Download App

शिक्षा का बदलता ढांचा जैसे परीक्षा, वैसे प्रमोशन

कोरोना संक्रमण के दौरान सबसे बडा संकट स्कूल और परीक्षाओं को लेकर छाया रहा. देष भर में बहस का मुददा यह रहा कि परीक्षाओं को किस तरह से सम्पन्न कराया जाय. बडी संख्या में औनलाइन परीक्षायें संभव नहीं थी. ऐसे में ज्यादातर छात्रों को पिछले प्रदर्शन के आधार पर नम्बर देकर अगली कक्षा मे प्रमोट कर दिया गया. यहां पर यह सवाल उठने लगा कि छात्रों को प्रमोट करने से उनको कोई ज्ञान नहीं होगा. ऐसे में छात्रों को अगली कक्षा में प्रमोट करने से क्या लाभ होगा ? हमारे देष की षिक्षा प्रणाली ऐसी है जहां जो पढाया जा रहा और जो परीक्षा में पूछा जा रहा दोनो ही कैरियर के हिसाब से निरर्थक है. ऐसे में प्रमोट होकर आने वाले छात्र भी वैसे ही होगे जैसे परीक्षा पास करके आने वाले होते है.

कोरोना संक्रमण की शुरूआत मार्च माह से हुई. भारत में इस माह में स्कूली परिक्षाओं का समय होता है. 24 मार्च से देश में लौकडाउन षुरू हुआ. इस समय पर ज्यादातर स्कूलों में परीक्षायें हो चुकी थी. कुछ पेपर बाकी थे. कालेज और विष्वविद्यालय में परीक्षायंे अप्रैल-मई-जून में होती है. यह परीक्षायें कोविड 19 के संक्रमण में सबसे अधिक प्रभावित हुई. स्कूली बच्चों को अगली क्लास में प्रमोट करने का फैसला जल्दी हो गया पर कालेज और विष्वविद्यालय इस फैसले को लेकर लंबे समय तक उहापोह में बने रहे.

ये भी पढ़ें-कोरोना खा गया बच्चों की आइसक्रीम

उत्तर प्रदेश सरकार ने 48 लाख छात्रो को अगली क्लास में प्रमोट करने का फैसला किया. यह छात्र यहंा के करीब 7026 डिग्री कालेजों में पढते है. उत्तर प्रदेष में 16 राज्य विष्वविद्यालय, 1 मुक्त विश्वविधालय, 1 डीम्ड विश्वविधालय, और 27 निजी विष्वविद्यालय है. उत्तर प्रदेश सरकार के  उच्च षिक्षा विभाग द्वारा चैधरी चरण सिंहविश्वविधालय मेरठ के कुलपति प्रोफेसर एनके तनेजा की अध्यक्षता में कमेटी का गठन किया. इस कमेटी की रिपोर्ट के आधार पर उपमुख्यमंत्री डाक्टर दिनेश शर्मा ने 48 लाख छात्रों को प्रमोट करने के लिये कहा.

परीक्षाओं का महत्व:

देश की षिक्षा प्रणाली में पढाई और षिक्षा का अपना महत्व है.यहां की षिक्षा और पढाई का कैरियर और रोजगार के साथ बहुत तालमेल नहीं है. देष की षिक्षा प्रणाली षिक्षा का महत्व केवल पढाई और परीक्षाओं तक सीमित रह गया है. छात्रों के लिये परीक्षा का महत्व केवल इतना रह गया है कि परीक्षा में पास होकर अगली क्लास में पहुंचना होता है. ऐसे में बिना परीक्षा पास किये अगर बच्चों को प्रमोट कर दिया जाता है तो भी इनकी योग्यता पर कोई असर नहीं पडने वाला. परीक्षा पास करके भी वहीं हालत होते जो प्रमोट करने पर होते है. भारत में परीक्षाओं को पास करने के लिये नकल का सहारा लेने बहुत पुरानी बात है. नकल विहीन परीक्षा का सपना हर समय देखा जाता है. स्कूली परीक्षाओं से लेकर  नौकरी और उच्च षिक्षा की परीक्षाओं तक में नकल का बोलबाला है.

ये भी पढ़ें-ATM : 1 जुलाई से बदल गए हैं नियम

केवल नकल ही नहीं नौकरी के लिये फर्जी प्रमाणपत्र बनवाकर नौकरी करने वालों की सख्या इस देश में सबसे अधिक है. दूसरों को न्याय दिलाने और कानून की रक्षा के लिये अदालतों  में काम करने वाले वकीलों में भी फर्जी डिग्री के मामले पाये जाते है. देश  की अदालतों मे तमाम ऐसे वकील है जिनकी डिग्री सवालों के घेरे में है. ऐसे में परीक्षाओं के महत्व को समझा जा सकता है. अगर प्रमोट होकर अगली क्लास में गया कोई छात्र नौकरी की परीक्षा को पास कर लेता है तो प्रमोट होने का कोई मतलब नहीं रह जायेगा. देष में पढाई रोजगार परक नहीं है. इसीलिय यह बच्चों पर बोझ  बनती जा रही है. षिक्षा के पाठ्यक्रम को ऐसा होना चाहिये कि छात्र पर उसका दबाव कम हो. षिक्षा रोजगारपरक हो.

शिक्षा का राजनीतिकरण:

भारत में वर्तमान षिक्षा प्रणाली अंग्रेजों की देन है. आजादी के बाद देष की षिक्षा प्रणाली में जो भी बदलाव हुये वह बच्चों की जरूरतों को ध्यान में रखने की जगह पर राजनीति और विचारधारा को ध्यान में रखकर अधिक किये गये. देष और प्रदेष की सरकारों ने पाठ्यक्रम में अपनी वाहवाही के लिये बदलाव किये. कभी वामपंथी दबाव में बदलाव हुये कभी दक्षिणपंथी विचारों के दबाव में बदलाव हुये. सत्ता में आने वाले दलों ने षिक्षा के ठिकानो को राजनीति के अखाडों में बदल कर रख दिया. भारतीय जनता पार्टी के लोग कांग्रेस और वामपंथी दलों पर आरोप लगाते थे कि इन दलों ने षिक्षा का राजनीतिकरण किया है. जब भाजपा की केन्द्र में सरकार बनी तो षिक्षण संस्थानों में अपनी ही विचारधारा के लोगों को स्थान देना षुरू कर दिया. भारत में षिक्षा व्यवस्था इस तरह से बंटी हुई  है कि यहां कई अलग अलग षिक्षा बोर्ड और स्कूल है.

ये भी पढ़ें-सुशांत सिंह राजपूत की मौत का यूं उत्सव मनाना संवेदनाओं की मौत होना है

सबसे मजेदार बात यह है कि शिक्षा के राजनीतिकरण पर हर दल दूसरे दल पर आरोप लगाता है. मौका मिलने पर वह भी वही करता जिसके लिये दूसरे को मना करता था. सरकारों ने षिक्षा और परीक्षा के महत्व को कभी गंभीरता से नहीं लिया. जनता के बीच अपनी छवि को बनाने के लिये ही षिक्षा को एक जरीया बना लिया. 1991 में उत्तर प्रदेष में भाजपा की सरकार बनी और कल्याण सिंह मुख्यमंत्री बने. इसके पहले उत्तर प्रदेष की स्कूली परीक्षाओं में नकल का बोलबाला था. कल्याण सिंह ने नकल को संज्ञेय अपराध घोषित कर दिया. ऐसे में नकल करते पकडे जाने वाले छात्रों को जेल भेजने का काम किया जाने लगा. कल्याण सिंह की बहुत आलोचना हुई. उनकी पार्टी चुनाव हार गई. इसके बाद मुख्यमंत्री बने मुलायम सिंह यादव ने कल्याण के नकल कानून को बदल दिया. इसके बाद फिर से नकल का बोलबाला हो गया. किसी मुख्यमंत्री ने ऐसा प्रयास नहीं किया कि षिक्षा और परीक्षा व्यवस्था को ऐसे किया जाये कि बच्चों को नकल करने की जरूरत ही ना पडे.

शिक्षा का बाजारीकरण: 

शिक्षा के राजनीतिकरण के साथ ही साथ षिक्षा का बाजारीकरण इस देष में षिक्षा की सबसे बडी दुष्मन है. शिक्षा के बाजारीकरण ने गरीब और अमीर के लिये रोजगार पाने के समान लेवल का खत्म कर दिया. मंहगे प्राइवेट स्कूलों में लंबीचैडी फीस लेने की व्यवस्था कर दी गई. मंहगी फीस लेने के लिये स्कूलों ने मातापिता को तमाम तरह से प्रलोभन देना षुरू कर दिया. बच्चों के लिये खेल के मैदान, जिम, झूले, आनेजाने के साधन, स्मार्ट क्लास, स्वीमिगपूल जैसे तमाम फंडे बनने लगे. बच्चों को सुविधा देने के लिये स्कूलों ने खुद को इतना बदला की वह स्कूल कम और होटल अधिक लगने लगे. षिक्षा के बाजारीकरण के बाद यह सेवा के लिये नहीं कमाई के लिये काम करने लगे. ऐसे में यहा षिक्षा और परीक्षा दोनो का ही महत्व खत्म हो गया. पूरी षिक्षा व्यवस्था पर बाजारवाद हावी हो गया.

ये भी पढ़ें-हम पर आखिर क्यों बार-बार टूटता है आकाशीय बिजली का कहर

कोविड 19 के दौरान शिक्षा को बाजार में बदल चुके लोगों के लिये दिक्कत भरा दौर शुरू हो गया. मार्च के बाद स्कूल खुले नहीं. आगे भी स्कूलों को खोला जाना संकट का कारण बन सकता है. स्कूलों के जरीये कमाई का साधन बंद होता देख लोगों के बेचैनी बढने लगी. औन लाइन क्लासेस और औन लाइन परीक्षायें शुरू की गई. जिससे केवल यह दिखाया जा सके कि स्कूल शिक्षा के लिये कितना तत्पर है. जो स्कूल पढाई कराते हुये कभी नकल विहीन परीक्षा नहीं करा सके वह औन लाइन क्लासेस से बच्चों को क्या पढा पायेगे ? सोचने वाली बात है. स्कूल केवल पढाई कराते नजर आना चाहते है जिससे उनको बच्चों से महंगी फीस वसूल कर सके. बच्चों के मातापिता अब इस बाजारीकरण से बाहर निकलना चाहते है. यह कोई सरल काम नहीं रह गया है.

हवाई जहाज दुर्घटना

लेखक-डा. भारत खुशालानी

हवाई जहाज दुर्घटना – भाग 3 : आकृति किस बात से तनाव में थी ?

लेखक-डा. भारत खुशालानी

आकृति थोडा असमंजस में थी कि थ्रौटल को उस ने खुद थोड़ा पीछे की ओर खींचा था, इसीलिए विमान की गति कम हो गई थी या स्टौल की खतरनाक स्थिति से गति कम हो गई थी.

