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लेडी डौक्टर कहां है- भाग 3: समर की मां ने डॉक्टर से क्या कहा?

मारेमारे वे लोग तीसरे अस्पताल पहुंचे जहां किसी तरह मीरा को अस्पताल में भरती कर लिया गया. मशीन लगा कर डाक्टर ने टेस्ट किया. बच्चे की सांस चल रही थी, पर वह रिस्पौंड नहीं कर रहा था.

“तुरंत सिजेरियन करना होगा, वी कांट टेक चांस, इट्स ए प्रीमेच्योर डिलीवरी, इसलिए हो सकता है थोड़ी कौंप्लीकेटेड हो, वैसे भी, इन की मेडिकल हिस्ट्री बता रही है कि पहले 2 अबौर्शन कराए हैं आप ने,” डा. मजूमदार, जो उस समय ड्यूटी पर थे, सारी रिपोर्ट्स ध्यान से पढ़ रहे थे. हैरानी थी उन के चेहरे पर.

समर ने दबी आवाज में वहां खड़ी सिस्टर से पूछा, “कोई लेडी डाक्टर नहीं है क्या इस समय? गाइनी तो लेडी डाक्टर को ही होना चाहिए. डिलीवरी वही तो करवा सकती है. अब तक तो चेकअप लेडी डाक्टर ही करती आई है. क्या कोई लेडी डाक्टर नहीं आ सकती क्या?”

““आप का दिमाग ठिकाने तो है? कैसी बातें कर रहे हैं आप. क्या आप ने आसपास का हाल देखा है, लोग भरती होने के लिए यहांवहां भटक रहे हैं, कोरोना से पीड़ित तड़प रहे हैं. और एक तरफ आप हैं जो लेडी डाक्टर की मांग कर रहे हैं, जरा सोचसमझ कर तो बात कीजिए,”” पास खड़ी नर्स ने कहा.

यह सुन समर के चेहरे पर शर्मिंदगी के भाव झलकने लगे. वह असमंजस में पड़ गया. पास खड़े उस के पिता ने कहा, ““बेटा, इतनी मुश्किल से बहू को अस्पताल में बैड मिला है, बनीबनाई बात मत बिगाड़ो.”

मीरा की हालत बिगड़ रही थी, जिसे देख डाक्टर जल्दीजल्दी उस की रिपोर्ट देखने लगे.

“कोई प्रौब्लम थी जो वन मंथ की प्रेगनेंसी में ही दोनों बार अबौर्शन कराया गया?” डा. मजूमदार ने समर से पूछा.

“असल में बोथ वेयर गर्ल्स,” हिचकिचाहट का गोला जैसे समर के गले में फंस गया था. सच बताना और उस का सामना करना दोनों ही मुश्किल होते हैं. समर तो डा. मजूमदार को उस का चेकअप करते देख वैसे ही झल्ला रहा था. एक पुरुष जो थे वह. पर इस समय वह मजबूर था, इसलिए इस बारे में कोई शोर नहीं मचाया.

“व्हाट रबिश,” आवाज की तेजी से सकपका गए समर. 40 वर्ष के होंगे डा. मजूमदार, सांवली रंगत, आंखों पर चौकोर आकार का चश्मा, मुंह पर प्रौपर मास्क व शील्ड, और ब्लूट्राउजर व व्हाइट शर्ट के ऊपर डाक्टर वाला कोट पहना हुआ था उन्होंने. बंगाली होते हुए भी हिंदी का उच्चारण एकदम स्पष्ट व सधा हुआ था. बालों में एकदो सफेद बाल चांदी की तरह चमक रहे थे. अकसर लोगों को कहते सुना है मीरा ने कि अगर डाक्टर स्मार्ट और वेलड्रेस्ड हो तो आधी बीमारी उसे देखते ही गायब हो जाती है. यह सोच ऐसे माहौल और ऐसी हालत में भी उस के होंठों पर मुसकान थिरकी, पर मुंह पर मास्क लगे होने से किसी को दिखाई नहीं पड़ा.

“सिस्टर, औपरेशन की तैयारी करो. इन्हें अभी लेबररूम में ले जाओ और ड्रिप लगा दो. शी इज वैरी वीक एंड एनीमिक औल्सो.”

सिस्टर को हिदायत देने के बाद वे समर से बोले, “हालांकि, अभी इन बातों का टाइम नहीं है, बट आई एम शौक्ड कि आप जैसे पढ़ेलिखे लोग अभी भी लड़कालड़की में अंतर करते हैं. शादी करने के लिए आप को लड़की चाहिए, घर संभालने के लिए लड़की चाहिए और बच्चे पैदा करने के लिए. वहीं, वंश चलाने के लिए, बेटा पैदा करने के लिए भी लड़की चाहिए तो उन्हें मारते क्यों हो? जो कोख जन्म देती है, उसी की कोख में मर्डर भी कर देते हो. बहुत दुखद बात है. आई एम सरप्राइज्ड एंड शौक्ड बोथ, मिस्टर समर. इस से भी बढ़ कर वर्तमान में लोगों की हालत देखते हुए आप को अपनी पत्नी के कोरोना संक्रमित होने या बच्चे के संक्रमित होने का डर नहीं है, बल्कि इस बात की फिक्र है कि लेडी डाक्टर है या नहीं, पेट में लड़का है या नहीं.”

समर जैसे कुछ समझ नहीं रहा था या समझना नहीं चाहता था. उसे विचारशून्य सा खड़ा देख सासुमां बोलीं, “डाक्टर साहब, इस का औपरेशन तो लेडी डाक्टर से ही कराएंगे, आप उन्हें ही बुला दो. कोई तो होगी इस समय ड्यूटी पर.”

“इस समय लेडी डाक्टर कोई नहीं है, और इंतजार करने का हमारे पास समय नहीं है. आप को तो शुक्र मनाना चाहिए कि आप की बहू को ट्रीट करने के लिए कोई है. दूसरा अस्पताल ढूंढने की कोशिश या लेडी डाक्टर का वेट करने के चलते आप मांबच्चे दोनों की जान को अगर खतरे में डालना चाहते हैं तो चौयस इज योअर, पर मैं इस की इजाजत नहीं दे सकता. और मांजी, अगर आप इसी तरह लड़कियों को मारती रहेंगी तो लेडी डाक्टर कैसे होंगी? डाक्टर ही क्या, किसी भी पेशे में कोई महिला होगी ही नहीं. इट्स शेमफुल. आई डोंट अंडरस्टेंड कि एक तरफ तो आप ने बेटी को पैदा होने से पहले ही मार दिया और दूसरी ओर लेडी डाक्टर से ही डिलीवरी करवाना चाहती हैं,” डा. मजूमदार का चेहरा सख्त हो गया था.

“पर डाक्टर साहब, सुनिए तो, थोड़ी देर रुक सकें तो रुक जाएं. हो सकता है किसी लेडी डाक्टर की ड्यूटी हो. हमें तो लेडी डाक्टर से ही बहू का औपरेशन करवाना है. क्या गजब हो रहा है समर, यह…तू कुछ कह क्यों नहीं रहा और आप क्यों चुप खड़े हैं?” सासुमां कभी अपने बेटे को तो कभी अपने पति की ओर देखते हुए बड़बड़ाए जा रही थीं.

वहां मौजूद डाक्टर और नर्स समर और उस की मां के इस नाटक को देख हतप्रभ थे. देश में लोगों को यह नहीं पता कि कोरोना के कारण वे कल सुबह का सूरज देखेंगे भी या नहीं, और एक यह मांबेटे हैं जिन्हें लेडी डाक्टर का राग अलापने से फुरसत नहीं.

मीरा यह सब सुन रही थी और अंदर ही अंदर टूट रही थी, पर उसे टूटना नहीं था बल

Crime Story: बुरे फंसे यार

सौजन्य-मनोहर कहानियां

जैकब और ब्राउन ने योजना तो बहुत अच्छी बनाई थी. अपनी योजना का पहला चरण दोनों ने बखूबी पूरा भी कर लिया, लेकिन दूसरे चरण में पुलिस ने उन्हें धर लिया. सुकून की बात यह थी कि पुलिस ने उन्हें उस अपराध के लिए नहीं पकड़ा था, बल्कि उन्हें सिक्का चोर..

प्रस्तुति: शकी  जैकब प्लाजा फाउंटेन के पास बेखयाली में खड़ा था. उस की नजरें उस लड़की पर जमी थीं

जो फाउंटेन में सिक्के उछाल रही थी. कुछ और सिक्के पानी में फेंक कर वह चली गई. उस के बाद एक औरत आई. वह भी फाउंटेन में सिक्के उछाल रही थी. जैकब सोचा करता था कि किसी तरह दौलत हाथ आ जाए. लेकिन लोग इतने होशियार हो गए हैं कि जल्दी बेवकूफ भी नहीं बनते.

