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लेखक-डा. भारत खुशालानी,

आकृति अपने टीवी सेट से गढ़ी हुई थी. खबर थी, लाहौर से कराची जाने वाला विमान दुर्घटनाग्रस्त हो गया.

उसी की खबर को हर चैनल पर दिखाया जा रहा था.

अलविदा जुम्मा… ईद से पहले का जुम्मा… उस पर ऐसा कहर बरपा था कुदरत ने… जैसे वायरस का प्रकोप कम पड़ गया हो प्रकृति को कहर ढाने के लिए.

कराची हवाईअड्डे के पास ही में एक कालोनी पर दुर्घटनाग्रस्त हो कर विमान गिर गया था. काले धुएं का भयंकर गुबार उठ रहा था. कोरोना वायरस के कारण लौकडाउन होने के बावजूद लोग ईद मनाने के लिए अपने रिश्तेदारों के घर आजा रहे थे.

हवाईअड्डे के पास की छोटी तंग गलियों के इलाके में मकानों के ऊपर यह हवाईजहाज गिर गया था. एंबुलेंस वहां आ रही थीं. अग्निशामक दस्ते पानी के बड़े फव्वारों को टूटे हुए विमान के जलते हुए टुकड़ों पर डाल कर ठंडा कर रहे थे.

वहां लोगों की भारी भीड़ खडी हो कर अविश्वसनीय आंखों से यह दृश्य देख रही थी. बहुत से लोग मलबे से लाशों को निकालने में जुटे हुए थे.

एक चैनल पर विमान चालक के साधारण से शब्द सुनाए जा रहे थे, “मे डे, मे डे, मे डे … पकिस्तान 8303.” इस का मतलब था कि पाकिस्तान की हवाई उड़ान पी-आई-ए संख्या 8303 इतनी खतरे में पहुंच गई थी कि उस का बच पाना लगभग नामुमकिन था.

हवाईजहाज के दोनों इंजनों में आग लग गई थी. 3 बार रनवे का चक्कर काटने के बावजूद हवाईजहाज रनवे पर उतर ही नहीं सका, जबकि टावर से उस के विमान तल पर उतरने के लिए दोनों रनवे खाली करवा दिए गए थे.

2 यात्री घायल हो गए, मगर उन की जान बच गई. विमान में मौजूद बाकी सारे यात्री, विमान के स्टाफ समेत सभी मौत की नींद सो गए.

आकृति बेहद विचलित थी. पिछले महीने ही उस ने गर्भपात कराया था, अपने कैरियर को ध्यान में रखते हुए. पहले से ही वह तनावपूर्ण अवस्था में थी. उस पर यह विमान दुर्घटना.

आकृति ने अपने माथे को जोर से पकड़ लिया. सोमवार 25 मई, 2020 को उड़ान भरने वाले चालकों की सूची में उस का भी नाम था. 2 महीने लौकडाउन में रहने के बाद घरेलू उड़ानें उड़ने के लिए तैयार हो रही थीं. दिल्ली से नागपुर जाने वाली उड़ान में उस का नाम चालिका के रूप में था. उस की सहचालिका इंदरजीत कौर थी.

आकृति बेहद तनाव में आ गई. रातभर उसे नींद नहीं आई. हर बार आंख लगने पर उसी दुर्घटनाग्रस्त विमान का उन 10 बिल्डिंगों पर गिर कर उन को नष्ट कर देने की तसवीरें. मलबे में दबे हुए लोगों की निकाली जा रही लाशें. रिश्तेदारों के रोनेबिलखने की तसवीरें. हवाईजहाज की धीमी उतराव की तसवीरें और उस के बाद सब खत्म.

कुछ लोगों का यह मानना है कि हमारी सोच ही हमारा निर्माण करती है. हमारे व्यक्तित्व का तो वो निर्माण करती ही है, लेकिन हमारे आसपास की परिस्थितियों का भी वो निर्माण करती है. हमारी सोच ही हमारे आसपास ऐसी परिस्थितियां बना देती है, जो हमारी सोच के अनुकूल हो. जरूरी नहीं कि हमारी सोच सकारात्मक हो. नकारात्मक सोच नकारात्मक परिस्थितियों का निर्माण करने में सक्षम होती है. ऐसी धारणा है.