जो भी कारण रहा हो, उस को लगा कि अब थ्रौटल को आगे की ओर धकेल कर विमान की गति बढ़ानी चाहिए. अगर वह थ्रौटल को आगे की ओर ठेल कर विमान की गति बढाने में कामयाब हो जाती है, तो वह विमान को ऊपर ले जाने में कामयाब हो जाएगी, और दौड़पथ के ऊपर हवा में एक चक्कर लगा कर, विमान को स्थिर कर, वापस नीचे उतारने का प्रयास कर सकती है.

उस के मन में आशंका जागी कि क्या विमान का एकमात्र बचा हुआ इंजन विमान की इस चढ़ाई को संभाल पाएगा या सिर्फ दाईं ओर के इंजन के तनाव के तहत विफल हो जाएगा.

एक और उपाय यह था कि गति बढ़ाने के अपने असफल प्रयास में आकृति विमान की उतराई को अधिक ढालू कर दे, जिस से विमान तेजी से नीचे की ओर जाने लगे. नीचे की ओर गोता लगाने की इस प्रक्रिया से उत्पन्न गिरता हुआ वेग शायद स्टौल की दशा को टाल दे और विमान को वापस अपने व्यवस्थित मार्ग पर लाए.

बेशक, इस का नतीजा यह हो सकता था कि विमान को समतल बनाने के बजाय आकृति अपने विमान को तेजी से आपदा की ओर धकेल रही हो. अगर विमान को तेजी से नीचे ले जाते समय वह वापस विमान का नियंत्रण हासिल नहीं कर पाई तो विमान कुंडलीदार चक्करों की चपेट में आ जाएगा. ऐसे गोल घूमने की स्थिति से उत्पन्न गुरुत्वाकर्षण बल इतना तीव्र हो जाएगा कि जमीन पर पहुंचाने से पहले ही विमान टूट कर बिखर जाएगा.

आकृति के लिए यह अनिर्णय का एक नारकीय क्षण था. घबराहट में पसीने से उस की आंखें तरबतर थीं. उस के हाथ डर के मारे कांप रहे थे. अपनी कनपटियों पर दस्तखत देती हुई खून की नब्ज अब उसे साधारण महसूस नहीं हो रही थी.

नब्ज की धड़कन को महसूस करने के लिए अब उसे कनपटियों पर उंगलियां फिराने की जरूरत नहीं थी. उसे ऐसा लग रहा था, जैसे खून की यह नाड़ी कनपटियों के बाहर आ गई हो. जैसेजैसे उस की बेचैनी बढ़ रही थी, वैसेवैसे नाड़ी की धड़कन बढ़ रही थी. उस के दिलों की धड़कन तो बढ़ ही गई थी, लेकिन अधिक दबाव के कारण कनपटियों की नाड़ी सिर में दर्द पैदा कर रही थी. आमतौर पर सौ से नीचे रहने वाली यह धड़कन अब शायद डेढ़ सौ तक पहुंच गई थी.

ऐसा लग रहा था कि कानों के पास का हिस्सा फट जाएगा. उस ने थोड़ा सोचने की कोशिश की, लेकिन सोचने का समय नहीं था. स्टौल की स्थिति गंभीर हो कर और खराब हो रही थी.

अचानक आकृति को एहसास हुआ कि यदि इस क्षण में वो किसी नतीजे पर पहुंच कर ठोस कदम नहीं उठाएगी, तो विमान आकाश से नीचे गिर जाएगा.

उस क्षण में आकृति ने अपना मन बना लिया. उस ने फैसला कर लिया कि विमान को बचाने के लिए वह उसे नीचे की ओर ले जाएगी. उस ने कार के स्टीयरिंग व्हील जैसे दिखने वाले जोत को सामने की ओर धकेला, जिस से विमान के सामने का नाक वाला हिस्सा नीचे की ओर झुक गया और विमान के पीछे का हिस्सा ऊपर उठ गया. इस से विमान अपनी नाक की सीध में नीचे की ओर जाने लगा.

आकृति ने मन ही मन कहा कि विमान की रफ्तार तेज हो जाए. तुरंत ही, विमान की रफ्तार तेज हो गई. लेकिन अब समस्या यह खड़ी हो गई कि विमानतल के दौड़पथ की तरफ जाने के बदले विमान शहर के इलाके में जा रहा था.

ऊंचाईसूचक यंत्र बता रहा था कि विमान की ऊंचाई तेजी से शून्य की ओर बढ़ रही है. मतलब, विमान तेजी से जमीन की ओर आ रहा था.

जैसेजैसे इस यंत्र की सूई शून्य की तरफ झुक रही थी, वैसेवैसे शहर के इलाके में घुस कर विमान के तबाही मचा देने के आसार बढ़ रहे थे. लेकिन विमान के अतिरिक्त वेग का एक फायदा यह हुआ कि आकृति को विमान को समतल बनाने में अचानक ही आसानी हो गई.

जिस समय इंजन में आग लगी थी, उस समय से ले कर अब तक, पहली बार आकृति को प्रतीत हुआ कि विमान को नियंत्रण में ला कर उसे स्थिर रास्ते पर लाया जा सकता है.

वैसे तो विमान अभी भी किसी भारी पत्थर की तरह ही नीचे गिर रहा था, लेकिन आकृति उस को एक सीधी रेखा में रख काबू में रखने की कोशिश कर पा रही थी. उस ने तब तक इंतजार किया, जब तक विमान 2,000 फुट नीचे न गिर गया हो, उस के बाद उस ने जोत को पीछे की ओर खींचा.

जोत को पीछे की ओर खींचने से विमान की नाक नीचे की ओर से ऊपर आ कर सीधी हो गई और विमान आकाश में समतल हो गया.

इस के बाद आकृति ने थ्रौटल को आगे धकेला, जिस से विमान की गति बढ़ी. विमान की उड़ान में अभी भी ऊबड़खाबड़ मची हुई थी, लेकिन एक इंजन पर विमान को उस दिशा में घुमा पाना संभव हो गया था, जिस दिशा से वह भटक गया था. विमान की उतराई का मार्ग अब निशाने पर था.

आकृति ने अवतरण गियर को नीचे किया, जिस से वायुयान के पहिए अपनी सामान्य गति से विमान के बाहर आ गए. अपने सामने के वायुरोधक शीशे से उसे हवाईअड्डे का दौड़पथ नजर आ रहा था.

आकृति ने अपना ध्यान विमान को नियंत्रित रखने पर केंद्रित किया और दौड़पथ पर लगी बत्तियों को सामने के शीशे के बीचोंबीच रखने का प्रयास किया. उस ने ऊंचाईसूचक यंत्र की तरफ जल्दी से नजर डाली. यंत्र की सूई 500 फुट से गिर कर 400 फुट हुई, फिर 300 फुट, फिर 200 फुट, फिर 100 फुट.

100 फुट के बाद आकृति ने विमान को दौड़पथ की रोशनियों के सहारे विमान को बिलकुल बीच में लाने का प्रयास किया. यंत्र की सूई 50 फुट तक आई, फिर 25, फिर 10 और फिर विमान तीव्रता से दौड़पथ से आ कर मिला. एक गतिरोधक के ऊपर से गुजरने वाली वेदना के साथ विमान ठोस धरती से टकराया और दौड़पथ पर दौड़ने लगा.

विमान की उतरान बदसूरत थी. आकृति ने जोर से ब्रेक दबाए. उस ने तेज गति से और झटके से विमान को मोड़ा, ताकि विमान के पंख अपने निर्धारित दौड़पथ की रेखाओं के अंदर आ जाएं. अगर उतरने के बाद भी विमान को काबू में न रखा गया तो वह आसपास के दौड़पथ पर जा कर दूसरी चीजों से टकरा सकता था.

विमान सुरक्षित तो नीचे उतर गया था, लेकिन उतरने के बाद जोर से ब्रेक लगने और झटके से मुड़ने के कारण वह दौड़पथ पर अस्थिर रूप से इधरउधर दौड़ रहा था.

आकृति ने अपना हौसला नहीं खोया. इंजन में आग लग जाने के बावजूद भी वह विमान को सुरक्षित तरीके से नीचे ले आने में कामयाब हो पाई थी, इस बात से उस का आत्मविश्वास अब काफी हद तक बढ़ गया था. उस ने जोत को कस कर पकड़ लिया और उसे एकदम सीधे मजबूती से पकड़ कर रखा. इस से विमान की लहरदार चाल पर लगाम लग गई और विमान धीरेधीरे कर के दौड़पथ के बीच की रेखा में सीधा आ गया.

जोर से ब्रेक लगाने के कारण विमान ने दौड़पथ पर अपनी निश्चित सीमा का उल्लंघन नहीं किया और दौड़पथ खत्म होने से पहले ही अपनी दौड़ को विराम दिया.

जब विमान पूरी तरह से स्थिर हो कर खड़ा हो गया तो आकृति ने अपने हाथ जोत पर से हटाए, अपने माथे को जोर से रगड़ा और दो पल के लिए अपना सिर नीचे की ओर झुकाया.

आज की अविश्वसनीय घटना आकृति ने दूसरों से होती हुई सुनी थी, लेकिन जिंदगी में कभी भी यह नहीं सोचा था कि किसी दिन उस के साथ भी ऐसा होगा.

विमान के बाहर अग्निशामक दस्ते दौड़ते हुए विमान की तरफ आ रहे थे. मई की भीषण गरमी में बदन को झुलसाती इस विमान में लगी आग… विमान के अंदर, एक कोरोना से बचने के लिए मास्क काफी नहीं था, यात्रियों को ऊपर से गिरा औक्सीजन का मास्क भी पहनना पड़ा था.

विमान के इंजन में आग लगते ही औक्सीजन के मास्क नीचे आ गए थे और एयर होस्टेस ने यात्रियों की मदद की थी औक्सीजन मास्क पहनने में, हालांकि यात्रियों से थोड़ा सा दूर रह कर. जब एक के ऊपर एक आपदाएं आती हैं, तो उन सब से एकसाथ निबटने के लिए नए आयामों को ईजाद करना पड़ता है.

यात्रियों ने विमान के जमीन पर उतरते ही एक नए जीवन को अपने भीतर जाते हुए महसूस किया. विमान के पूरी तरह से स्थिर हो जाने के बाद भी तब तक खतरा बना हुआ था, जब तक सभी यात्रियों को सुरक्षित बाहर नहीं निकाल लिया जाता. एक तरफ आग को काबू में लाने के लिए पानी की बौछारें बरसाई जा रही थी, तो वहीं दूसरी तरफ यात्रियों को सुरक्षित नीचे उतारने के लिए सीढ़ियां पीछे के दरवाजे पर लगाई जा रही थीं.