जैकब आजकल बहुत कड़की में था. उस ने सिर उठा कर आसमान की ओर देखा तो अनायास उस की नजर टाउन प्लाजा की खिड़की पर पड़ गई. खिड़की देख उस के दिमाग में एक आइडिया आ गया. उस ने खिड़की को गौर से देखा. वह खिड़की फाउंटेन के ठीक ऊपर बिल्डिंग की चौथी मंजिल पर स्थित ज्वैलरी शौप की थी. उस के दिमाग में हलचल मच गई.

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इस बीच कुछ बच्चे आ गए थे, जो फाउंटेन में सिक्के उछाल रहे थे. जैकब वहां से टेलीफोन बूथ पर पहुंचा और अपने दोस्त ब्राउन को फोन लगाया. काफी दिनों से ब्राउन ने कोई वारदात नहीं की थी. पुलिस के पास उस का रिकौर्ड साफ था. जैकब ने कहा, ‘‘ब्राउन, एक अच्छा आइडिया है. हम दोनों मिल कर काम कर सकते हैं. मैं यहां फाउंटेन प्लाजा के पास हूं, आ जाओ. एक अच्छी जौब है.’’

‘‘मुझे बुद्धू तो नहीं बना रहे हो. मैं तुम्हें 2 घंटे बाद ब्रिज पार्क बार में मिलता हूं.’’ ब्रिज पार्क बार पुरसुकून जगह थी. जैकब और ब्राउन की मीटिंग के लिए एक अच्छी जगह. ब्राउन ने कहा, ‘‘अब बताओ, क्या कहानी है?’’

‘‘टाउन डायमंड एक्सचेंज के हम मुट्ठी भर पत्थर चुपचाप से उठा सकते हैं, जिस की कीमत करीब 5 लाख डौलर होगी.’’ जैकब ने धीरे से बताया.

‘‘क्या बकवास कर रहे हो, यह कैसे हो सकता है?’’

‘‘तुम यह काम कर सकते हो. मैं तुम्हारा बाहर इंतजार करूंगा.’’

‘‘बहुत खूब. यानी पुलिस मुझे दबोच ले और तुम बाहर इंतजार करो.’’ ब्राउन ने गुस्से से कहा.

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‘‘कोई किसी को नहीं पकड़ेगा. तुम मेरी बात तसल्ली से सुनो. तुम किसी अमीरजादे की तरह चौथी मंजिल पर ज्वैलरी शौप पर पहुंचोगे और हीरों की एक ट्रे निकलवाओगे. वक्त दोपहर का होगा. इस वक्त बहुत कम ग्राहक होते हैं. उसी वक्त मैं हाल में हंगामा फैलाने का इंतजाम करूंगा. तुम फौरन मुट्ठी भर कीमती हीरे उठा लेना.’’

‘‘फिर मैं क्या करूंगा? क्या पत्थरों को निगल जाऊंगा?’’

‘‘यार पूरी बात तो सुनो. ऐसा कुछ नहीं है. सब की नजर बचा कर तुम मुट्ठी भर हीरे खिड़की से बाहर फेंक देना.’’

‘‘तुम्हारी बातें मेरे सिर से गुजर रही हैं. एसी की वजह से सारी खिड़कियां बंद होंगी.’’

‘‘मैं ने आज ही खिड़की खुली देखी है. उसी को देख कर यह आइडिया आया, क्योंकि कोई भी 4 मंजिल तय कर के हीरों के साथ नीचे नहीं उतर सकता. लेकिन हीरे अकेले 4 मंजिल उतर सकते हैं.’’

‘‘जैकब, मुझे यह पागलपन लग रहा है.’’ ब्राउन ने कहा.

‘‘तुम बात समझो. खिड़की काउंटर से ज्यादा दूर नहीं है. तुम हीरे उठा कर पलक झपकते ही खिड़की से बाहर उछाल देना. तुम्हें काउंटर से हट कर खिड़की तक जाने की भी जरूरत नहीं होगी. तुम अपनी जगह पर ही खड़े रहना. अगर तुम पर शक होता भी है तो तुम्हारी तलाशी ली जाएगी. तुम्हें मशीन पर खड़ा किया जाएगा, पर तुम्हारे पास से कुछ नहीं निकलेगा. मजबूरन तुम्हें छोड़ कर के वे दूसरे ग्राहकों को देखेंगे.’’

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‘‘चलो ठीक है, हीरे बाहर चले जाएंगे. पर क्या तुम उन्हें कैच करोगे? एक तरफ कहते हो कि तुम हाल में हंगामा करोगे फिर बाहर पत्थरों का क्या होगा?’’ ब्राउन ने ताना कसा.

‘‘यही तो मंसूबे की खूबसूरती है.’’ जैकब मुसकराया, ‘‘खिड़की के ठीक नीचे खूबसूरत फव्वारा और हौज है. हीरे हौज की गहराई में चले जाएंगे. जैसे कि बैंक की वालेट में बंद हों. कोई भी वहां हीरे गिरते नहीं देख सकेगा, न कोई बाद में देख सकता है क्योंकि यह शीशे की तरह सफेद है. कीमती पत्थरों की यही तो खूबी है, कलर, कैरेट और कट बहुत जरूरी होते हैं.’’

‘‘पर जब सूरज की किरणें पड़ेंगी तो?’’

‘‘सूरज की किरणें पड़ने का सवाल ही नहीं उठता क्योंकि पानी पर पूरे समय बिल्डिंग और पेड़ों का साया रहता है. मैं ने सब चैक कर लिया है. जब तक किसी को पता न हो कोई उन के बारे में नहीं जान सकता. 2-3 दिन बाद हम रात को आएंगे और आराम से हीरे निकाल लेंगे.’’ जैकब ने समझाया.

ब्राउन ने सिर हिला कर कहा, ‘‘प्लान तो अच्छा है.’’

अगले दिन ठीक सवा 12 बजे ब्राउन टाउन प्लाजा की चौथी मंजिल पर पहुंच गया. गार्ड ने मामूली चैकिंग कर के उसे अंदर जाने दिया. हाल में बहुत कम ग्राहक थे. ब्राउन मौका देख कर ठीक खिड़की के सामने खड़ा हो गया. सिर झुका कर उस ने एक ट्रे की तरफ इशारा किया.

 

जैसे ही सेल्समैन ने ट्रे बाहर निकाली, जैकब प्रवेश द्वार के हैंडल पर हाथ रख कर झुका और धड़ाम से नीचे गिर गया. गेट पर खड़ा गार्ड उस की तरफ बढ़ा. अंदर के लोगों का ध्यान बंट गया. सब उस की तरफ देखने लगे.

‘‘मिस्टर, क्या हुआ? तुम ठीक हो न?’’ गार्ड ने उस पर झुक कर पूछा.

‘‘मुझे…मुझे…सांस…’’ फिर उस ने पानी के लिए इशारा किया.

कुछ कस्टमर भी वहां जमा हो गए. 2 सेल्समैन भी आ गए. एक पानी ले आया. बड़ी मुश्किल से उस ने थोड़ाथोड़ा पानी पीया. वह बुरी तरह हांफ रहा था.

जैकब की ऐक्टिंग बहुत शानदार थी. वह धीरेधीरे लड़खड़ाता हुआ लोगों के सहारे खड़ा हुआ. एक क्लर्क ने अपनी कुरसी पेश कर दी.

‘‘मैं शायद बेहोश हो गया था.’’ वह धीरे से बड़बड़ाया. ‘‘तुम्हें डाक्टर की जरूरत है?’’ क्लर्क ने पूछा.

‘‘नहीं…नहीं मुझे घर जाना है. आप का शुक्रिया. मैं अब ठीक महसूस कर रहा हूं.’’ उस ने ब्राउन की तरफ देखने की बेवकूफी नहीं की. बहुत धीरेधीरे गेट से बाहर निकल गया.

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इमारत से निकल कर वह फव्वारे की तरफ पहुंच गया. वहां ज्यादा भीड़ नहीं थी. फव्वारे की लंबीऊंची धाराएं बड़े हौज में गिर रही थीं. उस की तह में सिवाए सिक्कों के और कुछ नजर नहीं आ रहा था. जैकब का अंदाजा दुरुस्त था. खुशी में उस ने भी एक सिक्का उछाल दिया. वहां से वह सीधा अपने फ्लैट पर पहुंचा. 2 घंटे के बाद ब्राउन की काल आ गई.

‘‘काम हो गया?’’ जैकब ने बेचैनी से पूछा.

 

‘‘काम तो हो गया पर बस इतना ही वक्त मिला था कि हीरे पानी में फेंक दूं. उस के बाद तो हंगामा मच गया, पुलिस आ गई. मैं चुपचाप अपनी जगह पर खड़ा रहा. वहां से हिला तक नहीं.

