना देखने में आकर्षक भी होना चाहिए. पहले खाना जीवनशैली का आधार होता था, अब जीवनशैली खाने से जुड़ चुकी है.’’

आजकल शाकाहारी खाने का चलन बढ़ रहा है. इस की वजह नएनए प्रयोग हैं जिन के उदाहरण रेस्तरां में मिल जाते हैं. वहां, शाकाहारी व्यंजन कुछ इस तरह परोसे जाते हैं कि लोग उसे खाए बिना नहीं रह पाते. 37 वर्षीय शेफ रणवीर बरार का कहना है कि विदेशों में शाकाहारी व्यंजन काफी लोकप्रिय हैं क्योंकि हिंदुस्तानी खाने का स्वाद सब से अलग और स्वाद से भरपूर होता है.

शाकाहारी व्यंजन में प्रयोग की जाने वाली सब्जियां ताजी हों, इस का ध्यान रखना आवश्यक है.

शोधों से पता चला है कि शाकाहारी व्यंजन में प्रोटीन की मात्रा कम होती है. वहीं, शाकाहारी व्यक्ति प्रोटीन को अपनी आवश्यकतानुसार संतुलित कर के पूर्ण कर सकता है. शाकाहारी भोजन से व्यक्ति में बीमारियां कम होती हैं.

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शाकाहारी व्यंजन के फायदे

–       हरी सब्जियों में फाइबर होता है. जो पेट की पाचन क्रिया को ठीक रखता है.

–       शाकाहारी आहार में वसा और सोडियम होने की वजह से रक्तचाप नियंत्रित रहता है.

–       शाकाहारी पदार्थों में टौक्सिन की मात्रा कम होती है जिस से कैंसर जैसी बीमारियों का खतरा कम रहता है.

–       शाकाहारी भोजन से वजन नियंत्रित रहता है क्योंकि इस से पेट भरा रहता है, भूख कम लगती है.

हौटेस्ट शेफ औफ अमेरिका के नाम से मशहूर अमृतसर के शेफ विकास खन्ना का कहना है कि शाकाहारी व्यंजन की परंपरा नानीदादी के जमाने से है. गोलगोल पूरियां और रोटियां बेलना आसान काम नहीं. विदेशों में लोग अधिकतर शाकाहारी व्यंजन ही पसंद करते हैं. यहां तक कि वहां हरी सब्जियां, तलेभुने बिना सिर्फ उबली हुई खाना पसंद करते हैं.

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मसालेदार छोले, अमृतसरी कुलचे, हलवा, जलेबी आदि कई ऐसे व्यंजन हैं जिन के नाम सुन कर ही व्यक्ति को भूख लग जाती है. खाने में आजकल नएनए प्रयोग हो रहे हैं. आजकल लोग केवल गाजर का हलवा नहीं, बल्कि लौकी का हलवा, मटर का हलवा आदि नएनए प्रयोग कर स्वादिष्ठ भोजन बनाते हैं. इस की कल्पना सालों पहले नहीं की जा सकती थी.

शाकाहारी व्यंजन आकर्षक बनाने के टिप्स

–       शाकाहारी व्यंजन को सजाते समय हमेशा रंगबिरंगी सब्जियों का प्रयोग करें.

–       गाजर, चुकंदर, मटर, शिमला मिर्च आदि किसी से सजावट करने से पहले उसे हलका पका लें या सेंक लें.

–       दही, क्रीम, नीबू, मिर्च आदि के प्रयोग से स्वाद को दोगुना बनाएं.

–       शाकाहारी व्यंजन में गहरे रंग की सब्जियों व फलों का प्रयोग अधिक करें.

–       शाही खाने में स्टफिंग अधिक आवश्यक है, क्रीम और रंगबिरंगी चीजों की स्टफिंग करें.

–       शाही भोजन कभीकभी पकाया जाता है, इसलिए इस में विटामिन, वसा न्यूट्रीऐंट्स के बारे में ज्यादा न सोच कर स्वाद के बारे में ही सोचें.

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सब्जियों को ताजा रखने के तरीके

–       पत्तेदार हरी सब्जियों को पहले धो कर सुखा लें. उन्हें अच्छी तरह साफ कर किसी डब्बे में रखें.

–       पत्तेदार सब्जियों को सुखाने के लिए पेपरटौवेल का प्रयोग करें.

–       पत्तेदार सब्जियों को, खरीदने के 1-2 दिन के भीतर प्रयोग कर लें ताकि स्वाद और रंग बना रहे.

–       पत्तेदार सब्जियों को हमेशा पेपरटौवल में लपेट कर फ्रिज में रखें.

मैं एक लड़के से प्यार करती थी,अब उसका एक लड़की से अफेयर चल रहा है, मैं क्या करूं?

सवाल

मैं एक लड़के से बेहद प्यार करती थी. उस पर पूरा यकीन था मुझे. उस की हर बात सच्ची लगती. महसूस होता जैसे उस से अच्छा इंसान कोई हो ही नहीं सकता. लेकिन मुझे अब मालूम हुआ है कि मेरी सोच गलत थी. वह झूठ बोलने में माहिर है. उस का एक और लड़की से भी अफेयर चल रहा है. मैं बहुत असमंजस में हूं, क्या करूं? अपनी पसंद का यह हश्र देख कर जीने की इच्छा खत्म हो गई है.

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जवाब

जिंदगी में अकसर हम जिसे बेहद चाहने लगते हैं वही हमारा दिल तोड़ता है. वैसे जरूरी नहीं कि वह लड़का गलत ही हो. हर इंसान में कुछ कमियां और कुछ अच्छाइयां होती हैं. आप को इस तथ्य को स्वीकार करना होगा. थोड़ाबहुत झूठ हर व्यक्ति बोलता है. हां, यदि उस का अफेयर किसी और के साथ भी चल रहा है तो यह बरदाश्त करना किसी भी लड़की के लिए बहुत ही मुश्किल हो सकता है.

आप केवल अपने दिल की मत सुनिए. अंदाज पर मत जाइए. हो सकता है आप जिसे अफेयर समझ रही हों वह एक सामान्य दोस्ती हो. इसलिए पहले उस लड़के से स्पष्ट बात करें और तब ही कोई फैसला लें. यदि उस लड़के के बगैर जिंदगी जीनी पड़े तो भी स्वयं को टूटने मत दीजिए. वक्त के साथ नए रास्ते और नए रिश्ते स्वयं सामने आ जाएंगे.

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