आकृति अपना सिर नीचे झुकाए बैठी थी. उस की आंखों में आंसू आ गए थे. वह अपनेआप को ही इस विपदा का कारण समझने लगी थी, ‘मेरी ही गलत सोच थी यह, जिस ने ऐसी परिस्थितियों को पैदा किया, जिस से विमान के इंजन में आग लग गई. अगर मेरी सोच सकारात्मक होती तो विमान के इंजन में आग कभी नहीं लगती,’ यही सोच आकृति को खाए जा रही थी. वह यह भूल गई कि अगर उस की जगह कोई और होता तो शायद विमान उसी प्रकार की दुर्घटना का शिकार हो गया होता, जैसे 2 दिन पहले कराची में हुआ था.

 

‘क्योंकि सास भी कभी बहू थी’ के 20 साल पूरे, एकता कपूर ने वीरानी परिवार को किया याद

एकता कपूर का सुपरहिट सीरियल ‘क्योंकि सास भी कभी बहू थी’  ने 3 जुलाई को 20 वर्ष पूरे कर लिए हैं. इस खास मौके पर एकता कपूर ने अपने सभी को स्टार्स को इस खास अंदाज में याद किया. उन्होंने सीरियल के वीडियो को अपने सोशल मीडिया पर साझा कर जश्न मनाया. साथ ही उन्होंने क्यांकि सास भी कभी बहू में लीड रोल में नजर आने वाली स्मृति इरानी को भी याद किया.

स्मृति इरानी ने इस सीरियल में तुलसी का किरदार निभाया था. उन्होंने सभी को याद करते हुए एक पोस्ट शेयर किया जिसमें उन्होंने लिखा है कि इस सीरियल ने मुझे एक नई पहचान दिलाई है. इस सफर को तय करने में थोड़े मुश्किलों का सामना करना पड़ा था लेकिन मैं सभी को धन्यवाद देना चाहती हूं सभी ने अपना पूरा सहयोग दिया था.

ये भी पढ़ें-फीस कटौती पर बोले ‘भाभी जी घर पर है’ के एक्टर्स, दिया ये बयान

आगे उन्होंने लिखा मुझे याद है जब गुजरात में भूकंप आय़ा था. उस वक्त सभी लोग घर में बैठकर सीरियल क्योंकि सास भी कभी बहू थी देखा करते थें. वह पल हमारे लिए बहुत प्यारा था मैंने सभी के चेहरे पर मुस्कान लाने के लिए यह सीरियल बनाया था.

ये भी पढ़ें-क्या सुशांत की मौत से पहले ही अपडेट हो गया था विकिपीडिया का पेज? जाने

मैं सभी लोगों को इस प्यार के लिए तहे दिल से धन्यवाद देना चाहती हूं स्टार प्लस की पूरी टीम का शुक्रिया. आप सभी के प्यार से हमने एक अलग पहचान बनाई है. अगर आप न होते तो मुमकिन न होता.

वीडियो देखकर आप अंदाजा लगा सकते है कि एकता कपूर कैसे अपने पुराने दिन को मिस कर रही हैं. उन्होंने इस लॉकडाउन में सभी के पुराने याद को ताजा कर दिया है. उन्होंने स्मृति इरानी को भी खूब याद किया है. वहीं स्मृति इरानी और एकता कपूर बेहद की खास दोस्त है. आए दिन स्मृति और एकता एक-दूसरे से मिलते रहते हैं.

ये भी पढ़ें-71 साल की उम्र में हुआ सरोज खान का निधन

एकता कपूर ने इसके अलावा भी कई मशहूर सीरीयल्स बनाएं हैं जिसे हर घर के लोग पसंद करते हैं.

फीस कटौती पर बोले ‘भाभी जी घर पर है’ के एक्टर्स, दिया ये बयान

कोरोना वायरस और लॉकडाउन के बाद एक बार फिर फिल्म जगत की शूटिंग शुरू हो चुकी है. ऐसे में सभी मेकर्स और स्टार्स शूटिंग सेट पर नजर आ रहे हैं. करीब तीन महीने बाद सेट पर चहल-पहल दिखनी शुरू हुई है. हालांकि देखा जाए तो अभी भी चीजें कुछ सामान्य नहीं नजर आ रही हैं.

टीवी जगत के सितारों की फीस में कटौती कर दी गई है. सीरियल भाभी जी घर पर है के स्टार्स सौम्या टंडन और आसिफ शेख के फीस को भी कम कर दिया गया है.

इसी बीच आसिफ शेय यानी विभूति नारायण मिश्रा ने एक रिपोर्ट में खुलकर बात की और कहा कि सैलरी में कटौती हो रही है करीब 20 से 30 प्रतिशत यह बिल्कुल सही बात है अगर चैनल पैसे नही कमाएगा तो प्रोडक्शन को पैसे कहा से देगा.

ये भी पढ़ें-क्या सुशांत की मौत से पहले ही अपडेट हो गया था विकिपीडिया का पेज? जाने


आगे आसिफ शेख ने बताया कि कोरोना वायरस की वजह से हर कोई आर्थिक तंगी का सामना कर रहा है. हम लोगों को आगे बढ़ेने के लिए ऐसे ही कदम उठाना होगा हमें आगे बढ़ना ही होगा. तभी स्थिति में सुधार आएगी.

ये भी पढ़ें-71 साल की उम्र में हुआ सरोज खान का निधन

हम रुक नहीं सकते जब सबकुछ ठीक हो जाएगा तब हमें पूरी सैलरी मिलने लगेगी. मैं करीब 90 दिनों तक अपने घर पर बैठा था और कई तरह के ख्याल मन में आ रहे थें. ऐसे में अब कम लोगों मे ही शूटिंग शुरू करनी होगी. चीजों को खुद संभालना होगा.

ये भी पढ़ें-क्या सीरियल कुमकुम भाग्य में शिखा सिंह की जगह लेंगी बरखा सेनगुप्ता

फीस कटौती की बात पर सौम्या टंडन भी पूरी तरह से सहमत है. उन्होंने कहा कि ऐसा नहीं है कि हम लोग ही इस चीज का समाने कर रहे हैं इस कंडिशन में हर कोई परेशान है. सभी को इस चीज का सामना करना पड़ रहा है. ऐसे में जरूरी है कि हम लोग एक दूसरे का साथ दें. इसे मुद्दा बनाकर मार्केट में लाने से बेहतर है अपने –अपने काम पर ध्यान दें.

अमेरिका में कोरोना से बिगड़े हालत, बौखलाए ट्रंप ने दी धमकी

अमेरिका में कोरोना संक्रमण फिर रफ़्तार पकड़ रहा है. पहली जून को वहां 16,040 कोरोना के नए मरीज़ सामने आए थे, वहीं पहली जुलाई को 52,609 नए मामले सामने आए. यानी अमेरिका में एक महीने में चारगुना रफ़्तार से कोरोना संक्रमित मरीज़ बढ़ रहे हैं. विश्व स्वास्थ्य संगठन ने अमेरिका में इस वैश्विक महामारी में तेजी से वृद्धि पर चिंता जताई है. उधर नेशनल इंस्टीट्यूट ऑफ़ एलर्जी एंड इन्फैक्शियस डिजीज के हेड और कोरोन एक्सपर्ट डाक्टर एंथनी फौसी ने भी चेतावनी दी है कि अमेरिका में हालात फिर बिगड़ते जा रहे हैं और जल्द से जल्द कदम नहीं उठाए गए तो नई तबाही के लिए देश को तैयार रहना चाहिए. उन्होंने कहा कि अमेरिकी लोगों को मास्क पहनना ही होगा और सोशल डिस्टेंसिंग का पालन अनिवार्य रूप से करना ही पड़ेगा. अगर एहतियात नहीं बरती गई तो इस में कोई संदेह नहीं है कि आने वाले समय में अमेरिका में हर रोज़ एक लाख से अधिक मामले आएंगे.

यह अमेरिकी सरकार के लिए बहुत चिंता की बात है. खासतौर पर राष्ट्रपति डोनाल्ड ट्रांप के लिए, जो मास्क पहनने को चीन से पराजय के रूप में देखते हैं और इस महामारी के चलते जिन का राजनितिक  कैरियर दांव पर लगा हुआ है. चुनाव सिर पर है और ट्रंप अपनी जनता को इस महामारी से बचा पाने में बुरी तरह असफल साबित हो रहे हैं.

ये भी पढ़ें-कानपुर का विकास दुबे 8 पुलिसकर्मियो का हत्यारा

इस असफलता के चलते ट्रंप बेहद बौखलाए हुए हैं और अपना गुस्सा रहरह कर चीन पर जाहिर कर रहे हैं. ट्रंप ने ट्वीट किया, ‘जैसेजैसे मैं पूरी दुनिया में महामारी का विकराल रूप फैलते देख रहा हूं जिस में अमेरिका को महामारी से हुई भारी क्षति भी शामिल है, वैसेवैसे चीन के खिलाफ मेरा गुस्सा बढ़ता जाता है.’
ट्रंप कोरोना महामारी फैलाने के लिए शुरू से चीन को जिम्मेदार मान रहे हैं. उन का आरोप है कि वुहान की लैब में कोरोना वायरस को तैयार किया गया और दुनिया में फैलाया गया. खासतौर पर अमेरिका में. अपने इस आरोप पर ट्रंप अब भी कायम हैं और इस के लिए वो विश्व स्वास्थ संगठन (डब्लूएचओ) को भी दोषी मानते हैं और उस को चीन के साथ मिला हुआ बताते हैं. दरअसल अमेरिका और चीन दोनों ही देश बीते कई सालों से सुपरपावर बनने की होड़ में हैं. दोनों देशों में जारी ट्रेड वौर के बीच कोरोना वायरस की महामारी ने तनाव और बढ़ा दिया है. ट्रंप दावा करते हैं कि उन के पास इस बात के पक्के सुबूत हैं कि वायरस को वुहान की एक लैब में बनाया गया. इस के अलावा चीन ने वायरस के इंसानों से इंसानों में फैलने की जानकारी को लगातार दबाए रखा और जिस से बाकी देशों ने एहतियातन कदम उठाने में देर की और संक्रमण पूरी दुनिया में फ़ैल गया. चीन ने दुनिया को वायरस की सही जानकारी नहीं दी जिस की वजह से लाखों लोग मारे जा रहे हैं.

गौरतलब है कि दुनियाभर में कोरोना वायरस संक्रमण के मामले बढ़ कर एक करोड़ 3 लाख से अधिक हो गए हैं, जबकि संक्रमण से मरने वालों की संख्या 5 लाख 7 हज़ार से भी ज्यादा पहुंच गई है. अमेरिका दुनिया का सब से अधिक प्रभावित देश है जहां अब तक संक्रमण के 26 लाख 12 हज़ार से अधिक मामले सामने आ चुके हैं और वहां मरने वालों की संख्या एक लाख 26 हज़ार से अधिक है. कोरोना वायरस संक्रमण के सब से अधिक मामले में दूसरे स्थान पर ब्रज़ील, तीसरे पर रूस, चौथे स्थान पर भारत और ब्रिटेन 5वें नंबर पर है.