शौप वालों ने कोई कसर उठा कर नहीं रखी. पुलिस भी मुस्तैद थी. मेरी 2 बार तलाशी ली गई, पर मेरे पास से कुछ भी बरामद नहीं

हुआ. डायमंड एक्सचेंज वाले सख्त हैरान, परेशान थे.

‘‘किसी ने तुम्हारा जिक्र भी किया पर क्लर्क ने यह कह कर बात खत्म कर दी कि वह आदमी गेट के अंदर नहीं आया था. गेट से ही वापस चला गया था.

तुम्हारा मंसूबा शानदार था. शौप वाले मुझे छोड़ना नहीं चाहते थे, लेकिन पकड़ कर भी नहीं रख सकते थे. मैं निश्चिंत था. हर तरह की जांच करने के बाद करीब ढाई घंटे में मुझे छोड़ दिया गया. चलो, कल मिलते हैं ब्रिज पार्क में.’’

अगले दिन दोनों ब्रिज पार्क में बैठे बियर पी रहे थे. दोनों के चेहरे चमक रहे थे. जैकब ने कहा, ‘‘हम दोनों ने मिल कर शानदार कारनामे को अंजाम दिया है. ब्राउन, यह तो बताओ फिर वहां क्या हुआ?’’

 

‘‘मुझ से बारबार पूछा गया कि मैं ने क्या देखा. मेरा एक ही जवाब था कि मैं ने कुछ नहीं देखा. हां, मैं ने हीरे की ट्रे जरूर निकलवाई थी. इस से पहले कि मैं हीरों को देखता, एक आदमी धड़ाम से गेट पर गिर गया. मेरा ध्यान भी दूसरों की तरह उस तरफ चला गया.

‘‘मेरे साथ 4 और ग्राहक थे. मेरी पोजीशन हर तरह से साफ थी. हम सब की तलाशी बारबार ली गई. तंग आ कर एक्सरे तक ले डाला.

शायद पुलिस सोच रही थी कि हमारे पास कोई छिपा हुआ पाउच होगा और उसी में हीरे होंगे. पर सब बेकार गया. कुछ हासिल नहीं हुआ. तंग आ कर मुझे छोड़ दिया गया. मेरे बाद भी 2 आदमियों की जांच हो रही थी.’’ ब्राउन ने कहकहा लगाते हुए कहा.

‘‘अब क्या इरादा है?’’ ब्राउन ने बेचैनी से पूछा.

‘‘आज रात को वहां से हीरे निकाल लेंगे.’’ जैकब ने जवाब दिया.

ब्राउन बोला, ‘‘यार, घबराहट में मैं 5 हीरे ही बाहर फेंक सका.’’

जैकब ने कहा, ‘‘कोई बात नहीं. 5 लाख डौलर भी बहुत होते हैं.’’

जैकब और ब्राउन देर रात फव्वारे पर पहुंच गए. आज उन के ख्वाबों में रंग भरने की रात थी. दोनों ने जल्दी मुनासिब न समझी. दोनों एक कोने में काले कपड़ों में छिप कर बैठ गए. आधी रात तक का इंतजार किया.

लोगों की आवाजाही अब खत्म हो चुकी थी. फव्वारा अभी बंद था. पानी बिलकुल स्थिर था. इन्हें हीरे तलाश करने में मुश्किल नहीं हुई. 3 हीरे मिलने के बाद ब्राउन ने कहा, ‘‘जैकब, 3 काफी हैं, निकल चलते हैं.’’

‘‘नहीं यार, एक और तलाश कर लें फिर चलते हैं.’’ जैकब ने इसरार किया.

अचानक फ्लैश लाइट्स औन हो गईं. एकदम वे दोनों तेज रोशनी में नहा गए. एक कड़कती हुई आवाज सुनाई दी, ‘‘वहीं रुक जाओ.’’

दोनों अभी ही हौज से बाहर निकले थे. ‘मारे गए यार…’ जैकब ने फ्लैश लाइट्स से बाहर दौड़ लगाई. लेकिन पुलिस वाले गाड़ी से उतर कर वहां पहुंच गए. एक ने जैकब पर गन तान ली, दूसरे ने ब्राउन पर. दोनों हाथ ऊपर कर के खड़े हो गए. ‘‘ईजी औफिसर, गोली मत चलाना. आप ने हमें पकड़ लिया है.’’ ब्राउन ने डर कर कहा.

‘‘तुम ठीक समझे. जरा भी हलचल की तो गोली चल जाएगी.’’ गन वाला गुर्राया.

 

‘‘हौज से मिलने वाले सिक्के हर महीने चैरिटी के नाम पर यतीमखाने में दिए जाते हैं. तुम दोनों इतने बेईमान हो कि खैराती रेजगारी भी चुराने आ गए.

ठहरो, अभी तुम्हारी तलाशी होती है. जज कम से कम 3 महीने की सजा तो देगा ही. इन्हें गनपौइंट पर गाड़ी में डालो. पुलिस स्टेशन पर इन की तलाशी ली जाएगी.’’

दोनों मजबूरन हाथ उठाए उदास से गाड़ी में बैठ गए. ब्राउन धीरे से बोला, ‘‘बुरे फंसे यार.’’

मानसून स्पेशल: साल भर खाएं संतरा बरफी

खानपान के कारोबार में नएनए प्रयोग हो रहे हैं, जिन से खाने वालों को नए नए स्वाद मिल रहे हैं. जरूरत इस बात की है कि खाने की चीजों को लंबे समय तक खराब होने से कैसे बचाया जा सके. इस के लिए मिठाइयों में दूध या दूध से बनी चीजों का इस्तेमाल कम से कम किया जा रहा है.

खोए के मुकाबले मेवों से बनने वाली मिठाइयां लंबे समय तक चलती हैं. मेवे महंगे होने के कारण उन से तैयार होने वाली मिठाइयां भी महंगी हो जाती हैं. संतरा बरफी सेहत के लिए भी खोए की मिठाइयों से बेहतर होती है.

लखनऊ के छप्पन भोग मिठाई शौप के मालिक विनोद गुप्ता कहते हैं, ‘हमारे देश में तमाम तरह के फलों की पैदावार होती है. इन फलों में सेहत और स्वाद का खजाना छिपा होता है. इन फलों का स्वाद लोग हमेशा लेना चाहते हैं. ऐसे में हम ने कुछ मिठाइयों को फलों के स्वाद वाली बनाने की शुरुआत की है. संतरा बरफी उन में से एक है.

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पहले यह बेसन से तैयार होती थी. उसे संतरे का रंग और स्वाद दिया जाता था. पर वह खाने में बहुत अच्छी नहीं लगती थी. ऐसे में संतरा बरफी को नए तरीके से पेठे की तरह से तैयार किया जाने लगा है. यह बेसन से तैयार बरफी से अलग होती है. इसे पेठे की तरह तैयार कर के इस में संतरे के पल्प से तैयार रस मिलाया जाता है. इस वजह से इस में संतरे के स्वाद और ताजगी का एहसास होता है.’

कैसे बनती है संतरा बरफी

सामग्री :

डेढ़ किलोग्राम सफेद कद्दू,

1 किलोग्राम चीनी,

10 ग्राम चूना

2 बड़े चम्मच गुलाबजल,

250 ग्राम संतरा पल्प,

दूध और चांदी का बरक.

विधि :

कद्दू का छिलका व बीज अलग कर लें. इस के 2 इंच के टुकड़े काट लें. इन टुकड़ों को चूने के पानी में डाल दें.

8 से 10 घंटे बाद इन को कई बार साफ पानी से धोएं और उबलते पानी में डाल कर हलका सा नरम कर लें.

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कद्दू के टुकड़ों को घिस कर लच्छे तैयार कर लें. चीनी में पानी मिला कर चाशनी तैयार करें. थोड़ा सा दूध डाल कर चाशनी का मैल अलग कर लें.

चाशनी में कद्दू के टुकड़ों से तैयार लच्छे डाल कर 15 मिनट धीमी आंच पर पकाएं. अगले दिन लच्छे निकाल कर चाशनी गाढ़ी करें. फिर उस में लच्छे डाल कर फिर से पकाएं. इसे रात भर रखा रहने दें.

तीसरे दिन इस में संतरा पल्प डाल कर इस तरह से पकाएं कि चाशनी नीचे से जले नहीं, पर लच्छे पूरी तरह से सूख जाएं.

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अब इन को किसी बड़ी प्लेट में रख कर बरफी की तरह से छोटेछोटे टुकड़े काट लें. अलगअलग टुकड़े को कागज की छोटीछोटी कटोरियों में रखें.