पता नहीं, यह कहां तक सच है. अगर किसी के मन में किसी बीमारी को ले कर डर बना हुआ है और वो लगातार इस बीमारी के बारे में सोचता जा रहा है, जो मनोविज्ञान के जटिल सिद्धांतों के अनुसार, उस व्यक्ति के इसी बीमारी से रोगी होने के पूरेपूरे आसार हैं.

कराची विमान दुर्घटना ने भी ऐसी ही बीमारी का रूप आकृति के मन में धर लिया. वैसे तो हादसे हजारों होते हैं. विमान से संबंधित हादसे भी कई होते हैं, लेकिन मन में डर तब बैठ जाता है, जब मन में चोर छिपा हो.

नियम के अनुसार, आकृति को अपने गर्भपात के बारे में विमान कंपनी को बता देना चाहिए था. लेकिन इतना समय यों ही घर में बैठे रहने या वापस अपने काम पर जाने की चाह से, आकृति ने किसी को कुछ भी बताना उचित नहीं समझा. कंपनी नियम के इस उल्लंघन ने उस के मन में चोर की भावना पैदा कर दी.

जाहिर है, गर्भपात के बाद कंपनी आकृति को 2-3 महीने और घर में बिठा कर रखती, और आकृति किसी भी दृष्टि से अपनेआप को हवाईजहाज उड़ाने में नाकाबिल नहीं समझ रही थी. गर्भपात कोई इतनी बड़ी बात नहीं थी. लेकिन कंपनी वालों के लिए यह मनोवैज्ञानिक असंतुलन की बात थी. हवाई यात्रियों की सुरक्षा, कंपनी वालों की हर सूची में सब से ऊपर थी.

उड़ान के दिन, मास्क और ग्लब्स पहने हुए यात्रियों के जनसमुदाय ने दिल्ली से नागपुर जाने वाले आकृति के विमान में अपनीअपनी जगहें लीं. निश्चित समय पर विमान अपने गंतव्य स्थान की ओर उड़ चला.

उड़ान के दौरान आकृति की नजरों के आगे दुर्घटनाग्रस्त विमान के हजारों टुकड़े रहरह कर आ रहे थे.

एक बात से आकृति और भी ज्यादा व्यथित हो गई थी. उस का विमान भी एयरबस 320 था. ठीक वही विमान, जो कराची में दुर्घटनाग्रस्त हुआ था.

वैसे तो एयरबस 320 का खुद का सुरक्षा रिकार्ड बहुत ही उम्दा था, लेकिन मस्तिष्क पर भय के हौवे के आगे बड़ी से बड़ी सुरक्षा में भी भेद ढूंढ़ पाना आसान था.

आकृति के दिमाग में रहरह कर यही बात आ रही थी कि 2 दिन पहले की दुर्घटना में हवाईजहाज में मौजूद सभी स्टाफ की मौत हो गई थी. चालक, सहचालक और कर्मी दल मिला कर 8 स्टाफ के लोग थे. आठों की मृत्यु हो गई थी. और उस से भी बड़ा इत्तिफाक यह था कि दुर्घटनाग्रस्त विमान भी लाहौर से एक बजे निकल कर कराची ढाई बजे पहुंचने वाला था, और आकृति की उड़ान भी दिल्ली से एक बजे निकल कर पौने 3 बजे नागपुर पहुंचने वाली थी. इतने बड़े संयोग एकसाथ हो रहे थे. इन्हीं के चलते आकृति के दिल की धडकनें तेज हो गई थीं.

पता नहीं, वह कैसा संयोग था या आकृति के मस्तिष्क की किरणों से उत्पन्न नकारात्मक परिस्थिति कि जब आकृति अपने विमान को नागपुर के बाबासाहेब अंबेडकर अंतर्राष्ट्रीय हवाईअड्डे के एकदम पास ले कर आ गई तो विमान के बाईं ओर के इंजन में आग लग गई.

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