ये भी पढ़ें-रूस के लिए चीन ज्यादा अहम या भारत

भारत को समझनी होगी अमेरिका की चाल

दोराय नहीं है कि कोरोना वायरस के चीन से निकल कर दुनियाभर में फैलने के कारण अधिकांश देश चीन से नाराज़ हैं. भारत भी इस गुस्से से अछूता नहीं है. इधर लद्दाख वैली में चीनी सेना की घुसपैठ ने भी चीन के साथ भारत के रिश्ते काफी तल्ख़ कर दिए हैं. हम सीमा पर अपने 20 सैनिकों की शहादत दे चुके हैं, बावजूद इस के भारत मामले को बातचीत से सुलझाने के पक्ष में दिख रहा है क्योंकि युद्ध की स्थिति में दोनों देशों को ज़्यादा नुकसान होगा. शायद भारत को ज़्यादा होगा.

यही वजह है कि गलवान घाटी से चीनी सेना और हथियारोंबंकरो को हटाने के लिए लगातार दोनों देशों के बीच बातचीत जारी है. रक्षा मंत्री राजनाथ सिंह इस कोशिश में लगे हैं कि बातचीत से मसला हल हो जाए और गलवान घाटी से चीन अपना कब्ज़ा हटा ले. लेकिन अमेरिका भारत के साथ चीन की इस हालिया तनातनी का फ़ायदा अपने पक्ष में उठाना चाहता है. राष्ट्रपति डोनाल्ड ट्रंप लगातार भारत को यह संदेश दे रहे हैं कि वो भारत के साथ हैं. एक ओर वो दोनों देशों के बीच मध्यस्थता करने का औफर भी देते हैं वहीं दूसरी ओर यूरोप से अपनी फौजों को बुला कर दक्षिण एशिया में तैनात करने की कवायद में भी जुटे हैं.
भारत-चीन तनाव के बीच अमेरिका ने पहली बार अपने 11 न्यूक्लियर कैरियर स्ट्राइक ग्रुप में से 3 को एकसाथ प्रशांत महासागर में तैनात किया है. साउथ चाइना सी में चीन के बढ़ते दखल को रोकने के लिए अमेरिका ने यह तैनाती की है. चीन अभी वियतनाम, फिलीपींस, इंडोनेशिया, ब्रूनेई को आंख दिखा रहा है. उस ने कई छोटे छोटे आइलैंड कब्जा कर लिया है. भारत के ओएनजीसी शिप दक्षिण चीन सागर में जाते थे तो उन्हें भी रोका गया. इसलिए अमेरिका की खास निगाह इस इलाके में चीन का वर्चस्व और उस की आक्रामकता रोकना है. अमेरिका के साथ भारत, आस्ट्रेलिया, जापान के अलावा दक्षिण चीन सागर में चीन की दादागिरी से परेशान अन्य देश भी एकसाथ आ सकते हैं.

ये भी पढ़ें-देर आए दुरुस्त आए या आते आते देर हो गई?

वैसे चीन ने भी आक्रामकता दिखाते हुए साउथ चाइना सी के ऊपर अपनी टोही उड़ानों को तेज कर दिया है. वहीं, ताइवान को भी चीन ने सीधे तौर पर चेतावनी दी है.अमेरिका ने जिन 3 एयरक्राफ्ट कैरियर को प्रशांत महासागर में तैनात किया है वे यूएसएस थियोडोर रूजवेल्ट, यूएसएस निमित्ज और यूएसएस रोनाल्ड रीगन हैं. इन में से यूएसएस थियोडोर रूजवेल्ट फिलीपीन सागर के गुआम के आसपास के इलाके में गश्त कर रहा है. वहीं, यूएसएस निमित्ज वेस्ट कोस्ट इलाके में और यूएसएस रोनाल्ड रीगन जापान के दक्षिण में फिलीपीन सागर तैनात है. जानकारों के मुताबिक चीन का दबदबा कम करने के लिए अमेरिका दक्षिण चीन सागर में टक्कर का मन बना चुका है, लेकिन जिस तरह की कवायद हो रही है उस से भारत भी सीधा प्रभावित होगा. भारत और चीन के बीच नए सिरे से तनाव देखने को मिल सकता है.

इसी के साथ अमेरिकी फौज की एशिया में तैनाती के ऐलान से चीन के खिलाफ नई मोरचेबंदी देखने को मिल सकती है. यह चीन की घेराबंदी की ओर अमेरिका का नया कदम है. इस इलाके में तनाव नए रूप में देखने को मिलेगा. अमेरिकी राष्ट्रपति ट्रंप किसी भी सूरत में एक बार चीन से जंग छेड़ने को उतारू हैं. वह भी सीधे नहीं, बल्कि दूसरे देश के कंधे पर चढ़ कर.  अमेरिका के विदेश मंत्री माइक पोम्पियो कहते हैं कि अमेरिका दुनियाभर में तैनात अपनी सेनाओं की समीक्षा कर रहा है ताकि चीन के कारण भारत, मलयेशिया, इंडोनेशिया और फिलीपींस जैसे देशों के लिए जो ख़तरा उत्पन्न हो रहा है उस से निबटा जा सके.

ये भी पढ़ें-मजबूरी बन चुके हैं चीन और भारत
2020 ब्रूसेल्स फ़ोरम में पोम्पियो ने कहा, “हम यह सुनिश्चित करेंगे कि पीप्लस लिबरेशन अआर्मी से सामना करने के लिए तैयार रहें. हम समझते हैं कि यह हमारे समय की एक चुनौती है और हम यह सुनिश्चित करेंगे कि इस के लिए हमारे संसाधन सही जगह पर मौजूद हों.”
पोम्पियो का यह इशारा यूरोपियन एलाइज़ की तरफ़ है. अमेरिका ने दूसरे विश्य युद्ध के बाद जरमनऔरजापान पर कब्ज़ा किया था. अभी भी दोनों ही देशों में अमेरिका की सैन्य टुकड़ियां मौजूद हैं. जरमनी में इस वक़्त अमेरिका के करीब 40 हज़ार फ़ौजी हैं और 15 हज़ार असैनिक बल हैं. अमेरिका इन्हे जरमनी से हटा कर एशिया में तैनात करना चाहता है ताकि मौक़ा पड़ने पर चीन से मोरचा लिया जा सके. गौरतलब है कि राष्ट्रपति ट्रंप ने पहले इन फ़ौजी टुकड़ियों को पोलैंड की तरफ भेजने की भी बात की थी लेकिन अब एशिया की ओर भेजने की धमकी दे रहे हैं. जानकारों का मानना है कि अगर अमेरिका सैन्य टुकड़ियों की तैनाती चाहता है तो उस के पास ज़मीन पर बेस की कमी नहीं है. इस के अलावा वो इस के लिए नौसेना का इस्तेमाल भी कर सकता है. उल्लेखनीय है कि सेंट्रल एशिया में अमेरिका ने ईरान को घेरने के लिए कई बेस बनाए थे जैसे कि कज़ाकिस्तान और उज़बेकिस्तान में. उस रास्ते से अमेरीका चीन के बौर्डर पर आ सकता है. वहीं अमेरीकी नौसेना की जो पूर्वी एशिया में पहले से उपस्थिति है, वो उस इलाके से सभी नौसेनाओं से बड़ी है.

गलवान घाटी में चीनी घुसपैठ और भारत व चीन के सैनिकों के बीच टक्कर के बाद भारत को चीन के खिलाफ उकसाने और बदला लेने का दबाव बनाने का अमेरिका के हाथ एक बेहतरीन मौका लगा है. वह भारत के कंधे पर बंदूक रख कर चलाना चाहता है. अब यह भारत के ऊपर है कि वह इसे किस तरह से देखता है. वह अमेरिका की चाल समझता है या उस की चाल में आ जाता है ?

अगर भारत चाहता है कि वह अपनी विदेश नीति आज़ाद रखे तो उस को अमेरिका के बहकावे मेंआनेसेबचना होगा. अगर चीन से युद्ध की स्थिति बनती है तो अमेरिका भारत की मदद के लिए अपनी फौजों को ज़रूर तैनात करेगा. इस से उन फौजों का आर्थिक भार भी भारत पर पड़ेगा और अमेरिका के दबाव में उस की विदेश नीति की आज़ादी भी ख़त्म हो जाएगी. पड़ोसी सभी देशों के साथ उस के संबंध बहुत लंबे समय के लिए बुरी तरह बिगड़ जाएंगे. भारत की डिफेंस पौलिसी इस से बुरी तरह प्रभावित होगी. वह किस तरह के हथियार खरीदे, किस से खरीदे,  इस में भी अमेरिका का दखल होगा. वहीं, भारत रूस से भी हथियार नहीं ख़रीद पाएगा.

ऐसे में देखना यह होगा कि क्या भारत अमेरिका के सुरक्षा आश्वासन के बदले यह क़ीमत अदा करने को तैयार है? क्या प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी अपने ‘ख़ास दोस्त’ डोनाल्ड ट्रंप के दबाव में आ जाएंगे? या अपनी कूटनीति और विदेश नीति को प्रभावी बनाते हुए चीन के साथ अपने विवादों को बातचीत के ज़रिए सुलझाने में सफल होंगे?

Crime Story: खून में डूबा प्यार

कहानी सौजन्य- मनोहर कहानियां

समाज या लोग भले ही कहते रहें कि औरत अब अबला नहीं है. लेकिन सच यह है कि महिलाएं कुछ मामलों में पुरुष की ओर ही देखती हैं. सुमिता और समरिता के साथ भी यही हुआ, जिस की वजह से विक्रांत नागर ने…

राजधानी दिल्ली की पूर्वी सीमा पर बसा वसुंधरा एनक्लेव ऐसा पौश इलाका है, जहां अधिकतर उच्चमध्यम वर्गीय नौकरीपेशा लोग रहते हैं. कभी गाजीपुर, कोंडली से सटा ये इलाका पिछले कुछ सालों में ऊंची अट्टालिकाओं और बहुमंजिले सोसाइटी अपार्टमेंट से पट गया है. इन्हीं आलीशान सोसाइटी अपार्टमेंट्स में से एक है मनसारा अपार्टमेंट. वसुंधरा एनक्लेव स्थित इसी मनसारा अपार्टमेंट के बी ब्लौक में तीसरी मंजिल के फ्लैट संख्या 303 में कुछ सालों से सुमिता मैसी (45) और उन की बेटी समरिता मैसी (25) रहती थीं. मूलरूप से केरल की रहने वाली सुमिता के पति की करीब 20 साल पहले मौत हो गई थी. उस वक्त समरिता महज 5 साल की थी.