सजावट के लिए चांदी के बरक का इस्तेमाल करें. इस से बरफी की ताजगी लंबे समय तक बनी रहेगी. संतरा बरफी में संतरे के स्वाद को पूरे साल लिया जा सकता है.

आड़ू की खेती पहाड़ों से मैदानों में

उत्तर प्रदेश में सब से ज्यादा आम की बागबानी होती है. अब आम के प्रदेश में आड़ू ने दस्तक दे दी है. यही वजह है कि अब उत्तर प्रदेश में ‘आड़ू दिवस’ मनाया जाने लगा है. इस साल लखनऊ के फल बाजार में लखनऊ के ही आड़ू बिकने आ गए हैं.

आड़ू की खेती आमतौर पर पहाड़ों पर होती थी. अब आड़ू की ऐसी किस्म भी तैयार हो गई है, जिस की खेती मैदानी इलाकों में भी हो रही है. उत्तर प्रदेश की राजधानी लखनऊ में तमाम किसान और बागबान अब इस की खेती करते हैं.

आड़ू की उत्पत्ति को ले कर अलगअलग तरह के विचार हैं. कुछ लोग आड़ू की उत्पत्ति की जगह चीन को मानते हैं और कुछ इसे ईरान का मानते हैं. यह एक पर्णपाती वृक्ष है.

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भारत के पर्वतीय व उपपर्वतीय भागों में इस की सफल खेती होती है. इस के ताजे फल खाए जाते हैं. फलों से जैम, जैली और चटनी भी बनती है. फल में चीनी की मात्रा पर्याप्त होती है. जहां जलवायु न अधिक ठंडी न अधिक गरम हो और 15 डिगरी फारनहाइट से 100 डिगरी फारनहाइट तक के ताप वाले पर्यावरण में इस की खेती सफलता हो सकती है.

इस की अच्छी पैदावार के लिए सब से उत्तम मिट्टी बलुई दोमट है. आड़ू का फल ऐसे समय पर पक कर तैयार होता है, जिस समय बाजार में ज्यादा फल नहीं होते हैं. ऐसे में

फल 200 रुपए प्रति किलोग्राम की दर से भी बिकता है.

लखनऊ बहुत से किसानों ने आड़ू के पौधे पहली बार देखे. इन लोगों ने दूसरे किसानों को खेती करते देख कर इसे शुरू किया. 2 ही सालों में पौधों पर अच्छी संख्या में लगे फल देख कर काफी उत्साहित हो कर इस की खेती करनी शुरू कर दी.

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आड़ू की खेती

आड़ू के पौधे 15 से 18 फुट की दूरी पर दिसंबर या जनवरी के महीने में लगाए जाते हैं. सड़े गोबर की खाद या कंपोस्ट 80 से 100 मन तक प्रति एकड़ प्रति साल नवंबर या दिसंबर में देनी चाहिए. जाड़े में एक या 2 और गरमी में हर हफ्ते सिंचाई करनी चाहिए.

सुंदर आकार तथा अच्छी वृद्धि के लिए आड़ू के पौधे की कटाई तथा छंटाई पहले 2 साल अच्छी तरह की जाती है. इस के बाद हर साल दिसंबर में छंटाई की जाती है. जून में फल पकता है. प्रति पेड़ 30 से 50 किलो तक फल मिलते हैं.

आड़ू को जिन कीटों से नुकसान पहुंच सकता है उन में स्तंभ छिद्रक (स्टैम बोरर), आड़ू अंगमारी (पीच ब्लाइट) व पर्ण परिकुंचन (लीफ कर्ल) अहम हैं. इन रोगों से इस पेड़ की रक्षा कीटनाशक द्रव्यों के छिड़काव (स्प्रे) द्वारा आसानी से की जाती है.

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केंद्रीय उपोष्ण बागबानी संस्थान रहमानखेड़ा, लखनऊ से मिली जानकारी से पता चलता है कि यहां आसपास के किसानों ने आड़ू की खेती के प्रति उत्साह दिखाया. इस के प्रचारप्रसार के लिए ‘आड़ू दिवस’ भी मनाया जाता है. अच्छी फसल मिलने से लखनऊ और आसपास के इलाकों के

अलावा पश्चिमी उत्तर प्रदेश के किसानों में भी आड़ू की खेती को ले कर दिलचस्पी दिखाई देने लगी है.

लेडी डौक्टर कहां है- भाग 2: समर की मां ने डॉक्टर से क्या कहा?

“लड़कियां हमें चाहिए ही नहीं. बस, बेटे होने चाहिए. लड़की को पढ़ाओ, खर्च करो, उस की शादी करो और उस का फायदा उठाए उस की ससुराल वाले. ससुराल वालों के नखरे सहो, सो अलग. बेकार में सारी जिंदगी खपाने का कोई शौक नहीं हमें. मैं नहीं चाहती कि मेरा समर पूरी जिंदगी लड़कियों की वजह से खटता रहे,” सासुमां के तर्क उसे भयभीत कर गए थे.

“मां, आप भी तो लड़की हैं. आप ऐसा कैसे कह सकती हैं? आप भी तो ब्याह कर इस घर में आई हैं और अपने बेटे के लिए भी तो आप भी लड़की को ही ब्याह कर लाई हैं. अगर आप के मांबाप ने आप को भी कोख में ही मार दिया होता या मुझे भी जन्म नहीं लेने दिया होता तो न ससुरजी की शादी होती और न ही समर की. लड़कियां नहीं होंगी तो लड़के कुंआरे ही रह जाएंगे. सोचिए मां, अगर आप को जन्म नहीं दिया गया होता तो… यह खयाल ही कितना पीड़ादायक है,” मीरा के ऐसा कहते ही घर में भूचाल आ गया था.

“वार्निंग दे रहा हूं तुम्हें, मां से कभी बहस करने की कोशिश मत करना,” समर की आंखों में उठती ज्वालाओं ने उस के थोड़ेबहुत साहस को राख कर दिया था. 2 बेटियां अजन्मी ही मार दी गईं और वह अपनी बेबसी पर केवल कराह ही पाई. अपनी ही कोख पर अधिकार नहीं था उसे, अपने रक्तमांस को सांस लेनेदेने का अधिकार नहीं था उसे. कोई इतना क्रूर कैसे हो सकता है वह भी जब हर तरफ बेटी बचाओ, बेटी पढ़ाओ का शोर है. बेटियां बेटों से कहीं ज्यादा टेलेंटेड साबित हो रही हैं और हर क्षेत्र में आगे बढ़ रही हैं. यही नहीं, बेटों से कही ज्यादा पेरेंट्स का ख्याल रखती हैं, फिर भी इन लोगों की ऐसी सोच है.

मां तो चलो पुराने खयालात रखती हैं, पर समर, वे तो ऐजुकेटेड इंसान हैं, मल्टीनेशनल कंपनी में काम करते हैं जहां लड़कियों की संख्या लड़कों से कम नहीं है, वे किस तरह लड़कीलड़के में भेद कर सकते हैं यहां तक कि लिंग परीक्षण करा गर्भपात करवा सकते हैं. समर कंजर्वेटिव हैं, यह तो मीरा शादी के शुरुआती दिनों में ही जान गई थी. उस का उन्हीं के पुरुषमित्रों से बात करना या आसपड़ोस के किसी पुरुष से बात करना उन्हें अखरता था, यहां तक कि रिश्तेदारों में भी पुरुषों से उस का हंसीमजाक करना उन्हें चुभता था.

कैसे दोहरे मापदंड हैं, मीरा अकसर सोचती. एक तरफ लड़की को जन्म न दो और दूसरी ओर पुरुषों से दूरी बना कर रखो.
पर कहीं जन्म लेने के बाद उस की बेटी को मार डाला गया तो क्या होगा… मीरा कांप गई. अजन्मी बेटियां तो चली गईं, पर उस की गोद में आई बेटी अगर उस से छीन ली गई तो अपराधबोध के बोझों को क्या कभी वह अपने से अलग कर पाएगी? साहस तो जुटाना ही होगा मीरा को इस बार. उस ने जैसे खुद ही अपना मनोबल बढ़ाने की कोशिश की.

“दोपहर के खाने का वक्त हो गया है, आज हमें भूखा ही रखने का इरादा है क्या?” सासुमां दरवाजे पर खड़ी थीं. अपनी गीली आंखों को पोंछा नहीं मीरा ने. नहीं उठा जा रहा है उस से.

“मां, अस्पताल ले चलिए मुझे, लगता है समय से पहले ही बेबी हो जाएगा,” मीरा के पीले पड़ते चेहरे और उखड़ती सांस के कंपन को सुन सहम गईं कमला. कहीं इसे कुछ हो गया तो अपने वंश से भी हाथ धोने पड़ेंगे. मीरा उन्हें इस समय कुछ ज्यादा ही कमजोर लगी. शरीर से जैसे किसी ने सारा रक्त ही चूस लिया हो.