ये भी पढ़ें-Crime Story: षडयंत्रकारी साली

सुमिता ने विकासपुरी में रहने वाले एक व्यक्ति से प्रेम विवाह किया था. 20 साल पहले पति की मौत के बाद भी सुमिता कई सालों तक विकासपुरी में रहती रही. कुछ सालों पहले सुमिता ने नोएडा में अपनी जौब की वजह से विकासपुरी का इलाका छोड़ दिया और वसुंधरा एनक्लेव में आ कर रहने लगी. सुमिता की बहन और भाई केरल में रहते थे. सुमिता खुद नोएडा के सेक्टर 142 के एक एनजीओ में ऊंचे पद पर थीं. जबकि उन की बेटी समरिता पढ़ाई के बाद पिछले 5 महीने से एक 5 स्टार होटल में हौस्पिटैलेटी की ट्रेनिंग ले रही थी.

सुमिता सिंगल मदर थी. जवान बेटी को पालने के लिए जिंदगी में कितनी जद्दोजहद करनी पड़ती है, सुमिता को अच्छी तरह पता था. मांबेटी के बीच चूंकि दोस्ताना रिश्ता था, इसलिए सुमिता को ज्यादा चिंता नहीं होती थी.9 मार्च सोमवार को होली का त्यौहार था, जबकि रविवार को अवकाश था. इसीलिए सुमिता व समरिता दोनों की ही 2 दिन छुट्टी थी. मांबेटी ने रविवार को ही प्लान बना लिया था कि 10 मार्च को होली का रंग खेलने के बाद अपने कुछ दोस्तों के घर मिलने जाएंगी.

ये भी पढ़ें-Crime Story: पत्थर दिल

9 मार्च की सुबह करीब 8 बजे सुमिता के यहां काम करने वाली नौकरानी चंदा जब काम करने के लिए उन के घर पहुंची और कालबेल बजाई, तो अंदर से किसी ने दरवाजा नहीं खोला. कुछ देर इंतजार के बाद चंदा ने दोबारा कालबेल बजाई. इस बार भी न कोई जवाब मिला, न ही दरवाजा खोला गया. चंदा ने सुमिता को आंटी…आंटी कह कर दरवाजा खटखटाना शुरू कर दिया. लेकिन यह क्या, दरवाजा पहले से ही खुला था. हाथ लगते ही दरवाजे का पट खुल गया. चंदा ‘आंटी..आंटी’ पुकारते हुए फ्लैट के अंदर आ गई. जैसे ही वह सुमिता के कमरे में पहुंची तो उस के हलक से चीख निकल गई. वहां का नजारा देख वह हैरान रह गई. कमरे में चारों तरफ खून बिखरा हुआ था. खून के सैलाब में डूबा सुमिता का शव जमीन पर पड़ा था.

चंदा न आई होती तो सुबह को पता नहीं चलता

मां के साथ क्या हुआ, ये बताने के लिए चंदा तेजी से सुमिता की बेटी समरिता के कमरे में गई. लेकिन वहां का नजारा और भी दिल दहला देने वाला था.
मांबेटी के लहूलुहान शव देख कर कामवाली मेड चंदा थरथर कांपने लगी. अगले ही क्षण जब उस की तंद्रा लौटी तो वह शोर मचाते हुए फ्लैट से बाहर निकल आई और ‘खून…खून’ चिल्लाने लगी.

शोर सुन कर आसपास के फ्लैटों में रहने वाले लोग घरों से बाहर निकल आए. चंदा ने हांफते रोते हुए एक ही सांस में सारी कहानी बता दी.
उत्सुकतावश कुछ लोगों ने फ्लैट के भीतर जा कर देखा तो चंदा की बात सही निकली. जानकारी मिलने के बाद मनसारा अपार्टमेंट के सिक्युरिटी गार्ड और आरडब्लूए के पदाधिकारी मौके पर पहुंच गए.
एक सुरक्षित सोसाइटी में फ्लैट के भीतर रहने वाले 2 लोगों का कत्ल हो जाए तो सोसाइटी की सुरक्षा पर सवाल खडे़ होना लाजिमी है.

ये भी पढ़ें-Crime Story: कड़वा घूंट

पासपड़ोस के लोग सुरक्षा में ढिलाई को ले कर खुसरफुसर करने लगे. लोगों की भारी भीड़ एकत्रित हो चुकी थी, इसलिए सोसाइटी के लोगों ने तुरंत पुलिस कंट्रोलरूम को सोसाइटी में हुए दोहरे हत्याकांड की सूचना दे दी. सुबह के वक्त इलाके में हत्या जैसी वारदात, वह भी दोहरे हत्याकांड की सूचना मिल जाए, तो किसी भी पुलिस अधिकारी के मुंह का स्वाद कसैला होना स्वाभाविक है.

न्यू अशोक नगर थाने के एसएचओ तेजराम मीणा की नींद ड्यूटी अफसर द्वारा दी गई इसी मनहूस सूचना से खुली. स्वाभाविक है उन के मुंह का जायका भी बिगड़ा ही होगा. लेकिन एक पुलिस अधिकारी के लिए हर दिन ऐसी वारदातों की सूचनाएं मिलना कोई नई बात नहीं होती.

इंसपेक्टर तेजराम मीणा ने तत्काल बिस्तर छोड़ा और तैयार हो कर अपने सहायक एसएचओ विनोद कुमार, इंसपेक्टर इन्वेस्टीगेशन सरिता व अन्य स्टाफ के साथ मौकाएवारदात की तरफ रवाना हो गए. रास्ते से ही उन्होंने फोन कर के अपने सबडिवीजन कल्याणपुरी के एसीपी जितेंद्री पटेल, डीसीपी जसमीत सिंह, एडीशनल डीसीपी राकेश पावरिया को भी सूचना दे दी थी.

कमोबेश सभी अधिकारी थोड़े से अंतराल के बाद घटनास्थल पर पहुंच गए. मौके पर क्राइम और एफएसएल की टीम को भी बुला लिया गया. फ्लैट के बाहर खड़ी भीड़ को हटाने के बाद एसएचओ मीणा ने जब घर में प्रवेश किया तो मांबेटी के शव देख कर उन की भी रूह कांप उठी.

सुमिता के शरीर पर चाकू जैसे धारदार हथियार से करीब आधा दर्जन से ज्यादा वार किए गए थे, जबकि अपने बैडरूम में फर्श पर पड़ी उन की बेटी समरिता के शरीर पर धारदार हथियार के अनगिनत वार किए गए थे. दोनों के ही कमरों का सामान चारों तरफ बिखरा पड़ा था.

ये भी पढ़ें-Crime Story: खून से सनी नशे की लकीर

घटनास्थल को देख कर साफ लग रहा था कि किसी ने लूटपाट का विरोध करने पर दोनों हत्याओं को अंजाम दिया है. लेकिन यह बताने वाला कोई नहीं था कि हत्यारे घर से कितनी नकदी, कीमती सामान अपने साथ ले गए हैं. लेकिन अगले ही पल पुलिस को लूटपाट की अपनी थ्योेरी बदलनी पड़ी क्योंकि घर में फ्रैंडली एंट्री हुई थी.

घर में जबरन प्रवेश करने के कोई लक्षण नहीं थे, न ही पुलिस को हत्या के समय मांबेटी के साथ गलत नीयत से जोरजबरदस्ती के कोई निशान मिले थे. हां, 2 बातों की शंका जरूर थी कि हत्या करने वाला या वाले मृतक परिवार के परिचित रहे हों. दूसरी संभावना यह थी कि दोनों हत्याएं सोते वक्त की गई थीं या फिर उन्हें मारने से पहले नशीला पदार्थ दिया गया था.

क्राइम और एफएसएल की टीमों ने अपना काम पूरा कर लिया था. डीसीपी जसमीत सिंह की अगुवाई में एसएचओ तेजराम मीणा और उन की टीम ने जांचपड़ताल का सारा काम पूरा कर लिया था, जिस के बाद सुमिता व समरिता के शव को पोस्टमार्टम के लिए भिजवा दिया गया.

रहस्य थी मांबेटी की हत्या

इस दौरान सोसाइटी में रहने वाले कुछ लोगों की मदद से पुलिस ने मृतक मांबेटी के कुछ स्थानीय परिचितों के नंबर हासिल कर के उन्हें इस वारदात की सूचना दी, तो एकएक कर के उन के ज्यादातर परिचितों को इस वारदात की खबर लग गई. पुलिस ने एकएक कर के उन सभी परिचितों से सवालजवाब और उन के बैकग्राउंड के बारे में जानकारी एकत्र करनी शुरू कर दी. मांबेटी की हत्या क्यों हुई, इस का तत्काल खुलासा तो नहीं हो सका लेकिन पुलिस ने पूछताछ के दौरान आपसी रंजिश, लूटपाट, प्रेम प्रसंग समेत तमाम दृष्टिकोणों से छानबीन कर के जानकारी एकत्र करनी शुरू कर दी.

इस दोहरे हत्याकांड में पुलिस के सामने सब से बड़ा सवाल यह था कि सोसाइटी चारों तरफ से कवर थी, ऊंची बाउंड्री थी. गेट पर बिना पहचान बताए और बिना फ्लैट ओनर की रजामंदी के किसी को भीतर नहीं आने दिया जाता था. फिर ऐसा कैसे संभव हुआ कि रात के वक्त एक ही घर के 2 लोगों की हत्याएं कर के हत्यारे आसानी से फरार हो गए.

पुलिस ने पिछले 24 घंटों के दौरान सोसाइटी की सिक्युरिटी में तैनात सभी गार्ड्स को बुला कर उन से एकएक कर के पूछताछ शुरू कर दी. चूंकि मनसारा अपार्टमेंट सोसाइटी में मुख्यद्वार से ले कर हर ब्लौक हर फ्लोर पर सीसीटीवी कैमरों का ऐसा जाल बिछा हुआ था कि कोई भी शख्स किसी भी घर में जाते वक्त इन कैमरों की कैद में आने से नहीं बच सकता था. एसएचओ मीणा की टीम ने कंट्रोल रूम में जा कर सभी कैमरों की फुटेज देखने का काम शुरू कर दिया.

पुलिस टीमों की तरफ से शाम 3 बजे तक की गई कोशिशों से कम से कम इस दोहरे हत्याकांड पर पड़ी धुंध काफी हद तक हट गई. जांच के दौरान पुलिस को पता चला कि शुक्रवार को सुमिता व समरिता आखिरी बार अपनेअपने दफ्तर गई थीं. पुलिस को शुरू से ही लग रहा था कि इस वारदात को किसी जानकार ने ही अंजाम दिया है. सीसीटीवी की जांच और लोगों से पूछताछ के बाद यह बात साफ भी हो गई.

दरअसल, मृतका सुमिता मैसी की बेटी समरिता की एक सहेली प्रेरणा से पुलिस को जानकारी मिली कि समरिता नोएडा में स्कूली पढ़ाई के दौरान से उस की दोस्त थी. समरिता अपनी जिंदगी के बारे में प्रेरणा को अच्छीबुरी हर बात बताया करती थी. प्रेरणा ने पुलिस को बताया कि वारदात से एक दिन पहले यानी रविवार की रात को समरिता कार से अकेली घर लौट रही थी. उस वक्त उस ने गाना गाते हुए वाट्सऐप पर अपना स्टेटस अपडेट किया था. स्टेटस में वह काफी खुश दिख रही थी.

प्रेरणा ने बताया कि करीब 3 साल पहले एक पुराने फ्रैंड की मदद से समरिता की दोस्ती विक्रांत नागर से हुई थी, जिस के बाद दोनों के मिलने का सिलसिला शुरू हुआ और बाद में दोनों लिवइन में रहने लगे. लेकिन एक साल पहले दोनों के बीच अनबन हो गई थी, जिस की वजह से समरिता उस से छुटकारा पाना चाहती थी. समरिता उस से दूरी बनाने लगी थी, क्योंकि 2-3 महीने पहले समरिता की दोस्ती उस के ही साथ हौस्पिटैलिटी में कैरियर बना रहे एक अन्य युवक से हो गई थी और समरिता ने उस के साथ पार्टियों में जाना शुरू कर दिया था.

प्रेरणा ने बताया कि हो सकता है विक्रांत नागर इस से नाखुश हो. हालांकि प्रेरणा ने यह भी बताया कि विक्रांत के बुलावे पर समरिता उस के दोस्तों के बीच पार्टी के लिए अब भी जाती थी. लेकिन उस ने तय कर लिया था कि वह उस के साथ शादी नहीं करेगी. पुलिस द्वारा यह पूछे जाने पर कि विक्रांत नागर कहां रहता है, प्रेरणा ने बताया कि वह सिर्फ इतना ही जानती है कि विक्रांत ने समरिता व उस की मां को बता रखा था कि उस के मातापिता नहीं हैं. वह अपनी मौसी के साथ अमर कालोनी के गढ़ी इलाके में रहता है.
‘‘विक्रांत काम क्या करता है?’’ एसएचओ मीणा ने सवाल किया तो प्रेरणा ने जवाब दिया, ‘‘काम क्या करता है ये तो पता नहीं सर, लेकिन समरिता ने बताया था कि वह आर्टिस्ट है. उस ने 1-2 टीवी शोज में काम किया था. उसे बौडी बनाने का भी शौक था. लेकिन समरिता और उस की मां विक्रांत की आर्थिक मदद किया करती थीं. वह अक्सर उन के घर पर भी रुक जाया करता था.’’

बेटी का दोस्त संदेह के घेरे में

दोनों मांबेटी घर में अकेली रहती थीं, इस लिए विक्रांत के रुकने से उन्हें कोई परेशानी नहीं होती थी. उस के होने से घर में एक मर्द के होने से उन्हें सुरक्षा का अहसास होता था. सुमिता और समरिता बाजार से सामान खरीद कर उसे दिया करती थीं.
कई बार तो वह अपने घर के लिए घरेलू सामान भी उन्हीं से खरीदवा कर ले जाया करता था. चूंकि विक्रांत अक्सर घर आता था. इसलिए सोसायटी के गेट पर तैनात सुरक्षाकर्मी भी उसे परिवार का सदस्य मान कर नहीं रोकते थे.

प्रेरणा से मिली जानकारी पुलिस के लिए काफी मददगार थी. वारदात की सूचना पा कर जितने भी परिचित वहां पहुंचे थे, उन में विक्रांत नहीं था. प्रेरणा ने पुलिस को विक्रांत नागर का मोबाइल नंबर दे दिया था. डीसीपी जसमीत सिंह के आदेश पर तत्काल उस के मोबाइल नंबर की काल डिटेल्स मंगवा ली गई और उस के फोन को सर्विलांस पर लगा दिया गया.
इसी दौरान पुलिस टीम को मनसारा अपार्टमेंट की सिक्युरिटी में तैनात गार्ड्स और सीसीटीवी की फुटेज से भी बड़ा खुलासा हुआ, जिस से पता चला कि बीती रात विक्रांत नागर सुमिता के घर पर आया हुआ था. रात को करीब 2.51 बजे वह समरिता की कार ले कर सोसाइटी से निकला था. उस के साथ गाड़ी में एक और युवक बैठा था.

सोसाइटी से जाते समय वह इतनी हड़बड़ी में था कि उस की कार सोसायटी के गेट से टकरा गई थी और गेट का कुछ हिस्सा टूट गया था. सिक्युरिटी गार्ड ने बैरीकेड लगा कर उस की गाड़ी रुकवा ली थी, लेकिन विक्रांत ने उन से माफी मांगते हुए कहा कि उस की गाड़ी के ब्रेक में अचानक कुछ दिक्कत आ गई है, इसलिए गलती से गाड़ी टकरा गई.

सीसीटीवी से यह भी साफ हो गया कि विक्रांत और उस का दोस्त रात करीब सवा 11 बजे पैदल ही सोसाइटी में आए थे. उस के बाद सुमिता के फ्लैट के बाहर लगे सीसीटीवी से पता चला कि विक्रांत कुछ दूरी पर छिपा था और समरिता करीब डेढ़ बजे अपने फ्लैट का दरवाजा खोल कर बाहर आई थी. वह काफी देर तक नीचे टहलती रही. उस के बाद वह ऊपर फ्लैट में चली गई.

इन तमाम सीसीटीवी फुटेज से यह बात साफ हो गई कि इस हत्याकांड के पीछे विक्रांत नागर व उस के दोस्त का ही हाथ था. क्योंकि हत्याकांड के वक्त वही परिवार के पास था और उस के बाद से उस का कोई पता नहीं था.इसी बीच उच्चाधिकारियों के आदेश पर एसएचओ तेजराम मीणा ने न्यू अशोक नगर थाने में भादंसं की धारा 302 के तहत मामला दर्ज करवा दिया था. केस की जांच का जिम्मा उन्होंने खुद ही ले लिया था. समरिता के लिवइन पार्टनर के लापता होने और उस के बारे में अन्य जानकारी पुलिस के हाथ लग गई थी.

जसमीत सिंह ने उस की गिरफ्तारी के लिए एसएचओ तेजराम मीणा के नेतृत्व में एक पुलिस टीम गठित कर दी, जिस में एएसआई किशनपाल सिंह, हेडकांसटेबल आदेश, कांसटेबल प्रवीण और नरेंद्र को शामिल किया गया. टीम का सुपरविजन करने की जिम्मेदारी एसीपी जितेंद्र पटेल को सौंपी गई. डीसीपी जसमीत सिंह ने न्यू अशोक नगर पुलिस की मदद के लिए जिले के स्पैशल स्टाफ व एटीएस की टीमों को भी जांच और गिरफ्तारी के काम में लगा दिया.

जांच अधिकारी मीणा ने साइबर सेल और सर्विलांस की मदद से पता लगवाया कि विक्रांत की लोकेशन कहां है. पता चला विक्रांत के मोबाइल की लोकेशन जयपुर में है. उसी शाम पुलिस की 2 टीमें जयपुर के लिए रवाना कर दी गईं. डीसीपी जसमीत सिंह ने जयपुर पुलिस से संपर्क साध कर उन्हें विक्रांत का मोबाइल नंबर और उस की लोकेशन से अवगत करा दिया. जयपुर पुलिस ने भी उस नंबर को सर्विलांस पर लगा दिया.

विक्रांत था हत्यारा

अगले तीन घंटों में पुलिस ने जयपुर में विक्रांत को उस होटल से दबोच लिया जहां वह ठहरा हुआ था. विक्रांत के पकड़े जाने की सूचना तत्काल दिल्ली पुलिस को दे दी गई. दिल्ली पुलिस की 2 टीमें पहले ही जयपुर रवाना हो चुकी थीं. उन्होंने जयपुर पहुंचते ही विक्रांत को अपनी गिरफ्त में ले लिया. अगली दोपहर तक पुलिस की टीमें उसे दिल्ली ले आईं. विक्रांत नागर ने न्यू अशोक नगर थाने आ कर पुलिस को बताया कि उस ने अपने दोस्त शैंकी शर्मा के साथ मिल कर अपनी प्रेमिका समरिता और उस की मां की हत्या की थी. वारदात को अंजाम देने के बाद विक्रांत नागर बस द्वारा दिल्ली से जयपुर चला गया था. उस ने बताया कि 2 साल तक लिवइन में रहने के बाद समरिता अक्सर उसे ताने देने लगी थी कि वह कुछ कमाताधमाता नहीं है और उन के टुकड़ों पर पलता है.

अगर दोनों की शादी हो गई तो वह उसे कमा कर कैसे खिलाएगा. शुरू में तो विक्रांत समरिता के तानों को हवा में उड़ा देता था, लेकिन बाद में यह बात जब ज्यादा बढ़ने लगी तो दोनों के बीच इस बात को ले कर अक्सर झगड़ा होने लगा.विक्रांत को 3 महीने पहले तब दिक्कत होने लगी, जब समरिता ने उस से साफ कह दिया कि वह उस के घर कम आयाजाया करे. साथ ही जब विक्रांत को यह खबर लगी कि आजकल समरिता अपने साथ होटल मैनेजमेंट की पढ़ाई करने वाले एक युवक के साथ इश्क कर बैठी है और दोनों एक साथ घूमतेफिरते भी हैं. यह जान कर विक्रांत का पारा सातवें आसमान पर चढ़ गया.

करीब 3 महीने पहले अपने प्रति समरिता के लगाव को परखने के लिए विक्रांत ने शादी का प्रपोजल दिया, जिसे समरिता ने ठुकरा दिया. इस के बाद साफ हो गया कि वह उस से किनारा कर रही है.
विक्रांत ने अपने दोस्त शैंकी को एक दिन फोन कर के बताया कि अगर समरिता उस की ना हो सकी तो वह उसे किसी ओर की भी नहीं होने देगा.होली से 2 दिन पहले जब विक्रांत को पता चला कि होली से एक दिन पहले समरिता का नया प्रेमी होली की पार्टी दे रहा है और वह भी उस में जाने वाली है तो उस ने उसी दिन इरादा बना लिया कि वह समरिता को खत्म कर देगा. उस के दिमाग में एक खतरनाक प्लानिंग ने जन्म ले लिया. इस से आहत हो कर उस ने अपने दोस्त शैंकी को उसी शाम मुंबई से दिल्ली पहुंचने के लिए कहा. शैंकी फ्लाइट पकड़ कर दिल्ली आ गया. एयरपोर्ट से विक्रांत उसे साथ ले कर होली की रात को ही सीधे समरिता के घर पहुंच गया.