“मैं समर को फोन करती हूं,” वे बाहर भागीं.

“मैं कैब बुला लेता हूं, समर को औफिस से ही घर के सब से पास जो सरकारी अस्पताल है उस में आने को कहो,” ससुरजी की आवाज मीरा के कानों में पड़ी. वह जानती थी कि मांबेटे के सामने चाहे कुछ न बोलें, पर उस के प्रति उन के मन में कोमल संवेदनाएं थीं. कुछ जरूरी सामान रखने में सासुमां ने उस की मदद की.

कैब में बैठे वे पूरे रास्ते बड़बड़ाते रहे कि आखिर अस्पताल में मीरा को भरती किया जाएगा भी या नहीं. कोरोना के चलते अस्पताल में किसी को भी भरती नहीं किया जा रहा था. जिसे किया आ रहा था उस से बड़ी कीमत वसूली जा रही थी. दिल्ली के हालात तो वैसे भी त्रस्त थे. ऐसे में मन में कई सवाल भी उठ रहे थे और डर भी था.

घर के सब से पास वाले अस्पताल में मीरा को भरती करने से मना कर दिया गया. मीरा दर्द से कराह रही थी, तब भी उस की हालत को नजरंदाज करते हुए कहा गया कि यहां केवल कोरोना मरीजों को भरती किया जा रहा है और एक भी बैड खाली नहीं है.

वहीं समर भी आ चुका था. समर मीरा और मातापिता को ले कर दूसरे अस्पताल गया. वहां भी उन्हें यह कह कर लौटा दिया गया कि बैड खाली नहीं है.

“अरे, भगवान की दया से ही बहू को भरती कर लो, हालत तो देखो इस की,” मीरा की सास रिसेप्शन पर कहने लगीं.

““मां जी, यहां भगवान की नहीं, डाक्टर की दया चलती है. वेंटिलेटर और अन्य सवास्थ सुविधाओं से जान बचती है, भगवान का नाम जपने से नहीं. देर मत कीजिए और किसी दूसरे अस्पताल जाइए, यहां कोरोना के कई गंभीर केसेस पहले ही आए हुए हैं,” रिसेप्शनिस्ट ने कहा.

लेडी डौक्टर कहां है- भाग 3: समर की मां अस्पाताल में डॉक्टर से बार-बार क्या कह रही थी?

मारेमारे वे लोग तीसरे अस्पताल पहुंचे जहां किसी तरह मीरा को अस्पताल में भरती कर लिया गया. मशीन लगा कर डाक्टर ने टेस्ट किया. बच्चे की सांस चल रही थी, पर वह रिस्पौंड नहीं कर रहा था.

“तुरंत सिजेरियन करना होगा, वी कांट टेक चांस, इट्स ए प्रीमेच्योर डिलीवरी, इसलिए हो सकता है थोड़ी कौंप्लीकेटेड हो, वैसे भी, इन की मेडिकल हिस्ट्री बता रही है कि पहले 2 अबौर्शन कराए हैं आप ने,” डा. मजूमदार, जो उस समय ड्यूटी पर थे, सारी रिपोर्ट्स ध्यान से पढ़ रहे थे. हैरानी थी उन के चेहरे पर.

समर ने दबी आवाज में वहां खड़ी सिस्टर से पूछा, “कोई लेडी डाक्टर नहीं है क्या इस समय? गाइनी तो लेडी डाक्टर को ही होना चाहिए. डिलीवरी वही तो करवा सकती है. अब तक तो चेकअप लेडी डाक्टर ही करती आई है. क्या कोई लेडी डाक्टर नहीं आ सकती क्या?”

““आप का दिमाग ठिकाने तो है? कैसी बातें कर रहे हैं आप. क्या आप ने आसपास का हाल देखा है, लोग भरती होने के लिए यहांवहां भटक रहे हैं, कोरोना से पीड़ित तड़प रहे हैं. और एक तरफ आप हैं जो लेडी डाक्टर की मांग कर रहे हैं, जरा सोचसमझ कर तो बात कीजिए,”” पास खड़ी नर्स ने कहा.

यह सुन समर के चेहरे पर शर्मिंदगी के भाव झलकने लगे. वह असमंजस में पड़ गया. पास खड़े उस के पिता ने कहा, ““बेटा, इतनी मुश्किल से बहू को अस्पताल में बैड मिला है, बनीबनाई बात मत बिगाड़ो.”

मीरा की हालत बिगड़ रही थी, जिसे देख डाक्टर जल्दीजल्दी उस की रिपोर्ट देखने लगे.

“कोई प्रौब्लम थी जो वन मंथ की प्रेगनेंसी में ही दोनों बार अबौर्शन कराया गया?” डा. मजूमदार ने समर से पूछा.

“असल में बोथ वेयर गर्ल्स,” हिचकिचाहट का गोला जैसे समर के गले में फंस गया था. सच बताना और उस का सामना करना दोनों ही मुश्किल होते हैं. समर तो डा. मजूमदार को उस का चेकअप करते देख वैसे ही झल्ला रहा था. एक पुरुष जो थे वह. पर इस समय वह मजबूर था, इसलिए इस बारे में कोई शोर नहीं मचाया.

“व्हाट रबिश,” आवाज की तेजी से सकपका गए समर. 40 वर्ष के होंगे डा. मजूमदार, सांवली रंगत, आंखों पर चौकोर आकार का चश्मा, मुंह पर प्रौपर मास्क व शील्ड, और ब्लूट्राउजर व व्हाइट शर्ट के ऊपर डाक्टर वाला कोट पहना हुआ था उन्होंने. बंगाली होते हुए भी हिंदी का उच्चारण एकदम स्पष्ट व सधा हुआ था. बालों में एकदो सफेद बाल चांदी की तरह चमक रहे थे. अकसर लोगों को कहते सुना है मीरा ने कि अगर डाक्टर स्मार्ट और वेलड्रेस्ड हो तो आधी बीमारी उसे देखते ही गायब हो जाती है. यह सोच ऐसे माहौल और ऐसी हालत में भी उस के होंठों पर मुसकान थिरकी, पर मुंह पर मास्क लगे होने से किसी को दिखाई नहीं पड़ा.

“सिस्टर, औपरेशन की तैयारी करो. इन्हें अभी लेबररूम में ले जाओ और ड्रिप लगा दो. शी इज वैरी वीक एंड एनीमिक औल्सो.”

सिस्टर को हिदायत देने के बाद वे समर से बोले, “हालांकि, अभी इन बातों का टाइम नहीं है, बट आई एम शौक्ड कि आप जैसे पढ़ेलिखे लोग अभी भी लड़कालड़की में अंतर करते हैं. शादी करने के लिए आप को लड़की चाहिए, घर संभालने के लिए लड़की चाहिए और बच्चे पैदा करने के लिए. वहीं, वंश चलाने के लिए, बेटा पैदा करने के लिए भी लड़की चाहिए तो उन्हें मारते क्यों हो? जो कोख जन्म देती है, उसी की कोख में मर्डर भी कर देते हो. बहुत दुखद बात है. आई एम सरप्राइज्ड एंड शौक्ड बोथ, मिस्टर समर. इस से भी बढ़ कर वर्तमान में लोगों की हालत देखते हुए आप को अपनी पत्नी के कोरोना संक्रमित होने या बच्चे के संक्रमित होने का डर नहीं है, बल्कि इस बात की फिक्र है कि लेडी डाक्टर है या नहीं, पेट में लड़का है या नहीं.”

समर जैसे कुछ समझ नहीं रहा था या समझना नहीं चाहता था. उसे विचारशून्य सा खड़ा देख सासुमां बोलीं, “डाक्टर साहब, इस का औपरेशन तो लेडी डाक्टर से ही कराएंगे, आप उन्हें ही बुला दो. कोई तो होगी इस समय ड्यूटी पर.”

“इस समय लेडी डाक्टर कोई नहीं है, और इंतजार करने का हमारे पास समय नहीं है. आप को तो शुक्र मनाना चाहिए कि आप की बहू को ट्रीट करने के लिए कोई है. दूसरा अस्पताल ढूंढने की कोशिश या लेडी डाक्टर का वेट करने के चलते आप मांबच्चे दोनों की जान को अगर खतरे में डालना चाहते हैं तो चौयस इज योअर, पर मैं इस की इजाजत नहीं दे सकता. और मांजी, अगर आप इसी तरह लड़कियों को मारती रहेंगी तो लेडी डाक्टर कैसे होंगी? डाक्टर ही क्या, किसी भी पेशे में कोई महिला होगी ही नहीं. इट्स शेमफुल. आई डोंट अंडरस्टेंड कि एक तरफ तो आप ने बेटी को पैदा होने से पहले ही मार दिया और दूसरी ओर लेडी डाक्टर से ही डिलीवरी करवाना चाहती हैं,” डा. मजूमदार का चेहरा सख्त हो गया था.

“पर डाक्टर साहब, सुनिए तो, थोड़ी देर रुक सकें तो रुक जाएं. हो सकता है किसी लेडी डाक्टर की ड्यूटी हो. हमें तो लेडी डाक्टर से ही बहू का औपरेशन करवाना है. क्या गजब हो रहा है समर, यह…तू कुछ कह क्यों नहीं रहा और आप क्यों चुप खड़े हैं?” सासुमां कभी अपने बेटे को तो कभी अपने पति की ओर देखते हुए बड़बड़ाए जा रही थीं.

वहां मौजूद डाक्टर और नर्स समर और उस की मां के इस नाटक को देख हतप्रभ थे. देश में लोगों को यह नहीं पता कि कोरोना के कारण वे कल सुबह का सूरज देखेंगे भी या नहीं, और एक यह मांबेटे हैं जिन्हें लेडी डाक्टर का राग अलापने से फुरसत नहीं.

मीरा यह सब सुन रही थी और अंदर ही अंदर टूट रही थी, पर उसे टूटना नहीं था बल्कि मजबूत बनना था. अभी तो उसे एक और लड़ाई लड़नी थी, अपनी आने वाली बेटी की रक्षा करनी थी. जन्म होने से पहले तो मरने से उसे बचा लिया था, पर जन्म के बाद मिलने वाली पीड़ा, अवहेलना और तिरस्कार से उसे बचाना था. स्नेह, प्यार और सम्मानसब देते हुए उसे ही परवरिश करनी होगी. किसी और से उम्मीद रखना व्यर्थ है.

फिर भी, लेबररूम की ओर जाते हुए मीरा ने सांत्वना और प्यारभरे स्पर्श की उम्मीद में बड़ी आशा से समर की ओर देखा. पर वह तो चारों ओर नजरें घुमाता हुआ एक ही बात कह रहा था, “लेडी डाक्टर कहां है? उसे बुलाओ, जल्दी, हमें लेडी डाक्टर ही चाहिए.”

 

तू मसीहा सियासत के मारों का है –

मध्यप्रदेश भाजपा मंत्रिमंडल के विस्तार पर प्रकाश मेहरा निर्देशित सुपर डुपर हिट फिल्म मुकद्दर का सिकंदर फिल्म के गाने का अमिताभ बच्चन और रेखा पर फिल्माया उक्त टुकड़ा बेहद सटीक बैठता है . मंत्रिमंडल विस्तार में कांग्रेस से आए ज्योतिरादित्य सिंधिया पर खास तवज्जो देते उनके 11 चहेतों को मंत्री बनाया गया है इसके अलावा 3 और कांग्रेसियों को एडजेस्ट किया गया है . कमलनाथ मंत्रिमंडल में सिंधिया समर्थक 6 मंत्री थे अब शिवराज मंत्रिमंडल में इनकी तादाद 11 हो गई है . नए मंत्रिमंडल में शिवराज सिंह सहित कुल 34 मंत्री हैं जिनमें से 14 यानि 41 फीसदी कांग्रेसी हैं .

गैर भाजपाई 14 मंत्रियों में से अभी कोई भी विधायक नहीं है .  ऐसी कई हैरतअंगेज दिलचस्प बातें मौजूदा राजनीति की हकीकत बयां करती हैं जिनका सार यह है कि सियासत और मोहब्बत में नाजायज कुछ नहीं होता और प्रदेश कांग्रेस जब तक बूढ़ों के हाथों में रहेगी तब तक भाजपा को ज्यादा फिक्र करने की जरूरत नहीं है . भाजपा में विभीषणों को पर्याप्त सम्मान मिलता है .  वह दानवों को देवता और अनार्यों को भी आर्य बना सकती है .  उलट इसके कांग्रेस में नख और दंत विहीन शेरों का दबदबा है जो शिकार के लिए भी कारिंदे रखते हैं . कमलनाथ और दिग्वजय सिंह दोनों जमीनी नेता नहीं हैं उन्हें अर्ध जमीनी कहना ज्यादा बेहतर होगा .

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तैयारी उपचुनाव की

मंत्रिमंडल विस्तार में 24 सीटों के उपचुनावों का खौफ साफ साफ दिख रहा है .  भाजपा को सत्ता में रहना है तो उसे ज्यादा से ज्यादा सीटें जीतना होंगी और इसी लिहाज से मंत्रिमंडल डिजायन भी किया गया है . अंदाजा है यह डिजायन दिल्ली से बनकर आई जिसमें अगड़ों और पिछड़ों को बराबर जगह दी गई . मंत्रिमंडल में 3 ब्राह्मण 8 ठाकुर 10 पिछड़े और 4 – 4 दलित , आदिवासी रखे गए हैं . 2 मंत्री गैर मुसलमान अल्पसंख्यक , 1 कायस्थ और जाट समुदाय से भी 1 को फिट किया गया है .

दरअसल में जिन 24 सीटों पर उपचुनाव होना है उनमें से सबसे ज्यादा 16 चंबल –  ग्वालियर संभागों की हैं .  ये सभी कांग्रेस के कब्जे में थीं और बिलाशक सिंधिया के प्रभाव के चलते उसे मिलीं थीं .  अब भाजपा सिंधिया को नवाज कर ये सीटें कब्जाना चाहती है . इन सीटों पर कांग्रेस बेहद कमजोर हो गई है , उसके पास कोई सर्वमान्य नेता इस इलाके में नहीं बचा है कमोबेश यही हालत भाजपा की भी है . सिंधिया का भगवा यूनिवर्सिटी में इनरोलमेंट इसी समीकरण के चलते हुआ था . सिंधिया खेमे में दलितों और ठाकुरों की भरमार है जिनके सहारे भाजपा नैया पार लगने का ख्वाव देख रही है क्योंकि उसके पास पहले से ही सवर्ण वोटों का समर्थन और साथ है और बूथ लेबल तक का नेटबर्क भी है .

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अब होगा यह कि सभी सिंधिया समर्थक भाजपा के टिकिट पर चुनाव लड़ेंगे .  इस बेमेल गठबंधन को भाजपा कार्यकर्ता धीरे धीरे ही सही स्वीकार रहा है .  थोड़ी बहुत नाराजी या बगावत से उसके खेल पर कोई बड़ा फर्क नहीं पड़ना क्योंकि मेसेज ऊपर से आया है कि हाथ आया यह मौका चूकना नहीं है . जिन भाजपाई दिग्गजों को मंत्रिमंडल में जगह नहीं मिली है वे खामोश हैं और अपने उत्तेजित समर्थकों और कार्यकर्ताओं को समझाने की कवायद में जुट गए हैं कि अब हम ज़ोहरा बाई के रोल में हैं जो मुजरा करेगी तो सिर्फ सिकंदर यानि सिंधिया के लिए आगे जो होगा देखा जाएगा अभी कोई दिलावर बनने का जोश न दिखाए .

मुकम्मल इज्जत मिलने के बाद सिंधिया ने दिग्विजय सिंह और कमलनाथ को निशाने पर लेते हुए एक फिल्मों जैसी ही बात कही कि टाइगर अभी जिंदा है . उन्होने सवा साल के कांग्रेस शासन काल में हुई राज्य की दुर्दशा का भी जिक्र किया . बस इतना कहना था कि कांग्रेसी खासतौर से दिग्विजय सिंह तिलमिला उठे .  जबाब में उन्होने ज्योतिरादित्य के पिता माधवराव का जिक्र किया कि वे उनके साथ शेर का शिकार किया करते थे .

लगता नहीं कि ऐसी फालतू बातों से कांग्रेस सत्ता वापस छीन पाएगी जो अभी तक बैठकें ही कर रही है कि अब क्या किया जाए जबकि करने उसके पास कुछ खास रह नहीं गया है . जो आत्मीयता शिवराज और सिंधिया एक दूसरे के प्रति दिखा रहे हैं वह सीधे सीधे चुनाव जीतने की डील है जिसे एक जोरदार धुआधार मुहिम बनाने भगवा खेमा खाका खींच चुका है . शपथ ग्रहण के समय जानबूझ कर यह सुगबुगाहट पैदा की गई थी कि सिंधिया और भाजपा का तीन पीढ़ियों का नाता है . हैरानी नहीं होनी चाहिए अगर चुनाव प्रचार में वह राजमाता सिंधिया के अलावा माधवराव सिंधिया के भी नाम और फोटुओ का भी इस्तेमाल करे .