होली की रात को दोनों समरिता के अपार्टमेंट में पहुंचे. घर के बाहर छिप कर उस ने समरिता को फोन किया और बातचीत के लिए नीचे बुलाया. जब समरिता नीचे आने लगी तो वे दोनों मौका पा कर घर में दाखिल हो गए. सुमिता अपने कमरे में लौटी सोने की तैयारी कर रही थी.
विक्रांत और शैंकी ने रसोई से मीट काटने वाला चाकू ले कर सब से पहले बेरहमी से सुमिता पर 7-8 वार कर के उस की हत्या कर दी. इस के बाद दोनों समरिता का इंतजार करने लगे. जब समरिता घर में लौटी और कमरे में पहुंची तो दोनों ने उस के कमरे में ले जा कर उस की भी चाकू से गोद कर हत्या कर दी.
इस के बाद दोनों ने कीमती सामान की तलाश में कमरे की तलाशी ली. वहां से दोनों ने 43 हजार रुपए की नकदी और समरिता के डेबिट व क्रेडिट कार्ड अपने कब्जे में ले लिए. उस के बाद आधी रात को करीब 2:51 बजे दोनों पार्किंग में खड़ी समरिता की कार ले कर फरार हो गए. इसी हड़बड़ी में कार सोसाइटी के मेन गेट से टकरा गई थी.

विक्रांत जयपुर में तो शैंकी मुंबई में मिला

सोसाइटी से निकलने के बाद विक्रांत ने समरिता की कार को त्रिलोकपुरी इलाके में छोड़ दिया था. शैंकी वहां से आटो पकड़ कर ईस्ट औफ कैलाश स्थित एक होटल में चला गया. जबकि विक्रांत बस पकड़ कर जयपुर रवाना हो गया और वहां जा कर एक होटल में ठहर गया. जहां से उस के फोन की लोकेशन के आधार पर पुलिस ने उसे दबोच लिया था. विक्रांत से पूछताछ के बाद पुलिस ने उसी शाम को ईस्ट औफ कैलाश में उस होटल पर छापा मारा, जहां शैंकी ठहरा हुआ था. शैंकी को उस वक्त गिरफ्तार किया गया, जब वह होटल का बिल चुका कर फरार होने की तैयारी में था.उसी शाम दोनों की निशानदेही पर पुलिस ने त्रिलोकपुरी से समरिता की कार भी बरामद कर ली. साथ ही उन की निशानदेही पर वारदात में प्रयुक्त चाकू भी बरामद कर लिया गया. यह चाकू समरिता के घर में ही छिपा कर रखा गया था.
जांच के बाद जांच अधिकारी तेजराम मीणा को यह भी पता चला कि विक्रांत को नशे की आदत थी. कुछ साल पहले इसी लत के कारण वह नशामुक्ति केंद्र में भी रह चुका था. उस ने इस वारदात को नशे में अंजाम दिया या नहीं, इस की जांच के लिए पुलिस ने उस के ब्लड सैंपल टेस्ट के लिए भेजे हैं.

जांच में पता चला कि शैंकी मुंबई में रह कर मौडलिंग में अवसर ढूंढ रहा था. उस ने कुछ टीवी शोज में भी काम किया था. वहीं विक्रांत भी एक शो में काम कर चुका था इसी कारण दोनों के बीच गहरी दोस्ती थी.
पूछताछ में विक्रांत ने बताया कि वह और शैंकी हत्या करने के बाद घर में रखे 43 हजार रुपए अपने साथ ले कर निकले थे. इस रकम से दोनों ने नए मोबाइल ले लिए थे. समरिता के डेबिट और क्रेडिट कार्ड भी वे अपने साथ ले गए थे.

विक्रांत ने कनौट प्लेस में एक एटीएम से पैसे निकालने की कोशिश भी की थी, लेकिन समरिता ने कुछ दिन पहले ही अपना पिन बदल दिया था, जिस की जानकारी विक्रांत को नहीं थी. इसलिए वह एटीएम से रकम नहीं निकाल सका.

पुलिस ने उसी शाम को विक्रांत और शैंकी के खिलाफ दर्ज हत्या के मामले में लूट की धारा भी जोड़ दी और दोनों को कड़कड़डूमा कोर्ट में पेश किया, जहां से दोनों को जेल भेज दिया गया.
उसी शाम पुलिस को मिली पोस्टमार्टम से खुलासा हुआ कि समरिता मैसी के शरीर पर 30 से ज्यादा चाकू के वार किए गए थे, जबकि मां सुमिता मैसी के शरीर पर चाकू के 10 घाव मिले थे.
सुमिता और समरिता को इस बात का अहसास भी नहीं था कि जिस विक्रांत को उन्होंने अपना सहारा मान कर घर में पनाह दी थी, वही आस्तीन का सांप निकलेगा और उन की जिंदगी को डस लेगा. द्य
—कथा पुलिस की जांच व आरोपियों से हुई पूछताछ पर आधारित

आई हेट हर-भाग 3: गूंज अपनी मां से क्यों नाराज रहती थी?

तब वह ढिठाई से हंस देती थी. उसे मालूम था कि ज्यादा से ज्यादा मां फिर से उस की पिटाई कर देंगी और क्या? पिटपिट कर वह मजबूत हो  चुकी थी. अब पिटने को ले कर उस के मन में कोई खौफ नहीं था.

 

वह कक्षा 7वीं में थी. गणित के पेपर में फेल हो गई थी. जुलाई में उस की फिर से परीक्षा होनी थी. वह स्कूल से अपमानित हो कर आई थी, क्योंकि गणित के कठिन सवाल उस के दिमाग में घुसता ही नहीं था.

 

घर के अंदर घुसते ही सभी के व्यंग्यबाणों से उस का स्वागत हुआ था,”अब तो घर में नएनए काम होने लगे हैं… गूंज से इस घर में झाड़ूपोंछा लगवाओ. वह इसी के लायक है…”

 

एक दिन ताईजी ने भी गूंज को व्यंग्य से कुछ बोलीं तो वह उन से चिढ़ कर कुछ बोल पङी. फिर क्या था, उसे जोरदार थप्पड़ पङे थे.

 

इस घटना के बाद उस की आंखों के आंसू सूख चुके थे… अब वह मां को परेशान करने के नएनए तरीके सोच रही थी. कुछ देर में मां आईं और फूटफूट कर रोने लगीं थीं. कुछ देर तक उस के मन में यह प्रश्न घुमड़ता रहा कि जब पीट कर रोना ही है तो पीटती क्यों हैं?

मां के लिए उस के दिल में क्रोध और घृणा बढ़ती गई थी.

 

लेकिन उस दिन पहली बार मां के चेहरे पर बेचारगी का भाव देख कर वह व्याकुल हो उठी थी.

व्यथित स्वर में वे बोली थीं, “गूंज, पढ़लिख कर इस नरक से निकल जाओ, मेरी बेटी.‘’

 

उस दिन मजबूरी से कहे इन प्यारभरे शब्दों ने उस के जीवन में पढ़ाई के प्रति रुचि जाग्रत कर दी थी.

अब पढ़ाई में रुझान के कारण उस का रिजल्ट अच्छा आने लगा तो मां की शिकायत दूर हो गई थी.

 

वह 10वीं में थी. बोर्ड की परीक्षा का तनाव लगा रहता था… साथ ही अब उस की उम्र की ऐसी दहलीज थी, जब किशोर मन उड़ान भरने लगता है. फिल्म, टीवी के साथसाथ हीरोहीरोइन से जुड़ी खबरें मन को आकर्षित करने लगती हैं.

 

पड़ोस की सुनिता आंटी का बेटा कमल भैया का दोस्त था. अकसर वह घर आया करता था. वह बीएससी में था, इसलिए वह कई बार उस से कभी इंग्लिश तो कभी गणित के सवाल पूछ लिया करती थी.

 

वह उस के लिए कोई गाइड ले कर आया था. उस ने अकसर उसे अपनी ओर देख कर मुसकराते हुए देखा था. वह भी शरमा कर मुसकरा दिया करती थी.

 

एक दिन वह उस के कमरे में बैठ कर उसे गणित के सवाल समझा रहा था. वह उठ कर अलमारी से किताब निकाल रही थी कि तभी उस ने उसे अपनी बांहों में भर लिया था. वह सिटपिटा कर उस की पकड़ से छूटने का प्रयास कर रही थी कि तभी कमरे में कमल भैया आ गए और बस फिर तो घर में जो हंगामा हुआ कि पूछो मत…

 

वह बिलकुल भी दोषी नहीं थी लेकिन घर वालों की नजरों मे सारा दोष उसी का था…

 

“कब से चल रहा है यह ड्रामा? वही मैं कहूं कि यह सलिल आजकल क्यों बारबार यहां का चक्कर काट रहा है… सही कहा है… कहीं पर निगाहें कहीं पर निशाना…

 

मां ने भी उस की एक नहीं सुनी, न ही कुछ पूछा और लगीं पीटने,”कलमुंही, पढ़ाई के नाम पर तुम्हारा यह नाटक चल रहा है…”

 

वह पिटती रही और ढिठाई से कहती रही,”पीट ही तो लोगी… एक दिन इतना मारो कि मेरी जान ही चली जाए…”

 

मां का हाथ पकड़ कर अपने गले पर ले जा कर बोलती,”लो मेरा गला दबा दो… तुम्हें हमेशाहमेशा के लिए मुझ मुक्ति मिल जाएगी.”

 

उस दिन जाने कैसे पापा घर आ गए थे… उस को रोता देख मां से डांट कर बोले,”तुम इस को इतना क्यों मारती हो?”

 

तो वे छूटते ही बोलीं,”मेरी मां मुझे पीटती थीं इसलिए मैं भी इसे पीटती हूं.”

 

पापा ने अपना माथा ठोंक लिया था.

अब मां के प्रति उस की घृणा जड़ जमाती जा रही थी. वह उन के साथ ढिठाई से पेश आती. उन से बातबात पर उलझ पड़ती.

 

मगर गुमसुम रह कर अपनी पढाई में लगी रहती. वह मां का कोई कहना नहीं मानती न ही किसी की इज्जत करती. उस की हरकतों से पापा भी परेशान हो जाते. दिनबदिन वह अपने मन की मालिक होती जा रही थी.

 

उस के मन में पक्का विश्वास था कि यह पूजापाठ, बाबा केवल पैसा ऐंठने के लिए ही आते हैं… यही वजह थी कि वह पापा से भी जबान लड़ाती. वह किसी भी हवनपूजन, पूजापाठ में न तो शामिल होती और न ही सहयोग करती.

इस कारण अकसर घर में कहासुनी होती लेकिन वह अपनी जिद पर अड़ी रहती.