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एक सच

इसमें कोई शक नहीं कि सवा साल में कांग्रेस आम लोगों की उम्मीदों पर खरी नहीं उतर पाई .तीनों गुट एक दूसरे की टांग खिंचाई करते 15 साल की भूख प्यास मिटाने में जुटे रहे इसमें भी सिंधिया समर्थकों को दलितों की तरह कुए से पानी नहीं भरने दिया तो वे राम भक्तों के साथ हो लिए लेकिन जाते जाते नाथ –  दिग्विजय की भी रस्सी बाल्टी ले गए . अब ये प्यासे उन्हें गद्दार कहें या विभीषण इससे सिंधिया की सेहत पर कोई फर्क नहीं पड़ रहा . उनकी दुश्मनी दिग्विजय सिंह से थी जो उन्होने निकाल ली तो इसके जिम्मेदार दिग्विजय से ज्यादा राहुल सोनिया गांधी हैं जो सिंधिया की पहुँच का सही आकलन नहीं कर पाये और न ही दिग्विजय सिंह का कि वे तो कभी जमीनी नेता रहे ही नहीं उन्हें तो अर्जुन सिंह की कृपा मिली हुई थी जो क्षेत्रीय और जातिवादी राजनीति के कीड़े कहे जाते थे .

कांग्रेस इन पुराने फार्मूलों की राजनीति का रास्ता नहीं छोड़ पा रही उलट इसके भाजपा नए नए प्रयोग करने का जोखिम उठा रही है और दिलचस्प बात यह कि इसका फर्क वह अपने हिन्दू राष्ट्र के एजेंडे पर नहीं पड़ने दे रही . सिंधिया को उसने जी भर कर खैरात देकर राजस्थान में सचिन पायलट को सत्ता का लोलीपोप दिखा दिया है जो मुख्यमंत्री अशोक गेहलोत से उतने ही दुखी रहते हैं जितने कि मध्यप्रदेश में सिंधिया , दिग्विजय –  कमलनाथ से रहते थे .

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कांग्रेस को सावधान रहना होगा लेकिन रहेगी ऐसा लगता नहीं क्योंकि वह अपने मूल एजेंडे से भटकती जा रही है . एससीबीसी वोट उसके हाथ से छिटक रहा है और मुसलमान भाजपा के सामने घुटने टेक रहा है . फिर हल क्या इसका सीधा और संक्षिप्त जबाब यही समझ आता है कि उसे पसरते कट्टर हिंदूवाद से सीधी लड़ाई लड़ने का जोखिम उठाना पड़ेगा नहीं तो सिंधिया की तरह कई जमीनी नेता गम गलत करने भाजपा के सियासी कोठे पर जाने से हिचकिचाएगे नहीं जो सियासत के मारों का मसीहा बनती जा रही है .

सीरियलों की शूटिंग शुरू, मगर दो वक्त के खाने के लिए मोहताज लाखों लोग

कोरोना महामारी और लॉकडाउन के चलते पिछले साढ़े तीन माह से बॉलीवुड में काम बंद चल रहा है. महाराष्ट् सरकार के शूटिंग के दिशा निर्देष जारी होने के बाद 25 जून से कुछ टीवी सीरियलों की शूटिंग शुरू हुई है. मगर महाराष्ट् सरकार के शूटिंग के दिशा निर्देष जारी होने के बाद जूनियर आर्टिस्ट (पुरुष और महिला) के रूप में काम करने वाले वर्करों,सिने नर्तक, फोटोग्राफर,डमी कलाकार स्टंट कलाकारों सहित लाखों लोगों के लिए आर्थिक संकट पहले से कहीं अधिक गहरा गया है और अब इनके सामने दो वक्त के भोजन की समस्या गहरा गयी है.

टीवी इंडस्ट्री की कार्य प्रणाली के अनुसार अब तक के नियमों के अनुसार हर कलाकार,तकनीशि यन,स्टंट कलाकार,डॉसर सहित सभी वर्करों को उनकी पारिश्रमिक राशि नब्बे दिन बाद मिलती रही है. इसी नियम के चलते कोरोना महामारी से बचाव के चलते 17 मार्च से षूटिंग वगैरह बंद हो गयी थी और लोगों उस वक्त तक दिसंबर 2019 में किए गए काम के भी पैसे नही मिले थे.लॉकडाउन लागू होने के बाद किसी भी ब्राडकॉस्टर व सीरियल निर्माता ने इन कलाकारों,तकनीशियन व कर्करों की कोई सुध नहीं ली.‘फेडरेशन आफ वेस्टर्न इंडिया सिने एम्पलाइज ’’(एफ डब्लू आई सी ई )ने अपनी तरफ से कोषिष कर कुछ बॉलीवुड कलाकारों से दान में मिली रकम से शुरूआत में इन वर्करों की मदद करने का पय्रास किया.पर यह रकम व सहायता तो ‘उंट के मुंह में जीरा’की तरह ही रही. इससे जूनियर आर्टिस्ट (पुरुष और महिला)के रूप में काम करने वाले वर्करों,सिने नर्तक, फोटोग्राफर,डमी कलाकार स्टंट कलाकारों सहित दस लाख लोगों को आर्थिक संकट का पिछले लगभग चार माह से सामना करना पड़ रहा है. कुछ ने आत्महत्या कर ली,कुछ सब्जी या बिरयानी बेचने पर मजबूर हुए हैं.इन्हे केंद्र सरकार या महाराष्ट् सरकार की तरफ से भी किसी तह की कोई मदद नहीं मिली.

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सरकार के नए दिशा निर्देष के अनुसार टीवी सीरियल की शूटिंग शुरू हो गयी है. अब सरकारी आदेश और शूटिंग शुरू करने के लिए एसोसिएशन के बीच बनी आम सहमति के अनुसर इस वक्त जो लोग सीरियल की शूटिंग कर रहे हैं, उन्हे उनकी इस वक्त की पारिश्रमिक राशि नब्बे दिन की बजाय तीस दिन में मिलेगी और इनाक पिछला बकाया भी धीरे धीरे चुकाया जाएगा.

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पर अहम समस्या यह है कि ‘कोरोना महामारी’ का फैलाव जारी है. इससे बचने के सुरक्षात्मक उपाय के साथ ही शूटिंग करनी है. सरकार के आदेश के अनुसार अब सिर्फ तीस प्रतिशत क्रू मेंबर के साथ ही शूटिंग हो रही है. जिसके चलते सत्तर प्रतिशत क्रू मेंबर यानी कि जूनियर आर्टिस्ट (पुरुष और महिला) के रूप में काम करने वाले वर्करों,सिने नर्तक, फोटोग्राफर,डमी कलाकार स्टंट कलाकार घर पर बैठे हैं. इनका पिछला बकाया भी नहीं मिल रहा है और नया काम भी नही. जिसके चलते अब फिल्म इंडस्ट्री के लगभग तीन लाख से अधिक लोग भुखमरी के कगार पर पहुँच गए है.इनकी समस्या को ‘‘एफ डब्लू आई सी ई’’ने कई बार महाराष्ट् सरकार के समझ उठायी.मगर महाराष्ट् के कानों पर जू तक नही रेंगी.

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अंततः अब चार जुलाई को ‘एफ डब्लू आई सी ई’’के अध्यक्ष बीरेंद्र नाथ तिवारी ने पुनः महाराष्ट् के मुख्यमंत्री उद्धव ठाकरे को पत्र लिखकर इन वर्करो की मदद करने की गुहार लगायी है.‘‘एफ डब्ल आई सी ई’’ने महाराष्ट् के मुख्यमंत्री उद्धव ठाकरे को अपने पत्र में लिखा है-‘‘हम आपका ध्यान इस तरफ आकर्षित करना चाहते हैं कि जूनियर आर्टिस्ट (पुरुष और महिला) के रूप में काम करने वाले सदस्य,सिने नर्तक, फोटोग्राफर, डमी किरदार निभाने वाले कलाकार और स्टंट कलाकार जैसे वर्कर इस लॉक डाउन के चलते सर्वाधिक प्रभावित हुए हैं. यूँ भी इनके पास काम के बहुत कम अवसर रहते हैं. लॉकडाउन के कारण इन सभी को लगभग चार माह से  कोई काम नहीं मिला.जिसके चलते कोई आमदनी न होने के कारण यह सभी पूरी तरह से तबाह हैं.हमें इस बात का खेद है कि सरकार की तरफ से इन्हें कोई सहायता नहीं मिली.जबकि फिल्म व टीवी इंडट्री से सरकार को सर्वाधिक राजस्व की प्राप्ति होती है. फिल्म व टीवी इंडस्ट्री राज्य की अर्थव्यवस्था में महत्वपूर्ण भूमिका निभाती रही.’’

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इस पत्र में आगे लिखा गया है-‘‘इस संबंध में हमने आपके कार्यालय को कई पत्र भेजे हैं,मगर अभी तक कापकी तरफ से कोई सकारात्मक जवाब नही मिला और न ही इस दिषा मंे किसी अनुकूल काररवाही के ही संकेत मिले.जबकि इन सदस्यों के कई परिवार भुखमरी के कगार पर है.अगर अभी भी आपकी तरफ से इन्हे कोई मदद नही मिली,तो भूख की वजह से किसी की भी कभी भी दुःखद मौत हो सकती है.हमारी संस्था ने इन्हे कुछ प्रयासों व कुछ बड़े कलाकारों से दान रूप में मिली राषि से राषन व पैसे देकर मदद पहुँचाने की कोशिश  की थी,जो कि लॉकडाउन के बाद से चार माह तक इतनी बड़ी संख्या के घरों को चलाने के लिए काफी नही रही.अब इनकी स्थिति बदतर हो गई है.यदि इन्हे मदद नही मिली,तो इनके परिवार के  लोग सड़कों पर उतरने के लिए मजबूर हो सकते हैं.अतः हम आपसे एक बार फिर अपील करते हैं कि कृपया हमारे अनुरोध पर विचार करें और इन सदस्यों को समान नौकरी के अवसर या उपयुक्त धनराशि देकर मदद करें.’’प

कलर्स करेगा नए एपिसोड्स के साथ एक नई शुरूआत

कोरोनावायरस के कारण पूरा देश पिछले 3 महीनों से लौकडाउन की मार झेल रहा है. जहां एक तरफ लोग घर पर बैठने को मजबूर हैं, तो वहीं सीरियल्स की दुनिया भी रूक गई थी. लेकिन अब अनलौक 1.0 के बाद सीरियल्स की शूटिंग भी कुछ नियमों और शर्तों के तहत शुरू हो गई है, जिसके चलते कलर्स आपके पसंदीदा सीरियल्स के नए एपिसोड्स लेकर दोबारा आ रहा है. आइए आपको बताते हैं इन सीरियल्स में आने वाले ट्विस्ट के बारे में…

शक्ति-अस्तित्व के एहसास की: क्या होगा जब विराट को पता चलेगा हीर के किन्नर होने का सच?

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इस शो में अब तक आपने देखा कि, हीर और विराट एक दूसरे से बेहद प्यार करते हैं. लेकिन प्रीतो और हरक, जो हीर के किन्नर होने का सच जानते हैं, वह परेशान हैं कि हीर का ये प्यार उसके लिए केवल दर्द का कारण बनकर रह जाएगा. इसलिए वह हर कोशिश करते हैं कि विराट और हीर को अलग कर सकें. पर परिवार की सहमति के बिना दोनों भागकर मंदिर में शादी कर लेते हैं और शादी के बाद अपने परिवार को मनाने की कोशिश करते हैं.

घरवालों की रजामंदी ना मिलने पर जब हीर और विराट अपनी जान देने की कोशिश करते हैं तो घरवाले हां करने पर मजबूर हो जाते हैं और दोनों परिवार पूरे रस्मों रिवाज के साथ इनकी शादी करवाने के लिए तैयार हो जाते हैं. इन्हीं रस्मों के बीच प्रीतो, विराट को हीर के किन्नर होने का सच बता देती है. अब आगे ये देखना दिलचस्प होगा कि क्या हीर के किन्नर होने का सच जानने के बावजूद विराट उसे अपनाने के लिए तैयार हो जाएगा? जानने के लिए देखिए ‘शक्ति-अस्तित्व के एहसास की’ के एकदम नए एपिसोड्स आज से, सोमवार से शुक्रवार, रात 8 बजे.

 

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बैरिस्टर बाबू: बोंदिता से जुड़ा कौनसा बड़ा फैसला लेगा अनिरूद्ध

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अब तक आपने देखा कि, लंदन से वकालत की पढ़ाई करके लौटा अनिरूद्ध, समाज की कुरीतियों के खिलाफ खड़े होते हुए 8 साल की बोंदिता से शादी कर लेता है. रॉयचौधुरी परिवार इस रिश्ते से खुश नही होता, लेकिन इसके बावजूद अनिरूद्ध, अपने परिवार के खिलाफ जाकर बोंदिता की हर तरह से मदद करता है. अनिरूद्ध, बोंदिता की तरफ अपनी जिम्मेदारियों को निभाने की पुरजोर कोशिश कर रहा है, जिसके चलते वह लेने जा रहा है बोंदिता के लिए एक बड़ा फैसला. आखिर क्या होगा ये फैसला और इससे दोनों के रिश्तों में कौनसा नया मोड़ आने वाला है? जानने के लिए देखना ना भूलें, आज से, ‘बैरिस्टर बाबू’ के नए एपिसोड्स, सोमवार से शुक्रवार, रात 8.30 बजे, सिर्फ कलर्स पर

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छोटी सरदारनी: क्या मौत का सामना कर पाएगी मेहर?

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अब तक आपने देखा कि निडर और अपने दिल की सुनने वाली मेहर की जिंदगी में ढेरों मुश्किलें आई, जिनसे लड़कर मेहर ने अपने कोख में पल रहे पहले प्यार की निशानी को बचाए रखा. इन सभी हालातों में मेहर का साथ सरब और परम ने दिया. लेकिन आज मेहर ऐसे दोहराहे पर खड़ी हैं जहां एक तरफ उसका बच्चा है और एक तरफ उसकी खुद की जान. वहीं सरब के सामने भी आज मेहर और उसके कोख में पल रहे बच्चे में से किसी एक को चुनने की चुनौती खड़ी हो गई है. अब देखना ये है कि मेहर और बच्चे में से किसे चुनेगा सरब? आखिर कौनसा नया मोड़ लेने वाली है मेहर की जिंदगी? जानने के लिए देखिए, ‘छोटी सरदारनी’, 13 जुलाई से, सोमवार से शुक्रवार, 7.30 बजे, सिर्फ कलर्स पर.

इसी के साथ कलर्स के कुछ और सीरियल्स 13 जुलाई से शुरू होने जा रहे हैं, जिनमें रात 9 बजे ‘शुभारंभ’, 9.30 बजे ‘नाटी पंकी की लंबी लव स्टोरी’ और 10 बजे ‘पवित्र भाग्य’ सीरियल्स शामिल हैं.

जिन्हें आपने इतना सराहा, फिर से आ रहे हैं वो अपनी अधूरी कहानी को पूरा करने. तो देखना ना भूलें कलर्स, आज रात 8 बजे से.

हेटर्स ने कि कपिल शर्मा को ट्रोल करनी की कोशिश, कॉमेडी किंग ने दिया ऐसा जवाब

कॉमेडी किंग कपिल शर्मा अपने खास अंदाज के लिए जाने जाते हैं. शायद यहीं वजह है जिससे वह अपने फैंस के दिलों परसालों से राज करते आ रहे हैं. कपिल शर्मा के दीवाने देश ही नहीं विदेश में भी हैं. वही सोशल मीडिया पर भी लोग खूब फॉलो करते हैं.

तो वहीं कुछ लोग ऐसे भी हैं जो स्टार को ट्रोलिंग का निशाना बनाने से बाज नहीं आते हैं. कपिल शर्मा ने हाल ही मे अपने सोशल मीडिया पर कानपुर पुलिस हत्या पर अफना गुस्सा जाहिर करते हुए ट्विट किया था.

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उन्होंने लिखा था मैं ऐसा नहीं कहूंगा कि आपकी आत्मा को शांति मिले बल्कि मैं ऐसा कहूंगा कि आपके गुनहगारों को पकड़ा जाएं तब आपके आत्मा को शांति मिले.

कपिल शर्मा का यह अंदाज कुछ लोगों को रास नहीं आया इसी वजह से लोगों ने उन्हें ट्रोल करना शुरू कर दिया.  एक हेटर ने यहां तक कह दिया की ज्ञानचंद और सुशांत सिंह पर ट्विट करो.

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इस सवाल का जवाब देते हुए कपिल शर्मा ने कहा डियर सर मुझे सुशांत सिंह राजपूत के हत्या का पता नहीं है बल्कि इन पुलिस वालों का पता है जो काम पर गए थे और उनकी हत्या हो गई.

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उन्होंने दूबारा ट्विट करतेहुए हेटर को ट्विट की भाषा से दिन में तारे दिखा दिए. बता दें कपिल शर्मा ने अपने टेविट में उत्तर प्रदेश के उन लोगों के बारे में जिक्र किया था जिसमें उत्तर प्रदेश के 8 पुलिस वाले की हत्या कर दी गई.

इस घटना कि निंदा पूरा देश कर रहा है. हर कोई हत्यारे को पकड़ने की चाह में लगा हुआ है. यह घटना दिन प्रतिदिन बढ़ते जा रहा है. कई तरह के सवाल लोग खड़े कर रहे हैं आखिर पुलिस वाले को लोगों हत्यारे ने निशाने पर क्यों लिया.

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