 

इसी बीच उस का हाईस्कूल का रिजल्ट आया. उस की मेहनत रंग लाई थी. उस ने स्कूल में टौप किया था. उस के 92% अंक आए थे. बस, फिर क्या था, उस ने कह दिया कि उसे कोटा जा कर आगे की पढ़ाई करनी है. इस बात पर एक बार फिर से मां ने हंगामा करना शुरू कर दिया था,”नहीं जाना है…किसी भी हालत में नहीं…”

 

लेकिन पापा ने उसे भेज दिया और वहां अपने मेहनत के बलबूते वह इंजीनियरिंग की प्रतियोगिता पास कर बाद में इंजीनियर बन गई.

 

उधर पापा की अपनी लापरवाही के कारण उन का स्टाफ उन्हें धोखा देता रहा… वे सत्संग में मगन रह कर पूजापाठ में लगे रहे.

 

जब तक पापा को होश आया उन का बिजनैस बाबा लोगों द्वारा आयोजित पूजापाठ, चढ़ावे के हवनकुंड में स्वाह हो चुका था. अब वे नितांत अकेले हो गए. फिर उन्हें पैरालिसिस का अटैक हुआ. कोई गुरूजी, बाबा या फिर पूजापाठ काम नहीं आया. तब गूंज ने खूब दौड़भाग की लेकिन निराश पापा जीवन की जंग हार गए…

 

मां अकेली रह गईं तो वह बीना को उन के पास रख कर उस ने अपना कर्तव्य निभा दिया.

 

गूंज का चेहरा रोष से लाल हो रहा था तो आंखों से अश्रुधारा को भी वह रोक सकने में समर्थ नहीं हो पाई थी.

‘’पार्थ, आई हेट हर…’’

 

“आई अंडरस्टैंड गूंज, तुम्हारे सिवा उन का इस दुनिया में कोई नहीं है, इसलिए तुम्हें उन के पास जाना चाहिए. शायद उन के मन में पश्चाताप  हो, इसलिए वे तुम से माफी मांगना चाहती हों…यदि तुम्हें मंजूर हो तो उन्हें बैंगलुरू शिफ्ट करने में मैं तुम्हारी मदद कर सकता हूं. यहां के ओल्ड एज होम का नंबर मुझे मालूम है. यदि तुम कहो तो मैं बात करूं?”

 

“पार्थ, मैं उन की शक्ल तक देखना नहीं चाहती…”

 

“मगर डियर, सोचो कि एक मजबूर बुजुर्ग, वह भी तुम्हारी अपनी मां, बैड पर लेटी हुईं तुम्हारी ओर नजरें लगाए तुम्हें आशा भरी निगाहों से निहार रही हैं…”

 

वह बुदबुदा कर बोली थी, ‘’कहीं पहुंचने में हम लोगों को देर न हो जाए.‘’

 

गूंज सिसकती हुई मोबाइल से फ्लाइट की टिकट बुक करने में लग गई…

आई हेट हर-भाग 2: गूंज अपनी मां से क्यों नाराज रहती थी?

कुछ दिनों के बाद वह एक दिन स्कूल से लौट कर आई तो मां उस पैंसिल बौक्स को पंडित के लड़के को दे रही थीं. यह देखते ही वह चिल्ला कर  उन के हाथ से बौक्स छीनने लगी,”यह मुझे मिला था, यह मेरा है.”

 

इतनी सी बात पर मां ने उस की गरदन पीछे से इतनी जोर से दबाई कि उस की सांसें रुकने लगीं और मुंह से गोंगों… की आवाजें निकलने लगीं… वह बहुत देर तक रोती रही थी.

 

लेकिन समय सबकुछ भुला देता है.

वह कक्षा 4 में थी. अपनी बर्थडे के दिन नई फ्रौक दिलवाने की जिद करती रही लेकिन फ्रौक की जगह उस के गाल थप्पड़ से लाल हो गए थे. वह रोतेरोते सो गई थी लेकिन शायद पापा को उस का बर्थडे याद था इसलिए वह उस के लिए टौफी ले कर आए थे. वह स्कूल यूनीफौर्म में ही अपने बैग में टौफी रख कर बेहद खुश थी. लेकिन शायद टौफी सस्ती वाली थी, इसलिए ज्यादातर बच्चों ने उसे देखते ही लेने से इनकार कर दिया था. वह मायूस हो कर रो पड़ी थी. उस ने गुस्से में सारी टौफी कूङेदान में फेंक दी थी.

लेकिन बर्थडे तो हर साल ही आ धमकता था.

 

पड़ोस में गार्गी उस की सहेली थी. उस ने आंटी को गार्गी को अपने हाथों से खीर खिलाते देखा था. उसी दिन से वह कल्पनालोक में केक काटती और मां के हाथ से खीर खाने का सपना पाल बैठी थी. पर बचपन का सपना केक काटना और मां के हाथों  से खीर खाना उस के लिए सिर्सफ एक सपना ही रह गया .

 

वह कक्षा 6 में आई तो सुबह मां उसे चीख कर जगातीं, कभी सुबहसुबह थप्पड़ भी लगा देतीं और स्वयं पत्थर की मूर्ति के सामने बैठ कर घंटी बजाबजा कर जोरजोर से भजन गाने बैठ जातीं.

 

वह अपने नन्हें हाथों से फ्रिज से दूध निकाल कर कभी पीती तो कभी ऐसे ही चली जाती. टिफिन में 2 ब्रैड या बिस्कुट देख कर उस की भूख भाग जाती. अपनी सहेलियों के टिफिन में उन की मांओं के बनाए परांठे, सैंडविच देख कर उस के मुंह में पानी आ जाता साथ ही भूख से आंखें भीग उठतीं. यही वजह थी कि वह मन ही मन मां से चिढ़ने लगी थी.

 

उस ने कई बार मां के साथ नजदीकी बढ़ाने के लिए उन के बालों को गूंथने और  हेयरस्टाइल बनाने की कोशिश भी की थी मगर मां उस के हाथ झटक देतीं.

 

मदर्सडे पर उस ने भी अपनी सहेलियों के साथ बैठ कर उन के लिए प्यारा सा कार्ड बनाया था लेकिन वे उस दिन प्रवचन सुन कर बहुत देर से आई थीं. गूंज को मां का इतना अंधविश्वासी होना बहुत अखरता था. वे घंटों पूजापाठ करतीं तो गूंज को कोफ्त होता.

 

जब मदर्सडे पर उस ने उन्हें मुस्कराते हुए कार्ड दिया तो वे बोलीं,”यह सब चोंचले किसलिए? पढोलिखो, घर का काम सीखो, आखिर पराए घर जाना है… उन्होंने कार्ड खोल कर देखा भी नहीं था और अपने फोन पर किसी से बात करने में बिजी हो गई थीं.

 

वह मन ही मन निराश और मायूस थी साथ ही गुस्से से उबल रही थी.

पापा अपने दुकान में ज्यादा बिजी रहते. देर रात घर में घुसते तो शराब के नशे में… घर में ऊधम न मचे, इसलिए मां चुपचाप दरवाजा खोल कर उन्हें सहारा दे कर बिस्तर पर लिटा देतीं. वह गहरी नींद में होने का अभिनय करते हुए अपनी बंद आंखों से भी सब देख लिया करती थी.

 

रात के अंधेरे में मां के सिसकने की भी आवाजें आतीं. शायद पापा मां से उन की पत्नी होने का जजियाकर वसूलते थे. उस ने भी बहुत बार मां के चेहरे, गले और हाथों पर काले निशान देखे थे.

 

पापा को सुधारने के लिए मां ने बाबा लोगों की शरणों में जाना शुरू कर दिया था… घर में शांतिपाठ, हवन, पूजापाठ, व्रतउपवास, सत्संग, कथा आदि के आयोजन आएदिन होने लगे था. मां को यह विश्वास था कि बाबा ही पापा को नशे से दूर कर सकते हैं, इसलिए वे दिनभर पूजापाठ, हवनपूजन और उन लोगों का स्वागतसत्कार करना आवश्यक समझ कर उसी में अपनेआप को समर्पित कर चुकी थीं. वैसे भी हमेशा से ही घंटों पूजापाठ, छूतछात, कथाभागवत में जाना, बाबा लोगों के पीछे भागना उन की दिनचर्या में शामिल था.

 

अब तो घर के अंदर बाबा सत्यानंद का उन की चौकड़ी के साथ जमघट लगा रहता… कभी कीर्तन, सत्संग और कभी बेकार के उपदेश… फिर स्वाभाविक था कि उन का भोजन भी होगा…

 

पापा का बिजनैस बढ़ गया और उस महिला का तबादला हो गया था, जिस के साथ पापा का चक्कर चल रहा था. वह मेरठ चली गई थी… मां का सोचना था कि यह सब कृपा गुरूजी की वजह से ही हुई है, इसलिए अब पापा भी कंठी माला पहन कर सुबहशाम पूजा पर बैठ जाते. बाबा लोगों के ऊपर खर्च करने के लिए पापा के पास खूब पैसा रहता…

 

इन सब ढोंगढकोसलों के कारण उसे पढ़ने और अपना होमवर्क करने का समय ही नहीं मिलता. अकसर उस का होमवर्क अधूरा रहता तो वह स्कूल जाने के लिए आनाकानी करती. इस पर मां का थप्पड़ मिलता और स्कूल में भी सजा मिलती.

 

वह क्लास टेस्ट में फेल हो गई तो पेरैंट्स मीटिंग में टीचर ने उस की शिकायत की कि इस का होमवर्क पूरा नहीं रहता और क्लास में ध्यान नहीं देती, तो इस बात पर भी मां ने उस की खूब पिटाई की थी.

 

धीरेधीरे वह अपनेआप में सिमटने लगी थी. उस का आत्मविश्वास हिल चुका था. वह हर समय अपनेआप में ही उलझी रहने लगी थी. क्लास में टीचर जब समझातीं तो सबकुछ उस के सिर के ऊपर से निकल जाता.

 

वह हकलाने लगी थी. मां के सामने जाते ही वह कंपकंपाने लगती. पिता की अपनी दुनिया थी. वे उसे प्यार तो करते थे, पिता को देख कर गूंज खुश तो होती थी लेकिन बात नहीं कर पाती थी. वह कभीकभी प्यार से उस के सिर पर अपना हाथ फेर देते तो  वह खुशी से निहाल हो उठती थी.

 

उधर मां की कुंठा बढती जा रही थी. वे नौकरों पर चिल्लातीं, उन्हें गालियां  देतीं और फिर गूंज की पिटाई कर के स्वयं रोने लगतीं,”गूंज, आखिर मुझे क्यों तंग करती रहती हो?‘’

अनलिमिटेड कहानियां-आर्टिकल पढ़ने के लिएसब्सक्राइब करें